Tribal Development
आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25


1.सामान्य समीक्षा

पिछले कुछ वर्षों में, वैश्विक अर्थव्यवस्था ने महामारी और ऊर्जा संकट जैसे बड़े़ ़ झटकों के बावजूद उल्लेखनीय तन्यकता का प्रदर्शन किया है। इस साल वैश्विक वृद्धि स्थिर रही, जबकि मुद्रास्फीति मे ं गिरावट जारी रही। श्रम बाज़ारो ं में कुछ नरमी के बावजूद, कई देशों में बेरोज़गारी दर अभी भी ऐतिहासिक निचले स्तर के करीब है। वैश्विक व्यापार में भी सुधार हो रहा है। इस पृष्ठभूमि मे ं, इस अध्याय को तीन खंडों में व्यवस्थित किया गया है। पहला खंड वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को व्यापक रूप से रेखांकित करता है, जिसमें विकास और विकास की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला गया है। दूसरा खंड राष्ट्रीय समग्र आर्थिक स्थिति पर केंद्रित है और तीसरा खंड हिमाचल की अर्थव्यवस्था में प्रमुख प्रवृत्तियों की जांच करता है। वैश्विक आर्थिक वृद्धि मध्यम बनी हुई है। वर्ष 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस वर्ष वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 3.2 प्रतिशत और 2025 और 2026 में 3.3 प्रतिशत होने का अनुमान है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओ.ई.सी.डी.) ने कई देशों में राजकोषीय नीति की कठोरता के कारण कुछ बाधाओं के बावजूद, मांग को सुचारु रखने के लिए के लिए कम मुद्रास्फीति, स्थिर रोजगार वृद्धि और कम प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति पर महत्व दिया। भारत और इंडोनेशिया में घरेलू मांग में बढ़ोतरी और चीन और जापान मे ं हाल ही मे ं घोषित प्रोत्साहन उपायों से एशिया में निरंतर मजबूत आर्थिक वृद्धि की उम्मीद है।
चित्र 1.1 से पता चलता है कि भारत 2024, 2025 और 2026 में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होगी। चीन तीनों वर्षों मे ं भारत के साथ निकटतम दावेदार प्रतीत होता है जबकि अन्य सभी अर्थव्यवस्थाएं भारत द्वारा हासिल की जाने वाली वृद्धि दर से बहुत दूर प्रतीत होती हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) के विश्व आर्थिक आउटलुक (डब्ल्यू.ई.ओ.) ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक जी.डी.पी. वृद्धि मोटे तौर पर समान रहेगी - जो 2023 में 3 3 प्रतिशत से घटकर 2029 तक 3.1 प्रतिशत हो जाएगी। वर्षवार वैश्विक जी.डी.पी. वृद्धि 2024 और 2025 के लिए 3.2 प्रतिशत कम हो गई है। महामारी से पहले के रुझानों की तुलना में सेवाओं के मुकाबले वस्तुओं की कीमते ं ऊंची बनी हुई हैं, महामारी और उसके परिणाम स्वरूप दबी हुई मांग का प्रभाव लंबे समय तक बना रहा, जिससे वस्तुओं की मजबूत मांग देखी गई। नतीजतन, स्थिर वृद्धि के आंकडो ं के पीछे, वस्तुओं से सेवाओं की खपत की ओर वैश्विक बदलाव चल रहा है। यह पुर्न सन्तुलन उन्नत और उभरते बाजारों में सेवा क्षेत्र में गतिविधि को बढ़ावा दे रहा है लेकिन विनिर्माण को कमजोर कर रहा है। अप्रैल 2024 में आईएमएफ ने भारत की जी.डी.पी. ग्रोथ 6.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। जुलाई 2024 में, इस पूर्वानुमान को 20 आधार अंक संशोधित करके 7.0 प्रतिशत और 2025 में 6.5 प्रतिशत कर दिया, क्योंकि महामारी के दौरान जमा हुई मांग समाप्त हो गई और अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता के साथ फिर से वृद्धि कर रही है। इस आशावादी दृष्टिकोण का श्रेय विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़े हुए घरेलू खर्च को दिया जाता है, जो उच्च कृषि आय और सरकारी सहायता कार्यक्रमो ं से प्रेरित है।
2025 और 2026 के लिए विश्व अर्थव्यवस्थाओं के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान, वैश्विक आर्थिक संभावनाएँ में लगाया गया है, जिसमें भारत को पिछली वृद्धि बरकरार रखते हुए इन वर्षों में भी दुनिया में सबसे अधिक विकास दर वाले देश के रूप में पेश किया गया है। यह घरेलू परिस्थितियों, वैश्विक रुझानों और नीतिगत उपायों से प्रभावित आर्थिक वृद्धि प्रक्षेप पथ में भिन्नता पर प्रकाश डालता है। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, हालांकि, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में विकास दर काफी हद तक भिन्न है, जिसे नीचे सारणी 1.1 में प्रस्तुत किया गया है।
उपरोक्त सारणी के अनुसार, जहाँ जापान की अर्थव्यवस्था सकारात्मक वृद्धि दर बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है बहीं प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए वृद्धि दर तुलनात्मक रूप से स्थिर है। दूसरी ओर, दक्षिण एशिया 2024 से 2026 तक तीन वर्षों तक लगातार 6 से 6.2 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ दुनिया मे ं वृद्धि दर के चालक के रूप में उभरा है। अनुमान लगाया गया है कि भारत 2025 और 2026 में उच्चतम वृद्धि दर हासिल करेगा। सारणी 1.2 दुनिया की शीर्ष दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को दर्शाती है जिसमे ं संयुक्त राज्य अमेरिका को शीर्ष पर दर्शाया गया है। भारत को 2024 के लिए विश्व की जी डी.पी. रैंकिंग मे ं 5 वे ं स्थान पर रखा गया है। देश की अर्थव्यवस्था विविध है और तेजी से बढ़ रही है, जो सूचना प्रौद्योगिकी, सेवाओं, कृषि और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों द्वारा संचालित है। व्यापक घरेलू बाज़ार, युवा और तकनीकी रूप से कुशल श्रम शक्ति और विस्तारित मध्यम वर्ग भारत की आर्थिक वृद्धि के प्रमुख संचालक है।
भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद, गतिशील सुधारों और विविध क्षेत्रों में इसके महत्वपूर्ण योगदान से चिह्नित है। प्रचलित कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के संदर्भ मे ं भारत दुनिया मे ं पांचवीं सबसे बड़़ ़ी जी.डी.पी. और क्रय शक्ति समता (पी.पी.पी.) में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ, भारत वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप मे ं, यह भारतीय स्वतंत्रता की शताब्दी, 2047 तक उच्च मध्यम आय की स्थिति तक पहु ंचने की आकांक्षाओ ं के साथ, इस पथ पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है। पिछले दो दशकों की आर्थिक वृद्धि के कारण भारत ने अत्यधिक गरीबी को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। अनुमान है कि 2011 और 2019 के बीच, देश मे ं अत्यधिक गरीबी-प्रति व्यक्ति प्रति दिन डॉलर 2.15 से नीचे (2017 पी.पी.पी.) में रहने वाली आबादी का हिस्सा आधा हो गया है।
बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश और रियल एस्टेट में बढ़ते घरेलू निवेश से आर्थिक वृद्धि को गति मिली। वित्त वर्ष 2023-24 में उत्साही विनिर्माण क्षेत्र में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि सेवाएँ लचीली रहीं, जिससे कृषि में खराब प्रदर्शन की भरपाई हुई। सरकारी पहलों ने कारोबारी माहौल में सुधार, लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, कर दक्षता में सुधार और कर दरों को तर्कसंगत बनाकर विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने का काम किया है।
महामारी के बाद से, खासकर महिला श्रमिकों के लिए शहरी बेरोजगारी में धीरे-धीरे सुधार हुआ है, यह वित्त वर्ष 2021-22 मे ं 14.3 प्रतिशत से गिरकर वित्त वर्ष 2024-25 मे ं 9 प्रतिशत हो गई है। हालाँकि, शहरी युवाओं के बीच बेरोजगारी वित्त वर्ष 2024-25 में 16.8 प्रतिशत पर बनी रही।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी अग्रिम अनुमान (अ.अ.) के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) 6.4 प्रतिशत होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के अनंतिम अनुमान (पी.ई.) में वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2024-25 में वित्त वर्ष 2023-24 के 9.6 की तुलना में मौद्रिक जी.डी.पी. में 9.7 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गई है।
वर्ष 2024-25 के दौरान कृषि और संबद्ध क्षेत्र का वास्तविक सकल मूल्य वर्धित (जी वी.ए.) 3.8 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले वर्ष 2023-24 के दौरान इसमे 1.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान निर्माण क्षेत्र और वित्तीय, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवा क्षेत्र की वास्तविक जी.वी.ए. में क्रमशः 8.6 प्रतिशत और 7.3 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है।
जैसा कि विश्व बैंक ने नोट किया है कि भारत तीन-आयामी दृष्टिकोण के साथ - व्यापार लागत को और कम करना, व्यापार बाधाओ ं को कम करना और वैश्विक मूल्य श्रृ ंखलाओं में एकीकरण को गहरा करना-भारत को 2030 तक व्यापारिक निर्यात के लिए 1 ट्रिलियन डॉलर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। हालांकि, सेवा गतिविधि स्थिर रही है, जबकि कृषि क्षेत्र की वृद्धि में सुधार हुआ है। निजी उपभोग वृद्धि लचीली बनी हुई है, जो मुख्य रूप से कृषि उत्पादन में सुधार के साथ-साथ ग्रामीण आय में सुधार से प्रेरित है। इसके विपरीत, उच्च मुद्रास्फीति और धीमी ऋण वृद्धि ने शहरी क्षेत्रों में खपत पर अंकुश लगाया है। व्यापार के प्रति व्यापक खुलापन, बदले में, भारत की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाएगा, उत्पादकता में सुधार करेगा, विकास को गति देगा और दीर्घकालिक आर्थिक लचीलेपन का निर्माण करेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था की क्षेत्रवार विकास दर निम्नलिखित चित्र में प्रस्तुत की गई हैः
क्षेत्र-वार, भारतीय अर्थव्यवस्था ने प्राथमिक क्षेत्र में वित्त वर्ष 2023-24 में 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर की तुलना में वित्त वर्ष 2024-25 (अ.अ.) में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की। द्वितीयक क्षेत्र में वृद्धि वर्ष 2023-24 में 9.7 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2024-25(अ.अ.) में 6.5 प्रतिशत हो गई है। स्थिर कीमतो ं पर वास्तविक जी.डी.पी. वित्त वर्ष 2024-25 में ₹184.88 लाख करोड़ के स्तर तक पहु ंचने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2023-24 के लिए अनंतिम अनुमान के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद ₹173.82 लाख करोड़ रहने का अनुमान था। वर्ष 2024-25 के दौरान वास्तविक जी.डी.पी. मे ं वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि 2023-24 में यह 8.2 प्रतिशत थी। प्रचलित कीमतों पर मौद्रिक जी.डी.पी. वर्ष 2024-25 में 9.7 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ ₹324.11 लाख करोड़ रहने का अनुमान है, जो 2023-24 मे ं ₹295.36 लाख करोड़ थी।
स्थिर कीमतो ं पर सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) में वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान सार्वजनिक प्रशासन क्षेत्र में 9.1 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि दर्ज ़ की गई, जो पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 7.8 प्रतिशत थी। इस के बाद निर्माण क्षेत्र मे ं पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 9.9 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले वित्त वर्ष 2024-25 में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज ़ की गई।
स्थिर कीमतो ं पर सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) में वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान सार्वजनिक प्रशासन क्षेत्र में 9.1 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि दर्ज ़ की गई, जो पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 7.8 प्रतिशत थी। इस के बाद निर्माण क्षेत्र मे ं पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 9.9 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले वित्त वर्ष 2024-25 में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज ़ की गई।
कृषि, वानिकी और मत्स्य क्षेत्र की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2023-24 में 1.4 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 3.8 प्रतिशत हो गई है। इसके विपरीत जहां वित्त वर्ष 2022-23 में व्यापार, होटल और रेस्तरां मे ं सबसे अधिक वृद्धि दर दर्ज ़ की गई थी, अब वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान 5.8 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज ़ की गई है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान खनन और उत्खनन क्षेत्र में सबसे कम 2.9 फीसदी की वृद्धि दर दर्ज की गई है, जो पिछले वित्त वर्ष के दौरान 7.1 फीसदी थी. सकल घरेलू उत्पाद और जी.एस.डी.पी. की वृद्धि दर के संदर्भ मे ं राष्ट्रीय और साथ ही राज्य के आर्थिक प्रदर्शन की तुलनात्मक स्थिति नीचे प्रस्तुत की गई है।
वित्त वर्ष 2020-21 में वृद्धि दर में तेज गिरावट देखी गई, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में वृद्धि दर मे ं तेज रिकवरी देखने को मिली जो की महामारी के झटके के बाद अर्थव्यवस्था की वापस पटरी में आने के कारण था और आर्थिक गतिविधियाँ महामारी से पहले की तरह सामान्य हो रही थीं।
2021-22 में अर्थव्यवस्था में अचानक उछाल के बाद लगातार तेजी का रुख देखने को मिला है। वित्त वर्ष 2024-25 में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत के साथ ₹2,00,162 होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में यह ₹1,84,205 थी।
हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है। राज्य उत्तर मे ं जम्मू और कश्मीर, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में पंजाब, दक्षिण में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में उत्तर प्रदेश और पूर्व में तिब्बत चीन से घिरा हुआ है। लौह अयस्क और कोयले जैसे समृद्ध प्राकृतिक संसाधनो ं की कमी और भारत के अन्य राज्यों की तुलना में कम उपजाऊ होने के बावजूद, हिमाचल ने राज्य के मेहनती लोगो ं के निरंतर प्रयासों और प्रगतिशील नीतियों के कार्यान्वयन के माध्यम से प्रगति की है।
प्रचलित कीमतो ं पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) वित्त वर्ष 2023-24 (प्र.सं.अ.) में ₹2,10,662 करोड़ होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में दूसरे संशोधित अनुमान (द्वि.सं.अ.) में ₹1,91,659 करोड़ है, जो वर्ष के दौरान 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
वित्त वर्ष 2023-24 (प्र.सं.अ.) में स्थिर (2011-12) कीमतों पर जी.एस.डी.पी. वित्त वर्ष 2022-23 (द्वि.सं.अ.) मे ं ₹1,28,779 करोड़ के मुकाबले ₹1,37,320 करोड़ होने का अनुमान है, जो वर्ष के दौरान 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
राज्य में जी.एस.डी.पी. की गति को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया हैः
इसके अलावा जिस अर्थव्यवस्था पर मुख्य रूप से प्राथमिक क्षेत्र का प्रभुत्व था, वह जी.एस.डी.पी. मे ं योगदान के मामले में बड़े पैमाने पर सेवा और विनिर्माण में परिवर्तित हो गई है। हालाँकि, रोज़गार के मामले में अभी भी राज्य की 53.98 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र मे ं लगी हुई है।
वित्त वर्ष 2022-23 में प्रचलित कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय ₹2,14,489 के समकक्ष 2023-24 के प्रथम संशोधित अनुमानों के अनुसार प्रति व्यक्ति आय ₹2,34,782 रही है जो कीे 9.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र से उद्योगों और सेवाओं की ओर बदलाव हुआ है क्योंकि कुल सकल राज्य घरेलू उत्पाद मे ं कृषि का प्रतिशत योगदान 1950-51 में 70.37 प्रतिशत से घटकर 1990-91 में 35.06 प्रतिशत, 2011-12 में 17.16 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2023-24 में 14.74 प्रतिशत रह गया है।
द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों की हिस्सेदारी जो 1950-51 में क्रमशः 7.41 और 22.22 प्रतिशत थी, 1990-91 में बढ़कर 26.5 और 38.44 प्रतिशत, 2011-12 मे ं 43.81 और 39.03 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2023-24 में 39.98 और 45.28 प्रतिशत हो गई है। कृषि क्षेत्र की घटती हिस्सेदारी राज्य की अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र के महत्व को कम नहीं करती है क्योंकि राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र में वृद्धि अभी भी कृषि और बागवानी उत्पादन की प्रवृत्ति से निर्धारित होती है। यह कुल घरेलू उत्पाद में प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक है और इनपुट लिंकेज, रोजगार, व्यापार परिवहन आदि के माध्यम से अन्य क्षेत्रों पर इसका समग्र प्रभाव पड़ता है। सिंचाई सुविधाओ ं की कमी के कारण, कृषि उत्पादन अभी भी मुख्य रूप से समय पर वर्षा और मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है।
राज्य ने बागवानी विकास मे ं उल्लेखनीय प्रगति की है। उपजाऊ, गहरी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी के साथ-साथ स्थलाकृतिक विविधताएं और ऊंचाई के अंतर, समशीतोष्ण से उपोष्णकटिबंधीय फलो ं की खेती के पक्ष मे ं हैं। यह क्षेत्र फूलो ं, मशरूम, शहद और हॉप्स जैसे सहायक बागवानी उत्पादों की खेती के लिए भी उपयुक्त है। निष्कर्षः वैश्विक अर्थव्यवस्था ने महामारी और ऊर्जा संकट जैसी वर्तमान चुनौतियों के होते हुए भी तन्यकता दिखाई है। वर्ष 2023 में आर्थिक वृद्धि दर 3.3 प्रतिशत रही और वर्ष 2026 तक स्थिर वृद्धि का अनुमान है। भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में अग्रणी रहने की आशा है। जिसका कारण विशेष रूप से ग्रामिण क्षेत्रों में मजबूत घरेलू मांग और सरकारी प्रोत्साहन है। भारत की जी.ड़ी.पी. में वर्ष 2024 में 7 प्रतिशत की वृद्धि रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2026 तक गति बनाए रखेगी। भारतीय संदर्भ में, विनिर्माण, सेवा और कृषि जैसे प्रमुख क्षेत्र सकारात्मक वृद्धि के साथ बढ़ रहे हैं। सेवा क्षेत्र की ओर वैश्विक बदलाव के अतिरिक्त, भारत अपनी गतिशील अर्थव्यवस्था और विशाल घरेलू बाजार से लाभान्वित होने के लिए तैयार है। आधारभूत ढ़ाचे और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल से आर्थिक विकास को और भी बल मिलने की आशा है।
हिमाचल प्रदेश ने राज्य स्तर पर कृषि-प्रधान विकास से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की ओर बदलाव किया है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों जैसी चुनौतियों के अतिरिक्त राज्य की अर्थव्यवस्था में लगातार वृद्धि हुई है, जिसमें प्रति व्यक्ति आय में उत्कृष्ट सुधार हुआ है। निर्माण और सेवा जैसे उभरते क्षेत्रों के साथ-साथ बागवानी क्षेत्र भी राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2.राज्य आय - दीर्घकालीन आर्थिक अवलोकन

सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अनुमान है, जिसे एक निर्दिष्ट अवधि के दौरान दोहराव के बिना गिना जाता है, जिसके सामान्यता एक वर्ष की अवधि रहती है। यह आर्थिक वृद्धि का एक प्रमुख पैमाना है, जो क्षेत्रीय योगदान और समग्र विकास के रुझान पर प्रकाश डालता है। जी.एस.डी.पी. राज्य की प्रगति पर निवेश, नीतिगत पहलो ं और आर्थिक अवसरो ं के प्रभाव का आकलन करने में मदद करता है।
जी.एस.डी.पी. की वृद्धि दर समय के साथ राज्य के आर्थिक प्रदर्शन को इंगित करती है, जो इसके विस्तार और लचीलेपन को दर्शाती है। राज्य आय के रूप में भी जाना जाता है, जी.एस.डी.पी. आर्थिक विकास के मूल्यांकन के लिए एक महत्वपूर्ण पैमाना है। नियोजित विकास के संदर्भ में, राज्य आय और प्रति व्यक्ति आय (पी.सी.आई.) दोनो ं ही प्रशासकों, नीति निर्माताओं और योजनाकारों के लिए नीतियों को आकार देने और निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए, राज्य के जी.एस.डी.पी. के लिए दृष्टिकोण कृषि, उद्योग, पर्यटन और सेवाओं जैसे प्रमुख क्षेत्रों में चल रही चुनौतियों और अवसरों दोनों को दर्शाता है। यह अध्याय विभिन्न क्षेत्रों में रुझानों का विश्लेषण करते हुए अपेक्षित आर्थिक प्रदर्शन का अवलोकन प्रदान करता है। हिमाचल प्रदेश आगामी वित्तीय वर्ष में निरंतर समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए उभरती चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी शक्ति का लाभ उठाने के लिए तैयार है और इस अध्याय में चर्चा के लिए संदर्भ निर्धारित करता है।
प्रचलित और स्थिर (2011-12) भावों पर जी.एस.डी.पी.: अग्रिम अनुमानों (अ.अ.) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए प्रचलित भावों ं पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद ₹2,32,185 करोड़ होने का अनुमान है, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में यह ₹2,10,662 करोड़ था जोकि वर्ष 2023-24 में 9.9 प्रतिशत वृद्धि दर की तुलना में वर्ष 2024-25 में 10.2 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर प्रदर्शित करता है।
अ.अ. के अनुसार, वर्ष 2024-25 के लिए स्थिर (2011-12) भावों ें या वास्तविक जी एस.डी.पी. ₹1,46,553 करोड़ अनुमानित है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में यह ₹1,37,320 करोड़ थी और यह वित्त वर्ष 2023-24 (प्र.स.अ.) के 6.6 प्रतिशत की तुलना मे ं वर्ष 2024-25 के लिए 6.7 प्रतिशत वृद्धि दर प्रदर्शित करता है। वर्षवार विवरण चित्र 2.1 और 2.2 में दर्शाया गया है।
राज्य घरेलू उत्पाद का अनुमान, जब राज्य की कुल जनसंख्या के संबंध में अध्ययन किया जाता है, तो उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के प्रति व्यक्ति शुद्ध उत्पादन के स्तर को इंगित करता है। प्रति व्यक्ति आय संबंधित वर्ष में राज्य की अर्धवार्षिक जनसंख्या द्वारा शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद को विभाजित करके प्राप्त की जाती है। अग्रिम अनुमानों के अनुसार, प्रचलित भावों ं पर (पी.सी.आई.) 2023-24 में ₹2,34,782 के मुकाबले वित्त वर्ष 2024-25(अ अ.) के लिए ₹2,57,212 अनुमानित है, जो वित्त वर्ष 2024-25 में 9.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य की पी.सी.आई भारत से अधिक रही है। राज्य के पी.सी आई. में 2011-12 में ₹87,721 से 2024-25 में ₹2,57,212 की तेजी से वृद्धि हुई है, जो 2011-12 की तुलना में 8.6 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सी.ए.जी.आर.) दर्शाती है। वर्ष 2011-12 में भारत की पी.सी.आई. ₹63,462 थी, जो वित्त वर्ष 2024-25 में बढ़कर ₹2,00,162 हो गयी है, जो 2011-12 की तुलना में 9.2 प्रतिशत की सी.ए.जी.आर. दर्ज करती है। भारत की तुलना में हिमाचल प्रदेश की पी.सी.आई और प्रचलित भावों े पर उनकी वृद्धि के रुझान क्रमशः चित्र 2.3 और 2.4 में दर्शाए गए हैं।

अर्थव्यवस्था को तीन व्यापक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाता है, प्राथमिक द्वितीयक और तृतीयक। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र की विकास दर को बेसिक भावों ं पर जी.वी.ए. के संदर्भ में मापा जाता है। बेसिक भाव को निर्माता की कीमत के रूप में समझा जा सकता है। इन क्षेत्रों के घटक (1) प्राथमिक क्षेत्रः इस क्षेत्र मे ं शामिल हैं; फसल; पशुधन; वानिकी और लॉगिंग; मतस्य पालन; और खनन और उत्खनन। (2) द्वितीयक क्षेत्रः यह क्षेत्र मे ं शामिल हैं जैसे विनिर्माण; बिजली; गैस; जल आपूर्ति और अन्य उपयोगी सेवाएं; और निर्माण। (3) तृतीयक क्षेत्रः इस क्षेत्र शामिल हैं, जैसे व्यापार; होटल; परिवहन; संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाएं; वित्तीय सेवाएं; रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाओं का स्वामित्व; लोक प्रशासन; और अन्य सेवाएं।
प्राथमिक क्षेत्र : वित वर्ष 2024-25 (अ.अ.) मे ं प्राथमिक क्षेत्र से सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए) में स्थिर भावों ें पर 3.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना है। वित्त वर्ष 2024-25 (अ.अ.) के दौरान प्राथमिक क्षेत्र का जी.वी.ए. स्थिर भावों पर 2023-24 (प्र.स.अ.) में ₹16,116 करोड़ के मुकाबले ₹16,625 करोड़ हो गया। (चित्र 2.5)
स्थिर भावों ें पर जी.वी.ए. मे ं प्राथमिक क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2022-23, 2023-24 और 2024-25 में क्रमशः 1.7 प्रतिशत, -1.7 प्रतिशत और 3.2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की। यह उल्लेखनीय है कि राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले प्राथमिक क्षेत्र राज्य की 53.98 प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार देते हैं। इसलिए, हिमाचल प्रदेश में जीवन स्तर मे ं सुधार के लिए इसकी आर्थिक सफलता महत्वपूर्ण है।
वित्त वर्ष 2024-25 (अ.अ.) के अनुसार फसल क्षेत्र का जी.वी.ए. वास्तविक रूप से 1 6 प्रतिशत के विस्तार के साथ वित्त वर्ष 2023-24 (प्र.स.अ.) में ₹7,573 करोड़ के मुकाबले ₹7,692 करोड़ रहने का अनुमान है। वास्तविक रूप से वित्त वर्ष 2024-25 (अ.अ.) के लिए वानिकी और लॉगिंग क्षेत्र का जी.वी.ए. 4.0 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वित्त वर्ष 2023-24 (प्र.स.अ.) मे ं ₹5,105 करोड़ की तुलना में ₹5,310 करोड़ रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2024-25 (अ.अ.) में पशुधन क्षेत्र में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि, मत्स्य क्षेत्र में 7.0 प्रतिशत की वृद्धि और खनन और उत्खनन क्षेत्र में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। प्राथमिक क्षेत्र और इसके उप-क्षेत्र के वृद्धि के रुझान और स्थिर भावों ें पर जी.वी.ए. सारणी 2.1 में दर्शाए गए हैं।
द्वितीयक क्षेत्र : वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अ.अ. के अनुसार, स्थिर (2011-12) भावों पर द्वितीयक क्षेत्र का जी.वी.ए. ₹65,134 करोड़ अनुमानित है जोकि वित्त वर्ष 2023-24 (प्र.स.अ.) के लिए ₹60,238 करोड़ था और पिछले वर्ष की तुलना में 8.1 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होने की आशा है। (चित्र 2.6)
वर्ष 2024-25 के लिए अ.अ. के अनुसार, स्थिर (2011-12) भावों ें पर विनिर्माण क्षेत्र में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होने की आशा है और 2023-24 (प्र.स.अ.) में ₹41,177 करोड़ की तुलना में 2024-25 में ₹44,109 करोड़ होने का अनुमान है। वर्ष 2024-25 के लिए अ.अ. के अनुसार बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाएँ क्षेत्र ने 11.5 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर दर्ज की है। निर्माण क्षेत्र में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होने की आशा है और 2024-25 में 11,856 करोड़ रहने का अनुमान है, जबकि 2023-24 (प्र.स.अ.) में यह ₹10,837 करोड़ था, जैसा कि सारणी 2.2 में दिखाया गया है।

तृतीयक या सेवा क्षेत्र : राज्य में सेवा क्षेत्र का जी.एस.वी.ए. और रोजगार में सबसे अधिक योगदान है। वित्तीय वर्ष 2024-25 (अ.अ.) के लिए सेवा क्षेत्र के लिए स्थिर (2011-12) भावों पर ₹56,654 करोड़ अनुमानित है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 (प्र.स.अ.) में यह ₹53,481 करोड़ था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5.9 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्शाता है। (चित्र 2.7)
सेवा क्षेत्र के सभी प्रमुख उप-क्षेत्रों ने हिमाचल प्रदेश में वित वर्ष 2024-25 (अ.अ.) में तीव्र वृद्धि दर को दर्शाया है। वर्ष 2024-25 (अ.अ.) में ष्व्यापार, मुरम्मत, होटल और रेस्तरांष् क्षेत्र का जी.वी.ए. 8.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। ष्परिवहन, भंडारण, संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाओंष् में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई और ष्रियल एस्टेट, आवास का स्वामित्व और व्यावसायिक सेवाओंष् में 5.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सारणी 2.3 दर्शाती है कि वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक सेवा क्षेत्र के भीतर विभिन्न उप-क्षेत्रों मे ं वृद्धि का कितना प्रदर्शन रहा।
किसी भी राज्य का जी.एस.डी.पी. तीन प्रमुख क्षेत्रों-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक द्वारा किए गए आर्थिक योगदान के संदर्भ में मापा जाता है। राज्य के सकल राज्य मूल्य वर्धित (जी.एस.वी.ए.) में तृतीयक क्षेत्र का सबसे अधिक योगदान रहा है, इसके बाद द्वितीयक और प्राथमिक क्षेत्रों का स्थान है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए जी.एस.वी.ए. के अ अ. के आधार पर, तृतीयक क्षेत्र का प्रचलित मूल्यों पर राज्य के जी.एस.वी.ए. मे ं 45.3 प्रतिशत हिस्सा है, इसके बाद द्वितीयक क्षेत्र का 39.5 प्रतिशत और प्राथमिक क्षेत्र का 15.2 प्रतिशत है ।
हिमाचल प्रदेश में द्वितीयक क्षेत्र फल-फूल रहा है, और राज्य सरकार औद्योगिक विकास को सभी क्षेत्रों मे ं रोजगार सृजन और उत्पादकता वृद्धि के प्रमुख चालक के रूप में पहचानती है। निरंतर विस्तार सुनिश्चित करने के लिए, सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र को मजबूत करने के लिए कई रणनीतिक उपाय लागू किए हैं। इन निवेशों का सकारात्मक प्रभाव आने वाले वर्षों मे ं और अधिक स्पष्ट हो जाएगा, और दीर्घकालिक लाभ भविष्य में भी जारी रहेंगे।
राज्य के मूल्य वर्धन मे ं तृतीयक क्षेत्र का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है और इसलिए, राज्य की अर्थव्यवस्था मे ं सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। राज्य के वास्तविक जी.एस.व. ए. में इसकी हिस्सेदारी 2018-19 में 42.0 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 (अ.अ.)में 45.3 प्रतिशत हो गई (चित्र 2.9)।
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अ.अ. के अनुसार, प्राथमिक क्षेत्र से सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) प्रचलित भावों पर ₹32,868 करोड़, द्वितीयक क्षेत्र ₹85,706 करोड़, जबकि सेवा क्षेत्र ₹98,245 करोड़ अनुमानित है। (सारणी 2.4)
हिमाचल प्रदेश में अर्थव्यवस्था और कार्यबल की संरचना स्पष्ट रूप से शेष भारत में अर्थव्यवस्था और कार्यबल की संरचना से अलग है। भारत के 46.08 प्रतिशत की तुलना मे ं कृषि और संबद्ध गतिविधियों मे ं हिमाचल प्रदेश के कुल कार्यबल का 53.95 प्रतिशत कार्यरत है और भारत में 18.19 प्रतिशत की तुलना मे ं जी.वी.ए. में इसकी हिस्सेदारी 14.27 प्रतिशत है (सारणी 2.5)।

वर्ष 2023-24 के दौरान द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में कार्यरत, कार्यबल की हिस्सेदारी (क्रमशः 22.01 और 24.01 प्रतिशत) जी.वी.ए. (39.98 और 45.28 प्रतिशत) की हिस्सेदारी से कम है, जिसका अर्थ है कि कम श्रमिक जी.वी.ए. में अधिक योगदान दे रहे हैं जो कृषि से कार्यबल के पुनः आवंटन की संभावना को दर्शाता है। कृषि से कार्यबल द्वितीयक क्षेत्र में पुनः आवंटन से प्राथमिक क्षेत्र में छिपी बेरोजगारी कम हो जाएगी। हिमाचल के संदर्भ में, सेवा क्षेत्र न केवल जी.एस.डी.पी. में योगदान के मामले में बल्कि रोजगार सृजन के लिए एक प्रमुख माध्यम के रूप मे ं भी अति महत्वपूर्ण हो गया है। आवधिक श्रम बल सर्वे क्षण (पी.एल.एफ.एस.) अनुमान के अनुसार 2023-24 में राज्य में सेवा क्षेत्र में रोजगार 24.01 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि भारत के लिए यह 29.73 प्रतिशत था। मूल्यवर्धन और रोजगार के वितरण की क्षेत्रवार तुलना सारणी 2.5 में दी गई है। वर्ष 2011-12 से 2024-25 तक हिमाचल प्रदेश और भारत के प्रचलित और स्थिर (2011-12) भावों पर सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान सारणी 2.6 में दिया गया है ै।
हिमाचल प्रदेश में आर्थिक विकास के एक संक्षिप्त विश्लेषण से पता चलता है कि राज्य ने भारत की विकास दर के साथ गति बनाई रखी है जैसा कि सारणी 2.7 मे ं दिखाया गया है।
राज्य की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है, जिसमें द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों का प्रमुख योगदान है। इस वृद्धि को बनाए रखने के लिए, कार्यबल पुनर्वितरण, कृषि आधुनिकीकरण और क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने सहित प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रयासों को कौशल विकास, श्रमिकों को कृषि से विनिर्माण में बदलना और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने पर ध्यान के ंद्रित करना चाहिए। छिपी हुई बेरोजगारी को दूर करने और कृषि को आधुनिक बनाने से उत्पादकता में सुधार हो सकता है।
द्वितीयक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए, उच्च-विकास वाले उद्योगों और बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश आवश्यक है। तृतीयक क्षेत्र को मजबूत करने मे ं सेवा निर्यात और डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देना शामिल है। प्राथमिक क्षेत्र में सतत विकास के लिए कृषि विविधीकरण और आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। समावेशी विकास और गरीबी में कमी को विस्तारित व्यावसायिक प्रशिक्षण, बेहतर सामाजिक सुरक्षा जाल और लक्षित गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। जिसमें दीर्घकालिक आर्थिक लचीलेपन के लिए नीति सुधार, व्यापार विनियमन को आसान बनाना और स्थिरता को बढ़ावा देना शामिल है।
अंत में, हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मजबूत वृद्धि दिखा रही है, वित्त वर्ष 2024-25 में जी.एस.डी.पी. ₹2,32,185 करोड़ तक पहु ंचने का अनुमान है, जो वर्तमान कीमतों पर 10.2 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। स्थिर कीमतों पर राज्य का वास्तविक जी.एस.डी.पी. 6.7 प्रतिशत बढ़कर ₹1,46,553 करोड़ होने की आशा है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पी.सी.आई. ₹2,57,212 अनुमानित है, जो 9.6 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। अर्थव्यवस्था तृतीयक क्षेत्र द्वारा संचालित है, जो जी.वी.ए. में 45.3 प्रतिशत का योगदान देता है, इसके बाद माध्यमिक क्षेत्र (39.5 प्रतिशत) और प्राथमिक क्षेत्र (15.2 प्रतिशत) का स्थान है। प्राथमिक क्षेत्र महत्वपूर्ण बना हुआ है, जो 53.98 प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार देता है। राज्य का औद्योगिक क्षेत्र बढ़ रहा है और जी. एस. डी. पी. योगदान और रोजगार दोनों के लिए सेवा क्षेत्र महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से निर्माण, विनिर्माण और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में समग्र आर्थिक प्रक्षेपवक्र में सुधार हुआ है।

3.सार्वजनिक वित्त एवं कराधान

सार्वजनिक वित्त एक महत्वपूर्ण ढांचा है जो यह नियंत्रित करता है कि सरकार समाज के सामूहिक हितों की सेवा के लिए सार्वजनिक धन कैसे जुटाती है, आवंटित करती है और खर्च करती है। इसमे ं एक क्षेत्राधिकार के भीतर व्यक्तियो ं, व्यवसायों और अन्य कर योग्य संस्थाओं से करो ं का संग्रह शामिल है, जिसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आधारभूत ढांचे इत्यादि जैसी आवश्यक सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने में लगाया जाता है। प्रभावी सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन तीन मुख्य क्षेत्रों पर के ंद्रित होता हैः संसाधन सृजन (धन कैसे जुटाया जाता है), संसाधन आवंटन (प्रतिस्पर्धी आवश्यकताओं के बीच धन कैसे वितरित किया जाता है), और व्यय प्रबंधन (धन को कुशलतापूर्वक और स्थायी रूप से कैसे खर्च किया जाता है)।
किसी राज्य के वित्तीय संसाधन आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने और दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भौतिक पूंजि, जैसे कि बुनियादी ढाँचा (सड़कें, इमारतें, ऊर्जा सुविधाएँ) और मानव पूंजि, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कार्यबल प्रशिक्षण, दोनों मे ं निवेश निरंतर आर्थिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं। जबकि भौगोलिक असुविधाएँ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पैदा कर सकती हैं - चाहे सीमित प्राकृतिक संसाधनो ं, दूरस्थता या अन्य कारकों के कारण - राज्य सरकारें प्रायः अपने वित्तीय संसाधनो ं की उपयोगिता को प्रमुख विकासात्मक क्षेत्रों की ओर निर्देशित करके अधिकतम करने का प्रयास करती हैं। इस तरह के रणनीतिक निवेश आर्थिक मानकों को ऊपर उठाने, गरीबी को कम करने और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
राज्य के वित्तीय संसाधन कर राजस्व (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों), गैर-कर राजस्व (जैसे शुल्क, प्रभार और जुर्माना), कर राजस्व में केन्द्र सरकार का हिस्सा और केन्द्र सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली अनुदान सहायता के संयोजन से प्राप्त होते हैं। ये संसाधन राज्य को अपने विभिन्न विकास कार्यक्रमों, सार्वजनिक सेवाओं और नीतिगत पहल के लिए धन उपल्ब्ध करवाने की अनुमति देते हैं।
हालांकि, राज्य सरकार की राजकोषीय रणनीति सकारात्मक और चुनौतीपूर्ण दोनों तरह के रुझानों का मिश्रण दर्शाती है। सकारात्मक पक्ष यह है कि राज्य अपने कर राजस्व में वृद्धि करने में सक्षम रहा है, जिससे उसकी कर संग्रह दक्षता में सुधार या उसके कर योग्य आधार का विस्तार प्रदर्शित होता है। हालांकि, कर राजस्व में यह वृद्धि अनुदान-सहायता मे ं कमी के कारण संतुलित हो जाती है, जो प्रायः विशिष्ट परियोजनाओं के वित्तपोषण या सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण होती है। चूंकि राज्य को बाह्य वित्तीय सहायता में कमी का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए उसे पूंजीगत व्यय के प्रबंधन में अधिक अनुशासित और सतर्क दृष्टिकोण अपनाना होगा - बड़ े बुनियादी ढांचे वाली परियोजनाओं के दायरे को सीमित करना होगा तथा वर्तमान संसाधनो ं के अनुकूलन पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा।
वित्तीय रूपरेखा में मोटे तौर पर राज्य की प्राप्तियां, व्यय और ऋण शामिल होते हैं। राज्य सरकार की प्राप्तियों में विभिन्न स्रोतों से राजस्व प्राप्तियाँ और पूँजीगत प्राप्तियाँ शामिल होती हैं, जबकि सार्वजनिक व्यय में राजस्व और पूँजी परिव्यय शामिल होते हैं। ऋण राज्य की वित्तीय रूपरेखा का एक महत्वपूर्ण घटक बना हुआ है। 2024-25 का बजट आर्थिक विकास और राजकोषीय विवेकशीलता के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। बजटीय आवंटन और राजस्व अनुमान राज्य के आर्थिक आधार को बढ़ाने और सतत विकास सुनिश्चित करने पर जोर देते हैं। हिमाचल प्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम-2005 के अधिनियमन में कहा गया है कि राज्य सरकार अपने संसाधनो ं के अनुरूप स्थायी तरीके से वित्त का प्रबंधन करती है।
राज्य के राजकोषीय संकेतक - राज्य सरकार प्रशासनिक और विकासात्मक गतिविधियों के लिए व्यय को पूरा करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों, गैर-कर राजस्व, केंद्रीय करों के हिस्से और केंद्र सरकार से सहायता अनुदान के माध्यम से वित्तीय संसाधन जुटाती है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में कुल राजस्व प्राप्तियाँ ₹42,153 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2020-21 के ₹33,438 करोड़ से अधिक है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में कर राजस्व (केंद्रीय हिस्से सहित) 14.99 प्रतिशत बढ़कर ₹25,225 करोड़़ होने का अनुमान है। सहायता अनुदान वित्त वर्ष 2020-21 में ₹18,413 करोड़ से घटकर वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में ₹13,287 करोड़ रह गया है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में गैर-कर राजस्व बढ़कर ₹3,641 करोड़ होने का अनुमान है।
वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए कुल व्यय ₹58,444 करोड़ निर्धारित किया गया है। राजस्व व्यय ₹46,667 करोड़ अनुमानित है, जो कुल व्यय का 79.85 प्रतिशत है। पू ंजीगत व्यय ₹6,270 करोड़ अनुमानित है, जो कुल व्यय का 10.73 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में ब्याज भुगतान 10.55 प्रतिशत बढ़कर ₹6,255 करोड़ हो गया है। सरकार के कुल व्यय में से मुख्य आवंटन शिक्षा के लिए ₹9,812 करोड़ और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ₹3,390 करोड़ है।
वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में राजस्व प्राप्तियां, कर राजस्व और कुल व्यय जी.एस डी.पी. का 18.15 प्रतिशत, 10.86 प्रतिशत और 25.17 प्रतिशत क्रमशः रहने का अनुमान है।
i)कर राजस्व: सारणी 3.1 में दर्शाए गए वित्तीय वर्ष 2024-25 के (ब.अ.) के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 (स.अ.) में ₹21,936 करोड़ की तुलना में कर राजस्व (केंद्रीय करो ं सहित) 14.99 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ₹25,225 करोड़ अनुमानित है जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में यह ₹12,837 करोड़ था। चित्र 3.1 कुल प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में कर राजस्व के घटकों को दर्शाता है।

कुल प्राप्तियों में राज्य का स्वयं-कर राजस्व का प्रतिशत वित्त वर्ष 2022-23 (वा.) में 17.5 से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) मे ं 27.4 हो गया है। कुल प्राप्तियों में केंद्रीय करो ं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022-23 (वा.) में 13.0 से वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में 18.3 हो गई है। राज्य का अपना गैर-कर राजस्व कुल प्राप्तियों का प्रतिशत वित्त वर्ष 2022-23 (वा.) में 4.7 से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में 6.6 हो गया है। कुल प्राप्तियों में सहायता अनुदान का प्रतिशत वित्त वर्ष 2022-23 (वा.) में 27.6 से घटकर वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में 24.1 हो गया है।
ii)गैर-कर राजस्व: गैर-कर राजस्व मे ं मुख्य रूप से ऋणों पर ब्याज प्राप्तियां, बिजली की बिक्री से प्राप्तियां, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से लाभांश और लाभ और लोक सेवा आयोग द्वारा प्रदान की गई सेवाओं सहित सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं से प्राप्तियां, स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक सेवाओं के रूप मे ं सामाजिक सेवाएं शामिल हैं। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में गैर-कर राजस्व बढ़कर ₹3,641 करोड़ होने की संभावना है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 (सं.अ.) में ₹3,325 करोड़ था, जो 9 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियो ं के गैर-कर राजस्व प्राप्तियों वाले घटक मे ं आर्थिक सेवाओं का योगदान सबसे अधिक है। चित्र 3.2 कुल प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में गैर-कर राजस्व के घटकों को दर्शाता है।

आर्थिक सेवाओं में जिसमें बिजली, गैस और पानी की आपूर्ति शामिल है राज्य के गैर-कर राजस्व का लगातार अधिक्तम योगदान है जबकि सामाजिक सेवाएं और ब्याज प्राप्तियां, लाभांश और मुनाफा राज्य की गैर-कर राजस्व प्राप्तियों मे ं सबसे कम योगदान करती है।
iii)सहायता अनुदान: पूर्ण रूप से, भारत सरकार से हिमाचल प्रदेश को सहायता अनुदान वित्त वर्ष 2023-24 (सं.अ.) में ₹15,185 करोड़ की तुलना मे ं वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में घटकर ₹13,287 करोड़ हो गया है। चित्र 3.3 कुल प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप मे ं सहायता अनुदान को दर्शाता है।
सहायता अनुदान वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के दौरान 24.1 प्रतिशत का योगदान देने वाली कुल प्राप्तियों में उच्चतम प्रतिशत है, जो वित्त वर्ष 2022-23(वा.) की तुलना में 3.5 प्रतिशत अंक कम है।
iv)गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां : गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियों में ऋणों और अग्रिमों की उगाही और विनिवेश प्राप्तियां शामिल होती हैं। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के बजट अनुमान मे ं ऋण की उगाही के रूप मे ₹28.00 करोड़ और विनिवेश से कोई आय नहीं होने की परिकल्पना की गई है।
राज्य के प्रमुख राजकोषीय संकेतक - सारणी 3.2 से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में, कर राजस्व मे 14 99 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि हुई है, इसके बाद ब्याज भुगतान में 10.55 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है। राजस्व व्यय में 1.61 प्रतिशत की मामूली वृद्धि देखी गई है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के दौरान कुल व्यय और पू ंजीगत व्यय मे ं क्रमशः 5.16 और 7.54 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2022-23 (वा.) में 5.10 प्रतिशत की गिरावट की तुलना में वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में सहायता अनुदान मे ं 12.50 प्रतिशत की उच्चतम गिरावट देखी गई है।

राजकोषीय संकेतकों का जी.एस.डी.पी. प्रतिशत - बजट अनुमान के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए सरकार की राजस्व प्राप्तियां वित्त वर्ष 2023-24 (सं.अ.) के 19.20 प्रतिशत की तुलना में जी.एस.डी.पी. के 18.15 प्रतिशत अनुमानित है। इसी तरह, वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए कर राजस्व 2023-24 (सं.अ.) के दौरान 10.41 प्रतिशत की तुलना में जी.एस.डी.पी. का 10.86 प्रतिशत अनुमानित है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में गैर-कर राजस्व जी.एस.डी.पी. का 1.57 प्रतिशत है, जबकि 2023-24 (सं.अ.) के दौरान यह 1.58 प्रतिशत था। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में राज्य का कुल व्यय जी.एस.डी.पी. का 25.17 प्रतिशत, राजस्व व्यय 20.10 प्रतिशत जबकि पू ंजीगत व्यय 2.70 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
सारणी 3.3 जी.एस.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय संकेतक दिखाती है।

सरकारी व्यय - वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए सरकार का व्यय महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समग्र और समावेशी विकास के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। राजस्व और पू ंजीगत व्यय सरकारी व्यय के मुख्य घटक हैं। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में शिक्षा के लिए ₹9,812 करोड़ का पर्याप्त बजट, जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र को ₹3,390 करोड़ आवंटित किया गया है। चित्र 3.4 से पता चलता है कि 2024-25 (ब.अ.) में कुल व्यय का 79.85 प्रतिशत राजस्व व्यय होने का अनुमान है, जबकि इसी वर्ष के लिए पू ंजीगत व्यय 10.73 प्रतिशत, ऋण (अग्रिम) और सार्वजनिक ऋण (पुनर्भुगतान) क्रमशः 0.05 और 9.38 प्रतिशत होने का अनुमान है। विस्तृत व्यय सारणी 3.1, 3.2 और 3.3 मे ं प्रस्तुत किए गए हैं। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के बजट अनुमान के अनुसार, राज्य सरकार का कुल व्यय ₹58,444 करोड़ होने का अनुमान था, जिसमें से ₹46,667 करोड़ राजस्व व्यय के लिए निर्धारित किए गए थे।

क) राजस्व व्यय : बजट अनुमान वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए राजस्व व्यय ₹46,667 करोड़ है जो की वित्त वर्ष 2022-23(वा.) के लिए ₹44,425 करोड़ की तुलना में 5 05 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्शाता है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए राजस्व व्यय जी.एस.डी.पी. का 20.10 प्रतिशत अनुमानित है।
ख) पूंजीगत व्यय : वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए पू ंजीगत व्यय ₹6,270 करोड़ है, जोकि जी.एस.डी.पी. का 2.70 प्रतिशत है, जबकि इसकी तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 (वा.) के लिए ₹6,029 करोड़ के साथ 3.99 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। जोकि 2024-25 (ब.अ.) के अनुसार कुल व्यय का 10.73 प्रतिशत होने की उम्मीद है।
राजस्व व्यय की संरचना - सरकार अपने व्यय का एक बड़ा हिस्सा राजस्व व्यय पर खर्च करती है। राजस्व व्यय की संरचना नीचे सारणी 3.4 में दी गई है जो दर्शाती है कि वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) में कुल व्यय का 57.26 प्रतिशत व्यय प्रतिबद्ध व्यय पर होने की संभावना है जिसमें वेतन पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी शामिल है। कुल प्रतिबद्ध व्यय ₹33,463 करोड़ है जो वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए जी.एस.डी.पी. का 14.41 प्रतिशत है।
राज्य का ऋण उसके वित्तीय स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। राज्य की वित्तीय विवेकशीलता उसके ऋण और उसकी चुकाने की क्षमता पर निर्भर करती है। सारणी 3.5 से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2022-23 में जी.एस.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में ऋण 39.99 प्रतिशत रहा, जबकि 2021-22 में यह 37.35 प्रतिशत था।

इसमे लैंगिक दृष्टिकोण से बजट का विश्लेषण करना, बजट प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में लैंगिक दृष्टिकोण को एकीकृत करना, और लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए राजस्व और व्यय को पुनर्गठित करना शामिल है। संक्षेप में, जेंडर बजटिंग दीर्घकालिक उद्देश्य की पूर्ती के लिए एक कार्य योजना और प्रक्रिया है। महिलाएं जेंडर बजट की प्रमुख हितधारक हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग जेंडर बजट का नोडल विभाग है जो लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए उत्तरदायी है। स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रम और रोजगार, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से सक्षम आदि के सशक्तिकरण सहित विभाग, जो मुख्य रूप से लैंगिक-संवेदनशील कार्यक्रम चलाते हैं।
जेंडर बजट व्यय नीचे सारणी 3.6 में दिखाया गया है, जिसमें श्रेणी-1 दिखा रहा है कि बजट का 100 प्रतिशत महिला-विशिष्ट कार्यक्रमों पर खर्च किया गया है और श्रेणी-2 यह दर्शाता है कि महिलाओं पर 100 प्रतिशत से कम खर्च किया गया है।

राजकोषीय घाटा सरकारी व्यय और राजस्व के बीच के अंतर को दर्शाता है। अधिक घाटा अधिक उधारी को दर्शाता है। जबकि, राजस्व घाटा सरकार के राजस्व में उसके वर्तमान व्यय की तुलना में कमी को दर्शाता है। सारणी 3.7 मे ं वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए राजकोषीय घाटे और राजस्व घाटे के आंकड़े दिखाए गए हैं।
हिमाचल प्रदेश के सार्वजनिक वित्त रुझानों के विश्लेषण के आधार पर, राजकोषीय स्थिरता और आर्थिक लचीलेपन को बढ़ाने के लिए कई रणनीतिक दिशाएँ हैंः
क) राजस्व संग्रहण में वृद्धिः ऋण वित्तपोषण पर निर्भरता कम करने के लिए, राज्य प्रभावी कर प्रशासन, कर आधार को व्यापक बनाने और राजस्व सृजन की परिवर्तनात्मक पहलो ं को शुरू करने के माध्यम से राजस्व स्रोतो ं में सुधार पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। यह दृष्टिकोण राजस्व प्राप्तियों को बढ़ा सकता है, जिससे राजकोषीय घाटे में कमी आ सकती है।
ख) व्यय युक्तिकरणः व्यय को राजस्व क्षमताओं के साथ संरेखित करने के लिए व्यय नियंत्रण उपायों को लागू करना आवश्यक है। इसमें विकासात्मक आवश्यकताओं के आधार पर व्यय को प्राथमिकता देना, सार्वजनिक व्यय में क्षमता बढ़ाना और संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए अनावश्यक खर्चों पर अंकुश लगाना शामिल है।
ग) बुनियादी ढांचे और विकास में निवेशः वित्तीय बाधाओं के बावजूद, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में लक्षित निवेश आर्थिक विकास और उत्पादकता को बढ़ावा दे सकता है। उद्योग, जल विद्युत, पर्यटन और अन्य क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देने से निजी निवेश आकर्षित हो सकता है, रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं, राज्य सरकार की अर्थव्यवस्था, आय और राजस्व को बढ़ावा मिल सकता है।
निष्कर्षःहिमाचल प्रदेश की राजकोषीय स्थिति आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें कर राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि और केंद्र सरकार से अनुदान मे ं थोड़ी कमी शामिल है। वित्त वर्ष 2024-25 (ब.अ.) के लिए राज्य के व्यय में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में व्यय को प्राथमिकता दी गई है। केंद्रीय अनुदान में कमी के बावजूद, कर और गैर-कर राजस्व में वृद्धि हुई है, जो समग्र राजकोषीय स्थिरता में योगदान देता है। इसके अलावा, लैंगिक बजट एक प्रमुख घटक है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों मे ं लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से महिला-विशिष्ट कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त आवंटन है। कुल मिलाकर, राज्य राजकोषीय विवेक, संतुलित विकास और लैंगिक समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है।

4.बैंकिंग संस्थागत वित्त

यह अध्याय हिमाचल प्रदेश में बैंकिंग और वित्तीय समावेशन परिदृश्य का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करता है, जो राज्य के बैंकिंग क्षेत्र में प्रमुख विकास के साथ-साथ वित्तीय समावेशन पहल की प्रगति पर प्रकाश डालता है। यह बैंक शाखाओं के नेटवर्क, बैंकिंग जिम्मेदारियो ं के वितरण और राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास में बैंकों द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डालता है। राज्य के बैंकिंग बुनियादी ढांचे जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों, सहकारी बैंकों और भुगतान बैंकों की उपस्थिति शामिल है, का विश्लेषण किया जाता है। इसके अतिरिक्त, यह राज्य के प्रदर्शन का आकलन करता है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय बैंकिंग मानकों, जैसे प्राथमिकता क्षेत्र, कृषि, छोटे और सीमांत किसान तथा सूक्ष्म उद्यमों को दिए गए ऋण को किस सीमा तक पूरा कर रहा है। यह अध्याय इस बात भी पर प्रकाश डालता है कि बैंको ं ने हिमाचल प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक विकास में कैसे योगदान दिया है, जिसमें कृषि, सूक्ष्म उद्यमों और महिलाओं जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को दिए गए ऋण पर जोर दिया गया है। इन क्षेत्रों को ऋण देने के लिए आर.बी.आई. के राष्ट्रीय मापदंडो ं को पूरा करने मे ं राज्य की प्रगति का विश्लेषण किया जाता है। इस अध्याय में प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पी.एम एस.बी.वाई.), प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पी.एम.ज.ेजे.बी.वाई.), और अटल पेंशन योजना (ए.पी.वाई.) सहित सरकार द्वारा प्रायोजित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के कार्यान्वयन को भी शामिल किया गया है। हिमाचल प्रदेश के निवासियों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इन योजनाओं को अपनाने का मूल्यांकन किया जाता है।
हिमाचल प्रदेश में तीन बैंकों को लीड बैंक की जिम्मेदारी दी गई है जिसमें पंजाब नैशनल बैंक को जिला हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, मण्डी तथा ऊना में, यूको बैंक को जिला बिलासपुर, शिमला, सोलन तथा सिरमौर मे ं तथा स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया को जिला चम्बा तथा लाहौल-स्पिति में यह कार्य आबंटित किया गया है। यूको बैंक राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एस.एल.बी.सी.) का संयोजक बैंक है।
राज्य में कुल 2,352 बैंक शाखाओं के नेटवर्क में से 76 प्रतिशत से अधिक शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रही है। जनगणना 2011, के अनुसार प्रति शाखा औसत जनसंख्या 2,919 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 11,000 है। 4 आउटलैट के साथ भारतीय डाक पेमेंट बैंक, वित्तीय समावेशन नेटवर्क और संचालन (फिनो) पेमेंट बैंक, एअरटेल पेमेंट बैंक, पेटीएम पेमेंट बैंक शामिल है। राज्य में विभिन्न बैंक शाखाओं का विवरण नीचे सारणी-4.1 में दर्शाया गया है।
जिला-वार बैंक शाखाओं के प्रसार के संदर्भ में कांगड़ा जिले मे सबसे अधिक 431 बैंक शाखाएं तथा लाहौल स्पिति में सबसे कम 26 बैंक शाखाएं हैं।
बैंकों द्वारा दूर दराज के क्षेत्रों मे ं जहां ढांचा आधारित शाखाएं आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं, बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने हेतु व्यापार संवाददाता प्रतिनिध्ाि (जिन्हें ’बैंक मित्र‘ के रूप में जाना जाता है) को तैनात किया है। वर्तमान में राज्य में गांवों में मूलभूत बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा 11,340 बैंक मित्र तैनात किए गए हैं। राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको ं के रुप में पी.एन.बी. बैंक, एस.बी.आई. बैंक, यूको बैंक, केनरा बै ंक, सैंट्रल बैंक आॅफ इंडिया और यूनियन बैंक और बैंक ऑफ़ बड़ ़ौदा के पूर्ण विकसित नियंत्रण कार्यालय अर्थात क्षेत्रीय कार्यालय/अचंल कार्यालय/सर्कल कार्यालय हैं। भारतीय रिजर्व बैंक का क्षेत्रीय कार्यालय क्षेत्रीय निदेशक की अध्यक्षता में तथा नाबार्ड का भी क्षेत्रीय कार्यालय मुख्य महाप्रबन्धक की अध्यक्षता में शिमला मे ं स्थित है।
राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने के लिए बैंक भागीदार के रूप में ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। राज्य के बैंकों ने आर.बी.आई. द्वारा तय 7 में से 5 राष्ट्रीय मानकों को प्राप्त किया है जिसमें प्राथमिक क्षेत्र में कृषि क्षेत्र, लघु तथा सीमान्त किसान, लघु उद्योग, कमजोर वर्ग तथा महिलाओं को ऋण उपलब्ध करवाया है। वर्तमान में बैंकों द्वारा प्राथमिक क्षेत्र की गतिविधियों अर्थात कृषि, एम.एस.एम.ई. शिक्षा ऋण, आवास ऋण, माइक्रो क्रेडिट आदि के लिए कुल ऋण का 59.12 प्रतिशत ऋण दिया गया है।
बैंकों द्वारा दिए गए कुल ऋण में से सितम्बर, 2024 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 18 प्रतिशत के राष्ट्रीय मानक की तुलना मे ं 16.73 प्रतिशत कृषि ऋण प्रदान किए है। बैंको द्वारा कुल ऋण में कमजोर वर्गांे तथा महिलाओं का क्रमशः 17.38 प्रतिशत तथा 12.60 प्रतिशत अग्रिम राशि का भाग है, जोकि राष्ट्रीय मानकों के अनुसार क्रमशः 12 प्रतिशत तथा 5 प्रतिशत होनी चाहिए। सितम्बर, 2024 तक राज्य में बैंकों का ऋण जमा अनुपात 47.16 प्रतिशत रहा। राष्ट्रीय मानकों की स्थिति नीचे सारणी 4.2 में दर्शाई गई है।

