Tribal Development
आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22


1.सामान्य समीक्षा

भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार एक सत्त प्रक्रिया है सरकार के विभिन्न मंत्रालय और विभाग आर्थिक व₹द्धि को बढ़ाने के लिए सरकार के रणनीतिक कार्यक्रमों और नीतियों को लागू कर रहे हैं। आर्थिक नीति निर्माण के लिए सरकार ;उर्ध्वगामीद्ध नीचे से ऊपर की ओर प्रक्रियाऐं जो जनता की जरूरतों को पूरा करती है, उपयोग कर रही है। कोविड-19 महामारी ने 2020 में सदी में विरले ही उत्पन्न होने वाले वैश्विक संकट का निर्माण किया। महामारी की शुरुआत में अभूतपूर्व अनिश्चितता का सामना करना पड़ा जिसके लिए भारत ने लंबे समय में लाभ के लिए अल्पकालिक दर्द के नजरिए से जीवन और आजीविका को बचाने पर ध्यान केंद्रित किया। भारत की प्रतिक्रिया इस मानवीय सिद्धांत से ऊपजी है कि अर्थव्यवस्था एक तीव्र लॉकडाउन के अस्थायी झटके से तो उभर जाएगी, लेकिन खोया हुआ मानव जीवन वापिस नहीं लाया जा सकता है। पिछले दो साल कोविड-19 महामारी के कारण विश्व अर्थव्यवस्था के लिए कठिन रहे हैं। संक्रमण की बार-बार लहरें, आपूर्ति-श्र₹ंखला में व्यवधान और, हाल ही में मुद्रास्फीति ने नीति-निर्माण के लिए चुनौतीपूर्ण समय पैदा किया है। इन चुनौतियों का सामना करते हुए, भारत सरकार की तत्काल प्रतिक्रिया समाज के कमजोर वर्गों और व्यापार क्षेत्र पर प्रभाव को कम करने के लिए सुरक्षा चक्र बनाने की रही। सरकार ने मध्यम अवधि की मांग को वापस लाने के लिए बुनियादी ढांचे पर पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय व₹द्धि के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक विस्तार करने के लिए आक्रामक रूप से आपूर्ति-पक्ष उपाय किए।
कोविड-19 महामारी के दो साल के दौरान इसकी नई लहरों, आपूर्ति- श्र₹ंखला सतत और उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बढती महंगाई केे कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता से त्रस्त रही। इसके अलावा, अगले वर्ष के दौरान प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा तरलता की संभावित वापसी से भी वैश्विक पूंजी प्रवाह अधिक अस्थिर हो सकता है। इस संदर्भ में, भारत में विकास पुनरुद्धार की गति के साथ-साथ विस्त₹त-आर्थिक स्थिरता संकेतकों दोनों का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है। टीकाकरण में प्रगति को देखना भी आवश्यक है क्योंकि यह न केवल एक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया है, बल्कि बार-बार महामारी की लहरों के कारण होने वाले आर्थिक व्यवधानों के खिलाफ एक प्रतिरोध भी है। टीकाकरण केवल एक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया ही नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए भी महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से संपर्क-गहन सेवाओं के लिए। इसलिए, इसे अभी के लिए एक व्यापक आर्थिक संकेतक के रूप में माना जाना चाहिए। टीकाकरण अभियान के एक वर्ष में भारत ने 16 फरवरी, 2022 तक 173.86 करोड़ खुराकें दी हैं, जिसमें 90.6 करोड़ लोगों को कम-से-कम एक खुराक और 74.5 करोड़ लोगों को दोनों खुराकें दी गयी हैं। देश में स्वास्थ्य सेवा, फ्रंटलाइन वर्कर्स और 60 साल से ऊपर के लोगों को कोविड-19 वैक्सीन की एहतियाती खुराक का टीकाकरण और 15-18 वर्ष आयु वर्ग के लिए टीकाकरण प्रक्रिया भी गति पकड़ रही है।
भारत की एक और प्रतिक्रिया मांग प्रबंधन पर पूर्ण निर्भरता के बजाय आपूर्ति पक्ष सुधारों पर जोर देना है। इन आपूर्ति-पक्ष सुधारों में कई क्षेत्रों का विनियमन, प्रक्रियाओं का सरलीकरण, और पूर्वप्रभावी कर पुराने मुद्दों को हटाना, जैसे निजीकरण, उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन आदि शामिल हैं। आर्थिक पुनरूथान भारत सरकार की प्रमुख प्रमुखताओं में से एक है। इस ओर किए गए प्रयासों में श्मेक इन इंडियाश्, श्स्टार्टअप इंडियाश् और श्ईज ऑफ डूइंग बिजनेसश् शामिल है। डिजीटल प्रौद्योगिकी इस वर्ष सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र रहा जिससे हम इस वैश्विक महामारी के विनाशकारी प्रभाव से ऊभर सके। भारत सरकार मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके अनुकूल वातावरण बना रही है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था को नुकसान से बचाने केे लिए जो नीतिगत फैैसले लिऐ गए, वह भारत को दुनिया में अद्वितीय बनाता है। वैश्विक महामारी में भारत की मानव केंद्रित प्रतिक्रिया जो भारत की विशेष संवेदनशीलताओं के अनुरूप है, ने अत्यंत गहन अनिश्चितता में आत्मविश्वास जगाने की शक्ति प्रदर्शित की। भारत ने जीवन और आजीविका के बीच अल्पकालिक अदला-बदली में दीर्घावधि विजेता बनते हुए जीवन और आजीविका दोनों को बचा लिया। कल्पना और दूरदर्शिता के साथ भारत ने इस संकट को अवसर में बदल कर अपने स्वास्थ्य सुविधाओं को सुद₹ढ़ किया और सुधारों से अर्थव्यवस्था की दीर्घावधि विकास की संभाव्यता को बल दिया। केन्द्र सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एम.एस.एम.ई.) के विकास और विस्तार में मद्द के लिए एक योजना की शुरुआत की है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा अन्य प्रयास में कुशल वित्तीय मध्यस्थता, विवेकपूर्ण राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के माध्यम से व्यापक आर्थिक स्थिरता हेतु देश की अर्थव्यवस्था बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरु किए गए हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में निरंतर गिरावट के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने व₹द्धि को काफी हद तक निरन्तर जारी रखा है। यह स्थिरता प्रभावी घरेलू व विदेशी नीतियों व सुशासन के फलस्वरुप है जिसके कारण अर्थव्यवस्था के विकास को बल मिला। विभिन्न सुधारों के फलस्वरुप भारतीय अर्थव्यवस्था में सत्त व₹ंिद्ध हुई हैै और शुद्ध सकल घरेलू उत्पादन में व₹₹द्धि पिछले 4 वर्षों ;2016 के बादद्ध से औसत 6.4 प्रतिशत के साथ उच्च रही। खनन और उत्खनन, विनिर्माण, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाओं, निर्माण, व्यापार, होटल और रेस्तरां, परिवहन, भंडारण, संचार और प्रसारण और अन्य सेवाओं से संबंधित सेवाओं में ऋणात्मक व₹द्धि का अनुभव करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2020-21 में कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2019-20 की तुलना में 6.6 प्रतिशत का संकुचन दिखा रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद आधार वर्ष 2011-12 के अनुसार स्थिर कीमतों पर वर्ष 2020-21 में 6.6 प्रतिशत के संकुचन के साथ ₹135.58 लाख करोड़ आंका गया है जोकि वर्ष 2019-20 में ₹145.16 लाख करोड़ था। वर्ष 2020-21 के प्रचलित कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान है ₹198.01 लाख करोड़ आंका गया है जबकि वर्ष 2019-20 में यह ₹200.75 लाख करोड़ था, जो वर्ष 2020-21 के दौरान 1.4 प्रतिशत का संकुचन दर्शाता है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में स्थिर भाव ;आधार 2011-12द्ध पर सकल मूल्य संवर्धन में व₹द्धि दर 3.8 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2020-21 में 4.8 प्रतिशत का संकुचन देखा गया। इस संकुचन का मुख्य कारण खनन और उत्खनन (-8.6 प्रतिशत), विनिर्माण (-0.6 प्रतिशत), विद्युत, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता (-3.6 प्रतिशत), निर्माण (-7.3 प्रतिशत), व्यापार, होटल और रेस्तरा (-22.4 प्रतिशत), परिवहन, भंडारण, संचार और प्रसारण (-15.3 प्रतिशत) और अन्य सेवाओं (-11.5 प्रतिशत) में ऋणात्मक व₹द्धि रही।
वर्ष 2020-21 के दौरान अर्थव्यवस्था में संकुचन के बाद वित्तीय वर्ष 2021-22 के अग्रिम अनुमानों के अनुसार भारत की विकास दर 9.2 प्रतिशत रहने की सम्भावना है। इसका तात्पर्य यह है कि समग्र आर्थिक गतिविधियां पूर्व-महामारी के स्तर से आगे निकल गई है। महामारी से क₹षि और संबद्ध क्षेत्र सबसे कम प्रभावित रहे और इस क्षेत्र के पिछले वर्ष के 3.6 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। अनुमान बताते हैं कि उद्योग क्षेत्र (खनन और निर्माण सहित) का सकल मूल्य वर्धन वर्ष 2021-22 में 11.8 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा, जो कि वर्ष 2020-21 में 7 प्रतिशत कम हो गया था। सेवा क्षेत्र महामारी से सबसे अधिक प्रभावित था विशेष रूप से ऐसे खण्ड जिनमें मानव संपर्क शामिल है। इस क्षेत्र के पिछले वर्ष के 8.4 प्रतिशत संकुचन के बाद इस वित्तीय वर्ष में 8.2 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है।
वर्ष 2019-20 में प्रचलित भाव पर राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय ₹1,32,115 थी जो वर्ष 2020-21 में 4.0 प्रतिशत की ऋणात्मक व₹द्धि के साथ ₹1,26,855 हो गई। स्थिर (2011-12) कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 2020-21 के लिए ₹85,110 अनुमानित है, जबकि 2019-20 में ₹94,270 के मुकाबले 9.7 प्रतिशत का संकुचन दिख रहा है। मुद्रास्फीति प्रबंधन सरकार की प्रमुख प्राथमिकता है। मुद्रास्फीति दर, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक द्वारा मापी जाती है। उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं दोनों में मुद्रास्फीति एक वैश्विक मुद्दे के रूप में फिर से प्रकट हुई है। ऊर्जा की कीमतों में व₹द्धि, गैर-खाद्य वस्तुओं, निवेश मूल्य, वैश्विक आपूर्ति श्र₹ंखलाओं में व्यवधान और बढ़ती माल ढुलाई लागत ने वर्ष के दौरान वैश्विक मुद्रास्फीति को बढ़ा दिया। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित थोक मुद्रास्फीति में पिछले वित्तीय वर्षों के दौरान सौम्य रहने के बाद, 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में 12.5 प्रतिशत की तेज व₹द्धि देखी गई। थोक मुद्रास्फीति में देखी गई व₹द्धि का एक हिस्सा पिछले वर्ष में कम आधार के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हालांकि, बढ़ती कारक लागत और वैश्विक कमोडिटी कीमतों ने भी थोक कीमतों की व₹द्धि में योगदान दिया। औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ( सी.पी.आई.-आई.डब्ल्यू.) पर आधारित मुद्रास्फीति की दर वर्ष 2021-22 में 5.0 प्रतिशत रही जो कि वर्ष 2020-21 में 5.2 प्रतिशत थी।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के लोगों की तीव्र प्रगति और बेहतर जीवन के लिए केन्द्र सरकार से तालमेल रखते हुए कई कुशल नीतियां बनाई है। राज्य के सरल और मेहनती लोगों के निरंतर प्रयासों तथा केन्द्र और राज्य सरकार की प्रगतिशील नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के कारण हिमाचल की एक आकर्षक अर्थव्यवस्था है। हिमाचल अधिक सम₹द्ध और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन गया है। कोविड-19 महामारी के प्रभाव के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था में 2020-21 में 5.2 प्रतिशत की ऋणात्मक व₹द्धि होने की संभावना है, लेकिन वर्तमान वित्त वर्ष 2021-22 में 8.3 प्रतिशत की व₹द्धि का अनुमान है।
संशोधित अनुमानों के अनुसार, प्रचलित कीमतों पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) 2020-21 (प्रथम संशोधन) ₹1,56,675 करोड़ होने का अनुमान है, जबकि 2019-20 (द्वितीय संशोधन) में ₹1,59,162 करोड़ था जो वर्ष के दौरान 1.6 प्रतिशत की कमी दर्शाता है। स्थिर कीमतों (2011-12) पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद वर्ष 2020-21 (प्रथम संशोधन) में ₹1,14,814 करोड़ अनुमानित है जो वर्ष 2019-20 (द्वितीय संशोधन) में पिछले वर्ष की विकास दर 4.1 प्रतिशत के मुकाबले 5.2 प्रतिशत की ऋणात्मक व₹द्धि के साथ ₹1,21,168 करोड रही। स्थिर कीमतों (2011-12) पर सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट मुख्यतः प्राथमिक क्षेत्र में 12.0 प्रतिशत की कमी, गौण क्षेत्र में 6.6 प्रतिशत व परिवहन, संचार, व्यापार होटल और रेस्तरां क्षेत्र में 10.6 प्रतिशत की कमी के कारण है। केवल दो क्षेत्र यानी बिजली, गैस और पानी की आपूर्ति व सामुदायिक और व्यक्तिगत सेवाओं ने क्रमशः 4.5 और 5.1 प्रतिशत की सकारात्मक व₹द्धि दर्ज की। वित्त और रियल एस्टेट में 1.9 प्रतिशत की कमी आई, परिवहन और व्यापार में 4.6 प्रतिशत की व₹द्धि, विनिर्माण क्षेत्र में 0.3 प्रतिशत, निर्माण में 3.1 प्रतिशत की व₹द्धि बिजली, गैस और जल आपूर्ति में 4.6 प्रतिशत की कमी हुई। खाद्य उत्पादन, जो 2019-20 के दौरान 15.94 लाख मीट्रिक टन था, 2020-21 में घटकर 15.28 लाख मीट्रिक टन रह गया जबकि 2021-22 में 16.75 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है। फलों का उत्पादन 2020-21 में घटकर 6.24 लाख मीट्रिक टन रह गया, जबकि 2019-20 में यह 8.45 लाख मीट्रिक टन था, जो 26.15 प्रतिशत की कमी दर्शाता है। वर्ष 2021-22 (दिसंबर, 2022 तक) के दौरान फलों का उत्पादन 6.98 लाख मीट्रिक टन है।
वर्ष 2020-21 के लिए प्रथम संशोधित अनुमानों के अनुसार मौजूदा कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय ₹1,83,333 है, जो कि वर्ष 2019-20 की ₹1,85,728 की तुलना में 1.3 प्रतिशत की कमी दिखाता है। अग्रिम अनुमानों के अनुसार तथा दिसम्बर,2021 तक की आर्थिक स्थिति एवं कोविड-19 प्रभाव से उबरने के बाद वर्ष 2021-22 में राज्य की अर्थव्यवस्था में 8.3 प्रतिशत की व₹द्धि होने की सम्भावना है। राज्य की अर्थव्यवस्था का रुझान क₹षि क्षेत्र से उद्योगों और सेवाओं की ओर बढ़ रहा है क्योंकि कुल राज्य घरेलू उत्पाद में क₹षि का प्रतिशत योगदान 1950-51 में 57.9 प्रतिशत से घटकर 1967-68 में 55.5 प्रतिशत, 1990-91 में 26.5 प्रतिशत और 2020-21 में 9.64 प्रतिशत रह गया है। उद्योग और सेवा क्षेत्रों की हिस्सेदारी जो 1950-51 में क्रमशः 1.1 और 5.9 प्रतिशत थी, 1967-68 में बढकर 5.6 और 12.4 प्रतिशत हो गई, 1990-91 में 9.4 और 19.8 प्रतिशत और 2020-21 में क्रमशः 28.9 और 44.7 प्रतिशत हो गई। हालांकि, अन्य शेष क्षेत्रों का योगदान 1950-51 में 35.1 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 26.4 प्रतिशत हो गया।
क₹षि क्षेत्र के घट रहे अंशदान के बावजूद भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की महत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र का विकास अधिकतर क₹षि तथा उद्यान उत्पादन द्वारा ही निर्धारित होता है। सकल घरेलू उत्पाद में भी इसका मुख्य योगदान रहता है। यह कुल घरेलू उत्पाद में प्रमुख योगदान कर्ताओं में से एक है और निवेश सम्पर्क, रोजगार, व्यापार और परिवहन आदि के माध्यम से अन्य क्षेत्रों पर इसका समग्र प्रभाव पड़ता है। सिंचाई सुविधाओं के अभाव में हमारा क₹षि उत्पादन अभी भी मुख्यतः समयोजित वर्षा व मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। इसलिए सरकार भी इस ओर उच्च प्राथमिकता दे रही है।
राज्य ने उद्यान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विविध जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, गहन और उपयुक्त निकासी वाली भूमि तथा भू-स्थिति में भिन्नता एवं ऊंचाई वाले क्षेत्र समशीतोषण से उप्पोषण कटिबन्धीय फलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है। प्रदेश का यह क्षेत्र फूलों, मशरूम, शहद और हॉप्स जैसे सहायक बागवानी उत्पादों की खेती के लिए भी उपयुक्त है। वर्ष 2021-22 के दौरान 1,549 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र फलों के अधीन लाने का लक्ष्य है जबकि दिसंबर 2021 तक 1,932 हैक्टेयर क्षेत्र फलों के अधीन लाया जा चुका है तथा इसी अवधि में विभिन्न प्रजातियों के फलों के 5.35 लाख पौधों का वितरण किया गया। प्रदेश में बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन में भी व₹द्धि हुई है। वर्ष 2020-21 में 18.67 लाख टन सब्जी का उत्पादन हुआ जबकि वर्ष 2019-20 में 18.61 लाख टन का उत्पादन हुआ था। वर्ष 2021-22 में 18.50 लाख टन सब्जियों का उत्पादन होने का अनुमान है। हिमाचल प्रदेश सरकार मौसम परिवर्तन से तालमेल बिठाने हेतु विभिन्न उपायों पर काम रही है। जलवायु परिवर्तन पर राज्य की कार्य योजनाओं का उद्देश्य संस्थागत क्षमता का निर्माण करना और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए क्षेत्रीय गतिविधियों को लागू करना है। प्रदेश अर्थव्यवस्था की बढ़ती हुई ऊर्जा आवश्यकताओं को देखते हुए सरकार ने राज्य में निर्बाधित विद्युत की आपूर्ति, विद्युत उत्पादन, संचारण तथा वितरण को बढ़ाने हेतु महत्वपूर्ण पग उठाए गए हैं। ऊर्जा संसाधन के रूप में जलविद्युत, आर्थिक रूप से व्यावहारिक, प ्रदूषण रहित तथा पर्यावरण के अनुकूल है। इस क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए राज्य की विद्युत नीति सभी पहलुओं जैसे कि अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जा सुरक्षा, पहुंच व उपलब्धता, वहन करने योग्य, पर्यावरण संरक्षण व प्रदेश के लोगों को रोज़गार सुनिश्चित करने पर जोर देती है। निजी क्षेत्रों की निवेश के रूप में भागीदारी उत्साहवर्धक है। सरकार द्वारा प्रदेश के निवेशकों के लिए 2 मैगावाट तक की लघु परियोजनाओं को आरक्षित रखा गया है और 5 मैगावाट की परियोजनाओं तक उन्हें प्राथमिकता दी जाती है।
कीमतों पर नियंत्रण रखना सरकार की प्राथमिकता सूची में रहा है। हि.प्र. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति वर्ष 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर 2021) में 5.1 प्रतिशत रही । पर्यटन प्रदेश की अर्थव्यवस्था में राजस्व प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत तथा विविध प्रकार के रोज़गार के अवसर प्रदान करता है। घरेलू तथा विदेशी पर्यटकों के प्रदेश आगमन में पिछले कुछ वर्षों के दौरान महत्त्वपूर्ण व₹द्धि दर्ज हुई है परन्तु कोविड़-19 के कारण वर्ष 2020 में 81 प्रतिशत की गिरावट देखने में आई जबकि दिसंबर 2021 तक पर्यटकों की आमद में पिछले वर्ष की तुलना में 75.44 प्रतिशत की व₹द्धि हुई है जिसका विवरण निम्न सारणी 1.2 में दिया गया हैै।

सरकार की प्राथमिकता हमेशा सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए रही है। सार्वजनिक सेवा वितरण की दक्षता और गुणवता में सुधार के लिए निरन्तर प्रयास किए जा रहे है। वर्ष के दौरान राज्य सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण और पुर्नउत्थान के अन्तर्गत लागू की गई मुख्य योजनाएंः
सामाजिक सुरक्षा-राज्य में सामाजिक सुरक्षा पेंशन के तहत 6.35 लाख सामाजिक सुरक्षा पेंशनभोगी हैं। वर्तमान सरकार द्वारा 1,95,003 नए पेंशन मामलों को मंजूरी दी गई है। राज्य सरकार ने 27 दिसंबर, 2017 को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में बिना किसी आय सीमा के व₹द्धावस्था पेंशन प्राप्त करने की आयु सीमा 80 वर्ष से घटाकर 70 वर्ष कर दी। 70 वर्ष से अधिक आयु के 3,07,000 व₹द्धों को पेंशन प्रदान की जा रही है। 60 से 69 वर्ष की आयु के बुजुर्गों के लिए पेंशन ₹700 से बढ़ाकर ₹850 प्रति माह और 70 वर्ष और उससे अधिक आयु वालों के लिए ₹1,250 से बढ़ाकर ₹1,500 प्रति माह कर दिया गया है।
जन मंच: सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता लाने के लिए एवं सुशासन के मद्देनज आम जनता से सीधा संवाद स्थापित करने तथा जन सुनवाई के माध्यम से मौके पर ही उनकी शिकायतों एवं समस्याओं का समाधान करने का कार्यक्रम है। नवंबर 2021 तक 232 जनमंचों का आयोजन किया जा चुका है। प्राप्त कुल 53,665 समस्याओं में से 93 प्रतिशत का निवारण किया जा चुका है।
मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन: इस हेल्पलाइन 1100 का उद्देश्य राज्य के लोगों की सभी शिकायतों को समयबद्ध तरीके से घर बैठे टेलीफोन और इन्टरनेट पोर्टल के माध्यम से हल करना है। शिमला स्थित कॉल सेंटर में सोमवार से शनिवार तक सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक हेल्पलाइन के तहत ई-मेल या सेवा समाधान पोर्टल के माध्यम से शिकायतें प्राप्त होती हैं। हेल्पलाइन के तहत कुल 3ण्21 लाख समस्याएं प्राप्त हुईं जिसमें से 86 प्रतिशत समस्याओं का निवारण किया गया।
स्वर्ण जयंती नारी संबल योजना: महिलाओं को प्रति माह ₹1000 की उच्च सामाजिक सुरक्षा पेंशन प्रदान की जाती है आयु 65-69 वर्ष के बीच. योजना के तहत 39,641 महिलाएं लाभान्वित हुई हैं
मुख्यमंत्री गृहिणी सुविधा योजना: योजना का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना और स्वच्छ और धुआं मुक्त ईंधन प्रदान करके पर्यावरण की रक्षा करना है। राज्य के ऐसे पात्र परिवार जो प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में शामिल नहीं हो सके हैं। योजना के तहत 3.24 लाख परिवारों को मुफ्त कनेक्शन दिए गए, जिनमें से 2.39 लाख लाभार्थियों को अतिरिक्त गैस रिफिल दी गई। 119.90 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं.
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना: इस योजना का उद्देश्य बीपीएल परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान करना और उनकी सुरक्षा करना है। महिलाओं और बच्चों को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन-तरलीकृत पेट्रोलियम गैस उपलब्ध कराकर उनका स्वास्थ्य सुधारना। 21.86 करोड़ रुपये खर्च कर 1.36 लाख परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन उपलब्ध कराया गया।
हिमाचल हेल्थकेयर योजना : इस योजना का उद्देश्य लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य उपचार प्रदान करना है राज्य के जो लोग आयुष्मान भारत योजना में शामिल नहीं हैं। इस योजना के तहत 5.13 लाख परिवारों को पंजीकृत किया गया और 196.16 करोड़ रुपये की लागत से 2.17 लाख लोगों को मुफ्त इलाज दिया गया।
आयुष्मान भारत: इस योजना का लक्ष्य कम आय वालों को स्वास्थ्य बीमा कवरेज तक मुफ्त पहुंच प्रदान करना है। 4.26 लाख परिवारों को गोल्डन कार्ड उपलब्ध कराये गये। 143.31 करोड़ रुपये खर्च कर 1.16 लाख लाभार्थियों को मुफ्त इलाज दिया गया।
अटल आशीर्वाद योजना: अस्पताल में जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं को 'न्यू विजिटर किट' (नवागंतुक किट) दी जा रही है ) लगभग ₹1,200 से 2,07,364 लाभार्थियों की लागत ₹ 24.36 करोड़।
मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष: यह कोष चिकित्सा सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है गंभीर बीमारियों से पीड़ित गरीबों का इलाज. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों, स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (पीजीआईएमईआर), सरकारी अस्पताल, चंडीगढ़ और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली को अधिकृत किया गया है। 953 लाभार्थियों के इलाज के लिए ₹10.46 करोड़।
मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना: इस योजना के तहत 1,374 दवाइयां, इंजेक्शन की सूइयां और पट्टियां आदि निःशुल्क हैं। राज्य के सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में मरीजों को प्रदान किया जा रहा है और लगभग ₹216 करोड़ खर्च किए गए हैं।
मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना: इस योजना का उद्देश्य 18 से 45 वर्ष के युवाओं को स्वयं के लिए प्रोत्साहित करना है -रोज़गार। महिलाओं को ऊपरी आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट प्रदान करते हुए योजना में 18 नई गतिविधियाँ शामिल की गई हैं। ₹860 करोड़ के निवेश के साथ 4862 परियोजनाएं स्वीकृत। लगभग ₹430 करोड़ के निवेश से 2593 इकाइयां स्थापित की गईं और 7216 लोगों को रोजगार मिला। लगभग ₹147 करोड़ की सब्सिडी प्रदान की गई है।
मुख्यमंत्री सहारा योजना: योजना का लक्ष्य गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को ₹3000 की मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करना है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की बीमारियों और उनके सहायकों को सीधे उनके बैंक खातों में। योजना के तहत 17,546 लाभार्थियों को ₹61.39 करोड़ प्रदान किए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री स्टार्ट-अप योजना: इसका उद्देश्य राज्य के युवाओं के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देना है। प्रशिक्षुओं को 1 वर्ष के लिए प्रति माह ₹25,000 का आजीविका भत्ता प्रदान किया जाता है और ऊष्मायन केंद्रों को 3 वर्षों के लिए ₹30 लाख की सहायता प्रदान की जाती है। योजना के तहत 11.35 करोड़ रुपये की लागत से 191 स्टार्ट-अप और 12 इन्क्यूबेशन सेंटर लाभान्वित हुए हैं।
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना: इस योजना के तहत निराश्रित महिलाओं को ₹51,000 की सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। /लड़कियों की शादी के लिए और 6,224 लाभार्थियों पर ₹28.15 करोड़ खर्च किए गए हैं।
बेटी है अनमोल योजना: योजना का लक्ष्य बेटियों के प्रति नजरिया बदलना और उन्हें सशक्त बनाना है। गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों की बेटियों के नाम पर ₹21000 जमा किए जाते हैं। इस योजना से प्रति परिवार अधिकतम दो बेटियां लाभान्वित हो सकती हैं। अब तक 1,07,823 लाभार्थियों को ₹32.94 करोड़ दिए जा चुके हैं
ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट: राज्य में औद्योगीकरण और निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन किया गया। जिसमें 96,721 करोड़ रुपये के 703 एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये। 13,488 करोड़ रुपये की 236 परियोजनाओं का पहला ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह आयोजित किया गया। दूसरा ग्राउंडब्रेकिंग समारोह 27 दिसंबर 2021 को मंडी में आयोजित किया गया था जिसमें 28,197 करोड़ रुपये के प्रस्तावित निवेश के साथ 287 समझौता ज्ञापनों को मंजूरी दी गई थी। इन परियोजनाओं के तहत 80,000 लोगों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रोजगार मिलने की उम्मीद है।
हर घर पाठशाला: इस योजना के तहत सभी शैक्षणिक गतिविधियों को सुचारू रखने के लिए ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की गई कोविड-19 अवधि के दौरान सरकारी स्कूलों का स्तर। छात्रों के 1.92 लाख व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए और 7,69,878 छात्रों ने भाग लिया।
स्वर्ण जयंती सुपर 100 योजना: कक्षा 11वीं में पढ़ने वाले 100 मेधावी छात्र, जिन्होंने सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं कक्षा 10वीं में व्यावसायिक या किसी तकनीकी पाठ्यक्रम में प्रशिक्षण के लिए प्रति छात्र ₹1 लाख की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा रही है।
प्राकृतिक खेती-खुशहाल किसान योजना: इस योजना के तहत उत्पादन लागत को कम करने पर जोर दिया जा रहा है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को समाप्त करने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना। योजना के तहत 9,192 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाले 1,53,643 किसानों के लाभ के लिए ₹46.15 करोड़ खर्च किए गए।
जल से कृषि को बल योजना: इस योजना के तहत निर्माण करके सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है राज्य में उपयुक्त स्थानों पर चेक डैम और तालाब बनायें। सामुदायिक स्तर पर 100 फीसदी खर्च सरकार वहन करती है. 1,344 किसान लाभान्वित हुए और 83.40 करोड़ रुपये खर्च हुए।
मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना एवं मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना: व्यक्तिगत सोलर फेंसिंग पर 80 प्रतिशत अनुदान, 85 जंगली जानवरों और आवारा जानवरों से फसलों की सुरक्षा के लिए समूह आधारित सौर बाड़ लगाने पर प्रतिशत, कांटेदार और चेन लिंक बाड़ लगाने पर 50 प्रतिशत और मिश्रित बाड़ लगाने पर 70 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जा रही है। ₹150.52 करोड़ व्यय कर 4,592 किसानों को लाभान्वित किया गया है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना: इस योजना के तहत तीन समान अवधियों में प्रति वर्ष ₹6,000 की आय सहायता लघु एवं सीमांत भूमि धारक किसान परिवारों को किश्तें प्रदान की जाएंगी। इस योजना के तहत राज्य के 9.37 लाख से अधिक किसानों पर लगभग 1532.38 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
जल जीवन मिशन (JJM): इसका उद्देश्य व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है। . जेजेएम के तहत अब तक 8.16 लाख नल कनेक्शन लगाए जा चुके हैं। 2021-22 में ₹1429.08 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया।
हिमाचल पुष्प क्रांति योजना: इस योजना के तहत स्थापना के लिए 85 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है। फूलों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिए पॉली हाउस, पॉली टनल आदि। फूलों का परिवहन शुल्क भी माफ कर दिया गया है। 1,282 किसानों पर लगभग ₹27.98 करोड़ खर्च किए गए हैं।

2.राज्य की अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक वित् व कराधान

पहाड़ी क्षेत्र और औद्योगिक विकास के लिए प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद हिमाचल प्रदेश ने आर्थिक विकास में नई ऊंचाइयों को हासिल किया है। एक तरफ राज्य की आर्थिक विकास दर राष्ट्रीय विकास दर के बराबर रही और दूसरी तरफ राज्य ने विकास संकेतकों में उच्च रैंकिंग हासिल की।
2020-21 के लिए स्थिर (2011-12) मूल्यों पर हिमाचल प्रदेश के जीएसडीपी का पहला संशोधित अनुमान (एफआरई) 1,14,814 करोड़ रुपये है, जबकि 2019-20 के लिए दूसरा संशोधित अनुमान (एसआरई) 1,21,168 करोड़ रुपये है। 2020-21 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर (-) 6.6 प्रतिशत की तुलना में (-) 5.2 प्रतिशत की वृद्धि।
अर्थव्यवस्था को तीन व्यापक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है जिन्हें व्यक्तिगत रूप से नीचे संबोधित किया गया है:
प्राथमिक क्षेत्र: प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, बागवानी, पशुधन, वानिकी और लॉगिंग, मछली पकड़ने, खनन और शामिल हैं उत्खनन उप-क्षेत्र। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2019-20 के अनुसार लगभग 56.5 प्रतिशत आबादी का समर्थन करने वाले संबद्ध क्षेत्रों के साथ कृषि ने 2020-21 (एफआरई) में (-)12.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। 2019-20 के दूसरे संशोधित अनुमान (एसआरई) के दौरान ₹16,369 करोड़ की तुलना में ₹14,411 करोड़ के सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) के साथ स्थिर (2011-12) कीमतें।
हिमाचल प्रदेश में बागवानी को अब नहीं माना जाता है यह कृषि का एक उपक्षेत्र है क्योंकि इसने मूल्यवर्धन के मामले में कृषि को पीछे छोड़ दिया है। पशुधन क्षेत्र आय सृजन का एक वैकल्पिक और भरोसेमंद स्रोत बनकर उभरा है। 2020-21 में उत्पादन दूध की कीमत में 2.95 प्रतिशत और अंडे की कीमत में 4.20 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हालाँकि, मांस उत्पादन में (-)9.60 प्रतिशत की कमी आई। पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्रों में 5.6 प्रतिशत और 9.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वानिकी और खनन क्षेत्रों ने 2020-21 (एफआरई) में क्रमशः (-) 19.6 और (-) 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई है।
द्वितीयक क्षेत्र: द्वितीयक क्षेत्र में मोटे तौर पर विनिर्माण (संगठित और असंगठित), बिजली, गैस और पानी शामिल हैं आपूर्ति एवं निर्माण. के लिए एफआरई के अनुसार 2020-21 स्थिर (2011-12) कीमतों पर, द्वितीयक क्षेत्र का GVA अनुमानित है 2019-20 (एसआरई) के लिए ₹53,137 करोड़ के मुकाबले ₹49,610 करोड़, पिछले वर्ष की तुलना में (-) 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
तृतीयक या सेवा क्षेत्र: राज्य जीवीए में सेवा क्षेत्र की महत्वपूर्ण और तेजी से बढ़ती हिस्सेदारी है। इसमें व्यापार, होटल और रेस्तरां, परिवहन, शामिल हैं। भंडारण और संचार, बैंकिंग और बीमा, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाएँ और सामुदायिक और सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाएँ। इसने पिछले वर्ष की तुलना में 2020-21 (FRE) में (-) 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की . वर्ष 2020-21 के लिए सेवा क्षेत्र का GVA (FRE) 2019-20 (एसआरई) में ₹45,152 करोड़ के मुकाबले ₹44,198 करोड़ अनुमानित है। स्थिर (2011-12) मूल मूल्यों पर क्षेत्रवार जीवीए नीचे दिया गया है:
्रचलित कीमतों पर राज्य का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2020-21 (प्र.सं.अ.) में ₹1,56,675 करोड़ आंका गया जोकि वर्ष 2019-20 (द्वि.सं.अ.) में ₹1,59,162 करोड़ था। प्रचलित आधारभूत कीमतों पर सकल मूल्य वर्धन उत्पाद वर्ष 2020-21 (प्र.सं.अ.) में ₹1,46,241 करोड़ अनुमानित है जोकि वर्ष 2019-20 (द्वि.सं.अ.) में ₹1,49,201 करोड़ था। प्रचलित आधारभूत कीमतों पर क्षेत्रवार योगदान निम्न सारणी 2.1 में दर्शाया गया हैः-
प्रचलित आधारभूत कीमतों पर 2020-21 में प्रथम संशोधित अनुमान के अनुसार प्राथमिक क्षेत्र का राज्य सकल वर्धन में योगदान ₹19,893 करोड़ (13.61 प्रतिशत) रहा है। इसी समयावधि में गौण क्षेत्र का योगदान ₹61,004 करोड़ (41.71 प्रतिशत) है, व सेवा क्षेत्र का योगदान ₹65,344 करोड़ (44.68 प्रतिशत) है। भारत एवं हिमाचल प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद प्रचलित तथा स्थिर कीमतों (2011-12) पर, 2011-12 से 2020-21 (प्र.सं.अ.) में सारणी 2.2 में वर्णित हैः
वर्ष 2020-21 में (प्र.सं.अ.) के अनुसार, प्रचलित कीमतों पर प्रदेश कीे प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2019-20 (द्वि.सं.अ.) के ₹1,85,728 से घटकर ₹1,83,333 होने की संभावना है जो (-)1.3 प्रतिशत की व₹द्धि दर्शाती है। स्थिर कीमतों पर राज्य की प्रति व्यक्ति आय 2019-20 (द्वि.सं.अ.) के ₹1,40,048 से घटकर वर्ष 2020-21 में (प्र.सं.अ.) ₹1,33,079 होने की संभावना है जो (-)5.0 प्रतिशत की व₹द्धि दर्शाती है। वर्ष 2011-12 से 2020-21 तक का हिमाचल प्रदेश और भारत की प्रति व्यक्ति आय (प्रचलित कीमतों पर) का तुलनात्मक विवरण निम्न सारणी में वर्णित हैः
दिसंबर 2021 तक राज्य के आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर राज्य आय के अग्रिम अनुमानों के अनुसार, 2021-22 के दौरान राज्य की आर्थिक विकास दर 8.3 प्रतिशत होने की संभावना है, जो कोविड-19 महामारी के बाद तेज सुधार दिखा रहा है। राज्य ने 2020-21 (प्र.सं.अ.) में (-)5.2 प्रतिशत की व₹द्धि और 2019-20 (द्वि.सं.अ.) में 4.1 प्रतिशत की व₹द्धि दर हासिल की है। वर्ष 2021-22 (अग्रिम अनुमान) में प्रचलित कीमतों पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद का अनुमान लगभग 1,75,173 करोड़ आंका गया है।
वर्ष 2021-22 के अग्रिम अनुमानों के अनुसार प्रचलित कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय ₹2,01,854 अनुमानित है जोकि वर्ष 2020-21 में ₹1,83,333 की तुलना में 10.1 प्रतिशत की व₹द्धि दर्शाती है। हिमाचल प्रदेश में आर्थिक विकास का संक्षिप्त विश्लेषण बताता है कि प्रदेश की आर्थिक विकास दर सदैव भारत की विकास दर केे बराबर ही रही है, जैसा कि सारणी 2.4 में भी दर्शाया गया हैः
राज्य सरकार, प्रशासन एवं विकासात्मक गतिविधियों पर खर्च को पूरा करने के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों, गैरकर राजस्व, केंद्रीय करों से प्राप्त हिस्सा एवं केन्द्र सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान के माध्यम से वित्तीय साधन जुटाती है। वर्ष 2021-22 केे बजट अनुमानों (ब.अ.) के अनुसार, कुल राजस्व प्राप्तिया ₹37,028 करोड़ है जबकि 2020-21 संशोधित अनुमानों (सं.अ.) के अनुसार यह ₹35,588 करोड़ थी।
आबकारी एवं कराधान विभाग ने वर्ष 2020-21 में विभिन्न शीर्षों के अन्तर्गत ₹7,044.24 करोड़ मूल्य के करों को एकत्रित किया है जिसका लक्ष्य ₹6,886.13 करोड़ था। वित्तीय वर्ष 2021-22 में कर राजस्व लक्ष्य ₹6,964.84 करोड़ था जबकि दिसम्बर, 2021 तक ₹6,232.24 का कर राजस्व एकत्र किया गया है। वित्तीय वर्ष 2020-21 और 2021-22 (दिसम्बर, 2021) तक कर राजस्व लक्ष्यों एवं उपलब्धियों का विवरण निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया हैः
वित्तीय वर्ष 2020-21 एवं 2021-22 के घटकवार राजस्व लक्ष्य एवं दिसम्बर 2021 तक की उपलब्धियाँ। सरकारी प्राप्तियों को मोटे तौर पर गैर-ऋण और ऋण प्राप्तियों में विभाजित किया जा सकता है। गैर-ऋण प्राप्तियों में कर राजस्व, गैर-कर राजस्व, सहायता अनुदान, ऋण की वसूली और विनिवेश प्राप्तियां शामिल होती हैं। ऋण प्राप्तियों में ज्यादातर बाजार उधार और अन्य देनदारियां शामिल होती हैं, जिन्हें सरकार भविष्य में चुकाने के लिए बाध्य होती है।
कर राजस्व: 2021-22 के बजट अनुमान के अनुसार, कर राजस्व (केंद्रीय करों सहित) ₹ अनुमानित था 2020-21 आरई में ₹12,312 करोड़ के मुकाबले 14,806 करोड़।
गैर-कर राजस्व: गैर-कर राजस्व में मुख्य रूप से ऋण पर ब्याज प्राप्तियां, बिजली की बिक्री से प्राप्तियां, लाभांश शामिल हैं और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से लाभ और सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं से प्राप्तियां जैसे सामान्य सेवाएं जैसे कि लोक सेवा आयोग द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सामाजिक सेवाएं, सिंचाई जैसी आर्थिक सेवाएं आदि। गैर-कर राजस्व में वृद्धि होने की संभावना है। 2020-21 में ₹2,268 करोड़ की तुलना में 2021-22 में बढ़कर ₹2,754 करोड़ हो गया, जो 21.43 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। यह राज्य जीएसडीपी का 1.57 प्रतिशत होने का अनुमान है।
गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियां: गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों में ऋण और अग्रिमों की वसूली और विनिवेश प्राप्तियां शामिल होती हैं . 2021-22 के बजट अनुमान में ऋणों की वसूली के रूप में ₹41 करोड़ और विनिवेश से कोई आय नहीं होने की परिकल्पना की गई है। 2021-22 के बजट अनुमान के अनुसार, राज्य सरकार का कुल व्यय ₹50,192 करोड़ होने का अनुमान था, जिसमें से ₹38,491 करोड़ (76.69 प्रतिशत) राजस्व व्यय के लिए निर्धारित किया गया था।
बजट अनुमान के अनुसार वर्ष 2021-22 के लिए सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ जीएसडीपी का 21.14 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि 2020-21 आरई में यह 22.71 प्रतिशत थी। इसी प्रकार, वर्ष 2021-22 के लिए कर राजस्व जीएसडीपी का 8.45 प्रतिशत अनुमानित किया गया था, जबकि 2020-21 के दौरान यह 7.86 प्रतिशत था। 2021-22 में गैर-कर राजस्व जीएसडीपी का 1.57 प्रतिशत है, जबकि 2020-21 के दौरान यह 1.45 प्रतिशत था।
2021-22 में, राज्य का कुल व्यय 28.65 प्रतिशत, राजस्व व्यय का अनुमान 21.97 प्रतिशत, जबकि पूंजीगत व्यय जीएसडीपी का 3.43 प्रतिशत होने का अनुमान है।
राजकोषीय संकेतकों में रुझान:तालिका 2.7 से पता चलता है कि 2020-21 में कुल व्यय में वृद्धि का अनुमान है और राज्य का राजस्व व्यय क्रमशः 24.14 और 17.18 प्रतिशत था।
सरकारी व्यय:सरकारी व्यय का युक्तिकरण और प्राथमिकता निर्धारण राजकोषीय सुधारों का अभिन्न अंग है। चूंकि राज्य का कर-जीएसडीपी अनुपात कम है, इसलिए सरकार को राजकोषीय अनुशासन बनाए रखते हुए निवेश और बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार, पूंजीगत व्यय की दिशा में व्यय की गुणवत्ता में सुधार महत्वपूर्ण है।
सरकार अपने व्यय का बड़ा हिस्सा राजस्व व्यय पर खर्च करती है। अनुमान है कि 2021-22 में कुल बजट खर्च का 77 फीसदी राजस्व व्यय पर होगा. राजस्व व्यय की संरचना नीचे तालिका 2.8 में दी गई है, जिससे पता चलता है कि 2021-22 (बीई) में कुल व्यय का 55 प्रतिशत वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी पर खर्च होने की संभावना है। वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर व्यय प्रकृति में प्रतिबद्ध व्यय है और सीमित है अतिरिक्त राजकोषीय गुंजाइश के निर्माण के लिए गुंजाइश। 2021-22 में सब्सिडी को कुल व्यय के 2.1 प्रतिशत पर नियंत्रित किया गया है।
राजस्व व्यय की प्रमुख मदों की वृद्धि तालिका 2.9 में दी गई है, जिससे पता चलता है कि वेतन पर व्यय की वृद्धि वर्ष दर वर्ष बढ़ रही है। पिछले वर्ष की तुलना में वेतन व्यय में वृद्धि 2020-21 में 27.14 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और 2021-22 (बीई) में 2.92 प्रतिशत की कमी होने का अनुमान है। 2017-18 में पेंशन व्यय 14.46 प्रतिशत, 2018-19 में 6 प्रतिशत, 2020-21 में 32 प्रतिशत बढ़ा। हालाँकि, 2021-22 (बीई) में इसमें 2.53 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। ब्याज भुगतान में वृद्धि 2017-18 में 13 प्रतिशत, 2018-19 में 6 प्रतिशत और 2021-22 (बीई) में 9 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। सब्सिडी व्यय की वृद्धि 2017-18 में 19 प्रतिशत, 2018-19 में 41 प्रतिशत बढ़ी। 2019-20 में 16.77 फीसदी की कमी आई थी इसके बाद 2020-21 में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2021-22 (बीई) में व्यय के इस घटक में 7 प्रतिशत की कमी होने का अनुमान है।
जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में ऋण 2019-20 में 35.25 प्रतिशत था, जो 2018-19 में 34.22 प्रतिशत था।

3.कोविड-19 का हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और सुधार

1930 के दशक की महामंदी के बाद से कोविड-19 महामारी के कारण विश्व अर्थव्यवस्था को शायद सबसे बड़ा नुकसान हुआ है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया की लगभग 60 प्रतिशत आबादी गंभीर या आंशिक रूप से लॉकडाउन रही है। दुनिया भर के देशों में बिना किसी स्पष्ट चिकित्सा उपचार के आर्थिक गतिविधियां या तो ठप हो गईं या लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित हुई। कोरोना वायरस महामारी के बीच, दुनिया भर के कई देशों ने संक्रमण के ग्राफ को समतल करने के लिए लॉकडाउन का सहारा लिया। इस लॉकडाउन का मतलब अपने घरों में लाखों नागरिकों को कैद करना, व्यवसायों को ठप करना और लगभग सभी आर्थिक गतिविधियों को बंद करना था। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2020 में 3 प्रतिशत से अधिक सिकुड़ने की उम्मीद है जो महामंदी के बाद से सबसे बड़ी मंदी है।
मानव जीवन के दुर्भाग्यपूर्ण नुकसान के अलावा आर्थिक गतिविधियों के मामले में भारत पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव अत्यधिक विघटनकारी रहा है। अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है क्योंकि घरेलू मांग और निर्यात में भारी गिरावट आई है। हालाँकि, कुछ उल्लेखनीय अपवाद थे जहाँ उच्च वृद्धि देखी गई थी।
अर्थव्यवस्था को कोरोना महामारी से एक अनूठा आर्थिक झटका लगा है, जिसने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में आपूर्ति और मांग-दोनों को प्रभावित किया। अनिश्चितता, आत्मविश्वास में कमी, आय में कमी, कमजोर विकास की संभावनाएं, छूत की आशंका, सभी गतिविधियों को बंद होने के कारण खर्च करने के विकल्पों में कमी, एहतियाती बचत का बढ़ना, व्यवसायों के लिए जोखिम लेने में गिरावट और खपत और निवेश में परिणामी गिरावट से पहले चरण की मांग ने अत्याधिक प्रभावित किया।
दुनिया भर में व्यवसायों के अचानक बंद होने से बड़े पैमाने पर आर्थिक झटका लगा है और नीति निर्माताओं ने नुकसान को आंकने एवं उसे रोकने की कोशिश की है। कई लोगों के लिए, यह एक स्पष्ट आपूर्ति झटका रहा है - आपूर्ति झटका तब होता है जब कोई घटना वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में बाधा डालती है। कोविड-19 ने आपूर्ति श्र₹ंखलाओं को बाधित किया है और इससे आपूर्तिकर्ता नेटवर्क के विभिन्न स्तरों में स्पिलओवर प्रभाव उत्पन्न हुए हैं। 2020 में व्यापार हर क्षेत्र में गिर गया है और इससे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में अवरुद्ध किया है।
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था ने अपनी अर्थव्यवस्था पर बहु-प्रभाव देखा है जो निम्नलिखित चित्रों द्वारा दिए गए हैं।
कोविड-19 का अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों पर गंभीर से लेकर मामूली तक कई प्रभाव पड़े हैं। प्रस्तुत अध्याय प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों के अंतर्गत राज्य की अर्थव्यवस्था के मुख्य घटकों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करता है।
प्राथमिक क्षेत्र: फसलें, पशुधन और वानिकी और लॉगिंग चूंकि कृषि देश की रीढ़ है और इसका एक हिस्सा है सरकार के आवश्यक श्रेणी घोषित होने से प्राथमिक दोनों पर प्रभाव कम होने की संभावना है कृषि उत्पादन और कृषि आदानों का उपयोग। कई राज्य सरकारें पहले ही हिमाचल प्रदेश में फलों, सब्जियों, दूध आदि की मुफ्त आवाजाही की अनुमति दे चुकी हैं यहाँ वन संसाधनों की प्रचुर आपूर्ति है जो प्राथमिक क्षेत्र में शामिल हैं। कोविड-19 लॉकडाउन का इसके विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा है जो निम्नलिखित चित्र में दिया गया है:
राज्य में कोरोनोवायरस लॉकडाउन का पशुधन क्षेत्र पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं देखा गया है। जहां तक फसल क्षेत्र का सवाल है, वर्ष 2020-21 में इसमें बड़ी गिरावट देखी गई, जिसका कारण उत्पादन पर असर था। बागवानी फसलों की. फसल क्षेत्र में 2021-22 (अग्रिम अनुमान) में 12.9 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गई है जो मौसमी कारक के कारण भी है। बागवानी उत्पादन में वृद्धि का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है फसल क्षेत्र की विकास दर पर भी.
लॉकडाउन के कारण वानिकी और लॉगिंग की विकास दर में गिरावट आई थी। इसका कारण गतिविधियों का बंद होना और श्रमिकों की अनुपलब्धता थी। लॉकडाउन के बाद हिमाचल में प्रवासी मजदूर प्रदेश अपने घरों को लौट गये। प्रतिबंध हटने के बाद, धीरे-धीरे ये प्रवासी श्रमिक वापस लौट आए और विकास शुरू हुआ जिसे वानिकी और लॉगिंग क्षेत्र में 'वी' आकार की पुनर्प्राप्ति में देखा जा सकता है।
द्वितीयक क्षेत्र: विनिर्माण (संगठित और गैर-संगठित) और निर्माण रियल एस्टेट और निर्माण गतिविधियों को इस दौरान व्यवधान का सामना करना पड़ा। दूसरी लहर बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों ने शहरी क्षेत्रों को छोड़ दिया। विनिर्माण और निर्माण किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ये द्वितीयक क्षेत्र के मुख्य घटक हैं जो दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में सर्वाधिक प्रतिशत हिस्सेदारी। .श्रम की कमी ने शहरी क्षेत्रों और राज्यों में आवास और निर्माण परियोजनाओं दोनों को प्रभावित किया है, जहां वायरस तेजी से फैल रहा है। इसके कारण होने की संभावना है में महत्वपूर्ण देरी लंबित परियोजनाओं को पूरा करना. निम्नलिखित चित्र इस क्षेत्र में संकुचन को दर्शाता है:
लॉकडाउन के कारण जनशक्ति और कच्चे माल की अनुपलब्धता राज्य में विनिर्माण और निर्माण की विकास दर में गिरावट का मुख्य कारण है। विनिर्माण (संगठित और असंगठित) और निर्माण क्षेत्र पर एक ही प्रभाव पड़ता है जिसमें मांग और आपूर्ति दोनों झटके एक साथ काम करते हैं। लॉकडाउन के कारण निर्माण और विनिर्माण गतिविधियाँ बंद हो गईं और दूसरी ओर, श्रम और कानून सामग्री की कमी हो गई। अर्थव्यवस्था के खुलने के बाद इस क्षेत्र में भी 'वी' आकार की रिकवरी देखी गई।
तृतीयक क्षेत्र तृतीयक क्षेत्र में विभिन्न आवश्यक सेवाएँ शामिल हैं। लॉकडाउन के कारण प्रशासन और वित्तीय सेवाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा या बहुत कम प्रभाव पड़ा। हालाँकि, कुछ अन्य उप-क्षेत्रों में लॉकडाउन के कारण बड़ा प्रभाव देखा गया और फिर बाद में सुधार की सूचना दी गई। ऐसे क्षेत्रों का विश्लेषण निम्नलिखित अनुभागों में दिया गया है:
1) परिवहन भंडारण और संचार और परिवहन से जुड़ी सेवाएं परिवहन तृतीयक क्षेत्र का हिस्सा है और राज्य की अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। परिवहन के अन्य साधनों का अभाव, जैसे कि
परिवहन भंडारण और संचार में सबसे अधिक 24 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि, परिवहन से जुड़ी सेवाओं में 2020-21 में कोविड-19 मजबूर लॉकडाउन के कारण 11.8 प्रतिशत की गिरावट आई। प्रतिबंधों में ढील के बाद, इन क्षेत्रों में सुधार होना शुरू हुआ और परिवहन भंडारण और संचार में 19.1 प्रतिशत की भारी रिकवरी देखी गई। परिवहन से जुड़ी सेवाओं के लिए 16.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया था।
परिवहन भंडारण और संचार में सबसे अधिक 24 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि, कोविड-19 मजबूर लॉकडाउन के कारण 2020-21 में परिवहन से जुड़ी सेवाओं में 11.8 प्रतिशत की गिरावट आई। प्रतिबंधों में ढील के बाद, इन क्षेत्रों में सुधार होना शुरू हो गया और परिवहन भंडारण और संचार में 19.1 प्रतिशत की भारी रिकवरी देखी गई। परिवहन से जुड़ी सेवाओं के लिए 16.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया था।
2) व्यापार और मरम्मत सेवाएँ और होटल और रेस्तरां व्यापार और मरम्मत क्षेत्र पर लॉकडाउन का प्रभाव वस्तुतः न के बराबर था। वहीं, होटल और रेस्तरां क्षेत्र उन कुछ क्षेत्रों में से था जो सबसे अधिक प्रभावित हुए थे। लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध का असर पहले परिवहन और फिर होटल और पर्यटन क्षेत्र पर पड़ा। दूसरी लहर के कारण लगे प्रतिबंधों ने पर्यटन क्षेत्र को पंगु बना दिया, जो पहले से ही 2020 में व्यवसायों को हुए शुरुआती नुकसान की भरपाई के लिए संघर्ष कर रहा था। जैसे ही शुरुआती लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था फिर से खुलने लगी, इसमें तेजी से सुधार होने लगा। जबकि, 2020-21 में होटल और रेस्तरां की विकास दर (-) 78.7 प्रतिशत थी, यह 2021-22 में बढ़कर 56.5 प्रतिशत हो गई (चित्र-3.6)।
3) पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र विमानन और पर्यटन पहले उद्योग थे जो महामारी से काफी प्रभावित हुए थे। वह क्षेत्र जिसने भारत की वार्षिक जीडीपी के एक बड़े हिस्से में योगदान दिया है राज्यों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और कर्फ्यू से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आतिथ्य क्षेत्र पर्यटन क्षेत्र से जुड़ा हुआ है।
पर्यटन राज्य में राजस्व सृजन और रोजगार का मुख्य स्रोत बना हुआ है। कोविड-19 के कारण मजबूरन लॉकडाउन लगाना पड़ा, जिससे राज्य में पर्यटन क्षेत्र को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। भौगोलिक लाभ राज्य को पर्यटन क्षेत्र के लिए लाभप्रद स्थिति में रखता है, लेकिन इसमें भारी कमी आई है पर्यटकों का आगमन, जब कोविड-19 महामारी के मद्देनजर आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया गया था।
पर्यटकों के आगमन से राज्य में साल-दर-साल विकास दर के संदर्भ में भिन्नता देखी जाती है। हालाँकि, इसमें एक बड़ा बदलाव है विकास दर देशव्यापी तालाबंदी के समय में देखी गई है, जिसने न केवल घरेलू पर्यटकों को अपने घरों में बंद रहने के लिए मजबूर किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध के कारण विदेशी पर्यटकों को अपने देशों में ही रुकना पड़ा। उड़ानें। आंकड़ा 3.7 पिछले वर्ष की तुलना में पर्यटकों के आगमन में सबसे अधिक (-81.33 प्रतिशत) संकुचन दर्शाता है। शुरुआती लॉकडाउन के बाद पर्यटकों के आगमन में भारी सुधार हुआ। 2021 में यह 75.43 फीसदी तक पहुंच गया (चित्र-3.7).
राज्य ने विभिन्न क्षेत्रों को सहायता प्रदान करके कोविड-19 से निपटने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं, जो इस प्रकार हैं:
राज्य सरकार ने करीब `153 करोड़ की राहत दी (तालिका-3.2) परिवहन क्षेत्र में टोकन टैक्स, स्पेशल रोड टैक्स (एसआरटी), और पैसेंजर्स एंड गुड्स टैक्स (पीजीटी) के रूप में, जो सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक था। इसमें काम करने पर ब्याज छूट योजना भी शामिल है स्टेज कैरिज ऑपरेटरों की पूंजी, जिसके तहत बस ऑपरेटरों को कार्यशील पूंजी के रूप में `2 लाख प्रति बस का ऋण और अधिकतम `20 लाख तक की राशि प्रदान की जाती है। ऋण की अवधि 5 वर्ष होगी, जिसमें एक वर्ष अधिस्थगन अवधि का होता है, राज्य सरकार द्वारा भुगतान किए जाने वाले ब्याज में 75 प्रतिशत की छूट होती है, दूसरे वर्ष में ब्याज पर 50 प्रतिशत की छूट होती है। राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। इस योजना पर सरकार द्वारा लगभग `11 करोड़ की राहत प्रदान की गई है।
इसके अलावा, अनुदान सहायता (जीआईए) के रूप में परिवहन क्षेत्र को राहत दी गई है। वेतन के लिए, गैर-वेतन के लिए जीआईए, निवेश के लिए सब्सिडी और फंड भी नीचे दिए गए विवरण के अनुसार प्रदान किया गया था (तालिका 3.2)।

सरकार ने 1 अप्रैल 2020 से 30 नवंबर 2021 की अवधि के दौरान विशेष सड़क कर और टोकन टैक्स पर 100 प्रतिशत राहत प्रदान की है, जिससे लाभ मिलेगा। स्टेज कैरिज, टैक्सी, मैक्सी, ऑटोरिक्शा, कॉन्ट्रैक्ट कैरिज बसें और संस्थान बसें।
महामारी में पर्यटन क्षेत्र सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ है; राज्य सरकार ने आतिथ्य उद्योग के लिए कार्यशील पूंजी ऋण पर ब्याज छूट की योजना को संशोधित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यटन इकाई संचालकों को मौजूदा बाजार दरों से कम ब्याज दर पर कार्यशील पूंजी तक आसान पहुंच मिल सके। इस योजना में पहले वर्ष में 75 प्रतिशत की ब्याज छूट का प्रावधान है और भुगतान अवधि को भी बढ़ाकर पांच वर्ष कर दिया गया है। नई योजना में रोप वे और ट्रैवल एजेंट जैसी कुछ अन्य श्रेणियां भी शामिल की गई हैं।
पर्यटन क्षेत्र को टोकन टैक्स, पीजीटी, वेतन के लिए जीआईए और निवेश के लिए फंड के रूप में कुल राहत भी नीचे दिए गए विवरण के अनुसार प्रदान की गई थी ( तालिका-3.3).

