Tribal Development
आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24


1.सामान्य समीक्षा

विश्व बैंक वैश्विक आर्थिक संभावनाओं (जनवरी 2024) के अनुसार, अधिकांश उन्नत और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं 2024 और 2025 में कोविड-19 से पहले के दशक की तुलना में अधिक धीमी गति से बढ़ने वाली हैं। 2025 में 2.7 प्रतिशत तक पहुंचने से पहले वैश्विक वृद्धि लगातार तीसरे वर्ष धीमी होकर 2.4 प्रतिशत होने की उम्मीद है। हालाँकि, ये वृद्धि दरें अभी भी 2010 के औसत 3.1 प्रतिशत से काफी नीचे हैं। 2023 और 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए प्रति व्यक्ति निवेश वृद्धि औसतन केवल 3.7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है जो पिछले दो दशकों के औसत से लगभग आधी है। सुधारात्मक कदमों के बिना वैश्विक विकास 2020 से 2030 के बीच में क्षमता से काफी नीचे रहेगा।
विश्व आर्थिक दृष्टिकोण का अनुमान है कि वैश्विक वृद्धि 2022 में 3.5 प्रतिशत से धीमी होकर 2023 में 3.0 प्रतिशत और 2024 में यह और गिरकर 2.9 प्रतिशत हो जाएगी, जो ऐतिहासिक (2000-19) औसत 3.8 प्रतिशत से काफी नीचे है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक नीतियों में सख्ती के कारण वृद्धि दर 2022 में 2.6 प्रतिशत से घटकर 2023 में 1.5 प्रतिशत और 2024 में 1.4 प्रतिशत होने का अनुमान हैै। उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ई.एम.डी.ई.) की वृद्धि में 2022 में 4.1 प्रतिशत से मामूली गिरावट का अनुमान है जो 2023 और 2024 दोनों में 4.0 प्रतिशत हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय वस्तु की कीमतों में कमी व सख्त मौद्रिक नीति के कारण, वैश्विक मुद्रास्फीति 2022 में 8.7 प्रतिशत से लगातार घटकर 2023 में 6.9 प्रतिशत और 2024 में 5.8 प्रतिशत होने का अनुमान है।
आर्थिक दृष्टिकोण, नवंबर 2023 के अनुसार वैश्विक वृद्धि 2023 में 2.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो 2024 में कम होकर 2.7 प्रतिशत हो जाएगी। मुद्रास्फीति में और कमी आने से वास्तविक आय अधिक मजबूत होगी, जिसके कारण 2025 में विश्व अर्थव्यवस्था में 3 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। वैश्विक विकास तेजी से बढ़ती एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर अत्यधिक निर्भर है।
सारणी 1.1 विश्व अर्थव्यवस्था, चीन और भारत की पूर्वानुमान वृद्धि को दर्शाती है। 2024 के लिए विश्व अर्थव्यवस्था के वृद्धि का अनुमान 2.4 प्रतिशत से 2.9 प्रतिशत के बीच है। भारत के लिए, विकास दर 6.1 प्रतिशत से 6.4 प्रतिशत के बीच है जो विश्व अर्थव्यवस्था के साथ-साथ चीन की अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक है। विश्व अर्थव्यवस्था के लिए कम वृद्धि के कुछ प्रमुख कारकों में रूस-यूक्रेन संघर्ष के निष्कर्ष पर अनिश्चितता, वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण मौद्रिक सख्ती का धीमा प्रभाव, निवेश के लिए राजकोषीय स्थान का संकुचन होना और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में विश्वास घटना है, जो ई.एम.डी.ई. से निर्यात को और प्रभावित करता है।
दक्षिण एशिया क्षेत्र (एस.ए.आर.) में आर्थिक वृद्धि 2024 में थोड़ी कम होकर अभी भी मजबूत 5.6 प्रतिशत की गति तक पहुंचने की उम्मीद है। घरेलू मांग सहित सार्वजनिक उपभोग और निवेश, आर्थिक वृद्धि के प्रमुख चालक बने रहेंगे। बाहरी मांग में बढ़ोतरी, हालांकि अभी भी धीमी है, फिर भी इससे वृद्धि में योगदान की उम्मीद है। भारत को छोड़कर दक्षिण एशिया क्षेत्रों की जी.डी.पी. 2024 में 3.8 प्रतिशत और 2025 में 4.1 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है।
यह अनुमानित है कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज विकास दर बनाए रखेगा, लेकिन महामारी के बाद इसकी अवस्था धीरे-धीरे ठीक होने की उम्मीद है, जो वित्तीय वर्ष 2024-25 में 6.4 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। निजी उपभोग वृद्धि कम होने की संभावना है क्योंकि महामारी के बाद, रुकी हुई मांग कम हो गई है और खाद्य मुद्रास्फीति से खर्च में रूकावट आने की संभावना है।
राज्य का आर्थिक सर्वेक्षण पिछले 12 महीनों में अर्थव्यवस्था में हुए विकास की समीक्षा करता है। यह सरकार की नीतिगत पहलों पर प्रकाश डालता है, प्रमुख विकास कार्यक्रमों के प्रदर्शन का सारांश प्रस्तुत करता है और अर्थव्यवस्था में वृद्धि की संभावनाओं को दर्शाता है। यह राज्य का आर्थिक परिदृश्य प्रस्तुत करने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह एक वर्ष में विभिन्न क्षेत्रों में राज्य के तुलनात्मक आर्थिक प्रदर्शन को प्रस्तुत करता है। आर्थिक सर्वेक्षण जलवायु परिवर्तन और आर्थिक गतिविधियों में अन्य परिवर्तन को भी प्रस्तुत करता है। यह आगामी वर्ष के बजट प्रस्तुति से पहले राज्य विधान सभा में प्रस्तुत किया जाता है।
राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सरकारी योजनाओं के संबंध में आर्थिक सर्वेक्षण विभिन्न हितधारकों जैसे कि नीति नियोजक, विभिन्न विभागों के अधिकारी, शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
i) आर्थिक सर्वेक्षण संबंधित अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी देता है और स्पष्टीकरण के साथ सभी प्रमुख सरकारी पहलों पर चर्चा करता है।
ii) आर्थिक सर्वेक्षण में मूल्यांकित कई मुद्दों पर सरकार द्वारा भविष्य की पहल में कार्यान्वयन के लिए विचार किया जाता है।
भारत के आर्थिक विकास की संभावना के बारे में आशावाद हाल के वर्षों में लगातार बढा है। अन्य बातों के साथ-साथ की गई प्रमुख पहलों में ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ’ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ सुधार शामिल हैं। डिजिटल टेक्नोलॉजी इस वर्ष की ’स्प्रिंट रनर’ रही है जिससे पैसों का लेन-देन आसान हो गया है। कुशल वित्तीय मध्यस्थता, और विवेकपूर्ण राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के माध्यम से व्यापक आर्थिक स्थिरता देश में विकास को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा शुरू किए गए अन्य प्रयास हैं।
भारत के लिए 2023 विशेष रहा है। चंद्रयान, एक चंद्रमा मिशन और जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी के बाद, भारत 2023 से अपनी आर्थिक वृद्धि और संभावनाओं के लिए बढ़ी हुई स्थिरता और आशावाद के साथ उभरने की स्थिति में है। वैश्विक कंपनियों को पेश किए जाने वाले संचालन के आकार और पैमाने, इसके प्रचुर कुशल प्रतिभा और प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में इसकी प्रगति को देखते हुए, देश में निवेश के लिए एक आकर्षक मजबूत स्थल बना हुआ है। औद्योगिक विनिर्माण क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे ऐप्पल जैसे वैश्विक प्रौद्योगिकी दिग्गज भारत में अपने आपूर्तिकर्ता नेटवर्क का विस्तार करने के लिए उत्सुक हैं। इस गति को नीतियों के कार्यान्वयन से और समर्थन मिलता है जो क्षेत्र-विशिष्ट प्रोत्साहन योजनाओं की पूरक हैं। समवर्ती रूप से, नई सड़कों, राजमार्गों और रेल पटरियों के निर्माण सहित रसद और आधारिक संरचना के विकास में पर्याप्त निवेश, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
रसद लागत को कम करने पर भारत का रणनीतिक केंद्र-बिंदु वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक प्रमुख घटक बनने और 2025 के अंत तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की उसकी महत्वाकांक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। भविष्य पर नज़र रखते हुए, देश का लक्ष्य 2047 तक विकसित आर्थिक स्थिति हासिल करना है, जो निरंतर वृद्धि और विकास की दिशा में एक स्पष्ट प्रक्षेप पथ प्रदर्शित करता है।
अग्रिम अनुमान (अ.अ.) के अनुसार, मार्च, 2024 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था 7.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। यह वृद्धि पिछले वित्तीय वर्ष में 7.2 प्रतिशत थी।
रॉयटर की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अब एस-वक्र के निर्णायक चरण में पहुंच रहा है, जो शहरीकरण, औद्योगीकरण, घरेलू आय और ऊर्जा खपत में महत्वपूर्ण तेजी की विशेषता है। यह चरण आम तौर पर कई दशकों तक चलता है, जो इन प्रमुख कारकों में तेजी से वृद्धि द्वारा चिह्नित है।
3.75 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जी.डी.पी. के साथ, भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वास्तविक प्रति व्यक्ति आय 2022-23 में ₹98,374 (लगभग 1,183 अमेरिकी डॉलर) थी। इसके अलावा, भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, वित्तीय क्षेत्र में विकास की ताकत और देश के जनसांख्यिकीय लाभ के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था 2027 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की राह पर है।
क्षेत्रवार, भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रार्थमिक क्षेत्र में वित्त वर्ष 2023-24 (अ.अ.) में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में यह वृद्धि 4.0 प्रतिशत थी। द्वितीयक क्षेत्र में वित्त वर्ष 2022-23 में वृद्धि 4.4 प्रतिशत की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24 में यह बढ़कर 7.9 प्रतिशत हो गई है।
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए स्थिर (2011-12) कीमतों पर भारत की वास्तविक जी.डी.पी. ₹171.79 लाख करोड़ अनुमानित है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ जी.डी.पी. का अनंतिम अनुमान ₹160.06 लाख करोड़ है।
वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान व्यापार, होटल और परिवहन क्षेत्र में स्थिर आधार कीमतों पर सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जो पिछले वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 14 प्रतिशत थी। कृषि, वानिकी और मत्स्य क्षेत्र में संकुचन के कारण वित्त वर्ष 2023-24 में 1.8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान यह 4 प्रतिशत की वृद्धि दर थी।
विनिर्माण क्षेत्र में वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सबसे अधिक 6.5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई जो कि पिछले वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 1.3 प्रतिशत थी।
वित्त वर्ष 2023-24 की विकास दर में निर्माण, वित्तीय सेवाओं, रियल एस्टेट, बिजली, गैस, जल आपूर्ति आदि और खनन और उत्खनन सबसे अधिक योगदान देने वाले क्षेत्र है।
सकल घरेलू उत्पाद और जी.एस.डी.पी. की वृद्धि दर के संदर्भ में राष्ट्रीय और राज्य के आर्थिक प्रदर्शन की तुलनात्मक स्थिति चित्र 1.3 में प्रस्तुत की गई है।
अर्थव्यवस्था में “वी” आकार की रिकवरी के बाद धीरे-धीरे विकास दर में अचानक वृद्धि हुई है, जिससे अर्थव्यवस्था निरंतर विकास पथ पर सामान्य स्थिति में लौट रही है। वित्त वर्ष 2020-21 में वृद्धि दर में तेज गिरावट देखी गई, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में वृद्धि दर में तेज बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों और वस्तुओं की आवाजाही पर प्रतिबंध हटने से अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए प्रमुख वृद्धि चालक निर्माण, वित्तीय सेवाएं, रियल एस्टेट आदि, बिजली, गैस, जल आपूर्ति आदि और खनन और उत्खनन है।
प्रचलित कीमतों पर निवल राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2022-23 में ₹1,72,276 थी, जो पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में ₹1,48,524 थी, जो राष्ट्रीय स्तर पर वित्त वर्ष 2023-24 (अ.अ.) के लिए ₹1,85,854 अनुमानित है। हिमाचल प्रदेश में वित्त वर्ष 2022-23 के प्रथम संशोधित (प्र.स.अ.) अनुमानों के अनुसार प्रति व्यक्ति आय (पी.सी.आई.) ₹2,18,788 थी, जबकि इसी वर्ष के लिए राष्ट्रीय स्तर पर यह ₹1,72,226 थी।
हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है। यह राज्य उत्तर में जम्मू और कश्मीर, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में पंजाब, दक्षिण में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में उत्तर प्रदेश व पूर्व में तिब्बत और चीन से घिरा है। लौह अयस्क और कोयले जैसे समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों की कमी व भारत के अन्य राज्यों की तरह उपजाऊ न होने के बावजूद, राज्य के मेहनती लोगों के निरंतर प्रयासों व प्रगतिशील नीतियों के कार्यान्वयन के कारण हिमाचल ने प्रगति की है। हिमाचल प्रदेश तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है।
प्रचलित कीमतों पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) में ₹1,91,728 करोड़ होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में दूसरे संशोधित (द्व.स.अ.) अनुमान में ₹1,72,162 करोड़ है जो कि वर्ष के दौरान 11.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
स्थिर (2011-12) कीमतों पर वित्त वर्ष 2021-22 (द्व.स.अ.) जी.एस.डी.पी. ₹1,24,770 करोड़ के मुकाबले वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) में ₹1,33,372 करोड़ होने का अनुमान है, जो वर्ष के दौरान 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि मुख्य रूप से प्राथमिक क्षेत्र में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि, द्वितीयक क्षेत्र में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि और अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्र में 10.4 प्रतिशत की वृद्धि के कारण है। खाद्यान्न उत्पादन, जो वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 15.79 लाख मीट्रिक टन (मी.ट.) था, वित्त वर्ष 2022-23 में घटकर 15.23 लाख मीट्रिक टन हो गया और वित्त वर्ष 2023-24 में 16.52 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2022-23 में सब्जी उत्पादन बढ़कर 18.67 लाख मीट्रिक टन हो गया, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 18.04 लाख मीट्रिक टन था।
वित्तीय वर्ष 2022-23 के प्रथम संशोधित अनुमान के अनुसार प्रचलित कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय ₹2,18,788 है, जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 में ₹1,95,795 थी, जो 11.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
दिसंबर, 2023 तक की आर्थिक स्थितियों पर आधारित प्रचलित अनुमानों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के लिए राज्य की अर्थव्यवस्था 7.1 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है जो वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 6.9 प्रतिशत थी। (चित्र 1.3)
राज्य की अर्थव्यवस्था का रुझान कृषि क्षेत्र से उद्योगों और सेवा क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है क्योंकि कुल सकल राज्य घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 1950-51 में 57.9 प्रतिशत से घटकर 1967-68 में 55.5 प्रतिशत, 1990-91 में 26.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022-23 में 9.45 प्रतिशत हो गया है।
गौण व सेवा क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान वित्त वर्ष 1950-51 में क्रमशः 1.1 व 5.9 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 1967-68 में 5.6 व 12.4 प्रतिशत, वित्त वर्ष 1990-91 में 9.4 व 19.8 प्रतिशत हो गया और वित्त वर्ष 2022-23 में यह योगदान बढ़कर 41.97 और 44.08 प्रतिशत हो गया।
कृषि क्षेत्र के घट रहे अंशदान के बावजूद भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की महत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा। राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र का विकास अधिकतर कृषि तथा उद्यान उत्पादन द्वारा ही निर्धारित होता है और सकल घरेलू उत्पाद में भी इसका मुख्य योगदान रहता है। अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव रोजगार, अन्य लागत, व्यापार तथा परिवहन सम्बद्धताओं के कारण रहता है। सिंचाई सुविधाओं के अभाव में हमारा कृषि उत्पादन अभी भी मुख्यतः सामयिक वर्षा व मौसम स्थिति पर निर्भर करता है।
राज्य ने उद्यान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विविध जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, गहन और उपयुक्त निकासी वाली भूमि तथा भू-स्थिति में भिन्नता एवं ऊंचाई वाले क्षेत्र समशीतोषण से उप्पोषण कटिबन्धीय फलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है। प्रदेश की स्थिति फलोत्पादन में सहायक व सम्बन्धी उत्पाद जैसे फूल, मशरूम, शहद और हॉप्स की पैदावार के लिए भी उपयुक्त है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने मौसम परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए व लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं। राज्य की कार्य योजना में मौसम परिवर्तन से सम्बन्धित संस्थागत क्षमता का सृजन तथा क्षेत्रवार गतिविधियों को अमल में लाना है।
प्रदेश अर्थव्यवस्था की बढ़ती हुई विद्युत आवश्यकता को देखते हुए सरकार ने राज्य में निरन्तर निर्बाध विद्युत की आपूर्ति, विद्युत उत्पादन, संचारण तथा वितरण को बढ़ाने हेतु महत्वपूर्ण पग उठाए गए हैं। ऊर्जा संसाधन के रूप में जल विद्युत, आर्थिक रूप से व्यावहारिक, प्रदूषण रहित तथा पर्यावरण के अनुकूल है। इस क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए राज्य की विद्युत नीति सभी पहलुओं जैसे कि अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन, संरक्षण की क्षमता, पहुंच व उपलब्धता, वहन करने योग्य, पर्यावरण संरक्षण व प्रदेश के लोगों को रोज़गार सुनिश्चित करने पर जोर देती है। निजी क्षेत्रों का निवेश की दृष्टि से योगदान भी उत्साहवर्धक है सरकार द्वारा प्रदेश के निवेशकों के लिए 2 मैगावाट तक की लघु परियोजनाओं को आरक्षित रखा है और 5 मैगावाट तक की परियोजनाओं में उन्हें प्राथमिकता दी जाती है।
आर्थिक विकास को सम्भव बनाने के अतिरिक्त सरकार ने कल्याणकारी नीतियों को ध्यान में रखते हुए समाज में जाति, लिंग, व्यावसायिक और अन्य श्रेणियों और कमजोर वर्गों के सामाजिक-आर्थिक परिणामों में सुधार के लिए लगातार पहल की है। कल्याणकारी एजैन्डे की सफलता को सुुनिश्चित करने के लिए योजनाओं को ठीक से कार्यान्वयन करना व उनके परिणामों को सरकार के निर्णयों की दृष्टि से संरेखित करने पर निर्भर करता है।
1) 2023 के मानसून महीनों में राज्य गंभीर प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हुआ था। अटूट संकल्प के साथ प्रतिक्रिया देते हुए सरकार ने विशेष राहत पैकेज में आवंटन राशि को 25 गुना बढ़ाकर ₹4500 करोड़ कर दिया है। पूर्णतः क्षतिग्रस्त मकान के पुनर्निर्माण के लिए सहायता 1 लाख 30 हजार से बढ़ाकर 7 लाख कर दी गई।
2) राज्य दशक की अब तक की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हुआ है, जिसने राज्य के लोगों की सामूहिक स्मृति में गहरे घाव अंकित कर दिए। प्रभावित घरों के पुनर्निर्माण
3) 31 मार्च 2024 तक आपदा के कारण राहत शिविरों में रहने वाले परिवारों को ग्रामीण क्षेत्रों में ₹5,000 प्रति माह और शहरी क्षेत्रों में ₹10,000 प्रति माह का किराया दिया जा रहा है। प्रभावित परिवारों को एल.पी.जी. गैस कनेक्शन के अलावा मुफ्त राशन भी उपलब्ध कराया जा रहा है। मकान निर्माण के लिए सरकारी दर पर सीमेंट और मुफ्त बिजली-पानी कनेक्शन उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
4) प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सेब उत्पादित क्षेत्रों के सामने आने वाली चुनौतियों के समाधान व सड़क बहाली के लिए ₹110 करोड़ आवंटित किए गए हैं, जो कृषक समुदाय के कल्याण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
5) हिमाचल प्रदेश मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना जैसी पहल के साथ एक अग्रणी राज्य के रूप में खड़ा है, जो अनाथ बच्चों के लिए एक कानूनी ढांचा पेश कर रहा है। इस उल्लेखनीय पहल में, इस योजना के तहत 4,000 अनाथ बच्चों को “राज्य के बच्चें” का दर्जा दिया गया है। यह योजना अनाथ बच्चों की पढ़ाई का खर्च और जेब खर्च वहन करती है।
6) सरकार 31 मार्च, 2026 तक हिमाचल को हरित ऊर्जा राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर है। प्रगतिशील ई-वाहन नीति ने प्रारंभिक चरण में चार्जिंग स्टेशनों के लिए 54 स्थान निर्धारित किए हैं। सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया परियोजनाओं के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे ₹4,000 करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित होगा और 3,500 से अधिक रोजगार के अवसर पैदा होंगे। पेखुबेला में ₹220 करोड़ के सौर ऊर्जा संयंत्र की आधारशिला रखी गई है, जिससे राज्य को लगभग ₹27 करोड़ की वार्षिक आय होगी।
7) शैक्षिक उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार इस शैक्षणिक सत्र से सभी सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से अंग्रेजी शुरू करने जा रही है।
8) हिमाचल प्रदेश सरकार ने “डॉ. यशवन्त सिंह परमार विद्यार्थी ऋण योजना” आरंभ की है जो राज्य के छात्रों को 1 प्रतिशत की मामूली ब्याज दर पर ₹20 लाख तक का शिक्षा ऋण प्रदान करती है।
9) राजकोषीय चिंताओं को संबोधित करते हुए सरकार ने सरकारी भूमि के लिए पट्टे की अवधि को 99 वर्ष से घटा कर 40 वर्ष कर दिया है। अभूतपूर्व नई उत्पाद नीति से राजस्व में ₹846 करोड़ की पर्याप्त वृद्धि हुई, जबकि शराब की खुदरा दुकानों की नीलामी से राज्य को 40 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
10) जनजातीय समुदायों के कल्याण के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए जनजातीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम के तहत ₹857 करोड़ का पर्याप्त आवंटन किया गया है, जिसमें केंद्रीय योजनाओं में ₹335 करोड़ प्रस्तावित हैं।
11) सरकार ने हिम उन्नति योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य संरचित प्रोत्साहनों के माध्यम से दूध, सब्जियों, फलों और अन्य नकदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
12) दूध पर आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए ₹500 करोड़ की “हिमाचल प्रदेश हिम गंगा योजना” समर्पित की है, जिससे किसानों से चिलिंग प्लांट तक दूध को पहुँचाने की सुविधा मिलेगी।
13) “हिमाचल प्रदेश उपोष्णकटिबंधीय बागवानी, सिंचाई और मूल्य संवर्धन परियोजना (एच.पी.शिवा.)” की परिकल्पना उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कृषि परिवारों की आय बढ़ाने और जलवायु लचीलेपन को मजबूत करने और हिमाचल प्रदेश को भारत के “फ्रूट बाउल” के रूप में विकसित करने के लिए की गई है। ₹1292 करोड़ की एच.पी.शिवा.परियोजना का लक्ष्य 400 समूहों में कृषिक्षेत्र स्थापित करना है, जिसमें छह हजार एकड़ भूमि शामिल है और इसके पहले चरण में 15 हजार किसानों और बागवानों को लाभ होगा। इस परियोजना में टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने, सौर बाड़ लगाने और सिंचाई सुविधाओं के प्रावधान शामिल हैं।
14) आर्थिक विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता राज्य निवेश ब्यूरो की स्थापना में स्पष्ट है जो व्यापार करने में आसानी को बढ़ाने और अपेक्षित अनुमोदन प्राप्त करने में देरी को कम करने के लिए पुरानी “एक-खिड़की” प्रणाली को प्रतिस्थापित करेगा। हाल ही में शिमला में एक निवेशक बैठक में सरकार ने ₹8,468 करोड़ की 29 परियोजनाओं का अनावरण किया, जो राज्य के 12,584 युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
15) सरकार ने उद्यमिता को बढ़ावा देते हुए ₹680 करोड़ की राजीव गांधी स्वरोजगार स्टार्ट-अप योजना शुरू की है। पहले चरण में एक इलेक्ट्रिक टैक्सी के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी भी प्रदान की जाएगी।
16) मनरेगा के तहत, राज्य सरकार ने सामान्य क्षेत्रों में मजदूरों की दैनिक मजदूरी ₹224 से बढ़ाकर ₹240 और आदिवासी क्षेत्रों में ₹280 से बढ़ाकर ₹294 कर दी है, जो श्रम बल के कल्याण और समृद्धि के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
17) अपने नागरिकों के प्रति राज्य सरकार का अटूट समर्पण “सरकार गांव के द्वार” पहल के माध्यम से उजागर होता है, जहां मंत्री और विधायक सक्रिय रूप से समुदायों के साथ जुड़कर उनकी चिंताओं को संबोधित करते हैं।
18) तहसील और उप-तहसील स्तरों पर अभूतपूर्व “राजस्व लोक अदालतों” ने 6,500 से अधिक विभाजन और उत्परिवर्तन मामलों को सफलतापूर्वक निपटाया है। ये परिवर्तनकारी प्रयास संयोजकता को बढ़ावा देने और लोगों के घर पर शिकायतों को तुरंत हल करने की सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं, जो जिम्मेदार नियंत्रण के एक नए युग का प्रतीक है।
19) इसके अतिरिक्त, सरकार आई.टी.आई. और पॉलिटेक्निक संस्थानों में ड्रोन मैकेनिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अन्य नए युग के पाठ्यक्रम जैसे अत्याधुनिक कार्यक्रम आरंभ कर रही है। ये पहल शैक्षिक संवर्धन में एक परिवर्तनकारी युग की शुरुआत करती है, जो एक गतिशील और समावेशी शिक्षण वातावरण स्थापित करने के लिए राज्य सरकार के समर्पण को प्रदर्शित करती है।
20) सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में, मेडिकल कॉलेजों में रोबोटिक सर्जरी की अग्रणी शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण ₹100 करोड़ आवंटित किए गए हैं। स्वास्थ्य संस्थानों को मॉडल स्वास्थ्य संस्थानों में बदलना और 50 निर्वाचन क्षेत्रों में से प्रत्येक में छह चिकित्सा विशेषज्ञों को तैनात करना स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच को प्राथमिकता देता है।

2.राज्य आय - दीर्घकालीन आर्थिक अवलोकन

सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अनुमान है, जिसे एक निर्दिष्ट अवधि के दौरान दोहराव के बिना गिना जाता है, जिसके सामान्यता एक वर्ष की अवधि रहती है। अर्थव्यवस्था के ये अनुमान, समय के साथ, आर्थिक विकास के स्तर में परिवर्तन की सीमा और दिशा को प्रकट करते हैं और समग्र अर्थव्यवस्था के प्रति विभिन्न क्षेत्रों के प्रदर्शन को भी प्रकट करते हैं। संक्षेप में, ये राज्य घरेलू उत्पाद अनुमान विभिन्न हस्तक्षेपों द्वारा, किए गए निवेशों और राज्य में आर्थिक विकास की दिशा में खुले अवसरों से प्राप्त परिणामों की एक व्यापक तस्वीर प्रदान करते हैं। राज्य घरेलू उत्पाद की विकास दर को एक समय अवधि में राज्य की अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन स्तर और परिमाण कहा जाता है। जी.एस.डी.पी. आमतौर पर राज्य की आय के रूप में जाना जाता है जो राज्य के आर्थिक विकास को मापने के लिए महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक है। राज्य के नियोजित आर्थिक विकास के संदर्भ में, राज्य आय और प्रति व्यक्ति आय (पी.सी.आई.) प्रशासकों, नीति निर्माताओं और योजनाकारों द्वारा नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रचलित और स्थिर (2011-12) भावों पर जी.एस.डी.पी.: अग्रिम अनुमानों (अ.अ.) के अनुसार, वित्तीय वर्ष (वि.व.) 2023-24 के लिए प्रचलित भावों पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद ₹2,07,430 करोड़ होने का अनुमान है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह ₹1,91,728 करोड़ था जोकि वर्ष 2022-23 में 11.4 प्रतिशत वृद्धि दर की तुलना में वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर प्रदर्शित करता अ.अ.के अनुसार, वर्ष 2023-24 के लिए स्थिर (2011-12) भावों या वास्तविक जी.एस.डी.पी. ₹1,42,800 करोड़ अनुमानित है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में यह ₹1,33,372 करोड़ थी और यह वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) के 6.9 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2023-24 के लिए 7.1 प्रतिशत वृद्धि दर प्रदर्शित करता है। वर्षवार विवरण चित्र 2.1 और 2.2 में दर्शाया गया है।
राज्य घरेलू उत्पाद का अनुमान, जब राज्य की कुल जनसंख्या के संबंध में अध्ययन किया जाता है, तो उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के प्रति व्यक्ति शुद्ध उत्पादन के स्तर को इंगित करता है। प्रति व्यक्ति आय संबंधित वर्ष में राज्य की अर्धवार्षिक जनसंख्या द्वारा शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद को विभाजित करके प्राप्त की जाती है। अग्रिम अनुमानों के अनुसार, प्रचलित भावों पर (पी.सी.आई.) 2022-23 में ₹2,18,788 के मुकाबले वित्त वर्ष 2023-24(अ.अ.) के लिए ₹2,35,199 अनुमानित है, जो वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) में 11.7 प्रतिशत की तुलना में 2023-24 में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य की पी.सी.आई भारत की आय से अधिक रही है। राज्य के पी.सी.आई. में 2011-12 में ₹87,721 से 2023-24 में ₹2,35,199 की तेजी से वृद्धि हुई है, जो 2011-12 की तुलना में 7.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सी.ए.जी.आर.) दर्ज करती है। वर्ष 2011-12 में भारत की पी.सी.आई. ₹63,462 थी, जो वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर ₹1,85,854 हो गयी है, जो 2011-12 की तुलना में 8.6 प्रतिशत की सी.ए.जी.आर. दर्ज करती है। इसका तात्पर्य यह है कि राज्य की पी.सी.आई. की सी.ए.जी.आर भारत की पी.सी.आई. से कम रही। भारत की तुलना में हिमाचल प्रदेश की पी.सी.आई और प्रचलित भावों पर उनकी वृद्धि के रुझान क्रमशः चित्र 2.3 और 2.4 में दर्शाए गए हैं।
कार्य की प्रकृति के आधार पर अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण चित्र 2.5 में प्रस्तुत किया गया है। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र की विकास दर को मूल भावों पर जी.वी.ए. के संदर्भ में मापा जाता है। मूल कीमत को निर्माता की कीमत के रूप में समझा जा सकता है।
इन क्षेत्रों के घटक प) प्राथमिक क्षेत्रः इस क्षेत्र में शामिल हैं; फसल पशुधन; वानिकी और लॉगिंग; मतस्य पालन; और खनन और उत्खनन। (पप) द्वितीयक क्षेत्रः यह क्षेत्र में शामिल हैं जैसे विनिर्माण, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगी सेवाएं; और निर्माण। (पपप) तृतीयक क्षेत्रः इस क्षेत्र शामिल हैं, जैसे व्यापार और मरम्मत सेवाएं; होटल और रेस्टोरेंट; परिवहन, रेलवे, सड़क, जल, वायु और परिवहन के लिए प्रासंगिक सेवाओं सहित; भंडारण; संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाएं; वित्तीय सेवाएं; रियल एस्टेट, आवास और व्यावसायिक सेवाओं का स्वामित्व; लोक प्रशासन; और अन्य सेवाएं।
1) प्राथमिक क्षेत्र: वित वर्ष 2023-24 (अ.अ.) में फसल क्षेत्र में संकुचन के कारण प्राथमिक क्षेत्र से सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए) में स्थिर कीमतों पर -2.2 प्रतिशत की दर से संकुचन होने की संभावना है। वित्त वर्ष 2023-24 (अ.अ.) के दौरान प्राथमिक क्षेत्र का जी.वी.ए. स्थिर भावों पर 2022-23 (प्र.स.अ.) में ₹17,417 करोड़ के मुकाबले ₹17,036 करोड़ हो गया। (चित्र 2.6 देखें)
स्थिर भावों पर जी.वी.ए. में प्राथमिक क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2021-22, वित्त वर्ष 2022-23 और वित्त वर्ष 2023-24 में क्रमशः 4.6 प्रतिशत, 5.7 प्रतिशत और -2.2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की। यह उल्लेखनीय है कि राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले प्राथमिक क्षेत्र राज्य की 58.71 प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार देते हैं। इसलिए, हिमाचल प्रदेश में जीवन स्तर में सुधार के लिए इसकी आर्थिक सफलता महत्वपूर्ण है।
वित्त वर्ष 2023-24 (अ.अ.) के अनुसार फसल क्षेत्र का जी.वी.ए. वास्तविक रूप से -6.5 प्रतिशत के संकुचन के साथ वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) में ₹9,138 करोड़ रुपये के मुकाबले ₹8,540 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वास्तविक रूप से वित्त वर्ष 2023-24 (अ.अ.) के लिए वानिकी और लॉगिंग क्षेत्र का जी.वी.ए. 1.6 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) में ₹5,296 करोड़ रुपये की तुलना में ₹5,380 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2023-24 (अ.अ.) में पशुधन क्षेत्र में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि, मत्स्य क्षेत्र में 7.0 प्रतिशत की वृद्धि और खनन और उत्खनन क्षेत्र में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। प्राथमिक क्षेत्र और इसके उप-क्षेत्र के वृद्धि के रुझान और स्थिर भावों पर जी.वी.ए. नीचे सारणी 2.1 में दर्शाए गए हैं।

2) द्वितीयक क्षेत्र: वित्त वर्ष 2023-24 के लिए अ.अ. के अनुसार, स्थिर (2011-12) भावों पर द्वितीयक क्षेत्र का जी.वी.ए. ₹63,424 करोड़ अनुमानित है जोकि वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) के लिए ₹58,039 करोड़ था और पिछले वर्ष की तुलना में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होने की उम्मीद है। (चित्र 2.7)
वर्ष 2023-24 के लिए अ.अ. के अनुसार, स्थिर (2011-12) भावों पर विनिर्माण क्षेत्र में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होने की उम्मीद है और 2022-23 (प्र.स.अ.) में ₹40,261 करोड़ की तुलना में 2023-24 में ₹43,829 करोड़ होने का अनुमान है। है। बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाएँ क्षेत्र ने 6.7 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर दर्ज की है। निर्माण क्षेत्र में 12.9 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होने की उम्मीद है और 2023-24 में 11,284 करोड़ रहने का अनुमान है, जबकि 2022-23 (प्र.स.अ.) में यह ₹ 9,992 करोड़ था, जैसा कि सारणी 2.2 में दिखाया गया है।

3) तृतीयक या सेवा क्षेत्र: राज्य में सेवा क्षेत्र का जी.एस.वी.ए. और रोजगार में सबसे अधिक योगदान है। वित्तीय वर्ष 2023-24 (अ.अ.) के लिए सेवा क्षेत्र के लिए स्थिर (2011-12) भावों पर ₹54,253 करोड़ अनुमानित है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 (प्र.स.अ.) में यह ₹50,520 करोड़ था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7.4 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्शाता है। (चित्र 2.8)
सेवा क्षेत्र के सभी प्रमुख उप-क्षेत्रों ने हिमाचल प्रदेश में 2021-22 (द्वि.स.अ.) और 2023-24 (अ.अ.) में तीव्र वृद्धि दर को दर्शाया है। ष्व्यापार, मुरम्मत, होटल और रेस्तरांष् क्षेत्र का जीवीए 2022-23 में 4.8 प्रतिशत और 2023-24 में 8.4 प्रतिशत की दर से बढ़ा। 2023-24 (अ.अ.) में ष्परिवहन, भंडारण, संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाओंष् में 11.4 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई और ष्रियल एस्टेट, आवास का स्वामित्व और व्यावसायिक सेवाओंष् में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सारणी 2.3 2019-20 से 2023-24 तक सेवा क्षेत्र के भीतर विभिन्न उप-क्षेत्रों की वृद्धि को दर्शाती है।
किसी भी राज्य का जी.एस.डी.पी. तीन प्रमुख क्षेत्रों-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक द्वारा किए गए आर्थिक योगदान के संदर्भ में मापा जाता है। राज्य के सकल राज्य मूल्य वर्धित (जी.एस.वी.ए.) में तृतीयक क्षेत्र का सबसे अधिक योगदान रहा है, इसके बाद द्वितीयक और प्राथमिक क्षेत्रों का स्थान है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए जी.एस.वी.ए. के अ.अ. के आधार पर, तृतीयक क्षेत्र का प्रचलित मूल्यों पर राज्य के जी.एस.वी.ए. में 43.5 प्रतिशत हिस्सा है, इसके बाद द्वितीयक क्षेत्र का 42.4 प्रतिशत और प्राथमिक क्षेत्र का 14.1 प्रतिशत है ।
राज्य में द्वितीयक क्षेत्र बहुत जीवंत है। हिमाचल प्रदेश सरकार मानती है कि रोजगार सृजन और अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए औद्योगिक विकास महत्वपूर्ण है। इसने औद्योगिक क्षेत्र के सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए हैं। औद्योगिक क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में सरकार द्वारा किए जा रहे निवेश का सकारात्मक प्रभाव आने वाले कुछ वर्षों में दिखने लगेगा और आने वाले कई वर्षों तक लाभ मिलता रहेगा।
राज्य के अतिरिक्त मूल्य में तृतीयक क्षेत्र का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है और इसलिए, राज्य की अर्थव्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। राज्य के वास्तविक जी.एस.वी.ए. में इसकी हिस्सेदारी 2018-19 में 42.0 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 43.5 प्रतिशत हो गई (चित्र 2.10)।
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए अ.अ. के अनुसार, प्राथमिक क्षेत्र से सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) प्रचलित भावों पर ₹27,147 करोड़, द्वितीयक क्षेत्र ₹81,968 करोड़, जबकि सेवा क्षेत्र ₹84,005 करोड़ अनुमानित है। (सारणी 2.4)
हिमाचल प्रदेश में अर्थव्यवस्था और कार्यबल की संरचना स्पष्ट रूप से शेष भारत में अर्थव्यवस्था और कार्यबल की संरचना से अलग है। भारत के 45.76 प्रतिशत की तुलना में कृषि और संबद्ध गतिविधियों में हिमाचल प्रदेश के कुल कार्यबल का 58.37 प्रतिशत कार्यरत है और भारत में 18.97 प्रतिशत की तुलना में जी.वी.ए. में इसकी हिस्सेदारी 13.57 प्रतिशत है (सारणी 2.5) ।
द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में कार्यरत, कार्यबल की हिस्सेदारी (क्रमशः 16.94 और 24.35 प्रतिशत) जी.वी.ए. (41.98 और 44.08) की हिस्सेदारी से कम है, जिसका अर्थ है कि कम श्रमिक जी.वी.ए. में अधिक योगदान दे रहे हैं जो कृषि से कार्यबल के पुनः आवंटन की संभावना को दर्शाता है। कृषि से कार्यबल द्वितीयक क्षेत्र में पुनः आवंटन से प्राथमिक क्षेत्र में छिपी बेरोजगारी कम हो जाएगी।
हिमाचल के संदर्भ में, सेवा क्षेत्र न केवल जी.एस.डी.प.ी में योगदान के मामले में बल्कि रोजगार सृजन के लिए एक प्रमुख माध्यम के रूप में भी अति महत्वपूर्ण हो गया है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) अनुमान के अनुसार 2022-23 में राज्य में सेवा क्षेत्र में रोजगार 24.35 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि भारत के लिए यह 28.94 प्रतिशत था। मूल्यवर्धित और रोजगार के वितरण की क्षेत्रवार तुलना नीचे सारणी 2.5 में दी गई है।
वर्ष 2011-12 से 2023-24 तक हिमाचल प्रदेश और भारत के प्रचलित और स्थिर (2011-12) भावों पर सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान नीचे सारणी 2.6 में दिया गया हैै।
हिमाचल प्रदेश में आर्थिक विकास के एक संक्षिप्त विश्लेषण से पता चलता है कि राज्य ने भारत की विकास दर के साथ कदम रखा है जैसा कि नीचे सारणी 2.7 में दिखाया गया है।

3.सार्वजनिक वित्त एवं कराधान

सरकार के विभिन्न सरकारी और अर्ध-सरकारी संस्थानों के माध्यम से राजस्व, व्यय और ऋण का प्रबंधन है। सार्वजनिक वित्त राज्य के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत कर योग्य संस्थाओं से सरकार द्वारा करों के संग्रह से संबंधित है और सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन और वितरण के लिए कर प्राप्तियों का उपयोग करता है। कर संग्रह, संसाधन निर्माण, संसाधन आवंटन और व्यय प्रबंधन सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली के मुख्य घटक हैं।
पहाड़ी राज्य होने के नाते हिमाचल प्रदेश को किसी भी अन्य राज्य की तुलना में विकास के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पडता है, अन्य राज्यों की तुलना में हिमाचल प्रदेश में विकास लागत काफी अधिक है। गैर-विकासात्मक कार्यों और विकासात्मक उद्देश्यों के लिए धन जुटाना एक मुख्य चिंता का विषय बना हुआ है। इन सभी चुनौतियों के बावजूद राज्य भारत के छोटे राज्यों के बीच कई विकासात्मक सूचकांकों में शीर्ष पर रहा है।
राज्य के कोष किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सतत विकास के लिए भौतिक और मानव पूंजी निर्माण पर व्यय एक पूर्वापेक्षा है। भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद, राज्य अपने सीमित वित्तीय संसाधनों को अर्थव्यवस्था की विकासात्मक आवश्यकताओं की ओर उन्मुख कर रहा है। हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में राज्य की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जहां मानव बस्तियां मैदानी बस्तियों की तरह नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश अन्य मैदानी क्षेत्र के राज्यों की तुलना में अधिक कीमत पर पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करता है। इसी प्रकार सड़क और संचार बुनियादी ढांचे पर और भी अधिक लागत आती है।
वित्तीय रूपरेखा में मोटे तौर पर राज्य की प्राप्तियां, व्यय और ऋण शामिल होते हैं। राज्य सरकार की प्राप्तियों में विभिन्न स्रोतों से राजस्व प्राप्तियाँ और पूँजीगत प्राप्तियाँ शामिल होती हैं, जबकि सार्वजनिक व्यय में राजस्व और पूँजी परिव्यय शामिल होते हैं। ऋण राज्य की वित्तीय रूपरेखा का एक महत्वपूर्ण घटक बना हुआ है। राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 के अनुसार सभी राज्य सरकारों को अपने संसाधनों और विकास के अनुसार अपने वित्त का प्रबंधन करना पड़ता है।
राज्य के राजकोषीय संकेतक- राज्य सरकार प्रशासनिक और विकासात्मक गतिविधियों के लिए व्यय को पूरा करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों, गैर-कर राजस्व, केंद्रीय करों के हिस्से और केंद्र सरकार से सहायता अनुदान के माध्यम से वित्तीय संसाधन जुटाती है। वित्तीय वर्ष 2022-23(सं.अ.) और 2023-24(ब.अ.) के लिए राज्य के प्रमुख राजकोषीय संकेतांक नीचे दिए गए हैंः

क) कर राजस्व: सारणी 3.1 में दर्शाए गए वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट अनुमान (ब.अ.) के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 (स.अ.ं) में ₹18,750 करोड़ की तुलना में कर राजस्व (केंद्रीय करों सहित) ₹21,504 करोड़ अनुमानित था जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में यह ₹12,301 था।
चित्र 3.1 कुल प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में कर राजस्व के घटकों को दर्शाता है।
कुल प्राप्तियों में राज्य का स्वयं-कर राजस्व का प्रतिशत वित्त वर्ष 2021-22 (वा.) में 20.7 से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) में 25.1 हो गया है। कुल प्राप्तियों में केंद्रीय करों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2021-22 (वा.) में 15.7 से मामूली वृद्धि के साथ वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) में 16.3 हो गई है।
ख) गैर-कर राजस्व- गैर-कर राजस्व में मुख्य रूप से ऋणों पर ब्याज प्राप्तियां, बिजली की बिक्री से प्राप्तियां, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से लाभांश और लाभ और लोक सेवा आयोग द्वारा प्रदान की गई सेवाओं सहित सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं से प्राप्तियां, स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक सेवाओं के रूप में सामाजिक सेवाएं शामिल हैं। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) में गैर-कर राजस्व बढ़कर ₹3,447 करोड़ होने की संभावना है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23(सं.अ.) में ₹3,023 करोड़ है, जो 14.02 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियों के गैर-कर राजस्व प्राप्तियों वाले घटक में आर्थिक सेवाओं का योगदान सबसे अधिक है। चित्र 3.2 कुल प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में गैर-कर राजस्व के घटकों को दर्शाता है।
आर्थिक सेवाओं में जिसमें बिजली, गैस और पानी की आपूर्ति शामिल है राज्य के गैर-कर राजस्व का लगातार उच्चतम प्रतिशत है जबकि सामान्य सेवाएं और ब्याज प्राप्तियां, लाभांश और मुनाफा राज्य की गैर-कर राजस्व प्राप्तियों में सबसे कम योगदान करती है।
ग) सहायता अनुदान: सहायता अनुदान वित्त वर्ष 2022-23 (सं.अ.) में ₹17,172 की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) में घटकर ₹13,049 हो गया है। चित्र 3.3 कुल प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में सहायता अनुदान को दर्शाता है।
सहायता अनुदान वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) के दौरान 25.2 प्रतिशत का योगदान देने वाली कुल प्राप्तियों का उच्चतम प्रतिशत है, जो वित्त वर्ष 2021-22 (वा.) की तुलना में 12.4 प्रतिशत अंक कम है।
घ) गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां- गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियों में ऋणों और अग्रिमों की वसूली और विनिवेश प्राप्तियां शामिल होती हैं। वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) के बजट अनुमान में ऋण की वसूली के रूप में ₹26.00 करोड़ और विनिवेश से कोई आय नहीं होने की परिकल्पना की गई है।
राज्य के प्रमुख राजकोषीय संकेतकों की वृद्धि: सारणी 3.2 से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) में, कर राजस्व में 14.69 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि हुई है, इसके बाद गैर-कर राजस्व में 14.02 प्रतिशत का अनुमान है। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के दौरान कुल व्यय, राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय में क्रमशः 15.04, 5.35 और 17.57 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2021-22(वा.) में 4.23 प्रतिशत की गिरावट की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) में सहायता अनुदान में 24.01 प्रतिशत की उच्चतम गिरावट देखी गई है।

राजकोषीय संकेतकों का जी.एस.डी.पी. प्रतिशत- बजट अनुमान के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) के लिए सरकार की राजस्व प्राप्तियां वित्त वर्ष 2022-23 (सं.अ.) के 20.31 प्रतिशत की तुलना में जी.एस.डी.पी. के 18.32 प्रतिशत अनुमानित थीं। इसी तरह, वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) के लिए कर राजस्व 2022-23 (सं.अ.) के दौरान 9.78 प्रतिशत की तुलना में जी.एस.डी.पी. का 10.37 प्रतिशत अनुमानित था। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) में गैर-कर राजस्व जी.एस.डी.पी. का 1.66 प्रतिशत है, जबकि 2022-23 (सं.अ.) के दौरान यह 1.58 प्रतिशत था। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) में राज्य का कुल व्यय जी.एस.डी.पी. का 25.75 प्रतिशत रहने का अनुमान है। राजस्व व्यय 20.59 प्रतिशत है जबकि पूंजीगत व्यय जी.एस.डी.पी. का 2.51 प्रतिशत होगा। सारणी 3.3 जी.एस.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय संकेतक दिखाती है।

सरकारी व्यय- राजस्व और पूंजीगत व्यय सरकारी व्यय के मुख्य घटक हैं। चित्र 3.4 से पता चलता है कि वर्ष 2023-24(ब.अ.) में कुल व्यय का 79.95 प्रतिशत राजस्व व्यय होने का अनुमान था, जबकि इसी वर्ष के लिए पूंजीगत व्यय का अनुमान 9.74 प्रतिशत था। विस्तृत व्यय क्रमशः सारणी 3.1, 3.2 और 3.3 में प्रस्तुत किए गए हैं। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के बजट अनुमान के अनुसार, राज्य सरकार का कुल व्यय ₹53,413 करोड़ होने का अनुमान था, जिसमें से ₹42,704 करोड़ राजस्व व्यय के लिए निर्धारित किए गए थे।
हैं। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के बजट अनुमान के अनुसार, राज्य सरकार का कुल व्यय ₹53,413 करोड़ होने का अनुमान था, जिसमें से ₹42,704 करोड़ राजस्व व्यय के लिए निर्धारित किए गए थे।

क) राजस्व व्यय- बजट अनुमान वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के लिए राजस्व व्यय ₹42,704 करोड़ है जो की वित्त वर्ष 2021-22(वा.) के लिए ₹36,195 करोड़ की तुलना में 18 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्शाता है। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के लिए राजस्व व्यय जी.एस.डी.पी. का 20.59 प्रतिशत अनुमानित है।
ख) पूंजीगत व्यय - वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के लिए पूंजीगत व्यय ₹5,202 करोड़ है, जो की जी.एस.डी.पी. का 2.51 प्रतिशत है, जबकि इसकी तुलना में वित्त वर्ष 2022-23(सं.अ.) के लिए ₹6,311 करोड़ के साथ 17.57 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्शाता है और यह 2023-24(ब.अ.) के दौरान कुल व्यय का 9.74 प्रतिशत है।
राजस्व व्यय की संरचना- सरकार अपने खर्च का बड़ा हिस्सा राजस्व व्यय पर खर्च करती है। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के दौरान कुल बजट व्यय का 79.95 प्रतिशत राजस्व व्यय पर खर्च होने का अनुमान है। राजस्व व्यय की संरचना नीचे सारणी 3.4 में दी गई है जो दर्शाती है कि वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) में कुल व्यय का 57 प्रतिशत प्रतिबद्ध व्यय पर होने की संभावना है जिसमें वेतन पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी शामिल है। वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर व्यय मूल रूप से एक प्रतिबद्ध व्यय है और यह अतिरिक्त राजकोषीय स्थान के निर्माण के लिए सीमित स्थान है। कुल प्रतिबद्ध व्यय ₹30,400 करोड़ है जो वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के लिए जी.एस.डी.पी. का 14.66 प्रतिशत है।
सारणी 3.5 दर्शाती है कि वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) के दौरान वेतन और मजदूरी पर व्यय में वृद्धि वित्त वर्ष 2022-23 (स.अ.) में 25.78 प्रतिशत की तुलना में 0.44 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2023-24(ब.अ.) में पेंशन व्यय में 3.95 प्रतिशत की कमी होने की उम्मीद है, जबकि पिछले वर्ष में 41.45 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। वित्त वर्ष 2022-23 (स.अ.) में ब्याज भुगतान में वृद्धि 3.10 प्रतिशत थी जो वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) में 16.25 प्रतिशत होने की संभावना है। वित्त वर्ष 2023-24 (ब.अ.) में सब्सिडी व्यय में नकारात्मक वृद्धि 34.79 प्रतिशत होने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यह 60.60 प्रतिशत थी।
राज्य का ऋण उसके वित्तीय स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। राज्य की वित्तीय विवेकशीलता उसके ऋण और उसकी चुकाने की क्षमता पर निर्भर करती है। सारणी 3.6 से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2021-22 में जी.एस.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में ऋण 37.02 प्रतिशत रहा, जबकि 2020-21 में यह 40.23 प्रतिशत था।
इसमें लैंगिक दृष्टिकोण से बजट का विश्लेषण करना, बजट प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में लैंगिक दृष्टिकोण को एकीकृत करना, और लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए राजस्व और व्यय को पुनर्गठित करना शामिल है। संक्षेप में, जेंडर बजटिंग दीर्घकालिक उद्देश्य की पूर्ती के लिए एक कार्य योजना और प्रक्रिया है।
महिलाएं जेंडर बजट की प्रमुख हितधारक हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग जेंडर बजट का नोडल विभाग है जो लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए उत्तरदाई है। स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रम और रोजगार, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से सक्षम आदि के सशक्तिकरण सहित विभाग, जो मुख्य रूप से लैंगिक-संवेदनशील कार्यक्रम चलाते हैं। जेंडर बजट व्यय नीचे सारणी 3.7 में दिखाया गया है, जिसमें श्रेणी-1 दिखा रहा है कि बजट का 100 प्रतिशत महिला-विशिष्ट कार्यक्रमों पर खर्च किया गया है और श्रेणी-2 यह दर्शाता है कि महिलाओं पर 100 प्रतिशत से कम खर्च किया गया है।
अनुसंधान और प्रयोगात्मक विकास में मानव जाति, संस्कृति और समाज के ज्ञान के भंडार को बढ़ाने और उपलब्ध ज्ञान के नए अनुप्रयोगों को तैयार करने के लिए किए गए रचनात्मक और व्यवस्थित कार्य शामिल हैं। अनुसंधान और विकास (आर.एंड.डी.) पर सरकारी खर्च की भूमिका से प्रौद्योगिकी और नवाचार में सफलता मिल सकती है, जिससे दक्षता और उत्पादकता में सुधार हो सकता है और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
देश में अनुसंधान एवं विकास (जी.ई.आर.डी.) पर सकल व्यय पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ रहा है और 2010-11 में ₹60,196.75 करोड़ व 2020-21 में दोगुना से अधिक बढ़कर ₹127,380.96 करोड़ हो गया है। सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का जी.ई.आर.डी. वर्ष 2019-20 और 2020-21 के दौरान क्रमशः 0.66 प्रतिशत और 0.64 प्रतिशत पर रहा। भारत का प्रति व्यक्ति आर.एंड.डी व्यय 2007-08 में वर्तमान क्रय शक्ति समता (पी.पी.पी.) $29.2 से बढ़कर 2020-21 में वर्तमान पी.पी.पी. $42.0 हो गया है।
जी.ई.आर.डी. मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र द्वारा संचालित होता है जिसमें केंद्र सरकार का 2020-21 में (43.7 प्रतिशत), राज्य सरकारें (6.7 प्रतिशत), उच्च शिक्षा (8.8 प्रतिशत) और सार्वजनिक क्षेत्र उद्योग (4.4 प्रतिशत) शामिल हैं, जिसमें निजी क्षेत्र उद्योग का योगदान 36.4 प्रतिशत है।
अधिकांश विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में, जी.ई.आर.डी. में व्यावसायिक उद्यमों की भागीदारी आम तौर पर 50 प्रतिशत से अधिक है। वास्तव में, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका के लिए यह 70 प्रतिशत से अधिक है। उच्च शिक्षा क्षेत्र सहित सरकार द्वारा जी.ई.आर.डी. में 59 प्रतिशत भागीदारी के साथ भारत विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ खड़ा है।
विज्ञान और इंजीनियरिंग (एस.एंड.ई.) संकेतक, 2022, राष्ट्रीय विज्ञान संस्था (एन.एस.एफ.) के अनुसार, देश में कुल 40,813 डॉक्टरेट में से 24,474 (60.0 प्रतिशत) डॉक्टरेट 2018-19 के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस.एंड.टी.) विषयों से थे। एस.एंड.ई. में प्रदान की गई पी.एच.डी. की संख्या के मामले में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका (41,071) और चीन (39,768) के बाद तीसरे स्थान पर है।
अनुसंधान एवं विकास और नवाचार नए विचारों को विकसित करने और व्यावसायीकरण करने, नई प्रक्रियाओं को लागू करने या व्यवसाय में आय सृजन करने के तरीके को बदलने की प्रक्रिया है। यह व्यवसायों को लंबी अवधि के लिए प्रतिस्पर्धी और स्थायी बनाए रखने में मदद करता है।

राज्य में, राज्य के सरकारी संस्थान जेैसे हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (शिमला), इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (शिमला), डेंटल कॉलेज (शिमला), हिमालयन जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (पालमपुर), हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान (शिमला), गोविंद बल्लभ पंत संस्थान हिमालयी पर्यावरण और विकास (कुल्लू), राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (शिमला), केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (शिमला), भारतीय हिमालयी अध्ययन संस्थान (शिमला), जैव प्रौद्योगिकी और पर्यावरण विज्ञान संस्थान (हमीरपुर), ऊर्जा और संसाधन संस्थान (नई दिल्ली), केंद्र अनुसंधान संस्थान (सोलन), हिमाचल अनुसंधान संस्थान (हमीरपुर), आदि, और केंद्र सरकार के संस्थान, जेैसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मंडी), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (हमीरपुर), भारतीय प्रबंधन संस्थान (सिरमौर), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली), सैट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (चेन्नई) आदि अनुसंधान एवं विकास और नवाचार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
वर्ष 2021-22(वा.), 2022-23(सं.अ.) और 2023-24(ब.अ.) के लिए हिमाचल में विभागवार आर.एंड.डी. व्यय सारणी 3.8 में प्रस्तुत किया गया है। सारणी से यह स्पष्ट है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्रों में निवेश से अनुसंधान एवं विकास काफी प्रभावित है।
हिमाचल में उद्देश्यानुसार अनुसंधान एवं विकास व्यय सारणी 3.9 में प्रस्तुत किया गया है, जो दर्शाता है कि उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालय शिक्षा पर अनुसंधान एवं विकास व्यय सबसे अधिक होने की उम्मीद है जो 2021-22 (वा.), 2022-23 (स.अ.) और 2023-24 (ब.अ.) में क्रमशः ₹92,702 लाख, ₹1,27,293 लाख और ₹1,04,703 लाख है।
व्यय को राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। राजस्व व्यय आमतौर पर आसन्न और प्रतिबद्ध होता है। राजस्व व्यय का बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान, रखरखाव और सब्सिडी आदि पर खर्च किया जाता है। पूंजीगत व्यय पूंजीगत संपत्ति के निर्माण और केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर खर्च होता है। 2023-24 में राजस्व खाते पर आर.एंड.डी. ₹1,02,383 लाख है और पूंजी खाते पर ₹9,321 लाख है जो चित्र 3.5 में दिखाया गया हैः
जी.एस.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में आर.एंड.डी. व्यय और कुल व्यय को चित्र 3.6 में दिखाया गया है जो दर्शाता है कि 2023-24 में जी.एस.डी.पी. और कुल व्यय के प्रतिशत के रूप में आर.एंड.डी. क्रमशः 0.54 प्रतिशत और 2.09 प्रतिशत है।

4.बैंकिंग संस्थागत वित्त

हिमाचल प्रदेश में तीन बैंकों को लीड बैंक की जिम्मेदारी दी गई है जिसमें पंजाब नैशनल बैंक को जिला हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, मण्डी तथा ऊना में, यूको बैंक को जिला बिलासपुर, शिमला, सोलन तथा सिरमौर में तथा स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया को जिला चम्बा तथा लाहौल-स्पिति में यह कार्य आबंटित किया गया है। यूको बैंक राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एस.एल.बी.सी.) का संयोजक बैंक है। राज्य में कुल 2,292 बैंक शाखाओं के नेटवर्क में से 77 प्रतिशत से अधिक शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रही है। जनगणना 2011, के अनुसार प्रति शाखा औसत जनसंख्या 3,073 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 11,000 है। 4 आउटलैट के साथ भारतीय डाक पेमेंट बैंक, विŸाीय समावेशन नेटवर्क और संचालन (फिनो) पेमेंट बैंक, एअरटेल पेमेंट बैंक, पेटीएम पेमेंट बैंक शामिल हैं। राज्य में विभिन्न बैंक शाखाओं का विवरण नीचे सारणी-4.1 में दर्शाया गया है।
जिला-वार बैंक शाखाओं के प्रसार के संदर्भ में कांगड़ा जिले में सबसे अधिक 425 बैंक शाखाएं तथा लाहौल स्पिति में सबसे कम 26 बैंक शाखाएं हैं। बैंकों द्वारा दूर दराज के क्षेत्रों में जहां ढांचा आधारित शाखाएं आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं, बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने हेतु व्यापार संवाददाता प्रतिनिध्ाि (जिन्हें ’बैंक मित्र‘ के रूप में जाना जाता है) को तैनात किया है। वर्तमान में राज्य में गांवों में मूलभूत बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा 12,243 बैंक मित्र तैनात किए गए हैं। राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के रुप में पी.एन.बी. बैंक, एस.बी.आई. बैंक, यूको बैंक, केनरा बैंक, सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक और बैंक ऑफ बड़़ौदा के पूर्ण विकसित नियंत्रण कार्यालय अर्थात क्षेत्रीय कार्यालय/अचंल कार्यालय/सर्कल कार्यालय हैं। भारतीय रिजर्व बैंक का क्षेत्रीय कार्यालय क्षेत्रीय निदेशक की अध्यक्षता में तथा नाबार्ड का भी क्षेत्रीय कार्यालय मुख्य महाप्रबन्धक की अध्यक्षता में शिमला में स्थित है। राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने के लिए बैंक भागीदार के रूप में ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। ऋण का प्रवाह सभी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में बढ़ाया गया है। सितम्बर, 2023 तक राज्य के बैंकों ने आर.बी.आई. द्वारा तय सात में से पांच राष्ट्रीय मानकों को प्राप्त किया है जिसमें प्राथमिक क्षेत्र में कृषि क्षेत्र, लघु तथा सीमान्त किसान, लघु उद्योग, कमजोर वर्ग तथा महिलाओं को ऋण उपलब्ध करवाया है। वर्तमान में बैंकों द्वारा प्राथमिक क्षेत्र की गतिविधियों अर्थात कृषि, एम.एस.एम.ई. शिक्षा ऋण, आवास ऋण, माइक्रो क्रेडिट आदि के लिए कुल ऋण का 60.18 प्रतिशत ऋण दिया गया है। बैंकों द्वारा दिए गए कुल ऋण में से सितम्बर, 2023 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 18 प्रतिशत के राष्ट्रीय मानक की तुलना में 17.48 प्रतिशत कृषि ऋण प्रदान किए है। बैंको द्वारा कुल ऋण में कमजोर वर्गांे तथा महिलाओं का क्रमशः 18.79 प्रतिशत तथा 12.13 प्रतिशत अग्रिम राशि का भाग है, जोकि राष्ट्रीय मानकों के अनुसार क्रमशः 11 प्रतिशत तथा 5 प्रतिशत होनी चाहिए। सितम्बर, 2023 तक राज्य में बैंकों का ऋण जमा अनुपात 44.03 प्रतिशत रहा। राष्ट्रीय मानकों की स्थिति नीचे सारणी 4.2 में दर्शाई गई है।
वित्तीय समावेश हमारे समाज के छुटे हुए वर्गों और कम आय वाले समूहों के लिए सस्ती दर पर वित्तीय सेवाओं और उत्पादों के प्रावध्ाान को दर्शाता है। भारत सरकार द्वारा वित्तीय समावेश व्यापक अभियान के अन्तर्गत “प्रधानमन्त्री जन-धन योजना” सात वर्षों से अधिक समय से राज्य के आर्थिक विकास के लिए चल रही है और इसके अन्तर्गत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं, छोटे और सीमांत किसानों और मज़दूरों सहित समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए कई पहलें की जा रही हैं।
प्रधानमन्त्री जन-धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.)- बैंकों द्वारा राज्य में प्रत्येक घर में कम से कम एक बुनियादी बचत जमा(बी.एस.बी.डी.ए.) खाते के साथ समस्त परिवारों को सम्मिलित किया गया है। बैंकों द्वारा इस योजना के अन्तर्गत कुल 18.30 लाख खाते सितम्बर, 2023 तक खोले गए है। इन खातों में से 16.38 लाख बुनियादी बचत जमा खातेे ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 1.92 लाख शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं। राज्य में बैंकों द्वारा पी.एम.जे.डी.वाई. खाताधारकों को 12.67 लाख रूपे डेबिट कार्ड जारी किए गए, जोकि पी.एम.जे.डी.वाई. के अन्तर्गत खोले गए खातों का 69 प्रतिशत है। सितम्बर, 2023 तक बैंकों द्वारा 80 प्रतिशत पी.एम.जे.डी.वाई. खातों को आधार संख्या तथा मोबाइल नंबर के साथ जोड़ने की पहल की जा चुकी है।
प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के अन्तर्गत सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा पहल- प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के कार्यान्वयन के अन्तर्गत भारत सरकार ने तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को शुरू किया है। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की वर्तमान स्थिति निम्नलिखित हैः
1) पद्ध प्रधानमन्त्री सुरक्षा बीमा योजना (पी.एम.एस.बी.वाई.)- इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्ष से 70 वर्ष के आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को प्रति वर्ष ₹20.00 के प्रीमियम से प्रति ग्राहक को एक वर्ष के नवीनीकरण पर आकस्मिक मृत्यु सह दिव्यांगता के लिए ₹2.00 लाख (आंशिक स्थायी दिव्यांगता के लिए ₹1.00 लाख) प्रदान किए जाते हैं तथा इसे हर वर्ष 1 जून को नवीनीकरण किया जाता है। प्रधानमन्त्री सुरक्षा बीमा योजना के अन्तर्गत सितम्बर, 2023 तक बैंकों ने 23.96 लाख ग्राहकों को जोड़ा है।
2) पपद्ध प्रधान मन्त्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पी.एम.जे.जे.बी.वाई.)- इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्ष से 50 वर्ष के आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को बैंक प्रति वर्ष ₹436.00 के प्रीमियम से प्रति ग्राहक को एक वर्ष के नवीनीकरण पर किसी भी कारण से हुई मृत्यु पर ₹2.00 लाख प्रदान किए जाते हैं तथा हर वर्ष 1 जून को नवीनीकरण होता है। सितम्बर, 2023 तक बैंकों में 8.21 लाख ग्राहकों को प्रधानमन्त्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पी.एम.जे.जे.बी.वाई.) के अन्तर्गत जोड़ा है।
3) पपपद्ध अटल पेंशन योजना (ए.पी.वाई.)- अटल पेंशन योजना असंगठित क्षेत्र पर केंद्रित है तथा इस योजना के अन्तर्गत ग्राहकों को 60 वर्ष की आयु पर ग्राहक के 18 वर्ष से 40 वर्ष के दौरान प्रवेश करने पर किए गए अंशदान के आधार पर न्यूनतम पेंशन ₹1,000, ₹2,000, ₹3,000, ₹4,000 और ₹5,000 प्रति माह उपलब्ध करवाई जाती हैे। इस प्रकार इस योजना के अन्तर्गत ग्राहक द्वारा 20 वर्ष या इससे अधिक की अवधि में अंशदान किया हो तो निर्धारित न्यूनतम पेंशन की गारंटी सरकार द्वारा दी जाती है। राज्य सरकार मनरेगा श्रमिकों, मिड-डे मील कार्यकर्ताओं, कृषि एवं बागवानी श्रमिकों तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अटल पेंशन योजना के अन्तर्गत लाने हेतु ध्यान दे रही है। इस योजना के अन्तर्गत बैंकों द्वारा जोरदार अभियानों, शिविरों, मीडिया प्रचार, प्रैस इत्यादि के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। ए.पी.वाई. के अर्न्तगत बैंकों द्वारा सितम्बर, 2023 तक 4.41 लाख ग्राहकों को नामांकित किया गया है। इसके अतिरिक्त ए.पी.वाई. योजना के अन्तर्गत डाक एवं तार विभाग भी भाग ले रहा है।
प्रधानमन्त्री मुद्रा योजना हिमाचल प्रदेश सहित देश भर में चल रही है। छोटे सूक्ष्म उद्यमों में मुख्य रूप से विनिर्माण, व्यापार और सेवाओं में गैर कृषि उद्यम शामिल हैं, जिनकी ़ऋण आवश्यकताएं ृ10.00 लाख से कम है और आय सृजन के लिए इस वर्ग को दिए सभी ऋणों को मुद्रा ऋण के रूप में जाना जाएगा। इस श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले सभी अग्रिम जो 8 अप्रैल, 2015 को या इसके बाद इस योजना के अधीन आए हो, को मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। बैंकों द्वारा हिमाचल प्रदेश में सितम्बर, 2023 तक चालू वित्त वर्ष 2023-24 में इस योजना के अन्तर्गत 40,451 नए लघु उद्यमियों को ृ957.96 करोड़ के नए ऋण स्वीकृत किए गए हैं। इस समयावधि को मिलाकर वितरित ऋण की कुल राशि ₹3,214.24 करोड़ है, जिसमें 1,85,950 उद्यमी शामिल हैं।
स्टैंड अप इंडिया योजना पूरे देश में औपचारिक रुप से शुरु की गई है जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं द्वारा प्रतिनिधित्व वाले समाज के सेवा से वंचित और उपेक्षित वर्गों में उद्यमशीलता की संस्कृति को प्रोत्साहित करना है। इस योजना के अन्तर्गत कम से कम एक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या एक महिला उधारकर्ता को विनिर्माण, व्यापार और सेवा क्षेत्र (इसे ग्रीन फील्ड उद्यम भी कहा जाता है) में एक नए उद्यम की स्थापना के लिए ृ10.00 लाख से लेकर ृ1.00 करोड़ के ऋण की बैंक द्वारा सुविधा दी जाती है। सितम्बर, 2023 तक इस योजना के अर्न्तगत बैंकों द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों को 361 नए उद्यमों को स्थापित करने के लिए ृ60.52 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अभियान, लक्षित जनसंख्या तक पहंुचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बैंक हिमाचल प्रदेश में वित्तीय साक्षरता केन्द्रों (एफ.एल.सी.) तथा अपनी बैंक शाखाओं के माध्यम से वित्तीय साक्षरता अभियान चला रहे हैं।
राज्य के सभी बैंकों द्वारा कुल जमा राशि सितम्बर, 2022 में ृ1,61,995 करोड़ से बढ़कर सितम्बर, 2023 में ृ1,81,021 करोड़ तक दर्ज की गई। बैंकों की जमा राशि वर्ष दर वर्ष 11.74 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। कुल अग्रिम सितम्बर, 2022 में ृ60,600.63 करोड़ से बढ़ कर सितम्बर, 2023 तक ृ76,188.33 करोड़ हो गए जो वर्ष दर वर्ष 25.72 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हैं। कुल बैंकिंग कारोबार सितम्बर, 2023 में 15.55 प्रतिशत बढ़कर ृ2,57,209 करोड़ हो गया जो सितम्बर, 2022 में ृ2,22,595 करोड़ था। बैंकिग क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पी.एस.बी.) का सबसे अधिक 63 प्रतिशत भाग है, आर.आर.बी. का 5 प्रतिशत भाग है, निजी बैंकों का 12 प्रतिशत तथा सहकारी बैंकों का 18 प्रतिशत तथा अन्य बैंकों का 2 प्रतिशत भाग है। तुलनात्मक आंकड़े नीचे सारणी 4.3 में दर्शाए गए है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए बैंकों ने नाबार्ड की सहायता से, क्षमता के आधार पर विभिन्न प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की गतिविधियों के लिए वार्षिक जमा योजना तैयार कर नए ऋण उपलब्ध करवाए हैं। वार्षिक जमा योजना 2023-24 के अधीन पिछली योजना के विŸाीय परिव्यय में 11.63 प्रतिशत की वृद्धि हुई तथा ृ37,713 करोड़ परिव्यय का लक्ष्य तय किया गया। सितम्बर, 2023 तक बैंकों ने वार्षिक जमा योजना के अन्तर्गत ृ22,042 करोड़ के नए ऋण वितरित किए तथा 58.44 प्रतिशत की वार्षिक प्रतिबद्धता हासिल की। 30 सितम्बर, 2023 तक क्षेत्रवार लक्ष्य तथा उपलब्धि सारणी 4.4 में दर्शाई गई है।
पद्ध राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.)- ग्रामीण विकास मन्त्रालय ने भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम को संचालित किया है जिसमें कि गरीबों, विशेष रुप से महिलाओं के लिए सुदृढ़ संस्थानों के निर्माण, नई वित्तीय सेवाओं और आजीविका सेवाओं तक पहुंच पाना है। इस योजना को राज्य में हि.प्र. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एच.पी.एस.आर.एल.एम.), ग्रामीण विकास विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कार्यान्वित किया गया है। राज्य में इस योजना के अन्तर्गत बैंकों को 14,800 लाभार्थियों को कवर करते हुए ृ300.00 करोड़ के वार्षिक लक्ष्य रखा है। बैंकों ने एन.आर.एल.एम. योजना में 30 सितम्बर, 2023 तक ृ62.33 करोड़ के 2,941 ऋणों की स्वीकृति दी है।
पपद्ध राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन कार्यक्रम (एन.यू.एल.एम.)- भारत सरकार, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मन्त्रालय (एम.ओ.एच.यू.पी.ए.) ने मौजूदा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (एस.जे.एस.आर.वाई.) को पुनर्गठित किया और राष्ट्रीय शहरी जीविका मिशन (एन.यू.एल.एम.) को शुरू किया। स्वयं रोजगार कार्यक्रम (एस.ई.पी.) एन.यू.एल.एम. के घटकों (घटक 4) में से एक है जो शहरी गरीबों के व्यक्तिगत और सामूहिक उद्यमों तथा स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) की स्थापना के लिए ऋणों पर ब्याज अनुदान के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित करता है। शहरी विकास विभाग तथा विभिन्न बैंको ने सितम्बर, 2023 तक एन.यू.एल.एम. के अन्तर्गत ृ11.63 करोड़ के ऋण वितरित किए हैं।
पपपद्ध प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.)- पी.एम.ई.जी.पी. एक क्रेडिट लिंक्ड अनुदान कार्यक्रम है जोकि भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम मन्त्रालय द्वारा चलाया जा रहा है। इस योजना के कार्यन्वयन के लिए खादी एवं ग्राम उद्योग कमीशन (के.वी.आई.सी.) राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख एजेंसी है। राज्य स्तर पर के.वी.आई.सी., खादी एवं ग्रामीण बोर्ड (के.वी.आई.बी.) तथा जिला उद्योग केन्द्र के माध्यम से यह योजना कार्यान्वित की जाती है। इस योजना के अन्तर्गत बैंकों द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 में 989 नई इकाइयों के वित्तपोषण का लक्ष्य रखा गया था। इस योजना के अन्तर्गत कार्यान्वयन एजेंसियों ने ₹32.14 करोड़ मार्जिन राशि के वितरण का लक्ष्य रखा है। बैंकों ने मार्जिन मनी के रूप में सितम्बर, 2023 तक 1093 इकाइयों को ृ38.76 करोड़ स्वीकृत किए हैं।
किसानों को बैंकिंग प्रणाली के अन्तर्गत् अल्पकालिक ऋण, कृषि उत्पादन तथा अन्य आवश्यकताओं के लिए एक ही स्थान एवं समय पर पर्याप्त ऋण बैंकों की ग्रामीण शाखाओं द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड (के.सी.सी.) के माध्यम से दिया जा रहा है। सितम्बर, 2023 तक बैंकों द्वारा 1,11,961 किसानों को ृ1,551.00 करोड़ के नए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए हैं। सितम्बर, 2023 तक बैंकों द्वारा कुल 5,33,432 किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अन्तर्गत ृ9,070.00 करोड़ की राशि से वित्तपोेषित किया गया है।
जिला स्तर पर उद्यमिता में रुचि रखने वाले ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के लिए बुनियादी ढाचे के विकास के लिए ग्रामीण विकास मन्त्रालय (एम.ओ.आर.डी.) की पहल पर ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर.एस.ई.टी.आई.) चलाए जा रहे है। राज्य के 10 जिलों (लाहौल-स्पिति, किन्नौर छोड़कर) में अग्रणी बैंकों, जिनमें यूको बैंक, पी.एन.बी. व स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया शामिल हैं, द्वारा ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों का गठन किया है। यह ग्रामीण स्वयं रोजगार प्रशिक्षण संस्थान, प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन (पी.एम.ई.जी.पी.) योजना के अन्तर्गत गरीबी उन्मूलन तथा उद्यमिता विकास के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत् इलेक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग (ई.डी.पी.) कर रहे हैं। आर.एस.ई.टी.आई. ने वर्ष 2023-24 में कुल 243 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने का लक्ष्य रखा और 6,576 युवाओं को प्रशिक्षित किया गया।
हिमाचल प्रदेश में विभिन्न बैंकों द्वारा आधार नामांकन और अद्यतन (अपडेट) करने के लिए 65 केन्द्रों को चयनित किया है।
नाबार्ड ने पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण संरचना विकास, लघु ऋण, किसान उत्पादक संगठन, ग्रामीण कृषि भूमि तथा गैर कृषि क्षेत्र, पुरुष एवं महिलाओं का कौशल विकास कर श्रम बल में भागीदारी को बढाना, पुर्नवित्त और ऋण वितरण व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण करके एकीकृत ग्रामीण विकास प्रक्रिया मंे निरन्तर सहयोग दिया है। नाबार्ड भी भारत सरकार की कुछ केन्द्र प्रायोजित योजनाओं को लागू कर रहा है, या उनसे जुड़ा हुआ है।
ग्रामीण अधोसंरचना - ग्रामीण अधोसंरचना विकास निधि (आर.आई.डी.एफ.) के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों व बुनियादी ढांचे का विकास किया जाता है, 1995-96 में इसकी शुरुआत से ही, राज्य सरकारों की साझेदारी में नाबार्ड एक प्रमुख सहयोगी के रूप में उभरा है। इस योजना के अन्तर्गत राज्य सरकारोें तथा राज्य के स्वामित्व वाले निगमोें की चल रही योजनाओं को पूर्ण करने तथा कुछ चुने हुए क्षेत्रों में नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए रियायती ऋण दिए जाते हैं। वर्षों से, समय के साथ-साथ इस निधि के उपयोग से विŸाीय सहायता का क्षेत्र विस्तृत करके 3़9 उपयुक्त गतिविधियां जिनमें कृषि तथा संबंधित क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र तथा ग्रामीण सम्पर्क सम्बन्धित आधारभूत गतिविधियों को भी शामिल किया गया है। इस निधि के अन्तर्गत् आर.आई.डी.एफ-ग्ग्प्ग् में (वर्ष 2023-24) राज्य के लिए ृ800 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है। आर.आई.डी.एफ. ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे सिंचाई, सड़कें तथा पुल निर्माण, बाढ़ नियन्त्रण, पेयजल आपूर्ति, प्राथमिक शिक्षा, पशुधन सेवाएं, जलागम विकास तथा सूचना प्रौद्योगिकी आधारभूत इत्यादि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही के वर्षाें में, परिवर्तनात्मक परियोजनाएं जैसे पॉली हाऊस, रज्जुमार्ग, सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियां और सोैर सिंचाई के विकास का समर्थन किया गया है, जो कृषि व्यवसाय और टिकाऊ खेती के व्यवसायीकरण की सहायता प्रदान करेगा। आर.आई.डी.एफ. निधि के अन्तर्गत राज्य को 31 मार्च, 2023 तक परियोजनाओं को लागू करने के लिए ृ10,944.58 करोड़ की विŸाीय सहायता की स्वीकृति दी जा चुकी है जिनमें मुख्यतः ग्रामीण सड़कें/पुल, सिंचाई, पेयजल, शिक्षा, पशुपालन आदि की परियोजनाएं भी शामिल हैं। आर.आई.डी.एफ.-ग्ग्प्ग् के तहत ृ918.81 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है और राज्य को चालू वित्त वर्ष के लिए 15 जनवरी, 2024 तक ृ575 करोड़ का वितरण किया गया है। स्वीकृत परियोजनाओं के कार्यान्वयन/पूर्ण होने के बाद, 13,535 कि.मी. सड़क मोटर योग्य हो जाएगी, 27,395 मीटर पुलों का निर्माण किया जाएगा और 1,94,874 हेक्टैयर भूमि को सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से लाभान्वित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, प्राथमिक स्कूलों में 2,921 कमरे, 64 माध्यमिक स्कूलों की विज्ञान प्रयोगशालाएं, 25 आई.टी. केन्द्रों और 397 पशु चिकित्सा अस्पतालों/कृत्रिम गर्भधारण केन्द्रों का निर्माण किया जा चुका है।
प्रौद्योगिकी सुविधा कोष (टी.एफ.एफ.)- नाबार्ड में तकनीक सुधार को समर्थन और उसे बढ़ावा देने के लिए तकनीक सुधार निधि (टी.एफ.एफ.) को 50 करोड़ रुपये के प्रारंभिक पूंजी के साथ स्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य कृषि और ग्रामीण विकास क्षेत्र को लाभान्वित करने वाले तकनीकी अनुप्रयोग को समर्थित करना है, ताकि तकनीकी स्टार्ट-अप्स के साथ संबंधों के लिए एक कुशल नीति हो और एक समर्पित अनुदान स्रोत हो।
मत्स्यपालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (एफ.ए.आई.डी.एफ.): नाबार्ड ने एफ.ए.आई.डी.एफ.(मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड) के अर्न्तगत 31 मार्च, 2025 तक जिला ऊना के कार्प फार्म, गगरेट में एक अत्याधुनिक मत्स्य पालन प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना के लिए राज्य सरकार को सहायता दी है।
पुनर्वित्त सहायता - नाबार्ड, विभिन्न कार्य-कलाप, जिनमें ग्रामीण आवास, लघु सड़क परिवहन आपरेटरों, भूमि विकास, लघु सिंचाई, डेयरी विकास, स्वंय सहायता समूह, कृषि यंत्रीकरण, मुर्गी पालन, वृक्षारोपण एवं बागवानी, भेड़/बकरी/सुअर पालन, घरेलू कार्यकलापों की पैकिंग ग्रेडिंग व अन्य क्षेत्रों के विभिन्न कार्यो के लिए दीर्घ अवधि के लिए पुनर्वित्त सहायता प्रदान करता है। वित्त वर्ष 2023-24 में संवितरण के लिए नाबार्ड ने हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंको और हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (एस.सी.ए.आर.डी.बी.) को 15 जनवरी, 2024 तक पुनर्वित के अन्तर्गत् ृ1355.56 करोड दिए हैं। नाबार्ड ने सहकारी बैंकों और आर.आर.बी. के प्रयासों को भी पूरक किया है, राज्य में फसल ऋण संवितरण के लिए लघु अवधि ;एस.टी.द्ध के लिए ृ2,300 करोड़ की ऋण सीमा को मंजूरी दी है जिसके अंतर्गत बैंकों ने 2023-24 के दौरान 30 दिसम्बर, 2023 तक ृ1,560 करोड़ की पुनर्वित्त सहायता दी है।
विषेष पुनर्वित्त योजनाएं- पोस्ट कोविड युग में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड ने निम्नलिखित नई योजनाएं शुरु की हैंरू
क) प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पी.ए.सी.एस.)का बहु सेवा केन्द्र (एम.एस.सी.) के रुप मेें परिवर्तनरू- इस योजना का उद्देश्य देश भर में पी.ए.सी.एस. को एम.एस.सी. में परिवर्तित करना है, जिससे अंतिम लाभार्थियों को सस्ता ऋण देने के लिए बैंकों को 3 प्रतिशत की दर पर रियायती पुनर्वित्त सुविधा प्रदान की जा सके। राज्य सहकारी बैंक पी.ए.सी.एस. को 4 प्रतिशत की दर पर ऋण देते हैं और यदि परियोजना ए.आई.एफ. के तहत पात्र है तो भारत सरकार द्वारा 3 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। खद्ध जल स्वच्छता और स्वच्छता गतिविधियों के लिए योजनाबद्ध पुनर्वित्त रू इस योजना का उद्देश्य बैंकों/वित्तीय संस्थाओं की क्रेडिट आवश्यकता को पूरा करना है ताकि वे पात्र लाभार्थियों/उद्यमियों को समय पर अेोर परेशानी मुक्त ऋण प्रदान कर सकें ताकि जल और स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धित गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके। योग्य संस्थान- सभी वाणिज्यिक बैंक, एसएफबी, आरआरबी, सहकारी बैंक और नाबार्ड की सहायक कंपनियां हैं। ॅ।ैभ् गतिविधियों के लिए वित्तपोषण सतत विकास लक्ष्यों के तहत एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और पुनर्वित्त के लिए 95 प्रतिशत ऋण केे लिए पात्र होगा। नाबार्ड सभी पात्र बैंकों को 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर (त्रैमासिक चक्रवृद्धि) से रियायती दीर्घकालिक पुनर्वित्त प्रदान करेगा। योग्य गतिविधियाँ - सैनिटरी फिटिंग, रेडीमेड शौचालय आदि के निर्माण/आपूर्ति करने वाले स्टार्ट-अप/उद्यमियों/एमएसएमई को सहायता प्रदान करना है।
सरकारी प्रायोजित योजनाएं- नई कृषि विपणन अवसंरचना (ए.एम.आई.) योजनाः कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (आई.एस.ए.एम.) की एक उप-योजना, नई कृषि विपणन अवसंरचना (ए.एम.आई.) को लागू कर रही है। योजना को 31 मार्च, 2026 तक स्वीकृत सावधि ऋणों के लिए बढ़ा दिया गया है।
लघु ऋण - स्वयं सहायता समूह ;एस.एच.जी.द्ध कार्यक्रम का अब सारे प्रदेश में एक सशक्त आधार के साथ विस्तार हो गया है। इस आंदोलन ने मानव संसाधन और वित्तीय मदों में अतिरिक्त सहायता प्रदान की है। 31 मार्च, 2023 तक, क्रेडिट-लिंक्ड एस.एच.जी. की कुल संख्या 75,069 थी, ₹179.16 करोड़ के बकाया ऋण वाले 13,091 क्रेडिट-लिंक्ड एस.एच.जी. थी। केन्द्रीय बजट 2014-15 में संयुक्त कृषि समूहों के वित्तपोषण के लिए नाबार्ड द्वारा किए गए वित्तपोषण के प्रयासों से संयुक्त देयता समूह साधन से “भूमिहीन किसानों“ तक वित्तीय सहायता पहंुचाने के लिए नवीन पहल हुई है। प्रदेश में 31 मार्च, 2023 तक 16,969 संयुक्त देयता समूहों को ृ110.06 करोड़ का कुल ऋण दिया जा चुका है। राज्य में “संयुक्त देयता समूह“ योजना को बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड राज्य में विभिन्न गैर सरकारी संगठनों/संयुक्त देयता संवर्धन संस्थानों केे साथ सहयोग कर रहा है। नाबार्ड ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान तीन वर्षों में 550 जे.एल.जी. के प्रचार और क्रेडिट लिंकेज के लिए विभिन्न गैर सरकारी संगठनों को ₹20 लाख मंजूर किए हैं।
कृषक उत्पादन संगठन का प्रचार- हिमाचल प्रदेश में नाबार्ड ने सभी 12 जिलों में 124 एफ.पी.ओ. के गठन/प्रचार के लिए ृ13.01 करोड़ के अनुदान को स्वीकृत किया है। यह एफ.पी.ओ. संयुक्त रुप से सब्जियों, औषधियों और सुगंधित पौधों, दुग्ध्ा और फूलों के उत्पादन, प्राथमिक प्रसंस्करण औेर विपणन का कार्य करेंगे। ये एफ.पी.ओ. राज्य भर के लगभग 23,417 किसानों को सुरक्षा देते हैं जिनकी सालाना बिक्री ृ13.07 करोड़ है। एक अन्य केंद्रीय क्षेत्र की योजना में नाबार्ड ’’एक जिला एक उत्पाद’’ की अवधारणा के साथ 10,000 एफ.पी.ओ. के गठन और संवर्धन के लिए कार्यान्वयन एजेंसी होगा। राज्य में क्लस्टर आधारित व्यावसायिक संगठनों (सी.बी.बी.ओ.) के माध्यम से एफ.पी.ओ. को बढ़ावा दिया जाएगा और पोषित किया जाएगा। नाबार्ड ने इस योजना के अन्तर्गत् कुल स्वीकृत अनुदान ृ10.47 करोड़ के साथ 23 एफ.पी.ओ. का गठन किया है।
वाटरशेड विकास - नाबार्ड ने राज्य के दस जिलों में 50 वाटरशैड विकास परियोजनाओं (29 वाटरशैड और 21 स्प्रिंग शैड परियोजना) को मंजूरी दी है। 31 दिसंबर, 2023 तक इन परियोजनाओं के अर्न्तगत 38,732 हेक्टेयर को सुरक्षित करते हुए, 10 जिलों के 300 गॉवों को ृ26.84 करोड़ की राशि द्वारा लाभान्वित किया गया। इन परियोजनाओं के द्वारा पानी की उपलब्धता, पर्यावरण संरक्षण, उत्पादकता, किसानों की आय में वृद्धि, घटती हुई चरागाहों का संरक्षण और पशुपालन को बढ़ावा दिया जाएगा।
जनजातीय विकास निधि के माध्यम से जनजातीय लोगों का विकास (टी.डी.एफ.)- नाबार्ड ने 14 जनजातीय विकास परियोजनाओं के अर्न्तगत् कुल ृ21.35 करोड की वित्तीय सहायता द्वारा 31 दिसम्बर, 2023 तक 3,708 परिवारों को लाभान्वित किया है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य चयनित गांवों में वादी (छोटे उद्यानों) और डेयरी इकाइयों की स्थापना करना है। इनके अर्न्तगत् 2,616 एकड़ भूमि मेें आम, किन्नू, नींबूू, सेब, अखरोट, नाशपाती और जंगली खुबानी के पौधे लगाए गए हैं।
कृषि क्षेत्र प्रोत्साहन कोष के माध्यम से सहायता (एफ.एस.पी.एफ.)- एफ.एस.पी.एफ. के अन्तर्गत अब तक 20,773 किसानों को 42 परियोजनाओं द्वारा लाभान्वित करने के लिए ृ4.80 करोड़ की संचयी अनुदान सहायता स्वीकृत की गई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान सोलन और बिलासपुर में ृ43.00 लाख की अनुदान सहायता के साथ 2 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।
नाबार्ड ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 31 दिसंबर, 2023 तक वित्तीय और डिजिटल साक्षरता शिविरों के माध्यम से वित्तीय साक्षरता का प्रसार करने के लिए राज्य भर के विभिन्न बैंकों को ृ3.80 करोड़ की सहायता स्वीकृत की है। इसमें से वित्तीय साक्षरता और जागरूकता फैलाने के लिए ृ2.84 करोड़ की वित्तीय और डिजिटल साक्षरता शिविर स्वीकृत किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, नाबार्ड ने फिनो पेमेंट्स बैंक को ृ45.00 लाख की राशि के 200 माइक्रो-एटीएम और एयरटेल पेमेंट्स बैंक को ृ17.00 लाख की राशि के 600 उच्वै (मोबाइल पॉइंट ऑफ सेल) भी स्वीकृत किए हैं। प्रदेश के 07 ग्रामीण विकास एवं स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों (आर.एस.ई.टी.आई.) को ’आर.एस.ई.टी.आई. के प्रशिक्षण उपकरणों की खरीद एवं रखरखाव’ हेतु ृ27.00 लाख की अनुदान सहायता स्वीकृत की गई है। इसके अलावा, वित्तीय समावेशन के बारे में अन्य कार्यक्रम जैसे बी.सी./बी.एफ. (बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट/बिजनेस फैसिलिटेटर) के परीक्षा शुल्क की प्रतिपूर्ति के लिए 1500 बीसी के लिए ृ7.00 लाख की राशि इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंकों को स्वीकृत की गई है। नाबार्ड हिमाचल प्रदेश की दो मंडियों में ’मंडियों में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने’ पर भारत सरकार के कार्यक्रम को भी कार्यान्वित कर रहा है। ढली मंडी शिमला और ए.पी.एम.सी. (कृषि उपज बाजार समिति) सोलन। उक्त कार्यक्रम के अर्न्तगत, हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक और पंजाब नेशनल बैंक द्वारा क्रमशः ढली मंडी और ए.पी.एम.सी. सोलन में आढ़तियों से बाजार उपकर के संग्रह और मंडियों में अन्य सभी भुगतानों के संग्रह के बारे में भुगतान को बढ़ावा देने के लिए क्यू.आर. कोड प्रदान किए गए हैं। एयरटेल पेमेंट्स बैंक ने मंडी परिसर में खुदरा दुकान मालिकों को उच्वै भी प्रदान किया है। विभिन्न बैंक किसानों और अन्य हितधारकों को ऑनलाइन भुगतान करने के लिए जागरूक करने के लिए इन मंडियों में वित्तीय और डिजिटल साक्षरता शिविर आयोजित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, नाबार्ड ने मीडिया के माध्यम से वित्तीय जागरूकता फैलाने की भी पहल की है।
नाबार्ड परामर्श सेवाएं ;नैबकॉन्सद्ध, नाबार्ड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी है और यह कृषि, ग्रामीण विकास और इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में परामर्श प्रदान करती है। नैबकॉन्स ने निम्नलिखित प्रमुख कार्य किये हैंः
1) हिमाचल प्रदेश कृषि विपणन बोर्ड की पराला और खड़ापत्थर में एकीकृत शीत श्रृंखला परियोजना के लिए परियोजना प्रबंधन परामर्श।
2) राज्य स्तर पर एग्री-इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (ए.आई.एफ.) के तहत पी.एम.यू. (परियोजना प्रबंधन इकाई) की स्थापना।
3) हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना का प्रभाव आकलन अध्ययन।
4) हिमाचल प्रदेश में सूक्ष्म सिंचाई का प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन।
5) नैबकॉन्स हिमाचल प्रदेश में डी.डी.यू.-जी.के.वाई. के लिए केंद्रीय तकनीकी सहायता एजेंसी है।
6) एस.जे.वी.एन. द्वारा किए गए सी.एस.आर. कार्यक्रमों का सामाजिक प्रभाव आकलन।
नाबार्ड को अनुकूलन निधि (ए.एफ.), हरित जलवायु निधि (जी.सी.एफ.) के लिए राष्ट्रीय कार्यान्यवन इकाई नेशनल इंप्लीमेंटिंग एंटिटी (एन.आई.ई.) नामित किया गया है, जिसे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन की संरचना ;फ्रेमवर्क कन्वेंशनद्ध के अन्तर्गत् पर्यावरण, वन ओर जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया हैै। जलवायु परिवर्तन की भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए, नाबार्ड ने सिरमौर जिले में एक निष्पादन ईकाई का गठन किया है। जो जलवायु स्मार्ट समाधानों के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के सूखा उन्मुख कृषि पर निर्भर समुदायों की सत्त आजीविका की सुविधा पर परियोजना के लिए ृ20.00 करोड़ मंजूर किए हैं जिसका कार्यान्यवन हिमाचल प्रदेश सरकार के पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत् ृ19.12 करोड़ की राशि 31 दिसम्बर, 2023 तक नाबार्ड द्वारा जारी की गई है। परियोजना को 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