वित्तीय समावेश हमारे समाज के छुटे हुए वर्गों और कम आय वाले समूहों के लिए सस्ती दर पर वित्तीय सेवाओं और उत्पादों के प्रावध्ाान को दर्शाता है। भारत सरकार द्वारा वित्तीय समावेश व्यापक अभियान के अन्तर्गत “प्रधानमन्त्री जन-धन योजना” सात वर्षों से अधिक समय से राज्य के आर्थिक विकास के लिए चल रही है और इसके अन्तर्गत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं, छोटे और सीमांत किसानों और मज़दूरों सहित समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए कई पहलें की जा रही हैं।
प्रधानमन्त्री जन-धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.)- बैंकों द्वारा राज्य में प्रत्येक घर में कम से कम एक बुनियादी बचत जमा(बी.एस.बी.डी ए.) खाते के साथ समस्त परिवारों को सम्मिलित किया गया है। बैंकों द्वारा इस योजना के अन्तर्गत कुल 18.55 लाख खाते सितम्बर, 2024 तक खोले गए है। इन खातों मे ं से 16.60 लाख बुनियादी बचत जमा खातेे ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 1.95 लाख शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं।
राज्य मे ं बैंकों द्वारा पी.एम.जे.डी.वाई. खाताधारकों को 12.69 लाख रूपे डेबिट कार्ड जारी किए गए, जोकि पी.एम.जे.डी.वाई. के अन्तर्गत खोले गए खातों का 69 प्रतिशत है। सितम्बर, 2024 तक बैंकों द्वारा 84 प्रतिशत पी.एम.जे.डी.वाई. खातों को आधार संख्या तथा मोबाइल नंबर के साथ ज¨ड़ने की पहल की जा चुकी है।
प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के अन्तर्गत सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा पहल- प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के कार्यान्वयन के अन्तर्गत भारत सरकार ने तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को शुरू किया है। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की वर्तमान स्थिति निम्नलिखित हैः
1) प्रधानमन्त्री सुरक्षा बीमा योजना (पी.एम.एस.बी.वाई.)- इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्ष से 70 वर्ष के आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को प्रति वर्ष ₹20.00 के प्रीमियम से प्रति ग्राहक को एक वर्ष के नवीनीकरण पर आकस्मिक मृत्यु सह दिव्यांगता के लिए ₹2.00 लाख (आंशिक स्थायी दिव्यांगता के लिए ₹1.00 लाख) प्रदान किए जाते हैं तथा इसे हर वर्ष 1 जून को नवीनीकरण किया जाता है। प्रधानमन्त्री सुरक्षा बीमा योजना के अन्तर्गत सितम्बर, 2024 तक बैंकों ने 35.22 लाख ग्राहको ं को जोड़ा है।
3) अटल पेंशन योजना (ए.पी.वाई.)- अटल पेंशन योजना असंगठित क्षेत्र पर केंद्रित है तथा इस योजना के अन्तर्गत ग्राहकों को 60 वर्ष की आयु पर ग्राहक के 18 से 40 वर्ष के दौरान प्रवेश करने पर किए गए अंशदान के आधार पर न्यूनतम पेंशन ₹1,000, ₹2,000, ₹3,000, ₹4,000 और ₹5,000 प्रति माह उपलब्ध करवाई जाती हैे। इस प्रकार इस योजना के अन्तर्गत ग्राहक द्वारा 20 वर्ष या इससे अधिक की अवधि में अंशदान किया हो तो निर्धारित न्यूनतम पेंशन की गारंटी सरकार द्वारा दी जाती है। राज्य सरकार मनरेगा श्रमिकों, मिड-डे मील कार्यकर्ताओं, कृषि एवं बागवानी श्रमिकों तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अटल पेंशन योजना के अन्तर्गत लाने हेतु ध्यान दे रही है। इस योजना के अन्तर्गत बैंकों द्वारा जोरदार अभियानों, शिविरों, मीडिया प्रचार, प्रैस इत्यादि के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। ए.पी.वाई. के अन्र्तगत बैंको ं द्वारा सितम्बर, 2024 तक 5.30 लाख ग्राहकों को नामांकित किया गया है। इसके अतिरिक्त, डाक विभाग भी इस योजना के कार्यान्वयन मे भाग ले रहा है।
प्रधानमन्त्री मुद्रा योजना हिमाचल प्रदेश सहित देश भर में चल रही है। छोटे सूक्ष्म उद्यमों मे ं मुख्य रूप से विनिर्माण, व्यापार और सेवाओं में गैर कृषि उद्यम शामिल हैं, जिनकी ़ऋण आवश्यकताएं ₹10.00 लाख से कम है और आय सृजन के लिए इस वर्ग को दिए सभी ऋणो ं को मुद्रा ऋण के रूप में जाना जाएगा। इस श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले सभी अग्रिम जो 8 अप्रैल, 2015 को या इसके बाद इस योजना के अधीन आए हो, को मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
हिमाचल प्रदेश में इस योजना के अन्तर्गत चालू वित्त वर्ष 2024-25 में सितम्बर, 2024 तक बैंको ं द्वारा 40,280 नए लघु उद्यमियों को ₹990.31 करोड़ के नए ऋण स्वीकृत किए गए हैं। कुल वितरित ऋण राशि ₹3409.27 करोड़ है, जिससे 1,76,606 उद्यमियों को लाभ मिला है।
स्टैंड अप इंडिया योजना पूरे देश में शुरु की गई है जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं द्वारा प्रतिनिधित्व वाले समाज के सेवा से वंचित और उपेक्षित वर्गों में उद्यमशीलता की संस्कृति को प्रोत्साहित करना है।
इस योजना के अन्तर्गत कम से कम एक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या एक महिला उधारकर्ता को विनिर्माण, व्यापार और सेवा क्षेत्र (इसे ग्रीन फील्ड उद्यम भी कहा जाता है) में एक नए उद्यम की स्थापना के लिए ₹10.00 लाख से लेकर ₹1.00 करोड़ के ऋण की प्रत्येक बैंक शाखा द्वारा सुविधा दी जाती है। सितम्बर, 2024 तक इस योजना के अन्र्तगत बैंको ं द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों को 416 नए उद्यमों को स्थापित करने के लिए ₹66.13 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अभियान, लक्षित जनसंख्या तक पहंुचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बैंक हिमाचल प्रदेश में वित्तीय साक्षरता केन्द्रों (एफ.एल.सी.) तथा अपनी बैंक शाखाओं के माध्यम से वित्तीय साक्षरता अभियान चला रहे हैं।
राज्य के सभी बैंकों द्वारा कुल जमा राशि सितम्बर, 2023 में ₹1,81,021 करोड़ से बढ़कर सितम्बर, 2024 में ₹1,97,790 करोड़ तक दर्ज की गई। बैंकों की जमा राशि वर्ष दर वर्ष 9.26 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। कुल अग्रिम सितम्बर, 2023 मे ं ₹76,188 करोड़ से बढ़ कर सितम्बर, 2024 तक ₹89,447 करोड़ हो गया जो वर्ष दर वर्ष 17.40 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हैं। कुल बैंकिंग कारोबार सितम्बर, 2024 में 11.67 प्रतिशत बढ़कर ₹2,87,237 करोड़ ह¨ गया जो सितम्बर, 2023 में ₹2,57,209 करोड़ था।
बैंकिग क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको ं (पी.एस.बी.) का सबसे अधिक 62 प्रतिशत भाग है, आर.आर.बी. का 5 प्रतिशत भाग है, निजी बैंकों का 13 प्रतिशत तथा सहकारी बैंकों का 18 प्रतिशत तथा अन्य बैंकों का 2 प्रतिशत भाग है। तुलनात्मक आंकड़े नीचे सारणी 4.3 में दर्शाए गए है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए बैंको ं ने नाबार्ड की सहायता से, क्षमता के आधार पर विभिन्न प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की गतिविधियों के लिए वार्षिक जमा योजना तैयार कर नए ऋण उपलब्ध करवाए हैं। वार्षिक जमा योजना 2024-25 के अधीन पिछली योजना के वित्तीय परिव्यय में 14.49 प्रतिशत की वृद्धि हुई तथा ₹43,179 करोड़ परिव्यय का लक्ष्य तय किया गया। सितम्बर, 2024 तक बैंको ं ने वार्षिक जमा योजना के अन्तर्गत ₹26,665 करोड़ के नए ऋण वितरित किए तथा 62 प्रतिशत की वार्षिक प्रतिबद्धता अर्जित की। 30 सितम्बर, 2024 तक क्षेत्रवार लक्ष्य तथा उपलब्धि सारणी 4.4 मे ं दर्शाई गई ळें
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.)- ग्रामीण विकास मन्त्रालय ने भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम को संचालित किया है जिसमें कि गरीबों, विशेष रुप से महिलाओं के लिए सुदृढ़ संस्थानों के निर्माण द्वारा नई वित्तीय सेवाओं और आजीविका सेवाओं तक पहु ंच पाना है। इस योजना को राज्य में हि.प्र. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एच.पी.एस.आर एल.एम.), ग्रामीण विकास विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कार्यान्वित किया गया है। राज्य मे ं इस योजना के अन्तर्गत बैंकों को 24,700 लाभार्थियों को कवर करते हुए ₹300.00 करोड़ के वार्षिक लक्ष्य रखा है। बैंकों ने एन.आर.एल.एम. योजना में सितम्बर, 2024 तक ₹55.81 करोड़ के 2,647 ऋणों की स्वीकृति दी है।
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन कार्यक्रम (एन.यू.एल.एम.)- भारत सरकार, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मन्त्रालय (एम.ओ.एच.यू.पी.ए.) ने मौजूदा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (एस.जे.एस.आर.वाई.) को पुनर्गठित किया और राष्ट्रीय शहरी जीविका मिशन (एन.यू.एल.एम.) को शुरू किया। स्वयं रोजगार कार्यक्रम (एस.ई.पी.) एन.यू.एल.एम. के घटको ं (घटक 4) में से एक है जो शहरी गरीबों के व्यक्तिगत और सामूहिक उद्यमों तथा स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) की स्थापना के लिए ऋणों पर ब्याज अनुदान के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित करता है। शहरी विकास विभाग तथा विभिन्न बैंको ने सितम्बर, 2024 तक एन.यू.एल.एम. के अन्तर्गत ₹4.06 करोड़ के ऋण वितरित किए हैं।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.)- पी.एम.ई.जी.पी. एक क्रेडिट लिंक्ड अनुदान कार्यक्रम है जोकि भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम मन्त्रालय द्वारा चलाया जा रहा है। इस योजना के कार्यन्वयन के लिए खादी एवं ग्राम उद्योग कमीशन (के.वी.आई.सी.) राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख एजेंसी है। राज्य स्तर पर के.वी.आई.सी., खादी एवं ग्रामीण बोर्ड (के.वी.आई.बी.) तथा जिला उद्योग केन्द्र के माध्यम से यह योजना कार्यान्वित की जाती है। इस योजना के अन्तर्गत बैंकों द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1174 नई इकाइयों के वित्तपोषण का लक्ष्य रखा गया था। इस योजना के अन्तर्गत कार्यान्वयन एजे ंसियों ने ₹32.16 करोड़ मार्जिन राशि के वितरण का लक्ष्य रखा है। बैंकों ने मार्जिन मनी के रूप में सितम्बर, 2024 तक 495 इकाइयों को ₹18.71 करोड़ स्वीकृत किए हैं।
किसानों को बैंकिंग प्रणाली क¢ अन्तर्गत् अल्पकालिक ऋण, कृषि उत्पादन तथा अन्य आवश्यकताओं के लिए एक ही स्थान एवं समय पर पर्याप्त ऋण बैंकों की ग्रामीण शाखाओ ं द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड (के.सी.सी.) के माध्यम से दिया जा रहा है। बैंकों द्वारा 1,20,367 किसानों को नए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए हैं। सितम्बर, 2024 तक बैंकों द्वारा कुल 5,79,299 किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड योजना के माध्यम से ₹10,204.00 करोड़ की धनराशि प्रदान की है।
जिला स्तर पर उद्यमिता में रुचि रखने वाले ग्रामीण युवाओ ं को प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के लिए बुनियादी ढाचे के विकास के लिए ग्रामीण विकास मन्त्रालय (एम.ओ.आर डी.) की पहल पर ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर.एस.ई.टी.आई.) चलाए जा रहे है। राज्य के 10 जिलों (लाहौल-स्पिति, किन्नौर छोड़कर) में अग्रणी बैंकों, जिनमे ं यूको बैंक, पी.एन.बी. व स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया शामिल हैं, द्वारा ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों का गठन किया है। यह ग्रामीण स्वयं रोजगार प्रशिक्षण संस्थान, प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन (पी.एम.ई.जी.पी.) योजना के अन्तर्गत गरीबी उन्मूलन तथा उद्यमिता विकास के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत् इलेक्ट्राॅनिक डेटा प्रोसेसिंग (ई.डी.पी.) कर रहे हैं। आर.एस.ई.टी.आई. ने वर्ष 2024-25 में कुल 328 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने का लक्ष्य रखा और 4,992 युवाओं को प्रशिक्षित किया गया।
नाबार्ड ने पिछले कुछ वर्षों में े ग्रामीण संरचना विकास, लघु ऋण, किसान उत्पादक संगठनों, ग्रामीण कृषि तथा गैर कृषि क्षेत्र, पुरुष एवं महिलाओं का कौशल विकास कर श्रम बल की भागीदारी में सुधार, पुर्नवित्त और राज्य मे ं ग्रामीण ऋण वितरण व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण करके सहयोग दिया है। नाबार्ड भी भारत सरकार की कुछ केन्द्र प्रायोजित योजनाओं को लागू कर रहा है, या उनसे जुड़ा हुआ है।
ग्रामीण अधोसंरचना - 1995-96 में स्थापना के बाद से, ग्रामीण अधोसंरचना विकास निधि (आर.आई.डी.एफ.) राज्य सरकारों के साथ मिलकर ग्रामीण अधोसंरचना के विकास के लिए नाबार्ड की एक प्रमुख पहल बन गई है। इस योजना के अन्तर्गत राज्य सरकारो ें तथा राज्य के स्वामित्व वाले निगमोे ं की चल रही योजनाओं को पूर्ण करने तथा कुछ चुने हुए क्षेत्रों में नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए रियायती ऋण दिए जाते हैं। वर्षों से, समय के साथ-साथ इस निधि के उपयोग से विŸाीय सहायता का क्षेत्र विस्तृत करके 3़9 उपयुक्त गतिविधियां जिनमें कृषि तथा संबंधित क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र तथा ग्रामीण सम्पर्क सम्बन्धित आधारभूत गतिविधियों को भी शामिल किया गया है।
इस निधि के अन्तर्गत् आर.आई.डी.एफ-ग्ग्ग् में (वर्ष 2024-25) नई परियोजनाओं की स्वीकृति के लिए राज्य को ₹900 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है। इस में नवाचार क्षेत्रों की स्वीकृत परियोजनाएँ जैसे हरित गतिशीलता और स्वच्छ परिवहन को बढ़ावा देने हेतु 53 ई.वी. चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर इकाइयो ं की स्थापना शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, दूध के उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए किसानों की सहायता हेतु कांगड़ा जिले के ढगवार मे ं डेयरी प्रसंस्करण के लिए एक मेगा परियोजना स्वीकृत की गई है। साथ ही, नाबार्ड ने मंडी जिले में माता बगलामुखी रोपवे परियोजना को भी स्वीकृति दी है, जो चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ स्थित है और पंडोह को बखाली में स्थित मंदिर से जोड़ती है।
आर.आई.डी.एफ. की स्थापना से अब तक निधि के अन्तर्गत राज्य को 31 मार्च, 2024 तक परियोजनाओं को लागू करने के लिए ₹11,863.39 करोड़ की विŸाीय सहायता की स्वीकृति दी जा चुकी है जिनमें मुख्यतः ग्रामीण सड़के ं/पुल, सिंचाई, पेयजल आदि की परियोजनाएं भी शामिल हैं। आर.आई.डी.एफ.-ग्ग्ग् के अन्तर्गत ₹903.2 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है और राज्य को चालू वित्त वर्ष के लिए 14 जनवरी, 2025 तक ₹526 करोड़ का वितरण किया गया है।
आर.आई.डी.एफ.-ग्ग्ग् के अन्तर्गत स्वीकृत परियोजनाओं के पूर्ण होने पर, हिमाचल प्रदेश में 53 स्थानों पर ई.वी. चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाएगा, जिससे हरित और स्वच्छ परिवहन को बढ़ावा मिलेगा। इसके अतिरिक्त, 208.65 किलोमीटर की ग्रामीण सड़क परियोजनाएँ, ग्रामीण संपर्क में सुधार करे ंगी। साथ ही, जल आपूर्ति परियोजनाओं और सीवरेज योजनाओं की स्वीकृति से ग्रामीण समुदायों को लाभ मिलेगा, जिससे स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। ढगवार दुग्ध संयंत्र रोजगार के अवसर सृजित करेगा, डेयरी उत्पादों को प्रतिस्पर्धी मूल्य पर उपलब्ध कराएगा और ग्रामीण आबादी को उचित मूल्य प्रदान करेगा, जिससे आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा
प्रौद्योगिकी सुविधा कोष (टी.एफ.एफ.)- नाबार्ड में तकनीक सुधार को समर्थन और उसे बढ़ावा देने के लिए तकनीक सुधार निधि (टी.एफ.एफ.) को 50 करोड़ रुपये के प्रारंभिक पूंजी के साथ स्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य कृषि और ग्रामीण विकास क्षेत्र को लाभान्वित करने वाले तकनीकी अनुप्रयोग को समर्थित करना है, ताकि तकनीकी स्टार्ट-अप्स के साथ संबंधों के लिए एक कुशल नीति हो और एक समर्पित अनुदान स्रोत हो।
मत्स्यपालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (एफ.ए.आई.डी.एफ.): नाबार्ड ने एफ.ए.आई.डी.एफ.(मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड) के अन्र्तगत 31 मार्च, 2025 तक जिला ऊना के कार्प फार्म, गगरेट में एक अत्याधुनिक मत्स्य पालन प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना के लिए राज्य सरकार को सहायता दी है।
पुनर्वित्त सहायता - नाबार्ड, विभिन्न कार्य-कलाप, जिनमे ं ग्रामीण आवास, लघु सड़क परिवहन आपरेटरों, भूमि विकास, लघु सिंचाई, डेयरी विकास, स्वंय सहायता समूह, कृषि यंत्रीकरण, मुर्गी पालन, वृक्षारोपण एवं बागवानी, भेड़/बकरी/सुअर पालन, घरेलू कार्यकलापों की पैकिंग ग्रेडिंग व अन्य क्षेत्रों के विभिन्न कार्यो के लिए दीर्घ अवधि के लिए पुनर्वित्त सहायता प्रदान करता है। वित्त वर्ष 2024-25 में संवितरण के लिए नाबार्ड ने हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंकां े और हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (एस सी.ए.आर.डी.बी.) को 13 जनवरी, 2025 तक पुनर्वित के अन्तर्गत् ₹335.99 करोड दिए हैं।
इसके अतिरिक्त, नाबार्ड ने सहकारी बैंको ं और आर.आर.बी. के प्रयासों को भी पूरक किया है, राज्य में फसल ऋण संवितरण के लिए लघु अवधि ;एस.टी.द्ध के लिए ₹2,150 करोड़ की ऋण सीमा को मंजूरी दी है जिसके अंतर्गत बै ंकों ने कृषि ऋण के प्रवाह को सुदृढ़ करने के लिए 2024-25 के दौरान 13 जनवरी 2025 तक ₹1,788 करोड़ की पुनर्वित्त सहायता दी है।
विषेष पुनर्वित्त योजनाएं- पोस्ट कोविड युग में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड ने निम्नलिखित नई योजनाएं शुरु की हैंरू
क) प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पी.ए.सी.एस.)का बहु सेवा केन्द्र (एम.एस.सी.) के रुप मेें परिवर्तनरू- इस योजना का उद्देश्य देश भर में पी.ए.सी.एस. को एम.एस.सी. में परिवर्तित करना है, जिससे अंतिम लाभार्थियों को सस्ता ऋण देने के लिए बैंकों को 3 प्रतिशत की दर पर रियायती पुनर्वित्त सुविधा प्रदान की जा सके। राज्य सहकारी बैंक पी.ए.सी.एस. को 4 प्रतिशत की दर पर ऋण देते हैं और यदि परियोजना ए आई.एफ. के तहत पात्र है तो भारत सरकार द्वारा 3 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। यह योजना वर्तमान में केवल पैक्स द्वारा गोदाम निर्माण के लिए सहायता तक सीमित है।
ख) जल स्वच्छता और स्वच्छता गतिविधियों के लिए योजनाबद्ध पुनर्वित्त(WASH): इस योजना का उद्देश्य बैंकों/वित्तीय संस्थाओं की क्रेडिट आवश्यकता को पूरा करना है ताकि वे पात्र लाभार्थियों/उद्यमियों को समय पर परेशानी मुक्त ऋण प्रदान कर सके ं ताकि जल और स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धित गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके। योग्य संस्थान-सभी वाणिज्यिक बैंक, एस.एफ.बी, आर.आर.बी, सहकारी बैंक और नाबार्ड की सहायक कंपनियां हैं। WASH गतिविधियों के लिए वित्तपोषण सतत विकास लक्ष्यो ं के तहत एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और पुनर्वित्त के लिए 95 प्रतिशत ऋण के े लिए पात्र होगा। नाबार्ड सभी पात्र बैंकों को 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर (त्रैमासिक चक्रवृद्धि) से रियायती दीर्घकालिक पुनर्वित्त प्रदान करेगा। योग्य गतिविधियाँ-सैनिटरी फिटिंग, रेडीमेड शौचालय आदि के निर्माण/ आपूर्ति करने वाले स्टार्ट-अप/उद्यमियों/एम.एस.एम.ई. को सहायता प्रदान करना है।
सरकारी प्रायोजित योजनाएं-
नई कृषि विपणन अवसंरचना (ए.एम.आई.) योजनाः कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (आई.एस.ए.एम.) की एक उप-योजना, नई कृषि विपणन अवसंरचना (ए.एम.आई.) को लागू कर रही है। योजना को 31 मार्च, 2026 तक स्वीकृत सावधि ऋणों के लिए बढ़ा दिया गया है।
लघु ऋण - स्वयं सहायता समूह ;एस.एच.जी.द्ध कार्यक्रम का अब हिमाचल प्रदेश में एक सशक्त आधार के साथ विस्तार हो गया है। इस आंदोलन ने मानव संसाधन और वित्तीय मदों मे ं अतिरिक्त सहायता प्रदान की है। 2024-25 के दौरान 15 जनवरी 2025 तक, 6,337 क्रेडिट-लिंक्ड एस.एच.जी. को ₹296.52 करोड़ के ऋण के साथ क्रेडिट-लिंक किया गया है।
केन्द्रीय बजट 2014-15 में संयुक्त कृषि समूहों के वित्तपोषण के लिए नाबार्ड द्वारा किए गए वित्तपोषण के प्रयासों से संयुक्त देयता समूह साधन से “भूमिहीन किसानो ं“ तक वित्तीय सहायता पहंचाने के लिए नवीन पहल हुई है। प्रदेश में 30 सितंबर, 2024 तक 15,765 संयुक्त देयता समूहों को ₹98.58 करोड़ का कुल ऋण दिया जा चुका है। राज्य में “संयुक्त देयता समूह“ योजना को बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड राज्य में विभिन्न गैर सरकारी संगठनों/संयुक्त देयता संवर्धन संस्थानों के े साथ सहयोग कर रहा है। नाबार्ड ने वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान तीन वर्षों में 200 जे.एल.जी. के प्रचार और क्रेडिट लिंकेज के लिए विभिन्न गैर सरकारी संगठनों को ₹8 लाख मंजूर किए हैं।
कृषक उत्पादन संगठन का प्रचार- हिमाचल प्रदेश मे ं नाबार्ड ने सभी 12 जिलों में 124 एफ.पी.ओ. के गठन/प्रचार के लिए ₹15.73 करोड़ के अनुदान को स्वीकृत किया है। यह एफ.पी.ओ. संयुक्त रुप से सब्जियों, औषधियों और सुगंधित पौधों, दुग्ध्ा और फूलों के उत्पादन, प्राथमिक प्रसंस्करण और विपणन का कार्य करे ंगे। ये एफ.पी.ओ. राज्य भर के लगभग 26,332 किसानों को सुरक्षा देते हैं जिनकी सालाना बिक्री ₹17.01 करोड़ है। एक अन्य केंद्रीय क्षेत्र की योजना में नाबार्ड ’’एक जिला एक उत्पाद’’ की अवधारणा क¢ साथ 10,000 एफ.पी.ओ. के गठन और संवर्धन के लिए कार्यान्वयन एजेंसी होगा। राज्य में क्लस्टर आधारित व्यावसायिक संगठनो ं (सी.बी.बी.ओ.) के माध्यम से एफ.पी.ओ. को बढ़ावा दिया जाएगा और पोषित किया जाएगा। नाबार्ड ने इस योजना के अन्तर्गत् कुल स्वीकृत अनुदान ₹10.47 करोड़ के साथ 23 एफ.पी ओ. का गठन किया है।
वाटरशेड विकास - नाबार्ड ने राज्य के दस जिलों में 52 वाटरशैड विकास परियोजनाओं (31 वाटरशेड जिसमें प्राकृतिक खेती पर आधारित पहल जीवा भी शामिल है और 21 स्प्रिंग शैड परियोजना) को मंजूरी दी है। इस परियोजना के अन्र्तगत 40,380 हेक्टेयर को सुरक्षित करते हुए, 10 जिलों के 365 गाॅवों को ₹32.65 करोड़ की राशि द्वारा लाभान्वित किया गया। इन परियोजनाओं के द्वारा पानी की उपलब्धता, पर्यावरण संरक्षण, उत्पादकता, किसानो ं की आय में वृद्धि, घटती हुई चरागाहों का संरक्षण और पशुपालन को बढ़ावा दिया जाएगा।
जनजातीय विकास निधि के माध्यम से जनजातीय लोगों का विकास (टी.डी.एफ.)- नाबार्ड ने 15 जनजातीय विकास परियोजनाओं के अन्र्तगत् ₹23.55 करोड की वित्तीय सहायता द्वारा 31 दिसम्बर, 2024 तक 3,982 परिवारों को लाभान्वित किया है। इन परियोजनाओं का उद्द¢श्य चयनित गांवों में वादी (छोटे उद्यानो ं) और डेयरी इकाइयों की स्थापना करना है। इनके अन्र्तगत् 2,838 एकड़ भूमि मेे ं सेब, नींबूू, अखरोट, नाशपाती और जंगली खुबानी के पौधे लगाए गए हैं।
कृषि क्षेत्र प्रोत्साहन कोष के माध्यम से सहायता (एफ.एस.पी.एफ.)- एफ.एस.पी.एफ. के अन्तर्गत अब तक 20,773 किसानों को 42 परियोजनाओं द्वारा लाभान्वित करने के लिए ₹4.80 करोड़ की संचयी अनुदान सहायता स्वीकृत की गई है। इस निधि के तहत समर्थित गतिविधियों में बाजरा को बढ़ावा देना, सटीक खेती के लिए आई ओ.टी. (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) प्रौद्योगिकी का उपयोग, सीबकथॉर्न का मूल्य श्रृ ंखला विकास, स्वदेशी मधुमक्खी का संरक्षण, सजावटी नर्सरी में कौशल विकास, रेशम उत्पादन के माध्यम से आजीविका मे ं वृद्धि और पिपलूघाट, सोलन में मवेशी विकास केंद्र की स्थापना शामिल है।
ग्रामीण कारीगरों/बुनकरों को सहायता- नाबार्ड ने सरोआ हैंडलूम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के नाम से पंजीकृत एक ऑफ फार्म प्रोड्यूसर संगठन के गठन के लिए ₹90.11 लाख की अनुदान सहायता मंजूर की है। ओ.एफ.पी.ओ. के लाभार्थियों में 503 बुनकर शामिल हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो अब पटटू, शॉल, स्टोल और मफलर जैसे विभिन्न ऊनी उत्पादो ं का उत्पादन करने मे ं सक्षम हैं।
नाबार्ड परामर्श सेवाएं ;नैबकाॅन्सद्ध, नाबार्ड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी है और यह कृषि, ग्रामीण विकास और इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में परामर्श प्रदान करती है। नैबकाॅन्स ने निम्नलिखित प्रमुख कार्य किये हैंः
i) हिमाचल प्रदेश कृषि विपणन बोर्ड की पराला और £ड़ापत्थर मे ं एकीकृत शीत श्रृ ंखला परियोजना के लिए परियोजना प्रबंधन परामर्श।
ii) हिमाचल प्रदेश में राज्य स्तर पर एग्री-इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (ए.आई.एफ.) के अन्र्तगत पी.एम.यू. (परियोजना प्रबंधन इकाई) की स्थापना।
iii) नैबकाॅन्स हिमाचल प्रदेश में डी.डी.यू.-जी.के.वाई. के लिए के ंद्रीय तकनीकी सहायता एजे ंसी है।
निष्कर्षः हिमाचल प्रदेश में बैंकिंग क्षेत्र राज्य के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और वित्तीय समावेशन में चल रहे प्रयास विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वंचित समुदायों को सशक्त बनाने मे ं मदद कर रहा है। कुछ क्षेत्रों मे ं सुधार की आवश्यकता बनी हुई है, परंतु राज्य ने राष्ट्रीय बैंकिंग मापदंडों और सरकारी योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
हिमाचल प्रदेश मे ं कुल 2,352 बैंक शाखाओं में से 76 प्रतिशत से अधिक शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बड़ी ग्रामीण जनता के लिए वित्तीय सेवाएं सुलभ हैं। राज्य का बैंक शाखा-से-जनसंख्या अनुपात राष्ट्रीय औसत से काफी अच्छा है, जहां केवल प्रति शाखा 2,919 लोग हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 11,000 है। राज्य के बैंकों ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण देने के लिए आर.बी.आई. के राष्ट्रीय मापदंडों को पूरा करने में उल्लेखनीय प्रगति की है, तथा कुल ऋणों का 59.12 प्रतिशत कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ई.) और महिला वर्ग जैसे क्षेत्रों को दिया है। हालांकि, राज्य कृषि अग्रिमों के लिए राष्ट्रीय लक्ष्य से थोड़ा पीछे है।
हिमाचल प्रदेश में पी.एम.जे.डी.वाई. का कार्यान्वयन सफल रहा है, इसके अन्र्तगत, सितंबर 2024 तक 18.55 लाख से अधिक खाते खोले गए हैं। इस पहल से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों को लाभ हुआ है, जहाँ 16.60 लाख खाते हैं। इनमें से अधिकतर खातों को आधार और मोबाइल नंबरों से जोड़ा गया है, जिससे वित्तीय संपर्क बढ़ा है। पी.एम.एस.बी.वाई., पी.एम.जे.जे.बी वाई. और ए.पी.वाई. जैसी सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को अच्छे से अपनाया जा रहा है। जिससे लाखों लोग बीमा और पे ंशन योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं। ये योजनाएं विशेष रूप से छोटे किसानो ं, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों तथा कम आय वाले परिवारो ं जैसे कमजोर वर्गों की वित्तीय सुरक्षा के सुधार करने के लिए महत्वपूर्ण है।

5.मूल्य संचलन और खाद्य प्रबन्धन

एक गतिशील दुनिया में, कीमतें स्थिर नहीं रहती हैं और समय के साथ कीमते ं बदलती रहती हैं। कीमतों में परिवर्तन व्यापक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों और लोगों की क्रय शक्ति को भी प्रभावित करता है। मूल्य सूचकांक समय के संदर्भ में वस्तुओं की कीमतों में सापेक्ष परिवर्तन को मापने के लिए एक सांख्यिकीय उपकरण है और यह आर्थिक नियोजन प्रक्रिया में प्रमुख संकेतको ं मे ं से एक है। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों मे ं वृद्धि, जिसे मुद्रास्फीति कहा जाता है, अर्थव्यवस्था की वृद्धि में एक महत्वपूर्ण निर्धारक है। मुद्रास्फीति की गणना थोक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों का उपयोग करके की जाती है। यह अध्याय मुख्य तौर पर चार खंड़ो मे व्यवस्थित है। पहला खंड वैश्विक मुद्रा स्फीति प्रवृतियों की रूपरेखा प्र्रस्तुत करता है। दूसरा खंड घरेलू मुद्रास्फीति प्रवृतियां व तीसरा खंड प्रदेश में मुद्रास्फीति के रूझान पर केन्द्रित है और अंतिम खंड प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रकाश डालता है।
वैश्विक मुद्रास्फीति- आपूर्ति श्रृ ंखला में व्यवधान और भू-राजनीतिक तनाव के कारण वैश्विक मुद्रास्फीति 2022 में 8.7 प्रतिशत पर पहु ंच गई, जो 2024 में 5.7 प्रतिशत हो गई। भारत मे ं, चुनौतीपूर्ण खाद्य मूल्य गतिशीलता के बावजूद, खुदरा मुद्रास्फीति वर्ष 2024 में 5.4 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2025 (अप्रैल-दिसंबर) में 4.9 प्रतिशत हो गई। भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का लगभग दो-पाँचवाँ हिस्सा खाद्य पदार्थों का है। इसलिए, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सी.एफ.पी.आई.) खुदरा मुद्रास्फीति का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है। हाल के वर्षों मे ं, हेडलाइन मुद्रास्फीति में खाद्य मुद्रास्फीति का प्रमुख योगदान रहा है। हालाँकि, सभी खाद्य श्रेणियों मे ं कीमतो ं में वृद्धि व्यापक नहीं है। यह मुख्य रूप से कुछ वस्तुओं द्वारा संचालित होता है।
भारत की मुद्रास्फीति- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई भारत की हेडलाइन मुद्रास्फीति, वित्त वर्ष 2024 की तुलना में वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल-दिसंबर) मे ं कम हो गई है। यह गिरावट मुख्य रूप से मुख्य मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय कमी के कारण है, जो वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल-दिसंबर) के बीच 0.9 प्रतिशत अंक गिर गई। मुख्य मुद्रास्फीति में तेज गिरावट मुख्य रूप से मुख्य सेवा मुद्रास्फीति से प्रेरित थी, जो मुख्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति से कम थी। ईंधन मूल्य मुद्रास्फीति में कमी ने भी मुख्य मुद्रास्फीति में कमी लाने में योगदान दिया है, जिससे घरेलू बजट पर दबाव कम हुआ है। सामान्य तौर पर, खुदरा मुद्रास्फीति मे ं गिरावट को इनपुट कीमतों में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसा कि थोक मूल्य मुद्रास्फीति में परिलक्षित होता है, जो वित्त वर्ष 2024 में अपस्फीति क्षेत्र (-0.7 प्रतिशत) में था और वर्ष 2025 (अप्रैल-दिसंबर) में कम रही।
मुद्रास्फीति लक्ष्य हर पांच साल में निर्धारित किए जाते हैं। मार्च 2021 में, सरकार ने अप्रैल 2021 से मार्च 2026 तक हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी.पी.आई.) मुद्रास्फीति के लिए क्रमशः 2 से 6 प्रतिशत की स्वीकार्य सीमा के साथ 4 प्रतिशत के अपने लक्ष्य की पुष्टि की।
हिमाचल प्रदेश में मुद्रास्फीति के रुझान- हालाँकि, हिमाचल प्रदेश के मामले मे ं मुद्रास्फीति दर अपेक्षाकृत स्थिर रही है। वित्त वर्ष 2023-24 की सी.पी.आई.-सी मुद्रास्फीति 5.0 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2024-25 में 4.2 प्रतिशत हो गई। इसी समय अवधी में सी.पी.आई.-ग्रामीण मुद्रास्फीति 5.1 प्रतिशत से घटकर 4.4 प्रतिशत, सी.पी.आई.-शहरी मुद्रास्फीति 4.7 प्रतिशत से घटकर 3.3 प्रतिशत हो गई और इसके विपरीत सी.पी.आई.-औद्योगिक श्रमिक मुद्रास्फीति 1.8 प्रतिशत से बढकर 2 2 प्रतिशत, सी.पी.आई.- कृषि श्रमिको मुद्रास्फीति 4.9 प्रतिशत से बढकर 5.7 प्रतिशत हो गई। वित्त वर्ष 2024-25 में सी.पी.आई.-ग्रामीण श्रमिको मुद्रास्फीति भी वर्ष 2023-24 के 5 2 प्रतिशत के मुकाबले बढकर 5.5 प्रतिशत हो गई। उल्लेखनीय रूप से वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीतियों में 2.2 और 5.7 प्रतिशत के बीच उतार-चढाव आया (सारणी 5.1 और चित्र 5.1) जिसने कभी भी आर.बी.आई. द्वारा निर्धारित ऊपरी सहनशीलता स्तर को पार नहीं किया।



अन्य राज्यों के बीच उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (सी.पी.आई.-सी) मुद्रास्फीति- जैसा कि वर्णित है, हिमाचल प्रदेश में मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति पूरे वर्ष 2024 में उतार-चढाव के पैटर्न को दर्शाती है। जनवरी में 5.1 प्रतिशत से शुरू होकर अक्तूबर में 5 8 प्रतिशत पर पहु ंच गई, मुद्रास्फीति में वृद्धि मुख्य रूप से सब्जियों की कीमतों में बढोतरी से प्रेरित थी। यह घटना विभिन्न कारकों के कारण हो सकती है जैसे प्रतिकूल मौसम की स्थिति फसल की पैदावार को प्रभावित कर रही है, बढती परिवहन लागत या अन्य आपूर्ति श्रृ ंखला व्यवधान। के ंद्रीय बैंक अक्सर बढ़ती अर्थव्यवस्था को शांत करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढाते हैं। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मुद्रास्फीति पर ब्याज दर में बदलाव का प्रभाव तत्काल नहीं होता है और इसे साकार होने में समय लगता है। अगस्त, 2024 तक मुद्रास्फीति मे ं गिरावट से पता चलता है कि या तो ब्याज दर मे ं बढोतरी सहित उठाए गए उपायों का सकारात्मक प्रभाव पडा है या सब्जियों की कीमतों मे ं बढोतरी के शुरुआती कारको ं मे ं कमी आई है।
जनवरी 2025 में, हिमाचल प्रदेश में सीपीआई-सी मुद्रास्फीति दर 4.19 प्रतिशत दर्ज की गई, जो अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत मध्यम थी, जहां मुद्रास्फीति दर 8.8 प्रतिशत से 1.8 प्रतिशत के बीच थी। (चित्र 5.2) राज्यों के बीच मुद्रास्फीति दरों मे ं इस असमानता को विभिन्न कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसमें आर्थिक गतिविधियों, आपूर्ति श्रृ ंखला, कृषि उत्पादन और क्षेत्रीय आर्थिक नीतियों मे ं अंतर शामिल हैं। अधिकांश अन्य राज्यों की तुलना में हिमाचल प्रदेश में कम मुद्रास्फीति दर, अपेक्षाकृत स्थिर आर्थिक माहौल और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए राज्य द्वारा उठाए गए प्रभावी उपायों का संकेत देती है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में योगदानकर्ता (संयुक्त) 2024 बनाम 2017 चित्र - चित्र 5.3 हिमाचल प्रदेश में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में प्रमुख योगदानकर्ताओं को दर्शाता है। यह देखा गया है कि समग्र मुद्रास्फीति में ईंधन और प्रकाश समूह का योगदान सबसे कम रहा है। यह कुल सी.पी.आई-सी मुद्रास्फीति का (-)20.2 प्रतिशत है जो इंगित करता है कि ईंधन और ऊर्जा की कीमतों में बदलाव संयुक्त मुद्रास्फीति दर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। इसके विपरीत खाद्य एवं पेय पदार्थ समूह 41.6 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ समग्र मुद्रास्फीति में सबसे बडा योगदानकर्ता था। संयुक्त मुद्रास्फीति में दूसरा सबसे बडा योगदानकर्ता पान तम्बाकू और नशीले पदार्थ थे, जिन्होंने कुल मुद्रास्फीति में 35.6 प्रतिशत का योगदान दिया, कपडे और जूते ने संयुक्त मुद्रास्फीति योगदान में 19.0 प्रतिशत का योगदान दिया। विविध वस्तुओं ने 23.9 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ संयुक्त मुद्रास्फीति में योगदान दिया।

औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक - औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक श्रम ब्यूरो द्वारा जारी एक मूल्य सूचकांक है, जो कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों के लिए रहने की लागत में मूल्य वद्धि के प्रभाव को मापने के लिए जारी किया जाता है। सितम्बर, 2020 से हिमाचल प्रदेश में आधार वर्ष को 2001 से 2016 के लिए संशोधित किया गया है। नई श्रृ ंखला में पारंपारिक सात वर्गाें के औद्योगिक श्रमिको ं को इस सूचकांक में सम्मिलित किया गया है जिसमें कारखानों, खान, वृक्षारोपण, रेलवे, सार्वजनिक मोटर परिवहन उपक्रम, विद्युत उत्पादन और वितरण प्रतिष्ठान, बंदरगाह आदि शामिल हैं।
यह विभिन्न कारणों से हो सकता है जैसे क्षेत्रीय आर्थिक स्थिति, उद्योगों की संरचना में अंतर और विशिष्ट कारक जो कि हिमाचल प्रदेश में रहने की लागत को प्रभावित करते हों शामिल हैं। राष्ट्रीय औसत की तुलना राज्य में औद्योगिक श्रमिक सूचकांक मे कमी से श्रमिकों की क्रय क्षमता, रहन सहन के स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पढ़ता है।


मासिक थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.) - हिमाचल प्रदेश का अर्थशास्त्र और सांख्यिकी विभाग प्रत्येक महीने के पहले शुक्रवार को जिला सांख्यिकी कार्यालयों के नेटवर्क के माध्यम से 160 वस्तुओं पर डेटा संकलित और विश्लेषण करता है, कीमते ं जिलों में नामित दुकानो ं से एकत्र की जाती हैं। ये दरें मुख्यालय में जांच के बाद हितधारकों को उपलब्ध कराई जाती हैं। भिन्नता का गुणांक चित्र 5.6 और 5.7 में दिखाया गया है।
जनवरी, 2024 के दौरान राज्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मासिक थोक मूल्य सूचकांक 151.2 था जो जनवरी, 2025 में बढकर 154.7 (अस्थाई) हो गया, जो 2.31 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर दर्शाता है। वर्ष 2024-25 के लिए माहवार थोक मूल्य सूचकांक चित्र 5.1 मे ं दिया गया है।
चित्र 5.5 दो अवधियों के बीच थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई) मुद्रास्फीति की तुलना दर्शाता है (जनवरी से दिसंबर, 2023) और (जनवरी से दिसंबर, 2024) अप्रैल से दिसम्बर, 2023 की वर्तमान अवधि में, डब्ल्यू.पी.आई मुद्रास्फीति नकारात्मक क्षेत्र में गिर गई, (-) 4.2 से 4.8 प्रतिशत के बीच रही। नकारात्मक मुद्रास्फीति अपस्फीति की अवधि को इंगित करती है, जहां उत्पादकों द्वारा उनकी वस्तुओं और सेवाओं के लिए प्राप्त औसत कीमतों में कमी आई है। जनवरी से दिसंबर 2024 तक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 0.2 से 3.4 प्रतिशत के बीच रही। यह उस अवधि के दौरान मुद्रास्फीति के अपेक्षाकृत मध्यम से निम्न स्तर में दर्शायी गई हैं।
थोक मुद्रास्फीति में इस गिरावट से पता चलता है कि कुल मिलाकर, थोक कीमतों में कमी आई है या नरम बनी हुई है, जो संभावित स्थिरता या यहां तक कि खुदरा कीमतों में कमी का संकेत देती है। आंकडो से पता चलता है कि दोनों अवधियों के बीच थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट आई है, कम थोक कीमते ं संभावित रूप से खुदरा विक्रेताओं के लिए कम लागत मे ं रूपातंरित हो सकती हैं और उपभोक्ता कीमतों में स्थिरता या कमी में योगदान कर सकती हैं। निष्कर्ष यह है कि थोक मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट के साथ, भारत में खुदरा कीमते ं अगले महीनों मे ं स्थिर रहने या गिरने की आशा है।
मोटा आनाज का थोक मूल्य की भिन्नता का गुणंाक वर्ष 2023 व 2024 में - आंकडे, विशेष रूप से चित्र 5.6 और चित्र 5.7, क्रमशः मोटे अनाज और दालो ं की कीमतों के लिए भिन्नता के गुणांक का दृश्य प्रतिनिधित्व हैं। ये आंकडे उल्लिखित वस्तुओं के थोक मूल्यों मे ं अस्थिरता के रुझान का एक चित्रमय प्रतिनिधित्व प्रदान कर सकते हैं। 2023 (अप्रैल से दिसंबर) और 2024 (अप्रैल से दिसंबर) में मोटे अनाज की थोक कीमतों की अस्थिरता का विश्लेषण करने के लिए भिन्नता के गुणांक का उपयोग किया जाता है। गेहूं, मक्का, मकई का आटा और गेहूं के आटे जैसी वस्तुओं पर है जो 2024-25 के दौरान बढती अस्थिरता दिखा रहे हैं।

दालों के मूल्यों को प्रभावित करने वाले कारक - चित्र 5.7 दालो ं मे ं भिन्नता का गुणांक प्रस्तुत करता है और यह दर्शाता है कि उत्पादन में वृद्धि, बफर स्टॉक बनाए रखने के लिए सरकार की पहल और दालो ं पर कम आयात कर और उपकर के कारण दालों की कीमते ं कम रहीं। बढे हुए उत्पादन स्तर से दालों की कीमतों में स्थिरता आती है।
चने दाल, राजमाह और सोयाबीन सहित कुछ दलहन वस्तुओं को 2023 (अप्रैल से दिसंबर) और 2024 (अप्रैल से दिसंबर) के लिए भिन्नता गणना के गुणांक के आधार पर अत्यधिक उतार-चढाव वाले के रूप में पहचाना जाता है, यह इंगित करता है कि इन विशिष्ट दाल वस्तुओं की कीमतों में उल्लिखित अवधि के दौरान महत्वपूर्ण उतार-चढाव का अनुभव हुआ। दूसरी ओर, काबुली चना, अरहर दाल, उडद दाल, मू ंग दाल, कुल्थ और मलका जैसी वस्तुओं को कम अस्थिर के रूप मे ं पहचाना जाता है, क्योंकि उनकी स्थिरता मे ं सुधार हुआ है। इन दलहन वस्तुओं में स्थिरता का श्रेय लगातार उत्पादन स्तर या प्रभावी बाजार हस्तक्षेप जैसे कारकों को दिया जा सकता है।
साप्ताहिक खुदरा मूल्य - जिला सांख्यिकी कार्यालय, जो आर्थिक और सांख्यिकी विभाग का हिस्सा हैं, बुनियादी वस्तुओं पर डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने के लिए जिम्मेदार हैं। प्रत्येक शुक्रवार को, जिले मे ं भाग लेने वाली दुकानों से कीमते ं एकत्र की जाती हैं और सत्यापित होने के बाद ूूूण्ूममासलचतपबमेण्ीचण्हवअण्पद पर पोस्ट की जाती हैं। खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग और अर्थशास्त्र और सांख्यिकी विभाग को हर सप्ताह एक रिपोर्ट प्राप्त होती है जिसमें पिछले सप्ताह के मूल्य निर्धारण परिवर्तनों का विवरण दिया जाता हैं।
आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता - चित्र 5.8 में दर्शाया गया है कि प्याज, उडद दाल, मिट्टी का तेल, गुड, चीनी पैकेट, चाय लूज ब्रोक बॉन्ड और चीनी सहित कुछ वस्तुओं की कीमतें अप्रैल से दिसंबर, 2024 के दौरान स्थिर रहीं।
स्थिरता का श्रेय घरेलू उत्पादन से उत्पन्न पर्याप्त आपूर्ति और खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चावल और गेहूं के लिए पर्याप्त बफर स्टॉक के रखरखाव जैसे कारकों को दिया जाता है। सीमेंट, चावल परमल, गेहूं आटा, चना दाल, गेहूं कल्याण, मूंगफली तेल, सरसो ं तेल और वनस्पति घी की कीमतो ं में अप्रैल से दिसंबर, 2024 के बीच अस्थिरता देखी गई। इन वस्तुओं में उतार-चढाव देखा गया, जिससे पता चलता है कि मांग, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान या बाहरी प्रभावों जैसे विभिन्न कारकों ने उनकी कीमतों को प्रभावित किया होगा।
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) - सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) का उद्देश्य गरीबो ं को सस्ती कीमत पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना और उन्हें आवश्यक वस्तुओं की बढती कीमतो ं के प्रभाव से बचाना है। पी.डी.एस. के तहत, आवश्यक वस्तुओं को उचित मूल्य की दुकानों (एफ.पी.एस.) के एक सुस्थापित नेटवर्क के माध्यम से वितरित किया जाता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 ने पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन प्रदान करने के लिए खाद्य सुरक्षा का दायरा बढा दिया है। गरीबी उन्मूलन के लिए सरकारी रणनीति का एक मुख्य घटक लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) है जो 5,330 उचित मूल्य की दुकानों के नेटवर्क के माध्यम से गेहूं, गेहू ं आटा, चावल, चीनी आदि जैसी आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। आवश्यक वस्तुओं के वितरण के लिए परिवारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
i) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एन.एफ.एस.ए.)
1) अंत्योदय अन्न योजना (ए.ए.वाई.)
2) प्राथमिकता वाले आवास
ii) एन.एफ.एस.ए. के अलावा अन्य (गरीबी रेखा से ऊपर) (ए.पी.एल.)
31 दिसंबर, 2024 तक, राज्य में 5,330 उचित मूल्य की दुकानें थी, जिनमें से 3,387 सहकारी समिति द्वारा, 25 पंचायतों द्वारा, 48 एच.पी.एस.सी.एस.सी. द्वारा, 1,812 व्यक्तिगत रूप से, 23 स्वयं सहायता समूह द्वारा, 35 महिला मंडलों द्वारा चलाए जा रहे थे। स्वामित्व के आधार पर एफपीएस की संख्या तालिका 5.4 मे ं दी गई है
राज्य में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कुल 19,32,150 राशन कार्ड है ं, इन कार्ड धारकों को 5,330 के माध्यम से आवश्यक वस्तुएं प्रदान की जाती हैं। वर्ष 2024-25 के दौरान दिसंबर, 2024 तक आवश्यक वस्तुओं का वितरण तालिका 5.5 में निम्नानुसार दिया गया है।

वर्तमान में, टी.पी.डी.एस. और हिमाचल प्रदेश राज्य द्वारा विशेष अनुदानित योजना के अन्तर्गत निम्नलिखित खाद्य सामग्री वितरित की जा रही है जो सारणी 5.6 के अनुसार हैः

एच.पी. स्टेट सिविल सप्लाईज काॅरपोरेशन लिमिटेड राज्य में सभी नियंत्रित और गैर-नियंत्रित आवश्यक वस्तुओं के लिए एक केंद्रीय खरीद एजेंसी है और टी.पी.डी.एस, एन एफ.एस.ए. और अन्य सरकारी योजनाओं के तहत खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीद और वितरण करती है। वर्ष 2024-25 के दौरान दिसंबर, 2024 तक निगम ने ₹1681 76 करोड़ रुपये का कुल कारोबार हासिल किया है।
वर्तमान में, निगम अपने 121 थोक गोदामों, 47 उचित मूल्य की दुकानों, 54 गैस एजेंसियो ं, 4 पेट्रोल पंपो ं और 41 दवा दुकानो ं के माध्यम से राज्य के हर नुक्कड़ और कोने में उपभोक्ताओं को उचित दरो ं पर चावल, गेहू ं, आटा, नमक, दाले ं, चीनी, खाद्य तेल, रसोई गैस, डीजल, पेट्रोल, मिट्टी के तेल, दवाइयां और अन्य सभी आवश्यक वस्तुएं जैसी नियंत्रित और गैर-नियंत्रित वस्तुएं प्रदान कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान, दिसंबर, 2024 तक, निगम ने राज्य में आम जनता को अनुदानित योजना के अन्तर्गत ₹693.06 करोड़ की विभिन्न वस्तुओ ं की खरीद और वितरण किया है। निगम संबंधित उपायुक्त द्वारा किए गए आवंटन के अनुसार प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में दोपहर भोजन योजना के तहत चावल और अन्य पूरक वस्तुओं की आपूर्ति की व्यवस्था कर रहा है।
वर्तमान वित्त वर्ष 2024-25 (दिसम्बर, 2024 तक) के दौरान निगम ने इस योजना के अंतर्गत 9,789.79 मीट्रिक टन चावल के वितरण की व्यवस्था की है। निगम सरकार द्वारा गठित क्रय समिति के निर्णयों के अनुसार राज्य प्रायोजित योजना के तहत विशेष अनुदानित वस्तुओं (विभिन्न प्रकार की दालें, फोर्टिफाइड सरसों और रिफाइंड तेल और आयोडीन युक्त नमक) की आपूर्ति की व्यवस्था भी कर रहा है। वर्तमान वितीय वर्ष 2024-25 के दौरान (दिसम्बर, 2024 तक) निगम ने उक्त योजना के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पैमाने के अनुसार राशन कार्ड धारकों को ₹454.10 करोड़ की वस्तुएं वितरित की हैं। राज्य सरकार वर्ष 2024-25 के दौरान इस योजना के क्रियान्वयन हेतु राज्य अनुदान के रूप में ₹197.54 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। वर्ष 2024-25 के दौरान निगम का कुल कारोबार लगभग ₹2100 करोड़ रहेगा जबकि वर्ष 2023-24 के दौरान यह ₹1730.81 करोड़ था।
सरकारी आपूर्ति - एच.पी. स्टेट सिविल सप्लाईज काॅरपोरेशन लिमिटेड सरकारी अस्पतालों को आयुर्वेदिक दवाइयाँ, सरकारी विभागों/बोर्डों/निगमों और अन्य सरकारी संस्थानों को सीमेंट और जल शक्ति विभाग को गैल्वेनाइज्ड आयरन (जी.आई.), डक्टाइल आयरन (डी आई.), कास्ट आयरन (सी.आई.) पाइप की खरीद और आपूर्ति का प्रबंधन कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष 2024-25 से दिसंबर, 2024 तक सरकारी आपूर्ति की स्थिति इस प्रकार हैः
सरकारी मनरेगा सीमेंट की आपूर्ति - वर्ष 2024-25 (दिसम्बर, 2024 तक) के दौरान निगम ने राज्य में विकास कार्यों के लिए विभिन्न पंचायतो ं को ₹101.93 करोड़ की राशि के 32,36,660 सीमेंट बैग की खरीद और वितरण का प्रबंधन किया।
राज्य के आदिवासी एवं दुर्गम क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा - निगम जनजातीय और दुर्गम क्षेत्रों में सभी आवश्यक वस्तुओं, केरोसिन तेल और द्रवित पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) सहित पेट्रोलियम उत्पादो ं को उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां निजी व्यापारी व्यापार की आर्थिक अव्यवहार्यता के कारण इन कार्यों को करने का जोखिम नहीं उठाते हैं।
दवाई की दुकानें - वित्तीय वर्ष 2024-25 में ।प्डैैए चमियाना मे ं एक नई दवा की दुकान खोली गई है, जिससे इस निगम द्वारा संचालित की जा रही दवा की दुकानो ं की कुल संख्या 41 हो गई है। इसके अलावा, राज्य भर मे ं विभिन्न स्थानों पर 12 अतिरिक्त दवा की दुकानें स्थापित करने का प्रस्ताव है।
किसानों से धान एवं गेहूं की खरीद - राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार, निगम ने नोडल खरीद एजे ंसी के रूप मे ं विभिन्न विभागों/एजेंसियों खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग, कृषि विभाग, भूमि अभिलेख विभाग, हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड और भारतीय खाद्य निगम आदि की सहायता से खरीफ मिलिंग सीजन (के.एम.एस.), 2021-22 और रबी मिलिंग सीजन (आर.एम.एस.), 2022-23 से किसानों से सीधे धान और गेहूं की खरीद शुरू कर दी है। इस वर्ष, रबी मिलिंग सीजन (आर.एम.एस.) 2024-25 में निगम द्वारा 10 क्रय केंद्रों पर ₹6.55 करोड़ की लागत से कुल 2,880.25 मीट्रिक टन गेहू ं सीधे किसानों से खरीदा गया है, जिससे राज्य भर में 645 किसान लाभान्वित हुए हैं। इस वर्ष खरीफ मिलिंग सीजन (के एम.एस.) 2024-25 में निगम द्वारा 12 क्रय केंद्रों पर ₹85.34 करोड़ की लागत से कुल 36,901.76 मीट्रिक टन धान किसानों से सीधे खरीदा गया है, जिससे राज्य भर मे ं 5,572 किसान लाभान्वित हुए हैं।
किसानों से मक्का खरीद - हिमाचल प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के अनुसार, निगम द्वारा कृषि विभाग के माध्यम से “प्राकृतिक खेती के अन्तर्गत उत्पादित मक्का” की खरीद की गई है। वर्तमान वर्ष के दौरान, खरीफ मिलिंग सीजन (के.एम.एस.) 2024-25 में, निगम द्वारा 24 खरीद केंद्रों से ₹1.19 करोड़ की लागत से कुल 398.97 मीट्रिक टन मक्का सीधे किसानों से खरीदा गया है, जिससे राज्य भर मे ं 1,508 किसान लाभान्वित हुए हैं। राज्य मे ं उपभोक्ताओं को 1 किलोग्राम और 5 किलोग्राम की पैकिंग में “हिम भोग” ब्रांड नाम से मक्की का आटा वितरित किया जा रहा है।
निष्कर्ष, वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान हिमाचल प्रदेश मे ं मुद्रास्फीति के रुझान, उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में उतार-चढ़ाव के बावजूद एक स्थिर आर्थिक वातावरण को दर्शाते हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में सी.पी.आई.-सी. मुद्रास्फीति 5.0 प्रतिशत थी, जो घटकर 2024-25 में 4.2 प्रतिशत रह गई। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों मे ं भी मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति समान रही। विशेष रूप से, सी.पी.आई.-औद्योगिक श्रमिक मुद्रास्फीति 2.2 प्रतिशत के निम्न स्तर पर बनी रही। राज्य में मुद्रास्फीति मुख्य रूप से खाद्य कीमतों से प्रभावित हुई, जिसमें खाद्य और पेय पदार्थ समूह का सबसे बड़ा योगदान रहा। तुलनात्मक रूप से, हिमाचल प्रदेश ने कई अन्य राज्यों से अपेक्षाकृत कम सी.पी.आई.-सी. मुद्रास्फीति दर बनाए रखी, जो प्रभावी आर्थिक प्रबंधन और नीतिगत उपायों की सफलता को दर्शाता है।

6.कृषि और बागवानी

कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में, देश के सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतीय कृषि का एक विविध और व्यापक क्षेत्र है जिसमें बड़ी संख्या में कारक शामिल हैं। यह हरित क्रांति प्रौद्योगिकियों के सहयोग से स्वतंत्रता के बाद के युग की उल्लेखनीय सफलता की कहानियों में से एक रही है। हरित क्रांति ने खाद्य आत्मनिर्भरता और बेहतर ग्रामीण कल्याण प्रदान करके भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान दिया। हरित क्रांति के संदर्भ में राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एन.ए.आर.एस.) की भूमिका अनिवार्य थी।
भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी और संस्थागत रूप से सबसे जटिल कृषि अनुसंधान प्रणालियों मे ं से एक है। ऐतिहासिक रूप से, भारतीय कृषि अनुसंधान प्रणाली उस प्रक्रिया का उच्चतम स्तर है जो 19वीं शताब्दी में शुरू हुई और जिसके परिणामस्वरूप 1929 में कृषि पर रॉयल कमीशन की सिफारिश पर इंपीरियल (अब भारतीय) कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर.) की स्थापना हुई।
हिमाचल प्रदेश की कृषि विशेषकर खाद्यान्न उत्पादन में े ं कुछ सीमाओं से ग्रस्त है। इसका एक कारण यह है कि खेती का क्षेत्र किसी उल्लेखनीय सीमा तक नहीं बढ़ाया जा सकता है। खाद्यान्न की खेती के लिए पहाड़ियों की ढलानों पर भूमि का पुनर्ग्रहण न तो सस्ती है और न ही लाभदायक है। कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल नकदी फसलें उगाकर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। दूसरा कारण यह है कि पहाड़ों से भूमि के पुनर्ग्रहण से मिट्टी के कटाव का खतरा बढ़ जाता है। यह अध्याय हिमाचल प्रदेश में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को बढ़ावा देने वाले प्रमुख रुझानों, सरकारी नीतियो ं और कार्यक्रमों के वारे में जानकारी उपल्ब्ध करवाता है।
कृषि हिमाचल प्रदेश के लोगों का मुख्य व्यवसाय है और राज्य की अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह राज्य के कुल श्रमिकों के लगभग 53.95 प्रतिशत को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान कुल जी.एस.वी.ए का लगभग 14.70 प्रतिशत कृषि और उसके संबद्ध क्षेत्रों से आता है। कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 55.67 लाख हेक्टेयर में से परिचालन क्षेत्र लगभग 9.44 लाख हेक्टेयर और 9.97 लाख हेक्टेयर संचालित है। किसान औसत जोत का आकार लगभग 0.95 हेक्टेयर है। 2015-16 की कृषि जनगणना के अनुसार भूमि जोत के वितरण से पता चलता है कि कुल जोत का 88.85 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसानो ं का है, लगभग 10.85 प्रतिशत जोत अर्ध मध्यम और मध्यम किसानों के पास है और केवल 0.30 प्रतिशत बड़े किसानों के पास है।
कृषि और उसके उप-क्षेत्रों का योगदान- पिछले कुछ वर्षों में राज्य की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र के योगदान में निरंतर वृद्धि हुई है। मौजूदा कीमतों पर जी.एस.वी.ए. में कृषि और संबद्ध क्षेत्र का योगदान 2020-21 में ₹20,838 करोड़ से 53 प्रतिशत बढ़कर 2024-25 में ₹31,879 करोड़ अग्रिम अनुमान (अ.अ.) हो गया है। 2020-21 से 2024-25 के बीच (2020-21 में ₹12,341 करोड़ से 2024-25 में ₹21,912 करोड़) मौजूदा कीमतों पर फसलों के जी.एस.वी.ए. में उल्लेखनीय सुधार हुआ है । मौजूदा कीमतों पर जी.एस.वी.ए. में फसल क्षेत्र का योगदान इसी अवधि में 78 प्रतिशत बढ़ गया है। 2020-21 से 2024-25 (अ.अ.) के बीच, हिमाचल प्रदेश में कृषि, वानिकी, पशुधन और मत्स्य पालन की जी.एस.वी.ए. ( प्रचलित कीमतों पर) में 11.22 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सी.ए.जी.आर.) देखी गई है। फसल क्षेत्र 15.43 प्रतिशत की सी.ए.जी.आर. के साथ इस वृद्धि का एक प्रमुख चालक था, कृषि और संबद्ध गतिविधियों के जी.एस.वी.ए. में इस क्षेत्र का योगदान 2020-21 में 59.2 प्रतिशत से बढ़कर 2024-25 में 68.7 प्रतिशत हो गया है। राज्य में कुल जी.एस.वी.ए. में कृषि और संबद्ध क्षेत्र की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्षों में 13-15 प्रतिशत के बीच रही है।
कृषि और उसके उप-क्षेत्रों का विकास- अग्रिम अनुमान के अनुसार, कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. में वित्त वर्ष 2024-25 में स्थिर कीमतों पर 3.07 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में -2.63 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई थी। हिमाचल प्रदेश में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में वृद्धि का मुख्य कारण फसल उप स्त्रोत की वृद्धि है।
i) फसल-उप-क्षेत्र- फसल उप-क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में कृषि के अन्तर्गत प्रमुख उप-क्षेत्र है, जो वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.वी.ए. का 68.73 प्रतिशत और कुल जी.एस.वी.ए. का 10.1 प्रतिशत है (चित्र 6.1 और 6.2)। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान, कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. में पशुधन, मत्स्य पालन और वानिकी का योगदान क्रमशः 9.24 प्रतिशत, 0.94 प्रतिशत और 21.09 प्रतिशत रहा (चित्र 6.1)

पशुधन- पशुधन क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह न केवल किसानो ं की आय मे ं योगदान देता हैं बल्कि किसी भी प्राकृतिक आपदा के खिलाफ उनके सर्वोत्तम बीमा में भी योगदान देता हैं। फसल उत्पादन की क्षमता भारी निवेश, मौसम और मौसम संबंधी स्थितियो ं पर निर्भर करती है। तुलनात्मक रूप से, पशुधन क्षेत्र अधिक स्थिर हैं और इसे कम निवेश की आवश्यकता होती है। इसमे ं काफी संभावनाएं हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था में इनके योगदान की काफी संभावनाएं है। इसके अलावा, पशुधन और मुर्गीपालन कई संकटपूर्ण स्थितियों मे ं, विशेषकर सूखे आदि के मामले में, ग्रामीण गरीबों के लिए जीवन रक्षक साबित हुए हैं। इसे और इस क्षेत्र की विकास क्षमता को समझते हुए, इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में पशुधन उपक्षेत्र कुल जी.एस.वी.ए. का 1.36 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 9.24 प्रतिशत है। पशुधन उप-क्षेत्र की वृद्धि दर 2024-25 में 5.2 प्रतिशत हो गया है।
वानिकी- वित्त वर्ष 2024-25 मे ं प्रचलित कीमतों पर कुल जी.एस.वी.ए. मे ं वानिकी का हिस्सा 3.10 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 21.09 प्रतिशत था। वानिकी उप-क्षेत्र वित्त वर्ष 2023-24 में -1.5 प्रतिशत के समकक्ष वित्त वर्ष 2024-25 में 4.0 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है।
मत्स्य पालन- वित्त वर्ष 2024-25 में प्रचलित कीमतों पर मत्स्य पालन उपक्षेत्र कुल जी.एस.वी.ए. का केवल 0.14 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 0.94 प्रतिशत है। पिछले दस वर्षों में मत्स्य पालन क्षेत्र की वृद्धि उत्साहजनक रही है। मत्स्य उप-क्षेत्र वित्त वर्ष 2023-24 मे ं 6.3 प्रतिशत के मुकाबले वित्त वर्ष 2024-25 मे ं 7.0 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।
हिमाचल प्रदेश 55,673 वर्ग किलोमीटर (वर्ग कि.मी़) के भौगोलिक क्षेत्र के साथ भारत में 17वें और दुनिया में 126वे ं स्थान पर है। कुल भौगोलिक क्षेत्र में से 11.49 प्रतिशत क्षेत्र शुद्ध बुवाई क्षेत्र के अंतर्गत आता है और लगभग 24.55 प्रतिशत वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। लगभग 7.98 प्रतिशत गैर-कृषि उपयोग वाली भूमि, परती भूमि 1.53 प्रतिशत, बंजर और अकृषि योग्य भूमि 16.73 प्रतिशत है (चित्र 6.3)

भूमि जोत का स्वरूप- राज्य में परिचालन जोत की कुल संख्या 9.97 लाख है जो 9.44 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है और जोत का औसत आकार 0.95 हेक्टेयर है। सारणी-6.1 और चित्र 6 4 में जोत का आकार, संचालित क्षेत्र और भूमि स्वामित्व की प्रत्येक श्रेणी का प्रतिशत और संचालित क्षेत्र दर्शाया गया है।


वर्षा- हिमाचल प्रदेश मे ं जून से सितंबर, 2024 तक 602 मिलीमीटर (मि.मी.) बारिश हुई, जो सामान्य बारिश 734 मि.मी. से 132 मि.मी. कम है। इसी प्रकार अक्टूबर से दिसंबर, 2024 तक राज्य मे ं 50 मि.मी. वर्षा हुई जो सामान्य वर्षा 83 मि.मी. से 33 मि.मी. कम है (चित्र 6.5)।

राज्य मे ं खेती योग्य भूमि का लगभग 80 प्रतिशत वर्षा आधारित कृषि है। चावल, मक्का और गेहूं राज्य की प्रमुख फसलें हैं। सोयाबीन और सूरजमुखी खरीफ में प्रमुख तिलहनी फसले ं हैं और रेपसीड/सरसो ं और तोरिया रबी में प्रमुख तिलहनी फसलें हैं। राज्य की प्रमुख दलहनी फसलों में खरीफ मौसम मे ं माश, मूंग और राजमाश और रबी मौसम में चना और मसूर शामिल हैं। कृषि-जलवायु की दृष्टि से, राज्य को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया हैः (प) उपोष्णकटिबंधीय, उप पर्वत और निचली पहाड़ियाँ, (पप) उप समशीतोष्ण नमी वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्र, उप आर्द्र मध्य (पपप) आर्द्र शीतोष्ण ऊँची पहाड़ियाँ, और (पअ) ठंडे रेगिस्तान। राज्य की कृषि -जलवायु विशेषताएं नकदी फसलों जैसे बीज आलू, बेमौसमी सब्जियां और अदरक के विकास के लिए अनुकूल हैं। राज्य सरकार बेमौसमी सब्जी उत्पादन, आलू, अदरक, दलहन और तिलहन के साथ-साथ जल संसाधनो ं के कुशल उपयोग के अन्तर्गत अधिक क्षेत्र लाना और बंजर भूमि विकास परियोजनाओं का कार्यान्वयन करना है। समय पर और पर्याप्त इनपुट आपूर्ति, प्रदर्शन और बेहतर कृषि प्रौद्योगिकी के प्रभावी प्रसार, एकीकृत प्रचार के माध्यम से अनाज की फसल की उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। वर्षा के संदर्भ में, चार अलग-अलग मौसम हैं। लगभग आधी वर्षा मानसून के मौसम में होती है, शेष अन्य मौसमों के दौरान होती है। राज्य मे ं औसत वर्षा 1,251 मि.मी. है। कांगड़ा में सबसे अधिक वर्षा उसके बाद चंबा, सिरमौर और मंडी का स्थान आता है।
बोया गया क्षेत्र- शुद्ध बोया गया क्षेत्र (एन.एस.ए.) 2021-22 में 527 हजार हेक्टेयर से मामूली बढ़कर 2022-23 में 532 हजार हेक्टेयर हो गया है। गेहूं, मक्का, चावल, जौ और दालें राज्य में उगाई जाने वाली प्रमुख फसले ं हैं। संचयी रूप से, इन फसलो ं का क्षेत्रफल खेती के कुल क्षेत्रफल का लगभग 80 प्रतिशत है। वर्तमान मे ं, गेहूं (35.87 प्रतिशत) और मक्का (28.73 प्रतिशत) की खेती कुल क्षेत्रफल का 65 प्रतिशत है।
प्रमुख फसलों का उत्पादन- हिमाचल प्रदेश में 2021-22 से 2024-25 तक प्रमुख फसलों का उत्पादन सारणी 6 2 में प्रस्तुत किया गया है, वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान, राज्य के कुल फसल उत्पादन में खाद्यान्न का योगदान लगभग 41.75 प्रतिशत और वाणिज्यिक फसलों का योगदान 58.25 प्रतिशत था। जैसा कि सारणी 6.2 में दिखाया गया है, वर्ष 2024-25 में छोटे अनाज के उत्पादन में 76.15 प्रतिशत और मक्का में 3.33 प्रतिशत की बढ़ोतरी और गेहूं में -19.76 प्रतिशत की कमी का अनुमान है।

उत्पादकता में प्रचलन- कृषि उत्पादकता कई कारकों जैसे सिंचाई, गुणवत्ता वाले बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों, विस्तार सेवाओं, ग्रामीण बुनियादी ढांचे आदि के उपयोग से संचालित होती है। क्षेत्र विस्तार के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने की क्षमता अपेक्षाकृत सीमित है। खेती योग्य भूमि के मामले मे ं, हिमाचल पहले ही देश के बाकी हिस्सों के समान एक पठार पर पहु ंच गया है। नतीजतन, उत्पादकता के स्तर में वृद्धि और उच्च मूल्य वाली फसलों मे ं विविधता दोनो ं प्राथमिकताएं हैं। खाद्यान्न उत्पादन के लिए उपयोग किया जाने वाला क्षेत्र धीरे-धीरे कम होता जा रहा है क्योंकि व्यावसायिक फसलों की ओर झुकाव बढ़ रहा हैं वर्ष 1997-98 में यह 853.88 हजार हेक्टेयर था लेकिन वित्त वर्ष 2023-24 मे ं केवल 688.69 हजार हेक्टेयर रह गया है। खाद्य फसलों के अन्तर्गत प्रति हेक्टेयर उत्पादक क्षमता चित्र 6.7 दर्शाया गई है।

उच्च उपज देने वाली किस्मों का कार्यक्रम (एच.वाई.वी.पी.)- खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के प्रयास मे ं किसानों को उच्च उपज किस्मों के बीज (एच वाई.वी.एस.) के वितरण पर बल दिया गया है। मक्का, धान और गेहूँ जैसी प्रमुख फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों का क्षेत्रफल सारणी 6.3 में दिखाया गया है।

कृषि विभाग के फार्म/विकास केंद्र- राज्य में, कृषि विभाग ने 20 बीज गुणन फार्म (एस.एम.एफ.), 3 सब्जी विकास के ंद्र (वी.डी.एस.), 12 आलू विकास के ंद्र (पी.डी.एस.) और एक अदरक विकास के ंद्र (जी.डी.एस.) विकसित किए हैं। इन सरकारी फार्मों का उपयोग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी ए.आर.) या राज्य कृषि विश्वविद्यालयों से प्राप्त प्रजनक बीजों को आधार बीजों में बहुगुणित करने के लिए किया जाता है। नीति के अनुसार कृषि विशेषज्ञों की कड़ी निगरानी में सरकारी खेतों मे ं प्रजनक बीज का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। खेतों पर उत्पन्न आधार बीज को पंजीकृत बीज उत्पादको ं को गुणन के लिए भेजा जाता है, जिसे विभाग द्वारा राज्य की बीज आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिग्रहित किया जाता है।
पौध संरक्षण कार्यक्रम- अगर सही समय पर कीटों और बीमारियों का प्रबंधन न किया जाए तो भारी क्षति भी हो सकती है। इस प्रकार, इन कीटों और बीमारियों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए, उनकी संख्या ध्घटना को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रखने के लिए उचित एकीकृ त कीट प्रबंधन (आई.पी.एम) उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।
उर्वरकों की खपत और अनुदान- उर्वरक एक महत्वपूर्ण इनपुट है, जो उत्पादन को एक सीमा तक बढ़ाने में मदद करता है। पचास के दशक के अंत और साठ के दशक की शुरुआत मे ं प्रदर्शन स्तर से शुरू होकर जब हिमाचल प्रदेश मे ं उर्वरक पेश किया गया था, उर्वरक की खपत का स्तर 1985-86 में 23,664 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 51,470 मीट्रिक टन हो गया है। 2023-24 में धीरे-धीरे रासायनिक उर्वरको ं और रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2023-24 के दौरान खपत मे ं गिरावट देखी गई है, संतुलित उर्वरको ं को प्रोत्साहित करने के लिए जटिल उर्वरको ं के लिए ₹1,000 प्रति मीट्रिक टन की अनुदान की अनुमति दी गई है। रासायनिक उर्वरको ं का उपयोग वर्षवार विवरण सारणी 6.4 में दर्शाया गया है।

राज्य प्रायोजित योजनाएँ


मुख्यमंत्री कृषि संवर्धन योजना (एम.एम.के.एस.वाई.)- विशेषज्ञ समूह की सिफारिशों पर, निम्नलिखित घटकों के साथ गतिविधियों के ओवरलैपिंग से बचने के लिए समान गतिविधियों और सामान्य उद्देश्यो ं वाली 8 चल रही योजनाओं को 2022-23 के दौरान मुख्यमंत्री कृषि संवर्धन योजना (एम.के.एस.वाई.) के नाम से विलय कर दिया गया था। इस योजना के अन्र्तगत वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹35.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। परियोजना के मुख्य घटक निम्न हैः-
i) क्लस्टर आधारित सब्जी उत्पादन योजना
ii) बीज गुणन शृंखला को मजबूत करना।
iii) प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण। इस योजना के अर्न्तगत वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹33.67 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
1) क्लस्टर आधारित सब्जी उत्पादन योजना- वर्तमान कृषि में नवीनतम तकनीकी प्रगति ने विविधीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है यह दर्शाता है कि सब्जियों से किसानों और राज्य को त्वरित आर्थिक विकास के लिए बड़ी क्षमता प्रदान करने की उम्मीद है। कृषि विभाग ने पूरे राज्य में सब्जी उगाने के लिए ष्क्लस्टर दृष्टिकोणष् का उपयोग करने की योजना बनाई है। इस रणनीति का उद्देश्य आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी सब्जी फसलों के विकास को बढ़ावा देना और किसानों की आय मे ं वृद्धि करना है।
2) बीज गुणन श्रृंखला का सुदृढ़ीकरण- सरकारी फार्म राज्य में गुणवत्तापूर्ण बीजों के गुणन में पड़ोसी राज्य एजे ंसियों पर निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में, 36 विभागीय फार्म विभिन्न फसलों की खेती करते हैं, जिनमें धान, माश, सोयाबीन, गेहूं, बीज आलू, राजमाश आदि शामिल है ं। इन खेतों पर, विभिन्न फसलो ं के लगभग 17,000 क्विंटल आधार बीज प्रतिवर्ष उत्पन्न होते हैं, जिसे बाद में राज्य के प्रगतिशील किसानों द्वारा प्रमाणित बीज के रूप में प्रतिकृत किया जाता है।
3) प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण (उर्वरक परीक्षण, मृदा परीक्षण, जैव नियंत्रण, बीज परीक्षण, जैव उर्वरक और राज्य कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशाला)- कृषि विभाग के पास 11 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ, 3 उर्वरक परीक्षण प्रयोगशालाएं (शिमला सुंदरनगर और हमीरपुर), 3 बीज परीक्षण प्रयोगशालाएँ (सोलन, पालमपुर, मण्डी), 2 जैव-नियंत्रण प्रयोगशालाएँ (पालमपुर, मण्डी), राज्य में एक कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशाला, एवं जैव-उर्वरक उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला शिमला में कार्यरत हैं। विभाग किसानों को निशुल्क मृदा परीक्षण की सुविधा प्रदान करता है और उनके द्वारा खेतों में उपयोग की जाने वाली उर्वरकों की खुराक की अनुशंसा भी करता है ताकि किसान खेतो ं की मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने के साथ-साथ उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग द्वारा फसल की क्षमता के अनुसार अच्छी फसल प्राप्त कर सकें। बीज परीक्षण प्रयोगशालाएँ विभिन्न गुणवत्ता मापदंडों के लिए बीजों के परीक्षण में लगी हुई हैं जैसे कि भौतिक शुद्धता, अंकुरण परीक्षण और किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का वितरण सुनिश्चित हो सके।
मुख्यमंत्री कृषि उत्पादन संरक्षण योजना (एम.एम.के.यू.एस.वाई.)- वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान इस योजना के कार्यान्वयन के लिए ₹40.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। योजना मे ं निम्नलिखित घटक हैं
i) बंदर और जंगली जानवर फसल उत्पादन के लिए एक बड़ा खतरा हैं क्योंकि वे फसलों को नुकसान पहु ंचाते हैं और इससे किसानों को बहुत नुकसान होता है। इसे देखते हुए कृषि विभाग ने किसानो ं की फसलों को इस खतरे से बचाने के लिए 2016-17 मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना प्रारम्भ की। अब, यह योजना ष्मुख्यमंत्री कृषि उत्पादन संरक्षण योजनाष् का एक घटक है और इसे बाड़बंदी के नाम से जाना जाता है।
ii) इस योजना के अंतर्गत किसानों को उनकी आवश्यकता के अनुसार सोलर फे ंसिंग, इंटरलिंक चेन फे ंसिंग, कम्पोजिट इंटरलिंक चेन सोलर फेंसिंग और कांटेदार तार बाड़ लगाने के लिए 70 प्रतिशत सब्सिडी का प्रावधान है।
हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण संवर्धन परियोजना (एच.पी.सी.डी.पी.) जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जे.आई.सी.ए.)-बाहरी सहायता प्राप्त परियोजना (ई.ए.पी.)-
जे.आई.सी.ए, ई.ए.पी-चरण-II जे.आई.सी.ए. ई.ए.पी-चरण-प्प् आधिकारिक विकास सहायता ओ.डी.ए. परियोजना 9 वर्षों की समय अवधि में ₹1010.13 करोड़ के परिव्यय के साथ राज्य के सभी जिलों में लागू होगा। दूसरे चरण के कार्यान्वयन के लिए 26 मार्च, 2021 को भारत और जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजे ंसी और भारत सरकार के बीच समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान योजना को लागू करने के लिए ₹50.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। जे.आई.सी.ए. चरण-प्प् के अंतर्गत निम्नलिखित घटकों को शामिल किया जाएगा।
i) बुनियादी ढांचे का विकास (लघु और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, फार्म तक पहुंच के लिए सड़कें और सौर/इलेक्ट्रिक बाड़ लगाना)।
ii) किसान सहायता घटक (इंजीनियरिंग और कृषि कर्मचारियों और सब्जी संवर्धन, बीज उत्पादन और प्रदर्शन का क्षमता निर्माण कार्यक्रम)।
iii) मूल्य श्रृंखला और बाजार विकास घटक।
iv) संस्थागत विकास घटक।
मुख्यमंत्री किसान एवं खेतिहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना- राज्य सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान ‘‘मुख्यमंत्री किसान एवं खेतिहर मजदूर जीवन सुरक्षा‘‘ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसका उद्देश्य कृषि मशीनरी के संचालन के दौरान घायल होने या मृत्यु होने पर किसानों और खेतिहर मजदूरों को बीमा कवरेज प्रदान करना है। प्रभावित किसानों को आंशिक विच्छेदन, स्थायी दिव्यांगता और मृत्यु की स्थिति में क्रमशः ₹10,000 से ₹40,000, ₹1.00 लाख और ₹3.00 लाख का मुआवजा दिया जाता है।
कृषि विपणन- ‘‘हिमाचल प्रदेश कृषि और बागवानी उत्पाद विपणन विकास और विनियमन अधिनियम, 2005‘‘ कृषि विपणन को नियंत्रित करता है। हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड द्वारा (एच.पी.एस.ए.एम.बी.) 10 जिला कृषि उत्पाद विपणन कमेटी (ए.पी.एम.सी.) राज्य में कृषि उत्पादों के विपणन के लिए गठित किए गए हैं। उत्पादकों को 71 मार्केट यार्ड (10 ए.पी.एम.सी. और 61 सब मार्केट यार्ड) द्वारा सेवांए दी जाती है।
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत शून्य बजट प्राकृतिक खेती (पी.के.केे.के.वाई.-जेड.बी.एन.एफ.)- राज्य सरकार ने खेती की लागत को कम करने के लिए ‘‘जेड.बी.एन.एफ.‘‘ को बढ़ावा देने के लिए ‘‘पी.के.के े.के.वाई.‘‘ पहल शुरू की है। जिसमें सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को हतोत्साहित किया जाएगा। कृषि और बागवानी विभाग को आवंटित धन का उपयोग जैव कीटनाशक को वितरित करने के लिए किया जाएगा। अब तक राज्य मे ं 2,19,383 किसानों ने 37,599 हेक्टेयर क्षेत्र मे ं प्राकृतिक खेती का विकल्प चुना है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2024-25 में 5450 हेक्टेयर भूमि को कवर किया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹15.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
जल से कृषि को बल योजना- सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने एक परियोजना ‘‘जल से कृषि को बल‘‘ बनाई है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत चेक डैम और तालाब बनाए जाएंगे। किसान अलग-अलग छोटी लिफ्टिंग स्कीम या प्रवाह सिंचाई योजना बनाकर सिंचाई के लिए इस पानी का उपयोग कर सकते हैं। सरकार इस योजना के अन्तर्गत एक समुदाय आधारित मामूली जल बचत प्रणाली को लागू करने की पूरी लागत वहन करेगी। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹8.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
प्रवाह सिंचाई योजना- इस योजना के तहत कुह्लों के स्रोत स्थान का जीर्णो द्धार करने के साथ ही सामान्य क्षेत्र में कुहलों का सुदृढ़ीकरण किया जाएगा। इस योजना के अन्तर्गत समुदाय आधारित कार्य पर 100 प्रतिशत व्यय सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। सरकार ने इस योजना के अन्तर्गत सिंचाई उद्देश्यो ं के लिए व्यक्तिगत रूप से बोर-वेल और उथले कुओं के निर्माण के लिए 50 प्रतिशत अनुदान देने का निर्णय लिया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹8.00 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
राज्य कृषि यंत्रीकरण कार्यक्रम- इस वर्ष, सरकार अतिरिक्त उपकरणों जैसे चारा कटर, मक्का शेलर, गेहूं थ्रैशर, स्प्रेयर, ब्रश कटर, टूलकिट, स्टेनलेस स्टील हल, मोल्ड बोर्ड हल, बीज बिन, पानी टब इत्यादि पर 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत सब्सिडी की मिल रही है।
पोषक अनाजों को बढ़ावा देना- मोटे अनाज का स्वास्थ्य और पोषण संबंधी लाभों के बारे में जागरूकता के लिए वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (आई.वाई.ओ.एम.-2023) के रूप मे ं मनाया था। इन फसलो ं के बारे में किसानों को सचेत करना और प्रोत्साहित करना आवश्यक है और साथ ही किसानों को बाजार अधिशेष उत्पादन के लिए प्रेरित करने के लिए आवश्यक तकनीकी इनपुट और बाजार लिंकेज प्रदान करना आवश्यक है। मोटे अनाज की खेती के अन्तर्गत् क्षेत्र को बढ़ाने के लिए परियोजना के लिए निम्नलिखित घटको ं का प्रस्ताव किया गया है।
i) अनुदान पर बीज वितरण।
ii) मिनीकिट का वितरण।
iii) मोटे अनाज फूड फेस्टिवल का आयोजन।
iv) उत्पादन में किसानों की क्षमता निर्माण, फसल कटाई के बाद की तकनीक और पोषण सुरक्षा में इसका उपयोग।
v) मोटे अनाज की फार्म गेट बिक्री (कैनोपी के माध्यम से)।
इस योजना के क्रियान्वयन हेतु राज्य सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹1.51 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।