वर्ष 2020-21 के लिए राज्य की वार्षिक क्रेडिट योजना का आकार `23,625 करोड़ था जिसमें से `22,110 करोड़ प्राथमिकता के लिए आवंटित किया गया था कृषि और संबद्ध, एमएसएमई, शिक्षा और आवास जैसे क्षेत्र।
राज्य सरकार द्वारा उन लोगों को `30 लाख का बीमा कवर दिया गया जिनकी मृत्यु कोविड-19 के कारण हुई और जो प्राइम के तहत पात्र नहीं थे मंत्री गरीब कल्याण योजना.
विभिन्न श्रेणी के अंशकालिक श्रमिकों/पैरा श्रमिकों आदि की मजदूरी दरों में 4 वर्षों से वृद्धि की गई है। हालाँकि, तालिका 3.4 चार वर्षों से विभिन्न श्रेणियों के लिए बढ़ी हुई दरों को प्रस्तुत करती है, लेकिन एक बड़ी वृद्धि कोविड के समय में हुई थी। निम्नलिखित तालिका ऐसी नौकरी श्रेणियों को सूचीबद्ध करती है:
सरकार ने वन विभाग को कोरोना मृतकों के दाह संस्कार के लिए मुफ्त लकड़ी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। सभी नगर निगमों को शव वाहन किराये पर लेने की अनुमति दी गई
सरकार ने उन परिवारों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम (प्राथमिकता घरेलू श्रेणी) के तहत शामिल किया, जहां कोविड-19 महामारी के कारण मृत्यु हुई। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत प्राथमिकता वाले परिवारों की पहचान के लिए 1 अगस्त, 2013 को जारी दिशानिर्देशों में ढील दी गई ताकि उन्हें तत्काल राहत दी जा सके और ऐसे परिवारों को ग्राम पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (प्राथमिकता परिवार (पीएचएच)) के तहत शामिल किया गया है। श्रेणियां) ऐसे व्यक्तियों का केवल कोविड-19 मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने पर।
वर्ष 2020-21 के लिए टोल बैरियरों पर टोल शुल्क में कमी/छूट प्रदान की गई।

4.सतत विकास लक्ष्य तथा राज्य में सुशासन के लिए पहल

सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, रोजगार, बुनियादी ढांचे, ऊर्जा और पर्यावरण सहित सभी प्रमुख विकास क्षेत्रों को शामिल करते हैं - और समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करते हैं। उन्हें हासिल करने के लिए. भारत के लिए इन लक्ष्यों को प्राप्त करना अनिवार्य बना हुआ है। हाल के वर्षों में देश भर में पहले से ही महत्वपूर्ण प्रगति हुई है लेकिन प्रगति की गति धीमी होनी चाहिए एसडीजी को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए संशोधित। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान का एक बेहद लोकप्रिय बयान है“गरीबी उन्मूलन और विकास को बढ़ावा देने में सुशासन शायद सबसे महत्वपूर्ण कारक है।”
सितंबर, 2015 में विश्व समुदाय ने नए विकास पर एक अंतर्राष्ट्रीय रूपरेखा तैयार की। एसडीजी, जिसे आधिकारिक तौर पर "ट्रांसफॉर्मिंग अवर वर्ल्ड: द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट" के रूप में जाना जाता है, 169 लक्ष्यों और 300 से अधिक संकेतकों के साथ 17 आकांक्षा लक्ष्यों का अंतर-सरकारी सेट है। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अगले 15 वर्षों के लिए अपनी राजनीतिक नीतियों को आकार देने के लिए इसे विकास ढांचे के रूप में उपयोग करेंगे। एसडीजी का विस्तार सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) पर किया गया है, जिन पर देशों द्वारा 2001 में सहमति व्यक्त की गई थी और जो 2015 में समाप्त हो गए थे। एसडीजी 1 जनवरी, 2016 को अस्तित्व में आए हैं और 31 दिसंबर, 2030 तक समाप्त हो जाएंगे।
सतत विकास-2030 के एजेंडे का उद्देश्य विकास के लाभ को साझा करने में "किसी को भी पीछे नहीं छोड़ना" है। एसडीजी को गरीबी से निपटने, असमानता को कम करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और वन और जैव विविधता सहित पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने पर वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को एकीकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
एसडीजी पर भारत सरकार द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं और उन्हें अपनाया गया है। अपने लक्ष्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार ने 309 संकेतक विकसित किए हैं जो मापने योग्य और निगरानी योग्य हैं। नीति आयोग भारत में एसडीजी के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी बना हुआ है और इसके पास देश में एसडीजी को अपनाने की निगरानी करने और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने का दोहरा काम है।
एसडीजी इंडिया इंडेक्स का पहला संस्करण दिसंबर 2018 में लॉन्च किया गया था, जिसमें 13 एसडीजी में 39 लक्ष्यों के 62 संकेतकों का उपयोग किया गया था; लक्ष्य 12, 13, 14 और 17 को संकेतकों की कमी के कारण छोड़ना पड़ा जिसके लिए राज्य-वार डेटा उपलब्ध था। दिसंबर 2019 में लॉन्च किए गए सभी 17 लक्ष्यों और 54 लक्ष्यों को कवर करने वाले सूचकांक का दूसरा संस्करण 100 संकेतकों के साथ कवरेज में अधिक व्यापक था: 68 पूरी तरह से राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क (एनआईएफ) के साथ संरेखित, 20 परिष्कृत, और 12 अन्य आधिकारिक सरकार से स्रोत. तीसरा और वर्तमान संस्करण (सूचकांक 3.0) लक्ष्यों की व्यापक कवरेज के साथ 2019-20 संस्करण की तुलना में सुधार का प्रतीक है। सूचकांक एसडीजी प्राप्त करने की दिशा में देश और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है। सूचकांक को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह नीति निर्माताओं, नागरिक समाज, व्यवसायों और आम जनता - सभी के लिए सुलभ है।
वर्तमान सूचकांक के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हैं:
16 एसडीजी में उनके प्रदर्शन के आधार पर राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को रैंक करना। एक समग्र स्कोर की भी गणना की गई, जिसमें कई लक्ष्यों में उनके समग्र प्रदर्शन के आधार पर राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को स्थान दिया गया।
वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।
उन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का समर्थन करना, जिन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अपने साथियों की अच्छी प्रथाओं से सीखने में सक्षम बनाना।
राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सांख्यिकीय प्रणाली में डेटा अंतराल को उजागर करना और उन क्षेत्रों की पहचान करना जिनमें मजबूत और अधिक बार डेटा एकत्र करने की जरूरत है. नीति आयोग ने सभी राज्यों को उनके अंकों के अनुसार निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:
एसडीजी इंडिया इंडेक्स प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए 16 एसडीजी पर लक्ष्य-वार स्कोर की गणना करता है।
ये स्कोर 0-100 के बीच होते हैं, और यदि कोई राज्य/केंद्र शासित प्रदेश 100 का स्कोर हासिल करता है, तो यह दर्शाता है कि उसने 2030 के लक्ष्य हासिल कर लिए हैं .
किसी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश का स्कोर जितना अधिक होगा, वह अपने अंतिम लक्ष्य के उतना ही करीब होगा।
प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के लिए समग्र स्कोर की गणना व्यक्तिगत गोल स्कोर के अंकगणितीय माध्य को लेते हुए, लक्ष्यों में उनके प्रदर्शन को एकत्रित करके की गई थी।
एसडीजी इंडिया इंडेक्स 3.0 में, 115 संकेतकों में से 75 इंडेक्स 2.0 के लिए सामान्य हैं। इनमें से, 57 संकेतकों के लिए, 2019 की तुलना में अद्यतन मूल्यों का उपयोग किया गया है। 115 संकेतकों में से, 76 पूरी तरह से राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क (एनआईएफ) के साथ संरेखित हैं, 31 एनआईएफ से संदर्भित हैं, और 8 का निर्माण लाइन के परामर्श से किया गया है। मंत्रालय। सूचकांक आकलन के लिए कुल 109 संकेतकों का उपयोग किया गया। एसडीजी 14 के तहत 5 संकेतक शामिल नहीं किए गए क्योंकि वे केवल 9 तटीय राज्यों से संबंधित हैं, जबकि लक्ष्य 10 में एक संकेतक का उपयोग तुलनीयता की कमी के कारण गणना के लिए नहीं किया गया है।
अप्रत्याशित और अभूतपूर्व, कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) महामारी ने दुनिया भर में एसडीजी की दिशा में प्रगति को चुनौती दी है। भारत ने एक व्यवस्थित महामारी प्रबंधन योजना सामने रखी, जिसमें विशिष्ट समूहों पर केंद्रित सिस्टम-व्यापी उपाय और पहल शामिल थीं।
हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर राज्यों में अग्रणी है। इसने स्थायी लक्ष्यों के मूल्यांकन में लगातार शीर्ष स्थान हासिल किया। हालाँकि सभी संकेतकों में हिमाचल प्रदेश ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन किफायती और स्वच्छ ऊर्जा में इसने शीर्ष स्थान हासिल किया। हिमाचल ने एसडीजी 2 यानी शून्य भूख में भी सबसे कम स्कोर प्राप्त किया। इसके अलावा, एसडीजी 2 में तीन संकेतक हैं जिन पर हिमाचल प्रदेश को ध्यान देने की आवश्यकता है अर्थात् क) कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत, अविकसित बच्चों का प्रतिशत और एनीमिया से पीड़ित महिलाओं का प्रतिशत। राज्य ने एसडीजी 3.0 के अनुसार समग्र रैंकिंग में तमिलनाडु के साथ दूसरा स्थान हासिल किया है।
हिमाचल प्रदेश ने सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) - 2 पर सबसे कम स्कोर किया है जो भूख और कुपोषण से संबंधित है। लक्ष्य संख्या 2 में सात संकेतक हैं और सात संकेतकों में से हिमाचल प्रदेश का प्रदर्शन कम वजन वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चों का प्रतिशत, पांच साल से कम उम्र के अविकसित बच्चों का प्रतिशत, 15-49 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रतिशत जो एनीमिया से पीड़ित हैं और कम है। 10-19 वर्ष की आयु के किशोरों का प्रतिशत जो एनीमिया से पीड़ित हैं।
योजना विभाग हिमाचल प्रदेश में एसडीजी ढांचे के कार्यान्वयन की सुविधा के लिए राज्य में नोडल विभाग है और इसने एसडीजी की प्रगति को लागू करने और निगरानी करने के लिए एक राज्य दृष्टि दस्तावेज यानी "दृष्टि हिमाचल प्रदेश -2030 सतत विकास लक्ष्य" प्रकाशित किया है। राज्य। 17 पहचाने गए एसडीजी संकेतकों पर प्रगति की निगरानी की जा रही है और इसे हर 3 साल में अपडेट किया जा रहा है। इस दस्तावेज़ में 2022 तक प्राप्त होने वाले संकेतकों की पहचान की गई है। कोविड-19 महामारी के कारण, 2020 सामाजिक दूरी का वर्ष था; योजना विभाग ने 23 से 27 नवंबर 2020 को राज्य शीर्ष प्रशिक्षण संस्थान में आर्थिक और सांख्यिकी विभाग द्वारा प्रायोजित एसडीजी पर लाइन विभागों के लिए एक क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।
राज्य ने एसडीजी पर प्रगति की निगरानी के लिए 138 प्रमुख संकेतकों और लक्ष्यों को शॉर्टलिस्ट किया है, जिनमें से 12 हासिल किए जा चुके हैं, 39 को 2022 तक हासिल किया जाना है और 87 को 2030 तक हासिल करने की योजना है। राज्य एक विकास पर भी विचार कर रहा है। संकेतकों पर प्रगति की निगरानी के लिए डैशबोर्ड। इन संकेतकों को संबंधित विभागों के परामर्श से अंतिम रूप दिया गया है। हिमाचल प्रदेश में एसडीजी लक्ष्य-वार नोडल विभाग तालिका 4.4 में वर्णित हैं।
जीजीआई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शासन की स्थिति का आकलन करने के लिए एक व्यापक और कार्यान्वयन योग्य ढांचा है जो राज्यों/जिलों की रैंकिंग को सक्षम बनाता है। जीजीआई का उद्देश्य एक ऐसा उपकरण बनाना है जिसका उपयोग केंद्र शासित प्रदेशों सहित केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किए गए विभिन्न हस्तक्षेपों के प्रभाव का आकलन करने के लिए राज्यों में समान रूप से किया जा सके। जीजीआई फ्रेमवर्क के आधार पर, सूचकांक सुधार के लिए प्रतिस्पर्धी भावना विकसित करते हुए राज्यों के बीच एक तुलनात्मक तस्वीर प्रदान करता है। जीजीआई 2019 में 10 गवर्नेंस सेक्टर और 50 गवर्नेंस संकेतक शामिल थे। जीजीआई 2020-21 के लिए वही 10 गवर्नेंस सेक्टर बरकरार रखे गए हैं जबकि संकेतकों को संशोधित कर 58 कर दिया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 25 दिसंबर 2021 को प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी) द्वारा तैयार सुशासन सूचकांक 2021 जारी किया। 25 दिसंबर को दिवंगत पूर्व प्रधान मंत्री के शुभ अवसर पर सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। मंत्री अटल बिहारी वाजपेई की जयंती। सुशासन आर्थिक परिवर्तन का प्रमुख घटक है और वर्तमान सरकार के "न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन" पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, सूचकांक अधिक महत्व रखता है।
इसके अलावा, जीजीआई 2020-21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करता है, अर्थात,
i) अन्य राज्य - समूह ए;
ii) अन्य राज्य - समूह बी;
iii) उत्तर-पूर्व और पहाड़ी राज्य; और
iv) केंद्र शासित प्रदेश।
हिमाचल प्रदेश को पहाड़ी राज्यों में मानव संसाधन विकास और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के मामले में शीर्ष प्रदर्शनकर्ता आंका गया है।
जीजीआई 2020-21 पर हिमाचल की स्थिति दर्शाती है कि हिमाचल ने बेहतर क्षेत्रों में सुधार किया है: सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और उपयोगिताओं और सामाजिक कल्याण और विकास और पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों में पहले स्थान पर है, जिसे तालिका 4.6 में दर्शाया गया है, जिसमें यह भी दिखाया गया है कि मानव संसाधन विकास और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और उपयोगिताओं क्षेत्र कृषि और संबद्ध क्षेत्र में हिमाचल का प्रदर्शन सबसे अच्छा है, हिमाचल 8वें स्थान पर है, जो चिंता का विषय है।
सुशासन आर्थिक परिवर्तन का प्रमुख घटक है और वर्तमान सरकार के 'न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन' पर ध्यान केंद्रित करने से सूचकांक अधिक महत्व रखता है। डीजीजीआई का विचार तब उत्पन्न हुआ जब पब्लिक अफेयर सेंटर (पीएसी), बेंगलुरु द्वारा पब्लिक अफेयर इंडेक्स (पीएआई) पर हिमाचल प्रदेश को 2016, 2017, 2018 और 2019 में लगातार 12 छोटे राज्यों में पहला स्थान दिया गया।
हिमाचल प्रदेश में डीजीजीआई को एक वार्षिक अभ्यास बनाने के लिए, जनवरी, 2019 में यह निर्णय लिया गया कि डीजीजीआई आर्थिक और सांख्यिकी विभाग का एक नियमित अभ्यास होगा। उपरोक्त के अनुपालन में विभाग ने डीजीजीआई-2019 तैयार किया है। 2020-21 के बजट भाषण में मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश, श्री. जय राम ठाकुर ने शासन के मूल्यांकन को उप-राज्य स्तर तक ले जाने की घोषणा की और सुशासन सूचकांक में शीर्ष तीन स्थान पाने वाले जिलों यानी प्रथम- `50 लाख, द्वितीय- `35 लाख और तृतीय- `25 लाख का पुरस्कार देने का प्रस्ताव रखा। बेहतर प्रदर्शन करने के लिए जिलों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना। डीजीजीआई-2020 के आधार पर शीर्ष तीन जिलों को 2021 के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सुशासन को बढ़ावा देने के लिए चल रहे प्रयास के एक भाग के रूप में जिला सुशासन सूचकांक (डीजीजीआई), नीति निर्माण में अधिक समावेशिता के उद्देश्य से डीजीजीआई 2019 की तुलना में मापदंडों में कुछ प्रासंगिक बदलावों के साथ डीजीजीआई 2020 विकसित किया गया है। जिलों की रैंकिंग से जिलों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा आएगी जिससे नागरिकों को काफी फायदा होगा। डीजीजीआई 2019-20 में 7 थीम, 19 फोकस विषय और 45 शासन संकेतक शामिल हैं और डीजीजीआई 2020-21 के लिए समान 7 थीम, और 19 फोकस विषय और 75 संकेतक संशोधित किए गए हैं। विभिन्न जिलों की तुलनात्मक स्थिति नीचे तालिका 4.7 में प्रस्तुत की गयी है।
तालिका 4.7 से पता चलता है कि जिला हमीरपुर ने अपनी स्थिति में सुधार करके तीसरी रैंक (2019) से पहली रैंक (2019) से सुधार कर 2020 में तीसरी रैंक प्राप्त की है। हालांकि, जिला मंडी की स्थिति खराब हो गई है और वह दूसरे से चौथे स्थान पर फिसल गया है और बिलासपुर इससे नीचे खिसक गया है। प्रथम स्थान से द्वितीय स्थान तक। शिमला जिला, पिछले वर्ष के 10वें स्थान के मुकाबले 2020 में 05वें स्थान पर है। तालिका 4.8 प्रत्येक विषय के लिए जिलों का व्यक्तिगत स्कोर प्रस्तुत करती है। हमीरपुर की बढ़त का श्रेय मानव विकास सूचकांक और सामाजिक सुरक्षा सूचकांक को समर्थन को दिया जाता है। पिछले वर्ष जहां यह छठे स्थान पर था, वहीं मानव विकास में सहायता के मामले में यह दूसरे स्थान पर है और सामाजिक सुरक्षा के मामले में यह पिछले वर्ष नौवें स्थान पर था, 2020 में यह दूसरे स्थान पर पहुंच गया। हमीरपुर में भी सुधार हुआ है पारदर्शिता और जवाबदेही सूचकांक के मामले में यह पिछले वर्ष के 9वें स्थान से वर्तमान वर्ष में चौथे स्थान पर है।
MPI को संपूर्ण रूप से सतत विकास लक्ष्य (SDG) 1 को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें कहा गया है कि "हर जगह गरीबी को उसके सभी रूपों में समाप्त करना"। एमपीआई का उपयोग यूएनडीपी द्वारा 2010 से अपने प्रमुख एचडीआर में किया जाता है और यह दुनिया में सबसे व्यापक रूप से नियोजित गैर-मौद्रिक गरीबी सूचकांक है। यह निम्नलिखित से संबंधित बारह संकेतकों पर स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में ओवरलैपिंग अभाव को दर्शाता है: ए) पोषण, बी) बाल किशोरावस्था और मृत्यु दर, सी) प्रसवपूर्व देखभाल डी) स्कूली शिक्षा के वर्ष, ई) स्कूल में उपस्थिति, एफ) खाना पकाने का ईंधन, जी) स्वच्छता, ज) पेयजल, i) बिजली, j) आवास, k) संपत्ति और l) बैंक खाता। यह आय गरीबी माप को पूरक करता है क्योंकि यह सीधे अभावों को मापता है और तुलना करता है।
MPI = H * A

जहां: एच = हेड काउंट, इसका मतलब उन लोगों का प्रतिशत है जो बहुआयामी रूप से गरीब हैं और ए = भारित अभावों का प्रतिशत है, जिससे औसत बहुआयामी गरीब व्यक्ति पीड़ित है। एमपीआई 2021 पर नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर हिमाचल प्रदेश और पूरे भारत के बहुआयामी गरीबी सूचकांक में उपलब्धियों का तुलनात्मक अवलोकन नीचे तालिका 4.9 में दिया गया है।
एमपीआई की गणना में मोटे तौर पर दो चरण शामिल हैं:
i) पहचान और
ii) एकत्रीकरण।
यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि "पहचान" उन महत्वपूर्ण चरणों में से एक है जो किसी विशेष राष्ट्र/राज्य की मौजूदा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के आधार पर एमपीआई की गणना से एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र और एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न हो सकती है। संकेतकों की पहचान एमपीआई के मूल में है जो किसी राष्ट्र/राज्य की तीव्रता और अभाव की तस्वीर दिखाती है।
हिमाचल प्रदेश के दो जिलों, चंबा और सिरमौर ने राष्ट्रीय एमपीआई में हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में सबसे निचली और दूसरी सबसे निचली रैंक हासिल की है। निम्नलिखित संकेतकों में वंचना सबसे अधिक थी। पोषण, मातृ स्वास्थ्य और खाना पकाने का ईंधन। सिरमौर और चंबा में 9.51 प्रतिशत और 9.69 प्रतिशत हेड काउंट है
पोषण का अनुपात जो राज्य के सभी जिलों में सबसे अधिक है। इसी प्रकार, इन दो जिलों में खाना पकाने के ईंधन की सबसे अधिक कमी है, जहां चंबा में हेड काउंट 10.96 प्रतिशत है, जबकि सिरमौर में 10.58 प्रतिशत है। आवास के मामले में भी चंबा के लिए हेडकाउंट 7.95 प्रतिशत और 6.99 प्रतिशत है जो राज्य के अन्य सभी जिलों की तुलना में सबसे अधिक है। राज्य में मातृ स्वास्थ्य भी एक मुद्दा है जहां इन दोनों जिलों का प्रदर्शन अन्य जिलों की तुलना में कम है। जहां चंबा में हेड काउंट रेशियो 9.63 प्रतिशत और सिरमौर में 6.92 प्रतिशत है। सोलन और मंडी के लिए भी स्थिति चिंताजनक है जहां हेड काउंट अनुपात 7.1 प्रतिशत और 6.68 प्रतिशत है। अंत में यह देखा जा सकता है कि जहां चंबा और सिरमौर को एमपीआई के मामले में सर्वोच्च बताया गया है, वहीं इन दोनों जिलों को डीजीजीआई के मामले में निचली रैंकिंग के रूप में भी देखा गया है, जहां चंबा 11वें और सिरमौर 9वें स्थान पर है। डीजीजीआई में बढ़त का असर एमपीआई पर भी दिखा।

5.संस्थागत एवम् बैंक वित्त

हिमाचल के लिए लीड बैंक की जिम्मेदारी तीन बैंकों के बीच वितरित की गई है: पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, मंडी और ऊना में; बिलासपुर, शिमला, सोलन और सिरमौर में यूनाइटेड कमर्शियल बैंक (यूको) बैंक और चंबा और लाहौल-स्पीति में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई)। इनमें से यूको राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) का संयोजक बैंक है। राज्य में 2,244 बैंक शाखाओं का नेटवर्क है, जिनमें से 76 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। अक्टूबर, 2020 से सितंबर, 2021 तक 13 नई शाखाएँ खोली गईं। वर्तमान में 1,715 शाखाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में, 414 अर्ध-शहरी क्षेत्रों में और 115 शिमला में स्थित हैं - जो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वर्गीकृत राज्य का एकमात्र शहरी केंद्र है।
2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में प्रति शाखा औसत जनसंख्या 11,000 के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 3,059 थी। सितंबर, 2021 तक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) की 1,165 शाखाएँ हैं, जो राज्य में बैंकिंग क्षेत्र के कुल शाखा नेटवर्क का 51 प्रतिशत से अधिक हैं। पीएनबी के पास 350 शाखाओं का सबसे बड़ा नेटवर्क है, इसके बाद एसबीआई की 329 और यूसीओ की 173 शाखाएं हैं। निजी क्षेत्र के बैंकों की 188 शाखाएँ हैं जिनमें सबसे अधिक 75 शाखाओं के साथ एचडीएफसी की उपस्थिति है, इसके बाद 32 शाखाओं के साथ आईसीआईसीआई की शाखाएँ हैं। राज्य में चार लघु वित्त बैंक कार्यरत हैं और इनका 16 शाखाओं का नेटवर्क है। इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक और फाइनेंशियल इंक्लूजन नेटवर्क एंड ऑपरेशंस (फिनो) पेमेंट्स बैंक दो पेमेंट बैंक हैं जो 13 शाखाओं के नेटवर्क के साथ राज्य में काम कर रहे हैं।
पीएनबी द्वारा प्रायोजित एक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) है, जिसका नाम हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक (एचपीजीबी) है, जिसका सितंबर 2021 तक 265 शाखाओं का नेटवर्क है। सहकारी क्षेत्र के बैंकों की 571 शाखाएं हैं। राज्य शीर्ष सहकारी बैंक यानी हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक (HPSCB) की 241 शाखाएँ और कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक (KCCB) की 217 शाखाएँ हैं। पांच शहरी सहकारी. राज्य में 26 शाखाओं वाले बैंक भी कार्यरत हैं। बैंक शाखाओं के जिलेवार प्रसार के संदर्भ में। कांगड़ा जिले में सबसे अधिक 423 बैंक शाखाएँ हैं और लाहौल-स्पीति में सबसे कम 23 शाखाएँ हैं। विभिन्न बैंकों द्वारा 2,049 एटीएम की स्थापना से बैंक सेवाओं की पहुंच में और वृद्धि हुई है।
पीएनबी द्वारा प्रायोजित एक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) है, जिसका नाम हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक (एचपीजीबी) है, जिसका सितंबर 2021 तक 265 शाखाओं का नेटवर्क है। सहकारी क्षेत्र के बैंकों की 571 शाखाएं हैं। राज्य शीर्ष सहकारी बैंक यानी हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक (HPSCB) की 241 शाखाएँ और कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक (KCCB) की 217 शाखाएँ हैं। पांच शहरी सहकारी. राज्य में 26 शाखाओं वाले बैंक भी कार्यरत हैं। बैंक शाखाओं के जिलेवार प्रसार के संदर्भ में। कांगड़ा जिले में सबसे अधिक 423 बैंक शाखाएँ हैं और लाहौल-स्पीति में सबसे कम 23 शाखाएँ हैं। विभिन्न बैंकों द्वारा 2,049 एटीएम की स्थापना से बैंक सेवाओं की पहुंच में और वृद्धि हुई है। राज्य में क्षेत्रीय जोनल और सर्कल कार्यालय। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का क्षेत्रीय कार्यालय क्षेत्रीय निदेशक की अध्यक्षता में है और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) का क्षेत्रीय कार्यालय मुख्य महाप्रबंधक की अध्यक्षता में शिमला में है।
राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास में तेजी लाने के लिए एक भागीदार के रूप में बैंकों की भूमिका और जिम्मेदारी अच्छी तरह से पहचानी जाती है। सभी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ऋण का प्रवाह बढ़ाया गया है। सितंबर, 2021 तक राज्य के बैंकों ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण देने के लिए आरबीआई द्वारा 7 राष्ट्रीय मानकों में से 6 को हासिल कर लिया है, जिसमें कृषि क्षेत्र, छोटे और सीमांत किसान, सूक्ष्म उद्यम, कमजोर वर्ग और महिलाएं शामिल हैं। वर्तमान में, बैंकों ने अपने कुल ऋण का 59.86 प्रतिशत प्राथमिकता क्षेत्र की गतिविधियों के लिए बढ़ाया है।
सितंबर, 2021 तक बैंकों द्वारा दिए गए कुल ऋण में कृषि ऋण 19.47 प्रतिशत था, जबकि आरबीआई द्वारा निर्धारित 18 प्रतिशत का राष्ट्रीय पैरामीटर था। कमजोर वर्गों और महिलाओं को दिए गए अग्रिमों का अनुपात कुल ऋण का 17.75 और 10.48 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय लक्ष्य क्रमशः 10 और 5 प्रतिशत है। राज्य में बैंकों का ऋण जमा अनुपात (सीडीआर) 38.28 फीसदी है. राष्ट्रीय पैरामीटर नीचे तालिका-5.1 में दिए गए हैं:
वित्तीय समावेशन हमारे समाज के बहिष्कृत वर्गों और निम्न आय समूहों को किफायती लागत पर वित्तीय सेवाओं और उत्पादों की डिलीवरी को दर्शाता है। भारत सरकार ने हमारे समाज के बहिष्कृत वर्गों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में लाने के लिए पूरे देश में एक व्यापक वित्तीय समावेशन अभियान "प्रधानमंत्री जन-धन योजना" (पीएमजेडीवाई) शुरू किया है। इस विशेष अभियान को सात साल से अधिक हो गए हैं और ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं, छोटे और सीमांत किसानों और मजदूरों सहित समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए कई पहल की जा रही हैं।
प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई): राज्य में बैंकों ने कम से कम सभी परिवारों को कवर किया है प्रत्येक परिवार का एक मूल बचत बैंक जमा खाता (बीएसबीडीए)। सितंबर, 2021 तक योजना के तहत बैंकों में कुल 17.53 लाख खाते थे। इन खातों में से 15.34 लाख खाते ग्रामीण क्षेत्रों में और 2.19 लाख खाते शहरी क्षेत्रों में हैं। बैंकों ने 11.73 लाख पीएमजेडीवाई खाताधारकों को रुपे डेबिट कार्ड जारी किए हैं और इनमें से 66 प्रतिशत से अधिक खातों को कवर किया है। बैंकों ने बैंक खाते को आधार और मोबाइल नंबर से जोड़ने की पहल की है और सितंबर, 2021 तक 83 प्रतिशत पीएमजेडीवाई खातों को जोड़ दिया है।
पीएमजेडीवाई योजना के तहत सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा पहल: योजना के कार्यान्वयन के दूसरे चरण में, भारत सरकार मुख्य रूप से गरीबों और वंचितों पर लक्षित एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा पहल के रूप में तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाएं शुरू की हैं। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की वर्तमान स्थिति नीचे उल्लिखित है:
i) प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई): यह योजना `2.00 लाख (`आंशिक और स्थायी विशेष योग्यता के लिए` 1.00 लाख) का नवीकरणीय एक वर्ष की आकस्मिक मृत्यु सह विशेष योग्यता कवर प्रदान कर रही है। 18 से 70 वर्ष की आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को प्रति ग्राहक `12.00 प्रति वर्ष के प्रीमियम पर, हर साल 1 जून से नवीकरणीय। सितंबर, 2021 तक पीएमएसबीवाई के तहत बैंकों के पास 15.72 लाख ग्राहक हैं। बीमा कंपनियों ने 30 नवंबर, 2021 तक योजना के तहत 909 बीमा दावों का निपटान किया है।
ii) प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई): यह योजना 18 से 18 वर्ष की आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को `2.00 लाख का नवीकरणीय एक वर्ष का जीवन कवर प्रदान कर रही है। 50 वर्ष, प्रति ग्राहक `330.00 प्रति वर्ष के प्रीमियम के लिए किसी भी कारण से मृत्यु को कवर करता है और हर साल 1 जून से नवीकरणीय होता है। सितंबर, 2021 तक इस योजना के तहत बैंकों के पास 4.32 लाख ग्राहक हैं। बीमा कंपनियों ने शुरुआत से 30 नवंबर, 2021 तक 1,902 बीमा दावों का निपटान किया है।
iii) अटल पेंशन योजना (एपीवाई): अटल पेंशन योजना असंगठित क्षेत्र पर केंद्रित है और यह ग्राहकों को `1,000, 2,000, 3,000, 4,000 या `5,000 प्रति माह की निश्चित न्यूनतम पेंशन प्रदान करती है। 60 वर्ष की आयु से शुरू होकर, 18 से 40 वर्ष की आयु में प्रवेश करने पर उपयोग किए जाने वाले योगदान विकल्प पर निर्भर करता है। 20 साल तक नियमित योगदान करने पर तय न्यूनतम पेंशन की गारंटी सरकार देती है. एपीवाई में राज्य सरकार ने भी योगदान दिया है. एपीवाई के ग्राहकों के लिए राज्य सरकार की ओर से सह-योगदान पात्र खातों में किया जाता है, जो ग्राहक के कुल योगदान का 50 प्रतिशत या `2,000 जो भी कम हो, के अधीन है। राज्य सरकार एपीवाई को अपनाने के लिए मनरेगा श्रमिकों, मध्याह्न भोजन श्रमिकों, कृषि और बागवानी श्रमिकों और आंगनवाड़ी श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। बैंकों ने शिविरों, प्रेस, मीडिया प्रचार आदि के माध्यम से योजना के तहत आक्रामक जागरूकता अभियान पर ध्यान केंद्रित किया है। एपीवाई में, बैंकों ने सितंबर, 2021 तक योजना के तहत 2,02,666 ग्राहकों को नामांकित किया है। डाक और टेलीग्राफ विभाग भी एपीवाई में भाग ले रहा है। योजना।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना : देश में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) शुरू की गई जिसमें हिमाचल प्रदेश भी शामिल है. छोटे सूक्ष्म उद्यमों में मुख्य रूप से विनिर्माण, व्यापार और सेवाओं के गैर-कृषि उद्यम शामिल होते हैं जिनकी ऋण आवश्यकताएं `10.00 लाख से कम होती हैं और आय सृजन के लिए इन क्षेत्रों को दिए गए सभी ऋण मुद्रा ऋण के रूप में जाने जाते हैं। इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले 8 अप्रैल, 2015 को या उसके बाद दिए गए सभी अग्रिमों को योजना के तहत मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। सितंबर, 2021 तक, हिमाचल प्रदेश में बैंकों ने 2021-22 में योजना के तहत 36,509 नए सूक्ष्म उद्यमियों को `775.90 करोड़ के नए ऋण स्वीकृत किए हैं। इस अवधि के लिए, 1,72,048 उद्यमियों को कवर करते हुए कुल वितरित ऋण 2566.70 करोड़ है।
स्टैंड-अप इंडिया योजना : स्टैंड अप इंडिया योजना औपचारिक रूप से पूरे देश में शुरू की गई है इसका उद्देश्य एससी, एसटी और महिलाओं द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले समाज के असेवित और वंचित वर्गों के बीच उद्यमशीलता संस्कृति को प्रोत्साहित करना है। यह योजना क्षेत्र में एक नया उद्यम स्थापित करने के लिए प्रति बैंक शाखा कम से कम एक अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) उधारकर्ता और कम से कम एक महिला उधारकर्ता को बैंकों से `10.00 लाख से `1.00 करोड़ तक के ऋण की सुविधा प्रदान करती है। निर्माण, व्यवसाय या सेवा क्षेत्र (जिसे ग्रीन फील्ड उद्यम भी कहा जाता है)। बैंकों ने सितंबर, 2021 तक योजना के तहत एससी/एसटी और महिला उद्यमियों द्वारा स्थापित 1445 नए उद्यमों को `297.56 करोड़ मंजूर किए हैं।
वित्तीय जागरूकता और साक्षरता अभियान: वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अभियान लक्ष्य समूहों तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बैंक वित्तीय साक्षरता केंद्रों (एफएलसी) और हिमाचल प्रदेश में अपनी बैंक शाखाओं के माध्यम से वित्तीय साक्षरता अभियान चला रहे हैं।
बैंकों का बिजनेस वॉल्यूम: राज्य में कार्यरत सभी बैंकों की कुल जमा राशि `1,39,352 से बढ़ी सितंबर, 2020 को करोड़ रुपये से सितंबर, 2021 तक `1,50,098 करोड़ हो गया। बैंकों की जमा राशि साल-दर-साल 7.70 प्रतिशत की वृद्धि से बढ़ी है। कुल अग्रिम सितंबर, 2020 में `56,308 करोड़ से घटकर सितंबर, 2021 में `54,423 करोड़ हो गया है, जो साल-दर-साल (-) 3.35 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है। कुल बैंकिंग कारोबार `2,04,511 करोड़ में 4.52 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
बैंकों का व्यवसाय वॉल्यूम राज्य में कार्यरत सभी बैंकों की कुल जमा राशि सितंबर, 2020 में `1,39,352 करोड़ से बढ़कर सितंबर, 2021 तक `1,50,098 करोड़ हो गई। बैंकों की जमा राशि साल-दर-साल बढ़ी है- वर्ष 7.70 प्रतिशत की वृद्धि। कुल अग्रिम सितंबर, 2020 में `56,308 करोड़ से घटकर सितंबर, 2021 में `54,423 करोड़ हो गया है, जो साल-दर-साल (-) 3.35 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है। कुल बैंकिंग कारोबार `2,04,511 करोड़ में 4.52 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
बैंकों ने नाबार्ड द्वारा विभिन्न प्राथमिकता क्षेत्र की गतिविधियों के लिए तैयार की गई संभावनाओं के आधार पर नए ऋण के वितरण के लिए 2021-22 के लिए वार्षिक ऋण योजना तैयार की है। वार्षिक ऋण योजना 2021-22 के तहत वित्तीय लक्ष्यों को पिछली योजना परिव्यय की तुलना में 10.24 प्रतिशत बढ़ाकर `30,538 करोड़ निर्धारित किया गया है। बैंकों ने सितंबर, 2021 तक `14,115.30 करोड़ के नए ऋण वितरित किए हैं और वार्षिक प्रतिबद्धता का 46.25 प्रतिशत हासिल किया है। सेक्टर-वार लक्ष्य अर्थात 30.09.2021 तक की उपलब्धि तालिका 5.3 में दी गई है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन : ग्रामीण विकास मंत्रालय ने गरीबी को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम शुरू किया गरीबों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए मजबूत संस्थानों के निर्माण के माध्यम से इन संस्थानों को वित्तीय सेवाओं और आजीविका सेवाओं की एक श्रृंखला तक पहुंचने में सक्षम बनाना। यह योजना राज्य में एचपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एचपीएसआरएलएम), ग्रामीण विकास विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार के माध्यम से कार्यान्वित की गई है। हिमाचल में बैंकों को इस योजना के तहत 8,000 लाभार्थियों को कवर करने के लिए `110 करोड़ का वार्षिक लक्ष्य आवंटित किया गया है। बैंकों ने एनआरएलएम योजना के तहत सितंबर, 2021 तक `30.47 करोड़ के 1,683 ऋण स्वीकृत किए हैं।
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम): भारत सरकार, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने मौजूदा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना का पुनर्गठन किया और राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन लॉन्च किया। स्व-रोजगार कार्यक्रम (एसईपी) एनयूएलएम के घटकों (घटक 4) में से एक है जो एस.एन. प्रदान करने पर केंद्रित है। सेक्टर वार्षिक लक्ष्य 2021-22 लक्ष्य सितंबर, 2021 उपलब्धि सितंबर, 2021 प्रतिशत उपलब्धि सितंबर, 2021 1. कृषि प्रत्यक्ष 12253.73 6126.87 3874.74 63.24 2. एमएसएमई 9522.44 4771.22 4803.85 100.68 3. शिक्षा 480.74 240.37 37.74 15.70 4. आवास 1787.43 893.72 451.87 50.56 5. अन्य-पीएस 1916.99 958.50 265.61 27.71 6. कुल प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (1 से 5) 25961.33 12990.68 9433.81 72.62 7. कुल गैर प्राथमिकता क्षेत्र ऋण 4556.87 2278.44 4681.49 205.47 कुल ऋण (6+7) 30518.20 15269.12 14115.30 92.44 54 एक प्रावधान के माध्यम से वित्तीय सहायता शहरी गरीबों के व्यक्तिगत और समूह उद्यमों और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की स्थापना का समर्थन करने के लिए ऋण पर ब्याज सब्सिडी। हिमाचल प्रदेश में शहरी विकास विभाग और विभिन्न बैंकों ने सितंबर, 2021 तक एनयूएलएम के तहत 2.78 करोड़ रुपये ऋण वितरित किए हैं।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी): प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) एक है भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा प्रशासित क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम। खादी और ग्रामोद्योग आयोग योजना के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी है। राज्य स्तर पर यह योजना केवीआईसी, खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड (केवीआईबी) और जिला उद्योग केंद्र के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है। 2021-22 में, योजना के तहत 1,451 नई इकाइयों को वित्त पोषित करने का लक्ष्य बैंकों को आवंटित किया गया था। कार्यान्वयन एजेंसियों को योजना के तहत `43.73 करोड़ की मार्जिन मनी संवितरण प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। बैंकों ने सितंबर, 2021 तक 469 इकाइयों के उद्यमियों को मार्जिन मनी के रूप में `12.50 करोड़ स्वीकृत किए हैं।
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी): बैंक पर्याप्त और समय पर उपलब्ध कराने के लिए अपनी ग्रामीण शाखाओं के माध्यम से केसीसी योजना लागू कर रहे हैं। किसानों को फसलों की खेती और अन्य जरूरतों के लिए अल्पकालिक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एकल खिड़की के तहत बैंकिंग प्रणाली से ऋण सहायता। बैंकों ने सितंबर, 2021 तक 1,04,020 किसानों को `1,658.74 करोड़ की राशि के साथ नए केसीसी वितरित किए हैं। बैंकों ने सितंबर, 2021 तक केसीसी के तहत 3,92,757 किसानों को `6,769.74 करोड़ की कुल राशि के साथ वित्त पोषित किया है।
ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETIs): ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETIs) एक पहल है ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) उद्यमिता विकास की दिशा में ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन प्रदान करने के लिए जिला स्तर पर समर्पित बुनियादी ढांचा तैयार करेगा। लीड बैंकों यानी यूको बैंक, पीएनबी और एसबीआई ने राज्य के 10 जिलों (किन्नौर और लाहौल और स्पीति को छोड़कर) में आरएसईटीआई स्थापित किए हैं। ये आरएसईटीआई गरीबी उन्मूलन और पीएमईजीपी के तहत उद्यमशीलता विकसित करने के लिए विभिन्न सरकारी प्रायोजित कार्यक्रमों के तहत इलेक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग (ईडीपी) का संचालन कर रहे हैं। आरएसईटीआई ने वर्ष 2021-22 में कुल 220 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने का लक्ष्य रखा है और चालू वित्तीय वर्ष में कुल 5,730 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
आधार को बैंक खाते से जोड़ने और सभी मौजूदा बैंक खातों में आधार के सत्यापन के लिए विशेष अभियान: हिमाचल प्रदेश में आधार नामांकन और अद्यतनीकरण सुविधा प्रदान करने के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा 97 आधार नामांकन और अद्यतनीकरण केंद्रों की पहचान की गई है।
आधार को बैंक खाते से जोड़ने और सभी मौजूदा बैंक खातों में आधार के सत्यापन के लिए विशेष अभियान: हिमाचल प्रदेश में, 97 आधार आधार नामांकन और अद्यतनीकरण सुविधा की सुविधा प्रदान करने के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा नामांकन और अद्यतनीकरण केंद्रों की पहचान की जाती है। 1995-96 में अपनी स्थापना के बाद से, ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास निधि (आरआईडीएफ) के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास, नाबार्ड के प्रमुख के रूप में उभरा है। राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में हस्तक्षेप। इस योजना के तहत, राज्य सरकार और राज्य के स्वामित्व वाले निगमों को चल रही परियोजनाओं को पूरा करने और नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए रियायती ऋण दिया जाता है। कुछ चयनित क्षेत्रों में. पिछले कुछ वर्षों में वित्तपोषण व्यापक हो गया है, जिसमें कृषि और संबंधित क्षेत्रों, सामाजिक क्षेत्र और ग्रामीण कनेक्टिविटी में 39 योग्य गतिविधियों को शामिल किया गया है।
1995-96 से आरआईडीएफ-I के तहत ₹15.00 करोड़ के प्रारंभिक आवंटन से, राज्य का आवंटन अब आरआईडीएफ-XXVII (2021-22) के तहत ₹1000 करोड़ के स्तर तक पहुंच गया है। आरआईडीएफ ने अहम भूमिका निभाई है सिंचाई, सड़क और पुल, बाढ़ सुरक्षा, प्राथमिक शिक्षा के अलावा पेयजल आपूर्ति, पशु चिकित्सा सेवाएं, वाटरशेड विकास, आईटी बुनियादी ढांचे आदि जैसे विविध क्षेत्रों का विकास। हाल के वर्षों में, पॉली-हाउस और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली और सौर सिंचाई के विकास के लिए अभिनव परियोजना का समर्थन किया गया है, जिससे कृषि-व्यवसाय और टिकाऊ खेती के विकास में मदद मिलेगी। व्यावसायिक तर्ज पर. मार्च, 2021 तक आरआईडीएफ के तहत राज्य को ग्रामीण सड़कों/पुलों, सिंचाई, ग्रामीण पेयजल, शिक्षा, पशुपालन आदि सहित ₹8890 करोड़ की वित्तीय सहायता स्वीकृत की गई है। आरआईडीएफ-XXVII के तहत ₹965 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है और दिसंबर, 2021 तक ₹410 करोड़ वितरित किए गए हैं। स्वीकृत परियोजनाओं के कार्यान्वयन/पूरा होने के बाद 11,790 किलोमीटर सड़कें मोटर योग्य हो जाएंगी, 25,743 मीटर पुलों का निर्माण किया जाएगा और 1,58,030 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई परियोजनाओं से लाभ मिलेगा। इसके अलावा प्राथमिक विद्यालयों में 2,921 कमरे, माध्यमिक विद्यालयों में 64 विज्ञान प्रयोगशालाएं, 25 आईटी केंद्र और 397 पशु चिकित्सालयों का निर्माण किया जाएगा।
वेयर हाउस इंफ्रास्ट्रक्चर फंड : नाबार्ड ने वित्तीय सहायता के लिए राज्य सरकार को ₹4.18 करोड़ मंजूर किए हैं वर्ष 2019-20. 500 मीट्रिक टन क्षमता वाली चुराह, चंबा में एक नियंत्रित वातावरण (सीए) स्टोर परियोजना एचपीएमसी द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। दिसंबर, 2021 तक रोहड़ू, ओड्डी और पतलीकूहल में 3,480 मीट्रिक टन क्षमता वाले कोल्ड स्टोरों को सीए स्टोर में आधुनिकीकरण और उन्नयन के लिए ₹8.54 करोड़ की मंजूरी दी गई है।
खाद्य प्रसंस्करण निधि (एफपीएफ): नाबार्ड ने एक कोष के साथ एक खाद्य प्रसंस्करण निधि (एफपीएफ) की स्थापना की है नामित खाद्य पार्कों की स्थापना और व्यक्तिगत खाद्य/कृषि प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए 2014-15 में ₹2,000 करोड़। मेसर्स क्रेमिका मेगा फूड पार्क को राज्य में ₹103.85 करोड़ की कुल परियोजना लागत में से ₹37.94 करोड़ की वित्तीय सहायता दी गई है। इस परियोजना के हब और स्पोक मॉडल से राज्य के किसानों को लाभ होने की उम्मीद है और इससे राज्य में रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है।
पुनर्वित्त सहायता: नाबार्ड ने विविध गतिविधियों के लिए दीर्घकालिक पुनर्वित्त बढ़ाया। ग्रामीण आवास, छोटे सड़क परिवहन संचालक, भूमि विकास, लघु सिंचाई, 2021-22 के दौरान डेयरी विकास, सेलग्रुप, फार्म मशीनीकरण, मुर्गीपालन, वृक्षारोपण, बागवानी, भेड़/बकरी/सूअर पालन, पैकिंग और ग्रेडिंग हाउस गतिविधि और अन्य क्षेत्रों में ₹646.00 करोड़ का निवेश।हिमाचल। प्रदेश ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंकों ने भी दिसंबर,2021 तक दीर्घकालिक पुनर्वित्त के तहत ₹219.19 करोड़ और वाणिज्यिक बैंकों को ₹69.44 करोड़ जारी किए। इसके अलावा, पुनर्वित्त के रूप में ₹6.02 करोड़ जारी किए गए हैं वाणिज्यिक बैंक।
नाबार्ड ने ₹1,960 करोड़ की अल्पावधि (एसटी) क्रेडिट सीमा को मंजूरी देकर फसल ऋण वितरण के लिए सहकारी बैंकों और आरआरबी के प्रयासों को भी पूरक बनाया है, जिसके विरुद्ध बैंकों ने पुनर्वित्त निकाला है। 2020-21 के दौरान ₹1,960 करोड़ की सहायता। इसके अलावा, चालू वर्ष में ₹1,060 करोड़ स्वीकृत किए गए थे, जिसमें से दिसंबर, 2021 तक ₹960 करोड़ निकाले जा चुके हैं। कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिए, नाबार्ड ने विशेष प्रावधान किया है। हिमाचल प्रदेश में सहकारी और ग्रामीण बैंकों को ₹660 करोड़ की तरलता सुविधा।
विशेष पुनर्वित्त योजनाएं: कोविड के बाद के युग में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए, नाबार्ड ने लॉन्च किया 4 नई योजनाएं:
1) पैक्स (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों) का एमएससी (मल्टी सर्विस सेंटर) के रूप में परिवर्तन: इस योजना का लक्ष्य अगले समय में देश भर में लगभग 35000 पैक्स को मल्टी सर्विस सेंटर (एमएससी) में परिवर्तित करना है। संरचित तरीके से तीन साल। इस योजना के तहत, दिसंबर, 2021 तक राज्य के 42 पैक्सों को ₹11.15 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
2) नाबार्ड वाटरशेड और WADI परियोजना क्षेत्रों में विशेष पुनर्वित्त योजना: इस योजना का उद्देश्य वाटरशेड और WADI क्षेत्रों में स्थायी आर्थिक गतिविधियों, आजीविका और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना है। अंतिम लाभार्थियों को सस्ता ऋण प्रदान करने के लिए बैंकों को 3 प्रतिशत की दर पर रियायती पुनर्वित्त सुविधा।
3) सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए विशेष पुनर्वित्त योजना: इस योजना का उद्देश्य प्रधान मंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना को औपचारिक रूप देना है। नाबार्ड विस्तार करेगा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों में पूंजी निर्माण में तेजी लाने के लिए सभी पात्र बैंकों/एफआई को 4 प्रतिशत पर रियायती दीर्घकालिक पुनर्वित्त।
4) जल स्वच्छता और स्वच्छता गतिविधियों के लिए योजनाबद्ध पुनर्वित्त: इस योजना का उद्देश्य बैंकों/वित्तीय संस्थानों की ऋण आवश्यकता को पूरा करना है ताकि वे पात्र लाभार्थियों को समय पर और परेशानी मुक्त ऋण प्रदान कर सकें। /उद्यमियों को WASH गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के लिए।
सरकार प्रायोजित योजनाएं:
1) राज्य में दिसंबर, 2021 तक राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत वित्तीय वर्ष 2019-20 में ₹1.48 करोड़, 2020-21 में ₹2.36 करोड़ और 2021-22 में ₹25.85 लाख की सब्सिडी जारी की गई है। .
2)नई कृषि विपणन अवसंरचना योजना को स्वीकृत सावधि ऋणों के लिए मार्च, 2022 तक बढ़ा दिया गया है।
माइक्रो क्रेडिट: स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) आंदोलन पूरे हिमाचल प्रदेश में फैल गया है और अब जारी है एक दृढ़ आधार. आंदोलन ने मानव संसाधन और वित्तीय उत्पादों में अतिरिक्त समर्थन दिया है। 31 मार्च 2021 तक क्रेडिट लिंक्ड एसएचजी की संचयी संख्या 60,293 थी और 14,508.14 लाख रुपये की राशि के साथ बकाया ऋण वाले क्रेडिट लिंक्ड एसएचजी की संख्या 13,367 थी। केंद्रीय बजट 2014-15 में संयुक्त कृषि समूहों के वित्तपोषण की घोषणा "भूमि हीन किसान" (भूमिहीन किसान) ने वित्तपोषण के संयुक्त देयता समूह (जेएलजी) मोड के माध्यम से भूमिहीन किसानों तक पहुंचने और नवाचार करने में नाबार्ड के प्रयास को और अधिक विश्वसनीयता प्रदान की है। मार्च, 2021 तक 11,661 संयुक्त देयता समूहों को ₹16485.65 लाख का ऋण वितरण प्रदान किया गया है। वर्ष 2020-21 के दौरान, नाबार्ड ने 3 वर्षों की अवधि में 1,000 जेएलजी के प्रचार और क्रेडिट लिंकेज के लिए हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक (एचपीजीबी), भारतीय स्टेट बैंक और यूको बैंक प्रत्येक को ₹40.00 लाख स्वीकृत किए। इसके अलावा, नाबार्ड बैंक से ऋण सुविधा प्राप्त करने वाले एसएचजी सदस्यों के लिए लघु अवधि के कौशल विकास प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करता है। 2020-21 और 2021-22 के दौरान, 39 सूक्ष्म उद्यमिता विकास कार्यक्रम (एमईडीपी) स्वीकृत किए गए हैं और 1170 एसएचजी सदस्यों को व्यक्तिगत या समूह मोड में प्रशिक्षित किया गया था। एक अन्य आजीविका उद्यम विकास कार्यक्रम (एलईडीपी) में वर्ष 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक 1,470 एसएचजी सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया था।
किसान उत्पादक संगठन को बढ़ावा देना: किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) प्राथमिक द्वारा गठित एक कानूनी इकाई है निर्माता, अर्थात. किसान/दूध उत्पादक, मछुआरे। एक एफपीओ एक उत्पादक कंपनी, एक सहकारी समिति या कोई अन्य कानूनी रूप हो सकता है जो सदस्यों के बीच लाभ/लाभ साझा करने का प्रावधान करता है। एफपीओ का मुख्य उद्देश्य अपने स्वयं के संगठन के माध्यम से उत्पादकों के लिए बेहतर आय सुनिश्चित करना है। हिमाचल प्रदेश में, नाबार्ड ने सभी 12 जिलों में 107 एफपीओ के गठन/प्रचार के लिए ₹10.89 करोड़ का अनुदान स्वीकृत किया है। ये एफपीओ एकत्रीकरण के आधार पर सब्जियों, औषधीय और सुगंधित पौधों, दूध और फूलों का उत्पादन, प्राथमिक प्रसंस्करण और विपणन करेंगे। दिसंबर,2021 तक, इन एफपीओ के लिए ₹6.59 करोड़ जारी किए गए हैं। ये एफपीओ राज्य भर में लगभग 15,000 किसानों को कवर करते हैं जिनका वार्षिक कारोबार ₹27.00 करोड़ है। एक अन्य केंद्रीय क्षेत्र योजना में, नाबार्ड "एक जिला एक उत्पाद" की अवधारणा के साथ 10,000 एफपीओ के गठन और संवर्धन के लिए कार्यान्वयन एजेंसी होगी। राज्य में क्लस्टर आधारित व्यावसायिक संगठनों (सीबीबीओ) के माध्यम से एफपीओ को बढ़ावा और पोषित किया जाएगा। नाबार्ड ने योजना के तहत 2.88 करोड़ रुपये के कुल स्वीकृत अनुदान के साथ 16 एफपीओ का गठन किया है।
वाटरशेड विकास: नाबार्ड ने राज्य के दस जिलों में 38 वाटरशेड विकास परियोजनाओं (वाटरशेड और स्प्रिंग शेड प्रोजेक्ट) को मंजूरी दी है। राज्य। दिसंबर,2021 तक, 35,127 हेक्टेयर को कवर करने वाली इन परियोजनाओं के तहत ₹17.99 करोड़ की राशि वितरित की गई है, जिससे 78,031लाभार्थियों वाले 237 गांव लाभान्वित होंगे। ये परियोजनाएं पानी की उपलब्धता, पर्यावरण संरक्षण, किसानों की उत्पादकता और आय में वृद्धि और घटती हुई आय को बढ़ाएगी। चरागाह और पशुपालन की सुविधा। शेष दो जिलों यानी किन्नौर और लाहौल-स्पीति को अगले वित्तीय वर्ष में कवर किया जाएगा।
जनजातीय विकास निधि (टीडीएफ) के माध्यम से जनजातीय विकास: नाबार्ड ने 31.12.2021 तक 12 जनजातीय विकास परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। कुल अनुदान ₹18.33 करोड़ 3,355 परिवारों को कवर किया गया। इन परियोजनाओं का उद्देश्य आम, किन्नू, नींबू के बागानों के लिए लगभग 2,355 एकड़ क्षेत्र को कवर करने वाले चयनित गांवों में WADI (छोटे बगीचे) के साथ-साथ डेयरी इकाइयों की स्थापना करना है। सेब, अखरोट, नाशपाती, जंगली खुबानी। ये परियोजनाएं आदिवासी लोगों को WADIs और डेयरी पहलों के माध्यम से अपनी आय का स्तर बढ़ाने का अवसर प्रदान कर रही हैं।
फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड (एफएसपीएफ) के माध्यम से सहायता: एफएसपीएफ के तहत, अब तक एक संचयी अनुदान सहायता 31 परियोजनाओं के लिए ₹32.13 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं लगभग 16087 किसानों को लाभ। वर्ष 2021-22 के दौरान जिला कांगड़ा में बाजरा और पारंपरिक फसलों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ₹19.88 लाख की अनुदान सहायता के साथ एक परियोजना स्वीकृत की गई है। अधिक ऐसी परियोजनाएँ जो किसानों की आय के साथ-साथ उत्पादकता में भी वृद्धि करेंगी, उन्हें निधि के तहत प्राथमिकता दी जाएगी।
नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (NABCONS) नाबार्ड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है और कृषि, ग्रामीण विकास और संबद्ध क्षेत्रों के सभी क्षेत्रों में परामर्श प्रदान करने में लगी हुई है। NABCONS कृषि और ग्रामीण विकास, विशेष रूप से बहु-विषयक परियोजनाओं, बैंकिंग, संस्थागत विकास, बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण आदि के क्षेत्रों में नाबार्ड की मुख्य क्षमता का लाभ उठाता है। NABCONS चालू वित्तीय वर्ष के दौरान निम्नलिखित प्रमुख कार्यों में शामिल है:
1)हिमाचल प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड को पराला और खड़ापत्थर में एकीकृत कोल्ड चेन परियोजना के लिए परियोजना प्रबंधन परामर्श।
2) हिमाचल प्रदेश में राज्य स्तर पर एग्री-इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एआईएफ) के तहत पीएमयू (प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट) की स्थापना।
3) प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना का तृतीय पक्ष प्रभाव आकलन।
4) हिमाचल प्रदेश में एफपीओ का प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन।
5) हिमाचल प्रदेश में हथकरघा क्षेत्र का व्यापक अध्ययन।
6) NABCONS हिमाचल प्रदेश में डी.डी.यू.-जी.क.वाई. के लिए केंद्रीय तकनीकी सहायता एजेंसी है।
7) चार राज्यों में एसजेवीएन द्वारा निर्मित शौचालयों का तृतीय पक्ष सर्वेक्षण।
8) सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम का तृतीय पक्ष निरीक्षण।
हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के लिए नाबार्ड की पहल : नाबार्ड को संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के तहत स्थापित अनुकूलन निधि (एएफ), हरित जलवायु निधि (जीसीएफ) और जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन निधि (एनएएफसीसी) के लिए राष्ट्रीय कार्यान्वयन इकाई (एनआईई) नामित किया गया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा। जलवायु परिवर्तन की भविष्य की चुनौतियों से निपटने के अपने प्रयासों में नाबार्ड ने सिरमौर जिले में कार्यकारी इकाई से 'जलवायु स्मार्ट समाधानों के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के सूखाग्रस्त जिले में कृषि पर निर्भर समुदायों की सतत आजीविका' के प्रक्षेपण की तैयारी, विकास और मंजूरी की सुविधा प्रदान की है। पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार। MoEF&CC ने परियोजना के लिए ₹20.00 करोड़ स्वीकृत किए हैं। दिसंबर, 2021 तक नाबार्ड द्वारा ₹19.12 करोड़ जारी किए गए हैं।