5.मूल्य संचलन और खाद्य प्रबन्धन

कीमतें अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण संकेतक हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान अभूतपूर्व बारिश से हिमाचल प्रदेश बुरी तरह प्रभावित हुआ है। विश्वव्यापी संघर्ष, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध और मध्य पूर्व में इजराइल-हमास संघर्ष ने वैश्विक मूल्य वृद्धि में योगदान दिया है, जो मुख्य रूप से कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की बढ़ती लागत और मौसम की अनिश्चितताओं से प्रेरित है। परिणामस्वरूप, केंद्रीय बैंक को घरेलू बजट पर असर डालने वाली मौद्रिक नीति को सख्त करने के दबाव का सामना करना पड़ा है। उच्च मुद्रास्फीति और आर्थिक स्थिरता का संयोजन, स्टैगफ्लेशन का भूत एक महत्वपूर्ण चिंता बन गया है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। नतीजतन, औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के पास अपनी ब्याज दरें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। जैसे ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दरें बढ़ाईं, संयुक्त राज्य अमेरिका (यू.एस.) डॉलर की सराहना हुई, जिससे डॉलर-मूल्य वाला ईंधन आयात अधिक महंगा हो गया। बढ़ती कीमतें हमेशा नीति निर्माताओं के लिए चिंता का कारण होती हैं, क्योंकि वे आम आदमी पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति की चुनौतियाँ अत्याधिक महसूस की जाती हैं, जहाँ विकसित देशों की तुलना में उपभोग टोकरी में आवश्यक वस्तुएं अधिक अनुपात में होती हैं। हिमाचल प्रदेश के मामले में, मुद्रास्फीति दर अपेक्षाकृत कम रही है। भारत ने 2016 में लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्य को अपनाया और मुद्रास्फीति लक्ष्य हर पांच साल में निर्धारित किए जाते हैं। मार्च, 2021 में, सरकार ने अप्रैल, 2021 से मार्च, 2026 तक मुख्य रुप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी.पी.आई.) मुद्रास्फीति के लक्ष्य को क्रमशः 2 प्रतिशत और 6 प्रतिशत की निचली और ऊपरी सहनशीलता सीमा के साथ 4 प्रतिशत पर बरकरार रखा। यह ढांचा आर्थिक स्थितियों को समायोजित करने के लिए कुछ लचीलेपन की अनुमति देते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए मौद्रिक नीति के लिए एक दिशानिर्देश प्रदान करता है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में आपूर्ति पक्ष के व्यवधानों ने मुद्रास्फीति को भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) की अधिकतम सहनशीलता सीमा 6 प्रतिशत से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महामारी का मांग की तुलना में आपूर्ति पक्ष पर अधिक स्पष्ट प्रभाव पड़ा, जिससे भोजन, दवा और औद्योगिक वस्तुओं जैसी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न हुआ। नतीजतन, राज्य में लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति बढ़ गई क्योंकि आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और वितरण को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी कीमतें बढ़ गईं।

मुद्रास्फीति में वर्तमान रुझान- राज्य स्तर पर थोक मूल्य मुद्रास्फीति (डब्ल्यू.पी.आई.) 11.6 प्रतिशत से गिरकर 2023-24 में (-)1.1 प्रतिशत हो गई। इस महत्वपूर्ण गिरावट का श्रेय प्रमुख वस्तुओं (कच्चा तेल, लोहा, एल्यूमीनियम और कपास) की मुद्रास्फीति में मंदी और आधार वर्ष की ऊंची कीमतों का प्रभाव जैसे कारकों को दिया गया। इसी अवधि के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांको (सी.पी.आई.) के मुद्रास्फीतियों में 1.9 और 5.1 प्रतिशत के बीच उतार-चढ़ाव रहा। सी.पी.आई. मुद्रास्फीति जुलाई और अगस्त, 2023 के महीनों के दौरान आर.बी.आई. द्वारा निर्धारित ऊपरी सहनशीलता स्तर को पार कर गई, जिसका मुख्य कारण सब्जियों, विशेष रूप से टमाटर की बढ़ती कीमतें थीं। डब्ल्यू.पी.आई. और सी.पी.आई. का अभिसरण कमोडिटी की कीमतों में गिरावट से प्रभावित था, विशेष रूप से कच्चे तेल, लोहा, एल्यूमीनियम और कपास जैसी वस्तुओं की कीमतों में गिरावट और ऐसी वस्तुएं, जिनका थोक मूल्य सूचकांक बास्केट में महत्वपूर्ण भार है, ने मुद्रास्फीति में कमी अनुभव की गई। उच्च सी.पी.आई. में योगदान देने वाला कारक बढ़ती सेवा लागत थी, जो डब्ल्यू.पी.आई. बास्केट में शामिल नहीं है। डब्ल्यू.पी.आई. और सी.पी.आई. का अभिसरण यह दर्शाता है कि है कि, दो मुद्रास्फीतियों संकेतकों का अभिसरण कमोडिटी की कीमतों में गिरावट और बढ़ती सेवा लागत के प्रभाव का परिणाम था। सेवाएँ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ;संयुक्तद्ध के मुख्य घटक का हिस्सा हैं, लेकिन सेवाएं थोक मूल्य सूचकांक बास्केट में शामिल नहीं हैं।

1) डब्ल्यू.पी.आई. मुद्रास्फीति और सी. पी. आई. मुद्रास्फीति का विचलन- अपेक्षाकृत उच्च डब्ल्यू.पी.आई. मुद्रास्फीति और निम्न सी.पी.आई.ेमुद्रास्फीति के बीच अंतर मई, 2023 और अगस्त, 2023 में अपेक्षाकृत बढ़ गया। चित्र 5.1 संभवतः इस अंतर को दर्शाता है।
2) विचलन में योगदान देने वाले कारक- इस अंतर का कारण दो सूचकांकों को दिए गए अलग-अलग भार और उपभोक्ता कीमतों पर बढ़ती आयात लागत के प्रभाव में अंतराल का समय है। डब्ल्यू.पी.आई. इन कारकों के कारण अधिक अस्थिर होने के कारण, बढ़ती आयात लागत के प्रभाव को अधिक तेजी से दर्शाता है।
3) अभिसरण की ओर रुझान- प्रारंभिक विचलन के बावजूद, तब से डब्ल्यू.पी.आई. और सी.पी.आई. के बीच अंतर कम हो गया है, जो अभिसरण की ओर रुझान का संकेत देता है। यह अभिसरण थोक और उपभोक्ता कीमतों दोनों पर बढ़ती आयात लागत के प्रभाव में संतुलन का सुझाव देता है।
4) मुख्य मुद्रास्फीति और सरकार का ध्यान- मुख्य मुद्रास्फीति, जो मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति का संकेतक है, में हाल ही में बहुत कम हलचल देखी गई है। इसके बावजूद, हिमाचल प्रदेश सरकार मूल्य स्थिरता बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर अधिक ध्यान देती है।
5) सामान्य लोगों पर प्रभाव- व्यक्तिगत आय कीमतों से बंधी नहीं है, यह दर्शाता है कि जब मुद्रास्फीति होती है, तो आम लोगों को विषम रूप से नुकसान होता है। यह व्यक्तियों की क्रय शक्ति और जीवन स्तर पर मुद्रास्फीति के प्रतिकूल प्रभावों को उजागर करता है।
6) मुद्रास्फीति मापने के सूचकांक- मुद्रास्फीति के उतार-चढ़ाव को मापने के लिए उपकरण के रूप में विभिन्न सूचकांकों का उल्लेख किया गया हैः
i) थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.)
ii) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-ग्रामीण (सी.पी.आई.-आर.)
iii) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-शहरी (सी.पी.आई.-यू.)
iv) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (सी.पी.आई.-सी.)
v) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-औद्योगिक श्रमिक (सी.पी.आई.-आई.डब्ल्यू.)
vi) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-कृषि मजदूर (सी.पी.आई.-ए.एल.)
vii) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-ग्रामीण मजदूर (सी.पी.आई.-आर.एल.)
7) मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों की विविध ट्रैकिंग- ये सूचकांक जनसंख्या के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे कि ग्रामीण और शहरी उपभोक्ता, औद्योगिक श्रमिक और कृषि मजदूर, और एक संयुक्त सूचकांक जो विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों को शामिल करता है। सूचकांकों में विविधता इस मान्यता को दर्शाती है कि मुद्रास्फीति समाज में विभिन्न समूहों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करती है।
अन्य राज्यों के बीच उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (सी.पी.आई.-सी) मुद्रास्फीति- हिमाचल प्रदेश में मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति, जैसा कि वर्णित है, पूरे वर्ष 2023 में उतार-चढ़ाव के पैटर्न को दर्शाती है। जनवरी में 3.4 प्रतिशत से शुरू होकर जुलाई में 7.1 प्रतिशत पर पहुंचने के बाद, मुद्रास्फीति में वृद्धि सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण हुई है। यह घटना विभिन्न कारकों के कारण हो सकती है जैसे कि फसल की पैदावार को प्रभावित करने वाली मौसम की स्थिति, परिवहन लागत, या अन्य आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान। केंद्रीय बैंक सामान्यत बढ़ती अर्थव्यवस्था को शांत करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाते हैं। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मुद्रास्फीति पर ब्याज दर में बदलाव का प्रभाव तत्काल नहीं होता है और इसके प्रभावी होने में समय लगता है। सितंबर, 2023 से मुद्रास्फीति में कमी से पता चलता है कि या तो ब्याज दर में बढ़ोतरी सहित उठाए गए उपायों का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है या सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी के शुरुआती कारकों में कमी आई है। जनवरी, 2023 में, हिमाचल प्रदेश में सी.पी.आई.-सी मुद्रास्फीति दर 3.4 प्रतिशत थी। तुलना से पता चलता है कि अन्य राज्यों की अपेक्षा में हिमाचल प्रदेश में मध्यम मुद्रास्फीति थी। शेष राज्यों में मुद्रास्फीति की दर 7.1 प्रतिशत से 5.2 प्रतिशत के बीच थी। राज्यों के बीच मुद्रास्फीति दरों में इस असमानता के लिए विभिन्न कारकों जिसमें आर्थिक गतिविधियों, आपूर्ति श्रृंखला, कृषि उत्पादन और क्षेत्रीय आर्थिक नीतियों में अंतर शामिल हैं, को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अधिकांश अन्य राज्यों की तुलना में हिमाचल प्रदेश में कम मुद्रास्फीति दर, अपेक्षाकृत स्थिर आर्थिक माहौल और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए राज्य द्वारा उठाए गए प्रभावी उपायों का संकेत देती है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति ;संयुक्तद्ध 2023 बनाम 2017 के चालक और योगदानकर्ता चित्र 5.3-
खुदरा मुद्रास्फीति निम्नलिखित वस्तुओं द्वारा प्रेरित है।
1) ईंधन और प्रकाश-
i) समग्र मुद्रास्फीति में सबसे बड़ा योगदानकर्ता।
ii) कुल सी.पी.आई.-सी. मुद्रास्फीति का 26.6 प्रतिशत हिस्सा है।
iii) इंगित करता है कि ईंधन और ऊर्जा की कीमतों में परिवर्तन समग्र मुद्रास्फीति दर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
2) कपड़े और जूते-
i) 25.1 प्रतिशत योगदान के साथ सी.पी.आई.-सी. मुद्रास्फीति का मुख्य चालक है।
ii) समग्र मुद्रास्फीति दर पर कपड़ों और जूतों की कीमत में बदलाव के प्रभाव को दर्शाता है।
3) मिश्रित-
i) समग्र मुद्रास्फीति में 19.2 प्रतिशत का हिस्सा है।
ii) ‘‘विविध‘‘ में आम तौर पर विभिन्न प्रकार की वस्तुएं और सेवाएं शामिल होती हैं जिन्हें अन्य प्रमुख श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं किया जाता है।
4)खाद्य और पेय पदार्थ-
i) कुल मुद्रास्फीति में 17.4 प्रतिशत का योगदान देता है।
ii) समग्र मुद्रास्फीति दर पर खाद्य और पेय पदार्थों की कीमतों में बदलाव के प्रभाव को दर्शाता है।
5) पान तम्बाकू एवं नशीले पदार्थ-
i) कुल मुद्रास्फीति में 11.6 प्रतिशत का योगदान देता है।
ii) इस श्रेणी में तंबाकू और नशीले पदार्थ जैसे उत्पाद शामिल हैं और इसका योगदान मुद्रास्फीति दर पर इसके प्रभाव को दर्शाता है।

औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक: औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक श्रम ब्यूरो द्वारा जारी एक मूल्य सूचकांक है, जो कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में फैले श्रमिकों के लिए रहने की लागत में मूल्य वद्धि के प्रभाव को मापने के लिए जारी किया जाता है। सितम्बर, 2020 से हिमाचल प्रदेश में आधार वर्ष को 2001 से 2016 के लिए संशोधित किया गया है। नई श्रृंखला में पारंपारिक सात वर्गाें के औद्योगिक श्रमिकों को इस सूचकांक मंे सम्मिलित किया गया है जिसमें कारखानों, खानें, वृक्षारोपण, रेलवे, सार्वजनिक मोटर परिवहन उपक्रम, विद्युत उत्पादन और वितरण प्रतिष्ठान, बंदरगाहें आदि शामिल हैं। प्रदेश में नवम्बर, 2023 के दौरान इस सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी राष्ट्रीय स्तर से कम रही जोकि सारणी 5.2 और 5.3 एवं चित्र 5.4 में प्रदर्शित है। यह विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है जैसे क्षेत्रीय आर्थिक स्थिति, उद्योगों की संरचना में अंतर और हिमाचल प्रदेश में रहने की लागत को प्रभावित करने वाले विशिष्ट कारक। राज्य में कम सी.पी.आई.-आई.डब्ल्यू. मुद्रास्फीति का राष्ट्रीय औसत की तुलना में औद्योगिक श्रमिकों की क्रय शक्ति और जीवन स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.)- पूरे कोविड-19 काल में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति कम रही, लेकिन महामारी के बाद आर्थिक गतिविधियों के फिर से शुरू होने के बाद इसमें तेजी आने लगी। रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति नेटवर्क और प्रमुख वस्तुओं के मुक्त प्रवाह को बाधित करके बोझ को और बढ़ा दिया। कुल मिलाकर, थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति दरों की मासिक प्रवृत्ति जनवरी, 2023 में अपने उच्चतम 4.8 प्रतिशत से नीचे की ओर खिसक रही है और जून, 2023 में (-) 4.2 प्रतिशत हो गई है और दिसंबर, 2023 में बढ़कर 0.7 प्रतिशत हो गई है चित्रः 5.1 थोक मूल्य मुद्रास्फीति उतार चढ़ाव के मुख्य बिंदुः
1) कोविड-19 युग के दौरान कम थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति- थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पूरे कोविड-19 अवधि के दौरान कम रही। इसका श्रेय आर्थिक मंदी और महामारी के कारण हुए व्यवधानों को दिया जाता है, जिससे मांग और मूल्य निर्धारण दबाव कम हो जाता है।
2) महामारी के बाद थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में वृद्धि- जैसे ही कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हुईं, थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति ने गति पकड़नी शुरू कर दी। आर्थिक सुधार से समान्यत वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि होती है, जो कीमतों पर दबाव बढ़ाने में योगदान कर सकती है।
3) रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव-
i) रूस-यूक्रेन युद्ध थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति में वृद्धि में योगदान देने वाला एक कारक है।
ii) वैश्विक आपूर्ति नेटवर्क में व्यवधान और युद्ध जैसी भू-राजनीतिक घटनाओं के कारण प्रमुख वस्तुओं के मुक्त प्रवाह में व्यवधान से आपूर्ति में कमी हो सकती है और उत्पादन लागत में वृद्धि हो सकती है, जिससे मुद्रास्फीति दर प्रभावित हो सकती है।
4) वित्त वर्ष 2023-24 में नकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक-
i) वित्त वर्ष 2023-24 में अक्टूबर तक थोक महंगाई दर घटकर लगभग नकारात्मक हो गई।
ii) नकारात्मक मुद्रास्फीति दर अपस्फीति की अवधि को इंगित करती है, जहां उत्पादकों द्वारा उनकी वस्तुओं और सेवाओं के लिए प्राप्त औसत कीमतों में कमी आई है, जो संभवतः आपूर्ति श्रृंखलाओं और आर्थिक अनिश्चितताओं में चुनौतियों को दर्शाती है।
5) व्यवधानों के परिणाम- कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक घटनाओं दोनों के कारण उत्पन्न व्यवधानों का वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, व्यापार और आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है, जिससे मुद्रास्फीति दर प्रभावित होती है।
6) थोक मूल्य मुद्रास्फीति उतार चढ़ाव के मुख्य बिंदु- आयातित मुद्रास्फीति और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.)
i) आयातित मुद्रास्फीति थोक मूल्य मुद्रास्फीति में योगदान करती है, जिसमें खाद्य तेलों पर प्रभाव का विशेष उल्लेख है।
ii) वस्तुओं, विशेष रूप से खाद्य तेलों की विश्वव्यापी ऊंची लागत का अस्थायी प्रभाव स्थानीय मूल्य निर्धारण में परिलक्षित होता है।
7) वैश्विक मुद्रास्फीति में उतार -चढ़ाव पर आर.बी.आई. का अध्ययन-
i) आर.बी.आई. के एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक मुद्रास्फीति के उतार -चढ़ाव के कारण सभी देशों और क्षेत्रों में कीमतों में एक प्रतिशत की वृद्धि से भारत में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
ii) दूसरे दौर के प्रभावों में 100 आधार अंकों के प्रत्यक्ष प्रभाव के अलावा घरेलू अप्रत्यक्ष प्रभाव (46 आधार अंक) और वैश्विक स्पिलओवर (17 आधार अंक) शामिल हैं।
8) थोक मूल्य सूचकांक (विनिर्मित माल घटक) पर प्रभाव-
i) डब्ल्यू.पी.आई. पर वैश्विक बाजार की कीमतों का प्रभाव, विशेष रूप से तेल और बुनियादी धातुओं की कीमतों में, ध्यान देने योग्य हैं, विशेष रूप से विनिर्मित वस्तुओं के घटक में।
9) विभिन्न वस्तुओं के लिए वैश्विक कीमतें-
i) चालू वित्त वर्ष में खाद्य तेल, रबर, कपास, कच्चे तेल और धातुओं की वैश्विक कीमतें गिर गई हैं।
ii) वैश्विक वस्तु कीमतों में उतार-चढ़ाव का उन देशों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है जो इन वस्तुओं के लिए आयात पर निर्भर हैं।
10) पूंजी बाह्मप्रवाह और मुद्रा दर-
i) वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में पूंजी बाह्मप्रवाह का भारत की मुद्रा दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
ii) इसने आयातित इनपुट की उच्च लागत में योगदान दिया, विशेष रूप से वे जोकि डॉलर में मूल्यवर्गित होते हैं।
मासिक थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.): जिला सांख्यिकी कार्यालयों के एक नेटवर्क के माध्यम से, आर्थिक और सांख्यिकी विभाग 160 वस्तुओं पर डेटा एकत्र, संकलित और विश्लेषण करता है। महीने के हर पहले शुक्रवार को जिले के निर्धारित दुकानों से भाव एकत्रित किए जाते हैं। इन दरों को मुख्यालय में जांच के बाद हितधारकों के लिए सुलभ बनाया जाता है चित्र 5.6 और 5.7। मासिक राष्ट्रीय थोक मूल्य सूचकांक दिसम्बर, 2022 के दौरान 150.5 था जो बढ़कर दिसम्बर, 2023 में 151.6 ;अद्ध हो गया जो मुद्रास्फीति में 0.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शाता है। वर्ष 2023-24 में थोक मुद्रास्फीति की दर चित्र 5.1 और 5.5 में दर्शायी गई हैंें।
चित्र 5.5 की जानकारी दो अवधियोंः अप्रैल से दिसंबर, 2023 और अप्रैल से दिसंबर, 2017 के बीच थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू.पी.आई.) मुद्रास्फीति की तुलना दर्शाती है।यहां प्रमुख टिप्पणियां दी गई हैंः
11) थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति अप्रैल से दिसंबर, 2023 में-
i) अप्रैल से दिसंबर, 2023 की हाल ही की अवधि में, थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति नकारात्मक क्षेत्र में गिर गई, (-) 4.2 से 0.7 प्रतिशत के बीच।
ii) नकारात्मक मुद्रास्फीति अपस्फीति की अवधि को इंगित करती है, जहां उत्पादकों द्वारा उनकी वस्तुओं और सेवाओं के लिए प्राप्त औसत कीमतों में कमी आई है।
12) थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति अप्रैल से दिसंबर, 2017 में-
i) अप्रैल से दिसंबर, 2017 तक, थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 0.9 और 4.0 प्रतिशत के बीच थी।
ii) यह उस अवधि के दौरान मुद्रास्फीति के अपेक्षाकृत मध्यम से निम्न स्तर का संकेत देती है।
13) थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट-
i) डेटा से पता चलता है कि दो अवधियों के बीच थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में महत्वपूर्ण गिरावट आई है, हाल की अवधि में नकारात्मक मुद्रास्फीति दर का अनुभव हुआ है।
ii) यह गिरावट बताती है कि कुल मिलाकर, थोक कीमतों में कमी आई है या नरम बनी हुई है, जो संभावित स्थिरता या यहां तक कि खुदरा कीमतों में कमी का संकेत देती है।
14) खुदरा कीमतों पर प्रभाव-
i) निष्कर्ष यह है कि थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट के साथ, भारत में खुदरा कीमतें अगले महीनों में स्थिर रहने या गिरने की उम्मीद है।
ii) कम थोक कीमतें संभावित रूप से खुदरा विक्रेताओं के लिए कम लागत में बदल सकती हैं और उपभोक्ता कीमतों में स्थिरता या कमी में योगदान कर सकती हैं।
15) थोक मूल्य की भिन्नता का गुणंाक वर्ष 2022 व 2023 में(चित्र 5.6 और चित्र 5.7)- दृश्य प्रतिनिधित्व:आंकड़े, विशेष रूप से चित्र 5.6 और चित्र 5.7, क्रमशः मोटे अनाज और दालों कि कीमतों के लिए भिन्नता के गुणांक के दृश्य प्रतिनिधित्व हैं। ये आंकड़े उल्लेखित की गई वस्तुओं के थोक मूल्यों में अस्थिरता के रुझान का एक चित्रमय प्रदर्शन करते हैं।
16) मोटे अनाज के थोक मूल्यों का विश्लेषण (चित्र 5.6)-
i) भिन्नता के गुणांक का उपयोग 2022 और 2023 के नौ महीनों (अप्रैल से दिसंबर) में मोटे अनाज के थोक मूल्यों की अस्थिरता का विश्लेषण करने के लिए किया गया है।
ii) मुख्यतः ध्यान गेहूं और चावल परमल जैसी वस्तुओं पर है, जिन्हें 2023-24 के दौरान अत्यधिक अस्थिरता के रूप में पहचाना गया है।

17) दाल की कीमतों को प्रभावित करने वाले कारक (चित्र 5.7)-
i) उत्पादन में वृद्धि, बफर स्टॉक बनाए रखने के लिए सरकार की पहल और दालों पर कम आयात कर और उपकर के कारण दालों में भिन्नता का गुणांक कम रहा।
ii) बढ़ा हुआ उत्पादन स्तर दालों की कीमतों की स्थिरता में योगदान देता है।

18) विशिष्ट दालों में उच्च अस्थिरता-
i) चना, काबुली चना, अरहर दाल, चने की दाल, मूंग, उर्द, मसूर दाल और मलका सहित कुछ दलहन वस्तुओं को 2022 (अप्रैल से दिसंबर) और 2023 (अप्रैल से दिसंबर तक) के लिए भिन्नता गणना के गुणांक के आधार पर अत्यधिक अस्थिर रूप में पहचाना गया है। ।
ii) यह इंगित करता है कि इन विशिष्ट दलहन वस्तुओं की कीमतों में उल्लिखित अवधि के दौरान महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव का अनुभव हुआ।
19) अन्य दालों में स्थिरता-
i) दूसरी ओर, कुल्थ, राजमाह और सोयाबीन जैसी वस्तुओं को कम अस्थिरता के रूप में पहचाना गया है, जो पूरे वर्ष स्थिर रही है।
ii) इन दलहन वस्तुओं में स्थिरता का श्रेय लगातार उत्पादन स्तर या प्रभावी बाजार हस्तक्षेप जैसे कारकों को दिया जा सकता है।
मुद्रास्फीति सी.पी.आई. (आई.डब्ल्यू.) बनाम पुर्नखरीद विकल्प दर (रेपो दर)- जानकारी में उच्च मुद्रास्फीति से जुड़ी चुनौतियों, विशेष रूप से राजकोषीय नीति और विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं पर इसके प्रभाव के संदर्भ में चर्चा की गई है। जिसके मुख्य बिंदु हैंः
बढ़ती महँगाई के राजनीतिक प्रभाव-
i) उच्च मुद्रास्फीति दर के राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं, खासकर जब वे बजट प्रक्रिया के साथ मेल खाते हों।
ii) राजनीतिक नेताओं को जनता की उम्मीदों को प्रबंधित करने और जीवन यापन की लागत से संबंधित चिंताओं को संबोधित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
2023 में वैश्विक आर्थिक चुनौतियाँ-
i) 2023 में कई अर्थव्यवस्थाओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जबकि कुछ अर्थव्यवस्थाएं कोविड-19 महामारी के प्रभाव से उबर रही थीं।
ii) चल रहे भू-राजनीतिक मुद्दों, जैसे कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध और इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष, ने आपूर्ति पक्ष की बाधाएं पैदा की हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक स्थिति प्रभावित हो रही है।
मुद्रास्फीति की असहनीय रूप से उच्च दरें-
i) अधिकांश राष्ट्र असहनीय रूप से मुद्रास्फीति की उच्च दरों से चिह्नित समस्याग्रस्त क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं।
ii) उच्च मुद्रास्फीति क्रय शक्ति को नष्ट कर सकती है, आर्थिक स्थिरता को बाधित कर सकती है और उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों के लिए चुनौतियाँ पैदा कर सकती है।
मुद्रास्फीति को कम करने के लिए एक उपकरण के रूप में रेपो दर-
i) मुद्रास्फीति को कम करने के लिए रेपो रेट को एक प्रभावी उपाय के रूप में उल्लेखित किया गया है।
ii) रेपो दर, या पुर्नखरीद दर, वह ब्याज दर है जिस पर केंद्रीय बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) वाणिज्यिक बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को पैसा उधार देता है।
वित्तीय संकट और केंद्रीय बैंक का हस्तक्षेप-
i) वित्तीय संकट के दौरान, बैंक समान्यत सहायता के लिए केंद्रीय बैंक की ओर रुख करते हैं।
ii) भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) मौद्रिक नीति के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें धन आपूर्ति और मुद्रास्फीति के स्तर को प्रभावित करने के लिए रेपो दर जैसे उपकरणों का उपयोग करना शामिल है। 2022 और 2023 में मुद्रास्फीति की गतिशीलता, विशेष रूप से मुद्रास्फीति के दबाव को दूर करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) और केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए उपायों पर ध्यान केंद्रित करती है चित्र 5.8 मुख्य निष्कर्ष नीचे दिए गए हैंः

खुदरा मुद्रास्फीति 2022 में भारतीय रिजर्व बैंक की सहनशीलता सीमा से अधिक-
i) वर्ष 2022 ऐसे उदाहरणों को दर्शाता है जब खुदरा मुद्रास्फीति आर्र.बी.आइ. की सहनशीलता सीमा से अधिक हो गई थी।
ii) आर्र.बी.आइ. की मौद्रिक नीति समिति (एम.पी.सी.) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए रेपो दर में वृद्धि का आह्वान करती है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में बढ़ोतरी-
i) मई, 2022 में सी.पी.आई. (आई.डब्ल्यू.) मुद्रास्फीति 7.89 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, जो आर्र.बी.आइ. के 6 प्रतिशत के सहनशीलता स्तर से अधिक है।
ii) मुद्रास्फीति से निपटने के लिए एम.पी.सी. ने मई से दिसंबर, 2022 तक और फरवरी, 2023 तक तरलता समायोजन सुविधा (एल.ए.एफ) के तहत नीति रेपो दर को 225 आधार अंकों तक 4.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत कर दिया।
iii) यह मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए मौद्रिक नीति उपकरणों का उपयोग करना, आर.बी.आई. द्वारा एक सक्रिय दृष्टिकोण को इंगित करता है।
मुद्रास्फीति पर प्रभाव- उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप, मुद्रास्फीति में कमी आई,सी.पी.आई. मुद्रास्फीति मई और जून, 2023 के दौरान 2 प्रतिशत के निचले सहनशीलता स्तर पर पहुंच गई।
जुलाई और अगस्त, 2023 में मुद्रास्फीति में वृद्धि-
i) जुलाई और अगस्त, 2023 में मुद्रास्फीति में अचानक वृद्धि देखी गई, जिसका कारण सब्जियों, विशेषकर टमाटर की कीमतों में वृद्धि थी।
ii) हालाँकि, स्थिति शांत हो गई है, और मुद्रास्फीति आर.बी.आई. द्वारा निर्धारित सहनशीलता स्तरों के बीच बढ़ने की सूचना है।
हाल में रेपो दर-
i) आर.बी.आई. की मौद्रिक नीति समिति नेे 8 फरवरी, 2023 से रेपो दर में 25 आधार अंकों की वृद्धि की।
ii) रेपो दर वृद्धि के बाद खुदरा मुद्रास्फीति मई, 2022 में 7.89 प्रतिशत से घटकर मई, 2023 में 0.15 प्रतिशत हो गई।

साप्ताहिक खुदरा मूल्य- हिमाचल प्रदेश में जिला सांख्यिकी कार्यालय आवश्यक वस्तुओं पर डेटा एकत्र करने और विश्लेषण करने के लिए आर्थिक और सांख्यिकी विभाग का हिस्सा हैं। प्रत्येक शुक्रवार को, जिले में भाग लेने वाले दुकानों से कीमतें एकत्र की जाती हैं और सत्यापित होने के बाद ूममासलचतपबमेण्ीचण्हवअण्पद पर पोस्ट की जाती हैं। खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के विभाग के निदेशक, साथ ही आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग हिमाचल प्रदेश सरकार को हर सप्ताह के मूल्य परिवर्तनों का विवरण देने वाली रिपोर्ट प्राप्त होती है।

आवश्यक वस्तु की कीमतों में परिवर्तनशीलता- उपलब्ध श्रमिकों की कमी, संभवतः कोविड-19 नियमों के कारण, खुदरा कीमतों में वृद्धि में योगदान दे सकती है। इसके अतिरिक्त, अप्रैल से दिसंबर, 2017 और अप्रैल से दिसंबर, 2023 के बीच विभिन्न वस्तुओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव के विश्लेषण से अलग-अलग रुझानों का पता चलता है। जिसका अवलोकन निम्न है चित्र 5.9ः
श्रमिकों की कमी का संभावित प्रभाव-
i) उपलब्ध श्रमिकों की कमी को कोविड-19 नियमों के कार्यान्वयन के बाद खुदरा कीमतों में वृद्धि में योगदान देने वाले संभावित कारक के रूप में उल्लेख किया गया है।
ii) श्रम की कमी आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर सकती है, जिससे उत्पादन चुनौतियां पैदा हो सकती हैं और कीमतें प्रभावित हो सकती हैं।
स्थिर कीमतों वाली वस्तुएं(अप्रैल से दिसंबर, 2023 तक)-
i) प्याज, उड़द दाल, गुड़, आलू, गेहूं कल्याण, गेहूं आटा, चाय लूज, ब्रुक बॉन्ड चाय और मूंगफली तेल सहित कुछ कमोडिटी अप्रैल, 2023 से स्थिर बनी हुई हैं।
ii) स्थिरता का श्रेय घरेलू उत्पादन से उत्पन्न पर्याप्त आपूर्ति और खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चावल और गेहूं के लिए पर्याप्त बफर स्टॉक के रखरखाव जैसे कारकों को दिया जाता है।
विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता (अप्रैल से दिसंबर, 2023)-
i) मिट्टी का तेल, चना दाल, सरसों का तेल, उत्तम वनस्पति घी, चीनी, चावल परमल, सीमेंट और चीनी पैकेट सभी की कीमतों में अप्रैल से दिसंबर, 2023 के बीच अस्थिरता का अनुभव हुआ।
ii) इन वस्तुओं में उतार-चढ़ाव देखा गया, जिससे पता चलता है कि मांग, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान या बाहरी प्रभावों जैसे विभिन्न कारकों ने उनकी कीमतों को प्रभावित किया होगा।
गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार की रणनीति के मुख्य घटकों में से एक लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) है जो 5,249 उचित मूल्य की दुकानों के नेटवर्क के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं जैसे गेहूं, गेहूं का आटा, चावल, चीनी आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करती है। आवश्यक वस्तुओं के वितरण के लिए कुल परिवारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एन.एफ.एस.ए.)-
i) अंत्योदय अन्न योजना (ए.ए.वाई.)
ii) प्राथमिकता वाले आवास
एन.एफ.एस.ए. के अलावा अन्य (गरीबी रेखा से ऊपर) (ए.पी.एल.)- राज्य में, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कुल राशन कार्ड 19,44,225 हैं, जिसमें डिजीटल रिकॉर्ड से उपलब्ध 72,55,574 कार्ड धारक शामिल है। इन कार्ड धारकों को 5,249 उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से आवश्यक वस्तुएं प्रदान की जाती हैं, जिसमें 3,348 सहकारी समितियां, 22 पंचायतें, 51 हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम (एच.पी.एस.सी.एस.सी.), 1,784 व्यक्तिगत, 8 स्वयं सहायता समूह और 36 महिला मंडल शामिल हैं। विŸिाय वर्ष 2023-24 के दौरान आवश्यक वस्तुओं के वितरण का ब्यौरा (दिसंबर, 2023 तक) सारणी 5.5 में दर्शाया गया है।
वर्तमान में, टी.पी.डी.एस. और हिमाचल प्रदेश राज्य द्वारा विशेष अनुदानित योजना के अन्तर्गत निम्नलिखित खाद्य सामग्री वितरित की जा रही है जो सारणी 5.6 के अनुसार हैः
हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम राज्य में सभी नियंत्रित और गैर-नियंत्रित आवश्यक वस्तुओं के लिए एक ‘‘केंद्रीय खरीद एजेंसी‘‘ है और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एन.एफ.एस.ए.) के तहत खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीद और वितरण करती है। चालू वित्त वर्ष के दौरान, दिसंबर, 2023 तक निगम ने टी.पी.डी.एस. के अन्तर्गत पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान ₹1,574.63 करोड़ की तुलना में ₹1,304.09 करोड़ की विभिन्न वस्तुओं की खरीद और वितरण किया। वर्तमान में, निगम अपने 121 थोक गोदामों, 47 खुदरा दुकानों, 54 एल.पी.जी. एजेंसियों, 4 पेट्रोल पंपों और 40 दवा की दुकानों के माध्यम से राज्य के उपभोक्ताओं को अन्य आवश्यक वस्तुएं जैसे एल.पी.जी., डीजल/पेट्रोल/मिट्टी का तेल और जीवन रक्षक दवाएं भी उचित दरों पर उपलब्ध करवा रहा है। इसके अलावा चीनी, दाल, चावल, आटा, डिटर्जेंट, चायपत्ती, नोट बुक, सीमेंट, सी.जी.आई. शीट, दवाइयां, फर्नीचर जैसी गैर-नियंत्रित वस्तुओं की खरीद और वितरण कर रहा है। पूरक पोषाहार कार्यक्रम के अर्न्तगत वस्तुएं, मनरेगा सीमेंट और पेट्रोलियम उत्पादों आदि को निगम के थोक गोदामों और खुदरा दुकानों के माध्यम से बेचा जाता है, जिसने निश्चित रूप से खुले बाजार में प्रचलित इन वस्तुओं की कीमतों को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चालू वित्त वर्ष के दौरान, दिसंबर, 2023 तक निगम ने रियायती योजना के तहत पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान ₹792.05 करोड़ की तुलना में ₹742.64 करोड़ की विभिन्न वस्तुओं की खरीद और वितरण किया। मध्यांतर भोजन योजनान्तर्गत प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों को संबंधित उपायुक्त द्वारा किये गये आवंटन के अनुसार निगम द्वारा चावल एवं अन्य पूरक सामग्री की आपूर्ति की व्यवस्था की जा रही है। वर्ष 2023-24 (दिसंबर, 2023 तक) के दौरान निगम ने इस योजना के तहत पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 11,765.31 मीट्रिक टन की तुलना में 11,093.97 मीट्रिक टन चावल के वितरण की व्यवस्था की। निगम सरकार द्वारा गठित क्रय समिति के निर्णयों के अनुसार राज्य प्रायोजित योजना के तहत विशेष अनुदानित मदों (विभिन्न प्रकार की दालें, फोर्टिफाइड सरसों और रिफाइंड तेल और आयोडीन युक्त नमक) की आपूर्ति की भी व्यवस्था कर रहा है। निगम ने 2023-24 के दौरान (दिसंबर, 2023 तक) इन वस्तुओं को उक्त योजना के अर्न्तगत पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान ₹604.92 करोड़ की तुलना में ₹538.15 करोड़ का राशन राशन कार्ड धारकों को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पैमाने पर वितरित किया है। वर्ष 2023-24 में इस योजना के क्रियान्वयन हेतु राज्य अनुदान के रूप में ₹215.00 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया है। वर्ष 2022-23 के दौरान निगम द्वारा ₹1955.30 करोड़ की तुलना में वर्ष 2023-24 के दौरान लगभग ₹2100 करोड़ का कुल कारोबार प्राप्त करने की संभावना है।
सरकारी आपूर्ति - हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम (एच.पी.एस.सी.एस.सी.) सरकारी अस्पतालों में आयुर्वेदिक दवाओं की खरीद और आपूर्ति, सरकारी विभागों/बोर्डों/निगमों और अन्य सरकारी संस्थानों को सीमेंट और जल शक्ति विभाग को गैल्वनाइज्ड आयरन(जी.आई.) /डक्टाइल आयरन (डी.आई.)/कच्चा लोहा (सी.आई.), पाइप और हिमाचल प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग को स्कूल यूनिफॉर्म का प्रबंधन कर रहा है। चालू वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सरकारी आपूर्ति की अस्थायी स्थिति निम्नानुसार रही।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, (मनरेगा) सीमेंट आपूर्ति- 2023-24 (दिसंबर, 2023 तक) के दौरान, निगम ने राज्य में विकास कार्यों के लिए विभिन्न पंचायतों को ₹76.33 करोड़ की राशि के 24,36,300 बैग सीमेंट की खरीद और वितरण का प्रबंधन किया है।
राज्य के जनजातीय एवं दुर्गम क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा- निगम आदिवासी और दुर्गम क्षेत्रों में मिट्टी के तेल और तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एल.पी.जी.) सहित सभी आवश्यक वस्तुओं, पेट्रोलियम उत्पादों को उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान जनजातीय एवं हिमाच्छादित क्षेत्र में सरकार की जनजातीय कार्य योजना के अनुसार आवश्यक वस्तुओं एवं पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एन.एफ.एस.ए.-2013) का कार्यान्वयन- राज्य सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एन.एफ.एस.ए.) के तहत खाद्यान्नों की भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए निगम के लिए गोदामों के निर्माण के लिए बजट उपलब्ध करवाया है। राज्य सरकार द्वारा किए गए बजट प्रावधान के अन्तर्गत नेरवा, सिद्धपुर, राजगढ़, बिलासपुर, चंबा, चेतड़ू, थुनाग और संधोल में गोदामों का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है और रोजमर्रा का कारोबार किया जा रहा है। इसके अलावा निगम को पी.एम. गति शक्ति योजना के अन्तर्गत मौजूदा गोदामों की मुरम्मत व रखरखाव एवं भोरंज और झंडुत्ता में दो नए गोदामों के निर्माण के लिए ₹ 5.00 करोड़ रुपये का बजट प्राप्त हुआ है।
दवा की दुकानें- मौजूदा 40 दवा दुकानों के अलावा 13 नई दवा दुकानें निकट भविष्य में निम्नलिखित स्थानों पर खोलने का प्रस्ताव किया गया है।
i) AIMSS चामियाना
ii) मेडिकल कॉलेज हमीरपुर, जोल सप्पर
iii) नया ओपीडी ब्लॉक, आई.जी.एम.सी.
iv) जोनल हॉस्पिटल एम.सी.एच., न्यू विंग, मंडी
v) मेडिकल कॉलेज, नेरचौक
vi) डी.डी.यू. अस्पताल, शिमला नई विंग
vii) एम्स बिलासपुर
viii) सिविल अस्पताल बंगाणा
ix) सिविल अस्पताल बड़सर
x) सिविल अस्पताल शाहपुर
xi) सिविल अस्पताल सराहां (सिरमौर)
xii) सिविल अस्पताल राजगढ़
xiii) सिविल अस्पताल चुवाड़ी (चंबा)
किसानों से धान और गेहूं की खरीद- राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार, निगम ने खरीफ मिलिंग सीजन (के.एम.एस.), 2022-23 और रबी मिलिंग सीजन (आर.एम.एस.), 2022-23 से किसानों से धान और गेहूं की खरीद शुरू कर दी है। इस वर्ष रबी मिलिंग सीजन (आर.एम.एस.) 2023-24 में निगम द्वारा कुल 2,868.20 मीट्रिक टन गेहूं सीधे किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदा गया है। इससे राज्यभर के 813 किसानों को लाभ हुआ है। इस वर्ष के दौरान, खरीफ मिलिंग सीजन (के.एम.एस.) 2023-24 में, निगम द्वारा कुल 22,897.95 मीट्रिक टन धान सीधे किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) पर खरीदा गया है। इससे राज्य भर के 3,746 किसानों को लाभ हुआ है।

6.कृषि और बागवानी

हिमाचल प्रदेश, जो अपनी कृषि प्रधानता के लिए प्रसिद्ध है, अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कृषि और बागवानी पर बहुत अधिक निर्भर करता है। क्षेत्र की विविध जलवायु, विशेष रूप से फल उत्पादन के लिए अनुकूल होने के चलते, कृषि को एक महत्वपूर्ण आर्थिक चालक के रूप में स्थापित किया है। सरकार हिम उन्नति योजना, मुख्यमंत्री कृषि संवर्धन योजना, कृषि उत्पादन संरक्षण योजना, प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना, राज्य कृषि यंत्रीकरण कार्यक्रम, जल से कृषि को बल योजना जैसी पहलों के माध्यम से कृषि आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही है। प्रौद्योगिकी का तीव्र विकास वैश्विक परिदृश्य में क्रांति ला रहा है और कृषि कोई अपवाद नहीं है। तीव्र तकनीकी प्रगति के इस युग में, नवाचार विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान कर रहे हैं। ऐसी ही एक परिवर्तनकारी तकनीक ड्रोन है, जिसे हिमाचल प्रदेश सरकार कृषि पद्धतियों में एकीकृत करने के लिए उत्सुक है। हिमाचल प्रदेश की चुनौतीपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियों में, ड्रोन तकनीक किसानों और बागवानों की आय बढ़ाने की अपार संभावनाएं रखती है। इसके अनुप्रयोगों में सटीक मौसम पूर्वानुमान और बेहतर बुआई सुविधाओं से लेकर कुशल कीटनाशक छिडकाव और फसल स्वास्थ्य निगरानी भी शामिल हैं। ड्रोन तकनीक को अपनाने पर सरकार का बल राज्य में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाता है। कृषि और इसकी संबद्ध गतिविधियाँ राज्य के अधिकांश लोगों के जीवन और आजीविका का अभिन्न अंग हैं। इस तथ्य के अलावा यह क्षेत्र खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है, यह राज्य के आधे से अधिक कार्यबल यानी 58.71 प्रतिशत को आजीविका भी प्रदान करता है। कुल सकल राज्य मूल्य वर्धित (जी.एस.वी.ए) में कृषि और उससे जुड़ेे उद्योगों की हिस्सेदारी लगभग 13.70 प्रतिशत है। खाद्य और आय सुरक्षा हासिल करने के लिए राज्य सरकार ने कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी है और कई किसान कल्याण उन्मुख योजनाएं लागू की हैं। कृषि के लिए बजट आवंटन भी 2017-18 में ₹1,294.96 करोड़ से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में ₹1,875.17 करोड़ हो गया। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में, राज्य ने अपने शुद्ध राजस्व व्यय का 4.39 प्रतिशत कृषि के लिए आवंटित किया है।
कृषि और उसके उप-क्षेत्रों का योगदान- पिछले कुछ वर्षों में राज्य की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र के योगदान में निरंतर वृद्धि हुई है। मौजूदा कीमतों पर जी.एस.वी.ए. में कृषि और संबद्ध क्षेत्र का योगदान 2018-19 में ₹17,767 करोड़ से 49 प्रतिशत बढ़कर 2023-24 में ₹26,458 करोड़ अग्रिम अनुमान (अ.अ.) हो गया है। 2018-19 से 2023-24 के बीच (2018-19 में ₹10,286 करोड़ से 2023-24 में ₹16,410 करोड़) मौजूदा कीमतों पर फसलों के जी.एस.वी.ए. में उल्लेखनीय सुधार हुआ है । मौजूदा कीमतों पर जी.एस.वी.ए. में फसल क्षेत्र का योगदान इसी अवधि में 60 प्रतिशत बढ़ गया है। 2018-19 से 2023-24 (अ.अ.) के बीच, हिमाचल प्रदेश में कृषि, वानिकी, पशुधन और मत्स्य पालन की जी.एस.वी.ए. ( प्रचलित कीमतों पर) में 6.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सी.ए.जी.आर.) देखी गई है। फसल क्षेत्र 8.1 प्रतिशत की सी.ए.जी.आर. के साथ इस वृद्धि का एक प्रमुख चालक था, कृषि और संबद्ध गतिविधियों के जी.एस.वी.ए. में इस क्षेत्र का योगदान 2018-19 में 12.78 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 13.70 प्रतिशत हो गया है। राज्य में कुल जी.एस.वी.ए. में कृषि और संबद्ध क्षेत्र की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्षों में 12-15 प्रतिशत के बीच रही है।
कृषि और उसके उप-क्षेत्रों का विकास- अग्रिम अनुमान के अनुसार, कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. में वित्त वर्ष 2023-24 में स्थिर कीमतों पर 2.4 प्रतिशत की कमी होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई थी। कृषि क्षेत्र में संकुचन मुख्य रूप से फसल उप-क्षेत्र (-6.5 प्रतिशत) में तेज संकुचन के कारण था (चित्र 6.3)। हिमाचल प्रदेश में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की विकास दर राष्ट्रीय स्तर की कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की विकास दर की तुलना में अधिक अस्थिर रही है।
i) फसल-उप-क्षेत्र- फसल उप-क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में कृषि के भीतर प्रमुख उप-क्षेत्र है, जो वित्त वर्ष 2023-24 में कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 62 प्रतिशत और कुल जी.एस.वी.ए. का 8.50 प्रतिशत है (चित्र 6.1 और 6.2)। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. में पशुधन, मत्स्य पालन और वानिकी का योगदान क्रमशः 9.6 प्रतिशत, 1.1 प्रतिशत और 27.3 प्रतिशत रहा चित्र 6.1।

पशुधन- पशुपालन और पशुधन क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए महत्वपूर्ण हैं। वे न केवल उनकी आय में योगदान देते हैं बल्कि किसी भी प्राकृतिक आपदा के खिलाफ उनके सर्वोत्तम बीमा में भी योगदान देते हैं। फसल उत्पादन की क्षमता भारी निवेश, मौसम और मौसम संबंधी स्थितियों पर निर्भर करती है। तुलनात्मक रूप से, पशुपालन और पशुधन क्षेत्र अधिक स्थिर हैं और इन्हें कम निवेश की आवश्यकता होती है। इसमें काफी संभावनाएं हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान है। इसके अलावा, पशुधन और मुर्गीपालन कई संकटपूर्ण स्थितियों में, विशेषकर सूखे आदि के मामले में, ग्रामीण गरीबों के लिए जीवन रक्षक साबित हुए हैं। इसे और इस क्षेत्र की विकास क्षमता को समझते हुए, इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में पशुधन उपक्षेत्र कुल जी.एस.वी.ए. का 1.31 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 9.6 प्रतिशत है। पशुधन उप-क्षेत्र की वृद्धि दर 2018-19 में 16.3 प्रतिशत और 2019-20 में 9.9 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2020-21 में 5.7 प्रतिशत के मुकाबले 2023-24 में गिरकर 4.1 प्रतिशत हो गई।
वानिकी- वित्त वर्ष 2023-24 में प्रचलित कीमतों पर कुल जी.एस.वी.ए. में वानिकी का हिस्सा 3.7 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 27.3 प्रतिशत था। वानिकी उप-क्षेत्र वित्त वर्ष 2022-23 में 3.7 प्रतिशत के मुकाबले वित्त वर्ष 2023-24 में 1.6 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है।
मत्स्य पालन- वित्त वर्ष 2023-24 में प्रचलित कीमतों पर मत्स्य पालन उपक्षेत्र कुल जी.एस.वी.ए. का केवल 0.15 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 1.1 प्रतिशत है। पिछले दस वर्षों में मत्स्य पालन क्षेत्र की वृद्धि उत्साहजनक रही है। मत्स्य उप-क्षेत्र वित्त वर्ष 2022-23 में 9.1 प्रतिशत के मुकाबले वित्त वर्ष 2023-24 में 7.0 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।
हिमाचल प्रदेश 55,673 वर्ग किलोमीटर (वर्ग कि.मी़) के भौगोलिक क्षेत्र के साथ भारत में 17वें और दुनिया में 126वें स्थान पर है। कुल भौगोलिक क्षेत्र में से 11.49 प्रतिशत क्षेत्र शुद्ध बुवाई क्षेत्र के अंतर्गत आता है और लगभग 24.55 प्रतिशत वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। लगभग 7.98 प्रतिशत गैर-कृषि उपयोग वाली भूमि, परती भूमि 1.53 प्रतिशत, बंजर और अकृषि योग्य भूमि 16.73 प्रतिशत है चित्र 6.4।

भूमि जोत का स्वरूप- राज्य में परिचालन जोत की कुल संख्या 9.97 लाख है जो 9.44 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है और जोत का औसत आकार 0.95 हेक्टेयर है। सारणी-6.1 और चित्र 6.5 में जोत का आकार, संचालित क्षेत्र और भूमि स्वामित्व की प्रत्येक श्रेणी का प्रतिशत और संचालित क्षेत्र दर्शाया गया है।

वर्षा- हिमाचल प्रदेश में जून से सितंबर, 2023 तक 879 मिलीमीटर (मि.मी.) बारिश हुई, जो सामान्य बारिश 734 मि.मी. से 144 प्रतिशत अधिक है। इसी प्रकार अक्टूबर से दिसंबर, 2023 तक राज्य में 45 मिमी वर्षा हुई जो सामान्य वर्षा 83 मि.मी. से 38 प्रतिशत कम है (चित्र 6.6)।
राज्य में खेती योग्य भूमि का लगभग 80 प्रतिशत वर्षा आधारित कृषि है। चावल, मक्का और गेहूं राज्य की प्रमुख फसलें हैं। सोयाबीन और सूरजमुखी खरीफ में प्रमुख तिलहनी फसलें हैं और रेपसीड/सरसों और तोरिया रबी में प्रमुख तिलहनी फसलें हैं। राज्य की प्रमुख दलहनी फसलों में खरीफ मौसम में माश, मूंग और राजमाश और रबी मौसम में चना और मसूर शामिल हैं। कृषि-जलवायु की दृष्टि से, राज्य को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है (प) उपोष्णकटिबंधीय, उप पर्वत और निचली पहाड़ियाँ, (पप) उप समशीतोष्ण नमी वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्र, उप आर्द्र मध्य (पपप) आर्द्र शीतोष्ण ऊँची पहाड़ियाँ, और (पअ) ठंडे रेगिस्तान। राज्य की कृषि -जलवायु विशेषताएं नकदी फसलों जैसे बीज आलू, बेमौसमी सब्जियां और अदरक के विकास के लिए अनुकूल हैं। राज्य सरकार बेमौसमी सब्जी उत्पादन, आलू, अदरक, दलहन और तिलहन के साथ-साथ समय पर और पर्याप्त इनपुट आपूर्ति, प्रदर्शन और बेहतर कृषि प्रौद्योगिकी के प्रभावी प्रसार, बीज प्रतिस्थापन, एकीकृत प्रचार के माध्यम से अनाज की फसल की उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। कीट प्रबंधन, जल संसाधनों के कुशल उपयोग के तहत अधिक क्षेत्र लाना और बंजर भूमि विकास परियोजनाओं का कार्यान्वयन करना। वर्षा के संदर्भ में, चार अलग-अलग मौसम हैं। लगभग आधी वर्षा मानसून के मौसम में होती है, शेष अन्य मौसमों के दौरान होती है। राज्य में औसत वर्षा 1,251 मि.मी. है। कांगड़ा में सबसे अधिक वर्षा होती है, उसके बाद चंबा, सिरमौर और मंडी का स्थान आता है।
बोया गया क्षेत्र- शुद्ध बोया गया क्षेत्र (एन.एस.ए.) 2008-09 में 539 हजार हेक्टेयर से मामूली बढ़कर 2018-19 में 543 हजार हेक्टेयर हो गया है। इस अवधि के दौरान, हजारों हेक्टेयर को खेती के अंतर्गत लाया गया। गेहूं, मक्का, चावल, जौ और दालें राज्य में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें हैं। संचयी रूप से, इन फसलों का क्षेत्रफल खेती के कुल क्षेत्रफल का लगभग 82 प्रतिशत है। वर्तमान में, गेहूं (34.90 प्रतिशत) और मक्का (31.37 प्रतिशत) की खेती कुल क्षेत्रफल का 66 प्रतिशत है।
प्रमुख फसलों का उत्पादन- हिमाचल प्रदेश में 2019-20 से 2022-23 तक प्रमुख फसलों का उत्पादन तालिका 6.2 में प्रस्तुत किया गया है, वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान, राज्य के कुल फसल उत्पादन में खाद्यान्न का योगदान लगभग 42.10 प्रतिशत और वाणिज्यिक योगदान 57.90 प्रतिशत था। जैसा कि सारणी 6.2 में दिखाया गया है, वर्ष 2023-24 में छोटे अनाज के उत्पादन में 145.11 प्रतिशत, मक्का में 4.74 प्रतिशत और गेहूं में 1.75 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।

उत्पादकता में प्रचलन- कृषि उत्पादकता कई कारकों जैसे सिंचाई, गुणवत्ता वाले बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों, विस्तार सेवाओं, ग्रामीण बुनियादी ढांचे आदि के उपयोग से संचालित होती है। क्षेत्र विस्तार के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने की क्षमता अपेक्षाकृत सीमित है। खेती योग्य भूमि के मामले में, हिमाचल पहले ही देश के बाकी हिस्सों के समान एक पठार पर पहुंच गया है। नतीजतन, उत्पादकता के स्तर में वृद्धि और उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधता लाना दोनों प्राथमिकताएं हैं। खाद्यान्न उत्पादन के लिए उपयोग किया जाने वाला क्षेत्र धीरे-धीरे कम होता जा रहा है क्योंकि व्यावसायिक फसलों की ओर झुकाव बढ़ रहा हैं 1997-98 में यह 853.88 हजार हेक्टेयर था लेकिन वित्त वर्ष 2022-23 में केवल 691.66 हजार हेक्टेयर रह गया है।

उच्च उपज देने वाली किस्मों का कार्यक्रम (एच.वाई.वी.पी.)- कृषि और बागवानी फसलों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने में गुणवत्तापूर्ण बीजों का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के प्रयास में किसानों को उच्च उपज किस्मों के बीज (एच.वाई.वी.एस.) के वितरण पर जोर दिया गया है। मक्का, धान और गेहूँ जैसी प्रमुख फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों का क्षेत्रफल नीचे सारणी 6.3 में दिखाया गया है।

कृषि विभाग के फार्म/विकास केंद्र- राज्य में, कृषि विभाग ने बीस बीज गुणन फार्म (एस.एम.एफ.), तीन सब्जी विकास केंद्र (वी.डी.एस.), बारह आलू विकास केंद्र (पी.डी.एस.) और एक अदरक विकास केंद्र (जी.डी.एस.) विकसित किए हैं। इन सरकारी फार्मों का उपयोग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर.) या राज्य कृषि विश्वविद्यालयों से प्राप्त प्रजनक बीजों को आधार बीजों में बहुगुणित करने के लिए किया जाता है। नीति के अनुसार कृषि विशेषज्ञों की कड़ी निगरानी में सरकारी खेतों में प्रजनक बीज का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। खेतों पर उत्पन्न आधार बीज को पंजीकृत बीज उत्पादकों को गुणन के लिए भेजा जाता है, जिसे विभाग द्वारा राज्य की बीज आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिग्रहित किया जाता है।
पौध संरक्षण कार्यक्रम- कीट-पतंगें और रोग का प्रकोप लक्षित उत्पादन तक पहुँचने में बाधक हैं। नुकसान को कम करने के लिए, कीट-पीड़क और रोग की सघनता को आर्थिक सीमा से नीचे बनाए रखने के लिए उचित उपायों को लागू किया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने राज्य क्षेत्र की पहलों के माध्यम से रासायनिक-आधारित कीटनाशकों/कवकनाशकों आदि को बढ़ावा नहीं देने का फैसला किया है, बल्कि इसके बजाय फसलों की सुरक्षा के लिए गैर-रासायनिक तकनीकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। इसके परिणामस्वरूप, सभी श्रेणियों के किसानों को कीट जाल और प्रलोभन (फेरोमोन जाल, प्रकाश जाल, चिपचिपा जाल), जैव-कीटनाशक, जैव एजेंट, वनस्पति विज्ञान आदि के लिए 50 प्रतिशत प्रोत्साहन देने पर सहमति हुई है।
उर्वरकों की खपत और अनुदान- उर्वरकों और कीटनाशकों की खपत कई कारकों द्वारा निर्धारित की जाती है जैसे कि खेती के तहत भूमि का क्षेत्र, फसल का प्रकार, फसल का स्वरूप और फसल की सघनता, मिट्टी का प्रकार और इसकी स्थिति, कृषि-जलवायु की स्थिति, किसानों की खरीद करने की क्षमता, सिंचाई, और अन्य। राज्य में प्रमुख उर्वरकों की खपत 1985-86 में 23,664 मीट्रिक टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 57,852 मीट्रिक टन हो गई।
चूंकि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को धीरे-धीरे हतोत्साहित किया जा रहा है जिससे वर्ष 2022-23 के दौरान खपत में गिरावट देखी गई है, जैसा कि सारणी 6.4 में दर्शाया गया है। संतुलित उर्वरकों को प्रोत्साहित करने के लिए जटिल उर्वरकों के लिए ₹1,000 प्रति मीट्रिक टन की अनुदान की अनुमति दी गई है। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग वर्षवार विभाजन निम्नलिखित हैः

मृदा परीक्षण कार्यक्रम- राज्य में कृषि विभाग की 11 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं, तीन उर्वरक और बीज परीक्षण प्रयोगशालाएं, दो जैव नियंत्रण प्रयोगशालाएं, एक राज्य कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशाला और एक जैव उर्वरक उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला है। कृषि विभाग मृदा स्वास्थ्य का आकलन करने के उद्देश्य से किसानों को निरूशुल्क मृदा परीक्षण प्रदान करता है। इसके अलावा, किसानों को गुणवत्तापूर्ण इनपुट प्रदान करने के लिए राज्य में बीज, उर्वरक और कीटनाशक के लिए गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएँ चालू की गई हैं। इसके अलावा, कीट/कीट प्रबंधन की गैर-रासायनिक तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए कांगड़ा और मंडी जिलों में दो जैव नियंत्रण प्रयोगशालाएं संचालित हो रही हैं। ये प्रयोगशालाएं किसानों के खेतों पर जैव एजेंटों, जैव कीटनाशकों, कीट जाल प्रलोभन इसी तरह के अन्य उत्पादों का मुफ्त में उपयोग करना सिखा रही हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार लोक सेवा अधिनियम, 2011 में मृदा परीक्षण सेवा को भी जोड़ा गया है, जिसमें निर्धारित समय सीमा के भीतर इंटरनेट सेवा के माध्यम से किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराया जाता है।