केन्द्रीय प्रायोजित योजनाएँ


राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.के.वी.वाई.-रफ्तार)- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना राज्य को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को बढ़ाने में मदद कर रही है। इस योजना का मुख्य लक्ष्य राज्यों को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है। कृषि और संबद्ध क्षेत्र की स्कीमों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने मे ं राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना, कृषि-जलवायु परिस्थितियों, प्रौद्योगिकी और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर जिलो ं और राज्यों के लिए कृषि योजनाओं की तैयारी सुनिश्चित करना है जिससे कि स्थानीय जरूरतें/फसले ं/ प्राथमिकताएं पूरी हों।
इस योजना के कार्यान्वयन में विश्वविद्यालयों के साथ-साथ कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश कृषि विपणन बोर्ड (एच.पी.एस.ए.एम.बी.) और उद्योग और बागवानी विभाग भी शामिल हैं। इस योजना के अन्र्तगत वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹16.23 करोड के बजट आवंटन को मंजूरी दी गई है।
राष्ट्रीय बांस मिशन- इस मिशन का मुख्य लक्ष्य कृषि आय के पूरक के लिए गैर-वन सरकारी और निजी भूमि पर बांस के वृक्षारोपण के अंतर्गत क्षेत्र को बढ़ाना तथा इसमें योगदान देना है। जलवायु परिवर्तन का लचीलापन, और उद्योगों के लिए गुणवत्तापूर्ण कच्चा माल उपलब्ध कराना। कृषि निदेशक, हिमाचल प्रदेश को राज्य मिशन निदेशक और कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश को एंकरिंग विभाग के रूप मे ं नामित किया गया है। हितधारकों में वन विभाग, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, उद्योग और राज्य कृषि विश्वविद्यालय शामिल हैं।
फसल बीमा योजना- खरीफ-2016 फसल चक्र से, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी.एम.एफ.बी.वाई.) और ‘‘पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस.)‘‘ हिमाचल प्रदेश में प्रभावी हैं। पी.एम.एफ.बी.वाई. के अन्तर्गत रबी सीजन के दौरान गेहूं और जौ की फसल को कवर किया जाता है, जबकि खरीफ सीजन के दौरान मक्का और धान की फसल को कवर किया जाता है। इस कार्यक्रम में निवारक रोपण, कटाई के बाद के नुकसान, स्थानीय हानि और खड़ी फसलों को होने वाले नुकसान (बुवाई से फसल तक) के कारण होने वाले कृषि जोखिम के कई चरणों में े शामिल किया गया है। यह कार्यक्रम अब खरीफ-2020 तक ऋण लेने वाले और गैर-ऋण वाले दोनों किसानों के लिए स्वैच्छिक है। पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस.) के अन्र्तगत आलू, अदरक, टमाटर, मटर, गोभी और फूलगोभी सहित छह फसले ं खरीफ मौसम के दौरान और आलू, टमाटर, लहसुन और शिमला मिर्च रबी मौसम के दौरान कवर की जाती हैं। कार्यक्रम का लक्ष्य उत्पादकों को बारिश, गर्मी, सापेक्ष आर्द्रता, ओलावृष्टि, शुष्क दौर आदि सहित मौसम संबंधी घटनाओं के खिलाफ बीमा सुरक्षा देना है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एवं पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना के अंतर्गत खरीफ सीज़न-2024 के दौरान, 1,08,160 किसानों को कवर किया गया है और रबी सीज़न 2024-25 के दौरान 1,12,055 किसानों को कवर किया गया है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹6.00 करोड़ का बजट आवंटन किया गया है। जिसका उपयोग प्रीमियम सब्सिडी को कवर करने के लिए किया जाता है।
राष्ट्रीय मिशन के तहत विस्तार सुधार/कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ए.टी.एम.ए.)- ए.टी.एम.ए. के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं मे ं हस्तक्षेपों को सहक्रियात्मक बनाने के लिए विस्तार मशीनरी को मजबूत करने और इसका उपयोग करने के उद्देश्य से संशोधित विस्तार सुधार योजना शुरू की गई थी। कृषि के अलावा, अन्य विभागों जैसे बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन आदि भी इस कार्यक्रम में हितधारक हैं। इस योजना के अंतर्गत राज्य में कृषि क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने के लिए किसानों के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा करने के लिए कृषक पुरस्कार योजना भी शुरू की गई है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹18.89 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
बीज और रोपण सामग्र्री का उप मिशन (एस.एम.एस.पी.)- घटक के अन्तर्गत खंड स्तर पर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन एवं गेहूं बीज का वितरण किया जायेगा। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹ 7.78 करोड का बजट आवंटित किया गया है।
कृषि यंत्रीकरण पर उप मिशन (एस.एम.ए.एम.)- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत राज्य के किसानों को नए विकसित उपकरण, समकालीन मशीनरी और लिंग-संवेदनशील उपकरण तक पहु ंच प्रदान की जाती है। भारत सरकार के अधिकृत नियमों के अनुसार, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, छोटे और सीमांत और महिला किसान समूहों के किसानो ं को ट्रैक्टर, पावर टिलर, पावर वीडर, फसल काटने वाले उपकरण और रोटावेटर जैसे कृषि उपकरणों पर 50 प्रतिशत अनुदान प्राप्त होता है और अन्य किसानों को भी 40 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त इस योजना के अन्तर्गत कस्टम हायरिंग सेंटर भी बनाए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹27.78 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है।
कृषि वानिकी- कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील बनाने के लिए, भारत सरकार ने फसलो ं/फसल प्रणाली के साथ-साथ ष्हर मेड़ पर पेड़ष् के आदर्श वाक्य के साथ कृषि भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने और विस्तार करने के लिए ष्कृषि वानिकीष् योजना शुरू की है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए इस घटक के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा ₹1.67 करोड़ का बजट आबंटित किया गया है।
सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.एस.ए.)- सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.एस.ए.) को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ वर्षा जल प्राप्त होता है। कार्यक्रम के विभिन्न तत्वो ं में जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ कृषि के लिए निगरानी, मॉडलिंग और नेटवर्किंग और साथ-साथ वर्षा आधारित क्षेत्र विकास, कृषि विकास पहल और सी.सी.एस.ए एम.एम.एन. शामिल हैं। भारत सरकार द्वारा 2024-25 हेतु ₹7.77 करोड़ इस मिशन के लिए स्वीकृत किये गये हैं।
परम्परागत कृषि विकास योजना (पी.के.वी.वाई.)- सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन के अन्तर्गत परम्परागत कृषि विकास योजना किसानों को उनके जैविक सामान को प्रमाणित करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए समूहों में जोड़ना है। योजना के मुख्य घटकों मे ं क्लस्टर निर्माण और क्षमता निर्माण के लिए प्रबंधन लागत और जैविक/प्राकृतिक खेती इनपुट पर डी.बी.टी. के रूप में किसानो ं को प्रोत्साहन शामिल है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹8.29 करोड़ (केन्द्र व राज्य) का बजट प्रावधान रखा गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पी.एम.के.एस.वाई.)- इस योजना का बल सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं (‘‘हर खेत को पानी‘‘) और एंड-टू-एंड सिंचाई समाधान पर होगा। देश में हर खेत को सिंचाई प्रदान करने के लिए जल संरक्षण और अपशिष्ट में कमी को पूरा करना महत्वपूर्ण है। यह टिकाऊ जल संरक्षण प्रथाओ ं और जल संसाधनों के अनुकूलन (अधिक फसल प्रति बू ंद) को नई सिंचाई सुविधाओ ं की शुरूआत के रूप मे ं महत्वपूर्ण बनाता है। इस योजना के अंतर्गत वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹22.22 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना कृषि (अब डिजिटल इंडिया मिशन) - भारत सरकार ने राष्ट्रीय ई-गवर्ने ंस योजना के अंतर्गत ‘उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके कृषि में परिवर्तन पर‘‘एक परियोजना मंजूर की है जिसे अब डिजिटल कृषि मिशन के रूप में सुधार किया गया है जो कि कृष®न्नति योजना का एक घटक है। इस मिशन के अंतर्गत भारत में रहने वाले किसानों का डेटा बेस बनाया जाएगा और उन्हें आधार नंबर जैसी विशिष्ट किसान आई.डी प्रदान की जाएगी। विशिष्ट आई.डी में किसान की कृषि भूमिध्ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी.पी.एस.) किसान की प्रत्येक भूमि के निर्देशांकध्प्रत्येक भूखंड पर उगाई गई फसले ंध्किसानों द्वारा प्राप्त लाभ शामिल होंगे। आधार यू.पी.आई. के समान एकीकृत किसान सेवा इंटरफेस (यू.एफ.एस.आई.) विकसित किया जाएगा और इसे आधार नियामक की तरह (ए.जी.आर.आई.एस.टी.ऐ.सी.के) द्वारा विनियमित किया जाएगा।
यह केंद्रीकृत, इंटरऑपरेबल डिजिटल बुनियादी ढांचा देश भर के व्यवसायों के लिए एकीकृत कृषि-बाजार तक पहु ंच की सुविधा प्रदान करेगा, जिससे दक्षता और पारदर्शिता बढ़ ेगी। हिमाचल प्रदेश में डिजिटल मिशन कृषि के डिजिटलीकरण में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है, जो किसानों को सशक्त बनाने, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और राज्य के कृषि परिदृश्य मे ं सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बाध्य है। हिमाचल प्रदेश के लिए वर्ष 2025-26 के लिए घटक डिजिटल कृषि के अन्तर्गत ₹22.60 करोड़ की राशि अनुमोदित (केंद्रीय हिस्सेदारी) की गई है।
प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान योजना (पी.एम.-कुसुम)- सरकार ने फसलो ं को सुनिश्चित सिंचाई प्रदान करने, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से एक नई योजना ष्प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान योजनाष् की है, जहां दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली की पहु ंच सौर पी.वी पंपों की तुलना में महंगी है। इस योजना के अतंर्गत, सौर पंपिंग मशीनरी की स्थापना के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक आधार पर किसानों के छोटे और सीमांत समूहों को 85 प्रतिशत सहायता प्रदान की जाती है, और किसानों के मध्यम और बड़े समूहों को 80 प्रतिशत सहायता प्रदान किए जाने का प्रावधान है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान भारत सरकार से ₹3.13 करोड़ की राशि प्राप्त हुई है। जिस में से ₹1.62 करोड़ दिसंबर, 2024 तक खर्च किए जा चुके हैं।
1) हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड (एच.पी.एस.ए.एम.बी.) सर्वोच्च निकाय है जो अपनी कृषि मंडी समितियों (ए.पी.एम.सी.) के माध्यम से राज्य में कृषि विपणन अवसंरचना प्रदान करता है। कृषि विपणन अवसंरचना के अलावा, एच.पी.एस.ए एम.बी कृषि/बागवानी फसलों के व्यापार, ग्रेडिंग और भंडारण के लिए आधुनिक सुविधाएँ प्रदान करता है।
2) राज्य में 79 थोक फल, सब्जी और खाद्यान्न मंडियों का संचालन और प्रबंधन किया जा रहा है। इनमें से 10 मुख्य मंडी यार्ड (पी.एम.वाई) और 69 उप मंडी यार्ड (एस.एम.वाई.) हैं। ये मंडी यार्ड विभिन्न हितधारकों की सुविधा के लिए सभी आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित हैं। 38 मंडियों को राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार(ई-एन.ए.एम.) के साथ एकीकृत किया गया है।
3) फल एवं सब्जी थोक मंडियों बंदरोल (जिला कुल्लू), शिलारू एवं टूटू (जिला शिमला), जाछ (जिला मंडी) और परवाणू (जिला सोलन) का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। नई थोकफल एवं सब्जी मंडियो ं मेंहदली, थरमट्टी (जिला शिमला) और पतलीकुहल (जिला कुल्लू) का निर्माण 85 प्रतिशत पूरा हो चुका है। लाहौल एवं स्पीति जिले में पहली थोक मंडी स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है तथा प्रथम चरण का कार्य आवंटित कर दिया गया है।
4) जिला सिरमौर मे ं पांवटा साहिब, खैरी, घंडूरी, जिला कुल्लू मे ं चैरीबिहाल और खेगसू, जिला मंडी में टकोली और कांगनी, जिला कांगड़ा में जसूर, पालमपुर और पास्सू और जिला सोलन में परवाणु, वाकनाघाट और कुनिहार में मंडियों का उन्नयन कार्य पूरा हो चुका है।
5) ए.पी.एम.सी. ने मुख्य रूप से फलों और सब्जियों का व्यापारः खाद्यान्नों के लिए मंडियों का निर्माण किया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 दिसम्बर 2024 तक विभिन ए.पी.एम.सी. में कुल 41.74 लाख क्विंटल फलों और सब्जियों का व्यापार किया था। जिसका विवरण सारणी 6.5 में दर्शाया गया है।


6) न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एम.एस.पी. ) का लाभ प्रदान करने के लिए रबी विपणन सत्र ( आर.एम.एस.) और खरीफ विपणन सत्र के दौरान 10 खरीद केंद्रों पर खाद्यान्नों की खरीद की गई। 645 किसानों से ₹6.55 करोड़ का कुल 2,880 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया। खरीफ विपणन सत्र के दौरान 5,572 किसानों से ₹85.34 करोड़ का कुल 36,901 मीट्रिक टन धान खरीदा गया।
7) सेब की बिक्री से प्राप्त आय का भुगतान वास्तविक वजन के आधार पर किसानों को सुनिश्चित करने के लिए सभी हितधारकों के साथ परामर्श बैठकें आयोजित की गई और सभी सुझावों/आपत्तियों पर विचार करने के बाद, सेब की पैकेजिंग के लिए यूनिवर्सल कार्टन (वास्तविक वजन) के कार्यान्वयन के लिए 23 अप्रैल 2024 को अधिसूचना जारी की गई। सरकार के इस निर्णय को पूरे राज्य में लागू किया गया और वास्तविक बजन के आधार पर भुगतान सुनिश्चित करके किसानों को लाभ पहु ंचाया गया।
8) सेब विपणन सीजन 2024 में कुल 2.09 करोड़ सेब बक्सो ं में से 1.17 करोड़ बक्सों का कारोबार ए.पी.एम.सी. मंडियों में हुआ। 2023 के सेब विपणन सीजन में कुल 1.82 करोड़ बक्सों का कारोबार हुआ, जिसमें से 89.80 लाख बक्सों का कारोबार हिमाचल प्रदेश के ए.पी.एम.सी. यार्ड में हुआ। वित्त वर्ष 2024-25 में कुल 27.26 लाख बक्सों की वृद्धि देखी गई।
9) हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड तथा ए.पी.एम.सी. शिमला और किन्नौर, पराला और खडापत्थर में संरक्षण और मूल्य संवर्धन के लिए एक एकीकृत कोल्ड चेन परियोजना स्थापित कर रहे हैं।
i)इस परियोजना से किसानों को संकटपूर्ण बिक्री से बचने में मदद मिलेगी।
ii) कुल परियोजना लागतः ₹60.93 करोड़
iii) परियोजना मे ं शामिल हैंः 5600 मीट्रिक टन क्षमता का सी.ए. स्टोर (हिमाचल प्रदेश मे ं सार्वजनिक क्षेत्र मे ं उच्चतम)
iv) फ्रीजिंग पैबरः 1500 मीट्रिक टन,
v) ग्रेडिंग/सोर्टिंग लाइनः 10 मीट्रिक टन /प्रति घंटा
vi)व्यक्तिगत त्वरित फ्रीजींग लाईनः 1 एम.टी/प्रति घंटा
vii) फार्म स्तरीय अवसंरचनाः खड़ापत्थर में 60 मीट्रिक टन प्री कूलिंग चै ंबर
viii) 15 मीट्रिक टन क्षमता के वातानुकुलित वाहन
ix) कोल्ड चेन परियोजना का 95 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है और शीघ्र ही शुरूआत की जाएगी।
10)हिमाचल प्रदेश में 26 मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार(ई-एन.ए.एम.) के साथ एकीकृत किया गया है। 31 दिसबर 2024 तक हिमाचल प्रदेश में ई-एन.ए.एम पोर्टल पर कुल 1,25,517 किसान पंजीकृत हैं। हिमाचल प्रदेश में ई-एन.ए.एम पोर्टल पर कुल पंजीकृत व्यापारी 2,322 हैं और 82 किस्मों का व्यापार हो रहा है और इस पोर्टल के माध्यम से 13445.03 मीट्रिक टन का लेन देन हुआ जिसका मुल्य ₹1668.49 करोड़ था।
हिमाचल प्रदेश में योजना की शुरुआत से अब तक किसानों के खाते में ₹606.72 की राशि सीधे हस्तांतरित की गई है। ई-एन.ए.एम पोर्टल पर 123 एफ.पी.ओ. भी पंजीकृत हैं। चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 में 31 दिसबर, 2024 तक ई-एन.ए.एम. नाम के माध्यम से 9,184 किसानों के बैंक खातों में सीधे ₹129.65 करोड़ का ई-भुगतान किया गया और कुल लेन देन की मात्रा 2.36 लाख किं्वटल रही।
11) सभी हितधारकों का पंजीकरण/लाइसे ंस एच.पी.एस.ए.एम.बी के वेब पोर्टल के माध्यम से डिजिटल रूप से बनाया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में कुल 4,128 लाइसे ंस डिजिटल रूप से जारी किए गए। ए.पी.एम.सी और एच.पी.एस.ए एम.बी. के सभी कार्यालयों में ई-ऑफिस लागू किया जा रहा है। अधिकारियों और अन्य हितधारकों के लिए जल्द ही सिंगल साइन ऑन ( एस.एस.ओ. ) सुविधा शुरू की जाएगी।
12) किसानों और अन्य हितधारकों को बाजार की जानकारी प्रदान करने के लिए, राज्यों के 50 बाजार नोड्स को ंहउंतादमजण्हवअण्पद पोर्टल से जोड़ा गया है। दैनिक कीमतों और आवक की जानकारी नियमित रूप से पोर्टल पर अपलोड की जाती है, जो वेबस्पेस पर सभी हितधारकों के लिए सुलभ है।
राज्य की अर्थव्यवस्था की एक अन्य आधारशिला बागवानी में भी उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। सेब उत्पादकों के लिए यूनिवर्सल कार्टन की शुरूआत से विपणन क्षमता में वृद्धि हुई है, जबकि बाजार हस्तक्षेप योजना के अन्तर्गत बकाया भुगतान को पूरा करने के लिए ₹153.00 करोड़ वितरित किए गए हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार किसान-केंद्रित कार्यक्रमों के लिए प्रतिबद्ध है और बागवानी क्षेत्र को राज्य के आर्थिक प्रगति में विकास इंजनों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।
हिमाचल प्रदेश मे ं बागवानी फसलो ं का क्षेत्रफल 1950-51 में 792 हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 2,36,950 हेक्टेयर हो गया। राज्य में बागवानी क्षेत्र कुल कृषि क्षेत्र (8,91,926 हेक्टेयर) का 26 प्रतिशत योगदान देता है, जबकि वर्ष 2023-24 में (सब्जियों,कृषि फसलो ं का मूल्य ₹16,076 करोड़ है और बागवानी फसलों का मूल्य ₹4,461.59 करोड का योगदान देता है) उपज के मूल्य के संदर्भ में यह क्षेत्र 22 प्रतिशत योगदान देता है। 2007-08 और 2023-24 के बीच बागवानी फसलों के क्षेत्र में 17.60 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। सेब, आम, संतरा, नाशपाती, पलम, आड़ू, गलगल और खुमानी राज्य की प्रमुख बागवानी फसलें हैं।
सेब हिमाचल प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण फल फसल है, जो 2023-24 के दौरान कुल फल क्षेत्र का लगभग 49.06 प्रतिशत और कुल फल उत्पादन का लगभग 79.51 प्रतिशत है। सेब का क्षेत्रफल 1950-51 मे ं 400 हेक्टेयर से बढ़कर 1960-61 में 3,025 हेक्टेयर और 2023-24 में 1,16,240 हेक्टेयर हो गया है। वित्त वर्ष 2007-08 और 2023-24 के बीच सेब के अन्तर्गत क्षेत्र में 21.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सेब के उत्पादन में आए उतार-चढ़ाव ने सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। राज्य विभिन्न कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों मे ं विविध बागवानी उत्पादन के माध्यम से पहाड़ी राज्य की विशाल बागवानी क्षमता का पता लगाने और उसका दोहन करने की कोशिश कर रहा है।
सेब के अलावा अन्य शीतोष्ण फलों का क्षेत्रफल 1960-61 में 900 हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 27,373 हेक्टेयर हो गया है। मेवे और सूखे मेवो के अन्तर्गत क्षेत्रफल में 1960-61 के 231 हेक्टेयर से 2023-24 में 9,277 हेक्टेयर तक की वृद्धि देखी गई है, जबकि सिट्रस और अन्य उपोष्णकटिबंधीय फलों में 1960-61 में 1,225 हेक्टेयर और 623 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में क्रमशः 26,432 हेक्टेयर तथा 57,628 हेक्टेयर हो गया है।
वर्ष 2023-24 में कुल फलों का उत्पादन 6.37 लाख टन था, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 में 31 दिसम्बर, 2024 तक फलों का उत्पादन 5.92 लाख टन रहा, 1295.61 हेक्टेयर क्षेत्र को वृक्षारोपण के अन्तर्गत लाया गया और 3.31 लाख विभिन्न प्रकार के फलों के पौधे वितरित किए गए।

कृषि तंत्र का उप-मिशन (एस.एम.ए.एम.)-
1) एस.एम.ए.एम. के अन्तर्गत, किसानों को विभिन्न प्रकार के आधुनिक कृषि उपकरण प्राप्त करने में मदद करने के लिए बैक-एंडेड सब्सिडी के रूप में सहायता दी जाती है। हिमाचल प्रदेश का राज्य कृषि विभाग योजना के लिए एक नोडल विभाग है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए उद्यानिकी विभाग को ₹1 00 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई, जिसमें से ₹56.10 लाख इस योजना के अन्तर्गत खर्च कर 31 दिसम्बर, 2024 तक 302 किसानों को लाभान्वित किया गया।
2) वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान ₹45.18 करोड़ से 37,653.42 मीट्रिक टन सी-ग्रेड सेब की खरीद की गई।
3)बागवानी में विविधता लाने के प्रयास मे ं वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान कुल 285.72 हेक्टेयर को व्यावसायिक फूल उत्पादन के अंतर्गत रखा गया था, जबकि 31 दिसम्बर, 2024 तक 78.81 हेक्टेयर संरक्षित फूलो ं के उत्पादन के अंतर्गत रखा गया है।
4) राज्य में फूलों के उत्पादन और विपणन के लिए सोलन, चम्बा, शिमला, बिलासपुर और हमीरपुर जिलों में 08 अलग-अलग किसान सहकारी समितियां कार्यरत हैं।
5) मधुमक्खी पालन और अन्य सहायक बागवानी गतिविधियों को भी प्रोत्साहित किया जाता है। वित्त वर्ष 2023-24 के मधुमक्खी पालन कार्यक्रम के अन्र्तगत 1549.92 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया गया है।
6) वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सोलन, रामपुर, बजौरा और पालमपुर में विभागीय कार्यालयों के माध्यम से मशरूम के लिए 500.63 मीट्रिक टन पाश्चुरीकृत खाद का उत्पादन और वितरण किया गया और 8627.17 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन किया गया।
बागवानी के समग्र विकास के लिए कार्यान्वित कार्यक्रम/योजनाएँ-

राज्य योजनाएं


1) बागवानी विकास योजना (एच.डी.एस.)- बागवानी विकास योजना के हिस्से के रूप में, मशीनीकृत खेती को बढ़ावा देने के लिए वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान बागवानों को सब्सिडी के रूप में 1,005 पावर स्प्रेयर, 2,464 पावर टिलर (8 ब्रेक हाॅर्स पावर), और 163 पावर टिलर (≥8 ब्रेक हाॅर्स पावर) वितरित किए गए।
2) एंटी हैल नेट योजना- फलों की फसल को ओलावृष्टि से बचाने के लिए एंटी हेल नेट लगाने के लिए फील्ड पदाधिकारियों को ₹20.00 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई है। 31 दिसम्बर, 2024 तक, उस धनराशि में से ₹12.42 करोड़ खर्च किए हैं, और राज्य मे ं 1,594 किसान इस कार्यक्रम से लाभान्वित हुए हैं।
3) मुख्यमंत्री कीवी प्रोत्साहन योजना- इस योजना के अन्तर्गत फील्ड पदाधिकारियों को वर्ष 2024-25 में ₹1.00 करोड़ की धन राशि आवंटित की गई थी। अभी तक ₹26.00 लाख की राशि खर्च कर 4 हैक्टेयर क्षेत्र कवर कर 22 किसान लाभान्वित हुए हैं।

केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं


6) एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एम.आई.डी.एच.)- क्षेत्र आधारित क्षेत्रीय रूप से विभेदित रणनीतियों के माध्यम से बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए मिशन शुरू किया गया था। केंद्र प्रायोजित योजना-एम.आई.डी.एच. राज्य में बागवानी विभाग द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। कार्यक्रम का फोकस बागवानी के सभी उप-क्षेत्रों का व्यापक विकास करना है ताकि बागवानी उत्पादकों को अतिरिक्त आय प्रदान की जा सके। यह मिशन बागवानी गतिविधियो ं जैसे फल, फूल, सब्जियां, मसाले, नए बागान, मशरूम उत्पादन, उच्च मूल्य वाले फूलों और सब्जियों की ग्रीन हाउस खेती, एंटीहेल नेट, बागवानी मशीनीकरण, फल विधायन ईकाइयों जैसी बागवानी गतिविधियों किसानो ं को 40-85 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान करता है।एकीकृत बागवानी विकास मिशन के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा कुल स्वीकृत वार्षिक कार्य योजना ₹37.60 करोड़ की है तथा पहली किश्त ₹15.00 करोड़ प्रदेश सरकार को प्राप्त हुए हंै। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2003-04 से लेकर दिसम्बर 2024 तक कुल 2,69,060 किसान लाभान्वित हुए हैं।
7) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक फसल (पी.एम.के.एस.वाई.-पी.डी.एम.सी.)- पी.एम.के.एस.वाई.-पी.डी.एम.सी. 2015-16 से हिमाचल प्रदेश मे ं लागू की जा रही अनूठी परियोजना है। किसानों के लाभ के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के माध्यम से जल उपयोग दक्षता में सुधार करके फसल उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से योजना शुरू की गई थी। सूक्ष्म सिंचाई अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार टाॅप-अप सब्सिडी दे रही है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55 प्रतिशत और बड़े किसानों के लिए 45 प्रतिशत की सब्सिडी का प्रावधान शामिल करने के लिए पी.एम.के.एस वाई.-पी.डी.एम.सी. दिशानिर्देशों को वित्त वर्ष 2017-18 में संशोधित किया गया था। राज्य के छोटे और सीमांत किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान देने के लिए 25 प्रतिशत का अतिरिक्त हिस्सा राज्य प्रदान कर रहा है। भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पी एम.के.एस.वाई.-पी.डी.एम.सी. के लिए ₹687.76 लाख मंजूर किए हैं। अब तक 31 दिसम्बर, 2024 तक 370.42 हेक्टेयर क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के अन्र्तगत कवर किया गया है और 586 किसानों को लाभान्वित कर रहा है।
8) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के कायाकल्प के लिए लाभकारी दृष्टिकोण (आर.के.वी.वाई.-रफ्तार)- आर.के.वी.वाई. का उद्देश्य बुनियादी सुविधाओं में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना और बागवानी क्षेत्र में योजनाओं को बनाने और क्रियान्वित करने की प्रक्रिया मे ं लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना है। इस योजन के अन्र्तगत वर्ष 2024-25 में 31 दिसंबर, 2024 तक 150 किसानों को लाभान्वित किया गया है।
9) पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस.)- हिमाचल प्रदेश में, मौसम आधारित फसल बीमा पहली बार रबी 2009-10 के दौरान सेब के लिए 6 खण्डो और आम की फसलों के लिए 4 खण्डो में उपलब्ध कराया गया था। कार्यक्रम की लोकप्रियता के कारण इस योजना के अन्तर्गत कवरेज को आगामी वर्षों तक बढ़ा दिया गया है। यह योजना अब सेब के लिए 36 खण्डों, आम के लिए 56 खण्डों, पलम के लिए 29 खण्डों, आड़ू के लिए 16 खण्डों, सिट्रस फलो ं के लिए 58 खण्डो ं, अनार के 21 खण्डों, लीची के 38 खण्डों और अमरूद के लिए 22 खण्डों मे ं कार्यान्वित की जा रही है। इसके अलावा सेब, लीची एवं अनार की फसल को ओलावृष्टि से बचाने के लिए ऐड-आॅन कवर के अन्तर्गत फल फसलों को कवर किया गया है। 2016-17 से कार्यक्रम का नया नाम आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस. है। बीमित राशि को वर्ष 2023 से संशोधित किया गया है और एक बोली प्रणाली लागू की गई है। रबी सीजन 2023-24 के लिए 66,289 किसानो ं को उनके सेब, आड़ू, पलम, सिट्रस, अमरूद, अनार, लीची और आम फलों की फसलों के लिए आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस. के अंतर्गत कवरेज दिया गया है। राज्य सरकार ने (केन्द्र 90: राज्य 10) अपनी अंश में से ₹20.00 करोड़ की प्रीमियम सब्सिडी की देनदारीयो ं का भुगतान किया है।
i) एच.पी.एम.सी. राज्य का एक सार्वजनिक उपक्रम है, जिसकी स्थापना सन 1974 में ताजे फलों व सब्जियों के विपणन, अतिरिक्त उत्पादन जो बाजार तक नहीं पहु ंच सकता, तैयार किए गए उत्पादों क विपणन के उदेश्य से की गई हैं। एच. पी. एम. सी. आरम्भ से ही बागवानों को उनके उत्पादन की लाभप्रद प्राप्तियां उपलब्ध करवाने मे ं मुख्य भूमिका निभा रहा है।
ii) वित्तिय वर्ष 2023-24 में (एच.पी.एम.सी.) निगम ने ₹124.03 करोड़ का कारोबार किया। मण्डी मध्यस्थता योजना के अन्र्तगत हिमाचल प्रदेश सरकार ने आम, सेब और नीम्बू प्रजाति के फलों के लिए समर्थन मूल्य जारी रखा, जो निम्न प्रकार से हैः

iii) निगम जिला शिमला के सेब उत्पादन क्षेत्रों में सफलतापूर्वक चार नियंत्रित वातानुकूलित भण्डार निम्नानुसार संचालित कर रहा है जोकि जरोल-टिक्कर (कोटगढ़) 640 मी० टन, गुम्मा (कोटखाई) 640 मी० टन, ओडी (कुमारसेन) 700 मी० टन, रोहडू 700 मी० टन सहित कुल 2,680 मी० टन क्षमता के भण्डारण किए है।
iv)नादौन (हमीरपुर) तथा घुमारवीं (बिलासपुर) में पैक हाउस व कोल्ड रूम फल, फूल व सब्जियों व जड़ी-बूटियों की ग्रेडिंग पैकिंग के लिए कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात प्राधिकरण (ए.पी.ई.डी.ए.) द्वारा प्राप्त वित्तिय सहायता से ₹7.89 करोड़ की लागत से स्थापित किए जा रहे ।
v) परवाणू में एप्पल जूस कंसन्ट्रेट (ए.जे.सी.द्ध प्लांट के उन्नयन के लिए ए.पी.ई.डी ए. से ₹8.00 करोड़ की सहायता अनुदान राशि प्राप्त हुई है तथा वर्ष 2018 में परीक्षण उत्पादन शुरू करके उन्नयन का कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। उन्नत प्लांट ने वर्ष 2018 में वाणिज्यिक उत्पादन शुरू कर दिया है। निगम, एफ.पी.पी. जरोल (सुंदरनगर) और एफ.पी.पी पराला (ठियोग) में भी ए जे.सी. का उत्पादन कर रहा है। 5 वर्षों के दौरान सभी 03 प्लांटो ं में कुल ए जे.सी उत्पादन निम्नानुसार चित्र 6.10 में दिया है।
इस वर्ष 2024 सेब सीजन मे ं निगम द्वारा 3 फल विधायन संयंत्रों परवाणू, जरोल तथा पराला (ठियोग) द्वारा अब तक सबसे अधिक लगभग 2,000 मी० टन ए.जे.सी. का उत्पादन किया गया है।
vi) फल विधायन संयंत्र परवाणू (एफ.पी.पी.) परवाणू जिला सोलन (एच.पी.) में तीन प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पाद बनाए जाते हैं, जोकि ए.जे.सी. सेब सुगंध (एप्पल अरोगा), टे ेट्रा पैक (200 एम.एल.) और सेब साइडर सिरका (1000 और 600 एम.एल.) है। इसके अलावा फल विधायन संयंत्र जरोल में विभिन्न प्रकार के प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद जैसे ए.जे.सी.ए जैम, सकवैश, आचार और वाइन का उत्पादन भी किया जाता है।
vii)निगम ने फल विधायन संयंत्र परवाणू मे ं सेब साईडर के उत्पादन हेतू मेसर्स पी.एच-4 के साथ अनुबंध (एम.ओ.यू) प्रतिपादित किया है। इसके अतिरिक्त फल विधायन संयंत्र, जरोल ने रेड वाइन और अन्य फलों की वाइन के उत्पादन हेतू मैसर्स मांउटेन बैरल के साथ भी एक अनुबंध (एम.ओ.य.ू) प्रतिपादित किया है।
viii) विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना (एच पी.एच.डी.पी.) की सहायता से राज्य में उत्पादित्त विभिन्न फलों की ग्रेडिंग, भंडारण और प्रसंस्करण की मौजूदा क्षमता को बढ़ाने हेतु निम्नलिखित कार्य किए गए हैं उक्त परियोजना के फसलोत्तर समर्थन अवसंरचना घटक के अन्तर्गत विश्व बैंक द्वारा निगम को ₹ 266.14 करोड की वित्तिय सहायता प्रदान की गई तथा सी.ए. की कुल मौजूदा भंडारण क्षमता को 2,680 मी० टन से बढ़ाकर 7,328 मी० टन किया गया है। उपरोक्त सी.ए. स्टोरों के अतिरिक्त, निगम ने एच.पी.एच. डी.पी. के अन्तर्गत रिकॉगपिओ, जिला किन्नौर में 250 मी. टन और चच्योट जिला मण्डी में 500 मी. टन की भंडारण क्षमता वाले नए सी.ए. स्टोर स्थापित किए गए है।
viii) निगम ने टुटु, (जिला शिमला), रोहडू (जिला शिमला) और गिआबोंग, जिला किन्नौर और चच्योट, जिला मण्डी में सेब के नए ग्रेडिंग और पैकिंग हॉउस स्थापित किए गए है। इन सभी ग्रेडिग एवं पैकिंग हाऊसों की क्षमता 10,000 मी. टन/सीजन है। निगम एच.पी.एच.डी.पी. की सहायता से भुंतर, जिला कुल्लू मे ं एक अनार ग्रेडिग और पैकिंग हाउस भी स्थापित किया है।
ix)वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के अन्तर्गत पराला में 200 मी. टन प्रतिदिन की क्षमता वाला आधुनिक ए.जे.सी. प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किया गया है। यह संयंत्र ए.जे.सी. उत्पादन लागत को कम करने, उत्कृष्ट गुणवता प्रदान करने, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने और निगम की बिक्री को भी बढ़ावा देने मे मदद कर रहा है। इस संयंत्र में 1,00,000 लीटर प्रतिवर्ष की बाइन उत्पादन क्षमता वाली एक वाइनरी भी स्थापित की गई है।
x)एच.पी.एच.डी.पी. के अन्र्तगत जरोल जिला मण्डी और परवाणु जिला सोलन में मौेजूदा फल प्रसंकरण संयत्रों को उन्नयन किया है, उपरोक्त के अतिरिक्त, जरोल में स्थित एच.पी.एम.सी. के फल विधायन संयंत्र मे ं वाइन उत्पादन की क्षमता को भी 30,000 लीटर से 70,000 लीटर प्रति वर्ष बढ़ा दिया गया है।
xi)निगम ने अपने पराला एफ.पी.पी. के लिए बागवानों से प्लास्टिक (पी.वी.सी) क्रेटस के द्वारा सेब की खरीद भी शुरू कर दी है. जिससे कि ऐ.जे.सी. की गुणवता और उत्पादन में सुधार हुआ है।
निष्कर्षः हिमाचल प्रदेश के जी.एस.वी.ए. में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का योगदान 53 प्रतिशत बढ़ गया है, जो वित्त वर्ष 2020-21 में ₹20,838 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में ₹31,879 करोड़ हो गया है। और इस वित वर्ष में फसल क्षेत्र 78 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि के साथ ₹21,912 करोड़ तक पहुंच गया है। वानिकी, क्षेत्र जी.एस.वी.ए. मे ं 21.09 प्रतिशत का योगदान देता है, वित्त वर्ष 2024-25 में 4 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष की गिरावट से उभर रहा है। मत्स्य पालन क्षेत्र, हालांकि छोटा है, इसमे ं लगातार वृद्धि देखी गई है, वित्त वर्ष 2024-25 में 7 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने कृषि पद्धतियों और किसान कल्याण मे ं सुधार लाने के उद्देश्य से कई पहल शुरू की हैं। ये योजनाएं फसल विविधीकरण, सिंचाई बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने पर केंद्रित हैं। उल्लेखनीय योजनाओं मे ं मुख्यमंत्री कृषि संवर्धन योजना (एम.एम.के.एस.वाई), जे.आई.सी.ए. के अंतर्गत मुख्यमंत्री कृषि उत्पादन संरक्षण योजना (एम.के.यू.एस.वाई.) और हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण संवर्धन परियोजना (एच.पी.सी.डी.पी.) शामिल हैं। अन्य योजनाएं जैसे फसल बीमा, कृषि मशीनीकरण और प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा योजना (पी.एम.-कुसुम) का उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना, वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना और किसानों के लिए लागत कम करना है।
वित्त वर्ष 2024-25 में इन योजनाओं के लिए बजट आवंटन सतत कृषि विकास और किसान सशक्तिकरण के लिए राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में बागवानी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसमें उत्पादन और खेती के क्षेत्र दोनो ं मे ं उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। राज्य में बागवानी फसलो ं, विशेषकर सेब में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो फल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा है। बागवानी विकास योजना, एंटी-हेल नेट और बागवानी के एकीकृत विकास मिशन जैसी विभिन्न योजनाओं का उद्देश्य उत्पादन बढ़ाना, सब्सिडी और आधुनिक कृषि उपकरणों के माध्यम से किसानों का समर्थन करना है। राज्य, बागवानी उत्पादो ं की भंडारण क्षमता, ग्रेडिंग और प्रसंस्करण में सुधार, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए विश्व बैंक से वित्तीय सहायता के साथ अपने बुनियादी ढांचे को और मजबूत कर रहा है।

7.पशुपालन

हिमाचल प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था मे ं पशुपालन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो ग्रामीण आबादी के एक बड़ े हिस्से की आजीविका में योगदान देता है। राज्य की विविध स्थलाकृति और जलवायु परिस्थितियाँ पशुधन खेती के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं, जो संस्कृति और अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। परंपरागत रूप से, पशुपालन निर्वाह किसान की जीवन शैली का हिस्सा था, जो न केवल परिवार के लिए आवश्यक भोजन का उत्पादन करता था बल्कि ईंधन, उर्वरक, कपड़े, परिवहन और खीचने की क्षमता शक्ति भी पैदा करता था। भोजन के लिए जानवर को मारना एक प्राथमिक विचार नही रह गया बल्कि जहां तक संभव हो उसके जीवित रहते ही ऊन, अंडे, दूध जैसे उत्पादों का उपभोग किया जा सकता है।
पशुधन क्षेत्र अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहां गरीब सीधे विकास में योगदान करते हैं। यह आजीविका में सुधार, किसानों की आय बढ़ाने और देश में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पशुपालन कृषि समुदायों का एक अभिन्न अंग है क्योंकि यह कृषि परिवारों की आय का पूरक है। इसमें न्यूनतम निवेश पर ग्रामीण क्षेत्रों में स्व-रोजगार पैदा करने की बहुत बड़ी संभावना है। यह अध्याय पशुधन व मत्स्यपालन के विकास के लिए सरकारी पहल के साथ-2 पशुपालन व मत्स्यपालन के प्रदर्शन पर चर्चा करता है।
पशुधन के माध्यम से समावेशी विकास- हिमाचल प्रदेश में, पशुपालन के अन्तर्गत गतिविधियां पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार, दूध, मांस और अंडे के उत्पादन में वृद्धि और कृषि कार्यों के लिए बलशक्ति के प्रावधान की ओर उन्मुख हैं। इस संबंध में, राज्य में पशुधन उत्पादन मे ं सुधार, प्रोटीन की जरूरत को पूरा करने, लोगो ं के पोषण मानकों मे ं सुधार करने, पशुधन नस्लों के रखरखाव और सुधार के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय नीतियों के अनुसरण में कई योजनाएं बनाई गई हैं।
ग्रामीण परिवारों की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम करने वाले ‘‘पशु‘‘, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य उत्पाद, गोबर के रूप में जैविक खाद, घरेलू ईंधन, खाल और त्वचा प्रदान करते हैं। वे एक प्राकृतिक पू ंजी मानी जाने वाली नकद आय के नियमित स्रोत के रूप में कार्य करते हैं, जिसे आसानी से पुनः उत्पन्न किया जा सकता है। पशुधन एक जीवित बैंक के रूप में कार्य करता है, जिसमें संताने ब्याज के रूप में कार्य करती है, और प्रकृति की अनिश्चितताओं के विरुद्ध भी सबसे अच्छा बीमा है।
दूध, मांस और अंडा - प्रमुख विकास चालक- पशुधन गणना पशुधन खेती लोगों की वसा और प्रोटीन की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पशुधन उद्योग देश मे ं गैर-सरकारी स्तर पर नौकरियो ं का एक प्रमुख स्रोतः है। बीस मे ं से उन्नीस घरो ं मे ं किसी न किसी तौर पर पशुधन उपल्ब्ध है जिसमें गाय व भैंस सामान्य तौर पर है और पशुधन क्षेत्र ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों के लिए सबसे अधिक संभावित और आय पैदा करने वाले क्षेत्रों के रूप में उभर रहा है। हिमाचल प्रदेश मे ं जंगल, पानी, चारागाह और कृषि भूमि सभी सामान्य संपत्ति संसाधन (सी पी.आर.द्ध के उदाहरण हैं।
पशुधन गणना 2019 के अनुसार, राज्य मे ं भारत के कुल पशुधन का 0.82 प्रतिशत और कुल पोल्ट्री का 0.16 प्रतिशत हिस्सा है। राज्य देश में मवेशियों में 20वें और पोल्ट्री आबादी में 27वें स्थान पर है। राज्य में कुल पशुधन आबादी 44.13 लाख थी, और कुक्कुट आबादी 13.42 लाख थी। हिमाचल प्रदेश में, पशुधन जनसंख्या मे ं मवेशियों का 18.28 लाख के साथ सबसे बड़ा हिस्सा है, इसके बाद बकरियां, भेड़ और भैंसों की संख्या आती हैं।(चित्र-7.1) राज्य में कुल मवेशियों की संख्या में विदेशी नस्ल के मवेशियों का प्रतिशत बढ़ रहा है। 2012 की पशुगणना की तुलना मे ं 2019 की पशु गणना में राज्य में क्रॉसब्रीड मवेशियों की संख्या 8.64 प्रतिशत बढ़ी है। क्रॉसब्रीड मवेशियो ं का हिस्सा कुल मवेशियों की संख्या का 58.48 प्रतिशत तक पहु ंच गया है। यह अधिक उत्पादक पशुओं की बढ़ती हिस्सेदारी को इंगित करता है और यह राज्य मे ं बढ़ते दूध उत्पादन में परिलक्षित होता है।

दूध उत्पादन और प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता- सरकार द्वारा शुरू की गई डेयरी, भेड़ और मुर्गीपालन इकाइयों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज और संगठित विपणन चैनलों की स्थापना ने ग्रामीण समुदायों को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन प्रयासों ने न केवल आय के अंतर को पाटने में मदद की है बल्कि घरेलू जैव विविधता के संरक्षण में भी योगदान दिया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये प्रथाएं भू-जल संसाधनों को कम किए बिना शुष्क भूमि में खाद्य उत्पादन का साधन प्रदान करती हैं। पशुधन बीमा कवरेज को बड़ी संख्या मे ं भेड़ और बकरियां रखने वाले परिवारो ं तक बढ़ाया गया है, जिससे इस क्षेत्र में अप्रत्याशित चुनौतियों के लिए सुरक्षा जाल उपलब्ध हुआ है। कुल मिलाकर, पशुपालन में वृद्धि और विकास ने न केवल आर्थिक समृद्धि मे ं योगदान दिया है, बल्कि ग्रामीण आजीविका और पर्यावरण संरक्षण दोनों को बढ़ावा देते हुए टिकाऊ प्रथाओ ं के साथ भी जुड़ गया है।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2012-13 से 2024-25 तक दुग्ध उत्पादन की बढ़ती स्थिति को सारणी 7.1 में दर्शाया गया है। यह दर्शाता है कि राज्य में दुग्ध उत्पादन वित्त वर्ष 2012-13 के 11.39 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 17.50 लाख मीट्रिक टन (अनुमानित) हो गया है, जिनकी सी.ए.जी.आर. 3.6 प्रतिशत हैं। गाय का दूध कुल दूध उत्पादन का लगभग 71.0 प्रतिशत है जबकि भैंस के दूध का हिस्सा लगभग 26.0 प्रतिशत और बकरी के दूध का हिस्सा 3.0 प्रतिशत है। 2011-12 से 2024-25 के बीच कुल दुग्ध उत्पादन में प्रजातिवार दुग्ध उत्पादन का योगदान चित्र 7.2 में दिखाया गया है। राज्य मे ं दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 2012-13 में 455 ग्राम प्रतिदिन से बढ़कर 2024-25 में 698 ग्राम प्रतिदिन हो गई है। यह 2024-25 में राष्ट्रीय औसत 427 ग्राम प्रति दिन से अधिक है। अभी भी अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाकर दूध उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की गुंजाइश है ताकि किसान की आय में वृद्धि हो सके।

मांस और कुक्कुट उत्पादन- हिमाचल प्रदेश मे ं अंडे का उत्पादन 2011-12 में 10.50 लाख से घटकर 2024-25 में 9.60 लाख हो गया है। चित्र 7.3. हिमाचल प्रदेश मे ं मांस उत्पादन 2011-12 में 39.66 हजार टन से बढ़कर 2024-25 में 55.50 हजार टन हो गया है। चित्र 7.4.

पशुधन क्षेत्र का विकास- पशुपालन कृषि और संबद्ध गतिविधियों के अन्र्तगत एक महत्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। वर्ष 2024-25 में इसने कुल जी.एस.वी.ए. का 1.36 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस वी.ए. का 9.24 प्रतिशत योगदान दिया है। हिमाचल प्रदेश मे ं पशुधन द्वारा सृजित सकल मूल्य उत्पादन (जी.वी.ओ.) पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है। यह प्रचलित मूल्य पर वित्त वर्ष 2018-19 मे ं ₹5,496 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 (अग्रिम अनुमान) के दौरान ₹7,326 करोड़ हो गया। पशुधन क्षेत्र के विभिन्न घटकों का योगदान सारणी 7.2 में दर्शाया गया हैः
2024-25 (अ.अ.) में पशुधन क्षेत्र में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। 2018-19 से 2024-25 की अवधि के दौरान, पशुधन क्षेत्र ने फसल क्षेत्र कीे(-)2.4 प्रतिशत की तुलना में 5.7 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर्ज की।
राज्य पशुपालन के संभावित आर्थिक लाभों को पहचानता है और इसलिए निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके पशुधन विकास रणनीति को लागू करने के लिए संसाधनो ं को समर्पित करता है।
i) पशु स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण
ii) पशु विकास
iii) भेड़ प्रजनन तथा ऊन विकास
iv) कुक्कट विकास
v) पशु आहार व चारा विकास
vi) पशु चिकित्सा सम्बन्धी शिक्षा
vii) पशुधन गणना
पशु स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत 31 दिसम्बर, 2024 तक राज्य में संस्थानों की कुल संख्या सारणी 7.3 मे ं दर्शाया गया है।
राज्य भर के प्रजनकों के पास भेड़ और ऊन की गुणवत्ता में सुधार के लिए उन्नत भेड़ प्रजनन फार्मों तक पहु ंच है, सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म ज्यूरी (शिमला), ताल (हमीरपुर), और करछम (किन्नौर) राज्य के प्रजनको ं को बेहतर भेडो ं़ की आपूर्ति कर रहे हैं। मंडी जिले के नगवाईं में एक राम केंद्र भी काम कर रहा है जहां उन्नत भेड़ों का पालन किया जाता है और क्रॉस ब्रीडिंग के लिए प्रजनकों को आपूर्ति की जाती है।
हिमाचल में शुद्ध हॉगट की बढ़ती मांग और सोवियत मैरिनो और अमेरिकन रैम्बौइलेट की स्थापित लोकप्रियता को देखते हुए, राज्य ने मौजूदा सरकारी फार्मों में शुद्ध प्रजनन की ओर रुख किया है, और 9 भेड़ और ऊन विस्तार केंद्र चरवाहों के कल्याण के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2024-25 के दौरान ऊन का उत्पादन 1,500 टन होने की संभावना है। प्रजनकों को खरगोशों के वितरण के लिए कंदवाडी (कांगड़ा) और नगवाई (मंडी) में अंगोरा खरगोश फार्म काम कर रहे हैं।
घोड़ों की स्पीति नस्ल को बनाऐ रखने के उद्देश्य से लाहौल और स्पीति जिले के लरी में एक घोड़ा प्रजनन फार्म स्थापित किया गया है। पशुओं की वर्तमान स्थिति सारणी 7.5 में दर्शायी गई है।

पशुपालकों हेतु कल्याणकारी योजनाएँ-
सामान्य श्रेणी के बी.पी.एल. किसानों से संबंधित योजना- गर्भावस्था के बाद तीन महीनों के दौरान, सामान्य श्रेणी के बी.पी.एल. पशुपालक परिवारो ं को उनकी देसी/क्रॉस नस्ल की गायों को 3 किलोग्राम प्रतिदिन की दर से 50 प्रतिशत सब्सिडी पर गर्भावस्था राशन प्रदान किया जाता है। कुल 13,440 किसानो को इस योजना का लाभ प्राप्त हुआ है। योजना का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैः
i) दूध उत्पादन को बढ़ाना।
ii) अंतर-केल्ंिवग अवधि को कम करना।
iii) गर्भवती गायों के स्वास्थ्य में सुधार करना।
उत्तम पशु पुरस्कार योजना- यह योजना वित वर्ष 2023-24 में ₹150.00 लाख के प्रावधान से शुरू की गई थी इसके अन्तर्गत जिन किसानों के दुधारू पशु/भैंसों का प्रतिदिन 15 लीटर तथा इससे अधिक दूध उत्पादन होता है, उन्हें प्रति लाभार्थी प्रति पशु ₹1,000 की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है।
कुक्कट विकास योजना- हिमाचल प्रदेश में कुक्कट क्षेत्र के विकास के लिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विभाग द्वारा निम्नलिखित योजनाएं चलाई जा रही हैः
i) बैकयार्ड पोल्ट्री परियोजना- बैकयार्ड पोल्ट्री परियोजनाः 3 सप्ताह आयु के कम इनपुट प्रौद्योगिकी(एल.आई.टी.) पक्षियों के 10-100 संख्या में चूजों को लागत मूल्य पर पोल्ट्री प्रजन्नकों को वितरित किए जाते है। इस योजना के अन्र्तगत 2024-25 मे ं दिसम्बर, 2024 तक 6ए870 लाभार्थियो ं को 4,10,000 चूजों के वितरण के निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले 2,66,094 चूजों का वितरण किया गया।
ii) हिम कुकुक्ट पालन योजना- हिम कुकुक्ट पालन योजनाः राज्य में 97 कुक्कुट इकाइयों की स्थापना हेतु ₹388 84 लाख का बजट निर्धारित किया गया है, वित्तीय वर्ष 2024-25 में लाभार्थियों को एक-दिन आयु के तीन हजार ब्रायलर चूजे, चारा, फीडर एवं ड्रिंकर प्राप्त हुए। लाभार्थियो ं को पू ंजी निवेश (शेड बिल्डिंग, फीडर और ड्रिंकर) और आवर्ती लागत (चूजों, चारा आदि की लागत) दोनों पर 60 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाता है। दिसम्बर, 2024 तक 32 लाभार्थियों का चयन किया गया है और ₹126 72 लाख की सब्सिडी जारी की जाएगी।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आर.जी.एम.)- दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने, देश के ग्रामीण किसानों के लिए डेयरी को अधिक लाभकारी बनाने, दूध उत्पादन और गायों की उत्पादकता बढ़ाने में राष्ट्रीय गोकुल मिशन महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अन्तर्गत् हिमाचल प्रदेश में वर्तमान मे ं निम्नलिखित गतिविधियां कार्यान्वित की जा रही हैंः
राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान योजना (एन.ए.आई.पी.)- योजना का उद्देश्य किसानों के घर द्वार पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं के वितरण, दुग्ध उत्पादन और गोवंश की उत्पादकता में वृद्धि और इस तरह किसानों की आय में वृद्धि और किसानों के बीच कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं की स्वीकार्यता बढ़ाना है। इस योंजना का उद्देश्य संगठित किसान जागरूकता कार्यक्रम के कार्यान्वयन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। यह घटक राज्य के सभी जिलों में 2021-22 से 2025-26 तक 5 वर्षों की अवधि में सभी प्रजनन योग्य मवेशियों और भैंसों की आबादी को सम्मिलित करते हुए लागू किया जाएगा। वर्तमान मे कार्यक्रम के अन्तगर्त 15,88,242 निःशुल्क कृत्रिम गर्भाधान किया गया हैं।
जिला कांगड़ा के संतति परीक्षण (जर्सी) कार्यक्रम- यह कार्यक्रम विभाग के 115 पशु चिकित्सा संस्थानों के नेटवर्क द्वारा कांगड़ा जिले के लगभग 800 राजस्व गांवों में निम्नलिखित उद्देश्य से क्रियान्वित किया जा रहा हैः
i) जर्सी मवेशियों की आबादी में दूध, वसा, वसा रहित ठोस और प्रोटीन की पैदावार, प्रजनन गुणों और प्रकार के लक्षणों के संबंध में एक स्थिर आनुवंशिक प्रगति प्राप्त करना।
ii) भविष्य की पीढ़ी के सांड बछड़ों के उत्पादन के लिए आनुवांशिक मूल्यांकन और बैल माताओं और सांडों के चयन की एक प्रणाली स्थापित करना।
iii) संतति परीक्षण के माध्यम से वीर्य केन्द्रों के लिए आनुवांशिक रुप से मूल्यांकित सांड बछड़ो ं की आवश्यक संख्या का उत्पादन करना।
भारत सरकार से इस कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एन.डी.डी बी.) के माध्यम से ₹616.61 लाख की राशि प्राप्त हुई है जिसमें से अब तक विभिन्न घटकों के अन्तर्गत राशि का उपयोग किया जा चुका है।
मौजूदा सीमन स्टेशनों का सुदृढ़ीकरण- भारत सरकार ने इस घटक के अन्तर्गत एस.एस. पालमपुर स्टेशन के सुदृढ़ीकरण के लिए ₹734.19 लाख स्वीकृत किए हैं।
हिमाचल प्रदेश के सभी प्रकार के भेड़ पालकों को रैम सब्सिडी का प्रावधान - इस योजना के अन्तर्गत् सभी श्रेणियों के भेड़ पालकों को जिनके पास कम से कम 50 भेड़ें हों, को भेड़ो ं के प्रजनन के लिए 60 प्रतिशत अनुदान पर मेढे दिये जाते हंै (प्रति लाभार्थी अधिकतम दो मेढ़ े)। वित्त वर्ष 2017-18 से 2024-25 के दौरान इस योजना के लिए ₹223.46 लाख आवंटित किए गए थे। अब तक 3ए200 लाभार्थियो ं को इस योजना के तहत कवर किया गया है।
योजना के उद्देश्यः
i) स्वदेशी नस्ल के भेड़ों में आनुवांशिक सुधार तथा हिमाचल प्रदेश के प्रवासी भेड़ो ं में बेहतर जर्मन प्लाज्म का प्रसार करना।
ii) राज्य मे ं मांस और ऊन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करना तथा भेड़ पालकों को बेहतर आर्थिक लाभ सुनिश्चित करना।
iii) सभी प्रकार के भेड़ पालको ं के प्रवासी भेड़ झुड़ो ं के बीच आंतरिक प्रजनन की समस्या का हल करना।
कृषक बकरी पालन योजना - इस योजना के अन्तर्गत् सभी श्रेणियों के बकरी पालकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के उद्देश्य से 11 बकरियां (10 मादा$1 नर), 5 बकरियां (4 मादा$1 नर) तथा 3 बकरियां (2 मादा$1 नर) 60 प्रतिशत अनुदान पर दिए जाते हैं। गर्भावस्था के अंतिम तिमाही के दौरान बकरियों के लिए फीड, चारे के अतिरिक्त बीमा का भी प्रावधान है। वर्ष 2017-18 से 2024-25 के लिए बजट प्रावधान ₹1,428.44 लाख आवंटित किया गया है। अब तक 2ए930 इकाइयां (5,480 बकरीयां) वितरित की जा चुकी हैं।
पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य को सहायता - केंद्र प्रायोजित योजना के तहत भारत सरकार द्वारा 90 प्रतिशत के ंद्रीय हिस्सेदारी और 10 प्रतिशत राज्य हिस्सेदारी के आधार पर धनराशि प्रदान की जा रही है ताकि संक्रामक रोगांे जैसे रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया और ब्लैक कार्टर (एच.एस.बी.क्यू.), एंटरोटॉक्सिमिया, पेस्ट डेस पेटिटस रूमिनेंटस (पी.पी.आर.), रानीखेत, मारेक और रेबीज के रोकथाम हेतु मुफ्त टीकाकरण सुविधा प्रदान की जा सके, इस योजना के अन्तर्गत क्रियान्वयन से उक्त लिखित संक्रामक रोगों का प्रकोप टल जाता है और पशुपालको को होने वाले वित्तीय नुकसान से बचाया जा सकता है। योजना के अन्तगर्त 10.00 लाख, 2.50 लाख एवं 0.50 लाख के लक्ष्य के समकक्ष क्रमशः 3.56 लाख एच.एस.बी.क्यु. 2.50 लाख ई टी. तथा 0.51 लाख ए.आर.बी. का टीकाकरण किया गया है।
प्रमुख के उत्पादन के अनुमान के लिए एकीकृत नमूना सर्वेक्षण - 1977-78 के बाद से, निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ सालाना एकीकृत नमूना सर्वेक्षण आयोजित किया गया हैः
i) मौसम के अनुसार और वार्षिक दूध, अंडे और ऊन के उत्पादन का अनुमान लगाना।
ii) औसत जनसंख्या और उपज अनुमानों की गणना करना
iii) गोबर उत्पादन का अनुमान लगाने के लिए
iv) फीड और चारे की औसत खपत की गणना करना
v) जनसंख्या, उपज और उत्पादन की प्रवृत्ति का अध्ययन करना
यह सर्वे क्षण कार्य राज्य में भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान (ए.एच.एस. प्रभाग) नई दिल्ली के दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाता है। यह पशुधन उत्पादो ं और पशुधन संख्या से संबंधित एक विश्वसनीय डाटाबेस प्रदान करता है।
हिमाचल प्रदेश में डेयरी विकास गतिविधियां आनन्द पद्धति के टू-टायर’ ढांचे पर आधारित है। आनन्द पद्धति की मूल इकाई ग्रामीण दुग्ध उत्पादक सहकारी सभा है जहां पर दुग्ध उत्पादकों का आधिक्य दूध इक्कठ्ा किया जाता है और इस दूध का परीक्षण किया जाता है। दुग्ध उत्पादकों को दूध का भुगतान दूध की गुणवत्ता के आधार पर किया जाता है। हि0प्र0 दुग्ध प्रसंघ में 1,148 दुध उत्पादक सहकारी समितियां हैं। इन समितियो ं के सदस्यो ं की कुल संख्या 47,905 है, हि0प्र0 दुग्ध प्रसंघ ने 2023-24 के दौरान लगभग 406 लाख लीटर और चालू वितीय वर्ष के लिए नवम्बर 2024 तक 375 लाख लीटर दूध एकत्र किया है। वर्ष 2025-26 के लिए हि0प्र0 दुग्ध प्रसंघ ने दुग्ध उत्पादकों से 500 लाख लीटर दुध खरीदने का अस्थाई लक्ष्य रखा है।
दुध को प्रशीतन केन्द्रों से एकत्रित कर दुध प्रससकरण केंन्द्रो में भेजा जाता है जहां इसे प्रसंस्कृत करने के उपरांत पैकट बंद किया जाता है और उपभोक्ताओं को बेचा जाता है। इस समय हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंघ 10 दुग्ध संयन्त्रों को चला रहा है जिनकी क्षमता प्रतिदिन 1,80,000 लीटर है, जिसमे ं मण्ड़ी एवं दत्तनगर (शिमला) दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र की क्षमता 50,000 लीटर प्रतिदिन, कांगड़ा दुग्ध संयन्त्र की क्षमता 20,000 लीटर प्रतिदिन तथा नाहन, चम्बा, लालसिंगी जलेडा (ऊना) नालागढ़, जंगलबैरी (हमीरपुर), रिकांगपीओ (किन्नौर), रोहडू एंव मौहल (कुल्लू) प्रत्येक की क्षमता 5,000 लीटर प्रतिदिन है। इसके साथ 5 मीट्रिक टन प्रतिदिन की क्षमता वाला एक मिल्क पाऊडर प्लांट दत्तनगर जिला शिमला में कार्यरत है। पशु फीड़ के लिए 16 मीट्रिक टन की क्षमता वाला संयन्त्र भौर जिला हमीरपुर मे ं स्थापित किया गया है।
हिमाचल प्रदेश दुग्ध सघं की पहल:
i) हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंघ हिम ब्राण्ड के दूध एंव दुग्ध पदार्थो का विपणन कर रहा है और हिमाचल प्रदेश के दुग्ध प्रसंघ के मुख्य उत्पाद जैसे कि मिल्क पाउडर, घी, मक्खन, पनीर, दही एंव मीठा दूध व स्किम मिल्क पाउडर, होल मिल्क पाउडर, मिठाईंयां और बेकरी बिस्किट हैं।
ii) हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड ने 2023-24 के दौरान दिवाली के त्यौहार के लिए लगभग 485 किं्वटल मिठाइयाँ बेची हैं। मिल्कफेड ने आकर्षक स्थानों पर नए मिल्क बार खोले हैं ताकि यह आसानी से सुलभ हो और बड़े उपभोक्ताओं की ज़रूरतो ं को पूरा कर सके। हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान 500 किसानो ं को स्वच्छ दूध उत्पादन और पशुओं के पालन आदि के लिए प्रशिक्षण दिया है।
iii) मिल्कफेड ने दूध को ठंडा करने और कच्चे दूध की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए मंडी, कुल्लू और शिमला जिलों में 120 स्वचालित दूध संग्रह इकाइयां और 32 डिजिटल दूध संग्रह इकाइयां तथा शिमला, मंडी, कुल्लू, सिरमौर और कांगड़ा जिलों में विभिन्न क्षमताओं की 19 बल्क मिल्क कूलिंग प्रणालियां स्थापित की हैं।
iv) वर्ष 2024-25 के दौरान दत्तनगर में 50,000 लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले एक नए दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र का उदघाटन किया गया।
v) मिल्कफेड ने गाय के दूध की खरीद दर जनवरी, 2024 से ₹31.80 प्रति लीटर से बढ़ाकर ₹37.00 और अप्रैल, 2024 से ₹37.00 से बढ़ाकर ₹45.00 प्रति लीटर और भैंस के दूध की दर ₹47 प्रति लीटर से बढ़ाकर ₹55 प्रति लीटर कर दिया गया है। लगभग 154 समितियों ने व्यक्तिगत किसानों के लिए दूध परीक्षण शुरू कर दिया है, जिसे वर्ष 2025-26 के दौरान चरणबद्ध तरीके से अन्य समितियों में भी लागू किया जाएगा।
vi) हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा घोषित हिम गंगा योजना को पहले चरण में हमीरपुर और कांगड़ा जिलों मे ं पायलट आधार पर शुरू किया है। मिल्कफेड ने अब तक 264 नई समितियो ं का गठन किया है, जिनमें से 45 नई समितियां हमीरपुर जिले से संबंधित हैं, 4 समितियों को हमीरपुर में पुनर्जीवित किया गया है और 219 समितियां कांगड़ा जिले से संबंधित हैं।
vii) मिल्कफेड दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्रों के मौजूदा बुनियादी ढांचे में सुधार कर रहा है और इस योजना के तहत नाहन, मोहल, मंडी, दत्तनगर और कांगड़ा के मौजूदा दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्रों को मजबूत/मुरम्मत करने का कार्य प्रगति पर है। पिछले 6 महीनों में 6 दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्रो ं (मंडी, दत्तनगर, नाहन, मौहल (कुल्लू), परेल (चंबा) और धगवार (कांगड़ा)) और 2 दूध शीतलन केंद्रों (एम.सी.सी. सराहन, एम.सी.सी. कटौला) तथा 1 पशु आहार संयंत्र (भौर) के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए ₹1.30 करोड़ खर्च किए गए हैं।
vii) वर्ष 2024-25 के दौरान “हिम गंगा योजना“ के तहत कांगड़ा मिल्कफेड जिले के ढंगवार, में 1.5 लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता से 3.00 लाख लीटर प्रतिदिन तक विस्तारित नए पूरी तरह से स्वचालित दूध प्रसंस्करण की शुरुआत की है। इस संयंत्र का निर्माण नाबार्ड की अवसंरचना योजना के अन्तर्गत नेशनल डेयरी विकास बोर्ड द्वारा ₹200.43 करोड़ की लागत से किया जा रहा है जिसमें से ₹60.13 करोड़ की मंजूरी नाबार्ड द्वारा पहले ही दे दी गई है
viii)वर्ष 2025-26 मे ं मिल्कफेड केंद्रीय सरकार की एन.पी.डी.डी. योजना के अन्तर्गत 90ः10 में ₹10.73 करोड़ की स्वीकृत परियोजना को राज्य मे ं लागू करेगा। परियोजना की मुख्य गतिविधियों में कांगड़ा जिले के एमपीपी धगवार में नई केंद्रीय परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना और दुग्ध उत्पादकों एवं तकनीकी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना शामिल है। मिल्कफेड दूध संग्रहण प्रक्रिया और इकाइयों का डिजिटलीकरण करेगा। मिल्कफेड राज्य के बाहर दूध और दुग्ध उत्पादों की बिक्री के लिए एक विपणन एजे ंसी नियुक्त करने की प्रक्रिया में है। मिल्कफेड ने 15 जून 2024 को “हिम“ ट्रेडमार्क का पंजीकरण कराया है।
ix) गत दो वर्षों मे (वर्ष 2022-23 एवं 2023-24) मिल्कफेड ने बाल विकास कल्याण विभाग की आंगनवाडीयों को विभिन्न खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति की है जिसमें कि 31,783.11 क्वििन्टल फोर्टिफाइड पंजीरी जिसका मूल्य ₹25.43 करोड़, 45,882.08 क्वििन्टल बेकरी बिस्कुट जिसका मुल्य ₹46.80 करोड़, 17824 12 क्वििन्टल सं ेविया जिसका मुल्य ₹8.82 करोड़ और 7757.39 क्वििन्टल मिल्क पाऊडर जिसका मुल्य ₹24.81 करोड शामिल है।
x) हिमाचल प्रदेश डेयरी फार्मिंग को एक स्वरोजगार कार्यक्रम के रूप में अपनाने के लिए उपयुक्त है क्यो ंकि इसकी जलवायु संकर पशुओं के पालन के लिए अनुकूल है और बडे चरागाहों की उपलब्धता भी जिसका एक मुख्य कारण है। इसके अलावा, छोटे और मध्यम शहर स्थानीय रूप से उत्पादित दूध के लिए बाजार उपलब्ध कराते हैं। मिल्कफेड दुग्ध उत्पादकों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए जिला किन्नौर और लाहुल स्पीति को छोडकर राज्य के हर हिस्से में दुग्ध उत्पादकों को उनके अतिरिक्त दूध के लिए बाजार उपलब्ध करा रहा है।
ऊन एकत्रीकरण एवं विपणन संघ का मुख्य उद्धेश्य हिमाचल प्रदेश में ऊनी उद्योग को बढ़ावा एवं विकास करना तथा ऊन उत्पादकों को बिचैलियों/व्यापारियों के शोषण से मुक्त करना है। ऊन संघ अपने उपरोक्त उद्धेश्यों का अनुसरण करते हुए भेड़ व अंगोरा ऊन की खरीद, भेड़ों की चारागाह स्तर पर आयातित स्वचालित मशीनों द्वारा भेड़ कर्तन और ऊन के विक्रय के लिए प्रयासरत है। वितीय वर्ष 2024-25 मे ं दिसंबर, 2024 तक 1,10,136 भेड़ों की चारागाह स्तर पर शियरिंग की गई जिससे राज्य के 600 प्रजनक परिवारो ं को लाभ हुआ है।
पशुपालन विभाग के सहयोग से संघ राज्य में भेड़ उत्पादकों के लाभ और उत्थान के लिए एक नई केंद्र प्रायोजित योजना भी लागू कर रहा है। चंबा, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, शिमला और किन्नौर जिलों में ₹2.5 करोड़ के परिव्यय से स्वास्थ्य देखभाल, विशेष रूप से डिपिंग और डी-वॉर्मिंग के तहत 7,20,000 भेड़ और बकरियो ं को कवर किया जाएगा।
मत्स्य पालन राज्य में प्राथमिक क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। मत्स्य पालन को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता रही है और उसके लिए राज्य ने हिमाचल प्रदेश मत्स्य नियम-2020 बनाए हैं। राज्य की नदियो ं का जल, ट्राउट जल और जलाशय मत्स्य संसाधनो ं की समृद्धि क्षमता से संपन्न है।
इन संसाधनों का विवेेकपूर्ण ढंग से उपयोग करके घरेलू और निर्यात बाजार को पूरा करने के लिए प्रग्रहण, संस्कृति आधारित प्रग्रहण मात्स्यिकी से मछली उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। यह ग्रामीण गरीबों, महिलाओं और युवाओं के लिए रोजगार और आय-सृजन के अवसर पैदा करेगा और राज्य मे ं खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त करनें में योगदान देगा।
ब्यास, सतलुज और रावी नदियाॅं अपनी अनुप्रवाह यात्रा के दौरान कई धाराएॅ सम्मिलित करती हैं और बहुमूल्य ठंडे पानी के मछली जीवो ं जैसे कि शिजोथोरैक्स, गोल्डन माहशीर और आकर्षक ट्राउट को आश्रय देती हैं। राज्य के ठंडे जल संसाधनों ने महत्वाकांक्षी इंडो-नाॅर्वेजियन ट्राउट खेती परियोजना के सफल समापन और विकसित प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए पहाड़ी लोगों द्वारा दिखाई गई गहरी रुचि का प्रदर्शन किया है।
आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण मछली की प्रजातियाॅं गोबिंद सागर, पोंग, चमेरा और रणजीत सागर जैसे बांधों के जलाशयों में पनपती हैं। ये जलाशय स्थानीय आबादी के लिए मूल्यवान सम्पत्ति बन गए हैं। इन क्षेत्रों में मत्स्य पालन क्षेत्र की सफलता न केवल समुदाय की आर्थिक उन्नति में योगदान देती है, बल्कि टिकाऊ और लाभदायक ठंडे पानी की मछली पालन की क्षमता का भी प्रदर्शित करती है।