6.मूल्य संचलन और खाद्य प्रबन्धन

पिछले दो वर्ष, वैश्विक महामारी कोविड-19 की वजह से अभूतपूर्व रुप से प्रभावित हुए, जिसने सोशल डिस्टेंसिंग को प्रेरित किया और वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को बाधित किया। कोविड-19 महामारी के कारण से जैसे ही दूसरे वर्ष में आर्थिक गतिविधियों में तेजी के संकेत दिखना शुरु हुए वैसे ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को, बढ़ती वैश्विक मंहगाई की नई चुनौती का सामना करना पड़ा। घरेलू स्तर पर, दो विपरीत शक्तियां सक्रिय रही। एक तरफ, तो निम्न आर्थिक गतिविधियों के कारण मांग कम हो गई थी। दूसरी तरफ आपूर्ति श्रंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न होने की वजह से खाद्य मंहगाई की दर में वृद्धि हुई जो अर्थव्यवस्था के खुलने के दौरान जारी रही। ऊर्जा, खाद्य, गैर-खाद्य वस्तुओं और इनपुट कीमतों में वृद्धि, आपूर्ति बाधाओं, वैश्विक आपूर्ति श्रंखलाओं में व्यवधान और दुनिया भर में बढ़ती माल ढुलाई लागत ने वर्ष के दौरान वैश्विक मंहगाई को और बढ़ा दिया। उभरती अर्थव्यवस्थाओं से बढती मांग और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और उसके सहयोगी देशों द्वारा उत्पादन मे प्रतिबन्ध के कारण कच्चे तेल में भी वर्ष के दौरान तेजी देखी गई। नियमित साप्ताहिक प्रणाली द्वारा आवश्यक वस्तुओं के भावों पर निगरानी आर्थिक व सांख्यिकी विभाग द्वारा रखी गई ताकि भावों में अनावश्यक बढ़ोतरी को समय पर अंकुश के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सके।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के द्वारा उपभोक्ता द्वारा चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं के वहन किए जाने वाले औसत मूल्य में समय के साथ बदलाव को मुद्रास्फीति भी कहते हैं। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण सरकार की प्राथमिकता है। मुद्रास्फीति आम व्यक्ति को उसकी आय को कीमतों के अनुरूप न बढ़ने के कारण आहत करती है। मुद्रास्फीति के उतार-चढ़ाव को विभिन्न सूचकांकों के द्वारा मापा जाता है जैसे थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (शहरी), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (संयुक्त) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (औद्योगिक श्रमिकों के लिए) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (क₹षि श्रमिकों के लिए) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण श्रमिकों के लिए) आदि।
मुद्रास्फीति वर्ष 2016-17 में 4.6 प्रतिशत थी जोकि 2020-21 में 5.2 प्रतिशत हो गई। चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 में (अप्रैल से दिसम्बर) संयुक्त मुद्रास्फीति की दर 6.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही जबकि पिछले वर्ष इसी दौरान (अप्रैल से दिसम्बर) यह वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत थी। मुद्रास्फीति की यह बढ़ोतरी खाद्य पदार्थ के मूल्यों वद्वि के कारण थी जो अर्थव्यवस्था के खुलने के दौरान भी जारी रही, हालाँकि हाल ही में खुदरा मुद्रास्फीति में मंदी आई है। कैलेण्डर वर्ष 2017 तथा 2021 के बीच तुलनात्मक विश्लेषण नीचे (चित्र 6.2) दिया गया है। सामान्य मुद्रास्फीति की दर वर्ष 2017 में 5.0 प्रतिशत के विरुद्ध वर्ष 2021 में 5.8 प्रतिशत रही। आयात प्रतिबन्धों के कारण कपड़ा व जूता समूह में वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.2 प्रतिशत तक पंहुच गई। ईंधन व प्रकाश समूह की मुद्रास्फीति 2017 से 13 प्रतिशत से कम होकर 2021 में 9.3 प्रतिशत रही, पान तम्बाकू व मादक पदार्थ की मुद्रास्फीति 2017 में 11.9 प्रतिशत से कम होकर वर्ष 2021 में 4.2 प्रतिशत रही ।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-ग्रामीण (CPI-R) मुद्रास्फीति: 2016-17 में CPI-R मुद्रास्फीति 4.7 प्रतिशत थी जो 2020-21 में 4.7 प्रतिशत पर स्थिर रही। यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) प्रणाली के माध्यम से सरकार द्वारा आपूर्ति प्रबंधन प्रतिक्रिया के कारण है जिसके परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों में कमी आई है। चालू वित्तीय वर्ष, 2021-22 में (अप्रैल-दिसंबर) के दौरान, सीपीआई-आर सूचकांक 2020-21 की इसी अवधि की तुलना में 6.1 प्रतिशत था। यह मुख्य रूप से ग्रामीण मांगों से प्रेरित था। (चित्र-6.1)
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-शहरी (CPI-U) मुद्रास्फीति: 2016 में CPI-U 4.1 प्रतिशत थी -17 और 2020-21 में बढ़कर 7.1 फीसदी हो गई. वित्तीय वर्ष 2021-22 में (अप्रैल से दिसंबर तक) यह सूचकांक 2020-21 की समान अवधि की तुलना में 5.2 प्रतिशत था (चित्र-6.1)।
घटकवार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (ग्रामीण-शहरी) (अप्रैल - दिसंबर 2021) ग्रामीण मुद्रास्फीति 6.1 है शहरी मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल से दिसंबर, 2021 तक प्रतिशत। 2017-18 से 2020-21 तक ग्रामीण और शहरी सीपीआई मुद्रास्फीति के बीच देखा गया बड़ा अंतर काफी हद तक ईंधन और प्रकाश समूह की अंतर दरों के कारण था। 2021-22 (तालिका 6.1) तक बना हुआ अंतर अब बढ़ रहा है। ग्रामीण और शहरी मुद्रास्फीति में उपसमूह स्तर पर देखा गया अंतर केवल एक घटक में नहीं बल्कि कई घटकों में है। चित्र 6.3 घटक-वार ग्रामीण और शहरी मुद्रास्फीति को दर्शाता है। यह देखा गया कि अप्रैल से दिसंबर, 2021 तक तीन उप समूहों यानी खाद्य और पेय पदार्थ, कपड़े और जूते और विविध समूहों में ग्रामीण मुद्रास्फीति की परिवर्तनशीलता शहरी उप समूह मुद्रास्फीति की तुलना में अधिक है। शहरी क्षेत्र में ईंधन और प्रकाश समूह में सबसे अधिक 22.4 प्रतिशत मुद्रास्फीति है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह 12.5 प्रतिशत है।
ग्रामीण मुद्रास्फीति के चालक और योगदानकर्ता: ग्रामीण मुद्रास्फीति का प्रमुख चालक ईंधन और प्रकाश था जो तुलना में 40.84 प्रतिशत था अप्रैल से दिसंबर, 2021-22 में कुल मुद्रास्फीति के अन्य घटकों के लिए। कुल मुद्रास्फीति में कपड़ा और जूते का योगदान दूसरा सबसे बड़ा है और इसका योगदान 24.0 प्रतिशत है। पान, तम्बाकू और नशीले पदार्थों का योगदान सबसे कम 2.6 प्रतिशत है (चित्र-6.4)
शहरी मुद्रास्फीति के चालक और योगदानकर्ता: 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान शहरी मुद्रास्फीति के प्रमुख चालक मुद्रास्फीति ईंधन और प्रकाश है जो कुल मुद्रास्फीति में लगभग आधा (46.5 प्रतिशत) योगदान करती है। शहरी मुद्रास्फीति में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों का समूह है जो 15 प्रतिशत है, हालांकि इसका योगदान 202122 में 29.3 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत हो गया है। (चित्र-6.5)
औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक श्रम ब्यूरो द्वारा जारी एक महत्वपूर्ण सूचकांक है, जो कुछ चुनिंदा उद्योगों में फैले श्रमिकों के लिए रहने की लागत में मूल्य वद्धि के प्रभाव को मापने के लिए जारी किया जाता है। सितम्बर,2020 से हिमाचल प्रदेश में आधार वर्ष को 2001 से 2016 के लिए संशोधित किया गया है। नई श्रंखला में सात वर्गां के औद्योगिक श्रमिकों को इस सूचकांक मे सम्मिलित किया गया है जिसमें कारखानों, खानें, वृक्षारोपण, रेलवे, सार्वजनिक मोटर परिवहन उमक्रम, विद्युत उत्पादन और वितरण प्रतिष्ठान, बंदरगाहें आदि शामिल हैं। प्रदेश में दिसम्बर, 2021 के दौरान इस सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी राष्ट्रीय स्तर से अधिक रही जोकि चित्र 6.6 और सारणी 6.2 और 6.3 में प्रदर्शित है।
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले वस्तुओं की कीमत में बदलाव को मापता है और ट्रैक करता है - वे सामान जो थोक में बेचे जाते हैं और उपभोक्ताओं के बीच के बजाय व्यवसायों के बीच कारोबार किया जाता है। इसे बिजनेस टू कहा जाता है व्यवसाय (बी2बी) मूल्य भिन्नता। WPI किसी देश की मुद्रास्फीति के स्तर का एक संकेतक है। जबकि चालू वित्त वर्ष में डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति पिछले वर्ष की तुलना में अधिक रही है तीन प्रमुख समूहों में, 'ईंधन और बिजली' समूह में यह 20 प्रतिशत से ऊपर था, जैसा कि उल्लिखित उच्च अंतरराष्ट्रीय पेट्रोलियम कीमतों को दर्शाता है (तालिका 6.4)। प्राथमिक लेख समूह के भीतर, 'कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस' उप-समूह में बहुत अधिक मुद्रास्फीति देखी गई है और दिसंबर 2021 में यह 55.7 प्रतिशत थी। इसी तरह, खनिज घटक में भी पूरे वर्ष उच्च मुद्रास्फीति देखी गई है। डब्ल्यूपीआई विनिर्माण में बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था, खासकर खाद्य उत्पादों में। खाद्य उत्पादों के विनिर्माण में खाद्य तेल मुद्रास्फीति में प्रमुख योगदानकर्ता थे। 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान WPI में खाद्य तेलों की महंगाई दर 36.4 फीसदी रही. खाद्य तेलों पर उच्च आयात निर्भरता का मतलब है कि इन उत्पादों की उच्च अंतरराष्ट्रीय कीमतें घरेलू कीमतों पर भी परिलक्षित होती हैं।
कोविड-19 महामारी के प्रभाव के परिणामस्वरूप, 2020-21 में उत्पादन गतिविधि धीमी रही और कम मांग के कारण वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गईं। इसलिए, WPI आधारित मुद्रास्फीति दर 202021 में 1.3 प्रतिशत के निचले स्तर पर पहुंच गई। 2021-22 में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने और उच्च वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ, 2020-21 के निम्न आधार के कारण WPI मुद्रास्फीति चरम पर पहुंच गई। नवंबर, 2021 में 14.2 प्रतिशत और अप्रैल से दिसंबर 2021-22 के दौरान 12.5 प्रतिशत (अप्रैल से दिसंबर, 2020-21 के 0.04 प्रतिशत की तुलना में)। इसलिए, 2021 में उच्च WPI आधारित मुद्रास्फीति दर, काफी हद तक पिछले वर्ष के निम्न आधार के लिए जिम्मेदार है। दूसरी ओर, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के कारण खुदरा मुद्रास्फीति 2020-21 के दौरान उच्च बनी रही और प्रभावी आपूर्ति पक्ष प्रबंधन के कारण 2021-22 में नियंत्रित रही, जिसके परिणामस्वरूप डब्ल्यूपीआई और सीपीआई आधारित के बीच अंतर पैदा हुआ। मुद्रा स्फ़ीति।
मासिक थोक मूल्य सूचकांक : दिसंबर 2020 के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर थोक मूल्य सूचकांक 125.4 था जो बढ़कर 142.4 इंच हो गया दिसंबर, 2021 में महंगाई दर 13.6 फीसदी दिख रही है। वर्ष 2021-22 के लिए माहवार औसत WPI तालिका 6.4 में दी गई है चित्र-6.7 के बीच मासिक WPI मुद्रास्फीति की तुलना को दर्शाता है (अप्रैल से दिसंबर) 2021-22 और (अप्रैल से दिसंबर) 2017-18। अप्रैल से दिसंबर 2017 तक WPI मुद्रास्फीति 0.9 से 4.0 प्रतिशत के बीच रही। WPI मुद्रास्फीति 10.7 से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई। अप्रैल से दिसंबर 2021 के दौरान प्रतिशत। यह WPI मुद्रास्फीति में एक बड़ी वृद्धि है और यह दर्शाता है कि आने वाले महीनों में पूरे भारत में खुदरा कीमतें ऊंची बनी रहेंगी।
ऐसे कई कारण हो सकते हैं जो उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में अस्थिरता में योगदान दे सकते हैं जैसे कि अधिक लचीली मौद्रिक और राजकोषीय नीति ढांचे को अपनाना, संरचनात्मक श्रम और उत्पाद बाजारों में सुधार जो प्रतिस्पर्धा को मजबूत करते हैं, और मुद्रास्फीति को लक्षित करने के लिए मौद्रिक नीति ढांचे को अपनाना। चौबीस उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में ऐसा देखा जा रहा है कम खाद्य मुद्रास्फीति के कारण 2014 से मुद्रास्फीति में कमी आई है। हालाँकि, चालू वित्तीय वर्ष के दौरान, ईंधन, बिजली और गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पादों के लिए मुद्रास्फीति के रुझान अलग-अलग रहे हैं। खाद्य मुद्रास्फीति मुख्य रूप से सब्जियों और दालों की बढ़ती कीमतों के कारण वृद्धि का रुझान बना हुआ है, जबकि गैर-खाद्य क्षेत्र में मुद्रास्फीति में कमी आ रही है 2019-20 से 2020-21 लेकिन मई, 2021 के बाद औद्योगिक गतिविधियों के फिर से शुरू होने के कारण तेज वृद्धि देखी गई है (तालिका 6.4)।
मासिक थोक मूल्य: आर्थिक और सांख्यिकी विभाग एक के माध्यम से 104 वस्तुओं पर डेटा एकत्र, संकलित और विश्लेषण करता है। जिला सांख्यिकी कार्यालयों का नेटवर्क। कीमतें हर पहले शुक्रवार को एकत्र की जाती हैं जिले में चयनित दुकानों से माह की. मुख्यालय में जांच के बाद, ये कीमतें हितधारक को उपलब्ध कराई जाती हैं। आंकड़े 6.8, 6.9 और 6.10, अप्रैल से दिसंबर 2017 के बीच अस्थिरता दर्शाते हैं और इन वस्तुओं में अप्रैल से दिसंबर, 2021।
(चित्र 6.8) 2017 (अप्रैल से दिसंबर) और 2021 (अप्रैल से दिसंबर) में मोटे अनाज की थोक कीमतों में भिन्नता का गुणांक सांख्यिकीय उपकरणों द्वारा विश्लेषण किया गया है भिन्नता के गुणांक का और यह पाया गया है कि 2021-22 के दौरान मक्का, जौ, मक्के का आटा और गेहूं की वस्तुएं अत्यधिक अस्थिर हैं।
जैसा कि चित्र 6.9 से स्पष्ट है, दालों की थोक कीमतें का गुणांक हैं 2017 (अप्रैल से दिसंबर) और 2021 (अप्रैल से दिसंबर) में भिन्नता की गणना की गई है और सोयाबीन, काबुली चना, मलका, मसूर दाल, राजमा, मूंग और कुल्थ जैसी वस्तुएं अधिक अस्थिर पाई गई हैं।
(चित्र 6.10) मेथी, हरा धनिया, फूलगोभी, टमाटर, शिमला मिर्च, पेठा, खीरा, टिंडा, मटर, पालक और अदरक की विविधता के अनुपात में सब्जियों की थोक कीमतें अप्रैल से दिसंबर तक अस्थिर रहती हैं। 2021.
साप्ताहिक खुदरा मूल्य: आर्थिक और सांख्यिकी विभाग जिले के एक नेटवर्क के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं पर डेटा एकत्र, संकलित और विश्लेषण करता है। सांख्यिकी कार्यालय. साप्ताहिक कीमतें प्रत्येक शुक्रवार को एकत्र की जाती हैं जिले में निर्दिष्ट दुकानें और जांच के बाद वेबसाइट www.weeklyprices.hp.gov.in पर अपलोड की जाती हैं। इन साप्ताहिक कीमतों को संकलित, विश्लेषण किया जाता है और एक रिपोर्ट निदेशक को भेजी जाती है, खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग और हिमाचल प्रदेश सरकार को। (आवश्यक वस्तुओं में अस्थिरता चित्र 6.11)
प्रतिशत में अस्थिरता कोविड-19 के दौरान प्रतिबन्ध व श्रमिकों की कमी के कारण भी हुई। आवश्यक वस्तुओं के भाव में अस्थिरता अप्रैल से दिसम्बर, 2017 और अप्रैल से दिसम्बर, 2021 के मध्य गुणांक के द्वारा की गई है। इसके लिए साधारण विश्लेषण प्रणाली को अपनाया गया। मापने की यह प्रणाली मध्य से मदों की दूरी को दर्शाती है, इससे यह प्रतीत हुआ कि गुड़, उड़द, दाल, गेहूं आटा,और चावल परमल के भाव अप्रैल, 2017 से प्रर्याप्त आपूर्ति व अधिक घरेलू उत्पादन के साथ-साथ चावल व गेहूं के पर्याप्त बफर स्टाॅक जो खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी थे जिसके चलते मुद्रास्फीति नहीं बढ़ी। अप्रैल से दिसम्बर, 2017 तथा 2021 के दौरान सरसों का तेल, चीनी, वनस्पति घी, मिट्टी का तेल, चाय ब्रोक बांड, मुंगफली का तेल और सीमेंट की कीमतों में अधिक अस्थिरता देखी गई जोकि मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के कारक भी बने।
गरीबी उन्मूलन के लिए सरकारी रणनीति का एक मुख्य घटक लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) है जो 5,043 उचित मूल्य की दुकानों के नेटवर्क के माध्यम से गेहूं, गेहूं आटा, चावल, चीनी आदि जैसी आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। आवश्यक वस्तुओं के वितरण के लिए कुल परिवारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
i) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA-2013)
ए) अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई)
बी) प्राथमिकता वाले परिवार
ii) एनएफएसए के अलावा (गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल)
राज्य में, टीपीडीएस के पास 19,30,866 राशन कार्ड हैं और डिजिटल रिकॉर्ड से 73,89,337 कार्ड आबादी को कवर किया गया है। इन कार्ड धारकों को 5,043 उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से आवश्यक वस्तुएं प्रदान की जाती हैं जिनमें 3,275 सहकारी समितियां, 15 पंचायतें, 59 हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम (एचपीएससीएससी), 1,673 व्यक्तिगत और 1 स्वयं सहायता समूह और 20 महिला मंडल शामिल हैं। वर्ष 2021-22 के दौरान आवश्यक वस्तुओं का वितरण (दिसंबर, 2021 तक) तालिका 6.6 में दिखाया गया है।
वर्तमान में, हिमाचल प्रदेश राज्य विशेष अनुदानित योजना टीपीडीएस के तहत निम्नलिखित खाद्य सामग्री वितरित की जा रही है और जो तालिका 6.7 के अनुसार है।
हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम हिमाचल प्रदेश सरकार की लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली व राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अन्र्तगत नियन्त्रित व अनियन्त्रित वस्तुओं के प्रापण एवं वितरण की एक नोडल एजैन्सी के रुप में सन्तोषजनक कार्य कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष दिसम्बर, 2021 तक निगम ने विभिन्न वस्तुएं जिनका मूल्य ₹1,442.12 करोड़ था, का प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष में इसी अवधि में ₹1,221.38 करोड़ था।
निगम जनजातीय तथा दुर्गम क्षेत्रों में मिट्टी के तेल ओर तरल पैट्रोलियम गैस ;एल.पी.जी.द्ध सहित सभी आवश्यक पैट्रोलियम उत्पादों को उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां निजी व्यापारी उद्यम नहीं चलाते क्योंकि व्यापार की आर्थिक उपलब्धता नहीं है। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान सरकार की जनजातीय कार्य योजना के अनुसार जनजातीय तथा बर्फीले क्षेत्र में आवश्यक वस्तुओं तथा पैट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। वर्तमान में निगम अन्य आवश्यक वस्तुओं जैसे कि रसोई गैस, डीजल/पैट्रोल/मिट्टी का तेल और जीवन रक्षक दवाईयों को उचित मूल्यों पर 117 थोक बिक्री केन्द्रों, 59 उचित मूल्यों की दुकानों 54 गैस एजेंसियों, 4 पेट्रोल पम्प और 36 दवाईयों की दुकानों के माध्यम से प्रदेश में वितरण कर रहा है। इसके अतिरिक्त निगम थोक व परचून बिक्री केन्द्रों के माध्यम से अन्य आवश्यक वस्तुएं जैसे चीनी, दालें, चावल, आटा, डिटरजैंट पाउडर, चाय पत्ती , काॅपियां, सीमेंट, सी.जी.आई. शीट्स, दवाईयां, फर्नीचर, विेशेष पोषाहार स्कीम के अन्तर्गत विभिन्न वस्तुएं, मनरेगा सीमेन्ट व पट्रोलियम पदार्थाें इत्यादि का प्रापण एवं वितरण कर रहा है। निश्चित रुप से इन वस्तुओं के लिए प्रदेेश में महंगाई स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निगम द्वारा की जा रही है। वर्तमान वित्त वर्ष में दिसम्बर, 2021 तक निगम द्वारा ₹746.00 करोड़ विभिन्न वस्तुओं का प्रापण एवं वितरण किया गया है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के लिए ₹687.81 करोड़ था। निगम दोपहर के भोजन योजना के अन्तर्गत प्राथमिक व अपर प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को सम्बन्धित जिलाधीशों द्वारा आवंटित चावल एवं अन्य खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति की व्यवस्था कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2021-22 में (दिसम्बर, 2021) तक निगम ने 10,724.32 मी.टन चावल जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 10,054.32 मी.टन था का वितरण किया है। निगम सरकार की विशेष अनुदानित स्कीम के अंतर्गत चिन्हित वस्तुओं (दालें, खाद्य सरसों का तेल व रिफाईड तेल और नमक) की सरकार द्वारा गठित प्रापण कमेटी के निर्णयानुसार आपूर्ति कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2021-22 में (दिसम्बर, 2021 तक) ₹655.80 करोड़ की विभिन्न वस्तुएं सभी राशनकार्ड धारकों को तय मानकों के अनुसार प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में इस अवधि में ₹513.31 करोड़ थी। इस योजना को लागू करने के लिए वर्ष 2021-22 में ₹220.00 करोड़ राज्य अनुदान के रुप में बजट में प्रावधान किया गया है। वर्ष 2021-22 के दौरान निगम का कारोबार ₹1,550 करोड़ रहने की संभावना है, जो गत वर्ष 2020-21 के दौरान ₹1,500 करोड़ का था।
सरकारी आपूर्ति: हिमाचल प्रदेश नागरिक आपूर्ति निगम सरकारी अस्पतालों को आयुर्वेदिक दवाईयां, सरकारी विभागों/ बोर्डों/उपक्रमों/ अन्य सरकारी संस्थाओं को सीमेंट और जी.आई./ डी.आई/सी.आई.पाईपें, जल शक्ति एव जन-स्वास्थ्य विभाग को शिक्षा विभाग को स्कूल की वर्दियों का प्रबन्धन कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष 2021-22 में सरकारी आपूर्ति की अनन्तिम स्थिति निम्न प्रकार हैः

मनरेगा सीमेंट की आपूर्ति: वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान (दिसम्बर, 2021 तक) निगम ने राज्य में विकास कार्यों के लिए विभिन्न पंचायतों को ₹163.01 करोड़ की राशि के 64,10,960 बैग सीमेंट की खरीद और वितरण का प्रबन्ध किया है।
राज्य के आदिवासी एवं दुर्गम क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा :उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ती मांग और पेट्रोलियम निर्धारित देशों की संगठन और उनके सहयोगियों द्वारा उत्पादन के कारण कच्चे तेल की कीमतों में भी वर्ष के दौरान तेजी दर्ज की गई ।
लाभांश: निगम अपनी स्थापना वर्ष 1980 से लाभ अर्जित कर रहा है। वर्ष 2020-21 के दौरान ₹1.11 करोड़ का शुद्ध लाभ अर्जित किया गया तथा ₹35.15 लाख की राशि हिमाचल प्रदेश सरकार को लाभांश के रूप में देना प्रस्तावित था।
भारत सरकार द्वारा राज्यां को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अनुसार साैपे गये कार्य व उत्तरदायित्व के अन्तर्गत हि.प्र. राज्य नागरिक आपूर्ति निगम इस योजना के कार्यान्वयन में आबंटित खाद्यानों को समय पर पर्याप्त मात्रा में प्रापण/भण्डारण व आपूर्ति सुनिश्चित करने के उपरान्त, अपने 117 थोक बिक्री केन्द्रों द्वारा चयनित उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से लाभार्थियों में वितरण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान (दिसम्बर, 2021 तक) 62,472 मी.टन चावल व 364 मी.टन गेहॅूँ चयनित लाभार्थियों को क्रमशः ₹3.00 व ₹2.00 प्रति किलो प्रतिमाह की दर से वितरित करना सुनिश्चित किया है। उपरोक्त के अतिरिक्त प्रदेश सरकार के अलग गौदाम के अभाव में हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम राज्य में अपने स्तर पर 22,945 मी.टन व 37,111 मी.टन किराये पर लिए गए गोदामों के माध्यम से भंडारण क्षमता का प्रबन्धन कर रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के सफल कार्यान्वयन को देखते हुए अतिरक्त भंडारण क्षमता का स₹जन किया जा रहा है और गोदामों के निर्माण के प्रयास किए जा रहे हैं। नेरवा, जिला शिमला में 550 मी.टन, क्षमता के 7 गौदाम, सिद्धपुर सरकारी, जिला कांगड़ा में 1,000 मी.टन व राजगढ़ जिला सिरमौर में 300 मी.टन, बिलासपुर ;प्रथम चरणद्ध में 500 मी.टन., चम्बा में 907.47 मी.टन., चैतुड़, जिला कांगड़़ा में 500 मी.टन. और संधोल, जिला कांगड़ा में 500 मी.टन. के खाद्यान्न भण्डारण गौदाम बन कर तैयार कर लिए गए हैं तथा सम्बन्धित कार्यकारी एंजैसी से कब्जा ले लिया गया है। बिलासपुर ;दूसरा चरणद्ध ओर थुनाग में निर्माण कार्य प्रगति पर है और जल्द ही कंडाघाट, कालाअम्ब व पाॅऊटा साहिब में गोदामों का कार्य शुरु कर दिया जाएगा जिसके अन्तर्गत शीघ्र ही अनुमोदित 5,000 मी.टन की अपनी खाद्यान्न भंडारण विभिन्न वस्तुओं की क्षमता हेतु उपलब्ध हो जाएगी।

7.कृषि, बागवानी, पशुपालन और सम्बद्ध सेवाएं

कृषि और संबद्ध क्षेत्र किसी भी विकास प्रक्रिया में लोगों को शामिल करने और रोजगार देने, भोजन उपलब्ध कराने और खाद्य सुरक्षा और कच्चे माल को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। कृषि अर्थव्यवस्था में गरीबी को कम करने, भूखमरी को शून्य करने, अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के सतत विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। फसल, पशुधन, मछली पकडने और वानिकी क्षेत्र ने 2020-21 (स्थिर मूल्य) में राज्य के सकल राज्य मूल्य वर्धित (जीएसवीए) में 13.31 प्रतिशत का योगदान दिया। पिछले कुछ वर्षों में कृषि और संबद्ध क्षेत्र का हिस्सा लगातार गिर रहा है। हिमाचल में कृषि क्षेत्र में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (ळैक्च्) के हिस्से में गिरावट के रूप में महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं जो कृषि अर्थव्यवस्था से बदलाव का संकेत देते हैं। कृषि प्रदर्शन प्रक₹ति की अनिश्चितताओं के साथ-साथ कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण साल दर साल परिवर्तनशील है।
राज्य स्तर पर, सकल मूल्य वर्धित (जी.वी.ए.) में फसलों, पशुधन, वानिकी और मछली पकडने के क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2015-16 में 15.89 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2020-21 में 13.31 प्रतिशत हो गई है। जीवीए में फसलों की हिस्सेदारी 2015-16 में 8.99 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 7.85 प्रतिशत हो गई। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की विकास दर में उतार-चढाव रहा है, जैसा कि चित्र 7.1 में देखा गया है। जबकि ग्रामीण आबादी की आजीविका खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
प्रदेश के कुल 55.67 लाख हैक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से 9.44 लाख हैक्टेयर क्षेत्र 9.97 लाख किसानों द्वारा जोता जाता है और प्रदेश में औसतन जोत 0.95 हैक्टेयर है। कृषि गणना 2015-16 के अनुसार कुल जोतों में से 88.86 प्रतिशत जोतें लघु व सीमान्त किसानों की है। लगभग 10.84 प्रतिशत अर्ध-मध्यम/मध्यम व केवल 0.30 प्रतिशत जोतें बड़े किसानों की है। भू-जोतों के वर्गीकरण नीचे दी गई सारणी 7.1 से स्पष्ट है।
कुल जोते गए क्षेत्र में से 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर आधारित है। चावल, गेंहू, तथा मक्की राज्य की मुख्य खाद्य फसलें हैं। मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, सफेद सरसों, उड़द, बीन, मूंग तथा राजमाश खरीफ की तथा तोरिया, चना तथा मसूर रबी मौसम की प्रमुख फसलें हैं। कृषि जलवायु के अनुसार राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है जैसे
उपोष्णीय, उप पर्वतीय तथा निचले पहाड़ी क्षेत्र।
उप समशीतोष्ण नमी वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्र।
नमी वाले ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र।
शुष्क तापमान वाले ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र व शीत मरूस्थल। प्रदेश की कृषि जलवायु नकदी फसलों जैसे बीज आलू, अदरक तथा बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए बहुत ही उपयुक्त है। खाद्यान्न उत्पादन के अतिरिक्त राज्य सरकार, समयानुसार तथा प्रचुर मात्रा में कृषि संसाधनों की उपलब्धता, उन्नत कृषि तकनीकी जानकारी, पुराने किस्म के बीजों को बदल कर एकीकृत कीटाणु प्रबन्धन से उन्नत करना, जल प्रबन्धन के अंतर्गत अधिक से अधिक भूमि को शामिल करना एवं जल संरक्षण कर बेकार जमीन का विकास करके बेमौसमी सब्जियों आलू, अदरक, दालों व तिलहन के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। वर्षा के अनुसार चार विभिन्न मौसम है। लगभग आधी वर्षा बरसात में ही होती है तथा शेष बाकी मौसमों मेे होती है। राज्य में औसतन 1,251 मि.मी. वर्षा हुई है। जिसमें सबसे अधिक वर्षा कांगड़ा जिले में होती है और उसके बाद चम्बा, सिरमौर और मण्डी जिला आती हैं।
कृषि कार्यकलापों का मानसून के स्वरूप से गहन सम्बन्ध है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Metrological Department) की रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 2021 के मानसून (जून-सितंबर) के मौसम के दौरान कुल्लू जिले में अधिक, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगडा, किन्नौर, मंडी, शिमला, सिरमौर, सोलन और ऊना में सामान्य बारिश हुई है और जिला चम्बा तथा लाहौल स्पिति में कम बारिश हुई है। समग्र रूप से हिमाचल के लिए, इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में मौनसून मौसम में वार्षिक सामान्य वर्षा की तुलना में 10 प्रतिशत कम वर्षा हुई। सारणी 7.2 और 7.3 में विभिन्न जिलों में दक्षिण-पश्चिम मानसूनी वर्षा के आंकड़े दिए गए हैं।
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर निर्भर करती है तथा खाद्यान्न उत्पादन में कोई भी अस्थिरता अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित करता है। वर्ष 2020-21 कृषि के लिए सामान्य वर्ष रहा और खरीफ सीजन 2020 में उत्पादन लक्ष्य 9.21 लाख मी.टन था जबकि उत्पादन 8.89 लाख मी.टन. हासिल होने का अनुमान है। दिसंबर 2020, जनवरी, फरवरी और मार्च 2021 के दौरान भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्षा की रवानगी क्रमशः 22 प्रतिशत, 57 प्रतिशत, 81 प्रतिशत, 62 प्रतिशत की सीमा तक था, जो कि कम था जिसके परिणामस्वरूप राज्य में मौसम शुष्क रहा। इस तरह, रबी फसलें, मुख्य रूप से गेहूं और जौ, विकास अवधि के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुए थे इसके कारण रबी सीजन में कम उत्पादन का अनुमान है। रबी फसल का कुल उत्पादन 6.39 लाख मी.टन. हासिल होने का अनुमान है। वर्ष 2019-20 में खाद्यान्न उत्पादन 15.94 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 2020-21 में खाद्यान्न उत्पादन 15.28 लाख मीट्रिक टन है। 2020-21 में आलू का उत्पादन 1.96 लाख मीट्रिक टन है, जबकि 2019-20 में 1.97 लाख मीट्रिक टन था। वर्ष 2020-21 के दौरान सब्जियों का उत्पादन 18.67 लाख मीट्रिक टन है, जबकि 2019-20 में यह 18.61 लाख मीट्रिक टन था।
2021-22 के लिए खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 16.35 लाख मीट्रिक टन है, जिसमें खरीफ, 2021 सीज़न के लिए 9.21 लाख टन और रबी, 2021-22 सीज़न के दौरान 7.54 लाख टन शामिल है। ख़रीफ़ उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिण पश्चिम मानसून के व्यवहार पर निर्भर करता है क्योंकि कुल खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 80 प्रतिशत वर्षा आधारित है। ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई अप्रैल के अंत से शुरू होकर चलती है जून के मध्य तक. इस मौसम के दौरान, मक्का और धान प्रमुख फसलें हैं और अन्य छोटी फसलों में रागी, बाजरा और दालें शामिल हैं। इस मौसम में लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र में बुआई होती है अप्रैल-मई में जबकि शेष क्षेत्र जून और जुलाई के महीने में बोया जाता है, जो कि खरीफ की बुआई का चरम समय होता है। राज्य के अधिकांश हिस्सों में सामान्य बारिश होने से बुआई समय पर और कुल मिलाकर हुई है फसल की स्थिति सामान्य थी. हालाँकि, अगस्त, 2021 के महीने के दौरान, राज्य के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा हुई और खड़ी खरीफ फसलें, विशेष रूप से मक्का और सब्जियों की फसलें प्रभावित हुईं। और इसलिए उत्पादन लक्ष्य से कम रहने का अनुमान है।
रबी सीजन की बुआई आम तौर पर अक्टूबर में शुरू होती है और दिसंबर के पहले पखवाड़े तक चलती है। बुआई के मौसम में सामान्य वर्षा हुई राज्य में। आईएमडी की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर, 2021 के महीनों में वर्षा का प्रतिशत प्रस्थान क्रमशः 106 प्रतिशत, 95 प्रतिशत और 60 प्रतिशत की सीमा तक था। यदि जनवरी, 2022 में वर्षा हुई तो फसल की स्थिति सामान्य रहेगी। पिछले वर्षों के दौरान हिमाचल प्रदेश में खाद्यान्नों और वाणिज्यिक फसलों का फसलवार उत्पादन तालिका 7.4 में दर्शाया गया है।
कृषि योग्य भूमि के विस्तार के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने की गुंजाइश सीमित है। जहां तक खेती योग्य भूमि का सवाल है, देश के बाकी हिस्सों की तरह हिमाचल भी लगभग पठार पर पहुंच गया है। इसलिए, उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर विविधीकरण के अलावा उत्पादकता स्तर बढ़ाने पर जोर देना होगा। वाणिज्यिक फसलों की ओर बढ़ते रुझान के कारण, खाद्यान्न उत्पादन का क्षेत्र धीरे-धीरे घट रहा है। 1997-98 में यह क्षेत्रफल 853.88 हजार हेक्टेयर था जो 2020-21 में घटकर 727.69 हजार हेक्टेयर रह गया है। खाद्यान्न क्षेत्र और उत्पादन तालिका 7.5 में दर्शाया गया है

उच्च उपज देने वाली किस्म कार्यक्रम : खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने के लिए वितरण पर जोर दिया गया है अधिक उपज देने वाली किस्मों के बीज किसान। इस क्षेत्र को प्रमुख फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों के अंतर्गत लाया गया। 2018-19, 2019-20, 202021 के लिए मक्का, धान और गेहूं और 2021-22 के लिए लक्ष्य तालिका 7.6 में दिया गया है।
20 बीज गुणन फार्म हैं जहां से पंजीकृत किसानों को आधार बीज वितरित किया जाता है। इसके अलावा, 3 सब्जी विकास स्टेशन, 12 आलू विकास स्टेशन और 1 अदरक हैं राज्य में विकास स्टेशन.

पौध संरक्षण कार्यक्रम: फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए पौध संरक्षण उपायों को अपनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक ऋतु के दौरान, फसल की बीमारियों, कीड़ों और कीटों आदि के खतरे से लड़ने के लिए अभियान आयोजित किए जाते हैं। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, पिछड़े क्षेत्रों के किसानों और छोटे और सीमांत किसानों को पौध संरक्षण प्रदान किया जाता है। रसायन और उपकरण 50 प्रतिशत लागत पर। कृषि विभाग धीरे-धीरे कीटों/बीमारियों के जैविक नियंत्रण पर स्विच करके पौध संरक्षण रसायनों की खपत को कम करने का प्रयास कर रहा है। रसायनों का वितरण तालिका 7.7 में दिखाया गया है।

मिट्टी परीक्षण कार्यक्रम: मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए, किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने एकत्र किए जाते हैं और मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं में विश्लेषण किया गया। सभी जिलों (लाहौल और स्पीति को छोड़कर) में मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं, और चार मोबाइल मृदा परीक्षण वैन/प्रयोगशालाएँ, जिनमें से एक, विशेष रूप से जनजातीय क्षेत्रों के लिए, परीक्षण के लिए चालू है। साइट पर मिट्टी के नमूने. वर्तमान में 11 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ किया गया है, 10 मोबाइल प्रयोगशालाएँ और 47 मिनी प्रयोगशालाएँ भी विभाग द्वारा स्थापित की गई हैं। भारत सरकार ने एक नई योजना शुरू की है जिसके आधार पर मिट्टी का नमूना ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के आधार पर लिया जाएगा। हिमाचल प्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम, 2011 के अंतर्गत मृदा परीक्षण सेवा को भी शामिल किया गया है जिसमें मृदा स्वास्थ्य कार्ड शामिल हैं किसानों को निर्धारित समय सीमा के अंदर ऑनलाइन सेवा के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना: राज्य सरकार ने "प्राकृतिक खेती खुशहाल" योजना शुरू की है राज्य में किसान योजना” सरकार का इरादा "शून्य बजट प्राकृतिक खेती" को प्रोत्साहित करने का है, ताकि खेती की लागत कम की जा सके। रासायनिक उर्वरकों और रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है। कीटनाशकों के लिए प्रदान किया गया बजट/ कृषि एवं बागवानी विभाग को जैव कीटनाशक एवं जैव कीटनाशक उपलब्ध कराने के लिए कीटनाशकों का उपयोग किया जाएगा। 2021-22 के लिए 20.87 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान रखा गया है।
उर्वरक की खपत और सब्सिडी: 1985-86 में उर्वरक की खपत 23,664 मीट्रिक टन थी जो बढ़कर 65,241 मीट्रिक टन हो गई है। 2020-21. रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए जटिल उर्वरकों पर प्रति मीट्रिक टन 1,000 रुपये की सब्सिडी की अनुमति दी गई है। पानी में घुलनशील उर्वरकों के उपयोग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया गया है, जिसके लिए लागत की 25 प्रतिशत की सीमा तक सब्सिडी की अनुमति दी गई है और वर्ष 2021-22 के लिए उर्वरक खपत का लक्षित उपभोग 56,500 मीट्रिक टन होगा।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) राज्य में खरीफ, 2016 सीज़न से शुरू की गई थी। इस बीमा योजना में खरीफ मौसम के दौरान मक्का और धान की फसल तथा रबी मौसम के दौरान गेहूं और जौ की फसल को कवर किया गया है। इस नई योजना के तहत देरी से बुआई के कारण फसल के नुकसान, फसल के बाद के नुकसान, स्थानीय आपदाओं और खड़ी फसलों (बुवाई से कटाई तक) के नुकसान के जोखिम के विभिन्न चरणों को कवर किया गया है। खरीफ 2020 से यह योजना अब ऋणी और गैर-ऋणी दोनों किसानों के लिए वैकल्पिक है। पीएमएफबीवाई के तहत, 350 प्रति से अधिक का दावा एकत्र किए गए प्रीमियम का प्रतिशत या बीमा राशि के दावों का प्रतिशत सभी कंपनियों को मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर 35 प्रतिशत से अधिक है, जो केंद्र और राज्य द्वारा समान रूप से भुगतान किया जाता है। पीएमएफबीवाई और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) के तहत, खरीफ 2020 और रबी, 2020-21 सीज़न में कुल 1,76,510 किसानों को कवर किया गया है। 9.30 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया गया है वर्ष 2021-22 के लिए बनाया गया जिसका उपयोग प्रीमियम सब्सिडी के राज्य हिस्से के भुगतान के लिए किया जाता है।
कृषि विपणन
राज्य में कृषि उपज के विनियमन के लिए, हिमाचल प्रदेश कृषि/बागवानी उपज विपणन अधिनियम, 2005 लागू किया गया है और हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड की स्थापना की गई है। कृषक समुदाय के हितों की रक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश को दस अधिसूचित बाजार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। राज्य के विभिन्न भागों में स्थापित विनियमित बाज़ार किसानों को उपयोगी सेवाएँ प्रदान करते हैं। सोलन में एक आधुनिक बाजार परिसर कृषि उपज के विपणन के लिए कार्यात्मक है, इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में बाजार यार्ड का निर्माण भी किया जा रहा है। वर्तमान में 10 मण्डी समितियाँ कार्य कर रही हैं तथा 63 मण्डियाँ क्रियाशील हो चुकी हैं। बाजार की जानकारी किसानों को विभिन्न मीडिया यानी आकाशवाणी, दूरदर्शन, प्रिंट मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से प्रसारित की जा रही है। राज्यों के 19 थोक बाजार इलेक्ट्रॉनिक-राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम) के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
चाय विकास
चाय की खेती के तहत कुल क्षेत्रफल 2,310.71 हेक्टेयर है और उत्पादन स्तर 11.45 लाख किलोग्राम है। 2020-21 में. छोटे एवं सीमांत किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर कृषि इनपुट उपलब्ध कराया जाता है। चाय की खेती मुख्य रूप से जिला कांगड़ा, मंडी और चंबा में की जाती है और वर्तमान में राज्य में 5,900 चाय उत्पादक हैं।

मृदा एवं जल संरक्षण: राज्य क्षेत्र के अंतर्गत दो मृदा एवं जल संरक्षण योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं।
योजनाएं हैं:
1)मिट्टी संरक्षण कार्य।
2) जल संरक्षण एवं विकास। कृषि विभाग ने टैंक, तालाब बनाकर वर्षा जल संचयन की योजना तैयार की है। चेक-डैम और भंडारण संरचनाएं। इसके अलावा, कम पानी उठाने वाले उपकरण और स्प्रिंकलर के माध्यम से कुशल सिंचाई प्रणाली को भी लोकप्रिय बनाया जा रहा है।
मुख्यमंत्री नूतन पॉलीहाउस योजना: कृषि क्षेत्र में तेज और अधिक समावेशी विकास हासिल करने के लिए, हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में 100 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए मुख्यमंत्री नूतन पॉलीहाउस योजना शुरू की गई है और इस योजना के तहत 5,000 पॉलीहाउस का निर्माण किया जा रहा है। यह योजना दो चरणों में लागू की जाएगी. पहले चरण में इसे 2020-21 से 2022-23 तक लागू किया जाएगा और 78.57 करोड़ रुपये की लागत से 2,522 पॉलीहाउस का निर्माण किया जाएगा। इस परियोजना के तहत पॉलीहाउस स्थापित करने के लिए 85 प्रतिशत सहायता प्रदान की जाती है और इस योजना के लिए वर्ष 2021-22 के लिए ₹22.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - कृषि और संबद्ध क्षेत्र के कायाकल्प के लिए लाभकारी दृष्टिकोण (आरकेवीवाई-आरएएफटीएएआर): आरकेवीवाई- RAFTAAR को 2007 में कृषि और संबद्ध क्षेत्र के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक योजना के रूप में शुरू किया गया था। वर्ष 2021-22 के लिए 14.20 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। योजना के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:
1) आवश्यक फसल पूर्व और कटाई के बाद के कृषि-बुनियादी ढांचे के निर्माण के माध्यम से किसान के प्रयासों को मजबूत करना जो गुणवत्तापूर्ण इनपुट, भंडारण, बाजार सुविधाओं आदि तक पहुंच बढ़ाता है और किसानों को सूचित विकल्प चुनने में सक्षम बनाता है। .
2) कृषि और संबद्ध क्षेत्र की योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने की प्रक्रिया में राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना।
3)मूल्य श्रृंखला जोड़ से जुड़े उत्पादन मॉडल को बढ़ावा देना जो किसानों को उनकी आय बढ़ाने के साथ-साथ उत्पादन/उत्पादकता को प्रोत्साहित करने में मदद करेगा।
4) अतिरिक्त आय सृजन गतिविधियों जैसे एकीकृत खेती, मशरूम की खेती, मधुमक्खी पालन, सुगंधित पौधों की खेती, फूलों की खेती आदि पर ध्यान केंद्रित करके किसानों के जोखिम को कम करना।
5)कई उपयोजनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में भाग लेना।
6 कौशल विकास, नवाचार और कृषि उद्यमिता आधारित कृषि व्यवसाय मॉडल के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाना जो उन्हें कृषि की ओर आकर्षित करें।
नेशनल मिशन ऑन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन एंड टेक्नोलॉजी (NMAET): विस्तार प्रणाली को किसान बनाने के लिए NMAET लॉन्च किया गया है -संचालित एवं कृषक व्यवस्था प्रौद्योगिकी प्रसार। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी क्रमशः 90:10 है। इस योजना को तीन उप-मिशनों में विभाजित किया गया है।
1) कृषि विस्तार पर उप मिशन (SAME): वर्ष 2021-22 के लिए ₹16.67 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
2) बीज और रोपण सामग्री पर उप मिशन (एसएमएसपी): वर्ष 2021-22 के लिए ₹4.79 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
3) कृषि मशीनीकरण पर उप मिशन (एसएमएएम): वर्ष 2021-22 के लिए ₹21.58 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (NMSA): नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (NMSA) किसके लिए तैयार किया गया है? कृषि उत्पादकता बढ़ाना विशेषकर वर्षा सिंचित क्षेत्रों में। इस योजना के तीन अलग-अलग घटक हैं।
1) वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (आरएडी): वर्ष 2021-22 के लिए ₹5.33 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
2) मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM)। वर्ष 2021-22 के लिए ₹2.16 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
3) परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई), जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना। वर्ष 2021-22 के लिए ₹10.64 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): NFSM एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे 2007 में शुरू किया गया था। इस मिशन में, गेहूं के अंतर्गत 11 जिले (शिमला को छोड़कर), चावल के अंतर्गत दो जिले कांगड़ा और मंडी और मक्का के अंतर्गत शिमला, किन्नौर और लाहौल और स्पीति को छोड़कर नौ जिले और दालों के अंतर्गत सभी जिले शामिल हैं। माश, मूंग, मटर, मसूर एवं चना का चयन किया गया है राज्य। सभी जिलों को पोषक अनाज (ज्वार, बाजरा, कोडोमिललेट, प्रोसोमिललेट, फॉक्सटेलमिललेट, लिटलमिललेट और फिंगरमिललेट) के लिए भी चुना गया है। मिशन क्लस्टर प्रदर्शन, प्रमाणित बीज, सूक्ष्म पोषक तत्व, पौधे और मिट्टी संरक्षण सामग्री, बेहतर उपकरण और मशीनरी के वितरण के लिए सहायता प्रदान करता है। इस योजना के तहत वर्ष 2021-22 के लिए ₹15.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए भारत सरकार ने एक योजना शुरू की है , जिसे पीएमकेएसवाई कहा जाता है। सूक्ष्म-सिंचाई परियोजनाएं ("हर खेत को पानी") और अंत-से-अंत सिंचाई समाधान इस योजना का मुख्य फोकस हैं। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश का अभिसरण प्राप्त करना, सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए खेत में पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करना, सटीक सिंचाई और अन्य जल-बचत को बढ़ावा देना है। प्रौद्योगिकियाँ। इस योजना के तहत वर्ष 2021-22 के लिए राज्य योजनान्तर्गत ₹10.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
सूक्ष्म सिंचाई योजना के माध्यम से कुशल सिंचाई: सिंचाई की कुशल प्रणाली के लिए सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसका नाम है ₹154.00 करोड़ के परिव्यय के साथ 'सूक्ष्म-सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से कुशल सिंचाई'। इस परियोजना के माध्यम से 8,500 हेक्टेयर क्षेत्र को ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के तहत लाया जाएगा, जिससे 14,000 किसान लाभान्वित होंगे। किसानों को स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई प्रणाली की स्थापना के लिए 80 प्रतिशत की सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
उत्तम चारा उत्पादन योजना: चारा उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने एक योजना शुरू की है; 42,000 हेक्टेयर क्षेत्र को चारा उत्पादन के अंतर्गत लाकर चारा विकास के लिए उत्तम चारा उत्पादन योजना। किसानों को चारा घास के गुणवत्तापूर्ण बीज, उन्नत चारा किस्मों के कटिंग और बीज की आपूर्ति रियायती दरों पर की जाती है। चारा कटर पर सब्सिडी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और गरीबी रेखा से नीचे के किसानों के लिए उपलब्ध है। राज्य सरकार भी किसानों को अजोला घास की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है. गड्ढा तैयार करने के लिए राज्य सरकार 50 फीसदी सहायता दे रही है. इस योजना के तहत वर्ष 2021-22 के लिए ₹7.10 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना: बंदरों और जंगली जानवरों के आतंक से हर साल फसलों को भारी नुकसान होता है। हाथ से रखवाली करके फसल सुरक्षा की वर्तमान पद्धतियाँ 100 प्रतिशत सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती हैं। इसलिए, हिमाचल प्रदेश ने "मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना" शुरू की है। इस योजना के तहत सौर बाड़ लगाने के लिए व्यक्तिगत किसान को 80 प्रतिशत और किसानों के समूह को 85 प्रतिशत की सब्सिडी प्रदान की जाती है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने 2019 -20 से कांटेदार और चेन लिंक बाड़ लगाने के साथ-साथ समग्र बाड़ लगाने की भी मंजूरी दे दी है। कांटेदार और चेन लिंक (बुना जाल) बाड़ प्रणाली की स्थापना और समग्र बाड़ लगाने के लिए सब्सिडी व्यक्तिगत किसानों के लिए क्रमशः 50 प्रतिशत और 70 प्रतिशत होगी। वर्ष 2020-21 हेतु ₹40.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री किसान एवं खेतीहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना: किसानों और खेतिहर मजदूरों को बीमा कवर प्रदान करने के लिए कृषि मशीनरी के संचालन के कारण चोट लगने या मृत्यु होने की स्थिति में, राज्य सरकार ने 2015-16 में मुख्यमंत्री किसान एवं खेतीहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना शुरू की है। मृत्यु के मामले में ₹3.00 लाख, स्थायी विकलांगता के मामले में ₹1.00 लाख और आंशिक विकलांगता के मामले में ₹10,000 से ₹40,000 प्रभावित किसानों को प्रदान किए जाते हैं। वर्ष 2021-22 हेतु ₹40.00 लाख का बजट प्रावधान किया गया है।
प्रवाह सिंचाई योजना: इस योजना के तहत, कुहल के स्रोत स्थान का नवीनीकरण करने के अलावा, सामान्य रूप से कुहल को मजबूत करना क्षेत्र होगा किया जाएगा और समुदाय-आधारित कार्य पर 100 प्रतिशत व्यय सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। सरकार ने बोरवेल और उथले निर्माण के लिए 50 प्रतिशत अनुदान देने का निर्णय लिया है इस योजना के तहत सिंचाई प्रयोजनों के लिए व्यक्तिगत रूप से कुएँ। वर्ष 2021-22 के लिए ₹15.00 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान योजना (PMKUSUM): राज्य सरकार ने एक नई योजना शुरू की है जिसका नाम है पीएम-कुसुम प्रदान करने की दृष्टि से फसलों के लिए सुनिश्चित सिंचाई, उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाती है जहां दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली की पहुंच सौर ऊर्जा वाहन पंपों की तुलना में महंगी है। इस योजना के तहत, सौर पंपिंग की स्थापना के लिए किसानों के छोटे और सीमांत समूहों को 85 प्रतिशत सहायता प्रदान की जाएगी और किसानों के मध्यम और बड़े समूहों को व्यक्तिगत और सामुदायिक आधार पर 80 प्रतिशत सहायता प्रदान की जाएगी। मशीनरी. वर्ष 2021-22 के लिए 12.51 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान रखा गया है।
जल से कृषि को बल योजना: सरकार ने एक नई योजना "जल से कृषि को बल योजना" शुरू की है। . इस योजना के तहत चेक डैम और तालाबों का निर्माण किया जायेगा. 2021-22 के लिए ₹25.01 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है। इस योजना के तहत समुदाय आधारित लघु जल बचत योजना के कार्यान्वयन के लिए 100 प्रतिशत व्यय सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।

मुख्यमंत्री कृषि कोष योजना किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ): को बुआई, कटाई और कटाई के दौरान बुनियादी इनपुट की आवश्यकता होती है। फसल कटाई के बाद का बुनियादी ढांचा जैसे ग्रेडिंग और पैकेजिंग मशीनें, परिवहन वाहन, भंडारण गोदाम और पैक हाउस आदि जिनके लिए दीर्घकालिक पूंजी की आवश्यकता होती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने एक नई योजना शुरू की है। किसानों को बीज धन, ब्याज छूट और क्रेडिट गारंटी कवर का समर्थन करने के लिए कृषि कोष। वर्ष 2021-22 हेतु ₹5.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
कृषि उत्पादन संरक्षण योजना (एंटी हेल नेट): फसलों को ओलावृष्टि से बचाने के लिए राज्य सरकार ने शुरू की है कृषि उत्पादन संरक्षण योजना (एंटी हेल नेट) वर्ष 2020-21 से। इस योजना के तहत, राज्य सरकार किसानों को एंटी-हेल नेट की खरीद पर 80 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान करेगी। राज्य के सभी सब्जी उत्पादक किसान किसानों को उनकी फसलों को ओलावृष्टि, आवारा जानवरों और बंदरों जैसी प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए एंटी-हेल नेट उपलब्ध कराए जाते हैं। वर्ष 2021-22 हेतु ₹10.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
हिमाचल प्रदेश की विविध जलवायु, भौगोलिक क्षेत्र और उसकी स्थिति में विविधता, विशिष्टता, गहनता और जल व्यवस्था वाली भूमि समशीतोष्ण और ऊष्ण कटिबन्धीय पौधों की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है। यह क्षेत्र अन्य गौ उद्यान उत्पाद जैसे फूल, खुम्ब, शहद और हाप्स की खेती के लिए भी बहुत उपयुक्त है। प्रदेश की यह अनुकूल स्थिति पिछले कुछ दशकों में भूमि उपयोग के अनुरूप अब कृषि से फलोत्पादन की ओर स्थानान्तरित हो रही है। वर्ष 1950-51 में फलों का कुल क्षेत्रफल 792 हेक्टेयर था, जिसमें कुल उत्पादन 1,200 टन था, अब यह वृद्धि हुई है। वर्ष 2020-21 में 2,34,779 हेक्टेयर क्षेत्र हुआ और कुल फल उत्पादन 6.24 लाख टन हुआ और वर्ष (दिसंबर, 2021) तक) कुल फल उत्पादन 6.97 लाख टन आ गया है। वर्ष 2021-22 में 1,549 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को फल कंपनी के अधीन बनाया गया।
हिमाचल प्रदेश में फलोत्पादन में सेब का प्रमुख स्थान है जिसके अंतर्गत पेड़ों के अंतर्गत कुल क्षेत्र का लगभग 49 प्रतिशत तथा उत्पादन कुल उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत है। वर्ष 1950-51 में सेबों के अंतर्गत 400 हैक्टेयर क्षेत्र थे जो 1960-61 में बर्बा 3,025 हैक्टेयर और वर्ष 2021-21 में 1,14,646 हैक्टेयर हो गए।
सेब के अतिरिक्त समशीतोष्ण फलों के अंतर्गत 1960-61 में 900 हेक्टेयर क्षेत्र से उछाल 2020-21 में वर्ष 27,870 हेक्टेयर हो गया। 2020-21 में 10,029 हैक्टेयर और निम्बू इंस्टीट्यूट और मेवों के क्षेत्र में 1960-61 के 231 हैक्टेयर और 2020-21 में 10,029 हैक्टेयर और 2020-21 में 25,654 हैक्टेयर रहे। और 56,580 हैक्टेयर हो गए। पिछले कुछ वर्षों से सेब के प्रोडक्शन में आ रहे साम्यिक आउट-आर्ट ने सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। प्रदेश के विशाल फलोत्पादन क्षमता के पूर्ण दोहन के लिए अब क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के फलों के उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। वर्ष 2021-22 में बागवानी में मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिए बागवानी विकास योजना के तहत 8,900 पावर चलित स्पैट्रायर, 584 पावर टिलर (<8ब्रेक हॉर्स पावर)व 136 पावर टिलर (>8ब्रेक हॉर्स पावर) का उपदान पर रखा जा रहा है।
कृषि यंत्रीकरण का उप-मिशन (एसएमएएम):
SMAM के तहत किसानों को विभिन्न आधुनिक कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद के लिए बैक एंडेड सब्सिडी के रूप में सहायता प्रदान की जाती है। कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश इस योजना का नोडल विभाग है। वर्ष 2020-21 के दौरान बागवानी विभाग को ₹21.50 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई है, जिसमें से ₹12.00 करोड़ इस योजना के तहत खर्च किए गए हैं और 31 दिसंबर 2021 तक 4,000 किसान लाभान्वित हुए हैं। 2021-22 के दौरान, ₹69.55 करोड़ मूल्य के 73216.67 मीट्रिक टन सी-ग्रेड सेब फल और ₹1.43 लाख मूल्य के 15.02 मीट्रिक टन सेब खरीदे गए हैं।
राज्य के गर्म क्षेत्रों में, आम एक महत्वपूर्ण फल फसल के रूप में उभरा है। कुछ क्षेत्रों में लीची का भी महत्व बढ़ रहा है। आम और लीची को बाजार में बेहतर कीमत मिल रही है। मध्य क्षेत्र में, कीवी, जैतून, अनार, पेकान और स्ट्रॉबेरी जैसे नए फलों की सफल खेती के लिए कृषि-जलवायु परिस्थितियाँ अत्यधिक उपयुक्त हैं। फलों का उत्पादन तालिका 7.8 में दिया गया है
बागवानी में विविधता लाने के लिए 31.12.2021 तक कुल 373.57 हेक्टेयर क्षेत्र को फूलों की खेती के तहत लाया गया है। फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए, महोगबाग (चायल, जिला सोलन) और पालमपुर, जिला कांगड़ा में मॉडल फूल खेती केंद्रों के तहत दो ऊतक संस्कृति प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। जिला शिमला, कांगड़ा, लाहौल और स्पीति, सोलन, हमीरपुर और चंबा में फूलों के उत्पादन और विपणन के लिए दस किसान सहकारी समितियां कार्य कर रही हैं। मशरूम और मधुमक्खी पालन जैसी सहायक बागवानी गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक मशरूम के लिए 524.72 मीट्रिक टन पाश्चुरीकृत खाद सोलन, रामपुर, बजौरा और पालमपुर स्थित विभाग की इकाइयों से तैयार और वितरित की गई। 31 दिसंबर 2021 तक कुल 18,308.03 मीट्रिक टन मशरूम, 1,566.08 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया गया है।
मौसम आधारित फसल बीमा योजना शुरू में हिमाचल प्रदेश में रबी सीजन के दौरान सेब की फसल के लिए 6 ब्लॉकों में और आम की फसल के लिए 4 ब्लॉकों में शुरू की गई थी। 2009-10 पायलट आधार पर। इस योजना की लोकप्रियता को देखते हुए इस योजना के तहत कवरेज को लगातार वर्षों तक बढ़ा दिया गया है। वर्तमान में, यह योजना सेब के लिए 42 ब्लॉक, आम के लिए 39 ब्लॉक, नींबू के लिए 18 ब्लॉक, प्लम के लिए 14 ब्लॉक और आड़ू की फसल के लिए 5 ब्लॉक में कार्यान्वित की जा रही है। इसके अलावा, सेब की फसल को ओलावृष्टि से बचाने के लिए 19 ब्लॉकों को ऐड-ऑन कवर योजना के तहत कवर किया गया है। वर्ष 2016-17 से योजना का नाम बदलकर पुनर्गठित मौसम आधारित फसल कर दिया गया है बीमा योजना (आर-डब्ल्यूबीसीआईएस) और बीमा राशि को संशोधित किया गया है और बोली प्रणाली शुरू की गई है। रबी सीजन 2019-20 के दौरान, 84,624 किसानों को सेब, आड़ू, प्लम, आम और खट्टे फलों की फसलों के लिए आर-डब्ल्यूबीसीआईएस के तहत कवर किया गया है, जिन्होंने अपने 64,33,231 पेड़ों का बीमा कराया है, जिसके लिए राज्य सरकार ने ₹20.31 करोड़ की प्रीमियम सब्सिडी वहन की है। .
वर्ष 2021-22 के दौरान केंद्र प्रायोजित योजना, KVY-RAFTAAR के कार्यान्वयन के लिए ₹374.64 लाख की धनराशि स्वीकृत की गई है। 30-09-2021 को राज्य स्तरीय मंजूरी समिति (एसएलएससी)।
हिमाचल खुंब विकास योजना (HKVY) राज्य में मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए 2019-20 के दौरान शुरू की गई थी। वर्ष 2021-22 के दौरान ₹5.00 करोड़ प्राप्त हुए तथा ₹65.85 लाख व्यय किये गये हैं। योजना के अन्तर्गत 168 इकाईयाँ स्थापित की गयीं तथा 411 कृषक लाभान्वित हुए। जिलेवार स्थिति तालिका 7.9 में दर्शाई गई है।

राज्य में कुशल और अकुशल बेरोजगार युवाओं को रोजगार प्रदान करने और वाणिज्यिक फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए „ के तहत धन आवंटित किया गया है। हिमाचल पुष्प क्रांति योजना‟वर्ष 2021-22 के दौरान ₹11.00 करोड़ की राशि, जिसमें से 1.82 करोड़ खर्च किए गए हैं और 31 दिसंबर 2021 तक 99 किसानों को लाभान्वित किया गया है। गुणवत्तापूर्ण फल वाली फसलें पैदा करने और उत्पादन बढ़ाने, शहद उत्पादन और अन्य मधुमक्खी उत्पादों को बढ़ाने के लिए 'मुख्यमंत्री मधु विकास योजना' शुरू की गई है और वर्ष 2020-21 के दौरान ₹6.20 करोड़ का फंड आवंटित किया गया है। . 'कृषि उत्पादन संरक्षण' योजना के तहत वर्ष 2020-21 के लिए स्थायी समर्थन (स्टील और बांस) के निर्माण के लिए ₹20.00 करोड़ की राशि आवंटित की गई थी, जिसमें से ₹19.62 लाख खर्च किए गए हैं और 31 दिसंबर 2021 तक 79 किसानों को लाभान्वित किया गया था। .
केंद्र प्रायोजित योजना, "बागवानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन" (MIDH) राज्य में कार्यान्वित की जा रही है जिसके तहत किसानों को विभिन्न बागवानी गतिविधियों जैसे फलों, फूलों, सब्जियों, प्रजातियों की खेती और नए उद्यानों की स्थापना, मशरूम उत्पादन, उच्च मूल्य वाले फूलों और सब्जियों की ग्रीन हाउस खेती के लिए 40-85 प्रतिशत तक की सब्सिडी के रूप में सहायता प्रदान की जाती है। , एंटी हेल नेट, बागवानी मशीनीकरण, फसल कटाई उपरांत प्रबंधन आदि हेतु वर्ष 2021-22 में ₹48.89 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है जिसमें से ₹12.22 करोड़ भारत सरकार से प्रथम किस्त के रूप में प्राप्त हो चुके हैं तथा कुल 2 इस मिशन के तहत वर्ष 2003-04 से दिसम्बर, 2021 तक 60,421 किसान लाभान्वित हुए हैं।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक फसल (PMKSYPDMC) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे शुरू किया जा रहा है। 2015-16 से राज्य में लागू किया गया। वर्ष 2017-18 में, पीएमकेएसवाई-पीडीएमसी दिशानिर्देशों को छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55 प्रतिशत और बड़े किसानों के लिए 45 प्रतिशत सब्सिडी के प्रावधान के साथ संशोधित किया गया था। राज्य छोटे और सीमांत किसानों को 80 प्रतिशत सब्सिडी देने के लिए 25 प्रतिशत अतिरिक्त राज्यांश प्रदान कर रहा है। वर्ष 2020-21 के लिए, भारत सरकार ने PMKSY-PDMC के लिए ₹1,200 लाख स्वीकृत किए हैं। अब तक (2015-16 से दिसंबर, 2021) 5,813.71 हेक्टेयर क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के तहत कवर किया गया है, जिससे 24,306 किसान लाभान्वित हुए हैं।
एचपीएमसी, एक राज्य सार्वजनिक उपक्रम, की स्थापना ताजे फलों और सब्जियों के विपणन, अप्राप्य अधिशेष के प्रसंस्करण और प्रसंस्कृत उत्पादों के विपणन के उद्देश्य से की गई थी। अपनी स्थापना के बाद से, एचपीएमसी राज्य के फल उत्पादकों को उनकी उपज का लाभकारी लाभ प्रदान करके उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वर्ष 2020-21 के दौरान एचपीएमसी ने 70.93 करोड़ रुपये का कुल कारोबार दर्ज किया था। बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत वर्ष 2021-22 के दौरान राज्य सरकार ने राज्य में आम, सेब और खट्टे फलों की बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) की नीति को निम्नानुसार समर्थन मूल्य के साथ जारी रखा:
1) निगम ने जिला शिमला और कुल्लू के निम्नलिखित सेब उत्पादक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक 5 नियंत्रित वातावरण (सीए) स्टोर शुरू किए हैं, जैसे जरोल टिक्कर, (कोटगढ़) 640 मीट्रिक टन, गुम्मा (कोटखाई) 640 मीट्रिक टन, ओड्डी (कुमारसैन) 700 मीट्रिक टन और रोहड़ू 700 मीट्रिक टन, कुल 2,680 मीट्रिक टन भंडारण करने में सक्षम।
2) कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) से परवाणू में एप्पल जूस कंसंट्रेट (एजेसी) संयंत्र के उन्नयन के लिए ₹8.00 करोड़ की सहायता अनुदान प्राप्त हुआ है। ) और उसी वर्ष परीक्षण उत्पादन करके उन्नयन का कार्य वर्ष 2018 में सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। प्लांट को 2019 में व्यावसायिक उत्पादन के लिए स्थापित किया गया था और उस दौरान ऐप्पल जूस कॉन्सेंट्रेट (एजेसी) का उत्पादन 1,012 मीट्रिक टन था। सेब सीजन 2021 के दौरान खाद्य प्रसंस्करण संयंत्र (एफपीपी) परवाणू में कुल 617.83 मीट्रिक टन एजेसी का उत्पादन किया गया।
3) फल प्रसंस्करण संयंत्र (एफपीपी), जरोल सुंदरनगर में कैलेंडर वर्ष 2019-20 के दौरान कुल 235 मीट्रिक टन एजेसी और 2020-21 में 112 मीट्रिक टन एजेसी का उत्पादन किया गया। इसके अलावा, 2021 के नवीनतम सेब सीजन के दौरान कुल 81.27 मीट्रिक टन एजेसी का उत्पादन किया गया।
4) एचपीएमसी ने फूड प्रोसेसिंग पार्क (एफपीपी) परवाणू में एप्पल साइडर के निर्माण और फलों के निर्माण के लिए पार्टियों एम/एस पीएच4 (पीएच4 फूड एंड बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। और एम/एस माउंटेन बैरल के साथ एफपीपी जारोल में रेड वाइन। इससे आने वाले वर्षों में एचपीएमसी की बिक्री के साथ-साथ लाभ मार्जिन को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
5) एचपीएमसी ने विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना (एचपीएचडीपी) से राज्य में उत्पादित विभिन्न फलों के ग्रेडिंग भंडारण और प्रसंस्करण की अपनी मौजूदा क्षमता को बढ़ाने की योजना बनाई है। इस परियोजना के फसलोत्तर समर्थन अवसंरचना घटक के अंतर्गत, की प्रक्रिया सीए स्टोर जरोल टिक्कर, गुम्मा और रोहड़ू की मौजूदा भंडारण क्षमता को मौजूदा 2,680 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 6,618 मीट्रिक टन करने का काम मार्च, 2022 तक पूरा किया जाएगा।
पशुधन का पालन-पोषण ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। हिमाचल प्रदेश में, सामान्य संपत्ति संसाधनों (सीपीआर) जैसे वन, जल और चरागाह भूमि के बीच एक गतिशील संबंध है। पशुधन और फसलें.
पशुधन हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था की स्थिरता का अभिन्न अंग है। वर्ष 2020-21 के दौरान प्रमुख पशुधन उत्पादों का योगदान 15.76 लाख टन दूध था, 1,482 टन ऊन, 1,111 मिलियन अंडे और 4,306 टन मांस, जिसमें 16.54 लाख टन दूध, 1,500 टन ऊन, 1100 मिलियन अंडे और 4,500 टन मांस होने की संभावना है। 2021-22. दूध उत्पादन और प्रति व्यक्ति उपलब्धता तालिका 7.11 में दिखाई गई है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में पशुपालन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और पशुधन विकास कार्यक्रम के लिए राज्य में इस प्रकार ध्यान दिया जाता है:
पशु स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण
मवेशी विकास
भेड़ प्रजनन और ऊन का विकास
पोल्ट्री विकास
चारा और चारा विकास
पशु चिकित्सा शिक्षा
पशुधन जनगणना पशु स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत 1 राज्य स्तरीय पशु चिकित्सालय, 3 जोनल अस्पताल, 10 पॉलीक्लिनिक, 60 उप-विभागीय पशु चिकित्सालय, 362 पशु चिकित्सालय, पशु चिकित्सा और पशुपालन प्रदान करने के लिए 31 दिसंबर, 2021 तक राज्य में 30 केंद्रीय पशु औषधालय, 6 पशु चिकित्सा जांच चौकियां और 1,759 पशु औषधालय कार्य कर रहे हैं। किसानों को उनके पशुधन के लिए सेवाएँ।
भेड़ और ऊन की गुणवत्ता में सुधार के लिए, जियोरी (शिमला), ताल (हमीरपुर) और करछम (किन्नौर) में सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म राज्य के प्रजनकों को उन्नत भेड़ की आपूर्ति कर रहे हैं। मंडी जिले के नगवाईं में एक राम केंद्र भी कार्य कर रहा है जहां उन्नत मेढ़ों का पालन-पोषण किया जाता है और क्रॉस ब्रीडिंग के लिए प्रजनकों को आपूर्ति की जाती है। वर्ष 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक इन फार्मों की झुंड संख्या 1,312 है। शुद्ध हॉगेट्स की बढ़ती मांग और हिमाचल में सोवियत मैरिनो और अमेरिकन रैंबौइलेट की स्थापित लोकप्रियता को देखते हुए, राज्य ने शुद्ध प्रजनन पर स्विच कर दिया है। मौजूदा सरकारी फार्मों और 9 भेड़ और ऊन विस्तार केंद्रों में चरवाहों के कल्याण के लिए कार्य जारी है। 2021-22 के दौरान ऊन का उत्पादन 1,500 टन होने की संभावना है। प्रजनकों को खरगोशों के वितरण के लिए अंगोरा खरगोश फार्म कंडवारी (कांगड़ा) और नगवाईं (मंडी) में काम कर रहे हैं।
लाहौल और स्पीति जिले के लारी में एक घोड़ा प्रजनन फार्म की स्थापना घोड़ों की स्पीति नस्ल को संरक्षित करने के उद्देश्य से की गई है। वर्ष 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक इस फार्म में 67 घोड़े रखे गए हैं। घोड़ा प्रजनन लारी के परिसर में एक याक प्रजनन फार्म भी स्थापित किया गया है। वर्ष 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक इस फार्म में याकों की संख्या 62 थी। चारा और चारा विकास योजना के तहत, 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक 16.00 लाख चारा जड़ें, 64,000 चारा पौधे वितरित किए गए हैं।
पशुधन मालिकों के लिए कल्याण योजना
1) सामान्य बीपीएल किसानों के लिए योजना: सामान्य श्रेणी के बीपीएल परिवारों से संबंधित पशुपालकों को उनकी स्वदेशी/संकर नस्ल की गायों के लिए प्रति दिन 3 किलोग्राम गर्भधारण प्रदान किया जाता है। गर्भावस्था के अंतिम तीन माह के लिए 50 प्रतिशत अनुदान पर। वर्ष 2021-22 के लिए बजट प्रावधान `266.41 लाख है। योजना का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है:
i) दूध का उत्पादन बढ़ाएं.
ii) अंतर ब्यांत अवधि को कम करने के लिए.
iii) गर्भवती गायों के स्वास्थ्य में सुधार करना।
2) "उत्तम पशु पुरस्कार योजना" 2021-22 के दौरान दुधारू मवेशी/भैंस रखने वाले किसानों को `50.00 लाख के प्रावधान के साथ उत्तम पशु पुरस्कार योजना लागू की जा रही है। प्रतिदिन 15 लीटर या अधिक दूध उत्पादन। इस योजना के तहत प्रति लाभार्थी प्रति पशु `1,000 का प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
कुक्कुट विकास योजना: हिमाचल प्रदेश में कुक्कुट क्षेत्र को विकसित करने के लिए, विभाग ने विशेष रूप से निम्नलिखित कुक्कुट विकास योजनाएं शुरू की हैं राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में:
i) बैकयार्ड पोल्ट्री प्रोजेक्ट:3 सप्ताह के लो इनपुट टेक्नोलॉजी (एलआईटी) पक्षियों के 50-100 चूजों को पोल्ट्री प्रजनकों के बीच लागत मूल्य पर वितरित किया जाता है। इसके तहत 2021-22 के दौरान योजना के 8,249 लाभार्थियों के बीच 3,31,055 लाख चूजों का वितरण किया गया।
ii) 200-चूजा योजना:इस योजना के तहत अनुसूचित जाति श्रेणी के बीपीएल परिवारों से संबंधित 900 पोल्ट्री प्रजनकों को इनपुट प्रदान किया जाना है। (जैसे 200 दिन पुराने एलआईटी पक्षी, प्रारंभिक भोजन के लिए चारा, खिलाने वाले और पीने वाले) प्रति लाभार्थी ₹10,000 का मूल्य। इस योजना के तहत दिसंबर तक 545 लाभार्थियों को सहायता प्रदान की गई है। 2021.लाभार्थियों के लिए कुक्कुट प्रबंधन के संबंध में प्रशिक्षण का भी प्रावधान है।
iii) हिम कुक्कुट पालन योजना:राज्य में 100 पोल्ट्री इकाइयों की स्थापना के लिए ₹396.00 लाख के बजट का प्रावधान है। लाभार्थियों को 3000 दिन के ब्रॉयलर चूज़े प्रदान किए जाते हैं। चारा, खिलाने वाले और पीने वाले। लाभार्थियों को पूंजीगत निवेश (शेड का निर्माण, फीडर और पीने वालों का प्रावधान) और आवर्ती लागत (चूजों, फ़ीड आदि की लागत) दोनों पर 60 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है।
iv) इनोवेटिव पोल्ट्री प्रोडक्टिविटी प्रोजेक्ट (आईपीपीपी):एलआईटी बर्ड (राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत): इस योजना में 200 लाभार्थियों को 400 चार सप्ताह पुराने एलआईटी पक्षी (200 की दो किस्तों में) प्रदान किए जाने हैं। प्रत्येक 72 सप्ताह के अंतराल पर एलआईटी पक्षी) और आश्रय, चारा और विविध व्यय के प्रावधान के लिए लाभार्थियों को ₹15,000 की सहायता प्रदान की जाएगी। 100
v) इनोवेटिव पोल्ट्री उत्पादकता परियोजना (आईपीपीपी):ब्रॉयलर (राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत): इस योजना के तहत 200 लाभार्थियों को 600 चार सप्ताह पुराने एलआईटी पक्षी (चार किस्तों में) प्रदान किए जाने हैं लाभार्थियों को प्रत्येक किस्त में 150 एलआईटी पक्षी) चारा और शेड निर्माण के लिए धनराशि भी प्रदान की जाएगी।
आरजीएम दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने और देश के ग्रामीण किसानों के लिए डेयरी को अधिक लाभकारी बनाने के लिए दूध उत्पादन और गोवंश की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण है। आरजीएम के तहत हिमाचल प्रदेश राज्य में वर्तमान में की जा रही और कार्यान्वित की जा रही विभिन्न पहल इस प्रकार हैं:
राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत मुर्रा प्रजनन फार्म की स्थापना या राज्य में मुर्रा को बढ़ावा देना: उद्देश्य से देश भर के स्पर्म स्टेशनों पर उपयोग के लिए उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले मुर्रा भैंस बैल का उत्पादन करने और किसानों को बिक्री के लिए और राज्य के भीतर और बाहर व्यावसायिक उपयोग के लिए विशिष्ट मुर्रा भैंस बछिया/वयस्क भैंस प्रदान करने के लिए, एक प्रजनन स्थापित करने की परिकल्पना की गई थी। हिमाचल प्रदेश में उच्च वंशावली मुर्रा भैंसों का फार्म। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत जिला ऊना में मुर्रा भैंस के प्रजनन फार्म की स्थापना के लिए भारत सरकार से 506.45 लाख रुपये की राशि प्राप्त हुई है।
गोकुल ग्राम की स्थापना: राज्य में स्वदेशी पशुपालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थानीय मवेशियों की उत्पादकता बढ़ाने और स्थायी तरीके से पशु उत्पादों से आर्थिक रिटर्न बढ़ाने के लिए स्वदेशी नस्लों का संरक्षण, प्रचार और विकास, स्वदेशी नस्लों के उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों का प्रचार करना और आधुनिक कृषि प्रबंधन प्रथाओं को अनुकूलित करना, सामान्य संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देना और कच्चे का उपयोग करना प्राकृतिक खेती (सुबाश पालेकर प्राकृतिक खेती) इनपुट के रूप में स्वदेशी मवेशियों से प्राप्त सामग्री, राष्ट्रीय गोकुल ग्राम मिशन के तहत "गोकुल ग्राम" स्थापित करने का प्रस्ताव है। जिला ऊना में गोकुल ग्राम की स्थापना के लिए भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी, 2019 को ₹995.10 लाख की धनराशि स्वीकृत की गई है।
राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान योजना (एनएआईपी): किसानों के दरवाजे पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से , दूध उत्पादन और गोवंश की उत्पादकता में वृद्धि और जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी और किसानों के बीच कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं की स्वीकार्यता बढ़ेगी। यह उद्देश्य संगठित किसान जागरूकता कार्यक्रम के कार्यान्वयन के माध्यम से प्राप्त किया गया है। इस घटक को 2021-22 से 2025-26 तक 5 वर्षों की अवधि में राज्य के सभी जिलों में लागू किया जाएगा, जिसमें सभी प्रजनन योग्य मवेशियों और भैंसों की आबादी को शामिल किया जाएगा। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण के अंतर्गत भारत सरकार से कुल 3058.36 लाख की धनराशि प्राप्त हुई है। इस योजना के तहत प्रदेश में तीनों चरणों में कुल 11,31,681 निःशुल्क कृत्रिम गर्भाधान किया गया है।
जिला कांगड़ा में संतान परीक्षण (जर्सी) कार्यक्रम: यह कार्यक्रम लगभग 800 राजस्व गांवों में कार्यान्वित किया जा रहा है एक नेटवर्क के माध्यम से जिला कांगड़ा निम्नलिखित उद्देश्य के साथ विभाग के 115 पशु चिकित्सा संस्थानों की।
1) जर्सी मवेशियों की आबादी में दूध, वसा, वसा नहीं बल्कि ठोस पदार्थ और प्रोटीन की पैदावार, प्रजनन क्षमता और प्रकार के लक्षणों के संबंध में एक स्थिर आनुवंशिक प्रगति हासिल करना।
2) भावी पीढ़ी के बैल बछड़ों के उत्पादन के लिए बैल माताओं और बैल पालों के आनुवंशिक मूल्यांकन और चयन की एक प्रणाली स्थापित करना।
3) संतान परीक्षण के माध्यम से वीर्य स्टेशनों के लिए आनुवंशिक रूप से मूल्यांकन किए गए बैल बछड़ों की आवश्यक संख्या का उत्पादन करना।
कार्यक्रम के तहत, राष्ट्रीय डायरी विकास बोर्ड के माध्यम से भारत सरकार से ₹168.25 लाख की राशि प्राप्त हुई है और अब तक, विभिन्न घटकों के तहत ₹ 48.25 लाख की राशि का उपयोग किया गया है।
भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक (ईटीटी) का परिचय: साहीवाल और रेड के संरक्षण और प्रसार के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत सिंधी नस्ल की गायें. भारत सरकार ने साहीवाल के संरक्षण और प्रसार के लिए पालमपुर जिला कांगड़ा में एम्ब्रो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी प्रयोगशाला की स्थापना के लिए ₹195.00 लाख की धनराशि जारी की है। और लाल सिंधी भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रजनन करते हैं।
उत्कृष्टता केंद्र सह प्रशिक्षण केंद्र: दूध संग्रह और भंडारण, भोजन जैसे डेयरी फार्म संचालन के स्वचालन को लोकप्रिय बनाना प्रणाली, खाद प्रबंधन और स्वच्छता, स्वास्थ्य प्रबंधन, भारतीय डेयरी उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाने के लिए युवा स्टॉक और वयस्क स्टॉक प्रबंधन और डेटा भंडारण सहित एकीकृत झुंड प्रबंधन, हिमाचल हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस कम ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना के लिए प्रदेश पशुधन विकास बोर्ड को इस परियोजना में 1.07.2021 को ₹1292.21 लाख की राशि प्राप्त हुई है। भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत।
राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम)
1) ग्रामीण पिछवाड़ा बकरी विकास योजना: यह राष्ट्रीय पशुधन मिशन (90 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी, 5 प्रतिशत राज्य हिस्सेदारी और 5 प्रतिशत किसान हिस्सेदारी) के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है। इस योजना के तहत वर्ष 2021-22 के दौरान भारत सरकार से ₹504.90 लाख की धनराशि प्राप्त हुई है।
2) ग्रामीण पिछवाड़ा सुअर विकास योजना: यह राष्ट्रीय पशुधन मिशन (90 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी, 5 प्रतिशत राज्य हिस्सेदारी और 5 प्रतिशत किसान हिस्सेदारी) के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है। 2021-22 के दौरान ₹397.95 लाख की धनराशि से 1,995 सुअर इकाइयां स्थापित की जाएंगी।
3) जोखिम प्रबंधन और पशुधन बीमा योजना: के बीमा प्रीमियम पर 60 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है। एपीएल किसानों के मवेशी और पैक पशु जबकि बीपीएल परिवारों / एससी / एसटी श्रेणियों से संबंधित किसानों को 80 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है। वर्ष 2021-22 के दौरान ₹318.95 लाख का प्रावधान है हिमाचल प्रदेश के आठ जिलों बिलासपुर, चंबा, हमीरपुर, कुल्लू, मंडी, सोलन, सिरमौर और ऊना में 20,000 पशुओं का बीमा। अब तक 817 लाभार्थियों के 1,005 पशुओं का बीमा किया गया।
पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्यों को सहायता
पशुधन की कुछ प्रमुख बीमारियों की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु भारत सरकार द्वारा 90 प्रतिशत की तर्ज पर धनराशि उपलब्ध करायी जा रही है। संक्रामक रोग अर्थात् रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया और ब्लैक क्वार्टर (एचएसबीक्यू), एंटरोटॉक्सिमिया के खिलाफ मुफ्त टीकाकरण सुविधा प्रदान करने के लिए केंद्र का हिस्सा और 10 प्रतिशत राज्य का हिस्सा। पेस्टेडेस पेटिट्स रूमिनैंट्स (पीपीआर), रानीखेत, मारेक्स और रेबीज। इस योजना के कार्यान्वयन से उपरोक्त बीमारियों के प्रकोप को रोका जा सकता है जिससे पशुपालक को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
हिमाचल प्रदेश में सभी श्रेणियों के भेड़ पालकों को सब्सिडी वाले मेढ़ों का प्रावधान इस योजना के तहत, 60 प्रतिशत हिमाचल के सभी श्रेणियों के भेड़ पालकों को मेढ़ों के प्रजनन के लिए सब्सिडी प्रदान की जाती है प्रदेश में न्यूनतम 50 भेड़ों के झुंड (प्रति लाभार्थी अधिकतम 2 मेढ़े) हैं। वर्ष 2021-22 के लिए बजट प्रावधान ₹14.50 लाख है। योजना के उद्देश्य हैं:
1) हिमाचल प्रदेश में देशी भेड़ की नस्लों का आनुवंशिक सुधार और भेड़ों के प्रवासी झुंडों के बीच बेहतर जर्मप्लाज्म का प्रसार।
2) राज्य में उत्पादित होने वाले मांस और ऊन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करना, भेड़ पालकों को बेहतर आर्थिक लाभ सुनिश्चित करना।
3 सभी श्रेणियों के भेड़ प्रजनकों के प्रवासी भेड़ झुंडों के बीच अंतःप्रजनन की समस्या का समाधान करना।
कृषक बकरी पालन योजना:इस योजना के तहत सभी श्रेणियों के बकरी पालकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना 11 बकरियों की इकाई वितरित करने का प्रस्ताव किया गया है बकरी के लिए 60 प्रतिशत अनुदान पर बीटल/सिरोही/जमनापारी और व्हाइट हिमालयन लंबी नस्ल की 5 बकरियां (4 मादा+1 नर) और 3 बकरियां (2 मादा + 1 नर) किसान. गर्भावस्था के अंतिम तिमाही के दौरान बकरियों के लिए चारे के अलावा बीमा का भी प्रावधान है। योजना के तहत वर्ष 2020-21 के लिए ₹ 54.75 लाख का बजट प्रावधान रखा गया था।
ग्रामीण पिछवाड़ा भेड़ विकास योजना: इस योजना के तहत 10+1 की भेड़ इकाई 95 प्रतिशत सब्सिडी पर हिमाचल प्रदेश राज्य में गरीब/सीमांत किसानों को प्रदान किया जाएगा। इस योजना के तहत धनराशि वर्ष 2021-2022 के दौरान भारत सरकार से ₹1188.00 लाख की धनराशि प्राप्त हुई है।
भारत सरकार द्वारा हर साल पशुधन की गणना करायी जाती है। अब तक ऐसी 20 जनगणनाएं आयोजित की जा चुकी हैं। राज्य में पशुपालन के विकास के लिए पशुधन गणना महत्वपूर्ण है। पशु विकास से संबंधित नई नीतियां पशुधन और मुर्गीपालन की सटीक संख्या के आधार पर तैयार की जाती हैं।
हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड में 1,084 दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां हैं। इन समितियों की कुल सदस्यता 46,973 है, जिनमें से 220 महिला डेयरी सहकारी समितियाँ भी काम कर रही हैं। वर्तमान में मिल्कफेड है प्रति दिन 91,500 लीटर दूध की कुल क्षमता वाले 22 दूध शीतलन केंद्र और प्रति दिन 1,00,000 लीटर दूध की कुल क्षमता वाले 11 दूध प्रसंस्करण संयंत्र चल रहे हैं। प्रति 5 मीट्रिक टन का एक दूध पाउडर संयंत्र शिमला जिले के दत्तनगर में प्रतिदिन और जिला हमीरपुर के भोर में 16 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता का एक पशु चारा संयंत्र कार्य कर रहा है। गांवों से प्रतिदिन औसत दूध की खरीद लगभग 1,37,000 लीटर है ग्रामीण डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से।
मिल्कफेड प्रतिदिन लगभग 23,000 लीटर दूध का विपणन कर रहा है, जिसमें विभिन्न प्रतिष्ठित डेयरियों को थोक में दूध की आपूर्ति और डगशाई, शिमला में सेना इकाइयों को आपूर्ति शामिल है। पालमपुर और योल, धर्मशाला क्षेत्र। मिल्कफेड 'हिम' ब्रांड नाम के तहत मिल्क पाउडर, घी, मक्खन दही, पनीर और मीठे स्वाद वाला दूध, खोआ भी बना रहा है।
हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड के नए नवाचार
हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) परियोजना के तहत कल्याण विभाग को पंजीरी, बेकरी बिस्किट, सेवियन और पास्ता का निर्माण कर रहा है। 2020-21 के दौरान मिल्कफेड ने और का निर्माण किया है राज्य की आंगनबाड़ियों को 23,750 क्विंटल फोर्टिफाइड पंजीरी, 5,050 क्विंटल स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) और 26,500 क्विंटल फोर्टिफाइड बेकरी बिस्किट और 10,590 गेहूं सेवइयां की आपूर्ति की गई।
ग्रामीण स्तर पर लगभग 1,000 दूध उत्पादकों को अच्छी गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करने के लिए शिक्षित करने के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम।
किसानों के लगभग 11,134 किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) फॉर्म संबंधित बैंकों में जमा किए गए और लगभग `8.00 करोड़ का ऋण वितरित किया गया है दुग्ध उत्पादकों/किसानों को के.सी.सी.
मिल्कफेड ने राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम योजना के तहत अपनी प्रयोगशालाओं को आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया।
वर्ष 2021-22 के दौरान, राज्य में डेयरी गतिविधियों में सुधार के लिए दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र में 50,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता का एक नया संयंत्र स्थापित किया जाएगा। मंडी को चालू किया जाएगा, जिससे राज्य की डेयरी सहकारी समिति को लाभ मिलेगा।
दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र चक्कर जिला मंडी में 50,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता का एक नया संयंत्र स्थापित किया जा रहा है, जिससे मंडी की डेयरी सहकारी समितियों को लाभ मिलेगा। कुल्लू, बिलासपुर और अन्य जिले।
मुख्यमंत्री द्वारा 29.12.2021 को राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम के तहत मंडी, शिमला और कुल्लू जिलों के 937 दुग्ध उत्पादकों को ₹2,000 की प्रोत्साहन राशि वितरित की गई डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करना।
दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र कांगड़ा में लगभग 6 मीट्रिक टन प्रतिदिन की क्षमता का एक नया बेकरी बिस्किट संयंत्र चालू होगा।


ऊन खरीद और विपणन संघ (डब्ल्यूपीएमएफ)
डब्ल्यूपीएमएफ का मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश राज्य में ऊन उद्योग की वृद्धि और विकास को बढ़ावा देना और ऊन उत्पादकों को मुक्त करना है। बिचौलियों/व्यापारियों द्वारा शोषण से। उपरोक्त उद्देश्य के अनुसरण में, WPMF भेड़ और अंगोरा ऊन की खरीद में सक्रिय रूप से शामिल है, आयातित स्वचालित के साथ चरागाह स्तर पर भेड़ की कतरन मशीनें भेड़ ऊन की सफाई और ऊन का विपणन। वर्ष 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक 43617 भेड़ों के बाल काटे गए हैं और भेड़ की ऊन की खरीद 1,13,764 किलोग्राम है और इसका मूल्य ₹72.09 लाख था।
फेडरेशन पशुपालन विभाग की तकनीकी सहायता से राज्य में भेड़ पालकों के लाभ और उत्थान के लिए एक नई केंद्र प्रायोजित योजना भी लागू कर रहा है। स्वास्थ्य देखभाल के अंतर्गत, विशेष रूप से डुबकी और कृमि मुक्ति के लिए, 3,75,000 भेड़ और बकरियों को चंबा, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, शिमला और किन्नौर जिलों में ₹ 1.20 करोड़ के परिव्यय के साथ कवर किया जाएगा और 1,25,000 "बकरी समूहों" में भी शामिल किया जाएगा। चंबा, कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर, ऊना, सोलन, बिलासपुर और सिरमौर जिलों को ₹1.00 करोड़ के परिव्यय के साथ पोषण अनुपूरण के साथ स्वास्थ्य देखभाल घटक के तहत। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान इन योजनाओं का लाभ लगभग 18,000 प्रजनकों को मिलने की संभावना है।
ब्यास, सतलुज और रावी नदियाँ अपनी डाउनस्ट्रीम यात्रा के दौरान कई धाराएँ प्राप्त करती हैं और शिज़ोथोरैक्स, गोल्डन महसीर और विदेशी ट्राउट जैसे कीमती ठंडे पानी के मछली जीवों को प्राप्त करती हैं। राज्य के ठंडे जल संसाधनों ने महत्वाकांक्षी इंडो-नॉर्वेजियन ट्राउट खेती परियोजना के सफल समापन और विकसित प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए पहाड़ी आबादी द्वारा दिखाई गई जबरदस्त रुचि के साथ अपनी क्षमता दिखाई है। गोबिंद सागर और पोंग बांध जलाशयों, चमेरा और रणजीत सागर बांध में व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मछली प्रजातियां स्थानीय आबादी के उत्थान के लिए एक उपकरण बन गई हैं।
राज्य में लगभग 5,902 मछुआरे अपनी आजीविका के लिए सीधे जलाशय मत्स्य पालन पर निर्भर हैं। 2021-22 के दौरान, दिसंबर, 2021 तक, संचयी मछली उत्पादन 9,897.82 मीट्रिक टन था, जिसका मूल्य ₹138.92 करोड़ था। राज्य के फार्मों से लगभग 7.78 टन ट्राउट बेची गई है और चालू वित्तीय वर्ष के दौरान दिसंबर, 2021 तक ₹135.09 लाख अर्जित किए गए हैं। पिछले वर्ष मछली की बिक्री तालिका 7.15 में दिखाई गई है।
मत्स्य पालन विभाग ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में जलाशयों, ग्रामीण तालाबों और वाणिज्यिक फार्मों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए राज्य में कार्प के साथ-साथ ट्राउट बीज उत्पादन फार्मों का निर्माण किया है। दिसंबर, 2021 तक राज्य में कॉमन कार्प के 70 मिमी और उससे अधिक आकार के कुल 18.42 लाख फिंगरलिंग, इंडियन मेजर कार्प (आईएमसी) के समान आकार के 8.63 लाख और रेनबो ब्राउन ट्राउट के 11.33 लाख का उत्पादन किया गया है। वर्ष 2021-22 के दौरान दिसम्बर, 2021 तक उत्पादित कुल बीज उत्पादन का अनुमानित मूल्य ₹83.70 लाख है। विभाग मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं लागू कर रहा है एक्वाकल्चर जो इस प्रकार हैं:
बीमा और कल्याण योजनाएं: मत्स्य पालन विभाग ने मछुआरों के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं। मछुआरों को बीमा योजना के तहत कवर किया जाता है, जहां ₹5.00 लाख रुपये दिए जाते हैं (मृत्यु/स्थायी विकलांगता के मामले में) और यहां तक कि उनके गियर और शिल्प के नुकसान को भी जोखिम निधि योजना के तहत 50 प्रतिशत की सीमा तक राज्य सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा एक अंशदायी बचत योजना शुरू की गई है और जमा की गई बचत के राज्यों के शेयरों को समापन सीज़न के दौरान प्रदान किया जाता है। इस प्रकार उत्पन्न राशि का भुगतान मछुआरे को दो समान किश्तों में किया जाता है। वर्ष 2021-22 के दौरान अब बचत-सह-राहत निधि योजना के तहत 3,557 मछुआरों को ₹160.06 लाख की राशि (मछुआरे द्वारा योगदान ₹53.35 लाख और राज्य और केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता के रूप में ₹106.71 लाख) प्रदान की जाएगी। केंद्र प्रायोजित योजना प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत मछली पकड़ने पर प्रतिबंध/कम अवधि के दौरान मत्स्य संसाधनों के संरक्षण के लिए सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े सक्रिय पारंपरिक मछुआरों के परिवारों के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता का नाम बदल दिया गया है।
ट्राउट पशुधन बीमा योजना: वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान, राज्य सरकार ने इस नई योजना की शुरुआत की है इसका उद्देश्य राज्य के ठंडे पानी के मछली किसानों के पशुधन को बीमा कवर प्रदान करना है। प्रीमियम राशि राज्य सरकार और लाभार्थी के बीच क्रमशः 65:35 के अनुपात में साझा की जाती है। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के माध्यम से व्यापक बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है। 2021-22 के दौरान, सरकार ने 15 ट्राउट किसानों द्वारा निर्मित 24 ट्राउट इकाइयों का बीमा किया है। प्रत्येक ट्राउट इकाई को ₹19,175 के प्रीमियम के साथ प्रति वर्ष ₹2.50 लाख की अधिकतम इनपुट लागत के लिए कवर किया जाता है। 1,244 रेसवे/इकाइयों के साथ 625 ट्राउट उत्पादक हैं जिन्हें इस पहल से सीधा लाभ मिलता है।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना: भारत सरकार ने यह योजना शुरू की है और राज्य सरकार इस योजना को लागू कर रही है 2021-22. इस योजना के तहत, राज्य सरकार ने भारत सरकार को वित्त पोषण अनुमोदन के लिए ₹4,950.31 लाख की राशि की विभिन्न परियोजनाएं प्रस्तुत की हैं। इस राशि में से ₹2,879.53 लाख केंद्र का हिस्सा, ₹331.15 लाख राज्य का हिस्सा और ₹1,739.63 लाख लाभार्थियों का हिस्सा है। चालू वर्ष के लिए अभी भी भारत सरकार से अनुमोदन की प्रतीक्षा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान दिसम्बर, 2021 तक मत्स्य पालन क्षेत्र की उपलब्धियाँ एवं 2021-22 के प्रस्तावित लक्ष्य तालिका 7.16 में दर्शाये गये हैं।
हिमाचल प्रदेश में वन 37,947 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। किमी. और राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68.16 प्रतिशत है। हालाँकि, वर्तमान में कुल भौगोलिक क्षेत्रों का 28.60 प्रतिशत भाग वन आवरण का समर्थन करता है। हिमाचल प्रदेश वन नीति का मुख्य उद्देश्य वनों का समुचित उपयोग तथा उनका संरक्षण एवं विस्तार है। वन विभाग का लक्ष्य सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने के लिए 2030 तक राज्य में वन क्षेत्र को उसके भौगोलिक क्षेत्र के 30 प्रतिशत तक बढ़ाना है। वन विभाग द्वारा शुरू किए गए योजना कार्यक्रम का उद्देश्य इन नीतिगत प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है। कुछ महत्वपूर्ण योजना कार्यक्रम गतिविधियाँ इस प्रकार हैं:
प्रायोगिक सिल्विकल्चरल फेलिंग/सहायक सिल्विकल्चर संचालन: हिमाचल प्रदेश की वन संपदा ₹1.50 लाख करोड़ से अधिक अनुमानित है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को तीन वनों की वन-पालन की अनुमति दे दी है प्रजातियाँ, खैर, चील और साल, प्रायोगिक आधार पर तीन रेंजों में - नूरपुर वन प्रभाग की नूरपुर रेंज, बिलासपुर वन प्रभाग की भराड़ी रेंज और पांवटा वन प्रभाग की पांवटा रेंज। पेड़ों की कटाई 2018-19 के दौरान की गई थी और चालू वित्तीय वर्ष के दौरान सुप्रीम कोर्ट की निगरानी समिति की सिफारिशों के अनुसार क्षेत्रों में बाड़ लगाना, वृक्षारोपण, पुनर्स्थापन किया जा रहा है।
नई योजनाएं: स्थानीय समुदायों, छात्रों और आम जनता को वनों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका, टिकाऊ फसल प्रबंधन और मूल्य संवर्धन के लिए निम्नलिखित नई योजनाएं शुरू की गई हैं:
1) सामुदायिक वन संवर्धन योजना: इस योजना का मुख्य उद्देश्य वृक्षारोपण के माध्यम से वनों की गुणवत्ता में सुधार के माध्यम से वनों के संरक्षण और विकास में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। और वन क्षेत्र को बढ़ाना। यह योजना मौजूदा संयुक्त वन प्रबंधन समिति/ग्राम वन विकास समितियों (जेएफएमसी/वीएफडीएस) के माध्यम से कार्यान्वित की जाएगी। वर्ष 2018-19 के दौरान 20 स्थलों का चयन किया गया और 2021-22 के लिए 11 नये स्थल आरक्षित किये गये हैं। चालू वर्ष के दौरान, सभी 31 चयनित स्थलों पर वृक्षारोपण और मृदा संरक्षण गतिविधियाँ की जाएंगी (जेएफएमसी/वीएफडीएस) अनुमोदित माइक्रो प्लान के अनुसार।
2) वन समृद्धि जन समृद्धि योजना: यह योजना स्थानीय लोगों को सशक्त बनाने के लिए सक्रिय सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से राज्य में गैर-लकड़ी वन उत्पाद (एनटीएफपी) संसाधन आधार को मजबूत करने के लिए शुरू की गई है। ग्रामीण समुदाय अपनी आय बढ़ाने के लिए एनटीएफपी को इकट्ठा करें, उसका संरक्षण करें और उसका विपणन करें। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2021-22 के दौरान ₹250.00 लाख का परिव्यय रखा गया है।
3) एक बूटा बेटी के नाम: लोगों को बेटियों के महत्व और वन संरक्षण के बारे में जागरूक करने के लिए, 2019-20 के दौरान एक नई योजना "एक बूटा बेटी के नाम" शुरू की गई है। ऐसा माना जाता है कि एक बालिका के नाम पर एक पौधा लगाने और प्रत्येक पौधे को एक पेड़ के रूप में विकसित करने के प्रयास से, समुदायों को बालिकाओं के अधिकारों के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होने के लिए संवेदनशील बनाया जाएगा जिससे उनकी पूरी क्षमता का एहसास हो सके। राज्य में कहीं भी लड़की के जन्म पर, वन विभाग मजबूत और स्वस्थ लंबाई बढ़ाने के लिए रोपण किट के साथ-साथ पहचानी गई प्रजातियों के 5 पौधे उपहार में देगा। पौधे। इन्हें लड़की के माता-पिता द्वारा मानसून या सर्दी के मौसम में या तो अपने घर की भूमि या वन भूमि पर लगाया जाता है। वर्ष 202122 के दौरान इस योजना के तहत ₹651.00 लाख का प्रावधान रखा गया है।
4) स्वरिम वाटिका: हिमाचल प्रदेश 25 जनवरी, 2021 से पुराण रजतत्व दिवस की स्वर्ण जयंती मना रहा है। यह कार्यक्रम एक वर्ष तक चलेगा। इस शुभ अवसर पर, वन विभाग ने वर्ष 2021-22 के दौरान 68 स्वरिम वाटिका का निर्माण किया। इसका उद्देश्य लोगों को वनों के महत्व और सुरक्षा के बारे में जागरूक करना, जागरूकता बढ़ाना और बढ़ाना है शहरी क्षेत्रों में वन आवरण और लोगों के लिए मनोरंजन स्थल स्थापित करना।
5) जल भंडारन योजना: वर्ष 2021-22 में इस योजना के तहत बांधों के निर्माण के लिए 120 स्थानों की पहचान की गई है, जिनमें जल संरक्षण किया जा सके, इस कार्य के लिए वर्ष 2021-22 में लगभग ₹25 करोड़ की धनराशि रखी गई है।
हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु प्रूफिंग परियोजना (KfW सहायता प्राप्त): केएफडब्ल्यू बैंक (क्रेडिट इंस्टीट्यूट फॉर रिकंस्ट्रक्शन), जर्मनी की सहायता से हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु प्रूफिंग परियोजना 7 साल की अवधि के लिए राज्य के चंबा और कांगड़ा जिलों में कार्यान्वित की जा रही है। 2015-16. परियोजना का परिव्यय ₹308.45 करोड़ है। परियोजना का वित्त पोषण पैटर्न 85.10 प्रतिशत ऋण और 14.90 प्रतिशत राज्य हिस्सेदारी है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश में चयनित वन पारिस्थितिकी प्रणालियों का पुनर्वास, संरक्षण और टिकाऊ उपयोग है, ताकि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वन पारिस्थितिकी प्रणालियों की लचीलापन को बढ़ाया और सुरक्षित किया जा सके और वन आधारित उत्पादों और अन्य सेवाओं के प्रवाह को सुनिश्चित किया जा सके, जिससे वनों पर निर्भर लोगों को लाभ हो। समुदाय. लंबे समय में यह जलवायु परिवर्तन के लिए वन पारिस्थितिकी तंत्र की अनुकूली क्षमता को मजबूत करने, जैव विविधता की सुरक्षा, जलग्रहण क्षेत्रों के स्थिरीकरण, प्राकृतिक संसाधन आधार के संरक्षण में योगदान देगा और साथ ही हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए बेहतर आजीविका प्रदान करेगा। चालू वित्तीय वर्ष के लिए ₹55.00 करोड़ का प्रावधान रखा गया है जिसमें से ₹24.20 करोड़ व्यय किये जा चुके हैं।
हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना: एक नई परियोजना, जिसका नाम है "हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) की सहायता से 8 वर्षों (2018-2019 से 2025-26) के लिए ₹800 करोड़ की प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना शुरू की गई है। परियोजना का वित्त पोषण पैटर्न 80 प्रतिशत ऋण और 20 प्रतिशत राज्य हिस्सेदारी है। यह परियोजना बिलासपुर, कुल्लू, मंडी, शिमला, किन्नौर, लाहौल और स्पीति जिलों और चंबा जिलों के पांगी और भरमौर उप-मंडलों के जनजातीय क्षेत्रों में लागू की जाएगी, परियोजना का मुख्यालय कुल्लू/शमशी, जिला कुल्लू और क्षेत्रीय कार्यालय रामपुर, जिला में होगा। शिमला. परियोजना का उद्देश्य वन और पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना और वैज्ञानिक और आधुनिक वन प्रबंधन प्रथाओं का उपयोग करके वन आवरण, घनत्व और उत्पादक क्षमता को बढ़ाकर वन और चरागाह पर निर्भर समुदायों की आजीविका में सुधार करना है; जैव विविधता और वन पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण को बढ़ाना और ग्रामीण समुदायों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करके वन संसाधनों पर दबाव/तनाव को कम करना। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान, सरकार ने इस परियोजना के तहत ₹45.00 करोड़ प्रदान किए हैं और 31.12.2021 तक ₹29.50 करोड़ का व्यय किया गया है।
स्रोत स्थिरता और जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि के लिए विश्व बैंक सहायता प्राप्त एकीकृत विकास परियोजना: विश्व बैंक ने ₹650.00 करोड़ की लागत से इस नई परियोजना (स्रोत स्थिरता और जलवायु लचीला वर्षा आधारित कृषि) का समर्थन करने पर सहमति व्यक्त की। परियोजना का वित्त पोषण पैटर्न 80 प्रतिशत ऋण और 20 प्रतिशत राज्य का हिस्सा है। परियोजना की अवधि 7 वर्ष है। यह परियोजना राज्य के विभिन्न जलक्षेत्रों में फैले शिवालिक और मिड हिल्स कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 900 ग्राम पंचायतों में लागू की जाएगी। इस परियोजना के मुख्य उद्देश्यों में लगभग 2 लाख हेक्टेयर गैर-कृषि योग्य और 20,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का व्यापक उपचार शामिल है; और परियोजना क्षेत्र में जल उत्पादकता/दक्षता, दूध उत्पादन और आजीविका में सुधार। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान इस परियोजना के तहत ₹79.99 करोड़ के परिव्यय को मंजूरी दी गई है, जिसमें से ₹41.57 करोड़ का व्यय 31.12.2021 तक किया जा चुका है।
पर्यावरण वानिकी और वन्य जीवन: हिमाचल प्रदेश बहुत प्रभावशाली, विविध और अद्वितीय जीवों का घर है - जिनमें से कई दुर्लभ हैं। इस योजना का उद्देश्य पर्यावरण और वन्य जीवन की सुरक्षा, सुधार, वन्यजीव अभयारण्यों/राष्ट्रीय उद्यानों का विकास और वन्यजीव आवास में सुधार करना है ताकि विलुप्त होने का सामना कर रहे पक्षियों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान की जा सके। वर्ष 2021-22 के लिए ₹31.98 करोड़ का परिव्यय स्वीकृत किया गया है।

8.जल संसाधन प्रबन्धन तथा पर्यावरण

वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (एफएचटीसी) प्रदान करने के उद्देश्य से, भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त, 2019 को जल जीवन मिशन शुरू किया गया है। इस मिशन को लागू करने के लिए `3.5 लाख करोड़ का प्रस्ताव किया गया है देश भर में। कार्यक्रम नियमित आधार पर और निर्धारित गुणवत्ता पर पर्याप्त मात्रा (प्रति व्यक्ति प्रति दिन 55 लीटर) में घर पर सेवा वितरण प्रणाली पर केंद्रित है। हिमाचल प्रदेश में, जुलाई, 2022 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को इस योजना में शामिल करने का लक्ष्य है। 17.28 लाख परिवारों में से, 15.80 लाख को दिसंबर, 2021 तक एफएचटीसी प्रदान किया गया था। हिमाचल प्रदेश में, 91 प्रतिशत परिवारों को प्रदान किया गया है। 45.50 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले घरेलू कनेक्शन के साथ। इससे हिमाचल देश में 8वें स्थान पर है।
भारत सरकार द्वारा चयनित तृतीय पक्ष निरीक्षण एजेंसी द्वारा किये गये कार्यात्मक मूल्यांकन में उपभोक्ता स्तर पर उपलब्ध पेयजल की मात्रा एवं गुणवत्ता को विभिन्न मापदण्डों पर जांचा गया, जिसमें हिमाचल प्रदेश सर्वश्रेष्ठ पाया गया है। समग्र कार्यप्रणाली में राज्य देश में अग्रणी है और राज्य का समग्र प्रदर्शन उन राज्यों से भी बेहतर है, जिनका टेपिंग प्रतिशत हिमाचल प्रदेश से अधिक है।
आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर और ग्रामीण पेयजल स्वच्छता समिति को फील्ड टेस्ट किट के माध्यम से जल गुणवत्ता परीक्षण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पारदर्शिता लाने के लिए राज्य की सभी जल गुणवत्ता प्रयोगशालाएँ आम जनता के लिए खोल दी गई हैं, जहाँ किफायती दरों पर पानी के नमूनों का परीक्षण किया जाता है।
शहरी जल आपूर्ति योजनाएं: हिमाचल प्रदेश में 61 कस्बे/शहरी स्थानीय निकाय (ULB) हैं। 59 कस्बों/यूएलबी की जलापूर्ति योजनाएं जल शक्ति विभाग के अधीन हैं, शिमला शहर शिमला जल प्रबंधन बोर्ड के अधीन है और परवाणू हिमुडा के अधीन है। शिमला और परवाणू शहर सहित 48 शहरों की जलापूर्ति योजनाओं का सुधार अब पूरा हो गया है। रिवालसर और जवाली पर काम चल रहा है।

सीवरेज योजना की स्थिति: हिमाचल प्रदेश के 61 कस्बों/यूएलबी में से 60 कस्बों/यूएलबी की सीवरेज योजनाएं जल शक्ति विभाग के अधीन हैं और शिमला शहर शिमला जल प्रबंधन बोर्ड के अधीन है। जल शक्ति विभाग ने 32 कस्बों में सीवरेज योजनाएं पूरी कर ली हैं और पूरे राज्य में 85.61 एमएलडी की उपचार क्षमता के साथ 62 सीवेज उपचार संयंत्र स्थापित किए हैं, जिसके मुकाबले वर्तमान में 56.05 एमएलडी (65.47 प्रतिशत) का उपचार किया जा रहा है। वर्तमान में, 19 कस्बों के लिए सीवरेज योजनाओं का निर्माण/उन्नयन कार्य प्रगति पर है और शेष 18 कस्बों के लिए प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं।
कमांड क्षेत्र विकास: वर्ष 2021-22 के दौरान, हिमाचल सरकार द्वारा `83.16 करोड़ प्रदान किए गए हैं प्रदेश जिसमें हिमाचल प्रदेश कमांड क्षेत्र के लिए `83.10 करोड़ शामिल हैं लघु सिंचाई योजनाओं में विकास (HIMCAD) गतिविधियाँ निर्मित और उपयोग की गई क्षमता के अंतर को पाटने के लिए हैं और शेष राशि केंद्रीय हिस्सेदारी सहित राज्य में चल रही प्रमुख / मध्यम सिंचाई और लघु सिंचाई योजनाओं के लिए है। कमांड एरिया डेवलपमेंट (सीएडी) गतिविधियां प्रदान करने के लिए 3,640 हेक्टेयर खेती योग्य कमांड एरिया (सीसीए) का भौतिक लक्ष्य है, जिसमें से 1,735.77 हेक्टेयर को सितंबर, 2021 तक `13.57 करोड़ के व्यय के साथ नवंबर 2021 तक हासिल कर लिया गया है। भारत ने 2016-17 से पूर्ण/चालू सिंचाई परियोजनाओं में सीएडी गतिविधियां प्रदान करने के लिए सिंचाई अंतर पाटने के लिए प्रोत्साहन योजना (आईएसबीआईजी) शुरू की है और तदनुसार कार्यक्रम के तहत कमांड क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन (सीएडीडब्ल्यूएम) की 6 परियोजनाओं पर विचार किया गया है। . इन 6 परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) इस योजना के तहत शामिल करने के लिए भारत सरकार को प्रस्तुत की गई है।
हैंडपंप कार्यक्रम: सरकार के पास पानी की कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों में हैंडपंप उपलब्ध कराने के लिए एक सक्रिय कार्यक्रम है। गर्मी के मौसम। जनवरी, 2022 तक कुल 40,624 हैंडपंप स्थापित किए गए हैं। सरकार ने व्यक्तिगत लाभार्थियों को 75 प्रतिशत लागत पर हैंडपंप उपलब्ध कराने के लिए एक नई योजना की घोषणा की है।
कृषि उत्पादन प्रक्रिया में फसलों को सिंचाई के पानी की पर्याप्त और समय पर आपूर्ति एक पूर्व-आवश्यकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वर्षा कम और अनियमित होती है। हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 55.67 लाख हेक्टेयर में से केवल 5.83 लाख हेक्टेयर पर ही खेती की जाती है। यह अनुमान लगाया गया है कि राज्य की सिंचाई क्षमता कितनी है लगभग 3.35 लाख हेक्टेयर, इसमें से 0.50 लाख हेक्टेयर को प्रमुख और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से और शेष 2.85 लाख हेक्टेयर को लघु सिंचाई योजनाओं के माध्यम से सिंचाई के अंतर्गत लाया जा सकता है। नवंबर 2021 तक कुल 2.92 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के अंतर्गत लाया गया है।
प्रमुख सिंचाई: राज्य की एकमात्र प्रमुख सिंचाई परियोजना कांगड़ा जिले में शाहनहर परियोजना है। परियोजना पूरी हो चुकी है और 15,287 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। कमांड एरिया डेवलपमेंट (सीएडी) कार्य प्रगति पर हैं और 3,640 हेक्टेयर लक्ष्य के मुकाबले नवंबर, 2021 तक 15,287 हेक्टेयर में से 9998.50 हेक्टेयर भूमि को सीएडी गतिविधियों के तहत लाया गया है।
मध्यम सिंचाई: मध्यम सिंचाई परियोजना परिवर्तक क्षेत्र बिलासपुर 2350 हेक्टेयर, सिद्धाथा कांगड़ा, 3,150 हेक्टेयर और बल्ह घाटी बायां बैंक 2,780 हेक्टेयर का काम पूरा हो चुका है। सीएडी सिद्धाथा का कार्य प्रगति पर है और नवंबर 2021 तक 2,705.10 हेक्टेयर भूमि को सीएडी गतिविधियों के तहत लाया गया है। वर्तमान में मध्यम सिंचाई परियोजना फिन्ना सिंह खेती वाले कमांड क्षेत्र (4,025 हेक्टेयर) और जिला हमीरपुर में नादौन क्षेत्र (2,980 हेक्टेयर) का काम चल रहा है। कार्य प्रगति पर है।
लघु सिंचाई: 2021-22 के दौरान राज्य क्षेत्र में `315.24 करोड़ का बजट प्रावधान है 8,000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए नवंबर, 2021 तक 5,653.62 हेक्टेयर क्षेत्र को सितंबर, 2021 तक `18.59 करोड़ के व्यय के साथ कवर किया गया है।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन
राज्य सरकार ने समय-समय पर अधिसूचनाओं के माध्यम से प्लास्टिक वस्तुओं के उपयोग और कूड़ा-कचरा फैलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। हिमाचल प्रदेश गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरा (नियंत्रण) अधिनियम, 1995. वर्ष 2021-22 में 385 उल्लंघनकर्ताओं से `3.43 लाख का जुर्माना वसूल किया गया है। इस अधिनियम के तहत, हिमाचल प्रदेश में पॉलिथीन बैग, प्लास्टिक और थर्माकोल कटलरी, एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के चम्मच, कटोरे, कटोरियां, स्टिरिंग स्टिक, कांटे, चाकू, स्ट्रॉ पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। वर्ष 2021-22 में गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक कचरे के लिए बाय-बैक नीति के तहत, राज्य में घरों और 804 पंजीकृत कूड़ा बीनने वालों को 1.00 लाख किलोग्राम निर्दिष्ट प्लास्टिक कचरे की खरीद पर `75 प्रति किलोग्राम पर `42.17 लाख का भुगतान किया गया है। . राज्य सरकार बायोडिग्रेडेबल पत्तलों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। और पौधों की पत्तियों से बने डोनस (पत्ती के कटोरे)। पारंपरिक पत्तल और दोना बनाने में शामिल कारीगरों/गरीब परिवारों को समर्थन देने के लिए कॉर्पोरेट पर्यावरणीय जिम्मेदारी (सीईआर) के तहत मशीनें उपलब्ध कराई जा रही हैं। दिसंबर, 2021 तक सीईआर के तहत 100 पत्तल एवं दोना बनाने की मशीनें उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा, सभी यूएलबी को प्लास्टिक अपशिष्ट श्रेडर और कॉम्पेक्टर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। दिसंबर, 2021 तक सीईआर के तहत 200 से अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट श्रेडर और कॉम्पेक्टर का प्रावधान किया गया है।
नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग हिमालयन के तहत भारत सरकार के पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से हिमाचल प्रदेश के पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में जलवायु परिवर्तन पर एक राज्य ज्ञान कक्ष (एचपीकेसीसीसी चरण- I) स्थापित किया गया है। पारिस्थितिकी तंत्र (एनएमएसएचई)। चरण- II में एचपीकेसीसीसी के तहत गतिविधियों को लागू करने के लिए भारत सरकार से `1.12 करोड़ की धनराशि जुटाई गई है। ब्यास नदी बेसिन का जलवायु परिवर्तन भेद्यता मूल्यांकन पूरा हो चुका है और किन्नौर, शिमला, कुल्लू, सोलन, मंडी और बिलासपुर की 1,800 पंचायतों और 12,500 गांवों को कवर करने वाले सतलुज नदी बेसिन का एक और अध्ययन `88.50 लाख के वित्तीय परिव्यय के साथ शुरू किया गया है। इस पहल के एक भाग के रूप में किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों के लिए सीसी भेद्यता मूल्यांकन और अनुकूलन योजनाएं तैयार की गई हैं।
HP जलवायु परिवर्तन कॉन्क्लेव - 2021 - हिमालय के लिए "सुरक्षित हिमालय-सुरक्षित भारत" अधिनियम: करने के लिए हिमालयी क्षेत्र के साथ-साथ निचले इलाकों में पड़ोसी राज्यों सहित राज्य में बहु-हितधारक भागीदारी को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और आपदा जोखिम में कमी से जुड़ी चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए, हिमाचल प्रदेश सरकार ने दो दिवसीय सम्मेलन- "सुरक्षित हिमालय-सुरक्षित" का आयोजन किया। भारत” 18 से 19 दिसंबर, 2021 को शिमला में, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित जोखिमों और कमजोरियों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करेगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए एक संकल्प बनाया गया है।
राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना 2021-2030: सरकार ने संशोधित राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना संस्करण तैयार और अपनाया है- द्वितीय 2021-2030। मुख्यमंत्री ने 18 दिसंबर, 2021 को शिमला से कार्य योजना जारी की। यह दस्तावेज़ विभिन्न हितधारकों के लिए रणनीतिक कार्य बिंदु प्रदान करेगा।

ग्रामीण भारत में जलवायु अनुकूलन और वित्त (सी.ए.एफ.आर.आई.) परियोजना: हिमाचल प्रदेश SDG विजन 2030 के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों और महिला किसान उत्पादक जैसे कमजोर लक्ष्य समूहों पर विशेष ध्यान देने के साथ जलवायु परिवर्तन पर लक्ष्य और राज्य कार्य योजना संगठन (एफपीओ) और उनके संघ, ग्रामीण भारत में जलवायु अनुकूलन और वित्त (सीएएफआरआई) परियोजना राज्य में शुरू की गई थी।
CAFRI, भारत सरकार के MoEF&CC के साथ द्विपक्षीय कार्यक्रम के तहत राज्य के लिए GIZ इंडिया की प्रतिबद्धता की एक निरंतरता है, जो शासन के विभिन्न स्तरों पर क्षमता विकास और योजना, कार्यान्वयन, वित्तपोषण, निगरानी अनुकूलन पहल से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के साथ पूरक है।
जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण (एचपीकेएनसीसी और डीआरआर) पर ज्ञान नेटवर्क की स्थापना: एसडीजी को लागू करना -13 विजन 2030 का लक्ष्य राज्य सरकार ने राज्य में जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण (एचपीकेएनसीसी और डीआरआर) पर ज्ञान नेटवर्क स्थापित करने का निर्णय लिया है। यह ज्ञान नेटवर्क जलवायु परिवर्तन, सामरिक ज्ञान और सूचना के लिए राज्य मिशन में उल्लिखित उद्देश्यों का समर्थन करने के लिए राज्य और क्षेत्रीय स्तर पर नीति निर्माताओं, अनुकूलन शोधकर्ताओं, निजी और अन्य गैर-सरकारी क्षेत्रों को एक साथ लाएगा।
डिजिटल जलवायु परिवर्तन संदर्भ केंद्र की स्थापना: डिजिटल जलवायु परिवर्तन संदर्भ केंद्र की स्थापना के लिए आधारशिला रखी गई है पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में भारत सरकार और जीआईजेड के सहयोग से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन और शमन के लिए काम 31 मार्च, 2022 तक पूरा होने की संभावना है।
जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन निधि , भारत सरकार के तहत स्वीकृत परियोजना का कार्यान्वयन: इस परियोजना के तहत सिरमौर जिले के तीन विकास खंडों के सूखाग्रस्त क्षेत्रों को `20.00 करोड़ के परिव्यय से कवर किया गया है। ग्रामीण महिलाओं सहित ग्रामीण छोटे और सीमांत किसानों को आवश्यक सामाजिक इंजीनियरिंग और क्षमता निर्माण के साथ-साथ क्लाइमेट स्मार्ट फार्मिंग टेक्नोलॉजीज का एक पैकेज प्रदान किया जा रहा है, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार और लचीलापन बढ़ाने के लिए आजीविका के विकल्पों में वृद्धि होती है। इस परियोजना के तहत निम्नलिखित लक्ष्य हासिल किए गए हैं:
1) 3 प्रमुख लिफ्ट सिंचाई योजनाएं, 1 सौर ऊर्जा आधारित एलआईएस, 35 लघु सिंचाई योजनाएं, 21 छोटे तालाब और 23 कुहल (सिंचाई चैनल) का निर्माण और कार्यान्वयन किया गया।
2) हितधारकों के बीच 7 प्रशिक्षण मॉड्यूल (क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी में) विकसित और वितरित किए गए।
3) सभी 12 जिलों (बागवानी और कृषि) के 332 विस्तार अधिकारियों का प्रशिक्षण पूरा हुआ। ब्लॉक स्तर (पच्छाद, पौंटा साहिब और संगड़ाह) पर कुल 6 प्रशिक्षण आयोजित किए गए हैं और 240 प्रमुख किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है।
4) 696 प्रशिक्षण आयोजित किए गए और 30,880 किसानों को जलवायु परिवर्तन अपनाने पर प्रशिक्षित किया गया।
5) तीन ब्लॉकों में 3 किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) पंजीकृत।
6) किसानों के लिए बीमा योजनाओं के अनुरूप आश्वासन कोष बनाया गया।
7) सब्जियों के लिए नमी प्रबंधन- ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रावधान - ड्रिप सिंचाई के तहत 4.1 हेक्टेयर और स्प्रिंकलर सिंचाई के तहत 2.68 हेक्टेयर कवर किया गया।
8) मक्का और दालों की अंतर-फसल को बढ़ावा देना और देर से लेकिन अधिक नमी की स्थिति में चावल गहनता (एसआरआई) खेती की प्रणाली - 787 क्विंटल मक्का, गेहूं, सरसों और सब्जियों के बीज वितरित किए गए।
9) 243.74 क्विंटल हरा चारा (ज्वार और बाजरा), 40 क्विंटल जई और 35 क्विंटल बरसीम, 22.78 क्विंटल मक्का, 6.60 क्विंटल अदरक वितरित किया गया। 20 क्विंटल लहसुन वितरित 4.32 हे. फलों की शीघ्र पकने वाली किस्मों के अंतर्गत (अनार, कीवी, स्ट्रॉबेरी, अमरूद, लीची

सीमांत कृषकों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में क्षमता निर्माण: भारत सरकार ने "क्षमता निर्माण" नामक एक परियोजना को मंजूरी दी है टिकाऊ आजीविका सुनिश्चित करने के लिए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए जैव प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप पर हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में सीमांत किसानों की "सराज ब्लॉक, जिला मंडी की लांबा थाच पंचायत के लिए"। भारत सरकार ने क्षमता निर्माण के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए `59.00 लाख स्वीकृत किए हैं।
हिमाचल प्रदेश पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार योजना पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की नियमित योजनाओं में से एक है। वर्ष 2021-22 के दौरान उपयोग के लिए `25.00 लाख निर्धारित किए गए हैं और विभिन्न क्षेत्रों में पुरस्कारों के लिए 24 आवेदन प्राप्त हुए हैं।
मॉडल इको गांवों का निर्माण: पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से राज्य सरकार मॉडल इको को लागू कर रही है राज्य में ग्राम योजना. यह योजना कम प्रभाव वाली जीवनशैली विकसित करने के परिप्रेक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर रही है ताकि योजना के लॉन्च से आधार मूल्यांकन के 50% तक "पारिस्थितिक पदचिह्न" को कम किया जा सके। इस योजना के तहत, मॉडल इको विलेज योजना को अपनाने के लिए चिन्हित गांव द्वारा 5 वर्षों की अवधि में 50.00 लाख रुपये का उपयोग किया जाएगा। अब तक इस योजना के तहत 15 गांवों को शामिल किया गया है दिसंबर, 2021 तक इस योजना के तहत 1.84 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया है।
अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं: अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए, "एच.पी. विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं 2021-22 "शैक्षणिक संस्थानों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं को विकसित करने के लिए वित्त पोषित किया जा रहा है और राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अन्य मान्यता प्राप्त अनुसंधान एवं विकास संस्थान। दिसंबर, 2021 तक योजना के तहत 21.80 लाख रुपये खर्च किये गये हैं।
प्रदर्शन सूक्ष्म नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं की स्थापना: राज्य सरकार ने स्थापना के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है 10 प्रदर्शन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाएं राज्य में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में। लगभग 0.5 टन से 5 टन कचरे का निपटान करने की क्षमता वाली विशेषज्ञ एजेंसियों के माध्यम से नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाएं 10 अलग-अलग स्थानों पर स्थापित की जा रही हैं। पीपीपी मोड पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हिमाचल प्रदेश में स्थान। भारत सरकार के MoEF&CC द्वारा NMHS (नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज) के तहत तकनीकी स्टाफ के लिए 4.48 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। कार्यक्रम को लागू करने में मदद के लिए प्रत्येक यूएलबी में तैनात किया गया है।

9.उद्योग और खनन

हिमाचल प्रदेश ने पिछले कुछ वर्षों में औद्योगीकरण में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। राज्य में एक सुविकसित उद्योग क्षेत्र है जिसका सकल राज्य घरेलू उत्पाद में औसत योगदान रहा है (जीएसडीपी) पिछले 4 वर्षों के दौरान लगभग 30 प्रतिशत। राज्य फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, हल्के इंजीनियरिंग सामान, स्वास्थ्य, बिजली, दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी के लिए एक उभरता हुआ विनिर्माण केंद्र है। राज्य ने जल विद्युत परियोजनाओं में निवेश के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी पर जोर दिया है। राज्य सरकार ने हाल ही में राज्य में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपायों की घोषणा की है। राज्य में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) को बढ़ावा देने के लिए, राज्य सरकार ने शीघ्र मंजूरी के लिए ऑनलाइन आवेदन दाखिल करने की घोषणा की है।
इसके अलावा, राज्य में वर्तमान सरकार ने महत्वपूर्ण पहल की है हाल के दिनों में सुधारों ने राज्य को उच्च विकास पथ पर ला दिया है। राज्य सरकार ने औद्योगिक नीति 2004 में संशोधन किया और "हिमाचल प्रदेश औद्योगिक निवेश विकास नीति 2019" अधिसूचित की। टिकाऊ समावेशी के लिए अनुकूल वातावरण बनाकर उद्योग को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए "हिमाचल प्रदेश में निवेश प्रोत्साहन के लिए प्रोत्साहन, रियायतें और सुविधाएं देने के संबंध में नियम 2019" ऐसा विकास जो आय और रोजगार के अवसर पैदा करता है, और कौशल विकास को प्रोत्साहित करता है जिससे हिमाचल प्रदेश भारत के एक मॉडल औद्योगिक पहाड़ी राज्य के रूप में स्थापित होता है।
औद्योगिक में विज़न स्टेटमेंट नीति 2019 है,“आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों के पैमाने को बढ़ाने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना; हिमाचल को निवेश के लिए पसंदीदा गंतव्य में से एक बनाने के लिए औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों का सतत विकास और संतुलित विकास सुनिश्चित करें”
औद्योगिक क्षेत्रों/संपदाओं का विकास: उच्च गुणवत्ता वाले औद्योगिक बुनियादी ढांचे का निर्माण और रखरखाव एक प्रमुख पूर्व-आवश्यकता है औद्योगिक विकास के लिए. उद्योग विभाग ने प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिये 62 औद्योगिक क्षेत्र एवं संपदा विकसित किये हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान प्रदेश सरकार ने जिला ऊना के चक गांव को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया है।
राज्य सरकार नए व्यवसाय शुरू करने और संचालन के लिए सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए इसे और अधिक अनुकूल बनाने के उद्देश्य से व्यापार माहौल में सुधार के लिए कई कदम उठा रही है। राज्य सरकार ने संख्या लागू कर दी है सुधारों का लक्ष्य कारोबारी माहौल में सुधार लाना है और इसे व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। हिमाचल ने शासन ढांचे के पूरक के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के मिशन पर काम शुरू किया है।
हिमाचल प्रदेश ने औद्योगिक विकास के लिए सूचना और पारदर्शिता तक पहुंच बढ़ाने के अलावा उद्योग को एक स्थिर, पूर्वानुमानित और निष्पक्ष खेल का मैदान प्रदान करने के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को अपने सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में अपनाया है। भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा घोषित रैंकिंग में हिमाचल ने 9 अंकों की लंबी छलांग लगाई है, यानी 16वें स्थान से 7वें स्थान पर पहुंच गया है। 05 सितंबर 2020 को। इसने देश के "पहाड़ी राज्यों में हिमाचल को शीर्ष रैंकिंग वाला राज्य" बना दिया। साथ ही, इस रैंकिंग में डीपीआईआईटी, भारत सरकार द्वारा हिमाचल को "2015 के बाद से शीर्ष सुधारकर्ता" के रूप में मान्यता दी गई थी।
सिंगल विंडो सिस्टम (एसडब्ल्यूएस) को पूरी तरह से चालू कर दिया गया है और उद्योग से संबंधित सभी सेवाओं को सिंगल के साथ एकीकृत किया गया है। उद्योग विभाग का विंडो पोर्टल जो निवेशक के साथ वन स्टॉप इंटरफेस के रूप में कार्य करेगा।
नियामक अनुपालन बोझ को न्यूनतम करना: "सहजता" में सुधार के देश के लक्ष्यों को साकार करने के लिए एक प्रमुख प्रयास में जीवन जीने में आसानी” और “व्यवसाय करने में आसानी”, डीपीआईआईटी ने पूरे देश में “अनुपालन बोझ कम करना” पहल भी शुरू की है। एमआरसीबी अभ्यास के पीछे मुख्य उद्देश्य सभी बोझिल अनुपालन की पहचान करना/कम करना/समाप्त करना, सरकार से व्यवसाय (जी2बी)/सरकार से नागरिक (जी2सी) के बीच भौतिक संपर्क बिंदुओं को कम करना और सरकार द्वारा सेवाओं की परेशानी मुक्त डिलीवरी प्रदान करना है। राज्य में नियामक अनुपालन को कम करने के लिए राज्य द्वारा की गई पहल के हिस्से के रूप में, सक्रिय उपाय किए गए हैं। उद्योग निदेशालय हिमाचल प्रदेश राज्य में सभी विभागों के साथ कार्यान्वयन और समन्वय करने के लिए एक नोडल एजेंसी है। इस संबंध में राज्य में विभिन्न नियमों को कम करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में अन्य प्रशासनिक सचिवों के साथ एक राज्य टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
प्रधान मंत्री ने सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकीकरण: आत्मनिर्भर भारत के तहत, "प्रधानमंत्री औपचारिकीकरण" असंगठित क्षेत्र के खाद्य आधारित सूक्ष्म उद्यमों की सहायता करने और उन्हें संगठित क्षेत्र में लाने के उद्देश्य से सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम (पीएमएफएमएफपीई) योजना शुरू की गई है। इस योजना को प्रदेश में लागू करने के लिए विभाग सक्रियता से कार्य कर रहा है। 2020-21 के दौरान 185 स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को ₹70.98 लाख की प्रारंभिक पूंजी वितरित की गई। 3 इन्क्यूबेशन सेंटर (एक इन्क्यूबेशन सेंटर डॉ. वाई.एस. परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन में स्थापित किया जाएगा और अन्य दो चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (सीएसकेएचपीकेवी) के तहत पालमपुर में और कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) कुकुमसेरी में स्थापित किए जाएंगे। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार (एमओएफपीआई, भारत सरकार) द्वारा क्रमशः ₹3.72 करोड़, ₹2.59 करोड़ और ₹2.52 करोड़ के अनुदान को मंजूरी दी गई है। इस योजना के तहत क्रेडिट-लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी के लिए 126 व्यक्तिगत आवेदन स्वीकृत किए गए हैं।
पी.एम.ई.जी.पी. केंद्र सरकार का क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी प्रोग्राम है। यह योजना 15 अगस्त, 2008 को दो योजनाओं, प्रधानमंत्री रोजगार योजना और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम के विलय उपरान्त शुरू की गई थी। योजना के अन्तर्गत् सेवा क्षेत्र के तहत विनिर्माण क्षेत्र में परियोजना की अधिकतम लागत क्रमशः ₹25 लाख और ₹10 लाख है। सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार को प्रस्तावित उद्यम इकाई के लिए स्थापना क्षेत्र के आधार पर 15-25 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है और परियोजना लागत में स्वंय का योगदान 10 प्रतिशत निर्धारित है। अन्य श्रेणी के उम्मीदवारों को प्रस्तावित उद्यम इकाई के लिए स्थापना क्षेत्र के आधार पर 25-35 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है और उनका स्वयं का योगदान केवल 5 प्रतिशत निर्धारित है। इस योजना के तहत जनवरी, 2022 तक 725 मामलों के लिए ₹21.45 करोड के ऋण स्वीकृत किए जा चुके हैं, जबकि लक्ष्य 1,451 मामलों का था। पी.एम.ई.जी.पी. के उद्देश्य निम्न हैंः
पीएमईजीपी के उद्देश्य हैं:
नए स्व-रोजगार उद्यमों/परियोजनाओं/सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना .
व्यापक रूप से फैले पारंपरिक कारीगरों/ग्रामीण और शहरी बेरोजगार युवाओं को एक साथ लाना और उन्हें उनके स्थान पर यथासंभव स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना।
देश में पारंपरिक और भावी कारीगरों और ग्रामीण और शहरी बेरोजगार युवाओं के एक बड़े वर्ग को निरंतर और टिकाऊ रोजगार प्रदान करना, ताकि ग्रामीण पलायन को रोकने में मदद करें युवा शहरी क्षेत्रों की ओर.
कारीगरों की मजदूरी अर्जन क्षमता को बढ़ाना और ग्रामीण और शहरी रोजगार की वृद्धि दर में वृद्धि में योगदान देना।
मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना (एमएमएसवाई)
एमएमएसवाई राज्य सरकार के महत्वपूर्ण प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है। यह हिमाचल प्रदेश के युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए राज्य सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। स्वीकृत मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि के साथ "कोविड-19 महामारी" के बावजूद यह योजना बहुत लोकप्रिय हो गई। यह योजना 60 प्रतिशत "फ्रंट लोडिंग" सब्सिडी के प्रावधान के साथ ऑनलाइन उपलब्ध कराई गई है। इस योजना में हाल ही में कृषि, पशुपालन से संबंधित गतिविधियों को जोड़कर संशोधित किया गया है। ग्रामीण युवाओं को लाभ प्रदान करने के लिए रेशम उत्पादन और खनन। महिलाओं के लिए आयु सीमा को 18-45 वर्ष से संशोधित कर 18-50 वर्ष कर दिया गया है, ताकि अधिक महिलाएं योजना का लाभ उठा सकें और बन सकें। आत्म निर्भर। इस योजना की उच्च स्तर पर नियमित निगरानी की जा रही है और यह युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है।
एमएमएसवाई के तहत, दिसंबर, 2021 तक, बैंकों द्वारा 5,000 से अधिक परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। जिससे 15,073 स्वरोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
हिमाचल राज्य खाद्य मिशन: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमएफपीआई) ने एक केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) शुरू की थी ) राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन (एनएमएफपी) राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से कार्यान्वयन के लिए 12वीं योजना (2012-13) के दौरान। इसके अलावा, भारत सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना (2013-17) की शेष अवधि के दौरान मिशन को जारी रखने की मंजूरी दे दी है। एनएमएफपी का मूल उद्देश्य मंत्रालय की योजनाओं के कार्यान्वयन का विकेंद्रीकरण करना है, जिससे राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) की पर्याप्त भागीदारी होगी। यह योजना रही है केंद्रीय सहायता से अलग कर दिया गया और राज्य सरकार द्वारा 2015-16 से इसे जारी रखा गया है। 2021-22 के दौरान, "हिमाचल राज्य खाद्य मिशन" के तहत 2.27 करोड़ की अनुदान सहायता से जुड़ी 14 परियोजनाएं स्वीकृत की गईं।
रेशम उत्पादन उद्योग: रेशम उत्पादन गतिविधियां राज्य के कमजोर वर्ग को अंशकालिक रोजगार प्रदान कर रही हैं। राज्य में रेशम कीट पालन को बढ़ावा देने हेतु, 146 समुदाय आधारित संगठनों और "रेशम साथी" को विभिन्न परियोजनाओं के तहत नामांकित किया गया है।
खनन: पारदर्शिता लाने और समय बचाने के लिए, खनन पट्टे को मंजूरी देने की पूरी प्रक्रिया अब ऑनलाइन है। अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए सख्त प्रावधान किये गये हैं। जुर्माना `25,000 से बढ़ाकर `50,000 कर दिया गया है और कारावास के प्रावधान को संशोधित करके किसी अपराध के लिए 2 साल तक या दोनों का प्रावधान किया गया है। एक ओर सरकार अवैध खनन पर रोक लगाने और नियमों में किए गए सख्त प्रावधानों से अपराधियों को दंडित करने के लिए प्रतिबद्ध है, वहीं दूसरी ओर कानूनी गतिविधियों के लिए खनन सामग्री उपलब्ध कराने के लिए भी हरसंभव प्रयास कर रही है। राज्य के सीमावर्ती जिले कांगड़ा, ऊना, सोलन और सिरमौर अवैध खनन की चपेट में हैं। अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिए खुली/मुफ्त बिक्री के लिए खनिज पट्टे देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। इसके अलावा, जिला ऊना में 5 और जिला सोलन में एक खनन जांच चौकी है अवैध खनन के साथ-साथ ओवरलोडिंग पर रोक लगाने के लिए स्थापित किया गया है। पिछले 04 वर्षों के दौरान विभाग ने 220 से अधिक खनन स्थलों की निविदा-सह-नीलामी पद्धति के माध्यम से नीलामी की है।
हिमाचल प्रदेश में औद्योगीकरण की स्थिति: 31.01.2022 तक, 33,094 उद्यमों ने उद्यम पोर्टल पर पंजीकरण कराया है राज्य में, जिनमें से 31,217 सूक्ष्म, 1,637 लघु और 240 मध्यम उद्यम हैं। इसके अलावा राज्य में 48 बड़ी औद्योगिक इकाइयां भी काम कर रही हैं. विनिर्माण और सेवा उद्यमों सहित उद्यम पोर्टल पर पंजीकरण का जिलावार डेटा तालिका 9.1 में सूचीबद्ध है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एम.एस.एम.ई.) उद्यमिता को बढावा देकर और रोजगार के अवसर पैदा करके राज्य के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। सरकार ने एम.एस.एम.ई. को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। 1 जुलाई, 2020 में करकेे निवेश (विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के लिए समान सीमाएं) और वार्षिक कारोबार का एक समग्र-मानदंड पेश किया, इसका विवरण तालिका 9.2 में दिखाया गया है।
इस संशोधित पहल से एम.एस.एम.ई. कई सरकारी प्रोत्साहनों को खोए बिना उत्पादकता बढ़ा सकते है जिसमें बाजार सहयोग, निर्यात में प्रोत्साहन, सार्वजनिक खरीद में प्राथ्मिकता, सुक्ष्म लघु एवं मध्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एम.एस.एम.ई.-सी.डी.पी.) प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, स्फुर्ति ओर सूचना प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र इत्यादि शामिल है। यह सक्षम वातावरण प्रतिस्पर्धा को बढावा देगा और एम.एस.एम.ई. के बीच शक्तिहीनता को कम करेगा। एम.एस.एम.ई. ईज आफ डूइंग में सुधार के लिए सरकार द्वारा हाल ही में किए गए उपायों में जुलाई, 2020 में नए उद्यम पंजीकरण पोर्टल का शुभारंभ भी शामिल है। इस पोर्टल के अन्तर्गत् पंजीकरण प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन, डिजिटल और कागज रहित और स्व-घोषणा पर आधारित है। नई पंजीकरण प्रक्रिया ने लेनदेन के समय और लागत को कम करके एम.एस.एम.ई. को व्यापार करने में अधिक आसानी हुई है।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग एक वैधानिक निकाय है जिसका गठन अप्रैल 1957 में (द्वितीय पंचवर्षीय योजना के दौरान) भारत सरकार द्वारा संसद के अधिनियम, खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956 के तहत किया गया था। यह भारत में खादी और ग्रामोद्योग के संबंध में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, मंत्रालय के तहत एक शीर्ष संगठन है, जोकि ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और ग्रामोद्योग की योजना, विकास, बढ़ावे देने, संगठित करने की सुविधा प्रदान करता है और जहां तक आवश्यक हो ग्रामीण विकास की अन्य संगठन के साथ मिलकर स्थापना करने में सहायता प्रदान करता है। के.वी.आई.सी. की राज्य शाखा शिमला के अन्तर्गत् प्रदेश में 13 कार्यरत खादी संस्थान हैं। के.वी.आई.सी. से संबद्ध पंजीकृत समितियों और संस्थानों के माध्यम से उत्पादन और बिक्री की स्थिति तालिका 9.3 में दिखाई गई है।
खादी कार्यक्रम के अलावा, केवी.आई.सी., पी.एम.ई.जी.पी. भी चला रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत् खादी और ग्राम औद्योगिक बोर्ड और संबंधित राज्य में उद्योग निदेशालय की भागीदारी के साथ क्रेडिट लिंक्ड बैक एंडेड सब्सिडी योजना पूरे भारत में लागू की जा रही है। स्थानीय सरकारी एजेंसियों और बैंकों के सक्रिय समर्थन से, के.वी.आई.सी. 2009 से पी.एम.ई.जी.पी. योजना को संचालित करते हुए शिक्षित और अशिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है। औद्योगिक इकाइयों की स्थिति, सब्सिडी का उपयोग और रोजगार सृजन तालिका 9.4 में दर्शाया गया है।
के.वी.आई.सी. ने राज्य में पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिए क्लस्टरों की भी पहचान की है। स्फुर्ति कार्यक्रम के अन्तर्गत् सिरमौर मधुमक्खी पालन क्लस्टर की पहचान की गई है और महिला समाज कल्याण समिति, राजगढ, सिरमौर इसकी कार्यान्वयन एजेंसी होगी। ली.बी.इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बी कीपिंग और एग्रो एंटरप्राइज, लुधियाना के तकनीकी सहयोग से, 300 कारीगरों को सम्मिलित किया जाएगा, जिसकी परियोजना लागत ₹255.76 लाख है।
एचपीकेवीआईबी विधान सभा के एक अधिनियम (1966 की संख्या 8) द्वारा बनाई गई एक वैधानिक संस्था है। यह 8 जनवरी, 1968 को अस्तित्व में आया। 1966 के मूल अधिनियम को बाद में वर्ष 1981 और 1987 के दौरान संशोधित किया गया। उद्योग विभाग KVIB का प्रशासनिक विभाग है। बोर्ड के उद्देश्य मोटे तौर पर इस प्रकार हैं:
रोजगार उपलब्ध कराने का सामाजिक उद्देश्य।
बिक्री योग्य वस्तुओं के उत्पादन का आर्थिक उद्देश्य।
गरीबों के बीच आत्मनिर्भरता पैदा करना और एक मजबूत ग्रामीण सामुदायिक भावना का निर्माण करना व्यापक उद्देश्य है।
बोर्ड ग्रामीण कारीगरों उद्यमियों को उनके दरवाजे पर सूक्ष्म ग्रामउद्योग स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करके ग्रामीण औद्योगीकरण और रोजगार सृजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिससे कि स्थानीय रूप से उपलब्ध कच्चे माल और कौशल का उपयोग किया जा सके।
यह राज्य में लघु, मध्यम और बडे पैमाने पर औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को बढावा देने वाली एक प्रमुख एजेंसी है। निगम राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थान के रूप में भी कार्य करता है। हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों के प्रचार और स्थापना के लिए एच.पी.एस.आई.डी.सी. प्रमुख एजेंसी है। यह प्रमुख राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थान भी है और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक ऋण प्रदान करता है। निगम की महत्वपूर्ण गतिविधियाँ हैंः
पूरे हिमाचल प्रदेश में औद्योगीकरण को बढावा देना।
उद्योगों का संवर्धन, विकास और वित्त पोषण।
औद्योगिक बुनियादी ढांचे का विकास।
उद्यमियों को मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करना।
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आर.आई.एन.एल.) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आई.ओ.सी.एल.) जैसे केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पी.एस.यू.) के डीलर के रूप में स्टील और बिटुमेन का विपणन।
औद्योगिक क्षेत्रों सम्पदाओं का विकास।
एचपीएसआईडीसी को दो प्रतिष्ठित परियोजनाओं अर्थात कंद्रोरी, जिला कांगड़ा और पंडोगा, जिला ऊना में अत्याधुनिक औद्योगिक क्षेत्रों के निष्पादन के लिए राज्य कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है। भारत सरकार की संशोधित औद्योगिक अवसंरचना उन्नयन योजना (MIIUS)। परियोजनाओं का परिव्यय ₹275.00 करोड़ है।
एचपीएसआईडीसी को 2021-22 के दौरान ₹1494.95 लाख का सकल लाभ अर्जित करने की संभावना है और ₹480.48 लाख के कराधान और लाभांश का प्रावधान करने के बाद, 2021-22 में ₹1014.47 लाख का शुद्ध लाभ होने की उम्मीद है।
मुख्यमंत्री ने एचपीएसआईडीसी का पोर्टल उन्नति और मोबाइल ऐप लॉन्च किया है। यह पोर्टल उपयोगकर्ताओं को दूसरों के साथ मिलकर काम करने और व्यक्तिगत परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता देगा। वास्तविक समय सहयोग के अलावा, उन्नति पोर्टल उपयोगकर्ताओं को किसी भी स्थान और किसी भी समय दस्तावेजों को साझा करने और उन पर एक साथ काम करने की अनुमति देगा।
हिमाचल प्रदेश इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड (HPIDB): हिमाचल प्रदेश इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए HPIDB की स्थापना की गई है अधिनियम-2001 और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण, निर्माण, रखरखाव और संचालन में राज्य सरकार और सरकारी एजेंसियों के अलावा अन्य व्यक्तियों की भागीदारी के लिए रूपरेखा प्रदान करना और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास के लिए राज्य सरकार की ओर से संसाधन जुटाना। वर्तमान में, इस संगठन के माध्यम से जुटाया गया निवेश राज्य योजना के तहत व्यय के अंतर को पाट रहा है। अब तक, निम्नलिखित क्षेत्रों में विभिन्न विकासात्मक कार्य किए गए हैं।
1) राज्य सड़कें और पुल परियोजनाएं।
2) सिंचाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य परियोजनाएँ।
3) स्वास्थ्य अवसंरचना।
4) विद्युत परियोजनाएँ।
5) शहरी स्थानीय निकाय और अन्य बुनियादी ढाँचे। एचपीआईडीबी अपनी मौजूदा गतिविधियों के अलावा राज्य सरकार के सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) सेल के रूप में भी कार्य कर रहा है। एचपीआईडीबी ने पीपीपी मोड पर 20 परियोजनाएं सफलतापूर्वक प्रदान की हैं अन्य परियोजनाएं जो विभिन्न क्षेत्रों के लिए पाइपलाइन में हैं जैसा कि तालिका 9.5 और 9.6 में दिखाया गया है:
वर्ष 2020-21 के दौरान, एचपीआईडीबी ने श्री चिंतपूर्णी सदन, ब्लॉक सी, चिंतपूर्णी के संचालन और रखरखाव (ओ एंड एम) और शहर के भूतल में हाई एंड रेस्तरां के संचालन, रखरखाव और प्रबंधन (ओएमएम) के लिए शहरी बुनियादी ढांचा क्षेत्र में परामर्शी कार्य प्रदान किए हैं। पीपीपी मोड पर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में बस स्टैंड और कार पार्किंग परिसरों के विकास के लिए नगर निगम के हॉल, द मॉल, शिमला और परिवहन क्षेत्र में एक।
निवेश/आउटरीच पहल
) राज्य में निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार ने 07 और 08 नवंबर, 2019 को धर्मशाला में पहली ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट-2019 का आयोजन किया। इसका उद्देश्य क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करना था कृषि व्यवसाय, खाद्य प्रसंस्करण और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स, पर्यटन, आतिथ्य और नागरिक उड्डयन, जल और नवीकरणीय ऊर्जा, कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल और आयुष, आवास, शहरी विकास, परिवहन, बुनियादी ढांचा और रसद, सूचना प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाएं (आईटीईएस) और इलेक्ट्रॉनिक्स, शिक्षा और कौशल विकास।
1) मुख्य कार्यक्रम के आयोजन से पहले, राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री के नेतृत्व में जर्मनी, नीदरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में तीन अंतरराष्ट्रीय रोड शो आयोजित किए। हिमाचल प्रदेश। अंतरराष्ट्रीय रोड शो के अलावा छह घरेलू रोड शो बेंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई, नई दिल्ली, अहमदाबाद और चंडीगढ़ में और मनाली और शिमला में दो लघु सम्मेलन आयोजित किए गए।
2) सरकार ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में ₹96,720.88 करोड़ के प्रस्तावित निवेश और 1,96,800 व्यक्तियों के प्रस्तावित रोजगार के साथ विभिन्न क्षेत्रों में 703 समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
3) पहला ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी (जीबीसी) 27-12-2019 को शिमला में आयोजित किया गया था, जिसमें ₹13,488 करोड़ के 236 एमओयू को मंजूरी दी गई थी।
4) कोविड-19 महामारी की स्थिति के बावजूद, ₹4,483 करोड़ के निवेश वाली 102 परियोजनाएं चालू कर दिया गया है और ₹ 6,917 करोड़ के निवेश के साथ 87 परियोजनाओं में सिविल कार्य/मशीनरी स्थापना प्रगति पर है। कुल जमीनी निवेश का लगभग 84 प्रतिशत पूरा हो चुका है।

5)हिमाचल प्रदेश सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में राज्य में नए निवेश को आकर्षित करने के लिए 05.09.2021 को चंडीगढ़ में एक रोड शो का आयोजन किया। प्रस्तावित निवेश के साथ कुल 27 एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये ₹3,307 करोड़ का।
6) 27 दिसंबर 2021 को मंडी में दूसरा ग्राउंड-ब्रेकिंग सेरेमनी (दूसरा जीबीसी) आयोजित किया गया, जिसमें 28,197 करोड़ रुपये के प्रस्तावित निवेश के साथ 287 एमओयू आयोजित किए गए। 80,000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रोजगार इन परियोजनाओं के अंतर्गत अपेक्षित है। पुष्टि किए गए एमओयू का सारांश नीचे दिया गया है (तालिका-9.8)।
सकल राज्य मूल्य वर्धित (जीएसवीए) में योगदान के संदर्भ में औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन 2020-21 की तुलना में 2021-22 में 1.54 प्रतिशत अंक के साथ बढ़ा है। विनिर्माण क्षेत्र का योगदान मौजूदा कीमतों पर जीएसवीए वर्ष 2018-19 में 31.43 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2019-20 में 29.04 प्रतिशत हो गया है (सारणी 9.9)। वर्ष 2020-21 में यह घटकर 28.91 प्रतिशत हो गयी है, ऐसा हुआ है कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के तहत उठाए गए लॉकडाउन उपायों के कारण, जिससे औद्योगिक उत्पादन में बाधा उत्पन्न हुई है। राज्य सरकार निवेशकों को प्रोत्साहन और सक्षम बनाने जैसी कई पहल कर रही है अपना योगदान बढ़ाने के लिए ईओडीबी आदि। मौजूदा कीमतों पर जीएसवीए में खनन और उत्खनन क्षेत्र का योगदान वर्ष 2018-19 में 0.32 प्रतिशत से घटकर वर्ष 202122 में 0.25 प्रतिशत हो गया है। कोविड-19 के प्रभाव और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से अधिक योगदान के लिए। यह राज्य सरकार द्वारा अवैध खनन को रोकने के लिए की गई कड़ी कार्रवाई का भी परिणाम है। विवरण दिखाए गए अनुसार हैं नीचे तालिका 9.9 में:
2017-18 से 2021-22 की अवधि के लिए हिमाचल प्रदेश में विनिर्माण क्षेत्र की जीएसवीए की वृद्धि दर (स्थिर कीमतों पर) का रुझान चित्र 9.1 में दिखाया गया है। स्थिर मूल्यों पर विनिर्माण क्षेत्र की जीएसवीए की वृद्धि दर 2018-19 में 10.1 प्रतिशत थी और 2019-20 में घटकर 0.88 प्रतिशत हो गई। 2020-21 में -7.33 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर दिखाने के बाद 2021-22 में यह 11.3 प्रतिशत हो गई।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) औद्योगिक विकास को मापने का एक पैमाना है, इसमें विशिष्ट अवधि के दौरान उद्योग के क्षेत्र में भौतिक उत्पादन के सापेक्ष परिवर्तन को शामिल किया जाता है। पिछली अवधि के लिए. इस सूचकांक का मुख्य उद्देश्य सकल राज्य घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र के योगदान का अनुमान लगाना है। राज्य में आईआईपी को आधार वर्ष 2011-12 के आधार पर संकलित किया जा रहा है। विनिर्माण, खनन, उत्खनन और बिजली की चयनित इकाइयों से डेटा एकत्र करके आईआईपी का त्रैमासिक अनुमान लगाया जाता है, त्रैमासिक सूचकांकों के आधार पर, वार्षिक सूचकांकों की गणना की गई है और तालिका 9.10 में दिखाया गया है। तालिका 9.10 :
वर्ष 2020-21 में सामान्य सूचकांक 223.9 से थोड़ा कम होकर 221.9 हो गया है, जो मुख्य रूप से विनिर्माण में गिरावट के कारण 0.9 प्रतिशत की मामूली कमी दर्शाता है। सूचकांक जून तिमाही में, जब कोविड-19 महामारी के तहत लॉकडाउन उपाय लागू किए गए थे। वर्ष 2021-22 के सूचकांकों के संबंध में, इन्हें दो तिमाहियों (जून और सितंबर, 2021) के आधार पर तैयार किया गया है। 2020-21 की जून और सितंबर तिमाही के तिमाही सूचकांकों की तुलना 2021-22 की समान तिमाही से करने पर 5.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसका श्रेय औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को दिया जाता है, जो विनिर्माण क्षेत्र के साथ-साथ राज्य की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए एक स्वस्थ संकेत है।

10.श्रम और रोजगार

जैसा कि भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 में कहा गया है, आर्थिक विकास का मतलब न केवल नौकरियों का सृजन है, बल्कि ऐसी कामकाजी परिस्थितियां भी हैं जिनमें कोई काम कर सके। स्वतंत्रता, सुरक्षा और सम्मान. राज्य में स्वतंत्र और सुरक्षित कामकाजी स्थितियाँ राज्य की नीतियों और सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क के रूप में नियोजित हस्तक्षेप के कारण हैं। अन्य भागों की तुलना में देश के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में कृषि और गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में श्रमिकों की मजदूरी दर अधिक है (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण)। हिमाचल प्रदेश में उच्च मजदूरी दरें आकर्षित करती हैं राज्य में आने वाले प्रवासी, विशेषकर उन राज्यों से जहां मजदूरी दरें बहुत कम हैं। राज्य को अब अतिरिक्त रोजगार के अवसर और रोजगार-गहन विकास की आवश्यकता है जिसके लिए श्रम शक्ति की आवश्यकता है कम-मूल्य-वर्धित से उच्च-मूल्य-वर्धित गतिविधियों की ओर बढ़ना होगा। राज्य का लक्ष्य राज्य के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में नई नौकरियाँ पैदा करने के लिए अर्थव्यवस्था में नौकरी प्रेरित समावेशी विकास हासिल करना है।
नौकरी चाहने वालों को रोजगार सहायता/सूचना सेवा 3 क्षेत्रीय रोजगार कार्यालयों, 9 जिला रोजगार कार्यालयों के माध्यम से प्रदान की जाती है। , 2 विश्वविद्यालय सूचना और मार्गदर्शन ब्यूरो, 65 उप कार्यालय रोजगार कार्यालय, शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए एक विशेष रोजगार कार्यालय और केंद्रीय रोजगार कक्ष। युवाओं को व्यावसायिक मार्गदर्शन और रोजगार परामर्श के साथ-साथ रोजगार बाजार की जानकारी एकत्र करने के मामले में सभी 77 रोजगार कार्यालयों को कम्प्यूटरीकृत कर दिया गया है और वे ऑनलाइन हैं।
न्यूनतम मजदूरी: हिमाचल प्रदेश सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम-1948 के तहत न्यूनतम मजदूरी सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। राज्य सरकार को सलाह देने का उद्देश्य श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दरें तय करने और संशोधित करने के मामले में। राज्य सरकार ने अकुशल श्रेणी के श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी `275 से बढ़ाकर `300 प्रति दिन या 8,250 से 9,000 प्रति दिन कर दी है। माह से प्रभावी 01.04.2021, न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के तहत सभी मौजूदा 19 अनुसूचित रोजगार में काम करना।
रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम: जिला स्तर पर रोजगार बाजार सूचना के तहत रोजगार आंकड़े एकत्रित किये जा रहे हैं। 1960 से कार्यक्रम। में कुल रोजगार राज्य में 31-03-2020 तक सार्वजनिक क्षेत्र में 2,75,526 और निजी क्षेत्र में 1,83,293 थी। सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र में प्रतिष्ठान क्रमशः 4,407 और 1,814 हैं।
व्यावसायिक मार्गदर्शन: श्रम एवं रोजगार विभाग युवाओं को व्यावसायिक/कैरियर मार्गदर्शन प्रदान करता है और मार्गदर्शन का आयोजन भी करता है स्कूलों/कॉलेजों/आईटीआई/पॉलिटेक्निक आदि में शिविर भी लगाए जाते हैं। तदनुसार, युवाओं के लिए कार्यान्वित की जा रही योजनाओं/कल्याण कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रदान करने के अलावा, कौशल विकास, कैरियर विकल्प, रोजगार/स्वरोजगार के अवसरों आदि के बारे में जानकारी भी प्रदान की जाती है। विभाग के अधिकारी/सक्षम अधिकारी एवं विभिन्न विभागों/संगठनों के अधिकारी/प्रतिनिधि। इस वित्तीय वर्ष में कोविड-19 के कारण विभाग को अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके। हालाँकि, रोजगार कार्यालयों में आने वाले आवेदकों को व्यावसायिक मार्गदर्शन प्रदान किया गया और 31.12.2021 तक 10,708 युवाओं को विभाग के सक्षम अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत/समूह परामर्श प्रदान किया गया।
केंद्रीय रोजगार प्रकोष्ठ: सभी औद्योगिक इकाइयों, संस्थानों और प्रतिष्ठानों को तकनीकी और उच्च कुशल जनशक्ति प्रदान करना। राज्य के श्रम एवं रोजगार निदेशालय में स्थापित केंद्रीय रोजगार सेल वर्ष 2021-22 के दौरान अपनी सेवाएं प्रदान करने में लगा रहा। इस योजना के तहत रोजगार चाहने वालों को उनकी योग्यता के अनुसार निजी क्षेत्र में उपयुक्त नौकरी खोजने में सहायता प्रदान की जाती है। केंद्रीय रोजगार सेल निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं के लिए अकुशल श्रम की आवश्यकता के लिए कैंपस साक्षात्कार आयोजित करता है। इस वित्तीय वर्ष के दौरान, 31.12.2021 तक केंद्रीय रोजगार सेल ने 1 नौकरी मेला और 138 कैंपस साक्षात्कार आयोजित किए हैं, जिसमें नियोक्ताओं द्वारा 1,663 उम्मीदवारों का चयन किया गया था।
विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए विशेष रोजगार कार्यालय: विकलांग व्यक्तियों (शारीरिक, दृष्टिगत) की नियुक्ति के लिए विशेष रोजगार कार्यालय , श्रवण और गति बाधित) की स्थापना 1976 में श्रम और रोजगार निदेशालय में की गई थी। यह विशेष रोजगार कार्यालय व्यावसायिक मार्गदर्शन के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्षम उम्मीदवारों को सहायता प्रदान करता है और सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रोजगार सहायता भी प्रदान करता है। शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों, जो समाज के कमजोर वर्ग में से हैं, को कई सुविधाएं या रियायतें प्रदान की गई हैं जिनमें राज्य और जिला स्तर पर गठित मेडिकल बोर्ड के माध्यम से मुफ्त चिकित्सा जांच, आयु में 5 वर्ष की छूट, योग्यता के लिए छूट शामिल है। श्रेणी-III और श्रेणी-IV पदों पर नियुक्ति के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण के साथ ऊपरी अंगों में विकलांगता से पीड़ित लोगों के लिए टाइप टेस्ट। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान (नवम्बर, 2021 तक) 531 विशेष योग्यजन विशेष रोजगार कार्यालय के लाइव रजिस्टर पर लाए गए जिससे कुल संख्या 19,205 हो गई और 119 विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को रोजगार प्रदान किया गया।
कर्मचारी बीमा और भविष्य निधि योजना: कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) सोलन के क्षेत्रों में लागू है , सोलन जिले में परवाणू, बरोटीवाला, नालागढ़, बद्दी, ऊना जिले में मैहतपुर, बाथरी और गगरेट, सिरमौर जिले में पांवटा साहिब और काला अंब, बिलासपुर जिले में गोलथाई, मंडी जिले में मंडी, रत्ती, नेर चौक, भंगरोटू, चक्कर और गुटकर और जिला शिमला में औद्योगिक क्षेत्र शोघी और शिमला का नगर निगम क्षेत्र। हिमाचल प्रदेश में अनुमानित 3,15,331 बीमित व्यक्तियों वाले लगभग 13,325 प्रतिष्ठान ईएसआई योजना के तहत कवर किए गए हैं और कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना के तहत 23,363 प्रतिष्ठानों में काम करने वाले लगभग 17,28,643 श्रमिकों को इस योजना के तहत लाया गया है।
इस अधिनियम के तहत, कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं जैसे मातृत्व/पितृत्व लाभ, विकलांगता पेंशन, सेवानिवृत्ति पेंशन, पारिवारिक पेंशन, चिकित्सा सहायता, स्वयं और दो बच्चों तक के विवाह के लिए वित्तीय सहायता, कौशल विकास भत्ता, साइकिल प्रदान करना। और महिला श्रमिकों को वॉशिंग मशीन, लाभार्थियों को इंडक्शन हीटर या सोलर कुकर और सोलर लैंप प्रदान करना। लगभग 2,236 प्रतिष्ठान श्रम और रोजगार विभाग के साथ पंजीकृत हैं और 3,39,049 लाभार्थी हिमाचल प्रदेश भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं। पात्र लाभार्थियों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत `317.19 करोड़ की राशि के लाभ प्रदान किए गए हैं और दिसंबर, 2021 तक `737.27 करोड़ की राशि हिमाचल प्रदेश भवन एवं अन्य निर्माण कल्याण बोर्ड, शिमला के पास जमा की गई है।
इस वित्तीय वर्ष के दौरान कौशल विकास भत्ता योजना के तहत 80 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस योजना के तहत राज्य के पात्र बेरोजगार युवाओं को उनके कौशल उन्नयन और रोजगार क्षमता में वृद्धि के लिए भत्ते का प्रावधान है। यह भत्ता `1,000 प्रति माह की दर से देय है और 50 प्रतिशत या अधिक स्थायी शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण की अवधि के लिए `1,500 प्रति माह की दर से प्रदान किया जाता है, जो अधिकतम दो वर्ष की अवधि के अधीन है। वित्तीय वर्ष 2021-22 (दिसंबर, 2021 तक) के दौरान 32,182 लाभार्थियों के बीच `15.01 करोड़ कौशल विकास भत्ता वितरित किया गया है। विभाग इसके तहत औद्योगिक कौशल विकास भत्ता योजना, 2018 भी लागू कर रहा है
योजना में राज्य के निजी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में लगे पात्र नियोजित युवाओं को उनकी नौकरी कौशल उन्नयन और बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए भत्ते का प्रावधान है। इस योजना के तहत संवितरण मानदंड कौशल विकास भत्ता योजना, 2013 के समान हैं और इस मद के तहत 2,398 लाभार्थियों के बीच `1.74 करोड़ की राशि वितरित की गई थी।
बेरोजगारी भत्ता योजना: इस वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान `29.00 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया गया है बेरोजगारी भत्ता योजना के अंतर्गत। इस योजना के तहत, राज्य के पात्र बेरोजगार युवाओं को `1,000 प्रति माह की दर से और 50 प्रतिशत या अधिक स्थायी शारीरिक रूप से विकलांगों को `1,500 प्रति माह की दर से अधिकतम 2 वर्ष की अवधि के लिए भत्ते का प्रावधान है ताकि वे अपना भरण-पोषण कर सकें। एक निश्चित अवधि के लिए. दिसंबर, 2021 तक की अवधि के दौरान, इस योजना के तहत कुल 51,613 लाभार्थी लाभान्वित हुए हैं और `20.38 करोड़ वितरित किए गए हैं।
इस वित्तीय वर्ष के दौरान (दिसंबर, 2021 तक) 1,68,239 आवेदकों को रोजगार विनिमय योजना के तहत पंजीकृत किया गया था। इनमें से सरकारी क्षेत्र में 1,301 अधिसूचित रिक्तियों के विरुद्ध 616 नियुक्तियाँ और निजी क्षेत्र में 6,629 अधिसूचित रिक्तियों के विरुद्ध 2,183 नियुक्तियाँ की गईं। दिसंबर, 2021 तक सभी रोजगार कार्यालयों के लाइव रजिस्टरों पर समेकित संख्या 8,73,060 है। अप्रैल से दिसंबर, 2021 तक रोजगार कार्यालयों द्वारा किए गए जिलेवार पंजीकरण और प्लेसमेंट नीचे तालिका 10.1 में दिए गए हैं:
हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम (एचपीकेवीएन) एक राज्य सरकार निगम है जिसे 14 सितंबर, 2015 को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत राज्य कौशल मिशन के रूप में शामिल किया गया था। यह हिमाचल प्रदेश के युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए तीन प्रमुख परियोजनाओं को कार्यान्वित कर रहा है यानी (i) एशियाई विकास बैंक (एडीबी) सहायता प्राप्त हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना (एचपीएसडीपी) (ii) प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) योजना के तहत राज्य घटक और (iii) आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (संकल्प)।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) सहायता प्राप्त हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना (एचपीएसडीपी)
₹429 करोड़ की राशि के अनुबंध दिए गए और ₹163 करोड़ की राशि के वितरण का दावा किया गया।
उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) की स्थापना:दीर्घकालिक कौशल विकास के लिए संस्थागत ढांचा बनाने के लिए राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप एडीबी सहायता प्राप्त एचपीएसडीपी के तहत 68 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से जिला सोलन के वाकनाघाट में एक सीओई स्थापित की जा रही है। यह संस्थान आतिथ्य एवं पर्यटन तथा सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाला प्रशिक्षण प्रदान करेगा।
प्रतिष्ठित सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापन: उच्च और महत्वाकांक्षी कौशल पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से, एचपीकेवीएन ने विभिन्न सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों जैसे राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईईएलआईटी), उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र (सीडीएसी), क्लिक-थ्रू रेट (सीटीआर), राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान (एनआईएफएम) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। , हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू), इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई), यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री (यूएचएफ) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट (एनआईएफटीईएम) लगभग 9,170 हिमाचली युवाओं को उच्च आकांक्षा उद्योग में प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वेब डिजाइनिंग, मशीन लर्निंग, एडवांस्ड टैक्स लॉ आदि जैसी संचालित नौकरी भूमिकाएं। उक्त पाठ्यक्रमों के लिए 1167 से अधिक उम्मीदवारों को नामांकित किया गया है।
50 आईटीआई, महिला पॉलिटेक्निक (रेहान, जिला कांगड़ा) और सरकार में उपकरणों और उपकरणों का उन्नयन इंजीनियरिंग कॉलेज:हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना 50 आईटीआई के उन्नयन की सुविधा भी प्रदान कर रही है, जहां 23 ट्रेड राज्य व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (एससीवीटी) से राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीटी) प्रमाणपत्र में परिवर्तित हो जाएंगे और इससे 23,000 को लाभ होगा। छात्र. अपेक्षित उपकरणों की खरीद की प्रक्रिया प्रगति पर है। इसमें मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, हैंड टूल्स, कढ़ाई, सूचना और प्रौद्योगिकी और सौंदर्य और कल्याण आदि जैसे विभिन्न ट्रेडों के लिए उपकरण शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, महिला पॉलिटेक्निक (रेहान, जिला कांगड़ा) और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए भी उपकरण शामिल हैं। खरीदा जाना है. महिला पॉलिटेक्निक, रेहान का निर्माण पूरा हो चुका है और प्रशिक्षण चल रहा है। महिला पॉलिटेक्निक, रेहान में 300 उम्मीदवारों/प्रशिक्षुओं के लिए आवासीय सुविधा होगी।
हिमाचल प्रदेश के सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) के माध्यम से अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम: इसके तहत एचपीकेवीएन हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना ने 54 आईटीआई में अल्पकालिक कौशल और बहु कौशल प्रशिक्षण शुरू किया है और 8,347 से अधिक छात्रों को ऑटोमोटिव, निर्माण, नलसाजी, आईटी-आईटीईएस, पूंजीगत सामान, परिधान और मेड जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नामांकित किया गया है। यूपीएस, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर, ब्यूटी एंड वेलनेस, आयरन एंड स्टील, मीडिया और मनोरंजन आदि। इसका उद्देश्य उद्योग और स्व-रोजगार दोनों क्षेत्रों में उच्च रोजगार क्षमता वाले बहु-कुशल कार्यबल का निर्माण करना है।

स्नातक नौकरी प्रशिक्षण कार्यक्रम: 25 सरकारी डिग्री कॉलेजों, एचपीकेवीएन के अंतिम वर्ष के स्नातक छात्रों की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए ने अपने मुख्य अध्ययनों के पूरक क्षेत्रों में एक राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) संरेखित स्नातक ऐड-ऑन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। उदाहरण के लिए- बैंकिंग, वित्तीय सेवाएँ और बीमा क्षेत्र (बीएफएसआई), इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, पर्यटन सौंदर्य और कल्याण, परिधान, मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र। वर्ष 20192020 और 2020-2021 के दौरान 13 कॉलेजों के 1,850 से अधिक छात्रों ने अपना प्रशिक्षण पूरा किया है। शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के दौरान, ग्रेजुएट जॉब ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत 5,500 छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए 15 और सरकारी डिग्री कॉलेजों को निर्धारित किया गया है। वर्तमान संचयी नामांकन आंकड़े 5,947 (2019-20 और 2020-21 शैक्षणिक वर्षों के 2,216 नामांकन सहित) थे।
बैचलर ऑफ वोकेशन (बी.वोक) डिग्री प्रोग्राम: बी.वोक। कार्यक्रम HPKVN और उच्च शिक्षा विभाग (DoHE) का एक संयुक्त प्रयास है। यह 3 साल का पूर्णकालिक डिग्री प्रोग्राम राज्य के 18 सरकारी डिग्री कॉलेजों में 2 क्षेत्रों (रिटेल और पर्यटन और आतिथ्य) में चल रहा है। वर्तमान में अब तक 4,638 से अधिक छात्रों का नामांकन हो चुका है।
प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) के माध्यम से अन्य अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम: एचपीकेवीएन शामिल हो गया है प्रशिक्षण सेवा प्रदाता हिमाचल प्रदेश के 9,000 से अधिक युवाओं को ऑटोमोबाइल, विनिर्माण, बिजली, निर्माण और नलसाजी, बीएफएसआई, आईटी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। आईटीईएस, इलेक्ट्रॉनिक्स, हेल्थकेयर, पर्यटन और आतिथ्य आदि। वर्ष 2021-22 के दौरान विभिन्न अल्पकालिक प्रशिक्षणों के तहत संचयी नामांकन आंकड़े 2,648 से अधिक थे।
विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) का आजीविका आधारित कौशल प्रशिक्षण: एचपीकेवीएन ने एक आजीविका "नव धारणा" शुरू की है -दिव्यांग व्यक्तियों के बीच रोजगार और उद्यमिता कौशल को बढ़ावा देने के लिए विकलांग व्यक्तियों के लिए आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम। खुदरा, आतिथ्य, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों में लगभग 300 दिव्यांगजनों को प्रशिक्षण देने के लिए प्रशिक्षण सेवा प्रदाता के चयन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
शहरी आजीविका केन्द्र (सी.एल.सी.), ग्रामीण आजीविका केन्द्र (आर.एल.सी.) और माॅडल कैरियर केन्द्र (एम.सी.सी.)राज्य भर में कौशल विकास गतिविधियों के लिए संस्थागत सहायता प्रदान करने के लिए शहरी आजीविका केन्द्र, ग्रामीण आजीविका केन्द्र (आर.एल.सी) और माडल कैरियर केन्द्र (एम.सी.सी.) का निर्माण कार्य प्रगति पर है। शहरी आजीविका केन्द्र (सुंदरनगर, नाहन, सिदभरी, शमशी) ग्रामीण आजीविका केन्द्र (सदियाना, प्रगतिनगर )का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। तथा सी.एल.सी. एवं आर.एल.सी. केन्द्रों में शीघ्र प्रशिक्षण कार्य शुरू किया जाना है। 1 सी.एल.सी.(बिलासपुर) और 5 आर.एल.सी. (नालागढ़, नगरोटा बगवां, बंगाणा, सेराज और चैपाल) का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इसके अलावा, 11 एम.सी.सी. (धर्मशाला, चंबा, हमीरपुर, बिलासपुर, मंडी, बद्दी, सोलन, डाडासिबा, उदयपुर और काजा) का निर्माण / नवीनीकरण किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त हिमाचली युवाओं को उनकी आकांक्षाओं के साथ उनको उचित परामर्श प्रदान करने और उन्हें नौकरी के लिए राष्ट्रीय कैरियर पोर्टल तक पहॅुच प्रदान करने के लिए एम.सी.सी., हमीरपुर के संबंध में निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है।
हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम, प्रधानमंत्री कोशल विकास योजना 2.0 और 3.0 के राज्य घटक के लिए कार्यान्वयन एजेन्सी है। उक्त शासनादेश को पूरा करने के लिए हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम ने वित् वर्ष 2018-19 के दौरान पी.एम.के.वी.वाई.) 2.0 के तहत 22 क्षेत्रों में नौकरी के लिए 16,200 से अधिक युवाओं को नामांकित किया जिनमें से 9,000 से अधिक युवाओं का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान, पी.एम.के.वी.वाई. 3.0 राज्य घटक के तहत 5 सरकारी आई.टी.आई. (303 नामांकन के साथ) के माध्यम से प्रशिक्षण शुरू हो गया है और 1,800 रिकॉग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (आर.पी.एल.) प्रशिक्षण पूरा कर लिया गया है।
आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता : एच.पी.के.वी.एन ₹2.1 करोड़ रुपये की स्वीकृत निधि के साथ आजीविका संवर्धन के लिए विश्व बैंक सहायता प्राप्त कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता को लागू कर रहा है और इसका उद्देश्य पूरे राज्य में संस्थागत तंत्र और कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना है। एच.पी.के.वी.एन ने हस्तशिल्प और हथकरघा निगम लिमिटेड के साथ 12 अक्टूबर, 2021 को ₹ 44.80 लाख रुपये की राशि के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत 200 हितधारक कारीगरों को लक्षित राज्य विशिष्ट कला और शिल्प के कौशल उन्नयन, डिजाइन हस्तक्षेप और विपणन से संबंधित क्षमता वृद्धि के प्रयास फरवरी, 2022 से शुरू होने हैं। बिलासपुर, चंबा, कुल्लू, मंडी, शिमला, सोलन, हमीरपुर और कांगड़ा जिलों में चंबा रुमाल, वुड क्राफ्ट, कुल्लू कैप्स, मिट्टी के बर्तनों का क्राफ्ट, कांगड़ा पेंटिंग, बैम्बू क्राफ्ट, पाइन नीडल ट्रेनिंग और हैंड निटिंग जॉब रोल्स के लिए विशेषतरू महिलाओं, एस.सी., एस.टी., पी.डब्ल्यू.डी. और समाज के अन्य कमजोर वर्ग के कारीगरों के लिए शुरू किया जाना है।
जागरूकता सृजन और प्रचार : हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम ने व्यवसायिक शिक्षा के इच्छुक सभी हिमाचली युवाओं के लिए विस्त₹त प्रचार योजना तैयार की है। सूचना, शिक्षा तथा संचार सामग्री के व्यापक प्रसार को सुनिश्चित करने के लिए एफ.ए.क्यू., परामर्श पुस्तिका, कार्यक्रम विवरणिका, विडियो, पोस्टर और पत्रिका को लिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम के विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए नियमित टी.वी. और रेडियो कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सोशल नैटवर्किंग साईटों को जैसे कि फेसबुक, टविटर तथा इंस्टाग्राम का उपयोग किया जा रहा है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) एक नई श्रंखला है जिसे भारत सरकार ने 2017 में पंचवार्षिक रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण जो राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ.), जो की अब राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एन.एस.ओ.) है, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एम.ओ.एस.पी.आई.) के अंतर्गत, आना है। और उसे बंद करके शुरू किया जो वार्षिक आधार पर श्रम बल डेटा प्रदान करता है। पी.एल.एफ.एस. डेटा अब राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर रोजगार और बेरोजगारी के आंकड़ों का प्राथमिक स्रोत है। भारत सरकार ने मई 2019 में पहली आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण(पी.एल.एफ.एस.) 2017-18 रिपोर्ट जारी की, जो कि एन.एस.ओ द्वारा जुलाई 2018 से जून 2019 तक किए गए सर्वेक्षण और जून 2020 में दूसरी पी.एल.एफ.एस. 2018-19 रिपोर्ट, जो एन.एस.ओ. द्वारा जुलाई 2019 से जून 2020 तक आयोजित किया गए सर्वेक्षण पर आधारित है। वर्तमान में तीसरी वार्षिक रिर्पोट एन.एस.ओ. द्वारा जुलाई 2019 से जून 2020 तक आयोजित सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाशित की है। गतिविधि की स्थिति द्वारा जनसंख्या के वर्गीकरण के लिए सर्वेक्षण में अपनाई गई सामान्य स्थिति (पी.एस.+एस.एस) दृष्टिकोण और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण के आधार पर श्रम बल संकेतकों का अनुमान लगाया जाता है। सामान्य स्थिति (पी.एस.+एस.एस.) दृष्टिकोण के लिए संदर्भ अवधि एक वर्ष है और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण के लिए एक सप्ताह है।
हिमाचल प्रदेश में श्रम बल की स्थिति का अंदाजा, श्रम बल भागीदारी दर (एल.एफ.पी.आर.), श्रमिक जनसंख्या दर (डब्लू.पी.आर.), दैनिक मजदूरी दर और औद्योगिक संबंधों में रुझानो से लगाया जा सकता है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2019-20 (पी.एल.एफ.एस.) के अनुसार, श्रम बल का गठन वे व्यक्ति जो काम कर रहे थे (या कार्यरत हैं) या ’काम की खोज या काम के लिए उपलब्ध (या बेरोजगार) हैं,शामिल किया जाता है। श्रम बल या दूसरे शब्दों में, आर्थिक रूप से सक्रिय ’आबादी, उस आबादी को संदर्भित करती है जो उत्पादन के लिए श्रम की आपूर्ति करती है या आपूर्ति करना चाहती है और इसलिए यह ’नियोजित ’और ’बेरोजगार’ दोनों व्यक्तियों को शामिल करती है। श्रम बल भागीदारी दर को ˊआबादी में व्यक्तियों के बीच श्रम बल में व्यक्तियों का प्रतिशतˊ के रूप में परिभाषित किया गया है।
सारणी 10.2 पी.एल.एफ.एस. के अनुसार हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और भारत में 2018-19 और 2019-20 में एल.एफ.पी.आर. प्रस्तुत करता है। 2018-19 की तुलना में, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और भारत में 2019-20 में समस्त आयु के एल.एफ.पी.आर. में वृद्धि हुई है। एल.एफ.पी.आर. (समस्त भारत) के लिए 2019-20 में, हिमाचल प्रदेश (57.7), उत्तराखंड (41.0), पंजाब (40.8), हरियाणा (34.3) और भारत (40.1) से अधिक है।
डब्ल्यू.पी.आर. एक संकेतक है जिसका उपयोग रोजगार की स्थिति का विश्लेषण करने और आबादी का अनुपात जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय योगदान देता है, को जानने के लिए किया जाता है। डब्ल्य.ू पी.आर. को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है। सारिणी 10.3 हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, और भारत में श्रमिक जनसंख्या अनुपात को दर्शाता है। यह सभी उम्र वर्ग में स्पष्ट है कि 2019-20 में हिमाचल प्रदेश की स्थिति (55.6) उत्तराखंड (38.1), पंजाब (37.8), हरियाणा (32.1) और पुरे भारत (38.2) से बेहतर है। सर्वेक्षण के नतीजों से स्पष्ट होता है कि हिमाचल प्रदेश में महिलाएं (50.3 प्रतिशत) अखिल भारतीय स्तर पर और पड़ोसी राज्यों में अपने समकक्षों की तुलना में आर्थिक गतिविधियों में अधिक सक्रिय रूप से भाग ले रहीं हैं (चित्र 10.1) 2018-19 में श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्लू.पी.आर.) सामान्य स्थिति (पी.एस.+एस.एस.) में लगभग 50.1 प्रतिशत था जो कि 2019-20 में 55.6 प्रतिशत हो गया है। 2018-19 में ग्रामीण क्षेत्रों में यह 51.4 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 39.0 प्रतिशत था, जो एक साथ बढ़कर 57.4 प्रतिशत और 43.5 प्रतिशत हो गया। ग्रामीण पुरुषों के लिए सामान्य स्थिति (पी.एस.+एस.एस) में डब्ल्य.ूपी.आर. वर्ष 2019-20 में यह बढ़कर 61.6 प्रतिशत हो गया जो कि वर्ष 2018-19 में में 56.0 था ग्रामीण महिलाओं के लिए यह 2019-20 में 53.5 है जो कि वर्ष 2018-19 में 46.9 प्रतिशत था ।
बेरोजगारी दर (यू.आर.) को श्रम बल में व्यक्तियों के बीच बेरोजगार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है। इसे पी.एल.एफ.एस. सर्वेक्षणों में सामान्य स्थिति (पी.एस.+एस.एस.) और साप्ताहिक स्थिति के संदर्भ में मापा जाता है जिसे सारणी 10.4 में दर्शाया गया है। यह श्रम बल के उस हिस्से को दर्शाता है जो सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं या उपलब्ध हैं । आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पी.एल.एफ.एस.) 2020-21 के अनुसार सभी राज्यों और अखिल भारत में सामान्य स्थिति (पी.एस+एस.एस.) के तहत हिमाचल में बेरोजगारी दर 3.7 प्रतिशत (सबसे कम) है, जबकि अखिल भारतीय 4.8 प्रतिशत, उत्तराखंड 7.1 प्रतिशत, पंजाब 7.4 प्रतिशत, हरियाणा 6.5 प्रतिशत है (चित्र 10.2)
हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी दर 2018-19 में 5.2 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 3.7 प्रतिशत हो गई है। सामान्य स्थिति (पी.एस.+एस.एस.) में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर पुरुषों के बीच 4.4 प्रतिशत और महिलाओं में 2.3 प्रतिशत थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में पुरुषों में यह दर 4.1 प्रतिशत और महिलाओं में 9.7 प्रतिशत थी। (सारणी 10.4)

11.ऊर्जा

ऊर्जा किसी भी अर्थव्यवस्था की जीवनदायिनी होती है। यह आधुनिक दुनिया की लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण निवेश (इनपुट) है। हिमाचल प्रदेश में ऊर्जा के पारंपरिक और नवीकरणीय स्रोत जैसे कि पनबिजली, सौर और ईंधन की लकड़ी मौजूद हैं।
हिमाचल प्रदेश को एक पहाड़ी राज्य होने के नाते जल विद्युत शक्ति के दोहन मामले में प्रक₹ति से भरपूर आर्शीवाद मिला है। राज्य में जल विद्युत उत्पादन की अपार संभावनाएं है इसे देश के पनबिजली हब के रूप में जाना जाता है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक क्रियाकलापों में उत्प्रेरक की भूमिका स्वीकार्यता के साथ-साथ विद्युत राजस्व अर्जन, रोजगार के अवसर बढ़ाने व लोगों के रहन-सहन के स्तर व जीवन की गुणवŸाा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। प्रदेश ने जल विद्युत क्षेत्र में कुल 27,436 मैगावाट क्षमता का आंकलन किया है। परन्तु इसमें से 24,567 मैगावाट को ही दोहन योग्य पाया है, शेष क्षमता को पर्यावरण को बचाने, पारिस्थितिक संतुलन एवं विभिन्न सामाजिक कारणों से त्याग कर दिया गया है। राज्य जल विद्युत के विकास को सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी से गति प्रदान हो रही है। राज्य में ऊर्जा का उत्पादन व खपत सारणी 11.1 में दर्शाया गया है।
वर्ष 2009 के दौरान एक स्वतंत्र ऊर्जा निदेशालय बनाया गया; इससे पहले, यह हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड का एक हिस्सा था। ऊर्जा निदेशालय बहुउद्देश्यीय परियोजना विभाग (एमपीपी) और हिमाचल प्रदेश सरकार (जीओएचपी) का नोडल कार्यालय है, यह हिमाचल प्रदेश राज्य के बिजली क्षेत्र की सभी बिजली उपयोगिताओं के बीच प्रभावी और त्वरित समन्वय के लिए काम करता है। यह 5 मेगावाट क्षमता से ऊपर की जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन की देखभाल करता है और इसके कार्यों में 5 मेगावाट से अधिक की जल विद्युत परियोजनाओं की निगरानी, तकनीकी आर्थिक मंजूरी (टीईसी), जल विद्युत सुरक्षा से संबंधित मुद्दे, पर्यावरण और सामाजिक मुद्दे, स्थानीय क्षेत्र का प्रबंधन शामिल है। विकास निधि, गुणवत्ता नियंत्रण, बिजली प्रवाह का प्रबंधन, विभिन्न केंद्रीय, राज्य और निजी जलविद्युत परियोजनाओं से प्राप्त एचपी पावर शेयर की बिक्री, राज्य में ऊर्जा संरक्षण गतिविधियों का कार्यान्वयन और डीएएम सुरक्षा संगठन की क्षमता में सभी बड़े बांधों के लिए सुरक्षा पहलू राज्य के लिए.
प्रमुख उपलब्धियां:ऊर्जा निदेशालय की प्रमुख उपलब्धियां 438.4 मेगावाट की कुल क्षमता वाली परियोजनाओं को पूरा करना है वर्णित. 233.4 मेगावाट की कुल क्षमता वाली पहली 6 परियोजनाएं 01.04.2021 से 31.12.2021 के दौरान चालू हो गई हैं और 205 मेगावाट की कुल क्षमता वाली अंतिम 2 परियोजनाएं 01.01.2022 से 31.03.2022 के दौरान चालू होने की संभावना है (तालिका 11.2) .
1) 3.25 मेगावाट की कुल क्षमता वाली 7 परियोजनाएं 01/04/2021 और 31/12/2021 के बीच चालू की गईं; जबकि, 0.90 मेगावाट सौर ऊर्जा परियोजनाओं की दो परियोजनाएं 01/01/2022 और 31/03/2022 के दौरान चालू होने की संभावना है।
2) 2020-21 में क्षमता अतिरिक्त शुल्क/अपफ्रंट प्रीमियम की प्राप्ति `218.055 लाख थी।
3) 01/04/2021 से 31/12/2021 की अवधि के दौरान, परियोजना प्रभावित परिवारों को आगे संवितरण के लिए `41.16 करोड़ विभिन्न उपायुक्तों/एलएडीसी को हस्तांतरित किए गए हैं।
4) राज्य की स्वर्ण जयंती ऊर्जा नीति-2021 में पूर्ण ऊर्जा क्षमता विशेष रूप से जल और सौर के तेजी से उपयोग के माध्यम से स्वच्छ और हरित ऊर्जा विकास की परिकल्पना की गई है, जिसमें अतिरिक्त 10,000 मेगावाट हरित ऊर्जा शामिल है। हालांकि 2030 तक जल, सौर और अन्य हरित ऊर्जा स्रोत, हरित ऊर्जा स्रोतों का शीघ्र विकास, राज्य, संयुक्त, केंद्रीय और निजी क्षेत्रों की भागीदारी के माध्यम से एक चार-आयामी रणनीति। इसका उद्देश्य जलविद्युत और सौर परियोजनाओं की योजना और समय पर निष्पादन की सुविधा के लिए ट्रांसमिशन मास्टर प्लान बनाकर राज्य में पर्याप्त और कुशल ट्रांसमिशन नेटवर्क विकसित करना भी है। इससे तनाव भी होता है नवीकरण ऊर्जा स्रोतों पर अर्थात। सौर, पवन, बायोमास और अन्य गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत।
5) 31 दिसंबर 2021 तक हिमाचल प्रदेश सरकार की बिजली हिस्सेदारी की बिक्री से प्राप्त राजस्व `936.70 करोड़ है और जनवरी 2022 से मार्च 2022 तक अनुमानित राजस्व `77.00 करोड़ है।
एच.पी.एस.ई.बी.एल. हिमाचल प्रदेश में सभी उपभोक्ताओं के लिए निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार है। राज्य में बिछाए गए ट्रांसमिशन, सब-ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों के नेटवर्क के माध्यम से बिजली की आपूर्ति की जा रही है। अपनी स्थापना के बाद से, बोर्ड ने इसे सौंपे गए लक्ष्यों को निष्पादित करने में अभूतपूर्व प्रगति की है जो सारणी 11.3 में दिया गया है।
एचपीएसईबीएल द्वारा निम्नलिखित पहल भी शुरू की गई हैं:
1) एचपीएसईबीएल ने हिमाचल प्रदेश के शिमला और धर्मशाला शहरों में स्मार्ट मीटर लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दोनों शहरों में 1,51,740 स्मार्ट मीटर लगाए जाने हैं, जिनमें से शिमला में 1,18,581 और धर्मशाला में 33,159 स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे। कुल परियोजना लागत `168.35 करोड़ है। 31.12.2021 तक शिमला में 20,365 और धर्मशाला में 14,438 स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं।
2) समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (एटी एंड सी) घाटे की गणना के लिए विद्युत बुनियादी ढांचे और उपभोक्ताओं की जीआईएस/जीपीएस मैपिंग को बिलिंग सॉफ्टवेयर के साथ एकीकृत किया गया है।
3) उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करने के लिए, एचपीएसईबीएल आईवीआरएस (इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्टम) सुविधा कंप्यूटर टेलीफोनी के साथ नया उपभोक्ता कॉल सेंटर स्थापित कर रहा है। कॉल सेंटर समाधान कार्यान्वयन प्रक्रियाधीन है और फर्म को काम पहले ही सौंपा जा चुका है। इसके अलावा उपभोक्ता कॉल सेंटर को सिस्टम एप्लिकेशन और उत्पादों - यूटिलिटीज ग्राहक संबंध प्रबंधन (एसएपी-आईएसयू सीआरएम) प्रणाली के लिए उद्योग विशिष्ट समाधान के साथ एकीकृत किया जाएगा, ताकि शिकायत लॉगिंग और उपभोक्ता डेटा एक ही स्थान पर संग्रहीत किया जा सके और कॉल सेंटर एजेंट आसानी से सक्षम हो सकें। उपभोक्ता से संबंधित डेटा को एक ही स्क्रीन पर देखना ताकि वे प्रश्नों का सटीक उत्तर दे सकें।
जल विद्युत उत्पादन: एचपीएसईबीएल में 489.35 मेगावाट की स्थापित क्षमता वाली 27 जल विद्युत परियोजनाएं चालू हैं। एक परियोजना, उहल स्टेज-III (100 मेगावाट), एचपीएसईबीएल की सहायक कंपनी ब्यास वैली पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीवीपीसीएल) द्वारा निर्माणाधीन है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान, एचपीएसईबीएल के स्वयं के बिजली घरों द्वारा 1,961.13 एमयू ऊर्जा उत्पन्न की गई है और 2021-22 (दिसंबर 2022 तक) के दौरान अतिरिक्त 1903.39 एमयू ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है।
ट्रांसमिशन: एचपीएसईबीएल के ट्रांसमिशन विंग ने परिवर्तन क्षमता वाले 54 अतिरिक्त उच्च वोल्टेज (ईएचवी) सब-स्टेशन स्थापित किए हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 तक 4,974.89 मेगा वोल्ट एम्पीयर (एमवीए) और 3,630.47 सर्किट किलोमीटर (सीकेएम) ईएचवी लाइनें। 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक 1.39 सीकेएम ईएचवी लाइनें चालू की गई हैं
हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीपीसीएल) को जलविद्युत ऊर्जा के सभी पहलुओं के विकास की योजना बनाने, बढ़ावा देने और व्यवस्थित करने के लिए कंपनी अधिनियम 1956 के तहत दिसंबर 2006 में शामिल किया गया था। एचपीपीसीएल की तकनीकी और संगठनात्मक क्षमताएं नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी)/सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल)/नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) जैसी अन्य उत्पादक कंपनियों के बराबर हैं।
संचालन/निष्पादन चरण के अंतर्गत परियोजनाएं इस प्रकार हैं:
1) त्रिवेणी महादेव जलविद्युत परियोजना (एचईपी) (78 मेगावाट) का प्रस्ताव प्रारंभिक अध्ययन में तकनीकी वाणिज्यिक दृष्टिकोण से व्यवहार्य पाया गया है, इसलिए एचपीपीसीएल विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार कर रहा है। (डीपीआर) एचपीएसईबीएल के साथ संयुक्त रूप से इस परियोजना की।
2) काशांग चरण-IV (48 मेगावाट) की डीपीआर। जिला किन्नौर में बारा खंबा (45 मेगावाट) तैयार किये जा रहे हैं।
3) जिस्पा बांध परियोजना (300 मेगावाट) के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) से जांच कार्यों की अनुमति प्राप्त करने के लिए संदर्भ की नई शर्तों का अनुरोध किया गया है। टीओआर जारी होने के बाद टेंडर का उल्लंघन होगा।
4) जिला किन्नौर में बारा खंबा एचईपी (45 मेगावाट)। एचपीएसईबीएल के साथ संयुक्त रूप से डीपीआर तैयार की जा रही है।
विद्युत विकास के अन्य क्षेत्र: जल विद्युत के अतिरिक्त एच.पी. पावर कॉरपोरेशन का इरादा विकास के लिए बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए सौर जैसे अन्य नवीकरणीय स्रोतों को शामिल करने के लिए अपनी बिजली विकास गतिविधियों में विविधता लाने का है। राज्य और राष्ट्र.
1) बेर्रा-डोल सौर ऊर्जा परियोजना (5 मेगावाट): एचपीपीसीएल ने जिला बिलासपुर में श्री नैना देवी जी मंदिर के पास 5 मेगावाट क्षमता की बेर्रा-डोल सौर ऊर्जा परियोजना का निर्माण किया है। यह राज्य की पहली सौर ऊर्जा परियोजना थी जो सरकारी क्षेत्र में बनाया गया था। परियोजना के संचालन की तिथि (04/01/2019) से 31/12/2021 तक परियोजना से 24.69 एमयू उत्पादन किया गया है।
2) अघलोर सौर ऊर्जा परियोजना (10 मेगावाट): एचपीपीसीएल ने जिला ऊना के अघलोर में 10 मेगावाट क्षमता का एक और सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का भी निर्णय लिया है। योजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी तैयार कर ली गई है। एचपीपीसीएल उद्योग विभाग के साथ भूमि हस्तांतरण का मामला उठा रहा है।
Financial Achievements in Respects of Projects under Construction/Implementation Stage: Following table presents achievements of the projects under construction/implementation stage of Himachal Pradesh Power Corporation Limited are hereunder:
एचपीपीसीएल ने दिसंबर, 2021 तक कुल `920.53 करोड़ का राजस्व अर्जित किया था, जबकि, जिसमें से `581.13 करोड़ 31/03/2021 तक उत्पन्न हुआ था और `339.40 करोड़ 01/04/2021 से 31/12/2021 के दौरान उत्पन्न हुआ था।
यह कार्पोरेशन और हिमाचल प्रदेश सरकार का एक सरकारी उपक्रम है। इसका उद्देश्य प्रदेश के विद्युत संचार प्रणाली को मजबूत करने तथा भविष्य में बनने वाली जल विद्युत परियोजनाओं को विद्युत संचार की सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया है। हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा निगम को सौंपे गए कार्यों में मुख्यतः प्रदेश में बनने वाली सभी नई 66 के.वी. की क्षमता से ऊपर की लाईनों व विद्युत उपकेन्द्रों के निर्माण करने के साथ-साथ विद्युत वोल्टेज में सुधार, वर्तमान संचार ढाचे में सम्बर्धन व मजबूती प्रदान करने तथा विद्युत उत्पादन केन्द्रों व संचार लाईनों का निर्माण करते हुए प्रदेश के मास्टर संचार प्लान को लागू करना सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त निगम को राज्य में ट्रांसमिशन यूटीलिटी का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है जिसके अन्तर्गत संचार व समन्वय से जुड़े सभी मुद्दों पर सैन्ट्रल ट्रांसमिशन यूटीलिटी, केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण, केन्द्रीय व राज्य के ऊर्जा मंत्रालयों तथा हि.प्र. राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड से समन्वय रखने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। इसके अतिरिक्त निगम की जिम्मेदारी आई.पी.पी.सी.पी.एस.यू., राज्य के सार्वजनिक उपक्रम, हि.प्र. पाॅवर कार्पाेरेशन लिमिटिड व अन्य केन्द्र व राज्य क्षेत्र के विद्युत उत्पादक इकाईयों के लिए संचार व सम्नवय से जुड़ी योजना बनाना भी सम्मिलित है। भारत सरकार ने हिमाचल प्रदेश के पावर सिस्टम मास्टर प्लान (पी.एस.एम.पी.) में शामिल ट्रांसमिशन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए एशियाई विकास बैंक से ऋण लेने की मंजूरी दे दी है। प्राप्त ऋण को क्रमशः ट्रेंच I,II और III में विभाजित किया गया था। इन तीनों ट्रेंच का कार्य सफलतापूर्वक 29.09.2021 तक कर लिया गया है। सारणी 11.9 जी.ई.सी.-1 के तहत एच.पी.पी.टी.सी.एल. द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं का विवरण प्रस्तुत करती है।
उपरोक्त के अलावा, हरित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए किफायती पारेषण प्रणाली विकसित करने के लिए ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर- I (GEC-I) योजना शुरू की गई है। इस योजना को आंशिक रूप से (40 प्रतिशत) वित्त पोषित किया गया है नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) से अनुदान और आंशिक रूप से (40 प्रतिशत) जर्मन विकास बैंक, केएफडब्ल्यू से कम निश्चित ब्याज दर ऋण के रूप में, और बाकी इक्विटी से। ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड की वित्तीय सहायता से, एचपीपीटीसीएल ने 5 परियोजनाएं शुरू की हैं। इनके पूरा होने से चंबा, कुल्लू और किन्नौर जिलों के मौजूदा राज्य ट्रांसमिशन नेटवर्क में 163 एमवीए परिवर्तन क्षमता और 102 सीकेएम ट्रांसमिशन लाइन जुड़ गई है।
जीईसी-I के तहत, एचपीपीटीसीएल ने 10 ट्रांसमिशन परियोजनाएं सौंपी हैं, जिनमें से 3 परियोजनाएं चालू हो चुकी हैं और शेष 7 परियोजनाएं निष्पादन के विभिन्न चरणों में हैं। इन सभी परियोजनाओं के पूरा होने से विभिन्न जिलों में 847 एमवीए परिवर्तन क्षमता और 183.88 सीकेएम ट्रांसमिशन लाइनें बढ़ेंगी।
1) प्रमुख उपलब्धियां: वित्त वर्ष 2021-22 में, एचपीपीटीसीएल ने 31 दिसंबर 2021 तक `106 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ 2 ट्रांसमिशन लाइनें चालू की हैं, जिसके परिणामस्वरूप 73 सर्किट जुड़े हैं। मौजूदा ट्रांसमिशन नेटवर्क से किलोमीटर। इसके अलावा 205 सर्किट किलोमीटर की कुल लंबाई वाली 5 ट्रांसमिशन लाइनें और 651.5 एमवीए की परिवर्तन क्षमता वाले 6 ईएचवी सबस्टेशन पूरे होने पर हैं, जिसकी लागत `556.25 करोड़ है। वित्त वर्ष 2021-22 में एचपीपीटीसीएल ने 31 दिसंबर 2021 तक लगभग `300 करोड़ का पूंजीगत व्यय किया है और 31 मार्च 2022 तक `60.00 करोड़ के अतिरिक्त व्यय का लक्ष्य रखा है।
हिमऊर्जा ने अक्षय ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने हेतु भरसक प्रयास किए हैं। यह कार्यक्रम प्रदेश में भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय तथा राज्य सरकार की वित्तीय सहायता से कार्यान्वित किया गया है। हिमऊर्जा सरकार को राज्य में लघु जल विद्युत (5 मै.वा. तक) के तीव्र दोहन हेतु भी सहायता प्रदान कर रही है। हिमऊर्जा द्वारा कार्यक्रम शुरू किए गए हैंः-
हिमऊर्जा पूरे राज्य में विभिन्न स्थानों पर निम्न प्रकार के बिजली संयंत्र भी चलाता है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से निष्पादित की जा रही 5 मेगावाट क्षमता तक की लघु जल विद्युत परियोजनाएं:चालू वित्तीय वर्ष के दौरान, दिसंबर, 2021 तक, 4.80 मेगावाट क्षमता चालू कर दी गई है और मार्च 2022 तक 9.80 मेगावाट की स्थापित क्षमता होने का अनुमान है।
दिसंबर, 2021 तक 5 मेगावाट क्षमता तक आवंटित परियोजनाएं तालिका 11.12 में उल्लिखित हैं।
100 किलोवाट तक की माइक्रो हाइडल परियोजनाएं और राज्य क्षेत्र के अंतर्गत परियोजनाएं: राज्य क्षेत्र के अंतर्गत 32.24 मेगावाट क्षमता की 12 परियोजनाएं थीं दिसंबर, 2021 तक स्वीकृत। 12 परियोजनाओं में से 4 चालू हो गईं, 3 बिल्डऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी) आधार पर आवंटित की गईं और 5 पूर्व-कार्यान्वयन अनुबंध चरण पर थीं।
महत्वपूर्ण नीतिगत पहल:
1) जल विद्युत नीति में संशोधन।
2) मुफ्त बिजली रॉयल्टी को तर्कसंगत बनाया गया।
3) 10 मेगावाट तक की परियोजनाओं के लिए एचपीएसईबीएल द्वारा बिजली की अनिवार्य खरीद।
4) टैरिफ निर्धारण प्रक्रिया सुव्यवस्थित हुई।
5) 25 मेगावाट तक की परियोजनाओं के लिए ओपन एक्सेस शुल्क में छूट।
6) औद्योगिक इकाइयों के कैप्टिव उपयोग के लिए 10 मेगावाट तक की परियोजनाओं का आवंटन।
7) अग्रिम प्रीमियम और क्षमता वृद्धि शुल्क में कमी।
8) सरकारी/वन भूमि के लिए नाममात्र शुल्क की घोषणा की गई।
9) उन परियोजनाओं के लिए शून्य तिथि को फिर से परिभाषित करके परियोजना डेवलपर्स को एक बार की माफी, जो जांच और मंजूरी चरण में हैं, जहां आईए पर पहले ही हस्ताक्षर किए जा चुके हैं और परियोजनाओं के लिए अनुसूचित वाणिज्यिक संचालन तिथि (एससीओडी) को फिर से परिभाषित करके निर्माणाधीन चरण.

12.पर्यटन और परिवहन

हिमाचल प्रदेश राज्य की वृद्धि, विकास और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। राज्य के लिए पर्यटन क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश में दुनिया भर से पर्यटक आते हैं। वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी लगभग 52 लाख 4011 पर्यटन इकाइयों को आकर्षित करने में सफल रही, विभाग में 828 स्टे पंजीकृत हैं। विभाग ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के तहत प्रोजेक्ट-2 के साथ 291.04 डॉलर का प्रस्ताव भारत सरकार को प्रस्तुत किया है, जिसे मंजूरी दे दी गई है। वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा, ट्रेंच के तहत ली जाने वाली परियोजनाओं के लिए सरकारी डीपीआर। इसके तहत बनाए गए बुनियादी ढांचे से पर्यटक प्रवाह में वृद्धि होगी और राज्य में रहने की अवधि के दौरान प्रति आगंतुक वृद्धि की संभावना है।
ब्याज अनुदान योजना: पर्यटन उद्योग पर कोविड-19 के प्रभाव के कारण हिमाचल प्रदेश सरकार ने ब्याज अनुदान योजना अधिसूचित की है आतिथ्य उद्योग के लिए कार्यशील पूंजी ऋण 02-07-2020 को रोजमर्रा के कारोबार चलाने, वेतन, किराया और उपयोगिता बिलों का भुगतान आदि जैसी तत्काल जरूरतों के लिए ऋण प्रदान करके अल्पावधि में व्यापार निवेश और आर्थिक विकास का समर्थन करें। संशोधित ब्याज छूट योजना 17-06 2021 को अधिसूचित किया गया था और 31-03-2022 तक वैध है।
स्वदेश दर्शन योजना: भारत सरकार, पर्यटन मंत्रालय ने "स्वदेश दर्शन योजना" को मंजूरी दे दी है हिमाचल प्रदेश के लिए वर्ष 2017। निम्नलिखित परियोजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं:
1) कियारीघाट जिले में कन्वेंशन सेंटर। सोलन.
2) शिमला में हेलीपोर्ट का निर्माण।
3) जिले में डल झील का सौंदर्यीकरण। कांगड़ा.
4) कांगड़ा में ग्राम हाट।
5) अंतर्राष्ट्रीय मानक मुक्त खड़ी कृत्रिम चढ़ाई वाली दीवार।
6) टाउन स्क्वायर मॉल रोड शिमला में लाइट एंड साउंड शो।
7) बीर बिलिंग जिले में पैराग्लाइडिंग केंद्र का निर्माण। कांगड़ा.
8) भलेई माता चंबा में कला और शिल्प केंद्र।
9) मां हाटेश्वरी मंदिर हाटकोटी शिमला का विकास।
10) पूरे सर्किट के लिए साइनेज, गैंटेरी, सीसीटीवी और वाईफाई।
प्रचार: पर्यटन विभाग विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री तैयार करता है जैसे ब्रोशर/पैम्फलेट, फोल्डर, मोनाल पत्रिका, कैलेंडर, गाइड मैप और कॉफ़ी टेबल बुक आदि और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विभिन्न पर्यटन मेलों, मार्ट और प्रदर्शनी में भाग लेता है।
नागरिक उड्डयन: राज्य में उच्च श्रेणी के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए, तीन हवाई अड्डों से नियमित उड़ानें निर्धारित की जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में जुब्बड़हट्टी (शिमला), भुंटर (कुल्लू) और गग्गल (कांगड़ा)। सरकार गग्गल, कांगड़ा हवाई अड्डे की हवाई पट्टियों के विस्तार के लिए गंभीरता से प्रयास कर रही है। मण्डी जिले में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे के निर्माण का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के विचाराधीन है। क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस) उड़े देश का आम नागरिक-2 (यूडीएएन) के तहत पांच हेलीपोर्ट बनाए जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश-शिमला और रामपुर (जिला शिमला), बद्दी (जिला सोलन) कांगनीधार (जिला मंडी) और हिम और हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान (एसएएसई) (मनाली, जिला कुल्लू) में विकसित किया गया। इनमें से शिमला और बद्दी में हेलीपोर्ट बनकर तैयार हो चुके हैं। वर्तमान में मैसर्स पवन हंस लिमिटेड (पीएचएल) उड़ान-2 के तहत चंडीगढ़-शिमला-चंडीगढ़ सेक्टर और शिमला-कुल्लू और शिमला-धर्मशाला पर हेलीकॉप्टर सेवा चला रहा है। राज्य में हेलीकॉप्टर सेवाएं बढ़ाने के लिए पीएचएल ने उड़ान-2 के तहत रामपुर और कांगनीधार हेलीपोर्ट से नॉन शेड्यूल ऑपरेशन (एनएसओपी) भी शुरू कर दिया है।
नई राहें नई मंजिलें: राज्य सरकार ने एक नई योजना "नई राहें नई मंजिलें" शुरू की है। वर्ष 2018-19 के लिए 50.00 करोड़ की राशि परिव्यय के साथ पर्यटन की दृष्टि से अनछुए क्षेत्रों का विकास। योजनान्तर्गत प्रत्येक वर्ष 2018-19 से 2021-22 तक 50.00 करोड़ की धनराशि उपलब्ध करायी गयी एवं प्रारम्भ से अब तक कुल 200.00 करोड़ की धनराशि उपलब्ध करायी गयी है।
पर्यटकों/आगंतुकों को अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए विभाग ने इस योजना के तहत निम्नलिखित स्थानों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया है:
1) बिलिंग, जिला कांगड़ा पैराग्लाइडिंग गंतव्य के रूप में।
2) चांसल जिला शिमला स्की गंतव्य के रूप में।
3) जंजैहली जिला मंडी को इको-पर्यटन स्थल के रूप में।
4) लारजी, तातापानी और पोंग बांध में जल क्रीड़ा गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचा।
5) सेर जगास जिला सिरमौर में पैराग्लाइडिंग गंतव्य और नोहराधार घाटियों से चूड़धार में इको-टूरिज्म।
6) अटल रोहतांग सुरंग के दोनों छोर पर पर्यटन संबंधी सार्वजनिक सुविधाएं।
7) शिवधाम का निर्माण।
राज्य सरकार ने क्षेत्र की पारिस्थितिक संवेदनशीलता के प्रति बेहद सचेत रहते हुए, अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और संवर्धन का संकल्प लिया है और सभी क्षेत्रों में सतत विकास के पथ पर चलने का संकल्प राज्य की जलविद्युत नीति, टिकाऊ पर्यटन नीति, टिकाऊ वन से देखा जा सकता है। प्रबंधन नीतियां और पर्यावरण मास्टर प्लान। राज्य उन निवेशकों को प्रोत्साहित करने की भी योजना बना रहा है जो स्थिरता को एक व्यवहार्य आर्थिक उद्यम के रूप में देखते हैं। पर्यटन क्षेत्र नीति 2019 को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह आर्थिक विकास को गति देगा, सामाजिक असमानता को कम करेगा, गरीबी को कम करेगा, मूर्त और अमूर्त विरासत (अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके) को स्थायी तरीके से संरक्षित करेगा। सबसे ज्यादा इस नीति का महत्वपूर्ण उद्देश्य "स्थायी पर्यटन के लिए निवेश के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना" है। यह नीति मेजबान समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास, यात्रियों को गुणवत्तापूर्ण अनुभव प्रदान करने, प्राकृतिक-सांस्कृतिक वातावरण और राज्य के गंतव्यों की सुरक्षा की दिशा में निर्देशित विभिन्न उद्देश्यों के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी), विशेष रूप से एसडीजी 8 और 12 को प्राप्त करने के लिए तैयार की गई है। और निजी निवेशकों के लिए निवेश अनुकूल माहौल बनाना।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एचपीटीडीसी) हिमाचल प्रदेश में पर्यटन बुनियादी ढांचे के विकास में अग्रणी है। यह सहित पर्यटन सेवाओं का संपूर्ण पैकेज प्रदान करता है आवास, खानपान, परिवहन, कॉन्फ्रेंसिंग और खेल गतिविधियाँ। इसमें 1047 कमरों और 2,370 बिस्तरों वाले 54 होटलों के साथ राज्य में बेहतरीन होटलों और रेस्तरांओं की सबसे बड़ी श्रृंखला है।
भारत और दुनिया भर में पर्यटन उद्योग को कोविड 19 महामारी से भारी नुकसान हुआ है, जिससे राज्य के पर्यटन उद्योग के साथ-साथ एचपीटीडीसी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। राज्य सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के कारण निगम के होटल मई, 2020 में बंद थे। एचपीटीडीसी ने कसौली में एक नवनिर्मित होटल न्यू रोस कॉमन का संचालन शुरू कर दिया है, जिसमें 32 कमरे हैं, जिनकी कुल क्षमता 66 बिस्तरों की है और इसने शिशु, जिला लाहौल और स्पीति में एक 'कैफे अटल' भी खोला है। चालू वित्तीय वर्ष में एचपीटीडीसी ने दिसंबर, 2021 तक 68.00 करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले 55.76 करोड़ का कारोबार किया।
राज्य के तीव्र आर्थिक विकास के लिए सड़कें एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवसंरचना है। अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे कृषि, बागवानी, उद्योग, खनन और वानिकी का विकास कुशल सड़क नेटवर्क पर निर्भर करता है। रेलवे और जलमार्ग जैसे परिवहन के किसी अन्य उपयुक्त ओर व्यवहार्य साधनों के अभाव में, सड़कें हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। राज्य सरकार ने लगभग एक नए सिरे से शुरुआत करते हुए 40,020 किलोमीटर का निर्माण किया है। दिसम्बर, 2021 तक वाहन चलने योग्य सड़कें (जिसमें जीप योग्य एवम् ट्रैक भी सम्मिलित हैं) का निर्माण कर लिया है। प्रदेश सरकार सड़कों के विकास को अत्यधिक प्राथमिकता दे रही है।
वर्ष 2021-22 के लिए निर्धारित लक्ष्य एवं दिसम्बर, 2021 तक की उपलब्धियों का ब्यौरा सारणी संख्या 12.1 में दर्शाया गया हैः
हिमाचल प्रदेश में दिसम्बर, 2021 तक 10,591 गांव सड़कों से जोडे़ गये जिनका ब्यौरा सारणी संख्या 12.2 में दिया जा रहा हैः
राष्ट्रीय उच्च मार्ग (केन्द्रीय क्षेत्र) : वर्तमान में 19 राष्ट्रीय राजमार्ग जिनकी कुल लम्बाई 2,592 किलोमीटर है, राज्य सड़क नेटवर्क की मुख्य जीवन रेखा है जिसमें हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग द्वारा 1,238 किलोमीटर लम्बे राष्ट्रीय राजमार्ग का विकास और रखरखाव किया जा रहा है। इसके अलावा भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा 5 राष्ट्रीय राजमार्गों 785 किलोमीटर और सीमा सड़क संगठन द्वारा 3 राष्ट्रीय राजमार्गों के 569 कि.मी. का विकास व रख-रखाव किया जा रहा है।
परिवहन विभाग मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 213 के प्रावधानों के तहत कार्य करता है। परिवहन विभाग की स्थापना मुख्य रुप से मोटर वाहन अधिनियम, 1988, हिमाचल प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1972 और उसके तहत बनाए गए नियमों के प्रावधानों को लागू करने के लिए की गई है। हिमाचल प्रदेश का परिवहन विभाग परिवहन सुविधाओं के विकास में अन्य संगठनो की सहायता करता है और सड़क मार्ग से यात्रियों और माल की आवाजाही के लिए एक कुशल, पर्याप्त और सस्ती परिवहन सेवा प्रदान करने का प्रयास करता है। वैधानिक कार्यों के निर्वहन में, विभाग ने मोटर वाहनों पर करों के रुप में सरकार को राजस्व अर्जित करने वाले प्रमुख विभागों में एक स्थान बनाया है। वर्ष 2020-21 के दौरान राजस्व सृजन ₹382.64 करोड़ था और वर्ष 2021-22 के लिए लक्ष्य₹487.71 करोड़ है, जबकि दिसम्बर, 2021 तक₹365.28 करोड़ का राजस्व सृजन किया गया।
वर्ष 2021-22 (दिसम्बर, 2021) के दौरान विभिन्न अपराधों के लिए 12,433 वाहनों का चालान किया गया और₹244.20 लाख की राशि दण्ड के रुप में एकत्र की गई। दिसम्बर, 2021 तक विभाग ने 19,05,073 वाहनों को जिलेवार पंजीकृत किया है जो कि नीचे दी गई तालिका में दिखाया गया है।
परिवहन विभाग की उपलब्धियां परिवहन विभाग ने वर्ष 2021-22 के दौरान निम्नलिखित उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं:
1) निरीक्षण और प्रमाणन केंद्र: वाहनों के निरीक्षण और प्रमाणन को वैज्ञानिक तरीके से बेहतर बनाने के लिए, राज्य ने निरीक्षण और प्रमाणन की स्थापना की प्रक्रिया शुरू की है। MoRTH की वित्तीय सहायता के तहत सोलन जिले के बद्दी में केंद्र, परियोजना की लागत 16.35 करोड़ है। काम 01-01-2020 को शुरू किया गया था और प्रशासनिक ब्लॉक पूरा हो चुका है और सिविल कार्य प्रगति पर है।
2) ट्रांसपोर्ट नगर का निर्माण: राज्य ने संबंधित उप आयुक्तों (डीसी) की अध्यक्षता में उपयुक्त भूमि की पहचान के लिए एक समिति अधिसूचित की है। नादौन में उपयुक्त भूमि की पहचान की गई है। जिला हमीरपुर जहां विभाग द्वारा प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके अलावा, ट्रांसपोर्ट नगर के लिए काला अंब, पांवटा और शिमला में टोटू के पास भी भूमि की पहचान की गई है।
3) ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल (डीटीएस) और प्रदूषण जांच केंद्र: इच्छुक उम्मीदवारों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, विभाग ने राज्य में 338 ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूलों को लाइसेंस दिए हैं, जिनमें आईटीआई के तहत 8 शामिल हैं। एचआरटीसी के तहत 10 और 320 निजी ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल। इसके अलावा राज्य में 357 प्रदूषण जांच केंद्र भी अधिकृत किये गये हैं.
रोजगार सृजन: सरकार ने 30.12.2021 को "स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार (परिवहन) योजना" अधिसूचित की है। जो बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने में मदद करेगा। परिवहन विभाग ने वर्ष 2021-22 के लिए रोजगार सृजन का लक्ष्य 19,150 निर्धारित किया गया, जिसमें से दिसंबर, 2021 तक 10,018 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है। विवरण इस प्रकार है:

4) इलेक्ट्रिक वाहन नीति-2022: हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने हिमाचल प्रदेश को इलेक्ट्रिक वाहन (निजी, साझा और वाणिज्यिक) की हर श्रेणी में एक मॉडल राज्य बनाने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2022 को अधिसूचित किया है। टिकाऊ, सुरक्षित, पर्यावरण-अनुकूल, समावेशी और आधुनिक परिवहन प्रदान करना। इस नीति का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं, वाहन निर्माताओं को लाभ पहुंचाना और इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करना है। नीति का लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और भारत सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप, वर्ष 2025 तक राज्य में सभी नए वाहन पंजीकरणों में से लगभग 15 प्रतिशत को इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए कवर करना है।
5) स्कूली बच्चों के सुरक्षित परिवहन के लिए दिशानिर्देश: राज्य सरकार स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर है और उसने दिनांक 10-10-2018 की अधिसूचना के माध्यम से स्कूल बसों के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। इस अधिसूचना में निहित निर्देशों को स्कूली बच्चों को ले जाने वाले वाहनों की जांच के लिए 100% लक्ष्य प्राप्त करने के निर्देशों के साथ सख्ती से कार्यान्वयन के लिए सभी क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों (आरटीओ) और अन्य संबंधित विभागों को प्रसारित किया गया है।
6) मोटर साइकिल किराए पर लेने और मोटर कैब योजना: मोटर बाइक किराए पर लेने की योजना मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के प्रावधान के तहत एक अधिसूचित योजना है। हिमाचल प्रदेश राज्य ने अधिसूचना संख्या टीपीटी के तहत -ए(4)9/2015 दिनांक 25.05.2017 द्वारा अधिसूचित रेंट-ए बाइक योजना को अपनाया गया केंद्र सरकार ने वर्ष 1997 में। इसके बाद हिमाचल प्रदेश राज्य ने अधिसूचना संख्या Tpt-A(4)9/2015 दिनांक 06-03-2019 के माध्यम से राज्य में इस योजना को अधिसूचित किया। राज्य परिवहन प्राधिकरण ने आवेदकों को 990 वाहन खरीद की अनुमति दी।
7) निजी बसों और टैक्सियों के बेड़े की संख्या: हिमाचल प्रदेश में निजी स्टेज कैरिज बसों की कुल संख्या 3303 है और टैक्सियों की संख्या (बैठने की क्षमता 4+1) 28034 है, मैक्सी (6) दिसंबर, 2021 तक +1 और अधिक) 12267 है। जिलेवार और आरटीओ वार विवरण इस प्रकार है:
सड़क परिवहन प्रदेश में आर्थिक गतिविधियों का मुख्य आधार है क्योंकि परिवहन के अन्य साधन जैसे रेलवे, वायुमार्ग, टैक्सी, ऑटो रिक्शा आदि नगण्य हैं, इसलिए हिमाचल सड़क परिवहन निगम राज्य में सर्वोपरि महत्व रखता है। हिमाचल प्रदेश के लोगों को राज्य के भीतर और बाहर यात्री परिवहन सेवाएं एचआरटीसी द्वारा 3,023 बसों, 75 इलेक्ट्रिक बसों, 21 टैक्सियों और 50 इलेक्ट्रिक टैक्सियों के बेड़े के साथ प्रदान की जा रही हैं।
यात्रियों के लाभ के लिए एचआरटीसी योजनाएं:लोगों के लाभ के लिए, निम्नलिखित योजनाएं संचालित हैं साल के दौरान:
1) ग्रीन कार्ड योजना: ग्रीन कार्डधारक को किराए में 25 प्रतिशत की छूट दी जाती है, यदि यात्री द्वारा की गई यात्रा 50 किमी की है। दो साल की वैधता वाले इस कार्ड की कीमत 50 रुपये है।
2) स्मार्ट कार्ड योजना: निगम ने स्मार्ट कार्ड योजना शुरू की है। दो साल की वैधता वाले कार्ड की कीमत 50 रुपये है। यह किराए पर 10% की छूट प्रदान करता है और एचआरटीसी साधारण, सुपर फास्ट, में मान्य है। सेमी डीलक्स और डीलक्स बसें। वोल्वो और एसी बसों में 1 अक्टूबर से 31 मार्च तक छूट दी गई है।
3) वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मान कार्ड योजना: निगम ने 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मान कार्ड योजना शुरू की है। इस योजना के तहत किराये में 30 फीसदी की छूट है साधारण बसों में अनुमति।
4) महिलाओं को मुफ्त सुविधा: महिलाओं को "रक्षा बंधन" और "भैया दूज" के अवसर पर एचआरटीसी की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है। मुस्लिम महिलाओं को निःशुल्क यात्रा की सुविधा दी गई है "आईडी" और "बेकर आईडी" का अवसर।
5) महिलाओं को किराए में छूट: निगम ने महिलाओं को राज्य के भीतर साधारण बसों में किराए में 25 प्रतिशत की छूट भी दी है।
6) सरकारी स्कूलों के छात्रों को मुफ्त सुविधा:सरकारी स्कूलों के +2 कक्षा तक के छात्रों को उनके बीच आने-जाने के लिए एचआरटीसी की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है। निवास एवं विद्यालय.
7) गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को नि:शुल्क सुविधा: कैंसर, रीढ़ की हड्डी में चोट, किडनी और डायलिसिस रोगियों को एचआरटीसी बसों में एक परिचारक के साथ नि:शुल्क यात्रा की सुविधा प्रदान की जाती है। राज्य के भीतर और बाहर डॉक्टर द्वारा जारी रेफरल पर्ची पर चिकित्सा उपचार की सुविधा।
8) विशेष योग्यजन व्यक्तियों को निःशुल्क सुविधा: निगम राज्य के भीतर 70 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता वाले विशेष योग्यजन व्यक्तियों को एक सहायक के साथ निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान कर रहा है।
9) वीरता पुरस्कार विजेताओं को मुफ्त सुविधा: वीरता पुरस्कार विजेताओं को राज्य में डीलक्स बसों के अलावा एचआरटीसी की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है।
10) लक्जरी बसें: निगम वेट-लीजिंग योजना के तहत 56 स्वामित्व वाली और 32 बसें सुपर लग्जरी (वोल्वो / स्कैनिया) और 08 लक्जरी एसी बसें अंतरराज्यीय मार्गों और 08 टेंपो ट्रैवलर अंतरराज्यीय मार्गों पर चला रहा है। बेहतर प्रदान करने के लिए जनता को परिवहन सुविधा. 24X7 हेल्पलाइन: यात्रियों की शिकायतें दर्ज करने और उनका समाधान करने के लिए 24x7 HRTC/निजी बस यात्रियों की हेल्पलाइन नंबर 9418000529 और 0177-2657326 शुरू की गई है।
11) सीलबंद सड़कों पर टैक्सियां: निगम द्वारा शिमला शहर में सीलबंद/प्रतिबंधित सड़कों पर जनता के लिए टैक्सी सेवाएं भी शुरू की गई हैं।
12) शहीदों के परिवारों को मुफ्त यात्रा सुविधा: एचआरटीसी ने युद्ध विधवाओं, माता-पिता और युद्ध में शहीद हुए सशस्त्र बलों के कर्मियों और विधवाओं के 18 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त यात्रा सुविधा प्रदान की है। 18 वर्ष की आयु तक के माता-पिता और बच्चे सशस्त्र बल कार्मिक और अर्धसैनिक सैनिकों के माता-पिता, जो ड्यूटी पर शहीद हो गए थे।
13) पर्यटन स्थल तक इलेक्ट्रिक बसों की सुविधा: निगम ने प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों और आगंतुकों के लिए इलेक्ट्रिक बसें शुरू की हैं।
14) महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनों की सुविधा: महिलाओं के लाभ के लिए 38 बस अड्डों पर सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें लगाई गई हैं।
15) बस अड्डों पर विशेष योग्यजनों के लिए व्हीलचेयर की सुविधा: विशेष योग्यजनों के लाभ के लिए 42 बस अड्डों पर व्हील चेयर उपलब्ध कराई गई है।
16) निगम ने जनता और दूरदराज के क्षेत्र में बेहतर परिवहन सुविधा प्रदान करने के लिए पांच सुपर लक्जरी एसी वोल्वो बसें और पांच टेंपो ट्रैवलर खरीदीं।
17) जनता की मांग पर निगम ने शिमला से चंडीगढ़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और शिमला के लिए वोल्वो बसें शुरू कीं। कटरा (जम्मू).