राज्य प्रायोजित योजनाएँ


मुख्यमंत्री कृषि संवर्धन योजना (एम.एम.के.एस.वाई.)- विशेषज्ञ समूह की सिफारिश के अनुसार, गतिविधि दोहराव को रोकने के लिए समान लक्ष्यों वाले चल रहे चार कार्यक्रमों को वित्त वर्ष 2023-24 में समेकित किया गया है। योजना के घटक निम्नलिखित हैं
i) क्लस्टर आधारित सब्जी उत्पादन योजना
ii) इनपुट आधारित अंब्रेला योजना (बीज, पार्ट्स प्रति मिलियन (पी.पी.एम.) और उर्वरक)।
iii) बीज गुणन शृंखला को मजबूत करना।
iv) प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण। इस योजना के अर्न्तगत वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹33.67 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
1) क्लस्टर आधारित सब्जी उत्पादन योजना- सामान्य रूप से सब्जियां और विशेष रूप से हरी पत्तेदार सब्जियां आवश्यक खनिज, विटामिन प्रदान करती हैं, और इस प्रकार मानव आहार और पोषण सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिसका एस.डी.जी.-2 की उपलब्धि में योगदान दे रहा हैरू भूख समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, पोषण में सुधार करना और स्थायी कृषि बढ़ावा देना। कृषि में नवीनतम तकनीकी प्रगति ने विविधीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है, यह दर्शाता है कि सब्जियों से किसानों और राज्य को त्वरित आर्थिक विकास के लिए बड़ी क्षमता प्रदान करने की उम्मीद है। विभाग ने धीरे - धीरे पूरे राज्य में सब्जी उगाने के लिए ष्क्लस्टर दृष्टिकोणष् का उपयोग करने की योजना बनाई है। इस रणनीति का उद्देश्य आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी सब्जी फसलों के विकास को बढ़ावा देना और किसानों की आय में वृद्धि करना है।
2) इनपुट आधारित छत्र योजना (बीज, पौध संरक्षण सामग्री और उर्वरक)- आठ राज्य क्षेत्र के कार्यक्रमों के तहत, कृषि विभाग ने विभिन्न कृषि आदानों के लिए अनुदान प्रदान किया है। एकीकृत योजना, जिसे ष्मुख्यमंत्री कृषि संवर्धन योजनाष् के रूप में जाना जाता है, जिसमें बीज, उर्वरक, पौध संरक्षण सामग्री, उच्च मूल्य वाली फसलों की उच्च उपज किस्मों के लिए सहायता और स्वदेशी मक्का किस्मों के मूल्यवर्धन और प्रकार के लिए प्रोत्साहित करना है।
3) बीज गुणन श्रृंखला का सुदृढ़ीकरण- बीज गुणन एक आवश्यक कृषि गतिविधि और बीज में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए बीज श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण तत्व है, यह एक ऐसा संसाधन जिसके लिए हम ज्यादातर पड़ोसी राज्यों पर निर्भर हैं। चूँकि बीज गुणन एक सतत वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें न्यूक्लियस बीज, ब्रीडर बीज, आधार बीज और प्रमाणित बीज का उत्पादन शामिल है, इन चार प्रकार के बीजों का उत्पादन किया जाना चाहिए। सरकारी फार्म राज्य में गुणवत्तापूर्ण बीजों के गुणन में पड़ोसी राज्य एजेंसियों पर निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में, 36 विभागीय फार्म विभिन्न फसलों की खेती करते हैं, जिनमें धान, माश, सोयाबीन, गेहूं, बीज आलू, राजमाश आदि शामिल हैं। इन खेतों पर, विभिन्न फसलों के लगभग 17,000 क्विंटल आधार बीज प्रतिवर्ष उत्पन्न होते हैं, जिसे बाद में राज्य के प्रगतिशील किसानों को प्रमाणित बीज के रूप में प्रतिकृत किया जाता है।
4) प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण (उर्वरक परीक्षण, मृदा परीक्षण, जैव नियंत्रण, बीज परीक्षण, जैव उर्वरक और राज्य कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशाला)- राज्य में 11 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ, 3 उर्वरक परीक्षण प्रयोगशालाएँ, 2 जैव-नियंत्रण प्रयोगशालाएँ और प्रत्येक राज्य को एक कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशाला और जैव-उर्वरक उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला हैं। इन सभी का संचालन कृषि विभाग करता है। किसान अपनी मिट्टी कितनी स्वस्थ है, इसका पता लगाने के लिए कृषि विभाग से निःशुल्क मृदा परीक्षण करा सकते हैं। इसके अलावा, राज्य में बीज, उर्वरक और कीटनाशक के लिए गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएं हैं, ताकि किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले इनपुट मिल सकें। कीटों से छुटकारा पाने के लिए गैर-रासायनिक तरीकों को बढ़ावा देने के लिए कांगड़ा और मंडी जिलों में दो जैव नियंत्रण प्रयोगशालाएं भी काम कर रही हैं। ये प्रयोगशालाएं किसानों को उनके खेतों में मुफ्त में जैव एजेंटों, जैव कीटनाशकों, कीट जाल, प्रलोभन आदि का उपयोग करने का तरीका बताती हैं।
बीज परीक्षण प्रयोगशालाएँ विभिन्न गुणवत्ता मापदंडों के लिए बीज के परीक्षण में लगी हुई हैं। भौतिक शुद्धता, अंकुरण परीक्षण ताकि किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का वितरण सुनिश्चित हो सके।
मुख्यमंत्री कृषि उत्पादन संरक्षण योजना (एम.एम.के.यू.एस.वाई.)- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान इस योजना के कार्यान्वयन के लिए ₹18.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। योजना में निम्नलिखित घटक हैं
i) राज्य में हर साल बंदरों और अन्य जंगली जानवरों के कारण फसलों को काफी नुकसान होता है। स्वयं फसलों की रखवाली करने की वर्तमान प्रथा इस बात की गारंटी नहीं देती है कि सभी फसलें सुरक्षित रहेंगी। इसलिए, 2016-17 में, हिमाचल प्रदेश सरकार ने ष्एम.एम.के.य.ूएस.वाई.ष् नामक एक कार्यक्रम शुरू किया।
ii) इस योजना के तहत, यदि तीन या अधिक किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए सौर बाड़, इंटरलिंक चेन बाड़ लगाना, समग्र इंटरलिंक श्रृंखला सौर बाड़ और कांटेदार तार बाड़ लगाना चाहते हैं तो 70 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है। विभाग के पास किसानों के खेत में सोलर फेंसिंग और कंपोजिट इंटरलिंक चेन सोलर फेंसिंग की स्थापना के लिए पंजीकृत/अनुमोदित सेवा प्रदाता हैं, जबकि चेन लिंक बाड़ और कांटेदार तार को विभाग के अनुमोदित दिशानिर्देशों के अनुसार किसान द्वारा स्वयं भी स्थापित की जा सकती है।
हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण संवर्धन परियोजना (एच.पी.सी.डी.पी.) जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जे.आई.सी.ए.)-बाहरी सहायता प्राप्त परियोजना (ई.ए.पी.)-
चरण-1 संभावित स्थानों में स्थायी कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए, जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी से ₹321.00 करोड़ की सहायता से फसल संवर्धन विविधीकरण परियोजना को मंजूरी दी गई और 2020 तक राज्य में लागू किया गया। परियोजना का उद्देश्य सब्जियों के क्षेत्र और उत्पादन में वृद्धि करना था। फसल विविधीकरण के माध्यम से, छोटे और सीमांत किसानों की आय बढ़ाने के लिए, सिंचाई के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण, कृषि पहुंच सड़कों, विपणन और फसल कटाई के बाद, सिंचाई प्रणाली के संचालन और रखरखाव के लिए किसानों को समूहों में संगठित करना, और विभाग के कृषि क्षेत्र विस्तार स्टाफ को प्रशिक्षित करके सक्षम बनाना शामिल है। हिमाचल प्रदेश कृषि विकास समिति ने इस परियोजना को अपनाया है। इस परियोजना में 210 छोटी सिंचाई योजनाओं का निर्माण, 29.40 कि.मी. संपर्क मार्ग और 23 संग्रहण केंद्र शामिल है। कांगड़ा, मंडी, ऊना, बिलासपुर और हमीरपुर को परियोजना स्थल के रूप में चुना गया था।
चरण-2 चरण-2 आधिकारिक विकास सहायता परियोजना (ओ.डी.ए.), ₹1010.13 करोड़ के परिव्यय के साथ, अगले नौ वर्षों के दौरान राज्य के सभी जिलों में लागू की जा रही है। 26 मार्च, 2021 को भारत सरकार और जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी ने दूसरे चरण के कार्यान्वयन के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, ₹30.00 करोड़ के बजट प्रावधान को संशोधित कर वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान योजना को लागू करने के लिए ₹150.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है। जे.आई.सी.ए. चरण-2 के अंतर्गत निम्नलिखित घटकों को शामिल किया जाएगा
i) बुनियादी ढांचे का विकास (लघु और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, फार्म तक पहुंच के लिए सड़कें और सौर/इलेक्ट्रिक बाड़ लगाना)।
ii) किसान सहायता घटक (इंजीनियरिंग और कृषि कर्मचारियों और सब्जी संवर्धन, बीज उत्पादन और प्रदर्शन का क्षमता निर्माण कार्यक्रम)।
iii) मूल्य श्रृंखला और बाजार विकास घटक।
iv) संस्थागत विकास घटक।
मुख्यमंत्री किसान एवं खेतिहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना- राज्य सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान ‘‘मुख्यमंत्री किसान एवं खेतिहर मजदूर जीवन सुरक्षा‘‘ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसका उद्देश्य कृषि मशीनरी के संचालन के कारण घायल होने या मृत्यु होने पर किसानों और खेतिहर मजदूरों को बीमा कवरेज प्रदान करना है। प्रभावित किसानों को आंशिक विच्छेदन, स्थायी दिव्यांगता और मृत्यु की स्थिति में क्रमशः ₹10,000 से ₹40,000, ₹1.00 लाख और ₹3.00 लाख का मुआवजा दिया जाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹40.00 लाख का बजट प्रावधान रखा गया है।
कृषि विपणन- ‘‘हिमाचल प्रदेश कृषि और बागवानी उत्पाद विपणन विकास और विनियमन अधिनियम, 2005‘‘ कृषि विपणन को नियंत्रित करता है। हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड द्वारा (एच.पी.एस.ए.एम.बी.) 10 जिला ए.पी.एम.सी. राज्य में कृषि उत्पादों के विपणन के लिए गठित किए गए हैं। उत्पादकों को 71 मार्केट यार्ड (10 ए.पी.एम.सी. और 61 सब मार्केट यार्ड) द्वारा सेवा दी जाती है। ये बाजार ताजा उपज और अनाज बेचते हैं। ूूू.ंहउंतादमज.हवअ.पद हितधारकों के लिए समय-समय पर वस्तुओं की कीमतों सहित मार्केटिंग आंकड़े प्रकाशित करता है। आकाशवाणी, दूरदर्शन और समाचार पत्र कीमतों की जानकारी देते हैं। बढ़ते क्षेत्रों में, किसान जागरूकता शिविर के विपणन की नवीनतम तकनीकों को सिखाया जाता है। सरकारी अनुदान का उपयोग बाजार यार्ड निर्माण सहित कई कार्यों के लिए किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक-राष्ट्रीय कृषि बाजार 26 राज्यों के थोक बाजारों (ई-एन.ए.एम.) को जोड़ते है।
प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत शून्य बजट प्राकृतिक खेती (पी.के.केे.के.वाई.-जेड.बी.एन.एफ.)- राज्य सरकार ने खेती की लागत को कम करने के लिए ‘‘जेड.बी.एन.एफ.‘‘ को बढ़ावा देने के लिए ‘‘पी.के.केे.के.वाई.‘‘ पहल शुरू की है। सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को हतोत्साहित किया जाएगा। कीटनाशक/कीटनाशी के लिए कृषि और बागवानी विभाग को आवंटित धन का उपयोग जैव कीटनाशक और जैव कीटनाशी को वितरित करने के लिए किया जाएगा। अब तक राज्य में 1,78,643 किसानों ने 24,210 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती का विकल्प चुना है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2023-24 में 50,000 बीघा भूमि को कवर किया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹13.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
जल से कृषि को बल योजना- सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने एक परियोजना ‘‘जल से कृषि को बल‘‘ बनाई है। इस कार्यक्रम के तहत चेक डैम और तालाब बनाए जाएंगे। किसान अलग-अलग छोटी लिफ्टिंग स्कीम या फ्लो इरिगेशन स्कीम बनाकर सिंचाई के लिए इस पानी का उपयोग कर सकते हैं। सरकार इस योजना के तहत एक समुदाय आधारित मामूली जल बचत प्रणाली को लागू करने की पूरी लागत वहन करेगी। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹10.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
प्रवाह सिंचाई योजना- इस योजना के तहत कुह्लों के स्रोत स्थान का जीर्णोद्धार करने के साथ ही सामान्य क्षेत्र में कुहलों का सुदृढ़ीकरण किया जाएगा। इस योजना के तहत समुदाय आधारित कार्य पर शत-प्रतिशत व्यय सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। सरकार ने इस योजना के तहत सिंचाई उद्देश्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से बोर-वेल और उथले कुओं के निर्माण के लिए 50 प्रतिशत अनुदान देने का निर्णय लिया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹8.00 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
राज्य कृषि यंत्रीकरण कार्यक्रम- फार्म मशीनीकरण में राज्य के किसानों के लिए नए डिजाइन किए गए उपकरण और उन्नत तकनीक की शुरुआत शामिल है। विभाग यह सुनिश्चित करता है कि किसानों के पास रियायती उपकरण और मशीनरी तक पहुंच सके। इस वर्ष, राज्य सरकार अतिरिक्त उपकरणों जैसे चारा कटर, मक्का शेलर, गेहूं थ्रैशर, स्प्रेयर, ब्रश कटर, टूलकिट, स्टेनलेस स्टील हल, मोल्ड बोर्ड हल, बीज बिन, पानी टब इत्यादि पर 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत सब्सिडी की पेशकश कर रही है। राज्य सरकार ने योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹10.00 करोड़ अलग रखे है।
पोषक अनाजों को बढ़ावा देना- मोटे अनाज का स्वास्थ्य और पोषण संबंधी लाभों के बारे में जागरूकता के लिए वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (आई.वाई.ओ.एम.-2023) के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। इसलिए, समय की आवश्यकता को समझते हुए, किसानों को इन फसलों के बारे में जागरूक और प्रोत्साहित करना आवश्यक है, और साथ ही इन किसानों को बाजार अधिशेष उत्पादन करने के लिए प्रेरित करने के लिए आवश्यक तकनीकी इनपुट और बाजार लिंकेज प्रदान करना आवश्यक है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः वे उगाना जारी रखें। मोटे अनाज की खेती करने वाले किसान उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, मोटे अनाज की खेती के अन्तर्गत् क्षेत्र को बढ़ाने के लिए परियोजना के तहत निम्नलिखित घटकों का प्रस्ताव किया गया है।
i) अनुदान पर बीज वितरण।
ii) मिनीकिट का वितरण।
iii) मोटे अनाज फूड फेस्टिवल का आयोजन।
iv) उत्पादन में किसानों की क्षमता निर्माण, फसल कटाई के बाद की तकनीक और पोषण सुरक्षा में इसका उपयोग।
v) मोटे अनाज की फार्म गेट बिक्री (कैनोपी के माध्यम से)।
इस योजना के क्रियान्वयन हेतु राज्य सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹1.51 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
हिम उन्नति योजना-
i) मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश ने इस वित्त वर्ष 2023-24 से पूरे राज्य में लागू की जाने वाली एक नई योजना ष्हिम उन्नतिष् की घोषणा की। योजना के तहत, कृषि और संबद्ध क्षेत्र के विकास के लिए, 1,239 समूहों की पहचान की गई है, जिनमें से प्रत्येक में न्यूनतम 40 बीघा कृषि योग्य भूमि है। योजना के तहत सभी हितधारकों यानी कृषि विभाग = 1,200, राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई (एस.पी.आई.य.ू) -1,100, जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जे.आई.सी.ए.)-300 कुल 2,600 क्लस्टर की पहचान की जानी है।
ii) वित्त वर्ष 2023-24 में योजना के अंतर्गत ₹25.00 करोड़ का बजट प्रावधान है। राज्य भर में सभी जिलों को कवर करते हुए कुल 2,600 समूहों की पहचान की जानी है। अब तक 283 क्लस्टर चिन्हित किए जा चुके हैं, जिनमें से 186 क्लस्टरों में गतिविधियां इसी खरीफ सीजन 2023 से शुरू कर दी गई हैं।

केन्द्रीय प्रायोजित योजनाएँ


राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.के.वी.वाई.-रफ्तार)- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना राज्य को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को बढ़ाने में मदद कर रही है। इस योजना का मुख्य लक्ष्य राज्यों को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है। कृषि और संबद्ध क्षेत्र की स्कीमों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना, कृषि-जलवायु परिस्थितियों, प्रौद्योगिकी और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाओं की तैयारी सुनिश्चित करना है जिससे कि स्थानीय जरूरतें/फसलें/प्राथमिकताएं पूरी हों। इस योजना के कार्यान्वयन में विश्वविद्यालयों के साथ-साथ कृषि विभाग, एच.पी.एस.ए.एम.बी. और उद्योग और बागवानी विभाग भी शामिल हैं। इस योजना के अर्न्तगत वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹16.23 करोड के बजट आवंटन को मंजूरी दी गई है।
राष्ट्रीय बांस मिशन- आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 25 अप्रैल, 2018 को पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन को अपनी मंजूरी दी। इस मिशन का मुख्य लक्ष्य कृषि आय के पूरक के लिए गैर-वन सरकारी और निजी भूमि पर बांस के वृक्षारोपण के तहत क्षेत्र को बढ़ाना तथा इसमें योगदान देना है। जलवायु परिवर्तन का लचीलापन, और उद्योगों के लिए गुणवत्तापूर्ण कच्चा माल उपलब्ध कराना। इसका उद्देश्य उत्पादन के स्रोत के करीब नवीन प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना, कौशल विकास को बढ़ावा देना, क्षमता निर्माण और किसानों के लिए जागरूकता पैदा करने के माध्यम से फसल कटाई के बाद के प्रबंधन में सुधार करना है। कृषि निदेशक, हिमाचल प्रदेश को राज्य मिशन निदेशक और कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश को एंकरिंग विभाग के रूप में नामित किया गया है। हितधारकों में वन विभाग, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, उद्योग और राज्य कृषि विश्वविद्यालय शामिल हैं। इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹30.00 लाख का बजट स्वीकृत किया गया है।
फसल बीमा योजना- खरीफ 2016 के बढ़ते मौसम से, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी.एम.एफ.बी.वाई.) और ‘‘पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस.)‘‘ हिमाचल प्रदेश में प्रभावी हैं। पी.एम.एफ.बी.वाई. के तहत रबी सीजन के दौरान गेहूं और जौ की फसल को कवर किया जाता है, जबकि खरीफ सीजन के दौरान मक्का और धान की फसल को कवर किया जाता है। इस नए कार्यक्रम में निवारक रोपण, कटाई के बाद के नुकसान, स्थानीय तबाही और खड़ी फसलों को होने वाले नुकसान (बुवाई से फसल तक) के कारण होने वाले कृषि नुकसान के जोखिम के कई चरणों को शामिल किया गया है। यह कार्यक्रम अब खरीफ 2020 तक ऋण लेने वाले और गैर-ऋण वाले दोनों किसानों के लिए स्वैच्छिक है। पी.एम.एफ.बी.वाई. के अनुसार, केंद्र और राज्य उन दावों के लिए समान रूप से भुगतान विभाजित करेंगे जो कुल इकठ्ठे किये गए प्रीमियम का 350 प्रतिशत या राष्ट्रीय स्तर पर कुल बीमित राशि का 35 प्रतिशत जो भी अधिक हो। पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस.) के अर्न्तगत आलू, अदरक, टमाटर, मटर, गोभी और फूलगोभी सहित छह फसलें खरीफ मौसम के दौरान और आलू, टमाटर, लहसुन और शिमला मिर्च रबी मौसम के दौरान कवर की जाती हैं। कार्यक्रम का लक्ष्य उत्पादकों को बारिश, गर्मी, सापेक्ष आर्द्रता, ओलावृष्टि, शुष्क दौर आदि सहित मौसम संबंधी घटनाओं के खिलाफ बीमा सुरक्षा देना है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। खरीफ सीज़न 2023 सीज़न के दौरान, 1,07,837 किसानों को कवर किया गया है और रबी सीज़न 2023-24 के दौरान 1,07,058 किसानों को कवर किया गया है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹10.00 करोड़ का बजट आवंटन किया गया है। जिसका उपयोग प्रीमियम सब्सिडी के राज्य के हिस्से को कवर करने के लिए किया जाता है।
राष्ट्रीय मिशन के तहत विस्तार सुधार/कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ए.टी.एम.ए.) कार्यक्रम के लिए राज्य विस्तार कार्यक्रमों को सहायता। कृषि विस्तार और प्रौद्योगिकी (एन.एम.ए.ई.टी.)/कृषि विस्तार पर उप मिशन (एस.ए.एम.ई.)- ए.टी.एम.ए. के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं में हस्तक्षेपों को सहक्रियात्मक बनाने के लिए विस्तार मशीनरी को मजबूत करने और इसका उपयोग करने के उद्देश्य से संशोधित विस्तार सुधार योजना शुरू की गई थी। कृषि के अलावा, अन्य विभागों जैसे बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन आदि भी इस कार्यक्रम में हितधारक हैं। कृषि क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने के लिए किसानों के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा करने के लिए, इस योजना के तहत राज्य में कृषक पुरस्कार योजना भी शुरू की गई है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹14.59 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
बीज और रोपण सामग्र्री का उप मिशन (एस.एम.एस.पी.)- कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण बीज सबसे अधिक लागत प्रभावी साधन है। उप मिशन में बुवाई के लिए किसानों को आपूर्ति, बुनियादी ढांचे के लिए समर्थन, पौधों की किस्मों के संरक्षण और किसान अधिकार प्राधिकरण (पी.पी.वी. और एफ.आर.ए.) को मजबूत करने और पौधों की नई किस्मों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए नाभिक बीज से बीज श्रृंखला को कवर किया जाएगा। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹10.49 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है। घटक के तहत खंड स्तर पर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन एवं गेहूं बीज का वितरण किया जायेगा।
कृषि यंत्रीकरण पर उप मिशन (एस.एम.ए.एम.)- इस कार्यक्रम के तहत राज्य के किसानों को नए विकसित उपकरण, समकालीन मशीनरी और लिंग-संवेदनशील उपकरण तक पहुंच प्रदान की जाती है। भारत सरकार के अधिकृत नियमों के अनुसार, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, छोटे और सीमांत और महिला किसान समूहों के किसानों को ट्रैक्टर, पावर टिलर, फसल काटने वाले पावर वीडर, और रोटावेटर जैसे कृषि उपकरणों पर 50 प्रतिशत अनुदान प्राप्त होता है, जो अन्य किसानों को भी 40 प्रतिशत अनुदान के साथ मिलता है। इस योजना के तहत कस्टम हायरिंग सेंटर भी बनाए जा रहे हैं। कस्टम हायरिंग सेंटर उन राज्य के किसानों के लिए आसपास के क्षेत्रों में खेतों को सेवाएं प्रदान करते हैं जो भारी उपकरण खरीदने में सक्षम नहीं हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹15.37 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है।
कृषि वानिकी- कृषि वानिकी को माइक्रॉक्लाइमेट मॉडरेशन, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और छोटे किसानों के लिए आजीविका और आय के अवसरों के अतिरिक्त स्रोत के निर्माण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की क्षमता के लिए जाना जाता है। कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील बनाने के लिए, भारत सरकार ने फसलों/फसल प्रणाली के साथ-साथ ष्हर मेड़ पर पेड़ष् के आदर्श वाक्य के साथ कृषि भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने और विस्तार करने के लिए ष्कृषि वानिकीष् योजना शुरू की। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए इस घटक के तहत भारत सरकार द्वारा ₹89.00 लाख का बजट प्रावधान अनुमोदित किया गया है।
सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.एस.ए.)- स्थायी कृषि में उत्पादकता पानी और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता और पहुंच पर निर्भर है। उपयुक्त स्थल-विशिष्ट विधियों के माध्यम से इन सीमित प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग को प्रोत्साहित करके कृषि विस्तार को बनाए रखा जा सकता है। इसलिए, वर्षा आधारित कृषि का विकास और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण मिलकर राज्य की बढ़ती खाद्यान्न आवश्यकता को पूरा करने की कुंजी है। इसे प्राप्त करने के लिए, सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.एस.ए.) को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ वर्षा जल प्राप्त होता है। कार्यक्रम के विभिन्न तत्वों में जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ कृषि के लिए निगरानी, मॉडलिंग और नेटवर्किंग और साथ-साथ वर्षा आधारित क्षेत्र विकास, कृषि विकास पहल और सी.सी.एस.ए.एम.एम.एन. शामिल हैं। भारत सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 हेतु ₹7.94 करोड़ स्वीकृत किये गये हैं।
परम्परागत कृषि विकास योजना (पी.के.वी.वाई.)- हमारे राज्य के प्रचुर प्राकृतिक संसाधन, जैव विविधता, और वर्षा आधारित कृषि-जलवायु परिस्थितियां जैविक खेती को संभव बनाती हैं। सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन के तहत परम्परागत कृषि विकास योजना किसानों को अपने स्वयं के जैविक सामान को प्रमाणित करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए समूहों में जोड़ना है। पार्टिसिपेटरी गारंटी सर्टिफिकेशन प्लान के तहत महंगे थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन की जगह लेगा। योजना के मुख्य घटकों में क्लस्टर निर्माण और क्षमता निर्माण के लिए प्रबंधन लागत और जैविक/प्राकृतिक खेती इनपुट पर डीबीटी के रूप में किसानों को प्रोत्साहन शामिल है। इस योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹5.53 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता पर राष्ट्रीय परियोजना- उर्वरक के संतुलित उपयोग पर टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर,ष्मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता प्रबंधन पर राष्ट्रीय परियोजनाष् (एन.पी.एम.एस.एफ.) नामक यह केंद्र प्रायोजित योजना तैयार की गई थी। कृषि विभाग राज्य के सभी किसानों को मृदा परीक्षण सुविधा और मृदा स्वास्थ्य कार्ड का निःशुल्क वितरण प्रदान करता है, मृदा परीक्षण आधारित सिफारिशों को सुनिश्चित करता है और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (आई.एन.एम.) को बढ़ावा देता है। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान घटक के कार्यान्वयन के लिए भारत सरकार द्वारा ₹ 2.21 करोड स्वीकृत किए गए हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एन.एफ.एस.एम.)- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एक संघीय वित्त पोषित कार्यक्रम है जो 2007 में शुरू हुआ था। 2022-23 के दौरान चावल, मक्का, दलहन, गेहूं और पोषक अनाज की खेती के लिए ₹6.98 करोड का प्रावधान किया गया है। 2022-23 के लिए, एन.एफ.एस.एम. चावल के लिए कुल ₹0.291 करोड, एन.एफ.एस.एम. गेहूं के लिए ₹2.283 करोड, एन.एफ.एस.एम. मक्का के लिए ₹1.55 करोड, एन.एफ.एस.एम. दलहन के लिए ₹1.91 करोड और न्यूट्री-अनाज के लिए ₹0.95 करोड दिए गए हैं। गेहूं, मक्का, दाल, चावल और पोषक अनाज के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल प्रदेश को इस मिशन में शामिल किया गया है। इस मिशन के तहत, राज्य के नौ जिलों को गेहूं (शिमला, किन्नौर और लाहौल-स्पीति को छोड़कर), दो जिलों को चावल (कांगड़ा और मंडी), नौ जिलों को मक्का (शिमला, किन्नौर और लाहौल और स्पीति को छोड़कर) के लिए चुना गया है और सभी जिलो को दालों और पोषक अनाज के लिए इस योजना में शामिल किया गया है। मिशन क्लस्टर प्रदर्शनों, प्रमाणित बीज, सूक्ष्म पोषक तत्वों, पौधों और मिट्टी की सुरक्षा सामग्री, बेहतर उपकरणों और मशीनरी के वितरण और उन्नत उपकरणों और मशीनरी के विकास में सहायता करता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹7.94 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पी.एम.के.एस.वाई.)- कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयास में, भारत सरकार ने पी.एम.के.एस.वाई. के नाम से एक नई योजना शुरू की है। इस योजना का मुख्य फोकस सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं (‘‘हर खेत को पानी‘‘) और एंड-टू-एंड सिंचाई समाधान पर होगा। पी.एम.के.एस.वाई. का प्रमुख उद्देश्य क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश के अभिसरण को प्राप्त करना, सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए खेत में पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करना, सटीक सिंचाई और अन्य जल बचत प्रौद्योगिकियों को अपनाने में वृद्धि करना है। देश में हर खेत को सिंचाई प्रदान करने के लिए जल संरक्षण और अपशिष्ट में कमी को पूरा करना महत्वपूर्ण है। यह टिकाऊ जल संरक्षण प्रथाओं और जल संसाधनों के अनुकूलन (अधिक फसल प्रति बूंद) को नई सिंचाई सुविधाओं की शुरूआत के रूप में महत्वपूर्ण बनाता है। इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹22.22 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
1) हिमाचल प्रदेश में परंपरागत रूप से अधिशेष उपज को व्यापार के लिए राज्य के बाहर नजदीकी बाजारों में ले जाया जाता था। इससे किसानों को परिवहन, मूल्य निर्धारण और सुरक्षा संबंधी चिताओं के मामले में कई असुविधाएँ होती थी। किसानों की सुविधा के लिए, सरकार ने विभिन्न हस्तक्षेप किये हैं। राज्य ने थोक व्यापार को विनियमित करने के लिए ष्हिमाचल प्रदेश कृषि और बागवानी उपज विपणन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2005 लागू किया है। इस अधिनियम के तहत, हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड और ए.पी.एम.सी का गठन किया गया था।
2) हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड (एच.पी.एस.ए.एम.बी) शीर्ष निकाय है। जो अपनी कृषि उपज मंडी समितियों (ए.पी.एम.सी.) के माध्यम से राज्य में कृषि विपणन बुनियादी ढांचा प्रदान करता है। कृषि विपणन बुनियादी ढांचे के अतिरिक्त, एच.पी.एस.ए.एम.बी. कृषि/बागवानी फसलों के व्यापार, ग्रेडिंग और भंडारण के संदर्भ में नवीनतम तकनीक प्रदान करता है।
3) वर्तमान में, राज्य में 73 मार्केट यार्ड कार्यशील हैं, जिनमें से 10 प्रिंसिपल मार्केट यार्ड (पी.एम.वाई.) और 63 सब मार्केट मार्ड (एस.एम.वाई.) हैं। ये बाजार प्रांगण विपणन सुविधाओं से सुसज्जित हैं। 38 मंडियां राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार ( इ-एन.ए.एम ) के साथ एकीकृत हैं।
4) विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश बागबानी विकास परियोजना (एच.पी.एच.डी.पी.) के तहत, कृषि विपणन बोर्ड 9 मंडियों का निर्माण/उन्नयन कर रहा है। ये मंडियों पराला, मेहदली, शिलारू (शिमला), परवाणू (सोलन), पांवटा साहिब (सिरमौर), बंदरोल, शाट (कुल्लू), कांगनी (मंडी) और पालमपुर (कांगड़ा) हैं। इन कार्यों पर कुल ₹55.44 करोड़ रुपये व्यय हो चुके हैं एवं ₹33.22 करोड़ के कार्य प्रगति पर हैं। सभी कार्यों पर ₹88.67 करोड़ व्यय किये जायेंगे।
5) जे.आई.सी.ए द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण परियोजना (एच.पी.सी.डी.पी.) के तहत, कृषि विपणन बोर्ड राज्य के विभिन्न हिस्सों में 13 मंडियों का उन्नयन कर रहा है। ये मंडियाँ जसूर, पास्सू (कांगड़ा), चौरी बिहाल, पतलीकुल्ह, खेगसू (कुल्लू), टापरी (शिमला), टकोली (मंडी), सोलन, कुनिहार, वाकनाघाट (सोलन), खैरी, घंडूरी और नौहराधार (सिरमौर) हैं । इन मार्केट यार्ड पर कुल ₹27.26 करोड़ का खर्च आया है।
6) न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) का लाभ प्रदान करने के लिए रबी विपणन सीजन (आर.एम.एस.) और खरीफ विपणन सीजन (के.एम.एस.) के दौरान 10 खरीद केंद्रों पर खाद्यान्न की खरीद की गई। कुल ₹6.09 करोड मूल्य की 2,868 मीट्रिक टन गेहूँ 689 किसानों से खरीदी गई। खरीफ विपणन सीजन के दौरान कुल ₹50.43 करोड की 22,897 मीट्रिक टन धान 4,815 किसानों से़ खरीदी गई।
7) किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने के लिए इस वर्ष सेब का व्यापार ए.पी.एम.सी. याडौँ में वास्तविक वजन के आधार पर किया गया। इस संबंध में एक परिपत्र की दिनांक 6 अप्रैल, 2023 को एच.पी.एस.ए.एम.बी. द्वारा अधिसूचना जारी की गई थी जिसके द्वारा सरकार ने विभिन्न अधिकारियों को प्रवर्तन शक्तियां प्रदान की।
8) हिमाचल प्रदेश सरकार की अधिसूचना संख्या ए.जी.आर.बी.ओ.बी./25/2023 दिनांक 19 दिसम्बर, 2023 के माध्यम से राज्य सरकार ने कृषि उपज विपणन मानक ब्यूरो के कार्यों के क्रियान्वन के लिए विशेषज्ञों और पदाधिकारियों का एक पैनल गठित किया है। वर्ष 2023 के सेब विपणन सीजन में कुल 1.82 करोड़ सेब पेटियों में से 89.80 पेटियों का कारोबार राज्य के ए.पी.एम.सी. यार्डाें में हुआ है।
बागवानी कृषि के एक अभिन्न पहलू के रूप में विकसित हुई है, जो किसानों को खेती के लिए विभिन्न प्रकार की फसलों की पेशकश करती है और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करती है। इसका महत्व जीविका से परे है, जो कई कृषि-उद्योगों के लिए एक मंच प्रदान करता है, जो बदले में रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करता है। भारत में जीवन स्तर में सुधार के साथ बदलते आहार पैटर्न के कारण बागवानी उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है। बागवानी के प्रमुख घटक फल, सब्जियाँ और फूल, कई अन्य फसल श्रेणियों की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र में काफी अधिक सकल रिटर्न प्रदर्शित करते हैं। पिछले दशक में, बागवानी क्षेत्र में वृद्धि ने फसल विविधीकरण को उत्प्रेरित किया है, यहां तक कि छोटे किसानों की जोत में भी। हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में, राज्य ने एक प्रमुख फल केंद्र के रूप में वैश्विक पहचान हासिल की है। राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में बागवानी एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में उभरती है। अपने आर्थिक योगदान के अतरिक्ति, बागवानी क्षेत्र रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करता है, जिससे कई व्यक्तियों की आजीविका समृद्ध होती है। वर्तमान में, राज्य में लगभग 234.00 लाख हेक्टेयर भूमि बागवानी के लिए समर्पित है, जिससे लगभग ₹5,000 करोड़ की औसत वार्षिक आय होती है। यह क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नौ लाख लोगों को रोजगार देता है, जो आजीविका के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में इसकी भूमिका को रेखांकित करता है। बागवानी की विकास क्षमता के आकर्षण ने कॉर्पोरेट संस्थाओं को खेत से खेत तक संबंध स्थापित करने, नवीन मॉडल तलाशने के लिए प्रेरित किया है। कॉर्पोरेट भागीदारी के प्रति यह आदर्श बदलाव क्षेत्र की गतिशीलता और अनुकूलन क्षमता को दर्शाता है। चूँकि हिमाचल प्रदेश एक फल-केंद्रित क्षेत्र के रूप में वैश्विक मंच पर चमक रहा है, बागवानी के बहुमुखी योगदान से न केवल राज्य की आर्थिक नींव को मजबूत किया है, बल्कि रोजगार के अवसरों और टिकाऊ कृषि प्रथाओं की एक मजबूत तस्वीर भी बुनी है। हिमाचल प्रदेश सरकार किसान-केंद्रित कार्यक्रमों के लिए प्रतिबद्ध है और राज्य के आर्थिक विकास में विकास इंजनों में से एक के रूप में बागवानी क्षेत्र की पहचान की है। हिमाचल प्रदेश में, बागवानी फसलों के तहत क्षेत्र 1950-51 में 792 हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 में 2,36,466 हेक्टेयर हो गया। राज्य में बागवानी के तहत क्षेत्र कुल कृषि क्षेत्र (8,91,926 हेक्टेयर) का 26 प्रतिशत योगदान दे रहा है, जबकि क्षेत्र उपज के मूल्य के मामले में 22 प्रतिशत का योगदान देता है (कृषि फसलों का मूल्य ₹16,076 करोड़ जिसमें सब्जियां, बागवानी फसलों का मूल्य ₹4,476.64 करोड़ शामिल है)। 2007-08 और 2021-22 के बीच, बागवानी फसलों के क्षेत्र में 17.60 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। सेब, आम, संतरा, नाशपाती, बेर, आड़ू, गलगल और खुबानी राज्य की प्रमुख बागवानी फसलें हैं। सेब हिमाचल प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण फल फसल है, जो 2022-23 के दौरान कुल फल क्षेत्र का लगभग 48.92 प्रतिशत और कुल फल उत्पादन का लगभग 82.53 प्रतिशत है। सेब का क्षेत्रफल 1950-51 में 400 हेक्टेयर से बढ़कर 1960-61 में 3,025 हेक्टेयर और 2022-23 में 1,15,680 हेक्टेयर हो गया है। 2007-08 और 2021-22 के बीच सेब के तहत क्षेत्र में 21.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सेब के उत्पादन में आए उतार-चढ़ाव ने सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। राज्य विभिन्न कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में विविध बागवानी उत्पादन के माध्यम से पहाड़ी राज्य की विशाल बागवानी क्षमता का पता लगाने और उसका दोहन करने की कोशिश कर रहा है। सेब के अलावा अन्य शीतोष्ण फलों का क्षेत्रफल 1960-61 में 900 हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 में 27,563 हेक्टेयर हो गया है। मेवे और सूखे मेवो के अन्तर्गत क्षेत्रफल में 1960-61 के 231 हेक्टेयर से 2022-23 में 9,583 हेक्टेयर तक की वृद्धि देखी गई है, जबकि सिट्रस और अन्य उपोष्णकटिबंधीय फलों में 1960-61 में 1,225 हेक्टेयर और 623 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में क्रमशः 26,370 हेक्टेयर तथा 57,270 हेक्टेयर हो गया है। 2022-23 में कुल फलों का उत्पादन 8.15 लाख टन था, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 (31 दिसम्बर, 2023 तक) में कुल फलों का उत्पादन 5.84 लाख टन रहा। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 1,224 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को फलों के पौधों के अंतर्गत लाने की योजना थी, लेकिन 2,110.2 हेक्टेयर क्षेत्र को वृक्षारोपण के तहत लाया गया था, और 31 दिसम्बर, 2023 तक विभिन्न प्रकार के 5.98 लाख फलों के पौधे वितरित किए गए। फसलवार वृद्धि बागवानी फसलों का क्षेत्रफल और फलवार योगदान क्रमशः चित्र 6.10 और 6.11 में दर्शाया गया है।

कृषि तंत्र का उप-मिशन (एस.एम.ए.एम.)-
1) एस.एम.ए.एम. के तहत, किसानों को विभिन्न प्रकार के आधुनिक कृषि उपकरण और उपकरण प्राप्त करने में मदद करने के लिए बैक-एंडेड सब्सिडी के रूप में सहायता दी जाती है। हिमाचल प्रदेश का राज्य कृषि विभाग योजना के लिए एक नोडल विभाग है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए उद्यानिकी विभाग को ₹21.50 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई, जिसमें से ₹20.43 करोड़ इस योजना के तहत खर्च कर 31 दिसम्बर, 2023 तक 4,547 किसानों को लाभान्वित किया गया।
2) वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान ₹63.41 करोड़ मूल्य के 52,845 मीट्रिक टन सी-ग्रेड सेब की खरीद की गई।
3) बागवानी में विविधता लाने के प्रयास में वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान कुल 261.82 हेक्टेयर को व्यावसायिक फूल उत्पादन के तहत रखा गया था, जबकि 31 दिसम्बर, 2023 तक 93.60 हेक्टेयर संरक्षित फूलों के उत्पादन के तहत रखा गया है।
4) राज्य में फूलों के उत्पादन और विपणन के लिए कांगड़ा, लाहौल-स्पीति, सोलन, चम्बा, शिमला और हमीरपुर जिलों में 10 अलग-अलग किसान सहकारी समितियां कार्यरत हैं।
5) मधुमक्खी पालन और अन्य सहायक बागवानी गतिविधियों को भी प्रोत्साहित किया जाता है। वित्त वर्ष 2022-23 के मधुमक्खी पालन कार्यक्रम के अर्न्तगत 2,124.02 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया गया है।
6) वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान, सोलन, रामपुर, बजौरा और पालमपुर में विभागीय कार्यालयों के माध्यम से मशरूम के लिए 417.14 मीट्रिक टन पाश्चुरीकृत खाद का उत्पादन और वितरण किया गया और वित्तीय वर्ष 2022-23 में 16,182.00 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन किया गया।
बागवानी के समग्र विकास के लिए कार्यान्वित कार्यक्रम/योजनाएँ-

राज्य योजनाएं


1) बागवानी विकास योजना (एच.डी.एस.)- बागवानी विकास योजना के हिस्से के रूप में, मशीनीकृत खेती को बढ़ावा देने के लिए वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान बागवानों को सब्सिडी के रूप में 326 पावर स्प्रेयर, 1,779 पावर टिलर (8 ब्रेक हॉर्स पावर), और 81 पावर टिलर (झ8 ब्रेक हॉर्स पावर) वितरित किए गए।
2) एंटी हैल नेट योजना- फलों की फसल को ओलावृष्टि से बचाने के लिए एंटी हैल नेट योजना के तहत फील्ड पदाधिकारियों को ₹14.95 करोड़ की धनराशि दी गई है। 31 दिसम्बर, 2023 तक, उस धनराशि में से ₹7.00 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं, और राज्य में 566 किसान इस कार्यक्रम से लाभान्वित हुए हैं।
3) हिमाचल पुष्प क्रांति योजना (एच.पी.के.वाई.)- ‘‘एच.पी.के.वाई.‘‘ के तहत क्षेत्र के पदाधिकारियों को ₹11.00 करोड़ की राशि आवंटित की गई है, जिसमें से ₹3.55 करोड़ का उपयोग किया गया ताकि राज्य में वाणिज्यिक फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जा सके और कुशल और अकुशल बेरोजगार युवाओं को रोजगार प्रदान करवाया जाए तथा 31 दिसम्बर, 2023 तक 212 किसानों को लाभान्वित किया गया ।
4) मुख्यमंत्री मधु विकास योजना (एम.एम.एम.वी.वाई.)- इसी प्रकार, गुणवत्तापूर्ण फल फसलों का उत्पादन करने और शहद उत्पादन और अन्य मधुमक्खी उत्पाद बढ़ाने के लिए उत्पादन बढ़ाने के लिए, ‘‘एम.एम.एम.वी.वाई.‘‘ शुरू की गई है और वर्ष 2023-24 के दौरान ₹4.50 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई है और ₹2.99 लाख का उपयोग किया गया है और 31 दिसम्बर, 2023 तक 2,450 किसानों को लाभान्वित हुए हैं।
5) मुख्यमंत्री कीवी प्रोत्साहन योजना- इस योजना के अन्तर्गत फील्ड पदाधिकारियों को वर्ष 2023-24 में ₹1.00 करोड़ की धन राशि आवंटित की गई थी। जिसमें से अभी तक ₹20.00 लाख की राशि खर्च कर 2 हैक्टेयर क्षेत्र कवर कर लिया गया है 31 दिसम्बर, 2023 तक 12 किसान लाभान्वित हुए हैं।

केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं


6) एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एम.आई.डी.एच.)- क्षेत्र आधारित क्षेत्रीय रूप से विभेदित रणनीतियों के माध्यम से बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए मिशन शुरू किया गया था। केंद्र प्रायोजित योजना-एम.आई.डी.एच. राज्य में राज्य बागवानी विभाग द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। कार्यक्रम का फोकस बागवानी के सभी उप-क्षेत्रों का व्यापक विकास करना है ताकि बागवानी उत्पादकों को अतिरिक्त आय प्रदान की जा सके। यह मिशन बागवानी गतिविधियों जैसे फल, फूल, सब्जियां, मसाले, नए बागान, मशरूम उत्पादन, उच्च मूल्य वाले फूलों और सब्जियों की ग्रीन हाउस खेती, एंटीहेल नेट, बागवानी मशीनीकरण, डाक जैसी बागवानी गतिविधियों हार्वेस्ट प्रबंधन के लिए किसानों को 40-85 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान करता है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में ₹19.44 करोड़ की धन राशि भारत सरकार से प्राप्त हुई। जिसमें से दिसम्बर 2023 तक ₹15.56 करोड़ की धनराशि व्यय की जा चुकी हैं। वर्ष 2023-24 में एकीकृत बागवानी विकास मिशन के अन्तर्गत कुल स्वीकृत वार्षिक कार्य योजना ₹32.00 करोड़ की है तथा पहली किश्त जनवरी, 2024 में आनी प्रस्तावित है। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2003-04 से लेकर दिसम्बर 2023 तक कुल 2,67,895 किसान लाभान्वित हुए हैं।
7) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक फसल (पी.एम.के.एस.वाई.-पी.डी.एम.सी.)- पी.एम.के.एस.वाई.-पी.डी.एम.सी. 2015-16 से हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर लागू की जा रही अनूठी और व्यापक परियोजना है। किसानों के लाभ के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के माध्यम से जल उपयोग दक्षता में सुधार करके फसल उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से योजना शुरू की गई थी। सूक्ष्म सिंचाई अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार टॉप अप सब्सिडी दे रही है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55 प्रतिशत और बड़े किसानों के लिए 45 प्रतिशत की सब्सिडी का प्रावधान शामिल करने के लिए पी.एम.के.एस.वाई.-पी.डी.एम.सी. दिशानिर्देशों को वित्त वर्ष 2017-18 में संशोधित किया गया था। राज्य के छोटे और सीमांत किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान देने के लिए 25 प्रतिशत का अतिरिक्त हिस्सा राज्य प्रदान कर रहा है। भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पी.एम.के.एस.वाई.-पी.डी.एम.सी. के लिए ₹12.00 करोड़ मंजूर किए हैं। अब तक (2015-16 से 2023-24 तक) 3,981 हेक्टेयर क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के अर्न्तगत कवर किया गया है और 31 दिसंबर, 2023 तक 9,828 किसानों को लाभान्वित किया गया है।
8) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के कायाकल्प के लिए लाभकारी दृष्टिकोण (आर.के.वी.वाई.-रफ्तार)- आर.के.वी.वाई. का उद्देश्य बुनियादी सुविधाओं में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना और बागवानी क्षेत्र में योजनाओं को बनाने और क्रियान्वित करने की प्रक्रिया में लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना है। इस योजना के अन्तर्गत कृषि निदेशक हिमाचल प्रदेश को ₹11.26 करोड़ का वार्षिक कार्य प्लान वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए भेजा गया है।
9) पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस.)- हिमाचल प्रदेश में, मौसम आधारित फसल बीमा पहली बार रबी 2009-10 के दौरान सेब के लिए छह खण्डो और आम की फसलों के लिए चार खण्डो में उपलब्ध कराया गया था। कार्यक्रम की लोकप्रियता के कारण इस योजना के अन्तर्गत् कवरेज को लगातार वर्षों तक बढ़ा दिया गया है। यह तकनीक अब सेब के लिए 36 खण्डों, आम के लिए 56 खण्डों, पलम के लिए 29 खण्डों, आड़ू के लिए 16 खण्डों, सिट्रस फलों के लिए 58 खण्डों, अनार के 21 खण्डों, लीची के 38 खण्डों और अमरूद के लिए 22 खण्डों में इस्तेमाल की जा रही है। इसके अलावा सेब की फसल को ओलावृष्टि से बचाने के लिए ऐड-ऑन कवर योजना के तहत 19 खण्डो को कवर किया गया है। 2016-17 तक कार्यक्रम का नया नाम आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस. है। बीमित राशि को संशोधित किया गया है और एक बोली प्रणाली लागू की गई है। रबी सीजन 2022-23 के लिए कुल 61,472 किसानों को उनके सेब, आड़ू, आम और खट्टे फलों की फसलों के लिए आर-डब्ल्यू.बी.सी.आई.एस. के तहत कवरेज दिया गया है। इन किसानों ने अपने 41,70,834 पौधों का बीमा कराया है, जिसके लिए राज्य सरकार ने ₹ 34.02 करोड़ की प्रीमियम सब्सिडी का भुगतान किया है।
एच.पी.एम.सी एक राज्य सार्वजनिक उपक्रम है जिसकी स्थापना ताजे फलों और सब्जियों के विपणन, अप्राप्य अधिशेष उपज के प्रसंस्करण और प्रसंस्कृत उत्पादों के विपणन के उद्देश्य से की गई थी। अपनी स्थापना के बाद से, एच.पी.एम.सी. राज्य के फल उत्पादकों को उनकी उपज का लाभकारी लाभ प्रदान करके उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान एच.पी.एम.सी. ने कुल मिलाकर ₹120.30 करोड का कारोबार दर्ज किया है जो ऐतिहासिक है क्योंकि निगम ने वर्ष 1974 में अपनी स्थापना के बाद पहली बार ₹100.00 करोड़ और उससे अधिक का कारोबार पार किया है। इससे पहले, यह वित्तीय वर्ष 2019-20 में ₹88.96 करोड़ था। इसे छोड़कर एच.पी.एम.सी. ने पहली बार ₹2.67 करोड का शुद्ध लाभ 2019-20 में हासिल किया। राज्य सरकार ने राज्य में आम, सेब और सीट्रस फलों की फसलों के लिए बाजार हस्तक्षेप स्कीम (एम.आई.एस.) की नीति को निम्नानुसार समर्थन मूल्य के साथ जारी रखा।

1) एच.पी.एम.सी. जिला शिमला के सेब उत्पादक क्षेत्रों में 6 नियंत्रित वातावरण (सी.ए.) स्टोरों का सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है, जिनके नाम हैं जरोल टिक्कर (कोटगढ़) 640 मीट्रिक टन, गुम्मा (कोटखाई) 640 मीट्रिक टन, ओड्डी (कुमारसैन) 700 मीट्रिक टन और रोहडू 700 मीट्रिक टन पतलीकूहल (कुल्लू) 700 मीट्रिक टन परवाणु 3,000 मीट्रिक टन जो कुल मिलाकर 6,380 मीट्रिक टन सेब की उपज का भंडारण करने में सक्षम है।
2) वित्त वर्ष 2022-23 में नियंत्रित वातावरण/कोल्ड स्टोरेज की सुविधा से 35 किसानों और उत्पादकों को लाभ हुआ।
3) बागवानी उत्पाद विपणन निगम, नादौन, जिला हमीरपुर में सब्जियों की भंडारण क्षमता 50 मीट्रिक टन और ग्रेडिंग पैकिंग क्षमता 2 मीट्रिक टन/घंटा है। इसी प्रकार, घुमारवीं, जिला बिलासपुर में भंडारण क्षमता 50 मीट्रिक टन, ग्रेडिंग पैकिंग क्षमता 2 मीट्रिक टन/घंटा है।
4) एच.पी.एम.सी. 18,000 मीट्रिक टन प्रति सीजन की क्षमता के साथ परवाणू में एक फल प्रसंस्करण संयंत्र संचालित करता है, दूसरा जरोल, सुंदरनगर, जिला मंडी में 3,000 मीट्रिक टन प्रति सीजन की क्षमता के साथ और एक तिहाई पराला, ठियोग, जिला शिमला प्रति सीजन 18,000 मीट्रिक टन की क्षमता के साथ संचालित करता है।

5) एच.पी.एम.सी. ने विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना (एच.पी.एच.डी.पी.) के माध्यम से राज्य में उत्पादित विभिन्न फलों की ग्रेडिंग, भंडारण और प्रसंस्करण की अपनी मौजूदा क्षमता को बढ़ाने की योजना बनाई है। उक्त परियोजना के फसलोत्तर समर्थन बुनियादी ढांचे घटक के तहत, ₹266.14 करोड़ की वित्तीय सहायता विश्व बैंक द्वारा एच.पी.एम.सी. को प्रदान की जा रही हैं। सी.ए. स्टोर जरोल टिक्कर, गुम्मा और रोहडू की कुल भंडारण क्षमता को मौजूदा 1,980 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 5,858 मीट्रिक टन करने की प्रक्रिया वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही तक पूरी हो चुकी है। उपरोक्त सी.ए. स्टोर्स के अलावा, एच.पी.एम.सी. रिकांग-पियो, जिला किन्नौर में (एच.पी.एच.डी.पी.)के तहत 250 मीट्रिक टन की भंडारण क्षमता वाले नए सी.ए. स्टोर स्थापित कर रहा है।
6) इसके अतिरिक्त, कटलोग (चच्योट) जिला मंडी, टूटूपानी, जिला शिमला, और ज्ञाबुंग, जिला किन्नौर में एक नई ग्रेडिंग और पैकेजिंग सुविधा का निर्माण किया जा रहा है। प्रत्येक ग्रेडिंग और पैकेजिंग सुविधा की क्षमता प्रति सीजन 5,600 मीट्रिक टन है। इसके अतिरिक्त, कैटलॉग जिला मंडी में नियंत्रित वातावरण भंडारण की क्षमता 5,000 मीट्रिक टन है। भुंतर, जिला कुल्लू में ग्रेडिंग और पैकिंग सुविधा की क्षमता 1,000 मीट्रिक टन है जबकि रिकांग-पियो, जिला किन्नौर में सुविधा की नियंत्रित वातावरण क्षमता 250 मीट्रिक टन है।
7) विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के तहत पराला में नव स्थापित प्रसंस्करण इकाई की उत्पादन क्षमता 18,000 मीट्रिक टन सेब का रस, 50,000 लीटर सिरका और 100,000 लीटर वाइन प्रति वर्ष है।
8) एच.पी.एम.सी. के नए बिक्री आउटलैट जरोल, सुंदरनगर, जिला मंडी, और सोलन जिले के जाबलीे में खोले गए ंहैं।
नया उत्पाद, समझौता और अन्य प्रस्तावों- निगम के व्यवसाय को बढाने के लिए निम्नलिखित संगठनों के साथ समझौते किये गये हैं।
1) नई वितरण नीति के तहत एच.पी.एम.सी. द्वारा नए खुदरा विक्रेताओं/वितरकों की नियुक्ति की जा रही है।
2) वर्ष 2022-23 में एच.पी.एम.सी., फल प्रसंस्करण संयंत्र पराला एसेप्टिक पैकेजिंग में एप्पल जूस कन्सन्ट्रेट का उत्पादन कर रहा है।
3) निगम के उत्पादों की बिक्री के लिए मेट्रो स्टेशनों पर निगम के कियोस्क भी खोले गए हैं।
विपणन की योजना- एच.पी.एम.सी. द्वारा एक मार्केटिंग योजना बनाई गई है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न चैनलों के माध्यम से एच.पी.एम.सी. उत्पादों की अधिक बिक्री सुनिश्चित करना है। यह योजना राज्य और देश में एच.पी.एम.सी. ब्रांड को स्थापित करने का प्रारूप प्रस्तुत करती है। एच.पी.एम.सी. विपणन योजना बाजार में एच.पी.एम.सी. उत्पादों का नेतृत्व करने के लिए विभिन्न गतिविधियों को कार्यान्वित कर रही है। मार्केटिंग योजना के मुख्य भाग निम्नलिखित हैंः
1) विपणन योजना में खुदरा विपणन के विभिन्न चैनलों का लाभ उठाकर निगम के उत्पादों की बिक्री वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान बिक्री को दोगुना करने की परिकल्पना की गई है।
2) निगम के उत्पादों की बिक्री विभिन्न सरकारी उपक्रमों एवं संस्थानों तथा सी.एस.डी./सी.पी.सी. कैंटीनों के माध्यम से सुनिश्चित की जायेगी।
3) खुदरा बाजार में निगम की स्थिति मजबूत करने के लिए वितरण प्रणाली विकसित की जा रही है।
4) एप्पल जूस कन्सन्ट्रेट की बिक्री बढ़ाने के लिए संस्थागत ग्राहकों के साथ समझौता शामिल है।

7.पशुपालन

परंपरागत रूप से, पशुपालन निर्वाह किसान की जीवन शैली का हिस्सा था, जो न केवल परिवार के लिए आवश्यक भोजन का उत्पादन करता था बल्कि ईंधन, उर्वरक, कपड़े, परिवहन और खीचने की क्षमता शक्ति भी पैदा करता था। भोजन के लिए जानवर को मारना एक प्राथमिक विचार नही रह गया बल्कि जहां तक संभव हो उसके जीवित रहते ही ऊन, अंडे, दूध जैसे उत्पादों का उपभोग किया जा सकता है। पशुधन क्षेत्र अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहां गरीब सीधे विकास में योगदान करते हैं। यह आजीविका में सुधार, किसानों की आय बढ़ाने और देश में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पशुपालन कृषि समुदायों का एक अभिन्न अंग है क्योंकि यह कृषि परिवारों की आय का पूरक है। इसमें न्यूनतम निवेश पर ग्रामीण क्षेत्रों में स्व-रोजगार पैदा करने की बहुत बड़ी संभावना है।
पशुधन के माध्यम से समावेशी विकास- ग्रामीण परिवारों की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम करने वाले ‘‘पशु‘‘, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य उत्पाद, गोबर के रूप में जैविक खाद, घरेलू ईंधन, खाल और त्वचा प्रदान करते हैं। वे एक प्राकृतिक पूंजी मानी जाने वाली नकद आय के नियमित स्रोत के रूप में कार्य करते हैं, जिसे आसानी से पुनः उत्पन्न किया जा सकता है। पशुधन एक जीवित बैंक के रूप में कार्य करता है, जिसमें संतान ब्याज के रूप में कार्य करती है, और प्रकृति की अनिश्चितताओं के विरुद्ध भी सबसे अच्छा बीमा है। हिमाचल प्रदेश में, पशुपालन के तहत गतिविधियां पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार, दूध, मांस और अंडे के उत्पादन में वृद्धि और कृषि कार्यों के लिए बलशक्ति के प्रावधान की ओर उन्मुख हैं। इस संबंध में, राज्य में पशुधन उत्पादन में सुधार, प्रोटीन की जरूरत को पूरा करने, लोगों के पोषण मानकों में सुधार करने, पशुधन नस्लों के रखरखाव और सुधार के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय नीतियों के अनुसरण में कई योजनाएं बनाई गई हैं।
दूध, मांस और अंडा - प्रमुख विकास चालक-
पशुधन जनसंख्या पशुधन खेती लोगों की वसा और प्रोटीन की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पशुधन उद्योग देश में गैर-सरकारी स्तर पर नौकरियों का एक प्रमुख स्रोत है। और पशुधन क्षेत्र ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों के लिए सबसे अधिक संभावित और आय पैदा करने वाले क्षेत्रों के रूप में उभर रहा है। हिमाचल प्रदेश में जंगल, पानी, चारागाह और कृषि भूमि सभी सामान्य संपत्ति संसाधन (सी.पी.आर.द्ध के उदाहरण हैं।
पशुधन गणना 2019 के अनुसार, राज्य में भारत के कुल पशुधन का 0.82 प्रतिशत और कुल पोल्ट्री का 0.16 प्रतिशत हिस्सा है। राज्य देश में मवेशियों में 20वें और पोल्ट्री आबादी में 27वें स्थान पर है। राज्य में कुल पशुधन आबादी 44.13 लाख थी, और कुक्कुट आबादी 13.42 लाख थी। हिमाचल प्रदेश में, पशुधन जनसंख्या में मवेशियों का 18.28 लाख के साथ सबसे बड़ा हिस्सा है, इसके बाद बकरियां, भेड़ और भैंसों की संख्या आती हैं।(चित्र-7.1) राज्य में कुल मवेशियों की संख्या में विदेशी नस्ल के मवेशियों का प्रतिशत बढ़ रहा है। 2012 की पशुगणना की तुलना में 2019 की पशु गणना में राज्य में क्रॉसब्रीड मवेशियों की संख्या 8.64 प्रतिशत बढ़ी है। क्रॉसब्रीड मवेशियों का हिस्सा कुल मवेशियों की संख्या का 58.48 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह अधिक उत्पादक पशुओं की बढ़ती हिस्सेदारी को इंगित करता है और यह राज्य में बढ़ते दूध उत्पादन में परिलक्षित होता है।

दूध उत्पादन और प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता- सरकार द्वारा शुरू की गई डेयरी, भेड़ और मुर्गीपालन इकाइयों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज और संगठित विपणन चैनलों की स्थापना ने ग्रामीण समुदायों को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन प्रयासों ने न केवल आय के अंतर को पाटने में मदद की है बल्कि घरेलू जैव विविधता के संरक्षण में भी योगदान दिया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये प्रथाएं भू-जल संसाधनों को कम किए बिना शुष्क भूमि में खाद्य उत्पादन का साधन प्रदान करती हैं। पशुधन बीमा कवरेज को बड़ी संख्या में भेड़ और बकरियां रखने वाले परिवारों तक बढ़ाया गया है, जिससे इस क्षेत्र में अप्रत्याशित चुनौतियों के लिए सुरक्षा जाल उपलब्ध हुआ है। कुल मिलाकर, पशुपालन में वृद्धि और विकास ने न केवल आर्थिक समृद्धि में योगदान दिया है, बल्कि ग्रामीण आजीविका और पर्यावरण संरक्षण दोनों को बढ़ावा देते हुए टिकाऊ प्रथाओं के साथ भी जुड़ गया है।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2012-13 से 2023-24 तक दुग्ध उत्पादन की बढ़ती स्थिति को सारणी 7.1 में दर्शाया गया है। यह दर्शाता है कि राज्य में दुग्ध उत्पादन वित्त वर्ष 2012-13 के 11.39 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 16.54 लाख मीट्रिक टन (अनुमानित) हो गया है, जिनकी सी.ए.जी.आर. 3.5 प्रतिशत हैं। गाय का दूध कुल दूध उत्पादन का लगभग 70.0 प्रतिशत है जबकि भैंस के दूध का हिस्सा लगभग 27.0 प्रतिशत और बकरी के दूध का हिस्सा 3.0 प्रतिशत है। 2011-12 से 2023-24 के बीच कुल दुग्ध उत्पादन में प्रजातिवार दुग्ध उत्पादन का योगदान चित्र 7.2 में दिखाया गया है। राज्य में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 2012-13 में 455 ग्राम प्रतिदिन से बढ़कर 2023-24 में 650 ग्राम प्रतिदिन हो गई है। यह 2023-24 में राष्ट्रीय औसत 427 ग्राम प्रति दिन से अधिक है। अभी भी अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाकर दूध उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की गुंजाइश है ताकि किसान की आय में वृद्धि हो सके।

मांस और कुक्कुट उत्पादन- हिमाचल प्रदेश में अंडे का उत्पादन 2011-12 में 10.50 लाख से बढ़कर 2023-24 में 11.00 लाख हो गया है। चित्र 7.3 हिमाचल प्रदेश में मांस उत्पादन 2011-12 में 39.66 हजार टन से बढ़कर 2023-24 में 67 हजार टन हो गया है। चित्र 7.4

पशुधन क्षेत्र का विकास- पशुपालन कृषि और संबद्ध गतिविधियों के अर्न्तगत एक महत्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। वर्ष 2023-24 में इसने कुल जी.एस.वी.ए. का 1.31 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 10 प्रतिशत योगदान दिया है। हिमाचल प्रदेश में पशुधन द्वारा सृजित सकल मूल्य उत्पादन (जी.वी.ओ.) पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है। यह वित्त वर्ष 2018-19 में ₹5,496 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 (अग्रिम अनुमान) के दौरान ₹6,979 करोड़ हो गया। पशुधन क्षेत्र के विभिन्न घटकों का योगदान सारणी 7.2 में दर्शाया गया हैः
2023-24 (अ.अ.) में पशुधन क्षेत्र में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। 2018-19 से 2023-24 की अवधि के दौरान, पशुधन क्षेत्र ने फसल क्षेत्र कीे 3.6 प्रतिशत की तुलना में 6.7 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर्ज की।
राज्य पशुपालन के संभावित आर्थिक लाभों को पहचानता है और इसलिए निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके पशुधन विकास रणनीति को लागू करने के लिए संसाधनों को समर्पित करता है।
i) पशु स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण
ii) पशु विकास
iii) भेड़ प्रजनन तथा ऊन विकास
iv) कुक्कट विकास
v) पशु आहार व चारा विकास
vi) पशु चिकित्सा सम्बन्धी शिक्षा
vii) पशुधन गणना पशु स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत 31 दिसम्बर, 2023 तक राज्य में संस्थानों की कुल संख्या सारणी 7.3ः
राज्य भर के प्रजनकों के पास भेड़ और ऊन की गुणवत्ता में सुधार के लिए उन्नत भेड़ प्रजनन फार्मों तक पहुंच है, सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म ज्यूरी (शिमला), ताल (हमीरपुर), और करछम (किन्नौर) राज्य के प्रजनकों को बेहतर भेडों़ की आपूर्ति कर रहे हैं। मंडी जिले के नगवाईं में एक राम केंद्र भी काम कर रहा है जहां उन्नत भेड़ों का पालन किया जाता है और क्रॉस ब्रीडिंग के लिए प्रजनकों को आपूर्ति की जाती है। हिमाचल में शुद्ध हॉगट की बढ़ती मांग और सोवियत मैरिनो और अमेरिकन रैम्बौइलेट की स्थापित लोकप्रियता को देखते हुए, राज्य ने मौजूदा सरकारी फार्मों में शुद्ध प्रजनन की ओर रुख किया है, और 9 भेड़ और ऊन विस्तार केंद्र चरवाहों, के कल्याण के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं। 2023-24 के दौरान ऊन का उत्पादन 1,500 टन होने की संभावना है। प्रजनकों को खरगोशों के वितरण के लिए कंदवाडी (कांगड़ा) और नगवाई (मंडी) में अंगोरा खरगोश फार्म काम कर रहे हैं।
घोड़ों की स्पीति नस्ल को जारी रखने के उद्देश्य से लाहौल और स्पीति जिले के लरी में एक घोड़ा प्रजनन फार्म स्थापित किया गया है। 2023-2024 वर्ष की शुरुआत से दिसम्बर, 2023 तक 84 घोड़ों को रखा गया है। उसी स्थान पर लरी में घोड़े के प्रजन्न फार्म के साथ, एक याक प्रजन्न फार्म स्थापित किया गया है। वर्ष 2023-2024 के दौरान दिसम्बर, 2023 तक कुल याकों की संख्या 59 थी। फीड एवं चारा योजना के अंर्तगत वर्ष 2023-24 में 31 दिसम्बर, 2023 तक 13 लाख चारा जड़, 2 लाख चारा पौधों का वितरण किया जा चुका है।
पशुपालकों हेतु कल्याणकारी योजनाएँ-
सामान्य श्रेणी के बी.पी.एल. किसानों से संबंधित योजना- गर्भावस्था के बाद तीन महीनों के दौरान, सामान्य श्रेणी के बी.पी.एल. पशुपालक परिवारों को उनकी देसी/क्रॉस नस्ल की गायों को 3 किलोग्राम प्रतिदिन की दर से 50 प्रतिशत सब्सिडी पर गर्भावस्था राशन प्रदान किया जाता है। वर्ष 2023-24 दिसम्बर, 2023 तक कुल 15,761 किसानो को इस योजना का लाभ प्राप्त हुआ है। योजना का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैः
i) दूध उत्पादन को बढ़ाना।
ii) अंतर-केल्ंिवग अवधि को कम करना।
iii) गर्भवती गायों के स्वास्थ्य में सुधार करना।
उत्तम पशु पुरस्कार योजना- जिन किसानों के दुधारू पशु/भैंसों का प्रतिदिन 15 लीटर तथा इससे अधिक दूध उत्पादन होता है, उन्हें प्रति लाभार्थी प्रति पशु ₹1,000 की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। वर्ष 2023-24 के लिए बजट प्रावधान ₹100.00 लाख प्रदान किए गए हैं। दिसम्बर, 2023 तक लक्ष्य को पूरी तरह प्राप्त किया गया ।
कुक्कट विकास योजना- हिमाचल प्रदेश में कुक्कट क्षेत्र के विकास के लिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विभाग द्वारा निम्नलिखित योजनाएं चलाई जा रही हैः
i) बैकयार्ड पोल्ट्री परियोजना- 3 सप्ताह आयु के कम इनपुट प्रौद्योगिकी (एल.आई.टी.) पक्षियों के 10-100 संख्या में चूजों को लागत मूल्य पर पोल्ट्री प्रजन्नकों को वितरित किए जाते है। इस योजना के अर्न्तगत 2023-24 में दिसम्बर, 2023 तक 7ए980 लाभार्थियों को 4,10,000 चूजों के वितरण के निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले 3,42,000 चूजों का वितरण किया गया।
ii) हिम कुकुक्ट पालन योजना- राज्य में 123 कुक्कुट इकाइयों की स्थापना हेतु ₹487.08 लाख का बजट निर्धारित किया गया है, वित्तीय वर्ष 2023-24 में लाभार्थियों को एक-दिन आयु के 3000 ब्रायलर चूजे, चारा, फीडर एवं ड्रिंकर प्राप्त हुए। लाभार्थियों को पूंजी निवेश (शेड बिल्डिंग, फीडर और ड्रिंकर) और आवर्ती लागत (चूजों, चारा आदि की लागत) दोनों पर 60 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाता है। दिसम्बर, 2023 तक 101 लाभार्थियों का चयन किया गया है और ₹177.12 लाख की सब्सिडी जारी की जाएगी।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आर.जी.एम.)- दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने, देश के ग्रामीण किसानों के लिए डेयरी को अधिक लाभकारी बनाने, दूध उत्पादन और गायों की उत्पादकता बढ़ाने में राष्ट्रीय गोकुल मिशन महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अन्तर्गत् हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में निम्नलिखित गतिविधियां कार्यान्वित की जा रही हैंः
राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान योजना (एन.ए.आई.पी.)- योजना का उद्देश्य किसानों के घर द्वार पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं के वितरण, दुग्ध उत्पादन और गोवंश की उत्पादकता में वृद्धि और इस तरह किसानों की आय में वृद्धि और किसानों के बीच कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं की स्वीकार्यता बढ़ाना है। इस योंजना का उद्देश्य संगठित किसान जागरूकता कार्यक्रम के कार्यान्वयन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। यह घटक राज्य के सभी जिलों में 2021-22 से 2025-26 तक 5 वर्षों की अवधि में सभी प्रजनन योग्य मवेशियों और भैंसों की आबादी को सम्मिलित करते हुए लागू किया जाएगा। वर्तमान मे कार्यक्रम के अन्तगर्त 9,26,771 निःशुल्क कृत्रिम गर्भाधान किया गया हैं।
जिला कांगड़ा के संतति परीक्षण (जर्सी) कार्यक्रम- यह कार्यक्रम विभाग के 115 पशु चिकित्सा संस्थानों के नेटवर्क द्वारा कांगड़ा जिले के लगभग 800 राजस्व गांवों में निम्नलिखित उद्देश्य से क्रियान्वित किया जा रहा हैः
i) जर्सी मवेशियों की आबादी में दूध, वसा, वसा रहित ठोस और प्रोटीन की पैदावार, प्रजनन गुणों और प्रकार के लक्षणों के संबंध में एक स्थिर आनुवंशिक प्रगति प्राप्त करना।
ii) भविष्य की पीढ़ी के सांड बछड़ों के उत्पादन के लिए आनुवांशिक मूल्यांकन और बैल माताओं और सांडों के चयन की एक प्रणाली स्थापित करना।
iii) संतति परीक्षण के माध्यम से वीर्य केन्द्रों के लिए आनुवांशिक रुप से मूल्यांकित सांड बछड़ों की आवश्यक संख्या का उत्पादन करना। भारत सरकार से इस कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एन.डी.डी.बी.) के माध्यम से ₹373.25 लाख की राशि प्राप्त हुई है जिसमें से अब तक विभिन्न घटकों के अन्तर्गत ₹334.62 लाख की राशि का उपयोग किया जा चुका है।
मौजूदा सीमन स्टेशनों का सुदृढ़ीकरण- भारत सरकार ने इस घटक के तहत एस.एस. पालमपुर और एस.एस. अदुवाल स्टेशनों के सुदृढ़ीकरण के लिए ृ1,350.80 लाख स्वीकृत किए हैं।
राष्ट्रीय पशुधन मिषन (एन.एल.एम.)- जोखिम प्रबंधन और पशुधन बीमा योजनाः ए.पी.एल. किसानों के मवेशी और पैक पशु के बीमा के प्रीमियम पर 60 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है जबकि 80 प्रतिशत सब्सिडी बी.पी.एल./अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के किसान परिवारों को प्रदान की जाती है।
प्रषिक्षण- एन.एल.एम .योजना के अन्तगर्त किसानो को प्रशिक्षण के लिए ृ29.16 लाख का प्रावधान किया गया है।
हिमाचल प्रदेष के सभी प्रकार के भेड़ पालकों को रैम सब्सिडी का प्रावधान- इस योजना के अन्तर्गत् सभी श्रेणियों के भेड़ पालकों को जिनके पास कम से कम 50 भेड़ें हों, को भेड़ों के प्रजनन के लिए 60 प्रतिशत अनुदान पर मेढे दिये जाते हैं (प्रति लाभार्थी अधिकतम दो मेढ़े)। वित्त वर्ष 2017-18 से 2022-23 के दौरान इस योजना के लिए ृ209.46 लाख आवंटित किए गए थे। अब तक 2ए738 लाभार्थियों को इस योजना के तहत कवर किया गया है।
योजना के उद्देष्य-
i) स्वदेशी नस्ल के भेड़ों में आनुवांशिक सुधार तथा हिमाचल प्रदेश के प्रवासी भेड़ों में बेहतर जर्मन प्लाज्म का प्रसार करना।
ii) राज्य में मांस और ऊन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करना तथा भेड़ पालकों को बेहतर आर्थिक लाभ सुनिश्चित करना।
iii) सभी प्रकार के भेड़ पालकों के प्रवासी भेड़ झुड़ों के बीच आंतरिक प्रजनन की समस्या का हल करना।
कृषक बकरी पालन योजना- इस योजना के अन्तर्गत् सभी श्रेणियों के बकरी पालकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के उद्देश्य से 11 बकरियां (10 मादा$1 नर), 5 बकरियां (4 मादा$1 नर) तथा 3 बकरियां (2 मादा$1 नर) 60 प्रतिशत अनुदान पर दिए जाते हैं। गर्भावस्था के अंतिम तिमाही के दौरान बकरियों के लिए फीड, चारे के अतिरिक्त बीमा का भी प्रावधान है। वर्ष 2018-19 से 2022-23 के लिए बजट प्रावधान ₹1,122.15 लाख आवंटित किया गया है। अब तक 5ए480 इकाइयां वितरित की जा चुकी हैं।
पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य को सहायता- केंद्र प्रायोजित योजना के तहत भारत सरकार द्वारा 90 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी और 10 प्रतिशत राज्य हिस्सेदारी के आधार पर धनराशि प्रदान की जा रही है ताकि संक्रामक रोगांे जैसे रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया और ब्लैक कार्टर (एच.एस.बी.क्यू.), एंटरोटॉक्सिमिया, पेस्ट डेस पेटिटस रूमिनेंटस (पी.पी.आर.), रानीखेत, मारेक और रेबीज के रोकथाम हेतु मुफ्त टीकाकरण सुविधा प्रदान की जा सके, इस योजना के अन्तर्गत क्रियान्वयन से उक्त लिखित संक्रामक रोगों का प्रकोप टल जाता है और पशुपालको को होने वाले वित्तीय नुकसान से बचाया जा सकता है। योजना के अन्तगर्त 13.00 लाख, 2.50 लाख एवं 0.50 लाख के लक्ष्य के विरूद्ध क्रमशः 11.18 लाख एच.एस.बी. क्यु. 2.49 लाख ई.टी. तथा 0.42 लाख ए.आर.बी. का टीकाकरण किया गया है।
प्रमुख के उत्पादन के अनुमान के लिए एकीकृत नमूना सर्वेक्षण- 1977-78 के बाद से, निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ सालाना एकीकृत नमूना सर्वेक्षण आयोजित किया गया हैः
i) मौसम के अनुसार और वार्षिक दूध, अंडे और ऊन के उत्पादन का अनुमान लगाना।
ii) औसत जनसंख्या और उपज अनुमानों की गणना करना
iii) गोबर उत्पादन का अनुमान लगाने के लिए
iv) फीड और चारे की औसत खपत की गणना करना
v) जनसंख्या, उपज और उत्पादन की प्रवृत्ति का अध्ययन करना
यह सर्वेक्षण कार्य राज्य में भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान (ए.एच.एस. प्रभाग) नई दिल्ली के दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाता है। यह पशुधन उत्पादों और पशुधन संख्या से संबंधित एक विश्वसनीय डाटाबेस प्रदान करता है।
हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड को 1980 में पंजीकृत किया गया था। लेकिन इसने अपना संचालन 2 अक्टूबर, 1983 से सरकार द्वारा मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर, सिरमौर, सोलन और शिमला जिले के कुछ हिस्सों में डेयरी विकास गतिविधियों के हस्तांतरण के साथ शुरु किया। ऊना जिले को बाद में 01 मई, 1988 से फेडरेशन में स्थानांतरित कर दिया गया था। 01 सितम्बर, 1988 से 01 जुलाई, 1992 तक राज्य के शेष भागों की दुग्ध आपूर्ति योजना भी इस दुग्ध संघ को हस्तांतरित की गई। संगठन का मुख्य उद्देश्य दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों को संगठित करना और दुग्ध उत्पादकों को उनके घर द्वार पर अतिरिक्त दूध के लिए एक लाभकारी बाजार प्रदान करना और शहरी लोगों को पर्याप्त मात्रा में और ऊचित मूल्य पर दूध और दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। हिमाचल प्रदेश में डेयरी विकास गतिविधियां आनन्द पद्धति के टू-टायर’ ढांचे पर आधारित है। आनन्द पद्धति की मूल इकाई ग्रामीण दुग्ध उत्पादक सहकारी सभा है जहां पर दुग्ध उत्पादकों का आधिक्य दूध इक्कठ्ा किया जाता है और इस दूध का परीक्षण किया जाता है। दुग्ध उत्पादकों को दूध का भुगतान दूध की गुणवत्ता के आधार पर किया जाता है। हि0प्र0 दुग्ध प्रसंघ में 1,107 दुध उत्पादक सहकारी समितियां हैं। इन समितियों के सदस्यों की कुल संख्या 47,500 है, वर्तमान में दुग्ध संघ 22 दुग्ध अभिशीतल केंद्र जिनकी कुल क्षमता 91,500 लीटर दूध प्रतिदिन है और 11 दुग्ध प्रसंस्करण प्लांट जिनकी कुल क्षमता 1,30,000 लीटर दूध प्रतिदिन है चला रहा है। 5 मीट्रिक टन प्रतिदिन की क्षमता वाला एक मिल्क पाउडर प्लांट दत्तनगर, जिला शिमला में कार्यरत है और एक 16 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता वाला पशु आहार संयंत्र भौर, जिला हमीरपुर में कार्यरत है। हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंघ वर्ष 2022-23 औसतन 1.11 लाख लिटर दूध प्रतिदिन गांवों से दुध उत्पादक सहकारी समितियां से खरीदा है और दूध की लागत के रुप में सालाना ₹128 करोड़ का वार्षिक भुगतान किया गया है। हि0प्र0 दुग्ध प्रसंघ ने 2022-23 के दौरान लगभग 406 लाख लीटर और चालू वितीय वर्ष के लिए नवम्बर 2023 तक 300 लाख लीटर दूध एकत्र किया है। वर्ष 2024-25 के लिए हि0प्र0 दुग्ध प्रसंघ ने दूग्ध उत्पादकों से 510 लाख लीटर दूध खरीदने का अस्थाई लक्ष्य रखा है। इस समय हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंघ 11 दुग्ध संयन्त्रों को चला रहा है जिनकी क्षमता प्रतिदिन 1,30,000 लीटर है, जिसमें मण्ड़ी दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र की क्षमता 50,000 लीटर प्रतिदिन शिमला एंव कांगड़ा दुग्ध संयन्त्रों की क्षमता 20,000 लीटर प्रतिदिन तथा नाहन, चम्बा, लालसिंगी (ऊना) नालागढ़, जंगलबैरी(हमीरपुर), रिकांगपीओ(किन्नौर), रोहडू एंव मौहाल (कुल्लू) प्रत्येक की 5,000 लीटर प्रतिदिन की क्षमता है। हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंघ हिम ब्राण्ड के दूध एंव दुग्ध पदार्थो का विपणन कर रहा है और हिमाचल प्रदेश के दुग्ध प्रसंघ के मुख्य उत्पाद जैसे कि मिल्क पाउडर, घी, मक्खन, पनीर, दही एंव मीठा दूध व स्किम मिल्क पाउडर, होल मिल्क पाउडर, मिठाईंयां और बेकरी बिस्किट हैं और यह सभी दूध उत्पाद कीट-नाशक रहित हैं।
हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड के नवाचार- हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड एकीकृत बाल विकास योजना (आई.सी.डी.एस.) परियोजना के तहत कल्याण विभाग के लिए पंजीरी, बेकरी बिस्कुट, सेवियन और पास्ता का उत्पादन करता है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान मिल्कफेड ने 16,341.83 क्विंटल फोर्टिफाइड पंजीरी, 4,020.36 क्विंटल स्किम्ड मिल्क पाउडर (एस.एम.पी.), 23,703.77 क्विंटल फोर्टिफाइड बेकरी बिस्किट और 8,587.52 क्विंटल गेहूं सेवइयां बनाकर राज्य की आंगनबाड़ियों को वितरित कीं। वर्ष 2022-23 के दौरान, राज्य में डेयरी गतिविधियों में सुधार करने के लिए दुग्ध प्रसंघ मण्डी में एक 50,000 एल.पी.डी. क्षमता का नया प्रसंस्करण संयंत्र चालू हो गया, जो राज्य में डेयरी सहकारी समितियों को लाभ पंहुचाएगा। दूध संयंत्र दत्तनगर में 50,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता का एक नया संयंत्र स्थापित किया जा रहा है जिससे डेयरी सहकारी समितियों को लाभ मिलेगा। हि0 प्र0 दुग्ध प्रसंघ ने गाय के दूध की खरीद दर में मुल्य ₹6 की बढ़ोतरी की है और राज्य में दुग्ध उत्पादकों को मासिक भुगतान के स्थान पर 15 दिन का दूध भुगतान 01.01.2024 से लागू किया गया है। हि0 प्र0 दुग्ध प्रसंघ ने वर्ष 2022-23 के दौरान राज्य सरकार द्वारा घोषित हिम गंगा योजना को पहले चरण में पायलट आधार पर हमीरपुर और कांगड़ा जिले में शुरु की है।
ऊन एक प्रकार का कपड़ा है जो विभिन्न जानवरों के बालों से प्राप्त होता है। जबकि अधिकांश लोग ‘‘ऊन‘‘ शब्द को भेड़ के साथ जोड़ते हैं, वास्तव में, ऊन के विभिन्न प्रकार होते हैं जो उत्पादक भेड़ के अलावा अन्य जानवरों से प्राप्त करते हैं। ऊन बनाने के लिए, निर्माता जानवरों के बाल काटते हैं और उन्हें सूत बनाते हैं। फिर वे इस धागे को कपड़ों या अन्य प्रकार के वस्त्रों में बुनते हैं। ऊन अपने स्थायित्व और थर्मल इन्सुलेशन गुणों के लिए जाना जाता है, ऊन बनाने के लिए उत्पादकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले बालों के प्रकार के आधार पर, यह कपड़ा प्राकृतिक इन्सुलेशन प्रभावों से लाभान्वित हो सकता है जो बाल पैदा करने वाले जानवर को पूरे सर्दियों में गर्म रखता है। ऊन एकत्रीकरण एवं विपणन संघ का मुख्य उद्धेश्य हिमाचल प्रदेश में ऊनी उद्योग को बढ़ावा एवं विकास करना तथा ऊन उत्पादकों को बिचौलियों/व्यापारियों के शोषण से मुक्त करना है। ऊन संघ अपने उपरोक्त उद्धेश्यों का अनुसरण करते हुए भेड़ व अंगोरा ऊन की खरीद, भेड़ों की चारागाह स्तर पर आयातित स्वचालित मशीनों द्वारा भेड़ कर्तन और ऊन के विक्रय के लिए प्रयासरत है। वितीय वर्ष 2023-24 में नवम्बर, 2023 तक 73,167 भेड़ों की चारागाह स्तर शियरिंग की गई जिससे राज्य के 412 प्रजनक परिवारों को लाभ हुआ है। पशुपालन विभाग के सहयोग से संघ राज्य में भेड़ उत्पादकों के लाभ और उत्थान के लिए एक नई केंद्र प्रायोजित योजना भी लागू कर रहा है। चंबा, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, शिमला और किन्नौर जिलों में ृ2.00 करोड़ के परिव्यय से स्वास्थ्य देखभाल, विशेष रूप से डिपिंग और डी-वॉर्मिंग के तहत 6,00,000 भेड़ और बकरियों को कवर किया जाएगा।
मछली प्रोटीन का बहुत उच्च स्रोत है और इसका पोषण मूल्य बहुत अच्छा है। मछली उत्पादन प्रारंभ में मछली पकड़ने पर निर्भर था। हालाँकि, पकड़ी गई अधिकांश मछलियों का उपयोग औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया गया था और मनुष्य द्वारा शायद ही उनका उपभोग किया गया था। इसलिए, मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए एक वैकल्पिक तरीका तैयार किया गया जिसमें आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण जलीय जीवों की खेती और पालन शामिल है। इसे जलकृषि के नाम से जाना जाता है। मत्स्य राज्य में प्राथमिक क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण उप-क्षेत्र है। मत्स्य पालन को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता रही है और उसके लिए राज्य ने हिमाचल प्रदेश मत्स्य नियम-2020 बनाए हैं। राज्य की नदियों का जल, ट्राउट जल और जलाशय मत्स्य संसाधनों की समृद्ध क्षमता से संपन्न है। इन संसाधनों का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करके घरेलू और निर्यात बाजार को पूरा करने के लिए प्रग्रहण, संस्कृति और संस्कृति आधारित प्रग्रहण मात्स्यिकी से मछली उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। यह ग्रामीण गरीबों, महिलाओं और युवाओं के लिए रोजगार और आय-सृजन के अवसर पैदा करेगा और राज्य में खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त करने में योगदान देगा। ब्यास, सतजुल और रावी नदियाँ अपनी अनुप्रवाहयात्रा के दौरान कई धाराएँ सम्मिलित करती हैं और बहुमूल्य ठंडे पानी के मछली जीवों जैसे कि शिज़ोथोरैक्स, गोल्डन महासीर और आकर्षक ट्राउट को आश्रय देती हैं। राज्य के ठंडे जल संसाधनों ने महत्वाकांक्षी इंडो-नॉर्वेजियन ट्राउट खेती परियोजना के सफल समापन और विकसित प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए पहाड़ी आबादी द्वारा दिखाई गई गहरी रुचि का प्रदर्शन किया है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मछली की प्रजातियाँ गोबिंद सागर, पोंग, चमेरा और रणजीत सागर जैसे बांधों के जलाशयों में पनपती हैं। ये जलाशय स्थानीय आबादी के लिए मूल्यवान संपत्ति बन गए हैं। इन क्षेत्रों में मत्स्य पालन क्षेत्र की सफलता न केवल समुदाय की आर्थिक उन्नति में योगदान देती है, बल्कि टिकाऊ और लाभदायक ठंडे पानी की मछली पालन की क्षमता को भी प्रदर्शित करती है। प्रौद्योगिकीयों और सफल परियोजनाओं को अपनाने से न केवल मछली उत्पादन बढ़ता है बल्कि ठंडे पानी के संसाधनों के संरक्षण और टिकाऊ उपयोग को भी बढ़ावा मिलता है। यह, बदले में, नदियों और उनके पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखते हुए क्षेत्र के आर्थिक विकास का समर्थन करता है। मछली पालन के लिए आधुनिक प्रथाओं और स्थानीय उत्साह का एकीकरण राज्य में मत्स्य पालन क्षेत्र के निरंतर विकास के लिए अच्छा संकेत है।
मछली उत्पादन- राज्य में 6,020 मछुआरे अपनी आजीविका के लिए जलाशय मत्स्य पालन पर सीधे निर्भर है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान, दिसम्बर, 2023 तक संचयी मछली उत्पादन 11,337.28 मीट्रिक टन था। जिसका मूल्य ृ17,949.23 लाख था। चालू वित्त वर्ष 2023-24 (दिसम्बर, 2023 तक) में राज्य के फार्मों से लगभग 7.72 टन ट्राउट की बिक्री कर ृ57.57 लाख की आय अर्जित की गई। मछली का उत्पादन एवं बिक्री सारणी 7.7, 7.8 में दर्शाया गया है।
पिछले एक दशक में हिमाचल प्रदेश में कुल मछली उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2012-13 और 2023-24 के बीच मछली उत्पादन दोगुना से अधिक हो गया और इसी अवधि के बीच 2.3 प्रतिशत का सी.ए.जी.आर. दर्ज किया गया। सारणी 7.7 हिमाचल प्रदेश में मछली उत्पादन की प्रवृत्ति और वृद्धि को दर्शाती है। कुल मछली उत्पादन 2012-13 में 8,560.89 मीट्रिक टन से बढ़कर 2022-23 में 17,026.09 मीट्रिक टन हो गया और वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान (दिसम्बर, 2023 तक) 11,337.28 मीट्रिक टन तक पहुंचने की उम्मीद है। इसी अवधि में उत्पादन का मूल्य भी ृ5818.13 लाख से बढ़कर ृ17,949.23 लाख हो गया। राज्य में ट्राउट उत्पादन की प्रवृत्ति और वर्षवार विकास दर को सारणी 7.8 में दर्शाया गया है।

मत्स्य उत्पादों का निर्यात और आयात- मत्स्य पालन उपक्षेत्र मछली के निर्यात और आयात में मिश्रित रुझान दिखाता है जैसा कि सारणी 7.9 में दिखाया गया है, सभी स्रोतों से मछली का कुल निर्यात, 2012-13 और 2022-23 के बीच बढ़ा है। 2012-13 और 2022-23 के बीच सभी स्रोतों से मछली का कुल आयात बढ़ा। मछली उत्पादन के आयात और निर्यात की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर चित्र-7.5 और 7.6 में दर्शायी गई है।

मत्स्य क्षेत्र का विकास और योगदान- 2023-24 में मौजूदा कीमतों पर मत्स्य उप-क्षेत्र कुल जी.एस.वी.ए. का 0.15 प्रतिशत और कृषि और संबद्ध क्षेत्र जी.एस.वी.ए. का 1.1 प्रतिशत है। पिछले पांच वर्षों में मत्स्य क्षेत्र का विकास उत्साहजनक रहा है। मत्स्य उप-क्षेत्र के 2022-23 में 9.1 प्रतिशत के मुकाबले 2023-24 में 7.0 प्रतिशत से बढ़ने का अनुमान हैं।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में जलाशयों, ग्रामीण तालाबों और वाणिज्यिक खेतों की जरुरतों को पूरा करने के लिए मत्स्य विभाग ने राज्य में कार्प तथा ट्राऊट बीज उत्पादन सुविधाओं की स्थापना की है। वर्ष 2023-24 में दिसम्बर, 2023 तक राज्य में 70 मि.मी. से ऊपर की कुल 20.48 लाख कॅामन कार्प फिंगरलिंगस, 2.82 लाख इसी आकार की आई.एम.सी. तथा 3.57 लाख रेनवों व्राऊन ट्राऊट की फिंगरलिंगस का उत्पादन किया हैं। जिनका मूल्य लगभग ृ45.18 लाख है।
बीमा और कल्याणकारी योजनाएं- मत्स्य पालन विभाग ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से मछुआरों के उत्थान के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। एक महत्वपूर्ण पहल में मछुआरों के लिए बीमा कवरेज प्रदान करना शामिल है। इस योजना के तहत, मछुआरों की मृत्यु या स्थायी पूर्ण विकलांगता की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में, मछुआरों को ₹5.00 लाख की वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त, सरकार मछुआरों को उनके गियर और शिल्प को हुए नुकसान की भरपाई करके सहायता प्रदान करती है। यह मुआवजा जोखिम निधि योजना के तहत 50 प्रतिशत की सीमा तक प्रदान किया जाता है। ये कल्याणकारी योजनाएं मछुआरों और उनके परिवारों के हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बीमा कवरेज दुर्घटनाओं या विकलांगताओं जैसी अप्रत्याशित प्रतिकूल परिस्थितियों के समय वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने में मदद करता है। जोखिम निधि योजना के तहत गियर और शिल्प के नुकसान का मुआवजा एक मूल्यवान समर्थन तंत्र है, जो मछुआरों द्वारा अपने पेशे में आने वाली चुनौतियों और जोखिमों में सहायता करता है। वर्जित काल के दौरान मछुआरों के लिए जीवन यापन हेतु अंशदाई बचत योजना चलाई जा रही है जिसके अन्तर्गत् मछुआरों के अंशदान के बराबर राशि राज्य सरकारों द्वारा मछुआरों में दो किश्तों में वितरित की जाती है। वर्ष 2023-24 के दौरान बचत तथा राहत निध्ाि योजना जिसे बदलकर प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के घटक “मछली पकड़ने के प्रतिबंध या लीन अवधि के दौरान मत्स्य संसाधनों के संरक्षण के लिए सामाजिक-आर्थिक रुप से पिछड़े सक्रिय पारंपरिक मछुआरों के परिवारों के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता“ के अन्तर्गत 2,675 मछुआरों को कुल ृ120.38 लाख की राशि दी जाएगी। (ृ40.13 लाख मछुआरों द्वारा एकत्रित किए गये हैं तथा ृ80.25 लाख केंन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा वित्तीय अनुदान)।
ट्राउट मत्स्यधन बीमा योजना- चालू वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान मत्स्य विभाग हिमाचल प्रदेश ने प्रदेश के ठण्डे जल के मछली उत्पादकों के पशुधन को बीमा कवर प्रदान करने के लिए एक नई योजना शुरू की है। इस योजना की प्रीमियम राशि 65ः35 के अनुपात में राज्य सरकार व लाभार्थी के बीच संाझा की जा रही है। यह बीमा युनाईटिड इंडिया इनशोरेंस कम्पनी लिमिटिड के माध्यम से प्रदान किया जा रहा है। वर्ष 2022-23 के दौरान विभाग ने 5 मत्स्य पालकों द्वारा 5 ट्राउट इकाईयों को बीमाकृत किया है। प्रत्येक ट्राउट इकाई को ृ19,175 के प्र्रीमियम के साथ प्रति वर्ष अधिकतम ृ2.50 लाख की इनपुट लागत के लिए बीमा प्रदान किया गया है। इस पहल से 694 ट्राउट उत्पादकों की 1,323 रेसवे/इकाईयों को लाभ प्रदान किया जा रहा है। बीमा कार्यक्रम ठंडे पानी के मछली उत्पादकों के लिए एक सहायक उपाय के रूप में कार्य करता है, जो पशुधन और निर्माण निवेश से जुड़े जोखिमों को कम करता है। वित्तीय सहायता और जोखिम कवरेज प्रदान करके, सरकार का लक्ष्य राज्य में ट्राउट खेती की स्थिरता और विकास को बढ़ावा देना है, जिससे इस क्षेत्र में शामिल कई किसानों की आजीविका को लाभ होगा।
प्रधानमन्त्री मत्स्य सम्पदा योजना - केंद्र सरकार ने यह कार्यक्रम शुरू किया है और राज्य सरकार इसे क्रियान्वित कर रही है। इस योजना के अन्तर्गत् राज्य सरकार ने कुल ₹12,972.86 लाख की कई परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए भारत सरकार को प्रस्तुत किया है। विभिन्न परियोजनाओं के लिए ₹2,643.90 लाख को स्वीकृति मिल चुकी है। सारणी 7.10 वित्तीय वर्ष 2023-24 (दिसंबर, 2023) के लिए मत्स्य क्षेत्र की उपलब्धियों के साथ-साथ वित्त वर्ष 2023-24 के लिए निर्धारित लक्ष्यों को दर्शाती है ।

8.वानिकी, पर्यावरण और जल संसाधन प्रबंधन

हिमाचल प्रदेश, ट्रांस-हिमालयी और हिमालयी जैव-भौगोलिक दोनों क्षेत्रों में स्थित है, राज्य की वनस्पतियों और जीवों की बहुतायत शिवालिक, पश्चिमी हिमालय और ट्रांस-हिमालयन क्षेत्र की पर्वत श्रृंखलाओं की उपस्थिति के कारण है। राज्य का कुल 15,443 वर्ग कि.मी. या 27.74 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है। राज्य के भू-भाग का कुल 37,948 वर्ग कि.मी. (या लगभग 68.16 प्रतिशत) आधिकारिक तौर पर वन भूमि के अधीन है। चैंपियन और सेठ के द्वारा वनों के वर्गीकरण (1968) के अनुसार, वनों की 8 मुख्य श्रेणियां और 37 लघु श्रेणी के वन हैं। सबसे अधिक भूमि हिमालयन नम शीतोष्ण वन के अधीन है। हिमाचल प्रदेश एक बहुत ही प्रभावशाली, विविध और अद्वितीय जीवों का घर है- जिनमें से कई दुर्लभ हैं। अनुच्छेद 48-ए के माध्यम से भारत का संविधान सभी स्तरों पर सरकारों को ‘‘पर्यावरण की रक्षा और सुधार के प्रयास और देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रयास‘‘ करने का निर्देश देता है। संविधान का अनुच्छेद 51ए (जी) प्रत्येक नागरिक पर ‘‘जंगलों, झीलों, नदियों, वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने‘‘ का कर्तव्य निर्धारित करता है। संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण की भावना को अपनाते हुए, हिमाचल प्रदेश सरकार अपने वनों और जैव विविधता की रक्षा करने और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कई पहल कर रही है। इस प्रयास में, सरकार पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण और लोगों की आजीविका की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने पर ध्यान केंद्रित करती है। हिमाचल प्रदेश वन नीति का मुख्य उद्देश्य वनों का समुचित उपयोग, उनका संरक्षण और विस्तार करना है। वन विभाग का उद्देश्य सतत विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को पूरा करने के लिए राज्य में वन आवरण को वर्तमान में इसके भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 27.74 प्रतिशत (भारत की वन स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार) से बढ़ाकर 2030 तक 30 प्रतिशत करना है।
हिमाचल प्रदेश में वन आवरण- वन रिकॉर्ड के अनुसार हिमाचल प्रदेश में वन क्षेत्र 37,948 वर्ग किलोमीटर है जो कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68.16 प्रतिशत है। प्रभावी वन आवरण मुख्य रूप से इस तथ्य के कारण इस क्षेत्र की तुलना में बहुत कम है क्योंकि एक बहुत बड़ा क्षेत्र या तो अल्पाइन घास का मैदान है या वृक्ष रेखा से ऊपर है। 15,443 वर्ग कि.मी. का क्षेत्रफल (27.74 प्रतिशत) वास्तविक वन क्षेत्र है जिसका घनत्व 10 से 70 प्रतिशत और उससे अधिक है। जिसमें 3,163 वर्ग कि.मी. अधिक घने जंगल, जिनका घनत्व 70 प्रतिशत और अध्ािक है 7,100 वर्ग कि.मी. मध्यम घने जंगल, जिनका घनत्व 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच तथा 5,180 वर्ग कि.मी. खुले जंगल जोकि 10 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच घनत्व वाला है। इसके अतिरिक्त 322 वर्ग कि.मी. झाड़ियों के रूप में वर्णित किया गया है। सारणी 8.1 घनत्व के अनुसार वनों का एक विवरण देती है।
वित्त वर्ष 2023-24 में, वानिकी और लॉगिंग उप-क्षेत्र ने ₹7,228 करोड़ का मूल्य वर्धन किया, जो कृषि क्षेत्र द्वारा सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) का 27.32 प्रतिशत और कुल सकल राज्य मूल्य वर्धित (जी.एस.वी.ए.) का 3.74 प्रतिशत है। चित्र 8.3 वानिकी और लॉगिंग द्वारा स्थिर (2011-12) कीमतों पर जी.वी.ए. वित्त वर्ष 2018-19 में ₹4,719 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में ₹5,380 करोड़ हो गया, जो कि ₹661 करोड़ की पूर्ण वृद्धि है। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान वानिकी और लॉगिंग क्षेत्र में 1.6 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है।
वन विभाग द्वारा शुरू किए गए योजना कार्यक्रम का उद्देश्य इन नीतिगत प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है। कुछ महत्वपूर्ण योजना कार्यक्रम गतिविधियाँ निम्नानुसार हैंः
वन पौधारोपण- विभिन्न राज्य-स्तरीय कार्यक्रमों के माध्यम से वन वृक्षारोपण की पहल चल रही है, जिसमें प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (सी.ए.एम.पी.ए.) के साथ-साथ ’’राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम’’ और हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन जैसी केंद्र प्रायोजित पहलें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाओं के माध्यम से वन वृक्षारोपण के प्रयास संचालित किये जा रहे हैं। राज्य की चरागाह एवं चराई भूमि का प्रबंधन राज्य योजना ’’चरागाह एवं चराई भूमि विकास’’ के अन्तर्गत किया जा रहा है। नई वानिकी योजना (सांझी वन योजना) के अंतर्गत वानिकी और पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के बारे में जनता को शिक्षित करने और सभी हितधारकों में जागरूकता पैदा करने के लिए राज्य, सर्कल और डिवीजन स्तरों पर वन महोत्सव भी मनाया जाता है। वर्ष 2023-24 के लिए कैम्पा और केन्द्रीय प्रायोजकों सहित 10,000 हेक्टेयर में वृक्षारोपण लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें से 7,636 हेक्टेयर लक्ष्य प्राप्त किया गया है और शेष लक्ष्य 31 मार्च, 2024 तक प्राप्त कर लिया जाएगा।
वन प्रबंधन- बढ़ती जनसंख्या, विकसित होती पशुपालन पद्धतियों और विकासात्मक गतिविधियों के कारण राज्य के जंगलों को बढ़ते जैविक दबाव का सामना करना पड़ रहा है। ये जंगल आग, अनधिकृत कटाई, अतिक्रमण और अन्य वन-संबंधी अपराधों जैसे जोखिमों के प्रति संवेदनशील हैं। वन अपराधों की रोकथाम सुनिश्चत करने के लिए, संवेदनशील स्थानों पर चेकपोस्ट में सी.सी.टी.वी. स्थापित करके इलेक्ट्रॉनिक निगरानी द्वारा वन सुरक्षा को मजबूत किया जा रहा है। उन सभी वन मण्डलों में जहां आग एक प्रमुख विनाशकारी तत्व है, अग्निशमन उपकरण और आधुनिक तकनीक का आरम्भ किया गया है। वनों के कुशल प्रबन्धन एवं सुरक्षा हेतु एक अच्छे संचार तंत्र की बहुत आवश्यकता है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय प्रायोजित योजना-वन अग्नि निवारण एवं प्रबंधन योजना और राज्य योजना ‘‘वन अग्नि प्रबंधन योजना‘‘ लागू की जा रही है।
प्रयोगात्मक वन संवर्धन तथा कटान में सहायक गतिविधियाँ- हिमाचल प्रदेश के जंगलों की कीमत लगभग ₹1.50 लाख करोड़ आंकी गई है। भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन वृक्ष प्रजातियों खैर, चीड़ व साल की वन संवर्धन हरित कटान हेतू राज्य के तीन वन परिक्षेत्रों नुरपुर श्रृंखला, नुरपुर वन मण्डल, भराड़ी श्रृंखला, बिलासपुर वन मण्डल एवं पांवटा श्रृंखला, पांवटा साहिब वन मण्डल को प्रयोगात्मक रुप से अनुमति प्रदान की है। पेड़ों की कटाई का कार्य वर्ष 2018-19 के दौरान किया गया है और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई निगरानी समिति की सिफारिशों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान क्षेत्रों का रखरखाव किया जा रहा है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने खैर के वृक्षों के कटान की अनुमति दे दी है और अनुमोदित कार्य योजना के अनुसार 10 वन प्रभागों के संबंध में वृक्षों की गणना और चिह्नीकरण, लैंटाना उन्मूलन आदि की गतिविधियाँ भी की जा रही हैं। मिश्रित प्रजाति के वन प्राप्त करने के उद्देश्य से वनों के पुनर्जनन को प्रोत्साहित करने के अलावाय इससे स्थानीय लोगों को आजीविका के अवसर भी मिलेंगे। अब तक लगभग 13,000 खैर के वृक्षों को काटने के लिए चिह्नित किया गया है और 33,272 मानव दिवस का कार्य सृजित किया गया है। इन चिह्नित वृक्षों की कटाई से सरकारी खजाने में जमा होने वाला अपेक्षित राजस्व ₹9.65 करोड़ है।
नई योजनाएं- वनों के महत्व और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका साथ ही टिकाऊ कटाई, रख-रखाव और मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहतन के बारे में स्थानीय समुदायों, छात्रों और आम जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए नई योजनाएं शुरू की गई हैंः
क) मुख्यमंत्री वन विस्तार योजना- अगस्त, 2023 में मुख्यमंत्री वन विस्तार योजना, एकीकृत साइट विशिष्ट वनीकरण के माध्यम से कठिन स्थलों तक राज्य के हरित आवरण का विस्तार करने, वन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और स्थानीय आबादी को आजीविका के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है। इस योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के 11 जिलों में मानसून सीजन 2023 के दौरान 232 हेक्टेयर वन भूमि के क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जा चुका है। आने वाले वर्षों में इस योजना को बढ़ाया जाएगा।
ख) ष्वन मित्रष् की नियुक्ति- समुदाय संचालित वन प्रबंधन और योजना को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अक्तूबर, 2023 के दौरान ष्वन मित्रष् योजना शुरू की गई है। वन मित्र पूरे वर्ष वन विभाग के सभी वानिकी कार्यों से जु़़डे रहेंगे। चरणबद्ध तरीके से प्रति वन बीट में एक वन मित्र लगाया जाएगा। 2,061 वन मित्रों की नियुक्ति की प्रक्रिया 30 नवंबर, 2023 से शुरू हो चुकी है।
अन्य पहलें/उपलब्धियाँ-
i) बनखंडी में एक बड़े चिड़ियाघर की स्थापना- कांगड़ा जिले के बनखंडी में ₹600 करोड़ की अनुमानित लागत से एक बड़ा चिड़ियाघर स्थापित किया जा रहा है जो पर्यटन को बढ़ावा देगा और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा। चिड़ियाघर का निर्माण 2023-24 में ₹60 करोड़ के प्रावधान के साथ 180 हेक्टेयर क्षेत्र में तीन चरणों में किया जाएगा। चिड़ियाघर के डिजाइन और निर्माण में पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे कि सौर ऊर्जा और कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को शामिल किया जाएगा। पारिस्थितिक पदचिह्न को कम करने के लिए पुनर्चक्रण और टिकाऊ खरीद प्रथाओं को अपनाया जाएगा। चिड़ियाघर का पहला चरण 2024-25 में चालू होने का प्रस्ताव है। डी.पी.आर. सह विस्तृत डिजाइन की तैयारी चल रही है, जबकि चारदीवारी, सड़क की पहुंच एवं जल संचयन संरचना के निर्माण के लिए एजेंसी का चयन कर लिया गया है।
ii) वन रक्षकों की भर्ती- सरकार ने वन विभाग में अनुबंध आधार पर वन रक्षकों के 100 रिक्त पदों को भरने को मंजूरी दी है। भर्ती की प्रक्रिया शीघ्र ही आरम्भ होगी।
iii) इकोटूरिज्म- हिमाचल प्रदेश में इकोटूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि 93 प्राथमिकता से चयनित इकोटूरिज्म स्थलों के प्रबंधन और संचालन को चरणबद्ध रूप से आउटसोर्स किया जाएगा। पहले चरण में हिमाचल प्रदेश में 12 इकोटूरिज्म स्थानों का प्रारुप तैयार एवं विकसित करने, प्रबंधन/सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रस्ताव (आर.एफ.पी.) जनवरी 2024 में जारी किया गया है।
iv) हिमाचल प्रदेश द्वारा राष्ट्रीय पारगमन पास प्रणाली को अपनाना- राज्य से निर्यात किए जाने वाले वन उत्पाद की निर्बाध आवाजाही के लिए प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय ट्रांजिट पास प्रणाली को अपनाया है। यह प्रणाली लकड़ी, बांस और अन्य गौण वन उत्पादों के लिए वन कार्यालयों में जाए बिना ट्रांजिट परमिट जारी करने में तेजी लाएगी और मैन्युअल पेपर-आधारित ट्रांजिट प्रणाली को ऑनलाइन ट्रांजिट प्रणाली के साथ बदल देगी। इस मोबाइल एप्लिकेशन की मदद से मूल स्थान से गंतव्य तक राज्य सीमाओं के पार निर्बाध आवाजाही होगी। इससे लकड़ी और बांस उत्पादकों, किसानों और परिवहनकर्ताओं को परमिट प्राप्त करने में कठिनाई नहीं होगी और यह किसानों और व्यापारियों की परिवहन लागत और समय की बचत करेगा।
v) वन क्षेत्र से लावारिस बचे पेड़ों की गणना, अंकन, निष्कर्षण और निपटान के लिए एस.ओ.पी.- लकड़ी के खराब होने के कारण राजस्व हानि को कम करने के लिए काटे गए पेड़ों के समय पर निपटान के लिए एस.ओ.पी. को लागू कर दिया गया है। इससे अंतिम उपयोगकर्ता को लाभ होगा क्योंकि उसे लट्ठे के रूप में लकड़ी मिलेगी, अपशिष्ट का उपयोग वे ईंधन लकड़ी के रूप में या अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकते हैं। स्थानीय स्तर पर लकड़ी की उपलब्धता से भी प्रयोगकर्ताओं को लाभ होगा। एस.ओ.पी. में रेंज डिपो और सड़क किनारे डिपो में स्थानीय बिक्री के लिए लकड़ी का प्रावधान है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा होगा और लकड़ी के निपटान के कारण राजस्व संग्रह को बढ़ावा मिलेगा। बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाएँ
हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु प्रूफ़िंग परियोजना (के.एफ.डब्ल्य.ू सहायता प्राप्त)- हिमाचल प्रदेश वन इकोसिस्टम्स क्लाईमेट प्रूफिंग परियोजना के.एफ.डब्ल्य. बैंक (पुनर्निर्माण के लिए क्रेडिट संस्थान), जर्मनी के सहयोग से 7 वर्षो की अवधि के लिए वर्ष 2015-16 से प्रदेश के चम्बा और कांगड़ा जिलों में कार्यान्वित की जा रही है। इस परियोजना की कुल लागत ₹308.45 करोड़ है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश में चयनित वन पारिस्थितिक तंत्रों का पुनर्वास, संरक्षण और सतत उपयोग है, ताकि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ाया और सुरक्षित किया जा सके। यह जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के संरक्षण, जलग्रहण क्षेत्रों के स्थिरीकरण, प्राकृतिक संसाधन आधार के संरक्षण और बेहतर आजीविका के परिणाम के लिए वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के अनुकूल क्षमता को मजबूत करने में योगदान देगा। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में इस परियोजना के लिए ₹50.00 करोड़ का प्रावधान रखा गया है, जिसमें से ₹13.62 करोड़ व्यय किए जा चुके हैं।
हिमाचल प्रदेश वन इकोसिस्टम प्रबंधन व आजीविका सुधार परियोजना- जापान इंटरनेशनल कॉपरेशन एजेंसी (जाईका) के साथ ₹800 करोड़ की एक परियोजना “हिमाचल प्रदेश वन इकोसिस्टम्स प्रबंधन व आजीविका सुधार परियोजना“ 10 वर्ष की अवधि के लिए शुरू की जा चुकी हैै। यह परियोजना बिलासपुर, कुल्लू, मण्डी, शिमला, कांगडा साथ ही किन्नौर और लाहौल-स्पिति जिलों के आदिवासी क्षेत्रों में कार्यान्वित की जाएगी। इस परियोजना का मुख्यालय शिमला और क्षेत्रीय कार्यालय कुल्लू और रामपुर बुशैहर में है। इस परियोजना का उद्देश्य वन और पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना और वैज्ञानिक और आधुनिक वन प्रबंधन प्रथाओं का उपयोग करके वन आवरण, घनत्व और उत्पादक क्षमता को बढ़ाकर वन और चरागाह पर निर्भर समुदायों की आजीविका में सुधार करना है साथ-साथ जैव विविधता और वन पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण को बढ़ाना है। विŸा वर्ष 2023-24 के दौरान, सरकार ने इस परियोजना के लिए ₹55.00 करोड़ प्रदान किए हैं जिसमें से ₹54.37 करोड़, 31 दिसंबर, 2023 तक खर्च किए जा चुके हैं और सरकार से अतिरिक्त ₹25.00 करोड़ की मांग की गई है।
स्रोत स्थिरता और जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि के लिए विश्व बैंक-
क) सहायता प्राप्त एकीकृत परियोजना- विश्व बैंक ने $100 मिलियन (₹ 650 करोड़) के बजट के साथ एक अतिरिक्त परियोजना को मंजूरी दे दी है, जिसे स्रोत स्थिरता और जलवायु-अनुकूल वर्षा आधारित कृषि के लिए एकीकृत परियोजना के रूप में जाना जाता है। इस परियोजना के लिए धन वितरण 80ः20 पर निर्धारित किया गया है, और इसकी अवधि 7 वर्ष है। यह परियोजना राज्य के विभिन्न जलक्षेत्रों में फैले शिवालिक और मध्यवर्ती पहाडी कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 900 ग्राम पंचायतों में लागू की जाएगी। इस परियोजना के अंतर्गत प्रमुख परिणामों में शामिल हैंः
i) परियोजना क्षेत्र में लगभग 2 लाख हेक्टेयर गैर-कृषि योग्य और 0.20 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का व्यापक उपचार।
ii) परियोजना क्षेत्र में 30 प्रतिशत तक जल उत्पादकता/दक्षता में वृद्धि।
iii) दूध के उत्पादन में 20 प्रतिशत की वृद्धि
iv) 25 प्रतिशत कमजोर परिवारों को आजीविका सुधार के अंतर्गत लाया गया
v) कृषि फसलों की उत्पादकता में 25 प्रतिशत की वृद्धि
vi) कृषि-व्यवसाय/संवर्धित उत्पादन के माध्यम से किसानों की आय में 30 प्रतिशत की वृद्धि।
वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, सरकार ने इस परियोजना के तहत ₹70.00 करोड़ प्रदान किए हैं, जिसमें से ₹52.61 करोड़, 31 दिसंबर, 2023 तक खर्च किए जा चुके हैं और सरकार से अतिरिक्त ₹45.00 करोड़ की मांग की गई है।
वन्यजीव-मानव इंटरफेस- राज्य हमेशा अपनी जैव विविधता के साथ सह-अस्तित्व में रहा है। लोगों ने वर्षों से अपनी स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतों के लिए और इनसे भोजन, फल, फाइबर, चारा, ईंधन, गोंद, तेल, राल आदि प्राप्त करने के लिए 600 से अधिक स्थानीय पौधों का उपयोग किया है। ये पौधे ग्रामीण आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। राज्य सरकार ने, इन घनिष्ठ ग्रामीण आजीविका संबंधों की सराहना करते हुए, भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अन्तर्गत् आरक्षित वनों और वन्यजीव ;संरक्षणद्ध अधिनियम, 1972 के तहत राष्ट्रीय उद्यान के रुप में गठित वनों को छोड़कर सभी वनों से प्राप्त इन लाभों के उपयोग की स्थानीय समुदायों को अनुमति दी है। 1984 से शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के बाद से जंगली जानवरों की आबादी में वृद्धि हुई है। कृषि के विस्तार के साथ-साथ अब तक अशांत क्षेत्रों में मानव हस्तक्षेप में वृद्धि के कारण मानव-पशु संघर्ष में वृद्धि हुई है। जबकि, जंगली सूअर, काला भालू और बंदर कभी-कभी खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, तेंदुओं द्वारा घरेलू पशुओं को उठाने की भी सूचना मिलती रहती है। तेंदुए और काले भालू द्वारा मानव जीवन को नुकसान पहुंचाने और चोट पहुंचाने के छिटपुट मामले सामने आए हैं। वन्यजीव प्रबंधक बढ़ते मानव-जंगली जानवरों के संघर्षों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक नीति तैयार करने के लिए प्रयासरत हैं। राज्य सरकार इन मामलों के प्रति संवेदनशील है और घरेलू पशुओं के नुकसान और जंगली जानवरों के कारण मानव जीवन की क्षति या हानि के मामलों में ध्ान संबंध्ाी मुआवजे की राशि बढा रही है। वनों और जानवरों को अलग करना असंभव है, क्योंकि दोनों ही पर्यावरण के आवश्यक घटक हैं।
पर्यावरण वानिकी एवं वन्यप्राणी- वन पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पेड़-पौधों की उपस्थिति है। ग्रह पर जीवन के लिए स्वच्छ हवा और आश्रय आवश्यक हैं। वन जैव विविधता के संरक्षण में भी सहायक होते हैं। वन, वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के अतिरिक्त, मिट्टी को कटाव से बचाते हैं और दुनिया की 80 प्रतिशत से अधिक पशु प्रजातियों और भूमि पर जैव विविधता के लिए आश्रय प्रदान करते हैं। वे देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी योगदान देते हैं। “वन्यजीव“ शब्द जानवरों की गैर-पालतू प्रजातियों को दर्शाता है। इसका मतलब यह है कि जंगल में रहने वाला कोई भी जीवित प्राणी वन्य जीवन से जुड़ा हुआ है। सबसे व्यापक रूप से वितरित प्रजातियों में कोई भी एक, यहँा विभिन्न प्रकार के वातावरण में पाई जा सकती है। जंगली जानवर, प्राकृतिक प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे पर्यावरण की स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई जीव उत्पादक है, उपभोक्ता है या जैव अपघटक है; वे सभी खाद्य श्रृंखला में भूमिका निभाते हैं और जीवित रहने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। हमारा इकोसिस्टम वन्य जीवन द्वारा प्रदान की जाने वाली विविधता और प्रचुरता के बिना अधूरा होगा।
i) अपने औषधीय गुणों के कारण, जंगली पौधे हमारी फार्मास्युटिकल आवश्यकताओं का एक तिहाई से अधिक हिस्सा पूरा करते हैं। चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य दवाओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकताओं के अलावा, वन चिकित्सा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सफलताओं के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएं प्रदान करते हैं।
ii) वैश्विक तापमान को बनाए रखकर समुद्र के स्तर को तेजी से बढ़ने से रोककर और इस प्रकार ग्रीनहाउस प्रभाव का मुकाबला करके हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य में योगदान देता है।
iii) पारिस्थितिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए पौधों और जानवरों की परस्पर निर्भरता महत्वपूर्ण है।
iv) आर्थिक मूल्यः जंगलों से जीवाश्म ईंधन का उपयोग देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देता है, जिसके परिणामस्वरूप इसके नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
v) हजारों प्रजातियाँ इन विशाल जंगलों में आश्रय पाती हैं, जो जैव विविधता के संरक्षण में सहायता करती हैं।
vi) वन्यजीवों में सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण को बढ़ावा मिलता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
पर्यावरण और वन्य जीवन में सुधार एवं संरक्षण, वन्यजीव अभयारण्यों/राष्ट्रीय उद्यानों का निर्माण और वन्यजीव आवास में वृद्धि, सभी लुप्तप्राय पक्षियों और पशु प्रजातियों को बचाने के अंतिम लक्ष्य के साथ योजना का भाग हैं।
पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग पर्यावरण प्रबंधन की प्रभावशीलता में सुधार, कमजोर पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और विकास की स्थिरता को बढ़ाने के व्यापक उद्देश्य के साथ काम कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के गंभीर मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने पर्यावरण विभाग का नाम बदलकर पर्यावरण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह रणनीतिक कदम एक व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने की बढ़ी हुई प्रतिबद्धता को दर्शाता है जिसमें वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी समाधान शामिल हैं। पर्यावरण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग अब जलवायु परिवर्तन के सभी मामलों में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली प्राथमिक और नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा है।

सरकार की पहलें

वर्तमान में, पर्यावरणीय क्षरण और आर्थिक विकास के आपसी संबध्ा़ के कारण राज्य प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है। ये चुनौतियाँ पर्यावरणीय संसाधनों, जैसे वायु, भूमि, जल, वनस्पतियों और जीवों से संबंधित हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए अपने प्रमुख क्षेत्रों-जलविद्युत, पर्यटन और उद्योग के साथ-साथ पर्यावरण प्रबंधन के लिए ग्रामीण विकास के लिए उपयुक्त नीतियां तैयार कर रही है।
प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन- प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौतियों में से एक है। राज्य सरकार ने समय समय पर हिमाचल प्रदेश गैर पुर्ननवीकरण कूड़ा नियन्त्रण अधिनियम, 1995 के अनुसार अधिसूचित कर प्लास्टिक वस्तुओं के इस्तेमाल एवं कूड़े पर सख्ती से प्रतिबंध लगा दिया है। विभाग द्वारा की गई पहलें इस प्रकार हैंः
इसके अतिरिक्त, राज्य में चुनौतीपूर्ण और ठंडी जलवायु परिस्थितियाँ, बायोडिग्रेडेबल बैगों के उपयोग को अप्रभावी बनाती हैं। इसके फलस्वरूप, दिसंबर, 2023 में अधिनियम में एक संशोधन पेश किया गया, जिससे भविष्य में राज्य के भीतर बायोडिग्रेडेबल बैगों पर प्रतिबंध लग सकता है। अधिनियम के प्रावधान के अनुसार, वर्ष 2023 में 1,138 उल्लंघनकर्ताओं से ₹10.24 लाख का जुर्माना वसूला गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत् हिमाचल प्रदेश में एक बार के उपयोग जैसे डिस्पोजेबल प्लास्टिक कप, गिलास और प्लेट, पॉलिथीन कैरी बैग, प्लास्टिक और थर्माकोल, कटलरी में प्लास्टिक के चम्मच, कटोरे, स्टिरिंग स्टिक, कांटे, चाकू और स्ट्रॉ के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। अक्तूबर, 2022 से 80 जी.एस.एम. से कम वाले गैर-बुने हुए कैरी बैग पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। प्लास्टिक बाय-बैक नीति के अन्तर्गत्, 2023-24 के दौरान लगभग 20,902 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा ₹75 प्रति किलोग्राम पर खरीदा गया है और उचित तरीके से राज्य में लगभग 112 किलोमीटर प्लास्टिक सड़क के निर्माण में इसका प्रयोग किया गया।
आदर्ष पर्यावरण ग्रामों का निर्माण- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग राज्य में आदर्श पर्यावरण ग्राम योजना को लागू कर रहा है। यह योजना पर्यावरण को प्रभावित न करने वाली जीवन शैली को अपनाने पर ध्यान कंेद्रित कर ‘‘पारिस्थितिक पदचिन्होें‘‘ को 50 प्रतिशत तक (योजना के शुरूआती वर्ष को आधार वर्ष मानते हुए) कम करने के उद्देश्य से बनाई गई है। इस योजना के तहत 19 गांवों को शामिल किया गया है और वित्त वर्ष 2023-24 तक कुल ₹3.00 करोड़ का बजट उपयोग किया गया है तथा कार्यान्वयन के लिए इस योजना के अन्तर्गत्, ₹32.00 लाख का प्रावधान किया गया है।
अनुसंधान एवं विकास (आर.डी.) परियोजनाएं- अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए, राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में शैक्षणिक संस्थानों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और अन्य मान्यता प्राप्त अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को विकसित करने के लिए “हिमाचल प्रदेश विशिष्ट अनुसंधान और विकास परियोजनाएं 2023-24“ को वित्त पोषित किया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत् कुल 32 अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में से 6 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान इन परियोजनाओं के लिए ₹17.00 लाख की राशि निर्धारित की गई है। बजट घोषणा 2023 के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए, अनुसंधान करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी केंद्र, शाहपुर, कांगड़ा में अनुसंधान एवं विकास केंद्र की स्थापना की प्रक्रिया शुरू की गई है। जहां पौधों की पत्तियों से प्लेट और कटलरी बनाने के लिए बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग किया जाएगा। महिला स्वयं सहायता समूह के सदस्यों और स्थानीय कारीगरों को प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण प्रदान करने के लिए पत्तल और डूना मशीनें भी स्थापित की गई हैं और उन्हें क्रियाशील बनाया गया है।
अनुसूचित जाति विकास योजना- यह योजना सीमांत अनुसूचित जाति के परिवारों/किसानों की क्षमता को मजबूत करने के लिए लागू की जा रही है ताकि सिंचाई, जल उठाने, हीटिंग और डेमो सौर ऊर्जा संयंत्रों के माध्यम से स्थानों में प्रकाश व्यवस्था, पारंपरिक जल मिलों (घराटों) की बहाली और मशीनीकरण, प्राकृतिक झरनों के पुनरुद्धार के लिए ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा किया जा सके। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ₹1.00 करोड़ की समर्पित राशि आवंटित की गई है।
राज्य स्तरीय पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार- हिमाचल प्रदेश पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार योजना पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की नियमित योजनाओं में से एक है। इस वर्ष अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नवीन कार्यों को मान्यता देते हुए और स्वागत करते हुए 14 पुरस्कार प्रदान किए गए। ये पुरस्कार क्षेत्र के भीतर टिकाऊ प्रथाओं और पर्यावरण प्रबंधन की दिशा में उत्कृष्ट प्रयासों और योगदान की सराहनीय स्वीकृति का प्रतीक हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस 2023- राज्य में प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश के मुख्यमंत्री ने की, जिन्होंने “प्लास्टिक हटाओ पर्यावरण बचाओ अभियान“ थीम पर आधारित स्वच्छ शिमला ड्राइव को हरी झंडी दिखाई। इसके अतिरिक्त, रु मिशन जीवन और रु बीट प्लास्टिक प्रदूषण थीम पर जोर देते हुए एक साइकिल दौड़ भी हुई। इस आयोजन के हिस्से के रूप में, एक पहल की गई, जिसमें आर्थिक रूप से वंचित महिलाओं को उनकी आजीविका, आर्थिक कल्याण और स्थिरता को बढ़ाने के लिए सशक्त बनाने के लिए 20 सोलर लाइट और पत्तल और डूना बनाने की 8 मशीनें मुफ्त में वितरित की गईं।
पर्यावरण प्रभाव आकलन एवं मंजूरी- पर्यावरण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, पर्यावरण प्रभाव आकलन (ई.आई.ए.) और पर्यावरण मंजूरी के प्रबंधन के लिए, जिम्मेदार राज्य-स्तरीय सचिवालय होने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हिमाचल प्रदेश में, वित्तीय वर्ष 2023-24 में विभाग ने पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण के माध्यम से 40 परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पर्यावरण मंजूरी प्रदान की है। यह पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए परियोजनाओं का संपूर्ण और जिम्मेदार मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

जलवायु परिवर्तन सम्बंधित पहलें


हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ (हि.प्र.के.सी.सी.सी.)- पर्यावरण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, हिमाचल प्रदेश ने राष्ट्रीय हिमालयन पारिस्थितिक तंत्र मिशन (एन.एम.एस.एच.ई.) के अन्तर्गत् हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ स्थापित किया है। राज्य जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ ने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर केंद्रित विभिन्न क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों के लिए जलवायु परिवर्तन भेद्यता आकलन और अनुकूलन योजनाएं पूरी हो चुकी हैं और शिमला, कुल्लू और मंडी के लिए योजनाएं प्रगति पर हैं।
ग्रामीण भारत में जलवायु अनुकूलन और वित्त (सी.ए.एफ.आर.आई.) परियोजना- सी.ए.एफ.आर.आई. परियोजना राज्य में जर्मन विकास सहयोग (जी.आई.जेड.) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एम.ओ.ई.एफ.सी.सी.) के समन्वय से भारत-जर्मन तकनीकी सहयोग के अन्तर्गत् कार्यान्वित की जाती है। इस परियोजना के अन्तर्गत, वर्ष 2023-2026 के बीच राज्य के सूखाग्रस्त और जलवायु परिवर्तन क्षेत्रों में लगभग 5,000 महिला किसानों के लिए अनुकूली क्षमता विकास पर लगभग 10 मिलियन यूरो खर्च किए जाएंगे।
जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन- संयुक्त राष्ट्र (य.ूएन.) के वार्षिक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को आमतौर पर कॉन्फ्रेंस ऑफ पारटीज(सी.ओ.पी.) कहा जाता है। यह सम्मेलन बातचीत करने वाले पक्षों के लिए एक मंच प्रदान करता है, जिसमें वे सरकारें शामिल हैं जिन्होंने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.), क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय जलवायु समझौतों का समर्थन किया है। इस वर्ष हिमाचल प्रदेश ने सी.ओ.पी. के दौरान सक्रिय रूप से भाग ले कर अपनी पहल का प्रतिनिधित्व किया है। (टीम ने प्रमुख सत्रों के दौरान हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता प्रभाव और सम्बंध्ा और भारतीय हिमालयी क्षेत्र (आई.एच.आर.) के लिए जलवायु लचीला विकास रणनीति-हरित लचीला पर्वतीय समुदायों पर चर्चा की)। यह महत्वपूर्ण सहभागिता 3 से 6 दिसंबर, 2023 तक हुई, जो हिमालयी क्षेत्र में लचीले विकास के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और रणनीतियों से संबंधित चर्चाओं को आकार देने में राज्य की प्रतिबद्धता और भागीदारी को उजागर करती है।
हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट), राज्य में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने और पर्यावरण जागरूकता पैदा करने के लिए नोडल एजेंसी है।

प्रमुख उपलब्धियां/नीतिगत पहलें


विज्ञान अध्ययन एवं सृजन केन्द्र- शिमला के समीप गांव भोग, आन्नदपुर, शोघी में विज्ञान अध्ययन एवं सृजन केन्द्र का मुख्यमंत्री द्वारा दिनांक 7 अक्तूबर, 2023 को लोकार्पण किया गया। इस केन्द्र की स्थापना से युवाओं के मन में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होगी और वे वैज्ञानिक सिद्धांतों को अधिक प्रभावी ढंग से समझ सकेंगे। प्रदेश के विद्यार्थियों को विज्ञान के अध्ययन व अनुभव के लिए राज्य से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। इस केन्द्र में संस्थागत एवं छात्रावास ब्लॉक बनाए गए हैं। संस्थागत ब्लॉक में 60 इंटरेक्टिव विज्ञान प्रदर्शनियां एवं सूचना विज्ञान प्रदर्शनियां लगाई गई हैं। होस्टल में दूरदराज के बच्चों और अध्यापकों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। इस अध्ययन केन्द्र में आधुनिक तारामण्डल का निर्माण कार्य शुरु कर दिया गया है तथा इसका संचालन वर्ष 2024 के अन्त तक कर दिया जाएगा।
उपयुक्त प्रौद्योगिकी केन्द्र, शाहपुर, जिला कांगड़ा- हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद द्वारा उपयुक्त प्रौद्योगिकी केन्द्र, शाहपुर को वर्ष 2023 में क्रियान्वित किया गया। इस केन्द्र का मुख्य उददेश्य उपयुक्त पहाड़ी प्रौद्योगिकियों का परीक्षण, निगरानी और मुल्यांकन करना, प्रदर्शन प्रशिक्षण और विकास के लिए सुविधाएं बनाना, जागरुकता पैदा करना और कारीगरों को प्रशिक्षण प्रदान करना है।
यूरोपीय संघ में संरक्षित भौगोलिक संकेत ;पी.जी.आई.द्ध के रूप में कांगड़ा चाय ;पी.जी.आई. -आई.एन.-0672द्ध का पंजीकरण- हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद् द्वारा कांगड़ा चाय को यूरोपीय संघ में संरक्षित भौगोलिक संकेतक के रूप में मार्च, 2023 में पंजीकृत करवाने में सफलता प्राप्त हुई। यूरोपीय संघ में सरंक्षण प्राप्त करने वाला यह दूसरा भारतीय उत्पाद है। इस से चाय उत्पादक सीधे यूरोपीय बाजारों में अपने उत्पादों को कानूनी तौर पर बेच पायगें, जोकि उनकी आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहायक होगा। परिषद ने अन्य पारम्परिक उत्पादों क्रमशः सिरमौरी लोइया, कुल्लू टोपी, किन्नौरी टोपी, मंडी सेपूवडी, किन्नौरी सेब, किन्नौरी ज्वैलरी, पांगी की ठांगी को भौगोलिक संकेतक अधिनियम 1999 के अंतर्गत पंजीकरण हेतु भारत सरकार के चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया है। इन उत्पादों का पंजीकरण भारत सरकार के चेन्नई कार्यालय में अंतिम प्रक्रिया में हैं।
हिमाचल प्रदेश बाल विज्ञान सम्मेलन- हिमकोस्ट, 1993 से हर साल 10-17 आयु वर्ग के छात्रों के लिए बाल विज्ञान कांग्रेस का आयोजन कर रहा है। यह आयोजन सब-डिवीजन स्तर, जिला स्तर और राज्य स्तर पर आयोजित किया जाता है। इस वर्ष 26,674 छात्रों ने इस आयोजन के लिए पंजीकरण कराया था, जिसमें छह गतिविधियाँ, जैसे विज्ञान प्रश्नोत्तरी, वैज्ञानिक परियोजना रिपोर्ट, गणितीय ओलंपियाड, इनोवेटिव साइंस मॉडल, साइंस एक्टिविटी कॉरनर और साइंस स्किट शामिल थीं।
15 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया जल जीवन मिशन, वर्ष 2024 तक भारत के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (एफ.एच.टी.सी.) प्रदान करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए समर्पित है। इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए अनुमानित राष्ट्रव्यापी लागत ₹3.60 लाख करोड़ रुपये है। यह मिशन घरेलू स्तर पर सेवा प्रणाली स्थापित करने, प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर के लक्ष्य के साथ निर्धारित गुणवत्ता पर पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। हिमाचल प्रदेश के कुल 17.09 लाख ग्रामीण परिवारों में से 7.63 लाख परिवारों के पास जल जीवन मिशन की शुरुआत से पहले ही कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (एफ.एच.टी.सी.) थे। हिमाचल प्रदेश में शेष 9.46 लाख ग्रामीण परिवारों को जल जीवन मिशन (जे.जे.एम.) के तहत शामिल किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य ने ग्रामीण परिवारों के लिए 100 प्रतिशत कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (एफ.एच.टी.सी.) परिपूर्णता हासिल कर ली है जो राष्ट्रीय औसत 72.05 प्रतिशत से अधिक है। राज्य ने पीने योग्य पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच नौंवा स्थान प्राप्त किया है जो 100 प्रतिशत घरों को कार्यात्मक घरेलू नल उपलब्ध करवा चुके हैं। इसके अतिरिक्त, सभी घरों को नल का पानी उपलब्ध करवाने वाले पहाड़ी राज्यों में पहला स्थान प्राप्त किया है।
शहरी जलापूर्ति योजनाएं- हिमाचल प्रदेश में कुल 60 शहर हैं। जल शक्ति विभाग आनी शहर को छोड़कर, 58 शहरों/शहरी स्थानीय निकायों के लिए जल आपूर्ति प्रणाली का रख-रखाव करता है। शिमला शहर की जल आपूर्ति शिमला जल प्रबंधन निगम और परवाणू शहर की हिमुडा के पास है। 58 योजनाओं में से 46 योजनाएं पूरी हो चुकी हैं और विभिन्न शहरों में मौजूदा जल आपूर्ति योजनाओं का उन्नयन कार्य प्रगति पर है। कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अमृत मिशन 2.0 के अन्तर्गत 17 शहरों के छूटे हुए क्षेत्रों को अपग्रेड करने/जल आपूर्ति प्रदान करने के लिए डी.पी.आर. को मंजूरी दे दी गई है। इनमें से कुछ परियोजनाओं को मंजूरी मिल गई है और कार्य प्रगति पर हैं, जबकि अन्य तकनीकी मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सीवरेज योजना की स्थिति- जल शक्ति विभाग ने 35 शहरों में सीवरेज सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैैं, जिनमें से पूरी तरह से तैयार 13 सीवरेज परियोजनाएं और आंशिक रूप से पूरी हो चुकी 22 सीवरेज परियोजनाएं हैं। जल शक्ति विभाग ने राज्य भर में 89.143 न्यूनतम तरल निर्वहन (एम.एल.डी.) की कुल उपचार क्षमता के साथ 61 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एस.टी.पी.) स्थापित किए हैं, 9 कस्बों में नई सीवरेज योजनाओं का निर्माण कार्य प्रगति पर है और अन्य कस्बों में सीवरेज प्रणालियों के लिए मंजूरी की प्रक्रिया चल रही है। ग्रामीण क्षेत्र में, 8 ग्रामीण क्षेत्रों में आंशिक कवरेज के साथ सीवरेज सुविधाएं प्रगति पर हैं, और 15 अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में योजनाओं पर काम जारी है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में सीवरेज योजनाओं को भी नाबार्ड के अन्तर्गत विधायक प्राथमिकता के रूप में वित्त पोषण के लिए शामिल किया गया है और नाबार्ड के अन्तर्गत ₹220.77 करोड़ की राशि के लिए 16 सीवरेज योजनाओं को मंजूरी दी गई है।
कमान क्षेत्र विकास- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, हिमाचल प्रदेश सरकार ने लघु सिंचाई योजनाओं को ध्यान में रखते हुए कमान क्षेत्र विकास के लिए ₹57.91 करोड़ आवंटित किए। 3,670 हेक्टर कृषि योग्य कमान क्षेत्र विकास (सी.सी.ए.) के भौतिक लक्ष्य के साथ सरकार का लक्ष्य निर्मित और उपयोग की गई क्षमता के बीच अंतर को पाटना है। अक्तूबर, 2023 तक ₹20.67 करोड़ की लागत से 1508.00 हेक्टर क्षेत्र को इसके अन्तर्गत् लाया गया है।
हैंड पंप कार्यक्रम- गर्मी के मौसम में पानी की कमी को दूर करने के लिए सरकार सक्रिय रूप से हैंड पंप कार्यक्रम लागू करती है। दिसंबर, 2023 तक कुल 41,835 हैंडपंप लगाए जा चुके हैं।
सिंचाई- हिमाचल प्रदेश के 5.567 मिलियन हेक्टेयर के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से केवल 5.83 मिलियन हेक्टेयर में खेती की जाती है। इसमें से राज्य की सिंचाई क्षमता लगभग 3.35 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है। बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 0.50 लाख हेक्टेयर और शेष 2.85 लाख हेक्टेयर को लघु सिंचाई योजनाओं के माध्यम से सिंचाई के अन्तर्गत् लाया जा सकता है। अक्टूबर 2023 तक, कुल 0.303 मिलियन हेक्टेयर सिंचाई के अन्तर्गत् लाया गया है।
प्रमुख सिंचाई- राज्य में एकमात्र प्रमुख सिंचाई परियोजना कांगड़ा जिले में शाहनहर परियोजना है। परियोजना पूरी होने पर, 15,287 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा प्रदान की जा रही है। अक्तूबर 2023 तक, कमान क्षेत्र विकास (सी.ए.डी.) टीम द्वारा 15,287 हेक्टेयर में से 10,042 हेक्टेयर भूमि को सी.ए.डी. गतिविधियों के अन्तर्गत् लाया गया है।
मध्यम सिंचाई- मध्यम बल्ह घाटी वाम तट सिंचाई परियोजना, सिधाथा कांगड़ा सिंचाई परियोजना तथा चंगर क्षेत्र बिलासपुर सिंचाई परियोजना क्रमशः 2,780, 3,150 और 2,350 हेक्टेयर भूमि को कवर करती हैं। अक्तूबर, 2023 तक सिधाथा क्षेत्र में 2,750 हेक्टेयर भूमि को सी.ए.डी. गतिविधियों के अंतर्गत लाया जा चुका है। फिना सिंह खेती कमान क्षेत्र (4,205 हेक्टेयर) एवं हमीरपुर जिले में नादौन क्षेत्र (2,980 हेक्टेयर) दोनों को एक मध्यम सिंचाई परियोजना के भाग के रूप में विकसित किया जा रहा है।
लघु सिंचाई- वर्ष 2023-24 में 5,740 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु ₹322.44 करोड़ का बजट प्रावधान है। अक्तूबर 2023 तक ₹94.77 करोड़ के व्यय से 2ए332ण्21 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाई गयी है।

9.उद्योग

16वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से औद्योगिक क्षेत्र वैश्विक आर्थिक विकास और श्रमिक उत्पादकता में वृद्धि के मामले में सबसे आगे रहा है। दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ताइवान नव औद्योगीकृत राष्ट्रों के कुछ उदाहरण हैं जो तेजी से आर्थिक विकास अर्जित करने के लिए औद्योगिक नीति और उद्योग समर्थन पर विश्वास किया। येे राष्ट्र आज दुनिया के सबसे धनी राष्ट्रों में हैं। हिमाचल प्रदेश ने हाल के वर्षों में औद्योगीकरण का उतम योगदान देखा है। पिछले छः वर्षों में, राज्य के औद्योगिक क्षेत्र ने राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में औसतन 43 प्रतिशत का योगदान दिया है। औद्योगिक क्षेत्र ने पिछले दशक के दौरान 6.0 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सी.ए.जी.आर.) प्राप्त की है। राज्य में चिकित्सा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, परिवहन, निर्माण, कपड़ा, रसायन और फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्रों में विनिर्माण उद्योग फल-फूल रहा है। राज्य ने जलविद्युत परियोजनाओं के वित्तपोषण के साधन के रूप में सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर महत्वपूर्ण बल दिया है। राज्य सरकार ने हाल ही में राज्य में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के कार्यक्रम शुरू किए हैं। अपनी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ई.ओ.डी.बी.) में सुधार के लिए, राज्य सरकार अब आवेदनों को ऑनलाइन जमा करने और स्वीकृत करने की अनुमति देती है, जिससे व्यवसायों के समय और धन की बचत होती है।
औद्योगिक क्षेत्र और इसके उप-क्षेत्र का योगदान- उद्योग क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और हिमाचल में रोजगार की अत्यधिक संभावनाएं पैदा करने के लिए महत्वपूर्ण है। 2023-2024 (अग्रिम) में औद्योगिक क्षेत्र का (खनन और उत्खनन सहित) कुल जी.वी.ए. (प्रचलित भावांे में) ₹82,658 करोड़ अनुमानित है। विनिर्माण क्षेत्र के प्रचलित भावांे पर कुल जी.वी.ए. में औद्योगिक क्षेत्र का 68.34 प्रतिशत योगदान है व शेष 31.66 प्रतिशत योगदान निर्माण, खनन एवं उत्खनन, बिजली और अन्य उपयोगिताओं के उप-क्षेत्रों से आता है। जी.एस.वी.ए. में प्रचलित भावांे पर औद्योगिक क्षेत्र (खनन और उत्खनन सहित) का योगदान वित्तीय वर्ष 2023-24 में 42.80 प्रतिशत है जिसमें 29.25 प्रतिशत विनिर्माण से, 7.44 प्रतिशत निर्माण तथा 5.76 प्रतिशत बिजली, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाओं से आता है। प्रचलित भावो पर जी.एस.वी.ए. में खनन और उत्खनन क्षेत्र का योगदान वर्ष 2019-20 में 0.31 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 0.36 प्रतिशत हो गया चित्र 9.1

औद्योगिक क्षेत्र और इसके उप-क्षेत्र का विकास- अग्रिम अनुमान के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में वित्त वर्ष 2022-23 में औद्योगिक क्षेत्र का जी.एस.वी.ए. 7.1 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है और इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक क्षेत्र का जी.वी.ए. 4.1 प्रतिशत बढ़ा है। हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र के जी.वी.ए. में तेजी से वृद्धि का तात्पर्य है कि कोविड काल आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान के प्रभाव अस्थायी थे और यह उद्योगों के लचीलेपन को प्रदर्शित करता है, जिसे सरकार की विकास-केंद्रित औद्योगिक नीतियों से बल मिला है।
i) विनिर्माण क्षेत्र- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, विनिर्माण क्षेत्र में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है जो उद्योग क्षेत्र में दूसरी सबसे ऊंची वृद्धि दर है (चित्र 9.2)। 2012-13 से 2023-24 के बीच, विनिर्माण क्षेत्र ने उद्योग क्षेत्र के उप-क्षेत्रों के बीच 7.8 प्रतिशत की उच्च सी.ए.जी.आर. रही, जो हिमाचल प्रदेश के तेजी से विनिर्माण विकास और व्यापार सुधारों, बेहतर बुनियादी ढांचे के प्रावधान और संभावित निवेशकों को प्रतिस्पर्धी वित्तीय रियायतें निवेश आकर्षित करने की क्षमता को दर्शाता है।
ii) निर्माण क्षेत्र- संगठित और असंगठित क्षेत्र की आय बढ़ाने के लिए और राज्य के बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए निर्माण उप-क्षेत्र का विकास महत्वपूर्ण है। निर्माण क्षेत्र में वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान उच्चतम विकास दर जो 12.9 प्रतिशत अनुमानित है (चित्र 9.2)।
iii) बिजली, जलापूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवा क्षेत्र- वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान, बिजली, जल की आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवा क्षेत्र में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है जो औद्योगिक क्षेत्र में तीसरी सबसे बड़ी विकास दर है (चित्र 9.2)।
iv) खनन और उत्खनन क्षेत्र- खनन और उत्खनन क्षेत्र वित्तीय वर्ष, 2023-24 में 5.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है।

रोजगार अंशदान- वे व्यक्ति जो या तो काम कर रहे हैं (या कार्यरत हैं ) या काम की तलाश कर रहे हैं या काम के लिए उपलब्ध हैं (या बेरोजगार) श्रम बल का गठन करते हैं। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) 2021-22 के अनुसार, राज्य के 20.12 प्रतिशत काम करने वाले वयस्क औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत थे जो 2022-23, पी.एल.एफ.एस. में घट़कर 17.28 प्रतिशत रह गये हैं। राज्य में, लगभग 10,32,528 काम करने वाले वयस्क है जो औद्योगिक क्षेत्र में काम करते हैं। निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र उद्योग क्षेत्र हैं जो राज्य के कार्यबल के उच्चतम प्रतिशत क्रमशः 8.41 प्रतिशत और 6.93 प्रतिशत रोजगार देते हैं। अन्य दो उप-क्षेत्र मिलकर राज्य के कार्यबल का 1.46 प्रतिशत रोजगार देते हैं। चित्र 9.4 से, यह दिखाई देता है कि विनिर्माण क्षेत्र की रोजगार में हिस्सेदारी 2021-22 में 38 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 41 प्रतिशत हो गई, जबकि बिजली और अन्य उपयोगिता की हिस्सेदारी 2021-22 में 4 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 7 प्रतिशत हो गई।

कार्यशील जनसंख्या का क्षेत्र वार वितरण- हिमाचल प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में आम तौर पर काम करने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत वितरण (कुल कार्यबल में से) चित्र 9.5 में प्रस्तुत किया गया है जो दर्शाता है कि 58.71 प्रतिशत, 16.94 प्रतिशत और 24.35 प्रतिशत क्रमशः प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत हैं। (पी.एल.एफ.एस. 2022-23)
हिमाचल प्रदेश में द्वितीयक क्षेत्र के अन्तर्गत कार्यरत श्रमशक्ति शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमशः 34.19 व 15.7 प्रतिशत है। चित्र 9.6 ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच श्रम बल में लिंग आधारित अंतर प्रदर्शित करता है। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 5.4 प्रतिशत महिलाएं व 25.2 प्रतिशत पुरुष द्वितीयक क्षेत्र में लाभकारी रूप से कार्यरत हैं। तुलनात्मक रूप में, शहरी क्षेत्रों में 27.35 प्रतिशत महिलाएं (ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 21.95 प्रतिशत अधिक) व 37.07 प्रतिशत पुरुष श्रम बल में द्वितीयक क्षेत्र में लाभप्रद रोजगार में कार्यरत हैं।
राज्य में औद्योगीकरण अपेक्षाकृत एक नई बात है, जिसने राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद ही ध्यान आकर्षित करना शुरू किया। 1971 में राज्य का दर्जा प्राप्त करने से पहले, इस क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक प्रतिष्ठानों में नाहन (सिरमौर) में नाहन फाउंड्री, कसौली (सोलन) में मोहन मीकिन्स ब्रूरीज, द्रंग (मंडी) में नमक की खदानें, नाहन और बिलासपुर में रोजिन और तारपीन विनिर्माण और मंडी में चार छोटी बंदूक फैक्ट्रियों के साथ शामिल थे। निवेशकों का विश्वास बढ़ाने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने में औद्योगिक नीति की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए, राज्य सरकार ने इसके महत्व को स्वीकार किया। उद्योगों के लिए प्रोत्साहनों का प्रारंभिक सेट 1971 में पेश किया गया था और बदलती परिस्थितियों के अनुरूप 1980, 1984, 1991, 1996, 1999 और 2004 में इसमें संशोधन किया गया। इसके बाद 2009, 2015 और 2017 में संशोधन हुए, जो बदलते आर्थिक और औद्योगिक परिदृश्य के प्रति राज्य की प्रतिक्रिया को दर्शाते हैं। औद्योगिक नीति 2019 का दूरदर्शिता विवरण है, “आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों को बढाने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना, ताकि हिमाचल को निवेश के लिए पसंदीदा गंतव्य के रूप में स्थापित हो सके और औद्योगिक एंव सेवा क्षेत्रों में सतत और संतुलित विकास सुनिश्चित हो सके।“ विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए अनुकूल औद्योगिक विकास वातावरण प्रदान करने के लिए 2022-23 में औद्योगिक नीति 2019 को दिसंबर, 2022 से दिसंबर, 2025 तक बढ़ाया गया है। यदि यह रणनीति लागू की जाती है, तो यह अपने लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगीः
i) कानूनों और प्रक्रियाओं के सरलीकरण, स्व-प्रमाणन को अपनाने और समस्त स्वीकृतियों (ई.ओ.डी.बी.) के तेजी से डिजिटलीकरण द्वारा व्यवसाय करने में आसानी सुनिश्चित होगी।
ii) एक नए औद्योगिक बुनियादी ढांचे का निर्माण या मौजूदा ढ़ांचे में सुधार, और एक निजी भूमि बैंक की स्थापना।
iii) विश्वसनीय, लागत प्रभावी बिजली का प्रावधान।
iv) राज्य द्वारा प्रदत्त प्रोत्साहनों, रियायतों और सुविधाओं के वितरण को सुव्यवस्थित करने से राज्य में निवेश को बनाए रखने और उसमें तेजी लाने में मदद मिल सकती है।
v) सभी स्तरों पर 80 प्रतिशत स्थायी हिमाचली को रोजगार की शर्त के साथ प्रोत्साहन, सुविधाएं और रियायतें प्रदान करना। नियमित आधार पर 80 प्रतिशत से अधिक स्थायी हिमाचली को रोजगार देने वाले उद्यमों को 50 प्रतिशत स्थायी हिमाचलियों के अतिरिक्त सृजित अतिरिक्त रोजगार पर प्रोत्साहन देना ।
हिमाचल प्रदेश में विनिर्माण को प्रोत्साहित करने और अधिक रोजगार सृजित करने के लिए, राज्य सरकार ने ध्यान केंद्रित करने के लिए आठ प्राथमिकता वाले उद्योगों का चयन किया है। प्राथमिकता क्षेत्र का प्रमुख लक्ष्य निवेशक और उद्यमी अनुकूल और पारदर्शी प्रणाली स्थापित करना है, साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में सरल प्रक्रिया, व्यापार करने की सुविधा और आकर्षक नीतियां प्रदान करना है। यह आठ क्षेत्र इस प्रकार हैंः
कृषि-व्यवसाय, खाद्य प्रसंस्करण और कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी- राज्य में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए कच्चे माल की प्रचुरता है। हिमाचल प्रदेश में कृषि-व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास के लिए नामित खाद्य पार्क, मेगा फूड पार्क, कृषि निर्यात क्षेत्र, अंतर्देशीय कंटेनर डिपो और अपशिष्ट उपचार संयंत्र जैसी औद्योगिक सुविधाओं के रूप में बुनियादी ढांचा है।
कृषि-व्यवसाय, खाद्य प्रसंस्करण और पोस्ट हार्वेस्ट प्रौद्योगिकी की विशेषताएं-
i) भारत का फल कटोरा- सेब और बादाम उत्पादन में दूसरा स्थान
ii) बे-मौसमी सब्जियों और विदेशी फलों के सबसे बडे उत्पादकों में से एक
iii) 4 कृषि-जलवायु क्षेत्र और मिट्टी की 9 किस्में
iv) कृषि और खाद्य प्रसंस्करण व्यवसाय के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा
v) राज्य में विश्व की अग्रणी खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों की उपस्थिति
विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स- राज्य ने कृषि से औद्योगिक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है। 1950-51 में जी.एस.डी.पी. में द्वितीयक क्षेत्र का योगदान मात्र 7.0 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 42.80 प्रतिशत हो गया। औद्योगिक निवेश नीति-2019 में राज्य भर में औद्योगिक विकास के संतुलित विकास हेतु निवेशकों को राज्य की बी और सी श्रेणी की स्थापना के लिए उच्च प्रोत्साहन की उपलब्धता की जा रही है। विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैंः
i) राज्य में 60 औद्योगिक क्षेत्र और 17 औद्योगिक संपदा हैं और यह 300 मिलियन से अधिक ग्राहकों (भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या) तक बाजार पहुंच प्रदान करता है। इसने निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से क्रेमिका फूड पार्क के विकास में सहायता की। प्रचुर मात्रा में कच्चे माल और बेहतर कनेक्टिविटी के साथ, राज्य सरकार ने और अधिक फूड पार्कों के विकास की परिकल्पना की है।
ii) राज्य में विभिन्न स्थानों पर नए औद्योगिक पार्क प्रस्तावित किए गए हैं जैसे कांगड़ा में एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप और सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, एम.आई.आई.य.ूएस. के अंर्तगत एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप, मेगा फूड पार्क योजना के अंर्तगत मेगा फूड पार्क, ऊना में मेगा टेक्सटाइल पार्क, प्रस्तावित जैव प्रौद्योगिकी पार्क अदुवाल और बल्क ड्रग पार्क ऊना में, शिमला के मैहली में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, मेडिकल डिवाइसेस पार्क सोलन मैं बनाने की नीति औद्योगिक निवेश नीति-2019 का समर्थन करती है।
iii) एशिया का सबसे बड़ा फार्मा हब हिमाचल प्रदेश देश का फार्मास्युटिकल विनिर्माण हब है। लगभग सभी प्रमुख फार्मा दिग्गज यहां अपनी इकाइयां स्थापित कर चुके हैं या इकाइयां स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं। बद्दी में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (एन.आई.पीई.आर) की सहायता से एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला भी स्थापित करने का प्रस्ताव है। हिमाचल प्रदेश भारत में फार्मा मांग का 35 प्रतिशत तक पूरा करता हैै।
इन 2 पार्कों के लिए सुगम सड़क, बिजली आदि के लिए प्रारंभिक विकास कार्य शुरू कर दिया गया है। मेडिकल डिवाइस पार्क के लिए, केंद्र सरकार ने ₹30.00 करोड़ और राज्य सरकार की प्रारंभिक हिस्सेदारी राज्य के हिस्से के रूप में ₹74.95 करोड़ जारी किए हैं। “बल्क ड्रग पार्क के लिए“ राज्य सरकार ने प्रारंभिक राज्य के हिस्से के रूप में ₹50.54 करोड़ जारी किए हैं और केंद्रीय हिस्से के रूप में ₹225.00 करोड़ जारी हुए हैं। इन 2 पार्कों के चालू होने से राज्य में निवेश और रोजगार के अवसरों में बढ़ावा मिलेगा।
एम.एस.ई.-सी.डी.पी. योजना के तहत आई.डी. क्लस्टर की वर्तमान स्थिति- भारत सरकार के एम.एस.एम.ई मंत्रालय की एम.एस.ई.-सी.डी.पी. योजना के तहत, तीन बुनियादी ढांचा विकास क्लस्टरों को भारत सरकार द्वारा अंतिम मंजूरी दी गई है। इन तीन आई.डी. परियोजनाओं की कुल लागत ₹3,234.67 लाख. इसके अलावा, भारत सरकार ने इन परियोजनाओं के लिए ₹2,339.93 लाख की अनुदान सहायता (जी.आई.ए.) प्रदान की है। राज्य में परियोजना की स्थिति नीचे सारणीबद्ध हैः

पर्यटन, आतिथ्य और नागरिक उड्डयन= हिमाचल प्रदेश विभिन्न रुचियों वाले पर्यटकों के लिए कई प्रकार के विकल्प प्रदान करता है और अवकाश, धार्मिक, साहसिक और सांस्कृतिक पर्यटन के लिए लोकप्रिय है। हिमाचल प्रदेश का पर्यटन क्षेत्र निजी निवेशकों को विकास की कहानी का हिस्सा बनने के लिए असंख्य अवसर प्रदान करता है।
पर्यटन, आतिथ्य और नागरिक उड्डयन में निवेश परियोजनाएं
1) श्री आनंदपुर साहिब से श्री नैना देवी जी, शिकारी देवी (मंडी), न्यूगल (पालमपुर), शाहतलाई से दियोटसिद्ध।
2) मक्लोडगंज से त्रिउंड (कांगडा) और नारकंडा से हाटूू पीक शिमला तक रोपवे परियोजना।
3) त्रिउंड, पोंग डैम, बीर बिलिंग (कांगडा), कसौली, चायल (सोलन), डलहौजी (चंबा), जंजैहली, शिकारी देवी-थुनाग, कमरुनाग (मंडी) और बागा सराहन, निरमंड कुल्लू में ग्लैंपिंग में हाई क्लास टेंट आवास।
4) हैली टैक्सी सेवा चंडीगढ, शिमला धर्मशाला, मंडी, किन्नौर, लाहौल स्पीति और शिमला क्षेत्र में हैली यात्रा।
5) चांशल (शिमला) में स्की लिफ्ट सुविधाओं के साथ स्की रिसॉर्ट।
6) झटिंगरी (मंडी) और धर्मशाला में अंतरराष्ट्रीय स्तर का होटल प्रबंधन।
7) धर्मशाला (मक्लोडगंज) में अन्य संबद्ध सेवाओं के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कन्वेंशन सेंटर।
आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी (आयुष), कल्याण और स्वास्थ्य देखभाल - आयुष में आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी जैसी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां के अभ्यास शामिल हैं। राज्य आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाली हिमालय की कुछ दुर्लभ जडी-बूटियों का घर है। आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करने में हिमाचल प्रदेश का समृद्ध इतिहास रहा है और यह विभिन्न लक्जरी वेलनेस रिसॉर्ट्स का घर है।
आयुष, देखभाल और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएं
1) अनुकूल जलवायुः सभी मौसमों में सुखद मौसम
2) स्वच्छ हवाः शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 से कम और पूरे हिमाचल प्रदेश में 10 से कम
3) पूरे हिमाचल प्रदेश में वेलनेस रिसॉर्ट्स कीे स्थापना का बुनियादी ढांचा
4) 66 प्रतिशत (दो तिहाई) भौगोलिक क्षेत्र निर्दिष्ट वन आवरण
5) हिमाचली काला जीराः हाल ही में प्राप्त भौगोलिक संकेत (जी.आई) का दर्जा और प्रतिरक्षण प्रणाली को मजबूत करता है और पेट की चर्बी कम करता है
आवास, शहरी विकास, परिवहन और बुनियादी ढांचा- शिमला और धर्मशाला दोनों को स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत स्मार्ट शहरों के रूप में विकसित किए जाने वाले सौ भारतीय शहरों में से दो के रूप में चुना गया है। बुनियादी ढांचा, प्रौद्योगिकी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, आवास और सामुदायिक सुविधाओं के क्षेत्र में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) आधार पर महत्वपूर्ण निवेश किया गया है।
शहरी विकास क्षेत्र में निवेश परियोजना
1) स्मार्ट सिटी, धर्मशाला (₹679.86 करोड की परियोजना)- मैक्लोडगंज पुनर्विकास परियोजना, थीम पार्क- मिनी, हिमाचल - चरान खड्ड, भागसू में फनिक्युलर, कन्वेंशन सेंटर - मैकलोडगंज, 22 स्थानों पर स्मार्ट पार्किंग (10 स्थानों पर वाणिज्यिक सहित), अपशिष्ट से बायोगैस संयंत्र, सार्वजनिक ई-शौचालय, पुनर्विकास कचहरी अड्डा, कोतवाली बाजार, मनोरंजन क्लब, इनडोर खेल परिसर, सांस्कृतिक केंद्र, ई-लाइब्रेरी।
2) स्मार्ट सिटी, शिमला (₹1274.63 करोड रुपये की परियोजना)- लिफ्ट, एस्केलेटर का निर्माण, नई पार्किंग का विकास, ढली में बस स्टैंड का विकास, नए आई.एस.बी.टी पर बस पार्किंग, आईस स्केटिंग रिंग, सर्विस अपार्टमेंट, होटल और वाणिज्यिक स्थान का विकास, नेट मीटरी सहित सौर पैनलों की स्थापना।
3) ₹15 करोड (₹5 करोड प्रत्येक) की ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाएं- बचे हुए कचरे के 10-20 प्रतिशत के निपटारे के लिए शहरी विकास विभाग ने तीन क्षेत्रों में लैंडफिल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है, जैसे भारियाल, टूटू-तारा देवी बाईपास, शिमला (9,923 वर्ग मीटर क्षेत्र), पुराना कांगड़ा से ब्रिजेश्वरी मंदिर रोड, कांगड़ा (3,53,633 वर्ग मीटर क्षेत्र) और गांव बडाला, ऊना (28,000 वर्ग मीटर क्षेत्र)। सैनिटरी लैंडफिल को पी.पी.पी. मोड पर विकसित किया जा सकता है और डेवलपर साइट पर प्राप्त कचरे की मात्रा के आधार पर टिपिंग शुल्क प्रदान करेगा और क्षेत्रीय सैनिटरी लैंडफिल में निपटाया जाएगा।
4) किफायती आवास परियोजना (₹544.50 करोड रुपये की परियोजना)- शिमला, बद्दी, नाहन, मंडी, धर्मशाला, नूरपुर, सुंदरनगर, नेरचौक, सरकाघाट, नारकंडा में किफायती आवास।
सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी), सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाएं (आई.टी.ई.एस.) और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण- भारत आई.टी, आई.टी-सक्षम सेवाओं, ई-कॉमर्स, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, डिजिटल भुगतान और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में प्राप्त अवसरों के द्वारा अगले कुछ वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखता है। हिमाचल प्रदेश सरकार का उद्देश्य राज्य को प्रभावशील क्षेत्र बनाने के लिए आई.टी., आई.टी.ई.एस. और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्रों और शासन में निवेश के माध्यम से इस अवसर का लाभ उठाना है। हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार ने राज्य में आई.टी., आई.टी.ई.एस. और इलेक्ट्रॉनिक्स पारिस्थितिकी तंत्र को बढावा देने के लिए एक ई-गवर्नेंस रोड मैप विकसित किया है। ई-गवर्नेंस रोड मैप के अर्न्तगत पहलों में एकीकृत उद्यम संरचना, आईटी पार्कों की स्थापना, साइबर सुरक्षा उपाय, जनजातीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी, डेटा सेंटर और कमांड एंड कंट्रोल सेंटर आदि शामिल हैं।
आई.टी, आई.टी.ई.एस. और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के क्षेत्र के मुख्य बिन्दु
1) उच्च गुणवत्ता वाली संचार अवसंरचना जैसे स्टेट डाटा सेंटर, स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (हिमस्वान) ई-डिस्ट्रिक्ट आदि के साथ।
2) हिमाचल प्रदेश से संचालित कंपनियों के लिए स्थानीय पसंद खरीद।
3) ई-डिस्ट्रिक्ट पोर्टल के माध्यम से प्रदान की जाने वाली 217 जी 2 सी (सरकार से नागरिक) सेवाएं।
4) अत्याधुनिक केंद्र को लोक सुरक्षा केंद्र के रूप में स्थापित किया जाएगा।
5) राज्य ने 9 राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस और 3 वेब रत्न पुरस्कार जीते।
6) लोक मित्र केंद्र, ई-ऑफिस, वाई-फाई चौपाल और ई-प्रोक्योरमेंट जैसे कई अग्रणी ई-गवर्नेंस कार्यक्रम शुरू किए।
शिक्षा और कौशल विकास- राज्य ने शिक्षा के क्षेत्र में न केवल शैक्षिक संकेतकों में अच्छे मानकों को प्राप्त करने में, बल्कि ष्समीक्षा कार्यक्रमः जैसी नई अभिनव पहलो में भी उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। शिक्षा विभाग में समग्र शिक्षा के माध्यम से कार्यक्रमों के अनुकरणीय कार्यन्वयन के लिए सेवा कालीन शिक्षकों के लिए एक प्रोद्योगिक आधारित एकीकृत समीक्षा और निगरानी प्रणाली और सतत् कार्यक्रम पुनश्चर्या प्रशिक्षण कार्यान्वयन के उदाहरण है। शिक्षण कार्यक्रम और ष्सतत शिक्षण कार्यक्रमः सेवारत शिक्षकों के लिए पुनश्चर्या प्रशिक्षणष् जैसी नई अभिनव पहलों शिक्षा विभाग में समग्र शिक्षा के माध्यम से कार्यक्रमों के अनुकरणीय कार्यान्वयन में भी शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है।
नवीकरणीय ऊर्जा- राजस्व सृजन, रोजगार के अवसरों और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के मामले में अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान के साथ, जल विद्युत विकास हिमाचल प्रदेश के आर्थिक विकास का प्रमुख इंजन है। दोहन योग्य जलविद्युत क्षमता 23,500 मेगावाट है, जिसमें से 10,580 मेगावाट का पहले ही दोहन किया जा चुका है। हिमाचल प्रदेश को 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा के साथ बिजली का शुद्ध निर्यातक होने का अनूठा गौरव प्राप्त है। हिमाचल प्रदेश में भारत की दोहन योग्य जलविद्युत क्षमता का लगभग एक चौथाई हिस्सा है और राज्य में 100 प्रतिशत विद्युतीकरण सुनिश्चित करने के लिए मजबूत प्रसारण और वितरण नेटवर्क है।
अक्षय ऊर्जा के लिए केन्द्र/राज्य सरकारों की पहलें
1) बडी जलविद्युत परियोजनाओं को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में घोषित करना।
2) जलविद्युत टैरिफ को कम करने के लिए टैरिफ युक्तिकरण।
3) जलविद्युत परियोजनाओं के भंडारण के लिए फ्लड मॉडरेशन के लिए बजटीय सहायता।
4) बुनियादी ढांचे को सक्षम करने की लागत को पूरा करने के लिए बजटीय प्रावधान।
5) जल विद्युत खरीद दायित्व को गैर-सौर नवीकरणीय खरीद दायित्व के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश सरकार की पहल के द्वारा एक अलग इकाई के रूप में अधिसूचित किया गया है।
6) फ्री पावर रॉयल्टी की सीमा को बढाना आवंटित परियोजनाओं के लिए 12 साल की महत्वपूर्ण अवधि के लिए 12 प्रतिशत फ्री पावर शेयर की सीमा को बढाया गया है।
7) भविष्य में आवंटित की जाने वाली परियोजनाओं के लिए संपूर्ण अनुबंध अवधि के लिए समान रूप से 12 प्रतिशत।
8) अपफ्रंट प्रीमियम और कैपेसिटी एडिशन चार्जेज में ₹20 लाख प्रति मेगावाट से ₹1 लाख प्रति मेगावाट तक की कमी और भूमि लीज राशि पैमेंट सक्योरटी मैकेनीजम को घटाकर ₹1 किया गया।
9) डिस्कॉम द्वारा 25 मेगावाट तक की क्षमता वाली परियोजनाओं के लिए बिजली की अनिवार्य खरीद।
10) प्रसारण शुल्क में छूटः 25 मेगावाट तक की क्षमता वाली परियोजनाओं के लिए ओपन एक्सेस शुल्क में।
विनियामक अनुपालन का युक्तिकरण (आर.आर.सी.) - राज्य ने ष्ईज ऑफ लिविंगष् और ष्ईज ऑफ डूइंग बिजनेसष् में सुधार के राज्य और राष्ट्र के लक्ष्यों को साकार करने के लिए नियामक अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कई पहलें की हैं। राज्य में विभिन्न विनियमों को कम करने के लिए इस संबंध में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में अन्य प्रशासनिक सचिवों के साथ एक ष्स्टेट टास्क फोर्सष् का गठन किया गया है। उद्योग विभाग सभी लाइन विभागों के साथ कार्यान्वयन और समन्वय करने के लिए नोडल एजेंसी है। आर.आर.सी. अभ्यास के पीछे मुख्य उद्देश्य सभी बोझिल अनुपालनों की पहचान करना, कम करना, समाप्त करना, सरकार से व्यवसाय (जी टू बी), सरकार से नागरिक (जी टू सी) के बीच भौतिक स्पर्श बिंदुओं को कम करना और सरकार द्वारा सेवाओं की परेशानी मुक्त डिलीवरी प्रदान करना है। डी.पी.आई.आई.टी. भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए नियामक अनुपालन बोझ को कम करने के तहत, हिमाचल प्रदेश द्वारा कुल 2310 अनुपालन (1115 व्यवसाय केंद्रित अनुपालन और 1195 नागरिक केंद्रित अनुपालन) कम किए गए हैं।
मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना (एम.एम.एस.वाई.)- एम.एम.एस.वाई. राज्य सरकार के महत्वपूर्ण प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है। यह हिमाचल प्रदेश के युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए राज्य सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। सब्सिडी के 60 प्रतिशत ष्फ्रंट लोडिंगष् के प्रावधान के साथ योजना को ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है। ग्रामीण युवाओं को लाभ प्रदान करने के लिए कृषि, पशुपालन, रेशम उत्पादन और खनन से संबंधित गतिविधियों को जोडकर इस योजना में हाल ही में संशोधन किया गया है। महिलाओं के लिए आयु सीमा को 18-45 वर्ष से संशोधित कर 18-50 वर्ष कर दिया गया है ताकि अधिक से अधिक महिलाएं योजना का लाभ उठा सकें और आत्मनिर्भर बन सकें। इस योजना की उच्च स्तर पर नियमित रूप से निगरानी की जा रही है और यह युवाओं में काफी लोकप्रिय है। एम.एम.एस.वाई. के तहत, 2018-19 से अब तक, 15,074 व्यक्तियों के रोजगार के साथ 6,031 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है और इन परियोजनाओं की सहायता के लिए ₹262.88 करोड की सब्सिडी जारी की गई है। इस योजना के तहत ₹1 करोड तक के निवेश की परियोजनाओं को वित्तपोषित सहायता दी जाती है। इस योजना के अन्तर्गत 25 प्रतिशत (सामान्य उम्मीदवारों के लिए), अनुसूचित जाति (एस.सी) के लिए 30 प्रतिशत, 35 प्रतिशत (महिला और दिव्यांगजन के नेतृत्व वाले उद्यम) की सब्सिडी उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त प्लाट एवं मशीनरी के लिए अधिकतम ₹60 लाख के कर्ज पर 3 साल के लिए 5 प्रतिशत की निवेश सब्सिडी भी दी जाती है। वर्ष 2023-24 के दौरान अब तक बैंकों द्वारा 608 मामले स्वीकृत किए गए हैं और ₹23.52 करोड की सब्सिडी जारी की गई है।

हिमाचल राज्य खाद्य मिशन (एच.पी.एस.एफ.एम.)- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एम.एफ.पी.आई.) ने राज्यों ,संघ राज्य क्षेत्रों के माध्यम से कार्यान्वयन के लिए 12वीं योजना (2012-13) के दौरान एक केंद्र प्रायोजित योजना (सी.एस.एस.) राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन (एन.एम.एफ.पी.) शुरू की थी। इसके अलावा, भारत सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना (2013-17) की शेष अवधि के दौरान मिशन को जारी रखने को मंजूरी दे दी थी। एन.एम.एफ.पी. का मूल उद्देश्य मंत्रालय की योजनाओं के कार्यान्वयन का विकेंद्रीकरण है, जिससे राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों की पर्याप्त भागीदारी होगी।
इस योजना को केंद्रीय सहायता से अलग कर दिया गया है और 2015-16 से राज्य सरकार द्वारा जारी रखा गया है। एच.पी.एस.एफ.एम. के अन्तर्गत, अब तक (2015 से जनवरी 2023 तक) 215 खाद्य प्रसंस्करण आधारित उद्यमों को स्थापना स्वीकृति दी गई है और इन परियोजनाओं की स्थापना में ₹60.62 करोड़ की अनुदान सहायता शामिल है।
मुख्यमंत्री स्टार्टअप नवाचार परियोजना नई उद्योग योजना- हिमाचल प्रदेश में एक बढ़ता हुआ स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जो ’मुख्यमंत्री स्टार्टअप/नवाचार परियोजनाओं/नई उद्योग योजना’ द्वारा समर्थित है। इस योजना के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैंः
i) स्व-रोज़गार या रोज़गार सृजन और आय सृजन।
ii) स्टार्टअप के माध्यम से व्यावसायीकरण के लिए उपयुक्त नए विचारों, उत्पादों और प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना।
iii) राज्य में इन्क्यूबेशन सेंटरों की स्थापना।
iv) नये उद्यमों और उद्यमियों को सहारा देना।
v) राज्य, केंद्र सरकार और अन्य संस्थानों द्वारा कार्यान्वित विभिन्न योजनाओं से ज्ञान, विशेषज्ञता और समर्थन प्राप्त करने में सहायता।
vi) नवाचार की सुविधा और प्रचार।
vii) स्टार्टअप और नवप्रवर्तन परियोजनाओं के लिए समर्थन।
viii) ऊष्मायन स्थान का निर्माण।
ix) स्टार्टअप्स के लिए पर्याप्त निवेश की सुविधा।
x) उद्यम पूंजी वित्तपोषण की सुविधा।
xi) मानव पूंजी विकास को बढ़ावा देना।
xii) राज्य में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना।
इस नीति के अनुसार, उद्योग विभाग एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रहा है जो नीतिगत आवश्यकताओं के अनुपालन में है। इस पहल में स्टार्टअप्स के लिए अपने उद्यमों में उद्यमियों की सफलता में मदद करने के लिए कई प्रोत्साहनों की कल्पना की गई है, जिसमें एक वर्ष के लिए प्रति माह ₹25,000 का मासिक निर्वाह छात्रवृत्ति और प्लग-तथा-प्ले क्षमताओं के साथ मुफ्त इन्क्यूबेशन सुविधाएं शामिल हैं।
राज्य में उद्यम पूंजी और बीज निवेश को और सक्षम करने के लिए, सरकार ने हिमसप (हिमाचल स्टार्टअप) योजना की घोषणा की है, जिसके तहत कंपनियों को समर्थन देने के लिए पांच साल के लिए ₹10 करोड़ का फंड स्थापित किया गया है। मुख्यमंत्री के स्टार्टअप मिशन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैंः
i) संभावित स्टार्ट-अप कंपनियों की मांगों को पूरा करने के लिए, राज्य सरकार ने स्टार्ट-अप के लिए प्लग एंड प्ले सुविधाओं के साथ निशुल्क इनक्यूबेटर के साथ-साथ हैंडहोल्डिंग समर्थन, कार्य स्थान और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए पूरे राज्य में.कुल बारह बिजनेस इन्क्यूबेटरों को अधिकृत किया है।
ii) इनक्यूबेशन के लिए कुल 329 स्टार्टअप का चयन किया गया है। इनमें से 281 स्टार्टअप ने सफलतापूर्वक अपनी इनक्यूबेशन अवधि पूरी कर ली है, जबकि 49 स्टार्टअप वर्तमान में इनक्यूबेशन के अधीन हैं। ये स्टार्टअप खाद्य प्रसंस्करण, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, कृषि और बागवानी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं। विशेष रूप से, इनमें से 80 से अधिक स्टार्टअप का व्यवसायीकरण हो चुका है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए इन्क्यूबेशन केंद्रों को ₹6.54 करोड़ की धनराशि वितरित की गई है।
iii) हिमसप योजना ने पूंजीगत सहायता के रूप में 10 विभिन्न व्यवसायों को लगभग ₹1.5 करोड का योगदान दिया है, और 78 विभिन्न कंपनियां अपने विचारों को बाजार में लाने में सफल रही हैं। चयनित स्टार्ट-अप्स को ₹4.97 करोड़ का भरण-पोषण भत्ता वितरित किया गया है।
iv) जुलाई 2022 में, वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्रालय ने स्टार्टअप इकोसिस्टम के समर्थन पर राज्यों की रैंकिंग का तीसरा संस्करण जारी किया। इस रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश को सात अन्य राज्यों के साथ ’आकांक्षी नेता’ घोषित किया गया था।
v) अभ्यास का चौथा संस्करण 2022 में लॉन्च किया गया था, जिसमें रैंकिंग ढांचे में 7 सुधार क्षेत्र शामिल थे, जिसमें कुल 25 कार्य बिंदु थे, जिसमें 85 अंक और फीडबैक अभ्यास सहित कुल 100 अंक थे। इस संस्करण में 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी संस्करणों में सबसे अधिक भागीदारी देखी गई। रैंकिंग प्रक्रिया में एकरूपता स्थापित करने और मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को श्रेणी-ए (1 करोड़ से अधिक जनसंख्या) और श्रेणी-बी (1 करोड़ से कम जनसंख्या) में विभाजित किया गया था। 16 जनवरी, 2024 को वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्रालय ने भारत मंडपम में नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में राज्यों की स्टार्टअप रैंकिंग 2022 के चौथे संस्करण के परिणामों की घोषणा की। हिमाचल को राज्य स्टार्टअप रैंकिंग 2022 के तहत बी श्रेणी (एक करोड़ से कम जनसंख्या) में ’सर्वश्रेष्ठ प्रदर्षक’ राज्य के रूप में मान्यता दी गई है।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ई.ओ.डी.बी.)- ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ई.ओ.डी.बी.) के बिजनेस रिफॉर्म एक्शन प्लान (बी.आर.ए.पी.) जनादेश के तहत, राज्य ने बी.आर.ए.पी. 2022 अभ्यास के तहत 352 सुधार बिंदुओं में से 347 के कार्यान्वयन के साथ 99 प्रतिशत का कार्यान्वयन स्कोर हासिल किया है। 2014 में डी.पी.आई.आई.टी. द्वारा रूपरेखा पेश किए जाने के बाद से यह हिमाचल प्रदेश राज्य द्वारा उच्चतम कार्यान्वयन स्कोर है। राज्य को ई.ओ.डी.बी. (बी.आर.ए.पी.-2020) रैंकिंग में ’अचीवर्स श्रेणी’ के शीर्ष स्थान पर रखा गया था। इससे पहले, राज्य ने ई.ओ.डी.बी.-2019 रैंकिंग में 9 अंकों की लंबी छलांग लगाई थी, यानी 16वें स्थान से 7वें स्थान पर पहुंच गया था, जिससे हिमाचल देश के ’पहाड़ी राज्यों में शीर्ष रैंकिंग वाला राज्य’ बन गया था।
हिमाचल प्रदेश में व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए, राज्य ने निवेशकों/व्यवसाय केंद्रित सेवाओं के लिए एक सिंगल विंडो सिस्टम (उभरता हिमाचल पोर्टल) विकसित किया है जिसमें 27 विभागों की 117 सेवाओं को एकीकृत किया गया है। हिमाचल प्रदेश की राज्य सिंगल विंडो सिस्टम भी भारत सरकार के राष्ट्रीय सिंगल विंडो पोर्टल के साथ एकीकृत है। इसी प्रकार, राज्य में सभी नागरिक संबंधी सेवाओं के लिए वन-स्टॉप समाधान यानी हिमाचल ऑनलाइन सेवा भी विकसित की गई है, जिसमें 39 विभिन्न विभागों की 217 सेवाओं को पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है। ये दोनों पोर्टल परेशानी मुक्त सेवाएं प्रदान करने और हिमाचल को निवेश के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी और अनुकूल गंतव्य बनाने के उद्देश्य से काम करते हैं।
प्रधान मंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकरण (पी.एम.एफ. एम.एफ.पी.ई.)- पी.एम.एफ.एम.एफ.पी.ई. केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमें हिमाचल प्रदेश के लिए शेयरिंग पैटर्न 90रू10 अनुपात (भारत सरकार-90 प्रतिशत, राज्य-10 प्रतिशत) है। असंगठित क्षेत्र के खाद्य आधारित सूक्ष्म उद्यमों की सहायता करने और उन्हें संगठित क्षेत्र में लाने के उद्देश्य से आत्मनिर्भर भारत के अन्तर्गत पी.एम.एफ.एम.एफ.पी.ई.योजना शुरू की गई है। यह खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को एस.एच.जी./एफ.पी.ओ./सहकारिता और व्यक्तिगत उद्यमों को औपचारिक बनाने को बढ़ावा देता है। नवंबर 2023 में, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने एक वैश्विक खाद्य कार्यक्रम की मेजबानी की। इस कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण (पी.एम.एफ.एम.ई.) योजना के तहत हिमाचल प्रदेश में स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) के 13,427 सदस्यों को ₹50.31 करोड़ रुपये की प्रारंभिक पूंजी वितरित की गई। कार्यक्रम के दौरान एच.पी. को पी.एम.एफ.एम.ई. योजना के तहत ’उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्य’ का पुरस्कार भी मिला। 5 वर्षों 2020-21 से 2024-25 के लिए भारत के लिए कुल परिव्यय ₹10,000 करोड़ है। शिमला जिले के लिए वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट ( ओ.डी.ओ.पी.) दृष्टिकोण के अन्तर्गत सेब को ओ.डी.ओ.पी. उत्पाद न होने पर भी व्यक्तिगत और समूहों की मौजूदा इकाइयों को सहायता दी जाएगी और नई इकाइयों को केवल ओ.डी.ओ.पी. उत्पाद के लिए सहायता दी जाएगी।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.)- पी.एम.ई.जी.पी. केंद्र सरकार का एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम है। यह योजना 15 अगस्त, 2008 को दो योजनाओं, प्रधानमंत्री रोजगार योजना और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम को मिलाकर शुरू की गई थी। योजना के तहत विनिर्माण क्षेत्र में परियोजना की अधिकतम लागत ₹50.00 लाख और सेवा क्षेत्र के तहत ₹20.00 लाख है। यदि कुल परियोजना लागत क्रमशः विनिर्माण और सेवाध् व्यवसाय क्षेत्र के लिए ₹50.00 लाख या ₹20.00 लाख से अधिक है, तो शेष राशि बैंकों द्वारा बिना किसी सरकारी सब्सिडी के प्रदान की जा सकती है। सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार को प्रस्तावित उद्यम/इकाई के स्थान के आधार पर 15-25 प्रतिशत अनुदान मिलता है और परियोजना लागत के लिए योगदान 10 प्रतिशत है। अन्य श्रेणी के उम्मीदवारों को प्रस्तावित उद्यम/ इकाई के स्थान के आधार पर 25-35 प्रतिशत मिलता है और उनका स्वयं का योगदान केवल 5 प्रतिशत है। यह योजना उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड (एच.पी.के.वी.आई.बी.) और खादी और ग्रामोद्योग आयोग (के.वी.आई.सी.) के राज्य कार्यालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। 2023-24 के दौरान, 160 परियोजनाओंध् व्यक्तियों को उनके चुने हुए उद्यम स्थापित करने के लिए ₹6.30 करोड़ की मार्जिन मनी सहायता प्रदान की गई है। पी.एम.ई.जी.पी. की स्थापना के बाद से अब तक लगभग 11,280 व्यक्तियों ने अपने उद्यम स्थापित किए हैं।
पी.एम.ई.जी.पी.के. उद्देश्य हैंः
i) नए स्व-रोजगार उद्यमों/ परियोजनाओं/सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना।
ii) व्यापक रूप से फैले हुए पारंपरिक कारीगरों/ग्रामीण और शहरी बेरोजगार युवाओं को एक साथ लाना और उन्हें उनके स्थान पर यथासंभव स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना।
iii) देश में पारंपरिक और भावी कारीगरों और ग्रामीण और शहरी बेरोजगार युवाओं के एक बड़े वर्ग को निरंतर और स्थायी रोजगार प्रदान करना, ताकि शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण युवाओं के पलायन को रोकने में मदद मिल सके।
iv) कारीगरों की मजदूरी अर्जित करने की क्षमता में वृद्धि करना और ग्रामीण और शहरी रोजगार की विकास दर में वृद्धि में योगदान देना।
राज्य में रेशम उत्पादन एक महत्वपूर्ण कृषि आधारित ग्रामीण कुटीर उद्योग के रूप में विकसित हुआ है। जिसे कृषि समुदाय की आय बढ़ाने के लिए सहायक व्यवसाय के रूप में अपनाया गया है।
राज्य मुख्य रूप से बाइवोल्टाइन रेशम उत्पादक क्षेत्र है और यहां गुणवत्तापूर्ण रेशम के लिए गुणवत्तापूर्ण बाइवोल्टाइन कोक्कन का उत्पादन करने के लिए स्वास्थ्यप्रद जलवायु है। वर्तमान में, सेरीक्लचर 1,728 गांवों में लगभग 10,010 परिवारों को काफी पारिश्रमिक व्यवसाय प्रदान करता है और इसका प्रमुख केंद्र बिलासपुर, मंडी, हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना और सिरमौर जिलों में पाया जाता है। रेशम उत्पादन करने वाले जिलों में, बिलासपुर जिला रेशम कोकून का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो 35 प्रतिशत उत्पादन साझा करता है, इसके बाद जिला मंडी (25 प्रतिशत), जिला कांगड़ा (22 प्रतिशत) और हमीरपुर (16 प्रतिशत) का स्थान आता है। उद्योग विभाग ने राज्य के 11 जिलों में आठ रेशम उत्पादन प्रभाग स्थापित किए हैं, जिसके तहत 79 सरकारी रेशम उत्पादन केंद्र-सह-चौकी पालन केंद्र और 64 शहतूत फार्म कार्य कर रहे हैं। ये सरकारी. रेशम उत्पादन केंद्र कम उम्र में पालन-पोषण करते हैं और रेशम कोकून के उत्पादन के लिए देर से पालन-पोषण के लिए किसानों को चौकी में पाले गए रेशमकीट वितरित करते हैं और शहतूत के पौधों के एच.वाई.वी. भी वितरित करते हैं और हितधारकों को तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। भौतिक उपलब्धियाँ उद्योग इस प्रकार हैंः
शहतूत क्षेत्रः
i) शहतूत के बागानः राज्य सरकार ने नालागढ़ में 32 बीघे भूमि पर राज्य शहतूत उत्पादन-सह-प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया है, जहां सर्दी के मौसम में हिमाचल प्रदेश के लिए उपयुक्त 5.00 लाख उच्च उपज देने वाली किस्मों का प्रचार किया गया है और रेशम उत्पादन गतिविधियों को अपनाने के लिए नए किसानों को वितरित किया जाएगा।
ii) बीज की आवश्यकताः किसानों को कुल 7.50 लाख रेशमकीट बीज वितरित किए गये और जिसके तहत राज्य रेशम बीज उत्पादन केंद्र पालमपुर, जिला कांगड़ा में 2.50 लाख रेशमकीट बीज का उत्पादन किया गया और बाकी बीज 2023-24 के दौरान केंद्रीय रेशम बोर्ड, भारत सरकार से खरीदे गए हैं।
राज्य सरकार ने हथकरघा पर मूल्य संवर्धन उत्पादों का उत्पादन करके ऊन और पश्मीना के साथ रेशम को मिश्रित करके हिमाचल रेशम को ब्रांड के रूप में बढ़ावा देने के लिए बाली चौकी, जिला, मंडी में सेरी-उद्यमिता विकास और नवाचार केंद्र की स्थापना की है।

ओक तसर गतिविधियाँः
i) विकास खण्ड सराज के 200 कृषकों को क्वार्कस सेरेट (मणिपुर बांज) के 30000 पौधे वितरित किये गये हैं।
ii) ओक तसर बीज उत्पादन के लिए गाडागुसाईं में ₹30.00 लाख की लागत से बुनियादी रेशमकीट बीज उत्पादन-सह-संरक्षण केंद्र स्थापित किया गया था।
iii) 350 किसानों को ओक तसर रेशम उत्पादन में प्रशिक्षित किया गया और केंद्रीय रेशम बोर्ड, भारत सरकार द्वारा 2 जागरूकता शिविर आयोजित किए गए।
एरी रेशम उत्पादनः
i) उत्तर पूर्व राज्यों में एरिकल्चर का अध्ययन करने के लिए अधिकारियों का एक अध्ययन दौरा और एक्सपोज़र दौरा आयोजित किया गया था।
ii) तकनीकी कर्मचारियों के लिए एरिकल्चर पर एक दिन की कार्यशला का आयोजन किया गया।
iii) सी.आर.सी. नालागढ़ में एरी रेशमकीट पालन सफलतापूर्वक किया गया।
iv) घुमारवीं और लद्दा, जिला बिलासपुर, धौलाकुआं, जिला सिरमौर और नादौन, जिला हमीरपुर में अरंडी बागान फार्म की स्थापना होगी और इन खेतों में सी.आर.सी. भवन का निर्माण होगा।
v) वर्तमान में बिलासपुर जिले में रेशम उत्पादन के लिए 225 किसानों की पहचान की गई है।
पारदर्शिता लाने व समय की बचत के लिए खनन पट्टा स्वीकृति की प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया गया है। प्रदेश में राजस्व वृद्धि हेतु सरकार द्वारा लघु खनिजों़ (रेत, बजरी, बोल्डर) से प्राप्त होने वाली रायल्टी की दर को ₹60 प्रति टन से बढा कर ₹80 प्रति टन कर दिया गया है। इसके अलावा, ईंट भट्ठा इकाइयों के संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए एक विशिष्ट छूट की शुरुआत की गई है। कृषि भूमि और निजी भूमि पर भूखंड विकास के लिए सामान्य जमीनी स्तर से 1.5 मीटर की गहराई तक मिट्टी/मिट्टी को हटाना अब खनन गतिविधि के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा। यह उपाय जिम्मेदार भूमि उपयोग प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हुए ईंट भट्ठा इकाइयों के कामकाज को समर्थन और सुव्यवस्थित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
अवैध खनन को रोकने के लिए प्रावधान भी कड़े किए गए हैं जिसके अंतर्गत जुर्माना राषि ₹25 हजार से बढाकर ₹5 लाख व सजा को बढाकर 2 वर्ष या दोनों एक साथ करने का प्रावधान कर दिया गया है। अवैध खनन की रोकथाम हेतु जहाँ एक ओर सरकार नियमो में संशोधन करने के उपरांन्त अवैध खनन में सलिप्त दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करने के लिए पग उठा रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में वैध तरीके से खनिज सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु पूर्ण प्रयास कर रही है।
प्रदेश के सीमावर्ती जिले, जिनमे काँगड़ा, ऊना, सोलन व सिरमौर प्रमुख रूप से आते हैं और अवैध खनन के लिए संवेदनशील बने रहते है जिसे रोकने के लिए सरकार द्वारा प्रदेष के सीमावर्ती जिलों कांगड़ा, ऊना एवं सोलन के नालागढ़ उपमण्डल व जिला सिरमौर के पांवटा साहिब क्षेत्रों में लघु खनिज़ों की खुली बिक्री हेतु प्रतिबंधित कर दिया गया है। अवैध खनन एवं ओवर लोडिंग को रोकने के लिए प्रदेश में जिला सोलन में 1 एवं जिला ऊना में 5 खनन पड़ताल चौंकिया स्थापित कर दी गई है। विभाग ने पिछले 6 वर्षो के दौरान 232 से अधिक खनन स्थलों को निविदा-सह-नीलामी के माध्यम से नीलाम किया है।
इसके अतिरिक्त राज्य सरकार पर्यावरण अनुकूल प्रभावी तरीके से उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम स्तर तक उपयोग करके राज्य को राजस्व बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीके से खनिजों की वैध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्व है। उपरोक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा प्रावधान किया गया है कि पनबिजली परियोजना और सड़क निर्माण के उद्देश्य के लिए स्टोन क्रशर स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी और सड़क निर्माण और जलविद्युत परियोजनाओं में विकास गतिविधियों के दौरान उत्पन्न होने वाली खनिज सामग्री और सुंरग के निर्माण के दौरान उत्पन्न होने वाले मक्क का प्रयोग करने की अनुमति दी जाएगी जिसके प्रयोग करने के लिए प्रसंस्करण शुल्क के रूप में प्रति टन खनिज पर देय रॉयल्टी के 75़ प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त राशि का भुगतान करने के बाद ऐसे स्टोन क्रशरों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। साथ ही राज्य में रात के समय खनन कार्याें पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि देर रात के दौरान अवैध खनन की आशंका हमेशा बनी रहती है।
इसके अलावा दिनांक 16.11.2023 से स्टोन क्रशर इकाइयों से ली जाने वाली रॉयल्टी की गणना के लिए बिजली की खपत की दर को 7 यूनिट प्रति टन से संशोधित करके 5 यूनिट प्रति टन कर दिया गया है। इसके अलावा सरकार हिमाचल प्रदेश सरकार 10 वर्षों से अधिक के अंतराल के बाद हिमाचल प्रदेश लघु खनिज नीति, 2023 पेश कर रही है जो खनन शाखा और अन्य हितधारकों को व्यवस्थित, वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीके से खनिज विकसित करने के लिए मार्गदर्शन करेगी और तकनीक संचालित करेगी। इस नीति का मूल उद्देश्य नए प्रभावी उपायांे के हस्तक्षेप के सार्थ पूर्ण उपायों को प्रतिस्थापित करके राज्य में खनिजों की मांग को पुरा करने के साथ-साथ पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव को कम करना होगा। यह नीति राज्य के राजस्व बढ़ाने में मदद करेगी और राज्य और उसके लोगांे की समृद्वि को और बढ़ाएगी। खनिज संसाधनों के संरक्षण के साथ-साथ राज्य की सामाजिक, आर्थिक उन्नति इस नीति की प्राथमिकता होगी। यह नीति राज्य के भू-वैज्ञानिक शाखा के भविष्य के प्रयासों में एक मार्गदर्शक कारक होगी।
एम.एस.एम.ई. अपने-अपने राज्यों के आर्थिक और सामाजिक विकास में व्यावसायिक नवाचार को प्रोत्साहित करके और नए रोजगार की संभावनाएं पैदा करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को सहायता देने और आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में, निवेश और वार्षिक टर्नओवर का एक नया समग्र-मानदंड और विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के एम.एस.एम.ई. के लिए एक जैसी शर्त 1 जुलाई, 2020 (सारणी 9.5) से लागू की की गई थी।
एम.एस.एम.ई. की संशोधित परिभाषा इन उद्यमों के विस्तार और विकास को सुगम बनाएगी। यह संशोधित पैमाने एम.एस.एम.ई. उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं, जिसमें बाजार समर्थन, निर्यात प्रोत्साहन, सार्वजनिक क्षेत्र में अधिमान्य खरीद और सूक्ष्म लघु उद्यमों के माध्यम से प्रोत्साहन- क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एम.एस.ई.-सी.डी.पी.), प्रधान मंत्री रोजगार सहित कई सरकारी प्रोत्साहन शामिल हैं। जनरेशन प्रोग्राम (पी.एम.ई.जी.पी.) और पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिए फंड की योजना (एस.एफ.यू.आर.टी.आई.) और सूचना प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी प्रणालियों को सक्षम करना। यह सक्षम वातावरण प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा और एम.एस.एम.ई के बीच संकुचन से बचाएगा। एम.एस.एम.ई के लिए व्यवसाय करने में आसानी को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा में किए गए उपायों में जुलाई, 2020 में नए उद्यम पंजीकरण पोर्टल का शुभारंभ शामिल है। इसके तहत पंजीकरण प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन, डिजिटल, पेपरलेस है और स्व-घोषणा पर आधारित है। नई पंजीकरण प्रक्रिया ने लेनदेन के समय और लागत को कम करके एम.एस.एम.ई के लिए व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा दिया है। राज्य में उद्यम पोर्टल पर दिनांक 15 जनवरी, 2024 की स्थिति में 1,36,015 उद्यम पंजीकृत हैं, जिनमें से 1,32,412 (97.35 प्रतिशत) सूक्ष्म, 3,227(2.37 प्रतिशत) लघु एवं 376 (0.28 प्रतिशत) मध्यम उद्यम हैं। उद्योग पोर्टल पर विनिर्माण और सेवा उद्यमों सहित पंजीकरण का जिलावार आंकडा चित्र 9.8 में सूचीबद्ध हैः
के.वी.आई.सी. भारत सरकार द्वारा अप्रैल 1957 में (दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान) ष्खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956ष् के तहत स्थापित एक वैधानिक संगठन है। के.वी.आई.सी. का शिमला में एक राज्य खंड है और पूरे राज्य में 13 खादी संस्थान संचालित हैं। सारणी 9.6 के.वी.आई.सी. से संबद्ध/पंजीकृत समितियों और संस्थानों के माध्यम से उत्पादन और बिक्री की वर्तमान स्थिति को दर्शाती है।
के.वी.आई.सी. खादी कार्यक्रम के अलावा, पी.एम.ई.जी.पी. को भी लागू कर रहा है। इस कार्यक्रम के तहत संबंधित राज्य में खादी और ग्राम औद्योगिक बोर्ड (के.वी.आई.बी.) और उद्योग निदेशालय की भागीदारी के साथ पूरे भारत में क्रेडिट लिंक्ड बैक एंड सब्सिडी योजना लागू की जा रही है। स्थानीय सरकारी एजेंसियों और बैंकों के सक्रिय सहयोग से, के.वी.आई.सी. 2009 से पी.एम.ई.जी.पी. योजना लागू कर रहा है और शिक्षित और अशिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर रहा है। औद्योगिक इकाइयों की स्थिति, सब्सिडी का उपयोग और रोजगार सृजन सारणी 9.7 में दर्शाया गया है।
के.वी.आई.सी. ने राज्य में पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिए समूहों की भी पहचान की है। एस.एफ.यू.आर.टी.आई. के तहत सिरमौर मधुमक्खी पालन क्लस्टर की पहचान की गई है और महिला समाज कल्याण समिति, राजगढ, सिरमौर कार्यान्वयन एजेंसी होगी। ली बी इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बी कीपिंग एंड एग्रो एंटरप्राइजेज, लुधियाना के तकनीकी सहयोग से ₹255.76 लाख रुपये की परियोजना लागत वाले 3,000 कारीगरों को शामिल किया जा रहा है।
एच.पी.के.वी.आई.बी. विधान सभा के एक अधिनियम (1966 की संख्या 8) द्वारा बनाई गई एक वैधानिक निकाय है। यह 8 जनवरी, 1968 को अस्तित्व में आया। 1966 के मूल अधिनियम को बाद में 1981 और 1987 के दौरान संशोधित किया गया। बोर्ड के उद्देश्यों को मोटे तौर पर निम्नानुसार दिया गया हैः
i) रोजगार प्रदान करने का सामाजिक उद्देश्य।
ii) बिक्री योग्य वस्तुओं के उत्पादन का आर्थिक उद्देश्य।
iii) गरीबों के बीच आत्मनिर्भरता पैदा करने और एक मजबूत ग्रामीण सामुदायिक भावना का निर्माण का व्यापक उद्देश्य।
एच.पी.एस.आई.डी.सी. को सड़कों, पुलों, स्टेडियमों, सरकारी कॉलेजों, पॉलिटेक्निक कॉलेज, स्कूल भवन, जल आपूर्ति, स्ट्रीट लाइटिंग परियोजनाएं, सीवरेज बुनियादी ढांचा सरकारी भवनों के निर्माण में विशेषज्ञता प्राप्त है। एच.पी.एस.आई.डी.सी. द्वारा बाथू में सामान्य सुविधा केंद्र, पलकवाह (ऊना) में कौशल विकास केंद्र, श्रमिक छात्रावास बाथू और पारगमन श्रमिक छात्रावास दुलेहर (ऊना) विकसित की गई कुछ अत्याधुनिक परियोजनाएं हैं। निगम ने राज्य सरकार के लिए कई औद्योगिक क्षेत्र/संपदा/पार्क भी विकसित किए हैं। निगम के पास बद्दी और दावनी में अपने स्वयं के औद्योगिक भूखंड (424 बीघा) हैं। निगम ने संशोधित औद्योगिक अवसंरचना उन्नयन योजना (एम.आई.आई.यू.एस.) के तहत सिविल कार्यों को सफलतापूर्वक निष्पादित किया है और कंदरोड़ी और पंडोगा में अत्याधुनिक औद्योगिक क्षेत्रों का सफलतापूर्वक निर्माण किया है। इसके पास पोंटा साहिब और परवाणु में शेड भी हैं। एच.पी.एस.आई.डी.सी. कोल्ड मिक्स उत्पादों के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पाेरेशन और मैसर्स बिटकेम एस्फाल्ट लिमिटेड का अधिकृत डीलर है और स्टील उत्पादों (मैसर्स सेल इंडिया/टाटा स्टील) के लिए हिमाचल प्रदेश में एक व्यापारी है। इसके अलावा, निगम को नालागढ़, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश में मेडिकल डिवाइस पार्क की स्थापना के लिए एक राज्य कार्यान्वयन एजेंसी नियुक्त किया गया है। निगम ऊना जिला, हि.प्र. में स्थित बल्क ड्रग पार्क के तहत बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। निगम कांगड़ा जिला, हि.प्र. में यूनिटी मॉल विकसित करने की प्रक्रिया में है। इसे केंद्र सरकार के एक जिला एक उत्पाद के प्रमुख कार्यक्रम के रूप में बनाया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड (एच.पी.आई.डी.बी.) की स्थापना 28.01.2002 को हिमाचल प्रदेश इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एक्ट, 2001 की धारा 2 के तहत की गई थी। प्रारंभ में, अधिनियम के तहत एच.पी.आई.डी.बी. का मुख्य कार्य राज्य सरकार की ओर से राज्य योजना के तहत विकास व्यय के वित्तपोषण के लिए संसाधन जुटाने के लिए विशेष प्रयोजन वाहन (एस.पी.वी.) के रूप में कार्य करना था। इसके बाद, एच.पी.आई.डी.बी. ने अपनी मौजूदा गतिविधियों के अलावा राज्य सरकार के सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) सेल के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया।
भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धियाँ/नीतिगत पहलें-
i) एच.पी.आई.डी.बी. ने विभिन्न क्षेत्रों में पी.पी.पी. मोड पर 24 परियोजनाएं सफलतापूर्वक प्रदान की हैं, यानी शहरी क्षेत्र में 15 परियोजनाएं, पर्यटन क्षेत्र में 7 परियोजनाएं और पर्यावरण क्षेत्र में 2 परियोजनाएं।
ii) शिमला में छोटा शिमला, न्यू शिमला और चौड़ा मैदान में निर्मित बुक कैफे के रखरखाव और नगर निगम शिमला के लिफ्ट, शिमला के पास वर्सलिंग कॉम्प्लेक्स के सामने फूड कोर्ट के संचालन प्रबंधन और रखरखाव के लिए बोली प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
iii) पंजाब के रूपनगर जिले के रामपुर गांव से नैना देवी जी मंदिर, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश तक श्री आनंदपुर साहिब जी से श्री नैना देवी जी के विकास के लिए पर्यटन विभाग की पैसेंजर रोपवे परियोजना के लिए सलाहकार/लेन-देन सलाहकार नियुक्त किया गया है।
iv) भाषा और संस्कृति (एल.ए.सी.) विभाग के बैंटनी कैसल, माल रोड, शिमला के लिए डिजिटल संग्रहालय गैलरी और अन्य मनोरंजक सार्वजनिक गतिविधियाँ और पर्यावरण विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग के कुफरी, जिला शिमला में अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के लिए सलाहकार/लेनदेन सलाहकार का चयन बोली चरण में हैं।
v) पर्यटन विभाग के सिरमौर के नाहन में फॉसिल पार्क, सुकेती के विकास के लिए लेनदेन सलाहकार की नियुक्ति के लिए रुचि की अभिव्यक्ति (ई.ओ.आई.) प्रक्रियाधीन है और शीघ्र ही जारी की जाएगी।
vi) हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के वार्ड नंबर 9, हनुमानी बाग में 1000 कार स्पेस सुविधा के साथ कार पार्किंग सह वाणिज्यिक परिसर के विकास का प्रस्ताव पी.पी.पी. मोड पर प्रक्रियाधीन/पाइपलाइन में है।
vii) इसके अलावा, एच.पी.आई.डी.बी. पी.पी.पी. मोड आदि पर विभिन्न चरणों में चल रही परियोजनाओं के विकास के लिए विभिन्न विभागों को सलाहकार सेवाएं प्रदान करना जारी रखेगा।
आई.आई.पी. औद्योगिक विकास को मापने का एक पैमाना है, इसमें पिछली अवधि की तुलना में विशिष्ट अवधि के दौरान उद्योग के क्षेत्र में भौतिक उत्पादन के सापेक्ष परिवर्तन शामिल हैं। इस सूचकांक का मुख्य उद्देश्य सकल राज्य घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र के योगदान का अनुमान लगाना है। प्रदेश में आई.आई.पी. को आधार वर्ष 2011-12 के आधार पर संकलित किया जा रहा है। आई.आई.पी. वार्षिक सूचकांकों अनुमान विनिर्माण, खनन, उत्खनन और बिजली की चयनित इकाइयों से सूचना एकत्र करके त्रैमासिक सूचकांकों के आधार पर पर किया गया है और सारणी 9.8 में दिखाया गया है।
वित्त वर्ष 2021-22 में सामान्य सूचकांक 221.9 से बढ़कर 235.3 और वित्त वर्ष 2022-23 में 248.6 हो गया है, जो क्रमशः 6.0 प्रतिशत और 5.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वित्त वर्ष 2023-24 के सूचकांकों के संबंध में, इन्हें दो तिमाहियों यानी जून, 2023 और सितंबर 2023 के आधार पर तैयार किया गया है। इन दो तिमाहियों के आधार पर सामान्य सूचकांक में पिछली तुलना में 17.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। जहॉ इन दोनों तिमाहियों के सूचकांक की तुलना पिछले वर्ष यानी 2022-23 की समान तिमाही के सूचकांक से करने पर, बिजली के उत्पादन में मामूली कमी के कारण 0.8 प्रतिशत की कमी हुई, दूसरी ओर सूचकांक वर्ष 2023-24 की इन तिमाहियों में अन्य दो क्षेत्रों यानी खनन और विनिर्माण में वृद्धि हुई है, जो विनिर्माण क्षेत्र के साथ-साथ राज्य की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए एक स्वस्थ संकेत है।

10.ऊर्जा

हिमाचल प्रदेश अपने प्रचुर जल संसाधनों के लिए जाना जाता है, जो इसे पनबिजली उत्पादन के लिए अनुकूल बनाता है। राज्य में कई जलविद्युत परियोजनाएँ हैं जो इसकी नदियों की ऊर्जा का उपयोग करती हैं और क्षेत्र की बिजली आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हिमाचल प्रदेश में बड़ी संख्या में जलविद्युत संसाधन हैं, जो राष्ट्रीय क्षमता का लगभग 25 प्रतिशत है। पांच बारहमासी नदी घाटियों पर विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण से राज्य में लगभग 24,000 मेगावाट जलविद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है। राज्य की कुल जलविद्युत क्षमता में से अब तक 11,209 मेगावाट का दोहन किया जाता है, जिसमें से केवल 7.6 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है, जबकि शेष का केंद्र सरकार द्वारा दोहन किया जा रहा है। नीचे दी गई सारणी 10.1 राज्य में बिजली के उत्पादन और खपत की स्थिति को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।
सारणी 10.1 इंगित करती है कि राज्य में उद्योग बिजली के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं, उसके बाद घरेलू उपभोक्ताओं का स्थान आता हैैं। बिजली की खपत के इस वितरण से पता चलता है कि बिजली औद्योगिक क्षेत्र की समग्र मांग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हिमाचल प्रदेश में ऊर्जा निदेशालय को ऊर्जा संसाधनों के प्रबंधन और राज्य के विद्युत संसाधनों के अधिकतम उपयोग का जिम्मा सौंपा गया है । राज्य को देश में पावर स्टेट के रूप में पेश किया गया है और ऊर्जा निदेशालय इस मील के पत्थर को हासिल करने में सहायक हुआ है। ऊर्जा निदेशालय वर्ष 2009 के दौरान बनाया गया था। इससे पहले यह हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड का एक हिस्सा था। ऊर्जा निदेशालय, बहुउद्देश्यीय परियोजना विभाग (एम.पी.पी.) हिमाचल प्रदेश सरकार (जी.ओ.एच.पी.) का नोडल कार्यालय है। यह हिमाचल प्रदेश राज्य के बिजली क्षेत्र में सभी बिजली उपयोगिताओं के साथ कुशल और समय पर समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है। यह 5 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली पनबिजली परियोजनाओं के आवंटन, पनबिजली सुरक्षा, पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों से सम्बन्धित तकनीकी आर्थिक मंजूरी (टी.ई.सी.) देने, स्थानीय क्षेत्र विकास निधि के प्रबंधन, गुणवत्ता नियंत्रण, बिजली प्रवाह के प्रबंधन हिमाचल प्रदेश सरकार की बिजली प्राप्त हिस्सेदारी, बिक्री का प्रबन्धन, विभिन्न केंद्रीय, राज्य और निजी जल विद्युत परियोजनाओं से प्राप्त हिमाचल प्रदेश सरकार के विद्युत के हिस्से पावर शेयर की बिक्री, राज्य में ऊर्जा संरक्षण गतिविधियों का कार्यान्वयन और राज्य के सभी बडे बांधों के लिए सुरक्षा पहलू का कार्यान्वयन करता है।
क्षमता वृद्धि- जिला कांगड़ा में 1 मेगावाट की क्षमता वाली एक परियोजना अर्थात् सेतु एस.एच.ई.पी. (1 मेगावाट) 01.04.2023 से 31.12.2023 के बीच चालू की गई है, जबकि कुल क्षमता 39 मेगावाट की तीन परियोजनाएं अर्थात् जिला कांगड़ा में लंबादुग एच.ई.पी. (25 मेगावाट), होली-प्प् जिला चंबा में एस.एच.ई.पी. (7 मेगावाट) और जिला किन्नौर में सोल्डन एस.एच.ई.पी. (7 मेगावाट) के क्रमशः 01.01.2024 से 31.03.2024 के दौरान चालू होने की संभावना है।
सरकार की ऊर्जा पात्रता- हिमाचल प्रदेश राज्य में विभिन्न परियोजनाओं का विवरण जिसमें हिमाचल प्रदेश सरकार के पास ऊर्जा की पात्रता नीचे दी गई हैः
सारणी 10.2 से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में विभिन्न केंद्रीय क्षेत्र, संयुक्त क्षेत्र और निजी क्षेत्र की परियोजनाओं में कुल 1,426 मेगावाट की मुफ्त और इक्विटी बिजली की हकदार है। 1,426 मेगावाट की कुल उपलब्धता में से कुल 160 मेगावाट की क्षमता उन परियोजनाओं के संबंध में है जो सीधे हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड (एच.पी.एस.ई.बी.) प्रणाली से जुड़ी हैं और इसकी शक्ति का उपयोग पूरे वर्ष एच.पी.एस.ई.बी. लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। सतलुज जल विद्युत निगम (एस.जे.वी.एन.) की परियोजनाओं में हिमाचल प्रदेश सरकार की बराबर भागीदारी के कारण कुल 438 मेगावाट क्षमता का उपयोग एच.पी.एस.ई.बी.एल. द्वारा अपने उपभोक्ताओं को 24×7 आपूर्ति प्रदान करने के लिए किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 (31 दिसंबर 2023 तक) के दौरान ृ1434 करोड़ का राजस्व अर्जित किया है और मार्च, 2024 तक बिजली की बिक्री से रॉयल्टी एवं विद्युत परियोजनाओं में राज्य सरकार के हिस्से से बिक्री का अनुमानित राजस्व ृ242 करोड़ है।
हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड का गठन 1 सितंबर, 1971 को बिजली आपूर्ति अधिनियम (1948) के प्रावधानों के अनुसार किया गया था और हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड लिमिटेड के रूप में पुनर्गठित किया गया है (कंपनी अधिनियम 1956 के तहत)। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (एच.पी.एस.ई.बी.एल.) हिमाचल प्रदेश में सभी उपभोक्ताओं को निरंतर और गुणवत्तापूर्ण बिजली की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार है। ट्रांसमिशन लाइन, सब ट्रांसमिशन लाइन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन सभी बडे नेटवर्क का हिस्सा हैं जो बिजली वितरित करते हैं। इसकी स्थापना के बाद से, बोर्ड ने इसे सौंपे गए लक्ष्यों के निष्पादन में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जैसा की सारणी 10.3 में दिखाया गया है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान एच.पी.एस.ई.बी.एल. ने जिला किन्नौर और उसके बाद जिला मंडी में स्थित अपने बिजलीघरों से सबसे अधिक यूनिट बिजली का उत्पादन किया है। एच.पी.एस.ई.बी.एल. के पास राज्य के पांच जिलों सोलन, ऊना, कुल्लू, हमीरपुर और बिलासपुर में बिजली घर नहीं हैं।
जल विद्युत उत्पादन- एच.पी.एस.ई.बी.एल. में, 489.35 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता वाली 27 एच.ई.पी. चालू हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान इन एच.ई.पी. द्वारा 2,157.46 एम.यू. ऊर्जा उत्पन्न की गई। वित्तीय वर्ष 2023-24 में, इन एच.ई.पी. द्वारा दिसंबर 2023 तक 1,513.86 एम.यू. ऊर्जा उत्पन्न की गई है और मार्च, 2024 तक अतिरिक्त 234.418 एम.यू. उत्पादन का अग्रिम अनुमान है। ऊहल चरण-3 (100 मेगावाट) एच.ई.पी., एच.पी.एस.ई.बी.एल. की सहायक कंपनी ब्यास वैली पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बी.वी.पी.सी.एल.) द्वारा निर्माणाधीन है।
ट्रांसमिशन- एच.पी.एस.ई.बी.एल. के ट्रांसमिशन विंग ने मार्च, 2023 तक 5,214.85 मेगा वोल्ट एम्पीयर (एम.वी.ए.) और 3,659.70 सर्किट किलोमीटर (सी.के.एम.) ई.एच.वी. लाइनों की परिवर्तन क्षमता के साथ 58 अतिरिक्त उच्च वोल्टेज (ई.एच.वी.) उप-स्टेशन स्थापित किए हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान दिसंबर, 2023 तक 10 एम.वी.ए. क्षमता का 1 ई.एच.वी. सब-स्टेशन स्थापित किया गया है और 3.584 सी.क.ेटी. किलोमीटर ई.एच.वी. लाइनें चालू कर दी गई हैं।
एच.पी.एस.ई.बी.एल. के तहत नई हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजनाएँ- हिमाचल प्रदेश सरकार ने कार्यान्वयन के लिए एच.पी.एस.ई.बी.एल. को जिला चम्बा के तीसा क्षेत्र में 4 परियोजनाएं आवंटित की हैं - देवी कोठी एच.ई.पी. (16 मेगावाट), साईं कोठी-प् एच.ई.पी. (15 मेगावाट), साईं कोठी-प्प् (18 मेगावाट) और हेल एच.ई.पी. (18 मेगावाट)।
हिमाचल प्रदेश में कम वोल्टेज वाली पॉकेट के लिए एस.आई. योजना- राज्य के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों की कम वोल्टेज की समस्या को हल करने के लिए, वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान ₹158.00 करोड़ की एक योजना स्वीकृत की गई थी और पूरे राज्य में कार्यान्वित है। इस योजना के तहत 31 दिसंबर, 2023 तक 960 डी.टी.आर., 615.340 कि.मी. एच.टी. लाइनें और 380.88 कि.मी. एल.टी. लाइनें स्थापित की गई हैं। योजना के दूसरे चरण के लिए ₹25.08 करोड़ की राशि भी स्वीकृत की गई है और इसका कार्यान्वयन प्रगति पर है। इस चरण मे दिसंबर, 2023 तक 48 किलोमीटर एच.टी. लाइन और 28 किलोमीटर एल.टी. लाइन के साथ 40 डी.टी.आर. स्थापित किए जा चुके हैं।
आई.टी. पहलें- एच.पी.एस.ई.बी.एल. हिमाचल प्रदेश में लगभग 27.50 लाख उपभोक्ताओं के लिए 24ग7 बिजली वितरण सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य में 125 यूनिट से कम मासिक खपत वाले लगभग 17.50 लाख घरेलू उपभोक्ताओं को शून्य बिजली बिल मिलता है। कम्प्यूटरीकरण, मीटरिंग-बिलिंग-संग्रह और उपभोक्ता सेवाओं में प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नानुसार हैंः
i) राज्य में 100 प्रतिशत कम्प्यूटरीकृत बिलिंग हासिल कर ली गई है और लगभग 95 प्रतिशत उपभोक्ताओं को मासिक बिजली बिल उनके घर पर और एस.एम.एस. और ई-मेल के माध्यम से प्रदान किए जा रहे हैं। साथ ही, विभिन्न डिजिटल और ऑनलाइन तरीकों से भुगतान के लिए बिल वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
ii) समयबद्ध और कागज रहित तरीके से डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक्स प्लेटफार्मों के माध्यम से विभिन्न उपभोक्ता संबंधी सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए राज्य के विभिन्न बिजली उपभोक्ताओं के लिए एक समर्पित उपभोक्ता पोर्टल विकसित और लॉन्च किया गया। प्रदान की जा रही सेवाओं में नए कनेक्शन के लिए आवेदन, नाम में बदलाव, श्रेणी में बदलाव, लोड और मांग में बदलाव, अनुबंध मांग में अस्थायी संशोधन, और ऑनलाइन पी.ए.सी. आवेदन शामिल हैं। इसके अलावा यह पोर्टल बिल का भुगतान, उपभोग और भुगतान इतिहास देखना, शिकायत पंजीकरण आदि जैसी बुनियादी सेवाएं भी प्रदान करता है।
iii) उपभोक्ताओं को बिजली बिल भुगतान करने के लिए कई विकल्प प्रदान किए जाते हैं जैसे सामान्य सेवा केंद्र (लोक मित्र केंद्र), इंटरनेट बैंकिंग/क्रेडिट/डेबिट कार्ड/यू.पी.आई./भीम आदि का उपयोग करके डिजिटल भुगतान, ई-सी.एम.एस., मोबाइल ऐप आदि। परिणामस्वरूप, मासिक बिजली बिल भुगतान का लगभग 92 प्रतिशत भुगतान केवल डिजिटल लेनदेन के माध्यम से किया जा रहा है।
iv) एच.पी.एस.ई.बी.एल. ने शिमला और धर्मशाला स्मार्ट सिटी उपभोक्ताओं के लिए वास्तविक समय के आधार पर उनके उपभोग पैटर्न और बिजली की गुणवत्ता आदि की निगरानी के लिए एच.पी.एस.ई.बी.एल. -स्मार्ट मीटर मोबाइल ऐप लॉन्च किया है।
v) एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ई.आर.पी.) प्रणाली को एच.पी.एस.ई.बी.एल. के सभी स्थानों पर सफलतापूर्वक लागू और एकीकृत किया गया है, और वर्तमान में, सभी व्यावसायिक लेनदेन पूरे संगठन में विशेष रूप से एस.ए.पी.-ई.आर.पी. के माध्यम से संसाधित होते हैं।
vi) एच.पी.एस.ई.बी.एल. ने सभी स्तरों पर जवाबदेही तय करने के अलावा पारदर्शी और कुशल तरीके से विभिन्न सेवाओं की कागज रहित और समयबद्ध डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न ऑनलाइन उपयोगिताएं और मॉड्यूल विकसित और कार्यान्वित किए हैं। विकसित उपयोगिताओं में मुख्य रूप से विक्रेता चालान प्रबंधन प्रणाली, ऑनलाइन गेस्ट हाउस बुकिंग उपयोगिता, बजट प्रबंधन और नियंत्रण मॉड्यूल, केंद्रीकृत सुरक्षा रिफंड उपयोगिता, स्थानांतरण और पोस्टिंग उपयोगिता, पेंशन उपयोगिता और विभिन्न कर्मचारी संबंधित सेवाएं प्रदान करने के लिए ऑनलाइन कर्मचारी पोर्टल शामिल हैं।
vii) प्राथमिकता के आधार पर उपभोक्ता शिकायतों के पंजीकरण और समाधान के लिए उपभोक्ता शिकायत केंद्र और 24ग7 आई.वी.आर.एस. (इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्टम) का कार्यान्वयन किया गया है।
viii) एच.पी.एस.ई.बी.एल. के सभी कार्यालयों में विभिन्न अधिकारियों और कर्मचारियों के अनुशासन, दक्षता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए चेहरे की पहचान उपस्थिति प्रणाली (एफ.आर.ए.एस.) का कार्यान्वयन किया गया है।
ix) इलेक्ट्रॉनिक कार्यालय, या डिजिटल/पेपरलेस सेटअप में परिवर्तन से बढ़ी हुई दक्षता, लागत-प्रभावशीलता, बेहतर सहयोग और अधिक टिकाऊ पर्यावरणीय प्रभाव जैसे लाभ मिलते हैं।
कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत दिसंबर 2006 में स्थापित एच.पी.पी.सी.एल. को जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन के सभी पहलुओं की योजना बनाने, बढ़ावा देने और समन्वय करने का काम सौंपा गया है। एच.पी.पी.सी.एल. के पास नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एन.टी.पी.सी.), सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एस.जे.वी.एन.एल.) और नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एन.एच.पी.सी.) जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के समक्ष तकनीकी और संगठनात्मक क्षमताएं हैं।
संचालन/निष्पादन के चरण में परियोजनाएं- एच.पी.पी.सी.एल. के पास जलविद्युत की निम्नलिखित परियोजनाएं हैंः

विद्युत विकास के अन्य क्षेत्र- हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन रणनीतिक रूप से अतिरिक्त नवीकरणीय स्रोतों, विशेष रूप से सौर ऊर्जा को शामिल करने के लिए जलविद्युत ऊर्जा से परे अपनी बिजली विकास पहल का विस्तार कर रहा है। इस दूरदर्शी दृष्टिकोण का उद्देश्य राज्य के लिए बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए हल खोजना है और देश के समग्र विकास में योगदान देना है।
i) बेरा-डोल सौर ऊर्जा परियोजना (5 मेगावाट)- एच.पी.पी.सी.एल. ने बिलासपुर में श्री नैना देवी जी तीर्थ के पास 5 मेगावाट सौर ऊर्जा सुविधा का निर्माण किया है। यह सरकार द्वारा राज्य में स्थापित पहली सौर ऊर्जा परियोजना थी। परियोजना के संचालन की तिथि (04 जनवरी, 2019) से दिसंबर, 2023 तक परियोजना से 40.73 एम.यू. उत्पादन किया गया है और 31 मार्च 2024 तक उत्पादन का लक्ष्य 41.27 एम.यू. है।
निर्माण/कार्यान्वयन चरण के तहत परियोजनाओं के संबंध में वित्तीय उपलब्धियां- हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड के निर्माणाधीन/कार्यान्वयन चरण की परियोजनाओं की उपलब्धियां निम्न सारणी में प्रस्तुत हैंः
एच.पी.पी.सी.एल. ने वित्तीय वर्ष 2023-24 (दिसंबर, 2023 तक) में चार परियोजनाओं से 775.23 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया। जलविद्युत परियोजनाओं से बिजली की बिक्री से उत्पन्न राजस्व ृ256.29 करोड़ रुपये (एच.पी.पी.सी.एल. शेयर) है और सौर परियोजनाओं से बिजली की बिक्री से उत्पन्न राजस्व ृ2.64 करोड़ है।
हिमाचल प्रदेश सरकार के इस निगम का उद्देश्य ट्रांसमिशन नेटवर्क को बढ़ाना और आगामी उत्पादन संयंत्रों से बिजली की कुशल निकासी की सुविधा प्रदान करना है। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा निगम को सौंपे गए कार्यों में 66 किलोवोल्ट (के.वी) और उससे अधिक की वोल्टेज रेटिंग वाली ट्रांसमिशन लाइन और सब-स्टेशन दोनों सहित सभी नई परियोजनाओं का निष्पादन शामिल है। इसमें हिमाचल प्रदेश के ट्रांसमिशन मास्टर प्लान को तैयार करना, अपग्रेड करना और लागू करना शामिल है, जिसका उद्देश्य ट्रांसमिशन नेटवर्क को मजबूत करना और बिजली की कुशल निकासी की सुविधा प्रदान करना है।
एच.पी.पी.टी.सी.एल. एक राज्य ट्रांसमिशन यूटिलिटी (एस.टी.यू.) के कार्यों का निर्वहन कर रहा है और केंद्रीय ट्रांसमिशन यूटिलिटी, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, विद्युत मंत्रालय (भारत सरकार), हिमाचल प्रदेश सरकार और एच.पी.एस.ई.बी. लिमिटेड के साथ ट्रांसमिशन से संबंधित मुद्दों का समन्वय कर रहा है। भारत सरकार ने हिमाचल प्रदेश के पावर सिस्टम मास्टर प्लान (पी.एस.एम.पी.) में शामिल ट्रांसमिशन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए (एशियाई विकास बैंक) ए.डी.बी. ऋण को मंजूरी दे दी है। सारणी 10.7 वित्तीय वर्ष 2023-24 तक एच.पी.पी.टी.सी.एल. द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं का विवरण प्रस्तुत करता है।
उपरोक्त के अलावा, हरित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए किफायती ट्रांसमिशन प्रणाली विकसित करने के लिए ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर चरण-1 (जी.ई.सी. -1) शुरू किया गया है। इस योजना को आंशिक रूप से (40 प्रतिशत) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एम.एन.आर.ई.) से कम अनुदान के रूप में और आंशिक रूप से (40 प्रतिशत) जर्मन विकास बैंक, के.एफ.डब्ल्यू. (क्रेडिटनस्टाल्ट फर विडेराउफबाउ) से कम निश्चित ब्याज दर ऋण के रूप में और शेष इक्विटी द्वारा वित्त पोषित किया गया है। जीईसी-1 के तहत, एच.पी.पी.टी.सी.एल. द्वारा ग्यारह परियोजनाओं का निर्माण किया जाना था। जिनमें से सात परियोजनाएं चालू हो चुकी हैं और एक परियोजना चार्जिंग के लिए तैयार है, जबकि शेष तीन परियोजनाएं 31 मार्च 2024 तक चालू होने की संभावना है। इन सभी परियोजनाओं के पूरा होने से हिमाचल प्रदेश में 846.5 एमवीए (मेगावोल्ट एम्पीयर) परिवर्तन क्षमता और 183.88 सी.के.टी. किलोमीटर (सर्किट किलोमीटर) ट्रांसमिशन लाइन का विस्तार होगा। ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड की वित्तीय सहायता से एच.पी.पी.टी.सी.एल. ने पांच परियोजनाएं शुरू की हैं। इन परियोजनाओं के पूरा होने से कांगड़ा, कुल्लू और सिरमौर जिलों के मौजूदा राज्य ट्रांसमिशन नेटवर्क में 163 एम.वी.ए. परिवर्तन क्षमता और 102 सी.के.टी किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइन जुड़ गई है। इसके अलावा, अन्य पांच परियोजनाएं ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड की वित्तीय सहायता से कार्यान्वयन के अधीन हैं और इन पांच परियोजनाओं में से, चार परियोजनाएं 31 मार्च 2024 से पहले चालू होने की संभावना है।
प्रमुख उपलब्धियां- वित्तीय वर्ष 2023-24 में 31 दिसंबर 2023 तक, एच.पी.पी.टी.सी.एल. ने ृ148.15 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ तीन परियोजनाओं (दो सबस्टेशन, एक सब-स्टेशन का विस्तार कार्य) को पूरा और चालू किया है, जिसके परिणामस्वरूप 326 एम.वी.ए परिवर्तन क्षमता जुड़ी है। राज्य में मौजूदा ट्रांसमिशन नेटवर्क एच.पी.पी.टी.सी.एल. ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 31 दिसंबर, 2023 तक विभिन्न ट्रांसमिशन परियोजनाओं (पूर्ण और प्रगति) के लिए समग्र पूंजीगत व्यय के रूप में लगभग ृ97.39 करोड़ खर्च किए हैं।
उपरोक्त के अलावा, ृ92.92 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ 107 सी.के.टी. कि0.मी0. की कुल लंबाई वाली सात ट्रांसमिशन लाइनें और ृ246.27 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ 531.5 एम.वी.ए. की कुल परिवर्तन क्षमता वाले पांच ई.एच.वी. सब-स्टेशन पूरा होने के कगार पर हैं और इन्हें 31 मार्च, 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। संबंधित विवरण नीचे सारणी 10.8 में दिया गया है।
उपरोक्त परियोजनाओं के चालू होने से कई जलविद्युत परियोजनाओं की बाधा- मुक्त बिजली निकासी की सुविधा मिलेगी और राज्य में बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में भी सुधार होगा।
हिमऊर्जा का गठन वर्ष 1989 में किया गया था, जिसका मुख्य कार्य नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एम.एन.आर.ई), और राज्य सरकार के वित्तीय सहयोग से राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाना हैं। राज्य में कार्यान्वित किए जा रहे प्रमुख कार्यक्रम हैं सौर ऊर्जा परियोजनाएं, ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप प्लांट, सोलर फोटोवोल्टिक ऑफ-ग्रिड सिस्टम, सोलर थर्मल सिस्टम और लघु जलविद्युत परियोजनाएं (5 मेगावाट क्षमता तक) हैं।
वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान दिसम्वर, 2023 तक की उपलब्धियां तथा मार्च 2024 तक प्रत्याषित का ब्यौरा निम्न है-
(क) सौर प्रकाषवोल्टिय कार्यक्रम-
सौर प्रकाषवोल्टिय पावर परियोजनाऐं/प्लांट-
i) भूमि पर स्थापित ग्रिड संचालित सौर पावर परियोजनाऐं- प्रथम चरण के अन्तर्गत 157.95 मैगावाट की सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 131 सौर ऊर्जा परियोजना विकासकर्ताओं को अनंतिम पंजीकरण पत्र जारी कर दिए गए हैं। इनमें से 93 आवेदकों ने 131.40 मैगावाट क्षमता के लिए ई.एम.डी. जमा कर दी है। 65 आवेदनकर्ताओं के साथ 80.75 मैगावाट क्षमता हेतु कनेक्टिविटी समझौतें पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
द्वितीय चरण के अन्तर्गत 93.46 मैगावाट क्षमता की 116 सौर ऊर्जा परियोजनाऐं आवंटित की गई हैं। इनमें से 45 आवेदकों ने 45.07 मैगावाट क्षमता के लिए ई.एम.डी. जमा कर दी है। इनमें से 8 आवेदकों द्वारा 5.05 मैगावाट क्षमता की परियोजनाओं के लिए कनेक्टिविटी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान दिसंबर, 2023 तक 1.25 मेगावाट क्षमता की ग्राउंड माउंटेड सौर ऊर्जा परियोजनाएं चालू की गई हैं। इन परियोजनाओं में प्रत्येक इकाई की क्षमता 250 किलोवाट से 500 किलोवाट तक है।
ii) ग्रिड संचालित सौर रूफ टाप प्लांटस- वित्तीय वर्ष 2023-24, दिसम्वर, 2023 तक 1.862 मैगावाट क्षमता के ग्रिड संचालित सौर रूफ टाप पावर प्लांटस स्थापित किए गए हैं तथा मार्च, 2024 तक प्रत्याशित उपलव्धि लगभग 2 मैगावाट होगी।
iii) आफ ग्रिड सौर पावर प्लांट- दिसम्वर, 2023 तक 288.50 किलोवाट पीक क्षमता के आफ ग्रिड सौर पावर प्लांट स्थापित किए जा चुके हैं तथा मार्च, 2024 तक प्रत्याशित उपलब्धि लगभग 400 किलोवाट पीक होगी। इनमें से प्रत्येक 250 वाट क्षमता के 839 ऑफ ग्रिड सौर ऊर्जा संयंत्र जन-जातीय क्षेत्रों में वी.पी.एल. परिवारों को चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।
सौर प्रकाषवोल्टिय स्ट्रीट लाईट- दिसम्वर, 2023 तक 20,919 सौर प्रकाशवोल्टिय स्ट्रीट लाईट सामूहिक प्रयोग के लिए स्थापित की जा चुकी हैं तथा मार्च, 2024 तक प्रत्याशित उपलब्धि लगभग 25,000 होगी।
सौर प्रकाषवोल्टिय घरेलू लाईट- दिसम्वर, 2023 तक 1,691 सौर प्रकाशवोल्टिय घरेलू लाईट स्थापित की जा चुकी हैं तथा मार्च, 2024 तक प्रत्याशित उपलब्धि लगभग 2,000 होगी।
(ख) सौर तापीय कार्यक्रम-
i) सौर जल तापन संयन्त्र- वित्तीय वर्ष 2023-24, के दौरान दिसम्वर, 2023 तक 1,100 लीटर प्रतिदिन क्षमता के सौर जल तापन संयन्त्र स्थापित की किए गए हैं तथा मार्च 2024 तक प्रत्याशित उपलब्धि लगभग 20,000 लीटर प्रतिदिन होगी।
ii) सौर कुकर- वित्तीय वर्ष 2023-24, के दौरान दिसम्वर, 2023 तक 19 वाक्स टाईप/डिश टाईप सौर कुकर उपलब्ध करवाए गए हैं तथा मार्च, 2024 तक प्रत्याशित उपलब्धि लगभग 30 वाक्स टाईप/डिश टाईप सौर कुकर होगी।
(ग) 5 मैगावाट क्षमता तक की लघु जल विद्युत परियोजनाऐं - वित्तीय वर्ष 2023-24, के दौरान दिसम्वर, 2023 तक 2 लघु जल विद्युत परियोजनाऐं स्थापित की गई हैं जिनकी संकलित क्षमता 5.90 मैगावाट है।

11.श्रम और रोजगार

भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 में कहा गया है कि आर्थिक विकास का अर्थ न केवल नौकरियों का सृजन है, परन्तु काम करने की स्थिति में सुधार भी शामिल है, जिसमें लोग स्वतंत्रता, सुरक्षा और सम्मान के साथ अपना काम कर सकते हैं। राज्य में स्वतंत्र और सुरक्षित काम करने का वातावरण, राज्य के नियोजित हस्तक्षेप, जिसमें नीतियां और सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क शामिल है, के कारण है। देश के अन्य हिस्सों की तुलना में, हिमाचल प्रदेश में कृषि और गैर-कृषि, दोनों क्षेत्रों में श्रमिकों की मजदूरी दर अधिक है (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण)। हिमाचल प्रदेश में उच्च मजदूरी दर राज्य में प्रवासियों को आकर्षित करती है, खासकर उन राज्यों से जहां मजदूरी की दरें बहुत कम हैं। राज्य को अब अतिरिक्त रोजगार के अवसर और रोजगार-गहन विकास की आवश्यकता है, जिसके लिए श्रम बल को कम-मूल्य-वर्धित से उच्च-मूल्य-वर्धित गतिविधियों की ओर बढ़ाना है। राज्य का लक्ष्य शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में नए रोजगार सृजित करने के लिए, अर्थव्यवस्था में रोजगार प्रेरित समावेशी विकास करना है।
भारत सरकार ने 2017 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ.), अब राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एन.एस.ओ.), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एम.ओ.एस.पी.आई.) के पंचवर्षीय रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षणों की जगह, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) शुरू किया है। पी.एल.एफ.एस. डेटा अब राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर रोजगार और बेरोजगारी के आंकड़ों का प्राथमिक स्रोत है। भारत सरकार ने मई 2019 में पहली आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) 2017-18 रिपोर्ट जारी की, जो कि एन.एस.ओ. द्वारा जुलाई 2017 से जून 2018 तक किए गए सर्वेक्षण और जून 2020 में दूसरी पी.एल.एफ.एस. 2018-19 रिपोर्ट, जो एन.एस.ओ. द्वारा जुलाई 2018 से जून 2019 तक आयोजित किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है।
वर्तमान में छठी वार्षिक रिर्पोट एन.एस.ओ. द्वारा जुलाई 2022 से जून 2023 तक आयोजित सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाषित की है।
श्रम-बल-भागीदारी दर- श्रम बल और कार्य की स्थिति की जांच आम तौर पर रोजगार के दो संकेतकों सामान्य स्थिति (यू.एस.) जिसमें प्रमुख आर्थिक गतिविधि और रोजगार की सहायक आर्थिक गतिविधि शामिल है और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सी.डब्ल्यू.एस.) के आधार पर की जाती है। दोनों संकेतकों के बीच अंतर को समझना महत्वपूर्ण है।
आर्थिक गतिविधि की स्थिति जिस पर एक व्यक्ति सर्वेक्षण की तारीख से पहले 365 दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय (प्रमुख समय मानदंड) बिताता है, वह व्यक्ति की प्रमुख गतिविधि स्थिति (पी.एस.) है। ऐसे व्यक्तियों ने अपनी प्रमुख स्थिति के अलावा, सर्वेक्षण की तारीख से पहले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान 30 दिनों या उससे अधिक के लिए कुछ आर्थिक गतिविधि भी होगी। ऐसी स्थिति को सहायक स्थिति(एस.एस.) के रूप में जाना जाता है। पी.एस़.$एस.एस. को संयुक्त रूप से सामान्य स्थिति के रूप में जाना जाता है जो लंबी अवधि के लिए रोजगार से मेल खाती है।
कुछ व्यक्ति जो वर्ष में अधिकांश दिनों के लिए नियोजित होते हैं, उन्हें विभिन्न कारणों से बहुमत के दिनों के अलावा अन्य अवधि में नियोजित नहीं किया जा सकता है। इसका पता सर्वेक्षण की तारीख से पहले 7 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान किसी व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक गतिविधि स्थिति को देखकर लगाया जाता है। यदि किसी व्यक्ति ने सर्वेक्षण की तारीख से पहले के 7 दिनों के दौरान कम से कम एक दिन में कम से कम 1 घंटा काम किया हो या सर्वेक्षण की तारीख से पहले के सात दिनों के दौरान कम से कम एक दिन में कम से कम एक घंटे के लिए उसके पास काम हो, लेकिन काम नहीं किया हो तो उसे सी.डब्ल्यू.एस. की स्थिति के अनुसार कामकाजी (या नियोजित) माना जाता है। उपरोक्त यू.एस. और सी.डब्ल्यू.एस. की परिभाषाओं को देखते हुए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सी.डब्ल्य.ूएस. रोजगार/बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है जबकि यू.एस. लंबी अवधि के रोजगार को दर्शाता है।
श्रम बल में वे लोग शामिल हैं जो या तो काम कर रहे थे (या नियोजित थे) या जो काम के लिए उपलब्ध थे (या बेरोजगार थे)। श्रम बल में कुछ व्यक्ति विभिन्न कारणों से काम करने से परहेज करते हैं। उस संख्या को श्रम बल से घटाने पर वास्तविक श्रमिकों की संख्या प्राप्त होती है। इन श्रमिकों को जो किसी भी गतिविधि में लगे हुए हैं उन व्यक्तियों को स्व-रोजगार या नियमित मजदूरी/वेतनभोगी और आकस्मिक श्रमिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है । श्रम शक्ति और कार्यबल के बीच का अंतर बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या बताता है।
हिमाचल प्रदेश में श्रम बल की स्थिति का अंदाजा, श्रम बल भागीदारी दर (एल.एफ.पी.आर.), श्रमिक जनसंख्या दर (डब्ल्यू.पी.आर.), दैनिक मजदूरी दर और औद्योगिक संबंधों में रुझानो से लगाया जा सकता है। श्रम बल भागीदारी दर को ˊआबादी में व्यक्तियों के बीच श्रम बल में व्यक्तियों का प्रतिशतˊ के रूप में परिभाषित किया गया है।
सारणी 11.1 पी.एल.एफ.एस. के अनुसार हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और भारत में 2021-22 और 2022-23 में एल.एफ.पी.आर. प्रस्तुत करती है। वर्ष 2022-23 में समस्त आयु का एल.एफ.पी.आर. हिमाचल प्रदेश (61.3) के लिए, उत्तराखंड (42.5), पंजाब (42.3), हरियाणा (36.3) और समस्त भारत (42.4) से अधिक है। महिलाओं के लिए यह इन सभी राज्यों (उत्तराखंड को छोड़ कर) व समस्त भारत से दुगने से भी ज्यादा है। हि0प्र0 में पी.एल.एफ.एस. आस पास के अन्य राज्यों की तुलना में इतना अधिक है क्योंकि कृषि अभी भी राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है, और इसलिए मुख्य रूप से कृषि अर्थव्यवस्थाएं उच्च श्रम बल भागीदारी दर करने को प्रवृत हैं। चित्र 11.1
2022-23 में, हिमाचल प्रदेश (81.3) के लिए एल.एफ.पी.आर. (15 से 59 वर्ष की आयु के बीच) उत्तराखंड (60.1), पंजाब (57.9), हरियाणा (52.8) और समस्त भारत (61.6) से अधिक है। हिमाचल प्रदेश के लिए, ग्रामीण और शहरी दोनों एल.एफ.पी.आर. इन सभी राज्यों और पूरे भारत की तुलना में अधिक है। हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण एल.एफ.पी.आर. उत्तराखंड से लगभग 19.4 प्रतिशत अंक अधिक और समस्त भारत की तुलना में 21.8 प्रतिशत अंक अधिक है, जबकि राज्य में शहरी एल.एफ.पी.आर. उत्तराखंड से लगभग 14.0 प्रतिशत अंक अधिक और समस्त भारत की तुलना में 8.5 प्रतिशत अंक अधिक है चित्र 11.2

श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यू.पी.आर.)- डब्ल्यू.पी.आर. एक संकेतक है जिसका उपयोग रोजगार की स्थिति का विश्लेषण करने और आबादी का अनुपात जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय योगदान देता है, को जानने के लिए किया जाता है। ’’डब्ल्यू.पी.आर. को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है’’। सारणी 11.2 हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, और भारत में श्रमिक जनसंख्या अनुपात को दर्शाती है। सभी आयु वर्ग में 2022-23 में हिमाचल प्रदेश का डब्ल्य.ूपी.आर. (58.6), उत्तराखंड (40.6), पंजाब (39.7), हरियाणा (34.1) और पूरे भारत (41.1) से बेहतर है। सर्वेक्षण के नतीजों से स्पष्ट होता है कि हिमाचल प्रदेश में महिलाएं (54.8 प्रतिशत) अखिल भारतीय स्तर पर और पड़ोसी राज्यों में अपने समकक्षों की तुलना में आर्थिक गतिविधियों में अधिक सक्रिय रूप से भाग ले रहीं हैं। चित्र 11.3

बेरोजगारी दर- ’’बेरोजगारी दर (यू.आर.) को श्रम बल में व्यक्तियों के बीच बेरोजगार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है’’। इसे पी.एल.एफ.एस. सर्वेक्षणों में सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) और साप्ताहिक स्थिति के संदर्भ में मापा जाता है जिसे सारणी 11.3 में दर्शाया गया है। यह श्रम बल के उस हिस्से को दर्शाता है जो सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं या उपलब्ध हैं। पी.एल.एफ.एस. 2022-23 के अनुसार सभी राज्यों और अखिल भारत में सामान्य स्थिति (पी.एस$एस.एस.) के तहत भारत की बेरोजगारी दर 3.2 प्रतिशत, उत्तराखंड की 4.5 प्रतिशत, पंजाब की 6.1 प्रतिशत, हरियाणा की 6.1 प्रतिशत की तुलना में हिमाचल में बेरोजगारी दर 4.4 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी दर 2021-22 में 4.0 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 4.4 प्रतिशत हो गई है। सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर पुरुषों के बीच 3.3 प्रतिशत और महिलाओं में 3.8 प्रतिशत थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में पुरुषों में यह दर 6.3 प्रतिशत और महिलाओं में 30.6 प्रतिशत थी।

रोजगार में स्थिति के अनुसार सामान्य स्थिति में श्रमिकों का विवरण- सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) के अनुसार श्रमिकों को रोजगार में उनकी स्थिति के अनुसार तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। ये श्रेणियां हैंः ;पद्ध स्व-नियोजित, ;पपद्ध नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी और ;पपपद्ध आकस्मिक श्रमिक। स्व-रोजगार की श्रेणी में दो उप-श्रेणियां निम्नानुसार बनाई गई हैंः ;पद्ध स्वयं लेखा कर्मी और नियोक्ता ;पपद्ध घरेलु उद्यमों में अवैतनिक सहायक। सारणी 11.4 वर्ष 2021-22 और 2022-23 में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और भारत में रोजगार की स्थिति के अनुसार श्रमिकों का प्रतिशत वितरण प्रस्तुत करती है। सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार वर्ष 2021-22 में हिमाचल प्रदेश में महिला स्व-रोजगार की स्थिति में स्वयं लेखा कर्मी और नियोक्ता के रूप में (46.0 प्रतिशत) और घरेलु उद्यमों में अवैतनिक सहायक (38.7 प्रतिशत) अखिल भारतीय स्तर व पड़ोसी राज्यों की तुलना में अधिक हैं। राज्य में महिलाओं की समान गतिविधियों का यह अनुपात वर्ष 2022-23 में बढ़कर क्रमशः 46.4 और 40.1 हो गया है, जो भी उसके समकक्षों (उत्तराखंड 55.5 प्रतिशत को छोड़कर) की तुलना में अधिक है। ऐसा इसलिए है क्यों कि हिमाचल प्रदेश में अधिकांश महिलाएं कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र में कार्यरत हैं। दूसरी ओर वर्ष 2021-22 में उत्तराखंड (18.0), पंजाब (37.1), हरियाणा (30.8) और भारत (16.5) की तुलना में हिमाचल प्रदेश में मात्र 11.9 प्रतिशत महिलाएं नियमित वेतन/वेतनभोगी की स्थिति में हैं। वर्ष 2022-23 में यह अनुपात उसी प्रकार 11.9 प्रतिशत रहा। हिमाचल प्रदेश सरकार महिला सशक्तिकरण, लिंग बजट और विभिन्न अन्य नौकरी उन्मुख योजनाओं के माध्यम से उन्हें अधिक रोजगार प्रदान करके इस विशेष व्यापक स्थिति में महिलाओं के अनुपात में वृद्धि करने का लक्ष्य रखती है। आकस्मिक श्रमिक की स्थिति में हिमाचल प्रदेश में महिलाओं का अनुपात वर्ष 2021-22 में फिर अपने पड़ोसी राज्यों व अखिल भारतीय की तुलना में बहुत कम (3.4 प्रतिशत) है। आगे इसी तरह की स्थिति में वर्ष 2022-23 में महिलाओं का अनुपात और कम होकर 1.7 प्रतिशत रह गया है, जो इसके पड़ोसी राज्यों व पूरे भारत से कम है।

सामान्य स्थिति (पी.एस.$़एस.एस.) में प्रमुख श्रम बाजार संकेतकों का अनुमान-
क) 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए सामान्य स्थिति (पी.एस.$़एस.एस.) में श्रम बल भागीदारी दर (एल.एफ.पी.आर.) में बढ़ती प्रवृत्ति- ग्रामीण क्षेत्रों में, एल.एफ.पी.आर. 2017-18 में 63.5 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 79.2 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह 52.9 प्रतिशत से बढ़कर 58.0 प्रतिशत हो गया। हिमाचल प्रदेश में पुरुषों के लिए एल.एफ.पी.आर. 2017-18 में 75.8 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 83.1 प्रतिशत हो गया और महिलाओं के लिए एल.एफ.पी.आर. में वृद्धि 49.6 प्रतिशत से बढ़कर 71.4 प्रतिशत हो गई।

ख) 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) में श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यू.पी.आर.) में वृद्धि की प्रवृत्ति- ग्रामीण क्षेत्रों में डब्ल्यू.पी.आर. 2017-18 में 60.2 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 76.5 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह 48.3 प्रतिशत से बढ़कर 49.8 प्रतिशत हो गया। हिमाचल प्रदेश में पुरुषों के लिए डब्ल्यू.पी.आर. 2017-18 में 71.0 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 80.3 प्रतिशत हो गया और महिलाओं के लिए डब्ल्यू.पी.आर. में वृद्धि 47.5 प्रतिशत से बढ़कर 67.6 प्रतिशत हो गई।

ग) 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए सामान्य स्थिति (पी.एस.$एस.एस.) में बेरोजगारी दर (यू.आर.) में मिश्रित रुझान ग्रामीण क्षेत्रों में, यू.आर. 2017-18 में 5.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.5 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह 8.7 प्रतिशत से बढ़कर 14.1 प्रतिशत हो गया। हिमाचल प्रदेश में पुरुषों के लिए यू.आर. 2017-18 में 6.3 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.4 प्रतिशत हो गया और महिलाओं के लिए यू.आर. में वृद्धि 4.3 प्रतिशत से बढ़कर 5.3 प्रतिशत हो गई।

वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सी.डब्ल्यू.एस.) में प्रमुख श्रम संकेतकों का अनुमान=
क) 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सी.डब्ल्यू.एस.) में श्रम बल भागीदारी दर (एल.एफ.पी.आर.) में बढ़ती प्रवृत्ति- ग्रामीण क्षेत्रों में, एल.एफ.पी.आर. 2017-18 में 58.8 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 72.4 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह 52.0 प्रतिशत से बढ़कर 55.6 प्रतिशत हो गया। हिमाचल प्रदेश में पुरुषों के लिए एल.एफ.पी.आर. 2017-18 में 74.9 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 79.0 प्रतिशत हो गया और महिलाओं के लिए एल.एफ.पी.आर. में वृद्धि 42.1 प्रतिशत से बढ़कर 62.8 प्रतिशत हो गई।

ख) 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सी.डब्ल्यू.एस.) में श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यू.पी.आर.) में बढ़ती प्रवृत्ति- ग्रामीण क्षेत्रों में डब्ल्यू.पी.आर. 2017-18 में 53.9 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 68.1 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह 46.0 प्रतिशत से बढ़कर 48.0 प्रतिशत हो गया। हिमाचल प्रदेश में पुरुषों के लिए डब्ल्यू.पी.आर. 2017-18 में 67.4 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 73.8 प्रतिशत हो गया और महिलाओं के लिए डब्ल्यू.पी.आर. में वृद्धि 39.6 प्रतिशत से बढ़कर 58.7 प्रतिशत हो गई।

ग) 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सी.डब्ल्यू.एस.) में बेरोजगारी दर (यू.आर.) में मिश्रित रुझान- ग्रामीण क्षेत्रों में, यू.आर. 2017-18 में 8.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 6.0 प्रतिशत हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह 11.5 प्रतिशत से बढ़कर 13.7 प्रतिशत हो गया। हिमाचल प्रदेश में पुरुषों के लिए यू.आर. 2017-18 में 10.0 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 6.7 प्रतिशत हो गया और महिलाओं के लिए यू.आर. में यह वृद्धि 6.0 प्रतिशत से बढ़कर 6.6 प्रतिशत हो गई।
रोजगार चाहने वालों को रोजगार सहायता और सूचना सेवा तीन क्षेत्रीय रोजगार कार्यालयों, 9 जिला रोजगार कार्यालयों, 2 विश्वविद्यालयों में रोजगार सूचना एवं मार्गदर्शन केन्द्रों और 65 उप-रोजगार कार्यालयों, दिव्यागों के लिए एक विशेष रोजगार कार्यालय और एक केन्द्रीय रोजगार कक्ष के माध्यम से प्रदान की जाती हैं। युवाओं को व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं रोजगार परामर्श सम्बन्धित जानकारी के साथ-साथ रोजगार बाजार की जानकारी उपलब्ध करवाने हेतु सभी 77 रोजगार कार्यालयों को कम्पयूटराईज किया जा चुका है और ऑनलाइन हैं।
न्यूनतम मजदूरी- हिमाचल प्रदेश सरकार ने न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत कामगारों को न्यूनतम वेतन निर्धारित व संषोधित करने के सम्बन्ध में सलाह देने के लिए राज्य न्यूनतम वेतन सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। राज्य सरकार ने दिनांक 1 अप्रैल, 2023 से अकुशल कामगारों का वेतन ₹350 से ₹375 प्रतिदिन अथवा ₹10,500 से ₹11,250 प्रतिमाह न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के प्रावधानों के अंतर्गत सभी वर्तमान 19 अनुसूचित व्यवसायों के लिए निर्धारित कर दिया है।
रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम- वर्ष 1960 से रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम के अन्तर्गत रोजगार आंकडे़ जिला स्तर पर एकत्र किए जा रहे हैं। प्रदेश में 31 मार्च, 2023 तक सार्वजनिक क्षेत्र के कुल कामगारों की संख्या 2,81,097 और निजी क्षेत्र में कामगारों की संख्या 2,12,030 थी। उद्यमों की दृृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र में कुल 4,472 व निजी क्षेत्र में कुल 2,032 उद्यम कार्यरत थे।
व्यावसायिक मार्गदर्षन- श्रम एवं रोजगार विभाग द्वारा प्रदेश के युवाओं को व्यावसायिक/आजीविका मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है और साथ ही स्कूलों/कॉलेजों/आई.टी.आई./पॉलिटेक्निक आदि में मार्गदर्शन शिविर भी आयोजित करता है। आजीविका कार्यक्रमों में श्रम एवं रोजगार विभाग के अधिकारियों/सक्षम कर्मचारियों के अतिरिक्त अन्य विभागों/संस्थानों के अधिकारी/प्रतिनिधियों आदि द्वारा युवाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं/कल्याण कार्यक्रमों की जानकारी के अलावा कौशल विकास, कैरियर विकल्प, रोजगार/स्वरोजगार के अवसर आदि की जानकारी भी प्रदान की जाती हैं। इस विŸाीय वर्ष के दौरान ;31 दिसम्बर, 2023 तकद्ध 39,109 युवाओं को विभाग के सक्षम अधिकारियों द्वारा व्यावसायिक मार्गदर्शन और कैरियर परामर्श प्रदान किया गया।  
केन्द्रीय रोजगार कक्ष- हिमाचल प्रदेश के निजी क्षेत्र में कार्यरत एवं लगाई जा रही औद्योगिक इकाईयों, संस्थानों और प्रतिष्ठानों के लिए तकनीकी रूप से कुशल कामगारों को रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में श्रम एवं रोजगार निदेशालय में गठित केन्द्रीय रोजगार कक्ष हमेशा की तरह वर्ष 2023-24 में भी अपनी सेवाएं देता रहा है। इस प्रकार रोजगार कक्ष, रोजगार प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार निजी क्षेत्र में उचित रोजगार प्राप्त करने में सहायता करता है। केन्द्रीय रोजगार कक्ष, निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं की अकुशल कामगारों की मंाग हेतु कैम्पस साक्षात्कार करवाता है। इस वित्तीय वर्ष में, 31 दिसम्बर, 2023 तक केन्द्रीय रोजगार कक्ष के माध्यम से 5 जॉब फेयर और 315 कैंम्पस साक्षात्कार करवाये गये, जिसमें 6,948 आवेदकों की नियुक्तियां की गई है ।
विषेष रोजगार कार्यालय (दिव्यांगों हेतु)- विशेष रोजगार कक्ष दिव्यागों को व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों में रोजगार दिलवाने में भी सहायता करता है। समाज के इस कमजोर वर्ग को कई प्रकार की सुविधाएं/रियायतें दी गई हैं जैसे कि मैडिकल बोर्ड जोकि जिला एवं राज्य स्तर पर गठित है, द्वारा मुुुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण, आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट, ऊपरी अंगों की (हाथ तथा बाजू) अपंगता होने पर टंकण योग्यता परीक्षा से छूट तथा तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी की रिक्तियों में 5 प्रतिशत का आरक्षण इत्यादि शामिल है। इस वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान ;दिसम्बर, 2023 तकद्ध सक्रिय पंजिका में 1,410 दिव्यांगों को पंजीकृत करके विकलांग पंजीकृतों की संख्या 16,954 हो गई है तथा 34 दिव्यांग व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया है।
कौशल विकास भत्ता योजना- कौषल विकास भत्ता योजना, 2013 के अन्तर्गत इस वित्तीय वर्ष में ₹92.50 करोड़ का प्रावधान किया गया है। योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के पात्र बेरोजगार युवाओं को उनके कौशल विकास हेतु भत्ते का प्रावधान है ताकि उनकी कौशल विकास व रोजगार प्राप्त करने की क्षमता बढ़ सके। यह भत्ता बेरोजगार व्यक्ति को ₹1,000 प्रतिमाह और 50 प्रतिशत या इससे अधिक स्थायी दिव्यांग आवेदकों को ₹1,500 प्रति माह की दर से कौशल विकास प्रशिक्षण के दौरान अधिकतम दो वर्ष तक देय है। इस वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान दिसम्बर, 2023 तक 68,130 लाभार्थियों को ₹29.70 करोड़ कौशल विकास भत्ता दिया गया। विभाग औद्योगिक कौशल विकास भत्ता योजना, 2018 को भी लागू कर रहा है। इस योजना के अन्तर्गत इस वित्तीय वर्ष के दौरान ₹1.50 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस योजना के तहत कौशल उन्नयन और बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए राज्य के निजी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में लगे, रोजगार प्राप्त युवाओं को औद्योगिक कौशल विकास भत्ते का प्रावधान है। इस योजना के अन्तर्गत वितरण मापदंड कौशल विकास भत्ता योजना 2013 के अनुरूप है और इस वित्तीय वर्ष में, 354 लाभार्थियों को ₹0.22 करोड़ की राशि का वितरण किया गया।
बेरोजगारी भत्ता योजना- बेरोजगारी भत्ता योजना के अन्तर्गत इस वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹30.00 करोड़ के बजट का प्रावधान रखा गया है। इस योजना के अन्तर्गत पात्र हिमाचली बेरोज़गारों को बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान है। यह भत्ता ₹1,000 प्रतिमाह तथा 50 प्रतिशत या इससे अधिक स्थायी विकलंाग आवेदकांे को ₹1,500 प्रतिमाह की दर से अधिकतम दो वर्ष तक देय है, ताकि वे एक निश्चित अवधि तक स्वयं को सक्षम बनाएं रख सकें। इस अवधि के दौरान दिसम्बर, 2023 तक कुल 22,593 लाभार्थियों को ₹19.34 करोड़ का लाभ दिया गया।
रोजगार कार्यालयों सम्बन्धी सूचना- इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2023 तक, कुल 1,09,083 आवेदक रोजगार सहायता हेतु पंजीकृत हुए। सभी रोजगार कार्यालयों में दिसम्बर, 2023 तक सक्रिय पंजिका में कुल संख्या 7,44,771 थी। इस वित्त वर्ष में जिलावार रोजगार केन्द्रों में अप्रैल से दिसम्बर, 2023 तक पंजीकरण एवं नियुक्तियां, सारणी 11.11 में दर्शाई गई हैंः
हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम (एच.पी.के.वी.एन.) राज्य सरकार का निगम है जो राज्य कौशल मिशन के रूप में 14 सितम्बर, 2015 को कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत गठित किया गया। हिमाचल प्रदेश के युवाओं को परिक्षण देने हेतु कौशल विकास निगम द्वारा दो प्रमुख परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है। जैसे कि (प) एशियाई विकास बैंक (ए.डी.बी.) द्वारा पोशित हिमाचल युवा कौशल विकास परियोजना (एच.पी.एस.डी.पी.) (पप) राज्य कार्यन्विंत प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना(पी.एम.के.वी.वाई.) 2.0 तथा 3.0.
एषियन विकास बैंक की सहायता से हिमाचल प्रदेष कौषल विकास परियोजना (एच.पी.एस.डी.पी.)- हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना मई 2018 से लागू हुई है और जून 2024 को समाप्त हो जाएगी। इस परियोजना की कुल लागत ₹827.00 करोड़ है। जिनका विभाजन निम्नानुसार हैः
i) एशियन विकास बैंक का भाग: ₹661.00 करोड़ रूपये
ii) प्रदेश सरकार का भाग : ₹166.00 करोड़ रूपये
अभी तक ₹648.00 करोड़ रूपए के अनुबंध दिये जा चुके है और एशियन विकास बैंक के शेयर में से इस परियोजना के तहत ₹413.00 करोड़ रूपये खर्च के रूप में प्राप्त कर लिये हैं तथा ₹76.00 करोड़ रूपये प्रदेश सरकार के षेयर में से व्यय हो चुके हैं। वर्तमान में विभिन्न कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमों के तहत 73,168 (82 प्रतिशत) उम्मीदवारों को पंजीकृत किया गया है जिनमें से कुल 46,587 (64 प्रतिशत उपलब्धी) उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया है।

1) उत्कृष्ट केन्द्र की स्थापना (सी.ओ.ई.)- हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के अन्तर्गत, एशियन विकास बैंक की सहायता से राज्य में दीर्घकालीन कौशल विकास की आवश्यकताओं के अन्तर्गत संस्थागत ढांचा बनाने के लिए एक उत्कृष्टता केन्द्र वाकनाघाट, सोलन में सिविल कार्यों के लिए ₹68.00 करोड़ की लागत से स्थापित किया जा रहा है कुल 750 उम्मीदवारों को 5 वर्षों की अवधि में प्रशिक्षित किया जाएगा, प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए ₹64.00 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। 61 उम्मीदवारों वाला पहला बैच पहले ही अपना प्रशिक्षण पूरा कर चुका है और वर्तमान में प्लेसमेंट प्रक्रिया से गुजर रहा है। दूसरे बैच में 115 छात्र शामिल हैं और 27 नवंबर, 2023 को इसकी सॉफ्ट लॉन्चिंग हुई है। इन छात्रों को खाद्य उत्पादन, एफ एंड बी संचालन, होटल संचालन और प्रबंधन, और फिटनेस और वेलनेस जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
2) सरकारी औद्योगिक प्रषिक्षण संस्थान के माध्यम से लघु अवधि के राष्ट्रीय कौषल योग्यता प्रषिक्षण कोर्स- एच.पी.के.वी.एन. ने हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के अन्तर्गत 70 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में लघु अवधि के प्रशिक्षण कोर्स शुरु किये हैं जिसमें 21,236 का लक्ष्य निर्धारित करते हुए 21,000 प्रशिक्षणार्थियों का विभिन्न क्षेत्रों में जिसमें कि मोटर वाहन, निर्माण, प्लंबिंग, सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी की सक्षम सेवाएं, पूंजीगत माल, परिधान, इलैक्ट्रोनिक एवं हार्डवेयर आदि क्षेत्रों में नामांकन किया गया है और 13,000 से अधिक को प्रमाणित किया गया है।
3) स्नातक युवाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम- 28 सरकारी डिग्री कॉलेजांे के स्नातक के अंतिम वर्ष के विद्याार्थियों के रोजगार की सम्भावना को बढ़ाने की दृष्टि से एच.पी.के.वी.एन. द्वारा विभिन्न कार्यक्षेत्रों जैसे 1) बी.एफ.एस.आई. (बैंकिंग वित्त प्रतिभूति और बीमा), 2) आई.टी-आई.टी.ई.एस., 3) परिधान और मेड-अप, 4) आतिथ्य और पर्यटन, और 5) मीडिया और मनोरंजन में राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचा के अनुरूप ग्रेजुएट एड ओन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया हैं जो कि उनके मूल अघ्ययन का पूरक होगा। इसके अन्तर्गत 7,500 का लक्ष्य निर्धारित करते हुए 8,217 विद्यार्थी पंजीकृत किये गये हैं और 6,868 विद्यार्थियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।
4) राष्ट्रीय कौषल योग्यता ढांचे (एन.एस.क्यू.एफ.) के अनुरूप पूर्व षिक्षा मान्यता प्राप्त प्रषिक्षण - हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के पूर्व शिक्षण की मान्यता (आर.पी.एल.) घटक के तहत 10,622 उम्मीदवारों को नामांकित किया गया है और 8,181 उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया है।
5) प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं के माध्यम से अन्य लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम- हिमाचली युवाओं को विभिन्न क्षेत्रों/नौकरी भूमिकाओं में उद्योग प्रासंगिक कौशल में अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है और वर्तमान में 4,832 से अधिक उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया है।
6) वोकेशन डिग्री कार्यक्रम में स्नातक शिक्षा (बी.वोक.)- कार्यक्रम एच.पी.के.वी.एन. और उच्च शिक्षा विभाग (डी.ओ.एच.ई.) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है। यह तीन वर्षीय पूर्णकालिक डिग्री कार्यक्रम एच.पी.एस.डी.पी. के राज्य घटक के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है। बी.वोक. कार्यक्रम शुरू में शैक्षणिक सत्र 2017-18 से शुरू होकर दो क्षेत्रों, खुदरा प्रबंधन और पर्यटन और आतिथ्य में 12 कॉलेजों में शुरू किया गया था। इसे 2021-22 शैक्षणिक सत्र में 6 अतिरिक्त कॉलेजों और 2023-24 शैक्षणिक सत्र में 2 अतिरिक्त कॉलेजों तक विस्तारित किया गया। वर्तमान में 2,880 के लक्ष्य के विरुद्ध 6,762 उम्मीदवारों का नामांकन किया गया है और 2,354 उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया है।
7) दिव्यांग व्यक्तियों की आजीविका आधारित कौषल प्रषिक्षण- राज्य के विकलांग व्यक्तियों (पी.डब्ल्यू.डी.) उम्मीदवारों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करने के लिए और विशेष रूप से सक्षम उम्मीदवारों को कौशल और संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एच.पी.एस.डी.पी. के आदेश को ध्यान में रखते हुए, एच.पी.के.वी.एन. 300 अभ्यर्थियों को कौशल प्रदान करने का लक्ष्य रखता है। विकलांग व्यक्तियों के कौशल परामर्शदाता (एस.सी.पी.डब्ल्यू.डी.) के सहयोग से एच.पी. कौशल विकास परियोजना के डिजाइन, निगरानी, ढांचे के अनिवार्य परिणाम के एक भाग के रूप में अर्थात कुल प्रमाणित/प्रशिक्षित प्रशिक्षुओं में से 1 प्रतिशत विशेष रूप से सक्षम होना चाहिए, 219 उम्मीदवारों के साथ खुदरा और पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्रों में प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है।
8) 50 औद्योगिक प्रषिक्षण संस्थानों, महिला पोलिटैक्निक, (रैहन, जिला कांगडा) तथा राजकीय अभियांत्रिक महाविद्यालयों के औजारों एवं उपकरणों का उन्नयन- हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना, 50 आई.टी.आई. के उन्नयन में भी मदद कर रहा है, जहां 23 ट्रेड राज्य कौंसिल ऑफ वोकेशनल ट्रेनिंग से राष्ट्रीय कौंसिल ऑफ वोकेषनल ट्रेनिंग सर्टिफिकेट में परिवर्तित होंगे, जिसके अन्तर्गत ₹81.00 करोड़ के वित्तीय प्रावधान हैं। इसमें महिला पॉलिटेक्निक रैहन और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए उपकरण भी शामिल हैं। उपरोक्त्त समस्त तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों के उन्नयन हेतु अधिप्राप्ति का कार्य वर्ष 2023-24 के दौरान पूर्ण किया जाना है।
9) शहरी आजीविका केन्द्र (सी.एल.सी.), ग्रामीण आजीविका केन्द्र (आर.एल.सी.) और मॉडल कैरियर केन्द्र (एम.सी.सी.)- राज्य भर में कौषल विकास गतिविधियों के लिए संस्थागत सहायता प्रदान करने के लिए 6 सी.एल.सी., 7 आर.एल.सी. और 11 एम.सी.सी. का निर्माण कार्य प्रगति पर है। जिसके अंतर्गत ₹174.00 करोड़ का बजटीय प्रावधान है। इसके अलावा, महिला पॉलिटेक्निक रैहन, कांगड़ा कुल निर्माण लागत ₹37.00 करोड़ के साथ पूरा हो चूका है और 283 उम्मीदवारों के नामांकन के साथ 3 ट्रेडों में प्रशिक्षण शुरू हो गया है। छत्री में एक आई.टी.आई. ₹21.00 करोड़ की निर्माण लागत से बनकर तैयार हो गया है।
प्रधानमंत्री कौषल विकास योजना (पी.एम.के.वी.वाई.) - प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 2 अक्टूबर 2016 को शुरू की गई थी। एच.पी.के.वी.एन. पी.एम.के.वी.वाई. 2.0 (2016-20) और 3.0 (2020-21) के राज्य घटक के लिए कार्यान्वयन एजेंसी है। उक्त अध्यादेश को पूरा करने के लिए, एच.पी.के.वी.एन. ने वित्तीय वर्ष 2018-19 से 22 क्षेत्रों में विभिन्न नौकरी भूमिकाओं में 16,500 से अधिक युवाओं को पी.एम.के.वी.वाई. 2.0 के तहत नामांकित किया है। पी.एम.के.वी.वाई. 3.0 को दिसंबर 2020 में लॉन्च किया गया था और वित्तीय वर्ष के दौरान प्रशिक्षण शुरू हो गया है। पी.एम.के.वी.वाई. 3.0 के तहत सभी प्रशिक्षण आयोजित किए गए, जिसमें नामांकन 501 उम्मीदवारों का था, और 394 को अल्पकालिक प्रशिक्षण के तहत प्रमाणित किया गया था। इसी तरह, कोविड क्रैश कोर्स में 80 उम्मीदवारों का नामांकन था और 68 प्रमाणित थे और आर.पी.एल. में 1,664 उम्मीदवारों का नामांकन था और 1,235 प्रमाणित थे। नए लक्ष्यों की तलाश के लिए पी.एम.के.वी.वाई. 4.0 भी लॉन्च किया गया है और प्रस्ताव कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय को प्रस्तुत किया गया है।
आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (एस.ए.एन.के.ए.एल.पी.)- एच.पी.के.वी.एन. ₹2.10 करोड़ की स्वीकृत निधि के साथ आजीविका संवर्धन के लिए विश्व बैंक सहायता प्राप्त कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता को लागू कर रहा है और इसका उद्देश्य पूरे राज्य में संस्थागत तंत्र और कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना है।
प्रतिष्ठित सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों के साथ समझौते- उच्च श्रेणी के प्रशिक्षणों को ध्यान में रखते हुए एच.पी.के.वी.एन. ने सरकारी संस्थाओं और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों जैसे राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, सीडैक, होटल प्रबन्धन संस्थान, अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण और संबद्ध खेलों का संस्थान, सी.टी.आर., राष्ट्रीय विŸाीय प्रबंधन स्ंास्थान, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, भारतीय अधिकृत लेखापाल संस्थान, उद्यान एवं वाणिकी विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय उद्यमिता और लघु व्यवसाय विकास संस्थान (एन.आई.ई.एस.बी.यू.डी.) और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सी.आई.पी.ई.टी.) के साथ उच्च आकांक्षा उद्योग संचालित नौकरी भूमिकाओं में लगभग 15,206 हिमाचली युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। उक्त्त प्रशिक्षण के अंतर्गत वर्तमान में 15,213 से अधिक प्रशिक्षुओं को नामांकित किया गया है और 12,044 को प्रमाणित किया जा चुका है।
अंग्रेजी, रोजगार और उद्यामिता (ई.ई.ई.) प्रषिक्षण - एच.पी.के.वी.एन. ने उच्च शिक्षा निदेशालय (डी.ओ.एच.ई.) के सहयोग से शैक्षणिक सत्र 2022-23 के दौरान हिमाचल प्रदेश के कुल 56 सरकारी डिग्री कॉलेजों में अंग्रेजी, रोजगार और उद्यमिता (ई.ई.ई.) कार्यक्रम शुरू किया। इसका उद्देश्य सरकारी डिग्री कॉलेजों के अंतिम वर्ष के 5,000 स्नातक छात्रों के बीच अंग्रेजी भाषा बोलने, रोजगार योग्यता और उद्यमशीलता कौशल के विकास को सुविधाजनक बनाना है। नतीजतन, 56 सरकारी डिग्री कॉलेजों में अतिरिक्त 5000 छात्रों को लक्षित करते हुए, चार मौजूदा प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं के साथ शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) बढ़ा दिया गया है। वर्तमान में, 3,107 छात्रों को शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए प्रमाणित किया गया है, और अतिरिक्त 4,231 छात्रों को शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए नामांकित किया गया है।
फ्लेक्सी समझौता ज्ञापन योजना (फ्लेक्सी-एम.ओ.यू.) - प्रायोगिक चरण में 11 क्षेत्रों में कुल 1,000 उम्मीदवारों के प्रशिक्षण लक्ष्य के साथ, प्रमाणित उम्मीदवारों के सफल प्लेसमेंट के बाद न्यूनतम 70 प्रतिशत प्लेसमेंट परिणाम और 70 प्रतिशत भुगतान मील के पत्थर के साथ फ्लेक्सी एम.ओ.यू. योजना शुरू की गई है। पहले चरण में 2 उद्योग/संगठन और दूसरे चरण में 2 उद्योग/संगठनो को क्रमशः 400 नंबर (100 प्रत्येक फर्म) के लिए चुना गया है, जिनमें से 236 उम्मीदवार प्रशिक्षित/प्रमाणित हैं और 184 उम्मीदवारों को अब तक नौकरी मिल चुकी है और चौथे चरण में 400 संख्या (100 प्रत्येक फर्म) के प्रशिक्षणों के कार्यान्वयन के लिए 4 उद्योग/संगठनो को चुना गया है।
ड्रोन सेवा तकनीषियन प्रषिक्षण के लिए सरकारी औद्योगिक प्रषिक्षण संस्थानों (आई.टी.आई.) के साथ समझौता ज्ञापन- उद्योग 4.0 पाठ्यक्रमों की शुरूआत को देखते हुए, ड्रोन सेवा तकनीशियन नौकरी भूमिकाओं के एन.एस.क्यू.एफ.-संरेखित अल्पकालिक प्रशिक्षण के तहत 430 उम्मीदवारों के लक्ष्य के मुकाबले राज्य भर के 11 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आई.टी.आई.) में कुल 230 उम्मीदवारों को नामांकित किया गया है।
सेक्टर कौशल 21 परिषदों के साथ समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.)- एच.पी.के.वी.एन. ने हिमाचल प्रदेश के युवाओं को भविष्य के कौशल में प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए एच.पी.एस.डी.पी. के तहत 21 सेक्टर कौशल परिषदों (एस.एस.सी.) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। उद्योग 4.0. वर्तमान तिथि तक, 21 सेक्टर कौशल परिषदों में 10,880 छात्रों के आवंटित लक्ष्य के मुकाबले 6,085 छात्रों का नामांकन हो चुका है, 3,817 प्रशिक्षण ले रहे हैं और 1,546 को प्रमाणित किया जा चुका है।
आम जनता को सेवा वितरण में सुधार या गरीबों और जरूरतमंद लोगों के लाभ की दिशा में विभाग द्वारा किए जाने वाले नए हस्तक्षेप/नीतियां प्रस्तावित हैं-
1) दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कौषल प्रषिक्षण -
एच.पी.के.वी.एन., राज्य के दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए आजिविका के अवसर पैदा करने, कौशल और संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करने एवं एच.पी.एस.डी.पी. के शासनादेश को ध्यान मे रखते हुए अनूसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक मामलों और विषेश रूप से सक्षम सशक्तिकरण विभाग के सहयोग से भविष्य में 500 और उम्मीदवारों को कौशल प्रदान करने का लक्ष्य रखता है।
2) ड्रोन फ्लाइंग प्रषिक्षण के लिए राष्ट्रीय कौषल विकास निगम (एन.एस.डी.सी.) के सेक्टर स्किल काउंसिल (एस.एस.सी.) पंजीकृत निकायों के साथ समझौता ज्ञापन-
क) कृषि (कीटनाशको और पोषण तत्वों को छिड़काव, फसल क्षति का पता लगाना, फसल और सिंचाई सर्वेक्षण आदि), स्वास्थ्य देखभाल (दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य आपात स्थितियों में वितरण के लिए सहायता, चिकित्सा आपूर्ति जैसे रक्त, टीके, दवाएं और प्रयोगशाला परीक्षण नमूने, रोग परीक्षण नमूनों का सुरक्षित परिवहन, उच्च-संक्रमण वाले क्षेत्रों में परीक्षण किटों का परिवहन, पी.पी.ई. किटों की डिलीवरी आदि) और अन्य अनुप्रयोगों जैसे बिजली लाइन निरीक्षण, जंगली जीवन निगरानी, भूमि सर्वेक्षण इत्यादि सहित विषयों की एक विस्तृत श्रंृखला में ड्रोन तकनीक का तेजी से उपयोग किया जा रहा हैै। एच.पी.के.वी.एन. निम्नलिखित जॉब रोल में, संबंधित क्षेत्र कौशल परिषदों (एस.एस.सी.) के सहयोग से ड्रोन प्रौद्योगिकी में कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने का लक्ष्य रखता है।

ख) इस संबंध में, हिमाचल प्रदेश सरकार की प्राथमिकता सार्वजनिक और निजी परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना है, जिसके लिए चार्जिंग स्टेषन के संचालन और रखरखाव और इलेक्ट्रिक वाहनों की सर्विस और रखरखाव मे कुशल स्थानीय जनशक्ति की आवश्यकता होगी। वर्तमान में उपरोक्त आवश्यकता राज्य से बाहरी मानव संसाधन से पूरी की जा रही है और राज्य में किसी भी विभाग द्वारा इस क्षेत्र में प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है। एच.पी.के.वी.एन. निम्नलिखित जॉब रोल में संबंधित क्षेत्र कौशल परिषदों (एस.एस.सी.) के सहयोग से इलेक्ट्रिक वाहन प्रौद्योगिकी में कौषल प्रशिक्षण प्रदान करना प्रस्तावित हैः

3) फ्लेक्सी समझौता ज्ञापन योजना- इस योजना में नियोक्ता/उद्योग कौशल मॉडल की परिकल्पना की गई है, जहां संभावित उद्योग/संगठन अपने परिसर में संभावित कर्मचारियों/प्रशिक्षुओं/ उम्मीदवारों को कौशल प्रदान करते हैं, जिसके अंतर्गत न्यूनतम 70 प्रतिशत वेतन के साथ 70 प्रतिशत प्रशिक्षुओं को रोजगार प्रदान करना अनिवार्य होगा। इसके अतिरिक्त, उम्मीदवारों के प्रशिक्षण और रोजगार की प्रारंभिक रूझान को ध्यान में रखते हुए, राज्य बजट के तहत फ्लेक्सी समझौता ज्ञापन योजना के अंतर्गत 500 प्रशिक्षण कार्यक्रम जोड़ने का अनुरोध प्रस्तावित है।
4) मासिक आधार पर रोजगार मेलों को आयोजन- एच.पी.के.वी.एन., उद्योग विभाग और श्रम एवं रोजगार विभाग के सहयोग से औद्योगिक संस्थानों की आवश्यकता के अनुसार राज्य भर में विभिन्न कौशल और संबंधित कार्यक्रमों के तहत प्रशिक्षित/प्रमाणित उम्मीदवारों के लिए मासिक आधार पर रोजगार मेले आयोजित करता आ रहा है।
5) एषियाई विकास बैंक से सहायता प्राप्त एच.पी.एस.डी.पी. के तहत विकसित किए जा रहे ग्रामीण आजीविका केंद्रों (आर.एल.सी.) और शहरी आजीविका केंद्रों (सी.एल.सी.) का संचालन- एशियाई विकास बैंक से आंशिक वितीय सहायता प्राप्त एच.पी.एस.डी.पी. के अन्तर्गत विभिन्न अत्याधुनिक आधारभूत संरचना को विकसित करने हेतु सम्बंधित विभागों जैसे शहरी विकास विभाग के लिए शहरी आजीविका केंद्र, ग्रामीण आजीविका विभाग के लिए ग्रामीण आजीविका केंद्र के परिचालन करने के उद्देश्य से एच.पी.के.वी.एन. कौशल प्रशिक्षण और संबंधित गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए मूल विभागों को सुविधा और समर्थन प्रदान करेगा।
6) अंग्रेजी, रोजगार और उद्यमिता (ई.ई.ई.) प्रषिक्षण- इस योजना की परिकल्पना दूसरे चरण में हिमाचल प्रदेश के सरकारी डिग्री कॉलेजों के अंतिम वर्ष के स्नातक छात्रों के लिए संचार कौशल में सुधार और उन्नयन, रोजगार कौशल, क्षमता में वृद्धि और उद्यमशीलता के विचार और भावना को विकसित करने के लिए की गई है। पहले चरण में छात्रों की प्रारंभिक रुझान को ध्यान में रखते हुए, एच.पी.के.वी.एन. राज्य के बजट के अन्तर्गत शैक्षणिक वर्ष 2023-24 में अतिरिक्त 5,000 अंतिम वर्ष के स्नातक छात्रों को अंग्रेजी, रोजगार और उद्यमिता प्रशिक्षण प्रदान करने का उद्देश्य रखता है।
हिमाचल प्रदेश भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (बी.ओ.सी.डब्ल्यू.) कल्याण बोर्ड की स्थापना 2 मार्च 2009 को संसद के एक अधिनियम, भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की स्थिति का विनियमन) अधिनियम, 1996 के परिणामस्वरूप की गई थी। बी.ओ.सी.डब्ल्यू. कल्याण बोर्ड भवन और अन्य निर्माण कार्यों में लगे सभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को विभिन्न लाभ देने के मुख्य उद्देश्य के साथ हिमाचल प्रदेश में कार्य कर रहा है।
बी.ओ.सी.डब्ल्यू. कल्याण बोर्ड में पंजीकरण के लिए, प्रत्येक भवन निर्माण श्रमिक जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है, लेकिन 60 वर्ष पूरे नहीं किए हैं और जो वर्तमान में लागू किसी भी कानून के अन्तर्गत स्थापित किसी अन्य कल्याण कोष में सदस्य नहीं है और जिसने ठीक पूर्ववर्ती वर्ष में भवन निर्माण श्रमिक के रूप में सेवा के 90 दिन पूरे कर लिए हैं निधि में सदस्यता के लिए पात्र होंगे।
बोर्ड पंजीकृत श्रमिकों के कल्याण के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं जैसे विवाह सहायता योजना, मातृत्व-पितृत्व सहायता योजना, शिक्षा सहायता योजना, चिकित्सा सहायता योजना, पेंशन सहायता योजना, विकलांगता पेंशन सहायता योजना, मृत्यु-अंत्येष्टि सहायता योजना, कन्या शिशु जन्म उपहार योजना, विकलांग बच्चे लाभ योजना, विधवा पेंशन, निर्माण श्रमिकों के बच्चों के लिए छात्रावास सुविधा और एम.एम.ए.वाई./पी.एम.ए.वाई. योजना के लाभार्थियों के लिए अतिरिक्त लाभ योजना चलाता है। बोर्ड के पंजीकृत लाभार्थियों के दो बच्चों को उपरोक्त योजनाओं के अन्तर्गत वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। लाभार्थियों के पक्ष में लाभ आर.टी.जी.एस. मोड के माध्यम से श्रमिक के बैंक खातों में जमा किया जाता है।
बोर्ड ने श्रमिकों के पंजीकरण और लाभार्थियों के दावे के भुगतान के लिए ई-कामगार व्यवस्था ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया है। बोर्ड ने स्थापना से लेकर 30.11.2023 तक कुल 4,47,833 श्रमिकों को पंजीकृत किया है। 30.11.2023 तक, कुल 3,19,407 जीवित श्रमिक थे। इसके अलावा, 376 पात्र लाभार्थियों को ₹1.92 करोड़ की राशि का लाभ वितरित किया गया है और विभिन्न प्रतिष्ठानों से वर्ष 2023-24 में ₹ 94.21 करोड़ की राशि का उपकर एकत्र किया गया है।
बोर्ड हिमाचल प्रदेश बी.ओ.सी.डब्ल्यू. कल्याण बोर्ड के श्रम कल्याण अधिकारियों के माध्यम से पूरे राज्य में लोगों के बीच विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार करने के लिए जागरूकता शिविरों का आयोजन कर रहा है।

12.पर्यटन और परिवहन

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को उच्च प्राथमिकता दी गई और सरकार ने इसके विकास के लिए बुनियादी ढांचा विकसित किया हैं जिसमें सार्वजनिक उपयोगिता सेवाएं, सड़क संचार नेटवर्क, हवाई अड्डे, परिवहन सुविधाएं, जल आपूर्ति, नागरिक सुविधाए आदि शामिल हैं। सरकार राज्य को सभी “कारणों व मौसमों में एक गंतव्य” में बनाने के लिए अग्रसर है। हिमाचल प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र को अर्थव्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक माना गया हैं क्योंकि यह विकास का एक प्रमुख इंजन हैं और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण हैं। राज्य पर्यटन गतिविधियों के लिए आवश्यक संसाधनों जैसे भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता, स्वच्छ और श्ंातिपूर्ण वातावरण, सुंदर जलधाराएं, पवित्र मंदिर, ऐतिहासिक स्मारक और मैत्रीपूर्ण एवं अतिथि सत्कार वाले लोगों से संपन्न है। राज्य में महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों और पुरातात्विक का एक समृद्व धरोहर है। वर्तमान में, लगभग 1,25,862 बिस्तर क्षमता वाले लगभग 4,610 होटल विभाग के साथ पंजीकृत है। इसके अलावा, राज्य में लगभग 3,870 होम स्टे इकाइयॉं पंजीकृत है, जिनमें लगभग 23,846 बिस्तर है। हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, जिसमें उच्च ऊंचाई वाले ट्रांस-हिमालय रेगिस्तान के विशाल इलाकों से लेकर घने हरे देवदार के जंगल, सेब के बागानों से लेकर समतल खेतों, बर्फ से ढ़की उच्च हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं से लेकर बर्फ से ढ़की झीलों और बहती नदियां शामिल हैं। इस क्षेत्र की विशाल संभावनाओं के बावजूद, वैश्विक पर्यटन अध्ययनों से पता चलता है कि कई स्थानों पर पर्यटन से होने वाले लाभों को अधिक आंका गया है। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा 2022 में जारी आंकड़ांे के अनुसार राज्य घरेलू और विदेशी पर्यटकांेे के आगमन के लिए देश के शीर्ष 10 पर्यटन स्थलों में शामिल नहीं हैं। पर्यटन विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा है, जिसने 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में लगभग 10 प्रतिशत, वैश्विक रोजगार में 9.4 प्रतिशत, वैश्विक निर्यात में 7 प्रतिशत और सेवा निर्यात में 30 प्रतिशत का योगदान दिया है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन प्राप्तियां दुनिया भर में गंतव्यों द्वारा अर्जित आय 1950 में $ 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2021 में $ 637 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यू.ई.एफ.) ने अपने यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक 2021 में 4.1 के स्कोर के साथ भारत को 54वें पर (2019 में 46वें स्थान से नीचे) रखा है। लेकिन फिर भी, भारत दक्षिण एशिया में शीर्ष प्रदर्शनकर्ता बना हुआ है। वैश्विक चार्ट में जापान (1) सबसे ऊपर है और सबसे निचले स्थान (117) पर चाड देश का स्थान है। भारत में पर्यटन उद्योग, सकल घरेलू उत्पाद का 7 प्रतिशत और 5 प्रतिशत रोजगार के लिए योगदान देता है।
होटल और रेस्तरां क्षेत्र ने 2023-24 वास्तविक अनुमान (अग्रिम अनुमान) में राज्य के सकल राज्य मूल्य (जी.एस.वी.ए.) में 0.85 प्रतिशत का योगदान दिया है, जो पिछले वर्ष की 6.6 प्रतिशत की तुलना में 9.0 प्रतिशत की वृद्धि है। पर्यटन हिमाचल के सकल घरेलू उत्पाद का 7.0 प्रतिशत भाग है और राज्य में कुल रोजगार में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार में लगभग 14.42 प्रतिशत का योगदान देता है।
राज्य सरकार द्वारा जुलाई, 2020 को पर्यटन उद्योग से जुडे़ उद्यमियों को दैनिक कार्य की जरूरतों को पूरा करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए ब्याज अनुदान योजना शुरू की गई थी क्योंकि इन उद्यमियों को कोविड महामारी के कारण बहुत नुकसान हुआ था, इस योजना को दिनांक 17 जून, 2021 को संशोधित किया गया था तथा इसे 30 सितंबर, 2022 तक बढ़ाया गया था। अब तक लाभार्थियों को ब्याज अनुदान के रूप में ₹60.01 लाख की राशि जारी की गई है और कुल 38 पर्यटन इकाइयां लाभान्वित हुई हैं।
भारत सरकार (जी.ओ.आई.) के आर्थिक मामलों के विभाग ने 30 नवंबर, 2021 को आयोजित 122वीं स्क्रीनिंग बैठक में पर्यटन के लिए बुनियादी ढांचा विकास निवेश कार्यक्रम-(परियोजना 2) के तहत पर्यटन क्षेत्र के लिए ए.डी.बी. ऋण को मंजूरी दी हैं। कुल परियोजना लागत है यू.एस. $ 291.04 मिलियन (₹2,357‐42 करोड, यू.एस.$1त्र₹81)दो किश्तों में प्राप्त किया जाएगा। इसमें से ए.डी.बी. का हिस्सा यूएस $ 233 मिलियन (₹1,885‐94 करोड़) और राज्य का हिस्सा यू.एस. $58‐04 मिलियन (₹471‐48 करोड़) होगा। ए.डी.बी. और राज्य की हिस्सेदारी क्रमशः 80ः20 के अनुपात में है। नई ए.डी.बी. परियोजना के दो भाग होगें अर्थात भाग-1 भाग-2। ए.डी.बी. ने पर्यटन और नागरिक उड्डयन विभाग, हिमाचल प्रदेश के परामर्श से 27 फरवरी, 2023 को ₹1,311.20 करोड़ की नई परियोजना के भाग-1 की उप-परियोजनाओं की सूची को मंजूरी दे दी है। भाग-1 के अन्तर्गत प्रस्तावित उप-परियोजनाएं शिमला, मंडी, कुल्लू, कांगड़ा और हमीरपुर जिलों के लिए हैं। परियोजना प्रबंधन इकाई (पी.एम.यू.) और परियोजना कार्यान्वयन इकाई (पी.आई.यू.) की स्थापना की गई है। पी.एम.यू. हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास बोर्ड (एच.पी.टी.डी.बी.) परियोजना प्रबंधन डिजाइन और पर्यवेक्षण निर्माण सलाहकार (पी.एम.डी.एस.सी.) का चयन करने की प्रक्रिया में है। तकनीकी और वित्तीय बीडींग के लिए अनुरोध प्रस्ताव (आर.एफ.पी.) जारी किया गया हैै। पी.एम.यू.(एच.पी.टी.डी.बी.) शीघ्र ही भाग-1 उप-परियोजनाओं के लिए निविदा आमंत्रण सूचना ;एन.आई.टी.द्ध आमंत्रित करेगा।
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने देश में सतत पर्यटन स्थलों को विकसित करने की दृष्टि से अपनी स्वदेश दर्शन योजना” को स्वदेश दर्शन 2.0 के रूप में नया रूप दिया हैं। स्वदेश दर्शन 2.0 के तहत पोंग बांध को पर्यटन स्थल के रूप में चुना गया हैं। राज्य सरकार ने पर्यटन और नागरिक उड्डयन विभाग को अपनी कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नामित किया है, मैसर्ज बोआंट सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड जे.वी. आई.डी.ई.सी.के. लिमिटेड के साथ समझौता हुआ है जिसके अन्तर्गत इस परियोजना विकास और प्रबंधन सलाहकार नियुक्त किया गया है जो चिन्हित गंतव्य पौंग डैम के लिए राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों को योजना, विकास और प्रबंधन के क्षेत्र में शुरू से अंत तक सहायता प्रदान करेगी।
वर्तमान में, हिमाचल प्रदेश में 3 मौजूदा हवाई अड्डे हैं जैेसे शिमला हवाई अड्डा, कुल्लू हवाई अड्डा और कांगड़ा हवाई अड्डा। नागचला, मंडी में भी एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा विकास/निर्माण के लिए प्रस्तावित है।
3 हवाई अड्डों जैसे जुब्बरहट्टी (जिला, शिमला), भुंतर (जिला, कुल्लू) और गग्गल (जिला, कांगड़ा) की वर्तमान स्थिति निम्नानुसार हैः
1) शिमला (जुब्बरहट्टी) हवाई अड्डा- शिमला हवाई अड्डे का रनवे आयाम 1189 मीटरग्30 मीटर है, जो केवल लोड पेनल्टी के साथ एयर ट्रांसपोर्टेशन रैक (ए.टी.आर.) -42 की लैंडिंग के लिए उपयुक्त है। रनवे एंड सेफ्टी एरिया (आर.ई.एस.ए.) का काम एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ए.ए.आई.) द्वारा पूरा कर लिया गया है। राज्य सरकार द्वारा 26 सितम्बर, 2022 को मैसर्ज अलायंस एयर लिमिटेड के माध्यम से शिमला-दिल्ली-शिमला मार्ग पर हवाई सेवाएं फिर से शुरू कर दी गई हैं और शिमला-धर्मशाला-शिमला सेक्टर पर सप्ताह के सभी सातों दिन उड़ान संचालन संचालित किया जा रहा है, जिसके लिए 100 प्रतिशत वायबिलिटी गैप फंडिंग (वी.जी.एफ.) राज्य सरकार द्वारा वहन की जा रही है। इसके अलावा, एलायंस एयर ने शिमला-अमृतसर-शिमला के बीच (सप्ताह में 3 दिन) उड़ानें भी शुरू की हैं।
2) कुल्लू (भुंतर) हवाई अड्डा- कुल्लू हवाई अड्डे का मौजूदा रनवे 1,128 मीटर और चौड़ाई 30.5 मीटर है जो लोड पेनल्टी के साथ एयर ट्रांसपोर्टेशन रैक (ए.टी.आर.) 72 सीटर विमान की लैंडिंग के लिए उपयुक्त है। एयर इंडिया द्वारा एटीआर-72 के माध्यम से उड़ान संचालन किया जा रहा है। कुल्लू हवाई अड्डे की न्यूनतम सुरक्षा/चौड़ाई बढ़ाने का प्रस्ताव विचाराधीन है, जिसके लिए प्रथम चरण की मंजूरी हेतु वन संरक्षण अधिनियम (एफ.सी.ए.) का मामला भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के परिवेश पोर्टल पर अपलोड किया गया है। क्षेत्रीय कनेक्टिविटी (आर.सी.एस.) (उड़ान योजना) के अन्तर्गत अक्तूबर, 2023 से (सप्ताह में 3 दिन) कुल्लू-अमृतसर-कुल्लू के बीच नई उड़ान का संचालन शुरू किया गया है।
3) कांगड़ा (गग्गल) हवाई अड्डा- कांगड़ा हवाई अड्डे का विस्तार कार्य भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (ए.ए.आई.) द्वारा किया जाना है और बीडींग/निविदा प्रक्रिया ए.ए.आई. द्वारा की जाएगी, जिसके लिए मास्टर प्लान का प्रारुप 7 अक्टूबर, 2021 को ए.ए.आई. से प्राप्त हो गया है। ड्राफ्ट मास्टर प्लान के अनुसार कांगड़ा हवाई अड्डे का विकास दो चरणों में किया जा सकता है यानी पहले चरण में रनवे की मौजूदा लंबाई 1,376 से 1,900 मीटर और दूसरे चरण में 1,900 मीटर से 3,010 मीटर तक बढ़ाने की योजना है।
राज्य सरकार ने पत्र क्रमांक टी.एस.एम.-एफ(6)-1/2015-प्प् दिनांक 03 फरवरी, 2023 के माध्यम से प्राप्त ड्राफ्ट मास्टर प्लान की सहमति से अवगत करा दिया है और जिला प्रशासन ने 147-75-87 हेक्टेयर भूमि की पहचान भी कर ली है जिसमें से 122-66-23 हेक्टेयर भूमि निजी भूमि है। कांगड़ा हवाई अड्डे के विस्तार के लिए अधिग्रहित की जाने वाली भूमि के अधिग्रहण के लिए सामाजिक प्रभाव आकलन (एस.आई.ए.) अधिसूचना 28 फरवरी, 2023 को सरकार द्वारा जारी की गई थी और एस.आर. एशिया को एस.आई.ए. के लिए एस.आई.ए. इकाई हिपा के माध्यम से कार्य सौंपा गया था। बहु-अनुशासनात्मक विशेषज्ञ समूह द्वारा प्रस्तुत मूल्यांकन रिपोर्ट को कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था और उसके बाद भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनःस्थापना अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार की धारा 11 के अन्तर्गत अधिसूचना जारी की गई थी। कांगड़ा हवाई अड्डे के विस्तार के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए सरकार द्वारा 7 जुलाई, 2023 को जारी किया गया। कांगड़ा हवाई अड्डे के विस्तार के लिए भूमि अधिग्रहण और पुर्नवास व पुनःस्थापना के कार्यान्वयन में सुविधा का कार्य हिमाचल प्रदेश सड़क और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एच.पी.आर.आई.डी.सी.एल.) के माध्यम से (क्रैडल) को सौंपा गया है। कांगड़ा हवाई अड्डे के प्रस्तावित विस्तार के लिए तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन का कार्य डब्लू.ए.पी.सी.ओ.एस. लिमिटेड को सौंपा गया था। भूमि अधिग्रहण की लागत का आकलन करने के लिए, उपायुक्त कांगड़ा द्वारा पुनर्वास और पुनःस्थापना योजना तैयार की जा रही है।
4) नागचला, मंडी में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा- भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (ए.ए.आई.) द्वारा 7 मई, 2018 से 10 मई, 2018 तक पूर्व-व्यवहार्यता अध्ययन किया गया था और साइट को व्यवहार्य पाया गया था। भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण ने 3 दिसंबर, 2018 से 15 दिसंबर, 2018 तक बाधा सीमा सतह (ओ.एल.एस.) सर्वेक्षण भी आयोजित किया।
ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट नीति के अनुसार, भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय से साइट क्लीयरेंस प्राप्त कर लिया गया है। 3,150 मीटर की लंबाई वाले रनवे की व्यवहार्यता का पता दो चरणों में लगाया गया था (अर्थात् पहला चरण-2,100 मीटर और दूसरा चरण 1,050 मीटर) था। सरकार की ओर से सामाजिक प्रभाव आकलन (एस.आई.ए.) की अधिसूचना जारी कर दी गई है।
राज्य के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने तथा कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए 5 नए हेलीपोर्ट जैसे कांगनीधार (जिला मंडी), रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (डी.जी.आर.ई.) एस.ए.एस.ई. मनाली (जिला कुल्लू), बद्दी (जिला सोलन) में एक-एक और 2 संजौली और रामपुर (जिला शिमला) को भारत सरकार की रीजनल कनेक्टिविटी योजना (आर.सी.एस.) (उड़ान-2) योजना के लिए हिमाचल प्रदेश में विकसित किया गया। शिमला, बद्दी और रामपुर हेलीपोर्ट का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और संचालन के लाइसेंस के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डी.जी.सी.ए.) के अंतिम निरीक्षण का इंतजार है। सरकार द्वारा सभी जिला मुख्यालयों के साथ-साथ जनजातीय क्षेत्रों में 16 नए हेलीपोर्ट विकसित किए जा रहे हैं, जिनमें से 9 पहले चरण में अर्थात सासन (जिला हमीरपुर), रक्कड़ और पालमपुर (जिला कांगड़ा), सुल्तानपुर (जिला चंबा), आलू ग्राउंड मनाली (जिला कुल्लू), शारबो (जिला किन्नौर), जिस्पा, सिस्सू और रंगरिक (जिला लाहौल और स्पीति) में विकसित किए जा रहे हैं और बाकी हेलीपोर्ट जैसे पांगी और होली, (जिला चंबा), औहर, (जिला बिलासपुर), धारकियारी, (जिला सिरमौर), चंाशलधार, (जिला शिमला), जनकौर हर्र, (जिला ऊना) और गलानाग, (जिला सोलन) दूसरे चरण के तहत कवर किए जाएंगें।
सरकार ने राज्य में पर्यटन के विकास के लिए ₹398.71 करोड़ के बजट प्रावधान के साथ “पर्यटन विकास“ नामक एक नया कोष पेश किया है। विभाग छरोल अरली, मौजा गरली, उपतहसील परागपुर, (जिला कांगड़ा) में एक गोल्फ कोर्स/थीमैटिक ग्रीन पार्क विकसित करके कांगड़ा को “पर्यटन राजधानी“ के रूप में विकसित करने का विचार रखता है। विभाग ने नरघोटा, जिला कांगड़ा में “पर्यटक गांव“ की स्थापना, नगरोटा, नोराखड़ और बनूटी पटवार सर्कल निरी, जिला शिमला (ग्रामीण), मनाली और धर्मशाला आदि में आइस स्केटिंग रिंक सहित राज्य में विभिन्न स्थलों और गंतव्यों के विकास के लिए 30 नवंबर, 2023 तक ₹48.72 करोड़ की राशि स्वीकृत/जारी की है।
पर्यटकों का आगमन किसी विशेष गंतव्य में पर्यटन की मांग के मुख्य संकेतकों में से एक है। सारणी 12.1 में वर्ष 2012 से 2023 तक हिमाचल प्रदेश में विदेशी और घरेलू पर्यटकों के आगमन के अंाकडे़ प्रस्तुत किए गएहैं। कोविड-19 महामारी के बाद घरेलू पर्यटकों का आगमन 2020 में 32.13 लाख से बढ़कर 2021 में 56.37 लाख और 2022 में 150.99 लाख तथा 2023 में कुल मिलाकर 160.05 लाख हो गया है। इससे पता चलता है कि पर्यटकों का आगमन पूर्व-महामारी के स्तर पर पहुंच रहा है। हमारे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को देखते हुए यह सुनिश्चित करना समय की मांग है कि यह विकास निरंतर जारी रहे।
पर्यटकों के आगमन से राज्य में वर्ष-दर-वर्ष वृद्वि दर में भिन्नता देखी जाती है। हालाँकि, देशव्यापी तालाबंदी के समय विकास दर में एक बड़ा बदलाव देखा गया, जिसके कारण न केवल घरेलू पर्यटकों को अपने घरों में बंद रहना पड़ा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध के कारण विदेशी पर्यटकों को अपने देशों में ही रूकना पड़ा। चित्र 12.1 पिछले वर्ष की तुलना में पर्यटकों के आगमन में उच्चतम (-81.33 प्रतिशत) संकुचन दर्शाता है। लॉकडाउन के बाद पर्यटकों की आमद में भारी सुधार हुआ है। यह वृद्धि दर वर्ष 2021 में 75.43 प्रतिशत, वर्ष 2022 में 167.87 प्रतिशत और वर्ष 2023 में 6.00 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एच.पी.टी.डी.सी.) 1972 में गठित हिमाचल प्रदेश में पर्यटन बुनियादी ढांचे के विकास में अग्रणी है। यह आवास, खानपान, परिवहन, सम्मेलन और खेल गतिविधियों सहित पर्यटन सेवाओं का एक पूरा पैकेज प्रदान करता है, जिसकी सबसे बड़ी श्रृंखला राज्य में बेहतरीन होटल और रेस्तरां हैं जिनमें 56 होटल, 1,109 कमरे व 2,485 बिस्तर हैं।
जैसा कि राज्य का पर्यटन उद्योग महामारी के बाद से उबरने की कोशिश कर रहा था, जुलाई, 2023 में बाढ़ और भारी बारिश ने न केवल राज्य में पर्यटकों की संख्या को कम कर दिया, बल्कि उस बुनियादी ढांचे को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया, जिस पर पर्यटन गतिविधियां निर्भर करती हैं। एच.पी.टी.डी.सी. इन घाटे को पुनर्जीवित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा हैं। निगम ने औहर, जिला बिलासपुर में एक नवनिर्मित कैफे, विली पार्क, जिला शिमला में 40 वाणिज्यिक कमरों का संचालन शुरू कर दिया हैं, साथ ही होटल पीटरहॉफ, जिला शिमला के उन्नयन और नवीनीकरण और होटल हॉलीडे होम में रेस्तरों का संचालन भी शुरु कर दिया हैं। एच.पी.टी.डी.सी. ने नवंबर, 2023 तक ₹71.41 करोड़ की आय अर्जित की हैं और वित्तीय वर्ष, 2023-24 के लिए ₹110.00 करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले दिसंबर, 2023 से मार्च, 2024 की अवधि के लिए अनुमानित आय ₹32.63 करोड़ हैं।
राज्य की तीव्र आर्थिक वृ˜ि के लिए सड़कें एक अत्यंत महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा है। कृषि, बागवानी, उद्योग, खनन और वानिकी जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों का विकास कुशल सड़क नेटवर्क पर निर्भर करता है। रेलवे और जलमार्ग जैसे परिवहन के किसी अन्य उपयुक्त और व्यवहार्य साधनों के अभाव में, सड़कें हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लगभग शुन्य से शुरूआत करते हुए राज्य ने दिसंबर, 2023 तक 41,975 किलोमीटर मोटर योग्य सड़कों (जीप योग्य और ट्रैक सहित) का निर्माण किया है। राज्य सरकार सड़क क्षेत्र को बहुत उच्च प्राथमिकता दे रही हैं।
हिमाचल प्रदेश राज्य में अच्छा सड़क नेटवर्क है। 19 राष्ट्रीय राजमार्ग हैं जिनकी कुल लंबाई 2,576 किमी है। राज्य में 15,561 गांव सड़कों से जुड़े हुए हैं। राज्य में महत्वपूर्ण आर्थिक विस्तार के लिए सड़कें बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों के विकास के लिए एक प्रभावी सड़क नेटवर्क आवश्यक है। रेलगाड़ियों और जलमार्गों जैसे परिवहन के किसी अन्य पर्याप्त और व्यावहारिक मार्गों के अभाव में सड़कें हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। राज्य सरकार की ओर से सड़क क्षेत्र पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया है।
वर्ष 2023-24 के लिए निर्धारित लक्ष्य एवं दिसम्बर, 2023 तक की उपलब्धियों का ब्यौरा सारणी 12.4 में दर्शाया गया हैः
हिमाचल प्रदेश दिसम्बर, 2023 तक 15,561 गांव सड़कों से जोडे़ गये जिनका ब्यौरा सारणी 12.5 में दिया जा रहा हैः
राज्य में 2,576 किलोमीटर की लंबाई वाले कुल 19 राष्ट्रीय राजमार्ग हैं। हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग के पास 1,008 किलोमीटर को विकसित और रखरखाव की जिम्मेदारी है और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एम.ओ.आर.टी.एच.) विश्व बैंक की सहायता के अन्तर्गत 214.00 किलोमीटर लंबाई को हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारे के रूप में उन्नत कर रहा है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एन.एच.ए.) राज्य में 785 किलोमीटर लंबाई में 4-लेन विकसित कर रहा है और सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ.) के पास 569 किलोमीटर लंबाई के विकास और रखरखाव की जिम्मेदारी है।
परिवहन विभाग मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 213 के प्रावधानों के अर्न्तगत कार्य करता है। परिवहन विभाग मुख्य रूप से मोटर वाहन अधिनियम, 1988, हिमाचल प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1972 के प्रावधानों और वहां बनाए गए नियमों को लागू करने के लिए स्थापित किया गया है। हिमाचल प्रदेश का परिवहन विभाग परिवहन सुविधाओं के विकास में अन्य संगठनों की सहायता करता है और सड़क मार्ग से यात्रियों और माल की आवाजाही के लिए एक कुशल, पर्याप्त और किफायती परिवहन सेवा प्रदान करने का प्रयास करता है। वैधानिक कार्यों के निर्वहन में, विभाग मोटर वाहनों पर करों के रूप में सरकार के लिए प्रमुख राजस्व अर्जित करने वाले विभागों में से एक बन गया है। ने जनता की सुविधा के लिए एक नई सामान नीति (यात्री के साथ/यात्री के बिना) शुरू की है।
वर्ष प्राप्ति वर्ष अनुमानित प्राप्ति 31 दिसम्बर, 2023 तक वास्तविक प्राप्तियां 2022-23 ₹675.17 करोड़ 2023-24 ₹775.40 करोड़ ₹581.13 करोड़
1) राजस्व सृजन- विभाग की राजस्व प्राप्ति का विवरण निम्न प्रकार से हैः

2) गाड़ियों की जांच-विभागीय अधिकारियों द्धारा मोटर वाहन अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाता है जिसका ब्यौरा निम्न प्रकार से हैः

3) वाहनों का पंजीकरण- राज्य में 31 दिसंबर, 2023 तक 22,43,524 वाहन (परिवहन और गैर-परिवहन) पंजीकृत किए गए हैं। 31 दिसंबर, 2023 तक जिलेवार विवरण इस प्रकार हैः
हिमाचल प्रदेश सरकार के परिवहन विभाग की वर्ष 2023-24 के दौरान निम्नलिखित उपलब्धियाँ हैंः
1) निरीक्षण और प्रमाणन केंद्र- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एम.ओ.आर.टी.एच.) ने हिमाचल प्रदेश के बद्दी, जिला सोलन में वाहन फिटनेस के लिए निरीक्षण और प्रमाणन केंद्र स्थापित करने के लिए एक परियोजना को मंजूरी दे दी है। परियोजना की लागत ₹16.35 करोड़ है। सिविल कार्य के लिए विस्तृत अनुमान सिविल वर्क आर्किटेक्ट (मैसर्ज कॉम्प्रिहेंसिव आर्किटेक्चरल सर्विसेज, नोएडा) द्वारा तैयार किया गया था, जिसकी राशि ₹11.57 करोड़ थी, जिसे 14 नवंबर, 2018 के पत्र के माध्यम से सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एम.ओ.आर.टी.एच.) को प्रस्तुत किया गया था।
सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद, सिविल कार्य मैसर्ज कंबाइंड प्रमोटर्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में ई-टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से प्रदान किया गया, जिसकी लागत ₹920.11 लाख थी और ठेकेदार ने मार्च, 2020 में सिविल कार्य शुरु किया था। साइट पर अतिरिक्त फ्लाई ऐश की उपस्थिति के कारण आवश्यक संरचनात्मक डिजाइन में बदलाव के कारण, कार्य की लागत में भिन्नता ₹132.81 लाख थी जिसे परियोजना में जोड़ा गया और अंततः, जी.एस.टी. सहित परियोजना लागत ₹1219.60 लाख पर पहुंच गई।
अब तक ठेकेदार को ₹8.84 करोड़ (करों सहित) की कुल राशि का भुगतानध्संसाधन किया जा चुका है और साइट पर काम चल रहा है। वर्तमान में, साइट पर लगभग 75-80 प्रतिशत सिविल कार्य पूरा हो चुका है।
2) ट्रांसपोर्ट नगर का निर्माण- प्रदेश के 6 जिलों शिमला, कांगड़ा, हमीरपुर, सिरमौर, सोलन और ऊना में ट्रांसपोर्ट नगर के निर्माण के लिए भूमि चिन्हित कर ली गई है। जिलेवार स्थिति इस प्रकार हैः
i) शिमला- भूमि को परिवहन विभाग के नाम हस्तांतरित करने का मामला प्रक्रियाधीन है।
ii) सोलन- नालागढ़ में परिवहन विभाग के नाम भूमि हस्तांतरण का मामला प्रक्रियाधीन है.
iii) सिरमौर- परिवहन विभाग के नाम भूमि हस्तांतरण का मामला प्रक्रियाधीन है।
iv) कांगड़ा- भूमि परिवहन विभाग के नाम स्थानांतरित कर दी गई है। परियोजना की प्रशासनिक मंजूरी के लिए और केंद्रीय मोटर वाहन नियम, (सी.एम.वी.आर.) 1989 में निर्दिष्ट किसी भी एजेंसी से परामर्श सेवाएं किराए पर लेने के लिए प्रस्ताव के लिए अनुरोध (आर.एफ.पी.) जारी करने के लिए 25 अक्तूबर, 2023 को राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था।
v) हमीरपुर- भूमि परिवहन विभाग के नाम हस्तांतरित हो चुकी है। प्रशासनिक मंजूरी के लिए प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है।
vi) ऊना- भूमि को परिवहन विभाग के नाम हस्तांतरित करने का मामला प्रदेश सरकार/मंडलायुक्त कांगड़ा को भेजा गया है।
3) चालक प्रषिक्षण संस्थान (डी.टी.एस.)और प्रदूषण जांच केन्द्र- ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल और प्रदूषण जांच केंद्र का विवरण इस प्रकार है

4) रोजगार सृजन- परिवहन विभाग ने बेरोजगार युवाओं को विभिन्न श्रेणियों के परमिट प्रदान करके 31 दिसंबर, 2023 तक 33,967 लोगों को रोजगार प्रदान किया है। विवरण इस प्रकार हैंः

5) विद्युत वाहन नीति- राज्य ने हिमाचल प्रदेश को इलेक्ट्रिक वाहन के लिए एक आदर्श राज्य स्थापित करने के लिए “हिमाचल प्रदेश इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2022“ को अधिसूचित किया है और गतिशीलता के स्वच्छ तरीकों को बढ़ावा देकर पर्यावरण को बचाने के लिए राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रचलन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है और अंतः दहन इंजन (आई.ई.सी.) वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करने के लिए एक अनुकुल वातावरण तैयार किया है।
इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए राज्य सरकार विभिन्न हितधारकरों जैसे कि आई.ओ.सी.एल., बी.पी.सी.एल. आदि के सहयोग से राज्य भर में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिग स्टेशन स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। पहले चरण में राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित निम्नलिखित छह ग्रीन कॉरिडोर पर इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए कुल 107 स्थानों (54 सरकारी स्थल़ 53 पेट्रोल पंप) की पहचान की गई हैः-
i) परवाणू-नालागढ़-ऊना-हमीरपुर-देहरा-अंब-मुबारिकपुर-संसारपुर टैरेस-नूरपुर।
ii) पांवटा-नाहन-सोलन-शिमला।
iii) परवाणू-सोलन-शिमला-रामपुर-पियो-पूह-ताबो-काजा-लोसर।
iv) शिमला-बिलासपुर- हमीरपुर-कांगड़ा-नूरपुर-बनीखेत-चंबा।
v) मंडी-जोगिन्दर नगर-पालमपुर-धर्मशाला-कांगड़ा
vi) कीरतपुर-बिलासपुर-मंडी-कुल्लु-मनाली-केलांग-जिंग-जिंग बार। 53 पेट्रोल पंपों में से 17 पेट्रोल पंपों (14 आई.ओ.सी.एल. ़ 3 बी.पी.सी.एल.) पर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित किया गया है। इसके अलावा, 45 सरकारी साइटों पर मुलभूत सुविधाओं सहित चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए ऐक्सप्रैशन आफ इन्ट्रैस्ट जारी की गई हैं, जो प्रक्रियाधीन है।
6) स्कूली बच्चों के सुरक्षित परिवहन के लिए दिशानिर्देश- राज्य सरकार ने 10 अक्टूबर, 2018 की अधिसूचना के माध्यम से स्कूल बसों के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। इस अधिसूचना में निहित निर्देशों के साथ सख्ती से कार्यान्वयन के लिए सभी क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों (आर.टी.ओ.) और अन्य संबंधित विभागों को प्रसारित किए गए हैं। स्कूली बच्चों को ले जाने वाले वाहनों की जांच के लिए शत-प्रतिशत लक्ष्य रखा गया है और इसकी निगरानी निदेशालय स्तर पर की जाती है।
7) मोटर साइकिल और मोटर कैब किराए पर लेने की योजना- किराया मोटर बाइक योजना मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के प्रावधान के अन्तर्गत अधिसूचित योजना है। हिमाचल प्रदेश राज्य अधिसूचना टीपीटी-ए(4)9ध्2015 दिनांक 25 मई, 2017 के अन्तर्गत इस उद्देश्य के लिए वर्ष 1997 में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित रेंट-ए-बाइक योजना को अपनाया। राज्य परिवहन प्राधिकरण ने आवेदकों को 3,592 परमिट दिए और आज तक 2,792 मोटर साइकिल पंजीकृत की गई हैं।
8) टैक्सियों और निजी बसों के बेडे़ की क्षमता- 31 दिसंबर, 2023 तक हिमाचल प्रदेश में निजी स्टेज कैरिज बसों की कुल संख्या 3,364 है, टैक्सियों की संख्या (बैठने की क्षमता 4$1) 28,431 है, मैक्सी (6$1 और अधिक) की संख्या 13,265 है। जिलावार और क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आर.टी.ओ.) वार विवरण इस प्रकार हैंः
सड़क परिवहन प्रदेश में आर्थिक गतिविधियों का मुख्य आधार है क्योंकि परिवहन के अन्य साधन रेलवे, वायुमार्ग, टैक्सी, ऑटो रिक्शा आदि नगण्य हैं। इसलिए, सड़क परिवहन निगम राज्य में सर्वोपरि महत्व रखता है। हिमाचल प्रदेश के लोगों को राज्य के भीतर और बाहर यात्री परिवहन सेवाएं हिमाचल सड़क परिवहन निगम द्वारा 3,059 बसों, 110 इलेक्ट्रिक बसों, 38 टैक्सियों, 50 इलेक्ट्रिक टैक्सियों और 12 टेंपो ट्रैवलर्स के बेड़े के साथ प्रदान की जा रही हैं।
यात्रियों के लाभ के लिए एच.आर.टी.सी. योजनाएं-
लोगों के लाभ के लिए, वर्ष के दौरान निम्नलिखित योजनाएँ/लाभ चालू रहे-
1) ग्रीन कार्ड योजना- यदि यात्री द्वारा की गई यात्रा 50 किमी है तो ग्रीन कार्डधारक को किराए में 25 प्रतिशत की छूट दी जाती है। इस कार्ड की कीमत ₹50 है और इसकी वैधता दो साल तक है।
2) स्मार्ट कार्ड योजना- निगम ने स्मार्ट कार्ड योजना शुरू की है। कार्ड की कीमत ₹50 है और इसकी वैधता दो साल तक है। किराये में यह 10 प्रतिशत की छूट एच.आर.टी.सी. की साधारण, सुपर फास्ट, सेमी डीलक्स और डीलक्स बसों में भी मान्य है। वॉल्वो और एसी बसों में 1 अक्टूबर से 31 मार्च तक छूट दी गई है।
3) वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मान कार्ड योजना- निगम ने 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मान कार्ड योजना शुरू की है। इस योजना के अन्तर्गत साधारण बसों में किराये में 30 फीसदी की छूट दी जाती है।
4) महिलाओं को मुफ्त सुविधा- महिलाओं को ‘‘रक्षा बंधन‘‘ और ‘‘भैया दूज‘‘ के अवसर पर एच.आर.टी.सी. की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है। मुस्लिम महिलाओं को ‘‘ईद‘‘ और ‘‘बकर ईद‘‘ के अवसर पर मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है।
5) महिलाओं को किराये में छूट- निगम ने महिलाओं को राज्य के भीतर साधारण बसों में किराये में 50 प्रतिशत की छूट भी दी है।
6) सरकारी स्कूलों के छात्रों को मुफ्त सुविधा- $2 कक्षा तक के सरकारी स्कूलों के छात्रों को उनके निवास से स्कूल और स्कूल से निवास तक एच.आर.टी.सी. की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है।
7) गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को मुफ्त सुविधा- कैंसर, रीढ़ की हड्डी में चोट, किडनी और डायलिसिस रोगियों को राज्य के भीतर और बाहर डॉक्टर द्वारा जारी रेफरल पर्ची पर चिकित्सा उपचार के लिए एचआरटीसी बसों में एक परिचारक के साथ मुफ्त यात्रा सुविधा प्रदान की जाती है।
8) विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों को निःशुल्क सुविधा- निगम राज्य के भीतर 70 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता वाले विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों को एक सहायक के साथ निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान करता है।
9) वीरता पुरस्कार विजेताओं को मुफ्त सुविधा- वीरता पुरस्कार विजेताओं को राज्य में डीलक्स बसों के अलावा एच.आर.टी.सी. की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है।
10) 3 ग2 साधारण एयर कंडीशन (ए.सी) बसें- साधारण 3 ग2 एसी बसों का किराया 15 प्रतिशत कम किया गया है।
11) 24 ग7 हेल्पलाइन- एच.आर.टी.सी. द्वारा राज्य के भीतर 24 ग 7 जनता की सुविधा के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर 1100 और राज्य के बाहर हेल्पलाइन नंबर 18001808185 शुरू की गई है।
12) सीलबंद सड़कों पर टैक्सियाँ- निगम द्वारा शिमला शहर में सीलबंद/प्रतिबंधित सड़कों पर जनता के लिए टैक्सी सेवाएँ भी शुरू की गई हैं।
13) शहीदों के परिवारों को मुफ्त यात्रा सुविधा- एच.आर.टी.सी. ने युद्ध में शहीद हुए सशस्त्र बलों के कर्मियों की विधवाओं, माता-पिता और 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों और सशस्त्र बल कर्मियों और अर्ध सैन्य सैनिकों जो ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए की विधवाओं, माता-पिता और 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए मुफ्त यात्रा सुविधा बढ़ा दी है।
14) पर्यटक स्थलों के लिए इलेक्ट्रिक बसों की सुविधा- निगम ने प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों और आगंतुकों के लिए इलेक्ट्रिक बसें शुरू की हैं।
15) महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनों की सुविधा- महिलाओं के लाभ के लिए 38 बस अड्डों पर सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें लगाई गई हैं।
16) बस अड्डों पर विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों के लिए व्हीलचेयर की सुविधा- विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों के लाभ के लिए, 42 बस अड्डों पर व्हीलचेयर प्रदान की गई है।
17) निगम के बस अड्डों पर एक सार्वजनिक सूचना प्रणाली का विकास- बस अड्डों पर एक सार्वजनिक सूचना प्रणाली का विकास किया गया है, ताकि यात्रियों को बसों के प्रस्थान और अन्य संबंधित जानकारी मिल सके।
18) शिमला स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत 18 क्रिस्टा इनोवा, 12 टेंपो ट्रैवलर और 20 इलेक्ट्रिक बसें और धर्मशाला स्मार्ट सिटी के तहत 15 इलेक्ट्रिक बसें एच.आर.टी.सी. के बेड़े में शामिल की गईं, इसके अलावा 11 वोल्वो बसें और 186 साधारण बसें भी निगम के बेड़े में शामिल की गईं।
19) हिमाचल प्रदेश बस स्टैंड प्रबंधन एवं विकास प्राधिकरण (एच.पी.बी.एस.एम.डी.ए.) ने ₹3.00 करोड़ की लागत से हरिपुर (देहरा) जिला कांगड़ा में एक नए बस स्टैंड का निर्माण पूरा किया। इसे 26 मई, 2023 को क्रियाशील किया गया। जनता की सुविधा के लिए, एच.आर.टी.सी. धार्मिक पर्यटक सर्किट बस सेवा नामक एक योजना के अन्तर्गत बसें संचालित करता है।
20) एच.आर.टी.सी. ने 36 नई बस सेवाएं शुरू की हैं। 45 बसों के रूट बढ़ाए गए और 28 बसों के रूट डायवर्ट किए गए।
21) एच.आर.टी.सी

13.शिक्षा

शिक्षा ज्ञान, कौशल और चारित्रिक गुणों का संचरण है और यह कई रूपों में आती है। शिक्षा एक व्यापक परिघटना है जो सभी आयु समूहों पर लागू होती है और इसमें औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ गैर-औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा भी शामिल है। मौलिक रूप से, शिक्षा सांस्कृतिक मूल्यों और मानदंडों को सिखाकर बच्चों को समाज में सामाजिक बनाती है। यह उन्हें समाज के उत्पादक सदस्य बनने के लिए आवश्यक कौशल से दक्ष करती है। इस तरह, यह आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती है और स्थानीय और वैश्विक समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाती है।
पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने पर, राज्य में साक्षरता दर बहुत कम 31.96 प्रतिशत थी। फिर भी, राज्य ने शिक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों में पर्याप्त प्रगति की है, जिसका मुख्य कारण शैक्षिक बुनियादी ढांचे के विस्तार में ठोस प्रयास हैं। स्कूल नामांकन और साक्षरता दर में वृद्धि राजनीतिक नेतृत्व, प्रशासनिक जुड़ाव और सामाजिक पहल की सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है। 86वें संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21ए को शामिल करना इस प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य को प्रासंगिक कानूनों के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। 2009 का बच्चों का मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आर.टी.ई.) अधिनियम इस प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को माध्यमिक शिक्षा पूरा होने तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिले।
जनगणना परिणामों के अनुसार 2011 में हिमाचल प्रदेश में साक्षरता दर 82.80 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत 74.0 प्रतिशत से 8.8 प्रतिशत अधिक थी। पुरुष साक्षरता दर 89.53 प्रतिशत थी, जबकि महिला साक्षरता दर 75.93 प्रतिशत थी। 2019-21 में किये गये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ.एच.एस.)-5 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में साक्षरता दर बढ़कर 93.3 प्रतिशत हो गई है। पुरुष और महिला साक्षरता दर अब क्रमशः 94.9 प्रतिशत और 91.7 प्रतिशत है, जिसमें 3.2 प्रतिशत लैंगिक असमानता है।
31 दिसंबर, 2023 तक, सरकारी क्षेत्र में 10,370 प्राथमिक पाठशालाएं तथा 1,850 माध्यमिक पाठशालाएं हैं, जो मूलभूत शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को पहचानते हुए, चल रही पहल इस चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए शिक्षकों की नियमित भर्ती को प्राथमिकता देती है।
विशेष रूप से विकलांग बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने, विविध आवश्यकताओं को समायोजित करने वाला एक समावेशी शिक्षण वातावरण बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की नीतियों को निम्नलिखित व्यापक उद्देश्यों के साथ रणनीतिक रूप से कार्यान्वित किया जा रहा है।
1) प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करना।
2) यह सुनिश्चित करना कि सभी बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त हो।
3) राज्य में शिक्षा को हर बच्चे तक पहुंचाना।
राज्य प्रायोजित छात्रवृति योजनाएं- वर्ष 2023-24 में विभिन्न प्रकार के निम्नलिखित प्रोत्साहन दिए गए हैंः
राज्य में शिक्षा पर सर्वाधिक बल दिया जा रहा है। 31 दिसंबर, 2023 तक, सरकारी क्षेत्र में 960 हाई स्कूल, 1,984 सीनियर सेकेंडरी स्कूल और 148 डिग्री कॉलेज, जिनमें 8 संस्कृत कॉलेज, 1 राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एस.सी.ई.आर.टी.), 1 बी.एड. कॉलेज और 1 फाईन आर्ट कॉलेज सहित राज्य में संचालित हैं।
समाज के वंचित वर्गों की शैक्षिक स्थिति में सुधार के लिए राज्य/केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न चरणों में विभिन्न छात्रवृत्ति/वजीफा प्रदान किए जा रहे हैं। छात्रवृत्ति योजनाएँ सारणी 13.2 में दर्शाई गयी हैं।
संस्कृत शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार द्वारा भी निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। गहन विवरण निम्न प्रकार से हैः
1) उच्च/वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ रहे विद्यार्थियों को संस्कृत छात्रवृति प्रदान करना ।
2) संस्कृत पाठशालाओं का आधुनिकीकरण करना।
3) संस्कृत के उत्थान तथा शोध/शोध परियोजनाओं हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना।
वर्ष 2023-24 के दौरान स्टेट एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग काउंसिल सोलन और गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ टीचर एजुकेशन धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश ने ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें स्कूलों और कॉलेजों के 1,474 शिक्षक तथा गैर शिक्षक कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया।
राज्य सरकार 9वीं और 10वीं कक्षा के सभी छात्रों को मुफ्त पाठ्य पुस्तकें प्रदान करती है। 2023-24 के दौरान इस योजना के तहत 1,41,956 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले छात्रों को जमा दो स्तर तक निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है तथा शिक्षा शुल्क और अन्य निधि भी नहीं ली जा रही है। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षा शुल्क में भी छूट प्रदान की गई है।
राज्य में छात्राओं को विश्वविद्यालय स्तर तक बिना किसी शिक्षण शुल्क के निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है।
सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा सभी सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में स्वयं आर्थिक प्रबन्धन आधार पर प्रदान की जाती है, जिसमें छात्र इसे वैकल्पिक विषय के रूप में चुनते हैं। विभाग प्रति छात्र प्रति माह ₹110 का सूचना प्रौद्योगिकी शुल्क लेता है। अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) परिवारों के छात्रों को शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट दी जाती हैै। शैक्षणिक वर्ष 2023-24 में, कुल 81,804 छात्र सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा में नामांकित हैं, और अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) पृष्ठभूमि के 5,654 छात्रों ने इस योजना के अन्तर्गत शुल्क रियायत का लाभ उठाया है।
एकीकृत योजना का मुख्य जोर दो टी‘एस- शिक्षक और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करके स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। योजना के अन्तर्गत सभी हस्तक्षेपों की रणनीति द्वारा स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर सीखने के परिणामों को बढ़ाना है। समग्र शिक्षा 90ः10 (90 प्रतिशत भारत सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकार) के सांझा पैटर्न में चल रही है।
समग्र शिक्षा के अन्तर्गत निम्नलिखित योजनाएँ चल रही हैं-
i) सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ;प्ब्ज्द्ध परियोजना- स्मार्ट क्लास रूम और मल्टी-मीडिया शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग करके शिक्षण और सीखने की गतिविधि को बेहतर बनाने और मजबूत करने के लिए, विभाग ने 2022-23 तक 2,555 सरकारी उच्च/वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में आई.सी.टी. को सफलतापूर्वक लागू किया है और वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान 239 सरकारी स्कूलों को शामिल किया जा रहा है। .
ii) व्यावसायिक शिक्षा- राष्ट्रीय कौशल योग्यता क्वालीफिकेशन फेमवर्क योजना के अन्तर्गत 1,154 स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जा रही है, वर्ष 2023-24 से 120 नए स्वीकृत व्यावसायिक स्कूलों में व्यावसायिक प्रशिक्षकों की भर्ती प्रगति पर है और अप्रैल, 2024 से इन स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी। इस योजना के अन्तर्गत व्यापार यानी कृषि, मेड अप और होम फर्निशिंग, ऑटोमोटिव, सौंदर्य और कल्याण, बी.एफ.एस.आई., इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर हेल्थकेयर, और सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.)/ सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाएं (आई.टी.ई.एस.), मीडिया और मनोरंजन, शारीरिक शिक्षा, प्लंबिंग, निजी सुरक्षा, खुदरा, दूरसंचार और पर्यटन और आतिथ्य छात्रों को सिखाया जा रहा है। राज्य में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने हेतु राज्य सरकार द्वारा 17 व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदाताओं के साथ अनुबंध निष्पादित किये गये हैं।
iii) विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा(सी.डब्ल्यू.एस.एन.)- इस योजना के अन्तर्गत, सभी जिलों में 12 मॉडल स्कूल पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं, जिनमें से 4 स्कूल आवासीय सुविधाओं के साथ हैं और इन स्कूलों में 32 विशेष आवश्यकता वाले छात्र रहते हैं। हिमाचल प्रदेश में, यू-डीआईएसई$ डेटा के अनुसार 5,115 विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान की गई है। वित्त वर्ष 2023-24 में पूर्व-प्राथमिक स्तर पर लगभग 97 विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और प्रारंभिक स्तर पर 3,707 विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और माध्यमिक स्तर पर 1408 विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को औपचारिक स्कूलों में एकीकृत किया गया है। गैर-सरकारी संगठनों और विशेष शिक्षकों की मदद से हिमाचल प्रदेश में 6-18 वर्ष के आयु वर्ग के लिए 1,464 गंभीर और गहन विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए प्रारंभिक स्तर पर घर-आधारित शिक्षा कार्यक्रम लागू किया गया है। वित्तीय वर्ष में 2023-24, हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों के 140 ब्लॉकों में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए चिकित्सा मूल्यांकन शिविर आयोजित किए गए।
iv) कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (के.जी.बी.वी.)- हिमाचल प्रदेश में 14 के.जी.बी.वी. हैं, 14 के.जी.बी.वी. में से ग्यारह जिला चम्बा में और एक जिला शिमला में और दो जिला सिरमौर में हैं। सभी 14 के.जी.बी.वी. पूरी तरह कार्यात्मक हैं और सर्वशिक्षा अभियान के माध्यम से प्रबंधित किए जा रहे हैं। वर्तमान में सभी के.जी.बी.वी. में 830 लड़कियां रह रही हैं। ये सभी छात्रावास सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों या सरकारी उच्च विद्यालयों से जुड़े हुए हैं। छात्रावास में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/आई.आर.डी.पी. से संबंधित लड़कियां रहती हैं। हिमाचल प्रदेश के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ने वाली लड़कियां ज्यादातर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग से हैं।
प्रदेश में उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अभियान (रुसा) चलाया जा रहा है। इस योजना रूसा के अन्तर्गत् 70 कॉलेजों और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एच.पी.य.ू) को अनुदान दिया जा रहा है।
वर्ष 2023-24 के लिए कक्षा 10वीं, 12वीं के मेधावी छात्रों और अंतिम वर्ष (बी.ए., बी.एस.सी.और बी.कॉम.) के कॉलेज के छात्रों को श्रीनिवास रामानुजन डिजिटल डिवाइस योजना के तहत स्मार्ट फोन देने के लिए 10,000 फोन की खरीद की प्रक्रिया चल रही है।
योजना का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के मेधावी छात्रों की सहायता करना है, जिनके परिवार की आय ₹2.50 लाख से अधिक नहीं है, उन्हें संयुक्त कानून प्रवेश परीक्षा (सी.एल.ए.टी.)/राष्ट्रीय योग्यता एवं प्रवेश परीक्षा (एन.ई.ई.टी)/भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-संयुक्त प्रवेश परीक्षा (आई.आई.टी.)/(जे.ई.ई) अखिल भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान(ए.आई.आई.एम.एस.)/सशस्त्र बल चिकित्सा महाविद्यालय (ए.एफ.एम.सी.) राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी (एन.डी.ए.)/संघ लोक सेवा आयोग (यू.पी.एस.सी.)/कर्मचारी चयन आयोग (एस.एस.सी)/बैंकिंग आदि के लिए कोचिंग प्रदान की जाएगी। वर्ष 2023-24 के दौरान चयन प्रक्रिया चल रही है।
छात्रों को सुरक्षा प्रदान करने और सरकारी शैक्षणिक संस्थान में पारदर्शिता लाने के लिए, वर्ष 2023-24 के दौरान 100 सरकारी स्कूलों को सी.सी.टी.वी. निगरानी प्रणाली के तहत कवर किया गया है।
खेल से स्वास्थ्य योजना के अर्न्तगत, विद्यालयों और महाविद्यालयों मे खेलों को बढावा देने के लिए 129 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं और 57 राजकीय महाविद्यालयों मे विभिन्न खेलों का सामान जैसे कि कब्बडी खेल के मैटस, जूडो मैटस, कुश्ती और भारतोलन व मुक्केबाजी के लिए रींगस प्रदान कियें हैैं। वर्ष 2023-24 के दौरान चयन प्रक्रिया चल रही है।
विभाग द्वारा इस योजनान्तर्गत व्यवसायिक/तकनीकी पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु कोचिगं के लिए सरकारी विद्यालयों के 10वीं कक्षा के शीर्ष 100 मेधावी विद्यार्थियों को ₹1.00 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है तथा इसके लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान ₹1.10 करोड़ की राशि को स्वीकृत किया गया है, चयनित छात्रों को भुगतान वितरण की प्रक्रिया चल रही है।
सी.वी. रमन वर्चुअल क्लासरूम योजना के अर्न्तगत चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में 20 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक (जी.एस.एस.) विद्यालयों एवं 13 महाविद्यालयों में वर्चुअल क्लास रूम स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है।
माननीय राज्यपाल द्वारा दिनांक 5 सितम्बर, 2021 को शिक्षक दिवस के अवसर पर स्कूलों में “स्वर्ण जयंती विद्यार्थी अनुशिक्षण योजना” का आरम्भ किया गया है जिसके अन्तर्गत 9वीं से 12वीं कक्षाओं में पढने वाले विद्यार्थियों को जे.ई.ई.-एन.ई.ई.टी. प्रवेश परीक्षा के लिए निःशुल्क कोचिंग प्रदान की जा रही है। प्रत्येक शनिवार और रविवार को इसके लिए अध्यन सामग्री हर घर पाठशाला पोर्टल पर अपलोड की जा रही है।
राज्य के 20 महाविद्यालयों में दो क्षेत्रों रिटेल मैनेजमेंट और हॉस्पिटैलिटी एंड टूरिज्म में बी. वोक डिग्री प्रोग्राम शुरू हुआ। ये कॉलेज हैं राजकीय महाविद्यालय बिलासपुर, चंबा, धर्मशाला (कांगड़ा), नूरपुर (कांगड़ा), कुल्लू, मंडी, संजौली (शिमला), रामपुर (शिमला), ऊना, हमीरपुर, सोलन, नाहन (सिरमौर), ढलियारा (कांगड़ा), घुमारवीं (बिलासपुर), सरकाघाट (मंडी), हरिपुर (कुल्लू), सीमा (शिमला) और राजकीय कन्या महाविद्यालय (आर.के.एम.वी.) शिमला, जिनमें कुल 3,050 छात्र शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान प्रशिक्षण/नामांकित किए गए हैं।
मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश ने वर्ष 2023-24 के बजट भाषण में हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (ए.सी.) में एक “राजीव गांधी सरकारी मॉडल डे-बोर्डिंग स्कूल” खोलने की घोषणा की है। यह वांछित है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में राजीव गांधी सरकारी मॉडल डे-बोर्डिंग स्कूल का निर्माण किया जाएगा, जिसमें प्री-प्राइमरी से 12वीं तक की कक्षाओं में कम से कम 900-1000 छात्रों को समायोजित करने की क्षमता हो। अन्य सुविधाएं जैसे हाईटेक स्मार्ट क्लास रूम, इनडोर स्टेडियम/खेल के मैदान और स्विमिंग पूल आदि अन्य सुविधाएं भी संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार प्रदान की जाएंगी। राज्य के 18 विधानसभा क्षेत्रों में 18 स्थलों के लिए फिलहाल सरकार से मंजूरी मिल गई है इसके लिए वर्ष 2023-24 के लिए ₹25.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
अपना विद्यालय हिमाचल स्कूल दत्तक ग्रहण कार्यक्रम को हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 3 जनवरी, 2024 को अधिसूचित किया गया है, जिसका उद्देश्य सरकारी स्कूलों के सुधार में सामूहिक रूप से योगदान देने के लिए सार्वजनिक प्रतिनिधियों, प्रशासनिक नेताओं और कुशल पेशेवरों के बीच एक सहक्रियात्मक साझेदारी बनाना है। हिमाचल ने लगातार शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है और राज्य के लोगों ने शिक्षा के महत्व को आत्मसात कर लिया है। राज्य सरकार ने पहुंच, नामांकन, लैंगिक समानता और प्रतिधारण के मुद्दे को हल करने के लिए दशकों से भारी मात्रा में धन का निवेश किया है। अब हमें अपना ध्यान हटाकर सीखने के परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। यह देखा गया है कि छात्रों का खराब प्रदर्शन आज हमारे सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक है। यह एक तथ्य है (जैसा कि वार्षिक ए.एस.ई.आर. रिपोर्ट में संकेत दिया गया है) कि छात्रों का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत, यहां तक कि उन्नत ग्रेड में भी, अपनी मूल भाषाओं में पढ़ने और लिखने में दक्षता हासिल करने के लिए संघर्ष करते हैं, अंग्रेजी में तो बात ही छोड़ दें। इसके अतिरिक्त, इनमें से आधे से अधिक छात्रों के पास जोड़ या घटाव जैसे आधार अंकगणितीय संचालन करने के लिए मूलभूत कौशल का अभाव है। बुनियादी कौशल में यह गंभीर कमी विशेष रूप से उच्च ग्रेड के माध्यम से प्रगति करने वाले छात्रों के बीच स्पष्ट है, जो वर्तमान प्रणाली में पर्याप्त अंतर का संकेत देती है।
यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में समाज के हाशिए पर रहने वाले तबके के बच्चे रह गए हैं। बाकी लोग तथाकथित निजी स्कूलों में चले गए हैं जो महत्वाकांक्षी बन गए हैं। जिस किसी के पास अतिरिक्त खर्च योग्य आय है वह चाहता है कि उसका बच्चा अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूल में जाए। परिणामस्वरूप, सरकारी स्कूलों के लिए सामुदायिक समर्थन में गिरावट आई है। भविष्य को देखते हुए स्कूलों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए, सरकारी स्कूलों को अपनाने की अवधारणा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन.ई.पी.) 2020 के अनुरूप शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए एक अनूठी पहल के रूप में उभरती है। यह पहल राजनीतिक नेताओं, वरिष्ठ नौकरशाहों, सेवानिवृत्त कर्मियों और कुशल व्यक्तियों द्वारा सरकारी स्कूलों की स्वैच्छिक गोद लेने का प्रस्ताव करती है, जिससे शिक्षा परिदृश्य के उत्थान के लिए एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं।
स्कूल गोद लेने के कार्यक्रम का उद्देश्य-
i) सरकारी स्कूलों के सुधार में सामूहिक रूप से योगदान देने के लिए जन प्रतिनिधियों, प्रशासनिक नेताओं और कुशल पेशेवरों के बीच एक सहक्रियात्मक साझेदारी बनाना। व्यापक लक्ष्य छात्रों के लिए सीखने के माहौल, बुनियादी ढांचे और समग्र शैक्षिक अनुभव को बढ़ाना है।
ii) राज्य के सरकारी स्कूलों में सीखने की कमियों को दूर करने के लिए, विभिन्न रिपोर्ट/सर्वेक्षण (एन.ए.एस., 2021, पी.जी.आई. और ए.एस.ई.आर. 2022 सहित) सरकारी स्कूलों के छात्रों के प्रदर्शन में गिरावट की प्रवृत्ति दर्ज करते हैं। ये अध्ययन और सर्वेक्षण इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि स्कूलों के खराब प्रदर्शन का सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के भीतर स्वामित्व और समर्थन की कमी से गहरा संबंध है।
iii) सामुदायिक सहायता के माध्यम से स्कूलों में बुनियादी ढांचे और संसाधन की कमी को दूर करना।
स्कूल दत्तक ग्रहण कार्यक्रम की चार धाराएँ-
i) स्कूल संरक्षक अभियान
ii) स्कूल मेंटर अभियान
iii) मेरा विद्यालय-मेरा गौरव अभियान
iv) स्कूल की शैक्षणिक सहायता टीम
v) स्कूल सहायता टीमरू गैर-शैक्षणिक
vi) वित्तीय अंगीकरण
vii) संवाद अभियान
अपना विद्यालय के लाभ-
i) नागरिक कर्तव्य को बढ़ावा देना
ii) स्कूल विजन और सामुदायिक सहभागिता को मजबूत करना
iii) स्कूल के बुनियादी ढांचे और सेवाओं पर प्रभाव
iv) स्कूलों को सलाह देना
v) शैक्षिक सुधार के लिए स्थायी मॉडल का विकास करना
विभाग हिमाचल प्रदेश में तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक और औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। यह अब उस स्तर पर पहुंच गया है जहां इंजीनियरिंग/फार्मेसी करने के इच्छुक छात्र राज्य भर के विभिन्न संस्थानों में सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों के साथ-साथ डिप्लोमा और डिग्री कार्यक्रमों में दाखिला ले सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना में हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम (एच.पी.के.वी.एन.) और 68 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आई.टी.आई.) के बीच सहयोग शामिल है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के युवाओं को राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एन.एस.क्यू.एफ.) के अनुरूप लघु अवधि कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) के माध्यम से इस साझेदारी को औपचारिक रूप दिया है। इस पहल के तहत प्रदान किए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों या पाठ्यक्रमों की अवधि अलग-अलग होती है, जो 200 घंटे से लेकर 1,000 घंटे तक होती है। तीन वर्षों में 68 आई.टी.आई. द्वारा 19,663 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव है। दिसंबर, 2023 तक 13,589 प्रशिक्षुओं को अल्पकालिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए नामांकित किया गया है, जिनमें से 10,143 को उचित मूल्यांकन के बाद संबंधित क्षेत्र कौशल परिषद द्वारा प्रमाणित किया गया था।
स्ट्राइव केंद्र प्रायोजित परियोजना के अन्तर्गत्, 19 आई.टी.आई. को उनकी सुविधाओं में वृद्धि के लिए चुना गया है, जिसका उद्देश्य छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाला प्रशिक्षण प्रदान करना है । इस पहल के लिए ₹30.71 करोड़ की राशि आवंटित की गई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, संबंधित आई.टी.आई. को उनके आवंटन के आधार पर ₹4.88 करोड़ स्वीकृत और वितरित किए गए हैं। इसके अलावा, वर्ष 2023-24 में उद्योग क्लस्टर (आई.सी.) बी.बी.एन.आई.ए.-आई.सी. के लिए राज्य प्रशिक्षुता निगरानी सेल (एस.ए.एम.सी.) के माध्यम से ₹36.68 लाख की धनराशि प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त, दो और उद्योग क्लस्टर, अर्थात् जे.एल.य.ूएस. बिलासपुर और एच.सी.सी.आई. पांवटा साहिब, को परियोजना में शामिल किया गया है इनमें से प्रत्येक क्लस्टर को वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान ₹14.95 लाख प्राप्त हुए हैं।
1) रोबोटिक्स, सेमी-कंडक्टर इको-सिस्टम, मशीन लर्निंग और प्रबंधन विकास कार्यक्रम आदि में आई.,आई.टी. और आई.आई.एम. जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में 77 संकायों और 43 छात्रों को अल्पावधि प्रशिक्षण प्रदान किए गए हैं।
2) राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (एन.आई.टी.टी.टी. आर.), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हिमाचल प्रदेश लोक प्रशासन संस्थान (हिपा) आदि द्वारा संचालित संकाय विकास कार्यक्रम ने 390 से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया है।
3) 1,258 फैकल्टी और 8,954 छात्रों ने मैसिव ओपन ऑनलाइन/स्वयं पाठ्यक्रमों में पंजीकरण/भाग लिया है ।
4) नए युग के पाठ्यक्रम यानी सरकारी हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज बंदला में कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग (कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा विज्ञान) डिग्री पाठ्यक्रम, सरकारी पॉलिटेक्निक रोहड़ू में कंप्यूटर इंजीनियरिंग और आई.ओ.टी. पाठ्यक्रम सरकारी पॉलिटेक्निक चंबा में ममेक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा शुरू करने के साथ-साथ सुलह (कांगड़ा) में एक नया सरकारी फार्मेसी कॉलेज भी शुरू कर दिया गया है।
5) राष्ट्रीय प्रशिक्षु प्रशिक्षण के तहत 49 प्रशिक्षुओं और इंजीनियरिंग कॉलेजों, पॉलिटेक्निक और फार्मेसी कॉलेजों में राष्ट्रीय प्रशिक्षु संवर्धन योजना के तहत 15 प्रशिक्षुओं को शामिल किया गया है, जिसमें प्रत्येक प्रशिक्षु को उनके प्रशिक्षण अवधि के दौरान स्टाईपण्ड प्रदान किया जाता है।
वर्ष 2023 के लिए ए.एस.ई.आर. (शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट) रिपोर्ट हिमाचल प्रदेश के 1,202 घरों में रहने वाले 1,360 युवाओं, विशेष रूप से कांगड़ा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर एक विश्लेषण प्रस्तुत करती है। अध्ययन में इस जिले के 60 गांवों को शामिल किया गया है। रिपोर्ट इस क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाते हुए विभिन्न चित्रों के माध्यम से प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डालती है।
उपरोक्त आंकड़ा प्रतिशत के रूप में युवाओं के नामांकन की स्थिति को दर्शाता है। 14 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में महिला विद्यार्थियों (33.5 प्रतिशत) की तुलना में दसवीं तक के स्कूलों में पुरुष छात्रों का नामांकन (38.9 प्रतिशत) अधिक है। वरिष्ठ माध्यमिक स्तर यानी कक्षा ग्यारहवीं और बारहवीं में समान आयु वर्ग में महिला छात्रों का नामांकन पुरुष छात्रों (41.3 प्रतिशत) की तुलना में अधिक (43.4 प्रतिशत) है। अंडर-ग्रेजुएट या अन्य (युवा जो स्नातक की डिग्री या सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स करने के लिए कॉलेज में नामांकित हैं) के मामले में भी, महिला छात्रों का नामांकन पुरुष छात्रों (8.1 प्रतिशत) की तुलना में अधिक (16.2 प्रतिशत) है। इसके अलावा, नामांकित नहीं की श्रेणी में ऐसे युवा शामिल हैं जिन्होंने कभी नामांकन नहीं किया या पढ़ना छोड़ दिया है, वहां 11.7 प्रतिशत पुरुष और केवल 6.9 प्रतिशत महिलाएं हैं।
उपरोक्त आंकड़े में प्रतिशत मानक के अनुसार बच्चों की पढ़ने की क्षमता को दर्शाता है, क्योंकि पढ़ना अपने आप में एक प्रगतिशील उपकरण है। बुनियादी पढ़ने के मापदंडों का विश्लेषण करते समय, कम से कम कक्षा द्वितीय स्तर का पाठ पढ़ने में दोनों आयु समूहों (14 से 16 वर्ष और 17 से 18 वर्ष) में महिला युवाओं के प्रतिशत में वृद्धि देखी गई है। जबकि सभी श्रेणियों के मामले में पुरुष और महिला दोनों युवाओं का प्रतिशत समान यानी 88.6 प्रतिशत है, जो कम से कम द्वितीय कक्षा स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं।
चित्र 13.3 प्रतिशत के संदर्भ में युवाओं के आयु समूह और लिंग के आधार पर बुनियादी अंग्रेजी पढ़ने की क्षमता प्रस्तुत करता है। अंग्रेजी वाक्यों को आसानी से पढ़ने वाली महिला युवाओं का प्रतिशत 90.4 है, जबकि 14 से 16 वर्ष के आयु वर्ग में पुरुष युवाओं का प्रतिशत 84.2 प्रतिशत है। दूसरी ओर 17 से 18 वर्ष के एक अन्य आयु वर्ग में, अंग्रेजी वाक्य पढ़ने की क्षमताओं में महिला युवाओं (84.2 प्रतिशत) की तुलना में पुरुष युवाओं (84.9 प्रतिशत) का प्रतिशत थोड़ा अधिक है।
चित्र 13.4 उन युवाओं का संक्षिप्त विश्लेषण प्रतिशत के रूप में प्रस्तुत करता है जो रोजमर्रा की गणना कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि सभी निर्दिष्ट कार्यों यानी समय की गणना, वजन जोड़ना, लंबाई मापना, सभी आयु समूहों में एकात्मक विधि लागू करना आदि में पुरुष युवाओं का प्रतिशत महिलाओं की तुलना में अधिक है।
उपरोक्त आंकड़ा हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण युवाओं के बीच डिजिटल उपकरणों की पहुंच और स्वामित्व को प्रतिशत के संदर्भ में दर्शाता है। स्मार्टफोन की उपलब्धता और उपयोग के एक संक्षिप्त विश्लेषण से पता चलता है कि कुल मिलाकर (14-18 वर्ष) 99.5 प्रतिशत युवा स्मार्टफोन का उपयोग कर सकते हैं, 98.6 प्रतिशत युवाओं के पास घर पर स्मार्टफोन है, 89.5 प्रतिशत युवा डिजिटल कार्य करने के लिए स्मार्टफोन ला सकते हैं (जैसे कि अलार्म सेट करना, जानकारी ब्राउज़ करना, गूगल मैप का उपयोग करना, यूट्यूब वीडियो ढूंढना और सांझा करना) और उनमें से 40.0 प्रतिशत ऐसे हैं जो स्मार्टफोन का उपयोग कर सकते हैं और उनके पास अपना स्मार्टफोन है।

14.स्वास्थ्य

स्वास्थ्य की अवधारणा समय के साथ एक परिवर्तनकारी यात्रा से गुजरी है। प्रारंभ में बायोमेडिकल परिपेक्ष में स्वास्थ्य की प्रारंभिक परिभाषा शरीर की कार्यात्मक क्षमता के आसपास केंद्रित थी। स्वास्थ्य को सामान्य स्थिति के रूप में माना जाता था जो कभी-कभी बीमारी से बाधित हो सकती थी। रोग को एक स्थिर अवस्था के बजाय एक प्रक्रिया के रूप में समझने की परिभाषा में भी एक समानांतर बदलाव आया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने स्वास्थ्य संवर्धन आंदोलनों का समर्थन करके इस विकास को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डब्ल्यू.एच.ओ.के अनुसार, श्स्वास्थ्य को अब केवल बीमारी या विकलांगता की अनुपस्थिति के बजाय पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया हैश्। यह समग्र परिपेक्ष किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हुए कल्याण की व्यापक स्थिति पर जोर देता है। संयुक्त राष्ट्र (यू.एन.) द्वारा अपने सतत विकास लक्ष्य रु3 के तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल पर भी जोर दिया गया है, जो 2030 तक सभी उम्र के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और कल्याण को बढ़ावा देने की घोषणा करता है। स्वास्थ्य क्षेत्र में गतिविधियों का एक बहुत ही विविध सेट शामिल है इसमें न केवल बीमारियों का पता लगाने वाली सेवाएं शामिल हैं बल्कि इसकी रोकथाम और जागरूकता भी शामिल है।
स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के बीच आंतरिक संबंध को पहचानते हुए, इस धारणा पर विश्वास है कि स्वास्थ्य देखभाल में निवेश समग्र कल्याण में सुधार में योगदान देता है, जिससे अधिक उत्पादक आबादी बनती है और एक कुशल कार्यबल को बढ़ावा मिलता है। नतीजतन, यह निवेश किसी देश के भीतर सामाजिक और आर्थिक प्रगति को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देता है।
हिमाचल प्रदेश ने अपने स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश किया है, जो प्रति व्यक्ति उपलब्धता के मामले में देश में सर्वश्रेष्ठ में से एक है। पहाड़ी इलाके के बावजूद, ये निवेश पंहुच बनाने में प्रभावी थे। राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ.एच.एस.) के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश परिवार बीमार होने पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करते हैं। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ उपयोगकर्ताओं की संतुष्टि का ठोस सबूत है। भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आई.एच.डी.एस.) से यह भी पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश में बड़ी संख्या में लोग सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करते हैं।
यह सराहनीय है कि हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने अपने नागरिकों की भलाई को प्राथमिकता दी है और अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण व्यक्त किया है। व्यापक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने, संचारी और गैर-संचारी दोनों प्रकार की बीमारियों को खत्म करने और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करना जनसंख्या के समग्र स्वास्थ्य में सुधार के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है।
गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचा सामान्य तौर पर सामाजिक क्षेत्र और विशेष रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्य की प्रगति का एक आवश्यक संकेतक है। राज्य सरकार ने अपने नागरिकों को व्यापक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा विकसित करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने 115 सिविल अस्पतालों, 104 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, 580 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, 16 ई.एस.आई. सिविल औषधालयों और 2,114 स्वास्थ्य उप केंद्रों सहित स्वास्थ्य सुविधाओं के एक सुस्थापित नेटवर्क की उपस्थिति के साथ उपचारात्मक, निवारक और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाया है।
व्यापक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता से महत्वपूर्ण सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। इनमें जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्यु दर, नवजात मृत्यु दर, 5 वर्ष से कम उम्र की मृत्यु दर में कमी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, प्रसव देखभाल, टीकाकरण दर और मातृ स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जैसा कि नीचे दिए गए चित्रों में दिखाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा पिछले कुछ वर्षों से बढ़ती जा रही है और वर्तमान में राष्ट्रीय औसत से अधिक है (चित्र 14.1)। समग्र जीवन प्रत्याशा 2014-18 में 72.9 से बढ़कर 2016-20 में 73.5 हो गई है। 2016-20 के दौरान, पुरुष और महिला की जीवन प्रत्याशा क्रमशः 70.3 और 77.5 वर्ष थी। पुरुष जीवन प्रत्याशा की तुलना में उच्च महिला जीवन प्रत्याशा राष्ट्रीय प्रवृत्ति का अनुसरण करती है। हिमाचल प्रदेश की जीवन प्रत्याशा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम जैसे कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है।ी तुलहिमाचल प्रदेश

शिशु मृत्यु दर (आई.एम.आर.), 5 वर्ष से कम उम्र की मृत्यु दर(यू5एम.आर.) और नवजात मृत्यु दर (एन.एन.एम.आर.) के प्रदर्शन में सुधार- एन.एन.एम.आर., आई.एम.आर. और यू 5 एम.आर. की घटनाओं में गिरावट की प्रवृत्ति रही है, जो बाल स्वास्थ्य में सुधार का संकेत दे रही है। हिमाचल प्रदेश में परिदृश्य. 2005-06 और 2019-21 के दौरान हिमाचल प्रदेश का आई.एम.आर. 36 से घटकर 25.6 हो गया। इसी प्रकार, प्रति 1000 जीवित जन्मों पर न्5डत् इसी अवधि के दौरान 42 से घटकर 28.9 हो गया है। आई.एम.आर., यू.5एम.आर. और एन.एन.एम.आर. की राज्य की औसत भारतीय औसत से कम है (चित्र 14.2, चित्र 14.3 और चित्र 14.4)।
शिशु और बाल मृत्यु दर में गिरावट काफी हद तक आई.एम.आर. मिशन (2001) और छोटे बच्चों के लिए घर आधारित देखभाल (2019) जैसे विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप का परिणाम है। इसके अलावा, नवजात देखभाल केंद्रों, नवजात स्थिरीकरण इकाइयों, बीमार नवजात देखभाल इकाइयों, पोषण पुनर्वास केंद्रों आदि का निर्माण जैसी सुधारात्मक रणनीतियों के कार्यान्वयन ने भी इन परिणामों को सक्षम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है त्र 14.5म

बेहतर प्रसव देखभाल के परिणामस्वरूप उच्च संस्थागत प्रसव दर- प्रसव जटिलताओं की रोकथाम, पता लगाने और प्रबंधन के साथ-साथ एम.एम.आर. और आई.एम.आर. को कम करने के लिए संस्थागत प्रसव महत्वपूर्ण है। राज्य में संस्थागत प्रसव दर 2005-2006 (एन.एफ.एच.एस.-3) में 43.1 प्रतिशत से बढ़कर 88.2 प्रतिशत (एन.एफ.एच.एस.-5) हो गई है और अब यह राष्ट्रीय औसत (चित्र 14.5) के लगभग बराबर है। जननी सुरक्षा योजना (जे.एस.वाई.), जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जे.एस.एस.के.) मुफ्त दवा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पी.एम.एस.एम.ए.), 108 एम्बुलेंस सेवाओं और अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों जैसी सरकारी नीतिगत पहलों के कार्यान्वयन ने राज्य की संस्थागत डिलीवरी को बेहतर बनाने में योगदान दिया है।

पूर्ण टीकाकरण की दिशा में एक प्रगतिशील कदम- सरकार राज्य में बच्चों के पूर्ण टीकाकरण के लिए कई कार्यक्रम चला रही है। परिणाम स्वरूप, 2019-21 में 12-23 महीने की आयु के 89.3 प्रतिशत बच्चों का पूर्ण टीकाकरण किया गया है, जो 2005-06 के दौरान 74.2 प्रतिशत से एक उल्लेखनीय सुधार है (एन.एफ.एच.एस. 3) (चित्र 14.6)। टीकाकरण रिकॉर्ड को डिजिटल करने के लिए हिमाचल प्रदेश में यू-विन प्लेटफॉर्म का भी उपयोग किया जा रहा है। इस प्रकार राज्य में पूर्ण टीकाकरण कवरेज को बढ़ाया गया है।
राज्य में मातृ स्वास्थ्य में सुधारः जननी सुरक्षा योजना और 108/102 जननी एक्सप्रेस एम्बुलेंस सेवाओं, मातृ मृत्यु अनुपात (एम.एम.आर.) जैसे प्रमुख हस्तक्षेपों के कार्यान्वयन के कारण हिमाचल ने मातृ और प्रजनन स्वास्थ्य संकेतकों पर महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। राज्य में मातृ मृत्यु अनुपात (एम.एम.आर.) में गिरावट आ रही है। वर्ष 2022-23 में अप्रैल, 2022 से मार्च, 2023 के दौरान कुल मातृ मृत्यु 54 थी और वर्ष 2023-24 में अप्रैल, 2023 से दिसंबर, 2023 तक यह 31 थी।
कुल प्रजनन दर (टी.एफ.आर.) का उपयोग किसी महिला की प्रजनन अवधि के दौरान बच्चे पैदा करने की क्षमता को मापने के लिए किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में टी.एफ.आर. समय के साथ गिरा है और राष्ट्रीय औसत से कम है। चित्र 14.7
वर्ष 2023-24 के दौरान राज्य में विभिन्न स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रर्मों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से हैः
वर्तमान में चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान निदेशालय (डी.एम.ई.) के अन्तर्गत सरकारी क्षेत्र में छह मेडिकल कॉलेज, एक डेंटल कॉलेज, एक अटल मेडिकल एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी और एक अटल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सुपर स्पेशलिटी काम कर रहे हैं, इसके अलावा निजी क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज और चार डेंटल कॉलेज हैं। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पी.एम.एस.एस.वाई.) के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना की गई है। वर्ष 2023-24 के दौरान 11 जनवरी, 2024 तक की राशि का संस्थानवार धन का बजटीय आवंटन और व्यय निम्न सारणी 14.4 में दिया गया हैः
चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में शैक्षणिक उपलब्धियां इस प्रकार हैंः
i) बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी (एम.बी.बी.एस.) और पोस्ट ग्रेजुएट (पी.जी.)- शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान, सरकारी और निजी क्षेत्र में कुल 870 एम.बी.बी.एस. सीटें भरी गईं (720 सरकारी और 150 निजी क्षेत्र में)। अन्य 333 स्नातकोत्तर (एम.डी./एम.एस.) सीटें विभिन्न विशिष्टताओं में सरकारी (241 सीटें) निजी मेडिकल कॉलेजों में (92 सीटें) और निजी मेडिकल कॉलेजों में आवंटित की गईं।
ii) बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बी.डी.एस.) और मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी (एम.डी.एस.)- शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बी.डी.एस.) की 295 सीटें (सरकारी डेंटल कॉलेज में 75 और निजी क्षेत्र में 220) भरी गईं। इसी तरह से सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी (एम.डी.एस.) की 100 सीटें (सरकारी डेंटल कॉलेज में 23 और निजी डेंटल कॉलेजों में 77) भरी गईं।
iii) नर्सिंग- शैक्षणिक सत्र 2023-24 में सहायक नर्स मिडवाइफ (ए.एन.एम.) प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए 334 सीटें, जनरल नर्सिंग और मिडवाइफरी (जी.एन.एम.) पाठ्यक्रम के लिए 1,590 सीटें, 1,940 बी.एस.सी. नर्सिंग, पोस्ट बेसिक बी.एस.सी. नर्सिंग की 655 एवं एम.एस.सी. नर्सिंग डिग्री कोर्स की 201 सीटों की स्वीकृति विभिन्न सरकारी एवं निजी संस्थानों में प्रदान की गयी है।
iv) छात्रवृत्ति/वजीफा- राज्य सरकार ने बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ सर्जरी (एम.बी.बी.एस.) के स्टाइपेंड को ₹17,000 से बढ़ाकर ₹20,000 प्रति माह कर दिया है।
v) डिप्लोमेट ऑफ नेशनल बोर्ड (डी.एन.बी.) पाठ्यक्रम- शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान, राज्य के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेजों में 28 डीएनबी सीटें आवंटित की गईं यानि डॉ. राजिन्द्र प्रसाद गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, कांगड़ा, टांडा में (पोस्ट एम.बी.बी.एस. डी.एन.बी. एक विशिष्टता में 2 सीटें), श्री लाल बहादुर शास्त्री गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, मंडी नेरचवोक (पोस्ट एम.बी.बी.एस. के बाद डी.एन.बी. की 7 विशिष्टताओं में 14 सीटें), डॉ. राधाकृष्णन गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, हमीरपुर (एम.बी.बी.एस. के बाद डी.एन.बी. की 5 विशिष्टताओं में 10 सीटें) और पं. जवाहर लाल नेहरू सरकारी मेडिकल कॉलेज, चंबा ( पोस्ट एम.बी.बी.एस. डी.एन.बी. की एक विशेषज्ञता में 2 सीटें)। इसी तरह, राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों यानी श्री लाल बहादुर शास्त्री गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, मंडी नेरचवोक में डिप्लोमा सीटें आवंटित की गईं (डिप्लोमा डी.एन.बी. की 5 विशिष्टताओं में 8 सीटें), डॉ. राधाकृष्णन गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, हमीरपुर (डी.एन.बी. डिप्लोमा की तीन विशिष्टताओं में 6 सीटें)।
vi) सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रम- शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आई.जी.एम.सी.) और अस्पताल शिमला में विभिन्न विशिष्टताओं में सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रमों में 7 सीटें भरी गईं और 4 सीटें डी.एन.बी. सुपर स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों के तहत डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (आर.पी.जी.एम.सी.) और अस्पताल, कांगड़ा, टांडा को आवंटित की (डी.एन.बी. न्यूरोलॉजी की 2 सीटें और डी.एन.बी. कार्डियोलॉजी की 2 सीटें)। दिसम्बर, 2023 तक संस्थानवार प्रमुख उपलब्धियां सारणी 14.5 में दी गई हैःा
प्रारंभ में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग एलोपैथिक के अलावा राज्य में आयुर्वेद के सभी संस्थानों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार था। आयुर्वेद प्रदेश में व्यापक रूप से स्वीकार्य है। भारतीय चिकित्सा पद्धतियों और होम्योपैथी ने हिमाचल प्रदेश राज्य की स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस विभाग में आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी चिकित्सा प्रणालियाँ शामिल हैं। भारत सरकार ने इस विभाग का नाम अब आयुष रखा गया है। प्रदेश में भी इस विभाग को आयुष के नाम से जाना जाता है। आयुष विभाग हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आयुष स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के माध्यम से आम जनता को प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं सारणी 14.6 में दर्शायी गई हैंः
1) राज्य में विभिन्न आयुर्वेदिक संस्थानों में हर्बल गार्डन की 421 इकाइयाँ स्थापित की गई हैं, जिसके लिए राज्य औषधीय पादप बोर्ड द्वारा अपने हर्बल गार्डन और नर्सरी से 37,000 औषधीय पौधे उपलब्ध कराए गए हैं।
2) “विथानिया सोम्नीफेरा (अश्वगंधा) पर राष्ट्रव्यापी अभियान“-“अश्वगंधा-एक स्वास्थ्य प्रवर्तक“ नामक एक परियोजना प्रस्ताव को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है।
3) राज्य के 75 स्कूलों में इन उद्यानों की स्थापना के लिए ₹39.75 लाख की राशि “हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग के तहत स्कूलों में हर्बल गार्डन की स्थापना नामक परियोजना प्रस्ताव को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है।
4) चार विभागीय हर्बल उद्यानों में विशिष्ट औषधीय पौधों के कॉरिडोर स्थापित किए गए, प्रत्येक हर्बल उद्यान निम्नलिखित विवरण के अनुसार 5 बीघे क्षेत्र को कवर करता हैः
i) हर्बल गार्डन, जोगिंदर नगर, जिला मंडी में तेजपत्ता कॉरिडोर ।
ii) हर्बल गार्डन, नेरी, जिला हमीरपुर में अर्जुन कॉरिडोर ।
iii) हर्बल गार्डन, जंगल झलेरा, जिला बिलासपुर में मोरिंगा कॉरिडोर ।
iv) हर्बल गार्डन, डुमरेड़ा, जिला शिमला में टैक्सस कॉरिडोर।

15.समाज कल्याण

हिमाचल प्रदेश सरकार महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों, विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सहित सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों की भलाई के लिए समर्पित है। कल्याणकारी कार्यक्रमों की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि यह सुनिश्चित हो की लागू किए जाने वाले कार्यक्रम विशेष वर्गों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हैं और व्यवस्थित रूप से प्रदेय सरकार के नियोजित सामाजिक लक्ष्यों को पूरा करते हो।
निदेशालय अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक मामलों के सशक्तिकरण विशेष रूप से दिव्यागों के अधिकारिता (ईसोमा), विभाग की है। विभाग के कार्यक्रम मुख्य रूप से इन लोगों की सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों को बढ़ाने पर केंद्रित हैं ताकि उन्हें हर प्रकार से समाज में जोड़ा जा सके। लक्ष्य समूहों का सामाजिक, शिक्षात्मक और आर्थिक विकास ईसोमा विभाग के कार्यक्रमों और योजनाओं में प्राथमिकता पर रहा है जिसके परिणामस्वरूप इन समूहों के लोगों के जीवन में काफी सुधार हुआ है। सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से अत्यधिक अभाव, जोखिम और कमजोरियों दोनों को दर्शाता है। अगर सब कुछ बाजार और विकास के भरोसे छोड़ दिया जाए तो असमानता को दूर नहीं किया जा सकता है। यह न केवल सामाजिक असुरक्षा जैसे (बीमारी, बुढ़ापा, बेरोजगारी और सामाजिक बहिष्कार) से संबंधित है, बल्कि उन कार्यक्रमों से भी संबंधित है जो गरीबों के लिए आय प्रदान करते हैं। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का अस्तित्व सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने और मानव पूंजी के अपूरणीय नुकसान को रोकने में मदद करता है। सिद्धांत और शोध के अनुसार सामाजिक सुरक्षा उपाय अधिक विकास और असमानता को कम करने के लिए फायदेमंद हैं। सामाजिक सहायता कार्यक्रमों के लिए निम्नलिखित पेंशन योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैंः
वृद्धावस्था पेंशन योजना- वृद्धावस्था पेंशन योजनाएं यह सुनिश्चित करने की पहल हैं कि जिन व्यक्तियों के पास जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं तक पहुंच नहीं है, उन्हें बेहतर संसाधनों की पहुंच प्रदान की जा जाती है।
दिव्यांगता राहत भत्ता- इस योजना के तहत 40 प्रतिशत और उससे अधिक दिव्यंाग व्यक्तियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाती है, ताकि वे अपने जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें।
विधवा/परित्यक्ता/एकल नारी पेंशन- विधवा/परित्यक्ता/एकल नारी पेंशन योजना विधवाओं को त्रैमासिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है जिसका लक्ष्य एक सुरक्षित और बेहतर रहने का वातावरण सुनिश्चित करना है।
कुष्ठ रोगियों के लिए पुनर्वास भत्ता- कुष्ठ पीड़ितों को त्रैमासिक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, इसके लिए कोई भी आयु और आय की सीमा नहीं है।
ट्रांसजेंडर पेंशन- ट्रांसजेंडर पेंशन उन लोगों को दी जाती है जिन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के राज्य/जिला स्तर के मेडिकल बोर्ड द्वारा उनकी आयु और आमदनी के बिना अनुमोदित किया गया है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन (बी.पी.एल.)- इस कार्यक्रम के तहत, प्राप्तकर्ता जो कम से कम 60 वर्ष के हैं और बी.पी.एल. परिवारों से सम्बन्धित हैं, उन्हें त्रैमासिक वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन- यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली विधवाओं की मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि अगर वे गरीबी रेखा से नीचे आती हैं तो उन्हें सरकारी वित्तीय लाभ मिलते हैं।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के अर्न्तगत शुरू किया गया एक कार्यक्रम है जो विकलांग व्यक्तियों जिनकी अपंगता 80 प्रतिशत से अधिक है को उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए त्रैमासिक पेंशन प्रदान करता है। राज्य की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाएं का विवरण सारणी 15.1 में दर्शाया गया है।

राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना- इस कार्यक्रम के तहत, बी.पी.एल. परिवार के परिवार को 18 से 59 वर्ष की आयु के प्राथमिक कमाने वाले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना मे ृ20,000 रुपये की राशि मदद के रुप में मिलेगी, जब उस परिवार के आजीविका कमाने वाले का निधन हो जाता है। दिसम्बर, 2023 तक 482 परिवारों को वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।
इंदिरा गांधी महिला सम्मान निधि योजना- राज्य की प्रत्येक महिला को सशक्त और सक्षम बनाने के लिए प्रति माह ृ1500 प्रदान करने के उद्देश्य से, जिला लाहौल-स्पीति के स्पीति क्षेत्र की महिलाओं के लिए 15.05.2023 को “इंदिरा गांधी महिला सम्मान निधि योजना 2023“ घोषित की गई है। 120.39 लाख रुपये का बजट प्रावधान किया गया है तथा पात्र 803 महिलाआंे को सहायता दी गई।
स्व-रोजगार योजनाएँ- हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास निगम (एचपीएससी और हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति विकास निगम, हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम हिमाचल प्रदेश एवं अल्पसंख्यक एवं विकास निगम अनेक स्वयं रोजगार योजनाएं चलाने हेतु राज्य सरकार से वित्तीय सहायता राशि प्राप्त कर रहे हैं। इन निगमों द्वारा दिसम्बर, 2023 तक दिये गये ऋणों का विवरण सारणी 15.2 में हैः

अनुसूचित जाति विकास योजना- कुल राज्य विकास योजना आवंटन का 25.19 प्रतिशत अनुसूचित जाति विकास योजना के लिए व्यक्तिगत लाभार्थी कार्यक्रमों के अर्न्तगत विशेष कवरेज प्रदान करने और अनुसूचित जाति केंद्रित गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अलग रखा गया है। अनुसूचित जाति विकास कार्यक्रम का बजट विŸाीय वर्ष 2023-24 के लिए ृ2399.05 करोड़ है। इसके अलावा, विŸाीय वर्ष 2022-23 के लिए एस.सी. विकास कार्यक्रम को अतिरिक्त केंद्रीय विकास बजट के रूप में ृ879.71 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इन व्यय का वर्ष वार ब्यौरा निम्नानुसार हैः

अनुसूचित जनजाति उप-योजना- आर्थिक विकास के लिए एस.टी. उप-दृष्टिकोण योजना क्षेत्रवार आधारित है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) विकास योजना के तहत अनुसूचित जनजाति विकास कार्यक्रम के लिए ृ857.14 करोड़ आवंटित किया गया है।
अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) विकास योजना के हिस्से के रूप में, राज्य में एस.टी. के कल्याण के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 में सितम्बर, 2023 तक ृ130.57 करोड़ व्यय किए गए हैं। चित्र 15.2 में वर्ष वार व्यय का विश्लेषण दर्शाया गया है।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग का कल्याण- 2023-24 के दौरान लागू की गई महत्वपूर्ण योजनाएँ इस प्रकार हैंः
राज्य में सभी विषयों में समान विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकार महिलाओं के कल्याण और सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देने के साथ कई उपायों को लागू कर रही है। ये कार्यक्रम पुरुषों और महिलाओं के बीच आय के अंतर को कम करने, घरेलू आय बढ़ाने और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने पर केंद्रित हैं। सरकार ने स्वयं सहायता समूहों के एक विशाल नेटवर्क के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने और शादियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए कदम उठाए हैं। उपरोक्त पहलों के अलावा, सरकार बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ, एकीकृत बाल संरक्षण सेवाएं, पूरक पोषण कार्यक्रम, पोषण अभियान, आंगनवाड़ी केंद्रों का निर्माण और नवीनीकरण, और तस्करी एवं वाणिज्यिक यौन शोषण के पीड़ितों के लिए उज्ज्वला जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं को भी लागू कर रही है। वर्ष 2011 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के एक भाग के रूप में महिला एवं बाल विकास निदेशालय की स्थापना की गई थी।
राज्य गृह सह सुरक्षात्मक गृह मशोबरा- इस योजना का मुख्य उद्देश्य युवा लड़कियों, विधवा, बेसहारा तथा निराश्रय महिलाएं जो आर्थिक रूप से कमजोर है और जिनकी अस्मिता को खतरा हो, को निःशुल्क आश्रय, खाद्य, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थ्य दवाईयां, परामर्श तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण देना है। मशोबरा स्टेट होम में वर्तमान में 21 निवासी हैं। महिलाओं को सेवा सदन छोेड़ने पर पुनर्वास के लिए ₹ 25,000 की आर्थिक सहायता दी जाती है तथा शादी करने के लिए उसे ₹ 51,000 की आर्थिक सहायता भी दी जाती है।
वन स्टॉप सेन्टर- वन स्टॅंाप सेन्टर एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य एक ही छत के नीचे निजी तथा सार्वजनिक स्थानो में हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता प्रदान करना है तथा चिकित्सकीय, कानूनी, मनोवैज्ञानिक तथा परामर्श सहायता सहित कई सेवाएं तत्काल आपातकालीन और गैर आपातकालीन स्थितियों में प्रदान करना है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में प्रत्येक जिले में एक श्वन स्टॉप सेंटरश् की स्थापना की गई है।
सक्षम गुड़िया बोर्ड- इस योजना का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं/किशोरियों के सशक्तिकरण, नीतिगत सिफारिशें करना, बचाव व सुरक्षा से सम्बन्धित एक्ट, नियमों, नीतियों और कार्यक्रमों के लिए तथा अपराध के खिलाफ बालिकाओं/किशोरियों की सुरक्षा के लिए उत्थान एवं सशक्तिकरण हेतु विभिन्न विभागों द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की समीक्षा करना है।

16.ग्रामीण विकास और पंचायती राज

ग्रामीण विकास में ग्रामीण बुनियादी ढांचे, आजीविका, स्वच्छता, जल संरक्षण में सुधार और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, विशेष रूप से गरीब हाशिए पर रहने वाले और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए जीवन को आसान बनाने के प्रयास शामिल हैं। यह परिवर्तन विभिन्न योजनाओं जैसे की दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम), दीन दयाल उपाध्याय-ग्रामीण कौशल्य योजना (डीडीयू-जीकेवाई), वाटरशेड विकास कार्यक्रम (डब्ल्यूडीसी-प्रधान मन्त्री कृषि सिंचाई योजना-2.0), स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), प्रधान मन्त्री आवास योजना (ग्रामीण), मुख्यमंत्री आवास योजना (एमएमएवाई), सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई), और मातृ-शक्ति बीमा योजना इत्यादि के माध्यम से हुआ है।
भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) को प्रतिबंधित करके राष्ट्रीय आजीविका मिशन (एनआरएलएम) 1 अप्रैल, 2013. को शुरू किया। 29 मार्च, 2016 को एनआरएलएम को डीएवाई-एनआरएलएम (दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) नाम दिया गया और कम आय वाले परिवारों को दीर्घकालिक निर्वाह के लिए उत्पादक स्व-रोजगार और कुशल मजदूरी वाली नौकरियों तक पहुंच प्रदान करके गरीबी को कम करने के लिए भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है।
इस कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
i) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य सभी गरीब परिवारों तक पहुंचना है, उन्हें स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) से जोड़ना है,ताकि स्थायी आजीविका के अवसरों तक पहुँच बन सके और उन्हें तब तक पोषित करना है जब तक वे गरीबी से निकलकर एक अच्छा गुणवत्ता वाला जीवन व्यतीत करने लग जाऐ। यह कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित है, इसलिए एन.आर.एल.एम. के तहत ग्रामीण गरीब परिवारों (एच.एच.) को उनकी महिला सदस्यों के माध्यम से कवर किया जाता है। इन महिलाओं को पहले स्वयं सहायता समूहों में और उसके बाद भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार उनकी सहायता करने के लिए गाँव/खण्ड /जिला संघों में संगठित किया जाता है।
ii) हिमाचल प्रदेश में योजना के अंतर्गत राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में उन सभी ग्रामीण गरीब और गरीब से गरीब व्यक्ति को शामिल किया जाएगा, जिन्हें 2011 के गरीबों की सहभागिता पहचान (पी.आई.पी.) और सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत गणना (एस.ई.सी.सी.) डेटा का उपयोग करके चुना गया है। चयनित महिलाओं को एस.एच.जी. में बांटा गया है, और उनके फेडरेटेड इंस्टीट्यूशंस क® आवर्ती सुलभ ऋण के लिए बैंकों से जोड़ा गया हैैं। उपरोक्त समूहों के अलावा, एन.आर.एल.एम. एकल महिलाओं, युद्ध विधवाओं, विकलांगों और बुजुर्गों के कवरेज को जोड़ने की प्राथमिकता देता है जिनका कोई देखभाल करने वाले नहीं हैं।
महिला एस.एच.जी. को दिए जा रहे प्रोत्साहन निम्नानुसार हैं-
1) वित्तीय समावेशन एन.आर.एल.एम. गरीबों को सस्ती लागत, प्रभावी, और विश्वसनीय वित्तीय सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच की सुविधा प्रदान करता है। इनमें वित्तीय साक्षरता, बैंक खाता, बचत, ऋण, बीमा, प्रेषण, पेंशन और वित्तीय सेवाओं पर परामर्श शामिल हैं। एन.आर.एल.एम. वित्तीय समावेशन और निवेश रणनीति का मूल ‘‘गरीबों को बैंकिंग प्रणाली का पसंदीदा ग्राहक बनाना और बैंक ऋण को बढ़ावा देना‘‘ है।
i) बैंक लिंकेज की सुविधा के लिए, राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एस.एल.बी.सी.) स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज और एनआरएलएम गतिविधियों में वित्तीय समावेशन के लिए विशेष उप-समितियों का गठन करेगी। इसी प्रकार, जिला स्तरीय समन्वय समितियां और खण्ड स्तरीय समन्वय समितियां -बैंक लिंकेज और एन.आर.एल.एम. की समीक्षा करेंगी।
ii) आरबीआई द्वारा जारी मास्टर सर्कुलर अप्रैल,2023 में यह अधिसूचित किया गया है कि राज्य के सभी जिलों में सभी स्वयं सहायता समूह को बैंकों के माध्यम से 7 प्रतिशत ब्याज पर ऋणध्क्रेडिट मिलेगा। श्रेणी 1 और 2 जिलों की शर्त को आर.बी.आई. ने हटा दिया है इससें स्वयं सहायता समूहों को आजीविका गतिविधियों को शुरू करने या विस्तार करने के लिए बैंकों से सस्ती ब्याज दर पर ऋण प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
कृषि आजीविका योजना-
i) वित्त वर्ष 2023-24 में कृषि आजीविका योजना को हिमाचल प्रदेश के सभी विकास खण्डों में शुरू किया गया है, अब तक कृषि आजीविका केवल सघन विकास खण्डों में ही शुरू किया जा रहा था। कृषि आजीविका के अन्तर्गत 4,458 गांवों में 83,512 महिला किसानों की पहचान की गई है और 736 कृषि आजीविका का सीआरपी (कृषि सखी और पशु सखी, कृषि उद्योग सखी) की पहचान की गई है और उन्हें कृषि पारिस्थतिक प्रथाओं और सतत पशु धन प्रथाओं पर प्रशिक्षित किया गया है। सभी महिला किसानों को कृषि आजीविका सीआरपी द्वारा कृषि पारिस्थतिक प्रथाओं और सतत पशु धन पर प्रशिक्षित किया जा रहा है और किचन गार्डन/कृषि पोषण वाटिका की स्थापना, जैव उर्वरक यानी बीजामृत, जीवामृत आदि की तैयारी में मदद की जा रही है।
ii) वित्त वर्ष 2023-24 में 125 (डे-एन.आर.एल.एम. के तहत 25 और डब्यू.डी.सी. -पी.एम. के.एस.वाई. 2.0 के तहत 100) कस्टम हायरिंग सेंटरों की स्थापना के लिए ₹6.00 करोड़ रूपये जारी किये गए है, जहां से स्वयं सहायता समूह की महिलाएं कृषि उपकरण किराये पर ले सकती है। इन कस्टम हायरिंग सेंटरों का संचालन और प्रबंधन डे-एनआरएलएम के तहत गठित ग्राम संगठनों की आजीविका उप समितियों द्वारा किया जायेगा।
iii) डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई.-2.0 के अभिसरण में 13,463 कृषि पोषक उद्यान किट वितरित किये गये है, जिसमें 2 प्रकार के बागवानी उपकरण, 10 प्रकार की ग्रीष्मकालीन सब्जियों के बीज और 1 कृषि पोषक पुस्तिका शामिल है।
iv) 868 कृषि और पशु सखियों को कृषि पारिस्थिति प्रथाओं यानी किचन गार्डन/ कृषि पोषण वाटिका ;महत्व, फसल कैलेंडर और लेआउट आदिद्ध मिटटी ;मिटटी का पीएच, प्रकार और मिटटी को बनाए रखने के तरीके आदि द्ध पानी और इसके संरक्षण पर प्रशिक्षित किया गया है।
v) किसान प्रशिक्षण विद्यालय सुंदरनगर में कृषि विभाग के विशेषज्ञों द्वारा 220 कृषि एवं पशु सखियों को खाद्य सुरक्षा के लिए मोटा अनाज एवं मोटे अनाज के व्यंजन तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया है।
vi) दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट पतंजलि के विशेषज्ञों द्वारा 60 कृषि और पशु सखियों को श्धरती का डॉक्टरश् मृदा परीक्षण किट पर प्रशिक्षित किया गया है। यह एक पोर्टेबल (ले जाने योग्य) मिटटी परीक्षण किट है जो कृषि और पशु सखियों को अपने खेत की मिटटी के स्वास्थ्य का परीक्षण करने में सक्षम बनाती है।
vii) 237 उत्पादक समूह बनाए गए है और 5,214 महिला किसानों को उत्पादक समूह में शामिल किया गया है।
गैर कृषि आजीविका- गैर-कृषि आजीविका गतिविधियों को परिभाषित किया जा सकता है जिसमें आय सृजन की विभिन्न गतिविधियों (जिसमें आय भी शामिल है) में निहित काम या स्वरोजगार से जुड़े सभी कार्य शामिल हैं जो कृषि आधारित नहीं हैं लेकिन जो आय उत्पन्न करते हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिए राज्य में गैर-कृषि से सम्बन्धित कई गतिविधियां शुरू की जो निम्नानुसार हैंः
1) हिम ईरा ब्रांड पंजीकरण राज्य में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूह अलग-अलग नामों से अपने उत्पाद बेच रहे थे, जिसके परिणाम स्वरूप सीमित बाजार पहुंच और कम दोबारा आने वाले ग्राहक थे। स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों की पहुंच बढ़ाने के लिए “हिम ईरा“ ब्रांड और इसका सवहव को पंजीकृत किया है ताकि सभी स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को एकल छतरी के अन्तर्गत् बेचा जा सके।
ब्रांड के पंजीकरण के लाभ
i) स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को नई पहचान दी गई ।
ii) उत्पाद मान्यता को बढ़ाया गया ।
iii)बाजार की पहुंच में वृद्धि।
iv) ब्रांड के जुड़ाव में मदद।
v) नए उत्पादों की उत्पाद श्रृंखला में पहचान।
vi) ब्रांड इक्कवीटी का निर्माण।
vii) विश्वसनीयता में वृद्धि और खरीद में आसानी।
2) हिम ईरा स्वयं सहायता समूह दुकानें- स्वयं सहायता समूहों द्वारा उत्पादित उत्पादो को बाजार से जोड़ने के लिए एवं स्थायी आजीविका का अवसर प्रदान करने के लिए, हिमाचल प्रदेश सरकार ने बजट 2023-24 में 50 मॉडल हिमईरा दुकानों को खोलने की घोषणा की गई है जो स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों द्वारा संचालित की जायेगी। अब तक राज्य में 93 हिमईरा दुकानें क्रियाशील हो चुकी है। वित्त वर्ष 2023-24 में अब तक 93 दुकानों में से 17 दुकानों की पहचान मॉडल हिमईरा दुकानों के लिए की गई है और इन दुकानों के उन्नयन के लिए ₹5 लाख तक जारी किये गए है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए इन दुकानों की कुल बिक्री ₹1.70 करोड़ दर्ज की गई है।
3) हिम ईरा साप्ताहिक बाजार-
i) ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों की महिला कारीगरों को सशक्त बनाने और उन्हें बेहतर बाजार और विपणन प्रणालियां उपलब्ध करवाने के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण, आजीविका मिशन (एचपीएसआरएलएम) ग्रामीण विकास विभाग, हिमाचल प्रदेश ने हिम ईरा ब्रांड नाम के अन्तर्गत साप्ताहिक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है जहां स्थानीय क्षेत्र के स्वयं सहायता समूह भाग ले सकते हैं और अपने उत्पादों को बेच सकते हैं।
ii) इस पहल से उन्हें आत्मविश्वासी बनने और परिवार को अतिरिक्त कमाई देने में मदद मिली है। हिम ईरा साप्ताहिक बाजार विकास खण्डों और जिलों के प्रमुख स्थानों पर आयोजित किये जा रहे है। वर्तमान में हिमईरा साप्ताहिक बाजार 75 ब्लॉकों में आयोजित किये जा रहे है। वित्त वर्ष 2023-24 में अप्रैल से दिसंबर, तक साप्ताहिक दुकानों की कुल बिक्री ₹1.87 करोड़ दर्ज की गई है।
4) हिमईरा कैंटीन- हिमईरा कैंटीन ग्रामीण स्वंय सहायता समूह की महिलाओं के लिए एक अवसर है जो उन्हें अतिरिक्त आजीविका कमाने में सक्षम बनाएगा। इसका मिशन एक अद्वितीय और पारंपरिक भोजन प्रदान करना है जो अतिथि देवो भवः पर केंद्रित होगा। हिमईरा स्वच्छ कैंटीन अधिकारियों, कर्मचारियों, छात्रों आदि को अनुकरणीय सेवा के साथ उचित मूल्य पर उच्च गुणवत्ता वाला भोजन प्रदान करने का प्रयास करेगी। अब तक सरकारी संस्थानों में 17 हिमईरा कैंटीन चल रही है।
5) हिम अन्नपूर्णा फूड वैन- हिम अन्नपूर्णा फूड वैन मॉडल की योजना राज्य में स्वंय सहायता समूहों द्वारा संचालित और प्रबंधित एक खाद्य वैन शुरू करना है। इस सम्बन्ध में डी.आर.डी. संगड़ाह जिला सिरमौर, हरोली जिला ऊना बैजनाथ जिला कांगड़ा कुल्लू नगर बसन्तपुर जिला शिमला को धनराशि वितरित की गई है और इन पांच ब्लॉकों में महीलाओं के स्वयं सहायता समूह द्वारा हिम अन्नपूर्णा वैन का संचालन किया जा रहा है।
6) सूक्ष्म खाद्य उद्यमों के प्रधान मंत्री औपचारिककरण (पी.एम.एफ.एम.ई.)-
i) पी.एम.एफ.एम.ई. परियोजना, जो केन्द्र सरकार की परियोजना है राज्य में कार्यान्वित की जा रही है, खाद्य प्रसंस्करण कार्यों में रुचि रखने वाले एस.एच.जी. समूहों को ₹40,000 की राशि में बीज राशि के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करती है। एस.एच.जी. को सीड फाइनेंसिंग की पेशकश की जा रही है ताकि उन्हें अपने कारोबार का विस्तार करने और अधिक वस्तुओं का उत्पादन कर अधिक पैसा कमाने में मदद मिल सके।
ii) वित्त वर्ष 2023-24 अप्रैल से दिसंबर 2023 तक पी.एम.एफ.एम.ई. योजना के अन्तर्गत 79 समुदाय आधारित संगठन (सी.बी.ओ.) को केवल ₹3.59 करोड़ की राशि वितरित की गई है। जिसमें राज्य के 155 स्वयं सहायता समूह लाभार्थी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त एम.ओ.एफ.पी.आई. ने 13,200 स्वयं सहायता समूह लाभार्थियों के लिए ₹49.41 करोड़ रूपये की प्रारंभिक पूंजी के लिए को मंजूरी दे दी गई है।
7) स्टार्ट अप ग्रामीण उद्यमी कार्यक्रम (एस.वी.ई.पी.)-
i) एस.वी.ई.पी. एक केन्द्र द्वारा वित्तपोषित योजना है, जिसका प्राथमिक लक्ष्य ग्रामीण उद्यमिता विकास के लिए एक स्थायी प्रतिमान का निर्माण करके ग्रामीण गरीबों को अपना व्यवसाय स्थापित करने में सहायता करना है।
ii) यह योजना मंडी सदर (खण्ड) में लागू की जा रही है और एस.वी.ई.पी. के अंतर्गत मंडी सदर खण्ड में कुल 2,018 फर्मों को चार साल की अवधि के दौरान समर्थन दिए जाने का प्रावधान है। एक खण्ड संसाधन केन्द्र स्थापित किया गया है, और व्यवसाय जुटाए जा रहे हैं। 30 कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन-एंटरप्राइज प्रमोशन (सी.आर.पी.-ई.पी.) को प्रशिक्षित कर नजदीक में रखा गया है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पांच अतिरिक्त एस.वी.ई.पी. खण्ड जोड़े गए हैं।
8) संस्थागत निर्माण एवं क्षमता निर्माण- एन.आर.एल.एम. सभी गरीब परिवारों (महिलाओं) को गरीबों की कुल संस्थाओं (एस.एच.जी.ध्वी.ओ.ध्सी.एल.एफ.) में संगठित करता है जो उन्हें स्थान और संसाधन प्रदान करते हैं। श्गरीबों का और गरीबों के लिएश् ये मंच गरीबों को सामाजिक और आर्थिक सेवाओं के वितरण की सुविधा के लिए स्थानीय स्वशासन, सार्वजनिक सेवा प्रदाताओं, बैंकों, निजी क्षेत्र और अन्य मुख्यधारा के संस्थानों के साथ भागीदारी बनातेे है।
सामाजिक समावेष और सामाजिक विकास- सामाजिक समावेषः सामाजिक समावेश के अन्तर्गत स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) का श्रेणी-वार समावेश वर्ष 2023-24 (दिसम्बर, 2023 तक) निम्नलिखित तालिका में दर्ज किया गया हैः