मछली उत्पादन- राज्य में 6,310 मछुआरे अपनी आजीविका के लिए जलाशय मत्स्य पालन पर सीधे निर्भर है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, दिसम्बर 2024 तक संचयी मछली उत्पादन 12,637.12 मीट्रिक टन था। जिसका मूल्य ₹197.10 करोड़ था। चालू वित वर्ष 2024-25 दिसम्बर, 2024 तक में राज्य के फार्मों से लगभग 13.56 टन ट्राउट की बिक्री कर ₹138.66 लाख की आय अर्जित की गई। मछली का उत्पादन एवं बिक्री सारणी 7.8 मे ं दर्शाया गया है।
पिछले एक दशक मे ं हिमाचल प्रदेश मे ं कुल मछली उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2012-13 और 2023-24 के बीच मछली उत्पादन दोगुना से अधिक हो गया और इसी अवधि के बीच 3.3 प्रतिशत का सी.ए.जी.आर. दर्ज किया गया। सारणी 7.7 हिमाचल प्रदेश में मछली उत्पादन की प्रवृत्ति और वृद्धि को दर्शाती है। कुल मछली उत्पादन 2012-13 में 8,560.89 मीट्रिक टन से बढ़ कर 2023-24 में 17,721.64 मीट्रिक टन हो गया और वित्त वर्ष 2024-2025 के दौरान 18,957.23 मीट्रिक टन तक पहुॅंचने की उम्मीद है। इसी अवधि में उत्पादन का मूल्य भी 2012-13 के ₹5818.13 लाख से बढ़ कर 2023-24 ₹27,323ण्87 लाख हो गया।

मत्स्य उत्पादों का निर्यात और आयात- मत्स्य उपक्षेत्र मछली के निर्यात और आयात में मिश्रित रूझान दिखाता है। जैसे कि सारणी 7.10 मे ं दिखाया गया है। 2012-2013 और 2023-2024 के बीच सभी स्त्रोतो ं से मछली का कुल आयात व निर्यात बढ़ा है। मछली उत्पादन के निर्यात और आयात की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर चित्र-7.5 और 7.6 में दर्शाई गई है।


मत्स्य क्षेत्र का विकास और योगदान- 2024-2025 में मौजूदा कीमतों पर मत्स्य उप-क्षेत्र कुल जी.एस.वी.ए. का 0.14 प्रतिशत और कृषि सम्बद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 0.94 प्रतिशत है। पिछले पाॅंच वर्षों में मत्स्य क्षेत्र का विकास उत्साह जनक रहा है। मत्स्य उप-क्षेत्र के 2024-2025 में 7.0 प्रतिशत के मुकाबले 2023-2024 में 6.3 प्रतिशत से बढ़ने का अनुमान है।
सार्वजनिक और निजि क्षेत्रों में जलाशयों, ग्रामीण तालाबों और वाणिज्यिक खेतों की जरूरतों को पूरा करने के लिए मत्स्य विभाग ने राज्य के कार्प तथा ट्राउट बीज उत्पादन सुविधाओं की स्थापना की है। दिसम्बर, 2024 तक राज्य में 70 मि. मी. से ऊपर की कुल 23.07 लाख काॅमन कार्प फिंगरलिंगस, 5.24 लाख इसी आकार की आई.एम.सी. तथा 4.6 लाख रेनवो ट्राउट की अंगुलिकाओ ं का उत्पादन किया जिनका मूल्य ₹56.88 लाख है।
बीमा और कल्याणकारी योजनाएं- मत्स्य पालन विभाग ने विभिन्न कल्याणकारी योजनओं के माध्यम से मछुआरों के उत्थान के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। एक महत्वपूर्ण पहल में मछुआरों के लिए बीमा कवरेज प्रदान करना शामिल है। इस योजना के तहत, मछुआरों की मृत्यु या स्थायी पूर्ण विकलांगता की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में, मछुआरों को ₹5.00 लाख की वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त, सरकार मछुआरों को उनके गियर और नाव को हुए नुकसान की 50 प्रतिशत तक की भरपाई जोखिम निधि योजना से की जाती है।
वर्जित काल के दौरान मछुआरों के लिए जीवन यापन हेतु अंशदाई बचत योजना चलाई जा रही है जिसके अन्तर्गत मछुआरों के अंशदान के बराबर राशि राज्य सरकारो ं द्वारा मछुआरों में वितरित की जाती है। वर्ष 2024-25 के दौरान बचत तथा राहत निधि योजना जिसे बदलकर प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के घटक ”मछली पकड़़ने के प्रतिबंध या लीन अवधि के दौरान मत्स्य संसाधनों के संरक्षण के लिए सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछडे ़ सक्रिय पारंपरिक मछुआरों के परिवारो ं के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता“ के अन्तर्गत 3,553 मछुआरों को कुल ₹1.60 करोड़ की राशि प्रदान की गई है जिसमें ₹53.30 लाख मछुआरों द्वारा एकत्रित किए गये है तथा ₹106.70 लाख के ंन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा वित्तीय अनुदान के रूप में दी गई है।
प्रधानमन्त्री मत्स्य सम्पदा योजना - केन्द्र सरकार ने यह कार्यक्रम शुरू किया है, और राज्य सरकार इसे क्रियान्वित कर रही है। इस योजना के अन्तर्गत राज्य सरकार ने वित वर्ष 2024-25 के लिए कुल ₹26.21 करोड़ की कई परियोजनाओं को मंजूरी दी है। सारणी 7.11 वित्तीय वर्ष 2024-25 दिसम्बर 2024 तक के लिए मत्स्य क्षेत्र की उपलब्ध्यिों के साथ-साथ वित वर्ष 2024-25 के लिए निर्धारित लक्ष्यों को दर्शाती है।
ये कल्याणकारी योजनाएं मछुआरों और उनके परिवारो ं के हितो ं की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ं। विकलांगताओं और अप्रत्याशित दुर्घटनाओं जैसी प्रतिकूल परिस्थितियो ं के समय मे ं बीमा कवरेज से वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है। जोखिम निधि योजना के अन्तर्गत गियर और शिल्प के नुकसान का मुआवजा एक मूल्यवान समर्थन तंत्र है, जो मछुआरों द्वारा अपने पेशे में आने वाली चुनौतियो ं और जोखिमों को स्वीकार करता है। इन कल्याणकारी उपायों को लागू करके, सरकार का लक्ष्य मछुआरों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों मे ं सुधार करना, मत्स्य पालन क्षेत्र में उनके योगदान को पहचानना और उनकी आजीविका में निहित अनिश्चितताओं के सामने उनकी भलाई सुनिश्चित करना है।
निष्कर्षः पशुपालन हिमाचल प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था मे ं अहम भूमिका निभाता है और ग्रामीण आजीविका में योगदान देता है। राज्य की अनुकूल जलवायु और भौगोलिक विविधता पशुपालन को प्रोत्साहित करती है, जिससे भोजन, ईंधन, उर्वरक, परिवहन और भार वहन की सुविधा मिलती है। यह किसानों की आय बढ़ाने मे ं भी सहायक है, क्योंकि न्यूनतम निवेश से स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। राज्य सरकार पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता सुधार पर विशेष ध्यान दे रही है, जिसमें दूध, मांस और अंडे के उत्पादन में वृद्धि भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश में दूध उत्पादन उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है, जहां प्रति व्यक्ति दुध उपलब्धता 698 ग्राम प्रतिदिन है जोकि राष्ट्रीय औसत से अधिक है। कुल मिलाकर, यह क्षेत्र सतत विकास को प्रोत्साहित करते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था की समृद्धि और स्थिरता को बल प्रदान कर रहा है।

8.वानिकी, पर्यावरण और जल संसाधन प्रबंधन

हिमाचल प्रदेश, ट्रांस-हिमालयी और हिमालयी जैव भौगोलिक क्षेत्रों मे ं स्थित है, तथा राज्य के भीतर शिवालिक, पश्चिमी हिमालय और ट्रांस-हिमालयी पर्वत श्रृ ंखलाओं के अस्तित्व के कारण वनस्पतियों और जीवो ं की समृद्ध विविधता है। भारतीय संविधान अनुच्छेद 48ए के माध्यम से सभी स्तरों पर सरकारों को निर्देश देता है कि वे “पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करे ं”। संविधान का अनुच्छेद 51ए (जी) प्रत्येक नागरिक पर “वनों, झीलों, नदियों, वन्यजीवो ं सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने” का कर्तव्य डालता है।
संवैधानिक ढांचे के तहत पर्यावरण संरक्षण की भावना को अपनाते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार अपने वनों और जैव विविधता की रक्षा करने तथा पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कई पहल कर रही है। इस प्रयास में सरकार पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और लोगों की आजीविका की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
हिमाचल प्रदेश वन नीति का उद्देश्य वनो ं का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना तथा उनका संरक्षण और विस्तार सुनिश्चित करना है। वन विभाग का लक्ष्य सतत विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को पूरा करने के लिए राज्य में वन क्षेत्र को लगभग 27.99 प्रतिशत (भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 के अनुसार) से बढ़ाकर 2030 तक अपने भौगोलिक क्षेत्र का 30 प्रतिशत करना है। यह अध्याय एक स्थायी पर्यावरण और जलवायु को बढ़ावा देते हुए वनों के उचित उपयोग, संरक्षण और विस्तार को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीति की पड़ताल करता है
हिमाचल प्रदेश में वन आवरण - राज्य का 37,948 वर्ग किलोमीटर (या लगभग 68.16 प्रतिशत) भूभाग आधिकारिक रूप से नामित वन भूमि से आच्छादित है। चैंपियन और सेठ के वनों के वर्गीकरण (1968) के अनुसार, वनों की 8 मुख्य श्रेणियाँ और 37 छोटे प्रकार के वन हैं। अधिकांश भूमि हिमालयी नम शीतोष्ण वन से आच्छादित है।
लगभग 15,580.33 वर्ग किलोमीटर (27.99 प्रतिशत) को वास्तविक वन क्षेत्र के रूप में नामित किया गया है, जिसकी विशेषता 10 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत और उससे अधिक के घनत्व स्तर की है। इसमे ं 3,117.60 वर्ग किलोमीटर अत्यधिक घने वन शामिल हैं, जिनका शिखर घनत्व 70 प्रतिशत और उससे अधिक है, 7,280.29 वर्ग किलोमीटर मध्यम घने वन हैं, जिनका शिखर घनत्व 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच है, और 5,182.46 वर्ग किलोमीटर खुले वन हैं, जिनका शिखर घनत्व 10 से 40 प्रतिशत के बीच है। इसके अतिरिक्त, 308.69 वर्ग किलोमीटर को झाड़ियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। सारणी 8.1 शिखर घनत्व के अनुसार वनो ं का अवलोकन देती है।

वित्त वर्ष 2024-25 में, वानिकी और लॉगिंग उप-क्षेत्र ने ₹6,724 करोड़ का मूल्य वर्धन किया, जो कृषि क्षेत्र द्वारा सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) का 21.09 प्रतिशत और कुल सकल राज्य मूल्य वर्धित (जी.एस.वी.ए.) का 3.10 प्रतिशत है। (चित्र 8.2 और 8.3) वानिकी और लॉगिंग द्वारा स्थिर (2011-12) कीमतों पर जी.वी.ए. वित्त वर्ष 2023-24 में ₹5,105 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में ₹5,310 करोड़ हो गया, जो कि ₹205 करोड़ की वृद्धि है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान वानिकी और लॉगिंग क्षेत्र में स्थिर कीमतों पर 4.0 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है।

वन विभाग द्वारा शुरू किए गए योजना कार्यक्रम का उद्देश्य इन नीतिगत प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है। कुछ महत्वपूर्ण योजना कार्यक्रम गतिविधियाँ निम्नानुसार हैंः
वन पौधारोपण- वनरोपण की पहल विविध राज्य स्तरीय कार्यक्रमों के माध्यम से चल रही है, जिसमें प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (ब्।डच्।) के साथ-साथ राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम और राष्ट्रीय हरित भारत मिशन जैसी के ंद्र प्रायोजित पहल शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, वनरोपण के प्रयास बाहरी सहायता प्राप्त परियोजनाओं के माध्यम से संचालित किए जा रहे हैं।
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए कैम्पा और केंद्र प्रायोजित योजनाओं सहित 8,000 हेक्टेयर मे ं वृक्षारोपण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें से 6,715 हेक्टेयर लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है तथा शेष लक्ष्य 31 मार्च, 2025 तक प्राप्त कर लिया जाएगा।
वन प्रबंधन- राज्य के जंगलों पर बढ़ती मानव आबादी, पशुपालन के बदलते तौर-तरीकों और विकासात्मक गतिविधियों के कारण जैविक दबाव बढ़ रहा है। ये जंगल आग, अनधिकृत कटाई, अतिक्रमण और अन्य वन-संबंधी अपराधों जैसे जोखिमों के प्रति संवेदनशील हैं। वन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी सुनिश्चित करने के लिए संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी से लैस चेक पोस्ट बनाकर वन सुरक्षा को मजबूत किया जा रहा है। अग्निशमन उपकरण और उन्नत तकनीके ं भी शुरू की जा रही हैं और उन्हें उन सभी वन प्रभागों मे ं उपलब्ध कराया जा रहा है जहाँ आग एक प्रमुख विनाशकारी तत्व है।
वन संपदा के प्रभावी प्रबंधन एवं संरक्षण के लिए संचार नेटवर्क बहुत जरूरी है। इन कारकों को ध्यान मे ं रखते हुए राज्य में के ंद्र प्रायोजित योजना-वन अग्नि रोकथाम एवं प्रबंधन योजना तथा राज्य योजना अर्थात् वन अग्नि प्रबंधन योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
जंगल की आग पर काबू पाने के लिए पूरे राज्य में सर्किल और डिवीजन स्तर पर रैपिड फॉरेस्ट फायर टीमें स्थापित की गई हैं। स्थानीय समुदाय को एस.एम.एस. भेजे जा रहे हैं जो स्वयंसेवक के रूप में पंजीकृत हैं। इसके अलावा, सभी संवेदनशील वन क्षेत्रों में आग के प्रति संवेदनशील महीनों के दौरान फायर वॉचर्स को भी लगाया जाता है।
प्रयोगात्मक वन संवर्धन तथा कटान में सहायक गतिविधियाँ- हिमाचल प्रदेश के जंगलों का मूल्य लगभग ₹1.50 लाख करोड़ आंका गया है। भारत के सर्वाेच्च न्यायालय ने राज्य को तीन रेंजो ं - नूरपुर वन प्रभाग की नूरपुर रे ंज, बिलासपुर वन प्रभाग की भराड़ी रेंज और पांवटा वन प्रभाग की पांवटा रेंज मे ं प्रायोगिक आधार पर तीन प्रजातियों, खैर, चील और साल की हरियाली को वनीकरण करने की अनुमति दी है। पेड़ो ं की कटाई 2018-19 और वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान की गई। आज तक, लगभग 13,000 खैर के पेड़ो ं को काटने के लिए चिह्नित किया गया है और 33,272 मानव-दिवस का काम सृजित किया गया है।
नई योजनाएं- स्थानीय समुदायों, छात्रों और आम जनता के बीच वनों के महत्व और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित नई योजनाएं शुरू की गई हैंः
क) मुख्यमंत्री वन विस्तार योजना- हिमाचल प्रदेश के वनों को उत्तरी भारत का फेफड़ा माना जाता है और राज्य वन विभाग राज्य में हरित आवरण को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस संदर्भ में, अगस्त 2023 में मुख्यमंत्री वन विस्तार योजना भी शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य एकीकृत स्थल विशिष्ट वनीकरण के माध्यम से राज्य के हरित आवरण को दुर्गम स्थलों तक विस्तारित करना, स्थानीय आबादी को वन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ और आजीविका के अवसर प्रदान करना है। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2024-25 में 500 हेक्टेयर बंजर वन भूमि पर वृक्षारोपण किया जा रहा है।
ख) ष्वन मित्रष् की नियुक्ति- समुदाय संचालित वन प्रबंधन और नियोजन को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा ‘वन मित्र’ योजना शुरू की गई है। नियुक्त किए गए वन मित्र वन विभाग के सभी वानिकी कार्यों से जुड़े रहेंगे। चरणबद्ध तरीके से प्रत्येक वन बीट मे ं 01 (एक) वन मित्र नियुक्त किए जा रहे हैं। 2,061 वन मित्रों की नियुक्ति की प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
अन्य पहलें/उपलब्धियाँ-
i) बनखंडी में एक बड़े चिड़ियाघर की स्थापना- कांगड़ा जिले के बनखंडी मे ं 600 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से एक बड़ा चिड़ियाघर बनाया जा रहा है, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिले ंगे। चिड़ियाघर को 2024-25 में चालू करने का प्रस्ताव है। चिड़ियाघर के डिजाइन और निर्माण में पर्यावरण के अनुकूल तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे सौर ऊर्जा और कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को शामिल किया जाएगा। पारिस्थितिकी पदचिह्न को कम करने के लिए पुनर्चक्रण और सतत खरीद प्रथाओं को अपनाया जाएगा।
ii) वन रक्षकों की भर्ती- हिमाचल प्रदेश सरकार ने विभाग में सीधी भर्ती के माध्यम से वन रक्षकों के 100 पदों को भरने की मंजूरी दे दी है।
iii) इकोटूरिज्म- सरकार ने इकोटूरिज्म को उच्च प्राथमिकता दी है। वन एवं वन्यजीव क्षेत्रों में सतत इकोटूरिज्म पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों 2021 तथा वन संरक्षण एवं संवर्धन अधिनियम, 2023, जो वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का संशोधन है, के आधार पर इको-टूरिज्म नीति 2024 तैयार की गई है। ग्यारह वन प्रभागों की कार्य योजनाओं मे ं इको-टूरिज्म अध्याय को मंजूरी दी गई है तथा नौ अन्य प्रभागों में कार्य योजनाओं के अध्याय को अंतिम मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया गया है।
पहले चरण में दो इको-टूरिज्म साइटो ं के लिए ऑपरेटरों को अंतिम रूप दिया गया है, अर्थात शोघी कैंपिंग साइट ₹37.80 लाख प्रति वर्ष और पॉटर हिल साइट ₹23.19 लाख प्रति वर्ष को प्रत्येक क्रमिक वर्ष के लिए 3 प्रतिशत वार्षिक रियायत की शर्त के साथ अंतिम रूप दिया गया है। दूसरे चरण में 6 साइटो ं के लिए बोलियाँ लगाई गईं, अर्थात कैसधार ₹10 लाख, सोलंग नाला ₹51.52 लाख, कसोल ₹25 लाख, खीरगंगा के पास बिंद्रावणी ₹10 लाख, सुमारोपा ₹31.32 लाख और बीर-बिलिंग ₹54 लाख प्रति वर्ष को अंतिम रूप दिया गया और अब इन साइटों को अधिकतम बोलीदाताओं को दिया गया है।
हिमाचल प्रदेश में ट्रेकिंग रूटों को विनियमित करने के लिए ट्रेकिंग प्रबंधन प्रणाली के लिए मानक संचालन प्रणाली तैयार की गई है और इसे एच.पी.टी.डी.सी. के साथ उनकी सहमति के लिए साझा किया गया है। हिमाचल प्रदेश वन विभाग द्वारा कुल 245 ट्रेक की पहचान की गई है। ट्रेक को हार्ड, मीडियम और सॉफ्ट में वर्गीकृत किया जा रहा है। ऑपरेटरों और ट्रेकर्स के पंजीकरण के लिए मोबाइल ऐप और वेबसाइट अपग्रेडेशन का विकास प्रक्रियाधीन है।
100 वन विश्राम गृहों, निरीक्षण झोपड़ियों और कैम्पिंग स्थलों को वेबसाइट ीजजचेरूध्ध्ीपउंबींसमबवजवनतपेउण्पद के माध्यम से ऑनलाइन बुकिंग के लिए सक्रिय कर दिया गया है।
iv) हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु प्रूफ़िंग परियोजना (के.एफ.डब्ल्यू. सहायता प्राप्त) - इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश में चयनित वन पारिस्थितिकी तंत्रो ं का पुनर्वास, संरक्षण और सतत उपयोग करना है, ताकि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वन पारिस्थितिकी तंत्रों की लचीलापन बढ़ाया और सुरक्षित किया जा सके। इससे वन पारिस्थितिकी तंत्रों की जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन क्षमता को मजबूत करने, जैव विविधता की सुरक्षा, जलग्रहण क्षेत्रों के स्थिरीकरण, प्राकृतिक संसाधन आधार के संरक्षण और समय के साथ बेहतर आजीविका के परिणाम प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इस परियोजना का बजट ₹308.45 करोड़ है, जिसे जर्मनी के ज्ञथ्ॅ बैंक (क्रेडिट इंस्टीट्यूट फॉर रिकंस्ट्रक्शन) द्वारा समर्थित किया गया है, जो वर्तमान में राज्य के चंबा और कांगड़ा जिलों के लिए चल रही है।
iv) हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना - परियोजना का उद्देश्य वैज्ञानिक और आधुनिक वन प्रबंधन पद्धतियों का उपयोग करके वन क्षेत्र, घनत्व और उत्पादक क्षमता को बढ़ाकर वन और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना तथा वन और चारागाह पर निर्भर समुदायों की आजीविका में सुधार करना, जैव विविधता को बढ़ाना और वन पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है। ₹800 करोड़ की हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना को जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (श्रप्ब्।) द्वारा वित्तीय सहायता दी जा रही है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए सरकार ने इस परियोजना के अन्तर्गत ₹55.00 करोड़ प्रदान किए हैं, जिसमें से 31 दिसंबर, 2024 तक ₹26.85 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं।
iv) स्त्रोत स्थिरता और जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि के लिए विश्व बैंक सहायता प्राप्त एकीकृत परियोजना - विश्व बैंक ने 100 मिलियन डॉलर (₹650 करोड़) के बजट वाली एक अतिरिक्त परियोजना को मंजूरी दी है, जिसे स्रोत स्थिरता और जलवायु-लचीले वर्षा आधारित कृषि के लिए एकीकृत परियोजना के रूप में जाना जाता है। इस परियोजना के लिए वित्तपोषण का अनुपात 80ः20 निर्धारित किया गया है ै, और इसकी अवधि 7 वर्ष है। यह परियोजना राज्य के विभिन्न जलग्रहण क्षेत्रों मे ं फैले शिवालिक और मध्य पर्वतीय कृषि-जलवायु क्षेत्रों की 900 ग्राम पंचायतों में लागू की जाएगी। इस परियोजना के अन्तर्गत मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैंः
1) परियोजना क्षेत्र में लगभग 2 लाख हेक्टेयर गैर-कृषि योग्य और 0.20 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का व्यापक उपचार।
2) परियोजना क्षेत्र मे ं 30 प्रतिशत तक जल उत्पादकता/दक्षता में वृद्धि।
3) दूध के उत्पादन में 20 प्रतिशत की वृद्धि
4) कमज़ोर परिवारों के 25 प्रतिशत परिवारो ं को आजीविका सुधार के अंतर्गत कवर किया जाएगा
5) कृषि फसलों की उत्पादकता में 25 प्रतिशत की वृद्धि
6) कृषि-व्यवसाय/संवर्धित उत्पादन के माध्यम से किसानो ं की आय में 30 प्रतिशत की वृद्धि।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए, सरकार ने इस परियोजना के अन्तर्गत ₹153.79 करोड़ प्रदान किए हैं, जिसमें से ₹102.96 करोड़, 31 दिसंबर, 2024 तक खर्च किए जा चुके हैं।
पर्यावरण वानिकी और वन्यजीव- वन पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पेड़ो ं और पौधों की उपस्थिति है। ग्रह पर जीवन के लिए स्वच्छ हवा और आश्रय आवश्यक हैं। वन जैव विविधता के संरक्षण में भी सहायता करते हैं।
वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के अलावा, वन मिट्टी को कटाव से बचाते हैं और दुनिया की 80 प्रतिशत से अधिक पशु प्रजातियों और जैव विविधता के लिए आश्रय प्रदान करते हैं। वन्यजीव शब्द जानवरों की गैर-पालतू प्रजातियों को संदर्भित करता है। इसका मतलब है कि जंगल में रहने वाला कोई भी जीवित प्राणी वन्यजीवों से जुड़ा हुआ है। जंगली जानवर प्राकृतिक प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे पर्यावरण की स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारा पारिस्थितिकी तंत्र वन्यजीवों द्वारा प्रदान की जाने वाली विविधता और प्रचुरता के बिना अधूरा होगा।
i) अपने औषधीय गुणों के कारण, जंगली पौधे हमारी फार्मास्युटिकल आवश्यकताओं ं का एक तिहाई से अधिक हिस्सा पूरा करते हैं। चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य दवाओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकताओं के अलावा, वन चिकित्सा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सफलताओं के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएं प्रदान करते हैं।
ii) वैश्विक तापमान को बनाए रखकर समुद्र के स्तर को तेजी से बढ़ने से रोककर और ग्रीनहाउस प्रभाव का मुकाबला करके हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य में योगदान देता है।
iii) पारिस्थितिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए पौधों और जानवरों की परस्पर निर्भरता महत्वपूर्ण है।
iv) आर्थिक मूल्यः जंगलों से जीवाश्म ईंधन का उपयोग देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देता है, जिसके परिणामस्वरूप इसके नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
v) हजारों प्रजातियाँ इन विशाल जंगलों में आश्रय पाती हैं, जो जैव विविधता के संरक्षण मे ं सहायता करती हैं।
vi) वन्यजीवों में सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण को बढ़ावा मिलता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
पर्यावरण और वन्य जीवन का संरक्षण, सुधार, वन्यजीव अभयारण्यों/राष्ट्रीय उद्यानो ं का निर्माण, तथा वन्यजीव आवास का संवर्धन, सभी इस योजना का हिस्सा हैं, जिसका अंतिम लक्ष्य लुप्तप्राय पक्षियों और पशु प्रजातियों को बचाना है।
हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग (क्म्ैज्-ब्ब्) पर्यावरण प्रबंधन की प्रभावशीलता में सुधार, कमजोर पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और दीर्घकालिक स्थिरता को बढ़ावा देकर सतत विकास को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी मामलों के लिए प्राथमिक और नोडल एजेंसी के रूप में, विभाग पर्यावरणीय चुनौतियों और जलवायु लचीलेपन को संबोधित करने के लिए नीतियों को आकार देने और लागू करने में केंद्रीय भूमिका निभाता है। इसके प्रयासो ं में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण और सभी क्षेत्रों मे ं पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने सहित गतिविधियों का एक व्यापक दायरा शामिल है। विभाग जलवायु परिवर्तन पर राज्य और राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय निकायों के बीच एक महत्वपूर्ण सेतु के रूप मे ं कार्य करता है, यह सुनिश्चित करता है कि राज्य-स्तरीय रणनीतियाँ वैश्विक प्रतिबद्धताओं और सर्वाेत्तम प्रथाओं के साथ संरेखित हों। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अभिनव समाधानों को एकीकृत करके, प्रदूषण को कम करने, पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने और जलवायु प्रभावों के लिए सामुदायिक लचीलापन बनाने की पहल करता है, जिससे हिमाचल प्रदेश पर्यावरणीय प्रबंधन और सतत विकास में अग्रणी बन जाता है।
विभाग की पहल - हिमाचल प्रदेश को क्षरण और आर्थिक विकास के बीच परस्पर क्रिया के कारण पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वायु, भूमि, जल और जैव विविधता प्रभावित हो रही है। इस समस्या से निपटने के लिए, पर्यावरण प्रदूषण, जलविद्युत, पर्यटन, उद्योग और ग्रामीण विकास जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए नीतियाँ बना रहा है, जिसका उद्देश्य आर्थिक विकास को टिकाऊ पर्यावरण प्रबंधन के साथ संतुलित करना है। राज्य मे ं ग्रामीण आबादी के विकास एवं सशक्तिकरण के लिए मुख्यमंत्री हरित विकास छात्रवृत्ति योजना के लिए व्यापक दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं।
विभाग ने जिला स्तर पर जलवायु परिवर्तन कार्य योजनाओं की तैयारी शुरू कर दी है। इन योजनाओं को पंचायत स्तर पर क्रियान्वित किया जाएगा। विभाग ने कृषि एवं बागवानी क्षेत्रों के सतत विकास के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार तथा जी.आई.जेड. के सहयोग से आवश्यकता मूल्यांकन अध्ययन (एन.ए.एस.) शुरू किया है।
राज्य में अवैज्ञानिक एवं अवैध खनन को रोकने के लिए जी.आई.एस. आधारित एप्लीकेशन विकसित करने के लिए ₹2.0 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसकी सहायता से राज्य मे ं होने वाली खनन गतिविधियों पर वास्तविक समय के आधार पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी।
भौगोलिक संकेत (जी.आई.) को बढ़ावा देने के लिए राज्य में योजना शुरू करने के लिए केंद्र सरकार को अनुमोदन हेतु प्रस्ताव भेजा गया है, जिसके माध्यम से वाणिज्यिक उत्पादों की जी.आई.टैगिंग की जाएगी, ताकि उत्पादकों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उनके उत्पादो ं का उचित मूल्य मिल सके।
प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन - हिमाचल प्रदेश गैर-जैवनिम्नीकरणीय कचरा (नियंत्रण) अधिनियम, 1995 के अन्तर्गत पूरे राज्य में पॉलीथीन प्रतिबंध को सख्ती से लागू किया गया है। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, राज्य भर के कई विभागों के अधिकारियों को प्लास्टिक और थर्मा ेकोल वस्तुओं का उपयोग करने वालों का निरीक्षण करने और उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाने के लिए अधिकृत किया गया है। 2024-25 के दौरान राज्य मे ं अब तक 907 उल्लंघनकर्ताओं पर ₹11.80 लाख का जुर्माना लगाया गया है।
प्लास्टिक अपशिष्ट वापस खरीद नीति के अन्तर्गत वर्ष 2024-25 के दौरान ₹75 प्रति किलोग्राम की दर से लगभग 29,385.10 किलोग्राम प्लास्टिक खरीदा गया है और व्यक्तियों तथा कूड़ा बीनने वालों को ₹13.04 लाख का भुगतान किया गया है। कूड़ा बीनने वालों तथा व्यक्तियो ं द्वारा जमा किए गए प्लास्टिक कचरे के बदले मौके पर भुगतान के लिए नगर निगम शिमला को ₹2.00 लाख की राशि की गई है।
पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार - पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक प्रमुख पहल, हिमाचल प्रदेश पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार योजना का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के लिए अनुकरणीय योगदान को मान्यता देना और सम्मानित करना है। इस वर्ष, अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अभिनव कार्यों और उपलब्धियों का जश्न मनाते हुए सात पुरस्कार प्रदान किए गए। पुरस्कार उन व्यक्तियों, संगठनों और संस्थानों को उजागर करते हैं जिन्होंने स्थायी प्रथाओं, संसाधन संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के लिए उत्कृष्ट प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है।
आदर्श पर्यावरण ग्रामों का निर्माण - हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग मॉडल इको विलेज योजना को सक्रिय रूप से लागू कर रहा है, जो टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल जीवन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक अग्रणी पहल है। मॉडल इको विलेज योजना राज्य के 19 गांवो ं मे ं लागू की जा रही है। योजना को लागू करने के लिए ₹3.32 करोड़ की धनराशि आबंटित की गई है।
अनुसंधान एवं विकास (आर.डी.) परियोजनाएं - हिमाचल प्रदेश विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास परियोजना पहल के अन्तर्गत नवाचार को बढ़ावा देने और अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत करने के लिए विभाग राज्य के शैक्षणिक संस्थानों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और अन्य मान्यता प्राप्त अनुसंधान एवं विकास संगठनो ं को वित्त पोषित कर रहा है। इस योजना के तहत 100 अनुसंधान एवं विकास परियोजना प्रस्ताव प्रस्तुत किए गए, जिनमें से दो परियोजनाओं को कार्यान्वयन के लिए मंजूरी दे दी गई है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन और मंजूरी - पर्यावरण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग पर्यावरण प्रभाव आकलन (ई.आई.ए.) के प्रबंधन और पर्यावरण मंजूरी देने के लिए राज्य स्तरीय सचिवालय के रूप मे ं कार्य करता है, जो पर्यावरण संरक्षण के साथ विकासात्मक गतिविधियों को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपने अध्यादेश के हिस्से के रूप में, विभाग यह सुनिश्चित करता है कि प्रस्तावित परियोजनाएँ अपने संभावित पर्यावरणीय प्रभावों और स्थिरता मानदंडों के अनुपालन का आकलन करने के लिए एक कठोर और पारदर्शी मूल्यांकन प्रक्रिया से गुज़रें। वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, विभाग ने पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण, हिमाचल प्रदेश के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में फैली 38 परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पर्यावरण मंजूरी प्रदान की।
जलवायु परिवर्तन पहल - हिमाचल प्रदेश राज्य को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा ग्रामीण भारत में जलवायु अनुकूलन एवं वित्त पोषण (सी.ए.एफ.आर.आई.) पर जी.आई.जेड. द्विपक्षीय परियोजना के अंतर्गत चुना गया है। वर्ष 2023 से 2026 के बीच राज्य के सूखाग्रस्त एवं जलवायु परिवर्तन वाले क्षेत्रों की लगभग 5,000 महिला किसानों के लिए अनुकूलन क्षमता विकास पर लगभग 10 मिलियन यूरो खर्च किए जा रहे हैं।
जी.आई.जेड. ने जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (एस.ए.पी.सी.सी. 2.0) के अंतर्गत कृषि/बागवानी मिशन एवं जल मिशन के क्रियान्वयन के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार को तकनीकी सहायता प्रदान की है। इस संबंध मे ं दिसंबर 2024 के महीने में हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर मे ं हितधारक परामर्श का आयोजन किया गया।
हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) की स्थापना वर्ष 1986 में हिमाचल प्रदेश राज्य में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण से संबंधित नीतियों के निर्धारण, कार्यक्रमों की निगरानी और कार्यान्वयन, प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण, जागरूकता, लोकप्रियकरण, अनुसंधान, विकास और प्रसार के लिए ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए की गई थी।
राजीव गांधी पत्ती प्लेट (पत्तल) और अन्य बायोडिग्र ेडेबल के अनुसंधान एवं विकास के लिए केंद्र - उपयुक्त प्रौद्योगिकी केंद्र, शाहपुर, कांगड़ा में स्थापित और संचालित, यह पहल स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) और ग्रामीण समुदायों को पर्यावरण के अनुकूल पत्तल बनाने की तकनीकों में प्रशिक्षण देने पर केंद्रित है। हिमाचल प्रदेश पर्यावरण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा समर्थित, यह प्लास्टिक के लिए टिकाऊ विकल्प प्रदान करता है, आजीविका को बढ़ावा देता है और अपनी शुद्धता और स्वास्थ्य लाभों के लिए पहचाने जाने वाले पारंपरिक प्रथाओं को पुनर्जीवित करता
ड्रोन आधारित संपत्ति कर निर्धारण - आर्यभट्ट भू-सूचना विज्ञान और अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र ने संपत्ति की सीमाओं का मानचित्रण करने, अपंजीकृत विकास की पहचान करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए जी.आई.एस. क्षमताओं वाले ड्रोन पेश किए। सोलन नगर निगम में पायलट किए गए इस नवाचार ने कर राजस्व मे ं उल्लेखनीय वृद्धि की और शासन में सुधार किया, साथ ही राज्य-व्यापी विस्तार और एल.आई.डी.ए.आर. के संभावित उपयोग की योजना बनाई।
हिमाचल प्रदेश बाल विज्ञान कांग्र ेस - समग्र शिक्षा और शिक्षा विभाग के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में 12 जिलों के 21,973 छात्रों ने क्विज़, गणितीय ओलंपियाड और स्किट जैसी गतिविधियों मे ं भाग लिया। जिला स्तर के विजेता राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में आगे बढ़ेंगे।
भौगोलिक संकेत (जी.आई.) की सुविधा- एचपी पेटेंट सूचना केंद्र ने 400 से अधिक जी.आई. उपयोगकर्ताओं के पंजीकरण की सुविधा प्रदान की और चंबा चुख, भौत जौ और प्लेक्ट्रैन्थस शहद जैसे उत्पादों के लिए आवेदनो ं को अंतिम रूप दिया।
जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन गतिविधियाँ - हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने जैव विविधता प्रबंधन समितियों (बी.एम सी.) और लोगों के जैव विविधता रजिस्टर (पी.बी.आर.) के डिजिटलीकरण के माध्यम से संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाया, जिसमें 3,775 से अधिक पी.बी.आर. तैयार या अद्यतन किए गए। संसाधनो ं तक पहु ंच को सुचारू बनाने के लिए जैव विविधता अधिनियम, 2002 के अंतर्गत पहु ंच और लाभ साझाकरण (ए.बी.एस.) की शक्तियां प्रभागीय वन अधिकारियों को सौंपी गईं।
संरक्षण और जागरूकता अभियान - पर्यावरण जागरूकता को विश्व पर्यावरण दिवस 2024 जैसे राज्य-व्यापी समारोहों के माध्यम से बढ़ाया गया, जिसमें अभियान, प्रतियोगिताएं और सामुदायिक भागीदारी, आद्र्रभूमि बचाओ अभियान,संवेदनशीलता कार्यक्रम और सफाई अभियान शामिल थे, जिसमें 160,000 से अधिक व्यक्तियों को शामिल किया गया। राष्ट्रीय प्रकृति शिविर कार्यक्रम और विश्व ओजोन दिवस कार्यक्रमों जैसी शैक्षिक पहलों ने व्यावहारिक शिक्षण अनुभव प्रदान किए।
वेटलैंड्स फॉर लाइफ फिल्म फेस्टिवल और फोरम - 30 अगस्त, 2024 को शिमला के होटल पीटरहॉफ में माननीय मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन किया गया, जिसमें कई प्रभावशाली लघु फिल्में दिखाई गईं। भ्प्डब्व्ैज्म् हिमाचल प्रदेश राज्य वेटलैंड प्राधिकरण और ब्ण्डण्ैण् नई दिल्ली द्वारा आयोजित इस फेस्टिवल में वेटलैंड्स के संरक्षक के रूप में महिलाएं दिखाई गई।
केंद्र सरकार द्वारा 15 अगस्त, 2019 को शुरू किया गया जल जीवन मिशन, वर्ष 2024 तक भारत के प्रत्येक ग्रामीण घर मे ं कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (थ्भ्ज्ब्) प्रदान करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए समर्पित है। इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए अनुमानित राष्ट्रव्यापी लागत ₹3.60 लाख करोड़ है। यह मिशन घरेलू स्तर की सेवा प्रणाली स्थापित करने पर केंद्रित है, जो निर्धारित गुणवत्ता पर पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जिसका लक्ष्य प्रति व्यक्ति प्रति दिन 55 लीटर है। हिमाचल प्रदेश में कुल 17.09 लाख ग्रामीण परिवारों मे ं से, 7.63 लाख परिवारो ं के पास जल जीवन मिशन (श्रश्रड) के शुरू करने पहले ही कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (थ्भ्ज्ब्) थे। हिमाचल प्रदेश में शेष 9.46 लाख ग्रामीण परिवारों को जे.जे.एम. के अन्तर्गत कवर किया गया है और वर्तमान में राज्य ने ग्रामीण परिवारों को 100 प्रतिशत एफ.एच.टी सी. प्रदान करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है, जबकि राष्ट्रीय औसत 79.56 प्रतिशत है।
- 8.6.1 ग्रामीण जलापूर्ति योजनाएँ जे.जे.एम. के अन्तर्गत ₹6033.21 करोड़ आवंटित किए गए हैं (भारत सरकार का हिस्सा 5429.90 करोड़ और राज्य का हिस्सा ₹603.31 करोड़) जिसमे ं से ₹5167.00 करोड़ प्राप्त हुए हैं। अब तक ₹5154.04 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। वर्ष 2024-25 के लिए वार्षिक कार्य योजना ₹2042.40 करोड़ के लिए भारत सरकार को प्रस्तुत की गई है और भारत सरकार ने राज्य के लिए ₹916.53 करोड़ का आवंटन किया है, जिसके समकक्ष राज्य को अब तक ₹137.48 करोड़ की पहली किस्त प्राप्त हुई है, जिसमें राज्य का हिस्सा ₹15.27 करोड़ है।
जल जीवन मिशन के अन्तर्गत भारी वर्षा के कारण क्षतिग्रस्त योजनाओं की बहाली के लिए ₹96 करोड़ की फ्लेक्सी फंड राशि खर्च की गई। भारत सरकार द्वारा लाहौल एवं स्पीति, कुल्लू, किन्नौर और चंबा जिलों के लिए ₹517.16 करोड़ की लागत की 67 एंटीफ्रीज जलापूर्ति योजनाओं को मंजूरी दी गई है।
हैंडपंप कार्यक्रम - सरकार के पास गर्मी के मौसम में पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में हैंडपंप उपलब्ध कराने के लिए एक सक्रिय कार्यक्रम है। दिसंबर, 2024 तक कुल 41,835 हैंडपंप लगाए जा चुके हैं।
शहरी जलापूर्ति योजनाएँ - जल शक्ति विभाग 58 कस्बों/ शहरी स्थानीय निकायों के लिए जलापूर्ति व्यवस्था का प्रबंधन करता है। शिमला शहर के लिए जलापूर्ति का प्रबंधन शिमला जल प्रबंधन निगम द्वारा किया जाता है, जबकि परवाणू शहर के लिए जलापूर्ति का प्रबंधन हिमुडा द्वारा किया जाता है।
46 कस्बों मे ं शहरी मानदंडों के अनुसार जलापूर्ति प्रदान की जा रही है और अमृत 2.0 के अन्तर्गत 7 कस्बों (चंबा, डलहौजी, मंडी, सुन्नी, ठियोग, रामपुर और राजगढ़) मे ं जलापूर्ति मे ं और सुधार किया जा रहा है। शहरी मानदंडों से नीचे जलापूर्ति वाले 12 कस्बों में से 6 कस्बों यानी हमीरपुर, बैजनाथ, जवाली, अंब, नेरचैक और शाहपुर में राज्य मद मे ं अमृत 2.0 के अन्तर्गत शहरी मानदंडो ं के अनुसार जलापूर्ति योजनाओं में सुधार का कार्य प्रगति पर है। करसोग शहर के लिए प्रशासनिक अनुमोदन और व्यय मंजूरी नाबार्ड के तहत दी गई है और निरमंड के लिए अमृत 2.0 के अन्तर्गत और शेष शहरों के लिए शहरी मानदंडों के अनुसार जलापूर्ति योजनाओं के सुधार के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जा रही है।
शहरी क्षेत्र में सीवरेज योजनाएँ - शिमला शहर की सीवरेज व्यवस्था शिमला जल प्रबंधन निगम (एस.जे.पी.एन.एल.) के पास है। जल शक्ति विभाग ने 39 कस्बों मे ं सीवरेज सुविधा प्रदान की है और 97.303 एम.एल.डी. क्षमता के 66 एस.टी.पी. स्थापित किए हैं, जिनमें 59.477 एम.एल.डी. का सीवेज प्रवाह है।
वह शहर सीवरेज सुविधा नहीं है, 6 कस्बों (भोटा, संतोखगढ़, तलाई, बैजनाथ-पपरोला, नेरचैक और बंजार) मे ं सीवरेज योजनाओं के निर्माण का कार्य प्रगति पर है। 4 कस्बों (नेरवा, चैपाल, राजगढ़, शाहपुर) में सीवरेज प्रणाली उपलब्ध कराने के लिए प्रशासनिक स्वीकृति और व्यय मंजूरी राज्य मद के अंतर्गत दी गई है और बिलासपुर शहर के लिए इसे ई.ए.पी. (ए.एफ.डी.) के अंतर्गत प्रदान किया गया है तथा 9 कस्बों के प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं और उन्हें राज्य मद या बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं (ई.ए.पी.) के अंतर्गत वित्त पोषण के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्र में सीवरेज योजनाएँ - विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में सीवरेज योजनाओं का क्रियान्वयन शुरू कर दिया है। वर्तमान में 8 ग्रामीण क्षेत्रों में सीवरेज सुविधा आंशिक रूप से प्रदान की गई है, अर्थात शारबो (रिकांगपिओ), झाकड़ी, कुनिहार, सांगला (चरण-प्प् और प्प्प्), चिंतपूर्णी (जोन-प्, हड़सर, मढ़ी (मनाली) और सन्धोल (चरण- प्प्) जिनकी वर्तमान सीवरेज प्रवाह 2.61 एम.एल डी. और जिसकी स्थापित क्षमता 4.30 एम.एल.डी. है तथा 16 ग्रामीण क्षेत्रों में सीवरेज योजना का कार्य प्रगति पर है।
इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों मे ं सीवरेज योजनाओं को भी नाबार्ड के तहत विधायक प्राथमिकता के तहत वित्त पोषण के लिए शामिल किया गया है। आज तक नाबार्ड के अन्तर्गत ₹295.06 करोड़ की राशि की 19 सीवरेज योजनाओं को मंजूरी दी गई है। 5 सीवरेज योजनाएं (1. तकलेच, तहसील रामपुर, जिला शिमला 2. ग्राम पंचायत बरंडा तहसील नूरपुर जिला कांगड़ा 3. ग्राम पंचायत छतराड़ी तहसील व जिला चंबा 4. रेहन जिला कांगड़ा क्षेत्र के लिए सीवरेज और एस.टी.पी. के साथ रेहन क्षेत्र के लिए जलापूर्ति योजनाओं का विस्तार 5. ग्राम पंचायत उदयपुर खास तहसील जिला चंबा) शुरू कर दी गई है।
कमान क्षेत्र विकास - वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान, हिमाचल प्रदेश सरकार ने लघु सिंचाई योजनाओं में हिमाचल प्रदेश कमांड एरिया डेवलपमे ंट (भ्प्डब्।क्) गतिविधियों के लिए 60.06 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, ताकि निर्मित और उपयोग की गई क्षमता के बीच अंतर को पाटा जा सके, और शेष राज्य में प्रमुख/मध्यम और लघु सिंचाई योजनाओं के लिए भी, जिसमें केंद्रीय हिस्सा भी शामिल है। ब्।क् संचालन को पूरा करने के लिए 2,740.00 हेक्टेयर खेती योग्य कमांड एरिया (ब्ब्।) को कवर करने के भौतिक लक्ष्य में से, अक्टूबर, 2024 तक 1,002.01 हेक्टेयर भूमि को ₹11.93 करोड़ की लागत से कवर किया गया है।
सिंचाई - हिमाचल प्रदेश में कुल 5.567 मिलियन हेक्टेयर भूमि है, लेकिन केवल 0.583 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर ही खेती की जाती है। अनुमान है कि राज्य की सिंचाई क्षमता लगभग 0.335 मिलियन हेक्टेयर है। 0.050 मिलियन हेक्टेयर भूमि को प्रमुख और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से सिंचित किया जा रहा है, जबकि शेष 0.285 मिलियन हेक्टेयर भूमि को लघु सिंचाई योजनाओं के माध्यम से सिंचित किया जा सकता है। अक्टूबर 2024 तक कुल 0.309 मिलियन हेक्टेयर भूमि सिंचित है।
i) प्रमुख सिंचाई कांगड़ा जिले में शाहनहर परियोजना राज्य की एकमात्र महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है। परियोजना के पूरा होने के साथ ही 15,287 हेक्टेयर भूमि के लिए सिंचाई बुनियादी ढांचा उपलब्ध हो गया है। अक्टूबर 2024 तक, ब्।क् टीम ने कुल 15,287 हेक्टेयर में से 10,042 हेक्टेयर भूमि को ब्।क् संचालन के अंतर्गत लाया।
ii) मध्यम सिंचाई बल्ह घाटी लेफ्ट बैंक सिंचाई परियोजना 2,780 हेक्टेयर भूमि को कवर करती है, सिद्धाथा कांगड़ा सिंचाई परियोजना 3,150 हेक्टेयर भूमि को कवर करती है, और चंगर क्षेत्र बिलासपुर सिंचाई परियोजना 2,350 हेक्टेयर भूमि को कवर करती है। अक्टूबर 2024 तक, सिद्धाथा क्षेत्र में 2,705 हेक्टेयर भूमि को शामिल करने के लिए ब्।क् प्रयासों का विस्तार किया गया है। फीना सिंह कल्टीवेटेड कमांड क्षेत्र 4,205 हेक्टेयर है, जबकि जिला हमीरपुर में नादौन क्षेत्र 2,980 हेक्टेयर है, दोनो ं ही मध्यम स्तर की सिंचाई परियोजना के हिस्से के रूप मे ं विकास के दौर से गुजर रहे हैं।
iii) लघु सिंचाई वित्त वर्ष 2024-25 में 6,275.00 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए सिंचाई बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए 810.00 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं और अक्टूबर 2024 तक 2,577.88 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने के लिए ₹114.79 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। निष्कर्षः हिमाचल प्रदेश में 37,948 वर्ग किलोमीटर (68.16 प्रतिशत) वन भूमि है। राज्य का वास्तविक वन क्षेत्र 15,580.33 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें बहुत घने, मध्यम घनेे तथा खुले वन शामिल है ं। वानिकी क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जिसका वित्त वर्ष 2024-25 में अनुमानित सकल राज्य मूल्य वर्धन (जी.एस.वी.ए.) 6,724 करोड़ है। विभिन्न सरकारी पहलों में वन रोपण, प्रबंधन और संरक्षण पर ध्यान शामिल है, जिसमें मुख्यमंत्री वन विस्तार योजना और वन मित्र जैसी योजनाएं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना और विश्व बैंक समर्थित पहलों का उद्देश्य वन क्षेत्र, जैव विविधता और आजीविका को बढ़ाना है। टिकाऊ वानिकी, प्रकृति-उन्मुख पर्यटन और वन्यजीव संरक्षण के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता इसकी पर्यावरणीय और आर्थिक लचीलेपन को मजबूत करती है।
राज्य सरकार ने प्रदूषण, जैव विविधता हानि और जलवायु परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने एवं सतत विकास के लिए विभिन्न पहल की हैं। राज्य के प्रमुख प्रयासों में आदर्श इको विलेज योजना, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन कार्य योजनाएं और पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को समर्थन देना शामिल है।

9.उद्योग

हिमाचल प्रदेश उल्लेखनीय रूप से कृषि से उद्योग और सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया है। राज्य की अर्थव्यवस्था ने राज्य जी.एसडी.पी. में द्वितीयक क्षेत्र के योगदान के साथ एक लंबी छलांग लगाई है जो 1950-51 में 7 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 42.4 प्रतिशत हो गया है। प्रारंभिक युग में, हिमाचल प्रदेश में मोहन मीकिन्स, साल्ट माइन्स, नूरपुर सिल्क, पालमपुर सहकारी चाय फैक्ट्री आदि जैसे कुछ ही उद्योग थे। आज, हिमाचल अपनी औद्योगिक उन्नति मे ं कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों का दावा करता है। जिनमें फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफ.एम.सी.जी.) और खाद्य प्रसंस्करण, सीमे ंट, ऑटो और इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स आदि क्षेत्रों में प्रदर्शन और उपलब्धियों ने राज्य को औद्योगिक प्रगति पर ला दिया है।
औद्योगिक पैकेज 2003 के परिणामस्वरूप एक परिवर्तनकारी पहल हुई जिसने प्रमुख उद्योगों को सोलन, सिरमौर और ऊना जिलों में आकर्षित किया, जिससे राज्य के औद्योगिक परिदृश्य को नया आकार मिला।
हिमाचल प्रदेश फार्मास्युटिकल विनिर्माण के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा है, जिसमें 600 से अधिक परिचालन फार्मास्युटिकल इकाइयाँ हैं, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा फॉर्मूलेशन हब बनाती है। राज्य ने ₹19,185 करोड़ (₹1,91,850.40 मिलियन) की निर्यात क्षमता और लगभग 40 देशों तक फैले व्यापार से स्वंय को एक प्रमुख सीमेंट उत्पादक और निर्यात के ंद्र के रूप में भी स्थापित किया है। इससे इस अध्याय मे ं चर्चा का संदर्भ तैयार होता है।
- 9.1.1 हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक परिदृश्यः हिमाचल प्रदेश मुख्य रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ई.) संचालित राज्य है, जिसके 95 प्रतिशत उद्योग एम.एस.एम.ई. श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। यह क्षेत्र राज्य के औद्योगिक परिदृश्य की रीढ़ है, जो रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। सहायक पारिस्थितिकी तंत्र एम.एस.एम.ई. के निरंतर विकास और विस्तार को सुनिश्चित करता है।
औद्योगीकरण का स्नैपशॉटः-
i)बल्क ड्रग पार्क, जिला ऊनाः भारत सरकार द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित यह आगामी बल्क ड्रग पार्क परियोजना 1405 एकड़ भूमि में फैली हुई है, जिसकी कुल परियोजना लागत ₹2071 करोड़ है। योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार ₹1,000 करोड़ भारत सरकार के अनुदान का हिस्सा होगा और इस अनुदान से अधिक पू ंजीगत व्यय राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। हाल ही मे ं, वित्तीय वर्ष के लिए राज्यांश के रूप मे ं ₹250 करोड़ की राज्य मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है। इस परियोजना में अनुमानित निवेश ₹8,000 से ₹10,000 करोड़ और रोजगार क्षमता 40,000 व्यक्तियों की है।
ii)निवेश परिदृश्यः पोस्ट कोविड के बाद विनिर्माण क्षेत्र की बदलती गतिशीलता के साथ-साथ चीन के द्वारा पैदा किऐ गए घटना क्रम को ध्यान में रखते हुए, राज्य ‘‘आमंत्रण के माध्यम से उद्योग‘‘ दृष्टिकोण का पालन करके राज्य में औद्योगीकरण की गति को तेज करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में, माननीय उद्योग मंत्री के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दो वर्षों के दौरान दुबई और मुंबई में संभावित निवेशकों के साथ बातचीत की। परिणामस्वरूप ₹2,500 करोड़ की राशि के प्रतिबद्धता ज्ञापन (एम.ओ.सी.) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
1) 2023 में भारी वर्षा और बाढ़ और अन्य कारणों से हुई गड़बड़ी के बावजूद, राज्य ने 30,000 लोगों को रोजगार देने की क्षमता वाली ₹9,800 करोड़ रुपये के निवेश वाली 450 से अधिक औद्योगिक परियोजनाओं को मंजूरी दी है।
2) सरकार. ने निवेश आकर्षित करने के लिए हरित ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, सौर, इथेनॉल, डेयरी और इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्रों की भी पहचान की है।
iii)हिमाचल प्रदेश में निर्यात परिदृश्यः हिमाचल प्रदेश ने अपनी निर्यात क्षमता में वृद्धि देखी है, जो 2003 में ₹550 करोड़ से बढ़कर 2023-24 में ₹19,185 करोड़ हो गई है। लगभग ₹10,000 करोड़ के वार्षिक फार्मा निर्यात के साथ, जो राज्य के कुल निर्यात का 60 प्रतिशत और उत्तरी क्षेत्र के निर्यात का 45 प्रतिशत है, राज्य में फार्मा क्षेत्र का महत्व पूर्ण रूप से स्पष्ट है।
iv)निवेश आकर्षित करने के लिए नीतिगत सुधारः सरकार ने निम्नलिखित प्रमुख औद्योगिक नीति सुधारो ं को अपनाया है।
1) डेटा केंद्रों सहित आई.टी. पार्क।
2) साहसिक पर्यटन सहित पर्यटन और संबद्ध गतिविधियाँ,
3) स्वास्थ्य, आयुष और कल्याण केंद्र,
4) शैक्षणिक संस्थान,
5) एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप/आवास परियोजनाएं/रियल एस्टेट/एकीकृत आवासीय/श्रमिक छात्रावास आदि।
6) विनिर्माण और एकीकृत सेवा क्लस्टर से संबंधित सभी आकस्मिक सेवाएं।
7) शुद्ध एस.जी.एस.टी. छूटः शुद्ध एस.जी.एस.टी. प्रतिपूर्ति (स्टील विनिर्माण को छोड़कर) के लिए निश्चित पू ंजी निवेश सीमा को अधिकतम तक बढ़ा दिया गया है। ए, बी और सी श्रेणी में 7 से 10 वर्षों की अवधि के लिए एफ.सी.आई. की 100 प्रतिशत, जबकि एंकर इकाइयों के लिए इस एफ.सी.आई. सीमा को बी और सी श्रेणी में 10 वर्षों के लिए 250 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है।
v) 9.1.2.5 एम.एस.एम.ई. प्रदर्शन (आर.ए.एम.पी.) को बढ़ाना और तेज करनाः इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि राज्य औद्योगिक दृष्टिकोण से एम.एस.एम.ई. राज्य है क्यो ंकि 95 प्रतिशत उद्योग एम.एस.एम.ई. श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। राज्य ने रुपये का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। आर.ए.एम.पी. योजना के तहत विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में एम.एस.एम.ई. को मजबूत करने के लिए ₹1,642 करोड़, एम.एस.एम.ई. मंत्रालय, भारत सरकार ने प्रदान किए। एम एस.एम.ई. पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाने के लिए ₹109.34 करोड़ अनुमोदित अनुशंसाओं के कार्यान्वयन पर कार्य प्रगति पर है।
vi)व्यवसाय करने में आसानीः पिछले दो वर्षों में निम्नलिखित पहल की गई हैं।
1) 120 से अधिक अंतरविभागीय सेवाओं को सिंगल विंडो पोर्टल पर एकीकृत किया गया है।
2) न्यूनतम भूमि नुकसान के साथ-साथ ऊर्ध्वाधर स्थानों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, भवन विनियम मानदंडों को उदारतापूर्वक तौर पर छुट दी गई है। ताकि आवंटित भूखंड का लगभग 70 प्रतिशत विनिर्माण सुविधा के लिए उपयोग किया जा सके। इसी तरह, फ्लोर एरिया रेशियो (एफ.ए.आर.) में भी काफी बढ़ोतरी की गई है।
vii)औद्योगीकरण के लिए भूमि बैंकः राज्य सरकार निवेशकों के लिए बुनियादी सुविधाओं से सुसज्जित नए औद्योगिक क्षेत्र और एस्टेट स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में राज्य सरकार निम्नलिखित बड़े/सूक्ष्म-औद्योगिक क्षेत्रों को अधिसूचित किया गया।
1) औद्योगिक क्षेत्र भोरंज, जिला, हमीरपुर।
2) औद्योगिक क्षेत्र नैनोवाल, जिला, सोलन।
3) औद्योगिक क्षेत्र सलूरी, जिला, ऊना।
4) औद्योगिक क्षेत्र भदरोग, घुमारवीं, जिला, बिलासपुर।
5) औद्योगिक क्षेत्र थेड़ा, तहसील बद्दी, जिला, सोलन।
उपरोक्त के अलावा, मंझौली और धबोटा मे ं 1,000 बीघे की सरकारी भूमि का हस्तांतरण अंतिम अनुमोदन के चरण में है।
viii)पीएम विश्वकर्मा योजना-हिमाचल प्रदेशः राज्य सरकार कारीगरों और शिल्पकारों को कौशल सहायता के साथ-साथ वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार की पी.एम. विश्वकर्मा योजना लागू कर रही है। लगभग 6,000 कारीगरों और शिल्पकारों को कौशल प्रशिक्षण और टूलकिट के माध्यम से लाभान्वित किया गया है, जिससे वे योजना के अन्तर्गत वित्तीय सहायता प्राप्त करने के पात्र बन गए है ं।
ix)स्व-रोजगार उद्यमों के लिए प्रोत्साहनः राज्य में बेरोजगारी की चुनौतियों का समाधान करने के लिए, सरकार युवाओं को अपना उद्यम स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पिछले दो वर्षों में कई पहल की हैं।
1)मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना (एम.एम.एस.वाई.)ः पिछले दो वर्षों के दौरान, ₹300 करोड़ के निवेश वाले स्व-रोजगार उद्यमो ं के 1,381 मामले स्वीकृत किए गए, जिनमें 3,869 व्यक्तियो ं को रोजगार मिलने की संभावना है। 1,381 आवेदकों में से 1,184 ने ₹284 करोड़ के कुल निवेश के साथ अपने स्वयं के उद्यम स्थापित किए हैं, जिससे 2,846 व्यक्तियों को रोजगार मिला है।
2) प्रधान मंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकीकरण(पी.एम.एफ.एम.ई.)ः इस योजना का उद्देश्य क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी, प्रारम्भिक पू ंजी और प्रशिक्षण कार्यक्रमो ं के माध्यम से सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों को मजबूत करना, सशक्त बनाना है। पिछले दो वर्षों के दौरान, ₹64.56 करोड़ की लागत के 972 मामले स्वीकृत किए गए हैं। प्रारम्भिक पू ंजी घटक के अन्तर्गत, 13,427 महिला स्वयं सहायता समूहों को ₹50.31 करोड़ की प्रारंभिक पू ंजी प्रदान की गई है।
x)खनन विंगः राज्य सरकार ने अवैध खनन पर अंकुश लगाने, वैज्ञानिक खनन को बढ़ावा देने और राज्य के खजाने में राजस्व उत्पन्न करने के लिए सख्त निवारक कदम उठाए हैं। पिछले साल रॉयल्टी और पेनल्टी से ₹315 करोड़ की कमाई हुई थी। हाल ही में, सरकार ने अवैध खनन पर अंकुश लगाने और वैज्ञानिक खनन को प्रोत्साहित करने के लिए ‘‘हिमाचल प्रदेश खनिज नीति-2024‘‘ नामक नई खनन नीति शुरू की है ताकि अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न हो सके। उम्मीद है कि इस वित्तीय वर्ष के दौरान ₹450 करोड़ की राजस्व आय उत्पन्न होगी।
xii)औद्योगिक नीतियों की मान्यताः
1) राज्य स्टार्टअप रैंकिंग 2023 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनकर्ता के रूप मे ं मान्यता प्राप्त।
2) 2024 में (ई.ओ.डी.बी.) आकांक्षी राज्य के रूप में उभरा।
3) सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करते हुए पी.एम एफ.एम.ई. योजना में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
राज्य औद्योगीकरण के संक्षिप्त संकेत निम्नानुसार हैंः
एम.एस.एम.ई. का संशोधित लक्षण वर्णन उनके विस्तार और उन्नति को बढ़ावा देने के लिए तैयार है। इस समायोजन से पैमाने की अर्थव्यवस्थाएं उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिससे उत्पादकता बढ़ ेगी, साथ ही यह सुनिश्चित होगा कि एम.एस.एम.ई. को विभिन्न सरकारी प्रोत्साहनो ं से लाभ मिलता रहे। यह ढांचा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने और एम.एस.एम.ई. के बीच अवरुद्ध विकास को रोकने के लिए तैयार किया गया है।
सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमो ं (एम.एस.एम.ई.) के लिए कारोबारी माहौल को बढ़ाने के लिए कई पहल लागू की हैं, जिसमें जुलाई, 2020 में उद्यम पंजीकरण पोर्टल की शुरुआत एक महत्वपूर्ण कदम है। पंजीकरण प्रक्रिया अब पूरी तरह से ऑनलाइन, डिजिटल और कागज रहित है, जो स्व-घोषणा पर निर्भर है। इस सुव्यवस्थित पंजीकरण प्रक्रिया ने लेन-देन के समय और लागत दोनों को कम करके एम.एस.एम.ई. के लिए व्यापार करने में आसानी में काफी सुधार किया है।
10 जनवरी, 2025 तक राज्य में 1,94,738 उद्यमों ने उद्यम पोर्टल पर पंजीकरण कराया है, जिनमे ं से 1,90,775 (97.96 प्रतिशत) सूक्ष्म, 3,571 (1.83 प्रतिशत) लघु और 392 (0.20 प्रतिशत) मध्यम उद्यम हैं। उद्यम पोर्टल पर पंजीकरण का जिला-वार डेटा सारणी 9.3 में सूचीबद्ध है।

xiii)एम.एस.एम.ई. प्रदर्शन को बढ़ाना और गति प्रदान करना (आर.ए.एम.पी.): सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एम.ओ.एम.एस.एम.ई.), भारत सरकार ने देश के एम.एस.एम.ई. पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना, यानी ष्एम.एस.एम.ई. प्रदर्शन को बढ़ाना (आर.ए.एम.पी.)ष् शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, विचारशीलता को प्रोत्साहित करना, प्रथाओ ं और प्रक्रियाओं में सुधार करना, बाजार पहु ंच बढ़ाना, हरित पहल को बढ़ावा देना, महिलाओं के स्वामित्व वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों को गारंटी बढ़ाना आदि द्वारा एम.एस.एम.ई. की कार्यान्वयन क्षमता और कवरेज को बढ़ाना है। यह योजना 2022-23 से 2026-27 की पांच साल की अवधि में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एम.ओ.एम.एस.एम.ई.) द्वारा कार्यान्वित की जा रही है।
उद्योग निदेशालय, हिमाचल प्रदेश ने सरकार को एस.आई.पी. (रणनीतिक निवेश योजना) प्रस्तुत की है। आर.ए.एम.पी. योजना के तहत भारत की। एस.आई.पी. को एम.ओ एम.एस.एम.ई. द्वारा अनुमोदित किया गया था, और अनुमोदित परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए ₹109.34 करोड़ का अनुदान स्वीकृत किया गया था।
औद्योगिक नीति 2019 में विजन स्टेटमेंट है, “आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों के पैमाने को बढ़ाने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना हिमाचल को निवेश के लिए पसंदीदा स्थलों में से एक बनाने के लिए औद्योगिक और सेवा क्षेत्रो ं का सतत विकास और संतुलित विकास सुनिश्चित करे ं”। 2022-23 में, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए एक अनुकूल औद्योगिक विकास वातावरण प्रदान करने के लिए औद्योगिक नीति 2019 को दिसंबर, 2022 से दिसंबर, 2025 तक बढ़ा दिया गया था। यह अपने लक्ष्यो ं को पूरा करने में मदद करेगा
i) कानूनों और प्रक्रियाओं के सरलीकरण, स्व-प्रमाणन को अपनाने और समस्त स्वीकृतियों (ई.ओ.डी.बी.) के तेजी से डिजिटलीकरण द्वारा व्यवसाय करने में आसानी सुनिश्चित होगी।
ii) एक नए औद्योगिक बुनियादी ढांचे का निर्माण या मौजूदा ढ़ांचे में सुधार, और एक निजी भूमि बैंक की स्थापना।
iii) विश्वसनीय, लागत प्रभावी बिजली का प्रावधान।
iv) राज्य द्वारा प्रदत्त प्रोत्साहनों, रियायतों और सुविधाओं के वितरण को सुव्यवस्थित करने से राज्य में निवेश को बनाए रखने और उसमें तेजी लाने में मदद मिल सकती है।
v) सभी स्तरों पर 80 प्रतिशत स्थायी हिमाचली को रोजगार की शर्त के साथ प्रोत्साहन, सुविधाएं और रियायतें प्रदान करना। नियमित आधार पर 80 प्रतिशत से अधिक स्थायी हिमाचली को रोजगार देने वाले उद्यमों को 50 प्रतिशत स्थायी हिमाचलियों के अतिरिक्त सृजित अतिरिक्त रोजगार पर प्रोत्साहन देना ।
vi) शुद्ध राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एस.जी.एस.टी.) छूटः शुद्ध एस.जी.एस.टी. प्रतिपूर्ति (स्टील विनिर्माण को छोड़कर) के लिए निश्चित पू ंजी निवेश सीमा को अधिकतम तक बढ़ा दिया गया है। ए, बी और सी श्रेणी में 7 से 10 वर्षों की अवधि के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) की 100 प्रतिशत, जबकि एंकर इकाइयों के लिए इस एफ.सी.आई. सीमा को बी और सी श्रेणी में 10 वर्षों के लिए 250 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है।
हिमाचल प्रदेश मे ं विनिर्माण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन को उत्प्रेरित करने के लिए, राज्य सरकार ने विकास के केंद्र बिंदु के रूप मे ं आठ प्रमुख उद्योगो ं की पहचान की है और उन्हें प्राथमिकता दी है। विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स के सेक्टर की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैंः
i) राज्य में 60 औद्योगिक क्षेत्र और 17 औद्योगिक एस्टेट हैं और यह 300 मिलियन से अधिक ग्राहकों (भारत की 25 प्रतिशत आबादी) तक बाजार पहु ंच प्रदान करता है। इसने निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से क्रेमिका फूड पार्क के विकास का समर्थन किया। प्रचुर मात्रा में कच्चे माल और बेहतर कनेक्टिविटी के साथ, राज्य सरकार और अधिक फूड पार्क के विकास की परिकल्पना करती है।
ii) राज्य मे ं विभिन्न स्थानो ं पर नए औद्योगिक पार्क प्रस्तावित किए गए हैं जैसे कांगड़ा में एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप और सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, संशोधित औद्योगिक बुनियादी ढांचा उन्नयन योजना (एम.आई.आई.यू.एस.) की मेगा फूड पार्क योजना के अन्तर्गत मेगा फूड पार्क, ऊना में मेगा टेक्सटाइल पार्क, अदुवाल मे ं बायोटेक्नोलॉजी पार्क, ऊना मे ं बल्क ड्रग पार्क, सोलन में मेडिकल डिवाइस पार्क, शिमला के मेहली में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क।
iii) बद्दी में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (एन.आई.पी ई.आर.) द्वारा सहायता प्राप्त एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला भी स्थापित करने का प्रस्ताव है। भारत में फार्मा मांग मे ं हिमाचल प्रदेश का योगदान 35 प्रतिशत है।
iv) जिला ऊना की हरोली तहसील में 1,405 एकड़ भूमि पर बल्क ड्रग पार्क विकसित किया जा रहा है। जिसकी अनुमानित लागत ₹2,071 करोड़ है।
v) राज्य मे ं निवेश प्रोत्साहन पहल ने ‘‘आमंत्रण के माध्यम से उद्योग‘‘ दृष्टिकोण के अन्तर्गत उल्लेखनीय गति प्राप्त की है, जिसके परिणामस्वरूप ₹2,500 करोड़ के समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) हुए हैं।
vi) वर्तमान मे ं, नालागढ़ तहसील के धबोटा और बीर प्लासी में 1,350 बीघा सरकारी भूमि औद्योगिक उपयोग के लिए हस्तांतरण के अंतिम चरण मे ं है।
सूक्ष्म एवं लघु उद्यम क्लस्टर विकास (एम.एस.ई.-सी.डी.पी.) योजना के अन्तर्गत आई.डी. क्लस्टरों की वर्तमान स्थितिः- तीन बुनियादी ढांचा विकास क्लस्टरों को भारत सरकार द्वारा अंतिम मंजूरी दे दी गई है। इन तीन आईडी परियोजनाओं की कुल लागत ₹32.35 करोड़ है। इसके अलावा, भारत सरकार ने इन परियोजनाओं के लिए ₹23.40 करोड़ की अनुदान सहायता(जी.आई.ए.) प्रदान की है। राज्य मे ं परियोजना की स्थिति नीचे सारणीबद्ध हैः

मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना (एम.एम.एस.वाई.)- हिमाचल प्रदेश के 18 से 45 वर्ष (महिलाओं के लिए 18 से 50 वर्ष) के वास्तविक युवाओं को आजीविका प्रदान करने के लिए राज्य सरकार ‘‘मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना‘‘ लागू कर रही है।
इस योजना के तहत लाभार्थी निम्नलिखित लाभ उठा रहे हैंः
i) महिलाओं और दिव्यांगजनों के नेतृत्व वाले उद्यमों को 35 प्रतिशत निवेश सब्सिडी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए 30 प्रतिशत और अन्य के लिए 25 प्रतिशत, संयंत्र और मशीनरी (या उपकरण) मे ं ₹60 लाख की अधिकतम सीमा तक, जिसकी कुल परियोजना लागत ₹1.00 करोड़ से अधिक न हो।
ii)60 लाख रुपये तक के ऋण पर 3 वर्ष के लिए 5 प्रतिशत की दर से ब्याज सब्सिडी।
iii) सी श्रेणी क्षेत्र में आई.ए./आई.ई. में औद्योगिक भूखंड, शेड, दुकाने ं केवल आवंटन के समय प्रचलित प्रीमियम के 25 प्रतिशत की दर पर आवंटित की जाएंगी।
iv) यदि कोई उद्यमी इस योजना के अन्तर्गत भूमि खरीदने का इरादा रखता है तो स्टांप शुल्क लागू दर का 3 प्रतिशत लिया जाएगा।
v) राज्य सरकार जमानत मुक्त ऋण प्रदान करने के लिए भारत सरकार के सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (सी.जी.टी.एम.एस.ई.) की गारंटी शुल्क के भुगतान पर किए गए वास्तविक शुल्क/व्यय की प्रतिपूर्ति कर रही है।
vi) इस योजना के अंतर्गत विनिर्माण क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य 103 पात्र सेवा गतिविधियों की सूची है।

राज्य खाद्य प्रसंस्करण मिशन (एस.एम.एफ.पी.) - एस.एम.एफ.पी. के अन्तर्गत्् कार्यान्वित की जा रही मुख्य योजनाएं, उनकी सहायता का पैटर्न और सहायता अनुदान की अधिकतम सीमा इस प्रकार हैः
i) विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफ.पी.आई.) के प्रौद्योगिकी उन्नयन/स्थापना/ आधुनिकीकरण में, इकाइयों को ₹75 लाख की अधिकतम सीमा के साथ 33.33 प्रतिशत अनुदान सहायता प्रदान की जाती है।
ii) कोल्ड चेन, मूल्य संवर्धन और संरक्षण बुनियादी ढांचे (गैर-बागवानी उत्पाद) में लगी इकाइयां ₹5 करोड़ की ऊपरी सीमा के साथ अनुदान सहायता के 50 प्रतिशत के लिए पात्र हैं।
iii) ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्रों/संग्रह केंद्रों को ₹2.50 करोड़ तक 75 प्रतिशत की अनुदान सहायता प्रदान की जाती है।
iv) मांस की दुकानों के आधुनिकीकरण के लिए ₹5 लाख तक 75 प्रतिशत की अनुदान सहायता प्रदान की जाती है।
v) रेफर वाहन की खरीद के लिए ₹50 लाख की अधिकतम सीमा के साथ 50 प्रतिशत की अनुदान सहायता प्रदान की जाती है।

मुख्यमंत्री स्टार्टअप/नवाचार परियोजनाएँ/नवीन उद्योग योजना - हिमाचल प्रदेश में एक बढ़ता हुआ स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जो ‘‘मुख्यमंत्री स्टार्टअप/नवाचार परियोजनाओं/नई उद्योग योजना‘‘ द्वारा समर्थित है। नीति के द्वारा, उद्योग विभाग एक मजबूत पारिस्थिति की तंत्र का निर्माण कर रहा है जो नीति आवश्यकताओं का अनुपालन करता है। इस पहल मे ं उद्यमियो ं को अपने उद्यमों में सफलता में मदद करने के लिए स्टार्टअप के लिए कई प्रोत्साहनों की परिकल्पना की गई है, जिसमें एक वर्ष के लिए प्रति माह ₹25,000 का मासिक निर्वाह छात्रवृति और प्लग-एंड-प्ले क्षमताओं के साथ मुफ्त इनक्यूबेशन सुविधाएं शामिल हैं।
राज्य मे ं उद्यम पूंजी और प्रारम्भिक निवेश को और सक्षम बनाने के लिए, सरकार ने हिमाचल स्टार्टअप योजना की घोषणा की है, जिसके अन्तर्गत कंपनियों को समर्थन देने के लिए पांच वर्षों के लिए ₹10 करोड़ का फंड स्थापित किया गया है। मुख्यमंत्री के स्टार्टअप मिशन की मुख्य बातें इस प्रकार हैंः स्व-रोजगार या रोजगार सृजन और आय सृजन।
i) राज्य सरकार ने राज्य भर मे ं संचालन के लिए प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं के साथ स्टार्ट-अप के लिए निःशुल्क इनक्यूबेटरों के साथ-साथ है ंडहोल्डिंग समर्थन, कार्य स्थान और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए कुल 14 बिजनेस इनक्यूबेटरो ं को अधिकृत किया है।
ii) इन्क्यूबेशन के लिए 365 स्टार्टअप का चयन किया गया है।
iii)हिमाचल स्टार्टअप योजना ने पू ंजी सहायता के रूप में 09 विभिन्न व्यवसायों को लगभग ₹ 2.11 करोड़ का योगदान दिया है।
iv) चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 में अब तक चयनित स्टार्ट-अप को ₹81.50 लाख का भरण-पोषण भत्ता वितरित किया जा चुका है।
भारत सरकार के उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डी.पी.आई.आई.टी.) द्वारा प्रसारित स्टार्टअप रैंकिंग फ्रेमवर्क के अनुसार राज्य की अब तक की स्टार्टअप यात्रा इस प्रकार हैः

v) हिमाचल प्रदेश उद्यमिता विकास के ंद्र (एच.पी.सी.ई.डी., उद्योग विभाग के तत्वावधान में एक सोसायटी) राज्य में एक एजे ंसी है जिसकी स्थापना उद्यमशीलता गतिविधियों को प्रोत्साहन प्रदान करने के प्राथमिक उद्देश्य से की गई है। वर्तमान में, एच.पी.सी.ई.डी. स्टार्ट-अप योजना के लिए एक सहायता केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है।
vi) एच.पी.सी.ई.डी. ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान अब तक राज्य में लोगों को स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और उद्यमशीलता गतिविधियों के बारे मे ं जागरूक करने के लिए 21 कार्यक्रम/कार्यशालाएं आयोजित की हैं।
vii) दो नए इनक्यूबेशन केंद्र अर्थात भारतीय प्रबंधन संस्थान (आई.आई.एम.) सिरमौर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) बिलासपुर को बाजार रणनीतियों से संबंधित चुनौतियों का सामना करने और राज्य मे ं चिकित्सा/स्वास्थ्य देखभाल नवाचारों और स्टार्टअप की सुविधा के लिए शामिल किया गया है।
व्यवसाय करने में आसानी (ई.ओ.डी.बी.) - ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ई.ओ.डी.बी.) के बिजनेस रिफॉर्म एक्शन प्लान (बी.आर.ए पी.) जनादेश के तहत, राज्य ने बी.आर.ए.पी. 2022 अभ्यास के अन्तर्गत 352 सुधार बिंदुओं में से 347 के कार्यान्वयन के साथ 99 प्रतिशत का कार्यान्वयन स्कोर हासिल किया है। हिमाचल प्रदेश राज्य को ई.ओ.डी.बी. (बी.आर.ए.पी-2022) रैंकिंग मे ं ‘‘एस्पायरर्स श्रेणी‘‘ में स्थान दिया गया है। यह 2014 में जबसे यह फ्रेमवर्क शुरू हुआ था, हिमाचल प्रदेश ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। इससे पहले राज्य ने 9 अंकों की लंबी छलांग लगाई थी। ई.ओ.डी.बी.-2019 रैंकिंग में 16वें स्थान से 7वे ं स्थान पर पहु ंच गया, जिसने हिमाचल को देश के ‘‘पहाड़ी राज्यों में शीर्ष रैंकिंग वाला राज्य‘‘ बना दिया।
प्रधान मंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकरण (पी.एम.एफ. एम.एफ.पी.ई.)- यह योजना हिमाचल प्रदेश के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में शामिल एस.एच.जी, एफ.पी ओ., सहकारी समितियों और व्यक्तिगत उद्यमियों को वित्तीय, तकनीकी, ढांचागत और क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करके राज्य के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के औपचारिकीकरण को बढ़ावा देती है।
i)व्यक्तिगत सूक्ष्म उद्यमों को सहायताः व्यक्तिगत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को प्रति यूनिट ₹10.0 लाख की अधिकतम सीमा के साथ पात्र परियोजना लागत के 35 प्रतिशत की दर से क्रेडिट-लिंक्ड पू ंजी सब्सिडी प्रदान की जाती है।
ii)एस.एच.जी. को प्रारम्भिक पूंजीः खाद्य प्रसंस्करण में लगे लोगों को कार्यशील पू ंजी और छोटे उपकरणों की खरीद के लिए प्रति एस.एच.जी. सदस्य को ₹40,000 की दर से प्रारम्भिक पू ंजी प्रदान की जाती है।
पी.एम.एफ.एम.ई. योजना के अन्तर्गत उपलब्धियां अप्रैल-दिसम्बर, 2024 तक प्रारम्भिक पू ंजी घटकः

iii)इन्युबेशन केंद्रः सूक्ष्म उद्यमों को उत्पादों और प्रक्रियाओं मे ं अपने गुणवत्ता मानकों को लगातार उन्नत करने के लिए प्रोत्साहित करने की दृष्टि से राज्य मे ं तीन इन्क्यूबेशन सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं। यह नई प्रौद्योगिकी, गुणवत्तापूर्ण उपकरणों और ऊर्जा कुशल विनिर्माण प्रथाओ ं के अनुकूलन को भी बढ़ावा देगा। पहचाने गए इन्युबेशन के ंद्र इस प्रकार हैंः

iii)लाभार्थी/प्रशिक्षणकर्ता प्रशिक्ष: कुल 4500 लाभार्थियो ं को विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। क्षमता निर्माण, (ई.डी.पी.) उद्यमशीलता विकास कार्यक्रम।
iii)विश्व खाद्य भारतः हिमाचल प्रदेश राज्य को पी.एम.एफ.एम.ई. योजना के अन्तर्गत एक उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्य के रूप मे ं चुना गया और 5 नवंबर 2023 को भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा वर्ल्ड फूड इंडिया (डब्ल्यू.एफ.आई.) के समापन सत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्य का पुरस्कार प्राप्त किया गया था।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.)-
i) प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.) केंद्र सरकार का एक क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम है।
ii) योजना के अंतर्गत विनिर्माण क्षेत्र में परियोजना की अधिकतम लागत ₹50.00 लाख तथा सेवा क्षेत्र के अंतर्गत ₹20.00 लाख है। यदि कुल परियोजना लागत विनिर्माण और सेवाध्व्यावसायिक क्षेत्रों के लिए क्रमशः ₹50.00 लाख या ₹20.00 लाख से अधिक है, तो शेष राशि बिना किसी सरकारी सब्सिडी के बैंकों द्वारा प्रदान की जा सकती है। सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारो ं को प्रस्तावित उद्यम/इकाई के स्थान के आधार पर 15-25 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है और परियोजना लागत मे ं योगदान 10 प्रतिशत है। अन्य श्रेणियों के लिए, उम्मीदवारों को प्रस्तावित उद्यमध्इकाई के स्थान के आधार पर 25-35 प्रतिशत मिलता है और उनका योगदान केवल 5 प्रतिशत है।
iii) यह योजना उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड (एच.पी.के वी.आई.बी.) और खादी और ग्रामोद्योग आयोग (के.वी.आई.सी.) राज्य कार्यालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है।
iv) 2024-25 के दौरान निम्नलिखित उपलब्धियाँ हैंः

प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना (पी.एम.वी. योजना) इस पहल का उद्देश्य 18 पहचाने गए व्यवसायों में कारीगरो ं और शिल्पकारों को सशक्त बनाना है, उनकी आजीविका में सुधार लाने और कौशल विकास के माध्यम से रोजगार के अवसर पैदा करने पर ध्यान के ंद्रित करना है। यह योजना टूल किट के लिए ₹15,000 की वित्तीय सहायता, 5 प्रतिशत सब्सिडी वाली ब्याज दर पर ₹3.00 लाख तक के जमानत मुक्त उद्यम विकास ऋण और बाजार लिंकेज की सुविधा प्रदान करती है। इन संबंधों को बढ़ावा देने के लिए, कारीगरो ं को राज्य-स्तरीय प्रदर्शनियों और मेलों में भाग लेने का अवसर दिया जाता है। अब तक, दो मेले आयोजित किए गए हैंः जागरूकता के लिए जुन्गा शिमला फ्लाइंग फेस्टिवल, और रामपुर मेला, जहां लगभग 15 ट्रेडों के 48 कारीगरों ने भाग लिया। इसके अतिरिक्त, हिमाचल प्रदेश के तीन कारीगरों को एम.ओ.एम एस.एम.ई द्वारा इस योजना के अन्तर्गत सम्मानित किया गया है।
योजना के अंतर्गत शामिल प्रमुख व्यवसायो ं में शामिल हैं-बढ़ई, सिलाई, लोहार, सुनार (सुनार), ताला बनाने वाला, कवच बनाने वाला, नाव बनाने वाला, टोकरी/ चटाई/झाड़ू बनाने वाला, माला बनाने वाला, धोबी (धोबी), नाई, कुम्हार (कुम्हार), हथौड़ा और टूलकिट निर्माता, मोची/जूते कारीगर, गुड़िया और खिलौना बनाने वाला, मछली जाल बनाने वाला, राजमिस्त्री, मूर्तिकार।


यूनिटी मॉलः राष्ट्रीय एकता और आर्थिक विकास का एक प्रतीक : भारत सरकार ने ‘‘पू ंजीगत निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना 2023-24‘‘ के भाग-टप् के अन्तर्गत धर्मशाला, जिला कांगड़ा के मौहाल चकवन धगवार मे ं यूनिटी मॉल की स्थापना को मंजूरी दे दी है। एक अत्याधुनिक व्यावसायिक परिसर के रूप में कल्पना की गई। वित्त मंत्रालय, व्यय विभाग ने इस परिवर्तनकारी परियोजना के लिए ₹132 करोड़ मंजूर किए हैं। उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश को पहली किस्त के रूप में ₹66 करोड़ पहले ही जारी किए जा चुके हैं।
इसके प्राथमिक उद्देश्यों में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना, ‘‘मेक इन इंडिया‘‘ पहल को बढ़ावा देना, एक जिला एक उत्पाद (ओ.डी.ओ.पी.) ढांचे के तहत स्वदेशी उत्पादों की विपणन क्षमता को बढ़ाना और ग्रामीण कारीगरों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने के लिए एक मंच प्रदान करके सशक्त बनाना शामिल है। यह पहल क्षेत्र की आर्थिक जीवंतता मे ं योगदान करते हुए रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और स्थानीय शिल्प कौशल का समर्थन करने के लिए तैयार है।
राज्य में रेशम उत्पादन कृषि समुदाय की आय बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रामीण आय सृजन सहायक व्यवसाय के रूप मे ं विकसित हो रहा है। राज्य में रेशम उत्पादन में बड़ी संख्या मे ं लोग लगे हुए हैं। राज्य सरकार ने 1951 में उद्योग विभाग निदेशक के नियंत्रण मे ं एक अलग रेशम उत्पादन विंग की स्थापना की है।
रेशम उत्पादन 1691 गांवों मे ं लगभग 10,470 परिवारों को काफी लाभकारी व्यवसाय प्रदान करता है और इसका प्रमुख केंद्र बिलासपुर, मंडी, हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना और सिरमौर जिलों में पाया जाता है। रेशम उत्पादन करने वाले जिलों में, बिलासपुर जिला रेशम कोकून का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो उत्पादन का 35 प्रतिशत साझा करता है, इसके बाद जिला मंडी (25 प्रतिशत), जिला कांगड़ा (22 प्रतिशत) और हमीरपुर (16 प्रतिशत) का स्थान है।
उद्योग विभाग ने राज्य के 11 जिलो ं में आठ रेशम उत्पादन प्रभाग स्थापित किए है ं, जिसके अन्तर्गत 79 रेशम उत्पादन केंद्र-सह-चैकी पालन केंद्र और 64 शहतूत फार्म कार्य कर रहे हैं। यह सरकारी रेशम उत्पादन केंद्र किसानों को रेशमकीट वितरित करते हैं और हितधारकों को तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। भौतिक उपलब्धियाँ इस प्रकार हैंः-
खनन एवं उत्खनन क्षेत्र : सरकार ने हिमाचल प्रदेश गौण खनिज (रियायत) और खनिज (अवैध खनन, परिवहन और भंडारण की रोकथाम) नियम, 2015, पांचवे ं संशोधन नियम, 2024 में संशोधन किया है जिसमें राजस्व वृद्धि के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैंः -
i) अन्य स्रोतो ंध्गैर खनन गतिविधियों से उत्पन्न सामग्री के उपयोग के लिए, उपयोगकर्ता एजेंसी को प्रसंस्करण शुल्क के रूप में देय रॉयल्टी के 75 प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त राशि का भुगतान करना होगा।
ii)प्रत्येक खनिज रियायत धारक को ई.वी. शुल्क के रूप में ₹5 प्रति टन, ऑनलाइन शुल्क के रूप में ₹5 प्रति टन और दूध उपकर के रूप मे ं ₹2 प्रति टन भुगतान करना होगा।
iii) राज्य मे ं व्यवस्थित और वैज्ञानिक खनन को प्रोत्साहित करने के लिए, नदी तल में खनन की गहराई मौजूदा 1 मीटर से बढ़ाकर 2 मीटर कर दी गई है।
सरकार ने हिमाचल प्रदेश खनिज नीति-2024 को भी अधिसूचित किया है जिसे दस साल से अधिक की अवधि के बाद संशोधित किया गया है ताकि राज्य में टिकाऊ, व्यवस्थित और वैज्ञानिक खनन सुनिश्चित किया जा सके। वर्तमान सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण, वर्ष 2023-24 के दौरान खनन से राजस्व सृजन बढ़कर ₹315 करोड़ हो गया है जो कि 2022-23 के दौरान ₹241 करोड़ था। इस वित्त वर्ष 2024-25 के लिए खनन से अनुमानित राजस्व लगभग 400 करोड़ है।
उद्योग क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और हिमाचल में रोजगार की अत्यधिक संभावनाएं पैदा करने के लिए महत्वपूर्ण है। 2024-2025 (अग्रिम) में औद्योगिक क्षेत्र का (खनन और उत्खनन सहित) कुल जी.वी.ए. (प्रचलित भावांे में) ₹86,695 करोड़ अनुमानित है।
विनिर्माण क्षेत्र के प्रचलित भावांे पर कुल जी.वी.ए. मे ं औद्योगिक क्षेत्र का 65.49 प्रतिशत योगदान है व शेष 34.51 प्रतिशत योगदान निर्माण, खनन एवं उत्खनन, बिजली और अन्य उपयोगिताओं के उप-क्षेत्रों से आता है।
जी.एस.वी.ए. में प्रचलित भावांे पर औद्योगिक क्षेत्र (खनन और उत्खनन सहित) का योगदान वित्तीय वर्ष 2024-25 में 40.00 प्रतिशत है जिसमें 26.19 प्रतिशत विनिर्माण से, 7.68 प्रतिशत निर्माण तथा 5.66 प्रतिशत बिजली, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाओं से आता है।
प्रचलित भावो पर जी.एस.वी.ए. मे ं खनन और उत्खनन क्षेत्र का योगदान वर्ष 2020-21 में 0.30 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 0.46 प्रतिशत हो गया

औद्योगिक क्षेत्र और इसके उप-क्षेत्र का विकास - अग्रिम अनुमान के अनुसार, हिमाचल प्रदेश मे ं वित्त वर्ष 2024-25 में औद्योगिक क्षेत्र का जी.एस.वी.ए. 8.1 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है और इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक क्षेत्र का जी.वी.ए. स्थिर भावों पर 6.5 प्रतिशत बढ़ा है।
विनिर्माण क्षेत्र - वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान, विनिर्माण क्षेत्र मे ं 7.1 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है जो उद्योग क्षेत्र में तीसरी सबसे ऊंची वृद्धि दर है (चित्र 9.3)। 2013-14 से 2024-25 के बीच, विनिर्माण क्षेत्र ने उद्योग क्षेत्र के उप-क्षेत्रों के बीच 8.3 प्रतिशत की उच्च सी.ए.जी.आर. का अनुभव किया, जो हिमाचल प्रदेश के तेजी से विनिर्माण विकास और व्यापार सुधारों, बेहतर बुनियादी ढांचे के प्रावधान और संभावित निवेशकों को प्रतिस्पर्धी वित्तीय रियायतों के माध्यम से निवेश आकर्षित करने की क्षमता को दर्शाता है।
निर्माण क्षेत्र - संगठित और असंगठित क्षेत्र की आय बढ़ाने के लिए और राज्य के बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए निर्माण उप-क्षेत्र का विकास महत्वपूर्ण है। निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर उद्योग क्षेत्र में द्वितीय स्थान पर है जोकि वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान उच्चतम विकास दर जो 9.4 प्रतिशत अनुमानित है (चित्र 9.3)।
बिजली, जलापूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवा क्षेत्र - वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, बिजली, जल की आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवा क्षेत्र मे ं 11.5 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है जो औद्योगिक क्षेत्र में सबसे अधिक विकास दर है (चित्र 9.3)।
खनन और उत्खनन क्षेत्र - खनन और उत्खनन क्षेत्र वित्तीय वर्ष, 2024-25 में 6.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है।


रोजगार अंशदान - वे व्यक्ति जो या तो काम कर रहे हैं (या कार्यरत हैं ) या काम की तलाश कर रहे हैं या काम के लिए उपलब्ध हैं (या बेरोजगार) श्रम बल का गठन करते हैं। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) 2022-23 के अनुसार, राज्य के 17.18 प्रतिशत काम करने वाले वयस्क औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत थे जो 2023-24, पी.एल.एफ.एस. मे ं बढ़कर 22.04 प्रतिशत हो गये हैं।
निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र उद्योग क्षेत्र हैं जो राज्य के कार्यबल के उच्चतम प्रतिशत क्रमशः 8.60 प्रतिशत और 11.52 प्रतिशत रोजगार देते हैं। अन्य दो उप-क्षेत्र मिलकर राज्य के 1.92 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार देते हैं। चित्र 9.5 से यह स्पष्ट है कि रोजगार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 2023-24 में 41 प्रतिशत रही, जबकि बिजली और अन्य उपयोगिताओं की हिस्सेदारी 2022-23 में 7 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 4 प्रतिशत हो गई।

कार्यशील जनसंख्या का क्षेत्र वार वितरण - हिमाचल प्रदेश मे ं विभिन्न क्षेत्रों में आम तौर पर काम करने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत वितरण (कुल कार्यबल में से) चित्र 9.6 में प्रस्तुत किया गया है जो दर्शाता है कि 53.98 प्रतिशत, 22.01 प्रतिशत और 24.01 प्रतिशत क्रमशः प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत हैं। (पी.एल.एफ.एस. 2023-24)
हिमाचल प्रदेश में द्वितीयक क्षेत्र के अन्तर्गत कार्यरत श्रमशक्ति शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमशः 44.3 व 19.5 प्रतिशत है।
चित्र 9.7 ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच श्रम बल मे ं लिंग आधारित अंतर प्रदर्शित करता है। चू ंकि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 7.2 प्रतिशत महिलाएं व 30.63 प्रतिशत पुरुष द्वितीयक क्षेत्र में लाभकारी रूप से कार्यरत हैं। तुलनात्मक रूप में े, शहरी क्षेत्रों में 28.19 प्रतिशत महिलाएं (ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना मे ं 20.99 प्रतिशत अधिक) व 50.63 प्रतिशत पुरुष श्रम बल में द्वितीयक क्षेत्र में लाभप्रद रोजगार में कार्यरत हैं।
के.वी.आई.सी. भारत सरकार द्वारा अप्रैल 1957 में ष्खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956ष् के अन्तर्गत स्थापित एक वैधानिक संगठन है। के.वी.आई.सी. पूरे राज्य मे ं 13 खादी संस्थान संचालित हैं। सारणी 9.13 के.वी.आई.सी. से संबद्ध/पंजीकृत समितियों और संस्थानों के माध्यम से उत्पादन और बिक्री की वर्तमान स्थिति को दर्शाती है।
एच.पी.के.वी.आई.बी. विधान सभा के एक अधिनियम (8 नवम्बर, 1966) द्वारा बनाई गई एक वैधानिक निकाय है। यह 8 जनवरी, 1968 को अस्तित्व मे ं आया।
एच.पी. खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड वर्तमान मे ं स्थानीय लोगों को उनके घर द्वार पर रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों मे ं सूक्ष्म उद्योग स्थापित करने मे ं बेरोजगार युवाओं और कारीगरो ं की सहायता के लिए प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम लागू कर रहा है। पिछले 3 वर्षों के दौरान योजना के अंतर्गत प्रगति इस प्रकार है।
एच.पी.एस.आई.डी.सी. को सड़कों, पुलों, स्टेडियमों, सरकारी कॉलेजों, पॉलिटेक्निक कॉलेज, स्कूल भवन, जल आपूर्ति, स्ट्रीट लाइटिंग परियोजनाएं, सीवरेज बुनियादी ढांचा सरकारी भवनों के निर्माण में विशेषज्ञता प्राप्त है। एच.पी.एस.आई.डी.सी. द्वारा बाथू मे ं सामान्य सुविधा के ंद्र, पलकवाह (ऊना) में कौशल विकास केंद्र, श्रमिक छात्रावास बाथू और पारगमन श्रमिक छात्रावास दुलेहर (ऊना) विकसित की गई कुछ अत्याधुनिक परियोजनाएं हैं। निगम ने राज्य सरकार के लिए कई औद्योगिक क्षेत्र/संपदा/पार्क भी विकसित किए हैं। निगम के पास बद्दी और दावनी में अपने स्वयं के औद्योगिक भूखंड (424 बीघा) हैं। निगम ने संशोधित औद्योगिक अवसंरचना उन्नयन योजना (एम.आई.आई.यू.एस.) के अन्तर्गत सिविल कार्यों को सफलतापूर्वक निष्पादित किया है और कंदरोड़ी और पंडोगा में अत्याधुनिक औद्योगिक क्षेत्रों का सफलतापूर्वक निर्माण किया है।
इसके पास पो ंटा साहिब और परवाणु में शेड भी है ं। एच.पी.एस.आई.डी.सी. कोल्ड मिक्स उत्पादों के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पाेरेशन और मैसर्स बिटकेम एस्फाल्ट लिमिटेड का अधिकृत डीलर है और स्टील उत्पादों (मैसर्स सेल इंडिया/टाटा स्टील) के लिए हिमाचल प्रदेश में एक व्यापारी है। इसके अलावा, निगम को नालागढ़, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश में मेडिकल डिवाइस पार्क की स्थापना के लिए एक राज्य कार्यान्वयन एजेंसी नियुक्त किया गया है। निगम ऊना जिला, हिमाचल प्रदेश में स्थित बल्क ड्रग पार्क के अन्तर्गत बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। निगम कांगड़ा जिला, हिमाचल प्रदेश में यूनिटी मॉल विकसित करने की प्रक्रिया में है।
हिमाचल प्रदेश इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड (एच.पी.आई.डी.बी.) की स्थापना 28.01 2002 को हिमाचल प्रदेश इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एक्ट, 2001 के अन्तर्गत की गई थी। प्रारंभ में, अधिनियम के तहत एच.पी.आई.डी.बी. का मुख्य कार्य राज्य सरकार की ओर से राज्य विकास व्यय के वित्तपोषण के लिए संसाधन जुटाने के लिए विशेष प्रयोजन वाहन (एस.पी.वी.) के रूप में कार्य करना था। एच.पी.आई.डी.बी. ने अपनी मौजूदा गतिविधियों के अतिरिक्त राज्य सरकार के सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) कोष्ठ के रूप मे ं कार्य कर रहा है।
भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धियाँ/नीतिगत पहलें :
i)एच.पी.आई.डी.बी. ने विभिन्न क्षेत्रों मे ं पी.पी.पी. मोड पर 25 परियोजनाएं सफलतापूर्वक प्रदान की हैं, यानी शहरी क्षेत्र में 16 परियोजनाएं, पर्यटन क्षेत्र मे ं 7 परियोजनाएं और एक-एक पर्यावरण एवं विज्ञान क्षेत्र मे ं।
ii) पी.पी.पी. मोड पर किन्नू, चिंतपूर्णी में “माता का बाग” के विकास के लिए सलाहकारध् लेनदेन सलाहकार की नियुक्ति के लिए रुचि की अभिव्यक्ति (ई.ओ.आई.) प्रक्रियाधीन है ।
iii) सिरमौर के नाहन में फॉसिल पार्क, सुकेती के विकास के लिए लेनदेन सलाहकार की नियुक्ति के लिए रुचि की अभिव्यक्ति (ई.ओ.आई.) प्रक्रियाधीन है ।
iv) जिला मण्डी के सुंदरनगर में अटल पार्किंग को पार्किंग-सह-वाणिज्यिक परिसर के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव है और पी.पी.पी. मोड पर लाने की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।
v) हिमाचल निकेतन, द्वारका, नई दिल्ली के संचालन, प्रबंधन एवं रखरखाव का प्रस्ताव प्रक्रियाधीन है।
vi) इसके अतिरिक्त, एच.पी.आई.डी.बी. पी.पी.पी. मोड आदि पर विभिन्न चरणों में चल रही परियोजनाओं के विकास के लिए विभिन्न विभागों को सलाहकार सेवाएं प्रदान की जा रही है।
आई.आई.पी. औद्योगिक विकास को मापने का एक पैमाना है, इसमें पिछली अवधि की तुलना में विशिष्ट अवधि के दौरान उद्योग के क्षेत्र में भौतिक उत्पादन के सापेक्ष परिवर्तन शामिल हैं। इस सूचकांक का मुख्य उद्देश्य सकल राज्य घरेलू उत्पाद मे ं औद्योगिक क्षेत्र के योगदान का अनुमान लगाना है। प्रदेश में आई.आई.पी. को आधार वर्ष 2011-12 के आधार पर संकलित किया जा रहा है। आई.आई.पी. वार्षिक सूचकांको ं अनुमान विनिर्माण, खनन, उत्खनन और बिजली की चयनित इकाइयों से सूचना एकत्र करके त्रैमासिक सूचकांकों के आधार पर पर किया गया है और सारणी 9.15 में दिखाया गया है।
वित्त वर्ष 2022-23 में सामान्य सूचकांक 235.3 से बढ़कर 248.6 और वित्त वर्ष 2023-24 में 291.8 हो गया है, जो क्रमशः 5.7 प्रतिशत और 17.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वित्त वर्ष 2024-25 के सूचकांको ं के संबंध में, इन्हे ं दो तिमाहियों यानी जून, 2024 और सितंबर 2024 के आधार पर तैयार किया गया है। इन दो तिमाहियों के आधार पर सामान्य सूचकांक में पिछली तुलना में 7.9 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। जबकि इन दोनों तिमाहियों के सूचकांक की तुलना पिछले वर्ष यानी 2023-24 की समान तिमाहियों के सूचकांक से करने पर वर्ष 2024-25 की इन तिमाहियों में सभी क्षेत्रों यानी सामान्य, बिजली, खनन और विनिर्माण के सूचकांकों मे ं वृद्धि हुईं है।
निष्कर्ष के तौर पर, हिमाचल प्रदेश कृषि से उद्योग प्रधान अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया है, जहां 2024-25 में औद्योगिक क्षेत्र का राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद(जी एस.डी.पी.) में 40 प्रतिशत का योगदान है। राज्य फार्मास्यूटिकल्स के लिए एक वैश्विक केंद्र बन चुका है, जहां 600 से अधिक इकाइयां स्थित हैं और इसके अतिरिक्त सीमे ंट, वस्त्र और ऑटो निर्माण आदि भी राज्य के मजबूत क्षेत्र है। सरकार ने बल्क ड्रग पार्क, एम.एस.एम.ई. सहायता और निवेश सुधारों जैसी पहलो ं के माध्यम से औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया है। राज्य हरित ऊर्जा, स्वरोजगार और व्यापार करने में आसानी पर भी ध्यान केंद्रित करता है। एम.एस.एम.ई. की बढ़ती संख्या और महत्वपूर्ण निर्यात क्षमता के साथ, हिमाचल प्रदेश का औद्योगीकरण लगातार बढ़ रहा है।
राज्य ने सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रो ं के लिए औद्योगिक क्षेत्र निर्धारित किए हैं। उत्पादन क्षेत्र का इसमें सबसे बड़ा योगदान है, उसके बाद निर्माण, बिजली और खनन का स्थान आता है। वित्त वर्ष 2024-25 में उद्योग क्षेत्र मे ं 8.1 प्रतिशत की वृद्धि होने की आशा है, जिसमें उत्पादन और निर्माण क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। विशेष रूप से उत्पादन और निर्माण क्षेत्र में रोजगार में भी वृद्धि हुई है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग और हिमाचल प्रदेश औद्योगिक विकास निगम जैसी विभिन्न सरकारी पहल राज्य के औद्योगिक परिदृश्य में विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा दे रही हैं।

10.ऊर्जा

हिमाचल प्रदेश के प्रचुर जल संसाधन जलविद्युत ऊर्जा के विकास के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं, जो राज्य की ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक विकास में योगदान करते हैं। राज्य में कई जलविद्युत परियोजनाएँ हैं जो इसकी नदियो ं की ऊर्जा का उपयोग करती हैं और क्षेत्र की बिजली आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हिमाचल प्रदेश में बड़ी संख्या में जलविद्युत संसाधन हैं, राज्य में पांच बारहमासी नदी घाटियों पर विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण से राष्ट्रीय क्षमता 24,000 मेगावाट जलविद्युत का लगभग 25 प्रतिशत उत्पन्न किया जा सकता हैं। राज्य की कुल जलविद्युत क्षमता में से अब तक 11,290 मेगावाट का दोहन किया जाता हैं। यह अध्याय हिमाचल प्रदेश के विद्युत एवं ऊर्जा क्षेत्र का व्यापक विश्लेषण और समग्र अवलोकन प्रदान करता है। नीचे दी गई सारणी 10.1 राज्य मे ं बिजली के उत्पादन और खपत की स्थिति को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।
सारणी 10.1 इंगित करती है कि राज्य में उद्योग, बिजली के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं, उसके बाद घरेलू उपभोक्ताओं का स्थान आता हैैं। बिजली की खपत के इस वितरण से पता चलता है कि बिजली औद्योगिक क्षेत्र की समग्र मांग मे ं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
ऊर्जा निदेशालय, हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य के ऊर्जा संसाधनों के प्रबंधन और अनुकूलन की देखरेख करता है और बहुउद्देश्यीय परियोजना (एम.पी.पी.) व बिजली विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार का नोडल कार्यालय है। यह बिजली क्षेत्र में सभी बिजली उपयोगिताओं के साथ कुशल और समय पर समन्वय प्रदान करने का प्रयास करता है। यह 5 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन, तकनीकी आर्थिक मंजूरी (टी.ई.सी.), जल विद्युत सुरक्षा से संबंधित मुद्दे, पर्यावरण और सामाजिक मुद्दे, स्थानीय क्षेत्र विकास निधि का प्रबंधन, गुणवत्ता नियंत्रण, बिजली प्रवाह के प्रबंधन की देखरेख करता है। विभिन्न केंद्रीय, राज्य और निजी जल विद्युत परियोजनाओं से प्राप्त हिमाचल प्रदेश सरकार के विद्युत के हिस्से पावर शेयर की बिक्री, राज्य मे ं ऊर्जा संरक्षण गतिविधियों का कार्यान्वयन और राज्य के सभी बडे बांधों के लिए सुरक्षा पहलू का कार्यान्वयन करता है।
क्षमता वृद्धि : 40 मेगावाट क्षमता वाली पांच परियोजनाएं अर्थात् जिला कुल्लू मे ं थुचानिंग लघु जल विद्युत परियोजना (एस.एच.ई.पी.) (1.5 मेगावाट), जिला कांगड़ा में लूनी एस.एच.ई.पी. (4.5 मेगावाट), किन्नौर जिला में सेल्टी मसरंग हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर एच.ई.पी. (24 मेगावाट), जिला चंबा में कुवारसी एच.ई.पी. (9.9 मेगावाट) और कांगड़ा जिले में रुद्र एस एच.ई.पी. (0.75 मेगावाट) को अप्रैल, 2024 से दिसंबर, 2024 के बीच चालू किया गया है।
सरकार की ऊर्जा पात्रता : हिमाचल प्रदेश राज्य में विभिन्न परियोजनाओं का विवरण जिसमे ं हिमाचल प्रदेश सरकार के पास ऊर्जा की पात्रता नीचे दी गई हैः
सारणी 10.2 से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में विभिन्न केंद्रीय क्षेत्र, संयुक्त क्षेत्र और निजी क्षेत्र की परियोजनाओं में कुल 1,380.18 मेगावाट की मुफ्त और इक्विटी बिजली की हकदार है। 1,380.18 मेगावाट की कुल उपलब्धता में से कुल 166.37 मेगावाट की क्षमता उन परियोजनाओं के संबंध में है जो सीधे हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (एच.पी.एस.ई.बी.एल) प्रणाली से जुड़ी हैं और इसकी शक्ति का उपयोग पूरे वर्ष एच.पी.एस.ई.बी. एल. द्वारा किया जा रहा है। सतलुज जल विद्युत निगम (एस.जे.वी.एन.) की परियोजनाओं मे ं हिमाचल प्रदेश सरकार की बराबर भागीदारी के कारण कुल 438 मेगावाट क्षमता का उपयोग एच.पी.एस.ई.बी.एल. द्वारा अपने उपभोक्ताओं को 24×7 आपूर्ति प्रदान करने के लिए किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 (31 दिसंबर, 2024 तक) के दौरान ₹1535 करोड़ का राजस्व अर्जित किया है और मार्च, 2025 तक बिजली की बिक्री से रॉयल्टी एवं विद्युत परियोजनाओं में राज्य सरकार के हिस्से से बिक्री का अनुमानित राजस्व ₹265 करोड़ है।
हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड का गठन 1 सितंबर, 1971 को बिजली आपूर्ति अधिनियम (1948) के प्रावधानों के अनुसार किया गया था और हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड लिमिटेड के रूप में पुनर्गठित किया गया है (कंपनी अधिनियम 1956 के तहत)। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (एच.पी.एस.ई.बी.एल.) हिमाचल प्रदेश मे ं सभी उपभोक्ताओं को निरंतर और गुणवत्तापूर्ण बिजली की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार है। ट्रांसमिशन लाइन, सब ट्रांसमिशन लाइन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन सभी बडे नेटवर्क का हिस्सा हैं जो बिजली वितरित करते हंै। इसकी स्थापना के बाद से, बोर्ड ने इसे सौंपे गए लक्ष्यों के निष्पादन में महत्वपूर्ण प्रगति की है, वित्त वर्ष 2023-24 और 2024-25 के दौरान जिलेवार बिजली का उत्पादन सारणी 10.3 मे ं दिखाया गया ह

वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान एच.पी.एस.ई.बी.एल. ने जिला किन्नौर और उसके बाद जिला मंडी में स्थित अपने बिजलीघरों से सबसे अधिक यूनिट बिजली का उत्पादन किया है। एच.पी.एस.ई.बी.एल. के पास राज्य के पांच जिलों सोलन, ऊना, कुल्लू, हमीरपुर और बिलासपुर मे ं बिजली घर नहीं हैं।
जल विद्युत उत्पादन : एच.पी.एस.ई.बी.एल. में, 489.35 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता वाली 27 एच.ई.पी. चालू हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान इन एच.ई.पी. द्वारा 1,664.57 एम.यू. ऊर्जा उत्पन्न की गई। वित्तीय वर्ष 2024-25 में, इन एच.ई.पी. द्वारा दिसंबर 2024 तक 1,528.11 एम.यू. ऊर्जा उत्पन्न की गई है और मार्च, 2025 तक अतिरिक्त 233.77 एम.यू. उत्पादन का अग्रिम अनुमान है।
ऊहल चरण-3 (100 मेगावाट) एच.ई.पी., एच.पी.एस.ई.बी.एल. की सहायक कंपनी ब्यास वैली पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बी.वी.पी.सी.एल.) द्वारा निर्माणाधीन है।
ट्रांसमिशन : एच.पी.एस.ई.बी.एल. के ट्रांसमिशन विंग ने दिसम्बर, 2024 तक 5,272.55 मेगा वोल्ट एम्पीयर (एम.वी.ए.) और 3,693.49 सर्किट किलोमीटर (सी.के.एम.) ई.एच.वी. लाइनों की परिवर्तन क्षमता के साथ 62 अतिरिक्त उच्च वोल्टेज (ई.एच.वी.) उप-स्टेशन स्थापित किए हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान दिसंबर, 2024 तक 76.2 एम.वी.ए. क्षमता वाले 6 ई एच.वी. सब-स्टेशन स्थापित किए है और 32.839 सी.के.एम., ई.एच.वी. लाइनें चालू कर दी गई हैं।
एच.पी.एस.ई.बी.एल. के तहत नई हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजनाएँ हिमाचल प्रदेश सरकार ने कार्यान्वयन के लिए एच.पी.एस.ई.बी.एल. को जिला चम्बा के तीसा क्षेत्र में 4 परियोजनाएं आवंटित की हैं-देवी कोठी एच.ई.पी. (16 मेगावाट), साईं कोठी-प् एच.ई.पी. (15 मेगावाट), साईं कोठी-प्प् (18 मेगावाट) और हेल एच.ई.पी. (18 मेगावाट)।
परियोजनाएँ :
हिमाचल प्रदेश में कम वोल्टेज वाली पॉकेट के लिए प्रणाली सुधार (एस.आई.) योजनाः राज्य के दूरदराज के इलाकों में निवासियों द्वारा सामना की जाने वाली कम वोल्टेज की समस्याओं के समाधान के लिए, वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान ₹158 करोड़ की एक योजना स्वीकृत की गई थी और वर्तमान में इसे राज्य भर में लागू किया जा रहा है। इस योजना में 992 वितरण ट्रांसफार्मर (डी.टी.आर.) की स्थापना, 1,133.25 किमी उच्च-टेंन्शन (एच.टी.) लाइनों का निर्माण और कम वोल्टेज प्रभावित क्षेत्रों में 325 किमी कम-टेंन्शन (एल.टी.) लाइनों के प्रावधान शामिल हैं। दिसंबर, 2024 तक, 988 डी.टी.आर., 648.177 कि.मी. एच.टी. लाइनें, 413.895 कि.मी. तीन-चरण एल.टी. लाइने ं और 153.842 कि.मी. संवर्धित एल.टी. लाइनें सफलतापूर्वक स्थापित की गई हैं।
योजना के दूसरे चरण के लिए ₹25.08 करोड़ की राशि भी स्वीकृत की गई है और इसका कार्यान्वयन प्रगति पर है। दिसंबर, 2024 तक 65.421 कि.मी. एच.टी. लाइनों और 39.365 कि.मी. थ्री फेस एल.टी. लाइनों और 14.530 कि.मी. एल.टी. लाइन (संवर्धित) के साथ 60 डी.टी.आर. स्थापित किए गए हैं।
पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना (आर.डी.एस.एस.)ः योजना का उद्देश्य वित्तीय रूप से टिकाऊ और परिचालन रूप से कुशल वितरण क्षेत्र को बढ़ावा देकर उपभोक्ताओं में बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को बढ़ाना है। इस योजना का लक्ष्य समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (ए.टी./सी.) घाटे को अखिल भारतीय लक्ष्य 12-15 प्रतिशत तक कम करना और 2024-25 तक ए.सी.एस.-ए.आर.आर. (आपूर्ति की औसत लागत - औसत राजस्व प्राप्त) के अंतर को खत्म करना है।
पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना (आर.डी.एस.एस.) में दो मुख्य घटक शामिल हैंः
घटक -1
मीटरिंगः हिमाचल प्रदेश के लिए योजना के मीटरिंग घटक के तहत स्वीकृत प्रावधानों को एच.पी.एस.ई.बी.एल. और भारत सरकार (जी.ओ.आई.) के बीच सांझा किया जाता है, जिसमें एच.पी.एस.ई.बी.एल. का योगदान 77.50 प्रतिशत और भारत सरकार का योगदान 22.50 प्रतिशत है। इस घटक के तहत 31 दिसंबर 2024 तक, दक्षिण क्षेत्र में 88,510 मीटर लगाए गए हैं और उत्तरी क्षेत्र और मध्य क्षेत्र मे ं स्थापना कार्य निविदा प्रक्रिया में है।
घटक -2
i)हानि में कमी और वितरण अवसंरचना कार्यः आर.डी.एस.एस. के अन्तर्गत हानि कटौती कार्यों के लिए ₹1,883.94 करोड़ की संशोधित मंजूरी जून, 2023 में एम/एस पी.एफ.सी. लिमिटेड से प्राप्त हुई थी।
i) वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (वी.वी.पी.)ः सरकार ने 15 फरवरी, 2023 को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में वाइब्रे ंट विलेजेज प्रोग्राम (वी.वी.पी.) को मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य हिमाचल प्रदेश की उत्तरी सीमा के साथ दो जिलों के स्पीति, कल्पा और पूह ब्लॉकों में चुनिंदा गांवों का व्यापक विकास करना है। कार्यक्रम पर्यटन, सांस्कृतिक विरासत, कौशल विकास, उद्यमिता और कृषि, बागवानी और औषधीय पौधों की खेती में सहकारी समितियो ं को बढ़ावा देने के माध्यम से आजीविका सृजन पर के ंद्रित है। इसमें सड़क कनेक्टिविटी, आवास, बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय ऊर्जा और दूरसंचार पहु ंच में सुधार भी शामिल है। प्राथमिक उद्देश्य ऐसे सुविधा प्रदान करना है जो लोगों को गांवों में रहने के लिए प्रोत्साहित करें। वाइब्र ेंट विलेजेज प्रोग्राम (वी.वी.पी.) के अंतर्गत निम्नलिखित गांव शामिल हैंः
(क) किन्नौर जिले के अंतर्गत आने वाले गाँवः थानकर्मा (चाला शलखर), सुन्नी (लियो), थानकर्मा (कु ंगधा), चांगो, बटसेरी (चिस्पान), छितकुल, चुलिंग (ताशिजोंग), चारंग (रंगरिक), चांगो उपेरला, लाब्रांग, हंगमत और रक्छम।
(ख) लाहौल-स्पीति जिले में स्पीति ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले गांवः धार छोछोड़ ून, धार सुमदो, गिपू, हिक्किम, हल, हर्लिंग, कौरिक, काजा खास, काजा सोमा, की, किब्बर खास, कोमिक, क्यामो, लालु ंग खास, लारा खास, लिदांग, लिरिट , रामा खास, समदो और शेगो।
चंबा जिले की पांगी घाटी में विश्वसनीय बिजली आपूर्ति के लिए थरोट से किलाड़ तक 33 के.वी. लाइन का निर्माणः एच.पी.एस.ई.बी.एल. ने हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की पांगी घाटी में विश्वसनीय बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए थरोट से किलाड़ तक 33 के.वी. लाइन के निर्माण के लिए भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। आर.डी.एस.एस. के तहत निगरानी समिति ने निम्नलिखित प्रावधानों के साथ जुलाई, 2024 में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी हैः

हिमाचल प्रदेश में भारत के उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए वितरण बुनियादी ढांचे का विस्तारः हिमाचल प्रदेश में चिन्हित स्थानों पर बिजली वितरण बुनियादी ढांचे और दूरदराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण, विश्वसनीय बिजली की आपूर्ति का कार्य प्रगति पर है। इस योजना के लिए स्वीकृत बजट ₹362.18 करोड़ है, जबकि भारत सरकार और एच.पी एस.ई.बी.एल. द्वारा 90ः10 के अनुपात में साझा किया जाएगा।
विद्युत प्रणाली विकास निधिः शिमला, हमीरपुर शहर और नादौन में भूमिगत केबलिंग कार्य के प्रस्तावों को सरकार ने ₹65 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान के साथ मंजूरी दी है और कार्य प्रगति पर है।
सूचना प्रौद्योगिकी पहलें एच.पी.एस.ई.बी.एल. हिमाचल प्रदेश में लगभग 27.50 लाख उपभोक्ताओं के लिए 24ग7 बिजली वितरण सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। कम्प्यूटरीकरण, मीटरिंग-बिलिंग-संग्रह और उपभोक्ता सेवाओं में प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नानुसार हैंः
i) राज्य में 100 प्रतिशत कम्प्यूटरीकृत बिलिंग हासिल कर ली गई है और लगभग 95 प्रतिशत उपभोक्ताओं को मासिक बिजली बिल उनके घर पर और एस.एम.एस. और ई-मेल के माध्यम से प्रदान किए जा रहे हैं। साथ ही, विभिन्न डिजिटल और ऑनलाइन तरीकों से भुगतान के लिए बिल वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
ii)समयबद्ध और कागज रहित तरीके से डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक्स प्लेटफार्मों के माध्यम से विभिन्न उपभोक्ता संबंधी सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए राज्य के विभिन्न बिजली उपभोक्ताओं के लिए एक समर्पित उपभोक्ता पोर्टल विकसित और लॉन्च किया गया। प्रदान की जा रही सेवाओं में नए कनेक्शन के लिए आवेदन, नाम में बदलाव, श्रेणी में बदलाव, लोड और मांग में बदलाव, अनुबंध मांग में अस्थायी संशोधन, और ऑनलाइन प्रोग्रामेबल ऑटोमेशन कंट्रोलर (पी.ए.सी.) आवेदन शामिल हैं। इसके अलावा यह पोर्टल बिल का भुगतान, उपभोग और भुगतान इतिहास देखना, शिकायत पंजीकरण आदि जैसी बुनियादी सेवाएं भी प्रदान करता है।
iii) उपभोक्ताओं को बिजली बिल भुगतान करने के लिए कई विकल्प प्रदान किए जाते हैं जैसे सामान्य सेवा के ंद्र (लोक मित्र केंद्र), इंटरनेट बैंकिंग/क्रेडिट/डेबिट कार्ड/यू पी.आई./भीम आदि का उपयोग करके डिजिटल भुगतान, ई-सी.एम.एस., मोबाइल ऐप आदि। परिणामस्वरूप, मासिक बिजली बिल भुगतान का लगभग 92 प्रतिशत भुगतान केवल डिजिटल लेनदेन के माध्यम से किया जा रहा है।
iv) एच.पी.एस.ई.बी.एल. ने शिमला और धर्मशाला स्मार्ट सिटी उपभोक्ताओ ं के लिए वास्तविक समय के आधार पर उनके उपभोग पैटर्न और बिजली की गुणवत्ता आदि की निगरानी के लिए एच.पी.एस.ई.बी.एल.-स्मार्ट मीटर मोबाइल ऐप लॉन्च किया है।
v)एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ई.आर.पी.) प्रणाली को एच.पी.एस.ई.बी.एल. के सभी स्थानों पर सफलतापूर्वक लागू और एकीकृत किया गया है, और वर्तमान में, सभी व्यावसायिक लेनदेन पूरे बोर्ड में विशेष रूप से सिस्टम अनुप्रयोग उत्पाद-एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (एस.ए.पी.-ई.आर.पी.) के माध्यम से संसाधित होते हैं।
vi)एच.पी.एस.ई.बी.एल. ने सभी स्तरों पर जवाबदेही तय करने के अलावा पारदर्शी और कुशल तरीके से विभिन्न सेवाओं की कागज रहित और समयबद्ध डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न ऑनलाइन उपयोगिताएं और मॉड्यूल विकसित और कार्यान्वित किए हैं। विकसित उपयोगिताओं में मुख्य रूप से विक्रेता चालान प्रबंधन प्रणाली, ऑनलाइन गेस्ट हाउस बुकिंग उपयोगिता, बजट प्रबंधन और नियंत्रण मॉड्यूल, केंद्रीकृ त सुरक्षा रिफंड उपयोगिता, स्थानांतरण और पोस्टिंग उपयोगिता, पे ंशन उपयोगिता और विभिन्न कर्मचारी संबंधित सेवाएं प्रदान करने के लिए ऑनलाइन कर्मचारी पोर्टल शामिल हैं।
vii) प्राथमिकता के आधार पर उपभोक्ता शिकायतों के पंजीकरण और समाधान के लिए उपभोक्ता शिकायत केंद्र और 24ग7 आई.वी.आर.एस. (इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्टम) का कार्यान्वयन किया गया है।
viii)इलेक्ट्रॉनिक कार्यालय, या डिजिटल/पेपरलेस सेटअप में परिवर्तन से बढ़ी हुई दक्षता, लागत-प्रभावशीलता, बेहतर सहयोग और अधिक टिकाऊ पर्यावरणीय प्रभाव जैसे लाभ मिलते हैं।
ix)आपूर्ति के घंटो ं में सुधार और प्रभावी आउटेज मॉनिटरिंग सुनिश्चित करने के लिए, रियल-टाइम डेटा अधिग्रहण प्रणाली (आर.टी.डी.ए.एस.) को 339 फीडरों को शामिल करते हुए 54 शहरों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है। यह प्रणाली एच.पी.एस.ई.बी एल. के एस.एम.एस. गेटवे के साथ निर्बाध रूप से एकीकृत है, जो आउटेज के त्वरित समाधान के लिए नामित वरिष्ठ कार्यकारी अभियंता, सहायक अभियंता और कनिष्ठ अभियंता को स्वचालित सूचनाएं सक्षम करती है। नेशनल फीडर मॉनिटरिंग सिस्टम (एन.एफ.एम.एस.) के माध्यम से सभी 339 फीडरों के लिए आउटेज और विद्युत मापदंडों पर वास्तविक समय डेटा आसानी से उपलब्ध है, जो बेहतर परिचालन दक्षता और विश्वसनीयता में योगदान देता है। इसके अतिरिक्त, विश्वसनीयता सूचकांक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक कार्रवाई की सुविधा प्रदान करते हुए, फीडर सिस्टम औसत व्यवधान अवधि सूचकांक ध् सिस्टम औसत व्यवधान आवृत्ति सूचकांक (ै।प्क्प्ध्ै।प्थ्प्) मेट्रिक्स और आपूर्ति घंटों की निगरानी के लिए फील्ड कार्यालयों के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल का प्रावधान किया गया है।
x) आर.डी.एस.एस. योजना के तहत 9,34,409 नंबर स्मार्ट मेट्स को कवर करते हुए स्मार्ट मीटरिंग का कार्यान्वयन ऑपरेशन शिमला जोन मे ं शुरू हो गया है। मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा जोन में आर.डी.एस.एस. के तहत स्मार्ट मीटरिंग के कार्यान्वयन के लिए निविदा कार्य प्रक्रियाधीन है।
एच.पी.पी.सी.एल., कंपनी अधिनियम 1956 के अन्तर्गत दिसंबर, 2006 में स्थापित किया गया था। एच.पी.पी.सी.एल. को पूरे हिमाचल प्रदेश मे ं जलविद्युत उत्पादन के विकास की योजना बनाने, बढ़ावा देने और प्रबंधन करने का काम सौंपा गया हैं। एच.पी.पी.सी.एल. के पास नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एन.टी.पी.सी.), सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एस.जे.वी.एन.एल.) और नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एन.एच पी.सी.) जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के समक्ष तकनीकी और संगठनात्मक क्षमताएं हैं।
संचालन/निष्पादन के चरण में परियोजनाएं- एच.पी.पी.सी.एल. के पास जलविद्युत की निम्नलिखित परियोजनाएं हैंः






विद्युत विकास के अन्य क्षेत्र : हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन रणनीतिक रूप से अतिरिक्त नवीकरणीय स्रोतों, विशेष रूप से सौर ऊर्जा को शामिल करने के लिए जलविद्युत ऊर्जा से परे अपनी बिजली विकास पहल का विस्तार कर रहा है। इस दूरदर्शी दृष्टिकोण का उद्देश्य राज्य के लिए बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए हल खोजना है और देश के समग्र विकास मे ं योगदान देना है।
i) बेरा-डोल सौर ऊर्जा परियोजना (5 मेगावाट) एच.पी.पी.सी.एल. ने बिलासपुर जिला में श्री नैना देवी जी तीर्थ के पास 5 मेगावाट सौर ऊर्जा सुविधा का निर्माण किया है। यह सरकार द्वारा राज्य में स्थापित पहली सौर ऊर्जा परियोजना थी। अपनी स्थापना के बाद से, परियोजना ने दिसंबर, 2024 तक 48.20 एम.यू. बिजली का उत्पादन किया है। मार्च, 2025 तक परियोजना का उत्पादन लक्ष्य 50.42 एम.यू. हैै।
i) पेखुबेला सौर ऊर्जा परियोजना (32 मेगावाट): एच.पी.पी.सी.एल. ने ऊना जिले के पेखुबेला गांव मे ं 32 मेगावाट पेखुबेला सौर ऊर्जा परियोजना को सफलतापूर्वक चालू किया है। परियोजना का वाणिज्यिक परिचालन अप्रैल, 2024 में शुरू हुआ। दिसंबर, 2024 तक, परियोजना ने 42.96 एम.यू. बिजली पैदा की है, जिसके परिणामस्वरूप ₹12.46 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ और मार्च, 2025 तक उत्पादन का लक्ष्य 62.85 एम.यू. है।
i) भंजल सौर ऊर्जा परियोजना (5 मेगावाट): एच.पी.पी.सी.एल. ने ऊना जिले की तहसील अंब मे ं 5 मेगावाट की भंजल सौर ऊर्जा परियोजना का निर्माण पूरा कर लिया है। परियोजना को नवंबर, 2024 को एच.पी.एस.ई.बी.एल. ग्रिड के साथ सफलतापूर्वक सिंक्रनाइज किया गया था। इसके सिंक्रनाइजेशन के बाद से परियोजना ने दिसंबर, 2024 तक 0.77 एम.यू. बिजली उत्पन्न की है, जिससे ₹0.33 करोड़ का राजस्व अर्जित हुआ है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 (दिसंबर, 2024 तक) के दौरान, एच.पी.पी.सी.एल. ने उपरोक्त सौर परियोजनाओं से कुल 49.74 एम.यू. उत्पादन हासिल किया है, जिससे ₹15.35 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ है।
i)सौर ऊर्जा परियोजनाएँः
1.हिमाचल प्रदेश सौर ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है। ऊना जिले मे ं अघलोर सौर ऊर्जा परियोजना (10 मेगावाट) पहल पूरी होने वाली है और जनवरी, 2025 तक चालू होने की उम्मीद है। अकेले यह परियोजना सालाना 22.73 मिलियन यूनिट का प्रभावशाली उत्पादन करेगी।
2. गोंडपुर बुल्ला सौर ऊर्जा परियोजना (12 मेगावाट) और लमलेहरी उपरली सौर ऊर्जा परियोजना (11 मेगावाट) अगस्त 2025 तक पूरा करने की उम्मीद है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त रूप से पांच और छोटी बिजली परियोजनाओं(एस.पी.पी.) के लिए इंजीनियरिंग खरीद और निर्माण (ई.पी.सी.) निविदाएं 49 मेगावाट की क्षमता खोली जा चुकी है और वर्तमान में मूल्यांकन के विभिन्न चरणों मे ं है, जल्द ही काम सौंपे जाने की उम्मीद है।
3. कुल 69 मेगावाट क्षमता वाली छह परियोजनाओं के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) तैयार की जा रही है, और डी.पी.आर. को अंतिम रूप दिए जाने के बाद ई.पी.सी. निविदाएं जारी की जाएंगी। इसके अलावा, लगभग 58 मेगावाट की अस्थायी संयुक्त क्षमता वाली आठ सौर ऊर्जा परियोजनाएं प्रारंभिक विकास चरण मे ं हैं। इन परियोजनाओं का विस्तृत सर्वे क्षण, जांच और प्रारंभिक व्यवहार्यता रिपोर्ट (पी.एफ.आर.) तैयार की जा रही है।
4. डमटाल, कांगड़ा जिले के लिए 200 मेगावाट की सौर परियोजना पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है। साइट सर्वे क्षण फरवरी, 2025 की शुरुआत में, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) मार्च, 2025 तक और निविदा प्रक्रिया मई, 2025 तक की जाएगी और मार्च, 2026 तक शुरू होने की उम्मीद है।
5. लगभग 173 मेगावाट की संयुक्त क्षमता वाली सात सौर ऊर्जा परियोजनाएं वर्तमान में वन मंजूरी अनुमोदन (एफ.सी.ए.) प्रक्रिया से गुजर रही हैं।
वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्र में परियोजनाओं का विकासः
i) 26 अप्रैल, 2023 को एच.पी.पी.सी.एल. और मैसर्स ऑयल इंडिया लिमिटेड के बीच एक समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) पर हस्ताक्षर किए गए। समझौते को मुख्यमंत्री हि. प्रदेश की उपस्थिति मे ं औपचारिक रूप दिया गया। इस साझेदारी के तहत, दोनो ं संस्थाओं ने निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए हिमाचल प्रदेश में वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्र में संयुक्त रूप से परियोजनाएं विकसित करने की प्रतिबद्धता जताई हैः
1) सौर ऊर्जा
2) हरित हाइड्रोजन
3) संपीड़ित बायोगैस (सी.बी.जी.)
4) भूतापीय ऊर्जा
5) अन्य संभावित नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र।
ii) पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एक मेगावाट का ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। एक मेगावाट ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट के निर्माण के लिए ई.पी.सी. टे ंडर 9 सितंबर, 2024 को मेसर्स ऑयल इंडिय लिमिटेड द्वारा ई.पी.सी. ठेकेदार को दिया गया था। परियोजना का निष्पादन वर्तमान में चल रहा है।
iii) प्रतिदिन दो टन (टी.पी.डी.) क्षमता वाले कंप्रेस्ड बायोगैस (सी.बी.जी.) संयंत्र की स्थापना की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। दो टी.पी.डी. सी.बी.जी. संयंत्र के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) का मसौदा सलाहकार द्वारा तैयार किया गया है, और प्रक्रिया मे ं आगे के चरण अब चल रहे हैं।
निर्माण/कार्यान्वयन चरण के तहत परियोजनाओं के संबंध में वित्तीय उपलब्धियां : हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड के निर्माणाधीन/कार्यान्वयन चरण की परियोजनाओं की उपलब्धियां निम्न सारणी में प्रस्तुत हैंः

हिमाचल प्रदेश सरकार का यह उद्यम ट्रांसमिशन नेटवर्क के विस्तार और नए उत्पादन संयंत्रों से बिजली की निर्बाध निकासी को सक्षम करने पर केंद्रित है। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा निगम को सौंपे गए कार्यों मे ं 66 किलोवोल्ट (के.वी) और उससे अधिक की वोल्टेज रेटिंग वाली ट्रांसमिशन लाइन और सब-स्टेशन दोनों सहित सभी नई परियोजनाओं का निष्पादन शामिल है। इसमें हिमाचल प्रदेश के ट्रांसमिशन मास्टर प्लान को तैयार करना, अपग्रेड करना और लागू करना शामिल है, जिसका उद्देश्य ट्रांसमिशन नेटवर्क को मजबूत करना और बिजली की कुशल निकासी की सुविधा प्रदान करना है।
एच.पी.पी.टी.सी.एल. एक राज्य ट्रांसमिशन यूटिलिटी (एस.टी.यू.) के कार्यों का निर्वहन कर रहा है और के ंद्रीय ट्रांसमिशन यूटिलिटी, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, विद्युत मंत्रालय (भारत सरकार), हिमाचल प्रदेश सरकार और एच.पी.एस.ई.बी. लिमिटेड के साथ ट्रांसमिशन से संबंधित मुद्दों का समन्वय कर रहा है। भारत सरकार ने हिमाचल प्रदेश के पावर सिस्टम मास्टर प्लान (पी.एस.एम.पी.) मे ं शामिल ट्रांसमिशन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए (एशियाई विकास बैंक) ए.डी.बी. ऋण को मंजूरी दे दी है। सारणी 10.8 वित्तीय वर्ष 2024-25 तक एच.पी.पी.टी.सी.एल. द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं का विवरण प्रस्तुत करता है।





उपरोक्त के अलावा, हरित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए किफायती ट्रांसमिशन प्रणाली विकसित करने के लिए ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर चरण-1 (जी.ई सी. -1) शुरू किया गया है। इस योजना को आंशिक रूप से (40 प्रतिशत) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एम.एन.आर.ई.) भारत सरकार से कम अनुदान के रूप में और आंशिक रूप से (40 प्रतिशत) जर्मन विकास बैंक, के.एफ.डब्ल्यू. से कम निश्चित ब्याज दर ऋण के रूप में और शेष इक्विटी द्वारा वित्त पोषित किया गया है। जी.ई.सी.-1 के तहत, एच.पी.पी.टी.सी.एल. द्वारा ग्यारह परियोजनाओं का निर्माण किया जाना था। जिनमें से दस परियोजनाएं चालू हो चुकी हैं और एक परियोजना मार्च, 2025 तक चालू होने की संभावना है। इन सभी परियोजनाओं के पूरा होने से 846.5 एम.वी.ए. (मेगा वोल्ट एम्पीयर) परिवर्तन क्षमता और 182.08 सी.के.टी. किलोमीटर (सर्किट किलोमीटर) की बढ़ोतरी होगी।
ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड (आर.ई.सी.एल.) की वित्तीय सहायता से, एच.पी पीटी.सी.एल. ने 10 परियोजनाओं को सफलतापूर्वक चालू किया है, जबकि 3 अतिरिक्त परियोजनाएं वर्तमान में प्रगति पर हैं। एक अन्य परियोजना के मार्च, 2025 से पहले चालू होने की उम्मीद है। इन परियोजनाओं के पूरा होने से राज्य के ट्रांसमिशन नेटवर्क मे ं काफी वृद्धि हुई है, जिससे कांगड़ा, कुल्लू, सिरमौर और किन्नौर जिलो ं में 457.5 एम.वी.ए. परिवर्तन क्षमता और 139.14 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें जुड़ गई हैं।
10.5.1 प्रमुख उपलब्धियां वित्तीय वर्ष 2024-25 में दिसंबर 2024 तक, एच.पी.पी.टी.सी.एल. ने ₹269.77 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ दो सबस्टेशन और छह ट्रांसमिशन लाइनों को पूरा और चालू किया है, जिसके परिणामस्वरूप मौजूदा ट्रांसमिशन नेटवर्क में क्रमशः 91.49 सी.के.टी. कि मी. के साथ 363 एम.वी.ए. परिवर्तन क्षमता शामिल हुई है। एच.पी.पी.टी.सी.एल. ने इस वित्तीय वर्ष के दौरान विभिन्न ट्रांसमिशन परियोजनाओं (पूर्ण और चालू) के लिए कुल पू ंजीगत व्यय लगभग ₹58.91 करोड़ किया है। उपरोक्त के अलावा, ₹8.91 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ एक सी.के.टी कि मी. की कुल लंबाई वाली एक ट्रांसमिशन लाइन और ₹12.82 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ एक ई.एच.वी. स्विचिंग सबस्टेशन पूरा होने के कगार पर हैं और इन्हें मार्च, 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। संबंधित विवरण नीचे सारणी 10.9 में दिया गया है।
उपरोक्त परियोजनाओं के चालू होने से कई जलविद्युत परियोजनाओं की बाधा- मुक्त बिजली निकासी की सुविधा मिलेगी और राज्य मे ं बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में भी सुधार होगा।
हिमऊर्जा का गठन वर्ष 1989 में किया गया था, जिसका मुख्य कार्य नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एम.एन.आर.ई), भारत सरकार और राज्य सरकार के वित्तीय सहयोग से राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाना हैं। राज्य में कार्यान्वित किए जा रहे प्रमुख कार्यक्रम हैं सौर ऊर्जा परियोजनाएं, ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप प्लांट, सोलर फोटोवोल्टिक ऑफ-ग्रिड सिस्टम, सोलर थर्मल सिस्टम और लघु जलविद्युत परियोजनाएं (5 मेगावाट क्षमता तक) हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान दिसम्वर, 2024 तक की उपलब्धियां तथा मार्च, 2025 तक प्रत्याशित का ब्यौरा निम्न हैः-
(क) सौर प्रकाशवोल्टिय कार्यक्रम
i) सौर प्रकाशवोल्टिय पावर परियोजनाऐ ं/प्लांटः
अ) भूमि पर स्थापित ग्रिड संचालित सौर पावर परियोजनाए- : े ं प्रथम चरण के तहत, 73.6 मेगावाट की संयुक्त क्षमता वाली परियोजनाओं के लिए 83 सौर ऊर्जा परियोजना (एस.पी.पी.) डेवलपर्स को अनंतिम पंजीकरण पत्र जारी किए गए हैं। इस चरण के दौरान, 54.56 मेगावाट की क्षमता को कवर करते हुए 58 बिजली खरीद समझौतों (पी.पी.ए.) पर हस्ताक्षर किए गए। इनमे ं से 11.85 मेगावाट की कुल क्षमता वाली 31 सौर परियोजनाएं पहले ही चालू हो चुकी हैं। मार्च, 2025 तक अतिरिक्त 5 मेगावाट एस.पी.पी. चालू होने की उम्मीद हैं।
ब) ग्रिड संचालित सौर रूफ टाप प्लांटसः दिसंबर, 2024 तक 317 किलोवाट की कुल क्षमता वाले ग्रिड-कनेक्टेड सौर ऊर्जा संयंत्र चालू हो गए हैं। मार्च, 2025 तक अतिरिक्त 200 किलोवाट ग्रिड-कनेक्टेड रूफटॉप सोलर (जी.सी.आर.टी.एस.) संयंत्रों की स्थापना निर्धारित हैं।
स) आफ ग्रिड सौर पावर प्लांटः 4 किलोवाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र दिसंबर, 2024 तक स्थापित किए जा चुके हैं। अन्य 25 किलोवाट क्षमता के ऑफ ग्रिड संयंत्र मार्च, 2025 तक स्थापित किए जाएंगे।
ii) सौर प्रकाशवोल्टिय स्ट्रीट लाईटः वितीय वर्ष 2024-25 के दौरान दिसम्वर, 2024 तक 14,454 सौर प्रकाशवोल्टिय स्ट्रीट लाईट सामूहिक प्रयोग के लिए स्थापित की जा चुकी हैं तथा मार्च, 2025 तक प्रत्याशित उपलब्धि लगभग 16,000 होगी।
iii) सौर प्रकाशवोल्टिय घरेलू लाईटः राज्य में अनुसूचित जाति बी.पी.एल. परिवारो ं को 53 सोलर होम लाइटिंग प्रणालियाँ प्रदान की गई हैं।।
(ख) सौर तापीय कार्यक्रम -
i) सौर जल तापन संयन्त्रः वित्तीय वर्ष 2024-25, के दौरान दिसंबर, 2024 तक प्रति दिन 19,800 लीटर की कुल क्षमता वाले सौर जल तापन सिस्टम स्थापित किए गए हैं। मार्च, 2025 तक अनुमानित क्षमता लगभग 21,000 लीटर प्रति दिन तक पहु ंचने की उम्मीद हैं।
ii) सौर कुकरः वित्तीय वर्ष 2024-25, के दौरान दिसंबर, 2024 तक 29 बॉक्स-प्रकार और डिश-प्रकार के सोलर कुकर उपलब्ध कराए गए थे। मार्च, 2025 तक अनुमानित कुल लगभग 35 सौर कुकर तक पहुंचने की उम्मीद हैं।
(ग) 5 मैगावाट क्षमता तक की लघु जल विद्युत परियोजनाऐ ं वित्तीय वर्ष 2024-25, के दौरान दिसम्वर, 2024 तक 4 लघु जल विद्युत परियोजनाऐ ं स्थापित की गई हैं जिनकी संकलित क्षमता 9.75 मैगावाट हैं।
निष्कर्षः हिमाचल प्रदेश पनबिजली क्षेत्र मे ं एक महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धी है, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और देश की बिजली आपूर्ति में योगदान करने के लिए अपने प्रचुर जल संसाधनों का लाभ उठाता है। राज्य ने 24,000 मेगावाट पनबिजली उत्पादन की क्षमता के साथ अब तक 11,290 मेगावाट से अधिक का दोहन किया है। राज्य सरकार के प्रयासों के अन्तर्गत पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना (आर.डी.एस.एस.), वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम और स्मार्ट मीटरिंग पहल बिजली की गुणवत्ता, बुनियादी ढांचे और ऊर्जा दक्षता मे ं सुधार के लिए राज्य की प्रतिबद्धता को उजागर करते हैं। इन पहलों का उद्देश्य बिजली की आपूर्ति में विश्वसनीयता बढ़ाना, घाटे को कम करना और सतत विकास को बढ़ावा देना और राज्य के ऊर्जा क्षेत्र को और मजबूत करना है।

