स्वरोजगार योजना के साथ-साथ यह अनुभव किया गया कि मानव संसाधन में निवेश करना भी
महत्तपूर्ण है । क्योंकि इसके द्वारा असहाय व निर्धन युवा, युवतियों को तकनीकी
योग्यता व उद्यमियता का विकास होता है और अन्ततः उन्हें स्थाई रोजगार के लिए सक्षम
बनाता है । इसी उद्वेश्य से 1985-86 से ट्राईसम पद्वति पर प्रशिक्षण पर कार्यक्रम
चलाया गया तथा इस क्षेत्र में सुधार करके 1991 में गैर परम्परागत व्यवसायों में
प्रशिक्षण दिलवाने की व्यवस्था की गई । निगम द्वारा इस योजना को और लाभप्रद बनाने
के लिए वर्ष 1997-98 में दलित वर्ग व्यवसायिक प्रशिक्षण योजना आरम्भ की गई । |
योजना की मुख्य विशेषतायें
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योजना का शुभारम्भ : वर्ष 1997-98
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योजना :
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अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के युवा, युवतियों को परम्परागत एवम गैर परम्परागत व्यवसाय जैसे इलैक्ट्रशियन, स्टैनोग्राफी,वस्त्र निर्माण, पलम्बर, मोटर ड्राईविंग बैल्डिग इत्यादि
में प्रशिक्षण दिलवाना।
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प्रशिक्षण अवधि: व्यवसाय अनुसार अथवा अधिकतम 12 मास।
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प्रशिक्षण व्यय : प्रशिक्षण का व्यय कच्चे माल सहित तथा प्रशिक्षण संस्था को मानदेय
सहित निगम वहन करता है।
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छात्रवृति : प्रतिमाह 500/रू. प्रति प्रशिक्षणार्थी यदि वह अपने जिला में प्रशिक्षण
ले रहा हो। प्रतिमाह 750/रू. यदि वह अपने जिले से बाहर प्रशिक्षण ले रहा हो।
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पात्रता : |
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हिमाचल प्रदेश का स्थाई निवासी व अनुसूचित जाति वर्ग से सम्बन्ध रखता हो।
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आदेवक की आयु 18 वर्ष और 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
- परिवार की वार्षिक आय मु.35,000/- रू. से अधिक न हो।
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प्रक्रिया:
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- प्रशिक्षण संस्थानों का चयनः प्रशिक्षण संस्थान का चयन संस्थान में प्रर्याप्त
स्थान, आवश्यक मशीनरी तथा प्रशिक्षकों की शैक्षणिक व व्यवसायिक योग्यता को मध्य नजर
रखते हुये जिला प्रबन्धक की अनुसंशा पर मुख्यालय द्वारा किया जाता है ।
- जिला प्रबन्धक द्वारा इच्छुक उम्मीदवारों के आवेदन पत्र लिये जाते है प्रशिक्षणार्थी
का चयन जिला की चयन समिति द्वारा किया जाता है जिसकी अध्यक्षता उपायुक्त अथवा उनके
प्रतिनिधि करते है।
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