वित्त वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2023 तक इस घटक के अन्तर्गत् अब तक 110 बुजुर्ग स्वयं सहायता समूह एवं 80 दिव्यांग स्वयं सहायता समूह बनाए गए और कुल 1105 स्वयं सहायता समूहों को परिक्रमा राशि ₹15000 प्रति स्वयं सहायता समूह की दर से जारी की गई है। विकास खण्ड़ चौपाल और टुटू के 40 बुजुर्ग स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के एक बैच को खाद्य प्रसंस्करण पर प्रशिक्षित किया गया। इसके अलावा, इस वित्त वर्ष में सामाजिक समावेशन पर 50 आंतरिक सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों की पहचान की गई और उन्हें प्रशिक्षित किया गया।
अब तक 137 भेद्यता न्यूनीकरण योजनाएं (वी.आर.पी.) बनाई गई हैं और अब तक ₹188.50 लाख जल्द ही भेद्यता न्यूनीकरण कोष (वी.आर.एफ.) के रूप में 126 ग्राम संगठन को ₹1.50 लाख प्रति ग्राम संगठन को जारी किए जाने है। विकास खण्ड चौपाल और टुटू के दो बुजुर्ग क्लस्टर स्तरीय महासंघ/स्वंय सहायता समूहों ने सारस मेले एवं रिज मैदान पर आयोजित फूड कार्निवाल में भाग लिया और ₹3.50 लाख के मोटे अनाज, सेब उत्पाद, अदरक कैंडी आदि बेचे और सामाजिक समावेश गतिविधियों पर ₹ 20.00 लाख व्यय किये गये।
इस घटक के तहत, 180 सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों- स्वास्थ्य, पोषण और लिंग (सी.आर.पी-एच.एन.जी) को 27 विकास खण्डों में प्रशिक्षित किया गया और वे एफ.एन.एच.डब्ल्यू रोल आउट करने के लिए कार्य कर रही हैं । एनीमिया और मासिक धर्म स्वच्छता और रजोनिवृत्ति पर आई.ई.सी सामग्री तैयार की गई है और प्रसार और जागरूकता के लिए सभी सी.एल.एफ, ग्राम संगठनों (वी.ओ) और स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी) को प्रदान की गई है।
प्रदेश के पारम्परिक व्यंजनों को बढ़ावा देने हेतु ‘‘हिम व्यंजन” पुस्तिका तैयार की गयी और सभी जिला, विकास खण्डों और कैडर में वितरित की गयी । इसके अलावा वित्त वर्ष के दौरान एफ.एन.एच.डब्ल्यू विजनिंग-3 अभ्यास की शुरुआत, 3 सी.एल.एफ. विसर्जन स्थलों (इमर्शन साईट) में की गई । पोषण माह-2023 के दौरान, लगभग 40,000 स्वयं सहायता समूहों ने राज्य के सभी विकास खण्डों के तहत अपने स्थान पर इस कार्यक्रम में भाग लिया और 60,000 पोषण वाटिका (किचन गार्डन) तैयार किए गए।
अन्तराष्ट्रीय मोटे अनाज का वर्ष 2023 के उपलक्ष्य पर हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा 2 से 18 दिसम्बर, 2023 तक रिज मैदान शिमला में आयोजित हिम ईरा फूड कार्निवाल में प्रदेश के सभी जिला के प्रत्येक 2 विकास खण्डों से 2 स्वयं सहायता समूहों द्वारा पारम्परिक व्यंजन और मोटे अनाज के उत्पाद परोसे गये। जिसमें लगभग ₹35.00 लाख का व्यवसाय हुआ और वित्त वर्ष के दौरान एफ.एन.एच.डब्ल्य.ू गतिविधियों पर ₹ 42.00 लाख रुपये व्यय किये गये।
1) इस घटक के अन्तर्गत्, 180 सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों- स्वास्थ्य, पोषण और जेंडर (सी.आर.पी-एच.एन.जी) को प्रशिक्षित किया गया है और 27 विकास खण्डों में जेंडर के रोल आउट के लिए काम कर रही हैं । इसके अलावा, सी.आर.पी-एच.एन.जी द्वारा जेंडर पर 4 सी.एल.एफ स्तर और 90 ग्राम संगठन स्तर की सामाजिक कार्य समितियों को प्रशिक्षित किया गया । इसके लिए 610 जेंडर प्वाइंट पर्सन (जी.पी.पी.) को प्रशिक्षण प्रदान किया गया । इसके अलावा जेंडर विजनिंग-3 अभ्यास वर्ष के दौरान 3 सी.एल.एफ. विसर्जन स्थलों (इमर्शन साईट) की शुरुआत की गई है।
2) हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने राज्य में लाइन विभाग के समर्थन से 25 नवंबर से 23 दिसंबर 2023 तक जेंडर आधारित हिंसा के खिलाफ राष्ट्रीय जेंडर अभियान शुरू किया। हिमाचल प्रदेश की ओर से 50 प्रतिभागियों ने दिल्ली में अभियान के शुभारम्भ में भाग लिया। आई.ई.सी. संकलित पुस्तिका विकसित की गई और सभी जिला, विकास खण्डों और सामुदायिक आधारित संस्थाओं (सी.बी.ओ) को वितरित की गई।
3) हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा 2 से 18 दिसम्बर तक रिज मैदान शिमला में आयोजित फूड कार्निवाल में जेंडर जागरूकता शिविर स्थापित कर हर दिन लगभग 2000 स्थानीय लोगों और सैलानियों को जागरूक कर जेंडर जागरूकता पुस्तिका भी वितरित की गयी। वित्त वर्ष के दौरान जेंडर गतिविधियों पर अनुमानित राशि ₹55.00 लाख रुपये व्यय किये गये।
हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने सार्वभौमिकरण के अन्तर्गत पी.आर.आई.-सी.बी.ओ अभिसरण परियोजना के रोल आउट के लिए एन.आर.ओ. कुडुंबश्री केरल के साथ 4 विकास खण्डों-राजगढ़, ठियोग, मशोबरा और कंडाघाट की 148 ग्राम पंचायतों में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए । कुल 340 स्थानीय संसाधन समूह (एल.आर.जी) संवर्ग और 3 जिला संसाधन व्यक्ति (डी.आर.पी) को प्रशिक्षित किया गया और उपरोक्त 4 विकास खण्डों में तैनात किया गया।
इसके अलावा, राज्य की 3,184 ग्राम पंचायतों में 40,000 एस.एच.जी. के लिए मोबाइल आधारित ऐप के माध्यम से 3,192 आर.पी.एस./सी.आर.पी.एस. द्वारा 3,509 ग्राम गरीबी उन्मूलन योजनाएं (वी.पी.आर.पी.) तैयार की गई हैं, जिन्हें (जी.पी.डी.पी.) में एकीकृत किया जा रहा है। वर्ष के दौरान कुल 3,062 पंचायती राज संस्थाएं को वी.पी.आर.पी. आधारित जानकारी दी गयी और पी.आर.आई.-सी.बी.ओ. अभिसरण गतिविधियों के अन्तर्गत् अनुमानित राशि ₹101.00 लाख रुपये खर्च की गई ।
दीनदयाल उपाध्यय ग्रामीण कौशल्य योजना, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही एक महत्वाकांक्षी योजना है। यह रोजगार परक कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम है, जिसका मुख्य लक्ष्य 15-35 वर्ष के ग्रामीण युवाओं को विभिन्न प्रचलित ट्रेड़स एवं जॉब रोल्स के माध्यम से निःशुल्क प्रदान करवाना तथा उन्हें न्यूनतम मासिक मजदूरी से अधिक के सुनिश्चित रोजगार दिलाना है।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (डी.डी.यू.-जी.के.वाई.) के अन्तर्गत प्रषिक्षण एंव उम्मीदवारों के अधिकार-
i) बहु प्रचलित ट्रेडस एवं जॉब रोल्स, में 3-12 महिनों तक निःशुल्क प्रशिक्षण
ii) निःशुल्क प्रशिक्षण, भोजन तथा आवासीय सुविधा।
iii) भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण केन्द्रों द्वारा प्रशिक्षण।
iv) अंग्रेजी बोलने, संवाद कौशल तथा सूचना प्रौद्योगिकी में निःशुल्क 160 घंटों का प्रशिक्षण।
v) प्रत्येक उम्मीदवार के लिए पढ़ाई हेतु कंप्यूटर, लैब्स तथा डिजीटल -टेबलेटस् की सुविधा।
vi) ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण के माध्यम से इंडस्ट्री का अनुभव।
vii) रोजगार प्राप्त करने के पश्चात कार्यक्रम दिशा-निर्देश्किा के अनुसार 2-6 माह तक ₹1270 प्रतिमाह की मदद।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (डी.डी.यू.-जी.के.वाई.) के अन्तर्गत मुख्य उपलब्धियां- हिमाचल प्रदेश में दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (डी.डी.यू.-जी.के.वाई.) की शुरूआत (सितम्बर, 2017) से लेकर 8 जनवरी, 2024 तक योजना के अन्तर्गत् कुल 16,027 लाभार्थियों को विभिन्न ट्रेडज व जॉब रोल्स के माध्यम से प्रशिक्षण हेतु चयनित किया जा चुका है तथा इनमें से 13,705 लाभार्थियों ने प्रशिक्षण पूर्ण कर लिया है तथा 8,092 लाभार्थी युवाओं को विभिन्न कम्पनियों के माध्यम से रोजगार दिलाया जा चुका है, इनमें से कुल नियुक्त अभ्यर्थियों में से 3,205 युवाओं को रोजगार प्राप्त माना गया है। (कार्यक्रम की दिशा-निर्देशिका के अनुसार यदि कोई लाभार्थी 3 महीने तक लगातार नौकरी करता है तथा 3 महीनों की सैलरी रसीद व बैंक स्टेटमैंट जमा करवाये तो उसे ही रोजगार प्राप्त माना जाता है)।
राज्य में बंजर भूमि, सूखा प्रवण एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों के विकास के उद्देश्य से केन्द्र एवं राज्य के बीच 90ः10 के वित्त पोषण स्वरूप पर जलसंभर विकास योजना संचालित की जा रही है। परियोजना को भारत सरकार द्वारा 2021-2026 की अवधि के लिए स्वीकृत किया गया था। मार्च, 2022 से धन प्राप्त हुआ, जिसके बाद राज्य के लिए प्रारम्भिक गतिविधियों का क्रियान्वयन शुरू हुआ।
वाटरशेड विकास का उद्भव- वाटरशेड विकास का उद्भव मिट्टी और जल संरक्षण के प्रारंभिक उददेश्यों से धीरे-धीरे विकसित हुआ है और नदी घाटी परियोजनाओं की गाद को कम करने के लिए वाटरशेड की सीमाओं के भीतर एक परिदृश्य में जैविक, भौतिक और सामाजिक तत्वों के प्रबंधन के वर्तमान एकीकृत दृष्टिकोण तक पहुंच गया है।
वाटरशेड विकास परियोजनाओं के उद्देश्य-
i) एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन के माध्यम से वर्षा सिंचित/निम्नीकृत भूमि की उत्पादक क्षमता में सुधार करना;
ii) आजीविका और वाटरशेड स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए समुदाय आधारित स्थानीय संस्थानों को मजबूत करना, और
iii) क्रॉस लर्निंग और प्रोत्साहन तंत्र के माध्यम से वाटरशेड परियोजनाओं की दक्षता में सुधार करना।
मैक्रो-स्तर पर, डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई.-2.0 परियोजनाओं का दृष्टिकोण देश के कम संपन्न वर्षा वाले क्षेत्रों में कृषि की आर्थिक विकास दर में तेजी लाना है। वाटरशेड स्तर पर, विकास योजना किसानों के लिए उच्च आय प्राप्त करने की आवश्यकता, भूमिहीनों के लिए विस्तारित आजीविका विकल्पों, लाभों के वितरण में समानता, सामुदायिक स्वामित्व और प्रबंधन, और पारिस्थितिक रूप से स्थायी कार्य योजना द्वारा निर्देशित होगी।

आरंभिक गतिविधियां- वाटरशेड डेवलमेंट टीम (डब्ल्य.ूडी.टी.) गांव की आबादी के साथ संबंध बनाने और जन-केंद्रित परियोजना विकास में उनका विश्वास अर्जित करने के लिए प्रवेश स्तर की गतिविधियों में संलग्न है। डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई.-2.0 के अंतर्गत सभी विकास खण्डों में एंट्री प्वाइंट गतिविधियों के अन्तर्गत ₹271.00 लाख के सभी प्रस्तावित कार्यों का काम पूर्ण किया जा चुका है।

अमृत सरोवर- मिशन अमृत सरोवर को भविष्य के लिए जल संरक्षण के उद्देश्य से 24 अप्रैल, 2022 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर शुरू किया गया था। मिशन का उद्देश्य देश के प्रत्येक क्षेत्र में जल निकायों का विकास और कायाकल्प करना है। राज्य में अमृत सरोवरों का विवरणः
वार्षिक बजट 2022-23 में प्रारंभिक लक्ष्य 15 अगस्त, 2023 तक 93 अमृत सरोवर का निर्माण करना था, जबकि बाद में ग्रामीण विकास विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार ने 10 जिलों, 18 विकास खण्डों में 97 अमृत सरोवर का निर्माण पूर्ण कर लिया है। इन 97 अमृत सरोवरों में से 96 का निर्माण पूर्ण हो चुका है जबकि 1 का निर्माण कार्य चल रहा है जो 15 मार्च, 2024 तक पूर्ण हो जाएगा।
संस्था और क्षमता निर्माण ;आई.एण्ड.सी.बी.द्ध- डब्ल्य.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई. 2.0 परियोजना में लगे कनिष्ठ अभियन्ताओं, कृषि विशेषज्ञों, तकनीकी सहायकों और जी.आर.एस., पी.आर.आई. और अन्य गैर-तकनीकी कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने और वाटरशेड और स्प्रिंगशेड विकास परियोजनाओं के निष्पादन में भविष्य में उनकी क्षमता को मजबूत करने के उद्देश्य से विभाग द्वारा योजना के अन्तर्गत विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा चुके हैं। विभाग ने अब तक प्रशिक्षित 1,687 कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए कुल 59 प्रशिक्षण आयोजित किए।
हिमाचल प्रदेश में स्प्रिंगशेड प्रबंधन-
i) स्प्रिंगशेड प्रबंधन कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों के 23 परियोजना क्षेत्रों में चल रहे हैं।
ii) परियोजना क्षेत्र के अंतर्गत कुल 414 झरनों की पहचान की गई है और उन्हें किसी विशेष झरने पर जनसंख्या की निर्भरता के घटते क्रम के आधार पर श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
iii) 414 स्प्रिंग्स में से 88 स्प्रिंग्स का काम पूरा हो चुका है, 51 स्प्रिंग्स का काम चल रहा है और परियोजना के पूरा होने तक 275 स्प्रिंग्स का काम पूरा हो जाएगा।
स्प्रिंगशेड प्रबंधन में कार्यों के प्रकार- चयनित स्प्रिंग-शेडों में जलभृत को रिचार्ज करने के लिए प्राथमिक गतिविधियाँ इस प्रकार से की जाती हैं जैसेः
i) खाईंयों/टो खाईंयों का निर्माण
ii) पेड़ लगाना
iii) बावड़ियों का निर्माण और उसका नवीनीकरण
iv) झरनों का सौंदर्यीकरण
v) चेक डैम और गेबियन
vi) रिचार्ज वेल्स

एन.आर.एल.एम. के साथ आजीविका अभिसरण-
i) परियोजना क्षेत्रों में कृषि आजीविका को बढ़ावा देने का कार्य एन.आर.एल.एम. को सौंपा गया है।
ii) डब्ल्यू.डी.सी. पी.एम.के.एस.वाई. 2.0 के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के 26 परियोजना क्षेत्रों का चयन किया गया है जिसमें 13,463 एस.एच.जी. महिलाएं, एन.आर.एल.एम. के अन्तर्गत गठित 93 ग्राम संगठन शामिल हैं।
iii) कस्टम हायरिंग सेंटर (सी.एच.सी.) एन.आर.एल.एम. के साथ आजीविका अभिसरण योजना के अन्तर्गत 132 में से 62 सी.एच.सी. की स्थापना की गई है और बाकी सी.एच.सी. की योजना बनाई जा रही हैं। सी.एच.सी. में उपलब्ध उपकरणों की सूचीः खाद्य प्रसंस्करण मशीनरी, ग्रेडिंग मशीन, पैकेजिंग मशीन, पत्तल बनाने की मशीन, तेल निकालने की मशीन, सोलर ड्रायर, पावर थ्रेशर, घास कटर, लकड़ी कटर, पावर स्प्रेयर आदि।
iv) एग्री न्यूट्री गार्डन किटः डब्ल्य.ूडी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई.-2.0 के अन्तर्गत सभी 130 ग्राम पंचायतों में 1,790 सक्रिय एसएचजी को एग्री न्यूट्री गार्डन किट का वितरण किया गया है ।
v) प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से एन.आर.एल.एम. के अन्तर्गत कृषि सखी और पशु सखी जैसे सामुदायिक कैडर को मजबूत करना। एस.एल.एन.ए. और एच.पी.एस.आर.एल.एम. ने सी.एस.आई.आर.-आई.एच.बी.टी. पालमपुर के साथ सहयोग किया है ताकि उन्हें प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके और परियोजना क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकी हस्तक्षेप करने की योजना बनाई जा सके।
वृृक्षारोपण/बागवानी गतिविधियाँ -
i) डब्ल्यू.डी.सी.-पी.एम.के.एस.वाई.-2.0 के दिशानिर्देशों के अनुसार, “बागवानी सहित वृक्षारोपण, वाटरशेड परियोजना क्षेत्र के 20 प्रतिशत क्षेत्रों तक किया जाना है।”
ii) वृक्षारोपण के अन्तर्गत, बागवानी गतिविधियों सहित, कुल 84,448 पौधे लगाए गए हैं और वृक्षारोपण के अन्तर्गत कवर किया गया कुल क्षेत्र 422.93 हेक्टेयर है।
iii) लगाई गई प्रजातियाँः अखरोट, सेब, खुरमानी, बेर, नाशपाती, अनार, आड़ू, रॉयल डिलीशियस, रेड वेलॉक्स, ग्रैनी स्मिथ, स्कार्लेट स्पर, रेड लुमगाला, ब्लैक एम्बर, वन पौधे, प्लम ब्लैक एम्बर, कीवी हेवर्ड, एप्पल जेरोमाइन, आंवला, जामुन, आम, नींबू, सिल्वर रॉक, नीम, अशोक, हरड़, आंवला, मोरिंगा, अल्स्टोनिया, मोरिंगा, ड्रैगन फ्रूट हैं।
ऽ मार्च 2024 तक, प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (पी.एम.ए.वाई.-जी.) का लक्ष्य सभी बेघर और कच्चे आवास में रह रहे परिवारों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के आवास प्रदान करना है। इकाई (आवास) लागत केंद्र और राज्य सरकार के बीच 90ः10 के अनुपात से विभाजित होती है। वित्तिय वर्ष 2019-20 से इस योजना के अन्तर्गत राज्य में ₹1.50 लाख प्रति लाभार्थियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। वित्तीय वर्ष 2019-20 से, राज्य सरकार ₹20,000 प्रति यूनिट की राशि, ₹1.30 लाख के अतिरिक्त अपने संसाधन से प्रदान कर रही हैं। भारत सरकार ने राज्य में प्रभावित परिवारों के पुनर्वास/पुर्नस्थापन के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के अनुसार विशेष परियोजना के अन्तर्गत 13,804 मकानों की मंजूरी दी है, जिसमें से 10,023 आवासों को 31 दिसंबर, 2023 तक स्वीकृत किये जा चुके हैं।
राज्य सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले सभी वर्गों के लिए घोषणा की है। वित्त वर्ष 2023-24 में ₹802.00 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया था, जिसके अन्तर्गत 533 (512 लक्षित एम.एम.ए.वाई के अन्तर्गत और 21 अतिनिर्धन मामले) आवासों के निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया था, जिनमें से 361 घरों के आवास निर्माण हेतु स्वीकृति प्रदान की गई है तथा 247 लाभार्थियों को पहली किस्त कें रुप में ₹1.61 करोड़ 31 दिसंबर, 2023 तक जारी किये जा चुके हैं।
सांसद आदर्श ग्राम योजना का मुख्य लक्ष्य बेहतर बुनियादी सुविधाओं, उच्च उत्पादकता, मानव विकास में वृद्धि, बेहतर आजीविका के अवसरों और कम असमानताओं, अधिकारों और पात्रता तक पहुंच, व्यापक सामाजिक गतिशीलता और बढी हुई सामाजिक पंूजी के माध्यम से चिन्हित ग्राम पंचायतों के समग्र विकास और गुणवत्ता को सुनिश्चित करना है। सांसद आदर्श ग्राम योजना-2 के अन्तर्गत कुल 1131 कार्यों की स्वीकृति प्रदान की गई है जिसमें से 343 कार्य पूर्ण किये जा चुके है, 168 कार्य प्रगति पर है और 620 कार्य अभी शुरू किये जाने हैं। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में इस योजना के अन्तर्गत माननीय लोक सभा सदस्य द्वारा 5 ग्राम पंचायतों को गोद/चिन्हित किया है। जिसमें से 01 ग्राम पंचायत गुनेहड़, विकास खण्ड़ बैजनाथ की ग्राम विकास योजना का प्लान तैयार कर लिया गया है जिसके अन्तर्गत 18 कार्यों की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है।
मातृ-शक्ति बीमा योजना एक मांग आधारित योजना है। इस योजना में 10-75 वर्ष की आयु वर्ग के भीतर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली सभी महिलाओं को शामिल किया गया है। यह पॉलिसी परिवार के सदस्यों/बीमित महिलाओं को किसी भी प्रकार की दुर्घटना, सर्जिकल ऑपरेशन जैसे नसबंदी, बच्चे के जन्म/प्रसव के समय दुर्घटना, डूबने, बाढ़ में बहने, भूस्खलन, कीड़े के काटने के कारण होने वाली मृत्यु या विकलांगता के मामले में राहत प्रदान करती है और यह योजना विवाहित महिलाओं को उनके पति की आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में भी लाभ देती है। मुआवजे का घटक वार विवरण निम्न प्रकार से हैः
i)मृत्यु के मामले में -- ₹ 2.00 लाख रुपये.
ii) स्थायी पूर्ण विकलांगता-- ₹ 2.00 लाख रुपये
iii) एक अंग और एक आंख या दोनों आंखों और दोनों अंगों की विकलांगता होने पर-- ₹ 2.00 लाख रुपये
iv) एक अंग/एक आंख/एक कान की विकलांगता होने पर-- ₹ 1.00 लाख रुपये
v) पति की मृत्यु की स्थिति में-- ₹ 2.00 लाख रुपये
वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान इस योजना के तहत ₹1.26 करोड रुपये की वित्तीय सहायता 63 परिवारों को 31 दिसंबर, 2023 तक जारी कर दी गई हैं।
भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण दिनांक 2 अक्तूबर, 2014 को देश में लागू किया तथा हिमाचल प्रदेश को 28 अक्तूबर, 2016 कोे बाह्य शौच मुक्त राज्य घोषित कर दिया गया । अब स्वच्छ भारत मिशन -ग्रामीण के अन्तर्गत लिए जाने वाले कार्यों का विवरण निम्न प्रकार से है:
i) एन.एल.बी. (नो वन लैफट बीहाइंड) (आई.एच.एच.एल., सी.एस.सी.)
ii) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (गैर-बायोडिग्रेडेबल और बायो-डिग्रेडेबल)
iii) तरल अपशिष्ट प्रबंधन (ग्रे-पानी और काला पानी)।
iv) गोबर्धन परियोजनाएं।
v) आई.ई.सी.ध्क्षमता निर्माण
भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के कार्यान्वयन हेतु चरण-दो की मार्ग-दर्शिका जारी की है जो प्रदेश में दिनांक 01-04-2020 से लागू की है तथा इसके मुख्य बिन्दू निम्न प्रकार से हैः

वर्ष 2023-24 के अन्तर्गत उपलब्धियां-
i) 3 सितम्बर, 2023 को 100 प्रतिशत गांवों को ओ.डी.एफ. घोषित किया गया है, 16,243 गांवों में से 5,792 गांव एस्पायरिंग, 9,393 गांव राइजिंग और 1,058 गांव ओडीएफ मॉडल श्रेणी में है।
ii) वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 8,144 ऐसे व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण किया गया है जो परिवार शौचालय रहित थे।
iii) वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान कुल 937 सामुदायिक स्वच्छता परिसरों का निर्माण किया गया है।
iv) ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की गतिविधियां 12,554 गांवों मंे ली गई है।
v)प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के लिए कुल 9 इकाइयां पूर्ण हो चुकी है।
vi) गोबर्धन परियोजना के लिए कुल 19 स्थलों की पहचान की गई है जिनमें 8 स्थलों पर काम चल रहा है और 5 संयंत्र पूर्ण हो चुके है और क्रियाशील है।
vii) 123 प्रशिक्षणों में 4,965 से अधीक अधिकारियों/कर्मचारियांे/पी.आर.आई. के प्रतिनिधियों/क्षेत्रीय अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम भारत सरकार द्वारा 5,सितम्बर, 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को अधिसूचित किया गया। वर्ष 2023-24 (10 जनवरी, 2024 तक) के दौरान की गई प्रगति का ब्यौरा निम्न प्रकार से हैः
हिमाचल प्रदेश मुख्यमंत्री लघु दुकानदार कल्याण योजना शुरू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य छोटे दुकानदार और व्यवसायी को ऋण लेकर अपने व्यवसाय में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना है। हिमाचल प्रदेश मुख्यमंत्री लघु दुकानदार कल्याण योजना के अन्तर्गत प्रदान किए जाने वाले लाभ हैं
i) ₹50,000 के ऋण तक ब्याज पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
ii) हिमाचल प्रदेश सरकार ऋण पर ब्याज की 50 प्रतिशत राशि का भुगतान करेगी। शेष 50 प्रतिशत आवेदक को वहन करना होगा।
राज्य में 12 जिला परिषदें, 81 पंचायत समितियां और 3,615 ग्राम पंचायतें हैं। विभाग की प्रमुख उपलब्धियां निम्नलिखित हैंः
1) 15वें वित्त आयोग का कार्यान्वयन 2020-21 में शुरू हुआ। 15वें वित्त आयोग के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए राज्य के लिए ₹332.00 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है, जिसमें से ₹52.59 करोड़ भारत सरकार द्वारा जारी किए गए हैं और पंचायती राज संस्थाओं को वितरित किए गए हैं।
2) राज्य वित्त आयोग (एस.एफ.सी. ) द्वारा जिला परिषद ग्राम पंचायत संवर्ग के अंतर्गत विभिन्न श्रेणियों के श्रमिकों के वेतन/मजदूरी/मानदेय और प्रदर्शन संबंधी प्रोत्साहन के तीन स्तरों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिए ₹430.00 करोड़ का अनुदान उपलब्ध कराया गया है।
3) ग्राम पंचायत घरों के निर्माण हेतु नया प्राकलन तथा डिजायन तैयार किया गया जिसके अनुसार नए पंचायत घरों के निर्माण के लिए ₹1.14 करोड़ की राशि स्वीकृत हुई हैैैै। वर्ष 2023-24 के दौरान 180 नये ग्राम पंचायत के निर्माण हेतु ₹24.18 करोड़ और 140 पुरानेे पंचायत घरों के निर्माण/उन्नयन/मुरम्मत के लिए ₹19.72 करोड़ जारी किए गए हैं।
4) संशोधित राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (आर.जी.एस.ए.) के अन्तर्गत वित्त वर्ष 2022-23 के लिए पहली किस्त के रूप में ₹67.38 करोड की प्राप्त अनुदान में से निम्नलिख्ति लक्ष्य प्राप्त किए गएः
i) 536 सामान्य सेवा केंद्रों 101 ग्राम पंचायत भवनों और 08 पी.एल.सी. के निर्माण हेतु राशि कार्यान्वयन एजेसियों यानी ग्राम पंचायतों और अद्यिशासी अभियन्ता(आर.डी. और पी.आर.) को वितरित की गई है। इन इकाइयों का कार्य प्रगति पर है।
ii) वर्ष 2023 के दौरान पंचायती राज संस्थाओं के 17,455 निर्वाचित प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है।
iii) राज्यस्तर पर 5 कार्यशालाएं क्रमशः ई-ग्राम स्वराज एल.एस.डी.जी. के 9 विषयों, पी.ई.एस.ए. और पी.डी.आई. पर दो कार्यशालाएं आयोजित की गई है।
iv) वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, पंचायती राज मंत्रालय की केन्द्रीय अघिकार प्राप्त समिति ने ₹95.19 करोड की वार्षिक कार्य योजना को मंजूरी दे दी है। इस वार्षिक कार्य योजना का अनुदान अभी प्राप्त होना आपेक्षित है। अनुदान की प्राप्ती के अनुसार आगे की कार्यवाही/ लक्ष्य की योजना बनाई जाने की प्रस्तावना है।
5) राज्य सरकार द्धारा पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मानदेय में 1 अप्रैल, 2023 से बढौतरी कर ₹15.91 करोड़ का वार्षिक अतिरिक्त मानदेय प्रदान किया जा रहा है।
6) 1 अप्रैल, 2023 से दैनिक वेतन पर कार्यरत पंचायत चौकीदारों की दैनिक मजदूरी दर ₹350 से ₹375 बढाई गई है। इसके अलावा अंश कालिक पंचायत चौकीदारों का मासिक पारिश्रमिक ₹6,200 से ₹6,700 बढाया गया है।
7) 1 अप्रैल, 2023 से ग्राम पंचायतों में अनुबंध आधार पर कार्यरत सिलाई अध्यापिकाओं का मासिक पारिश्रमिक/मानदेय ₹8,000 से बढाकर ₹8,500 कर दिया गया है तथा ग्राम पंचायतों में कार्यरत दैनिक वेतन भोगी सिलाई अध्यापिकाओं की दैनिक दर ₹396 से बढाकर ₹424 कर दी गई है।
9) विभाग ने कई ऐप स्थापित किए हैं जिनके माध्यम से आम जनता विभिन्न ऑनलाइन सेवाओं जैसे परिवार नकल, विवाह प्रमाण पत्र आदि को प्राप्त करने हेतू इनका उपयोग कर सकती है। इनके लिए ई-डिस्ट्रिक्ट एच.पी. पर ऑनलाइन सेवा पोर्टल के माध्यम से आवेदन किया जा सकता है।
राष्ट्रीय एम.पी.आई. पर हालिया रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (2015-16) और 5 (2019-21) पर आधारित थी। 2005-06 और 2015-16 के बीच और 2019-21 के बाद के वर्षों में गरीबी के स्तर की घटनाओं के संबंध में डेटा की कमी के कारण, 2013-14 और 2022-23 के लिए हेडकाउंट गरीबी अनुपात में कमी की चक्रवृद्धि वृद्धि दर के आधार पर अनुमान क्रमशः 2005-06 और 2015-16 एवं 2015-16 और 2019-21 के बीच गरीबी के स्तर की घटनाओं पर लगाया गया। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में बहुआयामी गरीबी 2013-14 में 10.14 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.88 प्रतिशत हो गई और इस अवधि के दौरान लगभग 4.67 लाख लोग गरीबी से बच गए। तालिका 16.13

17.आवास और शहरी विकास

डेनिश वास्तुकार और शहरी डिजाइन में वैश्विक नेता जेन गेहल ने प्रसिद्ध रूप से कहा था कि पहले हम शहरों को आकार देते हैं,फिर वो हमें आकार देते हैंै। लोग ऐसे निर्मित वातावरण बनाकर शहरों को आकार देते हैं जो रहने की क्षमता,उत्पादकता और कनेक्टिविटि को बढावा देते हैं,अंतत; इन शहरों में चारों ओर से अघिक लोगों को आकर्षित करतंे हैं। शहरीकरण-ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में लोगों की आवाजाही-तेजी से विकास की ओर ले जाती है, जिसके साथ रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, बुनियादी ढांचे का विकास होता है और ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक लाभ होता है। हालाँकि, शहरीकरण अपने साथ भीड़भाड़ जनसंख्या और यातायात, आवास की कमी, मलिन बस्तियों का विकास, अपर्याप्त नागरिक सुविधाओं और नौकरियों और पर्यावरण प्रदूषण जैसी चुनौतियाँ भी लाता है। शहरी नीतियों का उद्देश्य शहरी परिदृश्य के लाभों को अधिकतम करते हुए इन लागतों को कम करना है और यह सुनिश्चित करना है कि लाभ लिंग और सामाजिक वर्गों में उचित रूप से वितरित हो।
हिमाचल प्रदेश सरकार, आवास एवम् शहरी विकास प्राधिकरण (हिमुडा) के माध्यम से सभी आर्थिक स्तरों के व्यक्तियों की आवास आवश्यकताओं के अनुरूप मकान, फ्लैट और विकसित भूखंड प्रदान कर रही है, ताकि विभिन्न आय समूहों के लोगों की आवास मांग को पूरा किया जा सके। इस वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए हिमुडा द्वारा क्रियान्वित किए जाने वाले कार्यों के लिए दिसम्बर, 2023 तक ₹19.83 करोड़ व्यय हो चुका है। वित्त वर्ष के दौरान 312 फ्लैटों, 152 विभिन्न श्रेणियों के रिहायशी प्लाटों को विकसित करने का लक्ष्य है जिनमें से 64 फ्लैटों का निर्माण तथा 148 प्लाटों को विकसित किया जा चुका है। हिमुडा का सोहाला ;सिरमौरद्ध, चेत्तरा (ऊना) में नई आवासीय काॅलोनियों तथा शिमला में व्यावसायिक परिसर को विकसित करने का प्रस्ताव है। इन काॅलोनियों में 851 प्लाटों और 704 फ्लैटों का निर्माण कार्य होगा। उपरोक्त के अलावा हिमुडा ने भारत सरकार के आवास व शहरी मामलों के मंत्रालय को जठिया देवी ;शिमला हिलजद्ध में एक माउंटेन टाउनशिप स्थापित करने के लिए एक डीपीआर प्रस्तुत की है, जिसकी अनुमानित परियोजना लागत ₹1373.44 करोड़ है। इसके अतिरिक्त संजौली, सपरून, धर्मपुर ;सोलनद्ध परवाणू, नालागढ़, देहरा, ढांैडी ;मण्डीद्ध और रजवाड़ी ;मण्डीद्ध में आवासीय काॅलोनियों का कार्य प्रगति पर है।
हिमुडा की पहल- वर्ष 2023-24 में विभिन्न निर्माण कार्याें में वेतन रोजगार माध्यम से 4,44,870 कार्य दिवसों के सृजन का अनुमान है जिसका निष्पादन हिमुडा द्वारा निजी ठेकेदारों के माध्यम से किया जाता है।
वर्तमान में नगर निगम शिमला, धर्मशाला, सोलन, मण्डी व पालमपुर सहित हिमाचल प्रदेश में 60 शहरी स्थानीय निकाय है। शहरी क्षेत्रों में लोगों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के लिए सरकार प्रतिवर्ष इन शहरी स्थानीय निकायों को सहायता अनुदान राशि प्रदान कर रही है। राज्य वित्तायोग की सिफारिशों के अनुसार इस वित्तीय वर्ष 2023-24 में इन शहरी स्थानीय निकायों को राज्य वित्त आयोग ने ₹192.62 करोड़ की सिफारिश की गई है, वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान शहरी स्थानीय निकायों को ₹154.10 करोड ;बेसिक ग्रांटद्ध की राशि अभी तक प्रदान की जा चुकी है और ₹38.52 करोड कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद शहरी स्थानीय निकायों को जारी किया जाना है । इस राशि में इन निकायों के लिए विकास कार्यों तथा उनके आय व व्यय के अन्तर को दूर करने के लिए सहायता अनुदान राशि सम्मिलित है।
उपरोक्त चित्र 17.1 से स्पष्ट है कि विभिन्न शहरी स्थानीय निकायों का संचयी रूप में आंकड़ा वर्ष 2001-02 के मुकाबले बढ़कर वर्ष 2022-23 में 60 हो गया है।

शहरी क्षेत्रों में सड़कों का रख-रखाव- 60 शहरी स्थानीय निकायों द्वारा लगभग 3,349 किलोमीटर सड़कें, रास्ते गलियों तथा नालियों का रख-रखाव किया जा रहा है। इस वित्तीय वर्ष 2023-24 में इन सड़कों के लिए सरकार द्वारा ₹6.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
योजना का प्राथमिक उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में रह रहे गरीब परिवारों का सामाजिक आर्थिक एवं संस्थागत क्षमता विकास करना तथा प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता के माध्यम से रोजगार एवं स्वरोजगार अवसर प्रदान करते हुए सतत् तौर पर आजीविका साधनों को सुद्ढ़ करना है जिससे वे सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें।
वर्ष 2023-24 की उपलब्धियां निम्नलिखित हैं-
i) अब तक 337 स्वयं सहायता समूह बनाए जा चुके हैैं।
ii) 39 क्षेत्रिय स्तर के संगठन और 22 शहरी स्तर के संगठनों का गठन किया गया है। 270 आवेदकों को ₹3.59 करोड़ और 252 स्वयं सहायता समूहों को ₹6.76 करोड बैंकों के माध्यम से स्वीकृत किये जा चुके हैं। 5,790 स्ट्रीट वेंडरों की पहचान की गई और 4,320 स्ट्रीट वेंडरों को वेडिंग प्रमाणपत्र प्रदान किया गया। इसके साथ 44 स्थायी शहरी वेडिंग कमेटियों ;चुनाव द्वाराद्ध का गठन किया गया।
iii) नगर निगम सोलन में वेंडर मार्किट का ₹80 लाख से निर्माण कराया गया है। इसके अलावा नगर परिषद ऊना में ₹1.03 करोड की लागत से वेंडर मार्किट का निर्माण किया जा रहा है।
iv) प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के अन्तर्गत 5,144 ऋण आवेदकों को ₹10 हजार, दूसरे चरण में 2,506 आवेदकों को ₹20 हजार तथा 1,012 आवेदकों को तीसरे चरण में ₹50 हजार उपलब्ध करवाए गए हैैं।
15वें वित्तायोग ने शहरी स्थानीय निकायों एवं छावनी परिषदों् के लिए दो प्रकार की अनुदान राशि वितरण करने का प्रस्ताव किया है। पहली अनुदान राशि ;40 प्रतिशतद्ध जोकि बिना शर्त के प्रदान की जाती है और दूसरी अनुदान राशि ;60 प्रतिशतद्ध वह है जोकि 15वें वित्तायोग द्वारा सुझाई गई कुछ शर्तों को पूरा करने के उपरान्त जारी की जाती है। इस वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ₹171.00 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है, इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा 15वें वित्तायोग के अन्तर्गत् ₹5.93 करोड़ की स्वास्थ्य अनुदान राशि शहरी स्थानीय निकायों को इस वित्तीय वर्ष में जारी की गई। वित्तीय वर्ष 2022-23 की सशर्त अनुदान और बिना शर्त के अनुदान की दूसरी किश्त ₹81.00 करोड़ शहरी स्थानीय निकायों एवं छावनी परिषदों को वित्तीय वर्ष 2023-24 में जारी की जा चुकी है।
अमरूत- इस योजना का मुख्य उद्देश्य शहर के उन क्षेत्र्रों में बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना है जहां यह सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। इस के अन्तर्गत शिमला और कुल्लू शहरों का चयन किया गया है। इस योजना का कुल आकार ₹304.52 करोड़ निर्धारित है, जिसमें 75 योजनाएं शामिल हैं। कुल 75 परियोजनाओं में से ₹219.01 करोड़ की 66 परियोजनाएं पूरी हो चुकी है और शेष ₹85.50 करोड़ की 09 परियोजनाएं मार्च 2024 तक पूरी कर ली जाएंगी।
अमरूत-2.0- इस मिशन का शुभारंभ प्रधानमंत्री द्वारा शहरों को पानी की सर्कुलर व्यवस्था के माध्यम से ‘जल उपलब्धता’ और ‘स्वयं सक्षम‘ बनाने के उद्देश्य से 01 अक्तुबर, 2021 को किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य पेयजल आपूर्ति को सदृढ़ करना, सीवरेज और सैपटेज प्रबन्धन, उपचारित अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण/पुनः उपयोग, जल निकायों के कायाकल्प और हरित स्थानों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना है। इस योजना की अवधि वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 तक है। सभी वैधानिक कस्वों (61 शहरी स्थानीय निकायों $ 7 छावनी परिषदों्) को कवर करने के प्रस्ताव के साथ फंडिग पैटर्न 90ः10 अनुपात (केन्द्रः राज्य) है। राज्य जल कार्य योजना तीन चरण में प्रस्तुत की गई । इस योजना का कुल परिव्यय ₹280.00 करोड का है (₹252.00 करोड केन्द्र भाग एवं 28.00 करोड राज्य भाग) । राज्य स्तरीय तकनीकी समिति और राज्य उच्चाधिकार प्राप्त संचालन समिति की मंजूरी के बाद पहले,दूसरे एवं तीसरे चरण ( संचालन और रख-रखाव सहित) क्रमशः ₹170.57 करोड,़ ₹39.01 करोड,़ ₹112.08 करोड़ की परियोजनाएं आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय,भारत सरकार को प्रस्तुत की गई और सभी तीनों किश्तों को मंजूरी दे दी गई है।
स्मार्ट सिटी मिशन जून, 2015 में शुरु किया गया था और इस मिशन के अन्तर्गत नगर निगम धर्मशाला की परियोजना को स्वीकृत किया गया था। वर्ष 2017-18 में भारत सरकार द्वारा नगर निगम शिमला को भी स्मार्ट सिटी मिशन के अन्तर्गत शामिल किया गया था। इस वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस योजना के लिए ₹0.08 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है इसके अतिरिक्त, भारत सरकार से ₹196.00 करोड़ की राशि केन्द्रीय भाग के रुप में प्राप्त हुई है। शिमला स्मार्ट सिटी की कुल 53 परियोजनाओं में से 28 शीघ्र कार्यान्वित होने वाली परियोजनाओं को चुन लिया गया है। इन परियोजनाओं को आगे 210 घटकों में विभाजित किया गया है जिनमें से 143 घटकों का कार्य पूर्ण हो चुका है तथा 67 घटकों का कार्य प्रगति पर है। धर्मशाला स्मार्ट सिटी की कुल 81 परियोजनाओं में से 52 परियोजनाएं पूरी कर ली गई हैं तथा 29 परियोजाओं का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है।
स्वच्छ भारत अभियान (शहरी) 2.0(एस.बी.एम. 2.0) भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है और भारत सरकार के आवास एवं शहरी विकास मामलों के मंत्रालय द्वारा सभी शहरी नगर निकायों में कार्यान्वित है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य शहरांे/कस्बों को खुले में शौच मुक्त व नागरिकों को स्वस्थ और रहने योग्य वातावरण प्रदान करना है । इस उद्देश्य के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य प्रगति पर हैंः
i) शहरी स्थानीय निकायों द्वारा व्यक्तिगत शौचालय के निर्माण के लिए धन संवितरित करना और शहरों में सार्वजनिक/सामुदायिक शौचालयों की पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करना। अभी तक इस अभियान के अन्तर्गत 6,715 व्यक्तिगत शौचालय, जिनके पास शौचालय सुविधा नहीं है, के लिए बनाए जा चुके हंै और 391 सामुदायिक और 1,273 सार्वजनिक शौचालय शीटें नई व पुनर्निर्मित की जा चुकी हंै।
ii) पुराने अपशिष्ट स्थलों की निकासी के लिए विभिन्न शहरी स्थानीय निकायों को ₹3.05 करोड़ की राशि जारी की गई है। इस के अतिरिक्त, स्वच्छ भारत अभियान (शहरी) 2.0 के अपशिष्ट प्रबन्धन घटक के तहत भारत सरकार के आवास एवं शहरी विकास मामलों के मंत्रालय से ₹17.02 करोड़ की मांग की गई है।
iii) राज्य में आम जनता को जागरुक करने के लिए विभिन्न जागरूकता गतिविधियां जिनमें नियमित रुप से स्वच्छता पखवाड़ा, होडिंग/बैनर, नुक्कड़ नाटक, प्रिंट एवं इलैक्ट्रोनिक मीडिया इत्यादि शामिल हैं।
भारत सरकार द्वारा यह नई योजना शहरी क्षेत्रों के लिए शुरू की गई है, जिसका कार्यकाल 17 जून, 2015 से 31 मार्च, 2024 तक है। इस योजना का उद्देश्य शहरों को स्लम मुक्त करके उन्हें आवास में बसाना, निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के लिए ऋण आधारित सब्सिडी योजना के अन्तर्गत लाभार्थियों को बैंकों से ऋण उपलब्ध करवाकर आवासों का निर्माण करना, सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी के माध्यम से आवासीय मकान सुनिश्चित करना है। इसके अतिरिक्त आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों को स्वयं उनके द्वारा नए आवासांे के निर्माण के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना सुनिश्चित किया गया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस योजना के अन्र्तगत 476 घरों का निर्माण किया गया व 406 नए घरों की स्वीकृति प्रदान की गई ।
शहरी स्थानीय निकायों में पार्किग की समस्या के समाधान हेतु इस वित्तीय वर्ष 2023-24 में ₹5.00 करोड़ का बजट प्रावधान है इस योजना के अन्तर्गत विŸाीय सहायता 75ः25 के आधार पर उपलब्ध करवाई जाती है (75 प्रतिशत सरकार द्वारा और 25 प्रतिशत सम्बन्धित नगरीय निकाय द्वारा वहन की जाती है)
सरकार ने शहरी स्थानीय निकायों को प्रोत्साहित करने के लिए यह एक योजना शुरू की है, जिसके अन्तर्गत सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली शीर्ष एक नगर निगम, तीन नगर परिषदों और तीन नगर पंचायतों को नगद पुरस्कार दिया जाता है। सर्वोत्तम प्रदर्शन करने वाले शहरी निकायों को हर वर्ष स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की जयंती 25 दिसंबर को या सरकार द्वारा तय की गई किसी अन्य तिथि को मुख्यमंत्री द्वारा अटल श्रेष्ठ शहर पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार राशि का विवरण सारणी 17.1 में दर्शाया गया हैैै ।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी के वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना 16 मई, 2020 को शुरु की गई जिसका ध्येय लोगों को आजीविका सुरक्षा देने हेतू शहरी क्षेत्रों में हर घर को 120 दिनों का गारंटीड रोजगार उपलब्ध कराना है। यह योजना 19 अप्रैल, 2021 और 26 मार्च, 2022 को पुनः अधिसूचित की गई। इस योजना के अन्तर्गत घर के पंजीकृत सभी वयस्क सदस्य कार्य करने के पात्र होंगे। शहरी स्थानीय निकाय के अधिकार क्षेत्र में आने वाले स्थानीय निवासी जो अपने घर या किराए पर रहते हों काम करने के लिए पात्र हैं। कार्य करने के लिए अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष है। शहरी विकास विभाग ने एम.एम.एस.ए.जी.वाई. का आॅनलाईन पोर्टल शुरु किया है। लाभार्थी शहरी स्थानीय निकाए के कार्यालय में जाये बिना अपना पंजीकरण करवा सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत कुल 6,31,506 श्रम दिवसों के साथ 16,827 लोग लाभान्वित हुए हैं और अब तक ₹14.26 करोड़ की राशि वितरित की जा चुकी है।
कार्यात्मक, सतत् और नियोजित विकास सुनिश्चित करने के लिए हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम, 1977 को 57 योजना क्षेत्रों (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.60 प्रतिशत है) और 36 विशेष क्षेत्रों (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.06 प्रतिशत) में लागू किया गया है।
पहलें-
i) राज्य सरकार ने अधिसूचना संख्या टीसीपी-ए(3)-5/2019-लूज, दिनांक 04-07-2023 द्वारा, एटिक के आवासीय उपयोग हेतु प्रावधान किया है। यह संशोधन भवनों के अंदर उपलब्ध आवासीय स्थान को प्रभावी रूप से बढ़ाएगा, जिससे आम जनमानस को व्यापक लाभ होगा। इसके अन्र्तगत फर्श क्षेत्र अनुपात (एफ.ए.आर.) के 0.25 का प्रीमियम उन लोगों को दिया जाएगा जिन्होंने अपने उपलब्ध फर्श क्षेत्र अनुपात (एफ.ए.आर) का पूरा उपयोग कर दिया है।
ii) साल 2023 की मानसून ऋतु के दौरान राज्य में अभूतपूर्व वर्षा हुई जिसके कारण जान व माल को बहुत क्षति पहुंची। भविष्य में ऐसी स्थिति की पुनरावृति को रोकने के लिए भवनों के ड्रेनेज की जांच तथा भवनों के संरचनात्मक डिजाइन बारे प्रस्ताव सरकार को पत्र दिनांक 01-09-2023 द्वारा भेज दिया गया है। यह प्रस्ताव शीघ्र ही अधिसूचित कर दिया जाएगा।
iii) सभी क्षेत्रीय कार्यालयों में आवेदको के आवागमन को कम करने हेतु पंजीकृत निजी पेशेवरों (आर.पी.पी.) के लिए अधिसूचित मानक संचालन प्रक्रिया (एस.ओ.पी.), जो 500 वर्ग मीटर के भूखण्डों के आवासीय उपयोग हेतु सभी अधिसूचित योजना/विशेष क्षेत्रों और शहरी स्थानीय निकायों (यू.एल.बी.) में विकास की अनुमति देने हेतु मान्य होगी, यह योजना शीघ्र ही विभाग के ऑनलाइन पोर्टल में शामिल करनेे के बाद आरंम्भ की जाएगी।
iv) राज्य सरकार ने अधिसूचना संख्या दिनांक 27-05-2023 द्वारा मेहतपुर योजना क्षेत्र व हाटकोटी विशेष क्षेत्र की विकास योजना को प्रकाशित किया गया है। इसके अलावा, शिमला योजना क्षेत्र की विकास योजना 20-06-2023 को अधिसूचित की गई है और कुल्लू घाटी योजना क्षेत्र की विकास योजना 06-12-2023 को अधिसूचित की गई है। इससे इन योजना क्षेत्रों/ विशेष क्षेत्र में सुनयोजित एवं विनियमित विकास सुनिश्चित किया जाएगा।
v) राज्य सरकार ने फोरलेन के आसपास नियोजित एवं विनियमित विकास हेतु अधिसूचना संख्या टीसीपी-एफ05/6/2023 दिनांक 28-06-2023 द्वारा फोर लेन योजना क्षेत्र का गठन किया है। परवाणू-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 05, कीरतपुर-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 03, शिमला-मटौर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 88 तथा पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 154 फोर लेन योजना क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली सडकें हैं ।
vi) राज्य सरकार ने अधिसूचना दिनांक 28-06-2023 द्वारा अटल टनल के उत्तरी पोर्टल में एचपीटीसीपी अधिनियम, 1977 के प्रावधानों को लागू किया है जिससे लाहौल में अटल टनल खुलने के बाद अधिक संख्या में आने वाले सैलानियों के कारण संभावित अनधिकृत और अनियोजित विकास गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।
vii) राज्य सरकार ने संचार की आधारभूत संरचना से संम्बन्धित हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम योजना नियमों की अनुसूची-9 के प्रावधानों में संशोधन किया है। 26-10-2023 को जारी की गई अधिसूचना के माध्यम से इन नियमों के संशोधन से बुनियादी संचार योजना को बढावा , टावर्स के लिए संरचनात्मक स्थिरता की सुनिश्चिता तथा भवनों के निर्माण में समाधान को प्रोत्साहन मिलेगा।
viii) क्षितिज वर्ष-2041 के लिए शिमला योजना क्षेत्र के लिए जी.आई.एस. आधारित विकास योजना दिनांक 20.06.2023 की अधिसूचना के माध्यम से अधिसूचित की गई है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने दिनांक 11.01.2024 के निर्णय द्वारा विकास योजना के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने की अनुमति दी।
शिमला योजना क्षेत्र की जनसंख्या 2011 में 3,11,429 से बढ़कर 2041 में 6,25,127 हो जाएगी। विकास योजना 2041 में बढ़ी हुई जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है।
रियल इस्टेट विनियामक प्राधिकरण हिमाचल प्रदेश ने 1 जनवरी, 2020 से अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इस प्राधिकरण का मुख्य उद्देश्य रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित और बढ़ावा देने के साथ-2 हिमाचल प्रदेश में भूखण्डों, अपार्टमैंटस या भवनों की बिक्री एक कुशल तरीके से हो और उपभोक्ता/घर खरीदारों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करना है। शिकायतों को दर्ज करने के अतिरिक्त रियल एस्टेट परियोजनाओं तथा रियल एस्टेट एजैंटों को पंजीकृत करने की प्रक्रिया करता है। इस प्राधिकरण ने 31 दिसम्बर, 2023 तक 178 रियल एस्टेट परियोजनाओं तथा 111 रियल एस्टेट एजैंटों को पंजीकृत किया है। प्राधिकरण के पास अब तक लगभग 65 शिकायतें दर्ज की गई हैं जिनमें से 23 का निपटारा कर दिया गया है तथा शेष 42 में सुनवाई प्रक्रियाधीन है। यह प्राधिकरण पार्टियों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से शिकायतों के मामलों को निपटाने की पहल कर रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप आबंटियों/घर खरीदारों को ₹1.55 करोड़ की राशि वापस कर दी गई है। हि.प्र.रेरा उपभोक्ता अनुकूल तरीके से काम कर रहा है और शिकायतों की सभी सुनवाई आॅनलाइन मोड (वेबएक्स) के माध्यम से की जा रही है। यह प्राधिकरण संबन्धित विभागों के समन्वय से रियल एस्टेट परियोजनाओं के लंबित अनुमोदनों के सभी मामलों को अॅानलाईन माध्यम से निगरानी कर प्रोमोटरों को समय पर अनुमतियां उपलब्ध करवाने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
राष्ट्रीय भवन संगठन ने आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग हिमाचल प्रदेश को राज्य में भवन सामग्री के भाव एकत्र करने व भवन लागत सूचकांक को संकलित करने का काम सौंपा है। विभाग आधार वर्ष 2011-12 पर राज्य स्तरीय भवन निर्माण लागत सूचकांक ;ठब्ब्प्द्ध तैयार करके जारी कर रहा है। तिमाही सूचकांकों के आधार पर, वार्षिक सूचकांकों को तैयार किया गया है और इन्हें सारणी 17.2 में दर्शाया गया हैः
उपरोक्त सारणी के अनुसार, सामग्री लागत सूचकांक 140.82 से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 146.53 हो गया है जो वर्ष 2023-24 में और बढ़कर 148.15 हो गया है। श्रम लागत सूचकांक भी 140.29 से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 145.99 और वर्ष 2023-24 मंे औरे बढ़कर 148.29 हो गया है, इस सूचकांक के मजदूरी घटक में वृद्धि के कारण श्रम लागत सूचकांकों में वृद्धि दर्ज हुई। इसी प्रकार घटक अन्य व्यय, जिसमें कान्ट्रेकटर और पर्यवेक्षी शुल्क आदि शामिल है, जो अन्य व्यय सूचकंाक के अन्तर्गत आता है, यह भी 2022-23 में 140.30 से बढ़कर 148.92 हो गया है और वर्ष 2023-24 में बढ़कर 150.92 हो गया है। इन सभी सूचकांकों में वृद्धि के परिणामस्वरुप समग्र भवन निर्माण लागत सूचकांक वर्ष 2021-22 में 140.63 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 148.67 हो गया है।

18.सूचना प्रौद्योगिकी

सूचना प्रौद्योगिकी विभाग वर्ष 1999 में बनाया गया था और वर्ष 2002 में उद्योग विभाग में विलय कर दिया गया था। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग को उद्योग विभाग से अलग कर गया था और वर्ष 2004 में जैव-प्रौद्योगिकी के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में विलय कर दिया गया था। 13 अप्रैल, 2007 को जैव-प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विषयों को सूचना प्रौद्योगिकी विभाग से अलग कर दिया गया और एक स्वतंत्र सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग अस्तित्व में आया। हालाँकि, बदलते समय के साथ विभाग द्वारा निपटाई जाने वाली कई चीजें पुरानी हो गईं और कई नई चीजें जोड़ी गईं।
डिजिटल प्रौद्योगिकियों और डिजिटल परिवर्तन के बदलते समय के अनुरूप, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल प्रदेश ने अपना नाम बदलकर डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग कर दिया है। इस आशय की मंजूरी हाल ही में हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल द्वारा दी गई है। हिमाचल प्रदेश यह नामकरण करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है जो राज्य को डिजिटल रूप से उन्नत और आधुनिक राज्य में बदलने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन के नए विभाग का लक्ष्य हिमाचल प्रदेश के डिजिटल परिवर्तन को प्राप्त करना है, जिसमें उन्नत डिजिटल प्रौद्योगिकियों, विश्वसनीय डेटा और प्रभावी प्रशासन और समावेशी विकास के लिए कनेक्टिविटी शामिल है, जिसका लक्ष्य हिमाचल प्रदेश का डिजिटल परिवर्तन है।
मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन /1100- मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन हेल्पलाइन /1100 (एम.एम.एस.एस.) राज्य के नागरिकों की शिकायतों के समय पर निवारण में एक प्रभावी तंत्र साबित हो रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में 21 दिसम्बर, 2023 तक एम.एम.एस.एस. हेल्पलाइन के माध्यम से 1,11,237 शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से 1,00,341 (90 प्रतिशत) शिकायतों का निपटारा किया जा चुका है, जिनमें 75,269 (68 प्रतिशत) शिकायतें शामिल हैं, जिन्हें संबंधित नागरिकों से प्रतिक्रिया लेने के बाद संतोषजनक ढंग से बंद कर दिया गया है।
कुल मिलाकर, एम.एम.एस.एस. हेल्पलाइन के लॉन्च के बाद से 21 दिसंबर 2023 तक इस हेल्पलाइन के माध्यम से कुल 6,15,086 शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमें से 6,03,796 (98 प्रतिशत) शिकायतों का निपटारा किया गया है, जिसमें 4,33,109 (70 प्रतिशत ) शिकायतें शामिल हैं, जिनका समाधान संबंधित नागरिकों की संतुष्टि के अनुसार किया गया।
इसके अलावा एम.एम.एस.एस. के साथ एकीकरण में हिमाचल राज्य पथ परिवहन निगम (एच.आर.टी.सी.) हेल्पलाइन शुरू की गई है, जो एच.आर.टी.सी. बसों के माध्यम से यात्रा करने वाले यात्रियों को तत्काल सहायता प्रदान करेगी। एच.आर.टी.सी. हेल्पलाइन के माध्यम से कुल 1,569 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 1,568 मामलों का निपटारा कर दिया गया है। 1 दिसम्बर, 2023 को आपदा हेल्पलाइन को भी एम.एम.एस.एस. हेल्पलाइन के साथ एकीकृत किया गया है। आपदा हेल्पलाइन के माध्यम से कुल 60 मामले दर्ज किए गए हैं।
एम.एम.एस.एस. हेल्पलाइन /1100 के साथ पहुंच को और बेहतर बनाने और नागरिकों के अनुभवों को बढ़ाने के लिए एम.एम.एस.एस. हेल्पलाइन सिस्टम में एक व्हाट्स एप चैटबॉट सुविधा लागू की जा रही है।
ई-ऑफिस- सरकारी प्रक्रियाओं और सेवा वितरण तंत्र में प्रभावशीलता और पारदर्शिता की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। आधिकारिक फाइलों और दस्तावेजों की भौतिक फाइल आवाजाही में बहुत समय लगता है और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निर्णय लेने से पहले एक डेस्क से डेस्क तक निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है। नतीजतन, फाइलों की धीमी गति और/या इन फाइलों को निपटाने के लिए कार्यालय में वरिष्ठ अधिकारियों की अनुपलब्धता या अनुपस्थिति के कारण कई महत्वपूर्ण निर्णय लंबित हो जाते हैं। अधिकांश सरकारी कार्यालयों में फाइलों का चोरी होना और गायब होना भी असामान्य बात नहीं है।
ऐसे परिदृश्य में एक ऐसी प्रणाली की तत्काल आवश्यकता थी, जहां एक अधिकृत कर्मचारी कम से कम समय में आवश्यक दस्तावेजों /फाइलों का पता लगा सके, उन्हें अपडेट कर सके और अन्य प्रासंगिक उपयोगकर्ताओं के साथ साझा कर सके और अंततः उन्हें उचित संदर्भों के साथ संग्रहित कर सके। ई-ऑफिस हिमाचल प्रदेश में कागज रहित प्रशासन के युग की ओर एक कदम है। पेपरलेस होने की खूबसूरती यह है कि यह न केवल पर्यावरण को बचाता है बल्कि संगठनों का बहुत सारा पैसा भी बचाता है। यह पारंपरिक कागज-आधारित कार्यालय वातावरण को एक कुशल डिजिटल में बदलने के लिए भारत सरकार की एक पहल है। ई-ऑफिस प्रणाली सरकार को अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं को स्वचालित करने, कागज के उपयोग को कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने और सरकार की प्रशासनिक प्रक्रियाओं की समग्र दक्षता में सुधार करने में सक्षम बनाती है। ई-ऑफिस प्लेटफॉर्म दस्तावेज प्रबंधन, फाइल ट्रैकिंग, कार्य प्रबंधन, वर्कफ्लो स्वचालन, ई-हस्ताक्षर, और संचार उपकरण सहित कई प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करता है। इसे सरकारी अधिकारियों के बीच आसान सहयोग की सुविधा, फाइलों की भौतिक आवाजाही की आवश्यकता को खत्म करने, प्रशासनिक कार्यों के समय और लागत को कम करने और निर्णय लेने की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
5 जून, 2019 को ई-ओॅफिस प्रोजेक्ट को “पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। वर्तमान में, निम्नलिखित कार्यालय ई-आॅफिस पर शामिल है।
इसके अलावा, एक वेब आधारित एप्लिकेशन होने के कारण, ई-ऑफिस एप्लिकेशन को किसी भी नेटवर्क के माध्यम से सफलतापूर्वक और फोर्टी-क्लाइंट का उपयोग करके कहीं से भी कभी भी एक्सेस किया जा सकता है। ई-ऑफिस एप्लिकेशन का उपयोग करते समय सहज अनुभव के लिए सभी निदेशालयों को बैंडविड्थ 100 प्रति सेकंड मेगा बिट्स (एम.बी.पी.एस.) क्षमता में अपग्रेड किया गया। हाल ही में, राज्य के सभी ई-ऑफिस उपयोगकर्ताओं के लिए नोटिंग और ड्राफ्ट पत्रों पर हस्ताक्षर करने के लिए ई-साइन सुविधा का प्रावधान किया गया है।
हिमाचल ऑनलाइन सेवा (ई-डिस्ट्रिक्ट) पोर्टल- सरकारी कार्यालयों में लोगों की संख्या कम करने और राज्य के नागरिकों को उनके दरवाजे पर विभिन्न सरकारी सेवाओं की सुविधा प्रदान करने के लिए, परिवहन पर अनावश्यक व्यय को कम करने और आम नागरिकों के लिए समय और लागत बचाने के लिए हिमाचल ऑनलाइन सेवा पोर्टल बनाया गया है, जहां आम जनता सरकारी योजनाओं/सेवाओं तक सबसे आसान और पारदर्शी तरीके से पहुंच सके। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान, विभाग ने ऑनलाइन डिलीवरी के लिए हिमाचल ऑनलाइन सेवा पोर्टल में 104 सेवाएं जोड़ी थी। अब विभिन्न विभागों राजस्व, महिला एंव बाल विकास पंचायती राज, ग्रामीण विकास विभाग, शहरी विकास की 217 सेवाओं की जानकारी आनलाईन इस पोर्टल के माध्यम से प्रदान की जा रही है। हिमाचल ऑनलाइन सेवा पोर्टल के माध्यम से प्रतिदिन विभिन्न सेवाओं के लिए औसतन 4,500 लेनदेन होते हैं। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में नवम्बर, 2023 तक कुल 10,83,825 ट्रांजेक्शन हो चुके हैं।
आधार- भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यू.आई.डी.ए.आई.) का उद्देश्य प्रत्येक निवासी को उसकी जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारी से जुड़ी एक विशिष्ट पहचान संख्या जारी करना है, जिसका उपयोग वे भारत में कहीं भी अपनी पहचान बनाने और कई सेवाओं का लाभ लेने के लिए कर सकते हैं। 31 अक्टूबर, 2023 तक राज्य में 74,68,000 निवासी (अनुमानित जनसंख्या 2023) हैं। राज्य में कुल 104.29 प्रतिशत (लाइव) विशिष्ट पहचान संख्या (यू.आई.डी.) उत्पन्न किए गए हैं। राज्य में 5 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या के लिए आधार संतृप्ति स्तर 100 प्रतिशत से अधिक है। आधार जनरेशन के मामले में राज्य ने देश में समग्र रूप से चैथा रैंक और 0-5 वर्ष आयु वर्ग में पहला रैंक हासिल किया है। छूटी हुई आबादी और आधार अपडेशन को कवर करने के लिए, वर्तमान में डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग और लोकमित्र केन्द्र (सी.एस.सी.) -विशेष उद्देश्य वाहन (एस.पी.वी.) के माध्यम से राज्य के सभी जिलों और ब्लॉकों को कवर करते हुए 420 स्थायी नामांकन केंद्र (पी.ई.सी.) काम कर रहे हैं।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.)- सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का वित्तीय लाभ वास्तविक समय के आधार पर नागरिकों तक पहुंचाने के लिए, शून्य चोरी सुनिश्चित करते हुए, राज्य में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण लागू किया गया है। डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान संबंधित विभागों के साथ 161 (केंद्र-76, राज्य-85) योजनाओं की पहचान की है, जिनमें से 48 योजनाओं (केंद्र-19, राज्य-29) में डी.बी.टी. लागू किया गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान, माह नवम्बर, 2023 तक 48 योजनाओं के अन्तर्गत 30.25 लाख लाभार्थियों को ₹1157.10 करोड़ डी.बी.टी. के माध्यम से हस्तांतरित किये गये हैं।
हिमस्वान- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एन.ई.जी.पी.) के तहत, हिमाचल प्रदेश डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग ने हिमाचल प्रदेश स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (हिमस्वान) नामक सुरक्षित नेटवर्क बनाया। हिमस्वान राज्य सरकार के सभी विभागों को ब्लॉक स्तर तक सुरक्षित नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करता है और जी.टू.जी. (सरकार से सरकार), जी.टू.सी. (सरकार से नागरिक) और जी.टू.बी. (सरकार से व्यवसाय) सेवाओं की कुशल इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी प्रदान करता है। हिमस्वान की स्थापना फरवरी, 2008 में की गई थी और अब, राज्य भर में 2,526 सरकारी कार्यालय इस नेटवर्क के माध्यम से जुड़े हुए हैं। बढ़ती मांग के कारण, बैंडविड्थ को नवीनतम मल्टीप्रोटोकॉल लेबल स्विचिंग (एम.पी.एल.एस.) तकनीक के साथ उन्नत किया गया है। इसने कोविड-19 महामारी के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। क्षेत्र के पदाधिकारियों के साथ कई सरकारी बैठकें वस्तुतः हिमस्वान का उपयोग करके आयोजित की गईं। अब न्यूनतम बैंडविड्थ 8 एम.बी.पी.एस. है। हालाँकि, जिला स्तर पर उच्च इंटरनेट उपयोग वाले सभी निदेशालयों और कार्यालयों को 100 एम.पी.बी.एस. में अपग्रेड कर दिया गया है। श्रेणीवार स्थिति इस प्रकार हैः

भारत नेट- भारत नेट देश की ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने के लिए भारत सरकार की एक पहल है, इसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना है। यह ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जुड़ने वाली दुनिया की ग्रामीण कनेक्टिविटी योजना है। हिमाचल प्रदेश में कुल 3,615 ग्राम पंचायतें हैं जिन्हें भारत नेट परियोजना के तहत कवर किया जाना है। भारत नेट चरण-1 में, अब तक राज्य की केवल 409 ग्राम पंचायतों (ओ.एफ.सी.) के माध्यम से 252 ग्राम पंचायतें और 157 दूरस्थ ग्राम पंचायतें बहुत छोटे एपर्चर टर्मिनल (वी.एस.ए.टी.) सैटेलाइट आधारित कनेक्टिविटी के उपयोग से ज¨डा है।
राज्य सरकार दूसरे चरण के कार्यान्वयन में नेटवर्क निर्माण के लिए भारत सरकार के साथ शेष 3,206 ग्राम पंचायतों, उन्नयन के लिए 252 मौजूदा ग्राम पंचायतों और अंतिम मील कनेक्टिविटी के लिए 15,538 गांवों को कवर करने के लिए भारत नेट के साथ अनुवर्ती कार्यवाही कर रही है।
हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा सेंटर- हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा सेंटर (एच.पी.एस.डी.सी.) मुख्य सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) आधारभूत ढांचे में से एक है। ज¨ डिजिटल टेक्नोलॉजीज और गवर्नेंस विभाग द्वारा बनाई गई हैं। जिसमे सरकार से सरकार (जी.टू.जी), सरकार से नागरिक (जी.टू.सी) और सरकार से व्यवसाय (जी.टू.बी.) सेवाओं की कुशल इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी दी गयी। विभिन्न विभागों/बोर्डों/निगमों की कुल 194 वेबसाइटें/एप्लिकेशन एच.पी. स्टेट डेटा सेंटर में होस्ट किए गए हैं। 17 एप्लिकेशन एच.पी.एस.डी.सी. के स्टेजिंग वातावरण में होस्ट किए गए हैं, जिनका सुरक्षा ऑडिट किया जा रहा है। एच.पी.एस.डी.सी. में होस्ट किए गए राज्य सरकार के सभी वेबसाइट एप्लिकेशन समय-समय पर साइबर सुरक्षा ऑडिट से गुजरते हैं। सुरक्षा ऑडिट और अनुपालन के बिना किसी भी वेबसाइट या पोर्टल या एप्लिकेशन को एच.पी. स्टेट डेटा सेंटर में होस्ट नहीं किया जा सकता है।
वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, एच.पी.एस.डी.सी. में विभिन्न विभागों के 19 नए एप्लिकेशन/वेबसाइट होस्ट किए गए हैं। एच.पी.एस.डी.सी. की वर्तमान क्षमता का पूर्ण उपयोग किया गया है। अगले 5 वर्षों के लिए एच.पी. स्टेट डेटा सेंटर के विस्तार और संचालन तथा रखरखाव (ओ.एंड.एम.) के लिए एक नई एजेंसी का चयन खुली निविदा के माध्यम से किया गया है।
सी.एम. डैशबोर्ड- माननीय मुख्यमंत्री द्वारा प्रमुख परियोजनाओं/योजनाओं की प्रगति की निगरानी के लिए एक सी.एम. डैशबोर्ड विकसित किया गया है। पहले चरण में, 8 विभाग (अर्थात, राजस्व, महिला बाल और विकास, जल शक्ति, लोक निर्माण विभाग, ग्रामीण विभाग, शिक्षा, जनजातीय और स्वास्थ्य सेवाएं जिनमें स्वास्थ्य सेवा निदेशालय (डी.एच.एस.), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एन.एच.एम.) और चिकित्सा शिक्षा निदेशालय (डी.एम.ई.) सी.एम. डैशबोर्ड के साथ एकीकरण के लिए पहचान की गई और संबंधित विभागों के परामर्श से कुल 81 प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (के.पी.आई.) की पहचान की गई। तदनुसार, ए.पी.आई. एकीकरण किया गया है और सभी डेटा प्रविष्टि फॉर्म, रिपोर्ट और विभागीय डैशबोर्ड विकसित किए गए हैं। विभागीय स्तर पर इसका यूजर एक्सेप्टेंस टेस्ट (यू.ए.टी.) पहले ही हो चुका है।
सी.एम. डैशबोर्ड पोर्टल को अपडेट करने के लिए 8 विभागों के संबंधित अधिकारियों/कर्मचारियों को पहले ही कई प्रशिक्षण प्रदान किए जा चुके हैं। सी.एम. डैशबोर्ड एप्लिकेशन परियोजनाओं अर्थात, भौतिक प्रगति, धन का उपयोग, विभागीय स्तर की निगरानी, जिलों/क्षेत्रीय कार्यालयों की प्रगति के आधार पर रैंकिंग आदि की वास्तविक समय निगरानी की सुविधा प्रदान करता है। प्रत्येक विभाग परामर्श के समय प्रदान किए गए अपने पदानुक्रम के आधार स्तर पर प्रदर्शन की निगरानी कर सकता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में पोर्टल लॉन्च करने का प्रयास किया जाएगा।
हिम परिवार- डिजिटल प्रौद्योगिकी और शासन विभाग, हिमाचल प्रदेश मौजूदा परिवार रजिस्टर के स्थान पर अपनी सामाजिक रजिस्ट्री (हिम परिवार) निर्माण कर रहा है जो राज्य में सक्रिय लाभ वितरण के लिए सत्य के एकल स्रोत के रूप में कार्य करेगा। हिम परिवार परियोजना में आवश्यक तकनीकी ढांचे के विकास के लिए प्रमुख गतिविधियाँ की गई हैं। हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक निवासी के लिए विशिष्ट आई.डी. तैयार की गई हैं। डेटा सफाई और सत्यापन गतिविधियाँ ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग (आर.डी.एंड.पी.आर.) के समन्वय से की जा रही हैं। मुख्यमंत्री हिमाचल स्वास्थ्य देखभाल योजना (हिमकेयर), सहारा, मुख्यमंत्री आवास योजना (एम.एम.ए.वाई.), ई-श्रम, ई-कल्याण और परियोजना प्रबंधन सूचना प्रणाली (पी.एम.आई.एस.) को सफलतापूर्वक हिम-परिवार के साथ एकीकृत किया गया है। एकीकृत योजनाओं में सीडिंग के कवरेज को बढ़ाने के लिए विभिन्न विभागीय डेटासेट का उपयोग करके डेटा सफाई गतिविधियां की जा रही हैं। शहरी क्षेत्रों में परिवार रजिस्टर बनाने के लिए सर्वेक्षण करने के लिए शहरी विकास विभाग द्वारा हिम परिवार परियोजना के तहत एक सर्वेक्षण मोबाइल ऐप और वेब पोर्टल विकसित किया गया है। हिम परिवार के तहत सिंगल साइन-ऑन (एस.एस.ओ.) एप्लिकेशन विकसित किया गया है और वर्तमान में विभागीय अनुप्रयोगों के साथ एकीकरण प्रगति पर है। शहरी विकास, अल्पसंख्यक और विशेष रूप से सक्षम (ई.एस.ओ.एम.एस.ए.), भूमि रिकॉर्ड, कृषि, हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड (एच.पी.बी.अ®.एस.ई.), श्रम और रोजगार, शिक्षा, जल शक्ति और स्वास्थ्य विभाग की योजनाएं अगले 6 महीनों में एकीकरण का लक्ष्य रखा गया है। जिसका संबंधित विभागों द्वारा अनुपालना की जा रही है।
मुकदमेबाजी निगरानी प्रणाली (एल.एम.एस.)- डिजिटल टेक्नोलॉजी और गवर्नेंस विभाग ने विभिन्न अदालतों में लंबित सरकारी विभागों के अदालती मामलों की निगरानी के लिए सामान्य सॉफ्टवेयर विकसित किया है। इस सॉफ्टवेयर का उपयोग करके, प्रशासनिक सचिवध्विभाग प्रमुख और विभागीय अधिकारी अपने अदालती मामलों की प्रगति की निगरानी कर सकते है जिसमे लंबित मामलों की कुल संख्या, समय पर उत्तर दाखिल करना, मामले में आवश्यक व्यक्तिगत उपस्थिति, मामले की वर्तमान स्थिति आदि शामिल हैं।
सॉफ्टवेयर में निम्नलिखित विशेषताएं शामिल हैं-
i) मुकदमेबाजी निगरानी प्रणाली पर मामले का विवरण ऑनलाइन दर्ज करना।
ii) सुनवाई के लिए सूचीबद्ध मामले, समयबद्ध तरीके से दाखिल किए जाएंगे उत्तर 0-7, 8-15, 16-30 दिनों की लंबित रिपोर्ट तैयार।
iii) व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता वाले मामले ।
iv) न्यायालयवार लंबित प्रकरणों की रिपोर्ट।
v) पर्यवेक्षी कार्यालयों द्वारा लंबित मामलों की आसानी से निगरानी की जा सकती है।
कुल 80 विभाग¨ं क¨ शामिल किया गया हैं और 45,137 मामले एल.एम.एस. एप्लिकेशन पर ऑनलाइन पंजीकृत हैं।
राजस्व न्यायालय प्रबंधन प्रणाली (आर.सी.एम.एस.)- राजस्व न्यायालय प्रबंधन प्रणाली (आर.सी.एम.एस.), एक व्यापक सॉफ्टवेयर है जो राजस्व विभाग व डिजिटल टेक्नोलॉजी और गवर्नेंस विभाग के निकट समन्वय से डाटा संचालित परीक्षण द्वारा बनाया गया है। आर.सी.एम.एस. एक डिजिटल समाधान है जिसे हिमाचल प्रदेश में राजस्व अदालत के संचालन को आधुनिक बनाने और सुव्यवस्थित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है । इस पहल के एक हिस्से के रूप में राजस्व अदालत प्रक्रियाओं, मामलों का प्रबंधन और रिकॉर्ड-कीपिंग को डिजिटल बनाया गया है। नागरिक और वकील अपने मामलों से संबंधित सभी जानकारी निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। ऐसी जानकारी में मामलों का प्रोफाइल, मामलों की स्थिति, अंतरिम आदेश, अंतिम आदेश, मामलों की सूची इत्यादि शामिल हैं। आर.सी.एम.एस. द्वारा कुल 76,122 मामले ऑनलाइन पंजीकृत हैं, जिनमें से 24,606 मामलों का निपटारा किया जा चुका है।
राजस्व रलीफ एप्लिकेशन पोर्टल- राजस्व रलीफ एप्लिकेशन पोर्टल एक डिजिटल समाधान है जिसे हिमाचल प्रदेश में राहत निधि के प्रबंधन और वितरण को सरल और तेज बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह राहत अनुप्रयोगों को संसाधित करने, उनकी प्रगति पर नजर रखने और राहत कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक मंच के रूप में कार्य करता है। मॉड्यूल आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाता है, प्रत्यक्ष धन संवितरण के लिए राजकोष प्रणाली के साथ एकीकृत करता है, और आवेदकों और अधिकारियों को वास्तविक समय अद्यतन स्थिति प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, यह डेटा-संचालित निर्णय लेने की सुविधा के लिए व्यावहारिक रिपोर्ट तैयार करता है। राजस्व प्रबंधन प्रणाली (आर.एम.एस) के माध्यम से कुल 51,980 आवेदन ऑनलाइन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 19,105 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं।
नीतिगत पहलः राज्य मार्ग अधिकार (आर.ओ.डब्ल्य.ू) नीति, 2021 में संशोधन- हाल ही में, भारत सरकार ने पूरे देश में 5जी कनेक्टिविटी को लागू करने के लिए ‘‘5वीं पीढ़ी‘‘ (5जी) तकनीक लॉन्च की है और भारतीय टेलीग्राफ राईट आफ वे (आर.ओ.डब्ल्यू.) नियम, 2016 को 2017, 2021, 2022 और 2023 में संशोधन कर अधिसूचित किया गया है। इसके लिए एच.पी. राइट ऑफ वे पॉलिसी, 2021 में संशोधन किया गया है। राज्य की (आर.ओ.डब्ल्यू.) नीति को 5जी. सेवाओं के तेजी से कार्यान्वयन के लिए, नवीनतम भारत सरकार के नियमों के साथ जोड़ा जा रहा है और कैबिनेट द्वारा अनुमोदन की प्रतीक्षा की जा रही है। यदि फाइल 60 दिन से अधिक हो जाती है तो पोर्टल पर डीम्ड अप्रूवल की सुविधा लागू कर दी गई है। निवेशक अब अपनी फाइलों की गतिविधि को ट्रैक कर सकते हैं। सिस्टम में फाइल स्थानांतरित होने पर निवेशकों को एक लघु संदेश सेवा (एस.एम.एस.) और ई-मेल भेजा जाता है।
हिमाचल प्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम (एच.पी.पी.एस.जी.)-2011- राज्य के लोगों को निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर सार्वजनिक सेवा प्रदान करने की दृष्टि से, राज्य सरकार ने एच.पी.पी.एस.जी. अधिनियम-2011 लागू किया, जो 23 सितंबर, 2011 से लागू हुआ। अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए सरकार ने (नवम्बर, 2011) से अधिसूचना जारी की। अब तक 35 राज्य सरकार के विभागों और नामित अधिकारी (डी.ओ.एस.)/अपीलीय प्राधिकारियों में कुल 254 सेवाएं अधिसूचित की गई हैं, इसके अलावा आम जनता के लिए ऐसी सेवाएं प्रदान करने के लिए विशिष्ट समय भी दिया गया है। इस तरह के ठोस उपाय से राज्य सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि प्रशासनिक मशीनरी आम आदमी को लाभकारी तरीके से सेवायें प्रदान करने और उनकी जरूरतों के प्रति संवेदनशील है।
हिमाचल प्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम लिमिटेड, डिजिटल टेक्नोलॉजीज और गवर्नेंस विभाग एच.पी. के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्य कर रहा है निगम की मुख्य गतिविधियाँ सरकार को गुणवत्तापूर्ण कंप्यूटर हार्डवेयर और संबद्ध सेवाएँ, पैकेज्ड सॉफ़्टवेयर हार्डवेयर कार्यालय स्वचालन और मेडिकल, अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण की आपूर्ति करना और हिमाचल प्रदेश में विभाग और सार्वजनिक उपक्रम, और संबंधित ओ.ई.एम./विक्रेताओं/ए.एस.पी. के माध्यम से आपूर्ति किए गए हार्डवेयर का उचित रखरखाव सुनिश्चित करना है। राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में आई.टी. और ई-गवर्नेंस, जनशक्ति तैनाती, पुलिस भतÊ परियोजना के कार्यान्वयन के संदर्भ में मूल्यवर्धन प्रदान करने के लिए अपनी गतिविधियों में विविधता लाना है। हालाँकि, इस क्षेत्र में गतिविधियाँ शुरू करने के लिए, उपरोक्त व्यापक गतिविधियों के कुछ बुनियादी घटक इस प्रकार हैं।
क) विभागों के लिए सिस्टम और व्यवहार्यता अध्ययन आयोजित करना।
ख) पहचाने गए एप्लिकेशन क्षेत्रों के लिए सॉफ्टवेयर पैकेज विकसित करना।
ग) पूरे राज्य में हार्डवेयर के समग्र मानकीकरण को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त हार्डवेयर सुझाना और खरीदना।
ध) संबंधित ओ.ई.एम./विक्रेताओं/ए.एस.पी. के माध्यम से आपूर्ति किए गए हार्डवेयर का उचित रखरखाव सुनिश्चित करना।
च) लोकल एरिया नेटवर्क इलेक्ट्रिकल और सिविल कार्य सहित कंप्यूटर हार्डवेयर की स्थापना के लिए साइट विकसित करना।
छ) आई.टी./ई-गवर्नेंस परियोजनाओं को लागू करने में उपयोगकर्ता विभाग का प्रशिक्षण आयोजित करना।
ज) सरकारी विभागों/संगठनों का वेबसाइट विकास (डेटाबेस एकीकरण के साथ स्थिर और गतिशील वेबसाइट)।
झ) डेटा एंट्री और दस्तावेज़ स्कैनिंग कार्य।
ण) परिसर में सिस्टम पर हैंडहोल्डिंग और प्रशिक्षण (कंप्यूटर की बेसिक प्रशिक्षण, एम.एस. ऑफिस आदि)।
त) कार्यान्वयन के लिए संसाधन (हार्डवेयर/सॉफ्टवेयर/जनशक्ति) की आपूर्ति।
i) ई-गवर्नेंस परियोजनाएं।
ii) सॉफ्टवेयर विकास।
iii) टर्न-की बेसिक आधारित परियोजना निष्पादन।
iv) जनशक्ति की तैनाती।
वित्तीय उपलब्धियाँ- निगम ने वर्ष 2022-23 के दौरान विभिन्न सेवाओं का समाधान कर टर्नओवर अर्जित किया है।
हिमाचल प्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम द्वारा पिछले वर्षों में अर्जित लाभ और हानिः