11.श्रम और रोजगार

रोजगार देश के नीति नियोजकों के साथ-साथ राज्यों के लिए भी शीर्ष चुनौतियों में से एक बना हुआ है। साक्षरता और स्कूली शिक्षा में सुधार, उच्च शिक्षा और कौशल की प्राप्ति और व्यावसायिक शिक्षा के साथ यह चुनौती समय के साथ और अधिक जटिल हो गई है। नीतियों और सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क के रूप मे ं राज्य के नियोजित हस्तक्षेप राज्य में मुफ्त और सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियाँ प्रदान करने में मदद कर रहे हैं। देश के अन्य हिस्सों की तुलना में, हिमाचल प्रदेश में कृषि और गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में श्रमिकों की मजदूरी दर अधिक है (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण) हिमाचल प्रदेश में उच्च मजदूरी दर राज्य में प्रवासियों को आकर्षित करती है, खासकर उन राज्यों से जहां मजदूरी की दरें कम हैं। राज्य को अब अतिरिक्त रोजगार के अवसर और रोजगार-गहन विकास की आवश्यकता है, जिसके लिए श्रम बल को कम-मूल्य-वर्धित से उच्च-मूल्य-वर्धित गतिविधियों की ओर बढ़ाना है।
राज्य के शहरी और ग्रामीण दोनो ं हिस्सों में नए रोजगार पैदा करने के लिए, राज्य सरकार अर्थव्यवस्था में रोजगार-प्रेरित समावेशी विकास को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। इस अध्याय में रोजगार और कौशल विकास के रुझानों का विश्लेषण किया गया है। पहले खंड में रोजगार की स्थिति की जांच की गई है, जिसमें कार्यबल के क्षेत्रीय और लैंगिक वितरण के साथ-साथ राज्यवार रुझानों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। दूसरे खंड में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए सरकार के प्रयासों पर प्रकाश डाला गया है और हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कौशल अवसंरचना विकसित करने की पहल पर भी चर्चा की गई है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से उपेक्षित समूहों के लिए रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना है।
भारत सरकार ने 2017 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ.), अब राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एन.एस.ओ.), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एम ओ.एस.पी.आई.) के पंचवर्षीय रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षणों की जगह, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) शुरू किया है। पी.एल.एफ.एस. डेटा अब राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर रोजगार और बेरोजगारी के आंकड़ों का प्राथमिक स्रोत है। भारत सरकार ने मई 2019 में पहली आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) 2017-18 रिपोर्ट जारी की, जो कि एन.एस.ओ. द्वारा जुलाई 2017 से जून 2018 तक किए गए सर्वेक्षण और जून 2020 में दूसरी पी.एल.एफ.एस. 2018-19 रिपोर्ट, जो एन.एस.ओ. द्वारा जुलाई 2018 से जून 2019 तक आयोजित किए गए सर्वे क्षण पर आधारित है। वर्तमान में सातवीं वार्षिक रिर्पोट एन.एस ओ. द्वारा जुलाई 2023 से जून 2024 तक आयोजित सर्वे क्षण के आधार पर प्रकाशित की है।
श्रम-बल-भागीदारी दर- श्रम बल और कार्य की स्थिति की जांच आम तौर पर रोजगार के दो संकेतको ं सामान्य स्थिति (यू.एस.) जिसमें प्रमुख आर्थिक गतिविधि और रोजगार की सहायक आर्थिक गतिविधि शामिल है और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सी.डब्ल्यू.एस.) के आधार पर की जाती है। दोनों संकेतकों के बीच अंतर को समझना महत्वपूर्ण है।
आर्थिक गतिविधि की स्थिति जिस पर एक व्यक्ति सर्वेक्षण की तारीख से पहले 365 दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय (प्रमुख समय मानदंड) बिताता है, वह व्यक्ति की प्रमुख गतिविधि स्थिति (पी.एस.) है। ऐसे व्यक्तियों ने अपनी प्रमुख स्थिति के अलावा, सर्वे क्षण की तारीख से पहले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान 30 दिनों या उससे अधिक के लिए कुछ आर्थिक गतिविधि भी होगी। ऐसी स्थिति को सहायक स्थिति (एस.एस.) के रूप में जाना जाता है। पी.एस़.$एस.एस. को संयुक्त रूप से सामान्य स्थिति के रूप मे ं जाना जाता है जो लंबी अवधि के लिए रोजगार से मेल खाती है।
कुछ व्यक्ति जो वर्ष में अधिकांश दिनों के लिए नियोजित होते हैं, उन्हे ं विभिन्न कारणों से बहुमत के दिनों के अलावा अन्य अवधि में नियोजित नहीं किया जा सकता है। इसका पता सर्वे क्षण की तारीख से पहले 7 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान किसी व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक गतिविधि स्थिति को देखकर लगाया जाता है। यदि किसी व्यक्ति ने सर्वे क्षण की तारीख से पहले के 7 दिनों के दौरान कम से कम एक दिन में कम से कम 1 घंटा काम किया हो या सर्वे क्षण की तारीख से पहले के सात दिनों के दौरान कम से कम एक दिन में कम से कम एक घंटे के लिए उसके पास काम हो, लेकिन काम नहीं किया हो तो उसे सी.डब्ल्यू.एस. की स्थिति के अनुसार कामकाजी (या नियोजित) माना जाता है। उपरोक्त यू.एस. और सी.डब्ल्यू.एस. की परिभाषाओं को देखते हुए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सी.डब्ल्य.ूएस. रोजगार/बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है जबकि यू.एस. लंबी अवधि के रोजगार को दर्शाता है।
श्रम बल में वे लोग शामिल हैं जो या तो काम कर रहे थे (या नियोजित थे) या जो काम के लिए उपलब्ध थे (या बेरोजगार थे)। श्रम बल में कुछ व्यक्तियों को विभिन्न कारणों से काम से रोका जाता है। उस संख्या को श्रम बल से घटाने पर वास्तविक श्रमिकों की संख्या प्राप्त होती है। इन श्रमिकों को जो किसी भी गतिविधि में लगे हुए हैं उन व्यक्तियों को स्व-रोजगार या नियमित मजदूरी/वेतनभोगी और आकस्मिक श्रमिक के रूप में वर्गीकृ त किया गया है। श्रम शक्ति और कार्यबल के बीच का अंतर बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या बताता है।
हिमाचल प्रदेश में श्रम बल की स्थिति का अंदाजा, श्रम बल भागीदारी दर (एल एफ.पी.आर.), श्रमिक जनसंख्या दर (डब्ल्यू.पी.आर.), दैनिक मजदूरी दर और औद्योगिक संबंधों मे ं रुझानो से लगाया जा सकता है। श्रम बल भागीदारी दर को ˊआबादी में व्यक्तियों के बीच श्रम बल में व्यक्तियों का प्रतिशतˊ के रूप में परिभाषित किया गया है। पी.एल.एफ.एस. के अनुसार हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और भारत में 2022-23 और 2023-24 में एल.एफ.पी.आर. प्रस्तुत करती है। वर्ष 2023-24 में समस्त आयु का एल.एफ.पी.आर. हिमाचल प्रदेश (60.5) के लिए, उत्तराखंड (46.2), पंजाब (43.7), हरियाणा (37.4) और समस्त भारत (45.1) से अधिक है। महिलाओं के लिए यह इन सभी राज्यों (उत्तराखंड को छोड़ कर) व समस्त भारत से दुगने से भी ज्यादा है। हिमाचल प्रदेश में पी.एल.एफ.एस. अन्य निकटवर्ती राज्यों की तुलना में इतना अधिक होने का कारण यह है कि कृषि अभी भी राज्य की बड़े पैमाने पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है, और मुख्य रूप से कृषि अर्थव्यवस्थाओं में श्रम बल भागीदारी दर अधिक होती है। चित्र 11.1


2023-24 में, हिमाचल प्रदेश (80.0) के लिए एल.एफ.पी.आर. (15 से 59 वर्ष की आयु के बीच) उत्तराखंड (64.4), पंजाब (60.4), हरियाणा (55.1) और समस्त भारत (64.3) से अधिक है। हिमाचल प्रदेश के लिए, ग्रामीण और शहरी दोनों एल.एफ.पी.आर. इन सभी राज्यों और पूरे भारत की तुलना में अधिक है। हिमाचल प्रदेश मे ं ग्रामीण एल.एफ.पी.आर. उत्तराखंड से लगभग 13.4 प्रतिशत अंक अधिक और समस्त भारत की तुलना में 14.2 प्रतिशत अंक अधिक है, जबकि राज्य में शहरी एल.एफ.पी.आर. उत्तराखंड से लगभग 14.7 प्रतिशत अंक अधिक और समस्त भारत की तुलना में 11.1 प्रतिशत अंक अधिक है चित्र11.2
श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यू.पी.आर.)- डब्ल्यू.पी.आर. एक संकेतक है जिसका उपयोग रोजगार की स्थिति का विश्लेषण करने और आबादी का अनुपात जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय योगदान देता है, को जानने के लिए किया जाता है। ’’डब्ल्यू.पी.आर. को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप मे ं परिभाषित किया गया है’’ जिसके द्वारा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, और भारत में श्रमिक जनसंख्या अनुपात को दर्शाया गया है। यह स्पष्ट है कि सभी आयु वर्ग मे ं 2023-24 में हिमाचल प्रदेश का डब्ल्य ूपी.आर. (57.2), उत्तराखंड (44.2), पंजाब (41.3), हरियाणा (36.1) और पूरे भारत (43.7) से बेहतर है। सर्वे क्षण के नतीजों से स्पष्ट होता है कि हिमाचल प्रदेश में महिलाएं (51.8 प्रतिशत) अखिल भारतीय स्तर पर और पड़ोसी राज्यों मे ं अपने समकक्षों की तुलना में आर्थिक गतिविधियों मे ं अधिक सक्रिय रूप से भाग ले रहीं हैं। चित्र 11.3

बेरोजगारी दर- ’’बेरोजगारी दर (यू.आर.) को श्रम बल में व्यक्तियों के बीच बेरोजगार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है’’। इसे पी.एल.एफ.एस. सर्वे क्षणों में सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) और साप्ताहिक स्थिति के संदर्भ में मापा जाता है। यह श्रम बल के उस हिस्से को दर्शाता है जो सक्रिय रूप से काम की तलाश मे ं हैं या उपलब्ध हैं। पी.एल.एफ.एस. 2023-24 के अनुसार सामान्य स्थिति (पी.एस$एस.एस.) के अन्तर्गत समस्त आयु के लोगों के लिए हिमाचल में बेरोजगारी दर 5.4 प्रतिशत थी। सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर पुरुषों के बीच 3.2 प्रतिशत और महिलाओं मे ं 7.0 प्रतिशत थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में पुरुषों में यह दर 4.8 प्रतिशत और महिलाओं में 18.2 प्रतिशत थी।
रोजगार में स्थिति के अनुसार सामान्य स्थिति में श्रमिकों का विवरण- सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) के अनुसार श्रमिकों को रोजगार में उनकी स्थिति के अनुसार तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। ये श्रेणियां हैंः ;पद्ध स्व-नियोजित, ;पपद्ध नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी और ;पपपद्ध आकस्मिक श्रमिक। स्व-रोजगार की श्रेणी में दो उप-श्रेणियां निम्नानुसार बनाई गई हैंः ;पद्ध स्वयं लेखा कर्मी और नियोक्ता ;पपद्ध घरेलु उद्यमों मे ं अवैतनिक सहायक। सारणी 11.1 वर्ष 2022-23 और 2023-24 में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और भारत मे ं रोजगार की स्थिति के अनुसार श्रमिकों का प्रतिशत वितरण प्रस्तुत करती है। वर्ष 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश मे ं पड़ोसी राज्यो ं और अखिल भारतीय स्तर की तुलना मे ं अधिक महिलाएं स्वयं के खाते के श्रमिक, नियोक्ता (46.4 प्रतिशत) के रूप मे ं स्व-रोजगार में हैं। राज्य में महिलाओं की इन्हीं गतिविधियों का अनुपात वर्ष 2023-24 में बढ़कर 47.6 हो गया है, जो कि उनके समकक्षों की तुलना में अधिक है। ऐसा इसलिए क्योंकि क्यों कि हिमाचल प्रदेश में अधिकांश महिलाएं कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र मे ं कार्यरत हैं।
दूसरी ओर वर्ष 2022-23 के लिए उत्तराखंड (14.6), पंजाब (36.0), हरियाणा (30.0) और की तुलना में हिमाचल प्रदेश मे ं केवल 11.9 प्रतिशत महिलाएं नियमित वेतन कमाने वाली स्थिति में पाई गई हैं। अखिल भारतीय (15.9). वर्ष 2023-24 में महिलाओं का अनुपात बढ़कर 12.6 प्रतिशत हो गया है। आकस्मिक श्रमिक की स्थिति में हिमाचल प्रदेश में महिलाओं का अनुपात वर्ष 2022-23 में फिर अपने पड़ोसी राज्यों व अखिल भारतीय की तुलना मे ं बहुत कम (1.7 प्रतिशत) है। आगे इसी तरह की स्थिति मे ं 2023-24 में महिलाओं का अनुपात बढ़कर 2.8 प्रतिशत हो गया है, जो अपने पड़ोसी राज्यो ं और पूरे भारत से कम है।


रोजगार चाहने वालो ं को रोजगार सहायता और सूचना सेवा तीन क्षेत्रीय रोजगार कार्यालयों, 9 जिला रोजगार कार्यालयों, 2 विश्वविद्यालयों मे ं रोजगार सूचना एवं मार्गदर्शन केन्द्रों और 65 उप-रोजगार कार्यालयों, दिव्यागों के लिए एक विशेष रोजगार कार्यालय और एक केन्द्रीय रोजगार कक्ष के माध्यम से प्रदान की जाती हैं। युवाओं को व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं रोजगार परामर्श सम्बन्धित जानकारी के साथ-साथ रोजगार बाजार की जानकारी उपलब्ध करवाने हेतु सभी 77 रोजगार कार्यालयों को कम्पयूटराईज किया जा चुका है और आॅनलाइन हैं। इच्छुक आवेदक ई.ई.एम.आई.एस. पोर्टल के माध्यम से रोजगार कार्यालय में आए बिना कहीं से भी रोजगार कार्यालय मे ं अपना ऑनलाइन पंजीकरण करा सकते हैं।
न्यूनतम मजदूरी- हिमाचल प्रदेश सरकार ने न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत कामगारों को न्यूनतम वेतन निर्धारित व संशोधित करने के सम्बन्ध में सलाह देने के उद्देश्य से राज्य न्यूनतम वेतन सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। राज्य सरकार ने 1 अप्रैल, 2024 से अकुशल कामगारों का वेतन ₹375 से ₹400 प्रतिदिन अथवा ₹11,250 से ₹12,000 प्रतिमाह न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के प्रावधानो ं के अंतर्गत सभी वर्तमान 19 अनुसूचित व्यवसायो ं के लिए निर्धारित कर दिया है। साथ ही अन्य श्रेणियों की न्यूनतम दरों में भी आनुपातिक वृद्धि की गई है।
रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम- वर्ष 1960 से रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम के अन्तर्गत रोजगार आंकडे ़ जिला स्तर पर एकत्र किए जा रहे हैं। 31 मार्च, 2024 तक राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र में कुल रोजगार 2,84,586 और निजी क्षेत्र में 2,29,887 था। उद्यमों की दृृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र मे ं कुल 4,627 व निजी क्षेत्र मे ं कुल 2,321 उद्यम कार्यरत थे।
व्यावसायिक मार्गदर्षन- श्रम और रोजगार विभाग युवाओं को व्यावसायिक/कैरियर मार्गदर्शन प्रदान करता है और स्कूलों, कॉलेजों, आईटीआई और पॉलिटेक्निक सहित अन्य स्थानों पर मार्गदर्शन शिविर आयोजित करता है। तदनुसार, विभाग द्वारा युवाओं के लिए क्रियान्वित की जा रही योजनाओं/कल्याणकारी कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रदान करने के अलावा, कौशल विकास, करियर विकल्प, रोजगार/स्वरोजगार के अवसर आदि के बारे में भी जानकारी प्रदान की जाती है। इस विŸाीय वर्ष के दौरान ;31 दिसम्बर, 2024 तकद्ध 26,049 युवाओं को विभाग के सक्षम अधिकारियों द्वारा व्यावसायिक मार्गदर्शन और कैरियर परामर्श प्रदान किया गया।
केन्द्रीय रोजगार कक्ष- हिमाचल प्रदेश के निजी क्षेत्र में कार्यरत एवं लगाई जा रही औद्योगिक इकाईयों, संस्थानों और प्रतिष्ठानो ं के लिए तकनीकी रूप से कुशल कामगारों को रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में श्रम एवं रोजगार निदेशालय में गठित केन्द्रीय रोजगार कक्ष हमेशा की तरह वर्ष 2024-25 में भी अपनी सेवाएं देता रहा है। इस प्रकार रोजगार कक्ष, रोजगार प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार निजी क्षेत्र में उचित रोजगार प्राप्त करने में सहायता करता है। केन्द्रीय रोजगार कक्ष, निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं की अकुशल कामगारों की मंाग हेतु कैम्पस साक्षात्कार करवाता है। इस वित्तीय वर्ष मे ं, 31 दिसम्बर, 2024 तक केन्द्रीय रोजगार कक्ष के माध्यम से 3 जॉब फेयर और 297 कैंम्पस साक्षात्कार करवाये गये, जिसमें 4,331 आवेदकों की नियुक्तियां की गई है ।
विषेष रोजगार कार्यालय (दिव्यांगों हेतु)- दिव्यांग व्यक्तियों (शारीरिक, दृष्टि, श्रवण और गति बाधित) की नियुक्ति के लिए विशेष रोजगार कार्यालय की स्थापना 1976 में श्रम और रोजगार निदेशालय में की गई थी, जो दिव्यागों को व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानो ं मे ं रोजगार दिलवाने में भी सहायता करता है। इस वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान ;दिसम्बर, 2024 तकद्ध सक्रिय पंजिका में 809 दिव्यांगों को पंजीकृत करके विकलांग पंजीकृतों की संख्या 16,665 हो गई है तथा 21 दिव्यांग व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया है।
कौशल विकास भत्ता योजना- कौशल विकास भत्ता योजना, 2013 के अन्तर्गत इस वित्तीय वर्ष में ₹54.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है। योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के पात्र बेरोजगार युवाओं को उनके कौशल विकास हेतु भत्ते का प्रावधान है ताकि उनकी कौशल विकास व रोजगार प्राप्त करने की क्षमता बढ़ सके। यह भत्ता बेरोजगार व्यक्ति को ₹1,000 प्रतिमाह और 50 प्रतिशत या इससे अधिक स्थायी दिव्यांग आवेदकों को ₹1,500 प्रति माह की दर से कौशल विकास प्रशिक्षण के दौरान अधिकतम दो वर्ष तक देय है। इस वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान दिसम्बर, 2024 तक 67,886 लाभार्थियो ं को ₹33.16 करोड़ कौशल विकास भत्ता दिया गया। विभाग औद्योगिक कौशल विकास भत्ता योजना, 2018 को भी लागू कर रहा है। इस योजना के तहत कौशल उन्नयन के लिए राज्य के निजी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में लगे, रोजगार प्राप्त युवाओं को औद्योगिक कौशल विकास भत्ते का प्रावधान है। इस योजना के अन्तर्गत वितरण मापदंड कौशल विकास भत्ता योजना 2013 के अनुरूप है और इस वित्तीय वर्ष में, 129 लाभार्थियो ं को ₹8.27 लाख वितरित किए गये।
बेरोजगारी भत्ता योजना- बेरोजगारी भत्ता योजना के अन्तर्गत इस वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹38.21 करोड़ के बजट का प्रावधान रखा गया है। इस योजना के अन्तर्गत पात्र हिमाचली बेरोज़गारों को बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान है। यह भत्ता ₹1,000 प्रतिमाह तथा 50 प्रतिशत या इससे अधिक स्थायी विकलंाग आवेदकांे को ₹1,500 प्रतिमाह की दर से अधिकतम 2 वर्ष तक देय है, ताकि वे एक निश्चित अवधि तक स्वयं को सक्षम बनाएं रख सकें। इस अवधि के दौरान दिसम्बर, 2024 तक 23,579 युवाओं को ₹21.58 करोड़ का लाभ दिया गया।
रोजगार कार्यालयों सम्बन्धी सूचना- चालू वित्त वर्ष के दौरान (दिसंबर, 2024 तक) 94,212 आवेदकों को रोजगार विनिमय योजना के तहत पंजीकृत किया गया । इनमें से 1,069 (गैर-अधिसूचित रिक्तियों सहित) नियुक्तियाँ सरकारी क्षेत्र मे ं 545 अधिसूचित रिक्तियों के विरुद्ध और 4,370 नियुक्तियाँ निजी क्षेत्र में 11,448 अधिसूचित रिक्तियों के विरुद्ध की गईं। दिसंबर, 2024 तक सभी रोजगार कार्यालयों के सक्रिय पंजिका में कुल संख्या 6,75,671 है। अप्रैल से दिसंबर, 2024 तक (विशेष रोजगार कार्यालय सहित) रोजगार कार्यालयों द्वारा किए गए जिलेवार पंजीकरण एवं नियुक्तियां सारणी 11.2 में दर्शाई गई हंैः
एच.पी.के.वी.एन. राज्य सरकार का निगम है जो 14 सितम्बर, 2015 को कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत गठित किया गया। हिमाचल प्रदेश के युवाओं को कौशल विकास निगम द्वारा दो प्रमुख परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है। जैसे कि (प) एशियाई विकास बै ंक (ए.डी.बी.) द्वारा पोशित हिमाचल कौशल विकास परियोजना (एच.पी एस.डी.पी.) (पप) राज्य कार्यन्विंत प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (पी.एम.के.वी.वाई.) 4.0. कोविड-19 महामारी के दौरान एक वर्ष से अधिक समय तक प्रशिक्षण के पूर्ण निलंबन के बावजूद, निगम द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमो ं में 1,18,000 से अधिक प्रशिक्षुओं को नामांकित किया गया है।
एषियन विकास बैंक की सहायता से हिमाचल प्रदेष कौषल विकास परियोजना (एच.पी.एस.डी.पी.)- हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना मई 2018 से लागू हुई है और जून 2025 को समाप्त हो जाएगी। इस परियोजना की कुल लागत ₹827.00 करोड़ है। जिनका विभाजन निम्नानुसार हैः प पप
एशियन विकास बैंक का भाग: ₹661.00 करोड़
प्रदेश सरकार का भाग ः ₹166.00 करोड़

अभी तक ₹613.00 करोड़ के अनुबंध दिये जा चुके है और एशियन विकास बैंक के शेयर में से इस परियोजना के अन्तर्गत ₹505.00 करोड़ खर्च के रूप मे ं प्राप्त कर लिये है ं तथा ₹83.15 करोड़ प्रदेश सरकार के शेयर में से व्यय हो चुके है ं।
एच.पी.के.वी.एन. परियोजनाऐं/गतिविधियाँ
i) उत्कृष्ट केन्द्र की स्थापना (सी.ओ.ई.) हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के अन्तर्गत, एशियन विकास बैंक की सहायता से राज्य मे ं दीर्घकालीन कौशल विकास की आवश्यकताओं के अन्तर्गत संस्थागत ढांचा बनाने के लिए एक उत्कृष्टता केन्द्र वाकनाघाट, सोलन में सिविल कार्यों के लिए ₹84.00 करोड़ की लागत से स्थापित किया जा रहा है जिसके पूरा होने की उम्मीद जून 2025 तक है। 164 उम्मीदवारों को पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र (खाद्य उत्पादन, एफ एंड बी संचालन, होटल संचालन और प्रबंधन, फिटनेस और कल्याण) मे ं प्रशिक्षित किया गया है। 61 उम्मीदवारों वाले पहले बैच ने प्रशिक्षण पूरा कर लिया है, जिनमें से 39 को नौकरी मिल चुकी है। दूसरे बैच में 103 छात्र शामिल हैं और उन्होंने इंटर्नशिप की जो 31 दिसंबर, 2024 तक पूरी हो गई और 39 छात्रों को नौकरी मिल चुकी है।
ii) सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से लघु अवधि के राष्ट्रीय कौशल योग्यता प्रशिक्षण कोर्स एच.पी.के.वी.एन. द्वारा हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के अन्तर्गत औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में लघु अवधि और बहु कौशल प्रशिक्षण का आयोजन किया है और 21,000 से अधिक छात्रों को नामांकित किया गया है और 13,000 से अधिक को ऑटोमोटिव, निर्माण, प्लंबिंग, आई.टी.-आई.टी.ई.एस, पू ंजीगत सामान, परिधान मेड-अप, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं हार्डवेयर इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में 21,236 के प्रशिक्षण लक्ष्य के सापेक्ष प्रमाणित किया गया।
iii) स्नातक युवाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम 28 सरकारी डिग्री काॅलेजांे के स्नातक के अंतिम वर्ष के विद्याार्थियों के रोजगार की सम्भावना को बढ़ाने की दृष्टि से एच.पी.के.वी.एन. द्वारा विभिन्न कार्यक्षेत्रों जैसे 1) बी.एफ.एस.आई. (बैंकिंग वित्त प्रतिभूति और बीमा), 2) आई.टी-आई.टी.ई एस., 3) परिधान और मेड-अप, 4) आतिथ्य और पर्यटन, और 5) मीडिया और मनोरंजन में राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचा के अनुरूप ग्रेजुएट एड ओन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया हैं जो कि उनके मूल अघ्ययन का पूरक होगा। इसके अन्तर्गत 7,500 निर्धारित लक्ष्य के सापेक्ष 6,868 विद्यार्थियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।
iv) राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचे (एन.एस.क्यू.एफ.) के अनुरूप पूर्व शिक्षा मान्यता प्राप्त (आर.पी.एल.) प्रशिक्षण हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के पूर्व शिक्षण की मान्यता (आर.पी एल.) घटक के तहत 10,622 उम्मीदवारों को नामांकित किया गया है और 8,181 उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया है।
v) प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं के माध्यम से अन्य लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम हिमाचली युवाओं को विभिन्न क्षेत्रों/नौकरी भूमिकाओं मे ं उद्योग प्रासंगिक कौशल में अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है और वर्तमान में 4,832 से अधिक उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया है।
vi) वोकेशन डिग्री कार्यक्रम में स्नातक शिक्षा (बी.वोक.) कार्यक्रम एच.पी.के.वी.एन. और उच्च शिक्षा विभाग (डी.ओ.एच.ई.) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है। यह तीन वर्षीय पूर्णकालिक डिग्री कार्यक्रम एच.पी.एस डी.पी. के राज्य घटक के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है। बी.वोक. कार्यक्रम शुरू में शैक्षणिक सत्र 2017-18 से शुरू होकर दो क्षेत्रों, खुदरा प्रबंधन और पर्यटन और आतिथ्य में 12 कॉलेजों मे ं शुरू किया गया था। 2021-22 शैक्षणिक सत्र में इसे 6 कॉलेजो ं में और 2023-24 शैक्षणिक सत्र में 2 अतिरिक्त कॉलेजों में विस्तारित किया गया। वर्तमान में, 2,880 के लक्ष्य के विरुद्ध 5,755 उम्मीदवारों का नामांकन किया गया है, और 2,053 उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया है।
vii) दिव्यांग व्यक्तियों की आजीविका आधारित कौशल प्रशिक्षण विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) उम्मीदवारों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करने के लिए, 403 उम्मीदवारों को खुदरा और पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्रों मे ं एच.पी.के.वी.एन. द्वारा प्रमाणित किया गया है।
viii) 64 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, महिला पोलिटैक्निक, (रैहन, जिला कांगडा) तथा राजकीय अभियांत्रिक महाविद्यालयों के औजारों एवं उपकरणों का उन्नयन हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना ;एचण्पीण्एसण्डीण्पीण्द्ध ने 64 आई.टी आई. के उन्नयन में सहायता की है, जिसमे ं 29 ट्रेडों को ₹81.00 करोड़ के वित्त पोषण प्रावधानों के साथ एस.सी.वी.टी. से एन.सी.वी.टी. स्तर मे ं परिवर्तित/ स्तरोन्नत किया गया था। इसमे ं महिला पॉलिटेक्निक रैहन और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के उपकरण शामिल हैं। उपरोक्त सभी तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों के उन्नयन हेतु खरीद पूरी हो चुकी है।
ix) शहरी आजीविका केन्द्र (सी.एल.सी.), ग्रामीण आजीविका केन्द्र (आर.एल.सी.), माॅडल कैरियर केन्द्र (एम.सी.सी.) और अन्य सम्बन्धित श्रेणी की संरचना राज्य भर मे ं कौशल विकास गतिविधियो ं के लिए संस्थागत सहायता प्रदान करने के लिए 6 सी.एल.सी, 7 आर.एल.सी. और 10 एम.सी.सी. का निर्माण ₹153.00 करोड़ के बजटीय प्रावधान के साथ किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पी.एम.के.वी.वाई.)- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 2 अक्टूबर 2016 को शुरू की गई थी। एच.पी.के वी.एन, पी.एम.के.वी.वाई. 2.0 (2016-20) और 3.0 (2020-21) के राज्य घटक के लिए कार्यान्वयन एजेंसी है। उक्त अध्यादेश को पूरा करने के लिए, एच.पी.के.वी.एन. ने वित्तीय वर्ष 2018-19 से 22 क्षेत्रों मे ं विभिन्न नौकरी भूमिकाओं मे ं 16,500 से अधिक युवाओं को पी.एम के.वी.वाई. 2.0 के तहत नामांकित किया है। पी.एम.के.वी.वाई. 3.0 को दिसंबर 2020 में लॉन्च किया गया था और वित्तीय वर्ष के दौरान प्रशिक्षण शुरू हो गया है। पी.एम.के.वी.वाई. 3.0 के तहत सभी प्रशिक्षण आयोजित किए गए, जिसमें नामांकन 501 उम्मीदवारों का था, और 394 को अल्पकालिक प्रशिक्षण के तहत प्रमाणित किया गया था। आर.पी.एल. में के अन्तर्गत कुल 1235 अभ्यर्थियो ं को प्रमाणित किया गया। पी.एम.के.वी.वाई. 4.0 भी लॉन्च किया गया है और 5000 के प्रारंभिक लक्ष्य के मुकाबले 3000 से अधिक उम्मीदवारों का नामांकन किया गया है। शेष सीटों के लिए नामांकन जारी है। इसके अलावा कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय से 10,000 का अतिरिक्त लक्ष्य प्राप्त हुआ है।
आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (एस.ए.एन.के ए.एल.पी.) एच.पी.के.वी.एन.राज्य भर में संस्थागत तंत्र और कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए ₹2.10 करोड़ की स्वीकृत धनराशि के साथ विश्व बैंक सहायता प्राप्त संकल्प को लागू कर रहा है और उक्त परियोजना मार्च 2025 तक बंद होने वाली है। 11.4.4 प्रतिष्ठित सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों के साथ समझौते उच्च श्रेणी के प्रशिक्षणों को ध्यान में रखते हुए एच.पी.के.वी.एन. ने सरकारी संस्थाओं और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों जैसे राष्ट्रीय इलैक्ट्राॅनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, सीडैक, होटल प्रबन्धन संस्थान, अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण और संबद्ध खेलों का संस्थान, राष्ट्रीय विŸाीय प्रबंधन स्ंास्थान, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, भारतीय अधिकृत लेखापाल संस्थान, उद्यान एवं वाणिकी विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय उद्यमिता और लघु व्यवसाय विकास संस्थान और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के साथ उद्योग संचालित नौकरी भूमिकाओं मे ं लगभग 15,206 हिमाचली युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हंै। उक्त्त प्रशिक्षण के अंतर्गत वर्तमान में 17,817 से अधिक प्रशिक्षुओं को नामांकित किया गया है और 14,786 को प्रमाणित किया जा चुका है।
अंग्रेजी, रोजगार और उद्यमिता (ई.ई.ई.) प्रशिक्षण एच.पी.के.वी.एन. ने उच्च शिक्षा निदेशालय (डी.ओ.एच.ई.) के सहयोग से शैक्षणिक सत्र 2022-23 के दौरान हिमाचल प्रदेश के कुल 56 सरकारी डिग्री कॉलेजों में अंग्रेजी, रोजगार और उद्यमिता (ई.ई.ई.) कार्यक्रम शुरू किया। इसका उद्देश्य सरकारी डिग्री कॉलेजों के अंतिम वर्ष के 5,000 स्नातक छात्रों को अंग्रेजी भाषा बोलने, रोजगार योग्यता और उद्यमशीलता कौशल के विकास को सुविधाजनक बनाना है। इसके बाद, समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) का विस्तार किया गया और 5,000 छात्रों का अतिरिक्त लक्ष्य आवंटित किया गया। वर्तमान में, 5,680 छात्रों को प्रमाणित किया गया है।
फ्लेक्सी समझौता ज्ञापन योजना (फ्लेक्सी-एम.ओ.यू.) फ्लेक्सी-एम.ओ.यू. एक अनूठी पहल है जिसमें 70 प्रतिशत प्रमाणित उम्मीदवारों की प्लेसमेंट सुनिश्चित करना है इस पहल के अन्तर्गत, कुल 522 युवाओं के प्रमाणीकरण के सापेक्ष 408 उम्मीदवारों को सफलतापूर्वक नौकरी मिल चुकी है।
ड्रोन सेवा तकनीशियन प्रशिक्षण के लिए सरकारी औद्योगिक प्रषिक्षण संस्थानों (आई टी.आई.) के साथ समझौता ज्ञापन उद्योग 4.0 पाठ्यक्रमों की शुरूआत के मद्देनजर, एन.एस.क्यू.एफ. संरेखित अल्पकालिक प्रशिक्षण के अन्तर्गत, 249 उम्मीदवारो ं को 11 आई.टी.आई. में ड्रोन सेवा तकनीशियन नौकरी भूमिका में नामांकित किया गया है।
21 सेक्टर कौशल परिषदों के साथ समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) एच.पी.के.वी.एन. ने उद्योग 4.0 के लिए युवाओं को भविष्य के कौशल में प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए एच.पी.एस.डी.पी. के अन्तर्गत 21 सेक्टर कौशल परिषदों (एस.एस.सी.) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। आवंटित लक्ष्य 10,880 के सापेक्ष 9,013 छात्रों का नामांकन हो चुका है, 6,823 का प्रमाणीकरण हो चुका है तथा शेष अभ्यर्थियो ं का परिणाम प्रतीक्षित है।
हिमाचल प्रदेश भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड 2 मार्च, 2009 को अस्तित्व मे ं आया। एच.पी.बी.ओ.सी.डब्ल्यू. कल्याण बोर्ड राज्य भर में भवन और अन्य निर्माण कार्यों में लगे सभी पंजीकृत असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को वित्तीय लाभ देने के मुख्य उद्देश्य के साथ काम कर रहा है।
कल्याण बोर्ड में पंजीकरण के लिए, प्रत्येक भवन निर्माण श्रमिक जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है, लेकिन 60 वर्ष पूरे नहीं किए हैं, किसी अन्य कल्याण निधि मे ं सदस्य नहीं है और जिसने एक वर्ष में भवन निर्माण श्रमिक के रूप में 90 दिनों का रोजगार पूरा कर लिया है, वह निधि में सदस्यता के लिए पात्र है।
बोर्ड विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं चला रहा है जैसे विवाह सहायता योजना, मातृत्व-पितृत्व सहायता योजना, शिक्षा सहायता योजना, चिकित्सा सहायता योजना, पेंशन सहायता योजना, विकलांगता पेंशन सहायता योजना, मृत्यु-अंत्येष्टि सहायता योजना, कन्या शिशु जन्म उपहार योजना, विकलांग बच्चों के लिए लाभ योजना, विधवा पे ंशन, बोर्ड के पंजीकृत श्रमिकों के कल्याण के लिए निर्माण श्रमिकों के बच्चो ं के लिए छात्रावास सुविधा योजना।
बोर्ड ने स्थापना के बाद से नवम्बर, 2024 तक 4,57,964 श्रमिकों को पंजीकृत किया है और 7,049 लाभार्थियों को ₹26.69 करोड़ का वित्तीय लाभ वितरित किया गया है। वर्ष 2024-25 में दिसम्बर, 2024 तक विभिन्न प्रतिष्ठानों से ₹103.53 करोड़ की राशि का श्रम उपकर संग्रहित किया गया। बोर्ड ने अपनी स्थापना के बाद से 5,58,904 लाभार्थियों को विभिन्न कल्याण योजनाओं पर ₹500.40 करोड़ की राशि का लाभ वितरित किया है। कल्याण बोर्ड ने अपने लाभार्थियों के ई-के.वाई.सी. में तेजी लाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग के माध्यम से एक मोबाइल ऐप विकसित किया है और इसका उपयोग बोर्ड के लाभार्थियों के नए पंजीकरण और नवीनीकरण के लिए जिला श्रम कल्याण अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है।
बोर्ड कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए राज्य भर में श्रम कल्याण अधिकारियों के माध्यम से जागरूकता शिविर आयोजित कर रहा है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाल ही में कल्याण बोर्ड में पंजीकृत महिला श्रमिकों के लिए नई योजना ष्मुख्यमंत्री विधवा/एकल/निराश्रित/दिव्यांग महिला आवास योजनाष् को मंजूरी दी है। इस योजना के अन्तर्गत पंजीकृत महिला श्रमिकों को घर बनाने के लिए ₹3.00 लाख की सहायता प्रदान की जाएगी, जिनकी वार्षिक आय ₹2.50 लाख से कम है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने रोजगार और कौशल विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। पी.एल.एफ.एस. 2023-24 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश मे ं विशेष रूप से महिलाओं में, श्रम बल भागीदारी दर और श्रमिक जनसंख्या अनुपात अधिक है। राज्य ने हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसी पहलों के माध्यम से व्यावसायिक प्रशिक्षण में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित किया है। कुल 1.18 लाख से अधिक प्रशिक्षुओं के नामांकन के साथ, इन कार्यक्रमों का उद्देश्य रोजगार क्षमता को बढ़ाना है। इसके अतिरिक्त, रोजगार कार्यालयों के नेटवर्क, कौशल विकास भत्ते और रोजगार मेलो ं के माध्यम से रोजगार सहायता प्रदान की जाती है। हिमाचल प्रदेश भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के अन्तर्गत 5.5 लाख से अधिक लाभार्थियो ं को सहायता प्रदान की है। राज्य ने रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए विशेषकर उपेक्षित समूहों को कौशल विकास के बुनियादी ढांचे में निरन्तर निवेश कर रही है।

12.पर्यटन, सड़क और परिवहन

हिमाचल प्रदेश दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता है। हिमाचल प्रदेश अपने हिमालयी परिदृश्य और लोकप्रिय हिल स्टेशनों के लिए प्रसिद्ध है। रॉक क्लाइम्बिंग, माउंटेन बाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, ट्रैकिंग, राफ्टिंग, आइस स्केटिंग और हेली-स्कीइंग जैसी कई बाहरी गतिविधियाँ हिमाचल प्रदेश मे ं लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण हैं। हिमाचल प्रदेश पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है, जो राज्य की आय में बड़ा हिस्सा योगदान दे रहा है। पर्यटन मे ं इस उछाल ने हिमाचल प्रदेश में होटलो ं और रेस्तरा की संख्या में वृद्धि की है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है।
राज्य अपने बर्फ से ढके पहाड़ों, हरी-भरी घाटियों, प्राचीन नदियों और साहसिक खेलों के लिए जाना जाता है, जो इसे प्रकृति प्रेमियों और रोमांच चाहने वालों के लिए एक स्वर्ग बनाता है। प्रमुख आकर्षणो ं में शिमला ‘‘पहाड़ों की रानी‘‘ मनाली, धर्मशाला, डलहौजी, स्पीति घाटी और महान हिमालयन नेशनल पार्क, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था स्थायी पर्यटन प्रथाओ ं द्वारा समर्थित है, जो न केवल स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के अवसर पैदा करती है, बल्कि इसकी प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपत्तियो ं के संरक्षण को भी बढ़ावा देती है। पारिस्थितिकी पर्यटन, साहसिक पर्यटन और कल्याण पर्यटन सतत विकास के लिए प्रमुख फोकस क्षेत्र हैं।
राज्य में तीर्थ स्थलों और पुरातात्विक महत्व वाले स्थानों का एक समृद्ध धरोहर है। वर्तमान में, विभाग के पास लगभग 1,38,136 बिस्तर क्षमता वाले 4,938 होटल पंजीकृत हैं, इसके अलावा, राज्य में लगभग 4,905 होम स्टे इकाइयाँ पंजीकृत हैं, जिनमें लगभग 30,881 बिस्तर हैं। यह अध्याय राज्य के पर्यटन क्षेत्र से प्राप्त वृद्धि को दर्शाता है, साथ ही पर्यटन और परिवहन क्षेत्रों के योगदान पर ध्यान केन्द्रित करता है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यटन के नवीनतम विश्व पर्यटन बैरोमीटर के अनुसार, 2024 मे ं अनुमानित 1.4 बिलियन पर्यटकों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा की, जो महामारी से पूर्व स्तर 99 प्रतिशत तक पहुंचने का संकेत देता है। यह 2023 की तुलना मे ं 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
दुनिया के शीर्ष पांच पर्यटन आय वालों में, यूनाइटेड किंगडम (़़40 प्रतिशत), स्पेन (़़36 प्रतिशत), फ्रांस (़़27 प्रतिशत), और इटली (़़23 प्रतिशत) मे ं 2019 की तुलना में 2024 के पहले नौ से ग्यारह महीनों में मजबूत वृद्धि देखी गई। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन व्यय के आंकडे समान प्रवृत्ति को दर्शाते है, जिसमें विशेष रूप से जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम (2019 की तुलना मे ं दोनों ़36 प्रतिशत) संयुक्त राज्य अमेरिका (़34 प्रतिशत), इटली (़़25 प्रतिशत) और फ्रांस (़़11 प्रतिशत) शामिल है। वर्ष 2023 मे ं असाधारण वृद्धि के बाद, 2024 की पहली छमाही में भारत का व्यय अधिक रहा (2019 के स्तर से ़़81 प्रतिशत अधिक)।
पर्यटन सबसे बड़े आर्थिक क्षेत्रों मे ं से एक है जो रोजगार पैदा करता है, निर्यात बढ़ाता है और समृद्धि पैदा करता है। इसमें स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देने की भी प्रमुख क्षमता है। परिदृश्य, व्यंजन, विरासत, रोमांच, वन्य जीवन और संस्कृति में विविधता वाला हिमाचल हाल के वर्षों में विदेशी और घरेलू दोनों यात्रियों के लिए एक प्रसिद्ध गंतव्य के रूप में उभरा है।
हिमाचल प्रदेश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) मे ं पर्यटन उद्योग का योगदान 7.78 प्रतिशत है। यह आतिथ्य, परिवहन, हस्तशिल्प और अन्य संबद्ध उद्योगों से जुड़ी गतिविधियों से प्रेरित है।
पर्यटन एवं आतिथ्य क्षेत्र - पर्यटकों का आगमन किसी विशेष गंतव्य में पर्यटन की मांग के मुख्य संकेतकों में से एक है। सारणी 12.1 हिमाचल प्रदेश में 2012 से 2024 तक विदेशी और घरेलू पर्यटकों के आगमन पर डेटा प्रस्तुत करती है। ब्व्टप्क्.19 महामारी के बाद, घरेलू पर्यटकों का आगमन 2020 मे ं 32.13 लाख से बढ़कर 2021 में 56.37 लाख, 2022 में 150.99 लाख और 2023 में 160.05 लाख से बढ़कर 2024 में पूर्ण रूप से 181.24 हो गया है। इससे पता चलता है कि पर्यटकों का आगमन महामारी-पूर्व स्तर पर पहु ंच रहा है। हमारे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को देखते हुए, समय की मांग यह सुनिश्चित करना है कि यह विकास
चित्र 12.1 दर्शाता है कि लाॅकडाउन 2020 (-81.33 प्रतिशत) के बाद पर्यटकों की आमद में भारी सुधार हुआ।
पर्यटन अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है, इसलिए हिमाचल प्रदेश और भारत सरकार द्वारा विभिन्न विकास पहल की गई हैं।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) भारत सरकार के आर्थिक मामलों के विभाग, (डी.इ.ए.) ने 30 नवंबर, 2021 को हिमाचल प्रदेश के लिए एक ए.डी.बी. परियोजना एक नई परियोजना-2 को मंजूरी दी है। परियोजना की कुल लागत यू.एस. $291.04 मिलियन (₹2415.63 करोड़) है। इसमे ं से ए.डी बी. का हिस्सा यू.एस.$233 मिलियन (₹1933.90 करोड़) और राज्य का हिस्सा यू.एस. $58 04 मिलियन (₹481.73 करोड़) है। परियोजना को दो चरणों मे ं क्रियान्वित किया जाएगा। ए डी.बी. और राज्य का हिस्सा क्रमशः 80ः20 के अनुपात में है। विभाग ने भाग-1 (सिविल उप-परियोजनाएं, सॉफ्ट कंपोनेंट और सामान एवं उपकरण) के तहत स्वीकृत उप-परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट(डी.पी.आर.एस.) तैयार कर ली है। नई ए.डी.बी. परियोजना के भाग-1 के तहत प्रस्तावित उप-परियोजनाएं 05 जिलों जैसे शिमला, मंडी, कुल्लू, कांगड़ा और हमीरपुर में क्रियान्वित की जाएंगी। इसके साथ ही, भाग -2 उप-परियोजनाओं की सूची तैयार करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी जाएगी।
स्वदेश दर्शन योजना 2.0 भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने देश में सतत पर्यटन स्थलों को विकसित करने के उद्देश्य से अपनी ‘‘स्वदेश दर्शन योजना‘‘ को स्वदेश दर्शन 2.0 के रूप में नया रूप दिया है। स्वदेश दर्शन 2.0 के अन्तर्गत पौंग बांध को पर्यटन स्थल के रूप में चुना गया है। जिला प्रशासन और वन विभाग के साथ विस्तृत विचार-विमर्श और परामर्श के बाद नगरोटा सूरियां के लिए मास्टर प्लान इटरेशन-1 को प्रोजेक्ट डेवलपमेंट एंड मैनेजमे ंट कंसल्टेंट्स (पी.डी.एम.सी.) (वॉयंट्स सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड) द्वारा तैयार किया गया है और इसे मंजूरी भी मिल गई है।
चुनौती आधारित गंतव्य पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन 2.0 के तहत एक उप-परियोजना ‘‘चुनौती आधारित गंतव्य विकास‘‘ शुरू की है और इसके लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। तदनुसार, पर्यटन विभाग और नागरिक उड्डयन, हिमाचल प्रदेश ने चुनौती आधारित गंतव्य विकास योजना के तहत विकास के लिए पाँच गंतव्यों की पहचान की है और 10 जनवरी, 2024 को पर्यटन मंत्रालय, (एम.ओ.टी.), भारत सरकार को निर्धारित प्रारूप मे ं प्रस्ताव प्रस्तुत किए हैंः
i) चंदर ताल, जिला लाहौल-स्पीति, हिमाचल प्रदेश
ii) काजा, जिला लाहौल-स्पीति, हिमाचल प्रदेश
iii) तांदी, जिला लाहौल-स्पीति, हिमाचल प्रदेश
iv) रकछम, जिला किन्नौर, हिमाचल प्रदेश
v) नाको-चांगो-खाब, जिला किन्नौर, हिमाचल प्रदेश
पर्यटन मंत्रालय ने उप-योजना के अन्तर्गत दो गंतव्यों अर्थात काजा (संस्कृति एवं विरासत) और रक्छम छितकुल (वाइब्रैंट गांव कार्यक्रम) के चयन की सूचना दी है। राज्य सरकार ने इन गंतव्यों के लिए गंतव्य प्रबंधन संगठन (डी.एम.ओ.) को अधिसूचित किया है।
तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत संवर्धन अभियान (प्रसाद) योजना विभाग ने उक्त परियोजना की डी.पी.आर. 30 दिसंबर, 2023 को भारत सरकार पर्यटन मंत्रालय, को भेज दी है, जिसमें पहले चरण में ₹24.55 करोड़ मंजूर करने के राज्य के प्रस्ताव पर विचार करने का अनुरोध किया गया है। भारत सरकार पर्यटन मंत्रालय, ने दिनांक 7 मार्च, 2024 को प्रसाद योजना के अन्तर्गत लगभग ₹24.55 करोड़ की परियोजना “माँ चिंतपूर्णी मंदिर का विकास” अम्ब, जिला, ऊना का शुभारंभ किया है। डी.पी.आर. पर पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की गई टिप्पणियों के कारण, विभाग ने 16 दिसंबर, 2024 को डी.पी.आर. को संशोधित करके ₹57.57 करोड़ कर दिया है।
नागरिक उड्डयन राज्य सरकार के पास 3 हवाई अड्डे हैं जैसे जुब्बरहट्टी (जिला, शिमला), गग्गल (जिला, कांगड़ा), भुंतर (जिला, कुल्लू)। छोटे रनवे के कारण, इन हवाई अड्डों से ए-320 जैसे बड़े विमान संचालित नहीं किए जा सकते। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (ए.ए.आई.) के विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, जुब्बरहट्टी और भुंतर में रनवे का विस्तार संभव नहीं है। इसलिए, कांगड़ा हवाई अड्डा विस्तार के लिए अंतिम विकल्प है जिसके लिए राज्य सरकार आवश्यक कदम उठा रही है।
शिमला से धर्मशाला के बीच उड़ान संचालन एलायंस एयर एविएशन (ए.ए.ए.) के माध्यम से संचालित किया जा रहा है, जिसके लिए व्यवहार्यता अंतर निधि (वी.जी.एफ.) राज्य सरकार द्वारा वहन की जा रही है। क्षेत्रीय संपर्क योजना (आर.सी.एस.) उड़ान योजना के अन्तर्गत दिल्ली-शिमला-दिल्ली, अमृतसर-शिमला-अमृतसर, अमृतसर-कुल्लू-अमृतसर और देहरादून- कुल्लू-देहरादून के बीच उड़ान संचालन भी एलायंस एयर एविएशन लिमिटेड द्वारा संचालित किया जा रहा है।
कांगड़ा (गग्गल) हवाई अड्डे का विस्तार राज्य सरकार कांगड़ा हवाई अड्डे की वर्तमान रनवे लंबाई 1376 ग 30 मीटर से बढ़ाकर 3278 ग 45 मीटर करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, ताकि भारतीय विमान प्राधिकरण (ए.ए.आई.) से प्राप्त मास्टर प्लान के अनुसार कांगड़ा हवाई अड्डे पर बड़े विमान उतारे जा सकें। कांगड़ा हवाई अड्डे के विस्तार के लिए 147-75-87 हेक्टेयर भूमि (जिसमें से 122-66-23 हेक्टेयर भूमि निजी भूमि है) की पहचान की गई है। प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण के लिए, एस.आर. एशिया नामक एक स्वतंत्र एजे ंसी के माध्यम से सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (एस.आई.ए.) द्वारा किया गया था। विस्तृत विचार-विमर्श के बाद मंत्रिमंडल द्वारा इसकी मूल्यांकन रिपोर्ट को मंजूरी दी गई। इसके बाद सरकार ने 12 मार्च, 2024 को कांगड़ा हवाई अड्डे के प्रस्तावित विस्तार से प्रभावित होने वाले परिवारो ं के लिए ₹3349.00 करोड़ की पुनर्वास और पुनस्र्थापन योजना को मंजूरी दी है।
तकनीकी आर्थिक व्यवहार्यता रिपोर्ट (टी.ई.एफ.आर.) का मसौदा वाटर एण्ड़ पावर कन्सल्टेंन्सी (डब्लयू.ए.पी.सी.ओ.एस.) के माध्यम से तैयार किया गया है, जिसमें पू ंजीगत खर्च का अनुमान ₹4064.27 करोड़ (कर सहित) लगाया गया है। टी.ई.एफ.आर. को मंजूरी के लिए भारतीय विमान प्राधिकरण (ए.ए.आई.) को भेजा गया है। 31 दिसंबर, 2024 तक, भूमि अधिग्रहण कलेक्टर गग्गल एयरपोर्ट-सह-एसडीएम-कांगड़ा ने पुनर्वास और पुनस्र्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे के अधिकार की धारा 23 के अन्तर्गत ₹489.10 करोड़ का प्रस्ताव पारित किया है और आगे प्रतिकर के लिए जिला पर्यटन विकास अधिकारी (डी टी.डी.ओ.) कांगड़ा को आबंटित कर दी गई है।
हिमाचल प्रदेश में हेलीपोर्ट राज्य सरकार ने प्रत्येक जिला मुख्यालय में हेलीपोर्ट विकसित करके तथा राज्य में महत्वपूर्ण जनजातीय स्थानों को कनेक्टिविटी प्रदान करके हवाई संपर्क के विस्तार के लिए एक बड़ी पहल की है। सरकार राज्य में 15 नए हेलीपोर्ट विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है। पहले चरण में नौ हेलीपोर्ट विकसित किए जा रहे हैं, अर्थात रक्कड़ और पालमपुर (जिला कांगड़ा), सुल्तानपुर (जिला चंबा), आलू ग्राउंड मनाली (जिला कुल्लू), जसकोट (जिला हमीरपुर), शारबो (जिला किन्नौर), जिस्पा, सिस्सू और रंगरिक (जिला लाहौल और स्पीति) में और दूसरे चरण के लिए धारकियारी (नाहन), बिलासपुर (स्थल की पहचान की जा रही है), बसाल (जिला सोलन), जनकौरहार (जिला ऊना), होली और पांगी (जिला चंबा) 6 हेलीपोर्ट शामिल हैं।


हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एच.पी.टी.डी.सी.) हिमाचल प्रदेश में पर्यटन बुनियादी ढांचे के विकास में अग्रणी है। यह आवास खानपान, परिवहन, सम्मेलन और खेल गतिविधियों सहित पर्यटन सेवाओं का पूरा पैकेज प्रदान करता है। इसके पास राज्य में होटलों और रेस्तरां की सबसे बड़ी श्रृ ंखला है जिसमें 56 होटल, 1,111 कमरे सहित 2,508 बिस्तर हैं।
जैसा कि राज्य का पर्यटन उद्योग महामारी के बाद की स्थिति से उबरने की कोशिश कर रहा था, लेकिन जुलाई और अगस्त, 2024 के महीने में बाढ़ और भारी बारिश ने न केवल राज्य मे ं पर्यटकों की संख्या कम कर दी, बल्कि बुनियादी ढांचे को भी भारी नुकसान पहु ंचाया। एच.पी.टी.डी.सी. इन नुकसानों से उबरने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।
एच.पी.टी.डी.सी. ने वर्ष 2024-25 के लिए ₹115.00 करोड़ के लक्ष्य के समकक्ष नवंबर, 2024 तक ₹74.21 करोड़ की आय अर्जित की है और दिसंबर 2024 से मार्च 2025 की अवधि के लिए अनुमानित आय ₹34.90 करोड़ का लक्ष्य है।
सड़के ं राज्य के तीव्र आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा है ं। कृ षि, बागवानी, उद्योग, खनन और वानिकी जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों का विकास एक कुशल सड़क नेटवर्क पर निर्भर करता है। रेलवे और जलमार्ग जैसे परिवहन के किसी अन्य उपयुक्त और व्यवहार्य साधनों की अनुपस्थिति में, सड़कें हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने मे ं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लगभग शून्य से शुरू करते हुए, राज्य सरकार ने दिसंबर, 2024 तक 42,779 किलोमीटर (कि.मी.) मोटर योग्य सड़के ं (जीप योग्य और ट्रैक सहित) बनाई हैं। राज्य सरकार सड़क क्षेत्र को बहुत उच्च प्राथमिकता दे रही है।
हिमाचल प्रदेश राज्य में अच्छा सड़क नेटवर्क है। यहां 19 राष्ट्रीय राजमार्ग है ं जिनकी कुल लंबाई 2,592 किलोमीटर है। राज्य में 15,586 गांव सड़कों से जुड़े हुए हैं। राज्य के महत्वपूर्ण आर्थिक विस्तार के लिए सड़कें बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए निर्धारित लक्ष्य और दिसंबर, 2024 तक की उपलब्धियां सारणी 12.5 में दी गई हैं।
राज्य मे ं 2,592 किलोमीटर की लंबाई वाले 19 राष्ट्रीय राजमार्ग है ं। हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग के पास 1,008 किलोमीटर लंबाई के विकास और रखरखाव की जिम्मेदारी है और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) NH-07 और NH-03 जिसकी लम्बाई 230 किलोमीटर है उसे हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारे के रूप में उन्नत कर रहा है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHA)) 785 किलोमीटर लंबाई के 5 राष्ट्रीय राजमार्ग विकसित कर रहा है और राज्य में 569 किलोमीटर लंबाई की सड़क के विकास और रखरखाव की जिम्मेदारी, सीमा सड़क संगठन (BRO)) के पास है।
परिवहन विभाग मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 213 के प्रावधानों के अन्तर्गत कार्य करता है। परिवहन विभाग मुख्य रूप से मोटर वाहन अधिनियम, 1988, हिमाचल प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1972 और उसके तहत बनाए गए नियमो ं को लागू करने के लिए स्थापित किया गया है। हिमाचल प्रदेश का परिवहन विभाग परिवहन सुविधाओं के विकास में अन्य संगठनों की सहायता करता है और सड़क मार्ग से यात्रियों और माल की आवाजाही के लिए एक कुशल, पर्याप्त और सस्ती परिवहन सेवा प्रदान करने का प्रयास करता है। यह विभाग मोटर वाहनों पर करों के रूप में एक प्रमुख राजस्व अर्जित करने वाला विभाग भी है।
i) राजस्व सृजनः वित्तीय वर्ष 2023-24 और 2024-25 के लिए राजस्व संग्रह का विवरण निम्नानुसार हैः

ii) मोटर वाहन अधिनियम एवं नियमो ं का प्रवर्तनः परिवहन विभाग मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों का सख्ती से क्रियान्वयन कर रहा है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान किए गए चालानों का सारांश इस प्रकार हैः

ii) वाहनो ं का पंजीकरणः राज्य में 23,91,265 वाहन (परिवहन और गैर-परिवहन) पंजीकृत हैं। पंजीकृत वाहनों का जिलावार विवरण निम्नानुसार हैः
हिमाचल प्रदेश के परिवहन विभाग ने चालू वित्त वर्ष के दौरान उल्लेखनीय प्रगति की है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान विभाग द्वारा की गई कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ, योजनाएँ और लिए गए निर्णय इस प्रकार हैंः
बद्दी में निरीक्षण एवं प्रमाणन केंद्र (ए.टी.एस.) की स्थापनाः सोलन जिले के बद्दी में बिना मानवीय हस्तक्षेप के स्वचालित तरीके से वाहन फिटनेस के प्रमाणन के लिए निरीक्षण एवं प्रमाणन केंद्र को वर्ष 2019 मे ं मंजूरी दी गई थी, जिसकी परियोजना लागत ₹16.35 करोड़ थी। 95 प्रतिशत सिविल कार्य पूरा हो चुका है। इस केंद्र को जल्द ही चालू किया जाएगा।
ट्रांसपोर्ट नगरों की स्थापनाः राज्य के 6 जिलों जैसे शिमला, कांगड़ा, हमीरपुर, सिरमौर, सोलन और ऊना मे ं ट्रांसपोर्ट नगरों के निर्माण के लिए भूमि की पहचान कर ली गई है और इसके लिए मंजूरी में तेजी लाई जा रही है।
ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल (डी.टी.एस.) और प्रदूषण जांच केंद्र (पी.सी.सी.)ः वर्तमान मे ं, राज्य मे ं 408 ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल और 322 प्रदूषण जांच केंद्र स्थापित हैं। 31 दिसंबर, 2024 तक ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूलों और प्रदूषण जांच केंद्रों का विवरण इस प्रकार हैः


रोजगार सृजनः परिवहन विभाग ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान 31 दिसंबर, 2024 तक 46,805 आवेदको ं को कॉन्ट्रैक्ट कैरिज परमिट/स्टेज कैरिज परमिट/गुड्स कैरिज परमिट और पैसेंजर सर्विस व्हीकल (च्ैट) परमिट देकर राज्य में बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाए हैं। विभाग द्वारा दिए गए परमिटों ने बेरोजगार युवाओं को स्वंय का परिवहन व्यवसाय शुरू करने में सक्षम बनाया है। विवरण इस प्रकार है।

इलेक्ट्रिक वाहन नीतिः राज्य ने हिमाचल प्रदेश को इलेक्ट्रिक वाहन (ई.वी.) के लिए एक आदर्श राज्य के रूप में स्थापित करने के लिए “हिमाचल प्रदेश इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2022” अधिसूचित की है। राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों की शुरूआत राज्य की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
i) इलेक्ट्रिक वाहन हिमाचल प्रदेश को प्रदूषण मुक्त राज्य बनाने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिवहन विभाग ने अपने बेड़े में शामिल सभी 19 आई.सी.सी. वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों से बदल दिया है।
ii) ई-चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना राज्य सरकार विभिन्न हितधारकों जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आई.ओ.सी.एल.) भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बी.पी.सी.एल.) आदि के सहयोग से पूरे राज्य मे ं इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इस उद्देश्य के लिए, राज्य सरकार ने शुरुआत में 100 स्थानों की पहचान की है, जिनमें से 54 पेट्रोल पंप और 46 सरकारी स्थल हैं। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए, चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए अतिरिक्त 43 और पेट्रोल पंपों की पहचान की गई है।
राज्य ने निम्नलिखित छह ग्रीन कॉरिडोर अधिसूचित किए हैंः
1. परवाणू-नालागढ़-ऊना-हमीरपुर-देहरा-अंब-मुबारिकपुर-संसारपुर टैरेस-नूरपुर।
2. पांवटा-नाहन-सोलन-शिमला।
3. परवाणू-सोलन-शिमला-रामपुर-पियो-पूह-ताबो-काजा-लोसर।
4. शिमला-बिलासपुर-हमीरपुर-कांगड़ा-नूरपुर-बनीखेत-चंबा।
5. मंडी-जोगिंद्र नगर-पालमपुर-धर्मशाला-कांगड़ा।
6. कीरतपुर-बिलासपुर-मंडी-कुल्लू-मनाली-केलांग-ज़िंग-ज़िंग बार।
उपरोक्त 6 हरित गलियारों मे ं से 4 गलियारे अर्थात पहला, चैथा, पांचवां और छठा कार्यात्मक हैं, क्योंकि इन गलियारो ं पर पेट्रोल पंपों पर अधिकांश ई.वी. चार्जिंग स्टेशन आम जनता के उपयोग के लिए कार्यात्मक है ं।
क) पेट्रोल पंपः
तेल कम्पनियों ने 38 पेट्रोल पंपो ं पर ई-चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड के पास धनराशि जमा करा दी है तथा सेवाएं शीघ्र ही चालू कर दी जाएंगी।
ख) सरकारी स्थलः परिवहन विभाग ने चार्जिंग स्टेशनो ं की स्थापना के लिए सभी ग्रीन कॉरिडोर पर 46 सरकारी स्थलों की पहचान की है। 41 सरकारी स्थलों में से, विभाग ने निम्नलिखित ई.वी. कंपनियों के साथ सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.मोड) में 31 स्थानों पर चार्जिंग स्टेशनों के विकास/स्थापना के लिए रियायत समझौते किए हैंः
परिवहन विभाग द्वारा 31 स्थानों के लिए 2 निजी भागीदारों यानी मेसर्स जियो बी.पी. और ई.वी.आई. टेक्नोलॉजीज के साथ रियायत समझौते पर परिवहन निदेशक द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं। इन निजी भागीदारों ने अब उपरोक्त स्थानों पर सड़क के किनारे सुविधाओं के साथ चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए निष्पादन कार्य शुरू कर दिया है।
ग) पर्यटन होटल हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एच.पी.टी.डी.सी.) इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आई.ओ.सी.एल.) के साथ समन्वय करके 65 होटलों में ई.वी. चार्जिंग स्टेशन स्थापित करना चाहता है। पहले चरण में 10 स्थलों का चयन किया गया है।
घ) निजी होटल परिवहन विभाग निजी होटलों में ई.वी. चार्जिंग स्टेशन की स्थापना को बढ़ावा दे रहा है, जिसके लिए निजी होटलो ं के साथ नियमित बैठके ं की जा रही हैं। वर्तमान में, निजी होटलों में निम्नलिखित चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं

ii) ई-टैक्सीः सरकार ने राजीव गांधी स्वरोजगार योजना, 2023 के अन्तर्गत ई-टैक्सी किराए पर लेने के लिए 1 सितंबर, 2023 को मानक संचालन प्रक्रिया (एस.ओ.पी.) अधिसूचित की है। इस योजना के अन्तर्गत सरकार बेरोजगार युवाओं को ई-टैक्सी खरीदने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। ये सभी ई-टैक्सी सरकारी विभागों, निगमों और बोर्डों मे ं लगाई जाएंगी। पहले चरण में सरकार ने ई-टैक्सी सब्सिडी देने के लिए 54 आवेदकों का चयन किया है।
ii) स्वचालित परीक्षण स्टेशन (ए.टी.एस.)ः भारत सरकार ने अधिसूचित किया है कि वाहन की फिटनेस अब अनिवार्य रूप से स्वचालित परीक्षण एजेंसी (ए.टी.एस.) के माध्यम से ही की जाएगी। राज्य सरकार ने सरकारी क्षेत्र मे ं दो ए.टी.एस. स्थापित करने को मंजूरी दी है। ये दो ए.टी.एस. नादौन जिला हमीरपुर और हरोली जिला ऊना में क्रमशः परिवहन विभाग व हिमाचल पथ परिवहन निगम द्वारा स्थापित किए जाएंगे। सरकारी क्षेत्र में ए.टी.एस. स्थापित करने के लिए आर.टी ओ. हमीरपुर और एच.आर.टी.सी. ऊना को प्रारंभिक पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रदान कर दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त सरकार ने निजी क्षेत्र में 5 ए.टी.एस. स्थापित करने को मंजूरी दी है। ये स्टेशन बिलासपुर, मंडी, कांगड़ा, सोलन और नालागढ़ में स्थापित किए जाएंगे। विभाग ने इन ए.टी.एस. की स्थापना के लिए सभी निजी निवेशकों को प्रारंभिक पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रदान कर दिए हैं और कार्य प्रगति पर है।
ii) पंजीकृत वाहन स्क्रैपिंग सुविधा (आर.वी.एस.एफ.)ः परिवहन विभाग ने हिमाचल प्रदेश मे ं निजी क्षेत्र में वाहन स्क्रैपिंग सुविधा केन्द्र (वी एस.सी.) स्थापित करने के लिए 80 आवेदको ं के पक्ष में प्रारंभिक सहमति प्रदान की है। वर्तमान में, केवल दो आवेदकों ने सोलन और हमीरपुर में वाहन स्क्रैपिंग सुविधा केन्द्रों की स्थापना के लिए काम शुरू किया है और ये केन्द्र फरवरी, 2025 के अंत तक चालू हो जाएंगे। अब तक राज्य में वाहन स्क्रैपिंग सुविधा केन्द्रों के माध्यम से 1,056 वाहनों (496 सरकारी और 560 निजी) को स्क्रैप किया जा चुका है
ii) मोटर साइकिल और मोटर कैब किराए पर लेने की योजनाः मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के प्रावधान के तहत मोटर बाइक किराए पर लेने की योजना अधिसूचित की गई है। राज्य परिवहन प्राधिकरण ने आवेदकों को 3,943 परमिट दिए और इस उद्देश्य के लिए 3,586 मोटर साइकिल पंजीकृत की गई हैं।
ii) निजी बसों और टैक्सियों के बेड़े की संख्याः हिमाचल प्रदेश मे ं निजी स्टेज कैरिज बसों की कुल संख्या 3,488 है और टैक्सियो ं (सीटिंग क्षमता 4$1) की संख्या 33,822, मैक्सी (6$1 और उससे अधिक) की संख्या 14,006 है। जिलावार और क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आर.टी.ओ.) वार विवरण इस प्रकार हैः
हिमाचल पथ परिवहन (एच.आर.टी.सी.) निगम राज्य मे ं सार्वजनिक परिवहन का मुख्य स्रोत है क्योंकि अन्य परिवहन साधन जैसे रेलवे, वायुमार्ग आदि नंगण्य हैं। इसलिए हिमाचल पथ परिवहन निगम का महत्व सर्वोपरि है। हिमाचल प्रदेश के लोगों को राज्य के भीतर और बाहर यात्री परिवहन सेवाएं हिमाचल पथ परिवहन निगम द्वारा 3,079 बसों, 110 इलेक्ट्रिक बसों, 38 टैक्सियों, 50 इलेक्ट्रिक टैक्सियों और 12 टेम्पो ट्रैवलर के बेड़े के साथ प्रदान की जा रही हैं।
यात्रियों के लाभ के लिए एच.आर.टी.सी. की योजनाएं
i) ग्रीन कार्ड योजनाः ग्रीन कार्डधारक को किराए मे ं 25 प्रतिशत की छूट दी जाती है।
ii) स्मार्ट कार्ड योजनाः स्मार्ट कार्ड की कीमत ₹100 है और इसकी वैधता एक साल है। इसमें किराए में 10 प्रतिशत की छूट है और यह एच.आर.टी.सी. की साधारण, सुपर फास्ट, सेमी डीलक्स और डीलक्स बसों में भी मान्य है।
iii)वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मान कार्ड योजनाः वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मान कार्ड योजना शुरू की है। इस योजना के अन्तर्गत साधारण बसों मे ं किराए में 30 प्रतिशत की छूट दी जाती है।
iv) महिलाओं को निःशुल्क सुविधाः महिलाओं को “रक्षाबंधन“ और “भैयादूज“ के अवसर पर साधारण बसों मे ं निःशुल्क यात्रा की सुविधा दी गई है। मुस्लिम महिलाओं को “ईद“ और “बकर ईद“ के अवसर पर निःशुल्क यात्रा की सुविधा दी गई है।
v) महिलाओं को किराये में छूटः राज्य के भीतर साधारण बसो ं में महिलाओं को किराये मे ं 50 प्रतिशत की छूट दी है।
vi) सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को निःशुल्क सुविधाः सरकारी स्कूलों के $2 कक्षा तक के विद्यार्थियों को साधारण बसों में उनके घर से स्कूल तथा स्कूल से घर तक निःशुल्क यात्रा की सुविधा दी गई है।
vii) गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को मुफ्त सुविधाः कैंसर, रीढ़ की हड्डी की चोट, किडनी और डायलिसिस के रोगियों को डॉक्टर द्वारा जारी रेफरल पर्ची पर चिकित्सा उपचार के उद्देश्य से बसों मे ं एक परिचर के साथ मुफ्त यात्रा की सुविधा प्रदान की जाती है।
viii) दिव्यांगजनो को निःशुल्क सुविधाः 70 प्रतिशत या इससे अधिक विकलांगता वाले दिव्यांगजनो को एक परिचर के साथ राज्य के भीतर निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की जाती है।
ix) वीरता पुरस्कार विजेताओं को निःशुल्क सुविधाः वीरता पुरस्कार विजेताओं को राज्य में डीलक्स बसों के अतिरिक्त एच.आर.टी.सी. की साधारण बसों में भी निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है। हिमाचल प्रदेश बस स्टैंड प्रबंधन एवं विकास प्राधिकरण ने चंबा जिले में भंजराडू, शिमला जिले के ढली और कुमारसैन (रामपुर) में नए बस स्टैंड का निर्माण पूरा कर लिया है। 4 बस स्टैंड, बंजार बस स्टैंड पर एक कार पार्किंग और मनाली के वोल्वो ग्राउंड में 1 बस पार्किंग का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और उद्घाटन के लिए तैयार है। प्राधिकरण ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के दौरान 6 बस स्टैंड के निर्माण कार्य को पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। 3 और नए बस स्टैंड के निर्माण का प्रस्ताव है।
x) प्रथम दर्शन सेवा के अंतर्गत धार्मिक स्थलों जिसमे ं श्री अयोध्या धाम भी शामिल है के लिए नई बस सेवा शुरू की है।
xi) निगम ने 2,672 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली 17 नई बस सेवाएं शुरू की हैं तथा 1,362 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली 37 सेवाओं का विस्तार/परिवर्तन किया है।
xii) बसों मे ं टिकट खरीदते समय नकदी रहित लेन-देन करने के उद्देश्य से, नए इलेक्ट्रिकल बैटरी थर्मल मैनेजमे ंट (ई.बी.टी.एम.) की शुरूआत करके डिजिटल किराया संग्रह प्रणाली शुरू की गई है, जिसमें डेबिट कार्ड, त्वरित प्रतिक्रिया कोड (क्यूआर) स्कैन और नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (एन.सी.एम.सी.) कार्ड के माध्यम से नकदी रहित लेनदेन की सुविधा है।