13.सामाजिक क्षेत्र

शिक्षा राष्ट्र निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू रही है। शिक्षा आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है, मानव संसाधन का निर्माण करती है, गरीबी कम करती है और आय बढ़ाती है। शिक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सतत लक्ष्य-1 (संख्या-4), जिसका उद्देश्य "समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिए जीवन भर सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना" है और साथ ही "एजुकेशन 2030 फ्रेमवर्क फॉर एक्शन" की दिशा में, पालन किए जाने वाले लक्ष्यों का एक सेट प्रदान करता है। सदस्य देशों द्वारा 2030 तक सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए। कुशल और जानकार कार्यबल प्रदान करके शिक्षा अर्थव्यवस्था के हर दूसरे क्षेत्र पर एक उत्प्रेरक प्रभाव डालती है जो बदले में उत्पादकता को बढ़ाती है और क्षमता। हिमाचल प्रदेश के शैक्षिक मानक अपनी स्थापना के बाद से ही राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहे हैं। पिछले कुछ समय में शैक्षणिक संस्थानों की उपलब्धता में जबरदस्त वृद्धि हुई है दशक। अपनी कठोर जलवायु परिस्थितियों और उबड़-खाबड़ इलाकों के बावजूद, राज्य ने अपने शैक्षिक बुनियादी ढांचे में प्रभावशाली प्रगति की और इसके परिणामस्वरूप छात्र नामांकन और साक्षरता दर में वृद्धि हुई।
जनगणना 2011 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में साक्षरता दर 82.80 प्रतिशत थी जो राष्ट्रीय औसत 74.0 प्रतिशत से 8.8 प्रतिशत अधिक है। राज्य में पुरुषों के लिए ये दरें 89.53 प्रतिशत और महिलाओं के लिए 75.93 प्रतिशत थीं। ये जनगणना 2001 की दरों से महत्वपूर्ण सुधार हैं, जो पुरुषों के लिए 85.35 प्रतिशत, महिलाओं के लिए 67.42 प्रतिशत और कुल मिलाकर 76.48 प्रतिशत थीं। लैंगिक अंतर 2001 में 17.93 प्रतिशत अंक से घटकर 2011 में 13.6 प्रतिशत अंक हो गया। हालिया आंकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा "घरेलू सामाजिक उपभोग: शिक्षा" पर किए गए सर्वेक्षण में प्रदान किए गए हैं, जो इसके 75वें सर्वेक्षण के रूप में आयोजित किया गया था। 2017-18 के दौरान सर्वेक्षण का दौर। रिपोर्ट में राज्य की समग्र स्थिति का अनुमान लगाया गया है 2017 में साक्षरता दर सुधरकर 86.6 प्रतिशत हो जाएगी। इसी प्रकार, पुरुष साक्षरता दर बढ़कर 92.9 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 80.5 प्रतिशत हो गई, जिसमें लिंग अंतर 12.4 प्रतिशत अंक है।
सरकारी स्कूल में नामांकित 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का प्रतिशत: चित्र 13.1 से पता चलता है कि सरकारी स्कूलों में नामांकित 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का प्रतिशत 2018 में 58.6 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 60.9 प्रतिशत हो गया है। सरकारी स्कूलों में नामांकन 2020 से 2021 तक 6.8 प्रतिशत अंक से अधिक बढ़ गया है। 7.1 प्रतिशत अंक की वृद्धि देखी गई है 2020 से 2021 तक लड़कियों के नामांकन में, जबकि इसी आयु वर्ग में लड़कों के नामांकन में 6.2 प्रतिशत अंक की वृद्धि देखी गई है।
हिमाचल प्रदेश में स्मार्ट फोन तक पहुंच वाले नामांकित बच्चों का प्रतिशत: बच्चों के घरों में स्मार्ट फोन की उपलब्धता लगभग हो गई है 2018 से 2021 तक दोगुना हो गया। उदाहरण के लिए, 2018 में, सरकारी स्कूलों के 58 प्रतिशत बच्चों के पास घर पर कम से कम एक स्मार्ट फोन था। यह अनुपात 2020 में बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया और 2021 में और बढ़कर 95.6 प्रतिशत हो गया (चित्र- 13.2)।
प्रतिशत नामांकित बच्चे जिन्हें स्कूल के प्रकार के अनुसार घर पर पढ़ाई के दौरान परिवार के सदस्यों से सहायता मिलती है: हम "सीखने का समर्थन" शब्द का उपयोग करते हैं घर पर‟ उस प्रयास को संदर्भित करता है जो परिवार बच्चों को घर पर पढ़ाई के दौरान सीखने की गतिविधियों में मदद करने के लिए करते हैं। हिमाचल प्रदेश में, निजी स्कूलों में नामांकित 90.4 प्रतिशत बच्चों को घर पर पढ़ाई के दौरान अपने परिवार के सदस्यों से मदद मिली, जबकि केवल 81.8 प्रतिशत बच्चों को घर पर पढ़ाई के दौरान अपने परिवार के सदस्यों से मदद मिली। सरकारी स्कूलों के शत-प्रतिशत बच्चों की मदद उनके परिजन करते हैं और दोनों संस्थानों को मिलाकर देखा जाए तो यह संख्या 84.8 प्रतिशत है (चित्र-13.3)।
माता-पिता की शिक्षा द्वारा नामांकित बच्चों का वितरण: यदि हम हिमाचल प्रदेश में इन बच्चों के माता-पिता के शिक्षा स्तर को देखें, 65.6 प्रतिशत की शिक्षा उच्च, 30.4 प्रतिशत की मध्यम और 4 प्रतिशत की निम्न स्तर की है। माता-पिता की "कम" शिक्षा में वे परिवार शामिल हैं जहां माता-पिता दोनों ने मानक V या उससे कम (बिना स्कूली शिक्षा वाले लोगों सहित) पूरा किया है। स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर, 'उच्च' अभिभावक शिक्षा श्रेणी में वे परिवार शामिल हैं जहां माता-पिता दोनों ने कम से कम कक्षा IX पूरी कर ली है। अन्य सभी माता-पिता वर्ष 2021 के लिए 'मध्यम' श्रेणी में हैं (चित्र 13.4)
नामांकित बच्चों का प्रतिशत जिनके पास उनकी वर्तमान कक्षा के लिए पाठ्यपुस्तकें हैं: लगभग सभी नामांकित बच्चों के पास उनकी वर्तमान कक्षा के लिए पाठ्यपुस्तकें हैं (97.3) %). वर्ष 2021 में निजी स्कूलों में नामांकित 96.9 प्रतिशत की तुलना में, सरकारी स्कूलों में नामांकित 97.5 प्रतिशत छात्रों के पास पाठ्यपुस्तकें हैं। 2020 में, यही संख्या क्रमशः 96.4 प्रतिशत और 96.2 प्रतिशत थी। यह राज्य सरकार की निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराने की पहल के कारण संभव हुआ और इस संबंध में हिमाचल प्रदेश की स्थिति आसपास के राज्यों की तुलना में कहीं बेहतर है (चित्र 13.5)।
31.12.2021 तक सरकारी क्षेत्र में 10,734 प्राथमिक विद्यालय और 2,022 मध्य विद्यालय हैं। प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए नये सिरे से शिक्षकों की नियुक्ति करने का प्रयास किया जा रहा है स्कूल नियमित रूप से. विशेष रूप से सक्षम बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने का भी प्रयास किया गया है। प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की नीतियां निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ लागू की जाती हैं:
1) प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करना।
2) गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना।
3) राज्य में हर बच्चे तक शिक्षा की पहुंच।
वर्ष 2021-22 में विभिन्न प्रकार के निम्नलिखित प्रोत्साहन दिए गए हैंः-
कार्यक्रम को शिक्षा के एक ऑनलाइन मोड के रूप में "हर घर पाठशाला" के रूप में लॉन्च किया गया है। शिक्षा पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से, यह एक बहुत ही सफल शिक्षण कार्यक्रम है जिससे काफी लाभ हुआ है 8 लाख सरकारी स्कूल के छात्र। यह निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ कक्षा 1 से 12वीं के लिए दैनिक आधार पर एक घर आधारित, शिक्षक सुविधायुक्त, स्व-अध्ययन कार्यक्रम है:
1) यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस महामारी में स्कूल बंद होने के कारण छात्रों की पढ़ाई बाधित न हो।
2) दैनिक आधार पर व्हाट्सएप समूहों के माध्यम से वीडियो और वर्कशीट के रूप में सामग्री का प्रसार।
3) व्हाट्सएप और चैटबॉट पर साप्ताहिक क्विज़ आयोजित करना।
4) शिक्षकों द्वारा छात्रों के साथ लाइव कक्षाओं का संचालन:
हर घर पाठशाला चरण-1 राज्य में अनुमानित 6.4 लाख (80%) छात्रों तक पहुंचने में सक्षम रहा है और पिछले 18 महीनों में हर हफ्ते लगभग 4 लाख (50%) छात्र कार्यक्रम से जुड़े रहे। कार्यक्रम के लिए मुख्य सहभागिता मेट्रिक्स इस प्रकार हैं:
5) औसतन 2.5 लाख छात्र प्रतिदिन हर घर पाठशाला वेबसाइट पर सामग्री देखते हैं।
6) साप्ताहिक व्हाट्सएप क्विज़ में औसतन 4 लाख छात्रों ने भाग लिया।
7) औसतन 25,000 शिक्षक प्रतिदिन लाइव कक्षाएं संचालित करते हैं।
ई-पेरेंट टीचर मीट (ई-पीटीएम): ई-पीटीएम ड्राइव बेहद सफल रही है; बैठक में लगभग 94 प्रतिशत छात्रों के अभिभावकों ने भाग लिया और पाया कि हर घर पाठशाला कार्यक्रम उपयोगी था।
राज्य सरकार द्वारा शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की जा रही है प्रदेश में दिसम्बर, 2021 तक 930 उच्च पाठशालाएं, 1,882 वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाएं तथा 139 सरकारी महाविद्यालय जिसमें 7 संस्क₹त महाविद्यालय, 1 राज्य शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, 1 बी.एड. महाविद्यालय और 1 ललित कला महाविद्यालय शामिल हैं।
प्रदेश में समाज के वंचित वर्ग की शिक्षा सुधार के लिए राज्य में शिक्षा ग्रहण कर रहे विभिन्न वर्ग के छात्रों को अनेक छात्रवृतियां प्रदान की जा रही है। छात्रव₹ति योजनाए निम्न प्रकार से हैंः
संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा:संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा भी लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। विवरण इस प्रकार हैं:
1) उच्च/वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना।
2) माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत पढ़ाने के लिए संस्कृत व्याख्याताओं के वेतन हेतु अनुदान प्रदान करना।
3) संस्कृत विद्यालयों का आधुनिकीकरण।  संस्कृत को बढ़ावा देने और अनुसंधान/अनुसंधान परियोजनाओं के लिए विभिन्न योजनाओं के लिए अनुदान।
शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम: 2021-22 के दौरान राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद सोलन और राजकीय महाविद्यालय अध्यापक शिक्षा धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश द्वारा ऑनलाइन आयोजन किया गया प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं सरकारी विद्यालयों के 156 शिक्षकों एवं महाविद्यालयों एवं विद्यालयों के 99 प्राचार्य/प्रधानाध्यापकों को प्रशिक्षण दिया गया है।
निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें: राज्य सरकार 9वीं और 10वीं कक्षा के सभी छात्रों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें प्रदान करती है। 2021-22 के दौरान इस योजना के तहत 1,34,626 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
विकलांग बच्चों को मुफ्त शिक्षा: 40 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता वाले बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी जा रही है। राज्य में 10+2 स्तर तक प्रदान किया गया है और उन्हें छूट दी गई है 10+2 स्तर तक किसी भी शुल्क और धनराशि का भुगतान करने से। इसके अलावा, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को विश्वविद्यालय स्तर तक फीस का भुगतान करने से छूट दी गई है।
छात्राओं को मुफ्त शिक्षा: छात्राओं को बिना किसी ट्यूशन फीस के मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा रही है। विश्वविद्यालय स्तर तक राज्य.
प्रदेश के सभी वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में स्वयं आर्थिक प्रबन्धन आधार पर विद्यार्थियों द्वारा वैकल्पिक विषय को चयनित कर सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान की जा रही है। आई.टी. शिक्षा के लिए विभाग द्वारा ₹110 प्रतिमाह प्रति विद्यार्थी फीस ली जा रही है। अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) परिवारों के छात्रों को 50 प्रतिशत शुल्क की छूट दी जाती है। वर्ष 2021-22 में कुल 90,034 विद्यार्थी आई.टी. शिक्षा के लिए नामांकित हुए जिसमें 4,826 अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) के विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
समग्र शिक्षा के अंतर्गत निम्नलिखित योजनाएँ चल रही हैं:
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA): RMSA 90:10 (90) के शेयरिंग पैटर्न में चल रहा है % भारत सरकार और 10% राज्य सरकार) बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए आरएमएसए के तहत गतिविधियां शुरू की जा रही हैं मौजूदा माध्यमिक विद्यालयों, सेवा शिक्षकों में प्रशिक्षण, आत्मरक्षा प्रशिक्षण और राज्य में स्कूलों को वार्षिक अनुदान के साथ कला उत्सव।
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) परियोजना: स्मार्ट का उपयोग करके शिक्षण और सीखने की गतिविधि को बेहतर बनाने और मजबूत करने के लिए कक्षा कक्ष और मल्टी-मीडिया शिक्षण सहायता, विभाग ने सफलतापूर्वक कार्यान्वित की है 2021-22 तक 2,555 सरकारी हाई/सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में आईसीटी और इस वित्तीय वर्ष के दौरान 117 सरकारी स्कूलों को कवर किया जा रहा है।
व्यावसायिक शिक्षा: राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क योजना (NSQF) के तहत 1,003 में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जा रही है स्कूलों और 97 अन्य स्कूलों को भी 31.03.2022 से पहले कवर किया जाएगा। इस योजना के तहत: ट्रेड यानी ऑटोमोबाइल, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) / सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाएं (आईटीईएस), पर्यटन और आतिथ्य, दूरसंचार, स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षा, खुदरा, कृषि, मीडिया और मनोरंजन, छात्रों को बैंकिंग वित्त सेवाएं और बीमा, शारीरिक शिक्षा, परिधान, मेकअप और होम फर्निशिंग, सौंदर्य और कल्याण, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर और प्लंबिंग सिखाया जा रहा है।
माध्यमिक स्तर पर विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए समावेशी शिक्षा: इस योजना के तहत, 12 मॉडल स्कूल पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं। सभी जिले जिनमें से 4 स्कूल आवासीय सुविधाओं के साथ हैं। विशेष आवश्यकता वाले 7,498 बच्चों को सरकारी स्कूलों में नामांकित किया गया है और 202122 में 28 चिकित्सा मूल्यांकन शिविर भी आयोजित किए गए हैं।
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA): राज्य में सुधार के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान लागू किया गया है। उच्च शिक्षा प्रणाली. इस योजना के तहत 70 महाविद्यालयों को रूसा अनुदान दिया जा रहा है हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू)।
मुख्यमंत्री डिजिटल डिवाइस योजना: इस योजना के तहत, विभाग ने वितरित किए जाने वाले 10,000 स्मार्ट फोन खरीदने का प्रस्ताव रखा है कक्षा 10वीं और 12वीं के मेधावी छात्रों (प्रत्येक कक्षा में 4450 छात्र) और शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए स्कूलों में शिक्षण गतिविधियों को मजबूत करने के उद्देश्य से अंतिम वर्ष के 900 कॉलेज छात्र (बी.ए., बी.एससी., बी.कॉम प्रत्येक 300)। इस सत्र की परीक्षा मार्च में होगी. 2022 स्कूली छात्रों के लिए हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड, धर्मशाला के तहत और कॉलेज के छात्रों के लिए एचपीयू, शिमला के तहत।
मेधा प्रोत्साहन योजना: योजना का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के मेधावी छात्रों को कोचिंग प्रदान करके सहायता करना है कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT)/राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा के लिए (एनईईटी)/भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-संयुक्त प्रवेश परीक्षा (आईआईटी-जेईई)/अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)/सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी)/राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए)/संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी)/कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी)/बैंकिंग आदि कुल मिलाकर इस योजना से 390 छात्र लाभान्वित होंगे।
क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन (सीसीटीवी) निगरानी प्रणाली की स्थापना: सीसीटीवी निगरानी प्रणाली स्थापित करने के लिए बजट प्रावधान किया गया है वर्ष 2021-22 के दौरान 100 सरकारी स्कूलों में।
स्वर्ण जयंती उत्कृष्ट विद्यालय और उत्कृष्ट महाविद्यालय योजना: उच्च शिक्षा विभाग, हिमाचल प्रदेश ने 68 स्कूलों की पहचान की है प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र को उत्कृष्ट के रूप में नामित किया गया है चालू वित्तीय वर्ष में स्वर्ण जयंती उत्कृष्ट विद्यालय योजना के अंतर्गत विद्यालय एवं विद्यालय परिसर के विकास एवं सौंदर्यीकरण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रत्येक विद्यालय के लिए `44.00 लाख का बजट स्वीकृत मैत्रीपूर्ण विशेषताएं. इसके अलावा, 18 सरकारी डिग्री कॉलेजों को उत्कृष्ट महाविद्यालय के रूप में नामित किया गया है और इन कॉलेजों के लिए ₹75.00 लाख का बजट स्वीकृत किया गया है।
खेल से स्वास्थ्य योजना: खेल के सामान जैसे कि कबड्डी मैट, जूडो मैट, कुश्ती, भारोत्तोलन और मुक्केबाजी 129 सीनियर सेकेंड्री को अंगूठियां प्रदान की गई हैं। स्कूलों और 57 सरकारी कॉलेजों के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करना 2021-22 में इस योजना के तहत खेल गतिविधियों में भागीदारी।
स्वर्ण जयंती सुपर 100 योजना: विभाग ने प्रत्येक को `1.00 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है सरकारी स्कूलों के 10वीं कक्षा के शीर्ष 100 मेधावी विद्यार्थियों को उत्तीर्ण करने के लिए इस योजना के तहत व्यावसायिक/तकनीकी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए कोचिंग और इसके लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान ₹1.10 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
स्कूलों और कॉलेजों के लिए सी.वी. रमन वर्चुअल क्लास रूम: सी.वी. रमन वर्चुअल क्लासरूम योजना के तहत स्थापना की प्रक्रिया वर्तमान वित्तीय वर्ष में 30 स्कूलों और 20 कॉलेजों में वर्चुअल क्लास रूम का काम चल रहा है वर्ष 2021-22.
स्वर्ण जयंती विद्यार्थी अनुशिक्षण योजना: "स्वर्ण जयंती विद्यार्थी अनुशिक्षण योजना" माननीय द्वारा शुरू की गई थी 05-09-2021 को शिक्षक दिवस के अवसर पर राज्यपाल महोदया से मुलाकात की, जिसके तहत छात्र सरकारी स्कूलों में 9वीं से +2 कक्षा तक पढ़ने वालों को जेईई-एनईईटी प्रवेश परीक्षा के लिए मुफ्त कोचिंग मिलती है। इसके लिए प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को "हर घर पाठशाला पोर्टल" पर अध्ययन सामग्री अपलोड की जा रही है।
बैचलर ऑफ वोकेशनल डिग्री कोर्स (बी.वोक): 6 और कॉलेजों में बी.वोक डिग्री प्रोग्राम शुरू हुआ 2021-22 में दो क्षेत्रों "खुदरा प्रबंधन" और आतिथ्य और पर्यटन में। ये कॉलेज हैं राजकीय कन्या महाविद्यालय शिमला, राजकीय डिग्री कॉलेज सीमा, जिला शिमला, राजकीय डिग्री कॉलेज सरकाघाट, जिला मंडी, राजकीय डिग्री कॉलेज घुमारवीं, जिला बिलासपुर, राजकीय डिग्री कॉलेज ढलियारा, जिला कांगड़ा और सरकारी डिग्री कॉलेज हरिपुर मनाली, जिला कुल्लू। इसके अतिरिक्त वर्ष 2021-22 के दौरान 76 विद्यार्थियों को प्लेसमेंट प्रदान किया गया है।
अटल स्कूल वर्दी योजना: विभाग ने 11वीं के 1,72,392 विद्यार्थियों को स्कूल यूनिफॉर्म के दो सेट वितरित किए हैं अटल स्कूल वर्दी के अंतर्गत 12वीं कक्षा योजना और वर्ष 2021-22 के दौरान सरकारी स्कूलों की 9वीं और 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले 1,24,412 छात्रों को मुफ्त पाठ्य पुस्तकें भी वितरित की गईं।
कोविड-19 के दौरान विभाग द्वारा की गई अन्य पहल: कोविड-19 ने लाभ उठाने के नए अवसर प्रदान किए के क्षेत्र में छात्रों के लिए प्रौद्योगिकी स्कूल प्रणाली में शैक्षणिक इनपुट, स्व-अध्ययन, स्व-मूल्यांकन और परीक्षा। छात्रों को डिजिटल लर्निंग पहल का पूरा उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसे जारी रखने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है विभिन्न सुरक्षा उपाय अपनाकर स्वयं को कोविड-19 वायरस से सुरक्षित रखें।
1) कोविड-19 के कारण पिछले 7 महीनों से स्कूल बंद थे और विभाग ने सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों को उनके घर पर ही ऑनलाइन शिक्षा प्रदान की है।
2) कोविड-19 महामारी के दौरान, उच्च शिक्षा विभाग, एच.पी. ने राज्य के कॉलेजों में अंतिम वर्ष में पढ़ने वाले छात्रों की सफलतापूर्वक परीक्षा आयोजित की और परिणाम घोषित किया चालू वित्तीय वर्ष 2021-22.
3) बच्चों को कोविड-19 बीमारी से बचाने के लिए राज्य के सभी स्कूलों में पढ़ने वाले 15-18 आयु वर्ग के सभी छात्रों को टीका लगाया गया है।
तकनीकी विभाग द्वारा तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के इच्छुक प्रत्येक विद्यार्थी प्रदेश में ही तकनीकी शिक्षा तथा फार्मेसी में स्नातक, डिप्लोमा एवं सर्टीफिकेट कोर्स के लिए निम्नलिखित संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैंः-
तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम चरण-III (TEQIP-III) अप्रैल, 2017 से शुरू किया गया था जो सितंबर, 2021 में समाप्त हुआ। राज्य के तीन महाविद्यालय यथा जवाहरलाल नेहरू शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, राजीव गांधी शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज और हिमाचल तकनीकी विश्वविद्यालय को इस परियोजना के तहत चुना गया है, प्रत्येक चयनित संस्थान के लिए `10.00 करोड़ की प्रारंभिक परियोजना लागत और हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय के लिए `20.00 करोड़ और एक राशि स्वीकृत की गई है इस वित्तीय वर्ष के दौरान तीन इंजीनियरिंग कॉलेजों द्वारा `28.56 करोड़ और हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय द्वारा `10.29 करोड़ खर्च किए गए हैं।
हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के तहत लघु अवधि प्रशिक्षण: हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना (HPSDP) के तहत, हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम (एचपीकेवीएन) ने हिमाचल प्रदेश के युवाओं को राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) अनुरूप लघु अवधि कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए 61 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। वर्तमान में 58 सरकारी आईटीआई के 8,398 अभ्यर्थी प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस परियोजना के तहत 3 वर्षों के लिए 106 कार्य भूमिकाओं के लिए 38,181 प्रशिक्षुओं का लक्ष्य है।
औद्योगिक मूल्य संवर्धन (STRIVE) परियोजना के लिए कौशल सुदृढ़ीकरण: केंद्र प्रायोजित योजना के तहत 19 आईटीआई का चयन किया गया है को उन्नत करने का प्रयास करें इन आईटीआई के बुनियादी ढांचे, ताकि प्रशिक्षुओं को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके और इस योजना के तहत `30.71 करोड़ की राशि आवंटित की गई है। 2020-21 के लिए, सरकार द्वारा `12.24 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं भारत के आईटीआई को उनके आवंटन के अनुसार हस्तांतरित किया गया और राज्य निदेशालय के लिए `11.80 करोड़ आवंटित किए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में राज्य को 2.83 करोड़ की धनराशि प्राप्त हुई है तथा राज्य परियोजना क्रियान्वयन इकाई के अन्तर्गत ₹30.00 लाख की धनराशि प्राप्त हुई है।
कोविड-19 के मद्देनजर की गई पहल: 1) ऑफ़लाइन/ऑनलाइन संकाय विकास कार्यक्रम के माध्यम से अधिक संकायों को प्रशिक्षित किया गया है राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (NITTTR), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) आदि द्वारा संचालित।
2) वर्ष 2021-22 के लिए इंजीनियरिंग और फार्मेसी पाठ्यक्रमों के संबंध में ऑनलाइन/ऑफ़लाइन प्रवेश और परामर्श प्रक्रिया आयोजित की गई और अखिल भारतीय तकनीकी परिषद के अनुसार प्रवेशित छात्रों की कक्षाएं शुरू की गईं। शिक्षा (एआईसीटीई)/राज्य सरकार संस्थान। इसके अलावा, मौजूदा छात्रों की कक्षाएं ऑफ़लाइन मोड और जहां आवश्यक हो ऑनलाइन मोड में व्यवस्थित की जा रही हैं।
3) शिक्षकों एवं छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रतिष्ठित उद्योगों/संस्थानों के साथ औद्योगिक एवं शिक्षण सम्बन्धी वार्ता की गई और व्यावहारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। 
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण: राज्य सरकार का दृष्टिकोण राज्य के सभी नागरिकों का अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित करना है। अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करके, उन्मूलन करना संचारी और गैर-संचारी रोग और इस दशक में अपनी स्वास्थ्य देखभाल सेवा का विस्तार भी कर रहे हैं। राज्य ने इस मोर्चे पर काफी प्रगति की है और स्वास्थ्य संकेतकों में बाकियों की तुलना में बेहतर स्थिति में है राष्ट्र का. हिमाचल प्रदेश में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग सेवाएं प्रदान कर रहा है जिसमें अस्पतालों, सामुदायिक नेटवर्क के माध्यम से उपचारात्मक, निवारक, आदिम और पुनर्वास सेवाएं शामिल हैं। स्वास्थ्य केंद्र आदि जो नीचे तालिका में दिए गए हैं।
2021-22 के दौरान राज्य में चलाए गए विभिन्न स्वास्थ्य और परिवार कल्याण कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
वर्तमान में इस चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत सरकारी क्षेत्र में छह मेडिकल कॉलेज और एक डेंटल कॉलेज कार्यरत हैं, इसके अलावा निजी क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज और चार डेंटल कॉलेज हैं। 2021-22 के दौरान दिसंबर, 2021 तक धनराशि का संस्थानवार आवंटन और व्यय निम्नलिखित तालिका में दिया गया है:
शैक्षणिक उपलब्धियां
चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में शैक्षणिक उपलब्धियां इस प्रकार हैं:
1) बैचलर ऑफ मेडिसिन्स एंड बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) और पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी): शैक्षणिक सत्र 2021-22 के दौरान, सरकारी और निजी क्षेत्र में कुल 870 एमबीबीएस सीटें भरी गईं (720 में) सरकार और 150 (निजी क्षेत्र) में। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला, डॉ. राजिंदर प्रसाद सरकारी मेडिकल कॉलेज (डॉ. आरपीजीएमसी) में विभिन्न विशिष्टताओं में 309 स्नातकोत्तर (पीजी) सीटें आवंटित की गईं। टांडा और महर्षि मार्कंडेश्वर विश्वविद्यालय (एमएमयू), सोलन
2) बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) और मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी (एमडीएस): 355 बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) सीटें और 95 मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी (एमडीएस) सीटें भरी गईं। शैक्षणिक सत्र 2021-22 के दौरान सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र।
3) नर्सिंग: सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए 280 सीटें, जनरल नर्सिंग और मिडवाइफरी (जीएनएम) पाठ्यक्रम के लिए 1,540 सीटें, 1,780 बी.एससी. नर्सिंग, 435 पोस्ट बेसिक बीएससी नर्सिंग और 181 सीटें एमएससी के लिए शैक्षणिक सत्र 2021-22 के दौरान विभिन्न सरकारी और निजी संस्थानों में नर्सिंग डिग्री पाठ्यक्रम को मंजूरी दे दी गई है।
4) छात्रवृत्ति/वजीफा: राज्य सरकार ने बैचलर ऑफ मेडिसिन्स एंड बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) और बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) इंटर्न छात्रों का वजीफा `15,000 से बढ़ाकर `17,000 प्रति कर दिया है। महीना।
5) डिप्लोमेट ऑफ नेशनल बोर्ड (डीएनबी) पाठ्यक्रम: राज्य के सभी नए मेडिकल कॉलेजों में विभिन्न विशिष्टताओं में डीएनबी पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं। कार्डियोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, न्यूरोलॉजी और में सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रम गैस्ट्रोलॉजी आईजीएमसी शिमला और डॉ. आरपीजीएमसी टांडा में चल रही है।

दिसंबर, 2021 तक संस्थानवार प्रमुख उपलब्धियाँ तालिका 13.9 में दी गई हैं:
आयुष विभाग हिमाचल प्रदेश राज्य की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आयुष की स्थापना 1984 में हुई थी, राज्य में आयुष स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के माध्यम से आम जनता को स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, राज्य आयुष नीति, 2019 तैयार की गई और 6 नवंबर, 2019 को अधिसूचित की गई। इस नीति के तहत, `1,335.25 करोड़ के 52 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। आयुष क्षेत्र में संभावित निवेशक। आयुष बुनियादी ढांचे का समग्र दृश्य नीचे दिया गया है:
आयुष क्षेत्र में संभावित निवेशक। आयुष बुनियादी ढांचे का समग्र दृश्य नीचे दिया गया है:
सार्वजनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय आयुष मिशन के औषधीय पौध घटक के अंतर्गत एक माॅडल नर्सरी, जोगिन्द्रनगर में ₹25.00 लाख खर्च करके स्थापित की गई। हिमालय वन अनुसंधान द्वारा जिला कुल्लू व शिमला में ₹12.50 लाख खर्च करके दो छोटी नर्सरियों को भी स्थापित किया गय। 70 हैक्टेयर भूमि में ₹54.44 लाख के अनुदान देकर किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। चरक राजकीय आयुर्वेदिक फार्मेंसी पपरोला, जिला काॅंगड़ा में औषधीय पौधों को सुखाने के लिए एक शैड और एक भण्डारण गोदाम का निर्माण किया गया।
सार्वजनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय आयुष मिशन के औषधीय पादप घटक के तहत जोगिंदरनगर में `25.00 लाख खर्च करके एक मॉडल नर्सरी स्थापित की जा रही है और हिमालय वन अनुसंधान संस्थान द्वारा कुल्लू और शिमला में `12.50 लाख खर्च करके दो छोटी नर्सरी स्थापित की गई हैं। `54.44 लाख के अनुदान घटक के साथ किसानों की भूमि में 70 हेक्टेयर क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। चरक राजकीय आयुर्वेदिक फार्मेसी-पपरोला, जिला कांगड़ा में औषधीय पौधों के लिए एक सुखाने शेड और एक भंडारण गोदाम का निर्माण किया गया है।
कोविड-19 टीकाकरण की स्थिति:
1) राज्य में 16 जनवरी, 2021 को कोविड-19 टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू की गई थी। 30 जनवरी, 2022 तक कोविड-19 पोर्टल के अनुसार दी गई खुराक की कुल संख्या 1,19,20,817 थी, जिनमें से 62,77,737 को पहली खुराक दी गई और 55,51,179 को दूसरी खुराक। इसके अलावा 91,901 खुराकें एहतियाती खुराक के तौर पर दी गईं.
2) 15 से 18 वर्ष आयु वर्ग के लिए टीकाकरण प्रक्रिया 3 जनवरी, 2022 से शुरू हो गई है। COVAXIN की पहली खुराक 3,88,301 बच्चों को दी जा चुकी है।
3) हेल्थ केयर वर्कर्स (एचसीडब्ल्यू), फ्रंटलाइन वर्कर्स (एफएलडब्ल्यू) और 60+ सह-रुग्णता समूह के लिए एहतियाती टीकाकरण प्रक्रिया 10 जनवरी, 2022 से शुरू हो गई है। अब तक 32,658 एचसीडब्ल्यू, 14,848 एफएलडब्ल्यू और 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के अन्य बीमारियों से पीड़ित 44,395 व्यक्तियों को टीका लगाया गया है।

कोविड-19 महामारी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए की गई पहल: चल रहे कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए महामारी, राज्य सरकार ने सरकार के अनुसार महामारी की शुरुआत से ही कई कदम उठाए थे भारत सरकार ने पहली और दूसरी लहर में इस महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के निर्देश दिए हैं और राज्य सरकार तीसरी लहर से निपटने के लिए भी पूरी तरह तैयार है। कोविड-19 महामारी पर अंकुश लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं समय-समय पर जारी किया जाता है और केस लोड के अनुसार तैयारी बढ़ा दी जाती है। राज्य में कोविड-19 की रोकथाम और प्रबंधन के लिए निम्नलिखित पहल की गई हैं।
निगरानी और संपर्क अनुरेखण: कोविड के प्रसार को रोकने के लिए जिलों में संपर्क अनुरेखण टीमें तैयार की गईं- 19. जिला प्रशासन द्वारा जिलों में कन्टेनमेंट जोन अधिसूचित किये गये थे। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा निषिद्ध क्षेत्रों में सक्रिय निगरानी और बफर जोन में निष्क्रिय निगरानी की जा रही है। कोरोना वायरस रोग (कोविड)-19 के स्थानीय प्रसारण को रोकने के लिए सूक्ष्म योजनाएँ तैयार की गईं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में घरेलू अलगाव में सभी कोविड-19 रोगियों की संबंधित क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) कार्यकर्ता द्वारा नियमित रूप से निगरानी की जा रही है। iv.कोविद -19 सीरो सर्वेक्षण 1 सितंबर 2021 से 15 सितंबर 2021 तक पूरे राज्य में आयोजित किया गया है। सूचना शिक्षा एवं संचार (आईईसी) राज्य में लोगों को जन मीडिया अभियानों के माध्यम से निवारक उपायों के बारे में नियमित रूप से जागरूक किया जा रहा है। आमजन की जागरूकता के लिए पूरे प्रदेश में "सुरक्षा की युक्ति-कोरोना से मुक्ति" का विशेष अभियान प्रभावी ढंग से प्रारंभ किया गया है। मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों के नेतृत्व में जन प्रतिनिधि नियमित रूप से संबंधित क्षेत्रों में जागरूकता पैदा कर रहे हैं। राज्य में आने वाले पर्यटकों को विभिन्न आईईसी मीडिया के माध्यम से नियमित रूप से कोविड-19 से संबंधित निवारक उपायों का पालन करने के लिए जागरूक किया जाता है। v. परीक्षण, कोविड-19 पॉजिटिव मामलों के सभी संपर्कों और इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी/गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण लक्षणों वाले कोविड-19 संदिग्धों को परीक्षण के लिए लक्षित आबादी में शामिल किया गया है। राज्य में परीक्षण को और बढ़ाने के लिए, हर दिन पसंदीदा समय के दौरान रैपिड एंटीजन परीक्षण के लिए राज्य के सभी प्रमुख शहरों में उपयुक्त स्थानों पर वॉक इन कियोस्क स्थापित किए गए। रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) और रैपिड एंटीजन द्वारा सीओवीआईडी ​​-19 के लिए परीक्षण किए जा रहे सभी व्यक्तियों को परिणाम उपलब्ध होते ही ऑटो एसएमएस भेजा जा रहा है। इससे आम जनता को परिणाम की इच्छा के लिए अनावश्यक यात्रा/प्रतीक्षा/चिंता में कमी आई है और अधिक लाभ हुआ है
सूचना शिक्षा एवं संचार (आईईसी): राज्य में लोगों को निवारक उपायों के बारे में नियमित रूप से जागरूक किया जा रहा है बड़े पैमाने पर मीडिया अभियानों के माध्यम से। आमजन की जागरूकता के लिए पूरे प्रदेश में "सुरक्षा की युक्ति-कोरोना से मुक्ति" का विशेष अभियान प्रभावी ढंग से प्रारंभ किया गया है। मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों के नेतृत्व में जन प्रतिनिधि नियमित रूप से संबंधित क्षेत्रों में जागरूकता पैदा कर रहे हैं। राज्य में आने वाले पर्यटकों को विभिन्न आईईसी मीडिया के माध्यम से नियमित रूप से कोविड-19 से संबंधित निवारक उपायों का पालन करने के लिए जागरूक किया जाता है।
परीक्षण: कोविड-19 पॉजिटिव मामलों के सभी संपर्क और इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी/गंभीर तीव्र बीमारी वाले कोविड-19 संदिग्धों के सभी संपर्क श्वसन संक्रमण के लक्षण परीक्षण के लिए लक्षित जनसंख्या हैं। राज्य में परीक्षण को और बढ़ाने के लिए, हर दिन पसंदीदा समय के दौरान रैपिड एंटीजन परीक्षण के लिए राज्य के सभी प्रमुख शहरों में उपयुक्त स्थानों पर वॉक इन कियोस्क स्थापित किए गए। रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) और रैपिड एंटीजन द्वारा सीओवीआईडी ​​-19 के लिए परीक्षण किए जा रहे सभी व्यक्तियों को परिणाम उपलब्ध होते ही ऑटो एसएमएस भेजा जा रहा है। इससे आम जनता को परिणाम की इच्छा के लिए अनावश्यक यात्रा/प्रतीक्षा/चिंता में कमी आई है और अधिक लाभ हुआ है परिणाम की रिपोर्टिंग/साझाकरण में पारदर्शिता। जीवन धारा- मोबाइल हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की शुरुआत दूरदराज, दुर्गम वंचित क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए की गई है। इसका उपयोग दूरदराज के इलाकों में कोविड-19 संदिग्धों के परीक्षण के लिए भी किया जाता है।
उपचार और प्रबंधन: सामान्य आबादी की गैर-कोविद -19 स्वास्थ्य सेवाओं की मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने के लिए सक्षम थे. अप्रैल महीने में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं फिर से शुरू की गईं, अगस्त महीने में गैर-कोविड-19 सुविधाओं में नियमित सर्जरी के निर्देश दिए गए, टीकाकरण के साथ-साथ मातृ एवं प्रसूति देखभाल सेवाएं जारी रहीं। बीमारी की गंभीरता के आधार पर कोविड-19 रोगियों के प्रबंधन के लिए समर्पित सुविधाएं बनाई गईं। कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान, यह सुनिश्चित किया गया कि मेडिकल कॉलेजों में भर्ती होने वाले सभी रोगियों को सर्वोत्तम चिकित्सा देखभाल मिले और ऑक्सीजन या किसी दवा की कोई कमी न हो।
स्वास्थ्य प्रणालियों/बुनियादी ढांचे को मजबूत करना: हिमाचल प्रदेश में कोविड-19 रोगियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना, ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन मैनिफोल्ड समय पर खरीदे गए और सभी समर्पित कोविड-19 सुविधाओं को प्रदान किए गए। इसके अलावा गंभीर कोविड-19 रोगियों के प्रबंधन के लिए भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए वेंटिलेटर भी सुविधाओं में स्थापित किए गए थे। पालमपुर में ऑक्सीजन की उच्च दबाव पाइप और 50 एलएमएस ऑक्सीजन संयंत्र, ऊना में ऑक्सीजन की एनआरवी पाइप लाइन, टौणी देवी और भोरंज में पीएसए संयंत्र और मैनिफोल्ड सिस्टम की स्थापना प्रक्रियाधीन है। कोविड-19 मामलों में किसी भी अप्रत्याशित वृद्धि को संभालने के लिए नालागढ़ (सोलन), राधा स्वामी सत्संग भवन सोलन, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला, डॉ. राजेंद्र प्रसाद सरकारी मेडिकल कॉलेज टांडा (कांगड़ा), समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्र (डीसीएचसी) में अस्थायी अस्पताल स्थापित किए गए। ) परौर कांगड़ा, श्री लाल बहादुर शास्त्री राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नेरचौक (मंडी), डीसीएचसी राधा स्वामी सत्संग ब्यास खलियार मंडी और पकावाह ऊना। इन सुविधाओं का उपयोग क्षेत्र/अस्पताल की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है।
परिचय नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (NITI) आयोग ने 2019-20 के लिए राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया है। "स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत" शीर्षक वाली रिपोर्ट, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्वास्थ्य परिणामों में उनके साल-दर-साल वृद्धिशील प्रदर्शन के साथ-साथ उनकी समग्र स्थिति पर रैंक करती है। इसे नीति आयोग द्वारा विश्व बैंक की तकनीकी सहायता से और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के साथ निकट परामर्श से विकसित किया गया है। यह 'स्वास्थ्य परिणाम', 'शासन और सूचना', और 'मुख्य इनपुट/प्रक्रियाएँ' के डोमेन के अंतर्गत समूहीकृत बड़े राज्यों के लिए 24 संकेतकों पर आधारित एक भारित समग्र सूचकांक है।
कार्यप्रणाली
1) स्वास्थ्य परिणाम: इसमें नवजात मृत्यु दर, 5 वर्ष से कम उम्र की मृत्यु दर, जन्म के समय लिंग अनुपात जैसे पैरामीटर शामिल हैं।
2) शासन और सूचना: इसमें संस्थागत प्रसव, स्वास्थ्य के लिए निर्धारित प्रमुख पदों पर वरिष्ठ अधिकारियों की औसत नियुक्ति जैसे पैरामीटर शामिल हैं।
3) मुख्य इनपुट/प्रक्रियाएं: इसमें अनुशंसित स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं की कमी का अनुपात, कार्यात्मक चिकित्सा सुविधाएं, जन्म और मृत्यु पंजीकरण शामिल हैं।
4) राज्यों की रैंकिंग: समान संस्थाओं के बीच तुलना सुनिश्चित करने के लिए, रैंकिंग को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है:
ए) बड़े राज्य (19 राज्य)
बी) छोटे राज्य (8 राज्य)
सी) केंद्र शासित प्रदेश (7 केंद्र शासित प्रदेश)
इस वर्गीकरण में हिमाचल प्रदेश बड़े राज्यों की श्रेणी में आता है।
मुख्य परिणाम (H.P)
1) समग्र प्रदर्शन के मामले में, हिमाचल प्रदेश को 63.17 के समग्र संदर्भ वर्ष सूचकांक स्कोर (2019-20) के साथ 19 बड़े राज्यों की श्रेणी में 7वां स्थान दिया गया है।
2) आधार वर्ष (2018-19) से संदर्भ वर्ष (2019-20) तक वृद्धिशील परिवर्तन के संदर्भ में, बड़े राज्यों की श्रेणी में एच.पी. की वृद्धिशील रैंक 15 है।
3) 0.06 का नकारात्मक वृद्धिशील परिवर्तन है (नीचे देखें)।
अवलोकन
1) हिमाचल प्रदेश को खराब रैंक श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इसकी समग्र प्रदर्शन रैंक आधार वर्ष (2018-19) में 6वें से गिरकर संदर्भ वर्ष (2019-20) में 7वें स्थान पर आ गई है।
2) राज्यों का वर्गीकरण आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष के बीच समग्र प्रदर्शन और वृद्धिशील प्रदर्शन के आधार पर किया गया है:
ए) समग्र प्रदर्शन: राज्यों को संदर्भ वर्ष (2019-20) के आधार पर वर्गीकृत किया गया है, सूचकांक स्कोर रेंज: अग्रणी: शीर्ष एक-तिहाई (सूचकांक स्कोर>64.99), उपलब्धियां: मध्य एक तिहाई (सूचकांक स्कोर 47.78 और 64.99 के बीच), आकांक्षी: न्यूनतम एक-तिहाई (सूचकांक स्कोर<47.78)।
बी) वृद्धिशील प्रदर्शन: इसे वृद्धिशील सूचकांक स्कोर रेंज के आधार पर वर्गीकृत किया गया है: बेहतर नहीं (0 या उससे कम), सबसे कम सुधार (0.01-2.0), मामूली सुधार (2.01-4.0) और सर्वाधिक उन्नत (4.0 से अधिक)
3) इसलिए, समग्र प्रदर्शन के मामले में, हिमाचल प्रदेश एक अचीवर है, लेकिन नकारात्मक वृद्धिशील परिवर्तन के कारण वृद्धिशील प्रदर्शन में सुधार नहीं करने वाले राज्यों की श्रेणी में आता है।
4) स्वास्थ्य परिणाम डोमेन में, एच.पी. का स्वास्थ्य परिणाम स्कोर 2.26 के सकारात्मक वृद्धिशील परिवर्तन के साथ 68.76 है।
5) शासन और सूचना क्षेत्र में, हिमाचल प्रदेश का शासन और सूचना सूचकांक स्कोर 18.02 के नकारात्मक वृद्धिशील परिवर्तन के साथ 47.99 है।
6) प्रमुख इनपुट और प्रोसेस डोमेन में, एच.पी. का मुख्य इनपुट और प्रोसेस स्कोर 4.20 के सकारात्मक वृद्धिशील परिवर्तन के साथ 51.65 है।
सामाजिक कल्याण और अन्य पिछड़ा वर्ग का कल्याण: राज्य का सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग सामाजिक-आर्थिक कार्यों में लगा हुआ है और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अशक्त, विशेष रूप से विकलांग, अनाथ बच्चे, विधवा, निराश्रित, गरीब बच्चों और महिलाओं आदि का शैक्षिक उत्थान। सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के तहत निम्नलिखित पेंशन योजनाएं लागू की जा रही हैं:
स्वरोजगार योजना: विभाग तीन निगमों को भी धन प्रदान कर रहा है; हिमाचल प्रदेश अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम, विभिन्न स्वरोजगार योजनाओं के संचालन हेतु निवेश मद के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम तथा हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति निगम। वर्ष 2021-22 के लिए `13.00 करोड़ का बजट प्रावधान है और 31.12.2021 तक `4.495 करोड़ की राशि जारी की जा चुकी है।
अनुसूचित जाति उप-योजना: अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए विभिन्न कार्यक्रम प्रभावी ढंग से कार्यान्वित किए जा रहे हैं। यद्यपि अनुसूचित जाति समुदाय सामान्य योजना के साथ-साथ जनजातीय क्षेत्र विकास योजना के तहत लाभ प्राप्त कर रहे हैं, फिर भी व्यक्तिगत लाभार्थी कार्यक्रमों और बुनियादी ढांचे के विकास के तहत विशेष कवरेज प्रदान करने के लिए अनुसूचित जाति केंद्रित गांवों में कुल राज्य विकास योजना आवंटन का 25.19 प्रतिशत अनुसूचित जाति विकास योजना के लिए निर्धारित किया गया है। 2021-22 के दौरान `2,369.22 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं राज्य में अनुसूचित जातियों के कल्याण हेतु अनुसूचित जाति विकास योजना।
वर्ष 2021-22 के अन्र्तगत निम्नलिखित योजनाएं कार्यान्वित की गई हैंः
महिला राज्य गृह मशोबरा: योजना का मुख्य उद्देश्य मुफ्त आश्रय, भोजन, कपड़े, शिक्षा, स्वास्थ्य प्रदान करना है और दवाएं, परामर्श और व्यावसायिक युवा लड़कियों, विधवाओं, परित्यक्ता, निराश्रित और नैतिक खतरे में महिलाओं को प्रशिक्षण। वर्तमान में बाल कैदी राजकीय गृह मशोबरा में रह रहे हैं। राज्य गृह छोड़ने के बाद ऐसी महिलाओं के पुनर्वास के लिए, प्रति महिला ₹25,000 तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। विवाह के मामले में महिलाओं को ₹51,000 की वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है।
वन स्टॉप सेंटर: वन स्टॉप सेंटर एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है। योजना का मुख्य उद्देश्य एक ही छत के नीचे निजी और सार्वजनिक दोनों स्थानों पर हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत समर्थन और सहायता प्रदान करना है; और तत्काल सुविधा प्रदान करना चिकित्सा, कानूनी, मनोवैज्ञानिक और परामर्श सहायता सहित सेवाओं की एक श्रृंखला तक आपातकालीन और गैर-आपातकालीन पहुंच। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक जिले के मुख्यालय में एक "वन स्टॉप सेंटर" स्थापित किया गया है।
महिला शक्ति केंद्र: महिला शक्ति केंद्र योजना सभी ब्लॉक स्तर पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत स्वीकृत है। हिमाचल प्रदेश के जिले. योजना का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना है। छात्र स्वयंसेवक विभिन्न महत्वपूर्ण सरकार के संबंध में जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे योजनाओं/कार्यक्रमों के साथ-साथ सामाजिक मुद्दे भी।
सक्षम गुड़िया बोर्ड: योजना का मुख्य उद्देश्य लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए नीतियों के लिए सिफारिशें करना है बाल/किशोरी बालिकाओं के उत्थान एवं सशक्तिकरण तथा उनके विरूद्ध अपराध से सुरक्षा के लिए विभिन्न विभागों द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की समीक्षा हेतु बाल/किशोरी, सुरक्षा एवं संरक्षा से संबंधित अधिनियम, नियम, नीतियां एवं कार्यक्रम।
सामाजिक सेवा क्षेत्र पर खर्च में वृद्धि सरकार की सामाजिक कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के अनुपात के रूप में राज्य द्वारा सामाजिक सेवाओं (शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य) पर व्यय 2016-17 से 2021-22 (अग्रिम अनुमान-अ) की अवधि के दौरान बढ़कर 8.48 प्रतिशत से 9.72 प्रतिशत हो गया। इस अवधि के दौरान सभी सामाजिक क्षेत्रों में वृद्धि देखी गई है। शिक्षा के लिए वृद्धि इसी अवधि में 4.17 प्रतिशत से बढ़कर 4.72 प्रतिशत और स्वास्थ्य के लिए 1.42 से 1.70 प्रतिशत हो गई। कुल बजटीय व्यय में से सामाजिक सेवाओं पर व्यय का भाग भी वर्ष 2016-17 में 29.52 प्रतिशत (सारणी-13.13) से बढ़कर वर्ष 2021-22(अ) में 33.91 प्रतिशत हो गया।
Note:
1) सामाजिक सेवाएं: इसमें शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, जल आपूर्ति और स्वच्छता, आवास, शहरी विकास, अनुसूचित जाति (एससी) का कल्याण शामिल हैं। ), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), श्रमिक और श्रमिक कल्याण, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण, पोषण, प्राकृतिक आपदाओं के कारण राहत आदि।
2) 'शिक्षा' पर व्यय 'शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति' पर व्यय से संबंधित है।
3) 'स्वास्थ्य' पर व्यय: इसमें 'चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य', 'परिवार कल्याण' और 'जल आपूर्ति और स्वच्छता' पर व्यय शामिल है।
4) मौजूदा बाजार मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुपात 2011-12 आधार वर्ष पर आधारित है। 2021-22 के लिए जीडीपी बीई अनुमान है।

14.ग्रामीण विकास और पंचायती राज

ग्रामीण विकास विभाग राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन और क्षेत्र विकास कार्यक्रम लागू करता है। निम्नलिखित राज्य और केंद्र प्रायोजित विकासात्मक योजनाएँ और कार्यक्रम राज्य में क्रियान्वित किये जा रहे हैं।
दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAYNRLM): स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) DAY-NRLM द्वारा प्रतिस्थापित किया गया राज्य में 01-04-2013. यह कार्यक्रम एक है ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार (एमओआरडी, भारत सरकार) के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक जिसका उद्देश्य गरीब परिवारों को लाभकारी स्वरोजगार और कुशल मजदूरी तक पहुंचने में सक्षम बनाकर गरीबी को कम करना है। स्थायी आजीविका के लिए रोजगार के अवसर। एनआरएलएम पूरे राज्य में 86 ब्लॉकों में क्रियान्वित किया जा रहा है।
1) इस कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
a) एनआरएलएम के तहत सभी ग्रामीण परिवारों को आवश्यक प्रशिक्षण देकर आजीविका उपार्जन के अवसर प्रदान कर महिलाओं को रोजगार प्रदान करना।
b) इस वित्तीय वर्ष में, प्रशिक्षण प्रदान करने और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और ग्राम संगठनों (वीओ) को मजबूत करने के लिए, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने 390 आंतरिक को प्रशिक्षण दिया है। सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (आईसीआरपी)। राज्य ने राज्य के प्रत्येक ब्लॉक से 5 सक्रिय महिलाओं की पहचान की है और उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान के समन्वय से प्रशिक्षण दिया जा रहा है और पंचायती राज (एनआईआरडी एंड पीआर) हैदराबाद, इन आईसीआरपी को नए एसएचजी बनाने और मौजूदा एसएचजी को समय-समय पर पंचसूत्र के बारे में प्रशिक्षण देने के लिए अपने संबंधित ब्लॉक में तैनात किया जाता है। (नियमित बैठकें, नियमित बचत, आंतरिक उधार, नियमित पुनर्भुगतान और बहीखाता) बैंक लेनदेन, रिकॉर्ड रखरखाव और अन्य विभागों की योजनाएं।
c) हिमाचल प्रदेश में 30,987 से अधिक महिला एसएचजी, 873 वीओ और 15 क्लस्टर लेवल फेडरेशन (सीएलएफ) का गठन किया गया है। एनआरएलएम कार्यक्रम के तहत महिला एसएचजी को वित्तीय सहायता प्रदान की गई है वह स्टार्ट-अप फंड, रिवॉल्विंग फंड (आरएफ) और सामुदायिक निवेश फंड (सीआईएफ) का रूप है।
2) महिला एसएचजी को दिए जा रहे प्रोत्साहन इस प्रकार हैं:
a) ब्याज सबवेंशन: एसएचजी प्रति वर्ष 7 प्रतिशत ब्याज दर पर `3.00 लाख तक के ऋण पर ब्याज सबवेंशन के लिए पात्र होंगे। एसएचजी अपने मौजूदा क्रेडिट में एसजीएसवाई के तहत पूंजीगत सब्सिडी का लाभ उठा रहे हैं बकायादार इस योजना के तहत लाभ के पात्र नहीं होंगे। इसके अतिरिक्त, इस योजना को जिलों की दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है, श्रेणी-I में चार जिले शामिल हैं (कांगड़ा, मंडी, शिमला और ऊना) और MoRD, भारत सरकार के अंतर्गत आते हैं और शेष जिले हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (HPSRLM) के अंतर्गत आते हैं और श्रेणी-II में आएंगे। श्रेणी-I जिलों के लिए बैंक `3.00 लाख की कुल ऋण राशि तक 7 प्रतिशत ब्याज पर एसएचजी को ऋण देंगे। एसएचजी को शीघ्रता से 3 प्रतिशत की अतिरिक्त ब्याज छूट भी मिलेगी भुगतान से ब्याज की प्रभावी दर घटकर 4 प्रतिशत हो गई। श्रेणी-II जिलों के लिए बैंक एसएचजी से उनके संबंधित ऋण मानदंडों और उधार दरों और 7 के बीच के अंतर के अनुसार शुल्क लेंगे। 5.5 प्रतिशत की अधिकतम सीमा के अधीन प्रतिशत एचपीएसआरएलएम द्वारा एसएचजी के ऋण खातों में जमा किया जाएगा।

b) रिवॉल्विंग फंड (आरएफ) और सामुदायिक निवेश फंड (सीआईएफ) के माध्यम से वित्तीय सहायता: एनआरएलएम, एसएचजी और उच्च स्तरीय फेडरेशन (ग्राम संगठन और क्लस्टर/ब्लॉक स्तरीय फेडरेशन) के तहत गरीब महिलाओं का गठन किया गया है। प्रदर्शन के आधार पर, गठन के तीन महीने बाद, एसएचजी को `15 हजार की चक्रीय निधि प्रदान की जाती है, यदि समूह नियमित रूप से बैठकें करता है, रिकॉर्ड रखता है बचत, अंतर-व्यक्ति ऋण और पुनर्भुगतान। एचपीएसआरएलएम ने 17,939 से अधिक एसएचजी को `32.10 करोड़ की आरएफ राशि वितरित की है। परिणामस्वरूप एसएचजी अब सक्रिय रूप से आय सृजन गतिविधियों में भाग ले रहे हैं और अपनी आजीविका और सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए अपना स्वयं का स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं।
c) स्टार्टअप फंड: सभी एसएचजी को गठन के तुरंत बाद स्टार्टअप फंड पर 2,500 रुपये और वीओ को 45,000 रुपये प्रदान किए जाते हैं। एचपीएसआरएलएम ने 2018-19 से और दिसंबर, 2021 तक स्टार्टअप फंड का वितरण शुरू कर दिया है। 17,784 एसएचजी को `4.40 करोड़ और 532 वीओ को `2.40 करोड़ वितरित किए गए हैं।
d) रिवॉल्विंग फंड (आरएफ): दस से पंद्रह हजार का रिवॉल्विंग फंड उन एसएचजी को प्रदान किया जाएगा जो पिछले 3 महीनों से पंचसूत्र का अभ्यास कर रहे हैं और दिसंबर, 2021 तक, `32.10 करोड़ का वितरण किया गया है 17,939 एसएचजी को।
d) सामुदायिक निवेश कोष (सीआईएफ): प्रत्येक एसएचजी को `50 हजार का सामुदायिक निवेश कोष प्रदान किया जाएगा, जिन्होंने छोटे ऋणों के माध्यम से सदस्यों को बचत और परिक्रामी निधि के नियमित आंतरिक उधार को अपनाया है। पिछले 6 महीने से. ये धनराशि वीओ के माध्यम से एसएचजी को ऋण के रूप में भेजी जाएगी, 458 वीओ, जो अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, इस योजना के अंतर्गत आते हैं और उन्हें अतिरिक्त धनराशि दी जाती है। एनआरएलएम से सीआईएफ के रूप में `12.28 करोड़।
e) हिम इरा एसएचजी शॉप: एसएचजी सदस्यों को स्थायी आजीविका का अवसर प्रदान करने और स्वयं सहायता समूहों द्वारा उत्पादित उत्पाद को बाजार से जोड़ने के लिए, राज्य सरकार ने बजट 2020-21 में की घोषणा की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में महिला एसएचजी सदस्य द्वारा प्रबंधित और संचालित हिम इरा दुकानें खोलने के लिए। ग्रामीण विकास विभाग ने राज्य में 100 हिम ईरा एसएचजी दुकानें खोलने का निर्णय लिया है। अप्रैल, 2021 से नवंबर, 2021 तक 40 चालू हिम इरा दुकानों की कुल बिक्री `45.00 लाख दर्ज की गई है। इसके अलावा विभाग 58 विकास खंडों में हिम ईरा साप्ताहिक बाजारों का आयोजन कर रहा है और अप्रैल से नवंबर, 2021 तक कुल बिक्री `44.18 लाख दर्ज की गई।
3)राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत वर्ष 2021-22 में दिसम्बर, 2021 तक जिलावार वित्तीय एवं भौतिक लक्ष्यों के अन्तर्गत उपलब्धियां निम्न प्रकार से हैः-

मुख्यमंत्री एक बीघा योजना: मुख्यमंत्री एक बीघा योजना, मई 2020 के महीने में शुरू की गई है। एनआरएलएम और महात्मा गांधी राष्ट्रीय के बीच एक अभिसरण योजना ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)। एनआरएलएम के साथ पंजीकृत एसएचजी की कोई भी महिला यदि एमजीएनईआरजीए जॉब कार्ड रखती है तो वह ₹1.00 लाख तक इस योजना का लाभ उठा सकती है। इस योजना के तहत 11,271 आवेदन थे स्वीकृत। स्वीकृत आवेदनों के आधार पर, 6,649 कार्य शुरू किए गए और `18.72 करोड़ के कुल व्यय के साथ 1,756 कार्य पूरे किए गए।
दीन दयाल उपाध्याय-ग्रामीण कौशल्या योजना (DDU-GKY): दीन दयाल उपाध्याय-ग्रामीण कौशल्या योजना है ग्रामीण विकास के माध्यम से राज्य में क्रियान्वित किया जा रहा है विभाग और MoRD, भारत सरकार की प्रमुख योजना है। मुख्य उद्देश्य ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रदान करना है, जो गरीब हैं और न्यूनतम मजदूरी पर या उससे ऊपर नियमित मासिक वेतन वाली नौकरियां प्रदान करना है। इस योजना के तहत लाभ हैं:
1) प्रशिक्षित उम्मीदवारों में से 70 प्रतिशत को विभिन्न क्षेत्रों में प्लेसमेंट मिलता है।
2) प्रशिक्षण एवं छात्रावास की सुविधा निःशुल्क दी जाती है।
3) कोर्स की अवधि 3-12 महीने तक होती है।
4) उम्मीदवार की पोस्ट प्लेसमेंट ट्रैकिंग एक वर्ष के लिए की जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों से सम्बन्धित बंजर भूमि/विकृत भूमि विकास, सूखा ग्रस्त तथा मरूस्थल क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन हेतु भूमि विकास, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, गरीबी उन्मूलन, रोजगार के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से हिमाचल प्रदेश में जलागम विकास कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। यह कार्यक्रम केन्द्र और राज्य के बीच 90ः10 के वित्त पोषण आधार पर लागू किया जा रहा है। इस वित्त वर्ष में नवम्बर, 2021 तक पी.एम.के.एस.वाई. के वाटरशेड विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत की गई प्रगति नीचे दर्शाई गई हैः-

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (PMAY-G): PMAY-G का लक्ष्य पक्का घर उपलब्ध कराना है सभी बेघर परिवारों और कच्चे घरों में रहने वाले परिवारों को बुनियादी सुविधाओं के साथ 2022 तक जर्जर इमारतें। यूनिट (घर) की लागत केंद्र और राज्य सरकार के बीच 90:10 के अनुपात में साझा की जाती है। इस योजना के तहत, की वित्तीय सहायता लाभार्थियों को आवास निर्माण के लिए 2019-20 से 1.50 लाख रुपये प्रदान किये जा रहे हैं। राज्य सरकार ने भवन निर्माण इकाई लागत 1.30 लाख के अतिरिक्त 20 हजार की राशि स्वीकृत की है। 2019-20 से. ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने आवास प्लस सर्वेक्षण के तहत वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 3,514 घरों का लक्ष्य आवंटित किया है। दिसंबर, 2021 तक विभाग ने आवंटित लक्ष्य में से 1,620 स्वीकृत कर दिए हैं घरों की संख्या.
मुख्यमंत्री आवास योजना (MMAY): राज्य सरकार ने गरीबी से नीचे की सभी श्रेणियों के लिए इस योजना की घोषणा की थी रेखा। में योजनाबद्ध बजट प्रावधान है चालू वर्ष 2021-22 में राज्य में 20.93 करोड़ रुपये से सभी श्रेणियों के 1,257 मकानों का निर्माण प्रस्तावित है।
सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY): SAGY का मुख्य उद्देश्य समग्र विकास सुनिश्चित करना है चिन्हित ग्राम पंचायतें और गुणवत्ता में सुधार बुनियादी सुविधाएं, उच्च उत्पादकता, उन्नत मानव विकास, बेहतर आजीविका के अवसर और कम असमानताएं, अधिकारों और हकदारियों तक पहुंच, व्यापक सामाजिक गतिशीलता और समृद्ध सामाजिक पूंजी। SAGY कार्यान्वयन के चरण- II के तहत, निम्नलिखित गांवों की पहचान की गई है:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन (एसपीएमआरएम) 21 फरवरी, 2016 को प्रधान मंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था और यह "ग्रामीणों के एक समूह के विकास जो ग्रामीण के सार को संरक्षित और पोषित करता है" के दृष्टिकोण का अनुसरण करता है। सुविधाओं से समझौता किए बिना समानता और समावेशिता पर ध्यान केंद्रित करने वाला सामुदायिक जीवन अनिवार्य रूप से शहरी प्रकृति का है, जिससे "रूर्बन गांवों" का एक समूह तैयार होता है। इसके अंतर्गत बड़े परिणामों की परिकल्पना की गई है यह मिशन हैं:
1) हिमाचल प्रदेश में भारत सरकार द्वारा तीन चरणों में 6 रूर्बन क्लस्टर स्वीकृत किए गए हैं। मिशन के तहत, प्रत्येक रूर्बन क्लस्टर को लगभग `50.00 की कुल परियोजना लागत के साथ विकसित किया जाना है करोड़ जहां 70 प्रतिशत धनराशि सरकार की अन्य योजनाओं के साथ अभिसरण के माध्यम से प्रदान की जाएगी और 30 प्रतिशत क्रिटिकल गैप फंडिंग (सीजीएफ) के रूप में प्रदान की जाएगी। भारत सरकार प्रति व्यक्ति `15.00 करोड़ की राशि प्रदान करती है सीजीएफ के रूप में क्लस्टर।
2) भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा छह क्लस्टर स्वीकृत किए गए हैं, जो नीचे दिए गए हैं:

मातृ शक्ति बीमा योजना: इस योजना में 10 वर्ष की आयु वर्ग के भीतर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली सभी महिलाओं को शामिल किया गया है। -75 वर्ष. पॉलिसी परिवार को राहत प्रदान करती है सदस्यों/बीमाकृत महिलाओं की किसी भी प्रकार की दुर्घटना, सर्जिकल ऑपरेशन जैसे नसबंदी, बच्चे के जन्म/प्रसव के समय दुर्घटना, डूबने, बाढ़ में बहने के कारण मृत्यु या विकलांगता की स्थिति में, यह योजना भूस्खलन, कीड़े के काटने और पति की आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में विवाहित महिलाओं को भी लाभ देती है। मुआवज़ा राशि इस प्रकार है:
1) मृत्यु `2.00 लाख।
2) स्थायी कुल विकलांगता `2.00 लाख।
3) एक अंग और एक आंख या दोनों आंखों और दोनों अंगों की हानि ` 2.00 लाख।
4) एक अंग/एक कान की हानि `1.00 लाख।
5) पति की मृत्यु के मामले में `2.00 लाख। 2021-22 के दौरान, योजना के तहत 31 दिसंबर, 2021 तक 103 परिवारों को `206.00 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान की गई है।
भारत सरकार ने 02.10.2014 को स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण शुरू किया है और 28-10-2016 को हिमाचल प्रदेश को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) राज्य घोषित किया गया है। अब एसबीएम-जी का फोकस निम्नलिखित पर है गतिविधियाँ/घटक:
1) ओडीएफ स्थिरता
2) ओडीएफ प्लस गतिविधियां (आकांक्षी, उभरती और मॉडल)।
3) कोई भी पीछे न छूटे के तहत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) के निर्माण के लिए उन व्यक्तिगत परिवारों को प्रोत्साहन, जिनके पास शौचालय नहीं है।
4) ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) (ग्रे पानी, प्लास्टिक अपशिष्ट और मल कीचड़ प्रबंधन)।
5) सामुदायिक स्वच्छता परिसर (सीएससी) का निर्माण।
6) मासिक धर्म स्वच्छता।
7) गोबर-धन परियोजनाएँ।
8) आईईसी/क्षमता निर्माण।
भारत सरकार ने एसबीएम-जी के कार्यान्वयन के लिए चरण-द्वितीय दिशानिर्देश प्रसारित किए हैं जो 16 सितंबर, 2019 से लागू हैं। राज्य में 01.04.2020 और मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
वर्ष 2021-22 के दौरान उपलब्धियां
1) 6,600 व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया है।
2) 178 सामुदायिक स्वच्छता परिसर (सीएससी) का निर्माण किया गया है।
3) 445 गांवों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों में शामिल किया गया है।
4) 121 गांवों ने तरल अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों को शुरू किया है।
5) प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों के लिए 81 साइटों की पहचान की गई है, 28 साइटों पर काम चल रहा है और 7 इकाइयां चल रही हैं।
6) 14 गोबर-धन परियोजनाओं की स्थापना का काम मैसर्स बाजवा एनर्जी डेवलपर्स, उत्तराखंड को सौंपा गया है और 5 साइटों पर काम शुरू हो गया है।
पंचवटी पंचवटी योजना की शुरुआत वर्ष 2020-21 के दौरान की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ऐसे पार्कों और उद्यानों का निर्माण करना है जो ऐसे स्थानों का निर्माण करें, जिनका उपयोग बुजुर्ग मनोरंजन के लिए कर सकें। इन पार्कों और उद्यानों को मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन (जी) और 14वें वित्त आयोग के अभिसरण से न्यूनतम एक बीघे की समतल भूमि पर विकसित किया जा रहा है। इस योजना के तहत पंचवटी के विकास के लिए 217 स्थलों की पहचान की गई और वित्तीय वर्ष 2021-22 में 70 स्थलों पर काम शुरू किया गया है। अब तक 156.82 लाख की धनराशि व्यय की जा चुकी है।
ग्रामीण मॉडल स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य को आदर्श विद्यालय (मॉडल स्कूल) बनाने के लिए विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष के दौरान एक नई योजना आदर्श विद्यालय (मॉडल स्कूल) शुरू की है। इस योजना के तहत 166 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को चिन्हित किया गया है
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम किसके द्वारा अधिसूचित किया गया था? सितंबर, 2005 को भारत सरकार। वर्ष 202122 के दौरान हुई प्रगति का सारांश नीचे दिया गया है:
इस राज्य में 12 जिला परिषदें, 81 पंचायत समितियाँ और 3,615 ग्राम पंचायतें गठित हैं। विभाग की प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
1) वर्ष 2020-21 में 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन शुरू हो गया है। इस वित्तीय वर्ष के दौरान केंद्र द्वारा राज्य सरकार को `317.00 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं, जिसमें से `158.50 करोड़ पंचायती राज संस्थाओं को वितरित किया गया।
2) राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (आरजीएसए) के तहत, भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय (एमओपीआर, भारत सरकार) ने राज्य के लिए `164.43 करोड़ स्वीकृत किए हैं, जिसमें से `34.42 करोड़ जारी किए जा चुके हैं। एमओपीआर द्वारा निम्नलिखित के लिए जारी किया गया गतिविधियाँ/घटक:
ए) पीआरआई के निर्वाचित प्रतिनिधियों और अधिकारियों का क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण।
बी) चार जिला पंचायत संसाधन केंद्र (डीपीआरसी) कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर और सोलन की अतिरिक्त सुविधाओं और रखरखाव पर आवर्ती लागत।
सी) ग्राम पंचायत के साथ कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) का सह-स्थान।
घ) राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार, प्रतिबद्ध देनदारियों और पूंजीगत कार्यों को पूरा करने के लिए पंचायतों को `248.55 करोड़ प्रदान किए गए थे।
ई) सरकार पीआरआई के निर्वाचित प्रतिनिधियों की यात्रा और दैनिक भत्ते पर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) को अनुदान सहायता प्रदान कर रही है।
च) 412 नव निर्मित ग्राम पंचायतों में से 183 नवगठित ग्राम पंचायतों को नए पंचायत घर के निर्माण के लिए `20.49 करोड़, 10 पुराने ग्रामों को `1.19 करोड़ प्रदान किए गए हैं। पंचायतों को अपने नए पंचायत सामुदायिक केंद्र के निर्माण के लिए और 37 पुरानी ग्राम पंचायतों को उनके संबंधित पंचायत घर की मरम्मत/उन्नयन के लिए `3.19 करोड़ प्रदान किए गए हैं।
g) वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 27,000 नवनिर्वाचित पीआरआई/अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। सातवीं. विभाग द्वारा विभिन्न आईटी एप्लिकेशन पेश किए गए हैं जिनका लाभ आम जनता उठा सकती है परिवार रजिस्टर, राशन कार्ड, विवाह पंजीकरण आदि से संबंधित विभिन्न ऑनलाइन सुविधाएं। ई-ग्राम स्वराज एप्लिकेशन के माध्यम से पंचायतों के खातों तक पहुंच उपलब्ध है।

15.आवास और शहरी विकास

हिमाचल प्रदेश सरकार आवास एवं शहरी विकास प्राधिकरण (हिमुडा) के माध्यम से विभिन्न आय वर्ग के लोगों की आवास मांग को पूरा करने के लिए विभिन्न श्रेणियों के घर, फ्लैट और भूखंड उपलब्ध करा रही है। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिसंबर, 2021 तक `33.92 करोड़ का व्यय किया गया। चालू वर्ष के दौरान 159 फ्लैट, 11 मकान बनाने और विभिन्न श्रेणियों के 180 भूखंड विकसित करने का लक्ष्य है। 80 फ्लैटों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. इसके अतिरिक्त 61 भूखण्ड विकसित किये गये हैं। हिमुडा ने धर्मशाला, सोहला (सिरमौर) में नई आवासीय कॉलोनियां और शिमला में एक वाणिज्यिक परिसर विकसित करने का प्रस्ताव रखा है। इन कॉलोनियों में अनुमानित 1,007 प्लॉट, 1,076 फ्लैट और 2 कॉटेज बनेंगे। शिमला में हवाई अड्डे के निकट नई आवासीय कॉलोनी की योजना प्रगति पर है। फ्लावरडेल, छबरोगटी (बेसमेंट फ्लैट), धरमपुर (सोलन), कामली रोड परवाणू, रामपुर (शिमला), देहरा और राजवारी (मंडी) में हाउसिंग कॉलोनियों का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
हिमुडा की पहल: हिमुडा में वर्ष के दौरान 6,61,330 व्यक्ति दिवस का वेतन रोजगार उत्पन्न होने का अनुमान है 2021-22 विभिन्न कार्यों के निर्माण के माध्यम से जो हिमुडा द्वारा क्रियान्वित किये जा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में शिमला, धर्मशाला, सोलन, मंडी और पालमपुर में नगर निगम सहित 61 शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) हैं। सरकार इन स्थानीय निकायों को आम जनता को नागरिक सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिए हर साल अनुदान सहायता प्रदान कर रही है। राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, यूएलबी को अब तक `161.25 करोड़ जारी किए जा चुके हैं और शेष धनराशि चालू वित्तीय वर्ष के दौरान जारी की जाएगी। इसमें विकास अनुदान और आय और व्यय के बीच अंतर भरने वाला अनुदान शामिल है।
नगर निगम क्षेत्रों में सड़कों का रखरखाव: लगभग 3,288 किलोमीटर सड़कों, रास्तों, गलियों और नालियों का रखरखाव किया जा रहा है 61 शहरी स्थानीय निकायों द्वारा। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में इन सड़कों के लिए सरकार द्वारा `6.00 करोड़ की धनराशि उपलब्ध कराई गई है।

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAYNULM): NULM का मुख्य उद्देश्य गरीबी को कम करना है के माध्यम से शहरी गरीबों के बीच विविध और लाभकारी स्व-रोजगार और कौशल मजदूरी रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना, जिसके परिणामस्वरूप स्थायी आधार पर उनकी आजीविका में सराहनीय सुधार हुआ है। इस योजना के निम्नलिखित मुख्य घटक हैं:
1) कौशल प्रशिक्षण और प्लेसमेंट के माध्यम से रोजगार।
2) सामाजिक गतिशीलता और संस्था विकास।
3) क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण।
4) स्व-रोज़गार कार्यक्रम।
5) शहरी बेघरों के लिए आश्रय।
6) शहरी स्ट्रीट विक्रेताओं को सहायता।
7) नवोन्वेषी और विशेष परियोजनाएँ।
वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए, भारत सरकार ने इस योजना के तहत `5.20 करोड़ की पहली किस्त जारी की है, 2021-22 के दौरान प्रगति इस प्रकार है इस प्रकार है:
1) 372 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का गठन किया गया है।
2) इस योजना के तहत 1516 लाभार्थियों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया गया और 782 उम्मीदवारों को प्लेसमेंट प्रदान किया गया है।
3) 204 व्यक्तियों और 83 एसएचजी को उनके सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने के लिए रियायती ब्याज पर ऋण सहायता प्रदान की गई।
4) पीएम स्वनिधि योजना के तहत लगभग 4,934 ऋण आवेदन बैंकों को प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें से 3,824 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं और 3,634 आवेदकों को ऋण स्वीकृत और वितरित किया गया है।
केंद्रीय वित्त आयोग अनुदान: 15वें वित्त आयोग ने शहरी स्थानीय लोगों को दो प्रकार के अनुदान जारी करने की सिफारिश की है निकाय और छावनी बोर्ड। पहला है अनटाइड ग्रांट (40 प्रतिशत) जो बिना किसी शर्त के जारी किया जाएगा और दूसरा है टाईड ग्रांट (60 प्रतिशत) जो 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में निर्धारित कुछ शर्तों को पूरा करने के अधीन है। 2021-22 हेतु `156.00 करोड़ का बजट प्रावधान है। इसके अलावा, भारत सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष के दौरान राज्य में शहरी स्थानीय निकायों को 15वें वित्त आयोग के तहत `5.53 करोड़ की स्वास्थ्य क्षेत्र अनुदान राशि भी प्रदान की है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए बंधी अनुदान की दूसरी किस्त `51.75 करोड़ और चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए `46.80 करोड़ की पहली किस्त 2021-22 के दौरान शहरी स्थानीय निकायों और छावनी बोर्डों को जारी कर दी गई है।
अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन : इस मिशन के तहत शिमला और कुल्लू को शामिल किया गया है। 2021-22 के दौरान `30.00 करोड़ का बजट प्रावधान है। कुल 75 परियोजनाओं में से 47 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।
स्मार्ट सिटी मिशन (एससीएम): स्मार्ट सिटी मिशन जून, 2015 में लॉन्च किया गया था। नगर निगम, धर्मशाला मिशन के तहत भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था। 2017-18 में नगर निगम शिमला को भारत सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी मिशन के तहत भी चुना गया था। चालू वित्तीय वर्ष में इस मिशन के तहत `100 करोड़ का बजट प्रावधान है। इसके अलावा भारत सरकार ने `68.00 करोड़ की केंद्रीय हिस्सेदारी जारी की है। धर्मशाला स्मार्ट सिटी लिमिटेड की 74 परियोजनाओं में से (डीएससीएल) की 19 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 28 अन्य शुरू की गई हैं। शिमला स्मार्ट सिटी लिमिटेड (एसएससीएल) में 53 परियोजनाओं में से 28 सबसे अधिक करने योग्य परियोजनाओं की पहचान की गई है। इन्हें आगे 163 घटकों में विभाजित किया गया है, जिनमें से 34 घटक पूरे हो चुके हैं और 71 घटकों के लिए काम प्रगति पर है।
स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है और इसे आवास मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सभी अधिसूचित शहरों में लागू किया जा रहा है। स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य है शहरों/कस्बों को खुले में शौच से मुक्त बनाना और सभी को स्वस्थ और रहने योग्य वातावरण प्रदान करना। मिशन के तहत निम्नलिखित कार्य/प्रगति हुई है:
1) कस्बों में पर्याप्त शौचालय सुविधाएं प्रदान करने के लिए व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों और सामुदायिक/सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के लिए यूएलबी को धनराशि वितरित की गई है। अब तक 6,715 से अधिक व्यक्तिगत जिन घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है, उनके लिए मिशन के तहत शौचालयों का निर्माण किया गया है और 391 सामुदायिक और 1,273 सार्वजनिक शौचालय सीटें नई या पुनर्निर्मित की गई हैं।
2) जागरूकता के लिए, राज्य में स्वच्छता पखवाड़ा, होर्डिंग/बैनर, नुक्कड़नाटक, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के माध्यम से आम जनता को जागरूक करने के लिए विभिन्न सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियां नियमित रूप से आयोजित की जा रही हैं। मीडिया आदि। वर्ष 2021-22 के लिए इस योजना के कार्यान्वयन के लिए `5.00 करोड़ का बजट प्रावधान है।
प्रधानमंत्री आवास योजना सभी के लिए आवास (शहरी): एक नया मिशन "सभी के लिए आवास" (शहरी) ) भारत सरकार द्वारा 17.06.2015 से 31.03.2022 तक प्रभावी ढंग से लॉन्च किया गया है। इस योजना का उद्देश्य इन-सिटू स्लम पुनर्वास घटक के तहत झुग्गीवासियों के लिए घर उपलब्ध कराना है, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस), निम्न आय समूह (एलआईजी) और मध्यम आय समूहों (एमआईजी) के लिए क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी घटक के माध्यम से किफायती घर प्रदान करता है। सार्वजनिक निजी भागीदारी घटक के माध्यम से मकान। सरकार लाभार्थीपरक व्यक्तिगत आवास घटक के लिए सब्सिडी के माध्यम से लाभार्थी घरों के निर्माण के लिए धन भी प्रदान कर रही है। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में इस योजना के क्रियान्वयन हेतु `5.20 करोड़ का बजट प्रावधान है।
पार्किंग का निर्माण: प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में पार्किंग की समस्या के समाधान के लिए `10.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान प्रदान किया गया, जिसमें से पार्किंग स्थलों के निर्माण के लिए अब तक 3 शहरी स्थानीय निकायों को `1.73 करोड़ जारी किए जा चुके हैं। इस योजना के तहत धनराशि 50:50 के अनुपात में जारी की जाती है (अर्थात 50 प्रतिशत सरकार द्वारा और 50 प्रतिशत संबंधित यूएलबी द्वारा प्रदान किया जाता है)।
पार्कों का विकास: शहरी स्थानीय निकायों में पार्कों के निर्माण के लिए `5.50 करोड़ प्रदान किए गए हैं। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान बजट. इस योजना के तहत धनराशि 60:40 (अर्थात) के अनुपात में जारी की जाती है, 60 प्रतिशत सरकार द्वारा और 40 प्रतिशत संबंधित शहरी स्थानीय निकाय द्वारा प्रदान किया जाता है।

अटल श्रेष्ठ शहर योजना : वर्ष 2020-21 का बजट भाषण मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश ने पुरस्कार के लिए शीर्ष तीन नगर परिषदों और शीर्ष तीन नगर पंचायतों को कवर करने के लिए "अटल श्रेष्ठ शहर योजना" का दायरा बढ़ाया है, जिसमें प्रत्येक नगर परिषद और नगर पंचायत को प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान के लिए पुरस्कार राशि के लिए स्थान दिया जाएगा। नगर परिषदों के लिए पुरस्कार राशि क्रमशः `1.00 करोड़, `75.00 लाख, `50.00 लाख है और नगर पंचायतों के लिए पुरस्कार राशि क्रमशः `75.00 लाख, `50.00 लाख और `25.00 लाख है। सर्वोत्तम प्रदर्शन करने वाले शहरी स्थानीय निकायों को हर साल 25 दिसंबर को माननीय मुख्यमंत्री द्वारा अटल श्रेष्ठ शहर पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार ASSY के तहत 2020 और 2021 को अंतिम रूप दिया जा रहा है। हालाँकि, 2019 के दौरान विजेता का विवरण नीचे दिया गया है:

मुख्यमंत्री शहरी आजीविका- गारंटी योजना : हिमाचल प्रदेश सरकार, को ध्यान में रखते हुए कोविड-19 महामारी ने वित्तीय वर्ष में प्रत्येक परिवार को 120 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करके शहरी क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिए 16.05.2020 को मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना (एमएमएसएजीवाई) नामक एक योजना अधिसूचित की है। योजना को 19-4-2021 को पुनः अधिसूचित किया गया है। इस योजना के तहत पंजीकरण कराने वाले परिवारों के सभी वयस्क सदस्य काम करने के पात्र होंगे। यूएलबी के स्थानीय निवासी जो यूएलबी के अधिकार क्षेत्र में अपने घर में या किराए पर रहते हैं, पात्र हैं। कार्य उपलब्ध कराने हेतु अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष है। शहरी विकास विभाग ने एमएमएसएजीवाई के लिए ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया है। लाभार्थी नगर पालिका कार्यालय में आए बिना अपना पंजीकरण करा सकता है। इस योजना के तहत 6,539 लाभार्थियों को पंजीकृत किया गया है और 3,603 लाभार्थियों को मजदूरी रोजगार दिया गया है। योजना के लिए 295.85 लाख का बजट रखा गया है
नियोजित, न्यायसंगत और विनियमित विकास के माध्यम से कार्यात्मक, किफायती, टिकाऊ और सौंदर्यपूर्ण रहने का वातावरण सुनिश्चित करने के लिए, हिमाचल प्रदेश टाउन एंड कंट्री प्लानिंग अधिनियम, 1977 को 55 में लागू किया गया है। योजना क्षेत्र (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.60 प्रतिशत) और 35 विशेष क्षेत्र (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.06 प्रतिशत)।
पहल
1) मानचित्र अनुमोदन प्रक्रिया के सरलीकरण के लिए, अग्नि विकास, जल शक्ति विभाग, लोक निर्माण विभाग, वन विभाग, राज्य विद्युत बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और से अपेक्षित एनओसी। दिनांक 20.08.2020 की अधिसूचना के माध्यम से राजस्व विभाग को स्व-घोषणा में बदल दिया गया है।
2) सेट-बैक, फर्श की ऊंचाई में छूट के संबंध में एचपीटीसीपी नियम, 2014 के सामान्य विनियम, परिशिष्ट-1 के खंड 28 में दिनांक 26.02.2021 की अधिसूचना के माध्यम से आवश्यक संशोधन किया गया है। और भवन आदि निजी निर्माण में सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्थल की स्थिति को ध्यान में रखते हुए।
3) हिमाचल प्रदेश टाउन एंड कंट्री प्लानिंग नियम, 2014 के तहत सूचीबद्ध पंजीकृत निजी पेशेवरों (आरपीपी) को शक्तियों के प्रतिनिधिमंडल के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का मसौदा प्रस्ताव राज्य भर में सभी अधिसूचित योजना/विशेष क्षेत्र और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में केवल आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्ग मीटर तक के भूखंड क्षेत्र के विकास की अनुमति तैयार की गई है।
4) भारत सरकार की अमृत उप-योजना के तहत शिमला योजना क्षेत्र और कुल्लू घाटी योजना क्षेत्रों के लिए जीआईएस-आधारित विकास योजनाओं की तैयारी का काम अंतिम रूप दिया जा रहा है। इससे व्यापक योजना सुनिश्चित होगी इन क्षेत्रों का विकास.
5) अतिरिक्त बिलासपुर योजना क्षेत्र के मौजूदा भूमि उपयोग मानचित्र को अपनाया गया है और अतिरिक्त हमीरपुर योजना क्षेत्र के लिए प्रक्रियाधीन है।
6) बढ़ती पार्किंग आवश्यकता को पूरा करने और कस्बों की सभी प्रमुख सड़कों पर यातायात के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए, राज्य सरकार द्वारा दिनांक 04.12.2020 की अधिसूचना के माध्यम से राहत दी गई है। अधिसूचना के अनुसार अब भवन मालिक ऐसे सेटबैक के 50% फ्रंटेज का उपयोग खुली पार्किंग विकसित करने के लिए कर सकते हैं।
7) हरित को बढ़ावा देने के लिए वाणिज्यिक भवन के लिए हिमाचल प्रदेश टाउन एंड कंट्री प्लानिंग नियम, 2014 में परिशिष्ट-11 के आकार में हिमाचल प्रदेश ऊर्जा संरक्षण भवन कोड पर विचार किया जा रहा है। भवन एवं ऊर्जा संरक्षण अवधारणा।
8) 15 योजना/विशेष क्षेत्रों अर्थात् वाकनाघाट, चायल, सुजानपुर, चामुंडा, चौपाल, मैहतपुर, जाबली, सराहन, हाटकोटी धुआलाकुआं- माजरा, जोगिंदरनगर, नेरचौक, भोटा, चिंतपूर्णी के लिए नई विकास योजनाएं , भरमौर तैयारी चल रही है और 12 विकास योजनाएं अर्थात् चंबा, डलहौजी, बिलासपुर, ऊना, हमीरपुर, कसौली, पालमपुर, सोलन, नाहन, मंडी, कुल्लू (अमृत) और शिमला (अमृत) संशोधन के अधीन हैं।
रियल इस्टेट विनियामक प्राधिकरण हिमाचल प्रदेश ने 01.01.2020 से अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया है। यह प्राधिकरण शिकायतों को दर्ज करने के अतिरिक्त रियल एस्टेट परियोजनाओं तथा रियल एस्टेट एजैंटों को पंजीकृत करने की प्रक्रिया करता है। इस प्राधिकरण ने दिसम्बर, 2021 तक 19 रियल एस्टेट परियोजनाओं तथा 27 रियल एस्टेट एजैंटों को पंजीकृत किया है। प्राधिकरण के पास अब तक लगभग 50 शिकायतें दर्ज की गई हैं जिनमें से 15 का निपटारा कर दिया गया है तथा शेष 35 में सुनवाई प्रक्रियाधीन है। यह प्राधिकरण रियल एस्टेट परियोजनाओं, रियल एस्टेट एजैंटों के पंजीकरण और शिकायतों के सभी मामलों को ऑनलाइन माध्यम से निपटा रहा है।
राष्ट्रीय भवन संगठन ने आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग हिमाचल प्रदेश को राज्य में भवन सामग्री के भाव एकत्र करने व भवन लागत सूचकांक को संकलित करने का काम सौंपा है। विभाग आधार वर्ष 2011-12 पर राज्य स्तरीय भवन निर्माण लागत सूचकांक (BCCI) तैयार करके जारी कर रहा है। तिमाही सूचकांकों के आधार पर, वार्षिक सूचकांकों को तैयार किया गया है और इन्हें निम्नलिखित सारणी में दर्शाया गया हैः-
उपरोक्त सारणी के अनुसार, सामग्री लागत सूचकांक वर्ष 2020-21 में 120.42 से बढ़कर 132.64 हो गया है जो वर्ष 2021-22 में और भी बढ़कर 138.83 हो गया है, कोविड-19 महामारी के कारण 2020-21 के दौरान भवन निर्माण सामग्री की आपूर्ति श्रंखला बाधित रही, इसलिए निर्माण सामग्री की कीमतों में वृद्धि हुई। श्रम लागत सूचकांक भी 2020-21 में 123.05 से बढ़कर 132.31 और वर्ष 2021-22 मं बढ़कर 138.30 हो गया है, वर्ष 2020-21 की अवधि में प्रवासी मजदूरों के पलायन के कारण श्रम लागत में ज्यादातर वृद्धि हुई है, जिसके कारण श्रम लागत सूचकांकों में वृद्धि दर्ज हुई। इसी प्रकार घटक अन्य व्यय, जिसमें संविदात्मक और पर्यवेक्षी शुल्क आदि शामिल है, अन्य व्यय के सूचकांक के अन्तर्गत आता है, यह भी कोविड-19 के कारण 2020-21 में 120.78 से बढ़कर 131.87 हो गया है और वर्ष 2021-22 में बढ़कर 138.24 हो गया है। इन सभी सूचकांकों में वृद्धि के परिणामस्वरुप 2021-22 में समग्र भवन निर्माण लागत सूचकांक 121.45 से बढ़कर 138.63 हो गया है।

16.सूचना और विज्ञान प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) के तहत, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल प्रदेश (डी.आई.टी.-एच.पी.) ने हिमस्वान (हिमाचल स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क) नामक सुरक्षित नेटवर्क बनाया। हिमस्वान ब्लाक स्तर पर सभी राज्य सरकार के विभागों को सुरक्षित नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करता है और G2G (सरकार से सरकार), G2C (सरकार से नागरिक) और G2B (सरकार से व्यवसाय) में विभिन्न कुशल इलेक्ट्रोनिक सेवाओं को प्रदान करता है। हिमस्वान की स्थापना फरवरी, 2008 में हुई थी और अब तक राज्य भर में 2,241 सरकारी कार्यालयों को HIMSWAN नेटवर्क कनेक्टिविटी के माध्यम से जोड़ा गया है। विशेष रुप से प्रारभिक बैंडविडथ की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए, नवीनतम (MPLS) तकनीक द्वारा हिमस्वान को नया रुप दिया जा रहा है । हिमस्वान ने कोविड-19 महामारी के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फील्ड अधिकारियों के साथ कई सरकारी वर्चअल बैठकें हिमस्वान के माध्यम से आयोजित की जा रही हैं ।
सरकार की विभिन्न वेब एप्लिकेशनों/वेबसाइटों को बिजली कटौती, प्राक₹तिक आपदा से उत्पन्न व्यवधान के दौरान चालू रखने के लिए आपदा रिकवरी साइट को अक्टूबर, 2020 में हिमाचल प्रदेश राज्य डाटा सेंटर के लिए दिल्ली में स्थापित किया गया। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 17 नये एप्लिकेशनों/वेबसाइटों को HPSDC सुरक्षा आडिट के उपरान्त जोड़ा गया है। कुल मिलाकर, हिमाचल प्रदेश राज्य डाटा सेंटर में विभिन्न विभागों की 187 वेबसाइटों/एप्लिकेशनों को जोड़ा गया है।
हिमाचल ऑनलाइन सेवा पोर्टल: इस वित्तीय वर्ष में विभाग द्वारा 31 नई सेवाओं को हिमाचल ऑनलाइन सेवा पोर्टल पर ऑनलाइन सेवाएं देने के लिए जोड़ा गया। इन 31 सेवाओं में से 28 सेवाएं बागवानी विभाग और 3 सेवाएं शहरी विकास विभाग के लिए है। अब इस पोर्टल पर राजस्व, महिला और बाल विकास, पंचायती राज, ग्रामीण विकास, शहरी विकास आदि के साथ विभिन्न विभागों की 96 ऑनलाइन सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। कोविड-19 के फैलने से पहले, पोर्टल पर औसतन लेनदेन की संख्या 100 प्रतिदिन थी जोकि कोविड-19 लाॅकडाउन के दौरान व उसके बाद ऑनलाइन के माध्यम से बड़े पैमाने पर आई.ई.सी. अभियान और सेवा वितरण गुणवत्ता में सुधार के चलते यह लेनदेन की संख्या बढ़कर लगभग 8,500 प्रतिदिन हो गई है।
ई-ऑफिस: कार्यालयों में बिना कागजों के काम करने के लिए प्रदेश के विभिन्न विभागों में ई-ऑफिस लागू किया जा रहा है। इस वर्ष के दौरान ई-ऑफिस को 77 विभागों एवं सचिवालय की 87 शाखाओं में शुरू किया गया जिसके अन्तर्गत 5,104 अधिकारियों/कर्मचारियों ने काम करना आरम्भ किया और इसके अन्तर्गत 68,792 नस्तियां ई-ऑफिस में बनाई गईं। हिमाचल प्रदेश सचिवालय में पुरानी फाइलों की स्कैनिंग पूर्ण हो चुकी है। सभी कार्यालयों को धीरे-धीरे ई-ऑफिस की कागज रहित प्रणाली में स्थानान्तरित किया जाएगा।
मुख्यमन्त्री डैशबोर्ड: राज्य सरकार ने मुख्यमन्त्री डैशबोर्ड को स्थापित करते हुए सुशासन की दिशा में एक पहल की हैे। बहुभाषी डैशबोर्ड माननीय मुख्यमन्त्री, माननीय राज्यपाल, मुख्य सचिवों, मंडलायुक्तों और उपायुक्तों को एक मंच पर एकीकृत करेगा। मुख्यमन्त्री डैशबोर्ड योजना द्वारा मूल्यांकन और निगरानी के लिए अधिकारियों के सभी स्तरों पर राज्य, मंडल, जिला के लिए चयनित सरकारी योजनाओं/परियोजनाओं के प्रदर्शन संकेतक (के.पी.आई.) पर वास्तविक समय डेटा की सुविधा प्रदान करता है।
मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन नागरिकों तक सक्रिय रूप से पहुंचने और नागरिक कॉल सेंटर और अन्य उचित माध्यमों के माध्यम से हेल्पलाइन सुविधा प्रदान करके उन्हें सुविधा प्रदान करने का एक प्रयास है जो सेवा प्रदान करता है। निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए नागरिक:
1) शिकायत पंजीकरण।
2) नागरिकों के सुझाव और मांगों को ध्यान में रखना।
3) सरकारी योजनाओं से संबंधित जानकारी प्रदान करें।
4) समय पर समाधान के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश। इस वित्तीय वर्ष में दिसंबर 2021 तक एमएमएसएस हेल्पलाइन में कुल 1,23,703 शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से 88,510 (71.55 प्रतिशत) का नागरिकों की संतुष्टि के अनुसार समाधान किया गया है। स्थिति स्नैपशॉट और तालिका नीचे संलग्न है:
एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्र (ICCC): उच्च तकनीक वाले अत्याधुनिक कमांड और नियंत्रण केंद्र हैं के साथ शिमला और धर्मशाला में स्थापित करने का प्रस्ताव है इसका उद्देश्य सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईटीसी) को एक उपकरण के रूप में उपयोग करके विभिन्न नागरिक सेवाओं का एक ही स्थान पर अभिसरण सुनिश्चित करना है। विभिन्न नागरिक केंद्रित डेटा एकत्र करने के लिए आईसीसीसी का उपयोग किया जाएगा वास्तविक समय में सेवाएं प्रदान करना और वन सिटी वन ऐप का उपयोग करके जनता को उपयोगी जानकारी प्रदान करना और नागरिकों को आपातकालीन और साथ ही आपदा प्रबंधन सेवाएं प्रदान करना है।
भारत नेट: भारत नेट भारत सरकार की एक पहल है जो ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करती है। देश। इसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना है। यह दुनिया की सबसे बड़ी ग्रामीण कनेक्टिविटी योजना है ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। भारत नेट-159 के दूसरे चरण के तहत सुदूर ग्राम पंचायतों को वेरी-स्मॉल-अपर्चर टर्मिनल (वीएसएटी) लिंक का उपयोग करके जोड़ा जा रहा है। 159 स्थानों पर सामग्री वितरित की गई है, जिनमें से 156 स्थानों पर वीसैट स्थापित किया जा चुका है।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी): आईटी विभाग ने 140 (केंद्र-74; राज्य-66) की पहचान की है ) वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान संबंधित विभागों के साथ योजनाएं, जिनमें से 59 योजनाओं (केंद्र -30; राज्य -29) में डीबीटी लागू किया गया है। वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी योजनाओं के लिए डीबीटी को राष्ट्रीय स्वचालित समाशोधन गृह (एनएसीएच) के माध्यम से भेजा जाना है। इस वित्तीय वर्ष के दौरान 59 डीबीटी योजनाओं में से 16 (केंद्र1; राज्य-15) को एनएसीएच प्लेटफॉर्म में परिवर्तित कर दिया गया है। इसके अलावा, MeitY, भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार, विभिन्न पहचानी गई योजनाओं के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) को सक्षम करने के लिए आधार अधिनियम 2016 की धारा 7 के तहत अधिसूचनाएं जारी की जानी हैं। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान 47 योजनाओं के तहत 11.91 लाख लाभार्थियों को 1,186.03 करोड़ की राशि डीबीटी के माध्यम से हस्तांतरित की गई है।
आईटी विभाग ने कोविड-19 अवधि के दौरान प्रशासन और नागरिकों के दैनिक व्यवसाय के सुचारू संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए विभिन्न आईटी अनुप्रयोगों और समाधानों को विकसित और कार्यान्वित किया। राज्य सरकार पर विभिन्न स्तर सूचना एकत्र करने, निगरानी और निर्णय लेने के साथ-साथ कार्यालय में कुशल तरीके से काम करने के लिए विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए इन प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों का उपयोग कर रहे हैं। नागरिक उपयोग कर रहे हैं उन्हें सरकारी कार्यालयों में जाने की आवश्यकता के बिना संपर्क रहित सेवाएं ऑनलाइन प्राप्त करने के लिए। अब तक, आईटी विभाग द्वारा राज्य भर में निम्नलिखित एप्लिकेशन शुरू किए गए हैं:
1) कोविड-19 एकीकृत पोर्टल: वेबसाइट (http://covidportal.hp.gov.in/) कोविड-19 से संबंधित जानकारी, एप्लिकेशन और पोर्टल के लिए एक समेकित भंडार है। नागरिकों और सरकार का उपयोग अधिकारियों.
2) कोविड सरकारी आदेश: किसी भी सरकारी आदेश, सलाह और मीडिया बुलेटिन के लिए एक सामान्य मंच के रूप में एक वेबसाइट (http://covidorders.hp.gov.in) बनाई गई है ताकि इससे बचा जा सके। के दौरान गलत सूचना या अफवाहें महामारी।
3) हिमाचल ई-पास सत्यापन ऐप (एंड्रॉइड आधारित क्यूआर कोड स्कैनिंग ऐप): यह मोबाइल ऐप विकसित किया गया था और ई-पास की वैधता को सत्यापित करने के लिए अंतर-राज्यीय बाधाओं पर पुलिस कर्मियों को प्रदान किया गया था। QR स्कैन करके डीसी द्वारा जारी किए गए ई-पास पर कोड। इसका उपयोग बैरियरों पर राज्य में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों के संबंध में एमआईएस रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी किया गया था।
4) कोविड क्षमता: यह पोर्टल (http://covidcapacity.hp.gov.in/) अस्पताल के बिस्तर की क्षमता/उपलब्धता, ऑक्सीजन जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं की वास्तविक समय उपलब्धता की निगरानी के लिए विकसित किया गया था। उपलब्धता और रसद इन गतिविधियों से संबंधित, जैसे रोगी डेटा और समर्पित कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, पीएसए प्लांट आदि जैसी अन्य महत्वपूर्ण वस्तुएं।
5) कानून और व्यवस्था निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणाली: पोर्टल (http://covid19lo.hp.gov.in) एसपी और पुलिस स्टेशनों को कानून और व्यवस्था से संबंधित जानकारी अपलोड करने की सुविधा प्रदान करता है। गृह मंत्रालय (भारत सरकार) की इच्छानुसार और समेकित करें उपरोक्त पोर्टल पर भी ऐसा ही है।
6) स्वास्थ्य सूची: यह वेबसाइट (http://covid19inventory.hp.gov.in) स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा राज्य में अलगाव/संगरोध सुविधाओं और स्टॉक को बनाए रखने के लिए उपयोग के लिए विकसित की गई थी। आलोचनात्मक का मास्क, पीपीई किट और वेंटिलेटर आदि जैसी वस्तुएं।
7) फेक न्यूज पोर्टल: पोर्टल (http://fakenews.hp.gov.in) इस संवेदनशील समय के दौरान नागरिकों को गलत सूचनाओं/अफवाहों से बचाने के लिए राज्य सरकार की एक पहल है। यह पोर्टल फर्जी खबरों की सूची उपलब्ध कराता है राज्य सरकार की फेक न्यूज मॉनिटरिंग यूनिट द्वारा इसकी पहचान की गई।
8) इवेंट पंजीकरण पोर्टल (covid.hp.gov.in): यह पोर्टल नागरिकों के लिए COVID-19 के दौरान किसी भी कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए ऑनलाइन अनुमति लेने के लिए विकसित किया गया है।
9) दान: यह कार्यक्षमता हिमाचल प्रदेश कोविड-19 सॉलिडैरिटी रिस्पांस फंड में सुरक्षित रूप से दान करने के लिए सीएम पोर्टल (https://cmhimachal.nic.in/) पर प्रदान की गई थी।
10) एमएमएसएस हेल्पलाइन@1100: एमएमएसएस हेल्पलाइन सरकारी सुविधाओं पर उनकी प्रतिक्रिया लेने और संक्रमण के प्रमुख स्रोत/कारण की पहचान करने के लिए कोविड-19 पॉजिटिव रोगियों से संपर्क कर रही है ताकि सरकार इस पर ध्यान दे सके। कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम।
नीतिगत पहल: मार्ग का अधिकार (RoW) भारतीय नीति पर आधारित भारत सरकार के टेलीग्राफ राइट ऑफ वे नियम 2016, हिमाचल प्रदेश आरओडब्ल्यू नीति 2021 को राज्य सरकार द्वारा 9 फरवरी, 2021 को अधिसूचित किया गया है।
नई पहल: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) ने महामारी के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेष रूप से निम्नलिखित तीन क्षेत्र:
1) नागरिकों को ऑनलाइन सेवाएं प्रदान करके सरकारी कार्यालयों में लोगों की संख्या कम करना।
2) सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए घर से काम की अवधारणा को सुविधाजनक बनाना।
3) महामारी की निगरानी, नियंत्रण और ट्रैकिंग।
सूचना एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य के निम्नलिखित क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना:
1) डीआईटी ईडिस्ट्रिक्ट (हिमाचल ऑनलाइन सेवा पोर्टल/लोक मित्र केंद्र) के माध्यम से अधिक सरकारी नागरिक सेवाओं को जोड़ने के लिए काम कर रहा है।
2) हिमस्वान के माध्यम से हाई-स्पीड सुरक्षित इंटरनेट कनेक्टिविटी को हर सरकारी कार्यालय/स्थान तक बढ़ाया जा रहा है। ई-ऑफिस के लिए नेटवर्क की दोषरहित/निर्बाध गति बनाए रखने के लिए, HIMSWAN के माध्यम से सभी कार्यालयों में न्यूनतम बैंडविड्थ को 20Mbps तक बढ़ाया जा रहा है।
4) आवश्यकता के आधार पर, घर से काम के दौरान उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकारी अधिकारियों को सुरक्षित वीपीएन कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी।
5) राज्य सरकार के सभी प्रमुख पोर्टलों पर सिंगल साइन ऑन (एसएसओ) लागू किया जाएगा ताकि अधिकारियों/कर्मचारियों को इन पोर्टलों पर एकल उपयोगकर्ता नाम और पासवर्ड के साथ लॉगिन करने की अनुमति मिल सके।
6) सभी यूएलबी में ऑटो डीसीआर के साथ नागरिकों को ऑनलाइन निर्माण अनुमति की सुविधा प्रदान करने का प्रस्ताव है।