निष्कर्षः हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2024 में 181.24 लाख पर्यटकों के आगमन में महत्वपूर्ण बढ़त देखी गई, जिसमें 180.41 लाख भारतीय और 0.83 लाख विदेशी पर्यटक शामिल थे। सरकार ने प्रसाद योजना के अन्तर्गत मां चिंतपूर्णी मंदिर के विकास के लिए ₹57.57 करोड़ आवंटित किए।
राज्य में पंजीकृत 23.91 लाख वाहनों के माध्यम से परिवहन विभाग ने ₹656.80 करोड़ राजस्व अर्जित किया। इसके अतिरिक्त, विभाग ने 408 ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूलों को लाइसे ंस प्रदान किए जिससे 46,805 लोगों को रोजगार प्रदान हुआ। राज्य ने अपनी स्तत परिवहन पहल को आगे बढ़ाते हुए इलेक्ट्रिक वाहन ई.वी. चार्जिंग स्टेशनों के लिए 100 स्थानों को चिन्हित किया।
राज्य सरकार ने हिमाचल प्रदेश को ई.वी. के लिए एक मॉडल राज्य बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ई.वी. सम्बधिंत निति निर्धारण, निरीक्षण केंद्रों और चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हिमाचल सड़क परिवहन निगम यात्रीयों को विभिन्न प्रकार के लाभ प्रदान करता है और राज्य के भीतर और बाहर व्यापक बस सेवाएं संचालित कर रहा है। बस अड्डों का निरंतर विकास, डिजिटल भुगतान प्रणाली की शुरूआत, आधुनिकीकरण और सरल पहु ंच के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

13.शिक्षा

पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने पर, राज्य में साक्षरता दर बहुत कम 31.96 प्रतिशत थी। फिर भी, राज्य ने शिक्षा और अर्थव्यवस्था दोनो ं में पर्याप्त प्रगति की है, जिसका मुख्य कारण शैक्षिक बुनियादी ढांचे के विस्तार मे ं ठोस प्रयास हैं। स्कूल नामांकन और साक्षरता दर मे ं वृद्धि राजनीतिक नेतृत्व, प्रशासनिक जुड़ाव और सामाजिक पहल की सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है। 86वे ं संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21ए को शामिल करना इस प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य को प्रासंगिक कानूनो ंे अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। 2009 का बच्चो ं का मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आर.टी.ई.) अधिनियम इस प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा पूरा होने तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिले। यह अध्याय हिमाचल प्रदेश में शिक्षा की स्थिति और इस सार्वजनिक सुविधा को समाज के सभी वर्गों तक पहु ंचाने के उद्देश्य से की गई विभिन्न नीतिगत पहलों का अन्वेषण करता है। हिमाचल प्रदेश में साक्षरता दर 82.80 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत 74.0 प्रतिशत से 8.8 प्रतिशत अधिक थी। पुरुष साक्षरता दर 89.53 प्रतिशत थी, जबकि महिला साक्षरता दर 75.93 प्रतिशत थी। 2019-21 मे ं किये गये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ एच.एस.)-5 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश मे ं साक्षरता दर बढ़कर 93.3 प्रतिशत हो गई है। पुरुष और महिला साक्षरता दर अब क्रमशः 94.9 प्रतिशत और 91.7 प्रतिशत है, जिसमे ं 3.2 प्रतिशत लैंगिक असमानता है।
31 दिसम्बर, 2024 तक सरकारी क्षेत्र मे ं 9,943 राजकीय प्राथमिक और 1,786 राजकीय माध्यमिक विद्यालय है प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को दूर करने हेतु सरकार द्वारा जरूरत वाले स्कूलों में नई नियुक्तियों के लिए प्रयत्न किये जा रहे है। सरकार दिवयांग बच्चों की शिक्षा सम्बन्धित जरूरतों को पूरा करने के लिये भी प्रयासरत है। प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धित सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन निम्नलिखित उद्देश्य के साथ किया जा रहा हैः
i) प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करना।
ii) सभी बच्चों की उच्च गुणवत्ता वाली प्रारम्भिक शिक्षा सुनिश्चित करना।
iii) राज्य में शिक्षा को हर बच्चे तक पहु ंचाना।
राज्य प्रायोजित छात्रवृति योजनाएं- वर्ष 2024-25 में विभिन्न प्रकार के निम्नलिखित प्रोत्साहन दिये गये हैः




दिसंबर 2024 तक राज्य में सरकारी क्षेत्र में 961 हाई स्कूल, 1,988 सीनियर सेकेंडरी स्कूल और 145 डिग्री कॉलेज, जिनमें 9 संस्कृत कॉलेज, 1 राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एस.सी.ई.आर.टी.), 1 बी.एड. कॉलेज और 1 फाईन आर्ट कॉलेज संचालित हंै।
समाज के वंचित वर्ग की शैक्षिक स्थिति में सुधार लाने के लिए राज्य/केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न चरणों में विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियाँ/वजीफे प्रदान किए जा रहे हैं। छात्रवृत्ति योजनाएँ इस प्रकार हैं

















संस्कृत शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार द्वारा भी निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों का विवरण निम्न प्रकार से हैः
क) उच्च/वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ रहे विद्यार्थियों को संस्कृत छात्रवृति प्रदान करना ।
ख) माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत पढ़ाने के लिए संस्कृत व्याख्याताओं के वेतन के लिए अनुदान प्रदान करना
ग) संस्कृत पाठशालाओं का आधुनिकीकरण करना।
घ) संस्कृत के उत्थान तथा शोध/शोध परियोजनाओं हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना।
वर्ष 2024-25 के दौरान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद सोलन और राजकीय अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश ने प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें स्कूलों/कॉलेजो ं के 802 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया।
राज्य सरकार 9वीं और 10वीं कक्षा के सभी छात्रों को मुफ्त पाठ्य पुस्तके ं प्रदान करती है। 2024-25 के दौरान इस योजना के तहत 1,41,970 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले छात्रों को जमा दो स्तर तक निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है तथा शिक्षा शुल्क और अन्य निधि भी नहीं ली जा रही है। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षा शुल्क मे ं भी छूट प्रदान की गई है।
राज्य में छात्राओं को विश्वविद्यालय स्तर तक बिना किसी शिक्षण शुल्क के निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है।
सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा सभी सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में स्वयं आर्थिक प्रबन्धन आधार पर प्रदान की जाती है, जिसमे ं छात्र इसे वैकल्पिक विषय के रूप में चुनते हैं। विभाग प्रति छात्र प्रति माह ₹110 का सूचना प्रौद्योगिकी शुल्क लेता है। अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) परिवारों के छात्रों को शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट दी जाती है ै। शैक्षणिक वर्ष 2024-25 में, कुल 68,250 छात्र सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा में नामांकित हैं, और अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) पृष्ठभूमि के 4,756 छात्रों ने इस योजना के अन्तर्गत शुल्क छूट का लाभ उठाया है।
माननीय मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश ने वर्ष 2023-24 के बजट भाषण मे ं हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र में एक “राजीव गांधी सरकारी मॉडल डे-बोर्डिंग स्कूल” खोलने की घोषणा की है, जिसमें प्री-प्राइमरी से 12वीं कक्षा तक कम से कम 900-1000 छात्रों को समायोजित करने की क्षमता होगी। इन स्कूलो ं में हाईटेक स्मार्ट क्लास रूम, खेल के मैदान, इनडोर स्टेडियम/खेल के मैदान और स्विमिंग पूल जैसी अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। पांच राजीव गांधी सरकारी मॉडल डे बोर्डिंग स्कूलों का निर्माण कार्य शुरू हो गया है, जिनमें लाहडू और नगरोटा बगवां (कांगड़ा), अमलेहड़ और भोरंज (हमीरपुर) और साघनेई (ऊना) शामिल हैं।
उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए राज्य में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान लागू किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत 70 कॉलेजों और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) को अनुदान दिया जा रहा है। एचपीयू शिमला को मल्टी-डिसिप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च यूनिवर्सिटीज (एम.ई.आर.यू.) के तहत चुना गया है। सरदार पटेल विश्वविद्यालय, मंडी को मजबूत करने के लिए अनुदान (जी.एस.यू), 4 कॉलेजो ं यानी सरकारी कॉलेज दाड़लाघाट, सरकारी कॉलेज भलेई, डीएवी कांगड़ा, सरकारी कॉलेज मंडी को मजबूत करने के लिए अनुदान (जी.एस.सी.) और 04 जिलों यानी सिरमौर, चंबा, ऊना और कांगड़ा को प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (पीएम-यू.एस.एच.ए.) के लिंग समावेशन और इक्विटी पहल (जी.आई एंड ई.आई.) के तहत चुना गया है।
इस योजना का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के मेधावी विद्यार्थियों को प्रतिष्ठित तकनीकी/व्यावसायिक संस्थानों मे ं प्रवेश के लिए कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (ब्स्।ज्)/ राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (छम्म्ज्)/भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-संयुक्त प्रवेश परीक्षा (प्प्ज्.श्रम्म्) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (।प्प्डै)/सशस्त्र सेना मेडिकल कॉलेज (।थ्डब्)ध्राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (छक्।) संघ लोक सेवा आयोग (न्च्ैब्)/कर्मचारी चयन आयोग (ैैब्)/बैंकिंग आदि परीक्षाओं की कोचिंग प्रदान कर उनकी सहायता करना है। हिमाचल प्रदेश के मेधावी विद्यार्थी जिनके परिवारों की वार्षिक आय 2.50 लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक नहीं है, वे इस योजना के लिए पात्र हैं। कुछ छात्रवृत्तियों के विलय का प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन है।
स्ी.सी.टी.वी. निगरानी योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान राज्य के 91 सरकारी उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों मे ं कैमरे लगाए जा रहे हैं।
वर्ष 2023-24 और 2024-25 के दौरान विभाग ने स्कूलों और कॉलेजों को 74 कबड्डी मैट, 08 बॉक्सिंग रिंग, 09 कुश्ती मैट और 17 वेटलिफ्टिंग प्लेटफॉर्म सेट उपलब्ध कराए हैं, जिनकी कीमत ₹255.71 लाख है। इस योजना के अन्तर्गत लगभग 70 स्कूल और 20 कॉलेज शामिल किए जा रहे हैं।
इस योजना के तहत सरकारी स्कूलों के 10वीं कक्षा के शीर्ष 100 मेधावी छात्रों को व्यावसायिक/तकनीकी पाठ्यक्रमों मे ं प्रवेश के लिए कोचिंग लेने हेतु ₹1.00 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान इस योजना के लिए ₹1.00 करोड़ की राशि स्वीकृत की है।
सी.वी. रमन वर्चुअल क्लासरूम योजना के अन्तर्गत, राज्य के 29 सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों और और 17 सरकारी कॉलेजों के लिए खरीद प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
राज्य के 20 सरकारी कॉलेजों में दो क्षेत्रों यानी रिटेल मैनेजमे ंट (आरएम) और हॉस्पिटैलिटी एंड टूरिज्म (एचएंडटी) में बी.वोक डिग्री प्रोग्राम शुरू किया गया है। इस योजना के तहत एक बैच मे ं 80 छात्र नामांकित हैं (आरएम में 40 छात्र और एचएंडटी में 40 छात्र)। शैक्षणिक सत्र 2024-25 के दौरान 3,347 छात्र प्रशिक्षण के अन्तर्गत नामांकित हैं।
सरकार ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि राज्य शिक्षा विभाग स्कूल क्लस्टर दृष्टिकोण अपनाए ताकि शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के समग्र विकास पर सकारात्म प्रभाव डाला जा सके। वर्तमान में राज्य में 2,252 क्लस्टर स्कूल (सरकारी उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय) काम कर रहे हैं।
“अपना विद्यालय हिमाचल स्कूल गोद लेने का कार्यक्रम” के तहत, 1,765 सरकारी सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों / उच्च विद्यालयों को 2,811 व्यक्तियों द्वारा गोद लिया गया है। इनमें सेवानिवृत्त शिक्षाविद्/ विधायक/ सांसद/ आई.ए.एस./ एच.ए.एस./ आई.एफ.एस./ आई.पी.एस./ डॉक्टर/सामाजिक कार्यकर्ता/अन्य विभागीय कर्मचारी आदि शामिल हैं।
इस एकीकृत योजना का मुख्य जोर दो टी-शिक्षक और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करके स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। इस रणनीति के तहत स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर सीखने के परिणामों को बढ़ाना है। समग्र शिक्षा 90रू10 (90 प्रतिशत भारत सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकार) के साझा पैटर्न में चल रही है।
समग्र शिक्षा के तहत चल रही विभिन्न मुख्य योजनाएँ इस प्रकार हैं
प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा : प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) को स्कूली शिक्षा का अग्रदूत माना जाता है। ये स्कूल से पहले के वर्ष बच्चे के शैक्षिक जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं और बाद के वर्षों मे ं प्रभावी स्कूली शिक्षा की नींव रखते हैं। प्रभावी ई.सी.सी.ई. से उच्च कक्षाओं में गुणात्मक नामांकन होता है, ड्रॉपआउट दर में कमी आती है और बच्चों को प्रारंभिक कक्षाओं में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता हासिल करने में भी मदद मिलती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन.ई.पी.) 2020 मे ं प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के विस्तार की परिकल्पना की गई है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को शामिल करने पर जोर दिया गया है। यह नीति बच्चों के शारीरिक, संज्ञानात्मक, सामाजिक-भावनात्मक-नैतिक, सांस्कृ तिक/कलात्मक, संचार और प्रारंभिक भाषा, साक्षरता और संख्यात्मक विकास कौशल पर केंद्रित है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रारंभिक बाल देखभाल और शिक्षा पर जोर देने से पूरे भारत में प्रारंभिक कक्षा के शिक्षार्थियो ं के लिए व्यापक विकासात्मक लाभ प्रदान करने की क्षमता है।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19 में पहले चरण में राज्य भर के 3,391 प्राथमिक विद्यालयों में पूर्व प्राथमिक (ई.सी.सी.ई.) कक्षाएं शुरू की गई थीं। पिछले कुछ वर्षों में, विभिन्न जिलों के स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से जोड़ा गया है। वर्तमान में राज्य के चयनित 6,202 प्राथमिक विद्यालयों में पूर्व प्राथमिक कार्यक्रम चल रहा है और राज्य भर में इस कार्यक्रम के तहत 66,852 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (प्ब्ज्) परियोजना सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (प्ब्ज्) आधुनिक समाज के मूलभूत निर्माण खंडों में से एक बन गई है। पहुँच, समानता और गुणवत्ता के तीन प्रमुख सिद्धांतों को प्ब्ज् की अपार क्षमता का दोहन करके प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकता है। शिक्षकों के लिए, प्ब्ज् न केवल प्ब्ज् कौशल का निर्माण करता है बल्कि व्यापक रूप से शिक्षण और सीखने को भी बढ़ाता है। प्ब्ज् समाधानों ने आधारभूत कौशल के निर्माण में अपनी शक्ति दिखाई है, जिससे संचार, सहयोग, रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान जैसे महत्वपूर्ण 21वीं सदी के कौशल विकसित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
व्यावसायिक शिक्षा भारत सरकार ने सितंबर, 2013 में स्कूली शिक्षा में रोजगारपरक शिक्षा को एकीकृत करके माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण की एक संशोधित के ंद्र प्रायोजित योजना शुरू की है। अब यह योजना हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में स्कूली शिक्षा के व्यावसायीकरण के तहत राष्ट्रीय कौशल योग्यता रूपरेखा कार्यक्रम कार्यान्वयन के अंतर्गत आती है, जिसने व्यावसायिक कौशल का प्रमाणन प्रदान करके स्कूल से उच्च शिक्षा तक स्पष्ट व्यावसायिक मार्ग की एक प्रणाली स्थापित की है। इस परियोजना को भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा हिमाचल प्रदेश राज्य के लिए अनुमोदित किया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य छात्रों को उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद रोजगारपरक बनाना है। राष्ट्रीय कौशल योग्यता रूपरेखा को राज्य के 1,274 सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में 16 विभिन्न व्यावसायिक ट्रेडों/क्षेत्रों में कार्यान्वित किया गया है,
जिनमें स्वास्थ्य सेवा, कृषि, खुदरा, पर्यटन और आतिथ्य, ऑटोमोबाइल, आईटी/आईटीईएस, दूरसंचार, बैंकिंग, वित्तीय सेवाएँ और बीमा, मीडिया और मनोरंजन, शारीरिक शिक्षा, निजी सुरक्षा, परिधान निर्माण और घरेलू साज-सज्जा, सौंदर्य और कल्याण, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर, खाद्य प्रसंस्करण और प्लंबिंग शामिल हैं। सत्र 2022-23 और 2023-24 के दौरान छात्रों का कुल नामांकन क्रमशः 92,054 और 97,821 था
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा (CwSN)) : समावेशी शिक्षा एक सामान्य शिक्षण वातावरण में की जाती है, जो एक शैक्षिक सेटिंग है जहाँ विभिन्न क्षमताओं वाले छात्र एक समावेशी वातावरण मे ं एक साथ सीखते हैं। विकलांग बच्चों के लिए एकीकृत शिक्षा की केंद्र प्रायोजित योजना वर्ष 1992 में सामान्य स्कूलों मे ं विकलांग बच्चों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने और स्कूल प्रणाली में उनके बने रहने की सुविधा के लिए शुरू की गई थी। समग्र शिक्षा मानदंडो ं को विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 द्वारा और मजबूत किया गया, जो जाति, लिंग, विकलांगता आदि के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा की बात करता है।
हिमाचल प्रदेश मे ं वर्ष 2023-24 में विशेष आवश्यकता वाले 5,700 बच्चों की पहचान की गई है, जिनमें से पूर्व-प्राथमिक स्तर पर 129, प्रारंभिक स्तर पर 4,013 तथा माध्यमिक स्तर पर 1,558 विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को औपचारिक स्कूलों में शामिल किया गया है। प्रारंभिक स्तर पर गंभीर और गहन गंभीर श्रेणी के 1,464 विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए गृह आधारित शिक्षा कार्यक्रम लागू किया गया।
समावेशी शिक्षा के अंतर्गत गतिविधियाँ
क) चिकित्सा मूल्यांकन शिविर
ख) सहायक उपकरण एवं सहायता सामग्री का वितरण
ग) दृष्टिबाधित बच्चों के लिए ब्रेल पुस्तकें और विस्तृत प्रिंट पुस्तकें
घ) अनुरक्षण भत्ता
ड़) गृह आधारित शिक्षा कार्यक्रम
च) लड़कियों के लिए वजीफा
छ) पर्यावरण निर्माण कार्यक्रम
ज) विशेष शिक्षकों की नियुक्ति
झ) सेवारत विशेष शिक्षकों की क्षमता निर्माण
ञ) खेलकूद कार्यक्रम
ट) विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए एक्सपोजर विजिट
ठ) मानसिक रूप से मंद बच्चो ं के लिए डे केयर सेंटर
ड) छात्रावास सुविधा वाले मॉडल समावेशी स्कूल
ढ) प्रधानाचार्यों, शैक्षिक प्रशासकों का उन्मुखीकरण
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (के.जी.बी.वी.) हिमाचल प्रदेश में 14 के.जी.बी.वी. हैं। जिनमें से ग्यारह चंबा जिले में, एक शिमला जिले में और दो सिरमौर जिले में हैं। सभी 14 के.जी.बी.वी. पूरी तरह से काम कर रहे हैं और समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के माध्यम से प्रबंधित किए जा रहे हैं। वर्तमान में, सभी केजीबीवी मे ं 908 लड़कियां रह रही हैं। ये सभी छात्रावास सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक / उच्च विद्यालयों से जुड़ े हुए हैं। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/आई.आर.डी.पी. से संबंधित लड़कियां छात्रावास में रह रही हैं। हिमाचल प्रदेश में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ने वाली लड़कियां ज्यादातर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों से हैं।
शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली प्लस (UDISE+) भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने ऑफ़लाइन न्क्प्ैम् को ऑनलाइन UDISE+ में बदल दिया है ताकि भविष्य में देश वास्तविक समय डेटा की ओर बढ़ सके। वर्ष 2022-23 के लिए UDISE+ ऑनलाइन डेटा एकत्र किया गया और 24 अगस्त, 2023 को अंतिम रूप दिया गया और प्रमाणित किया गया। जिलों को संबंधित UDISE+ रिपोर्ट स्कूलों, क्लस्टर संसाधन केंद्र समन्वयक (सीआरसीसी)ए ब्लॉक संसाधन केंद्र समन्वयक (बीआरसीसी)ए ब्लॉक प्राथमिक शिक्षा अधिकारी (बीपीईओ) और उप निदेशकों के साथ साझा करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा, सभी जिले सामाजिक लेखापरीक्षा के भाग के रूप में समुदाय अर्थात स्कूल प्रबंधन समिति/मातृ शिक्षक संघ (एसएमसी/एमटीए) आदि के साथ न्क्प्ैम् स्कूल रिपोर्ट कार्ड को साझा करते हैं और उस पर चर्चा करते हैं।
शिक्षक एवं छात्र विनिमय कार्यक्रम शिक्षक और छात्र विनिमय कार्यक्रम के तहत, 240 छात्रों के साथ 24 शिक्षकों ने दो बैचों में केरल का दौरा किया। 120 छात्रों और 12 अनुरक्षण शिक्षकों के पहले समूह ने अपप. 20 से 28 जनवरी 2024 तक और 120 छात्रों और 12 अनुरक्षण शिक्षकों के दूसरे समूह ने 27 जनवरी से 04 फरवरी 2024 तक केरल का दौरा किया। खेल और शारीरिक शिक्षा खेल और शारीरिक शिक्षा घटक समग्र शिक्षा का हिस्सा रहा है जिसमें खेल उपकरणों की खरीद का प्रावधान है। इनडोर और आउटडोर खेलों के लिए खेल उपकरणों की खरीद पर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए इस घटक से खर्च किया जाता है।
युवा और पर्यावरण क्लब युवा क्लबों में भागीदारी, छात्रों को आवश्यक जीवन कौशल विकसित करने, उनके आत्मसम्मान को पोषित करने और चुनौतियों और बाधाओं को दूर करने की क्षमता विकसित करने का अवसर प्रदान करती है। स्कूलों में इको क्लब समग्र शिक्षा के तहत एक हस्तक्षेप है जो छात्रों को सार्थक पर्यावरण अनुकूल गतिविधियों और परियोजनाओं को अपनाने में सक्षम बनाता है, जिससे चल रही पर्यावरणीय चिंता के लिए संवेदनशीलता और समझ विकसित होती है।
सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग और इंसिनेरेटर मशीनें वित्त वर्ष 2023-24 में, हिमाचल प्रदेश के 4,739 सरकारी विद्यालयों में समग्र शिक्षा के तहत सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग और इंसिनेरेटर मशीने ं स्थापित की गई है ं, जिनमें 1,949 मिडिल माध्यमिक विद्यालय, 936 उच्च विद्यालय और 1,854 वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय शामिल हैं।
आत्मरक्षा प्रशिक्षण समग्र शिक्षा के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के सरकारी माध्यमिक/ उच्च विद्यालय / वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ने वाली सभी छात्राओं को आत्मरक्षा की विभिन्न तकनीकों में विशेषज्ञ प्रशिक्षकों के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है। वर्ष 2023-24 में 4,706 सरकारी स्कूलो ं मे ं आत्मरक्षा प्रशिक्षण दिया गया तथा 2,58,223 छात्राओ ं को प्रशिक्षित किया गया
तकनीकी शिक्षा विभाग वर्ष 1968 में अस्तित्व मे ं आया। जुलाई, 1983 में व्यावसायिक और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को इसके दायरे में लाया गया। वर्तमान में विभाग तकनीकी, व्यावसायिक और औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। इच्छुक छात्र इंजीनियरिंग और फार्मेसी में डिग्री कोर्स, पॉलिटेक्निक कॉलेजों में डिप्लोमा कोर्स और आई टी.आई. मे ं सर्टिफिकेट कोर्स में निम्नलिखित संस्थानों मे ं प्रवेश ले सकते हैंः

भारत सरकार के कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने विश्व बैंक की सहायता प्राप्त एक केंद्रीय क्षेत्र योजना (सी.एस.एस.) स्ट्राइव परियोजना शुरू की है जिसका उद्देश्य औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आई.टी.आई.) और प्रशिक्षुता के माध्यम से प्रदान किए जाने वाले कौशल प्रशिक्षण की प्रासंगिकता और दक्षता में सुधार करना है। इस परियोजना में निजी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान और औद्योगिक क्लस्टर भी शामिल हैं। यह परियोजना दिसंबर, 2017 में शुरू हुई और मई, 2024 में पूरी हो गई।
स्ट्राइव परियोजना के तहत राज्य के 33 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (32 सरकारी आई.टी.आई. और 01 निजी) का चयन इन औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए किया गया है ताकि प्रशिक्षुओं को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण दिया जा सके। परियोजना के अन्तर्गत् ₹4,295 लाख की धनराशि उपयोग का किया गया है।
राज्य में प्रशिक्षुता प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए, परियोजना के अन्तर्गत्् 06 उद्योग क्लस्टर यानी बद्दी बरोटीवाला नालागढ़ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (बी.बी.एन.आई.ए.) बद्दी, जिला लघु उद्योग संघ (जे.एल.यू.एस.) बिलासपुर, हिमाचल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एच.सी.सी.आई.) पांवटा साहिब, मैहतपुर औद्योगिक संघ मैहतपुर, सोलन औद्योगिक संघ और हरोली ब्लॉक उद्योग संघ का चयन किया गया है।
वर्ष 2024-25 के दौरान स्ट्राइव परियोजना के अन्तर्गत् उपलब्धियांः
i) केंन्द्र प्रायोजित योजना (सी.एस.एस.) स्ट्राइव के अन्तर्गत्् 25 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के लिए ₹97.82 लाख की लागत से कुल 25 वीडियो कॉन्फ्रे ंसिंग सिस्टम और 3 सरकारी आई.टी.आई. के लिए 6 इंटरैक्टिव पैनल खरीदे गए।
ii) 10 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के आईटी और कंप्यूटर ऑपरेटर और प्रोग्रामिंग सहायक (सीओपीए) प्रयोगशालाओं के लिए 120 ऑल-इन-वन कंप्यूटर खरीदे गए, जिन पर कुल ₹89.05 लाख खर्च हुए।
iii) 16 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के लिए 10 किलो-वोल्ट-एम्पीयर (के वी.ए.) के पावर सेविंग इनवर्टर की खरीद की गई, जिस पर ₹71.95 लाख खर्च हुए।
iv) राज्य के 03 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों नामतः औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान निहरी, शिलाई और गढ़जमुल्ला मे ं ₹36.75 लाख की लागत से 25 किलोवोल्ट (के.वी.) के ऑन-ग्रिड सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य के 16 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में ₹11.79 लाख की लागत से 100 सौर स्ट्रीट लाइट (9 वाट) लगाई गई ।
i) राजकीय बहुतकनीकी जन्दौर को शैक्षणिक सत्र 2024-25 से आरम्भ कर दिया गया है।
ii) राष्ट्रीय प्रशिक्षु प्रशिक्षण योजना के तहत 49 प्रशिक्षुओं और राष्ट्रीय प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत् इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक, फार्मेसी कॉलेजों तथा राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में 94 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण के साथ छात्रवृति भी दी जा रही है।
iii) राजकीय बहुतकनीकी संस्थान सुंदरनगर में 27 छात्रों को कौशल विकास मंत्रालय के अन्तर्गत् तथा आई.आई.टी. रुड़की द्वारा प्रायोजित श्जल ऊर्जा मित्रा कौशल विकास कार्यक्रमश् में प्रशिक्षण दिया गया है।
iv) 399 संकाय सदस्यो ं और 4,019 छात्रों ने ऑनलाइन ओपन कोर्स/स्वयं पाठ्यक्रमों मे ं पंजीकरण/प्रशिक्षण करवाया गया हैै।
v) 161 संकाय सदस्यों को राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (एन.आई.टी.टी.टी.आर.) चंडीगढ़ तथा हिमाचल लोक प्रशासन संस्थान, शिमला (हिपा) द्वारा ऑनलाइन/ऑफलाइन आयोजित फैक्लटी डेब्लपमैंट प्रोग्राम में प्रशिक्षित करवाया गया है।
vi) राजकीय हाईड्रो ईंजीनियरिंग महाविद्यालय बंदला में एम.टेक. इलैक्ट्रीकल ईंजीनियरिंग ;इलैक्ट्रीकल व्हीकल टेक्नालाॅजीद्ध को चलाने हेतू प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर दी गई है।
वर्ष 2024 के लिए ।ैम्त् (शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट) रिपोर्ट ग्रामीण हिमाचल प्रदेश से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर एक विश्लेषण प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट राज्य में शिक्षा की स्थिति के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए विभिन्न आंकड़ों के माध्यम से प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डालती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमाचल उन शीर्ष राज्यों मे ं से एक है, जिन्होंने 2022-2024 के बीच स्कूलो ं में विभिन्न क्षेत्रों मे ं 10 प्रतिशत से अधिक की समग्र वृद्धि के साथ महत्वपूर्ण लाभ दर्ज किया है।
वर्ष 2024 के लिए नवीनतम वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ए.एस.ई.आर.) रिपोर्ट, जिसमें 268 ग्रामीण स्कूलों का निरीक्षण किया गया, ग्रामीण हिमाचल प्रदेश विशेषकर सरकारी स्कूलों के लिए उत्साहजनक परिणाम दर्शाती है। कई क्षेत्रों में स्कूल. कुछ संकेतक सारणीयों और रेखाचित्रों के साथ नीचे दिखाए गए हैं।

ऊपर दिया गया चित्र विभिन्न आयु वर्ग के बच्चो ं के नामांकन की स्थिति को प्रतिशत में दर्शाता है। 7-10 वर्ष आयु वर्ग (लड़कियाँ और लड़के दोनों) में सरकारी स्कूलों में नामांकन 55.7 प्रतिशत है, जबकि इसी आयु वर्ग में लड़कियों और लड़कों का नामांकन क्रमशः 57.6 और 54 प्रतिशत है। 15-16 वर्ष आयु वर्ग (लड़कियाँ और लड़के) मे ं कुल नामांकन प्रतिशत 71.7 है, जबकि इसी आयु वर्ग में लड़कियों और लड़कों का नामांकन क्रमशः 73.1 और 70.2 प्रतिशत है। यह दर्शाता है कि सरकारी स्कूलों में छात्राओं का नामांकन प्रतिशत छात्रों की तुलना में अधिक है।

ऊपर दिया गया चित्र बच्चों की पढ़ने की क्षमता को प्रतिशत में दर्शाता है, उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि कक्षा-1 के 12.8 प्रतिशत छात्र एक अक्षर भी नहीं पढ़ पाते हैं, 29.2 प्रतिशत छात्र एक शब्द पढ़ सकते हैं। दूसरी ओर, कक्षा-1 के 14.6 प्रतिशत छात्र कक्षा 1 की पाठ्यपुस्तक पढ़ सकते हैं और 9.0 प्रतिशत छात्र कक्षा-2 की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। कक्षा-8 के 0.1 प्रतिशत छात्र एक अक्षर भी नहीं पढ़ पाते हैं।

चित्र दर्शाता है कि कक्षा-1 के 19.2 प्रतिशत छात्र संख्या 1-9 को पहचानते हैं और 62.6 प्रतिशत छात्र संख्या 11-99 को पहचानते हैं, 6.90 प्रतिशत छात्र घटा सकते हैं और 2.40 प्रतिशत छात्र संख्याओं को भाग दे सकते हैं। जबकि कक्षा-8 के 20.60 प्रतिशत छात्र घटा सकते हैं और 51.80 छात्र संख्याओं को भाग दे सकते हैं। सारणी 13.9 हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण बच्चों के बीच डिजिटल उपकरणों की पहुँच और स्वामित्व को प्रतिशत के रूप में दर्शाती हैं। स्मार्ट फोन की उपलब्धता और उपयोग का संक्षिप्त विश्लेषण दर्शाता है कि 14 वर्ष की आयु में 97.4 प्रतिशत बच्चों के पास अपना स्मार्ट फोन है, 94.1 प्रतिशत इसका उपयोग कर सकते हैं और 83.1 प्रतिशत इसका उपयोग डिजिटल कार्यों में कर सकते हैं। जबकि 16 वर्ष की आयु में 96.5 प्रतिशत बच्चों के पास अपना मोबाइल है, 95.7 प्रतिशत इसका उपयोग कर सकते हैं और 84.3 प्रतिशत इसका उपयोग डिजिटल कार्यों मे ं कर सकते हैं।

निष्कर्षः हिमाचल प्रदेश ने शिक्षा की पहु ंच और गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देते हुए महत्वपूर्ण प्रगति की है। राज्य में विविध प्रकार की शैक्षणिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनमे ं 9,943 प्राथमिक विद्यालय, 1,786 माध्यमिक विद्यालय और 1,988 वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय शामिल हैं। राज्य की साक्षरता दर 2011 में 82.8 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 93.3 प्रतिशत हो गई है, जो शिक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। विभिन्न श्रेणियों के छात्रों को कई राज्य-प्रायोजित छात्रवृत्तियाँ सहायता प्रदान की जाती है जिसमें मेधावी छात्रवृति योजना, डॉ. अम्बेडकर मेधावी छात्रवृति योजना और स्वामी विवेकानन्द उत्कृष्ट छात्रवृति योजना शामिल हैं, जिससे हजारों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त प्रधान मन्त्री पोषण योजना और मुख्यमंत्री बाल पौष्टिक आहार योजना जैसी पहलों का उद्देश्य छात्रों के पोषण में सुधार करना और उनकी शैक्षणिक प्रगति को सहयोग देना है। ये प्रयास समावेशी शिक्षा और विद्यार्थियों के समग्र उत्थान पर केन्द्रित हैं।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य भर मे ं शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेक पहलें लागू की हैं। इनमें छात्रवृत्ति और अनुदान के माध्यम से संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देना, विशेष रूप से सक्षम बच्चों और लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा प्रदान करना और स्कूलों में बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना शामिल है। इस दिशा मे ं राजीव गांधी सरकारी मॉडल डे-बोर्डिंग स्कूल और राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान जैसे उल्लेखनीय कार्यक्रमो ं का उद्देश्य शिक्षा की पहु ंच और गुणवत्ता में सुधार करना है। समग्र शिक्षा एक प्रमुख योजना है, जो शिक्षक प्रशिक्षण, समावेशी शिक्षा और डिजिटल बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर केंद्रित है। सरकार खेलकूद के माध्यम से पाठ्येतर गतिविधियों, लड़कियों के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण और इको-क्लबों के माध्यम से पर्यावरण जागरूकता पर भी बल देती है।
शिक्षा के क्षेत्र मे ं, 2024 ए.एस.ई.आर. रिपोर्ट में ग्रामीण स्कूलों में उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से लड़कियों के लिए, जिसमें सरकारी स्कूलों में उच्च नामांकन शामिल है। रिपोर्ट से मजबूत डिजिटल साक्षरता भी पता चलता है। जिसमें 14-16 वर्ष आयु वर्ग के अधिकांश बच्चे शैक्षिक कार्यों के लिए स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं, जो हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण शिक्षा और डिजिटल पहु ंच में सकारात्मक रुझान को दर्शाता है। 1) रोबोटिक्स, सेमी-कंडक्टर इको-सिस्टम, मशीन लर्निंग और प्रबंधन विकास कार्यक्रम आदि में आई.,आई.टी. और आई.आई.एम. जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में 77 संकायों और 43 छात्रों को अल्पावधि प्रशिक्षण प्रदान किए गए हैं।
2) राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (एन.आई.टी.टी.टी. आर.), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हिमाचल प्रदेश लोक प्रशासन संस्थान (हिपा) आदि द्वारा संचालित संकाय विकास कार्यक्रम ने 390 से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया है।
3) 1,258 फैकल्टी और 8,954 छात्रों ने मैसिव ओपन ऑनलाइन/स्वयं पाठ्यक्रमों में पंजीकरण/भाग लिया है ।
4) नए युग के पाठ्यक्रम यानी सरकारी हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज बंदला में कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग (कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा विज्ञान) डिग्री पाठ्यक्रम, सरकारी पॉलिटेक्निक रोहड़ू में कंप्यूटर इंजीनियरिंग और आई.ओ.टी. पाठ्यक्रम सरकारी पॉलिटेक्निक चंबा में ममेक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा शुरू करने के साथ-साथ सुलह (कांगड़ा) में एक नया सरकारी फार्मेसी कॉलेज भी शुरू कर दिया गया है।
5) राष्ट्रीय प्रशिक्षु प्रशिक्षण के तहत 49 प्रशिक्षुओं और इंजीनियरिंग कॉलेजों, पॉलिटेक्निक और फार्मेसी कॉलेजों में राष्ट्रीय प्रशिक्षु संवर्धन योजना के तहत 15 प्रशिक्षुओं को शामिल किया गया है, जिसमें प्रत्येक प्रशिक्षु को उनके प्रशिक्षण अवधि के दौरान स्टाईपण्ड प्रदान किया जाता है।

14.स्वास्थ्य

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग संचारी और गैर-संचारी रोगों, अस्पतालों और औषधालयों और चिकित्सा शिक्षा के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है, आयुष विभाग आयुर्वेद, होम्यो, यूनानी, सिद्धा जैसी स्वदेशी चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा देने और स्वदेशी चिकित्सा में चल रहे अनुसंधान का ध्यान रखता है। 2007 में गठित चिकित्सा अनुसंधान विभाग मुख्य रूप से चिकित्सा और स्वास्थ्य गतिविधियों में अनुसंधान से संबंधित है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एन.ए.सी.ओ.) एड्स की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कार्यक्रमों की योजना और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है। यह अध्याय प्रमुख स्वास्थ्य संकेतकों में राज्य द्वारा की गई प्रगति पर प्रकाश डालता है, साथ ही हिमाचल प्रदेश मे ं स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से सरकारी पहल को भी प्रस्तुत करता है।
हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने अपने नागरिकों की भलाई को प्राथमिकता दी है और अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण व्यक्त किया है। व्यापक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने, संचारी और गैर-संचारी दोनो ं प्रकार की बीमारियों को खत्म करने और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करना जनसंख्या के समग्र स्वास्थ्य में सुधार के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने 115 सिविल अस्पतालो ं, 106 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, 585 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, 24 ई.एस.आई. सिविल डिस्पे ंसरियों और 2,114 स्वास्थ्य उप के ंद्रो ं सहित स्वास्थ्य सुविधाओं के एक सुस्थापित नेटवर्क की उपस्थिति के साथ उपचारात्मक, निवारक और पुनर्वास सेवाएं प्रदान करने के लिए एक व्यवस्थित ष्टिकोण अपनाया है।
व्यापक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता से महत्वपूर्ण सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। इनमें जीवन प्रत्याशा मे ं वृद्धि, शिशु मृत्यु दर, नवजात मृत्यु दर, 5 वर्ष से कम उम्र की मृत्यु दर में कमी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, प्रसव देखभाल, टीकाकरण दर और मातृ स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। जैसा कि नीचे उल्लेख किया गया हैः
जन्म के समय जीवन प्रत्याशा - भारत की तुलना में हिमाचल : हिमाचल प्रदेश में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में पिछले कुछ वर्षों में लगातार वृद्धि देखी गई है वर्ष 2014-18, 2015-19 और 2016-20 से एस.आर.एस.-आधारित संक्षिप्त जीवन सारणीयांें के अनुसार, वर्तमान में यह राष्ट्रीय औसत से अधिक है। समग्र जीवन प्रत्याशा 2014-18 में 72.9 वर्ष से बढ़कर 2016-20 में 73.5 वर्ष हो गई। 2016-20 में, पुरुषों के लिए जीवन प्रत्याशा 70.3 वर्ष थी, जबकि महिलाओं के लिए यह 77.5 वर्ष थी। पुरुषों की तुलना में उच्च महिला जीवन प्रत्याशा का यह पैटर्न राष्ट्रीय प्रवृत्ति के अनुरूप है।
शिशु मृत्यु दर (आई.एम.आर.) - भारत की तुलना में हिमाचल : हिमाचल प्रदेश में शिशु मृत्यु दर (आई.एम.आर.), 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (यू.5.एम.आर.), और नवजात मृत्यु दर (एन.एन.एम.आर.) में गिरावट आ रही है, जो बाल स्वास्थ्य मे ं सुधार का संकेत है। आई.एम.आर. 2005-06 में प्रति 1000 जीवित जन्म पर 36 से घटकर 2019-21 में प्रति 1000 जीवित जन्म पर 25.6 हो गया है। इसी तरह, इसी अवधि के दौरान (यू.5.एम.आर.) 42 से गिरकर 28.9 हो गया है। हिमाचल प्रदेश में आई.एम.आर., यू.5.एम.आर. और एन.एन.एम.आर. राष्ट्रीय औसत (राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण) से कम हैं।
शिशु और बाल मृत्यु दर में कमी का श्रेय मुख्य रूप से राज्य के सक्रिय हस्तक्षेपों को जाता है, जिसमे ं आई.एम.आर. मिशन (2001) और छोटे बच्चों के लिए घर-आधारित देखभाल (2019) जैसे स्वास्थ्य कार्यक्रम शामिल हैं। अन्य पहल, जैसे नवजात देखभाल कॉर्नर, नवजात स्थिरीकरण ईकाइयां, बीमार नवजात देखभाल ईकाइयां और पोषण पुनर्वास केंद्रो ं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संस्थागत प्रसव - भारत की तुलना में हिमाचल : बेहतर प्रसव देखभाल से संस्थागत प्रसव दरो ं मे ं उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। संस्थागत प्रसव, प्रसव संबंधी जटिलताओं को रोकने, पता लगाने और प्रबंधित करने के साथ-साथ मातृ मृत्यु दर (एम.एम.आर.) और आई.एम.आर. को कम करने की कु ंजी है। हिमाचल प्रदेश में, संस्थागत प्रसव दर 2005-06 (एन.एफ.एच.एस.-3) में 43.1 प्रतिशत से बढ़कर 2019-21 (एन.एफ.एच.एस.-5) मे ं 88.2 प्रतिशत हो गई है, जो राष्ट्रीय औसत के लगभग बराबर है।
जननी सुरक्षा योजना (जे.एस.वाई.), जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जे.एस.एस.के.), मुफ्त दवा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पी.एम.एस.एम.ए.) और 108 एम्बुलेंस सेवा जैसी सरकारी पहलों ने संस्थागत प्रसव दरों में सुधार में योगदान दिया है।
12-23 महीने की आयु के बच्चों का पूर्ण टीकाकरण - भारत की तुलना में हिमाचल राज्य ने बच्चों के लिए पूर्ण टीकाकरण प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 2019-21 (एन.एफ.एच.एस.-5) के अनुसार, 12-23 महीने की उम्र के 89.3 प्रतिशत बच्चों को पूरी तरह से टीका लगाया गया था, जो 2005-06 (एन.एफ.एच.एस.-3) में 74.2 प्रतिशत से अधिक है। यू-विन प्लेटफाॅर्म ने टीकाकरण के रिकाॅर्ड़ को ड़िजिटल बनाने के लिए और टीकाकरण की वृद्धि में योगदान दिया है।
कुल प्रजनन दर (टी.एफ.आर.)-भारत की तुलना में हिमाचल : कुल प्रजनन दर (टी.एफ.आर.) का उपयोग किसी महिला की प्रजनन अवधि के दौरान बच्चे पैदा करने की क्षमता को मापने के लिए किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में टी एफ.आर. समय के साथ गिरा है और राष्ट्रीय औसत से कम है। तीनों अवधियों में हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रीय औसत की तुलना मे ं लगातार टी.एफ.आर. कम रही है। हिमाचल प्रदेश मे ं टी.एफ.आर. 2005-06 (एन.एफ.एच.एस.-3) मे ं 1.9 से 2019-21 (एन.एफ.एच.एस.-5) में 1 7 हो गयी जोकि लगातार गिरावट दिखाती है।
वर्ष 2024-25 के दौरान राज्य मे ं विभिन्न स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रर्मो ं का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से हैः


















वर्तमान में चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान निदेशालय सार्वजनिक क्षेत्र में छः मेडिकल काॅलेज, एक डेन्टल काॅलेज, एक अटल मेडिकल एंव रिसर्च विश्वविद्यालय, और एक अटल इंस्टीटयूट आॅफ मेडिकल सुपर स्पेशलिटीज और इसके अतिरिक्त निजी क्षेत्र के एक मेडिकल काॅलेज व चार डेन्टल काॅलेजों को नियंत्रित करता है। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत हिमाचल प्र्रदेश मे ं जिला बिलासपुर में एक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) स्थापित किया गया है। वित्तीय वर्ष 2024-2025 के दौरान 9 जनवरी, 2025 तक स्वीकृत बजट एवं व्यय की गई धनराशि का संस्थान वार ब्यौरा निम्न प्रकार से है।

चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में शैक्षणिक उपलब्धियां इस प्रकार हैंः
बैचलर आॅफ मेडिसन एंड बैचलर आॅफ सर्जरी (एम.बी.बी.एस.) और पोस्ट ग्रजुएट (पी.जी.)ः शैक्षणिक सत्र 2024-2025 के दौरान कुल 870 एम. बी. बी. एस. सीटें सरकारी व निजी क्षेत्र मे ं भरी गई (720 सीटें सरकारी क्षेत्र मे ं एवं 150 निजी क्षेत्र में), इसके अतिरिक्त 339 पी. जी. (एम.डी./एम.एस.) सीटें सरकारी (247 सीटें) व (92 सीटे ं) निजि क्षेत्र में आबंटित की गई ।
बैचलर ऑफ डे ंटल सर्जरी (बी.डी.एस.) और मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी (एम.डी एस.)ः शैक्षणिक सत्र 2024-25 के दौरान सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों मे ं बैचलर ऑफ डे ंटल सर्जरी (बी.डी.एस.) की 295 सीटें (सरकारी डे ंटल कॉलेज मे ं 75 और निजी क्षेत्र मे ं 220) भरी गईं। इसी तरह से सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में मास्टर ऑफ डे ंटल सर्जरी (एम.डी.एस.) की 100 सीटे ं (सरकारी डे ंटल कॉलेज में 23 और निजी डे ंटल कॉलेजों मे ं 77) भरी गईं।
नर्सिंगः शैक्षणिक सत्र 2024-25 में जनरल नर्सिंग और मिडवाइफरी (जी.एन.एम.) पाठ्यक्रम के लिए 1,650 सीटें, 2014 बी.एस.सी. नर्सिंग, पोस्ट बेसिक बी.एस.सी. नर्सिंग की 670 एवं एम.एस.सी. नर्सिंग डिग्री कोर्स की 216 सीटों की स्वीकृति विभिन्न सरकारी एवं निजी संस्थानों मे ं प्रदान की गयी है।
छात्रवृतियां/वजीफेः वर्तमान में राज्य के सरकारी आयुर्विज्ञान महाविद्यालयों एवं दन्त महाविद्यालय में निम्नलिखित सभी श्रेणियों को वजीफा दिया जा रहा हैः

सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रमः इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय शिमला में विभिन विशिष्टताओं में सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रमों मे ं 7 सीटें भरी गई और 6 सीटे ं डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद राजकीय आयुविज्ञान महाविद्यालय कांगड़ा स्थित टांडा को आंबटित की गई । डी.एन.बी. सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रमों के तहत डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय कांगड़ा स्थित टांडा में (डी.एन बी. न्यूरोलाॅजी 2 सीटें और डी.एन.बी. कार्डियोलाॅजी 2 सीट) है। दिसंबर, 2024 तक संस्थानवार प्रमुख उपलब्धियां निम्नलिखित तालिका मे ं दी गई हैः







इस विभाग में आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी चिकित्सा प्रणालियाँ शामिल हैं। प्रदेश मे ं भी इस विभाग को आयुष के नाम से जाना जाता है।
आयुष विभाग हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आयुष के माध्यम से आम जनता को प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं सारणी 14.6 में दर्शायी गई हैं।


हर्बल संसाधनों का विकास :
i) 198 औषधीय पोधों के लिए क्यू.आर. कोड ;फत् बवकमद्ध विकसित किए गए हैं, जिससे स्कैनिंग के माध्यम से औषधीय पौधों के बारे में सारी जानकारी एकदम उपलब्ध हो जाती है। इसके अतिरिक्त औषधीय पौधों के बारे में जागरूकता हेतु 46,000 प्रतियां मुद्रित की गई।
ii) अश्वगन्धा अभियान के अन्र्तगत 70,000 अश्वगन्धा पौधे वितरित किये गये। ग्राम सभा/महिला मण्डलों/स्कूलों आदि की बैठकों के दौरान अश्वगन्धा के उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाई गई, साथ ही स्कूलों मे ं आई.ई.सी. साम्रगी का वितरण और प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया।
iii) भारत सरकार द्वारा ₹18.90 करोड़ के वितीय परिव्यय के साथ श्ॅपजींदपं ेवउदपमितंश् (अश्वगंधा) पर राष्ट्रीयव्यापी अभियान अश्वगंधा-एक स्वास्थ्य प्रवर्तकश् नामक एक परियोजना प्रस्ताव स्वीकृत किया गया है।
आयुष आरोग्य कल्याण निधिः आयुष आरोग्य कल्याण निधि के निर्माण के माध्यम से राज्य भर मे ं स्थित आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र (ए.एच.सी.) को उनकी लघू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विŸाीय सहायता प्रदान करने के लिये नई पहल की गई है।
आचार्य चरक योजनाः क्षेत्रीय आयुष संस्थानों मे ं मुफ्त औषधीय व लैब परीक्षण की सुविधाये ं प्रदान करने के लिये तैयार की गई है। निष्कर्ष में हिमाचल प्रदेश सरकार जनता के स्वास्थ्य में सुधार की दृष्टि से विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य कार्यक्रम लागू कर रही है। प्रमुख पहलों में मलेरिया, कुष्ठ रोग, टीबी और अंधापन के लिए रोग नियंत्रण कार्यक्रम, साथ ही आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना और हिमकेयर कार्यक्रम जैसी व्यापक सेवाएं शामिल हैं, जो परिवारों के लिए कैशलेस उपचार प्रदान करती हैं। राज्य सरकार स्क्रीनिंग और उपचार, कैंसर देखभाल और दिल के दौरे और मधुमेह रोगियों के लिए सहायता के माध्यम से गैर-संचारी रोगों पर भी ध्यान केंद्रित करती है। अन्य कार्यक्रम जिनमें विशिष्ट हस्तक्षेप शामिल है उनके द्वारा मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, मासिक धर्म स्वच्छता, स्वच्छता और एच.आई.वी./एडस पर ध्यान केन्द्रित करती है।
आधारभूत ढांचे के विकास के लिए धन के आवंटन और चिकित्सा, दंत चिकित्सा और नर्सिंग पाठ्यक्रमों में विभिन्न सीटों को भरने के साथ, चिकित्सा शिक्षा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। विभिन्न स्तरों पर मेडिकल छात्रों को विभिन्न प्रकार के मानदेय और छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाती हैं। उल्लेखनीय उपलब्धियों में मेडिकल कॉलेजों में कैंसर केंद्र, मानसिक स्वास्थ्य संस्थान और महत्वपूर्ण देखभाल ब्लॉक जैसी उन्नत सुविधाओं का निर्माण शामिल है। राज्य ने कई अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रो ं और आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथी प्रथाओ ं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयुष स्वास्थ्य देखभाल में काफी प्रगति की है। अश्वगंधा अभियान और आयुष आरोग्य कल्याण निधि जैसी परियोजनाएं हर्बल चिकित्सा के उपयोग को बढ़ावा देती हैं और स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को सहायता उपल्ब्ध करवाती हैं।

15.समाज कल्याण

हिमाचल प्रदेश सरकार महिलाओं, बच्चो ं, वरिष्ठ नागरिकों, विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियो ं, अनुसूचित जाति (एस.सी.), अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) सहित सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों की भलाई के लिए समर्पित है। कल्याणकारी कार्यक्रमों की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि यह सुनिश्चित हो की लागू किए जाने वाले कार्यक्रम विशेष वर्गों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हैं और व्यवस्थित रूप से प्रदेश सरकार के नियोजित सामाजिक लक्ष्यों को पूरा करते हो।
इस अध्याय में अनुसूचित जातियों (एस.सी.), अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.), महिलाओं, किसानों, युवाओं और गरीबों के लिए नीतिगत प्राथमिकताओं का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इसमे ं विशेष रूप से इस बात पर बल दिया गया है कि आर्थिक गतिविधियों में उनकी सक्रिय और प्रभावी भागीदारी को बढ़ावा मिले जोकि समावेशी विकास नीतियो ं की सफलता का एक महत्वपूर्ण मापदंड भी है।
निदेशालय अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक मामलों के सशक्तिकरण विशेष रूप से दिव्यागों के अधिकारिता (ईसोमा), विभाग की है। विभाग के कार्यक्रम मुख्य रूप से इन लोगों की सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों को बढ़ाने पर केंद्रित हैं ताकि उन्हें हर प्रकार से समाज में जोड़ा जा सके। लक्ष्य समूहों का सामाजिक, शिक्षात्मक और आर्थिक विकास ईसोमा विभाग के कार्यक्रमों और योजनाओं में प्राथमिकता पर रहा है जिसके परिणामस्वरूप इन समूहों के लोगों के जीवन में काफी सुधार हुआ है।
सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से अत्यधिक अभाव, जोखिम और कमजोरियों दोनो ं को दर्शाता है। अगर सब कुछ बाजार और विकास के भरोसे छोड़ दिया जाए तो असमानता को दूर नहीं किया जा सकता है। यह न केवल सामाजिक असुरक्षा जैसे बीमारी, बुढ़ापा, बेरोजगारी और सामाजिक बहिष्कार से संबंधित है, बल्कि उन कार्यक्रमों से भी संबंधित है जो गरीबों के लिए आय प्रदान करते हैं। विभिन्न सामाजिक सुरक्षा पे ंशन योजना प्रदेश में सुचारू रूप से कार्यान्वित की जा रहीं ताकि समाज का पूर्ण रूप से कल्याण हो सके जोकि निम्नलिखित है।
राज्य की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाएं का विवरण सारणी 15.1 में दर्शाया गया है।



राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बी.पी.एल. परिवार से संम्बन्धित 18 से 59 वर्ष की आयु के मुख्य कमाने वाले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना मे मृत्यु हो जाती है तो ₹20,000 रुपये की राशि मदद के रुप मे ं मिलेगी, दिसम्बर, 2024 तक 428 परिवारों को वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है। ₹4.32 करोड़ के बजट प्रावधान के अंतर्गत ₹85.60 ला£़ की राशि दिसम्बर, 2024 तक व्यय की गई।
इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान निधि योजना हिमाचल प्रदेश मे ं महिलाओं की जनसंख्या लगभग 49 प्रतिशत है। राज्य का अधिकांश क्षेत्र दुर्गम है, जहाँ अन्य क्षेत्रों और राज्यों की तुलना मे ं जीवनयापन अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण है। राज्य की महिलाएँ घरेलू कार्यों से लेकर परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ करने तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ं। इस योजना का उद्देश्य राज्य के विकास और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में महिलाओं के योगदान को सम्मानित करना, साथ ही उनका आर्थिक सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना है। राज्य में महिलाओं को प्रति माह ₹1500 प्रदान करने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान निधि योजना 2024 शुरू की गई है। इस योजना के लिए ₹27.64 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। अब तक 30,929 महिलाओं को इसका लाभ मिल चुका है, जिसके तहत ₹20.99 करोड़ की धनराशि व्यय की जा चुकी है।
स्व-रोजगार योजनाएँ हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति विकास निगम, हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम और हिमाचल प्रदेश अल्पसंख्यक वित एवं विकास निगम अनेक स्वयं रोजगार योजनाएं चलाने हेतु राज्य सरकार से वित्तीय सहायता राशि प्राप्त कर रहे हैं।
इन निगमों द्वारा दिसम्बर, 2024 तक दिये गये ऋणों का विवरण सारणी 15.2 मे ं हैः


अनुसूचित जाति विकास योजना कुल राज्य विकास योजना आवंटन का 25.19 प्रतिशत अनुसूचित जाति विकास योजना के लिए व्यक्तिगत लाभार्थी कार्यक्रमो ं के अन्र्तगत विशेष कवरेज प्रदान करने और अनुसूचित जाति केंद्रित गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अलग रखा गया है। अनुसूचित जाति विकास कार्यक्रम का बजट विŸाीय वर्ष 2024-25 के लिए ₹2483.20 करोड़ है। इसके अलावा, विŸाीय वर्ष 2024-25 के लिए एस.सी. विकास कार्यक्रम को अतिरिक्त केंद्रीय विकास बजट के रूप मे ं ₹1345.40 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं इसमें से राज्य विकास बजट के अन्तर्गत ₹1422.47 करोड की अनुमानित राशि का व्यय वितीय वर्ष 2024-25 मे दिसम्बर, 2024 तक किया जा चुका है। इन व्यय का वर्ष वार ब्यौरा निम्नानुसार हैः

अनुसूचित जनजाति उप-योजना आर्थिक विकास के लिए एस.टी. उप-दृष्टिकोण योजना क्षेत्रवार आधारित है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) विकास योजना के तहत अनुसूचित जनजाति विकास कार्यक्रम के लिए ₹899.05 करोड़ आवंटित किया गया है। अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) विकास योजना के हिस्से के रूप में, राज्य में एस.टी. के कल्याण के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 में सितम्बर, 2024 तक ₹100.47 करोड़ व्यय किए गए हैं। चित्र 15.2 में वर्ष वार व्यय का विश्लेषण दर्शाया गया है।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग का कल्याण : 2024-25 के दौरान लागू की गई महत्वपूर्ण योजनाएँ इस प्रकार हैंः






राज्य में सभी विषयों में समान विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकार महिलाओं के कल्याण और सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देने के साथ कई उपायों को लागू कर रही है। ये कार्यक्रम पुरुषों और महिलाओं के बीच आय के अंतर को कम करने, घरेलू आय बढ़ाने और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने पर के ंद्रित हैं। सरकार ने स्वयं सहायता समूहों के एक विशाल नेटवर्क के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने और शादियो ं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए कदम उठाए हैं। उपरोक्त पहलो ं के अलावा, सरकार बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ, एकीकृत बाल संरक्षण सेवाएं, पूरक पोषण कार्यक्रम, पोषण अभियान, आंगनवाड़ी केंद्रों का निर्माण और नवीनीकरण, और तस्करी एवं वाणिज्यिक यौन शोषण के पीडि़तों के लिए उज्ज्वला जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं को भी लागू कर रही है।
वर्ष 2011 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के एक भाग के रूप में महिला एवं बाल विकास निदेशालय की स्थापना की गई थी।









निष्कर्ष: हिमाचल प्रदेश सरकार ने महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों , विकलांग व्यक्तियों और सामाजिक रूप से वंचित समुदायों (एससी, एसटी, ओबीसी) और उपेक्षित समूहों की सहायता करने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं। इन पहलो ं में बुजुर्गों , विधवाओं और विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, साथ ही कुष्ठ रोगियों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियो ं के लिए वित्तीय सहायता शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए वंचित समूहों के लिए ऋण और अनुदान जैसी स्व-रोजगार योजनाएं उपल्ब्ध की जाती हैं। राज्य शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण, पुनर्वास सेवाओं और मुख्य +रूप से कमाने वालो ं की मृत्यु उपरान्त उनके परिवारों के लिए सहायता पर भी ध्यान केंद्रित करता है। पर्याप्त बजट आवंटन के साथ, इन योजनाओं का लक्ष्य हिमाचल प्रदेश मे ं उपेक्षित लोगों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थितियों में सुधार करना है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने महिलाओं और बच्चों के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए विभिन्न पहल शुरू की हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य लैंगिक आधारित मजदुरी के अंतर को कम करना, घरेलू आय में सुधार करना और महिलाओं की तोल मोल की शक्ति को बढ़ाना है। इसके लिए प्रमुख योजनाओं में बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ, महिला तस्करी पीडि़तों के लिए उज्ज्वला और किशोर लड़कियों की सुरक्षा के लिए सक्षम गुडि़या बोर्ड शामिल हैं। मुख्यमंत्री सुख-आश्रय योजना अनाथ और निराश्रित महिलाओं और बच्चों की सहायता करती है, जबकि मिशन वात्सल्य योजना जरूरतमंद बच्चो ं की देखभाल करती है। इसके अतिरिक्त, वन-स्टॉप सेंटर, पोषण अभियान और विधवा पुनर्विवाह योजना जैसी पहल स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्तीय सहायता जैसे क्षेत्रों में आवश्यक सहायता प्रदान करती हैं। इन प्रयासों को कमजोर महिलाओं और बच्चों के लिए वित्तीय सहायता और पुनर्वास कार्यक्रमों द्वारा पूरक किया जाता है, जो सामाजिक समानता और सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हैं।

16.ग्रामीण विकास और पंचायती राज

ग्रामीण विकास विभाग सतत आर्थिक विकास, बेहतर आश्रय और स्वच्छता, बेहतर ग्रामीण बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में ग्रामीण समुदायों की जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करता है। विकास खंड, विभिन्न ग्रामीण विकास योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें लागू करने के लिए के ंद्रीय बिंदु हैं। यह परिवर्तन विभिन्न योजनाओं जैसे दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डी.ए.वाई -एन.आर.एल.एम.), दीनदयाल उपाध्याय-ग्रामीण कौशल योजना (डी.डी.यू.-जी.के.वाई.), वाटरशेड विकास कार्यक्रम (डब्ल्यू.डी.सी.) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-2.0, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एस.बी.एम.-जी.), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एम जी.एन.आर.ई.जी.ए.), प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), मुख्यमंत्री आवास योजना (एम.एम ए.वाई.) और मातृ-शक्ति बीमा योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लाया जाता है।
हिमाचल प्रदेश मुख्य रूप से ग्रामीण है, जहाँ लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जोकि पहाड़ी क्षेत्रों की एक सामान्य विशेषता है। ग्रामीण जनसंख्या का आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देने के रूप में पहचानते हुए, राज्य सरकार उनके कल्याण और विकास मे ं सक्रिय भागीदारी को प्राथमिकता दे रही है। यह अध्याय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने और ग्रामीण समुदायों के कल्याण के लिए विभिन्न कार्यक्रमो ं और नीतियों को उजागर करता है।
01 अप्रैल, 2013 से राज्य में स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एस.जी.एस.वाई.) को डी.ए.वाई.-एन.आर.एल.एम. द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। यह कार्यक्रम भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है, जिसका लक्ष्य कम आय वाले परिवारो ं को उत्पादक संबंधी स्वरोजगार और दीर्घकालिक निर्वाह के लिए कुशल मजदूरी नौकरियों के अवसर प्रदान करके गरीबी को कम करना है। एन.आर.एल.एम. को पूरे राज्य के 91 ब्लॉकों में लागू किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं
i) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य सभी गरीब परिवारो ं तक पहु ंचना है, उन्हें स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) से जोड़ना है, ताकि स्थायी आजीविका के अवसरों तक पहुँच बन सके और उन्हें तब तक पोषित करना है जब तक वे गरीबी से निकलकर एक अच्छा गुणवत्ता वाला जीवन व्यतीत करने लग जाऐ। यह कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित है, इसलिए एन.आर एल.एम. के तहत ग्रामीण गरीब परिवारों (एच.एच.) को उनकी महिला सदस्यों के माध्यम से कवर किया जाता है। इन महिलाओं को पहले स्वयं सहायता समूहों में और उसके बाद भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार उनकी सहायता करने के लिए गाँव@खण्ड@जिला संघों मे ं संगठित किया जाता है।
ii) हिमाचल प्रदेश में योजना के अंतर्गत राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में उन सभी ग्रामीण गरीब और गरीब से गरीब व्यक्ति को शामिल किया जाएगा, जिन्हें 2011 के गरीबो ं की सहभागिता पहचान (पी.आई.पी.) और सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत गणना (एस.ई.सी.सी.) डेटा का उपयोग करके चुना गया है। चयनित महिलाओं को एस.एच.जी. में बांटा गया है, और उनके फेडरेटेड इंस्टीट्यूशंस क® आवर्ती सुलभ ऋण के लिए बैंकों से जोड़ा गया है ैं। उपरोक्त समूहों के अलावा, एन.आर.एल.एम. एकल महिलाओं, युद्ध विधवाओं, विकलांगों और बुजुर्गों के कवरेज को जोड़ने की प्राथमिकता देता है जिनका कोई देखभाल करने वाले नहीं हैं।
दीनदयाल उपाध्यय ग्रामीण कौआल्य योजना, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही एक महत्वाकांक्षी योजना है। यह रोजगार परक कौआल्य परीक्षण कार्यक्रम है, जिसका मुख्य लक्ष्य 15-35 वर्’ा के ग्रामीण युवाओ ं को विभिन्न प्रचलित ट्रेड़स एवं जाॅब रोल्स के माध्यम से निःशुल्क परीक्षण प्रदान करवाना तथा उन्हें न्यूनतम मासिक मजदूरी से अधिक के सुनि”िचत रोजगार दिलाना है।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौआल्य योजना (डी.डी.यू.-जी.के.वाई.) के अन्तर्गत परीक्षण एंव उम्मीदवारों के अधिकारः
i) बहु प्रचलित ट्रेडस एवं जाॅब रोल्स, मे ं 3-12 महिनों तक निःशुल्क परीक्षण
ii) निःशुल्क परीक्षण, भोजन तथा आवासीय सुविधा।
iii) भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त परीक्षण केन्द्रों द्वारा प्ररीक्षण
iv) अंग्रेजी बोलने, संवाद कौआल्य तथा सूचना प्रौद्योगिकी में निःशुल्क 160 घंटों का परीक्षण|
v) प्रत्येक उम्मीदवार के लिए पढ़ाई हेतु कंप्यूटर, लैब्स तथा डिजीटल -टेबलेटस् की सुविधा।
vi) ऑन-द-जॉब परीक्षण के माध्यम से इंडस्ट्री का अनुभव।
vii) रोजगार प्राप्त करने के प”चात कार्यक्रम दि”ाा-निर्दे”िका के अनुसार 2-6 माह तक ₹1270 प्रतिमाह की मदद।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौआल्य योजना (डी.डी.यू.-जी.के.वाई.) के अन्तर्गत मुख्य उपलब्धियांः हिमाचल प्रदेश मे ं दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौआल्य योजना(डी.डी.यू.-जी.के.वाई.) की “ाुरूआत (सितम्बर, 2017) से लेकर 31 दिसम्बर, 2024 तक योजना के अन्तर्गत् कुल 19,442 लाभार्थियों को विभिन्न ट्रेडज व जाॅब रोल्स के माध्यम से प्र”िाक्षण हेतु चयनित किया जा चुका है, इनमें से 17,254 लाभार्थियो ं ने प्र”िाक्षण पूर्ण कर लिया है तथा 11,690 लाभार्थी युवाओ ं को विभिन्न कम्पनियों के माध्यम से रोजगार दिलाया जा चुका है। इन नियुक्त उम्मीदवारों में से 9,656 युवाओं को नौकरी मिल चुकी है। इस कार्यक्रम के तहत ₹130.70 लाख खर्च किए गए हैं।
राज्य मे ं बंजर भूमि, सूखा प्रवण एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों के विकास के उद्देश्य से केन्द्र एवं राज्य के बीच 90ः10 के वित्त पोषण स्वरूप पर जलसंभर विकास योजना संचालित की जा रही है। परियोजना को भारत सरकार द्वारा 2021-2026 की अवधि के लिए स्वीकृत किया गया था। मार्च, 2022 से धन प्राप्त हुआ, जिसके बाद राज्य के लिए प्रारम्भिक गतिविधियों का क्रियान्वयन शुरू हुआ।
वाटरशेड विकास परियोजनाओं के उद्देश्यः
i) एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन के माध्यम से वर्षा सिंचित@निम्नीकृत भूमि की उत्पादक क्षमता मे ं सुधार करना।
ii) आजीविका और वाटरशेड स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए समुदाय आधारित स्थानीय संस्थानों को मजबूत करना।
iii) क्रॉस लर्निंग और प्रोत्साहन तंत्र के माध्यम से वाटरशेड परियोजनाओं की दक्षता में सुधार करना।
सूक्ष्म-स्तर पर, डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई.-2.0 परियोजनाओं का दृष्टिकोण देश के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कृषि की आर्थिक विकास दर मे ं तेजी लाना है। वाटरशेड स्तर पर, विकास योजना किसानों के लिए उच्च आय प्राप्त करने की आवश्यकता, भूमिहीनों के लिए विस्तारित आजीविका विकल्पो ं, लाभों के वितरण मे ं समानता, सामुदायिक स्वामित्व और प्रबंधन, और पारिस्थितिक रूप से स्थायी कार्य योजना द्वारा निर्देशित होगी।
संस्था और क्षमता निर्माण ;आई.एण्ड.सी.बी.द्ध डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई. 2.0 परियोजना में लगे कनि’ठ अभियन्ताओं ें, कृषि विशेषज्ञो ं, तकनीकी सहायकों और जी.आर.एस., पी.आर.आई. और अन्य गैर-तकनीकी कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने और वाटरशेड और स्प्रिंगशेड विकास परियोजनाओं के निष्पादन मे ं भवि’य में उनकी क्षमता को मजबूत करने के उद्देश्य से विभाग द्वारा योजना के अन्तर्गत विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा चुके हैं। विभाग ने अब तक प्रशिक्षित 1,881 कर्मियों को प्र”िाक्षित करने के लिए कुल 63 प्रशिक्षण आयोजित किए। जिला विकास अधिकारियों, खंड विकास अधिकारियों, पंचायती राज संस्थाओ ं, स्वयं सहायता समूह के सदस्यो ं, कनिष्ठ अभियंताओं और कृषि विशेषज्ञों सहित विभिन्न हितधारकों के लिए “पारिस्थितिकी, पर्यावरण और सतत पारिस्थितिकी तंत्र” विषय पर क्षमता निर्माण किया गया।
प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एन.आर.एम.): 603 एन.आर.एम. कार्य पूरे हो चुके है, 320 कार्य प्रगति पर है।
हिमाचल प्रदेश में स्प्रिंगशेड प्रबंधन:
i) स्प्रिंगशेड प्रबंधन में झरनों का विश्लेषण, पुनर्भरण क्षेत्रों की पहचान एवं जल गुणवत्ता, वर्षा और झरने के निर्वहन की निगरानी करना शामिल है। इसका उद्देश्य झरनों को पुनर्जीवित करना और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता का समर्थन करते हुए पीने के पानी की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
ii) स्प्रिंगशेड प्रबंधन कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश के 23 परियोजना क्षेत्रों में संचालित है। 414 स्रोतों की पहचान की गई है, जिनका पुनर्निर्माण किया जाएगा और प्रत्येक स्रोत को जनसंख्या की निर्भरता के आधार पर घटते क्रम की श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.एस.के.वाई. 2.0 की वित्तीय उपलब्धि
i) वित्त वर्ष 2023-24 में, डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई. 2.0 के अंतर्गत ₹38.25 करोड़ प्राप्त हुए हैं। (केंद्रीय हिस्सा ₹34.42 करोड़ और राज्य हिस्सा ₹3.83 करोड़)।
ii) वित्त वर्ष 2024-25 में ₹23.71 करोड़ (के ंद्र व राज्य) प्राप्त हुए हैं।
iii) दिसंबर, 2024 तक वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान ₹8.68 करोड़ का व्यय किया जा चुका है।
प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (पी.एम.ए.वाई.-जी.) का लक्ष्य सभी बेघर और कच्चे आवास में रह रहे परिवारो ं को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के आवास प्रदान करना है। इकाई (आवास) लागत केंद्र और राज्य सरकार के बीच 90ः10 के अनुपात से विभाजित होती है।
i) राज्य ने 2023-24 में आपदा का सामना किया। 12,940 मकान स्वीकृत किए गए, जिनमे ं से 6,561 पूरे हो चुके हैं और 6,379 निर्माणाधीन हैं।
ii) 2018 में किए गए आवास+ सर्वे क्षण के आधार पर राज्य मे ं 69,187 घरों को मंजूरी दी गई
iii) वित्त वर्ष 2024-25 में, दिसंबर 2024 तक घरों के निर्माण के लिए ₹520.44 करोड़ का उपयोग किया जा चुका है।
दिसंबर 2024 तक 351 घरों को मंजूरी दी जा चुकी है और उनके निर्माण के लिए 2.09 करोड़ रुपये का उपयोग किया जा चुका है।
इस योजना में 10-75 वर्ष की आयु वर्ग के भीतर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली सभी महिलाओं को शामिल किया गया है। यह पॉलिसी परिवार के सदस्यों@बीमित महिलाओं को किसी भी प्रकार की दुर्घटना, सर्जिकल अॉपरेशन जैसे नसबंदी, बच्चे के जन्म@प्रसव के समय दुर्घटना, डूबने, बाढ़ में बहने, भूस्खलन, कीड़े के काटने के कारण होने वाली मृत्यु या विकलांगता के मामले मे ं राहत प्रदान करती है और यह योजना विवाहित महिलाओं को उनके पति की आकस्मिक मृत्यु की स्थिति मे ं भी लाभ देती है। मुआवजे का घटक वार विवरण निम्न प्रकार से हैः
i) मृत्यु के मामले में --₹2.00 लाख
ii)स्थायी पूर्ण विकलांगता--₹2.00 लाख
iii) एक अंग और एक आंख या दोनो ं आंखों और दोनो ं अंगों की विकलांगता होने पर--₹2.00 लाख
iv) एक अंग@एक आंख@एक कान की विकलांगता होने पर--₹1.00 लाख
v) पति की मृत्यु की स्थिति में--₹2.00 लाख
वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान इस योजना के अन्तर्गत ₹97.00 लाख की वित्तीय सहायता 49 परिवारो ं को दिसंबर, 2024 तक जारी कर दी गई हैं।
भारत सरकार ने स्वच्छ भारत स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)-ग्रामीण दिनांक 2 अक्तूबर, 2014 को दे”ा में लागू किया तथा हिमाचल प्रदेश को 28 अक्तूबर, 2016 कोे बाह्य “ाौच मुक्त राज्य घो’िात कर दिया गया। एस.बी.एम.-जी. के चरण-1 के दिशानिर्देश 31 मार्च, 2020 तक लागू थे और चरण-2 के दिशानिर्देश 01 अप्रैल, 2020 से लागू हो गए हैं। अब स्वच्छ भारत स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) -ग्रामीण के अन्तर्गत लिए जाने वाले कार्यो ं का विवरण निम्न प्रकार से हैः
i) नो वन लैफट बीहाइंड के अन्तर्गत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आई.एच.एच.एल.) व सामुदायिक स्वच्छता परिसर (सी.एस.सी.)
i) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (गैर-बायो-डिग्रेडेबल और बायो-डिग्रेडेबल)
ii) तरल अपशिष्ट प्रबंधन (ग्रे-पानी और काला पानी)।
iii) गोबर्धन परियोजनाएं।
iv) सूचना शिक्षा और संचार (आई.ई.सी.)@क्षमता निर्माण
वर्ष 2024-25 के दौरान भौतिक उपलब्धियां :
i) 17,630 गांवों के लक्ष्य के मुकाबले 16,067 गांवों को ओ.डी.एफ. प्लस घोषित किया गया है, जिनमें से 1,857 गांव आकांक्षी, 717 गांव उभरते और 13,493 गांव ओ.डी.एफ. प्लस मॉडल श्रेणी में हैं।
i) 4,104 व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया है
ii) 1,153 (बैकलॉग सहित) सामुदायिक स्वच्छता परिसरों का निर्माण किया गया है
iii) 14,751 गांवों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के अंतर्गत कवर किया गया है
iv) 15,777 गांवों को तरल अपशिष्ट प्रबंधन के अंतर्गत कवर किया गया है
v) 36 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किए गए हैं
महात्मा गांधी नरेगा का उद्देश्य देश भर के ग्रामीण परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान किया जाता है, जिसमं े वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए स्वेच्छा से आगे आते हैं। महात्मा गांधी नरेगा अनुसूचित जातियो ं, अनुसूचित जन-जातियों, महिला मुख्या वाले परिवारों और अन्य उपेक्षित समूहों सहित ग्रामीण क्षेत्रों के सबसे कमजोर वर्गों तक पहु ंचकर गरीबों के आजीविका संसाधन आधार को मजबूत करने के महत्व को पहचानता है।
यह योजना पंचायत राज संस्थाओं को मजबूत करके समुदाय और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना को प्रोत्साहित करती है। महात्मा गांधी नरेगा योजना और क्रियान्वयन के लिए नीचे से ऊपर की ओर दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जिससे स्थानीय समुदायों को अपने विकास की जिम्मेदारी लेने का अधिकार मिलता है। वित्त वर्ष 2024-25 (1 जनवरी, 2025 तक) के दौरान की गई प्रगति का ब्यौरा निम्न प्रकार से हैः
राज्य में 12 जिला परिषदें, 81 पंचायत समितियां और 3,615 ग्राम पंचायतें हैं। राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद 243-जी के प्रावधानों के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने और सत्ता का विकेंद्रीकरण करने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने, उन्हें स्थानीय स्वशासन के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने और ग्राम पंचायतो ं को अधिक आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहले ही कई कदम उठाए हैं और निर्णय लिए हैं।
i) 15वे ं वित्त आयोग का कार्यान्वयन 2020-21 में शुरू हुआ। इस आयोग के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए राज्य के लिए ₹352.00 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है, जिसमें से ₹229.19 करोड़ भारत सरकार द्वारा जारी किए गए हैं और पंचायती राज संस्थाओं को वितरित किए गए हैं।
ii) वर्ष 2024-25 के दौरान, राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी. ) द्वारा जिला परिषद ग्राम पंचायत संवर्ग के अंतर्गत विभिन्न श्रेणियों के श्रमिकों के वेतन@ मजदूरी@मानदेय और प्रदर्शन संबंधी प्रोत्साहन के तीन स्तरों के निर्वाचित प्रतिनिधियो ं को शामिल करने के लिए ₹448.08 करोड़ का अनुदान उपलब्ध कराया गया है।
iii) ग्राम पंचायत घरों के निर्माण के लिए नया अनुमान और डिजाइन तैयार किया गया है, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ग्राम पंचायत घरों के निर्माण@ उन्नयन@मुरम्मत के लिए ₹39.32 करोड़ जारी किए जा रहे हैं। इसमें से 115 नवगठित ग्राम पंचायतो ं के निर्माण के लिए ₹13.49 करोड़, जबकि 166 पुराने ग्राम पंचायत घरों के निर्माण@उन्नयन@मुरम्मत के लिए ₹25.83 करोड़ और जिला परिषद भवनों के निर्माण के लिए ₹2.72 करोड़, जबकि पंचायत समिति कार्यालय भवन के उन्नयन@मुरम्मत के लिए ₹1.06 करोड़ जारी किए गए हैं।
iv) इस राज्य के लिए वित्त वर्ष 2024-25 के लिए केंद्र प्रायोजित योजना राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (आर.जी.एस.ए.) के अन्तर्गत ₹100.42 करोड़ की सहायता राशि मंजूर की गई है, जिसमें से ₹30.23 करोड़ भारत सरकार द्वारा 90ः10 के अनुपात में जारी किए गए हैं। निम्नलिखित लक्ष्य हासिल किए गए हैंः
1. आर.जी.एस.ए. योजना के तहत 1,05,000 प्रतिभागियों को क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।
2. प्रथम चरण में 1,130 ग्राम पंचायतों मे ं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं स्थापित करने के लिए धनराशि जारी की गई है।
3. हरेटा (हमीरपुर), कम्याणा (शिमला) और अंदरोली (ऊना) की ग्राम पंचायतों मे ं आर्थिक संवर्द्धन और आजीविका सृजन इकोटूरिज्म परियोजनाएं स्थापित की जा रही हैं। इन परियोजनाओं के लिए, वित्त वर्ष 2024-25 में ₹5.00 करोड़ जारी किए गए हैं, हरेटा परियोजना के लिए ₹2.00 करोड़, कम्याणा परियोजना के लिए ₹2.00 करोड़ और अंदरोली परियोजना के लिए ₹1.00 करोड़।
4. वित्त वर्ष 2024-25 में, नव निर्मित ग्राम पंचायतों के 26 ग्राम पंचायत भवनों के निर्माण के लिए ₹5.20 करोड़ जिसके अन्तर्गत प्रति ग्राम पंचायत ₹20.00 लाख स्वीकृत किए गए हैं।
5. ग्राम पंचायत भवन के साथ 52 ग्राम पंचायत कॉमन सर्विस से ंटर (सी.एस.सी.) के निर्माण के लिए ₹2.60 करोड़ यानी प्रति ग्राम पंचायत ₹5.00 लाख मंजूर किए गए हैं।
6. 1,160 सी.एस.सी. में को-लोकेशन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और उसके बाद 761 ग्राम पंचायतों में ग्राम स्तरीय उद्यमी (वी.एल.ई.) नियुक्त किए गए हैं।
7. प्रशिक्षण उद्देश्यो ं के लिए मंडी और बिलासपुर मे ं स्थित दो जिला पंचायत संसाधन केंद्रों को क्रियाशील बनाया गया है। कांगड़ा, शिमला और सिरमौर जिलों में निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। प्रशिक्षण और अन्य अनुकरणीय गतिविधियों के लिए 8 पंचायत लर्निंग सेंटर चालू किए गए हैं।
8. पंचायतो ं के अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार (पेसा) अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने और निगरानी करने के लिए सचिव पंचायती राज की अध्यक्षता में राज्य स्तर पर समन्वय समिति का गठन किया गया है।
9. दो ग्राम पंचायतों को राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ग्राम पंचायत थानाधार, विकास खंड नारकंडा, जिला शिमला को थीम 7ः सामाजिक रूप से सुरक्षित ग्राम पंचायत मे ं सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए ₹75 लाख और समग्र सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए नानाजी देशमुख सर्वोत्तम पंचायत सशक्त विकास पुरस्कार के लिए ₹1.00 करोड़ से सम्मानित किया गया है। ग्राम पंचायत सिकंदर, विकास खंड बमसण, हमीरपुर को थीम 4ः जल पर्याप्त ग्राम पंचायत में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए ₹75 लाख से सम्मानित किया गया है।
10. वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पंचायती राज संस्थाओं के 100 प्रतिशत अॉनलाइन ऑडिट का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 31 दिसंबर, 2024 तक इस लक्ष्य का 54 प्रतिशत हासिल किया जा चुका है।
11. वर्तमान वर्ष के दौरान ₹13.75 करोड़ की उगाही@सुलह विशेष अभियान के अन्तर्गत जिला और ब्लॉक स्तर पर ऑडिट उगाही के रूप मे ं की गई और 8,278 ऑडिट पैरा को सुलझाए गए।
राज्य सरकार ने आर्थिक विकास, सामाजिक सशक्तिकरण और ग्रामीण उत्थान के लिए पहल करते हुए नागरिकों के जीवन को सुधारने की प्रतिबद्धता दिखाई है। डी.ए.वाई -एन.आर.एल.एम., डी.डी.यू.-जी.के.वाई. और डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई.-2.0 परियोजना जैसी योजनाओं का कार्यान्वयन विशेष रूप से पिछड़ े क्षेत्रों में ग्रामीण आजीविका को बढ़ाने, युवाओं को प्रशिक्षण व संसाधन प्रदान करने और कृषि विकास को बढ़ावा देने पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित करता है। मुख्यमन्त्री आवास योजना और मातृ शक्ति बीमा योजना राज्य की उन कमजोर वर्गों जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं और जरूरतमंद परिवारो ं के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
पंचायती राज संस्थाओं का सशक्तिकरण और राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान का पुर्नगठन जमीनी स्तर पर “ाासन को बल प्रदान करने की दि”ाा मे ं एक महत्वपूर्ण कदम है। ये सामूहिक प्रयास सतत विकास को बढ़ावा देने, सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने और समाज के सभी वर्गों में समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य के रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

17.आवास और शहरी विकास

शहरीकरण, ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में आबादी का स्थानांतरण, एक वैश्विक घटना है जो आर्थिक अवसरों, बेहतर बुनियादी ढांचे और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहु ंच जैसे कारकों से प्रेरित है। लोगों के इस आगमन से शहर का तेजी से विकास होता है, जिसके साथ अक्सर रोजगार सृजन, आर्थिक विस्तार और प्रौद्योगिकी और संस्कृति में उन्नति जैसे सकारात्मक विकास होते हैं।
हालांकि, अनियंत्रित शहरीकरण भी महत्वपूर्ण चुनौतियां ला सकता है। तेजी से बढ़ती आबादी मौजूदा बुनियादी ढांचे पर दबाव डाल सकती है, जिससे भीड़भाड़, यातायात जाम और अपर्याप्त आवास की स्थिति पैदा हो सकती है। लोगों के आगमन से संसाधनो ं पर भी दबाव पड़ सकता है, जिससे पानी, बिजली और अन्य आवश्यक सेवाओं की कमी हो सकती है। इसके अलावा, विकास की तेज गति से पर्यावरण को नुकसान@क्षति पहु ंच सकती है, जिसमें वायु और जल प्रदूषण भी शामिल है।
हिमाचल प्रदेश आवास बोर्ड की स्थापना 1972 में हिमाचल प्रदेश आवास बोर्ड अधिनियम 1972 के अन्तर्गत की गई थी, जिसका उद्देश्य प्रदेश के जरूरतमंद लोगों को किफायती दरों पर मकान उपलब्ध कराना था। 01 जुलाई, 2004 से इसका नाम बदलकर हिमाचल प्रदेश आवास एवं शहरी विकास प्राधिकरण (हिमुडा) कर दिया गया है। अब तक जिला शिमला (शिमला, शोघी, रामपुर और रोहड़ू), जिला सोलन (सोलन, परवाणू, बद्दी, मंधाला, अटल नगर और नालागढ़), जिला ऊना (ऊना और बंगाणा), जिला हमीरपुर (हमीरपुर), जिला कांगड़ा (कांगड़ा, धर्मशाला, पालमपुर, देहरा, नूरपुर, इंदौरा और कंदरोड़ी), जिला सिरमौर (नाहन, पांवटा साहिब) और जिला मंडी (मंडी और सुंदरनगर) में विभिन्न आवासीय कॉलोनियों मे ं 13,289 मकान@फ्लैट निर्मित किए गए हैं और 5,621 प्लॉट विकसित किए गए हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए आवास कार्यक्रम का बजट ₹112.09 करोड़ रखा गया है। इसके अन्तर्गत 152 फ्लैट और 183 प्लॉट विकसित करने का प्रस्ताव है। यह अध्याय शहरी विकास को बढ़ावा देने और हिमाचल प्रदेश में जनता की आवास आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से विभिन्न पहल और योजनाओं का अवलोकन प्रदान करता है। जैसे-जैसे राज्य का विकास और शहरीकरण बढ़ रहा है, स्थिर और समावेशी शहरी विकास सुनिश्चित करना एक प्रमुख प्राथमिकता बन गई है। अध्याय मे ं बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, सार्वजनिक सेवाओं में सुधार करने और शहरी क्षेत्रों में रहने योग्य स्थान विकसित करने के लिए सरकारी कार्यक्रमों की रूपरेखा पर चर्चा की गई है।
राज्य का शहरी विकास विभाग, नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायतें (यू एल.बी.) के साथ घनिष्ठ साझेदारी के साथ राज्य की शहरी समस्याओं जैसे एकीकृत शहरी परिवहन, स्वच्छता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, शहरी बुनियादी ढांचे, शहरी गरीबी, शहरी आवास, शहरी नियोजन, यू.एल.बी. की वित्तीय स्थिरता और सामान्य शहरी शासन के लिए नवीन और उन्नत तकनीकी समाधान खोजने का प्रयास कर रहा है।
हिमाचल प्रदेश में 74 यू.एल.बी. हैं, जिनमें 08 नगर निगम यानी शिमला, धर्मशाला, सोलन, मंडी, पालमपुर, ऊना हमीरपुर और बद्दी, 29 नगर परिषद और 37 नगर पंचायतें शामिल हैं। सरकार इन स्थानीय निकायों को आम जनता को नागरिक सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिए हर साल अनुदान सहायता प्रदान कर रही है। राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹202.25 करोड़ (80 प्रतिशत बेसिक और 20 प्रतिशत प्रदर्शन आधारित) स्वीकृत किए गए हैं, वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान 31 दिसंबर, 2024 तक यू.एल.बी. को ₹80.90 करोड़ (बेसिक अनुदान) और ₹10.69 करोड़ (प्रदर्शन आधारित अनुदान) की राशि जारी की गई है और शेष राशि कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद यू.एल.बी. को जारी की जाएगी। इसमे ं विकास अनुदान और आय एवं व्यय के बीच की अंतरपूर्ति अनुदान शामिल है।
चित्र 17.1 राज्य भर में यू.एल.बी. की संख्या में वृद्धि को दर्शाता है, जो वित्त वर्ष 2001-02 की तुलना में वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान बढ़कर 74 यू.एल.बी.तक पहु ंच गया है।


शहरी क्षेत्रों में सड़कों का रख-रखाव : 74 शहरी स्थानीय निकायों द्वारा लगभग 5,000 किलोमीटर सड़कें, रास्ते, गलियो ं तथा नालियों का रख-रखाव किया जा रहा है। इस वित्तीय वर्’ा 2024-25 में इन सड़कों के लिए सरकार द्वारा ₹6.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
योजना का प्राथमिक उद्दे”य शहरी क्षेत्रों मे ं रह रहे गरीब परिवारों का सामाजिक आर्थिक एवं संस्थागत क्षमता को विकास करना तथा परीक्षण व वित्तीय सहायता के माध्यम से रोजगार एवं स्वरोजगार अवसर प्रदान करते हुए सतत् तौर पर आजीविका साधनों को सुदृढ़ करना है, जिससे वे सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सके ं।
वर्ष 2024-25 की उपलब्धियां निम्नलिखित है ंः
i) 233 स्वयं सहायता समूह बनाए गए है।
ii) 30 क्षेत्रिय स्तर के संगठन (ए.एल.एफ.) और 13 शहरी स्तर के संगठनों का गठन किया गया है। 27 ए.एल.एफ. को रिवाल्विंग फंड (आर.एफ.) प्रदान किया गया है। 227 आवेदकों को ₹3.11 करोड़ और 367 स्वयं सहायता समूहों को ₹7 96 करोड बैंको ं के माध्यम से स्वीकृत किये जा चुके हैं। 4,973 स्ट्रीट वेंडरों की पहचान कर वेडिंग प्रमाणपत्र प्रदान किए गये हैं। इसके साथ 46 स्थायी शहरी वेडिंग कमेटियो ं का गठन किया गया है।
iii) नगर निगम सोलन में वे ंडर मार्किट का ₹80 लाख से निर्माण कराया गया है। इसके अलावा नगर परि’ाद ऊना में ₹1.03 करोड की लागत से वेंडर मार्किट का निर्माण किया जा रहा है।
iv) प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के अन्तर्गत आवेदकों को विभिन्न चरणों में ऋण उपल्ब्ध करवाए गए जिसमें प्रथम चरण में 5,440 आवेदकों को ₹10 हजार, दूसरे चरण में 3,084 आवेदकों को ₹20 हजार तथा तीसरे चरण में 1,449 आवेदको ं को ₹50 हजार शमिल हैैं।
15वे ं वित्तायोग ने शहरी स्थानीय निकायों एवं छावनी परि’ादों ् के लिए दो प्रकार की अनुदान राशि वितरण करने का प्रस्ताव किया है। पहली अनुदान राशि ;40 प्रति”ातद्ध जोकि बिना “ार्त के प्रदान की जाती है और दूसरी अनुदान राशि ;60 प्रति”ातद्ध वह है जोकि 15वे ं वित्तायोग द्वारा सुझाई गई कुछ “ार्तों को पूरा करने के उपरान्त जारी की जाती है। इस वित्तीय वर्’ा 2024-25 के लिए ₹181.00 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है। इसके अतिरिक्त 15वें वित्तायोग के अन्तर्गत् ₹6.23 करोड़ की स्वास्थ्य अनुदान राशि शहरी स्थानीय निकायों को इस वित्तीय वर्’ा मे ं जारी की गई। वित्तीय वर्’ा 2023-24 की स”ार्त अनुदान और बिना “ार्त के अनुदान की दूसरी कि”त ₹81.00 करोड़ शहरी स्थानीय निकायों एवं छावनी परि’ादो ं को वित्तीय वर्’ा 2024-25 में जारी की जा चुकी है।
अमरूत-2.0 अमरूतः इस योजना का मुख्य उद्दे”य शहर के उन क्षेत्र्रों में बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना है जहां यह सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। इस के अन्तर्गत शिमला और कुल्लू शहरों का चयन किया गया है। इस योजना का कुल आकार ₹304.52 करोड़ निर्धारित है, जिसमें 75 योजनाएं “ाामिल हैं। कुल 75 परियोजनाओं मे ं से ₹283.66 करोड़ की 71 परियोजनाएं पूरी हो चुकी है और “ो’ा ₹20.85 करोड़ की 4 परियोजनाएं मार्च 2025 तक पूरी कर ली जाएंगी।
अमरूत-2.0 : इस मि”ान का “ाुभारंभ प्रधानमंत्री द्वारा शहरों को पानी की सर्कुलर व्यवस्था के माध्यम से ‘जल उपलब्धता’ और ‘स्वयं सक्षम‘ बनाने के उद्दे”य से 01 अक्तुबर, 2021 को किया गया। इस योजना का मुख्य उद्दे”य पेयजल आपूर्ति को सदृढ़ करना, सीवरेज और सैपटेज प्रबन्धन, उपचारित अप”िा’ट जल का पुनर्चक्रण@पुनः उपयोग, जल निकायों के कायाकल्प और हरित स्थानों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना है।
इस योजना की अवधि वित्त वर्’ा 2021-22 से वित्त वर्’ा 2025-26 तक है। सभी वैधानिक कस्वो ं (61 “ाहरी स्थानीय निकायों $ 7 छावनी परि’ादो ं) को कवर करने के प्रस्ताव के साथ फंडिग पैटर्न 90ः10 अनुपात (केन्द्र और राज्य) है। इस योजना का कुल परिव्यय ₹284.44 करोड का है (₹256.00 करोड केन्द्र भाग एवं 28.44 करोड राज्य भाग)। राज्य जल कार्य योजना तीन चरण मे ं प्रस्तुत की गई। राज्य स्तरीय तकनीकी समिति और राज्य उच्चाधिकार प्राप्त संचालन समिति की मंजूरी के बाद पहले, दूसरे एवं तीसरे चरण (संचालन और रख-रखाव सहित) क्रम”ाः ₹170.57 करोड,+ ₹39.01 करोड,+ ₹112.08 करोड़ की परियोजनाएं आवास एवं “ाहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार को प्रस्तुत की गई और सभी तीनों कि”तों को मंजूरी दे दी गई है।
वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान सरकार द्वारा ₹56.79 करोड़ (के ंद्र से ₹51.11 करोड़ और राज्य से ₹5.68 करोड़) जारी किए गए हैं और परियोजना कार्यान्वयन के लिए शहरी स्थानीय निकायों को वितरित किए गए हैं। ₹119.62 करोड़ की 23 परियोजनाओं के लिए अनुबंध दिए गए हैं। ₹45.39 करोड़ की लागत वाली 07 परियोजनाओं के लिए निविदा आमंत्रण सूचना (एन.आई.टी.) जारी की गई है और ₹1.34 करोड़ की लागत वाली 05 परियोजनाएं सफलतापूर्वक पूरी की गई हैं।
एस.सी.एम. का उद्देश्य ऐसे शहरों को बढ़ावा देना है जो ‘स्मार्ट‘ समाधानों के अनुप्रयोग के माध्यम से मूलभूत बुनियादी ढांचा प्रदान करते हैं और अपने नागरिकों को अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन प्रदान करते हैं।
भारत सरकार द्वारा 28 जून, 2017 को एस.सी.एम. के तीसरे दौर में शिमला का चयन किया गया था। हालाँकि, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए, इस मिशन के तहत कोई आवंटित बजट प्रावधान नहीं है। इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने शहर के विकास के लिए पहले ही ₹465 करोड़ जारी कर दिए हैं। शिमला स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने कुल 53 प्रस्तावित पहलों में से 28 उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाओं की पहचान की है। इन परियोजनाओं को आगे 204 घटकों में विभाजित किया गया है, जिनमें से 182 पूरी हो चुकी हैं, जबकि 22 अभी भी प्रगति पर हैं। धर्मशाला स्मार्ट सिटी की कुल 80 परियोजनाओं में से 56 परियोजनाएं पूरी कर ली गई हैं तथा 24 परियोजाओं का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है।
स्वच्छ भारत मि”ान 2.0 (शहरी) स्वच्छ भारत अभियान 2.0(शहरी) भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है और राज्य शहरी विकास विभाग द्वारा सभी शहरी नगर निकायों मे ं कार्यान्वित है। इस अभियान का मुख्य उद्दे”य शहरांे@कस्बों को खुले मे ं शौच मुक्त व नागरिकों को स्वस्थ और रहने योग्य वातावरण प्रदान करना है। इस योजना के अन्तर्गत, वित्त वर्ष 2024-25 में राज्य सरकार का बजट प्रावधान ₹6.60 करोड़ है।
स्वच्छ भारत अभियान के विभिन्न घटकों के लिए वित्त वर्ष 2024-25 में जारी केंद्रीय सहायता सारणी 17.1 में दी गई हैः
जून, 2015 में “सभी के लिए आवास” (शहरी) की शुरुआत की गई थी। इस योजना का उद्देश्य झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास घटक के तहत झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के लिए घर उपलब्ध कराना है, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ई.डब्ल्यू.एस.), निम्न-आय समूहों (एल.आई.जी.) और मध्यम-आय समूहों (एम.आई.जी.) के लिए क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी के माध्यम से किफायती घर और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से आवास उपलब्ध कराना शामिल है। आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय पी.एम.ए.वाई.-एच.एफ.ए. के कार्यान्वयन के लिए विभिन्न गतिविधियों को चलाने के लिए राज्य को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। अनुदान स्वरुप अनुपात 90ः10 (केंद्र और राज्य) का है। इस योजना के अंतर्गत, ₹9.64 करोड़ की वित्तीय सहायता से 479 मकान पूरे हो चुके हैं।
शहरी स्थानीय निकायों में पार्किग की समस्या के समाधान हेतु इस वित्तीय वर्’ा 2024-25 में ₹5.00 करोड़ का बजट प्रावधान है। इस योजना के अन्तर्गत, विŸाीय सहायता 75ः25 के आधार पर उपलब्ध करवाई जाती है (75 प्रति”ात सरकार द्वारा और 25 प्रति”ात सम्बन्धित नगरीय निकाय द्वारा वहन की जाती है)
हिमाचल प्रदेश सरकार ने महामारी के दौरान पात्र परिवारों को 120 दिनों की गारंटी-कृत मजदूरी रोजगार प्रदान करके शहरी क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिए एम.एम.एस.ए.जी.वाई. को अधिसूचित किया है। इस योजना के अन्तर्गत, पंजीकृत होने वाले परिवारो ं के वयस्क सदस्य काम करने के पात्र होंगे। यू.एल.बी. के अधिकार क्षेत्र मे ं रहने वाले यू.एल.बी. के निवासी पात्र हैं। शहरी विकास विभाग ने एम.एम.एस.ए.जी.वाई. के लिए अॉनलाइन पोर्टल विकसित किया है। लाभार्थी नगर पालिका कार्यालय में जाए बिना खुद को पंजीकृत कर सकता है। इस योजना के अन्तर्गत, दिसंबर, 2024 तक 18,012 लाभार्थियो ं को कुल 6,76,846 मानव दिवसों का लाभ मिला है और ₹19.20 करोड़ का वितरण किया गया है।
हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम, 1977 को 60 योजना क्षेत्रों और 36 विशेष क्षेत्रों में कार्यात्मक, आर्थिक, पर्यावरणीय सतत् और सौन्दर्यात्मक जीवन, न्यायसंगत और विनियमित विकास सुनिश्चित करने हेतू लागू किया गया है।
पहले
i) राज्य सरकार ने तेजी से शहरीकरण हो रहे कस्बों@विकास केंद्रो में जैसे कि रोहड़ू, बंजार, कुफरी, ऊना, हाटकोटी, धौलाकुआं-माजरा, पालमपुर, धर्मशाला, चंबा, अंब-गगरेट, बरोट, बीर-बिलिंग, “ााहपुर, नेरवा, चिरगांव और बैजनाथ-पपरोला मे ं एच.पी.टी.सी.पी. अधिनियम, 1977 के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया गया है।
ii)2023 के मानसून ऋतु के दौरान, राज्य में अभूतपूर्व वर्षा हुई, जिसके परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति को काफी नुकसान हुआ। भविष्य में ऐसी स्थितियों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए राज्य सरकार ने उच्च जोखिम वाले इमारतों में संरचनात्मक डिजाइन रिपोर्ट और भूवैज्ञानिक जांच रिपोर्ट अनिवार्य कर दी गई है। अब नाले के 5.0 मीटर और खड्ड के 7.0 मीटर के भीतर निर्माण प्रतिबंधित है। इसके अलावा हरित आवरण की रक्षा के लिए, राज्य सरकार ने ”िामला योजना क्षेत्र के हरित क्षेत्र को मौजूदा, 17 पॉकेट से बढ़ाकर 25 पाॅकेट कर दिया है।
iii) राज्य सरकार ने योजना@विशेष क्षेत्रों और प्रदे”ा के सभी यू.एल.बी. के लिए ई-डी.सी.आर. क्षमता वाला वेब पोर्टल विकसित किया है। इससे योजना से अनुमति के लिए प्रस्तुत नक्शों की कम्प्यूटरीकृत स्कैनिंग संभव होती है। ई-डी सी.आर. आधारित अॉनलाइन बिल्डिंग परमिशन सिस्टम वेब-पोर्टल मुख्यमंत्री द्वारा मार्च, 2024 को लॉन्च किया गया है। अब इस नए वेब-पोर्टल मे ं पंजीकृत निजी पेशेवरों द्वारा 500 वर्गमीटर क्षेत्र तक के आवासीय उपयोग की योजना की अनुमति दी जाती है। अब तक, ई-डी.सी.आर. वेबपोर्टल द्वारा कुल 856 मामलों में स्वीकृती दी है।
iv) क्षितिज वर्ष-2041 के लिए शिमला योजना क्षेत्र के लिए जी.आई.एस. आधारित विकास योजना दिनांक 20.06.2023 की अधिसूचना के माध्यम से अधिसूचित की गई है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 11.01.2024 के अपने निर्णय द्वारा राज्य सरकार को विकास योजना के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने की अनुमति दी।
शिमला योजना क्षेत्र की जनसंख्या 2011 में 3,11,429 से बढ़कर 2041 में 6,25,127 हो जाने की संभावना है। विकास योजना 2041 की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है।
रियल इस्टेट विनियामक प्राधिकरण हिमाचल प्रदेश ने 1 जनवरी, 2020 से अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इस प्राधिकरण का मुख्य उद्दे”य रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित और बढ़ावा देने के साथ-2 हिमाचल प्रदेश मे ं भूखण्डो ं, अपार्टमैंटस या भवनो ं की बिक्री एक कु”ाल तरीके से हो और उपभोक्ता@घर खरीदारों के हितो ं की रक्षा सुनिश्चित करना है।
हि.प्र.रेरा की पहल :
i) प्राधिकरण मे ं 214 रियल एस्टेट परियोजनाएं पंजीकृत हैं। प्राधिकरण ने 131 रियल एस्टेट एजेंटों को भी पंजीकृत किया है।
ii) यह प्राधिकरण आवंटियों@घर खरीदारों को उनकी शिकायतों के निवारण की सुविधा प्रदान कर रहा है। अप्रैल से दिसंबर, 2024 तक प्राधिकरण के पास 19 शिकायतें दर्ज की गई। अप्रैल, 2024 तक, प्राधिकरण के पास 42 शिकायतें लंबित थीं। वेब-एक्स सुनवाई के माध्यम से 19 शिकायतों का निपटारा किया गया है और शेष 42 शिकायतें प्रक्रियाधीन हैं।
iii) एच.पी.आर.ई.आर.ए. संबंधित विभागों के समन्वय के साथ रियल एस्टेट परियोजनाओं के लंबित अनुमोदनो ं की अॉनलाइन निगरानी कर रहा है ताकि प्रमोटरों को समय पर वैधानिक अनुमोदन@मंजूरी मिल सके।
रा’ट्रीय भवन संगठन ने आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग हिमाचल प्रदे”ा को राज्य में भवन सामग्री के भाव एकत्र करने व भवन लागत सूचकांक को संकलित करने का काम सौंपा है। विभाग आधार वर्र्’ा 2011-12 पर राज्य स्तरीय भवन निर्माण लागत सूचकांक ;ठब्ब्प्द्ध तैयार करके जारी कर रहा है। तिमाही सूचकांकों के आधार पर, वार्’िाक सूचकांकों को तैयार किया गया है और इन्हें सारणी 17.2 मे ं दर्”ााया गया हैः
उपरोक्त सारणी के अनुसार, सामग्री लागत सूचकांक 146.53 से बढ़कर वर्’ा 2023-24 में 148.15 हो गया है, जो वर्’ा 2024-25 में और बढ़कर 147.97 हो गया है। श्रम लागत सूचकांक भी 145.99 से बढ़कर वर्’ा 2023-24 में 148.29 और वर्’ा 2024-25 मंे बढ़कर 149.58 हो गया है, इस सूचकांक के मजदूरी घटक में वृद्धि के कारण श्रम लागत सूचकांकों मे ं वृद्धि दर्ज हुई। इसी प्रकार घटक अन्य व्यय, जिसमें कान्ट्रेकटर और पर्यवेक्षी “ाुल्क आदि “ाामिल है, जो अन्य व्यय सूचकंाक के अन्तर्गत आता है, यह भी 2023-24 में 148.92 से बढ़कर 150.92 हो गया है और वर्’ा 2024-25 में बढ़कर 151.60 हो गया है। इन सभी सूचकांकों मे ं वृद्धि के परिणामस्वरुप समग्र भवन निर्माण लागत सूचकांक वर्’ा 2023-24 के 148.67 से बढ़कर वर्’ा 2024-25 में 148.90 हो गया है।
हिमाचल प्रदेश विभिन्न आवास और शहरी विकास पहलों के माध्यम से शहरीकरण से उत्पन्न चुनौतियो ं का समाधान करने पर केंद्रित है। हिमाचल प्रदेश आवास और शहरी विकास प्राधिकरण (हिमुडा) का लक्ष्य सस्ती दर पर आवास उपलब्ध कराना है, जिसके अन्तर्गत 13,000 से अधिक घर और 5,600 प्लॉट विकसित किए गए हैं। शहरी विकास के लिए स्थानीय निकायों को अनुदान के माध्यम से समर्थन दिया जाता है, जिसके लिए वित्त वर्ष 2024-25 में ₹202.25 करोड़ उपल्ब्ध करवाए गए है। इसके अन्तर्गत प्रमुख कार्यक्रमों में गरीबी उन्मूलन के लिए दीनदयाल अंत्योदय योजना, शहरी बुनियादी ढांचे के लिए अमृत और शिमला और धर्मशाला में परियोजनाओं के साथ स्मार्ट सिटी मिशन शामिल हैं। राज्य टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट, रियल एस्टेट विनियमन और निर्माण लागत निगरानी के माध्यम से सतत विकास पर काम कर रहा है। शहरी आधारभूत ढ़ांचा स्वच्छता, आवास और शहरी गरीबो ं की आजीविका को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

18. डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन

डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग की स्थापना (पूर्व में जिसका नाम सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग था) 2004 में की गई थी, जिसका प्रमुख उद्देश्य राज्य में डिजिटल प्रौद्योगिकियों और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के विकास के लिए एक मजबूत और प्रभावी आधार स्थापित करना है। विभाग आईटी और आईटी-आधारित सेवाओं में निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है, आईटी संस्थानों की स्थापना हेतु आवश्यक सुविधाएं प्रदान करता है, राज्य में आईटी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए लगातार काम करता आ रहा है, और एक स्मार्ट (सरल, नैतिक, जवाबदेह, उत्तरदायी और पारदर्शी) सरकार सुनिश्चित करने के लिए आईटी उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाता है।
इसका लक्ष्य हिमाचल प्रदेश को डिजिटल बनाने की दि”ाा में आगे बढ़ाना है। जिसमें उन्नत डिजिटल प्रौद्योगिकियों, विश्वसनीय डेटा और प्रभावी प्रशासन और समावेशी विकास के लिए कनेक्टिविटी शामिल है, जिसका लक्ष्य हिमाचल प्रदेश को डिजिटल करना है।
हिमाचल प्रदेश ने डिजिटल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, राज्य ने ब्रॉडबैंड अवसंरचना में महत्वपूर्ण निवेश किया है, जिससे अॉनलाइन सेवाओं, ई-गवर्नें स और शिक्षा तक सुगम और व्यापक पहु ंच सुनिश्चित हुई है। इस डिजिटल परिवर्तन ने शासन को अधिक कुशल, पारदर्शी और जवाबदेह बनाया है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं का त्वरित और प्रभावी वितरण संभव हुआ है। परिणामस्वरूप शहरी और ग्रामीण दोनो ं क्षेत्रों मे ं सामाजिक-आर्थिक विकास को गति प्रदान हुुई है। इसी संदर्भ में, यह अध्याय राज्य की डिजिटल प्रौद्योगिकी मे ं उपलब्धियों और उनके व्यापक प्रभाव का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन @1100: मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन @1100 राज्य में सभी नागरिकों की शिकायतों के लिए एक के ंद्रित समाधान सेवा (वन स्टॉप शॉप) है। इसमे ं शिकायतों के विभिन्न स्रोत शामिल हैं, जैसे कि टोल-फ्री नंबर 1100 के माध्यम से कॉल सेंटर पर प्राप्त शिकायतें, पत्राचार, ईमेल, सीएम संकल्प मोबाइल ऐप, और मुख्यमंत्री सेवा संकल्प पोर्टल के माध्यम से प्राप्त शिकायतें।
हिमाचल प्रदेश में नागरिक शिकायतों के त्वरित समाधान के लिए एम.एम.एस.एस. (मुख्यमंत्री सेवा संकल्प) हेल्पलाइन (1100) एक प्रभावी मंच के रूप में कार्य कर रही है। 31 दिसंबर 2024 तक, 2024-25 के दौरान इस हेल्पलाइन के माध्यम से कुल 1,21,118 शिकायतें दर्ज की गई हैं। इनमें से 1,05,345 शिकायतों (87 प्रतिशत) का समाधान किया जा चुका है, जबकि 82,237 शिकायतों (68 प्रतिशत) जिनका समाधान संबंधित नागरिकों की संतुष्टि के अनुसार कर दिया गया है।
एम.एम.एस.एस हेल्पलाइन के शुभारंभ के बाद से कुल 7,78,364 शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमे ं से 7,57,354 (97 प्रतिशत) शिकायतों का समाधान किया जा चुका है। इनमें से 5,53,303 (71 प्रतिशत) शिकायतों का समाधान नागरिकों की संतुष्टि के अनुसार किया गया है।
मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार, एम.एम.एस.एस. हेल्पलाइन विभिन्न विभागीय हेल्पलाइनों के संचालन के लिए एक केंद्रीकृत कॉल से ंटर के रूप में कार्य कर रही है। निम्नलिखित हेल्पलाइनों को एम.एम.एस.एस. हेल्पलाइन कॉल से ंटर के तहत स्थानांतरित कर दिया गया है।
i)24*7 हिमाचल राज्य पथ परिवहन निगम (एच.आर.टी.सी.) एम.एम.एस.एस. बसों के माध्यम से यात्रा करने वाले यात्रियों को तत्काल सहायता प्रदान हो रही हैं। अभी तक 18,988 पंजीकृत मामलों का सफलतापूर्वक समाधान किया जा चुका है।
ii) 1 जनवरी 2024 से, आपदा हेल्पलाइन के लिए एक वैकल्पिक एम.एम.एस.एस हेल्पलाइन के साथ एकीकृत किया गया है।
iii) खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की सार्वजनिक वितरण प्रणाली 1967 हेल्पलाइन को एम.एम.एस.एस हेल्पलाइन के तहत स्थानांतरित कर दिया गया है, जहां अब तक कुल 9,045 मामले पंजीकृत किए गए हैं, जिनमे ं से 9,005 मामलों का समाधान कर उन्हें बंद कर दिया गया है।
डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं प्रशासन विभाग ने विभागीय अनुप्रयोगों और पोर्टलो ं से संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों से प्राप्त प्रश्नों के समाधान हेतु एक डिजिटल हेल्पलाइन स्थापित की है। इस हेल्पलाइन पर सामान्य कार्यालय समय के दौरान 0177-3525101@02 नंबर पर संपर्क किया जा सकता है।
नागरिक अनुभव को सुधारने के उद्देश्य से, एम.एम.एस.एस हेल्पलाइन प्रणाली में व्हाट्सएप चैटबाॅट सुविधा लागू की जा रही है।
ई-अॉफिस: ई-अॉफिस पहल हिमाचल प्रदेश मे ं कागज रहित प्रशासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो शासन मे ं दक्षता और स्थिरता के साथ क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। यह प्रणाली न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान करती है, बल्कि संगठनों के लिए लागत में भी महत्वपूर्ण बचत करती है। दस्तावेज प्रबंधन, फाइल ट्रैकिंग, कार्य प्रबंधन, कार्य स्वचालन, ई-हस्ताक्षर और संचार उपकरणों सहित सुविधाओं के व्यापक सेट से सुसज्जित यह प्लेटफॉर्म सरकारी अधिकारियों के बीच निर्बाध सहयोग को बढ़ावा देता है। वर्तमान मे ं, निम्नलिखित कार्यालय सफलतापूर्वक ई-अॉफिस प्लेटफॉर्म पर एकीकृत हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त, एक वेब-आधारित अनुप्रयोग के रूप में ई-अॉफिस एप्लिकेशन को किसी भी नेटवर्क के माध्यम से, सक्संेस और फोर्टी-क्लाइंट का उपयोग करके कहीं से भी, कभी भी सचालन किया जा सकता है। हाल ही में, आधार आधारित ई-साइन सुविधा को मौजूदा डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डी.एस.सी.) विकल्प के साथ विस्तारित किया गया है, ताकि उपयोगकर्ता नोटिंग और ड्राफ्ट पत्रों पर भी हस्ताक्षर कर सकें। राज्य सरकार अब यह सुनिश्चित करने पर जोर दे रही है कि सभी कार्यालय डिजिटल हस्ताक्षर (ई-साइन@डी.एस.सी.) का उपयोग करके ई-अॉफिस के माध्यम से क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ संवाद करे ं। इसके अलावा, संचार को ई-अॉफिस एप्लिकेशन की इंट्रा-ई-अॉफिस सुविधा के माध्यम से भी भेजा जा सकता है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य राज्य में पूरी तरह से कागज रहित कार्यालय प्रणाली को लागू करना है।

हिमाचल अॉनलाइन सेवा (ई-डिस्ट्रिक्ट) पोर्टल: सरकारी कार्यालयों मे ं लोगों की संख्या कम करने और राज्य के नागरिकों को उनके दरवाजे पर विभिन्न सरकारी सेवाओं की सुविधा प्रदान करने के लिए, अॉनलाइन सेवा पोर्टल बनाया गया है, यह पोर्टल नागरिकों को सरकारी योजनाओं@सेवाओं तक सबसे आसान और पारदर्शी तरीके से पहु ंच सके।
ई-डिस्ट्रिक्ट परियोजना का उद्देश्य जिला और उप-मंडल स्तर पर नागरिक-केंद्रित सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी प्रदान करना है। इसमें भाग लेने वाले विभागों में वर्कफ्लो, बैकएंड प्रक्रियाओं और कम्प्यूटरीकरण के स्वचालन की व्यवस्था शामिल है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, विभाग ने अॉनलाइन डिलीवरी के लिए हिमाचल अॉनलाइन सेवा पोर्टल में 77 सेवाएं जोड़ी थी। अब विभिन्न विभागों राजस्व, महिला एंव बाल विकास पंचायती राज, ग्रामीण विकास विभाग, “ाहरी विकास आदि की 294 सेवाओं की जानकारी आनलाईन इस पोर्टल के माध्यम से प्रदान की जा रही है। हिमाचल अॉनलाइन सेवा पोर्टल के माध्यम से प्रतिदिन विभिन्न सेवाओं के लिए औसतन 6,000 लेनदेन होते हैं। चालू वित्त वर्ष मे ं दिसम्बर, 2024 तक कुल 15,92,958 ट्रांजेक्शन हो चुके हैं। इसके अलावा, जब कोई नागरिक सेवाओं के लिए आवेदन करता है तो दस्तावेज की कमियों की पूर्व-जांच करने के लिए पोर्टल में ए.आई. लागू किया गया है, जिससे मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता कम हो जाती है।
आधार: भारतीय वि”िा’ट पहचान प्राधिकरण (यू.आई.डी.ए.आर्ई.) का उद्दे”य प्रत्येक निवासी को उसकी जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारी से जुड़ी एक विशिष्ट पहचान संख्या जारी करना है, जिसका उपयोग वे भारत में कहीं भी अपनी पहचान बनाने और कई सेवाओं का लाभ लेने के लिए कर सकते हैं। राज्य में कुल 104.29 प्रति”ात (लाइव) वि”िा’ट पहचान संख्या (यू.आई.डी.) सृजित किए गए हैं। राज्य में 5 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या के लिए आधार संतृप्ति स्तर 100 प्रति”ात से अधिक है। आधार जनरेशन के मामले में राज्य ने देश में समग्र रूप से चैथा रैंक और 0-5 वर्ष आयु वर्ग में पहला रैंक हासिल किया है। छूटी हुई आबादी और आधार अपडेशन को कवर करने के लिए, वर्तमान में डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग और लोकमित्र केन्द्रो ं के माध्यम से राज्य के सभी जिलों और ब्लॉकों को कवर करते हुए 215 स्थायी नामांकन के ंद्र (पी.ई.सी.) काम कर रहे हैं।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) : सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का वित्तीय लाभ वास्तविक समय के आधार पर नागरिकों तक पहु ंचाने के लिए, शून्य चोरी सुनिश्चित करते हुए, राज्य मे ं प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण लागू किया गया है। डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग ने वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान संबंधित विभागों के साथ 165 (केंद्र-79, राज्य-86) योजनाओं की पहचान की है, जिनमे ं से 52 योजनाओं (केंद्र-17, राज्य-35) में डी.बी.टी. लागू किया गया है। दिसम्बर, 2024 तक 52 योजनाओं के अन्तर्गत 17.45 लाख लाभार्थियो ं को ₹1274.17 करोड़ डी.बी.टी. के माध्यम से हस्तांतरित किये गये हैं।
हिमस्वान : राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एन.ई.जी.पी.) के तहत, हिमाचल प्रदेश डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग ने हिमाचल प्रदेश स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (हिमस्वान) नामक सुरक्षित नेटवर्क बनाया। हिमस्वान राज्य सरकार के सभी विभागों को ब्लॉक स्तर तक सुरक्षित नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करता है और जी.टू.जी. (सरकार से सरकार), जी टू.सी. (सरकार से नागरिक) और जी.टू.बी. (सरकार से व्यवसाय) सेवाओं की कुशल इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी प्रदान करता है। हिमस्वान की स्थापना फरवरी, 2008 में की गई थी और अब, राज्य भर में 1,936 सरकारी कार्यालय इस नेटवर्क के माध्यम से जुड़े हुए हैं। बढ़ती मांग के कारण, बैंडविड्थ को नवीनतम मल्टीप्रोटोकॉल लेबल स्विचिंग (एम.पी.एल एस.) तकनीक के साथ उन्नत किया गया है। अब न्यूनतम बैंडविड्थ 8 एम.बी.पी.एस. है। हालाँकि, जिला स्तर पर उच्च इंटरनेट उपयोग वाले सभी निदेशालयों और कार्यालयों को 100 एम.पी.बी.एस. में अपग्रेड कर दिया गया है। श्रेणीवार स्थिति इस प्रकार हैः

हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा सेंटर: हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा सेंटर (एच.पी.एस.डी.सी.) मुख्य सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) आधारभूत ढांचे में से एक है। ज¨ डिजिटल टेक्नोलॉजीज और गवर्नेंस विभाग द्वारा बनाई गई हैं। जिसमे सरकार से सरकार (जी.टू.जी), सरकार से नागरिक (जी.टू.सी) और सरकार से व्यवसाय (जी.टू.बी.) सेवाओं की कुशल इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी दी गयी। विभिन्न विभागों@बोर्डो ं@निगमों की कुल 227 वेबसाइटे ं@एप्लिकेशन एच.पी. स्टेट डेटा सेंटर में होस्ट किए गए हैं। एच.पी.एस.डी.सी. में होस्ट किए गए राज्य सरकार के सभी वेबसाइट एप्लिकेशन की समय-समय पर साइबर सुरक्षा अॉडिट करते हैं। सुरक्षा अॉडिट और अनुपालन के बिना किसी भी वेबसाइट या पोर्टल या एप्लिकेशन को एच.पी. स्टेट डेटा सेंटर में होस्ट नहीं किया जा सकता है। आगामी 5 वर्षों के लिए विभिन्न विभागों की होस्टिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य डाटा सेंटर की क्षमता को बढ़ाया जा रहा है।
होस्टिंग प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और मानकीकृत सुरक्षा प्रथाओ ं को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा के ंद्र के लिए अनुप्रयोग और अवसंरचना होस्टिंग नीति को अधिसूचित किया गया है।
सी.एम. डैशबोर्ड: माननीय मुख्यमंत्री द्वारा प्रमुख परियोजनाओं@योजनाओं की प्रगति की निगरानी के लिए एक सी.एम. डैशबोर्ड विकसित किया गया है। पहले चरण में, 8 विभाग (राजस्व, महिला और बाल विकास, जल शक्ति, लोक निर्माण विभाग, ग्रामीण विकास, शिक्षा, जनजातीय और स्वास्थ्य सेवाएं जिनमे ं स्वास्थ्य सेवा निदेशालय (डी.एच.एस.), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एन.एच.एम.) और चिकित्सा शिक्षा निदेशालय (डी.एम.ई.) सी.एम. डैशबोर्ड के साथ एकीकरण के लिए पहचान की गई और संबंधित विभागों के परामर्श से कुल 81 प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (के.पी.आई.) की पहचान की गई। सी.एम. डैशबोर्ड एप्लिकेशन परियोजनाओं अर्थात, भौतिक प्रगति, धन का उपयोग, विभागीय स्तर की निगरानी, जिलों@क्षेत्रीय कार्यालयों की प्रगति के आधार पर रैंकिंग आदि की वास्तविक समय निगरानी की सुविधा प्रदान करता है। प्रत्येक विभाग परामर्”ा के समय प्रदान किए गए अपने पदानुक्रम के आधार स्तर पर प्रदर्शन की निगरानी कर सकता है। इसके अतिरिक्त, जिला सुशासन सूचकांक (डी.जी.जी.आई.) राज्य@जिला स्तर पर विभिन्न विषयों के तहत एक व्यापक और कार्यान्वयन योग्य ढांचा सीएम डैशबोर्ड एप्लिकेशन के हिस्से के रूप मे ं विकसित किया गया है।
हिम परिवार : हिम परिवार परियोजना के तहत आवश्यक तकनीकी ढांचे के विकास के लिए प्रमुख गतिविधियाँ पूरी की गई हैं। इस परियोजना के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक निवासी के लिए विशिष्ट आई.डी. तैयार की गई है। इस रजिस्ट्री का उद्देश्य सक्रिय और पात्रता-आधारित लाभ वितरण सुनिश्चित करना है, जिससे सरकारी योजनाओं में धोखाधड़ी को कम किया जा सके और नागरिकों पर दस्तावेजी बोझ घटाया जा सके। इसके अतिरिक्त, यह लाभार्थी की पहचान को सरल बनाएगा और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिए डेटा प्रदान करेगा।
इस पहल के अन्तर्गत हिमएक्सेस सिंगल साइन-अॉन सिस्टम विकसित किया गया है, जो नागरिकों और सरकारी कर्मचारियो ं को एक ही उपयोगकर्ता नाम और पासवर्ड के माध्यम से विभिन्न सरकारी सेवाओं तक पहुँचने के लिए एक एकीकृत मंच प्रदान करता है। यह प्रणाली सुविधा और दक्षता को बढ़ावा देती है, जिससे नागरिकों को विभिन्न अॉनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ने में समय की बचत होती है। अब तक, 1.62 लाख उपयोगकर्ता हिमएक्सेस प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत हो चुके हैं और विभिन्न सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य में डिजिटल पहचान की सुरक्षा, गोपनीयता और प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल पहचान और पहुँच प्रबंधन पर नीति दस्तावेज को अधिसूचित किया गया है।
हिम परिवार परियोजना के तहत एक सर्वे क्षण मंच भी विकसित किया गया है। शहरी विकास विभाग द्वारा शहरी क्षेत्रों में परिवार रजिस्टर तैयार करने और हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (एच.पी.एस.ई.बी.एल.) द्वारा बिजली मीटरों को परिवारों से जोड़ने के लिए किए गए सर्वे क्षण वर्तमान में प्रगति पर हैं। शहरी विकास विभाग की पहल के अन्तर्गत अब तक 1,99,747 परिवारो ं के 6,28,959 व्यक्तियो ं का सर्वेक्षण पूरा किया जा चुका है। इसी तरह, एच.पी.एस.ई.बी.एल. के सर्वेक्षण के अन्तर्गत कुल 18,19,955 बिजली मीटरों का सर्वेक्षण किया गया है।
मुकदमेबाजी निगरानी प्रणाली (एल.एम.एस.) सॉफ्टवेयर में निम्नलिखित विशेषताएं शामिल हैंः
i) जिला न्यायालय ए.पी.आई. के साथ एकीकरण यह सुविधा केस विवरण, आदेश और जुड़े मामलों के बारे में जानकारी को स्वचालित रूप से प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
ii) उपयोगकर्ता मामले वॉचलिस्ट मॉड्यूल यह एक सुव्यवस्थित सुविधा है, जो उपयोगकर्ताओं को चयनित मामलों को वास्तविक समय में अपडेट प्राप्त करने और आसानी से पहुँच के साथ ट्रैक और मॉनिटर करने की अनुमति देती है।
iii) दैनिक एस.एम.एस. सूचनाएंः साप्ताहिक सुनवाई के संबंध में एक दैनिक एस.एम एस. अधिसूचना भेजी जाती है, साथ ही अपडेट के लिए मुख्य सचिव को एक समर्पित एस.एम.एस. भी भेजा जाता है।
iv) अपडेट मॉड्यूलः हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को विभागों द्वारा चिह्नित मामलों की सुनवाई पर अपडेट प्रदान करने के लिए एक अपडेट मॉड्यूल विकसित किया गया है।
राजस्व न्यायालय प्रबंधन प्रणाली (आर.सी.एम.एस.): राजस्व न्यायालय प्रबंधन प्रणाली (आर.सी.एम.एस.), एक व्यापक सॉफ्टवेयर है जो राजस्व विभाग व डिजिटल टेक्नोलॉजी और गवर्ने ंस विभाग के निकट समन्वय से डाटा संचालित परीक्षण द्वारा बनाया गया है। आर.सी.एम.एस. एक डिजिटल समाधान है जिसे हिमाचल प्रदेश में राजस्व अदालत के संचालन को आधुनिक बनाने और सुव्यवस्थित करने के लिए डिज+ाइन किया गया है। इस पहल के एक हिस्से के रूप में राजस्व अदालत प्रक्रियाओं, मामलों का प्रबंधन और रिकॉर्ड-कीपिंग को डिजिटल बनाया गया है। नागरिक और वकील अपने मामलों से संबंधित सभी जानकारी निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। ऐसी जानकारी में मामलों का प्रोफाइल, मामलों की स्थिति, अंतरिम आदेश, अंतिम आदेश, मामलों की सूची इत्यादि शामिल हैं। आर.सी.एम.एस. द्वारा कुल 1,21,246 मामले अॉनलाइन पंजीकृ त हैं, जिनमें से 61,353 मामलों का निपटारा किया जा चुका है।
राजस्व रलीफ एप्लिके”ान पोर्टल: राजस्व रलीफ एप्लिकेशन पोर्टल एक डिजिटल समाधान है जिसे हिमाचल प्रदेश में राहत निधि के प्रबंधन और वितरण को सरल और तेज बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह राहत अनुप्रयोगों को संसाधित करने, उनकी प्रगति पर नजर रखने और राहत कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक मंच के रूप में कार्य करता है। डेटा-संचालित, निर्णय लेने की सुविधा के लिए व्यावहारिक रिपोर्ट तैयार करता है। राजस्व प्रबंधन प्रणाली (आर.एम.एस) के माध्यम से कुल 69,609 आवेदन अॉनलाइन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 37,497 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं।
नीतिगत पहलः हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा से ंटर के लिए आधारभूत ढांचा और अनुप्रयोग होस्टिंग नीति हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा से ंटर (एच.पी.एस.डी.सी.) के लिए आधारभूत ढांचा और अनुप्रयोग होस्टिंग नीति अगस्त 2024 में अधिसूचित की गई थी। इस नीति का उद्देश्य राज्य डेटा सेंटर में होस्ट किए गए बुनियादी ढांचे और अनुप्रयोगों के प्रबंधन, सुरक्षा और संचालन को मानकीकृत और सुव्यवस्थित करना है। यह नीति (एच.पी.एस.डी.सी.) के तहत सरकारी अनुप्रयोगों और बुनियादी ढांचे की सुरक्षित, विश्वसनीय और कुशल होस्टिंग सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश और प्रक्रियाएं स्थापित करती है। साथ ही, इसका उद्देश्य सरकारी विभागों और संगठनों के लिए अनुप्रयोगों और बुनियादी ढांचे की मेजबानी से संबंधित आवश्यक प्रक्रियाओं, कार्यप्रणालियों और दिशानिर्देशों के बारे में जागरूकता पैदा करना और एक स्पष्ट संदर्भ प्रदान करना है।
i) डिजिटल पहचान और पहुँच प्रबंधन पर नीति: अगस्त 2024 मे ं शुरू की गई डिजिटल पहचान और पहुँच प्रबंधन नीति राज्य सरकार की संस्थाओं द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों मे ं सिंगल साइन-अॉन लागू करने के लिए दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार करती है। इस नीति का उद्देश्य सरकारी विभागों, बोर्डों , निगमों और अन्य संगठनों में हिम एक्सेस सिस्टम के सुरक्षित, कुशल और सुसंगत उपयोग को सुनिश्चित करना है। यह नीति राज्य सरकार की सेवाओं को अॉनलाइन एक्सेस करने वाले सभी कर्मचारियों, संस्थाओं और नागरिकों पर लागू होती है।
ii) दस्तावेज प्रबंधन नीति : असंगत दस्तावेज प्रबंधन, सुरक्षा अंतराल और पहुँच संबंधी चुनौतियों के मौजूदा मुद्दों को हल करने के लिए, 23 अक्टूबर 2024 को दस्तावेज प्रबंधन प्रणाली (डी.एम.एस.) नीति शुरू की गई। इस नीति का उद्देश्य दस्तावेजो ं के प्रबंधन में सुधार करना, उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना और आवश्यकतानुसार उचित पहुँच प्रदान करना है। (डी.एम.एस.) पोर्टल ;ीजजचेरूध्ध्कउेण्ीचण्हवअण्पदध्प्दकमगण्ंेचगद्ध को एक ही स्थान पर सभी आधिकारिक दस्तावेजों के भंडारण, उपयोग और पहुँच को प्रबंधित करने के लिए एक उपयोगकर्ता-अनुकूल और एकीकृत मंच के रूप मे ं विकसित किया गया है। यह पोर्टल दस्तावेजों की सुरक्षा, संचालन में पारदर्शिता और प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करता है, जिससे उपयोगकर्ताओं को सहजता से दस्तावेजो ं तक पहुँच प्राप्त होती है।
4ळ संतृप्ति परियोजनाः हिमाचल प्रदेश सरकार ने 4ळ संतृप्ति परियोजना के तहत बीएसएनएल को सभी आवश्यक सहायता प्रदान की है, जिससे राज्य विभागों से सभी स्वीकृतियाँ समयबद्ध तरीके से प्राप्त हो रही हैं। अब तक, बीएसएनएल को 349 वन स्थलों और 45 सरकारी स्थलों के लिए मंजूरी प्रदान की गई है, जिससे परियोजना के कार्यान्वयन में तेजी आई है और 4जी नेटवर्क की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान राज्य को विशेष सहायता योजना (दूरसंचार क्षेत्र) के तहत भारत सरकार से ₹50 करोड़ की धनराशि प्राप्त हुई है, जिसका उपयोग लाहौल और स्पीति, चंबा और किन्नौर जिलों के वंचित गांवों को कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए किया जा रहा है। अब तक, 500 टावरो ं का निर्माण किया जा चुका है, जिससे इन क्षेत्रों मे ं दूरसंचार सेवाओं की पहुँच मे ं महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
निवेश और उद्योग प्रोत्साहन :
(एस.टी.पी.आई.-शिमला, एस.टी.पी.आई.-कांगड़ा, सी.ओ.ई-आई.टी वाकनाघाटः एस.टी.पी आई.@इनक्यूबेशन) आई.टी. निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य में दो सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क अॉफ इंडिया (एस.टी.पी.आई.) केंद्र ”िामला और कांगड़ा में स्थापित किए जा रहे है ं। इनमे ं से एक केंद्र शिमला के मैहली में 18,000 वर्ग फीट व दूसरा चैतडू जिला कांगडा मे ं 35,602 वर्ग फीट क्षेत्र में विकसित किया जा रहा है जिसका उद्देश्य 25-32 उद्यमियों को सहायता प्रदान करना और 500-650 युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना है।
हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम (एच.पी.के.वी.एन.) ने वाकनाघाट में 47,595.85 वर्ग फीट के कुल निर्मित क्षेत्र के साथ सीओई-आईटी भवन का निर्माण किया है। इस परिसर के अन्तर्गत, डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग (डी.डी.टी. एंड जी.) द्वारा एस टी.पी.आई के सहयोग से 1,800 वर्ग फीट क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजे ंस और मशीन लर्निं ग में उत्कृष्टता केंद्र (सी.ओ.ई) स्थापित किया जाएगा। इसके अलावा, मुख्यमंत्री स्टार्टअप@इनोवेशन प्रोजेक्ट@न्यू इंडस्ट्रीज पहल के अंतर्गत 10,000 वर्ग फीट क्षेत्र को इनक्यूबेशन सुविधा के लिए आवंटित किया जाएगा। शेष अनिर्मित क्षेत्र को सफल स्टार्टअप और आई.टी.@आई.टी.ई.एस. कंपनियो ं को व्यावसायिक उपयोग के लिए किराये के आधार पर उपलब्ध कराया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम लिमिटेड, डिजिटल टेक्नोलॉजीज और गवर्नेंस विभाग एच.पी. के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्य कर रहा है निगम की मुख्य गतिविधियाँ सरकार को गुणवत्तापूर्ण कंप्यूटर हार्डवेयर और संबद्ध सेवाएँ, पैकेज्ड सॉफ्+टवेयर हार्डवेयर कार्यालय स्वचालन और मेडिकल, अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण की आपूर्ति करना और हिमाचल प्रदेश मे ं विभाग, बोर्ड+ कोर्पोरे”ान और सार्वजनिक उपक्रम को मानव सेवाएं उपल्ब्ध करवाना है इसके अतिरिक्त निगम संबंधित ओ.ई.एम.@विक्रेताओं@ए एस.पी. के माध्यम से आपूर्ति किए गए हार्डवेयर का उचित रखरखाव सुनिश्चित करना है। एच.पी.एस.ई.डी.सी. यह सुनिश्चित करता है कि सभी खरीद प्रक्रियाएं ळमड पोर्टल, एच.पी. ई-प्रोक्योरमे ंट पोर्टल, और टेंडर इंक्वायरी (एन.आई.क्यू.-कोटेशन आमंत्रण नोटिस) के माध्यम से संपन्न की जाएं।
वित्तीय उपलब्धियाँ : हिमाचल प्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम ने वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान विभिन्न सेवाएं प्रदान कीं और दिसंबर 2024 तक निम्नलिखित व्यवसाय अर्जित किया है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने शासन, पहु ंच और सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार पर ध्यान केंद्रित करते हुए डिजिटल परिवर्तन में महत्वपूर्ण प्रगति की है। प्रमुख पहलों में शिकायत समाधान के लिए मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन, कागज रहित प्रशासन को बढ़ावा देने वाली ई-अॉफिस प्रणाली और नागरिकों को अॉनलाइन सरकारी सेवाएं प्रदान करने वाला हिमाचल अॉनलाइन सेवा पोर्टल शामिल हैं। अन्य उल्लेखनीय विकासों मे ं आधार नामांकन, कुशल वित्तीय सहायता के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डी.बी.टी.), सुरक्षित सरकारी कनेक्टिविटी के लिए हिमस्वान और सरकारी अनुप्रयोगों की मेजबानी के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा सेंटर शामिल हैं। राज्य 4ळ सेचुरेशन प्रोजेक्ट के साथ कनेक्टिविटी भी बढ़ा रहा है, आई.टी. इन्क्यूबेशन से ंटर स्थापित कर रहा है और प्रौद्योगिकी में निवेश को बढ़ावा दे रहा है। ये प्रयास कुशल, पारदर्शी शासन और समावेशी विकास के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं।