Tribal Development
आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20


1.सामान्य समीक्षा

भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार एक सत्त प्रक्रिया है और विभिन्न मंत्रालय और विभाग आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए सरकार के रणनीतिक कार्यक्रमों और नीतियों को लागू कर रहे हैं। आर्थिक नीति निर्माण सरकार ;उघ्र्वगामीद्ध में नीचे के स्तर से ऊपर की ओर प्रक्रियाओं का उपयोग कर रही है। इसकी प्राथमिकताओं में "15 वर्षीय रोड मैप", "7 वर्षीय दृष्टि और रणनीति और कार्य योजना" शामिल हैं। अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। अन्य विषयों में महत्वपूर्ण प्राथमिकता "मेक इन इंडिया", "स्टार्टअप इंडिया"और "ईज आफ डूइंग बिजनेस" को दी गई है। सरकार का उद्देश्य मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके अनुकूल वातावरण बनाना है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति और प्रक्रियाओं का सरलीकरण उदार बनाया गया है। अन्य मापदण्डों में टेक्सटाइल उद्योग के लिए पैकेज, उज्ज्वल आश्वासन योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से परिवहन क्षेत्र और बिजली क्षेत्र के लिए उपाय शामिल हैं। गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स ने व्यापार, व्यवसाय और संबंधित आर्थिक गतिविधियों में बाधाओं को कम करके विकास की गति में सुधार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया है। वर्ष 2018-19 में सभी खरीफ और रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है। बैंकों के पुर्नपूंजीकरण का कार्यक्रम का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए पूंजी को बढ़ाना है, जिससे उनके ऋण देने के लिए प्रोत्साहित होने की उम्मीद है। सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एम.एस.एम.ई.) के विकास और विस्तार में मद्द के लिए एक सहायता और उनकी पहुंच में होने वाली योजना की शुरुआत की है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा अन्य प्रयास में कुशल वित्तीय मध्यस्थता, विवेकपूर्ण राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के माध्यम से व्यापक आर्थिक स्थिरता हेतु देश की अर्थव्यवस्था बढ़ाने के लिए ये कार्यक्रम शुरु किए गए हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में निरंतर गिरावट के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने वृद्धि को निरन्तर जारी रखा है। यह स्थिरता घरेलू नीतिगत विकास के साथ ही विदेशी नीतियों के सुशासन के फलस्वरुप है। विभिन्न सुधारों के फलस्वरुप भारतीय अर्थव्यवस्था की सत्त वृद्धि पिछले 5 वर्षों 2014 के बाद से औसत 7.4 प्रतिशत की वृद्धि के साथ उच्च रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर वर्ष 2018-19 में, पिछले वर्ष 2017-18 की वृद्धि दर की तुलना में कुछ कमी के साथ 6.1 प्रतिशत की रही। यह कमी मुख्य रुप से "कृषि और संबद्ध सेवाएं" "वानिकी', "खनन उत्खनन", "विनिर्माण", "विद्युत, गैस, पानी की आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाएं और सार्वजनिक प्रशासन व रक्षा और अन्य क्षेत्र में कम वृद्धि के परिणामस्वरुप रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद आधार वर्ष 2011-12 के अनुसार स्थिर कीमतों पर वर्ष 2018-19 में ₹139.81 लाख करोड़ आंका गया है जोकि वर्ष 2017-18 में ₹131.75 लाख करोड़ था। प्रचलित भाव पर सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2018-19 में 11.0 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ₹ 189.71 लाख करोड़ आंका गया है, जोकि वर्ष 2017-18 में ₹170.98 लाख करोड़ था। वित्तीय वर्ष 2017-18 में स्थिर भाव (आधार 2011-12) के अनुसार सकल मूल्य संवर्धन में वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2018-19 में 6.0 प्रतिशत रही।
प्रचलित समग्र वृहद आर्थिक परिद्दश्य को देखते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की कहानी को मजबूत करती है और यह चक्रीय कारकों से अपेक्षाकृत अछूता है। वर्ष 2018-19 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2017-18 की तुलना में थोड़ी कम रही और इस कम वृद्धि के मुख्य कारण कृषि, वानिकी और मछली पालन (2.4 प्रतिशत), खनन और उत्खनन (5.8 प्रतिशत), विनिर्माण (5.7 प्रतिशत) विद्युत, गैस, पानी की आपूर्ति और अन्य उपयोगिता (8.2 प्रतिशत), व्यापार होटल, संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाएं (8.5 प्रतिशत) और सार्वजनिक प्रशासन, रक्षा और अन्य उपयोगिताएं सेवाएं (9.4 प्रतिशत) में वृद्धि दर कम रहना है।

अग्रिम अनुमानों के अनुसार भारत की विकास दर वित्तीय वर्ष 2019-20 में 5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है।
वर्ष 2017-18 में प्रचलित भाव पर प्रति व्यक्ति आय ₹1,15,293 थी जो वर्ष 2018-19 में 9.7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ₹1,26,521 हो गई। स्थिर भाव (2011.12 ) के अनुसार प्रति व्यक्ति आय 2017-18 में ₹87,828 से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ₹ 92,085 हो गई है।
मुद्रास्फीति प्रबन्धन सरकार की प्रमुख प्राथमिकता रही है। मुद्रास्फीति वर्ष दर वर्ष थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर मापी जाती है जोकि चालू वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसम्बर) के दौरान अधिकतर समय 3 प्रतिशत से नीचे बनी रही। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति दिसम्बर, 2018 में 3.46 प्रतिशत से घटकर दिसम्बर, 2019 में 2.6 प्रतिशत रही। औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ;समस्त भारत द्ध पर आधारित मुद्रास्फीति की दर वर्ष 2018-19 में 5.6 प्रतिशत रही जोकि वर्ष 2017-18 में 2.9 प्रतिशत थी।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्यों के लोंगों की त्वरित प्रगति और बेहतर जीवन के लिए केन्द्र सरकार से तालमेल रखते हुए कई कुशल नीतियां बनाई है। हिमाचल प्रदेश अपने साधारण, मेहनतकश लोगों व प्रगतिशील नीतियों ओर कार्यक्रमों के बेहतर कार्यान्वयन के कारण देश में सबसे अधिक सम्पन्न तथा तीव्र गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रुप में जानी जाती है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में राज्य की अर्थव्यवस्था के 5.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने की सम्भावना है।

द्धितीय संशोधित अनुमानों के अनुसार, राज्य सकल घरेलू उत्पाद, प्रचलित भावों पर वर्ष 2017-18 में ₹1,38,351 करोड़ से 11.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2018-19 में ₹1,53,845 करोड़ रहने का अनुमान है। स्थिर भाव (2011.12) पर वर्ष 2017-18 में ₹1,10,034 करोड़ से 7.1 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2018-19 में ₹1,17,851 करोड़ रहा, जोकि गत वर्ष में 6.8 प्रतिशत थी। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि मुख्यतः सामुदायिक व व्यैक्तिक सेवाओं 13.3 प्रतिशत, वित्तीय व स्थावर सम्पदा में 7.3 प्रतिशत, यातायात व व्यापार 4.6 प्रतिशत, विनिर्माण क्षेत्र 8.2 प्रतिशत, निर्माण 8.0 प्रतिशत तथा विद्युत, गैस, व जलापूर्ति 7.3 प्रतिशत के कारण सम्भव हुई है, जबकि प्राथमिक क्षेत्र में 1.7 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्वि रही। खाद्य उत्पादन वर्ष 2017-18 में 15.81 लाख मी.टन से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 16.92 लाख मी.टन रहा जबकि वर्ष 2019-20 में 16.36 लाख मी.टन का लक्ष्य है। फल उत्पादन वर्ष 2018-19 में 12.4 प्रतिशत की कमी के साथ 4.95 लाख मी.टन रहा जोकि वर्ष 2017-18 में 5.65 लाख मी.टन था तथा वर्ष 2019-20 में (दिसम्बर, 2019) तक उत्पादन लगभग दोगुना 7.07 लाख मी.टन है। वर्ष 2017-18 में प्रति व्यक्ति आय प्रचलित भाव पर ₹1,65,025 से बढ़कर प्रथम संशोधित अनुमानों के अनुसार वर्ष 2018-19 में ₹1,83,108 हो गई जोकि 11.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। अग्रिम अनुमानों के अनुसार तथा दिसम्बर, 2019 की आर्थिक स्थिति के दृष्टिगत वर्ष 2019-20 में विकास दर प्रतिशत रहने की सम्भावना है।

प्रदेश की अर्थव्यवस्था जोकि मुख्यतः कृषि व सम्बन्धित क्षेत्रों पर ही निर्भर है। अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र से उद्योग व सेवा क्षेत्रों के पक्ष में रूझान पाया गया क्योंकि कृषि क्षेत्र का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में योगदान जो वर्ष 1950-51 में 57.9 प्रतिशत था तथा यह घटकर 1967-68 मं 55.5 प्रतिशत था। 1990-91 में 26.5 प्रतिशत और 2018-19 में 8.4 प्रतिशत रह गया है।
उद्योग व सेवा क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान 1950-51 में क्रमशः 1.1 व 5.9 प्रतिशत से बढ़कर 1967-68 में 5.6 व 12.4 प्रतिशत, 1990-91 में 9.4 व 19.8 प्रतिशत और 2018-19 में 29.8 व 44.0 प्रतिशत हो गया। शेष क्षेत्रों में 1950-51 के 35.1 प्रतिशत की तुलना में 2018-19 में घटकर 26.2 प्रतिशत रह गया।
कृषि क्षेत्र के घट रहे अंशदान के बावजूद भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की महत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा। राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र का विकास अधिकतर कृषि तथा उद्यान उत्पादन द्वारा ही निर्धारित होता है और सकल घरेलू उत्पाद में भी इसका मुख्य योगदान रहता है। अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव रोजगार, अन्य लागत, व्यापार तथा परिवहन सम्बद्धताओं के कारण रहा है। सिंचाई सुविधाओं के अभाव में हमारा कृषि उत्पादन अभी भी मुख्यतः सामयिक वर्षा व मौसम स्थिति पर निर्भर करता है। सरकार द्वारा भी इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गई है।
राज्य ने फलोत्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विविध जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, गहन और उपयुक्त निकासी वाली भूमि तथा भू-स्थिति में भिन्नता एवं ऊंचाई वाले क्षेत्रों समशीतोषण से उप्पोषण कटिबन्धीय के उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
वर्ष 2019-20 में (दिसम्बर, 2019 तक) 7.07 लाख टन फलों का उत्पादन हुआ। इस वर्ष 1,950 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र फलों के अधीन लाने का लक्ष्य है जबकि दिसम्बर, 2019 तक 2,113 हैक्टेयर क्षेत्र फलों के अधीन लाया जा चुका है तथा इसी अवधि में 5.28 लाख विभिन्न प्रजातियों के फलों के पौधों का वितरण किया गया। प्रदेश में बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। वर्ष 2018-19 में 17.22 लाख टन सब्जी उत्पादन हुआ जबकि वर्ष 2017-18 में 16.92 लाख टन का उत्पादन हुआ था जो कि 1.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वर्ष 2019-20 में बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन 16.56 लाख टन होने का अनुमान है।
प्रदेश की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को देखते हुए सरकार ने राज्य में निरन्तर निर्बाध विद्युत की आपूर्ति, विद्युत उत्पादन, संचारण तथा वितरण को बढ़ाने हेतु महत्वपूर्ण पग उठाए गए हैं। ऊर्जा संसाधन के रूप में जलविद्युत आर्थिक रूप से व्यवहारिक, प्रदूषण रहित तथा पर्यावरण के अनुकूल है। इस क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए राज्य की विद्युत नीति सभी पहलुओं जैसे कि अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन, संरक्षण की क्षमता, उपलब्धता, वहन करने योग्य, दक्षता, पर्यावरण संरक्षण व प्रदेश के लोगों को रोज़गार सुनिश्चित करने पर जोर देती है और निजी क्षेत्रों के योगदान को भी प्रोत्साहित करती है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा प्रदेशवासी निवेशकों के लिए केवल (2 मैगावाट तक के) लघु परियोजनाओं को आरक्षित रखा गया है और 5 मैगावाट की परियोजनाओं तक उन्हें प्राथमिकता दी जाती है।
पर्यटन, अर्थव्यवस्था की वृद्धि का एक प्रमुख साधन है तथा राजस्व प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है तथा विविध प्रकार के रोज़गारों का जनक है। राज्य सरकार ने पर्यटन विकास के लिए उपयुक्त आधारभूत सुविधाओं की संरचना की है जिनमें नागरिक सुविधाओं का प्रावधान, सड़क मार्ग, दूरसंचार तंत्र, विमानपत्तन, यातायात सुविधाएं, जलापूर्ति तथा नागरिक सुविधाएं इत्यादि उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसके परिणाम स्वरूप उच्च-स्तरीय प्रचार से घरेलू तथा विदेशी पर्यटकों के आगमन में पिछले कुछ वर्षों के दौरान महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है जिसका विवरण निम्न दिया गया है। .
राज्य की अर्थव्यवस्था की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए, सरकार ने राज्य में बिजली आपूर्ति की निर्बाध पहुंच प्रदान करने के लिए कदम उठाए हैं। बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। पारेषण एवं वितरण को सुदृढ़ बनाना। ऊर्जा के स्रोत के रूप में, जल विद्युत आर्थिक रूप से व्यवहार्य, गैर-प्रदूषणकारी और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ है। क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए, विद्युत नीति राज्य सरकार हिमाचल के लोगों के लिए क्षमता वृद्धि, ऊर्जा सुरक्षा, पहुंच और उपलब्धता, सामर्थ्य, दक्षता, पर्यावरण और सुनिश्चित रोजगार जैसे सभी पहलुओं को संबोधित करने का प्रयास करती है। हालाँकि इस क्षेत्र में निवेश के मामले में निजी क्षेत्र की भागीदारी उत्साहजनक रही है, लेकिन छोटी परियोजनाएँ केवल हिमाचल प्रदेश के निवेशकों के लिए आरक्षित की गई हैं (2 मेगावाट तक) और 5 मेगावाट तक की परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
पर्यटन आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण इंजन, राजस्व आय का महत्वपूर्ण स्रोत और विभिन्न प्रकार के रोजगार का जनक है। राज्य सरकार. भी उपयुक्त विकसित किया गया है सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं, सड़कों, संचार नेटवर्क, हवाई अड्डों, परिवहन सुविधाओं, जल आपूर्ति और नागरिक सुविधाओं आदि के प्रावधान के माध्यम से इसके विकास के लिए बुनियादी ढाँचा। एक महत्वपूर्ण नीचे दिए गए विवरण के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान घरेलू और विदेशी पर्यटकों की आमद में वृद्धि देखी गई है:-
2020-21 के लिए वार्षिक योजना बजट `7900.00 करोड़ प्रस्तावित किया गया है जो चालू वर्ष के योजना आकार से 11.3 प्रतिशत अधिक होगा 2018-19.
कीमतों पर नियंत्रण सरकार की प्राथमिकता सूची में है। हिमाचल प्रदेश में 2019-20 के दौरान श्रमिक वर्ग उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संख्या पर आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर, 2019 में 4.7 प्रतिशत थी।

सरकार की प्राथमिकता हमेशा सामाजिक कल्याण कार्यक्रम रही है। सार्वजनिक सेवा वितरण की दक्षता और गुणवत्ता में सुधार के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं। वर्ष के दौरान प्राप्त कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:-
1) शिखर की और हिमाचल: हिमाचल सरकार की गतिविधियों को जानने के लिए एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया गया।
2) माई गॉव पोर्टल: humachal.mygov.in प्रगति और विकास की प्रक्रिया में सभी लोगों की भागीदारी के लिए शुरू किया गया एक नया लिंक है।
3) एचपी मेधा प्रोत्साहन योजना: इस योजना के तहत कक्षा 12 और स्नातक के मेधावी छात्रों को सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ₹1.00 लाख की सहायता प्रदान की जाती है।
4) एचपी बाय बैक सिंगल यूज प्लास्टिक: यह योजना एकल उपयोग और गैर-पुनर्चक्रण योग्य कचरे को खत्म करने और न्यूनतम मूल्य तय करने के लिए 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर शुरू की गई थी। @ ₹ 75/-प्रति किलोग्राम। ऐसे कचरे को वापस खरीदने के लिए।
5) मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन (डायल1100): लोगों की समस्याओं के समाधान और मोबाइल फोन पर सीएम से बात करने और मेल आईडी cmofficehp@ के माध्यम से सीएम को ई-मेल करने के लिए एक टोल फ्री सुविधा शुरू की गई थी। gov.in.
6) हिमाचल स्वास्थ्य देखभाल योजना (हिमकेयर): योजना के तहत 5.50 लाख परिवारों को पंजीकृत किया गया है और 54,282 लाभार्थियों ने कैशलेस उपचार का लाभ उठाया है।
7) "हिमाचल गृहणी सुविधा योजना": योजना के तहत राज्य में वर्ष 2018-19 और 2019-20 के लिए दिसंबर, 2019 तक 2,64,115 मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किए गए हैं।
8) बेटी है अनमोल योजना: यह योजना जन्म के समय बालिकाओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने और स्कूलों में नामांकन और ठहराव में सुधार और जन्म के बाद अनुदान देने के लिए लागू की गई है। बीपीएल परिवारों की दो लड़कियों को ₹ 12,000/- और पहली कक्षा से स्नातक तक मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है। 30.12.2019 तक 2,420 पोस्ट बर्थ और के लिए ₹854.73 लाख की राशि खर्च की गई है। प्रदेश में लड़कियों की 17,680 छात्रवृत्तियां।
9) मदर टेरेसा असहाय मातृ संबल योजना: योजना के तहत सरकार निराश्रित और बीपीएल परिवार की महिलाओं को प्रति वर्ष प्रति बच्चा ₹6000/- सहायता प्रदान करती है।
10) मुख्यमंत्री कन्यादान योजना: कार्यक्रम प्रदान करता है उन निराश्रित लड़कियों के अभिभावकों को ₹ 51,000/- का विवाह अनुदान, जिनके पिता शारीरिक या मानसिक अक्षमता के कारण अपने परिवार की आजीविका कमाने में असमर्थ हैं। 434.10 लाख की धनराशि रही है दिसंबर, 2019 तक 1,039 लाभार्थियों पर खर्च किया गया।
11) मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना: युवा पुरुष उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने मशीनरी लागत पर 25 प्रतिशत तक सब्सिडी देने का निर्णय लिया है। और महिला निवेशकों के लिए 30 प्रतिशत।
12) मुख्यमंत्री स्टार्ट-अप योजना: इस योजना के तहत 8 इन्क्यूबेशन सेंटरों में 27 स्टार्ट-अप शुरू किए गए हैं और 3 होनहार उद्यमियों को पुरस्कृत किया गया है और 3 वर्ष के लिए निरीक्षण राहत दी जाएगी।
13) जन मंच योजना: इसे जनता से सीधा संवाद स्थापित करने और उनकी शिकायतों का मौके पर ही समाधान प्रदान करने के उद्देश्य से 3 जून, 2018 को शुरू किया गया था। 181 जनमंच कार्यक्रम 68 विधान सभा क्षेत्रों में आयोजित बैठकों में अब तक 45,708 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 41,698 (91 प्रतिशत) शिकायतों का मौके पर ही निस्तारण किया गया।
14) सामाजिक सुरक्षा योजना: इस योजना के तहत 60 वर्ष और उससे अधिक लेकिन 70 वर्ष से कम आयु के सभी व्यक्तियों को, जिनकी व्यक्तिगत आय 35000 रुपए से कम है, वृद्धावस्था पेंशन प्रति माह ₹850 दी जाती है। व्यक्तियों 70 वर्ष से ऊपर के लोगों को बिना किसी आय मानदंड के ₹1,500 प्रति माह पेंशन दी जाती है।
15) स्वच्छ भारत मिशन: नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एमएसडब्ल्यूएम) रणनीति का उद्देश्य अपशिष्ट मुक्त शहरों/कस्बों का निर्माण करना और पूरे शहरी क्षेत्र में स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करना है। हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र.
16) स्मार्ट सिटी मिशन: इसका उद्देश्य उन शहरों को बढ़ावा देना है जो मुख्य बुनियादी ढांचा प्रदान करते हैं और अपने नागरिकों को जीवन की सभ्य गुणवत्ता, स्वच्छ और टिकाऊ वातावरण प्रदान करते हैं। और 'स्मार्ट' समाधानों का अनुप्रयोग। इस योजना के तहत धर्मशाला और शिमला शहर को शामिल किया जा रहा है।
17) एचपी न्यू राशन कार्ड ऑनलाइन: इस योजना के तहत वे सभी लोग जिनका नाम एचपी राशन कार्ड सूची में नहीं है, वे himachalform.nic.in का उपयोग करके ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
18) मुख्यमंत्री बाल उद्धार योजना: इस योजना के तहत बाल देखभाल संस्थानों में रहने वाले बच्चों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और दिसंबर तक का कुल खर्च, योजना पर 2019 ₹ 250.62 लाख है।
19) बाल बालिका सुरक्षा योजना: और पालन-पोषण देखभाल कार्यक्रम: योजना के तहत बच्चों के भरण-पोषण के लिए पालक माता-पिता को प्रति माह ₹ 2000/- की राशि और अतिरिक्त ₹300/- प्रति बच्चा हैं मंजूरी दे दी गई है और दिसंबर, 2019 तक 960 बच्चों को ₹ 248.70 लाख वितरित किए जा चुके हैं।
20) महिलाओं के लिए स्व-रोज़गार सहायता: योजना के तहत 35,000/- से कम वार्षिक आय और 5.20 लाख की राशि वाली महिलाओं द्वारा आय सृजन गतिविधियों को चलाने के लिए ₹5000/- दिसंबर, 2019 तक 104 महिलाओं को प्रदान किया गया।
21) विशेष महिला उत्थान योजना: यह योजना नैतिक खतरे में महिलाओं के प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए ऊना जिले में सक्रिय है और प्रत्येक प्रशिक्षु को प्रति माह ₹3,000/- वजीफा देने का प्रावधान है। ₹112.0 करोड़ के बजट प्रावधान के साथ बनाया गया।
22) सक्षम गुड़िया बोर्ड हिमाचल प्रदेश: बोर्ड का गठन अपराध के खिलाफ सशक्तीकरण, सुरक्षा, उत्थान और संरक्षण के लिए नीति की सिफारिश करने के लिए किया गया है। बालिका/किशोरी लड़कियाँ।
23) एक बूटा बेटी के नाम: यह योजना लोगों को बेटियों के महत्व और वन संरक्षण के बारे में जागरूक करने के लिए शुरू की गई है, इस योजना के माध्यम से एक किट के साथ एक पौधा दिया जाएगा। बालिका के जन्म पर माता-पिता को प्रदान की जाएगी।
24) उत्तम पशु पुरस्कार योजना: योजना के तहत सरकार ने किसानों (पशुपालक) को अधिक दूध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया है और एक दिन में 15 लीटर और उससे अधिक दूध का उत्पादन करने वाले किसान को पुरस्कार दिया है।
25) राज्य की प्रति व्यक्ति आय: 2018-19 में `1,83,108 के स्तर को छू गई है, जिसमें 2017-18 की तुलना में 11.0 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है और यह `1, अनुमानित है। 2019-20 में 95,255।
26) प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना: योजना के तहत 2.0 हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसान को ₹6,000 प्रति वर्ष दिए जाने हैं।
27) आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना: योजना के तहत राज्य में 3.08 लाख परिवारों को गोल्डन कार्ड मिले हैं और 43,813 मरीजों ने कैशलेस इलाज का लाभ उठाया है।
28) जन धन योजना: यह योजना ग्रामीण या शहरी क्षेत्र के प्रत्येक भारतीय को मुख्यधारा की बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के लिए है। इससे सहायता मिलेगी खाताधारकों की वित्तीय स्थिति के साथ-साथ केंद्र सरकार के सामाजिक सुरक्षा लक्ष्यों को बढ़ावा देना।
29) प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना: यह योजना 18 फरवरी 2016 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई थी, जो किसानों के लिए उनकी उपज के लिए एक बीमा सेवा है। इसे लाइन में तैयार किया गया था पहले की दो योजनाओं राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एमएनएआईएस) को प्रतिस्थापित करके एक राष्ट्र-एक योजना थीम के साथ।
30) प्रधानमंत्री आवास योजना: योजना के तहत 759 लाभार्थियों को आवास स्वीकृत किए गए हैं और दिसंबर, 2019 तक 65 घर पूरे हो चुके हैं।
31) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम। :इस अधिनियम के तहत राज्य में 4,47,773 परिवारों को रोजगार प्रदान करके 181.74 लाख मानव दिवस सृजित किये गये हैं।

2.राज्य की आय, सार्वजनिक वित् व कराधान

सरकार ने उच्च आर्थिक विकास को बनाए रखने के महत्व को देखते हुए तथा निरंतर विकास बनाए रखने के लिए नई नीतियों को अपनाया है। कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ सरकार सभी प्रमुख उप क्षेत्रों पर विशेष रूप से अधिक जोर दे रही है। अर्थव्यवस्था के इन अनुमानों से अर्थव्यवस्था में एक अवधि में होने वाले परिवर्तनों की सीमा और दिशा का पता चलता है। सकल राज्य घरेलू उत्पाद की क्षेत्रवार संरचना अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की एक समयावधि में इनकी सापेक्ष स्थिति के बारे में बताती है, जो न केवल अर्थव्यवस्था में होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों को दर्शाता है अपितु समस्त अर्थव्यवस्था के विकास हेतु योजना बनाने में भी सहायक होती है।
स्थिर कीमतों पर हिमाचल प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद वर्ष 2017-18 (द्वितीय संशोधित अनुमान) में ₹1,10,034 करोड़ था जोकि 2018-19 (प्रथम संशोधित अनुमान) में ₹1,17,851 करोड़ अनुमानित है। 2018-19 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रही जबकि राष्ट्रीय स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत है। अर्थव्यवस्था को तीन विस्तृत क्षेत्रो में वर्गीकृत किया गया है
प्राथमिक क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, बागवानी, पशुधन, वानिकी एवं लठ्ठे, मत्स्य पालन, खनन और उत्खनन उप क्षेत्र शामिल हैं। कृषि और संबद्ध क्षेत्र ने एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में, जिस पर लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या निर्भर करती है, 1.7 प्रतिशत की ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की है जोकि वर्ष 2018-19 के (प्रथम संशोधित अनुमान) स्थिर कीमतों पर (वर्ष 2011-12) सकल मूल्य वर्धन ₹ 13,967 करोड़ हुआ है यह पिछले वर्ष 2017-18 में (द्वितीय संशोधित अनुमान) ₹14,211 करोड़ था। हिमाचल प्रदेश में बागवानी, कृषि क्षेत्र का उप क्षेत्र नहीं रहा है क्योंकि इसने मूल्य वर्धन के मामले में कृषि क्षेत्र को पीछे छोड़ दिया है। पशुधन क्षेत्र आय को बढ़ाने के लिए एक वैकल्पिक और भरोसेमंद स्त्रोत के रूप में उभरा है। वर्ष में 2018-19 में दुग्ध उत्पादन में 4.88 प्रतिशतए मांस में 2.42 प्रतिशत और अण्डों में 2.61 प्रतिशत कीे वृद्धि हुई है जोकि पशुधन क्षेत्र में 9.7 प्रतिशत और मत्स्य क्षेत्र में 6.6 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती है। वानिकी एवं लठ्ठे बनाने के क्षेत्र एवं खनन और उत्खनन में वर्ष 2018-19 (प्रथम संशोधित अनुमान) में वृद्धि दर क्रमशः 1.4 प्रतिशत और (-)9.7 प्रतिशत दर्ज की गई है।

गौण अथवा औद्योगिक क्षेत्र : औद्योगिक क्षेत्र में विनिर्माण (संगठित और असंगठित), विद्युत, गैस, जलापूर्ति और निर्माण क्षेत्र शामिल हैं। स्थिर (2011-12) कीमतों पर वर्ष, 2018-19 के लिए (पहले संशोधित अनुमान के अनुसार) औद्योगिक क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन ₹ 52,693 करोड़ हुआ है, जोकि 2017-18 (द्वितीय संशोधित अनुमान) में ₹48,787 करोड़ था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्र : सेवा क्षेत्र की राज्य सकल मूल्य वर्धन में निरंतर वृद्धि हो रही है। सेवा क्षेत्र में व्यापार, होटल तथा रेस्तरां, परिवहन के अन्य साधन, भंडारण, संचार, बैंकिंग और बीमा, स्थावर सम्पदा और व्यावसायिक सेवाओं, सामुदायिक, सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाओं ने पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2018-19 (प्रथम संशोधित अनुमान) में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि की है। सेवा क्षेत्र में सकल मूल्य वर्धन वर्ष 2018-19 प्रथम संशोधित अनुमानों के अनुसार ₹45,083 करोड़ अनुमानित है, जो वर्ष 2017-18 (द्वितीय संशोधित अनुमान) में ₹41,516 करोड़ था। यापक क्षेत्रवार सकल मूल्य वर्धन स्थिर कीमतों पर निम्न दर्शाया गया है
प्रचलित कीमतों पर प्रथम संशोधित अनुमान के अनुसार राज्य का सकल घरेलू उत्पाद 2018-19(प्र.सं.अ.) में ₹1,53,845 करोड़ आंका गया जोकि 2017-18 (द्वि.सं.अ.) में ₹ 1,38,351 करोड़ था। प्रचलित आधारभूत कीमतों पर सकल मूल्य वर्धित उत्पाद 2018-19 में ₹1,41,642 करोड़ अनुमानित है जोकि वर्ष 2017-18 में ₹1,27,361 करोड़ था। प्रचलित आधारभूत कीमतों पर क्षेत्रवार योगदान निम्न तालिका 2.1 में दर्शाया गया हैः
प्रचलित आधारभूत कीमतों पर 2018-19 में प्रथम संशोधित अनुमान के अनुसार प्राथमिक क्षेत्र का योगदान ₹17,908 करोड़ (12.64 प्रतिशत) रहा है। इसी समयावधि में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान ₹62,362 करोड़ (44.03 प्रतिशत ) है, व सेवा क्षेत्र का योगदान ₹61,372 करोड़ (43.33 प्रतिशत ) है। समस्त भारत एवं हिमाचल प्रदेश का प्रचलित तथा स्थिर कीमतों पर, 2011-12 से 2018-19 (प्रथम संशोधित अनुमान) में सकल घरेलू उत्पाद तालिका 2.2 में वर्णित हैः
वर्ष 2018-19 में प्रथम संशोधित अनुमान के अनुसार, प्रचलित कीमतो पर, प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 2017-18 (द्वितीय संशोधित अनुमान) ₹1,65,025 से बढ़कर ₹1,83,108 होने की सम्भावना है जो 11.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। स्थिर कीमतों पर राज्य की प्रति व्यक्ति आय 2017-18 (द्वितीय संशोधित अनुमान) के ₹1,30,644 से बढ़कर वर्ष 2018-19 में (प्रथम संशोधित अनुमान) में ₹1,39,469 होने की सम्भावना है जो 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। हिमाचल प्रदेश और भारत की प्रचलित कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय का तुलनात्मक विवरण वर्ष 2011-12 से 2018-19 का निम्न तालिका में वर्णित हैः
2011-12 से 2018-19 तक हिमाचल प्रदेश और अखिल भारतीय की मौजूदा कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय (पीसीआई) की तुलनात्मक तस्वीर नीचे दी गई है: दिसंबर 2019 तक राज्य के आर्थिक प्रदर्शन पर आधारित अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2019-20 के दौरान राज्य की आर्थिक विकास दर संभावित है 5.6 प्रतिशत होना. राज्य ने 2018-19 (एफआरई) में 7.1 प्रतिशत और 2017-18 (एसआरई) में 6.8 प्रतिशत की विकास दर हासिल की। वर्ष 2019-20 में वर्तमान मूल्यों पर जीएसडीपी (एडीवी) अनुमान लगभग रहने की संभावना है ₹ 1,65,472 करोड़।
अग्रिम अनुमान के अनुसार 2019-20 (AE) के दौरान मौजूदा कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय ₹1,95,255 अनुमानित की गई है। 2018-19 में ₹1,83,108 (एफआरई) 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
हालांकि, हिमाचल प्रदेश में आर्थिक विकास के एक संक्षिप्त विश्लेषण से पता चलता है कि राज्य ने अखिल भारतीय विकास दर के साथ तालमेल बनाए रखा है। नीचे तालिका-2.3 में दिखाया गया है:
राज्य सरकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों, गैर-कर राजस्व, केंद्रीय करों में हिस्सेदारी और केंद्र सरकार से सहायता अनुदान के माध्यम से वित्तीय संसाधन जुटाती है। पर होने वाले व्यय को पूरा करें प्रशासन और विकासात्मक गतिविधियाँ। वर्ष 2019-20 (बीई) के बजट अनुमान के अनुसार, कुल राजस्व प्राप्तियां 33,747 करोड़ रुपये अनुमानित हैं, जबकि 2018-19 (आरई) में यह 31,189 करोड़ रुपये थी। 8.20 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
राज्य का अपना कर 2019-20 (बीई) में बढ़कर 15.69 प्रतिशत हो गया, जो कि ₹ 6,847 करोड़ के मुकाबले ₹ 7,921 करोड़ होने का अनुमान है। 201819 (आरई) और 201718 (ए) में ₹ 7,108 करोड़।
राज्य के गैर-कर राजस्व (मुख्य रूप से ब्याज प्राप्तियां, बिजली प्राप्तियां, सड़क परिवहन प्राप्तियां और अन्य प्रशासनिक सेवा आदि शामिल हैं) का अनुमान लगाया जाता है 201920 (बीई) में ₹ 2,443 करोड़ पर, जो 2019-20 की कुल राजस्व प्राप्तियों का 7.24 प्रतिशत है।
2019-20 (बीई) में केंद्रीय करों का हिस्सा ₹ 7,398 करोड़ अनुमानित है।
राज्य के स्वयं के करों के विश्लेषण से पता चलता है कि 201920 में कुल कर राजस्व का 39.06 प्रतिशत बिक्री कर (अन्य करों सहित) द्वारा उत्पन्न होता है और शुल्क) जिसकी राशि ₹ 5,984 करोड़ है .वर्ष 201819 (आरई) और 2017-18 (ए) के लिए संबंधित प्रतिशत क्रमशः 41.79 और 46.61 प्रतिशत था। राज्य उत्पाद शुल्क से राजस्व 2019-20 (बीई) में ₹1,625 करोड़ अनुमानित है।
2018-19 में उत्पाद एवं कराधान विभाग ने विभिन्न मदों में ₹ 5,861 करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले ₹ 6,422 करोड़ का कर संग्रह किया, जो कि 9.57 प्रतिशत है। लक्ष्य से अधिक. के लिए वित्तीय वर्ष 2019-20 में राजस्व लक्ष्य 6,869 करोड़ के विरूद्ध नवंबर 2019 तक 4,448 करोड़ की वसूली हुई है। वर्ष 2019-20 तक मदवार राजस्व लक्ष्य एवं उपलब्धियां नवंबर 2019 नीचे दिया गया है:
सरकारी प्राप्तियों को मोटे तौर पर गैर-ऋण और ऋण प्राप्तियों में विभाजित किया जा सकता है। गैर-ऋण प्राप्तियों में कर राजस्व, गैर-कर राजस्व, सहायता अनुदान शामिल हैं। ऋणों की वसूली और विनिवेश प्राप्तियाँ. ऋण प्राप्तियों में ज्यादातर बाजार उधार और अन्य देनदारियां शामिल होती हैं, जिन्हें सरकार भविष्य में चुकाने के लिए बाध्य होती है।

2019-20 के बजट अनुमान के अनुसार, कर राजस्व (केंद्रीय करों सहित) ₹12,277 करोड़ के मुकाबले ₹15,319 करोड़ होने का अनुमान है। 2018-19 (आरई) में जो 24.78 प्रतिशत हैं 2018-19 के संशोधित अनुमान से अधिक, जो जीएसडीपी का 9.26 प्रतिशत है।
गैर-कर राजस्व में मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से ऋण, लाभांश और मुनाफे पर ब्याज प्राप्तियां और सरकार द्वारा प्रदान की गई सेवाओं से प्राप्तियां शामिल होती हैं। आम लोक सेवा आयोग द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सामाजिक सेवाएँ, सिंचाई जैसी आर्थिक सेवाएँ आदि। गैर-कर राजस्व में वृद्धि होने की संभावना है। 2018-19 में ₹ 2,324 करोड़ की तुलना में 2019-20 में ₹ 2,443 करोड़ हो गया, जो 5.13 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है और राज्य जीएसडीपी का 1.48 प्रतिशत है।
गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों में ऋण और अग्रिम की वसूली और विनिवेश प्राप्तियां शामिल होती हैं। 2019-2020 के बजट अनुमान में ऋणों की वसूली के रूप में ₹ 27 करोड़ की परिकल्पना की गई है और विनिवेश से कोई आय नहीं.
2019-20 के बजट अनुमान के अनुसार, राज्य सरकार का कुल व्यय ₹ 44,388 करोड़ अनुमानित है, जिसमें से ₹ 36,089 करोड़ (कुल बजट का 81.30%) 2018-19 में ₹ 33,408 करोड़ और 2017-18 में ₹ 27,053 करोड़ के मुकाबले राजस्व व्यय के लिए निर्धारित किया गया है। वर्ष 2019-20 के लिए ₹ 4580 करोड़ (बजट का 10.32 प्रतिशत) निर्धारित है पूंजीगत व्यय के लिए 2018-19 में ₹ 4,893 करोड़ और 2017-18 में ₹ 3,756 करोड़ के मुकाबले, वर्ष 2019-20 के लिए ऋण खाते के लिए ₹ 3,719 करोड़ (बजट का 8.38 प्रतिशत) निर्धारित किया गया है।

बजट अनुमान के अनुसार वर्ष 2019-20 के लिए सरकार की राजस्व प्राप्तियां जीएसडीपी का 20.39 प्रतिशत होने का अनुमान है जो कि थी 20.27 प्रतिशत 2018-19 में संशोधित अनुमान। इसी प्रकार, वर्ष 2019-20 के लिए कर राजस्व जीएसडीपी का 9.26 प्रतिशत होने का अनुमान है, जबकि 2018-19 के दौरान यह 7.98 प्रतिशत था। गैर-कर राजस्व जीएसडीपी का 1.48 प्रतिशत है। 2018-19 के दौरान 1.51 प्रतिशत की तुलना में 2019-20 में मामूली कमी देखी गई। 201920 में राजस्व व्यय बढ़ने की संभावना है जबकि पूंजीगत व्यय प्रतिशत के रूप में घटने की संभावना है 2019.-20 में जीएसडीपी का. 2019-20 में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 4.44 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि 2018-19 में यह 5.06 प्रतिशत था। जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राजस्व और प्राथमिक घाटा 2019-20 में घटने की उम्मीद है।
2013-14 से 2018-19 के दौरान राज्य सरकार की जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राजस्व प्राप्तियां 16.58 प्रतिशत से बढ़कर 20.39 प्रतिशत हो गईं, जबकि उसी अवधि में राजस्व व्यय प्रतिशत के रूप में जीएसडीपी 18.31 प्रतिशत से बढ़कर 21.81 प्रतिशत हो गई। जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय 2013-14 में 1.96 प्रतिशत के मुकाबले 2019-20 में बढ़कर 2.77 प्रतिशत हो गया। राजस्व घाटा प्रतिशत के रूप में वर्ष 2013-14 के लिए जीएसडीपी 1.73 प्रतिशत थी जो वर्ष 2019-20 में जीएसडीपी का 1.42 प्रतिशत होने की संभावना है। इसी प्रकार, वर्ष 2013-14 में जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा 4.23 प्रतिशत था जो 201920 में जीएसडीपी का 4.44 प्रतिशत होने की संभावना है।
उपरोक्त तालिका 2.5 से पता चलता है कि राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि जो 2013-14 में 0.72 प्रतिशत थी, बजट अनुमान के अनुसार 2019-20 में बढ़कर 8.20 प्रतिशत होने की संभावना है। कर राजस्व (केंद्रीय करों सहित) सरकार को 2013-14 के 10.19 प्रतिशत की तुलना में 2019-20 में 24.78 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है। गैर-कर राजस्व की वृद्धि 2019-20 में घटकर 5.13 प्रतिशत हो गई जो 29.63 प्रतिशत थी 2013-14 में. बजट अनुमान 2019-20 के अनुसार सरकार के कुल व्यय में वृद्धि 1.75 प्रतिशत है जबकि 2013-14 में 3.51 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। राजस्व व्यय होने की संभावना है 2019-20 में 8.02 प्रतिशत की वृद्धि। पूंजीगत व्यय में वृद्धि 2013-14 में (-) 5.06 प्रतिशत की तुलना में 2019-20 में (-) 6.40 प्रतिशत अनुमानित है।
सरकारी व्यय को युक्तिसंगत बनाना और प्राथमिकता देना राजकोषीय सुधारों का अभिन्न अंग है। चूंकि राज्य का कर-जीएसडीपी अनुपात कम है, इसलिए सरकार को पर्याप्त धन उपलब्ध कराने की चुनौती का सामना करना पड़ता है राजकोषीय अनुशासन बनाए रखते हुए निवेश और बुनियादी ढांचे का विस्तार। इस प्रकार पूंजीगत व्यय की दिशा में व्यय की गुणवत्ता में सुधार महत्वपूर्ण हो जाता है। राजस्व व्यय की संरचना
राजस्व व्यय की संरचना नीचे तालिका 2.6 में दी गई है जिससे पता चलता है कि कुल व्यय का 59 प्रतिशत वेतन, पेंशन पर खर्च होने की संभावना है , 2019-20 (बीई) में ब्याज भुगतान और सब्सिडी। वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर व्यय प्रकृति में प्रतिबद्ध व्यय है और अतिरिक्त राजकोषीय स्थान के निर्माण के लिए सीमित गुंजाइश है। सब्सिडी को 2.4 पर काफी कम कर दिया गया है कुल व्यय का प्रतिशत.

उपरोक्त सारणी से ज्ञात होता है कि वेतन तथा पेन्शन व्यय में, वृद्धि वर्ष दर वर्ष बढ़ी है जबकि इसका अपवाद वर्ष 2015-16 है जिसमें यह वृद्धि ऋणात्मक रही। वेतन व्यय में वर्ष 2016-17(वा.अ.) में 20 प्रतिशत, वर्ष 2018-19 (सं.अ.) में 19 प्रतिशत तथा वर्ष 2019-20 (ब.अ.) में 9 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है इसके अलावा पेंशन व्यय में वृद्धि वर्ष 2015-16(वा.) में 32 प्रतिशत, वर्ष 2018-19 (सं.अ.) में 25 प्रतिशत तथा वर्ष 2019-20 (ब.अ.) में 13 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है। ब्याज़ भुगतान 2017-18 (वा.अ.) में 12.78 प्रतिशत, 2018-19 (सं.अ.) में 12.45 तथा 2019-20 (ब.अ.) में 6.81 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है। अनुदान पर व्यय में वर्ष 2017-18 (वा.अ.) में 18.70 प्रतिशत, वर्ष 2018-19 (सं.अ.) में 19.62 प्रतिशत तथा वर्ष 2019-20 (ब.अ.) में (-)1.70 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है।

वर्ष 2017-18 में राज्य की कुल देनदारियां ₹47,906.20 करोड़ हो गई जो वर्ष 2012-13 में ₹28,707.29 करोड़ थी जो 67 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। इसके अतिरिक्त राज्य की कुल देनदारियां वर्ष 2017-18 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 34.63 प्रतिशत है। (सारणी 2.8)

3.निवेश और पहल

निवेश, विशेष रूप से निजी निवेश, "प्रमुख चालक" है जो मांग को बढ़ाता है, क्षमता बनाता है, श्रम उत्पादकता बढ़ाता है, नई तकनीक पेश करता है, रचनात्मक विनाश की अनुमति देता है, और उत्पादन करता है नौकरियां। मौजूदा बाज़ारों या उभरते अवसरों की प्रतिक्रिया में बढ़ा हुआ निजी निवेश - नई नौकरियाँ पैदा करता है, जिससे स्थानीय आय बढ़ती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की स्थानीय माँग बढ़ती है, जिसके परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र में अधिक निवेश होता है और इस प्रकार विकास का चक्र जारी रहता है। राइजिंग हिमाचल 2019 के बारे में
ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट 2019 हिमाचल प्रदेश सरकार का प्रमुख व्यावसायिक कार्यक्रम था। राज्य ने 07 से 08 नवंबर को धर्मशाला में इस प्रमुख कार्यक्रम का उद्घाटन संस्करण आयोजित किया। 2019. इस कार्यक्रम में हिमाचल ने राज्य में विनिर्माण और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए नीति और नियामक वातावरण, आठ फोकस क्षेत्रों में निवेश के अवसरों का प्रदर्शन किया। निम्नलिखित उद्देश्य:
i) निवेश को आकर्षित करना और राज्य की आर्थिक वृद्धि और जीडीपी को बढ़ावा देना।
ii) राष्ट्राध्यक्षों, कॉर्पोरेट जगत के नेताओं, वरिष्ठ नीति निर्माताओं, विकास एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय ख्याति के संस्थानों के प्रमुखों को एक साथ लाने के लिए एक मंच प्रदान करना। राज्य में सामाजिक-आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए दुनिया भर से शिक्षाविद।
iii) रोजगार के अवसर पैदा करना और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।
iv) एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना जो विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए अपने हितधारकों का समर्थन करता है।
v) 'मेक इन हिमाचल' को बढ़ावा देना और इस तरह 'मेक इन इंडिया' को प्रोत्साहित करना।
vi) निर्यात में राज्य की हिस्सेदारी को बढ़ावा देना।
vii) हिमाचल प्रदेश के एमएसएमई क्षेत्र को मजबूत और सशक्त बनाना।
फोकस सेक्टर:
ए) कृषि व्यवसाय, खाद्य प्रसंस्करण और फसल कटाई के बाद की प्रौद्योगिकी।
बी) विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स।
सी) पर्यटन, आतिथ्य और नागरिक उड्डयन।
घ) जल एवं नवीकरणीय ऊर्जा।
e) कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल और आयुष।
f) आवास और शहरी विकास, परिवहन, बुनियादी ढांचा और रसद।
जी) सूचना प्रौद्योगिकी, आईटीईएस और इलेक्ट्रॉनिक्स।
ज) शिक्षा एवं कौशल विकास।
भूमिका:
i) हिमाचल प्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट, माननीय प्रधानमंत्री के गुजरात में आयोजित निवेशकों की बैठक ‘वाइब्रेंट गुजरात‘ के दृष्टिकोण से प्रेरित है, जो उच्च विकास, प्रगति और समृद्धि का एक मॉडल है जो अन्य राज्यों के लिए एक बेंचमार्क बन गया है।
ii) हिमाचल प्रदेश सरकार ने ऊगता हिमाचल - वैश्विक निवेशकों की बैठक के माध्यम से राज्य मंे निवेश की अपार संभावनाओं को दिखाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।
iii) राज्य सरकार ने ₹85,000 करोड़ का निवेश लक्ष्य निर्धारित किया है और प्रत्येक क्षेत्र में संभावित निवेश क्षमता के आधार पर 8 प्रमुख क्षेत्रों में सावधानीपूर्ण विभक्त किया है।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट-2019 के लिए उठाए गए कदम :
i)राज्य ने आधिकारिक वेबसाइट "https://risingimachal.in/", मोबाइल आधारित ऐप "राइजिंग हिमाचल" विकसित किया है और यह प्रगति मॉडल से प्रेरित है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की। राज्य ने एमओयू की ऑनलाइन निगरानी के माध्यम से निवेशकों को सुविधा प्रदान करने के लिए "हिमप्रगति" पोर्टल भी विकसित किया है।
ii) सेक्टर प्रोफाइल, निवेश योग्य परियोजनाएं, राज्य प्रस्तुतियां और राज्य वीडियो जैसे सभी ज्ञान संपार्श्विक साइट पर बनाए और अपलोड किए गए हैं।
निवेशक आउटरीच: राज्य सरकार ने रोड शो और मिनी कॉन्क्लेव के रूप में कई निवेशक आउटरीच कार्यक्रम शुरू किए। मुख्यमंत्री का नेतृत्व। जर्मनी में 3 अंतर्राष्ट्रीय रोड शो, नीदरलैंड और यूएई, बेंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली, चंडीगढ़ और अहमदाबाद में 6 घरेलू रोड शो और शिमला और मनाली में 2 मिनी कॉन्क्लेव आयोजित किए गए। विभिन्न क्षेत्रों के उद्योगपतियों, बाज़ार के नेताओं और निवेशकों तक पहुँचते हुए आयोजित किया गया। सरकार ने नई दिल्ली में राजदूतों की बैठक भी आयोजित की जिसमें अधिक राजदूतों/उच्चायुक्तों ने भाग लिया 60 से अधिक देशों ने भाग लिया।
सरकार ने राज्य में अधिक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई नीतियां अधिसूचित की हैं। ये नीतियां की प्रक्रिया बनाती हैं राज्य में निवेश आसान. सबसे महत्वपूर्ण नीतियों में से एक औद्योगिक नीति है, जिसे राज्य में औद्योगिक विस्तार को गति देने के लिए विकसित किया गया है। नई औद्योगिक नीति जो राज्य के सभी हिस्सों को लाभान्वित करने के लिए सतत और संतुलित औद्योगिक विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करता है। दूरस्थ और आंतरिक, संवेदनशील क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं समाज के वर्ग और स्थानीय संसाधन आधारित उद्योग और सेवाएँ। नीति का विज़न स्टेटमेंट है, “आर्थिक विकास और रोजगार के पैमाने को बढ़ाने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना अवसर; हिमाचल को निवेश के लिए पसंदीदा गंतव्य में से एक बनाने के लिए औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों का सतत विकास और संतुलित विकास सुनिश्चित करें। नीति का मुख्य उद्देश्य है पूरे राज्य में उद्योग की एक समान वृद्धि हासिल करना और इसका लक्ष्य भी है
i) मौजूदा उद्योगों के विकास के लिए एक अनुकूल निवेश माहौल बनाने के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए राज्य में और निवेश आकर्षित करने के लिए एक दिशानिर्देश के रूप में कार्य करता है। युवाओं और पूरे राज्य में औद्योगिक और सेवा क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करना।
ii) विशेष रूप से औद्योगिक विकास में बाधा डालने वाले मुद्दों को संबोधित करें और प्रक्रियाओं, प्रमुख भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे, मानव संसाधन विकास, ऋण और बाजार तक पहुंच का सरलीकरण सुनिश्चित करें।
iii) सभी प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण और स्व-प्रमाणन को बढ़ावा देकर व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ावा देना।
iv) प्रभावी फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज स्थापित करके खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहन देना; कृषि-बागवानी और ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा देना।
v) स्थानीय युवाओं और हितधारकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की सुविधा के लिए पूरे राज्य में सेवा और औद्योगिक क्षेत्र के समान टिकाऊ विकास के लिए एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देना।
vi) स्थानीय उद्यमशीलता आधार बनाने और उत्पन्न करने के लिए स्टार्ट-अप और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना।
vii) आर्थिक विकास के पैमाने, रोजगार के अवसर, सहायकीकरण, राजस्व सृजन और स्थानीय संसाधनों के लिए लाभकारी कीमतों को बढ़ाने के लिए बड़े निवेश की भूमिका को पहचानें और प्रोत्साहित करें।
viii) समाज के कमजोर वर्गों का उत्थान करना।
पर्यटन क्षेत्र नीति 2019 एक और महत्वपूर्ण नीति है। यह नीति हिमाचल प्रदेश को एक अग्रणी वैश्विक स्थायी पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने की दृष्टि से विकसित की गई है समावेशी आर्थिक विकास” पर्यटन नीति 2019 का मिशन निम्नलिखित के माध्यम से एक समावेशी और टिकाऊ पर्यटन अर्थव्यवस्था को विकसित करना है: राज्य की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण, बेहतर गुणवत्ता जीवन और बेहतर रोजगार के अवसर, बेहतर पर्यटक अनुभव और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से नवाचार। मुख्य लक्ष्य हिमाचल प्रदेश राज्य को एक अग्रणी वैश्विक टिकाऊ पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करना है। अन्य लक्ष्य हैं
i) हिमाचल प्रदेश पर्यटन को पर्यटन में एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के रूप में स्थापित करना
ii) सामाजिक-आर्थिक विकास और रोजगार सृजन पर मुख्य ध्यान देते हुए पर्यटन को टिकाऊ बनाएं।
iii) पर्यटकों का गुणवत्तापूर्ण अनुभव सुनिश्चित करना।
iv) पर्यटन संबंधी निवेश और बुनियादी ढांचे में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करें। मिशन को साकार करने और टिकाऊ पर्यटन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, 2029 के प्रस्तावित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले उद्देश्य तैयार किए गए हैं। ये उद्देश्य हैं:
i) थीम आधारित विकास के माध्यम से पर्यटन विविधीकरण को बढ़ावा देना
ii) स्थायी हस्तक्षेपों के माध्यम से राज्य के पर्यटन स्थलों की सुरक्षा करना
iii) यह सुनिश्चित करना कि स्थायी पर्यटन मुख्य रूप से मेज़बान समुदायों को लाभ पहुँचाए
iv) पर्यटन उद्योग के लिए क्षमता निर्माण और गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन विकसित करना
v) "सभी के लिए सुरक्षित, सुरक्षित और अद्वितीय पर्यटन" प्रदान करना
vi) टिकाऊ पर्यटन के लिए निवेश के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना
हिमाचल प्रदेश राज्य ने आईटी, आईटीईएस और ईएसडीएम नीति 2019 को भी अधिसूचित किया है। यह नीति आईटी, आईटीईएस और ईएसडीएम स्थापित करने के लिए प्रतिस्पर्धी माहौल सक्षम बनाती है। इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन और विनिर्माण) राज्य में उद्यमिता के माध्यम से अधिक रोजगार उत्पन्न करने के लिए संगठन। नीति का मुख्य उद्देश्य है:
i) हिमाचल प्रदेश राज्य को आईटी, आईटीईएस और ईएसडीएम कंपनियों के लिए अग्रणी गंतव्य के रूप में बदलना।
ii) राज्य में आईटी, आईटीईएस और ईएसडीएम कंपनियों के निर्माण के लिए आवश्यक सभी बुनियादी सुविधाएं स्थापित करें
iii) कुशल जनशक्ति संसाधनों को मजबूत करने के लिए राज्य में एक संगठनात्मक व्यवस्था स्थापित करें
iv) राज्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमियों को आईटी, आईटीईएस और ईएसडीएम क्षेत्र में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित और समर्थन करना।
v) बैकएंड ऑटोमेशन के साथ एक ढांचा विकसित करें व्यवसाय प्रक्रिया को मजबूत करें
vi) एक निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर वितरित डिजिटल सेवाओं की गारंटी देकर एक अनुकूल वातावरण स्थापित करें
vii) राज्य में समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास में सुधार करना
viii) प्रौद्योगिकी और नवाचार के दीर्घकालिक विकास पर ध्यान केंद्रित करें
ix) राज्य में अधिक रोजगार के अवसर पैदा करना और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना
आयुष नीति 2019 एक और महत्वपूर्ण नीति है। इस नीति को "उत्तरोत्तर कार्य करके समाज का सर्वांगीण विकास लाने" की दृष्टि से विकसित किया गया है उनके दरवाजे पर आयुष सुविधाएं प्रदान करके और जमीनी स्तर पर आयुष आधारित जीवन शैली को एकीकृत करके बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त करने और हिमाचल प्रदेश को विकसित करने के लिए समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान देने के साथ कल्याण सहित आयुष क्षेत्र में निवेश गंतव्य”। आयुष नीति 2019 का मिशन "मजबूत स्थापित करना" है और राज्य में आयुष सेवाओं का अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया नेटवर्क सामान्य आबादी के लिए आसानी से सुलभ, सस्ती और न्यायसंगत स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली प्रदान करता है, और एक बेंचमार्क स्थापित करता है। आयुष हस्तक्षेप के उच्चतम मानकों को बढ़ावा देकर और 2025 तक राज्य की अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित करने का प्रयास करके देश में सर्वोत्तम आयुष प्रथाओं में से एक।
राज्य सरकार ने एक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने के लिए अनुमोदित हिमाचल प्रदेश फिल्म नीति-2019 को भी अधिसूचित किया है, जिससे न केवल फिल्म की शूटिंग में सुविधा होगी। हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर बल्कि फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं से संबंधित गतिविधियों का सर्वांगीण विकास भी सुनिश्चित करें।” यह हिमाचल प्रदेश को फिल्म निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य के रूप में विकसित करेगा और बढ़ावा देगा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए फिल्मों के माध्यम से राज्य की संस्कृति, इतिहास, विरासत और गौरवशाली परंपराओं और मनोरम पर्यटन स्थलों का प्रचार-प्रसार किया जाएगा। इससे राज्य की प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर भी मिलेगा फिल्म निर्माण के सभी विभागों में.
एचपी एमएसएमई (स्थापना और संचालन की सुविधा) अधिनियम-2020:- प्रदेश में 98 प्रतिशत से अधिक उद्योग एमएसएमई सेक्टर के हैं। निवेश, रोजगार और कार्य में आसानी को बढ़ावा देना इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में व्यवसाय, एचपी एमएसएमई (स्थापना और संचालन की सुविधा) अधिनियम-2020 को अधिसूचित किया गया है जो अनुमोदन / एनओसी / की प्रतीक्षा किए बिना एमएसएमई के लिए परियोजना के कार्यान्वयन की अनुमति देता है। तीन साल के लिए अनुमति.
सिंगल विंडो सिस्टम जो सभी क्षेत्रों में निवेश के लिए मंजूरी और नवीनीकरण प्रदान करता है (अनिवार्यता प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है और उलटी परियोजनाएं INR 5 से ऊपर करोड़ को एकल खिड़की मंजूरी मिलेगी और उसके बाद जमीन की खरीद के लिए सैद्धांतिक मंजूरी सीधे राजस्व विभाग द्वारा दी जाएगी)।
धारा 118 के तहत जमीन खरीदने की अनुमति के लिए ऑनलाइन पोर्टल। राज्य सरकार ने धारा 118 के तहत प्रक्रियाओं को भी सरल बना दिया है।
स्थापित करने की सहमति, संचालित करने की सहमति का स्वत: नवीनीकरण।
सिंगल पॉइंट सेक्टोरल क्लीयरेंस।
निवेशकों की मदद के लिए निवेश सुविधा केंद्र
सभी श्रम कानूनों के लिए एकल एकीकृत रिटर्न।
सभी भूमि बैंकों के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली।
सफल ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट धर्मशाला में राइजिंग हिमाचल - ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के दो दिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों के बीच किया। केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, संसद सदस्य, राजदूत, उद्योग जगत के कप्तान, अंतर्राष्ट्रीय गणमान्य व्यक्ति सहित गणमान्य व्यक्ति। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक कॉफी टेबल का भी विमोचन किया पुस्तक में हिमाचल के विभिन्न पहलुओं जैसे इतिहास, प्राकृतिक सुंदरता और राज्य की विरासत के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में 8 फोकस क्षेत्रों में मुख्य आकर्षण और निवेश के अवसरों को शामिल किया गया है। बाद में, उन्होंने प्रदर्शनी मंडप का उद्घाटन किया जिसमें संगठनों ने नवीन और नवीन विचारों और कार्यों का प्रदर्शन किया। ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के दौरान, 8 क्षेत्रीय सत्र आयोजित किए गए, जो व्यापार करने में आसानी; प्रवासी भारतीय सत्र; पर्यटन, कल्याण और आयुष; भागीदार देश; नवीकरणीय ऊर्जा और जल विद्युत; सूचना प्रौद्योगिकी, आईटीईएस और इलेक्ट्रॉनिक्स; पहाड़ी में निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन और नीतियां राज्य और खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी विकास, एमएसएमई सहित विनिर्माण। इन सत्रों में पैनल वक्ताओं में प्रमुख रूप से केंद्रीय मंत्री श्री थे। पीयूष गोयल, श्री अनुराग ठाकुर, सचिव भारत सरकार - श्री अजय साहनी और डॉ. गुरुप्रसाद महापात्र, नीति आयोग से प्रोफेसर रमेश चंद और डॉ. राजीव कुमार और उद्योग जगत के प्रमुख डोमेन विशेषज्ञ। समापन सत्र में, श्री पीयूष गोयल, भारत सरकार के केंद्रीय रेल, उद्योग और वाणिज्य मंत्री ने सत्र की अध्यक्षता की।
निवेशक सम्मेलन की मुख्य बातें:
1) प्रतिभागियों की सूची - दुनिया भर से 2,802 व्यापार प्रतिनिधियों ने भाग लिया
2) अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि
ए) अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने भाग लिया: 36 देशों से 200 संख्या में
बी) अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख व्यावसायिक घराने: बीआरएस वेंचर्स, अयाना होल्डिंग्स, लुलु इंटरनेशनल, होराइजन ग्रुप, जाइंट ग्रुप
सी) प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल: संयुक्त अरब अमीरात प्रतिनिधिमंडल, एसोचैम नीदरलैंड, पीआईओसीसीआई, संयुक्त अरब अमीरात - भारत व्यापार परिषद, वियतनाम प्रतिनिधिमंडल, रूस प्रतिनिधिमंडल, बिजनेस लीडर्स फोरम
घ) प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल और व्यापारिक नेता: संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम, नीदरलैंड, रूस, मलेशिया, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी
3) बड़ी संख्या में राजदूतों ने भाग लिया
a) राजदूत: 9 और टोगो दूतावास से प्रतिनिधि:1
4) सभी बी2जी/बी2बी बैठकों का विवरण
ए) माननीय मुख्यमंत्री के साथ बी2जी बैठकों की संख्या :24
बी) विभागों के साथ बी2जी बैठकों की संख्या: 85
सी) बी2बी बैठकों की संख्या : 93
बड़े उद्योगपति: 32 संख्या।
प्रदर्शनी में भाग लेने वाली कंपनियों की संख्या: 47
एमओयू सारांश आज तक राइजिंग हिमाचल ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट की यात्रा के दौरान, राज्य सरकार ने 96,721 करोड़ रुपये के 703 एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। 1,96,000 व्यक्तियों को रोजगार मिलने की संभावना।
पहला ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी (जीबीसी) ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के आयोजन के बाद से 2 महीने से भी कम समय में, राज्य सरकार ने पहला ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी आयोजित की। जो एक अभूतपूर्व घटना है. पहली जीबीसी विभिन्न हितधारकों - हिमाचल में निवेशकों, उद्यमियों, राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा किए गए साल भर के प्रयासों के सकारात्मक परिणामों के प्रमाण के रूप में कार्य करती है और आगे भी प्रदान करेगी। राज्य में प्रगति और समृद्धि को प्रोत्साहन।

अब तक एमओयू सारांश: `96,721 करोड़ के प्रस्तावित निवेश के साथ अब तक कुल 703 एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए।

13,656 करोड़ रुपये के 240 एमओयू बंद किये गये


अग्रणी कंपनियाँ जिनकी परियोजनाएँ बंद हैं:


2019 में अधिसूचित/संशोधित नई नीतियों और अधिनियम और नियमों की सूची:

4.सतत विकास के लक्ष्य

सितंबर 2000 में, 189 देशों के नेता संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एकत्र हुए और ऐतिहासिक सहस्राब्दी घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उन्होंने आठ का एक सेट हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई। 2015 की लक्ष्य तिथि तक अत्यधिक गरीबी और भुखमरी को आधा करने से लेकर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और बाल मृत्यु दर को कम करने तक मापने योग्य लक्ष्य हैं। एमडीजी एक प्रदान करने में क्रांतिकारी थे वैश्विक सहमति तक पहुँचने के लिए सामान्य भाषा। स्पष्ट माप/निगरानी तंत्र के साथ 8 लक्ष्य यथार्थवादी और संवाद करने में आसान थे। एमडीजी के संबंध में पर्याप्त प्रगति हुई है। दुनिया को 2015 तक अत्यधिक गरीबी दर को आधा करने के पहले एमडीजी का एहसास पहले ही हो चुका है। हालाँकि, उपलब्धियाँ विशेष रूप से अफ्रीका, कम विकसित देशों, भूमि से घिरे विकासशील देशों में असमान थीं। देश, और छोटे द्वीप विकासशील राज्य, और कुछ एमडीजी ऑफ-ट्रैक बने हुए हैं, विशेष रूप से मातृ, नवजात शिशु और बाल स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित। एमडीजी समाप्त हो गए थे 2015 में और 2015 के बाद के एजेंडे पर चर्चा हुई।

सितंबर, 2015 में विश्व समुदाय नए विकास पर अंतर्राष्ट्रीय फ्रेमवर्क तैयार करने पर सहमत हुआ था और सतत विकास के लिए इसे एजेंडा 2030 नाम दिया गया था। सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी), आधिकारिक तौर पर "परिवर्तनकारी दुनिया: सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा" के रूप में जाना जाता है, जो 169 लक्ष्यों और 300 से अधिक संकेतकों के साथ 17 आकांक्षा लक्ष्यों का एक अंतर-सरकारी सेट है। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश उम्मीद है कि वे इसे अगले 15 वर्षों के लिए अपनी राजनीतिक नीतियों को आकार देने के लिए विकास ढांचे के रूप में उपयोग करेंगे। एसडीजी का विस्तार सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) पर किया गया है, जिन पर देशों द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी 2001 और यह 2015 में समाप्त हो गया। एसडीजी 1 जनवरी, 2016 को अस्तित्व में आए हैं और 31 दिसंबर, 2030 तक समाप्त हो जाएंगे।

ये 17 लक्ष्य सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की सफलताओं पर आधारित हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता, नवाचार, टिकाऊ उपभोग, शांति जैसे नए क्षेत्र शामिल हैं। और न्याय, अन्य प्राथमिकताओं के बीच। लक्ष्य आपस में जुड़े हुए होते हैं-अक्सर किसी एक में सफलता की कुंजी में दूसरे से जुड़े मुद्दों से निपटना शामिल होता है।
सतत विकास एजेंडा-2030 का उद्देश्य विकास के लाभ को साझा करने में 'किसी को भी पीछे न छोड़ना' है। एसडीजी को गरीबी से निपटने, कम करने की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को एकीकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है असमानता, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना और वन और जैव विविधता सहित पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना।
एसडीजी का लक्ष्य गरीबी को उसके सभी रूपों में समाप्त करना, गरीबी का अंत, भूख का अंत, टिकाऊ कृषि, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और आजीवन सीखने को बढ़ावा देना है। , सभी के लिए स्वस्थ जीवन और कल्याण को बढ़ावा देना: सभी के लिए भूख ख़त्म करना: और सभी के लिए पानी और ऊर्जा की उपलब्धता और टिकाऊ प्रबंधन सुनिश्चित करना।
एसडीजी पर भारत सरकार द्वारा हस्ताक्षर किए गए और अपनाए गए हैं। 17 लक्ष्यों और 169 लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, सरकार। भारत का विकास हुआ है 309 संकेतक. ये संकेतक मापने योग्य और निगरानी योग्य हैं। नीति आयोग भारत में एसडीजी के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी है। नीति आयोग ने 62 प्राथमिकता संकेतकों का चयन किया है एसडीजी इंडिया इंडेक्स और उनकी नीति और योजना में एसडीजी के संस्थागतकरण में सभी राज्यों की प्रगति का आकलन करना। इसी एसडीजी इंडेक्स के आधार पर नीति आयोग ने हिमाचल प्रदेश को रैंकिंग दी है केरल के साथ नंबर 1 पर. राज्य सरकार हिमाचल प्रदेश में एसडीजी ढांचे को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रभावी सुनिश्चित करने के लिए राज्य योजना में एसडीजी का एकीकरण आवश्यक है राज्य में एसडीजी ढांचे का कार्यान्वयन। राज्य ने एसडीजी को बजटीय और योजना प्रक्रिया में एकीकृत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। राज्य सरकार बजट का मार्गदर्शन कर रही है एसडीजी द्वारा 2017-18 के बाद से भाषणों में उल्लेख किया गया है कि एसडीजी के कुछ लक्ष्य 2022 तक हासिल कर लिए जाएंगे। विभाग चल रही योजनाओं के पुनर्गठन और उन्हें इस दिशा में उन्मुख करने पर विचार कर रहे हैं। एसडीजी. चालू वित्तीय वर्ष के दौरान एसडीजी हासिल करने में मौजूदा कमियों को भरने के लिए कई नई योजनाएं शुरू की गईं।
योजना विभाग हिमाचल प्रदेश में एसडीजी ढांचे के कार्यान्वयन की सुविधा के लिए राज्य में नोडल विभाग है। सरकार ने कई पहल की हैं नोडल विभागों, प्रशिक्षण संस्थानों, भारत में संयुक्त राष्ट्र और नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (एनएफआई) जैसे अन्य संगठनों के साथ सहयोग। हिमाचल प्रदेश में सामाजिक-आर्थिक एवं मानवीय विकास संकेतक देश के कई राज्यों से काफी बेहतर हैं।
लक्ष्यों और कार्यान्वयन विभागों के साथ एसडीजी की लक्ष्य-वार मैपिंग की गई और प्रत्येक लक्ष्य के लिए नोडल विभाग की पहचान की गई। तदनुसार, प्रशासनिक सचिव की अध्यक्षता में कार्य समूह संबंधित लक्ष्य के लिए विज़न दस्तावेज़ तैयार करने के लिए गठित किया गया था। विभाग की सुविधा के लिए, नोडल विभागों को विस्तृत संदर्भ की शर्तें (टीओआर) और एक टेम्पलेट प्रदान किया गया है। विज़न दस्तावेज़ तैयार करने के लिए.
दृष्टि हिमाचल प्रदेश 2030 (राज्य विजन डॉक्यूमेंट 2030) तैयार और लॉन्च किया गया है। इस विज़न डॉक्यूमेंट में केवल 16 लक्ष्य लिये गये हैं और लक्ष्य क्रमांक 14 है यह समुद्री जीवन से संबंधित है क्योंकि हिमाचल प्रदेश भूमि से घिरा राज्य है। यदि हम गरीबी अंतर अनुपात, खाद्य सुरक्षा, अच्छे स्वास्थ्य, शिक्षा के सार्वभौमीकरण के संदर्भ में तुलना करें प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर की शिक्षा, जल एवं स्वच्छता की उपलब्धता, वित्तीय समावेशन, कानून एवं व्यवस्था, आधुनिक ऊर्जा की उपलब्धता की तुलना में हिमाचल काफी बेहतर स्थिति में है। कई अन्य राज्यों के लिए. राज्य विज़न दस्तावेज़ सुझाव देता है कि अधिकांश लक्ष्य 2022 तक हासिल कर लिए जाएंगे और शेष लक्ष्य 2030 से पहले या उससे पहले हासिल कर लिए जाएंगे।
नोडल विभागों और प्रशिक्षण संस्थानों की भागीदारी के साथ तीन कार्यशालाएँ आयोजित की गईं, इन कार्यशालाओं के परिणामस्वरूप विभिन्न विभागों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा किया गया। पहचान कर ली गई है. विभिन्न हितधारकों को संरचित प्रशिक्षण और संवेदीकरण प्रदान करने के लिए, हिपा द्वारा एसडीजी पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम मॉड्यूल विकसित किए गए हैं। के दो बैचों के लिए प्रशिक्षण राज्य में प्रशिक्षकों का पूल तैयार करने के उद्देश्य से प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (टीओटी) अगस्त और सितंबर, 2018 में आयोजित किया गया था और इसमें विभिन्न विभागों के 24 अधिकारियों को शामिल किया गया है। मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षित किया गया।
एसडीजी एक नया विकास ढांचा है, लक्ष्य और लक्ष्य पर समझ जरूरी है। नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (एनएफआई) के सहयोग से हिमाचल प्रदेश सरकार एसडीजी पर कई प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए हैं। उपरोक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों में विभिन्न विभागों के कई मध्य स्तर के अधिकारियों को एसडीजी पर उन्मुख किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों को उनके विज़न दस्तावेज़ को विकसित करने के लिए नोडल विभागों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए तैनात किया गया था। राज्य शीर्ष प्रशिक्षण संस्थान (HIPA) ने सत्रों को शामिल किया है अपने प्रशिक्षण कैलेंडर में एसडीजी का संवेदीकरण। अब तक दस से अधिक सत्र/बैच आयोजित किये जा चुके हैं। राज्य के अन्य प्रशिक्षण संस्थानों को भी एक सत्र शामिल करने का निर्देश दिया गया है एसडीजी अपने चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में। राज्य में पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षु उपलब्ध कराने के उद्देश्य से तब से ऐसे और भी पाठ्यक्रम आयोजित किए गए हैं।
एसडीजी पर जागरूकता आवश्यक है, क्योंकि एसडीजी को प्राप्त करने में नागरिकों सहित सभी हितधारकों की भागीदारी अनिवार्य है। सरकार ने एसडीजी के प्रचार-प्रसार के लिए कई पहल की हैं। एसडीजी पर हिमाचल प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री का वीडियो संदेश दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया। एसडीजी पर हिमाचल प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री का बार-बार संदेश समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ और लोक मीडिया समूहों के 26 कलाकारों को एसडीजी पर उन्मुख किया गया। जुलाई, 2017 में राज्य के प्रत्येक विकास खंड में एसडीजी हासिल करने के महत्व और आवश्यकता को बताते हुए दो लोक प्रदर्शन आयोजित किए गए। निम्नलिखित आईईसी सामग्री प्रकाशित की गई है;
i) एसडीजी पर सचित्र पुस्तिका (हिंदी) जिसमें प्रत्येक एसडीजी के साथ मैप की गई योजनाएं शामिल हैं।
ii) रंगीन पैम्फलेट (हिंदी) जिसमें सभी एसडीजी को संक्षेप में दर्शाया गया है,
iii) 16 लक्ष्यों पर बहुरंगा पोस्टर (हिन्दी) डिजाइन तैयार है, छपाई चल रही है,
iv) एसडीजी पर सचित्र पुस्तिका (अंग्रेजी) जिसमें प्रत्येक एसडीजी के साथ मैप की गई योजनाएं शामिल हैं, विकसित की जा रही है।
v) दृष्टि हिमाचल प्रदेश-2030 (स्टेट विजन डॉक्यूमेंट) का हिंदी अनुवाद किया जा रहा है।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI), भारत सरकार ने स्थायी लक्ष्यों और लक्ष्यों की प्रगति का आकलन करने के लिए निगरानी के लिए 300+ संकेतक विकसित किए हैं। हालाँकि, राज्य की बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए, कई संकेतक राज्य के लिए प्रासंगिक नहीं हो सकते हैं। इसके अलावा, आवश्यक डेटा की उपलब्धता के अभाव में, राज्य के लिए इन कई संकेतकों की निगरानी करना संभव नहीं हो सकता है। इसलिए, राज्य सरकार ने नोडल विभागों के परामर्श से 138 संकेतकों पर विचार किया है। MoSPI द्वारा विकसित 300 से अधिक संकेतकों और SDG सूचकांक के लिए NITI द्वारा विचार किए गए 100 संकेतकों को ध्यान में रखते हुए इन संकेतकों में संशोधन पर विचार किया जा रहा है। राज्य सरकार है डैशबोर्ड के विकास के लिए तकनीकी सहायता के लिए एक भागीदार की तलाश है जिसे समवर्ती और आवधिक निगरानी के लिए राज्य सरकार की आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा। लक्ष्यों/संकेतकों का. उपलब्धि का वर्तमान स्तर, एसडीजी हासिल करने के प्रयास और कुछ संकेतकों के संबंध में एसडीजी हासिल करने की समयसीमा।
i) 1993-94 और 2011 के बीच, हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण गरीबी 36.8 प्रतिशत से घटकर 8.5 प्रतिशत हो गई, जो चार गुना गिरावट है, जबकि 2004 से 2011 के दौरान शहरी गरीबी में मामूली बदलाव दर्ज किया गया।
ii) प्रारंभिक भूमि सुधारों के सकारात्मक परिणाम मिले हैं; राज्य के लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास कुछ न कुछ जमीन है, जो देश के कई राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है।
iii) शिक्षा के क्षेत्र में, कई महत्वपूर्ण संकेतक बताते हैं कि राज्य का प्रदर्शन प्रभावशाली रहा है। प्राथमिक के लिए सकल नामांकन अनुपात 98.80 प्रतिशत, उच्च प्राथमिक के लिए 103.09 प्रतिशत था। माध्यमिक के लिए 107.08 प्रतिशत, और एचआर के लिए 95.53 प्रतिशत। माध्यमिक, जो राष्ट्रीय औसत से काफी बेहतर है। इसी प्रकार, प्राथमिक के लिए प्रतिधारण दर 93.09 प्रतिशत और 90.78 प्रतिशत थी माध्यमिक शिक्षा के लिए, जो काफी प्रभावशाली है (स्रोत: फ्लैश सांख्यिकी 2015-16)।
iv) 2011-12 में, हिमाचल प्रदेश में लगभग 63 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं ने खुद को नियोजित बताया। यह हिमाचल प्रदेश को महिला श्रम शक्ति भागीदारी में सिक्किम के बाद दूसरे स्थान पर रखता है और अखिल भारतीय औसत 27 प्रतिशत से काफी ऊपर है।
v) 83 प्रतिशत से अधिक लोग सरकारी क्षेत्र से स्वास्थ्य सेवाएं मांग रहे हैं।
vi) एनएफएचएस-4 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 5 साल से कम उम्र में मृत्यु दर 38 और शिशु मृत्यु दर 34 है, जो राष्ट्रीय औसत की तुलना में बहुत कम है। राज्य इन्हें और कम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
vii) 2011 की जनगणना के अनुसार, हिमाचल प्रदेश का लिंग अनुपात 972 है, (प्रति 1000 पुरुष) जो पड़ोसी राज्यों से बेहतर है।
viii) एनएफएचएस-4 डेटा 201516 के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 94.9 प्रतिशत घरों में पीने के पानी के बेहतर स्रोत तक पहुंच है जो तुलनात्मक रूप से राष्ट्रीय औसत 89.9 प्रतिशत से बेहतर है।
ix) 2016 में, राज्य को देश में पहला खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया था। राज्य में सभी घरों को बेहतर स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध हैं राष्ट्रीय औसत 48.4 प्रतिशत (एनएफएचएस-4) है।
x) 9 महीने तक टीकाकरण 99.5 प्रतिशत है और कुल प्रजनन दर 1.9 (एनएफएचएस-4) (प्रतिस्थापन स्तर से नीचे) है।
xi) ऊर्जा कुशल स्ट्रीट लाइटें 100 प्रतिशत हैं और ऊर्जा कुशल घरेलू बल्ब 85 प्रतिशत हैं।
xii) शौचालय सुविधा तक पहुंच वाले और घरेलू विद्युतीकरण वाले घरों का प्रतिशत 100 प्रतिशत है।
xiii) राज्य में मानव तस्करी से संबंधित कुल संज्ञेय अपराध की दर 0.1 प्रतिशत है और प्रत्येक जिले में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) की स्थापना 33 प्रतिशत है। की संख्या प्रति लाख जनसंख्या पर पुलिस कार्मिक 278 हैं, जो राष्ट्रीय औसत 180.59 से अधिक है।
xiv) प्रति 100 जनसंख्या पर टेलीफोन 150.44 है और नागरिक पंजीकरण 100 प्रतिशत है।
xv) स्वास्थ्य बीमा द्वारा कवर किए गए किसी भी सामान्य सदस्य वाले परिवारों का प्रतिशत 76 प्रतिशत है और बैंक खाते वाली आबादी का अनुपात 89.2 प्रतिशत है।
xvi) मातृत्व लाभ के तहत सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने वाली आबादी का अनुपात (पात्र आबादी में से) और पहुंच के साथ आबादी (सीमांत और कमजोर) का अनुपात रियायती कीमतों पर खाद्यान्न 100 प्रतिशत है।
i) 16 लक्ष्यों की मैपिंग की गई और तदनुसार, 11 कार्य समूहों का गठन किया गया, जिसमें एक नोडल विभाग और अन्य प्रमुख हितधारक विभाग इसके सदस्य थे। एसडीजी पर 15 साल के विज़न, 7 साल की रणनीति और 3 साल की कार्य योजना के साथ संरेखित दृष्टिकोण का दस्तावेज़ीकरण।
ii) राज्य ने संकल्प लिया है कि प्रत्येक सतत विकास लक्ष्य की निगरानी संकेतकों के दो सेटों के आधार पर की जाएगी। संकेतकों के पहले सेट का उपयोग प्रगति की निगरानी के लिए किया जाएगा राज्य सरकार के उपयोग के लिए एसडीजी पर और संकेतकों का दूसरा सेट MoSPI/NITI द्वारा सुझाए गए संकेतकों पर आधारित होगा।
हिमाचल प्रदेश सरकार 2022 तक निम्नलिखित एसडीजी हासिल करना चाहती है, जो इस प्रकार हैं। बाकी लक्ष्य 2030 तक हासिल कर लिया जाएगा:-
i) गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का प्रतिशत मौजूदा 8.1 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत करना।
ii) शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को 35 से घटाकर 20 करना।
iii) 2020 तक 100 प्रतिशत आबादी को स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कवर किया जाएगा और इसे कायम रखा जाएगा।
iv) प्राथमिक और मध्य स्तर के स्कूलों में ड्रॉप-आउट दर को शून्य तक कम करना।
v) 0-6 वर्ष की श्रेणी में प्रति 1,000 लड़कों पर लड़कियों का अनुपात 909 से बढ़ाकर 940 करना।

5.संस्थागत एवम् बैंक वित्त

राज्य में लीड बैंक की जिम्मेदारी तीन बैंकों के बीच आवंटित की गई है। 6 जिलों, अर्थात् हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, मंडी और ऊना में पीएनबी; ���यूको बैंक में 4 बिलासपुर, शिमला, सोलन और सिरमौर जिलों में और भारतीय स्टेट बैंक 2 जिलों अर्थात् चंबा और लाहौल-स्पीति में। यूनाइटेड कमर्शियल बैंक (यूसीओ) राज्य का संयोजक बैंक है लेवल बैंकर्स कमेटी (एसएलबीसी)। राज्य में 2,191 बैंक शाखाओं का नेटवर्क है और 77 प्रतिशत से अधिक शाखाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। बैंकों ने अक्टूबर के दौरान 52 नई बैंक शाखाएं खोली हैं 2018 से सितंबर 2019। वर्तमान में 1,699 शाखाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में, 387 अर्ध-शहरी क्षेत्रों में और 105 शिमला में कार्य कर रही हैं, जो राज्य का एकमात्र शहरी केंद्र है जिसे वर्गीकृत किया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक।
2011 की जनगणना के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर 11,000 के मुकाबले राज्य में प्रति शाखा औसत जनसंख्या 3,156 है। राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) की सितंबर तक 1,168 शाखाएँ हैं। 2019 में राज्य में बैंकिंग क्षेत्र के कुल शाखा नेटवर्क का 53 प्रतिशत से अधिक हिस्सा था। पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के पास 338 शाखाओं का सबसे बड़ा नेटवर्क है, इसके बाद भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का स्थान है। 324 शाखाएँ; यूको की 173 शाखाएँ हैं। निजी क्षेत्र के बैंकों की 175 शाखाएँ हैं जिनमें सबसे अधिक 67 शाखाओं के साथ एचडीएफसी की उपस्थिति है, इसके बाद निजी क्षेत्र के बैंकों में 32 शाखाओं के साथ आईसीआईसीआई का स्थान है।
पीएनबी द्वारा प्रायोजित एक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) है, जिसका नाम हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक (एचपीजीबी) है, जिसकी कुल शाखा नेटवर्क 265 है। सितंबर 2019. सहकारी क्षेत्र के बैंकों की संख्या 545 है शाखाएँ और राज्य शीर्ष सहकारी बैंक यानी हिमाचल प्रदेश सहकारी बैंक (HPSCB) की 217 शाखाएँ हैं और कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक (KCCB) की 217 शाखाएँ हैं। जिलेवार के संदर्भ में बैंक शाखाओं के प्रसार में, कांगड़ा जिले में सबसे अधिक 419 बैंक शाखाएँ हैं और लाहौल-स्पीति में सबसे कम 23 शाखाएँ हैं। स्थापना से बैंक सेवाओं की पहुंच और बढ़ गई है विभिन्न बैंकों द्वारा 2,053 एटीएम। बैंकों ने अक्टूबर, 2018 से सितंबर, 2019 के बीच राज्य में 89 नये एटीएम लगाये.
बैंकों ने दूर-दराज के क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए उप-सेवा क्षेत्रों में बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट एजेंटों (जिन्हें "बैंक मित्र" के रूप में जाना जाता है) को तैनात किया है। जहां ईंट और गारे की शाखाएं नहीं हैं आर्थिक रूप से व्यवहार्य। वर्तमान में गांवों में बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा राज्य में कुल 4,081 बैंक मित्र तैनात हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का अपना क्षेत्रीय क्षेत्रीय निदेशक की अध्यक्षता वाला कार्यालय और शिमला में नाबार्ड का क्षेत्रीय कार्यालय मुख्य महाप्रबंधक की अध्यक्षता में है।
हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड राज्य का एक शीर्ष बैंक है, जो केसीसीबी और जोगिंद्रा सेंट्रल के साथ त्रिस्तरीय अल्पकालिक ऋण संरचना में है। सहकारी बैंक (जेसीसीबी) छह जिलों में केंद्रीय बैंक के रूप में। राज्य सहकारी बैंक इसकी सभी शाखाएँ कोर बैंकिंग सिस्टम (CBS) मोड पर हैं। बैंक के पास 218 शाखाओं और 23 एक्सटेंशन काउंटरों (पूर्ण सीबीएस) के साथ-साथ 100 (मोबाइल वैन एटीएम सहित) स्वयं के एटीएम का नेटवर्क है। लगभग 1,654 सोसायटी बैंक से संबद्ध हैं और बैंक अपने लाभ से लाभांश दे रहा है। बैंक ने एससी/एसटी निगम, डब्ल्यूडीसी और खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के साथ समझौता किया है (केवीआईबी) और लाभार्थियों को स्वरोजगार पैदा करने के लिए ऋण सुविधाएं भी दे रहा है।
राज्य के सामाजिक आर्थिक विकास के पहिये को गति देने में एक भागीदार के रूप में बैंकों की भूमिका और जिम्मेदारी अच्छी तरह से पहचानी जाती है। सभी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ऋण का प्रवाह बढ़ाया गया है. सितंबर, 2019 तक राज्य के बैंकों ने प्राथमिकता क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, कमजोर वर्ग को ऋण देने और महिलाओं को ऋण देने जैसे चार राष्ट्रीय मानदंड हासिल किए थे। आरबीआई द्वारा निर्धारित छह राष्ट्रीय मापदंडों में से। वर्तमान में, बैंकों ने अपने कुल ऋण का 58.37 प्रतिशत प्राथमिकता क्षेत्र की गतिविधियों के लिए बढ़ाया है। कृषि, एमएसएमई, शिक्षा ऋण, आवास ऋण, सूक्ष्म ऋण आदि।
सितंबर, 2019 तक बैंकों द्वारा दिए गए कुल ऋण में कृषि ऋण का अनुपात 18.85 प्रतिशत है, जबकि आरबीआई द्वारा निर्धारित 18 प्रतिशत का राष्ट्रीय पैरामीटर है। . इसके अतिरिक्त बैंकों द्वारा कुल ऋण में कमजोर वर्गों और महिलाओं को दिए गए अग्रिम का अनुपात 24.37 प्रतिशत और 7.03 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय मानदंड 10 प्रतिशत और 5 प्रतिशत है। क्रमश। सितंबर, 2019 तक राज्य में बैंकों का ऋण जमा अनुपात (सीडीआर) 44.33 प्रतिशत था। राष्ट्रीय मापदंडों की स्थिति नीचे तालिका-5.1 में दी गई है।
वित्तीय समावेशन हमारे समाज के बहिष्कृत वर्गों और निम्न आय समूहों को किफायती लागत पर वित्तीय सेवाओं और उत्पादों की डिलीवरी को दर्शाता है। भारत सरकार ने लॉन्च किया था हमारे समाज के बहिष्कृत वर्ग को औपचारिक बैंकिंग में लाने के लिए हिमाचल प्रदेश सहित पूरे देश में एक व्यापक वित्तीय समावेशन अभियान- "प्रधानमंत्री जन-धन योजना" (पीएमजेडीवाई) प्रणाली। इस विशेष अभियान को चार वर्ष से अधिक हो गये हैं।
प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई): राज्य में बैंकों ने सभी परिवारों को प्रत्येक परिवार के कम से कम एक मूल बचत जमा खाते से कवर किया है। बैंकों के पास कुल 12.89 लाख बेसिक सेविंग बैंक डिपॉजिट अकाउंट हैं (बीएसबीडीए) सितंबर, 2019 तक योजना के तहत। कुल 12.28 लाख पीएमजेडीवाई खातों में से, बैंकों ने ग्रामीण क्षेत्रों में 10.13 लाख खाते और शहरी क्षेत्रों में 2.76 लाख खाते खोले हैं। राज्य में, बैंकों ने 10.59 लाख पीएमजेडीवाई खाताधारकों को रुपे डेबिट कार्ड जारी किए हैं और इस प्रकार 82 प्रतिशत से अधिक पीएमजेडीवाई खाते कवर किए गए हैं। बैंकों ने बैंक से लिंक करने की पहल की है आधार और मोबाइल नंबर के साथ खाता और सितंबर, 2019 तक 95 प्रतिशत पीएमजेडीवाई खाते जुड़े हुए हैं।
पीएमजेडीवाई योजना के तहत सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा पहल: योजना के कार्यान्वयन के दूसरे चरण में, भारत सरकार ने मुख्य रूप से गरीबों पर लक्षित एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा पहल के रूप में तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाएं शुरू की हैं। और वंचित. सामाजिक सुरक्षा योजना की वर्तमान स्थिति इस प्रकार है:-
मैं. सूक्ष्म बीमा योजनाएँ:
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना- (PMSBY): यह योजना `2.00 लाख (आंशिक के लिए `1.00 लाख) का एक वर्ष का नवीकरणीय दुर्घटना मृत्यु सह विशेष योग्यता कवर प्रदान कर रही है 18 से 70 वर्ष की आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को प्रति ग्राहक `12.00 प्रति वर्ष के प्रीमियम पर स्थायी विशेष योग्यता) और हर साल 1 जून से नवीकरणीय। बैंकों ने 12.05 सितंबर, 2019 तक पीएमएसबीवाई के तहत लाख ग्राहक। बीमा कंपनियों ने 5 नवंबर, 2019 तक योजना के तहत लगभग 579 बीमा दावों का निपटान किया है।
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना- (PMJJBY): यह योजना 18 से 50 वर्ष की आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को `2.00 लाख का नवीकरणीय एक वर्ष का जीवन कवर प्रदान कर रही है, जिसमें प्रीमियम के किसी भी कारण से मृत्यु शामिल है। `330.00 प्रति वर्ष प्रति ग्राहक और हर साल 1 जून से नवीकरणीय। सितंबर, 2019 तक प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) के तहत बैंकों के पास 3.41 लाख ग्राहक हैं। बीमा कंपनियाँ 5 नवंबर 2019 तक योजना के तहत लगभग 1074 बीमा दावों का निपटान किया गया है।
द्वितीय. माइक्रो पेंशन योजना:
अटल पेंशन योजना (APY):
1) अटल पेंशन योजना असंगठित क्षेत्र पर केंद्रित है और यह ग्राहकों को `1,000, `2,000, `3,000, `4,000 या `5,000 प्रति माह की निश्चित न्यूनतम पेंशन प्रदान करती है। 60 वर्ष की आयु में, 18 से 40 वर्ष की आयु में प्रवेश करने पर अपनाए गए योगदान विकल्प पर निर्भर करता है। नियमित योगदान करने पर सरकार द्वारा एक निश्चित न्यूनतम पेंशन की गारंटी दी जाएगी 20 साल के लिए बनाया गया है. जबकि यह योजना निर्धारित आयु वर्ग के बैंक खाताधारकों के लिए खुली है, केंद्र सरकार भी कुल योगदान का 50 प्रतिशत या `1,000 प्रति वर्ष सह-योगदान करेगी। 5 वर्ष की अवधि के लिए जो भी कम हो।
2) एपीवाई में राज्य सरकार ने भी योगदान दिया है। एपीवाई के ग्राहकों के प्रति राज्य सरकार की ओर से सह-योगदान कुल योगदान के 50 प्रतिशत के अधीन पात्र खातों में किया जाता है। ग्राहक या `2,000 जो भी कम हो। राज्य सरकार एपीवाई को अपनाने के लिए मनरेगा श्रमिकों, मध्याह्न भोजन श्रमिकों, कृषि और बागवानी श्रमिकों और आंगनवाड़ी श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। बैंकों के पास है शिविरों, प्रेस मीडिया प्रचार आदि के माध्यम से योजना के तहत आक्रामक जागरूकता अभियान पर ध्यान केंद्रित किया गया। एपीवाई में, बैंकों ने सितंबर, 2019 तक योजना के तहत 1,63,885 ग्राहकों को नामांकित किया है। विभाग ऑफ पोस्ट भी एपीवाई योजना में भाग ले रहा है और सितंबर, 2019 तक कुल 2,055 ग्राहक जुटाए हैं।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY):
1) हिमाचल प्रदेश सहित देश भर में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) शुरू की गई। यह वित्त का समर्थन करके सभी सूक्ष्म-उद्यम क्षेत्र के विकास और पुनर्वित्त के लिए जिम्मेदार है वे संस्थाएँ जो विनिर्माण, व्यापार और सेवा गतिविधियों में लगी सूक्ष्म/लघु व्यवसाय संस्थाओं को ऋण देने के व्यवसाय में हैं। 08.04.2015 को या उसके बाद दिए गए सभी अग्रिम इसके अंतर्गत आते हैं योजना के तहत श्रेणी को मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
2) हिमाचल प्रदेश में बैंकों ने चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 में समाप्त अवधि तक योजना के तहत 17,562 नए सूक्ष्म उद्यमियों को `425.19 करोड़ के नए ऋण स्वीकृत किए हैं। सितंबर, 2019। बैंकों के पास सितंबर, 2019 तक 1,45,838 उद्यमियों को कवर करते हुए पीएमएमवाई के तहत `2,541.43 करोड़ के ऋण वितरित किए गए हैं।
स्टैंड-अप इंडिया योजना (SUIS):
1) स्टैंड अप इंडिया योजना पूरे देश में औपचारिक रूप से शुरू की गई है। स्टैंड अप इंडिया योजना का उद्देश्य असेवित और अल्पसेवित वर्गों के बीच उद्यमशीलता संस्कृति को प्रोत्साहित करना है समाज का प्रतिनिधित्व एससी, एसटी और महिलाओं द्वारा किया जाता है।
2) यह योजना कम से कम एक अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) उधारकर्ता और कम से कम एक महिला उधारकर्ता को बैंकों से `10.00 लाख और `1.00 करोड़ के बीच ऋण की सुविधा प्रदान करती है। एक नए उद्यम की स्थापना के लिए प्रति बैंक शाखा निर्माण, व्यवसाय, सेवा क्षेत्र का क्षेत्र। (इसे ग्रीन फील्ड उद्यम भी कहा जाता है)। बैंकों ने एससी/एसटी और महिला उद्यमियों द्वारा स्थापित 983 नए उद्यमों के लिए `188.05 करोड़ मंजूर किए हैं योजना के तहत सितम्बर, 2019 तक।
वित्तीय जागरूकता और साक्षरता अभियान:
1) वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अभियान लक्ष्य समूहों तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बैंक वित्तीय साक्षरता केंद्रों (एफएलसी) के माध्यम से वित्तीय साक्षरता अभियान चला रहे हैं हिमाचल प्रदेश में अपनी बैंक शाखाओं के माध्यम से।
बैंकों का व्यवसाय आयतन:
1) राज्य में कार्यरत सभी बैंकों की कुल जमा सितंबर, 2018 को 1,11,458 करोड़ से बढ़कर सितंबर, 2019 तक 1,23,113 करोड़ हो गई। बैंकों की जमा राशि में वृद्धि हुई है साल दर साल 10.46 प्रतिशत की वृद्धि। कुल अग्रिम भी सितंबर, 2018 के `46,691 करोड़ से बढ़कर सितंबर, 2019 तक `52,209 करोड़ हो गया है, जिससे साल दर साल वृद्धि हो रही है। 11.82 प्रतिशत का. कुल बैंकिंग व्यवसाय बढ़कर `1,75,321 करोड़ हो गया है और साल दर साल 10.86 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई है।
2) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) की सबसे बड़ी बाजार हिस्सेदारी 67 प्रतिशत है, आरआरबी की बाजार हिस्सेदारी 4 प्रतिशत है, निजी बैंकों की बाजार हिस्सेदारी 9 प्रतिशत है और सहकारी क्षेत्र बैंक की बाजार हिस्सेदारी 20 है प्रतिशत. तुलनात्मक डेटा तालिका-5.2 में निम्नानुसार है।

वार्षिक ऋण योजना 2019-20 के अंतर्गत प्रदर्शन:
1) बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए संभावनाओं के आधार पर नए ऋण वितरण के लिए वार्षिक ऋण योजना तैयार की है। नाबार्ड द्वारा विभिन्न प्राथमिकता क्षेत्र की गतिविधियाँ। वार्षिक ऋण योजना 2019-20 के तहत वित्तीय लक्ष्य पिछली योजना परिव्यय की तुलना में 6.95 प्रतिशत बढ़ा दिए गए हैं और `25,308 करोड़ तय किया गया। बैंकों ने सितंबर, 2019 तक `16,142 करोड़ के नए ऋण वितरित किए हैं और वार्षिक प्रतिबद्धता का 63.78 प्रतिशत हासिल किया है। सेक्टर-वार लक्ष्य अर्थात 30.09.2019 तक की उपलब्धि तालिका 5.3 में दी गई है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम): ग्रामीण विकास मंत्रालय ने गरीबों, विशेषकर महिलाओं और महिलाओं के लिए मजबूत संस्थानों के निर्माण के माध्यम से गरीबी उन्मूलन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम शुरू किया। इन संस्थानों को वित्तीय सेवाओं और आजीविका सेवाओं की एक श्रृंखला तक पहुंचने में सक्षम बनाना। यह योजना एचपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एचपीएसआरएलएम), ग्रामीण विकास के माध्यम से राज्य में लागू की गई है विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार। राज्य में योजना के तहत 8,620 लाभार्थियों को कवर करते हुए बैंकों को `64.88 करोड़ का वार्षिक लक्ष्य आवंटित किया गया है। बैंकों ने 2,435 को मंजूरी दी है एनआरएलएम योजना के तहत 29 नवंबर, 2019 तक `27.87 करोड़ का ऋण।
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM): भारत सरकार, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय (एमओएचयूपीए) ने मौजूदा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (एसजेएसआरवाई) का पुनर्गठन किया और राष्ट्रीय शहरी योजना शुरू की। आजीविका मिशन (एनयूएलएम)। स्व-रोजगार कार्यक्रम (एसईपी) एनयूएलएम के घटकों (घटक 4) में से एक है जो ब्याज के प्रावधान के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। शहरी गरीबों के व्यक्तिगत और समूह उद्यमों और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की स्थापना का समर्थन करने के लिए ऋण पर सब्सिडी। शहरी विकास विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश में एनयूएलएम लागू किया गया है हिमाचल प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए DAY NULM के स्व-रोज़गार कार्यक्रम (SEP) घटक के तहत `10.00 करोड़ का ऋण वितरण लक्ष्य सौंपा गया है। का ऋण बैंकों ने वितरित किया है अक्टूबर, 2019 तक एनयूएलएम के तहत ₹ 2.03 करोड़।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा प्रशासित एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) योजना के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी है। राज्य स्तर पर योजना केवीआईसी, केवीआईबी और जिले के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है उद्योग केंद्र. वित्तीय वर्ष 201920 में इस योजना के तहत 1,181 नई इकाइयों को वित्त पोषित करने का लक्ष्य बैंकों को आवंटित किया गया था। कार्यान्वयन एजेंसियों को मार्जिन मनी उपलब्ध कराने का लक्ष्य दिया गया है योजना के तहत `35.43 करोड़ का संवितरण। बैंकों ने सितंबर, 2019 तक 719 इकाइयों के उद्यमियों को मार्जिन मनी के रूप में `37.72 करोड़ स्वीकृत किए हैं।
डेयरी उद्यमिता विकास योजना (DEDS): भारत सरकार का कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय डेयरी क्षेत्र की गतिविधियों के लिए नाबार्ड के माध्यम से डेयरी उद्यमिता विकास योजना (डीईडीएस) लागू कर रहा है। पूंजी सब्सिडी इस योजना का संचालन नाबार्ड के माध्यम से किया जाता है। बैंकों ने DEDS के तहत सितंबर, 2019 तक `4.27 करोड़ की राशि वाले 211 प्रस्तावों को मंजूरी दी है।
किसान क्रेडिट कार्ड: किसानों को एकल खिड़की के तहत बैंकिंग प्रणाली से पर्याप्त और समय पर ऋण सहायता प्रदान करने के लिए बैंक अपनी ग्रामीण शाखाओं के माध्यम से किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) लागू कर रहे हैं। फसलों की खेती और अन्य जरूरतों के लिए अल्पकालिक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करना। बैंकों ने सितंबर, 2019 तक 73,854 किसानों को `1,584 करोड़ की राशि के नए केसीसी वितरित किए हैं। सितंबर 2019 तक केसीसी योजना के तहत कुल 4,25,588 किसानों को `6,902 करोड़ की राशि वित्तपोषित की गई।
ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरएसईटीआई): ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरएसईटीआई) ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) की एक पहल है, जिसमें प्रशिक्षण और कौशल प्रदान करने के लिए जिला स्तर पर समर्पित बुनियादी ढांचा है। उद्यमिता विकास की दिशा में ग्रामीण युवाओं का उन्नयन। अग्रणी बैंकों यानी यूको बैंक, पीएनबी और एसबीआई ने 10 जिलों में ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरएसईटीआई) स्थापित किए हैं। राज्य (किन्नौर और लाहौल और स्पीति जिलों को छोड़कर)। ये आरएसईटीआई गरीबी उन्मूलन के लिए और पीएमईजीपी योजनाओं के तहत उद्यमियों के लिए विभिन्न सरकारी प्रायोजित कार्यक्रमों के तहत ईडीपी आयोजित कर रहे हैं।
आधार को बैंक खाते से जोड़ने और सभी मौजूदा बैंक खातों में आधार के सत्यापन के लिए विशेष अभियान: हिमाचल प्रदेश में, आधार नामांकन और अपडेशन सुविधा प्रदान करने के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा 106 आधार नामांकन और अपडेशन केंद्रों की पहचान की गई है।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने हाल ही में एकीकृत ग्रामीण विकास के लिए विकास प्रक्रिया के साथ अपने सहयोग को काफी हद तक मजबूत किया है। गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करने वाली पहलों द्वारा वर्षों। ग्रामीण बुनियादी ढांचे, सूक्ष्म ऋण, ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र, लघु सिंचाई और अन्य कृषि क्षेत्रों का विकास, इसके अलावा राज्य में ग्रामीण ऋण वितरण प्रणाली को मजबूत करना। अपनी योजनाओं के अलावा, नाबार्ड सरकार की केंद्र प्रायोजित क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजनाएं भी लागू कर रहा है भारत की, जैसे डेयरी उद्यमिता विकास योजनाएँ (DEDS), राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM), कृषि क्लिनिक और कृषि व्यवसाय केंद्र, कृषि विपणन अवसंरचना (AMI) योजना आदि।
ग्रामीण बुनियादी ढांचा:
1) भारत सरकार ने वर्ष 1995-96 में नाबार्ड के अंतर्गत ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष (आरआईडीएफ) बनाया था। इस योजना के तहत नाबार्ड द्वारा राज्य सरकार को रियायती ऋण दिया जाता है और चल रही परियोजनाओं को पूरा करने के साथ-साथ कुछ चयनित क्षेत्रों में नई परियोजनाएं शुरू करने के लिए राज्य के स्वामित्व वाले निगम।
2) 1995-96 में अपनी स्थापना के बाद से आरआईडीएफ के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास, राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में नाबार्ड के प्रमुख हस्तक्षेप के रूप में उभरा है। आरआईडीएफ ने शुरू में मुख्य रूप से सिंचाई क्षेत्र के तहत अधूरी परियोजनाओं के निष्पादन पर ध्यान केंद्रित किया था, हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में वित्त पोषण 37 योग्य गतिविधियों को कवर करते हुए व्यापक हो गया है। कृषि और संबंधित क्षेत्रों, सामाजिक क्षेत्र और ग्रामीण कनेक्टिविटी में। 5.33 वर्ष 1995-96 से आरआईडीएफ-I के तहत `15.00 करोड़ के प्रारंभिक आवंटन से, राज्य को आवंटन आरआईडीएफ-XXV (2019-20) के तहत अब यह `700.00 करोड़ के स्तर पर पहुंच गया है। आरआईडीएफ ने सिंचाई, सड़क और पुल, बाढ़ सुरक्षा जैसे विविध क्षेत्रों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्राथमिक शिक्षा, पशु चिकित्सा सेवाएं, वाटरशेड विकास, आईटी बुनियादी ढांचे आदि के अलावा पेयजल आपूर्ति। हाल के वर्षों में, पॉली-हाउस के विकास के लिए अभिनव परियोजना और सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों का समर्थन किया गया है।
3) ग्रामीण सड़कों/पुलों सहित राज्य को 31.12,2019 तक 7,902 परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आरआईडीएफ के तहत `7,880.17 करोड़ की वित्तीय सहायता स्वीकृत की गई है। सिंचाई, ग्रामीण पेयजल, और शिक्षा, पशुपालन आदि।
पुनर्वित्त सहायता:
1) नाबार्ड ने राज्य में कार्यरत बैंकों को 2018-19 के दौरान `1,247.02 करोड़ की कुल वित्तीय सहायता और 2019-20 के दौरान 31.12.2019 तक कुल `1,235.83 करोड़ की वित्तीय सहायता प्रदान की।
2) नाबार्ड ने विविध गतिविधियों के लिए दीर्घकालिक पुनर्वित्त प्रदान किया। ग्रामीण आवास, लघु सड़क परिवहन संचालक, भूमि विकास, लघु सिंचाई, डेयरी विकास, स्वयं सहायता समूह, 31.12.2019 तक 2019-20 के दौरान फार्म मशीनीकरण, मुर्गीपालन, वृक्षारोपण और बागवानी, भेड़/बकरी/सूअर पालन, पैकिंग और ग्रेडिंग हाउस गतिविधि और अन्य क्षेत्रों में ₹ 385.83 करोड़ की आय हुई।
3) नाबार्ड ने राज्य में फसल ऋण वितरण के लिए सहकारी बैंकों और आरआरबी के प्रयासों को `820.00 करोड़ की अल्पावधि (एसटी) क्रेडिट सीमा को मंजूरी देकर पूरक बनाया, जिसके विरुद्ध बैंकों ने 31 मार्च को ₹ 710.00 करोड़ की पुनर्वित्त सहायता प्राप्त की गई। 2019. 2019-20 के दौरान `880.00 करोड़ की एसटी क्रेडिट सीमा स्वीकृत की गई थी और इसके विरुद्ध 31.12.2019 तक कुल `850.00 करोड़ का वितरण किया गया है।
माइक्रो क्रेडिट:
1) स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) आंदोलन पूरे राज्य में फैल गया है और अब एक मजबूत आधार पर है। मानव संसाधन और वित्तीय उत्पादों में समर्थन के साथ आंदोलन को बढ़ाया गया है। हिमाचल प्रदेश में क्रेडिट से जुड़े एसएचजी की संचयी संख्या 54,793 थी, जिसमें 7.93 लाख ग्रामीण परिवार शामिल थे, जबकि राज्य में कुल 13.12 लाख ग्रामीण परिवारों को कुल ऋण वितरित किया गया था। 31 मार्च, 2019 तक ₹ 7,641 लाख। महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम नाबार्ड द्वारा स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से दो जिलों में कार्यान्वित किया जा रहा है। मंडी, सिरमौर `29.55 की अनुदान सहायता के साथ करोड़ और क्रमशः 1,500 और 1,455 महिला एसएचजी के गठन और क्रेडिट लिंकेज का लक्ष्य। 31.12.2019 तक, संचयी 2,926 महिला स्वयं सहायता समूह बचत से जुड़े हुए हैं और 2,782 महिलाएँ एसएचजी को क्रेडिट लिंक किया गया है।
2) केंद्रीय बजट 2014-15 में संयुक्त कृषि समूहों "भूमिहीन किसान" (भूमिहीन किसान) के वित्तपोषण की घोषणा ने नाबार्ड के नवाचार और पहुंच के प्रयासों को और अधिक बल दिया है। भूमिहीन किसानों को संयुक्त देयता समूह के वित्तपोषण के माध्यम से। 31.12.2019 तक, राज्य में बैंकों द्वारा 3,882 संयुक्त देयता समूह प्रदान किए गए हैं।
किसान उत्पादक संगठन को बढ़ावा देना: किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) प्राथमिक उत्पादकों द्वारा गठित एक कानूनी इकाई है, अर्थात। किसान/दूध उत्पादक, मछुआरे। एक एफपीओ एक उत्पादक कंपनी, एक सहकारी समिति हो सकती है या कोई अन्य कानूनी रूप जो सदस्यों के बीच लाभ/लाभ के बंटवारे का प्रावधान करता है। एफपीओ का मुख्य उद्देश्य अपने संगठन के माध्यम से उत्पादकों के लिए बेहतर आय सुनिश्चित करना है अपना। नाबार्ड ने पूरे देश में एफपीओ के प्रचार और पोषण के लिए अपना स्वयं का कोष बनाया है। हिमाचल प्रदेश में नाबार्ड ने के गठन/पदोन्नति के लिए `849.86 लाख का अनुदान स्वीकृत किया है शिमला, मंडी, किन्नौर, सिरमौर, चंबा, हमीरपुर, बिलासपुर, कुल्लू और सोलन जिलों में 87 एफपीओ। ये एफपीओ सब्जियों, औषधीय के उत्पादन, प्राथमिक प्रसंस्करण और विपणन का कार्य करेंगे और एकत्रीकरण के आधार पर सुगंधित पौधे और फूल।
जनजातीय विकास निधि (टीडीएफ) के माध्यम से जनजातीय विकास: नाबार्ड ने 31.12.2019 तक `1,226.98 लाख की राशि के साथ 7 आदिवासी विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसमें `1,170.68 लाख की अनुदान सहायता और `56.30 लाख की ऋण सहायता शामिल है। 2,325 परिवार। इन परियोजनाओं का लक्ष्य आम, किन्नू, नींबू के बागानों के लिए लगभग 1,546 एकड़ क्षेत्र को कवर करने वाले चयनित गांवों में वाडिस (छोटे बगीचे) के साथ-साथ डेयरी इकाइयों की स्थापना करना है। सेब, अखरोट, नाशपाती, जंगली खुबानी। ये परियोजनाएं आदिवासी लोगों को वाडी और डेयरी पहल के माध्यम से अपनी आय का स्तर बढ़ाने का अवसर प्रदान कर रही हैं।
फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड (FSPF) के माध्यम से सहायता: एफएसपीएफ के तहत, अब तक लगभग 13897 किसानों को लाभान्वित करते हुए `243.11 लाख की संचयी अनुदान सहायता स्वीकृत की गई है। वर्ष 2019-20 के दौरान (31.12.2019 तक) पांच परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं। ये परियोजनाएं बांस और बांस शिल्प की खेती, चिलगोजा पाइंस के संरक्षण, बेहतर पोषण प्रबंधन के लिए साइलेज बनाने की तकनीक को लोकप्रिय बनाने और आजीविका बढ़ाने से संबंधित हैं। क्षमता निर्माण और विभिन्न फसलों पर उन्नत प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन, हाइड्रोपोनिक्स सहित उच्च तकनीक कृषि को बढ़ावा देना।
फेडरेशन को वित्तीय सहायता: विपणन और अन्य कृषि गतिविधियों में विपणन संघों/सहकारिताओं को मजबूत करने के लिए एक अलग ऋण सुविधा प्रदान की गई है। विपणन संघ/सहकारी समितियां जिनके सदस्य/शेयरधारक पैक्स और अन्य उत्पादक संगठन हैं, इस योजना के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करने के पात्र हैं। आर्थिक सहायता मिलेगी न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना (एमएसपी) के तहत फसल खरीद के लिए अल्पावधि ऋण के रूप में उपलब्ध होना और किसानों को बीज, उर्वरक, कीटनाशक, पौध संरक्षण आदि की आपूर्ति करना। छंटाई और ग्रेडिंग, प्राथमिक प्रसंस्करण, विपणन आदि सहित फसल कटाई के बाद की देखभाल के लिए दीर्घकालिक ऋण का रूप। ऐसे संघों/सहकारी समितियों को कृषि सलाह प्रदान करने के लिए भी समर्थन दिया जाना चाहिए। ई-कृषि विपणन के माध्यम से सेवाएँ और बाज़ार की जानकारी।
नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (NABCONS): नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (NABCONS) राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा प्रवर्तित एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है और सभी क्षेत्रों में परामर्श प्रदान करने में लगी हुई है। कृषि, ग्रामीण विकास और संबद्ध क्षेत्रों की। NABCONS कृषि और ग्रामीण विकास, विशेष रूप से बहु-विषयक परियोजनाओं, के क्षेत्रों में नाबार्ड की मुख्य क्षमता का लाभ उठाता है। बैंकिंग, संस्थागत विकास, बुनियादी ढाँचा, प्रशिक्षण, आदि।
NABCONS ने निम्नलिखित प्रमुख कार्य पूरे कर लिए हैं:
1) किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों में सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रमों का तृतीय पक्ष निरीक्षण।
2) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत हस्तक्षेप का तृतीय पक्ष मूल्यांकन
3) हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड के लिए नियंत्रित वातावरण/नियंत्रित भंडारण भंडार और मंडी स्वचालन के लिए प्रबंधन परामर्श।
4) राज्य में 12 नियंत्रित वायुमंडल (सीए) स्टोर/कोल्ड स्टोर की स्थापना के लिए व्यवहार्यता अध्ययन।
5) एपीएमसी में मंडी प्रबंधन सूचना प्रणाली का डिजाइन, विकास, कार्यान्वयन और रखरखाव।
6) वाटरशेड परियोजना का प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन।
7) एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) का प्रभाव मूल्यांकन।
8) हिमाचल प्रदेश के पांच जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) का प्रभाव मूल्यांकन।

6.मूल्य संचलन और खाद्य प्रबन्धन

हिमाचल की अर्थव्यवस्था को उपभोग अर्थव्यवस्था माना जाता है। अधिकतर खपत मांग पर आधारित होती है और कीमतें मुख्य रूप से मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर आधारित होती हैं। जांच करने के लिए बड़े पैमाने पर उपभोग की आवश्यक वस्तुओं की बिक्री और वितरण में मूल्य व्यवहार, जमाखोरी, मुनाफाखोरी और अन्य कदाचार को रोकने के लिए राज्य सरकार विभिन्न आदेशों/अधिनियमों को सख्ती से लागू कर रही है। वर्ष के दौरान आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग द्वारा आवश्यक वस्तुओं की कीमतों की नियमित साप्ताहिक निगरानी की प्रणाली जारी रखी गई ताकि अनुचित मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए समय पर प्रभावी उपाय किए जा सकें।
महंगाई पर काबू पाना सरकार की प्राथमिकता सूची में है। मुद्रास्फीति आम आदमी को सबसे अधिक प्रभावित करती है क्योंकि उनकी आय कीमतों के अनुरूप नहीं होती है। मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों को विभिन्न सूचकांकों द्वारा मापा जाता है संपूर्ण बिक्री मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (संयुक्त), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (औद्योगिक श्रमिक), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (कृषि मजदूरों) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण मजदूरों) के रूप में। वैश्विक अर्थव्यवस्था में पिछले पांच दशकों से मुद्रास्फीति में भारी गिरावट देखी जा रही है (विश्व बैंक, 2019)। दुनिया भर के लगभग सभी देशों में महंगाई दर में गिरावट आई है। हिमाचल प्रदेश में 2014-15 से महंगाई में नरमी देखी जा रही है। हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संयुक्त (सीपीआई-सी) मुद्रास्फीति 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर, 2019) में 2.5 प्रतिशत थी 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर, 2018) में 1.3 प्रतिशत की तुलना में। सीपीआई-सी मुद्रास्फीति मुख्य रूप से सब्जियों की कीमतों में वृद्धि से प्रेरित थी। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति में 2015-16 के बीच वृद्धि देखी गई है और 201819 में, यह 201819 (अप्रैल से दिसंबर, 2018) में 4.7 प्रतिशत से गिरकर 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर, 2019) के दौरान 1.5 प्रतिशत हो गया (तालिका 6.1,6.2)। खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट का बड़ा योगदान रहा है 2017-18 और 2018-19 में मुद्रास्फीति में देखी गई भारी कमी का कारक। साथ ही, यह देखा गया है कि मुद्रास्फीति की गतिशीलता में बदलाव आया है। मुद्रास्फीति का औसत स्तर गिर गया है 2014-15 से काफी। न केवल मुद्रास्फीति का औसत स्तर नीचे आया है, बल्कि वित्तीय वर्ष के दौरान मुद्रास्फीति का चरम स्तर भी अब काफी कम है।

थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई):दिसंबर, 2018 के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर थोक मूल्य सूचकांक 119.7 था जो दिसंबर में बढ़कर 122.8(पी) हो गया। 2019 में महंगाई दर 2.6 फीसदी दिख रही है। वर्ष 2019-20 के लिए मुद्रास्फीति दर को दर्शाते हुए माहवार औसत थोक मूल्य सूचकांक संख्याएँ तालिका 6.2 में दी गई हैं। 2019-20 के दौरान, डब्ल्यूपीआई आधारित मुद्रास्फीति लगातार गिरावट पर है, जो जुलाई, 2019 में 1.2 प्रतिशत से घटकर नवंबर, 2019 में 0.6 प्रतिशत हो गई। दिसंबर, 2019 में यह बढ़कर 2.6 प्रतिशत हो गई। खाद्य सूचकांक जिसमें 2017-18 और 2018-19 के बीच वार्षिक आधार पर गिरावट आई, चालू वित्त वर्ष (अप्रैल-दिसंबर, 2019) के दौरान बढ़कर 6.7 प्रतिशत हो गई। (तालिका 6.2)
हिमाचल प्रदेश में कीमत की स्थिति लगातार निगरानी में रही। राज्य का खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग लगातार निगरानी रख रहा है मूल्य स्थिति पर और 4,957 उचित मूल्य की दुकानों के नेटवर्क के माध्यम से जनता को आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति की व्यवस्था बनाए रखी। ताकि भोजन पर निगरानी रखी जा सके असुरक्षा और असुरक्षा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता विभाग द्वारा जारी की जाती है।
अफेयर्स जी.आई.एस. के माध्यम से खाद्य असुरक्षा और भेद्यता मानचित्रण प्रणाली (FIVIMS) भी लागू कर रहा है। राज्य सरकार के विभिन्न उपायों के परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तुओं की कीमतें नियंत्रण में रहा.
हिमाचल प्रदेश का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक IW (बेस 2001=100) राष्ट्रीय स्तर की तुलना में कम दर से बढ़ा। सी.पी.आई. हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक श्रमिकों के लिए वृद्धि हुई नवंबर, 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर 8.61 प्रतिशत के मुकाबले केवल 5.64 प्रतिशत। (सारणी 6.3,6.4 ).
मुद्रास्फीति में तीव्र कमी के कई सहायक कारण हो सकते है जैसेः समायोजनशील मौद्रिक और राजकोषीय नीति की स्वीकार्यता, श्रम और उत्पाद बाजार में संरचनात्मक सुधार जो प्रतिस्पर्धा की मजबूती दे और लक्ष्यात्मक मुद्रास्फीति तंत्र का विकास इत्यादि, 24 उभरते और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने कम खाद्य मुद्रास्फीति के कारण 2014 से आधुनिक मुद्रास्फीति की साक्ष्य बनी है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौैरान खाद्य व पेय पद्यार्थों की मुद्रास्फीति का व्यवहार अलग रहा है खाद्य मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी सब्जियों, फलों, दालों के भाव के कारण रही है। मुद्रास्फीति में अस्थिरता का एक छुपा कारण कम और अधिक उत्पादन भी है सरकारी अत्याधिक कानूनी हस्तक्षेप के कारण भी बाजारू मुद्रास्फीति होती है। सभी राज्यों मंे मुद्रास्फीति घट रही है, 2012 से मुद्रास्फीति की गति में परिवर्तन हुआ है। हैडलाइन मुद्रास्फीति से मूल मुद्रास्फीति की तरफ के बदलाव के प्रत्यक्ष साक्ष्य मिले हैं। वर्तमान अवधि में, मुद्रास्फीति का प्रेषण गैर-मूल घटकों से घटकों की तरफ न्यून रहा है। मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क के लागू होने से 1990 में मुद्रास्फीति के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। (विश्व बैंक 2019) भारत में मुद्रास्फीति लक्ष्य 5 अगस्त, 2016 को पांच वर्षों के लिए परिलक्षित किए गए, जो 31 मार्च, 2021 तक रहेंगे।
आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता:आवश्यक वस्तुओं के भाव में अस्थिरता अप्रैल से दिसम्बर 2018 और अप्रैल से दिसम्बर 2019 के मध्य विश्लेषण के द्वारा की गई है। इसके लिए साधारण विश्लेषण प्रणाली को अपनाया गया। निदर्शन की यह प्रणाली मध्य से मदों की दूरी को दर्शाती है, इससे यह प्रतीत हुआ कि चावल, गेहं, चीनी, गुड़, सरसों का तेल और सीमेंट के भाव अप्रैल, 2018 से प्रर्याप्त आपूर्ति व अधिक घरेलू उत्पादन चावल व गेहूं के प्रर्याप्त वफर स्टाॅक जो खाद्य सुरक्षा की जरूरत को पूरा करने के लिए जरूरी था के कारण मुद्रास्फीति नहीं बढ़ी। यह भी देखा गया है कि सब्जियों के (सारणी 6.5) भाव में अस्थिरता अधिक व चावल, गेंहू, गुड़, सरसों का तेल, चीनी व सीमेंट में अस्थिरता कम रही। अप्रैल से दिसम्बर, 2018 और अप्रैल से दिसम्बर, 2019 के बीच में दालों, मिट्टी का तेल, प्याज और आलू की कीमतों में अधिक अस्थिरता देखी गई।
वित्त वर्ष 2019-20 में थोक मूल्य सूचकांक में कमी रही, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (संयुक्त) में थोड़ी वृद्धि रही जो मुख्यतः खाद्य कीमतों के कारण रही। खाद्य मुद्रास्फीति की कुल मुद्रास्फीति में चालू वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान मुख्य भूमिका है। आवश्यक वस्तुएं जैसे प्याज में अगस्त, 2019 से बहुत अधिक मंहगाई हुई है। बेमौसमी वर्षा के कारण प्याज का कम उत्पादन हुआ जिसके परिणाम स्वरूप प्याज की कम आपूर्ति हुई और प्याज की कीमत में वृद्धि हुई। सरकार ने प्याज की कीमतों की वृद्धि रोकने के लिए प्रर्याप्त प्रयास किए। बहुत सी कृषि आधारित जरुरी वस्तुओं जिसमें दालों को छोड़कर सभी वस्तुओं में कमी दर्ज की गई। मुद्रास्फीति का एक ओर कारण थोक और परचून भावों के बीच में अधिक अन्तर भी मुख्य कारण रहा। मूल्य अन्तर विभिन्न केन्द्रों के बीच भी बदलता रहता है, जो अधिक मात्रा में बिचैलियों व अधिक यातायात कीमतों को दर्शाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में सरकार की नीति का एक विशेष घटक है, जो उचित मूल्य की 4,957 दुकानों द्वारा जरूरी वस्तुएं जैसे गेहॅूं, गेहूं का आटा, चावल, लेवी चीनी इत्यादि की आपूर्ति सुनिश्चित करता है। खाद्य पदार्था के वितरण करने हेतु सभी परिवारों को दो श्रेणियों में बंटा गया है।
1) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) (पात्र गृहस्थी)
i) अंत्योदय अन्न योजना (AAY)
ii) प्राथमिकता वाले परिवार
2) एनएफएसए (एपीएल) के अलावा
राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से 18,75,031 डिजीटल राशन कार्ड धारक है, जोकि 72,90,044 आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करता है। इन राशन कार्ड धारकों को 4,957 उचित मूल्य की दुकानों जिसमें 3,227 सहकारी समितियां, 13 पंचायत, 74 हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के आउटलेट, 1,631 व्यक्तिगत आउटलेट और 12 महिला मण्डल शामिल हैं। वर्ष 2019-20 में दिसंबर, 2019 तक के दौरान आवश्यक वस्तुओं का वितरण तालिका 6.6 के अनुसार है

वर्तमान में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा हि.प्र. राज्य अनुदानित वस्तुओं के वितरण का ब्यौरा निम्न प्रकार से सारणी 6.7 में किया गया है।
निगम आवश्यक वस्तुएं, जैसे पैट्र¨लियम उत्पाद, मिट्टी तेल व एल.पी.जी. जन-जातीय एवं अगमय क्षेत्रों में जहां कारोबारी व्यवसाय को चलाने में घाटे के दृष्टिगत आगे नहीं आते है, जरूरी वस्तुएं उपलब्ध करवाने के लिए वचनबद्ध है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान, दिसम्बर, 2019 तक निगम ने सरकार की जनजाति कार्य योजना के अनुसार जनजातीय व हिमाच्छादित क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुएं व पैट्रोलियम उत्पादों की व्यवस्था सारणी 6.8 के अनुसार सुनिश्चित की है।
हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूति निगम हिमाचल प्रदेश सरकार की लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली व राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अन्र्तगत नियन्त्रित व अनियन्त्रित वस्तुओं के प्रापण एव वितरण की एक नोडल एजैन्सी के रुप में सन्तोषजनक कार्य कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में दिसम्बर, 2019 तक निगम ने विभिन्न वस्तुएं जिनका मूल्य ₹1035.52 करोड़़ था, का प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष में इसी अवधि में ₹978.20 करोड़़ था।
वर्तमान में निगम अन्य आवश्यक वस्तुओं जैसे कि रसोई गैस, डीजल/ पैट्रोल/मिट्टी का तेल और जीवन रक्षक दवाईयों को उचित मूल्यों पर 116 थोक बिक्री केन्द्रों, 72 उचित मूल्यों की दुकानों/अपना स्टोर, 54 गैस एजेंसियों, 4 पेट्रोल पम्प और 32 दवाईयों की दुकानों के माध्यम से प्रदेश के कोने-कोने में वितरण कर रहा है।इसके अतिरिक्त निगम थोक व परचून बिक्री केन्द्रों के माध्यम से अन्य आवश्यक वस्तुएं जैसे चीनी, दालें, चावल, आटा, डिटरजैंट पाउडर व साबुन, चाय पत्ती, कापियां, सीमेंट, सी.जी.आई. शीट्स, दवाईयां, विेशेष पोषाहार स्कीम के अन्तर्गत विभिन्न वस्तुएं, मनरेगा सीमेन्ट व पट्रोलियम पदार्था इत्यादि का प्रापण एवं वितरण कर रहा है जिससे निश्चित रुप से इन वस्तुओं के लिए प्रदेश में महंगाई स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष 2019-20 में दिसम्बर, 2019 तक निगम द्वारा विभिन्न वस्तुओं का मूल्य ₹477.27करोड़ का प्रापण एवं वितरण किया गया है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के लिए मूल्य ₹473.42 करोड़ की थी।
निगम दोपहर के भोजन योजना के अन्तर्गत प्राथमिक व अपर प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को सम्बन्धित जिलाधीशों द्वारा आवंटित चावल एवं अन्य खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति की व्यवस्था कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में दिसम्बर, 2019 तक निगम ने 9,889 मी.टन चावल जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 9,881 मी.टन था का वितरण किया है। निगम सरकार की विशेष अनुदानित स्कीम के अंतर्गत चिन्हित वस्तुओं (दालें, खाद्य सरसांे का तेल व रिफाईड तेल और नमक) की सरकार द्वारा गठित प्रापण कमेटी के निर्णयानुसार आपूर्ति कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में दिसम्बर, 2019 तक ₹384.00 करोड़़ की विभिन्न वस्तुएं सभी राशनकार्ड धारकों को तय मानकों के अनुसार का प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में इस अवधि में ₹377.00 करोड़़ थी। इस योजना को लागू करने के लिए वर्ष 2019-20 में ₹220.00 करोड़ राज्य अनुदान के रुप में बजट में प्रावधान किया गया है। वर्ष 2019-20 के दौरान निगम का कारोबार ₹1,450.00 करोड़़ रहने की संभावना है, जो गत वर्ष 2018-19 के दौरान ₹1,356.11 करोड़ का था।
सरकारी आपूर्ति: हिमाचल प्रदेश नागरिक आपूर्ति निगम सरकारी अस्पतालों क¨ आयुर्वैदिक दवाईयां, सरकारी विभागों/बोर्डों/ उपक्रमों/ अन्य सरकारी संस्थाओं को सीमेंट और जी.आई./ डी.आई/सी.आई. पाईपें, सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग को आपूर्ति कर रहा है।
वर्तमान वित्त वर्ष 2019-20 में सरकारी आपूर्ति;अनन्तिम स्थितिद्ध निम्न प्रकार रहेगीः-
मनरेगा सीमेंट की आपूर्ति : वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान दिसम्बर, 2019 तक निगम ने प्रदेश की विभिन्न पंचायतों के विकास कार्य में प्रयोग के लिए 30,60,740 बैग सीमेंट जिसकी राशि ₹70.74 करोड़़ बनती है का सीमेंट फैक्ट्रियों से प्रापण व आपूर्ति सुनिश्चित की गई है।
लाभांश: निगम अपनी स्थापना वर्ष 1980 से लगातार लाभ अर्जित कर रहा है। निगम ने वर्ष 2018-19 के दौरान ₹1.18 करोड़ का शुद्ध लाभ अर्जित किया तथा ₹35.15 लाख हिमाचल सरकार को लाभांश के रूप में देना प्रस्तावित है।
भारत सरकार द्वारा राज्यां को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अनुसार सांपे गये कार्य व उत्तरदायित्व के अन्र्तगत हि.प्र. राज्य नागरिक आपूर्ति निगम इस योजना के कार्यान्वयन में आबंटित खाद्यानों को समय पर पर्याप्त मात्रा में प्रापण/भण्डारण व आपूर्ति सुनिश्चित करने के उपरान्त, अपने 117 थोक बिक्र्री केन्द्रों द्वारा चयनित उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से लाभार्थियों वितरण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वर्ष 2019-20 में दिसम्बर, 2019 तक 60,090 मी. टन चावल व 30,995 मी.टन गेहॅूँ चयनित लाभार्थियों को क्रमशः ₹3.00 व ₹2.00 प्रतिकिलो प्रतिमाह की दर से वितरित करना सुनिश्चित किया है। उपरोक्त के अतिरिक्त प्रदेश सरकार के अलग से राज्य भण्डारण निगम न होने की स्थिति में निगम अपने स्तर पर 21,297 मी.टन का भण्डारण व 38,298 मी.टन किराये पर लिए गए गोदामों में भण्डारण का प्रबन्धन कर रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के सफल कार्यान्वयन को देखते हुए पर्याप्त खाद्यान्न भण्डारण हेतु नेरवा, जिला शिमला में 550 मी.टन व सिद्धपुर सरकारी, जिला कांगड़ा में 500 मी.टन के खाद्यान्न भण्डारण गोदाम बन कर तैयार कर लिए गए हैं तथा सम्बन्धित कार्यकारी एंजैसी से कब्जा ले लिया गया है। निगम का प्रयास है कि विभिन्न वस्तुओं के भण्डारण के लिए 5,000 मी. टन की भण्डारण क्षमता वाले गोदाम प्रदेश के विभिन्न स्थानों में स्थापित किए जाए।

7.कृषि, बागवानी और सम्बद्ध सेवांए

कृषि हिमाचल प्रदेश के लोगों का मुख्य व्यवसाय है और राज्य की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। हिमाचल प्रदेश देश का एकमात्र राज्य है जिसका 89.96 प्रतिशत जनसंख्या (जनगणना 2011) ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। कृषि/बागवानी राज्य के कुल श्रमिकों में से लगभग 69 प्रतिशत को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करती है।
कृषि राज्य की आय (जीएसडीपी) का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। कुल जीएसडीपी का लगभग 12.73 प्रतिशत कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों से आता है। कुल भौगोलिक क्षेत्र से बाहर राज्य का (55.67 लाख हेक्टेयर) परिचालन जोत का क्षेत्र लगभग 9.55 लाख हेक्टेयर है और 9.61 लाख किसानों द्वारा संचालित है। औसत जोत का आकार लगभग 1.00 हेक्टेयर है। वितरण 2010-11 की कृषि जनगणना के अनुसार भूमि जोत की संख्या से पता चलता है कि कुल जोत का 87.95 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसानों का है। लगभग 11.71 प्रतिशत हिस्सेदारी का स्वामित्व है अर्ध मध्यम और मध्यम किसानों द्वारा और बड़े किसानों द्वारा केवल 0.34 प्रतिशत। हिमाचल प्रदेश में भूमि जोत का वितरण तालिका-7.1 में दर्शाया गया है
राज्य में कुल खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 80 प्रतिशत भाग वर्षा आधारित है। चावल, गेहूं और मक्का राज्य की महत्वपूर्ण अनाज फसलें हैं। ख़रीफ़ और रेपसीड में मूंगफली, सोयाबीन और सूरजमुखी / रबी मौसम में सरसों और तोरिया महत्वपूर्ण तिलहनी फसलें हैं। खरीफ मौसम में उर्द, सेम, मूंग, राजमाश तथा रबी में चना मसूर राज्य की प्रमुख दलहनी फसलें हैं। कृषि-जलवायु की दृष्टि से राज्य को चार जोनों में विभाजित किया जा सकता है जैसे:-
1) उपोष्णकटिबंधीय, उप-पर्वत और निचली पहाड़ियाँ।
2) उप शीतोष्ण, उप आर्द्र मध्य पर्वतीय।
3) आर्द्र शीतोष्ण ऊँची पहाड़ियाँ।
4) शुष्क शीतोष्ण ऊँची पहाड़ियाँ और ठंडे रेगिस्तान।
राज्य सरकार अनाज फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के अलावा बेमौसमी सब्जियों, आलू, अदरक, दलहन और तिलहन के उत्पादन पर भी जोर दे रही है। और इनपुट की पर्याप्त आपूर्ति, उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन और प्रभावी प्रसार, पुरानी किस्म के बीज का प्रतिस्थापन, एकीकृत कीट प्रबंधन को बढ़ावा देना, अधिक क्षेत्र लाना जल संसाधनों के कुशल उपयोग और बंजर भूमि विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के तहत। वर्षा के संबंध में चार अलग-अलग मौसम हैं। लगभग आधी वर्षा होती है मानसून के मौसम के दौरान और शेष वर्षा अन्य मौसमों में वितरित की जाती है। राज्य में औसतन 1,251 मिमी वर्षा होती है। चम्बा, सिरमौर और मंडी के बाद कांगड़ा जिले में सबसे अधिक वर्षा होती है।
कृषि के प्रदर्शन का मानसून के पैटर्न से गहरा संबंध है। हिमाचल प्रदेश में 2019 (जून-सितंबर) के मानसून सीजन के दौरान, बिलासपुर में अधिक, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर, सोलन और ऊना में सामान्य, चंबा, किन्नौर और लाहौल स्पीति में कम बारिश हुई। समग्र रूप से हिमाचल के लिए, पूरे मानसून सत्र के दौरान कुल वर्षा वार्षिक सामान्य वर्षा से 10 प्रतिशत कम थी। तालिका 7.2 अब्द 7.3 विभिन्न जिलों में दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा के आंकड़े देता है।
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर निर्भर करती है तथा अभी तक भी राज्य की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 2017-18 में कृषि तथा उससे सम्बन्धित क्षेत्रों का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में लगभग 8.8 प्रतिशत योगदान रहा। खाद्यान्न उत्पादन में तनिक भी उतार-चढ़ाव अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित करता है।
वर्ष 2018-19 कृषि के लिए सामान्य अच्छा वर्ष होने की वजह से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2017-18 के 15.81 लाख मी.टन की तुलना में वर्ष 2018-19 में अनुमानित 16.92 लाख मी.टन उत्पादन हुआ। वर्ष 2017-18 में आलू उत्पादन 1.99 लाख में आलू उत्पादन 1.87 लाख मी.टन हुआ। सब्जियों का उत्पादन वर्ष 2017-18 के 16.92 लाख मी.टन की तुलना में वर्ष 2018-19 में 17.22 लाख मी.टन हुआ।

2019-20 के लिए खाद्यान्न उत्पादन लक्ष्य 16.36 लाख मीट्रिक टन है। ख़रीफ़ उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिण पश्चिम मानसून के व्यवहार पर निर्भर करता है, क्योंकि कुल खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 80 प्रतिशत वर्षा आधारित है। ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई अप्रैल के अंत से शुरू होती है और जून के मध्य तक चलती है। मक्का और धान खरीफ मौसम के दौरान उगने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसलें हैं और अन्य छोटी फसलें रागी हैं। बाजरा और दालें. 384.26 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न खरीफ फसलों की बुआई की गई। इस मौसम में लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र में बुआई अप्रैल-मई माह में होती है जबकि शेष क्षेत्र में बुआई होती है जून और जुलाई के महीने में जो कि ख़रीफ़ की बुआई का चरम समय होता है।
राज्य के अधिकांश हिस्सों में सामान्य बारिश के कारण बुआई समय पर हो सकी और कुल मिलाकर फसल की स्थिति सामान्य रही। हालाँकि अच्छे के कारण 2018 के मानसून सीजन में 9.17 लाख मीट्रिक टन उत्पादन 7.77 लाख एमटी उत्पादन लक्ष्य के विरूद्ध अनुमान लगाया गया है। ख़रीफ़ 2018 सीज़न के लिए। रबी 2018-19 के दौरान, अक्टूबर से दिसंबर, 2018 सीज़न तक अक्टूबर से दिसंबर, 2018 की अवधि के लिए मानसून के बाद की वर्षा में 48 प्रतिशत की कमी थी, लेकिन जनवरी, 2019 के महीने में बारिश हुई, जिसके कारण देर से किस्म के बीज बोए गए। बोए गए, इस प्रकार सूखे के कारण होने वाले नुकसान की संभावना कम हो गई। इस प्रकार रबी 2018-19 में कुल उत्पादन 7.52 लाख एम.टी. इसे प्राप्त किया।
खाद्यान्नों और वाणिज्यिक फसलों का फसलवार उत्पादन पिछले वर्षों के दौरान हिमाचल प्रदेश में स्थिति को तालिका 7.4 में दर्शाया गया है।
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि:
1) खेती योग्य भूमि के विस्तार के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने की गुंजाइश सीमित है। देश के बाकी हिस्सों की तरह, हिमाचल भी खेती योग्य भूमि के मामले में लगभग पठार पर पहुंच गया है चिंतित। इसलिए, उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर विविधीकरण के अलावा उत्पादकता स्तर बढ़ाने पर जोर देना होगा। वाणिज्यिक फसलों की ओर बढ़ते रुझान के कारण, क्षेत्र के अंतर्गत खाद्यान्न उत्पादन में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है क्योंकि 199798 में जो क्षेत्रफल 853.88 हजार हेक्टेयर था वह 2018-19 में घटकर 732.62 हजार हेक्टेयर रह गया है। खाद्यान्नों का क्षेत्रफल कम होना इस प्रकार उत्पादन उत्पादकता में हानि को दर्शाता है जैसा कि तालिका 7.5 से स्पष्ट है

अधिक उपज देने वाली किस्म कार्यक्रम (एच.वाई.वी.पी.):खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को अधिक उपज देने वाली किस्मों के बीज वितरित करने पर जोर दिया गया है। इस क्षेत्र को प्रमुख फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों के अंतर्गत लाया गया। 2017-18, 2018-19 के लिए मक्का, धान और गेहूं और 2019-20 के लिए प्रस्तावित तालिका 7.6 में दी गई है। 20 बीज गुणन फार्म हैं जहां से पंजीकृत किसानों को आधार बीज वितरित किया जाता है। इसके अलावा, राज्य में 3 सब्जी विकास स्टेशन, 12 आलू विकास स्टेशन और 1 अदरक विकास स्टेशन हैं।

पौध संरक्षण कार्यक्रम:फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए पौध संरक्षण उपायों को अपनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक मौसम के दौरान, फसल की बीमारियों, कीड़ों और कीटों आदि के खतरे से लड़ने के लिए अभियान आयोजित किए जाते हैं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति, पिछड़े क्षेत्रों के आईआरडीपी परिवारों के किसानों और छोटे और सीमांत किसानों को 50 प्रतिशत लागत पर पौध संरक्षण रसायन और उपकरण प्रदान किए जाते हैं। . कृषि विभाग का दृष्टिकोण धीरे-धीरे कीटों/बीमारियों के जैविक नियंत्रण पर स्विच करके पौध संरक्षण रसायनों की खपत को कम करना है। रसायनों के वितरण में प्रस्तावित उपलब्धियाँ एवं लक्ष्य तालिका 7.7 में दर्शाये गये हैं

मृदा परीक्षण कार्यक्रम: प्रत्येक फसल मौसम के दौरान मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए, किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने एकत्र किए जाते हैं और मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं में उनका विश्लेषण किया जाता है। मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ सभी जिलों (लाहौल और स्पीति को छोड़कर) में स्थापित किए गए हैं, और मिट्टी के नमूनों का परीक्षण करने के लिए चार मोबाइल मिट्टी परीक्षण वैन/प्रयोगशालाएं चल रही हैं, जिनमें से एक विशेष रूप से जनजातीय क्षेत्रों के लिए है। स्थल पर। वर्तमान में विभाग द्वारा 11 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ किया गया है, 9 मोबाइल प्रयोगशालाएँ और 47 मिनी प्रयोगशालाएँ भी स्थापित की गई हैं। भारत सरकार ने एक नई योजना शुरू की है जिसके आधार पर मिट्टी का नमूना जीपीएस के आधार पर लिया जाएगा। वर्ष 2019-20 के दौरान 18,725 मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया जाएगा।
मृदा परीक्षण सेवा को भी एच.पी. के अंतर्गत शामिल किया गया है। सरकारी लोक सेवा अधिनियम, 2011 में जिसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड ऑनलाइन सेवा के माध्यम से किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती के अंतर्गत प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना: राज्य सरकार ने राज्य में नई योजना "प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना" शुरू की है। सरकार का इरादा "शून्य बजट प्राकृतिक खेती" को प्रोत्साहित करने का है, ताकि लागत कम की जा सके खेती। रासायनिक उर्वरकों और रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को हतोत्साहित किया जाएगा। कृषि और बागवानी विभाग को कीटनाशकों/कीटनाशकों के लिए प्रदान किए गए बजट का उपयोग किया जाएगा। जैव-कीटनाशक और जैव-कीटनाशक उपलब्ध कराने के लिए। 2019-20 के लिए 19.25 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान रखा गया है।
उर्वरक की खपत और सब्सिडी: उर्वरक एक महत्वपूर्ण इनपुट है, जो उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाने में मदद करता है। उर्वरक का स्तर 1985-86 में खपत 23,664 टन थी, जो 2018-19 में बढ़कर 57,555 मीट्रिक टन हो गई है।
रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए, जटिल उर्वरकों पर `1,000 प्रति मीट्रिक टन की सब्सिडी की अनुमति दी गई है। पानी में घुलनशील उर्वरकों के उपयोग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया गया है, जिसके लिए लागत का 25 प्रतिशत तक सब्सिडी की अनुमति दी गई है। योजना योजनाओं के तहत सब्सिडी प्रदान की जा रही है। उर्वरक की दृष्टि से लगभग 51,500 मी.टन 2019-20 के दौरान पोषक तत्वों का वितरण प्रस्तावित है।
कृषि ऋण: संस्थागत ऋण बड़े पैमाने पर वितरित किया जा रहा है, लेकिन विशेष रूप से इसके संबंध में इसे बढ़ाने की गुंजाइश है। जिन फसलों के लिए बीमा कवर उपलब्ध है. छोटे और सीमांत किसानों और अन्य कमजोर वर्गों के लिए संस्थागत ऋण तक बेहतर पहुंच प्रदान करना ताकि वे आधुनिक तकनीक और बेहतर कृषि पद्धतियों को अपनाने में सक्षम हो सकें। सरकार के प्रमुख उद्देश्यों में से एक रहा है। बैंकिंग क्षेत्र फसल विशिष्ट ऋण योजनाएं तैयार करता है और राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठकों में ऋण प्रवाह की तत्काल निगरानी की जाती है।
फसल बीमा योजना: राज्य सरकार ने यह योजना रबी, 1999-2000 सीज़न से शुरू की है। अब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) हो गई है कृषि विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी प्रशासनिक अनुमोदन और परिचालन दिशानिर्देशों के अनुसार राज्य में खरीफ, 2016 सीज़न से शुरू किया गया।
इस बीमा योजना में खरीफ मौसम के दौरान मक्का और धान की फसल को कवर किया गया है। देरी से बुआई, फसल कटाई के बाद के नुकसान के कारण फसल के नुकसान के जोखिम के विभिन्न चरण स्थानीयकृत हैं इस नई योजना के तहत आपदाओं और खड़ी फसलों (बुवाई से कटाई तक) को होने वाले नुकसान को कवर किया गया है। मौसमी कृषि परिचालन का लाभ उठाने वाले ऋणी किसानों के लिए यह योजना अनिवार्य है (एसएओ) बैंकों और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पीएसी) से बीमा योग्य फसलों के लिए फसल ऋण और गैर ऋणी किसानों के लिए वैकल्पिक। पीएमएफबीवाई के तहत 350 प्रतिशत से अधिक दावे एकत्र किए गए प्रीमियम का या बीमा राशि के दावों का प्रतिशत 35 प्रतिशत से अधिक है, जो भी राष्ट्रीय स्तर पर अधिक है, सभी कंपनियों को मिलाकर, केंद्र और राज्य द्वारा भुगतान किया जाएगा। समान रूप से।प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत, पीएमएफबीवाई के तहत खरीफ 2018 और रबी, 2018-19 सीज़न में कुल 2,70,772 किसानों को कवर किया गया है।
₹7.00 करोड़ का बजट प्रावधान है वर्ष 2019-20 के लिए बनाया गया है जिसका उपयोग प्रीमियम सब्सिडी के राज्य हिस्से के भुगतान के लिए किया जाता है। भारत सरकार, कृषि मंत्रालय ने खरीफ से एक और फसल बीमा योजना शुरू की है, 2016 सीज़न को "पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना" कहा गया। (आर-डब्ल्यूबीसीआईएस) इस योजना का उद्देश्य किसानों को प्रतिकूल समझी जाने वाली प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ बीमा सुरक्षा प्रदान करना है। इसकी खेती की अवधि के दौरान खरीफ फसलों को प्रभावित करें।
बीज प्रमाणीकरण कार्यक्रम: राज्य में कृषि-जलवायु परिस्थितियाँ बीज उत्पादन के लिए काफी अनुकूल हैं। को बनाए रखने के लिए बीजों की गुणवत्ता और उत्पादकों को बीजों की अधिक कीमत सुनिश्चित करने के लिए बीज प्रमाणीकरण कार्यक्रम पर पर्याप्त जोर दिया गया है। हिमाचल प्रदेश राज्य बीज प्रमाणीकरण एजेंसी विभिन्न प्रकार के उत्पादकों का पंजीकरण करती है बीज उत्पादन और उनकी उपज के प्रमाणीकरण के लिए राज्य के कुछ हिस्सों में।
कृषि विपणन: राज्य में कृषि उपज के विनियमन के लिए, हिमाचल प्रदेश कृषि/बागवानी उपज विपणन अधिनियम , 2005 लागू किया गया है. अधिनियम के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड की स्थापना की गई है। हिमाचल प्रदेश को दस अधिसूचित बाजार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य की सुरक्षा करना है कृषक समुदाय का हित. राज्य के विभिन्न भागों में स्थापित विनियमित मण्डियाँ किसानों को उपयोगी सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। सोलन में एक आधुनिक बाजार परिसर क्रियाशील है कृषि उपज के विपणन के लिए, विभिन्न क्षेत्रों में बाजार यार्डों के निर्माण के अलावा। वर्तमान में 10 मण्डी समितियाँ कार्य कर रही हैं तथा 58 मण्डियाँ क्रियाशील हो चुकी हैं। बाज़ार विभिन्न मीडिया अर्थात आकाशवाणी, दूरदर्शन, प्रिंट मीडिया और नेट के माध्यम से किसानों तक सूचना प्रसारित की जा रही है।
चाय विकास: 7.18 चाय के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 2,311 हेक्टेयर है और उत्पादन स्तर 8.77 लाख किलोग्राम है। 2018-19 में हासिल किया गया. छोटे और सीमांत किसान हैं 50 प्रतिशत अनुदान पर कृषि इनपुट उपलब्ध कराया।
मृदा और जल संरक्षण: स्थलाकृतिक कारकों के कारण मिट्टी छींटे, चादर और नाली के कटाव के अधीन है जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी के क्षरण में. इसके अलावा भूमि पर जैविक दबाव भी है। इस खतरे को रोकने के लिए, विशेष रूप से कृषि भूमि पर, विभाग राज्य क्षेत्र के तहत दो मिट्टी और जल संरक्षण योजनाएं लागू कर रहा है। योजनाएं हैं:-
1) मृदा संरक्षण कार्य।
2) जल संरक्षण एवं विकास। कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जल संरक्षण एवं लघु सिंचाई कार्यक्रम को प्राथमिकता दी गई है। विभाग ने टैंक बनाकर वर्षा जल संचयन की योजना तैयार की है। तालाब, चेक-डैम और भंडारण संरचनाएँ। इसके अलावा, कम पानी उठाने वाले उपकरण और स्प्रिंकलर के माध्यम से कुशल सिंचाई प्रणाली को भी लोकप्रिय बनाया जा रहा है। इन परियोजनाओं में, मुख्य जोर मिट्टी और जल संरक्षण और कृषि स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने पर होगा।
मुख्यमंत्री नूतन पॉलीहाउस योजना: कृषि क्षेत्र में तेज और अधिक समावेशी विकास हासिल करने के लिए, सरकार हिमाचल प्रदेश ने “मुख्यमंत्री नूतन पॉलीहाउस योजना” शुरू की है ₹ की राशि। शासन द्वारा 78.59 लाख स्वीकृत किये गये हैं। और आरआईडीएफ-XXV के तहत वित्त पोषण के लिए नाबार्ड को प्रस्तुत किया गया। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई):
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना: RAFTAAR को कृषि के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक छत्र योजना के रूप में 2007 में शुरू किया गया था। संबद्ध क्षेत्र. यह योजना 2014-15 तक भारत सरकार से अतिरिक्त केंद्रीय सहायता (100%) के रूप में लागू की गई थी। 2015-16 से उत्तर पूर्वी/हिमालयी राज्यों के लिए फंडिंग पैटर्न को 90:10 के अनुपात में बदल दिया गया है। आगे।अब आरकेवीवाई को चौदहवें वित्त आयोग की शेष अवधि के लिए कृषि और संबद्ध क्षेत्र के कायाकल्प के लिए आरकेवीवाई-रफ्तार-लाभकारी दृष्टिकोण के रूप में नया रूप दिया गया है। मुख्य उद्देश्य योजना इस प्रकार है:
1) आवश्यक फसल पूर्व और कटाई के बाद के कृषि बुनियादी ढांचे के निर्माण के माध्यम से किसानों के प्रयासों को मजबूत करना जो गुणवत्तापूर्ण इनपुट, भंडारण, बाजार सुविधाओं आदि तक पहुंच बढ़ाता है। और किसानों को सूचित विकल्प चुनने में सक्षम बनाता है।
2) कृषि और संबद्ध क्षेत्र की योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने की प्रक्रिया में राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना।
3) मूल्य श्रृंखला जोड़ से जुड़े उत्पादन मॉडल को बढ़ावा देना जो किसानों को उनकी आय बढ़ाने के साथ-साथ उत्पादन/उत्पादकता को प्रोत्साहित करने में मदद करेगा।
4) अतिरिक्त आय सृजन गतिविधियों जैसे एकीकृत खेती, मशरूम की खेती, मधुमक्खी पालन, सुगंधित पौधों की खेती, फूलों की खेती आदि पर ध्यान केंद्रित करके किसानों के जोखिम को कम करना।
5) कई उपयोजनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में भाग लेना
6) कौशल विकास, नवाचार और कृषि-उद्यमिता आधारित कृषि व्यवसाय मॉडल के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाना जो उन्हें कृषि की ओर आकर्षित करें। भारत सरकार ने वर्ष 2019-20 के लिए सामान्य आरकेवीवाई के तहत हिमाचल प्रदेश के पक्ष में केंद्रीय हिस्सेदारी 10% (90%) के रूप में ₹ 24.10 करोड़ और राज्य हिस्सेदारी के साथ ₹ .2.68 करोड़ आवंटित किए हैं। वर्ष 2019-20 के लिए कुल आवंटन ₹ 26.78 करोड़ है।
राष्ट्रीय कृषि विस्तार और प्रौद्योगिकी मिशन (एनएमएईटी): राष्ट्रीय कृषि विस्तार और प्रौद्योगिकी मिशन (एनएमएईटी) को लॉन्च किया गया है विस्तार प्रणाली को किसान-संचालित बनाएं और प्रौद्योगिकी प्रसार की किसान व्यवस्था करें। NMAET को चार उप-मिशनों में विभाजित किया गया है।
1) कृषि विस्तार पर उप मिशन (SAME)।
2) बीज और रोपण सामग्री पर उप मिशन (एसएमएसपी)।
3) कृषि मशीनीकरण पर उप मिशन (एसएमएएम)।
4) पादप संरक्षण और पादप संगरोध (एसएमपीपी) पर उप मिशन। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है और इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी क्रमश: 90:10 के अनुपात में होगी। योजना के तहत वर्ष 2019-20 के लिए ₹ 33.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA): सतत कृषि उत्पादकता मिट्टी और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता और उपलब्धता पर निर्भर करती है। संरक्षण और टिकाऊपन को बढ़ावा देकर कृषि विकास को कायम रखा जा सकता है उचित स्थान विशिष्ट उपायों के माध्यम से इन दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग। इस प्रकार, वर्षा आधारित कृषि के विकास के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण महत्वपूर्ण है राज्य में खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए। इस दिशा में, विशेष रूप से कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) तैयार किया गया है वर्षा आधारित क्षेत्रों में. इस मिशन के अंतर्गत मुख्य प्रदेय हैं:
1) वर्षा आधारित कृषि का विकास करना।
2) प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन।
3) जल उपयोग दक्षता बढ़ाना।
4) मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
5) संरक्षण कृषि को बढ़ावा देना। योजना के तहत वर्ष 2019-20 के लिए 24.48 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) का लक्ष्य उत्पादन को बढ़ाना है चावल, गेहूं और दालों की. एनएफएसएम को राज्य में रबी 2012 से दो प्रमुख घटकों के साथ लॉन्च किया गया है। एनएफएसएम-चावल और एनएफएसएम-गेहूं। एनएफएसएम-चावल के तहत राज्य के तीन जिलों में काम चल रहा है और जबकि एनएफएसएम-गेहूं नौ जिलों में चल रहा है। केंद्र सरकार से 100 प्रतिशत सहायता। मिशन का उद्देश्य क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि, मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता को बहाल करके चावल और गेहूं का उत्पादन बढ़ाना है , रचनात्मकता रोजगार के अवसर और लक्षित जिलों में कृषि अर्थव्यवस्था के स्तर को बढ़ाना। इस योजना के तहत वर्ष 2019-20 के लिए `16.50 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना: कृषि उत्पादकता में सुधार के प्रयास में, भारत सरकार ने शुरू की है एक नई योजना, अर्थात. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई)। सूक्ष्म-सिंचाई परियोजनाएं ("हर खेत को पानी") और संपूर्ण सिंचाई समाधान इस योजना का मुख्य फोकस होंगे। “का प्रमुख उद्देश्य पीएमकेएसवाई का उद्देश्य क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश का अभिसरण हासिल करना, सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए खेत में पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करना है। परिशुद्धता-सिंचाई और अन्य जल-बचत प्रौद्योगिकियों को अपनाना बढ़ाना। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2019-20 हेतु राज्य योजनान्तर्गत `22.00 करोड़ का बजट प्रावधान प्रस्तावित किया गया है।
सूक्ष्म सिंचाई योजना के माध्यम से कुशल सिंचाई: 7.26 सिंचाई की कुशल प्रणाली के लिए सरकार ने एक योजना शुरू की है नाम 2015-16 से 2018-19 तक 4 वर्षों की अवधि में `154.00 करोड़ के परिव्यय के साथ 'सूक्ष्म-सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से कुशल सिंचाई'। इस परियोजना से 8,500 हेक्टेयर क्षेत्र होगा ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के अंतर्गत लाया जाएगा जिससे 14,000 किसानों को लाभ होगा। किसानों को स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई प्रणाली की स्थापना के लिए 80 प्रतिशत की दर से सब्सिडी प्रदान की जाएगी। वर्ष 2019-20 के लिए इस घटक हेतु `25.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है।
उत्तम चारा उत्पादन योजना: राज्य में चारा उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से, राज्य सरकार ने शुरू की है एक योजना; क्षेत्र लाकर चारा विकास हेतु उत्तम चारा उत्पादन योजना चारा उत्पादन के अंतर्गत 25,000 हेक्टेयर भूमि। किसानों को चारा घास के गुणवत्तापूर्ण बीज, उन्नत चारा किस्मों के कटिंग और बीज की आपूर्ति रियायती दरों पर की जाती है। चारा काटने वाली मशीनों पर सब्सिडी एससी/एसटी और बीपीएल किसानों के लिए उपलब्ध है। इस योजना के तहत वर्ष 2019-20 के लिए `5.60 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना: बंदरों और जंगली जानवरों के आतंक से हर साल फसलों को भारी नुकसान होता है। मैन्युअल रखवाली द्वारा फसल सुरक्षा की वर्तमान प्रथा 100 प्रतिशत फसल सुनिश्चित नहीं करती है। इसलिए, हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक योजना "मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना" शुरू की है। इस योजना के तहत 80 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है। बाड़ सौर ऊर्जा की मदद से है. खेतों के चारों ओर की बाड़ में करंट आवारा जानवरों, जंगली जानवरों और बंदरों को खेतों से दूर रखने के लिए पर्याप्त होगा। इस योजना के तहत वर्ष 2019-20 के लिए ₹ 35.00 करोड़ प्रदान किए गए हैं। इस योजना के तहत लगभग 2000 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि को जंगली/भूरा जानवरों और बंदरों के आतंक से बाड़/संरक्षित किया जाएगा।
मुख्यमंत्री किसान एवं खेतीहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना: किसानों को बीमा कवर प्रदान करने के उद्देश्य से और खेतिहर मजदूरों को चोट लगने की स्थिति में या कृषि मशीनरी के संचालन के कारण होने वाली मृत्यु के लिए राज्य सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसका नाम है; 2015-16 में मुख्यमंत्री किसान एवं खेतीहर मजदूर जीवन सुरक्षा। मृत्यु और स्थाई होने की स्थिति में विकलांगता, प्रभावित किसानों को ₹1.5 लाख का मुआवजा और आंशिक विकलांगता के मामले में ₹50,000 प्रदान किया जाता है।
लिफ्ट सिंचाई और बोरवेल योजना: राज्य के अधिकांश हिस्सों में सिंचाई के लिए पानी उठाना पड़ता है . किसानों को प्रोत्साहन स्वरूप सरकार ने 50 फीसदी अनुदान देने का निर्णय लिया है सिंचाई प्रयोजनों के लिए व्यक्तिगत या किसानों के समूह द्वारा लिफ्ट सिंचाई योजनाओं के निर्माण और बोर-वेल की स्थापना के लिए। इस योजना के तहत निर्माण के लिए वित्तीय सहायता मिलती है कम और मध्यम लिफ्ट सिंचाई प्रणाली, उथले कुएं, उथले बोरवेल, विभिन्न क्षमताओं के जल भंडारण टैंक, पंपिंग मशीनरी और व्यक्तिगत किसानों या समूह के लिए जल परिवहन पाइप किसान. वर्ष 2019-20 के लिए 9.91 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
सौर सिंचाई योजना: राज्य सरकार ने एक नई योजना "सौर सिंचाई योजना" शुरू की है। फसलों को सुनिश्चित सिंचाई प्रदान करना, बिजली की पहुंच के साथ उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना दूरदराज के इलाकों में सोलर पीवी पंप की तुलना में यह महंगा है। इस योजना के तहत छोटे/सीमांत किसानों को व्यक्तिगत सौर पंपिंग मशीनरी की स्थापना के लिए 90% सहायता प्रदान की जाएगी। आधार. मध्यम/बड़े किसानों को व्यक्तिगत आधार पर सोलर पंपिंग मशीनरी की स्थापना के लिए 80% सहायता प्रदान की जाती है। न्यूनतम पांच किसानों द्वारा विकल्प चुनने पर 100 प्रतिशत सहायता प्रदान की जाती है सामुदायिक आधार पर सौर पम्पिंग मशीनरी की स्थापना। इस योजना के तहत किसानों को 5,850 कृषि सोलर पंपिंग सेट उपलब्ध कराये जायेंगे. इस योजना का कुल परिव्यय ₹200 है अगले पांच वर्षों के लिए करोड़. वर्ष 2019-20 के लिए ₹30.00 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है।
जल से कृषि को बल योजना: सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, सरकार ने एक नई योजना शुरू की है योजना "जल से कृषि को बल"। इस योजना के तहत चेक डैम और तालाबों का निर्माण किया जायेगा. किसान व्यक्तिगत आधार पर छोटी लिफ्टिंग योजनाओं या प्रवाह सिंचाई योजनाओं के निर्माण के बाद इस पानी का उपयोग सिंचाई प्रयोजनों के लिए कर सकते हैं। इस योजना का कुल परिव्यय ₹ 250.00 करोड़ है अगले पांच साल. इसके लिए 2019-20 में ₹25.00 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया था। इस योजना के तहत समुदाय आधारित कार्यान्वयन के लिए 100 प्रतिशत व्यय सरकार द्वारा वहन किया जाएगा लघु जल बचत योजना.
कृषि जलवायु परिस्थितियों की समृद्ध विविधता, स्थलाकृतिक विविधताएं और उपजाऊ, गहरी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी के साथ ऊंचाई संबंधी अंतर इसकी खेती के लिए अनुकूल हैं। हिमाचल में समशीतोष्ण से उपोष्णकटिबंधीय फल। यह क्षेत्र फूल, मशरूम, शहद और हॉप्स जैसे सहायक बागवानी उत्पादों की खेती के लिए भी उपयुक्त है।
हिमाचल की इस विशेष उपयुक्तता के परिणामस्वरूप पिछले कुछ दशकों में भूमि उपयोग पैटर्न कृषि से फलों की फसलों की ओर स्थानांतरित हो गया है। फलों के अंतर्गत क्षेत्र, जो 1950-51 में 792 हेक्टेयर था, 1,200 टन के कुल उत्पादन के साथ 2018-19 के दौरान बढ़कर 2,32,139 हेक्टेयर हो गया। जबकि 2018-19 में कुल फल उत्पादन 4.95 लाख टन था 2019-20 के दौरान (दिसंबर, 2019 तक) यह 7.07 लाख टन बताया गया है। 2019-20 के दौरान, फलों के तहत 1,950 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र के लक्ष्य के मुकाबले 2,113 हेक्टेयर क्षेत्र को वास्तव में वृक्षारोपण के अंतर्गत लाया गया है। वर्ष 2019-20 के दौरान 31 दिसम्बर, 2019 तक कुल 5.28 लाख विभिन्न फलों के पौधे वितरित किये गये।
सेब हिमाचल प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण फल फसल है, जो फल फसलों के तहत कुल क्षेत्रफल का लगभग 49 प्रतिशत और लगभग 74 प्रतिशत है। संपूर्ण फल उत्पादन. सेब का क्षेत्रफल 1950-51 में 400 हेक्टेयर से बढ़कर 1960-61 में 3,025 हेक्टेयर और 2018-19 में 1,13,154 हेक्टेयर हो गया है।
शीतोष्ण फलों के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र, सेब के अलावा अन्य फसलें 1960-61 में 900 हेक्टेयर से बढ़कर 2018-19 में 28,414 हेक्टेयर हो गई हैं। मेवे और सूखे मेवों का प्रदर्शन क्षेत्र 1960-61 में 231 हेक्टेयर से बढ़कर 10,194 हेक्टेयर हो गया 2018-19 में, खट्टे और अन्य उपोष्णकटिबंधीय फल 1960-61 में 1,225 हेक्टेयर और 623 हेक्टेयर से बढ़कर 2019-20 में क्रमशः 24,869 हेक्टेयर और 55,508 हेक्टेयर हो गए हैं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सेब के उत्पादन में उतार-चढ़ाव ने सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। राज्य विशाल बागवानी का पता लगाने और उसका दोहन करने का प्रयास कर रहा है विभिन्न कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में विविध बागवानी उत्पादन के माध्यम से पहाड़ी राज्य की क्षमता।
बागवानी विकास योजना एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ढांचागत सुविधाओं का निर्माण और रखरखाव करना है। सभी फलों की फसलों को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक संसाधनों और इनपुट के लिए। वर्ष 2019-20 के दौरान मशीनीकृत खेती को बढ़ावा देने के लिए 995 नग पावर स्प्रेयर, 2,063 नग पावर टिलर (<8बीएचपी) और 92 पावर ट्रिलर (>8बीएचपी) बागवानी विकास योजना के तहत बागवानों के बीच सब्सिडी पर वितरित किए जाएंगे। कृषि यंत्रीकरण उप-मिशन (एसएमएसएम) किया जा रहा है राज्य में लागू किया गया। योजना के तहत किसानों को विभिन्न आधुनिक कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद के लिए बैक एंडेड सब्सिडी के रूप में सहायता प्रदान की जाती है। राज्य कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश इस योजना का नोडल विभाग है। वर्ष 2019-20 के दौरान बागवानी विभाग को ₹14.83 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई है।
फल उत्पादकों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिले इसलिए राज्य में विपणन हस्तक्षेप योजना क्रियान्वित की जा रही है। इस योजना के तहत वर्ष 2019-20 के दौरान सेब का खरीद मूल्य ₹8.00 प्रति किलोग्राम। आम फल का खरीद मूल्य ₹ 6.50 प्रति किलोग्राम है। 500 मीट्रिक टन तक आम के अंकुर की कीमत ₹7.50 प्रति किलोग्राम है। ग्राफ्टेड आम की कीमत 250 मीट्रिक टन तक और ₹ 6.50 प्रति किलोग्राम। 50 मीट्रिक टन तक कच्चा अचारी आम। 2019-20 के दौरान, इस योजना के तहत ₹ 49.32 करोड़ मूल्य के 61,647 मीट्रिक टन सी-ग्रेड सेब फल खरीदे गए हैं। खट्टे फलों की खरीद मूल्य बी-ग्रेड के लिए ₹7.50 प्रति किलोग्राम, ₹7.00 प्रति किलोग्राम निर्धारित किया गया है। सीग्रेड किन्नू/माल्टा/संतरा के लिए और ₹6.00 प्रति किग्रा. वर्ष 2019-20 के लिए सभी ग्रेड के गलगल फलों के लिए। कुल 5,564 कि.ग्रा. खट्टे फल रहे हैं दिनांक 15-01-2020 तक योजनान्तर्गत क्रय किया गया।
राज्य के गर्म क्षेत्रों में आम एक महत्वपूर्ण फल फसल के रूप में उभरा है। कुछ क्षेत्रों में लीची का भी महत्व बढ़ रहा है। आम और लीची को बाजार में बेहतर कीमत मिल रही है। मध्य पहाड़ी क्षेत्र में, कीवी, जैतून जैसे नए फलों की सफल खेती के लिए कृषि-जलवायु परिस्थितियाँ अत्यधिक उपयुक्त हैं। अनार, पेकन और स्ट्रॉबेरी। पिछले तीन वर्षों एवं चालू वर्ष में दिसम्बर, 2019 तक फलों का उत्पादन तालिका 7.8 में दिया गया है।

बागवानी उद्योग में विविधता लाने के लिए 31.12.2019 तक कुल 493.47 हेक्टेयर क्षेत्र को फूलों की खेती के तहत लाया गया है। फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए दो टिशू कल्चर महोगबाग (चायल, जिला सोलन) और पालमपुर में मॉडल फूल खेती केंद्रों के तहत प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। उत्पादन हेतु नौ कृषक सहकारी समितियां कार्यरत हैं शिमला जिले में फूलों का विपणन - 3 नंबर, कांगड़ा - 2 नंबर, लाहौल और स्पीति - 2 नंबर, सोलन - 1 नंबर और चंबा जिले में 1 नंबर। मशरूम और मधुमक्खी पालन जैसी सहायक बागवानी गतिविधियाँ को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक, मशरूम के लिए 245.79 मीट्रिक टन पाश्चुरीकृत खाद तैयार की गई और चंबाघाट, बजौरा और स्थित विभाग की इकाइयों से वितरित की गई। पालमपुर. कुल 5,707 मीट्रिक टन। वर्ष के दौरान दिसंबर, 2019 तक राज्य में मशरूम का उत्पादन हुआ। मधुमक्खी पालन कार्यक्रम के तहत, वर्ष के दौरान 467.78 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया गया है। राज्य में 31.12.2019 तक।
मौसम आधारित फसल बीमा योजना शुरू में हिमाचल प्रदेश में रबी सीजन के दौरान सेब की फसल के लिए 6 ब्लॉकों में और आम की फसल के लिए 4 ब्लॉकों में शुरू की गई थी। 200910. लोकप्रियता को देखते हुए इस योजना के तहत, इस योजना के तहत कवरेज को लगातार वर्षों के दौरान बढ़ाया गया है। 2017-18 के दौरान, यह योजना सेब के लिए 36 ब्लॉक, आम के लिए 41 ब्लॉक, 15 ब्लॉक में कार्यान्वित की जा रही है। खट्टे फलों के लिए, प्लम के लिए 13 ब्लॉक और आड़ू की फसल के लिए 5 ब्लॉक। इसके अलावा, सेब की फसल को ओलावृष्टि से बचाने के लिए 19 ब्लॉकों को ऐड-ऑन कवर योजना के तहत कवर किया गया है। वर्ष से 2017-18 में योजना का नाम बदलकर पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आर-डब्ल्यूबीसीआईएस) कर दिया गया है और बीमा राशि को संशोधित किया गया है और बोली प्रणाली शुरू की गई है। रबी मौसम के दौरान 2018-19, सेब, आड़ू, प्लम, आम और खट्टे फलों की फसलों के लिए पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत 81,173 किसानों को कवर किया गया है, जिन्होंने अपने 63,61,540 पेड़ों का बीमा कराया है। जिसके लिए राज्य सरकार ने 25 प्रतिशत प्रीमियम सब्सिडी `20.61 करोड़ वहन की है
वर्ष 2019-20 के दौरान केंद्र प्रायोजित योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के कार्यान्वयन के लिए ₹399.94 लाख की धनराशि रहा सरकार से प्राप्त भारत का और क्षेत्रीय पदाधिकारियों को आवंटित कर दिया गया है और कार्य प्रगति पर है। 'इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड एसेट' योजना के तहत ₹101.24 लाख की धनराशि प्रदान की गई है 'फार्म मशीनीकरण के माध्यम से बागवानी विकास', 'मशरूम इकाइयों की स्थापना' के लिए ₹42.00 लाख, 'जल स्रोतों के निर्माण' के लिए ₹73.70 लाख, पैक हाउस के लिए ₹60.00 लाख, ₹80.00 लाख 'किसानों को वितरण के लिए स्वच्छ संयंत्र स्टॉक की स्थापना और सेब के वायरस परीक्षण संयंत्र सामग्री के उत्पादन के लिए डिग्नोस्टिक सुविधाओं और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना और ₹43.00 लाख 'फ्लेक्सी फंड' योजना के तहत हिमाचल प्रदेश के उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फलों की फसल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उच्च तकनीक नर्सरी की स्थापना के लिए। एक नई लॉन्च की गई योजनाहिमाचल खुंब विकास योजनाथी राज्य में मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए 2019-20 के दौरान लॉन्च किया गया और ₹5.00 करोड़ प्राप्त हुए और आगे क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को आवंटित किए गए। मुख्यमंत्री ग्रीन हाउस के क्रियान्वयन हेतु नवीनीकरणपुराने पॉली हाउसों की पॉली फिल्म के प्रतिस्थापन के लिए वर्ष 2019-20 में ₹ 1.00 करोड़ की राशि प्रदान की गई थी और "एंटी-हेल नेट की स्थापना" के तहत ₹ 20.00 करोड़ आवंटित किए गए हैं। फलों की फसलों को ओलावृष्टि से बचाने की योजना।
राज्य में कुशल और अकुशल बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने और वाणिज्यिक फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए धन आवंटित किया गया है। वर्ष 2019-20 के दौरान 'हिमाचल पुष्प क्रांति योजना' की राशि ₹10.00 करोड़। गुणवत्तापूर्ण फल वाली फसलें पैदा करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए, शहद उत्पादन और अन्य मधुमक्खी उत्पादों को बढ़ाने के लिए, 'मुख्यमंत्री मधु विकास योजना' शुरू की गई है.
केंद्र प्रायोजित योजना,"बागवानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन" (MIDH) राज्य में लागू की जा रही है उद्यानिकी विभाग द्वारा किस सहायता के अंतर्गत फलों, फूलों, सब्जियों, प्रजातियों की खेती और नए उद्यानों की स्थापना जैसी विभिन्न बागवानी गतिविधियों को करने के लिए किसानों को 50% की दर से बैक एंडेड सब्सिडी प्रदान की जाती है। मशरूम उत्पादन, उच्च मूल्य वाले फूलों और सब्जियों की ग्रीन हाउस खेती, एंटी हेल नेट, बागवानी मशीनीकरण, फसल कटाई के बाद प्रबंधन आदि।
वर्ष 2019-20 के दौरान केंद्र प्रायोजित योजना, एमआईडीएच के कार्यान्वयन के लिए, ₹53.15 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है जिससे ₹23.15 करोड़ प्राप्त हुए हैं सरकार. इस मिशन के तहत वर्ष 2003-04 से दिसंबर, 2019 तक पहली और दूसरी किस्त के रूप में भारत के कुल 2,52,453 किसानों को लाभान्वित किया गया है। संरक्षित खेती को बढ़ावा देना बागवानी में राज्य सरकार ने पॉली हाउस के तहत सब्सिडी 50% से बढ़ाकर 85% और 72,099 वर्ग मीटर कर दी है। वर्ष 2019-20 के दौरान माउंट क्षेत्र को ग्रीन हाउस के अंतर्गत लाने का लक्ष्य है। फलों की फसलों विशेषकर सेब को ओलावृष्टि से बचाने के लिए राज्य सरकार ने एंटी हेल नेट पर सब्सिडी 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 80 प्रतिशत कर दी है। इसे 3,01,047 वर्गमीटर लाने का लक्ष्य है। वर्ष 2019-20 के दौरान एंटी हेल नेट के तहत क्षेत्र।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक फसल (PMKSY-PDMC) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो राज्य बागवानी विभाग, हिमाचल प्रदेश द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है 2015-16 से. वर्ष 2017-18 में, पीएमकेएसवाई-प्रति बूंद अधिक फसल दिशानिर्देशों को छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55 प्रतिशत और बड़े किसानों के लिए 45 प्रतिशत की दर से सब्सिडी के प्रावधान के साथ संशोधित किया गया था। राज्य छोटे एवं सीमांत किसानों को 80 78 प्रतिशत सब्सिडी देने के लिए 25 प्रतिशत अतिरिक्त राज्यांश प्रदान कर रहा है। वर्ष 2019-20 के लिए, भारत सरकार ने PMKSY-PDMC के लिए ₹14.40 करोड़ स्वीकृत किए हैं। अब तक (2015-16 से दिसम्बर,2019) 2588.07 हे. क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत शामिल किया गया है जिससे 4,654 किसान लाभान्वित हुए हैं।
एच.पी.एम.सी. ताजे फलों और सब्जियों के विपणन, अप्राप्य अधिशेष का प्रसंस्करण करने के उद्देश्य से प्रदेश में एक राज्य सार्वजनिक उपक्रम की स्थापना की गई थी और प्रसंस्कृत उत्पादों का विपणन करना। अपनी स्थापना के बाद से, एचपीएमसी राज्य के फल उत्पादकों को उनकी उपज का लाभकारी लाभ प्रदान करके उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक एचपीएमसी ने निर्धारित `80.02 करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले `58.65 करोड़ का कुल कारोबार दर्ज किया था। वित्तीय वर्ष 2019-20. बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत वर्ष 2019-20 के दौरान एच.पी. सरकार। राज्य में आम, सेब और खट्टे फलों के समर्थन मूल्य के साथ बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) की नीति निम्नानुसार जारी रखी गई है:-

1) निगम ने जिला शिमला और कुल्लू के निम्नलिखित सेब उत्पादक क्षेत्रों अर्थात् जरोल टिक्कर, (कोटगढ़) 640 मीट्रिक टन में 5 सीए स्टोर सफलतापूर्वक चालू किए हैं। गुम्मा (कोटखाई) 640 मीट्रिक टन, ओड्डी (कुमारसैन) 700 मीट्रिक टन और पतलीकुहल (कुल्लू) 700 मीट्रिक टन कुल 3,380 मीट्रिक टन भंडारण करने में सक्षम है।
2) नादौन जिला हमीरपुर में एक आधुनिक सब्जी पैक हाउस और कोल्ड रूम की स्थापना और फलों, सब्जियों की पैकिंग ग्रेडिंग के लिए पैक हाउस और कोल्ड रूम की स्थापना। जिला बिलासपुर के घुमारवीं में फूलों और पाक जड़ी-बूटियों की ग्रेडिंग और भंडारण के लिए `7.89 करोड़ की 100 प्रतिशत अनुदान सहायता के साथ मार्च, 2020 तक पूरा होने की संभावना है। हमीरपुर और बिलासपुर जिले में सब्जियां।
3) परवाणु में एप्पल जूस कॉन्सेंट्रेट (एजेसी) प्लांट के उन्नयन के लिए `8.00 करोड़ की सहायता अनुदान दिया गया है कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) से प्राप्त हुआ और उन्नयन का कार्य वर्ष 2018 में सफलतापूर्वक पूरा किया गया है उसी वर्ष परीक्षण उत्पादन। 2019 में AJC का व्यावसायिक उत्पादन 1,012 M.T था। अपग्रेडेड प्लांट से किया गया, जो एक कैलेंडर वर्ष के दौरान सर्वकालिक उच्च उत्पादन है वर्ष 1974 में निगम की स्थापना के बाद से।
4) फल प्रसंस्करण योजना (एफपीपी), जरोल (सुंदरनगर) में निगम की स्थापना के बाद से 2019 में 235.25 मीट्रिक टन एजेसी का उत्पादन करके एक कैलेंडर के दौरान सर्वकालिक उच्च उत्पादन दर्ज किया गया था। वर्ष 1974 में.
5) एचपीएमसी ने एफपीपी परवाणू में एप्पल साइडर के निर्माण के लिए और एम/एस माउंटेन बैरल के साथ एफपीपी जरोल में फलों और रेड वाइन के निर्माण के लिए पार्टियों एम/एस पीएच4 के साथ समझौता ज्ञापन में प्रवेश किया है।
6) एचपीएमसी ने इस परियोजना के तहत विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित एचपी एचडीपी परियोजना से राज्य में उत्पादित विभिन्न फलों के ग्रेडिंग भंडारण और प्रसंस्करण की अपनी मौजूदा क्षमता को बढ़ाने की योजना बनाई है। सीए स्टोर जरोल टिक्कर, गुम्मा और रोहड़ू की मौजूदा भंडारण क्षमता को मौजूदा 1,980 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 6,000 मीट्रिक टन करने की प्रक्रिया प्रक्रियाधीन है। टेंडर देने का काम हो चुका है पूरा हो चुका है और इसका उन्नयन जल्द ही शुरू होने की संभावना है। इसके अलावा, पराला में 200 मीट्रिक टन फल कुचलने की क्षमता वाला आधुनिक एप्पल जूस कंसन्ट्रेट प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया भी चल रही है। दिन अग्रिम चरण में है और एप्पल सीजन-2022 से पहले इसकी स्थापना सुनिश्चित करने के लिए काम चल रहा है। इससे एजेसी की कीमत कम करने में मदद मिलेगी और निगम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा AJC की बिक्री के लिए बाजार.
पशुधन का पालन-पोषण ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। हिमाचल प्रदेश में, सामान्य संपत्ति संसाधनों के बीच एक गतिशील संबंध है (सीपीआर) जैसे जंगल, पानी और चरागाह भूमि, पशुधन और फसलें।
इस प्रकार पशुधन हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था की स्थिरता का अभिन्न अंग है। वर्ष के दौरान प्रमुख पशुधन उत्पादों का योगदान 2018-19 में 14.60 लाख टन दूध, 1,503 टन ऊन, 100.70 मिलियन अंडे और 4,601 टन मांस था, जो 15.30 लाख टन दूध, 1,516 टन ऊन के क्रम में होने की संभावना है। 2019-20 के दौरान 105 मिलियन अंडे और 4,600 टन मांस। दूध उत्पादन एवं प्रति व्यक्ति उपलब्धता तालिका-7.9 में दर्शाया गया है

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में पशुपालन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और पशुधन विकास कार्यक्रम के लिए राज्य में इस प्रकार ध्यान दिया जाता है:
1) पशु स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण।
2) मवेशी विकास।
3) भेड़ प्रजनन और ऊन का विकास।
4) पोल्ट्री विकास।
5) चारा और चारा विकास।
6) पशु चिकित्सा शिक्षा।
7) पशुधन जनगणना।
पशु स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण के अंतर्गत 1 राज्य स्तरीय पशु चिकित्सालय, 2 आंचलिक अस्पताल, 10 पॉलीक्लिनिक, 60 उपविभागीय पशु चिकित्सालय, 356 पशु चिकित्सालय, 30 केंद्रीय पशु औषधालय और 1,765 पशु चिकित्सा दिसंबर, 2019 तक राज्य में औषधालय कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा पशुधन को तत्काल पशु चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए 6 पशु चिकित्सा जांच चौकियां भी संचालित हो रही हैं। मुख्यमंत्री के अधीन आरोग्य पशुधन योजना के तहत दिसंबर, 2019 तक 1,251 पशु औषधालय खोले गए हैं।
भेड़ और ऊन की गुणवत्ता में सुधार के लिए, जियोरी (शिमला) में सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म, ताल (हमीरपुर), और करछम (किन्नौर) राज्य के प्रजनकों को उन्नत भेड़ की आपूर्ति कर रहे हैं। मंडी जिले के नगवाईं में एक राम केंद्र भी कार्य कर रहा है जहां उन्नत मेढ़ों का पालन-पोषण किया जाता है क्रॉस ब्रीडिंग के लिए प्रजनकों को आपूर्ति की जाती है। वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक इन फार्मों की झुंड संख्या 1,111 है और प्रजनकों को 219 मेढ़े वितरित किए गए। शुद्ध हॉगेट्स की बढ़ती मांग और प्रदेश में सोवियत मैरिनो और अमेरिकन रैंबौइलेट की स्थापित लोकप्रियता को देखते हुए, राज्य ने शुद्ध हॉगेट्स की ओर रुख कर लिया है। राज्य में मौजूदा सरकारी फार्मों में प्रजनन और 9 भेड़ और ऊन विस्तार केंद्र काम कर रहे हैं। वर्ष 2019-20 के दौरान ऊन का उत्पादन होने की सम्भावना है 1,516 टन. प्रजनकों को खरगोशों के वितरण के लिए अंगोरा खरगोश फार्म कंडवारी (कांगड़ा) और नगवाईं (मंडी) में काम कर रहे हैं।
डेयरी उत्पादन पशुपालन का एक अभिन्न अंग है और हिमाचल प्रदेश में छोटे और सीमांत किसानों की कमाई का हिस्सा है। विकास की ओर हालिया रुझान बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था में दूध उत्पादन के महत्व पर जोर दिया गया, विशेषकर शहरी उपभोग केंद्रों के आसपास के क्षेत्रों में। इसने किसानों को प्रतिस्थापन के लिए प्रेरित किया है संकर नस्ल की गायों के साथ गायों की स्थानीय गैर-वर्णन नस्लें। जर्सी और होल्स्टेन के साथ क्रॉस ब्रीडिंग द्वारा स्वदेशी मवेशियों का उन्नयन किया जा रहा है। मुर्रल के साथ भैंस उन्नयन में बैल को लोकप्रिय बनाया जा रहा है. डीप फ्रोज़न सीमेन की नवीनतम तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान का अभ्यास किया जा रहा है। 2018-19 के दौरान, गायों के लिए 8.77 लाख वीर्य स्ट्रॉ और 3.30 लाख वीर्य स्ट्रॉ भैंसों के लिए शुक्राणु स्टेशन द्वारा उत्पादित किए गए थे। 2019-20 के दौरान, गायों के लिए 11.50 लाख वीर्य स्ट्रॉ और भैंसों के लिए 3.50 लाख वीर्य स्ट्रॉ का उत्पादन होने की संभावना है। 2018-19 के दौरान 3.45 लाख लीटर तरल नाइट्रोजन (LN2) गैस का उत्पादन किया गया और 2019-20 में 9.00 लाख लीटर का उत्पादन होने की संभावना है। 2018-19 के दौरान 3,137 के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान सुविधा प्रदान की जा रही है वर्ष 2019-20 के दौरान संस्थानों में 7.50 लाख गायों और 2.43 लाख भैंसों और 9.20 लाख गायों और 3.37 लाख भैंसों का गर्भाधान होने की संभावना है। क्रॉस ब्रीड गायों को प्राथमिकता दी जाती है लंबी स्तनपान अवधि, कम शुष्क अवधि और उच्च पैदावार जैसे कारकों के कारण। 2019-20 के दौरान `21.00 लाख के प्रावधान के साथ "उत्तम पशु पुरस्कार योजना" लागू की जाएगी।
2019-20 के दौरान बैकयार्ड पोल्ट्री योजना के तहत 4.10 लाख दोहरे उद्देश्य वाले रंगीन नस्ल के चूजों को वितरित किए जाने की संभावना है और 2,000 व्यक्तियों को वितरित करने का लक्ष्य है मुर्गीपालन में प्रशिक्षण इस योजना के तहत दिसंबर, 2019 तक सब्सिडी में 5,640 लाभार्थियों के बीच 2.51 लाख चूजों का वितरण किया गया। लाहौल और स्पीति जिले के लारी में एक घोड़ा प्रजनन फार्म स्थापित किया गया है। के उद्देश्य से स्थापित किया गया स्पीति नस्ल के घोड़ों का संरक्षण करें। वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक इस फार्म में 59 घोड़े रखे गए हैं। घोड़े के परिसर में एक याक प्रजनन फार्म भी स्थापित किया गया है लारी का प्रजनन। वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक इस फार्म में याकों की संख्या 62 थी। चारा एवं चारा विकास योजना के तहत 15.02 लाख चारा जड़ें, 68,000 चारा पौधे 2019-20 के दौरान वितरित करने का लक्ष्य है।
डेयरी उद्यमिता विकास योजना (दूध गंगा योजना): दूध गंगा योजना 25 सितंबर, 2009 से राज्य में नाबार्ड के सहयोग से शुरू की गई है। योजना के घटकों में शामिल हैं:
1) छोटी डेयरी इकाइयों की स्थापना (इकाइयों का आकार 2-10 दुधारू पशुओं का होता है) 10 पशुओं की खरीद के लिए `6.00 लाख का बैंक ऋण।
2) दूध देने वाली मशीन/थोक दूध ठंडा करने वाली इकाइयों की खरीद के लिए `20.00 लाख तक का बैंक ऋण।
3) स्वदेशी दुग्ध उत्पादों के निर्माण के लिए डेयरी प्रसंस्करण उपकरणों की खरीद, `13.20 लाख का बैंक ऋण।
4) डेयरी उत्पाद परिवहन सुविधाओं की स्थापना और `26.50 लाख का कोल्ड चेन बैंक ऋण।
5) दुग्ध उत्पादों की कोल्ड स्टोरेज सुविधा, बैंक से `33.00 लाख का ऋण।
6) डेयरी, मार्केटिंग आउटलेट/डेयरी पार्लर बैंक ऋण `1.00 लाख।
सहायता का पैटर्न:
1) बैंक ने सामान्य वर्ग के लिए परियोजना लागत का 25 प्रतिशत और एससी/एसटी वर्ग के किसानों के लिए 33.33 प्रतिशत की दर से पूंजी सब्सिडी समाप्त की।
2) 1.00 लाख से अधिक के ऋण के लिए उद्यमी का योगदान (मार्जिन - पैसा) परियोजना लागत का 10 प्रतिशत होगा।
3) उपरोक्त के अलावा, राज्य सरकार डीईडीएस योजना के लाभार्थियों को क्रॉसब्रीड/जर्सी गायों की खरीद के लिए 10% और स्वदेशी गायों की खरीद के लिए 20% की अतिरिक्त सब्सिडी प्रदान कर रही है।
गोजातीय प्रजनन पर राष्ट्रीय परियोजना: गोजातीय प्रजनन पर कुल `23.87 करोड़ की राष्ट्रीय परियोजना को सरकार द्वारा मंजूरी दी गई है भारत 100 प्रतिशत केंद्रीय सहायता पैटर्न पर। की दूसरी किस्त `5.00 करोड़ जारी किए गए और इसका उपयोग अनुमोदित परियोजना घटक के अनुसार किया जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य पशुपालन विभाग की निम्नलिखित गतिविधियों को मजबूत करना है।
1) तरल नाइट्रोजन भंडारण, परिवहन और वितरण को मजबूत करना।
2) शुक्राणु स्टेशनों, वीर्य बैंकों और ए.आई. को मजबूत करना। केन्द्र.
3) उच्च वंशावली बैल या शुक्राणु स्टेशनों का अधिग्रहण और दूरदराज के क्षेत्रों में प्राकृतिक सेवा के लिए।
4) प्रशिक्षण सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण।
5) स्वदेशी नस्ल का विकास और संरक्षण।
6) "ए" मान्यता प्राप्त स्पर्म स्टेशन से स्वदेशी नस्ल डीएफएस की खरीद।
बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग: हिमाचल प्रदेश में पोल्ट्री क्षेत्र को विकसित करने के लिए, विभाग निम्नलिखित पोल्ट्री विकास योजनाएं चला रहा है खासकर राज्य के ग्रामीण इलाकों में. बैकयार्ड पोल्ट्री परियोजना के तहत
1) 3 सप्ताह के लो इनपुट टेक्नोलॉजी (एलआईटी) पक्षियों को पोल्ट्री प्रजनकों के बीच लागत मूल्य पर वितरित किया जाता है।
2) 200-चूजा योजना:- इस योजना के तहत अनुसूचित जाति श्रेणी के बीपीएल परिवारों से संबंधित 540 पोल्ट्री प्रजनकों को इनपुट (जैसे 200 दिन पुराने एलआईटी पक्षी) प्रदान किया जाना है। प्रारंभिक भोजन, खिलाने और पीने वालों के लिए फ़ीड) मूल्य`। 10,000/प्रति लाभार्थी। लाभार्थियों के लिए मुर्गीपालन प्रबंधन के संबंध में प्रशिक्षण का भी प्रावधान है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम): इस परियोजना के तहत राष्ट्रीय गोकुल मिशन `207.36 लाख (`186.62 लाख केंद्र) अंश एवं `20.74 लाख राज्य अंश) रहा है अनुमोदित परियोजना के अनुसार प्राप्त राशि और उपयोग की गई राशि। INAPH पर डेटा अपलोड करने के लिए 3,470 टैबलेट, 3,650 टैग एप्लिकेटर, 9,60,567 टैग और 7.78 लाख पशु स्वास्थ्य कार्ड खरीद लिए गए हैं और भारत सरकार द्वारा साहीवाल और लाल सिंधी नस्लों के संरक्षण और प्रसार के लिए 1.95 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। पालमपुर में भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी (ई.टी.टी.) राष्ट्रीय गोकुल मिशन निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ कार्यान्वित किया जा रहा है:-
1) स्वदेशी नस्ल का विकास और संरक्षण।
2) देशी मवेशियों की नस्लों की आनुवंशिक संरचना में सुधार और स्टॉक बढ़ाने के लिए नस्ल सुधार कार्यक्रम।
3) दूध उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि।
4) साहीवाल और लाल सिंधी जैसी विशिष्ट स्वदेशी नस्लों का उपयोग करके अवर्णनीय मवेशियों का उन्नयन।
5) प्राकृतिक सेवा के लिए रोग मुक्त उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों का वितरण।
6) राज्य में गोकुल ग्राम की स्थापना 7 मुर्रा भैंस फार्म की स्थापना।
राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम): राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो 14 सितंबर, 2019 से शुरू की गई है। वर्ष 2014-15. मिशन को कवर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है पशुधन उत्पादन प्रणालियों और सभी हितधारकों की क्षमता निर्माण में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सभी गतिविधियाँ। गतिविधियाँ संबंधित योजना में छोटे जुगाली करने वाले जानवरों यानी भेड़ और बकरी का विकास, चारा विकास, जोखिम प्रबंधन और मुर्गीपालन विकास शामिल हैं। राज्य का हिस्सा अलग है इस योजना के अंतर्गत विभिन्न घटक।
पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य को सहायता: आसपास के राज्यों से बड़े पैमाने पर अंतरराज्यीय प्रवास और कमी के कारण पोषण घास और चारे के कारण पहाड़ी स्थलाकृति में अधिकांश जानवर विभिन्न पशुधन से ग्रस्त हैं बीमारी। केंद्र सरकार ने "पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्यों को सहायता" के तहत संक्रामक रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य सरकार को सहायता प्रदान की है। (एएससीएडी) जो 90 प्रतिशत केंद्रांश और 10 प्रतिशत राज्यांश की तर्ज पर है। जिन बीमारियों के लिए पशुपालकों को मुफ्त टीकाकरण प्रदान किया जा रहा है वे हैं खुरपका और मुंहपका इस परियोजना के तहत रोग, रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया ब्लैक क्वार्ट, एंटरोटोक्सिमिया, पेस्टे दास पेटिटिस रूमिनेंट्स, रानीकेट रोग, मारेक रोग और रेबीज।
चरवाहा योजना: स्थानीय भेड़ों को अच्छी गुणवत्ता वाले रैमबौइलेट और रूसी मेरियोनो के मेढ़ों से संकरण कराया जा रहा है ताकि ऊन उत्पादन की गुणवत्ता के साथ-साथ मात्रा भी हो सकती है बढ़ा हुआ। इसलिए, यह प्रस्ताव किया जा रहा है कि ये मेढ़े भेड़ पालकों को 60 प्रतिशत सब्सिडी पर उपलब्ध कराए जाएं।
बीपीएल कृषक बकरी पालन योना: इस योजना के तहत 11 बकरियों (10 मादा) की इकाइयों को वितरित करने का प्रस्ताव है +1 नर), 5 बकरियाँ (4 मादा + 1 नर) और 3 बकरियाँ भूमिहीन, बीपीएल श्रेणी के किसानों को उनकी आय बढ़ाने के लिए 60 प्रतिशत अनुदान पर क्रमशः बीटल्स सिरोही/जमनापारी/सफेद हिमालयन नस्ल की (2 मादा + 1 नर)।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई): आरकेवीवाई के तहत परियोजनाओं का उद्देश्य बुनियादी ढांचे, पशु चिकित्सा सेवा, विस्तार को मजबूत करना है सक्रिय, कुक्कुट विकास छोटे जुगाली करने वालों की संख्या, पशुधन की पोषण स्थिति में सुधार, पशुधन की स्वास्थ्य स्थिति और राज्य के पशुधन मालिक से संबंधित अन्य गतिविधियाँ। प्रमुख पशुधन उत्पाद के उत्पादन के आकलन के लिए एकीकृत नमूना सर्वेक्षण:यह सर्वेक्षण भारतीय कृषि के दिशानिर्देश के अनुसार राज्य में किया जाता है। सांख्यिकीय अनुसंधान संस्थान (एएचएस प्रभाग) नई दिल्ली। यह पशुधन आबादी से संबंधित एक विश्वसनीय डेटाबेस प्रदान करता है। एकीकृत नमूना सर्वेक्षण तब से आयोजित किया जा रहा है 1977-78 तक प्रतिवर्ष नियमित रूप से इस उद्देश्य से :-
1) मौसम के अनुसार और वार्षिक दूध, अंडा और ऊन उत्पादन का अनुमान लगाना।
2) औसत जनसंख्या और उपज का अनुमान लगाना।
3) गोबर उत्पादन का अनुमान लगाना।
4) औसत फ़ीड और चारे की खपत की गणना करना।
5) जनसंख्या, उपज और उत्पादन की प्रवृत्ति का अध्ययन करना।
पशुधन जनगणना: पशुधन जनगणना भारत सरकार द्वारा हर साल आयोजित की जाती है और अब तक ऐसी 20 जनगणनाएं हो चुकी हैं आयोजित किया गया है। पशुधन जनगणना राज्य में पशुपालन के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश द्वारा पशु विकास से संबंधित नई नीतियां पशुधन और मुर्गीपालन की सटीक संख्या के आधार पर तैयार की जाती हैं।
दूध आधारित उद्योग: हिमाचल प्रदेश में डेयरी विकास गतिविधियां डेयरी सहकारी समितियों की दो स्तरीय संरचना पर आधारित हैं। आनंद पैटर्न की मूल इकाई एक ग्रामीण डेयरी सहकारी संस्था है जहां दूध उत्पादकों के अधिशेष दूध को एकत्र किया जाता है और परीक्षण किया जाता है और गुणवत्ता के आधार पर भुगतान किया जाता है। एच.पी. मिल्कफेड राज्य में डेयरी विकास गतिविधियों को कार्यान्वित कर रहा है। एच.पी. मिल्कफेड के पास 1,024 दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां हैं। इन सोसाइटियों की कुल सदस्यता 43,250 है जिनमें से 205 महिला डेयरी सहकारी समितियां भी कार्य कर रही हैं। दुग्ध उत्पादकों से अतिरिक्त दूध ग्राम डेयरी सहकारी समितियों द्वारा एकत्र किया जाता है, जिसे एच.पी. द्वारा संसाधित और विपणन किया जाता है। मिल्कफेड. वर्तमान में मिल्कफेड 22 दुग्ध शीतलन केंद्र चला रहा है, जिनकी कुल क्षमता 91,500 लीटर प्रतिदिन है और 11 दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र चल रहे हैं, जिनकी कुल क्षमता 1,00,000 लीटर है। प्रति दिन लीटर दूध. शिमला जिले के दत्तनगर में 5 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता का एक दूध पाउडर संयंत्र और जिला हमीरपुर के भोर में 16 मीट्रिक टन प्रतिदिन क्षमता का एक पशु चारा संयंत्र स्थापित एवं कार्यशील है। ग्रामीण डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से गांवों से प्रतिदिन औसत दूध की खरीद लगभग 77,000 लीटर है। एच.पी. मिल्कफेड लगभग 27,397 की मार्केटिंग कर रहा है प्रति दिन लीटर दूध जिसमें विभिन्न प्रतिष्ठित डेयरियों को थोक में दूध की आपूर्ति और डगशाई, शिमला, पालमपुर और धर्मशाला (योल) क्षेत्रों में सेना इकाइयों को आपूर्ति शामिल है। एच.पी. मिल्कफेड प्रदान करता है ग्रामीण क्षेत्रों में सेमिनार, शिविर आयोजित करके डेयरी के क्षेत्र में तकनीकी जानकारी, जागरूकता गतिविधियाँ। इसके अलावा, पशु चारा और स्वच्छ दूध उत्पादन गतिविधियों जैसे अन्य इनपुट भी प्रदान किए जाते हैं किसानों को उनके दरवाजे पर। हिमाचल प्रदेश सरकार ने दूध खरीद दरों में 2.00 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि की है। 01.04.2019 इस प्रकार 43,250 परिवारों को प्रत्यक्ष वित्तीय लाभ दिया गया दुग्ध महासंघ से संबद्ध।
मिल्कफेड विकासात्मक प्रयास: अधिशेष दूध का उपयोग करने और अपने राजस्व को बढ़ाने और अपने घाटे को कम करने के लिए एच.पी. मिल्कफेड ने निम्नलिखित विकासात्मक गतिविधियाँ शुरू की हैं:-
1) रिकांग पियो, जिला किन्नौर, नालागढ़, जिला सोलन, जिला कुल्लू, मोहाल और जंगल बेरी, जिला हमीरपुर, चंबा में 5,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता के प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं। रोहड़ू, नाहन, ऊना, मंडी और कांगड़ा जिलों में 20,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता के प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं।
2) एच.पी. मिल्कफेड 'हिम' ब्रांड के तहत हिम दुग्ध उत्पादों जैसे दूध पाउडर, घी, मक्खन, दही, पनीर और मीठा स्वाद वाला दूध, खोआ का विपणन कर रहा है।
3) एच.पी.मिल्कफेड ने 2018-19 में केंद्र प्रायोजित योजना एनपीडीडी (राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम) के तहत शिमला, मंडी और कुल्लू जिले में 40 एएमसीयू स्थापित किए हैं।
हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड कल्याण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 'पंजीरी विनिर्माण संयंत्र' चक्कर (मंडी) में पंजीरी का निर्माण कर रहा है। विभाग को आईसीडीएस परियोजना के तहत 2018-19 के दौरान 29,359 क्विंटल 'न्यूट्रीमिक्स' की आपूर्ति की गई है। हिमाचल प्रदेश मिल्कफेड ने 4,905 क्विंटल स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) की भी आपूर्ति की है महिला एवं बाल कल्याण विभाग को 18,189 क्विंटल बेकरी बिस्किट।
1) एच.पी. दुग्ध महासंघ ग्रामीण स्तर पर दुग्ध उत्पादकों को अच्छी गुणवत्ता का दूध पैदा करने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
2) एच.पी. मिल्कफेड ने दीपावली उत्सव के दौरान 400 क्विंटल मिठाइयाँ बनाकर अपनी गतिविधियों में विविधता लाई है।
3) 2020-21 के दौरान, एच.पी. मिल्कफेड दत्तनगर में 50,000 एलपीडी क्षमता का एक दूध प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करेगा और इसके द्वारा हैंडलिंग क्षमता को 70,000 एलपीडी तक बढ़ाया जाएगा जो जरूरतों को पूरा करेगा। शिमला, कुल्लू, किन्नौर और मंडी जिले के कुछ हिस्सों की डेयरी सहकारी समितियों की जरूरतों के लिए।
4) एमपीपी चक्कर जिला मंडी में 50,000 एलपीडी क्षमता का एक नया संयंत्र स्थापित किया जाएगा, जिससे मंडी, कुल्लू, बिलासपुर और अन्य जिलों की डेयरी सहकारी समितियों को लाभ मिलेगा।
5) दूध की खरीद की गुणवत्ता में सुधार के लिए सभी डेयरी सहकारी समितियों को 15 नंबर उपलब्ध कराए जाएंगे। एएमसीयू (स्वचालित दूध संग्रह इकाई) और 11 नं. के परीक्षण के लिए मिल्को स्क्रीन पौधे के स्तर पर वसा/एसएनएफ के साथ मिलावट।
6) मिल्कफेड ने विटामिन ए और डी की कमी को दूर करने के लिए 28.11.2019 को विटामिन ए और डी के साथ फोर्टिफाइड मिल्क हिम गौरी पेश किया है। एनडीडीबी और टाटा ट्रस्ट के सहयोग से राज्य में एच.पी. की उपलब्धि। मिल्कफेड को तालिका 7.10 में दर्शाया गया है।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि दूध को ग्रामीण स्तर पर तुरंत ठंडा किया जाए, एच.पी. मिल्कफेड ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में ग्रामीण स्तर पर 106 बल्क मिल्क कूलर स्थापित किए हैं। ग्रामीण स्तर पर दूध के परीक्षण में पारदर्शिता और स्वचालन लाने के लिए, एच.पी. मिल्कफेड ने विभिन्न ग्राम डेयरी सहकारी समितियों में 268 स्वचालित दूध संग्रह इकाइयाँ स्थापित की हैं।
ऊन खरीद और विपणन महासंघ: महासंघ का मुख्य उद्देश्य ऊन की वृद्धि और विकास को बढ़ावा देना है हिमाचल प्रदेश राज्य में उद्योग और ऊन उत्पादकों को बिचौलियों/व्यापारियों द्वारा शोषण से मुक्त करना। उपरोक्त उद्देश्य के अनुसरण में, महासंघ भेड़ और अंगोरा ऊन की खरीद, चरागाह स्तर पर भेड़ कतरने, भेड़ ऊन की सफाई और ऊन के विपणन में सक्रिय रूप से शामिल है। भेड़ कतरने का काम आयातित स्वचालित मशीन से किया जाता है दिसंबर, 2019 तक भेड़ ऊन की खरीद 82,697 किलोग्राम थी। और उसका मूल्य `52.76 लाख था। फेडरेशन राज्य में भेड़ और अंगोरा प्रजनकों के लाभ और उत्थान के लिए कुछ केंद्र प्रायोजित योजनाएं भी लागू कर रहा है। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान इन योजनाओं का लाभ लगभग 15,000 प्रजनकों को मिलने की संभावना है। फेडरेशन स्थापित बाजारों में ऊन बेचकर ऊन उत्पादकों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य भी प्रदान कर रहा है।
हिमाचल प्रदेश को प्रकृति ने ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों का उपहार दिया है जो पहाड़ी इलाकों से होकर गुजरती हैं और अंततः राज्य के अर्ध-मैदानी क्षेत्र को समृद्ध करती हैं। उनका ऑक्सीजन युक्त पानी। इसकी रैखिक रूप से बहने वाली नदियाँ ब्यास, सतलुज और रावी अपनी नीचे की यात्रा के दौरान कई धाराएँ प्राप्त करती हैं और शिज़ोथोरैक्स जैसे बहुमूल्य ठंडे पानी के मछली जीवों को आश्रय देती हैं। गोल्डन महसीर और विदेशी ट्राउट। राज्य के ठंडे जल संसाधनों ने महत्वाकांक्षी इंडो-नॉर्वेजियन ट्राउट खेती परियोजना के सफल समापन और जबरदस्त प्रदर्शन के साथ अपनी क्षमता दिखाई है। विकसित प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए पहाड़ी जनता द्वारा रुचि दिखाई गई। गोबिंद सागर और पोंग बांध जलाशयों, चमेरा और रणजीत सागर बांध में व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मछली प्रजातियाँ हैं स्थानीय आबादी के उत्थान के लिए एक साधन बनें। राज्य में लगभग 5,337 मछुआरे अपनी आजीविका के लिए सीधे जलाशय मत्स्य पालन पर निर्भर हैं। 2019-20 के दौरान दिसंबर तक, 2019 में संचयी मछली उत्पादन 9,308 मीट्रिक टन था, जिसका मूल्य `118.64 करोड़ था। हिमाचल प्रदेश के जलाशय गोविंद सागर में प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक मछली उत्पादन का गौरव प्राप्त है और पोंग बांध में मछली पकड़ने का बिक्री मूल्य देश में सबसे अधिक है। चालू वर्ष के दौरान दिसंबर, 2019 तक राज्य के फार्मों से 7.24 टन ट्राउट बेची गई है और `81.70 लाख अर्जित किए गए हैं। पिछले वर्ष मछली की बिक्री तालिका 7.11 में दर्शाई गई है
मत्स्य पालन विभाग ने ग्रामीण जलाशयों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए राज्य में कार्प के साथ-साथ ट्राउट बीज उत्पादन फार्मों का निर्माण किया है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में तालाब और वाणिज्यिक खेत। 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक 70 मिमी और उससे अधिक आकार की कॉमन कार्प की कुल 15.36 लाख फिंगरलिंग 3.58 लाख राज्य में समान आकार की आईएमसी और 3.67 लाख रेनबो ट्राउट का उत्पादन किया गया है। वर्ष 2019-20 के दौरान दिसम्बर, 2019 तक उत्पादित कुल बीज उत्पादन का अनुमानित मूल्य `38.63 लाख है। राज्य के पहाड़ी इलाकों के बावजूद जलीय कृषि को उचित महत्व दिया जा रहा है। "राष्ट्रीय कृषि विकास योजना" (आरकेवीवाई) के तहत सरकार द्वारा `101.10 लाख के परिव्यय को मंजूरी दे दी गई है जैसा कि तालिका 7.12 में दिखाया गया है।
मत्स्य पालन विभाग ने मछुआरों के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं। जहां मछुआरों को बीमा योजना के तहत कवर किया गया है `2.00/1.00 लाख दिए जाते हैं (मृत्यु/स्थायी विकलांगता के मामले में) आंशिक विकलांगता के मामले में) और `10,000 अस्पताल के खर्च के लिए और यहां तक कि उनके गियर और शिल्प के नुकसान के लिए भी दिया जा रहा है "जोखिम निधि योजना" के तहत 50 प्रतिशत की सीमा तक राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इस योजना के तहत राज्य सरकार द्वारा मछुआरा राज्य एक अंशदायी बचत योजना शुरू की गई है और केंद्र समान रूप से योगदान देता है। यह निधि मछुआरों को करीबी मौसम के दौरान प्रदान की जाती है। वर्ष 2019-20 के दौरान `111.30 लाख की राशि, (`37.10 लाख मछुआरे द्वारा योगदान दिया गया) बचत-सह-राहत निधि योजना के तहत 3,710 मछुआरों को राज्य और केंद्र सरकार से 74.20 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
मत्स्य विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत 550 स्वरोजगार के अवसर सृजित किये गये। नीली क्रांति के तहत विभाग ने 1,000 हेक्टेयर नये तालाबों के निर्माण की परिकल्पना की है और 2022 तक राज्य में 1,000 ट्राउट इकाइयां। नीली क्रांति की केंद्रीय क्षेत्र योजना को केंद्र और राज्य सरकार के बीच 90:10 में साझा किया जा रहा है। इस योजना के तहत 2019-20 के दौरान
1) 20 हेक्टेयर का निर्माण। निजी क्षेत्र में 79.90 लाख की वित्तीय सहायता से नये तालाब/टैंक बनाये जायेंगे।
2) `24.00 लाख की वित्तीय सहायता से निजी क्षेत्र में 6 ट्राउट फीड मिल की स्थापना। कुल्लू, मण्डी, चम्बा, शिमला तथा सिरमौर जिले में अधिक उत्पादन के लिए राज्य में मछली की गुणवत्ता
3) `60.00 लाख की वित्तीय सहायता से निजी क्षेत्र में 6 ट्राउट हैचरी की स्थापना।
4) राज्य में 120 ट्राउट पालन इकाइयों की स्थापना।
5) निजी क्षेत्र में जलीय कृषि विकास के लिए मत्स्य मुद्रा योजना।
6) सरकारी क्षेत्र में कोल्डम जलाशय में ट्राउट केज की स्थापना।
7) राज्य में मछली पालन के लिए 3 खुदरा दुकानों की स्थापना।
8) सरकारी क्षेत्र में रीस्युलेटरी एक्वाकल्चर प्रणाली की स्थापना। 2019-20 के दौरान मत्स्य पालन के नीली क्रांति एकीकृत विकास और प्रबंधन पर सीसीएस के तहत `76.69 करोड़ का परिव्यय प्रस्तावित किया गया है।
वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक मत्स्य पालन विभाग की उपलब्धियां और 2020-21 के लिए प्रस्तावित लक्ष्य तालिका में दिखाए गए हैं 7.13
हिमाचल प्रदेश में वन 37,947 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। किमी. और राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68.16 प्रतिशत है। हालाँकि, वर्तमान में 28.60 प्रतिशत है कुल भौगोलिक क्षेत्र वन आवरण का समर्थन करते हैं। हिमाचल प्रदेश वन नीति का मुख्य उद्देश्य वनों का समुचित उपयोग, संरक्षण एवं विस्तार है। वन विभाग का लक्ष्य सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने के लिए 2030 तक राज्य में वन क्षेत्र को उसके भौगोलिक क्षेत्र के 30 प्रतिशत तक बढ़ाना है। वन विभाग द्वारा शुरू किए गए योजना कार्यक्रम का उद्देश्य इन नीतिगत प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है। कुछ महत्वपूर्ण योजना कार्यक्रम गतिविधियाँ इस प्रकार हैं:-
वन वृक्षारोपण: विभिन्न राज्य योजना योजनाओं के तहत वन वृक्षारोपण किया जा रहा है जैसे वृक्ष आवरण में सुधार, और मृदा संरक्षण, प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) के साथ-साथ केंद्र प्रायोजित योजना "राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम" के तहत राज्य की चारागाह एवं चारागाह भूमि का प्रबंधन किया जा रहा है। राज्य योजना के तहत चारागाह एवं चरागाह भूमि का विकास। जनता को शिक्षित करने और सभी हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए राज्य, सर्कल और डिवीजन स्तरों पर वन महोत्सव भी मनाया जाता है। नई वानिकी योजना (सांझी वन योजना) के तहत वानिकी और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के संबंध में। इसके अलावा, विभाग महिला मंडलों जैसे स्थानीय समुदायों को शामिल करके वृक्षारोपण अभियान का आयोजन कर रहा है। 2018-19 से युवक मंडल, स्थानीय लोग और जन प्रतिनिधि। वर्तमान मानसून सत्र के दौरान, विभाग ने 01.01.2019 से पूरे राज्य में 5 दिवसीय वृक्षारोपण अभियान चलाया। 20 वीं 24 जुलाई, 2019 तक 25 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इस अभियान को भारी सफलता मिली और 1,18,932 लोगों ने उत्साहपूर्वक अभियान में भाग लिया और 26,47,146 पौधे लगाए गए 727 स्थान चयनित। वर्ष 2019-20 के लिए, CAMPA और केंद्र प्रायोजित योजनाओं सहित 9,000 हेक्टेयर का वृक्षारोपण लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें से 8,475.23 हेक्टेयर लक्ष्य हासिल किया गया है। तथा शेष लक्ष्य 31.03.2020 तक प्राप्त कर लिया जायेगा।
वन प्रबंधन (वन अग्नि रोकथाम एवं प्रबंधन योजना): राज्य में वन बढ़ते जैविक दबाव के अधीन हैं वृद्धि के कारण मानव आबादी में, पशुपालन प्रथाओं और विकासात्मक गतिविधियों में बदलाव। जंगल आग, अवैध कटाई, अतिक्रमण और अन्य वन अपराधों के खतरे में हैं। वन संरक्षण वन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी सुनिश्चित करने के लिए संवेदनशील स्थानों पर चेक पोस्टों को सीसीटीवी से लैस करके मजबूत किया जा रहा है। अग्निशमन उपकरण और उन्नत तकनीक भी उपलब्ध करायी जा रही है इसे उन सभी वन प्रभागों में लागू और उपलब्ध कराया गया जहां आग एक प्रमुख विनाशकारी तत्व है। वन संपदा के प्रभावी प्रबंधन एवं सुरक्षा के लिए संचार नेटवर्क अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, राज्य में केंद्र प्रायोजित योजना- वन अग्नि रोकथाम एवं प्रबंधन योजना (जिसे पहले वन प्रबंधन गहनता योजना के नाम से जाना जाता था) लागू की जा रही है। वर्ष 2019-20 के दौरान वन अग्नि निवारण एवं प्रबंधन योजना के अंतर्गत केन्द्रीय अंश (90%) के रूप में `222.07 लाख तथा राज्य अंश के रूप में `24.67 लाख का परिव्यय स्वीकृत किया गया है। एक और योजना राज्य योजना के तहत "वन अग्नि प्रबंधन योजना" 2019-20 के दौरान `100 लाख के बजट प्रावधान के साथ शुरू की गई है।
प्रायोगिक सिल्वीकल्चरल फेलिंग: हिमाचल प्रदेश की वन संपदा `1.50 लाख करोड़ से अधिक अनुमानित है। भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति से राज्य को किया गया है तीन प्रजातियों की सिल्वीकल्चरल ग्रीन फेलिंग की अनुमति दी गई है। प्रयोगात्मक आधार पर तीन रेंजों में खैर, चील और साल - नूरपुर वन प्रभाग की नूरपुर रेंज, बिलासपुर वन की भरारी रेंज इस उद्देश्य के लिए गठित माननीय सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी समिति की देखरेख में पोंटा वन प्रभाग के डिवीजन और पोंटा रेंज। इस दौरान पेड़ों की कटाई की गई 2018-19 और 2019-20 के दौरान प्रायोगिक सिल्वीकल्चरल फेलिंग के तहत क्षेत्रों की बाड़ लगाना, वृक्षारोपण, पुनर्स्थापन माननीय सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिशों के अनुसार सख्ती से किया जा रहा है। निगरानी समिति.
नई योजनाएं: स्थानीय समुदायों, छात्रों और आम जनता को वनों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका टिकाऊ फसल प्रबंधन, जंगली कटाई वाले गैर-लकड़ी लघु वन उत्पादों के मूल्यवर्धन और आर्थिक रिटर्न बढ़ाने के लिए, निम्नलिखित नई योजनाएं शुरू की गई हैं: -
1)सामुदायिक वन संवर्धन योजना: इस योजना का मुख्य उद्देश्य वृक्षारोपण के माध्यम से वनों के संरक्षण और विकास में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। वनों की गुणवत्ता में सुधार और वन आवरण में वृद्धि। प्रकृति के साथ ग्रामीण समुदायों के संबंधों को पुनर्जीवित और मजबूत करना तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के सतत प्रवाह को सुनिश्चित करना जंगल से. योजना मौजूदा के माध्यम से क्रियान्वित की जाएगी जेएफएमसी/वीएफडीएस। 2018-19 के दौरान, 20 साइटों का चयन किया गया है और 2019-20 के लिए 11 नई साइटें (जेएफएमसी/वीएफडीएस) रखी गई हैं। चालू वर्ष के दौरान वृक्षारोपण और मृदा संरक्षण गतिविधियाँ होंगी प्रत्येक चयनित जेएफएमसी/वीएफडीएस के अनुमोदित माइक्रो प्लान के अनुसार चयनित जेएफएमसी/वीएफडीएस द्वारा सभी 31 चयनित साइटों पर कार्य किया जाएगा।
2) विद्यार्थी वन मित्र योजना: योजना का मुख्य उद्देश्य छात्रों को वनों के महत्व और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका के बारे में जागरूक करना है। छात्रों में प्रकृति संरक्षण के प्रति लगाव की भावना पैदा करना; वनों के संरक्षण और संरक्षण के प्रति समुदायों को संवेदनशील बनाने और सृजन के लिए छात्रों को प्रेरित करना वन क्षेत्र और वन आवरण में वृद्धि। इस योजना के तहत 2019-20 के दौरान `125.00 लाख का बजट प्रावधान रखा गया है और 150 नए स्कूलों का चयन किया जाना है। दिसंबर, 2019 तक, 146 विद्यालयों के माध्यम से वृक्षारोपण हेतु 131.5 हेक्टेयर क्षेत्र का चयन किया गया है।
3) वन समृद्धि जन समृद्धि योजना: यह योजना सक्रिय सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से राज्य में एनटीएफपी संसाधन आधार को मजबूत करने के लिए शुरू की गई है। स्थानीय का सशक्तिकरण ग्रामीण आबादी की आय बढ़ाने के लिए एनटीएफपी के संग्रह, संरक्षण और विपणन में समुदाय। यह योजना प्रारंभ में 7 सबसे अधिक जैव विविधता समृद्ध जिलों में लागू की जाएगी अर्थात्, चंबा, कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर, किन्नौर और लाहौल और स्पीति और उसके बाद राज्य के शेष जिलों में।
4) एक बूटा बेटी के नाम (2019-20 के दौरान शुरू): लोगों को बेटियों के महत्व और वन संरक्षण के बारे में जागरूक करने के लिए, एक नई योजना "एक बूटा बेटी के नाम" शुरू की गई है। 201920 के दौरान लॉन्च किया गया। ऐसा माना जाता है कि एक लड़की के नाम पर एक पौधा लगाकर और प्रत्येक पौधे को एक पेड़ के रूप में पोषित करने के प्रयास से समुदायों को संवेदनशील बनाया जाएगा। बालिकाओं के अधिकारों के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होना जिससे उनकी पूरी क्षमता का एहसास हो सके। राज्य में कहीं भी बेटी के जन्म पर वन विभाग परिवार को "किट" और निर्देश पुस्तिका के साथ मजबूत और स्वस्थ लंबे पौधे (पौधे) उपहार में दें। पौधे लड़की के माता-पिता द्वारा मानसून या सर्दी के मौसम में लगाए जाएंगे इलाके की उपयुक्तता के अनुसार या तो उनकी आवासीय भूमि या सरकारी भूमि पर। भूमि।
बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाएं
हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु प्रूफिंग परियोजना (K.F.W सहायता प्राप्त):
हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु प्रूफ़िंग परियोजना के साथ केएफडब्ल्यू बैंक जर्मनी की सहायता से 7 वर्ष की अवधि के लिए राज्य के चंबा और कांगड़ा जिलों में कार्यान्वित किया जा रहा है। 2015-16. परियोजना की लागत `308.45 करोड़ है। परियोजना का वित्त पोषण पैटर्न 85.10 प्रतिशत ऋण और 14.90 प्रतिशत राज्य हिस्सेदारी है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य पुनर्वास, संरक्षण और सतत उपयोग है जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वन पारिस्थितिकी तंत्र की लचीलापन बढ़ाने और सुरक्षित करने और वन आधारित उत्पादों और अन्य सेवाओं के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए हिमाचल प्रदेश में चयनित वन पारिस्थितिकी तंत्र, जिससे वनों पर निर्भर समुदायों को लाभ होता है। लंबे समय में यह जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की सुरक्षा के लिए वन पारिस्थितिकी प्रणालियों की अनुकूलन क्षमता को मजबूत करने में योगदान देगा। जलग्रहण क्षेत्रों का स्थिरीकरण, प्राकृतिक संसाधन आधार का संरक्षण और साथ ही हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए बेहतर आजीविका का परिणाम। `43.46 करोड़ का परिव्यय किया गया है चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए स्वीकृत।
हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना: एक नई परियोजना जिसका नाम है "हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना” 8 वर्षों (2018-19 से 2025-26) के लिए `800.00 करोड़ की राशि जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) की सहायता से शुरू की गई है। परियोजना का फंडिंग पैटर्न 80 प्रतिशत है ऋण एवं 20 प्रतिशत राज्यांश। यह परियोजना बिलासपुर, कुल्लू, मंडी, शिमला, किन्नौर, लाहौल-स्पीति जिलों और चंबा के पांगी और भरमौर उप-मंडलों के जनजातीय क्षेत्रों में लागू की जाएगी। ऐसे जिले जिनका परियोजना मुख्यालय कुल्लू शमशी, जिला कुल्लू और क्षेत्रीय कार्यालय रामपुर, जिला शिमला में है। परियोजना का उद्देश्य वन और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है और वैज्ञानिक और आधुनिक वन प्रबंधन प्रथाओं का उपयोग करके वन आवरण, घनत्व और उत्पादक क्षमता को बढ़ाकर वन और चरागाह पर निर्भर समुदायों की आजीविका में सुधार करना; बढ़ाने जैव विविधता और वन पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण और ग्रामीण समुदायों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करके वन संसाधनों पर दबाव/तनाव को कम करना। वित्तीय के दौरान वर्ष 2019-20, सरकार ने इस परियोजना के तहत `29.71 करोड़ प्रदान किए हैं और 31.12.2019 तक `19.94 करोड़ का व्यय किया गया है।
स्रोत स्थिरता और जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि के लिए विश्व बैंक सहायता प्राप्त एकीकृत विकास परियोजना: विश्व बैंक ने की लागत से इस परियोजना का समर्थन करने पर सहमत हुए `650.00 करोड़ का शीर्षक 'स्रोत स्थिरता और जलवायु लचीले वर्षा आधारित कृषि के लिए एकीकृत परियोजना'। परियोजना का वित्त पोषण पैटर्न 80 प्रतिशत ऋण और 20 प्रतिशत राज्य है शेयर करना। परियोजना की अवधि 7 वर्ष है। यह परियोजना राज्य के विभिन्न जलक्षेत्रों में फैले शिवालिक और मिड हिल्स कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 900 ग्राम पंचायतों में लागू की जाएगी। कुंजी इस परियोजना के उद्देश्यों में लगभग 2 लाख हेक्टेयर गैर-कृषि योग्य और 20,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का व्यापक उपचार शामिल है; और जल उत्पादकता/दक्षता, दूध उत्पादन में वृद्धि और परियोजना क्षेत्र में आजीविका में सुधार। `35.74 करोड़ का परिव्यय किया गया है चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान इस परियोजना के तहत मंजूरी दी गई, जिसमें से `7.49 करोड़ का व्यय 31.12.2019 तक किया जा चुका है।
पर्यावरण वानिकी और वन्य जीवन: हिमाचल प्रदेश बहुत प्रभावशाली, विविध और अद्वितीय जीवों का घर है - इनमें से कई जो दुर्लभ हैं. राज्य की योजना का उद्देश्य सुरक्षा, सुधार है पर्यावरण और वन्य जीवन का विकास, वन्यजीव अभयारण्यों/राष्ट्रीय उद्यानों का विकास और वन्यजीव आवास में सुधार ताकि विलुप्त होने का सामना कर रहे पक्षियों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान की जा सके। वन्यजीवों की सुरक्षा, विकास और वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन और उनके आवास में सुधार के लिए चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए `21.25 करोड़ के परिव्यय को मंजूरी दी गई है।

8.जल संसाधन प्रबन्धन तथा पर्यावरण

हर घर को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। जल प्रबंधन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. आईएमआईएस पर वार्षिक डेटा अपडेशन के बाद वेबसाइट, 1 अप्रैल, 2019 तक 54,469 बस्तियों में से, 34,844 बस्तियां पूरी तरह से कवर की गई हैं और ≥ 55 एलपीसीडी पानी प्राप्त कर रही हैं और 19,625 बस्तियां आंशिक रूप से कवर की गई हैं पानी मिल रहा है 55 एलपीसीडी। 1 अप्रैल, 2019 तक बस्तियों की स्थिति इस प्रकार है:
चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 19,625 आंशिक रूप से कवर की गई बस्तियों में से 765 बस्तियों को कवर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें राज्य क्षेत्र के तहत 76 बस्तियों और केंद्रीय क्षेत्र के तहत 689 बस्तियों को क्रमशः `110.00 करोड़ और `12.22 करोड़ के परिव्यय के साथ शामिल किया गया है। दिसंबर, 2019 तक 765 बस्तियों को सुरक्षित पेयजल सुविधा से कवर किया गया है, जिसमें केंद्रीय क्षेत्र के अंतर्गत 747 और राज्य क्षेत्र के अंतर्गत 18 बस्तियों को शामिल किया गया है।
भारत सरकार ने जल जीवन मिशन (JJM) लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान करना है। 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार। जल जीवन मिशन के तहत `2,896.54 करोड़ की 327 योजनाएं स्वीकृत की गई हैं और 1,87,860 कार्यात्मक सुविधाएं प्रदान करके इन 327 योजनाओं के माध्यम से 15,919 बस्तियों को कवर किया जाएगा। घरेलू कनेक्शन (एफएचटीसी)। राज्य में 13,48,841 घर हैं, जिनमें से 7,88,832 घरेलू कनेक्शन ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम के तहत उपलब्ध कराए गए हैं। इस प्रकार 58.48 प्रतिशत परिवारों के पास है राष्ट्रीय औसत 18.51 प्रतिशत घरों के मुकाबले घरेलू कनेक्शन उपलब्ध कराया गया है।
हैंड पंप कार्यक्रम: सरकार के पास हैंडपंप उपलब्ध कराने का एक कार्यक्रम चल रहा है, जिसमें कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। गर्मी के मौसम में पानी. कुल 39,157 हैण्डपम्प स्थापित किये गये हैं मार्च, 2019 तक। वर्ष 2019-20 के दौरान नवम्बर, 2019 तक 263 हैण्डपम्प स्थापित किये गये हैं।
फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई का महत्व सर्वविदित है। हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 55.67 लाख हेक्टेयर में से 5.83 लाख हेक्टेयर शुद्ध है बोया गया क्षेत्र. अनुमान है कि राज्य की अंतिम सिंचाई क्षमता लगभग 3.35 लाख हेक्टेयर है, इसमें से 0.50 लाख हेक्टेयर को प्रमुख सिंचाई के अंतर्गत लाया जा सकता है। मध्यम सिंचाई परियोजनाओं और शेष 2.85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को लघु सिंचाई योजनाओं के माध्यम से सिंचाई प्रदान की जा सकती है। दिसंबर, 2019 तक 2.80 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा के अंतर्गत लाया गया है।
प्रमुख और मध्यम सिंचाई: राज्य की एकमात्र प्रमुख सिंचाई परियोजना कांगड़ा जिले में शाहनहर परियोजना है। प्रोजेक्ट हो गया है पूरा हो चुका है और 15,287 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। कमांड क्षेत्र विकास कार्य प्रगति पर है और 15,287 हेक्टेयर में से 9,998.50 हेक्टेयर भूमि लाई जा चुकी है दिसंबर, 2019 तक कमांड क्षेत्र विकास गतिविधियों के तहत। मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के तहत, चेंजर क्षेत्र बिलासपुर 2,350 हेक्टेयर, सिधथा कांगड़ा, 3,150 हेक्टेयर और बल्ह घाटी लेफ्ट बैंक 2,780 हेक्टेयर का काम पूरा हो चुका है। सीएडी सिद्धाथा का कार्य प्रगति पर है और दिसंबर, 2019 तक 2,705.10 हेक्टेयर भूमि को सीएडी गतिविधियों के तहत लाया गया है। वर्तमान में मीडियम का कार्य सिंचाई परियोजना फिन्ना सिंह (सीसीए 4,025 हेक्टेयर) और जिला हमीरपुर में नादौन क्षेत्र (सीसीए 2,980 हेक्टेयर) प्रगति पर है। वर्ष 201920 के लिए 1,000 हेक्टेयर क्षेत्र का लक्ष्य है प्रमुख और मध्यम सिंचाई के तहत दिसंबर, 2019 तक 850 हेक्टेयर की उपलब्धि दर्ज की गई।
लघु सिंचाई: वर्ष 2019-20 के दौरान `330.62 करोड़ का बजट प्रावधान था राज्य क्षेत्र द्वारा 3700 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी। दिसंबर, 2019 तक 2,606.39 हेक्टेयर क्षेत्र को नवंबर, 2019 तक `134.00 करोड़ के व्यय के साथ कवर किया गया है।
कमांड क्षेत्र विकास: वर्ष 2019-20 के दौरान, `80.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है हिमाचल प्रदेश सरकार जिसमें HIMCAD के लिए `35.00 करोड़ शामिल हैं निर्मित और उपयोग की गई क्षमता के अंतर को पाटने के लिए पूर्ण लघु सिंचाई योजनाओं में गतिविधियाँ और शेष राशि प्रमुख/मध्यम सिंचाई और लघु सिंचाई योजनाओं के लिए है राज्य में केन्द्रांश सहित। (सीएडी गतिविधियाँ प्रदान करने के लिए 2,961 हेक्टेयर सीसीए का भौतिक लक्ष्य है, जिसमें से 1,629.68 हेक्टेयर दिसंबर, 2019 तक हासिल किया जा चुका है। सीएडी से प्रमुख सिंचाई शाहनहर और मध्यम सिंचाई सिद्धाथा परियोजनाओं को भारत सरकार के कमांड क्षेत्र विकास जल प्रबंधन कार्यक्रम के तहत वित्त पोषण के लिए शामिल किया गया था)।
बाढ़ नियंत्रण कार्य: वर्ष 2019-20 के दौरान सुरक्षा के लिए ₹ 238.38 करोड़ की राशि प्रदान की गई है 2,300 हेक्टेयर भूमि. नवंबर, 2019 तक `212.27 करोड़ की राशि 65.00 हेक्टेयर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खर्च किया गया। स्वां नदी चरण-IV और चौंच खड्ड के तटीकरण का कार्य प्रगति पर है।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन:8.9 प्लास्टिक कचरे से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए, राज्य सरकार ने विभिन्न कार्यक्रम चलाए हैं जागरूकता अभियान: प्लास्टिक प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में "पॉलिथीन हटाओ, पर्यावरण बचाओ", "स्वच्छता हीसेवा", इसके अलावा गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक के लिए एक नई बाय-बैक नीति शुरू करना। अपशिष्ट, जिसमें छात्रों, नेहरू युवा केंद्र और गैर सरकारी संगठनों, पीआरआई, यूएलबी और राज्य विभागों के स्वयंसेवकों ने भाग लिया। इस अभियान के दौरान एकत्र किए गए प्लास्टिक कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया गया सड़क निर्माण में और सीमेंट उद्योगों द्वारा आरडीएफ/ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। राज्य सरकार ने प्लास्टिक वस्तुओं के उपयोग और गंदगी फैलाने पर सख्ती से प्रतिबंध लगा दिया है। “प्लास्टिक एवं थर्मोकोल” के एक बार उपयोग के अतिरिक्त कटलरी"। वर्ष 2019-20 में 1,603 उल्लंघनकर्ताओं से `13.50 लाख का जुर्माना वसूला गया है। वर्ष 2019-20 में गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक कचरे के उपयोग हेतु योजना के तहत `49,125 की राशि राज्य में घरों और पंजीकृत कचरा बीनने वालों को 1,054 किलोग्राम निर्दिष्ट प्लास्टिक कचरे की खरीद पर भुगतान किया गया, 38.6 टन प्लास्टिक कचरा सीमेंट उद्योगों को भेजा गया और 5.53 टन प्लास्टिक सड़क निर्माण में उपयोग किया जाता है। राज्य सरकार ने स्थानीय शहरी निकायों द्वारा ठोस अपशिष्ट उत्पादन और उसके निपटान की दिन-प्रतिदिन की निगरानी के लिए एक ऑनलाइन तंत्र भी विकसित किया है। पर्यावरण प्रदूषण को कम करना और नगरपालिका ठोस कचरे के सुरक्षित निपटान को बढ़ावा देना।
जलवायु परिवर्तन पर राज्य ज्ञान कक्ष: विभाग में जलवायु परिवर्तन पर एक राज्य ज्ञान कक्ष स्थापित किया गया है पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, हिमाचल प्रदेश के साथ नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग हिमालयन इकोसिस्टम (एनएमएसएचई) के तहत भारत सरकार के पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की सहायता। जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता चार जिलों को कवर करते हुए ब्यास नदी बेसिन के लिए मूल्यांकन किया जा रहा है। कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में 1,200 से अधिक पंचायतों के 9,258 गाँव शामिल हैं।
राष्ट्रीय अनुकूलन निधि जलवायु परिवर्तन (एनएएफसीसी) के तहत स्वीकृत परियोजना का कार्यान्वयन: राष्ट्रीय अनुकूलन निधि के तहत एक कार्यक्रम तीन सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन लागू किया जा रहा है ₹ 20.00 करोड़ के वित्तीय परिव्यय के साथ जिला सिरमौर के विकास खंड। कार्यक्रम का उद्देश्य जलवायु संबंधी भेद्यता को कम करना और अनुकूली क्षमता में सुधार करना है आवश्यक सामाजिक इंजीनियरिंग और क्षमता निर्माण प्रक्रियाओं के साथ जलवायु स्मार्ट खेती प्रौद्योगिकियों का एक पैकेज पेश करके ग्रामीण महिलाओं सहित ग्रामीण छोटे और सीमांत किसानों का लचीलापन बढ़ाने के लिए बेहतर खाद्य सुरक्षा और उन्नत आजीविका विकल्पों का नेतृत्व करना। यह परियोजना 5 वर्षों में क्रियान्वित की जाएगी।
जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (एनएएफसीसी) और द्विपक्षीय वित्त पोषण के तहत प्रस्ताव: 8.12 पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा "हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में हिमनदों के विस्फोट और बाढ़ के खतरे को कम करने" पर `20.49 करोड़ के एक परियोजना प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। भारत सरकार।
हिमाचल के दो जिलों के लिए "जैव विविधता संरक्षण और लैंडस्केप प्रबंधन के माध्यम से ग्रामीण आजीविका की सुरक्षा- कौशल विकास" पर `250.00 करोड़ का एक परियोजना प्रस्ताव वित्त पोषण के लिए प्रदेश'' को भारत सरकार के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा भी मंजूरी दे दी गई है और जर्मन केएफडब्ल्यू को भेज दिया गया है।
राज्य स्तरीय पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार: हिमाचल प्रदेश पर्यावरण नेतृत्व पुरस्कार योजना पर्यावरण विभाग की नियमित योजना है। विज्ञान प्रौद्योगिकी। पुरस्कार विजेताओं को `6.25 लाख की राशि के 18 पुरस्कार दिए गए हैं (प्रत्येक 50,000 रुपये के 7 प्रथम पुरस्कार और 25,000 रुपये के 11 द्वितीय पुरस्कार) जिनमें 9 प्रमाण पत्र शामिल हैं सराहना की. इको विलेज का निर्माण एक टिकाऊ पर्यावरण है। राज्य सरकार पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से मॉडल इको विलेज लागू कर रही है। राज्य में योजना. यह योजना कम प्रभाव वाली जीवनशैली विकसित करने के परिप्रेक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर रही है ताकि "पारिस्थितिक पदचिह्न" को आधार मूल्यांकन के 50% तक कम किया जा सके। योजना का शुभारंभ. इस योजना के तहत मॉडल इको विलेज योजना को अपनाने के लिए चिन्हित गांव द्वारा 5 वर्षों की अवधि में `50.00 लाख का उपयोग किया जाएगा। 11 गांव हैं पूरे राज्य में चिन्हित किया गया है जहां यह योजना अनुमोदित इको ग्राम विकास योजनाओं के अनुसार कार्यान्वित की जा रही है।
कुफरी, शिमला में बायो-मीथेनेशन योजना की स्थापना: विभाग 2.5 MTPD बायो- स्थापित कर रहा है होटलों और आवासीय क्षेत्रों से निकलने वाले घोड़े के गोबर/बायोडिग्रेडेबल कचरे का उपयोग करके मिथेनीकरण संयंत्र कुफरी, शिमला में ट्रंकी और एंड टू एंड आधार (निपटान तक अपशिष्ट संग्रह) पर बायोगैस/बायो सीएनजी उत्पन्न करने के लिए क्षेत्र। विशेषज्ञ एजेंसी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया है और ₹ 60.00 लाख का भुगतान किया गया है वित्तीय वर्ष 2019-20 में इस प्रयोजन हेतु निर्धारित।
10 प्रदर्शन सूक्ष्म नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं की स्थापना: पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग स्थापित करेगा 10 प्रदर्शन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पीपीपी मोड पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हिमाचल प्रदेश में 10 अलग-अलग स्थानों पर लगभग 0.50 टन से 5 टन कचरे का निपटान करने की क्षमता वाली विशेषज्ञ एजेंसियों के माध्यम से सुविधाएं स्थापित की जाएंगी। MoEF&CC, भारत सरकार द्वारा `4.50 करोड़ के वित्त पोषण के प्रस्ताव को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी गई है।
अवैध खनन को रोकने और राज्य में खनन पट्टों के बेहतर प्रबंधन और निगरानी के लिए, सरकार ने 500 मीटर की दूरी के भीतर खनन गतिविधियों की निगरानी के अलावा नियमों के बेहतर प्रवर्तन की सुविधा के लिए एक ऑनलाइन जियो-पोर्टल प्लेटफॉर्म विकसित किया है। राज्य सरकार ने विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में बेहतर भागीदारी के लिए जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और पारिस्थितिक संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों के लिए कार्य नेटवर्क मंच विकसित किया है। लोगों को ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए दो शहरों शिमला और मनाली में "हॉर्न नॉट ओके" अभियान शुरू किया गया और आम जनता को इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की सुविधा प्रदान की गई। राज्य में ध्वनि प्रदूषण को देखते हुए एंड्रॉइड और आई-फोन उपयोगकर्ताओं के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन "शोर नहीं" विकसित किया गया है। अब तक 645 से अधिक उपयोगकर्ता मोबाइल ऐप पर पंजीकृत हो चुके हैं।
राज्य सरकार ने 2014 में जैव प्रौद्योगिकी नीति अधिसूचित की है। राज्य जैव प्रौद्योगिकी नीति के अनुसार, सरकार कृषि, बागवानी, पशुपालन, स्वास्थ्य के क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देकर हिमाचल प्रदेश को एक समृद्ध हिमालयी जैव-व्यवसाय केंद्र बनाने के लिए तैयार है। और राज्य के विकास के लिए जैव-संसाधन का उपयोग।
जैव संसाधनों के संरक्षण योजना के तहत मंडी और शिमला के किसानों की दो पंजीकृत समितियों को वेलेरियाना, कुथ और दमसुक गुलाब के पौधे वितरित किए गए।
1) वेलेरियाना के 23,600 पौधे और कुथ-शिव औषधि पौध उत्पादन सोसायटी, राजगढ़, गुमना, तहसील, जिला शिमला, एच.पी. के 850 पौधे।
2) वेलेरियाना के 10,500 पौधे और दमसुक गुलाब के 8,000 पौधे- भुज ऋषि किसान विकास समिति, शिल्ली बागी, थुनाग, मंडी, एच.पी.

9.उद्योग और खनन

औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन महत्वपूर्ण है और अर्थव्यवस्था के अन्य दो क्षेत्रों के साथ पिछले और आगे के सम्पर्कों के माध्यम से राज्य उत्पादन और रोज़गार के समग्र विकास को निर्धारित करने में एक निर्णायक भूमिका निभाता है। यह कुल सकल राज्य मूल्य वर्धन (जी.वी.ए.) का लगभग 30 प्रतिशत योगदान देता है। हालांकि, यह क्षेत्र कई आंतरिक और बाह्म आर्थिक निवेशों के लिए स्वैच्छिक है, जो इसके समग्र प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं।
पिछले कुछ वर्षो में हिमाचल प्रदेश ने औद्योगिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। भारत सरकार की औद्योगिक नीति पैकेज की अवधि में हिमाचल प्रदेश को विविध प्रकार के औद्योगिक आधार के साथ प्रस्थान चरण में प्रवेश करते पाया गया है, जिसमें कि ग्रामीण और पारम्परिक हथकरघा हस्तशिल्प, कुटीर, सूक्ष्म एवं लघु उद्योग (एस.एस.आई.) इकाईयों से लेकर आधुनिक वस्त्र, दूरसंचार उपकरण, जटिल इलैक्टॅनिक इकाईयां फार्मास्यूटिकल, ईन्जीनियरिंग, उच्च गुणवता वाले सुक्ष्म उपकरण और खाद्य प्रसंस्करण इकाईयां सम्मिलित हैं। राज्य में निवेश को बढ़ाने के लिए हाल ही में सरकार द्वारा बहुत सी पहलें की गई हैं।

प्रदेश में नवम्बर, 2019 तक 54,310 औद्योगिक इकाईयां कार्यरत थी जिसमें कि लगभग ₹49,974 करोड़ का निवेश हुआ है, जिससे लगभग 4,52 लाख लोगों को रोजगार मिला है। इसमें 140 बड़ी और 628 मध्यम स्तर की औद्योगिक इकाईयां शामिल है।
औद्योगिक क्षेत्र में रुझान: सकल राज्य मूल्य वर्धित (जीवीए) में योगदान के संदर्भ में औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन थोड़ा कम हुआ है 2017-18 की तुलना में 2018-19 में। मौजूदा कीमतों पर सकल राज्य मूल्य संवर्धन (जीएसवीए) में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान हर साल बढ़ रहा है, क्योंकि यह राज्य सरकार की पहल के कारण वर्ष 2014-15 में 26.69 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 29.79 प्रतिशत हो गया है। सक्रिय औद्योगिक नीति के रूप में, निवेशकों को प्रोत्साहन, निवेश को आकर्षित करने के लिए व्यापार करने में आसानी को सक्षम बनाना आदि। मौजूदा कीमतों पर सकल राज्य मूल्यवर्धन (जीएसवीए) में खनन और उत्खनन क्षेत्र का योगदान मामूली रूप से बढ़ गया है, क्योंकि यह 0.33 प्रतिशत से बढ़ गया है। वर्ष 2014-15 से वर्ष 2018-19 में 0.53 प्रतिशत, इस कारण से कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र अधिक योगदान दे रहे हैं और राज्य सरकार द्वारा अवैध खनन को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई के कारण भी। विवरण तालिका-9.1 में दर्शाया गया है।

औद्योगिक क्षेत्रों/संपदाओं का विकास: उच्च गुणवत्ता वाले औद्योगिक बुनियादी ढांचे का निर्माण और रखरखाव एक प्रमुख पूर्व-आवश्यकता है औद्योगिक विकास के लिए. चनोर में औद्योगिक क्षेत्र, कांगड़ा आ रहा है जिसके लिए भूमि उद्योग विभाग के नाम हस्तांतरित कर दी गई है और इस औद्योगिक क्षेत्र के साथ लगती खड्ड के संरक्षण कार्य और तटीकरण के लिए 6.95 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं।
निवेश आकर्षित करना: हमारा राज्य अपनी सक्रिय नीति, प्रोत्साहन और सहजता से अधिक से अधिक निवेश लाने के लिए प्रतिबद्ध है व्यवसाय करने की पहल। में एक मेगा ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन किया गया हिमाचल प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए 7 और 8 नवंबर, 2019 को धर्मशाला, कांगड़ा। `85,000 करोड़ के लक्ष्य के विरुद्ध, `96,000 करोड़ के 703 समझौता ज्ञापनों पर निवेशकों द्वारा हस्ताक्षर किए गए, जो हिमाचल में अपने प्रोजेक्ट स्थापित करना चाहते हैं। हिमाचल प्रदेश ने 13,600 करोड़ रुपये की 251 परियोजनाओं के लिए 27 दिसंबर, 2019 को शिमला में पहला ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह आयोजित किया।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): इस योजना के अंतर्गत दिसंबर, 2019 तक लक्ष्य के विरुद्ध 1,181 मामलों में से 766 मामलों में मार्जिन सहित विभिन्न बैंकों से ऋण प्रदान किया गया है `21.10 करोड़ का धन वितरण।
मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना (MMSY): मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना, हमाचली को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए शुरू की गई है युवा. इस वर्ष के दौरान सब्सिडी से जुड़े 687 मामले आये युवा उद्यमियों को अपना स्वरोजगार उद्यम शुरू करने में मदद करने के लिए बैंकों द्वारा `27.94 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
हिमाचल राज्य खाद्य मिशन: इस वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान, "हिमाचल राज्य खाद्य मिशन" के तहत 35 ₹ 8.09 करोड़ की अनुदान सहायता वाली परियोजनाएं स्वीकृत की गईं।
रेशम उत्पादन प्रदेश के महत्वपूर्ण कृषि आधारित ग्रामीण कुटीर उद्योगों में से एक है जो रेशम कोकून का उत्पादन करके अपनी आय को बढ़ाने के लिए लगभग 10,485 ग्रामीण परिवारों को लाभकारी रोजगार प्रदान कर रहा है। निजी क्षेत्र में 14 रेशम धागा रीलिंग इकाइयां स्थापित की गई हैं, अर्थात जिला कांगड़ा और बिलासपुर में पांच-पांच, हमीरपुर, मंडी, ऊना और सिरमौर में एक-एक सरकार की सहायता से। दिसंबर, 2019 तक 228.00 मीट्रिक टन रेशम कोकून का उत्पादन किया गया, जिसे 31.00 मीट्रिक टन कच्चे रेशम में परिवर्तित किया गया, जिससे राज्य में रेशम उत्पादों की बिक्री से लगभग 6.20 करोड़ रुपये की आय हुई।
खनिज राज्य के आर्थिक आधार का एक मूलभूत घटक हैं। राज्य सरकार राज्य के आंतरिक और पिछड़े क्षेत्रों में आर्थिक विकास लाने के लिए राज्य में खनिज भंडार के दोहन के लिए प्रतिबद्ध है। अवैध खनन रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई की जा रही है। वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान अवैध खनन के 5,602 मामले पकड़े गए, जिसके परिणामस्वरूप `3.81 करोड़ का राजस्व जब्त किया गया। जुर्माने/शमन शुल्क के एवज में प्राप्त धनराशि का विवरण तालिका में दर्शाया गया है। 9.2.
हिमाचल प्रदेश सरकार ने कई उद्योग विशिष्ट सुधार पहल की हैं जिससे समग्र कारोबारी माहौल में काफी सुधार हुआ है। व्यवसाय करने में आसानी को बेहतर बनाने के लिए, मौजूदा नियमों के सरलीकरण और युक्तिसंगत बनाने और शासन को अधिक कुशल और प्रभावी बनाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी की शुरूआत पर जोर दिया गया है। सिंगल विंडो पोर्टल को पूरी तरह से चालू कर दिया गया है और उद्योग से संबंधित सभी सेवाओं को उद्योग विभाग के सिंगल विंडो पोर्टल के तहत एकीकृत किया गया है, जो निवेशकों के साथ वन स्टॉप इंटरफेस के रूप में कार्य करेगा। परियोजनाओं की ऑनलाइन मंजूरी के लिए क़ानून और लोक सेवा गारंटी अधिनियम द्वारा समर्थित सभी विभागों द्वारा सख्त समयसीमा का पालन किया जाएगा। हिमाचल को "तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों" में नंबर एक राज्य का दर्जा दिया गया है।

10.श्रम और रोजगार

रोजगार: 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रदेश की कुल जनसंख्या का 30.05 प्रतिशत मुख्य श्रमिक के रूप में वर्गीकृत है, 21.80 प्रतिशत सीमांत श्रमिक और शेष 48.15 प्रतिशत गैर श्रमिक. कुल श्रमिकों (मुख्य+सीमांत) में से 57.93 प्रतिशत कृषक और 4.92 प्रतिशत खेतिहर मजदूर हैं, 1.65 प्रतिशत घरेलू उद्योग में लगे हुए हैं और 35.50 अन्य गतिविधियों में प्रतिशत. प्रदेश में नौकरी चाहने वालों को रोजगार सहायता/सूचना सेवा 3 क्षेत्रीय रोजगार कार्यालयों, 9 जिला रोजगार कार्यालयों के माध्यम से प्रदान की जाती है। 2 विश्वविद्यालय रोजगार सूचना और मार्गदर्शन ब्यूरो, 64 उप-रोजगार कार्यालय, शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए 1 विशेष रोजगार कार्यालय, 1 केंद्रीय रोजगार कक्ष। सभी 76 रोजगार कार्यालय कम्प्यूटरीकृत कर दिया गया है और 73 रोजगार कार्यालय ऑनलाइन हैं।
न्यूनतम मजदूरी:हिमाचल प्रदेश सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम-1948 के तहत न्यूनतम मजदूरी सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। के मामले में राज्य सरकार को सलाह देने का उद्देश्य श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दरें तय करना और संशोधित करना। राज्य सरकार ने अकुशल श्रेणी के श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी `225 से बढ़ाकर `250 प्रति दिन या `6,750 से `` कर दी है। 7,500 प्रति माह से प्रभावी 01.04.2019, न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के प्रावधान के तहत सभी मौजूदा 19 अनुसूचित रोजगारों में।
रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम: जिला स्तर पर रोजगार बाजार सूचना के तहत रोजगार डेटा एकत्र किया जा रहा है 1960 से कार्यक्रम। कुल रोजगार राज्य में 31.03.2019 तक सार्वजनिक क्षेत्र में प्रतिष्ठानों की संख्या 2,75,177 और निजी क्षेत्र में 1,78,369 थी, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में प्रतिष्ठानों की संख्या 4,399 और निजी क्षेत्र में 1,813 थी।
व्यावसायिक मार्गदर्शन: श्रम और रोजगार विभाग राज्य के युवाओं को व्यावसायिक/कैरियर मार्गदर्शन प्रदान करता है। इन मार्गदर्शन शिविरों में जानकारी देने के अलावा राज्य के युवाओं के लिए कार्यान्वित की जा रही योजनाओं/कल्याणकारी कार्यक्रमों, कौशल विकास, कैरियर विकल्प, रोजगार/स्वरोजगार के अवसरों आदि के बारे में जानकारी भी प्रदान की जाती है। इस विभाग के अधिकारी/सक्षम अधिकारी और विभिन्न विभाग/संगठनों के अधिकारी/प्रतिनिधि। इस वित्तीय वर्ष के दौरान (31.12.2019 तक) 300 व्यावसायिक/कैरियर मार्गदर्शन विभाग द्वारा शिविरों का आयोजन किया गया है इन शिविरों में 37,384 युवाओं ने भाग लिया।
केंद्रीय रोजगार प्रकोष्ठ: सभी औद्योगिक इकाइयों, संस्थानों को तकनीकी और उच्च कुशल जनशक्ति प्रदान करने के उद्देश्य से और प्रतिष्ठान, राज्य के श्रम एवं रोजगार निदेशालय में केंद्रीय रोजगार सेल की स्थापना की गई है जो वर्ष 2018-19 के दौरान अपनी सेवाएं प्रदान करने में लगा रहा। इस योजना के तहत, रोजगार चाहने वालों को एक ओर उनकी योग्यता के अनुसार निजी क्षेत्र में उपयुक्त नौकरियां खोजने में सहायता प्रदान की जाती है और दूसरी ओर उपयुक्त श्रमिकों की भर्ती के लिए सहायता प्रदान की जाती है। धन, सामग्री और समय की बर्बादी के बिना। केंद्रीय रोजगार सेल निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं के लिए अकुशल श्रम की आवश्यकता के लिए कैंपस साक्षात्कार आयोजित करता है। केंद्रीय रोजगार सेल ने 98 कैंपस साक्षात्कार आयोजित किए हैं, जिसमें 1,869 उम्मीदवारों को नौकरी मिली है और विभाग द्वारा सात नौकरी मेले भी आयोजित किए गए हैं, जहां 2,957 उम्मीदवारों को नौकरी मिली है। वित्तीय वर्ष 2019-20 (दिसंबर, 2019 तक) के दौरान राज्य के विभिन्न उद्योगों में रोजगार में रखा गया था।
विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए विशेष रोजगार कार्यालय: शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों (नेत्रहीन विकलांग) की नियुक्ति के लिए विशेष रोजगार कार्यालय , सुनने में अक्षम और चलने में अक्षम) वर्ष 1976 के दौरान श्रम और रोजगार निदेशालय में स्थापित किया गया था। यह विशेष रोजगार कार्यालय व्यावसायिक क्षेत्र में विशेष रूप से सक्षम उम्मीदवारों को सहायता प्रदान करता है। मार्गदर्शन और सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रोजगार सहायता भी प्रदान करता है। वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक कुल 1,403 विशेष योग्यजन व्यक्तियों को लाइव पर लाया गया। विशेष रोजगार कार्यालय के रजिस्टर से कुल संख्या 18,370 हो गई और 7 शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को रोजगार में रखा गया।
कर्मचारी बीमा और भविष्य निधि योजना: कर्मचारी राज्य बीमा सोलन, परवाणू के क्षेत्रों में लागू है। सोलन जिले में बरोटीवाला, नालागढ़, बद्दी, मैहतपुर, ऊना जिले में बाथरी और गगरेट, सिरमौर जिले में पांवटा साहिब और काला अंब, बलियासपुर जिले में गोलथाई, मंडी जिले में मंडी, रत्ती, नेर चौक, भंगरोटू, चक्कर और गुटकर और मैं जिला शिमला में औद्योगिक क्षेत्र शोघी और शिमला का नगर निगम क्षेत्र। हिमाचल प्रदेश में अनुमानित 3,14,720 बीमित व्यक्तियों वाले लगभग 9,733 प्रतिष्ठान ईएसआई योजना के अंतर्गत आते हैं। मार्च, 2019 तक 18,443 प्रतिष्ठानों में लगभग 15,80,258 श्रमिकों को कर्मचारी भविष्य निधि योजना में लाया गया है।
भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (आरई और सीएस) अधिनियम-1996 और उपकर अधिनियम- 1996: इसके तहत अधिनियम में मातृत्व/पितृत्व प्रदान करने जैसी कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं लाभ, विकलांगता पेंशन, सेवानिवृत्ति पेंशन, पारिवारिक पेंशन, चिकित्सा सहायता, स्वयं और दो बच्चों तक के विवाह के लिए वित्तीय सहायता, कौशल विकास भत्ता, महिला श्रमिकों को साइकिल और वॉशिंग मशीन प्रदान करना, लाभार्थियों को इंडक्शन हीटर या सोलर कुकर और सोलर लैंप प्रदान करना। लगभग 2,082 प्रतिष्ठान पंजीकृत हैं श्रम और रोजगार विभाग और 1,98,556 लाभार्थी हिमाचल प्रदेश भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं और `133.82 करोड़ की लाभ राशि है। विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत पात्र लाभार्थियों को सुविधाएं प्रदान की गई हैं। एच.पी. के पास 552.41 करोड़ रुपये जमा किये गये हैं। भवन एवं अन्य निर्माण कल्याण बोर्ड, शिमला दिसंबर, 2019 तक।
कौशल विकास भत्ता योजना: इस वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान `100 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया गया है कौशल विकास भत्ता योजना के तहत किया गया। इस योजना के तहत प्रावधान है राज्य के पात्र बेरोजगार युवाओं को उनके कौशल उन्नयन और उनकी रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल विकास भत्ता। यह भत्ता `1,000 प्रति माह और 50 प्रतिशत के हिसाब से देय है या अधिक स्थायी शारीरिक रूप से विकलांग कौशल विकास प्रशिक्षण की अवधि के लिए `1,500 प्रति माह, अधिकतम दो वर्ष की अवधि के अधीन। वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान दिसम्बर, 2019 तक की राशि 65,522 लाभार्थियों के बीच `31.26 करोड़ का कौशल विकास भत्ता वितरित किया गया है और 122 लाभार्थियों के बीच `3.21 लाख औद्योगिक कौशल विकास भत्ता भी वितरित किया गया है। लाभार्थी.
बेरोजगारी भत्ता योजना: इस वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान `40.00 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया गया है बेरोजगारी भत्ता योजना के अंतर्गत। इस योजना के तहत है पात्र बेरोजगार युवाओं को एक निश्चित अवधि के लिए `1,000 प्रति माह और 50 प्रतिशत या अधिक स्थायी शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए `1,500 प्रति माह के भत्ते का प्रावधान। अधिकतम 2 वर्ष की अवधि के लिए महीना. इस अवधि के दौरान दिसम्बर, 2019 तक कुल 45,323 लाभार्थियों को बेरोजगारी भत्ता योजना के तहत लाभान्वित किया गया है और `28.52 करोड़ का वितरण किया गया है।
रोजगार कार्यालय सूचना: इस वित्तीय वर्ष के दौरान दिसंबर, 2019 तक 1,96,104 आवेदक पंजीकृत हुए और 1,079 प्लेसमेंट हुए सरकारी क्षेत्र में अधिसूचित के विरूद्ध किये गये अधिसूचित रिक्तियों 6,984 के मुकाबले निजी क्षेत्र में रिक्तियां 1,369 और 5,332 रखी गईं। दिसंबर, 2019 तक सभी रोजगार कार्यालयों के लाइव रजिस्टरों पर समेकित संख्या 8,49,371 है। अप्रैल से दिसंबर, 2019 तक रोजगार कार्यालयों द्वारा किए गए जिलेवार पंजीकरण और प्लेसमेंट नीचे तालिका 12.1 में दिए गए हैं: -
एचपीकेवीएन की स्थापना "राज्य की युवा पीढ़ी (15-35 वर्ष) के रोजगार योग्य कौशल और आजीविका क्षमता को बढ़ावा देने और उन्हें निरंतर विकास के लिए तैयार करने" के मिशन के साथ की गई थी। भारत और विश्व में बदलती नौकरी और उद्यमशीलता के माहौल में सीखना”। हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम (एचपीकेवीएन) हिमाचल प्रदेश कौशल की प्राथमिक कार्यान्वयन एजेंसी है विकास परियोजना (एचपीएसडीपी), हिमाचल प्रदेश सरकार की प्रमुख रोजगार और आजीविका योजना। यह प्रधानमंत्री कौशल विकास का राज्य कार्यान्वयन भागीदार भी है योजना (पीएमकेवीवाई)। कौशल विकास और उद्यमिता के लिए राष्ट्रीय नीति के अनुरूप योजनाओं का उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से राज्य में युवाओं के तकनीकी और व्यावसायिक कौशल को बढ़ाना है। और प्रशिक्षण। एचपीकेवीएन का तात्कालिक लक्ष्य 2018-22 की अवधि में एक लाख से अधिक युवा पुरुषों और महिलाओं को प्रशिक्षित करना है।
संगठन का व्यापक उद्देश्य राज्य की युवा आबादी को इसके लिए तैयार करना है भारत और दुनिया भर में उभर रहा है। एचपीकेवीएन हिमाचल प्रदेश के युवाओं के लिए रोजगार क्षमता बढ़ाने और उन्हें बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की योजना और सुविधा प्रदान करता है। प्लेसमेंट. प्रशिक्षणों का उद्देश्य उद्यमिता को बढ़ावा देना और छोटे पैमाने के व्यवसाय स्टार्ट-अप की स्थापना करना भी है।
1) पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम: 1,080 हिमाचली युवाओं को 11 नौकरी भूमिकाओं में प्रशिक्षित करने और उन्हें रोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से 8 क्षेत्रों में दिसंबर, 2016 में एक अल्पकालिक पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था।
2) बैचलर ऑफ वोकेशनल स्टडीज (बी.वोक.) कार्यक्रम: उच्च शिक्षा विभाग (डीओएचई) ने बी.वोक. की शुरुआत की है। राज्य के 12 शासकीय महाविद्यालयों में कार्यक्रम, शासकीय। शैक्षणिक वर्ष 2017-18 से कॉलेज बिलासपुर, चंबा, धर्मशाला (कांगड़ा), नूरपुर (कांगड़ा), कुल्लू, मंडी, संजौली (शिमला), रामपुर (शिमला), ऊना, हमीरपुर, सोलन और नाहन (सिरमौर)। कार्यक्रम वर्तमान में दो व्यावसायिक धाराओं में उपलब्ध है: खुदरा प्रबंधन और पर्यटन और आतिथ्य। इसे 4 प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) की मदद से कार्यान्वित किया जा रहा है। टी यह कार्यक्रम उच्च शिक्षा के स्नातक स्तर के भीतर एनएसक्यूएफ से जुड़ा हुआ है और अकादमिक (40 प्रतिशत) और कौशल (60 प्रतिशत) घटकों का उपयुक्त मिश्रण प्रदान करता है। कार्यक्रम का लक्ष्य है स्नातकों की रोजगार क्षमता में वृद्धि करना और उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करना।
3) प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई): एचपीकेवीएन वर्तमान में 22 प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं के साथ 15 क्षेत्रों में पीएमकेवीवाई 2.0 केंद्र प्रायोजित राज्य प्रबंधित (सीएसएसएम) कार्यक्रम लागू कर रहा है। कार्यक्रम का उद्देश्य एनएसडीसी और कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (भारत सरकार) के सहयोग से हिमाचल प्रदेश के युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक, एनएसक्यूएफ-संरेखित पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित करना है।
हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम के अन्य कार्यक्रम:
1) उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) की स्थापना: राज्य की दीर्घकालिक कौशल विकास आवश्यकताओं के लिए संस्थागत ढांचा तैयार करने के लिए वाकनाघाट में एक उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित किया जा रहा है। एडीबी सहायता प्राप्त हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना के अंतर्गत ₹ 68.00 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ सोलन। यह संस्था आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता का प्रशिक्षण प्रदान करेगी।
2) प्रतिष्ठित सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापन: उच्च और महत्वाकांक्षी कौशल पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से, एचपीकेवीएन ने विभिन्न सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। उच्च आकांक्षा उद्योग में लगभग 7,370 हिमाचली युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए NIELIT, CDAC, CTR, NIFM, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, ICAI, बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय और NIFTEM की तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वेब डिजाइनिंग, मशीन लर्निंग, उन्नत कर कानून आदि जैसी संचालित नौकरी भूमिकाएँ।
3) अंग्रेजी, रोजगार और उद्यमिता कौशल और बीएफएसआई क्षेत्र के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रम: कौशल को रोजगार से जोड़ने की अत्यधिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए, एचपीकेवीएन द्वारा हिमाचल के युवाओं की सॉफ्ट स्किल के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। एचपीकेवीएन ने अंग्रेजी, रोजगार और उद्यमिता कौशल और बीएफएसआई में प्रशिक्षण प्रदान करने का लक्ष्य रखा है शैक्षणिक सत्र 2020-21 से हिमाचल प्रदेश के सरकारी कॉलेजों/राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में सेक्टर। प्रशिक्षण कार्यक्रम में अंग्रेजी के तहत 4,700 छात्रों/उम्मीदवारों को शामिल किया जाएगा। रोजगार एवं उद्यमिता कौशल कार्यक्रम और बीएफएसआई क्षेत्र में तीन वर्षों में 5,000 छात्र।
4) 50 आईटीआई, महिला पॉलिटेक्निक रेहान और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में उपकरणों और उपकरणों का उन्नयन: एचपीएसडीपी 50 आईटीआई के उन्नयन की सुविधा भी प्रदान कर रहा है, जहां 23 ट्रेड एससीवीटी से एनसीवीटी प्रमाणपत्र में परिवर्तित हो जाएंगे। इससे 23,000 छात्रों को फायदा होगा. परियोजना के तहत वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान ₹ 93.00 करोड़ की राशि खर्च की जानी है।
5) हिमाचल प्रदेश के सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) के माध्यम से अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम: एचपीकेवीएन ने अपने एचपी कौशल विकास परियोजना के तहत अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। 38 आईटीआई में कौशल और बहु कौशल प्रशिक्षण और 4,500 से अधिक छात्रों को ऑटोमोटिव, निर्माण, नलसाजी, आईटी-आईटीईएस, पूंजीगत सामान, परिधान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नामांकित किया गया है। और मेड-अप्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर, सौंदर्य और कल्याण, आयरन एंड स्टील, मीडिया और मनोरंजन आदि। इसका उद्देश्य उच्च रोजगार क्षमता वाले बहु-कुशल कार्यबल का निर्माण करना है। उद्योग एवं स्वरोजगार क्षेत्र।
6) स्नातक नौकरी प्रशिक्षण कार्यक्रम: 13 सरकार के अंतिम वर्ष के स्नातक छात्रों की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए। डिग्री कॉलेजों, एचपीकेवीएन ने एनएसक्यूएफ संरेखित स्नातक ऐड-ऑन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है अपने मुख्य अध्ययन के पूरक क्षेत्रों में। उदाहरण के लिए - बीएफएसआई, इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, सौंदर्य और कल्याण और परिधान क्षेत्र। वर्ष के दौरान 5 कॉलेजों में 500 से अधिक छात्रों ने अपना प्रशिक्षण पूरा किया है 2019-20. वर्तमान में, राज्य भर के 13 कॉलेजों में 1,590 छात्र प्रशिक्षण ले रहे हैं। शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के दौरान, 15 और सरकारी डिग्री कॉलेजों को 5500 प्रशिक्षण के लिए कवर किया जाएगा स्नातक नौकरी प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत छात्र।
7) प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) के माध्यम से अन्य अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम: एचपीकेवीएन ने ऑटोमोबाइल, विनिर्माण, बिजली जैसे विभिन्न क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश के 8,000 से अधिक युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण सेवा प्रदाताओं को अपने साथ जोड़ा है। वर्ष 2019-20 में निर्माण और पाइपलाइन, बीएफएसआई, आईटी-आईटीईएस, इलेक्ट्रॉनिक्स, हेल्थकेयर, पर्यटन और आतिथ्य आदि। इसके अतिरिक्त वर्ष 2020-21 में 12,000 से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित किया जाना है।
8) विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) का आजीविका आधारित कौशल प्रशिक्षण: एचपीकेवीएन ने रोजगार के पोषण के लिए विकलांग व्यक्तियों के लिए आजीविका आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम 'नव धारणा' शुरू किया है। और दिव्यांग व्यक्तियों के बीच उद्यमिता कौशल। खुदरा, आतिथ्य, कृषि और खाद्य में लगभग 300 दिव्यांगजनों को प्रशिक्षण देने के लिए प्रशिक्षण सेवा प्रदाता के चयन की प्रक्रिया प्रसंस्करण क्षेत्रों का कार्य प्रगति पर है।
9) शहरी आजीविका केंद्र (सीएलसी), ग्रामीण आजीविका केंद्र (आरएलसी) और मॉडल कैरियर केंद्र (एमसीसी): राज्य भर में कौशल विकास गतिविधियों के लिए संस्थागत सहायता प्रदान करने के लिए निर्माण शहरी आजीविका केंद्र (सीएलसी), ग्रामीण आजीविका केंद्र (आरएलसी) और मॉडल कैरियर केंद्र एमसीसी) का कार्य प्रगति पर है। मंडी जोन में सीएलसी सुंदरनगर, सीएलसी शमशी और आरएलसी सदियाना का निर्माण कार्य किया गया है पूरा हो चुका है और इन सीएलसी और आरएलसी में प्रशिक्षण जल्द ही शुरू किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, श्रम एवं रोजगार विभाग के सहयोग से 9 एमसीसी का निर्माण/नवीनीकरण किया जा रहा है हिमाचल के युवाओं को उनकी छुट्टियों के साथ उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उचित कैरियर परामर्श सहायता प्रदान की जाती है और साथ ही उन्हें देश भर में नौकरी के अवसरों के लिए राष्ट्रीय कैरियर पोर्टल तक पहुंच प्रदान की जाती है।

11.ऊर्जा

एक पहाड़ी राज्य होने के कारण हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत ऊर्जा के दोहन की प्राकृतिक शक्ति है। राज्य में जलविद्युत उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं यह देश के जल विद्युत केंद्र के रूप में जाना जाता है। जल विद्युत विकास हिमाचल प्रदेश राज्य की आर्थिक वृद्धि का प्रमुख इंजन है, क्योंकि यह प्रत्यक्ष और महत्वपूर्ण बनाता है राजस्व सृजन, रोजगार के अवसर और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के मामले में अर्थव्यवस्था में योगदान।
हिमाचल प्रदेश राज्य की अनुमानित जल विद्युत क्षमता 27,436 मेगावाट है, जिसमें से 24,000 मेगावाट का आकलन दोहन योग्य के रूप में किया गया है। हिमाचल प्रदेश पर्यावरण की सुरक्षा और पारिस्थितिकी को बनाए रखने के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक चिंताओं की रक्षा के बदले में संतुलन क्षमता को त्यागने का निर्णय लिया है।
लगभग 24,000 मेगावाट की कुल दोहन योग्य क्षमता में से, 20,912 मेगावाट की क्षमता पहले से ही विभिन्न क्षेत्रों के तहत आवंटित की गई है। राज्य में तेजी आ रही है सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से जलविद्युत विकास की गति। विभिन्न क्षेत्रों के तहत अब तक लगभग 10,596.27 मेगावाट की क्षमता का दोहन किया जा चुका है (तालिका 11.1)।
ऊर्जा निदेशालय की वित्तीय वर्ष 2019-20 (दिसंबर 2019 तक) के दौरान प्राप्त भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धियां
1) नीति संशोधन: हिमाचल प्रदेश सरकार ने दिनांक 19/09/2019 को मौजूदा जलविद्युत नीति में निम्नलिखित संशोधन अधिसूचित किए हैं।
a) किसी भी इक्विटी परिवर्तन, सरकार की पूर्वानुमति के बिना कंपनी का नाम बदलने पर हिमाचल सरकार द्वारा न्यूनतम `20,000/मेगावाट से `20.00 लाख तक का जुर्माना तय किया गया है। .
बी) सुन्नी, बांध परियोजना, लुहरी स्टेज- I एचईपी (210 मेगावाट) और धौलासिद्ध एचईपी (66 मेगावाट) के संबंध में, ऋण इक्विटी अनुपात 80:20 की अनुमति दी गई है।
सी) लुहरी चरण- I, धौलासिद्ध और डुगर के लिए 50 प्रतिशत एसजीएसटी की प्रतिपूर्ति के प्रावधान की अनुमति दी गई है। मुफ्त बिजली रॉयल्टी स्लैब में कुछ रियायतें दी गई हैं।
2) फ्री और इक्विटी पावर से प्राप्त राजस्व: वित्त वर्ष 2019-2020 के लिए बजट अनुमान `89.00 करोड़ था, जिसमें से 31 तारीख तक हिमाचल सरकार के खजाने में राशि जमा हो गई। दिसंबर 2019 में `850.00 करोड़ था और मार्च 2020 तक अतिरिक्त `45.00 करोड़ प्राप्य है।
3)राज्य में जलविद्युत परियोजनाओं की शुरुआत: राज्य में तीन परियोजनाएं शुरू की गई हैं जिनके नाम हैं जियोरी (9.60 मेगावाट), रौरा (12 मेगावाट) और राला (13 मेगावाट)। दो परियोजनाएं अर्थात्, (सैलम 9 मेगावाट और कुवार्सी-II 15 मेगावाट) के मार्च, 2020 तक चालू होने की उम्मीद है।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड निम्नलिखित तालिका एचपीएसईबी लिमिटेड की विभिन्न योजनाओं को सूचीबद्ध करती है:

Future Plans of the Department:
1) HPSEBL के सभी कार्यालयों का कम्प्यूटरीकरण।
2) हिमाचल प्रदेश राज्य में उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण और विश्वसनीय बिजली प्रदान करने के लिए नए सब-स्टेशनों और एचटी/एलटी लाइनों का विस्तार और निर्माण।
3) टी एंड डी घाटे को कम करने के लिए।

एचपीपीसीएल के माध्यम से संचालन/निष्पादन चरण के तहत परियोजनाएं इस प्रकार हैं:
1) जिला किन्नौर में काशांग चरण-IV (48 मेगावाट) और जिला शिमला में चिरगांव मझगांव एचईपी (60 मेगावाट) की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) डीओई सरकार के साथ मूल्यांकन के अग्रिम चरण में है। हिमाचल प्रदेश के.
2) जिला मंडी में त्रिवेणी महादेव एचईपी (78 मेगावाट), जिला लाहुल और स्पीति में जिप्सा बांध परियोजना (300 मेगावाट) और जिला किन्नौर में बारा खंबा एचईपी (45 मेगावाट) विभिन्न चरणों में हैं। जांच का.
3) तीसरे चरण में 350 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता वाली दो परियोजनाएं शुरू की जाएंगी और इन परियोजनाओं के लिए प्रारंभिक सर्वेक्षण और जांच कार्य शुरू किए जा रहे हैं। जिला चंबा में लुजई (45 मेगावाट) की प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) तैयार कर ली गई है और जिला किन्नौर में खब एचईपी (305 मेगावाट) की प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट पर काम शीघ्र ही शुरू किया जाएगा।

सौर परियोजनाएं: एचपीपीसीएल ने श्री नैना देवी जी के पास 5 मेगावाट का बेर्रा डोल सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया है। जिला बिलासपुर में तीर्थस्थल। यह काम मेसर्स भारत को सौंपा गया था हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और अनुबंध समझौते पर 22.07.2017 को हस्ताक्षर किए गए थे। प्लांट को 07.12.2018 को एचपीएसईबीएल ग्रिड के साथ सफलतापूर्वक सिंक्रोनाइज़ किया गया है। परियोजना 04.01.2019 से संचालित है। एचपीपीसीएल ने इस परियोजना से 8.58 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया है और 31.12.2019 तक बिजली की बिक्री से उत्पन्न राजस्व `3.53 करोड़ था। एचपीपीसीएल ऊना जिले के अघलोर में 10 मेगावाट क्षमता का एक और सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का इरादा रखता है। योजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
निर्माण/कार्यान्वयन चरण के तहत परियोजनाओं के संबंध में वित्तीय उपलब्धियां: निम्नलिखित तालिका निर्माणाधीन परियोजनाओं की उपलब्धियों को प्रस्तुत करती है / हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तहत कार्यान्वयन चरण इस प्रकार हैं:

एच.पी. पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड:हिमाचल प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPPTCL) सरकार का एक उपक्रम है। हिमाचल प्रदेश के ए के साथ इसका उद्देश्य हिमाचल प्रदेश में ट्रांसमिशन नेटवर्क को मजबूत करना और आगामी उत्पादन संयंत्रों से बिजली की निकासी को सुविधाजनक बनाना है। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा निगम को सौंपे गए कार्यों में अन्य बातों के अलावा सभी नए कार्यों का निष्पादन शामिल था; 66 केवी की दोनों ट्रांसमिशन लाइनें और सब-स्टेशन और उससे ऊपर वोल्टेज रेटिंग, निर्माण, उन्नयन, ट्रांसमिशन नेटवर्क को मजबूत करने और बिजली की निकासी के लिए हिमाचल प्रदेश के ट्रांसमिशन मास्टर प्लान का निष्पादन। एचपीपीटीसीएल एक राज्य ट्रांसमिशन यूटिलिटी (एसटीयू) के कार्यों का निर्वहन कर रहा है और सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी के साथ ट्रांसमिशन से संबंधित मुद्दों का समन्वय कर रहा है। प्राधिकरण, विद्युत मंत्रालय (भारत सरकार), हिमाचल प्रदेश सरकार और एचपीएसईबी लिमिटेड। इसके अलावा, निगम ट्रांसमिशन की योजना और समन्वय के लिए भी जिम्मेदार है। आईपीपी, सीपीएसयू, राज्य पीएसयू, एचपीपीसीएल और अन्य राज्य/केंद्र सरकार एजेंसियों से संबंधित मुद्दे।
उपरोक्त के अलावा, KfW द्वारा वित्त पोषित 57 मिलियन यूरो की राशि वाले ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर-I (GEC-I) पर अक्टूबर, 2015 में हस्ताक्षर किए गए हैं। परियोजनाओं के निम्नलिखित 13 पैकेज विभाजित हैं: कार्यों के कार्यान्वयन के लिए 14 उप पैकेजों में से, जिनमें से 9 परियोजनाएं प्रदान की जा चुकी हैं और 1 परियोजनाएं बोली प्रक्रिया में हैं। शेष तीन पैकेज योजना से बाहर कर दिया गया. निम्नलिखित तालिका हरित ऊर्जा गलियारे के तहत विभिन्न योजनाओं को दर्शाती है:-
हिमऊर्जा ने नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के वित्तीय सहयोग से पूरे राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। भारत सरकार एवं राज्य सरकार। हिमऊर्जा राज्य में लघु जल विद्युत (5 मेगावाट तक) के दोहन के लिए भी सरकार को सहायता प्रदान कर रही है। हिमऊर्जा द्वारा निम्नलिखित कार्यक्रम शुरू किए गए हैं:

सौर ऊर्जा संयंत्र/परियोजनाएं:हिमुर्जा पूरे राज्य में विभिन्न स्थानों पर बिजली संयंत्र भी चलाता है।

निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से निष्पादित की जा रही 5 मेगावाट क्षमता तक की लघु जल विद्युत परियोजनाएं:चालू वित्तीय वर्ष के दौरान, कुल मिलाकर 4 परियोजनाएं दिसंबर, 2019 तक 13.80 मेगावाट की क्षमता चालू की गई है। मार्च, 2020 तक अनुमानित उपलब्धि लगभग 20.00 मेगावाट होगी। वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए क्षमता 20.00 मेगावाट अतिरिक्त जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। 5 मेगावाट क्षमता तक आवंटित परियोजनाओं की अद्यतन स्थिति (दिसंबर, 2019 तक) इस प्रकार है।

100 किलोवाट तक की माइक्रो हाइडल परियोजनाएं और राज्य क्षेत्र के तहत परियोजनाएं:दिसंबर 2019 तक 55 माइक्रो हाइडल परियोजनाएं आवंटित की गईं। जबकि, राज्य क्षेत्र के तहत 32.94 मेगावाट क्षमता की 12 परियोजनाएं दिसंबर 2019 तक स्वीकृत की गईं। 12 परियोजनाओं में से 4 परियोजनाएं चालू की गईं, 3 को बीओटी आधार पर आवंटित किया गया। और 5 परियोजनाएं पूर्व कार्यान्वयन समझौते के चरण में थीं।
राज्य में जल विद्युत क्षमता का दोहन करने की दृष्टि से, व्यापार करने में आसानी के हिस्से के रूप में कुछ नीतिगत मुख्य बातें नीचे दी गई हैं:
1) हाइड्रो पावर नीति में 2018 में संशोधन किया गया।
2) मुफ्त बिजली रॉयल्टी को तर्कसंगत बनाया गया।
3) 10 मेगावाट तक की परियोजनाओं के लिए एचपीएसईबीएल द्वारा बिजली की अनिवार्य खरीद।
4) टैरिफ निर्धारण प्रक्रिया सुव्यवस्थित हुई।
5) 25 मेगावाट तक की परियोजनाओं के लिए खुले अतिरिक्त शुल्क में छूट।
6) औद्योगिक इकाइयों के कैप्टिव उपयोग के लिए 10 मेगावाट तक की परियोजनाओं का आवंटन।
7) अग्रिम प्रीमियम और क्षमता वृद्धि शुल्क में कमी।
8) सरकारी/वन भूमि के लिए नाममात्र शुल्क की घोषणा की गई।

12.पर्यटन और परिवहन

हिमाचल प्रदेश एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और पर्यटन राज्य की वृद्धि, विकास और अर्थव्यवस्था में बहुत योगदान दे रहा है। पर्यटन क्षेत्र का योगदान राज्य का सकल घरेलू उत्पाद लगभग 7 प्रतिशत है जो काफी महत्वपूर्ण है। राज्य भौगोलिक और पर्यटन गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक सभी बुनियादी संसाधनों से संपन्न है सांस्कृतिक विविधता, स्वच्छ और शांतिपूर्ण वातावरण और सुंदर जलधाराएँ, पवित्र मंदिर, ऐतिहासिक स्मारक और मैत्रीपूर्ण और मेहमाननवाज़ लोग।
हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को बहुत उच्च प्राथमिकता दी गई है और सरकार ने इसके विकास के लिए उपयुक्त बुनियादी ढांचा विकसित किया है जिसमें सार्वजनिक उपयोगिता भी शामिल है सेवाएँ, सड़कें, संचार नेटवर्क, हवाई अड्डे, परिवहन सुविधाएँ, जल आपूर्ति और नागरिक सुविधाएँ आदि। 31 दिसंबर, 2019 तक लगभग 3,679 होटल जिनकी बिस्तर क्षमता लगभग है विभाग में 1,03,053 पंजीकृत हैं। इसके अलावा, राज्य में लगभग 2,189 होम स्टे इकाइयाँ पंजीकृत हैं जिनमें लगभग 12,181 बिस्तर हैं।
राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए, भारत सरकार एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता को मंजूरी दे दी है। हिमाचल प्रदेश को 95.16 मिलियन राज्य में पर्यटन अवसंरचना का विकास। किश्त-3 के समुदाय आधारित पर्यटन (सीबीटी) के तहत 6 जिलों की 14 पंचायतों में कौशल और आजीविका आधारित प्रशिक्षण दिया जा रहा है। चंबा, बिलासपुर, कुल्लू, मंडी, सोलन और शिमला। 31 दिसंबर, 2019 तक कुल 3,544 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया है, भारत सरकार के आर्थिक मामलों के विभाग ने 1,892 करोड़ रुपये की लागत वाली एक नई पर्यटन परियोजना को मंजूरी दी गई। उप परियोजना अवधारणा रिपोर्ट की तैयारी पहले ही पूरी हो चुकी है। परियोजनाओं को राज्य द्वारा अनुमोदित किया गया है स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति।
स्वदेश दर्शन योजना: भारत सरकार, पर्यटन मंत्रालय ने परियोजना के लिए `8,685 लाख मंजूर किए हैं। "हिमाचल प्रदेश में हिमालय सर्किट का एकीकृत विकास" अंतर्गत स्वदेश दर्शन योजना. इस योजना के तहत कुल 12 पर्यटन विकास को मंजूरी दी गई है।
विभाग ने मंदिर परिसर, इसके पथ और तीर्थ परिवहन प्रणाली के विकास के लिए `45.06 करोड़ का डीपीआर प्रस्तुत किया है पर्यटन मंत्रालय, सरकार की प्रशाद योजना के तहत जिला ऊना में मां चिंतपूर्णी मंदिर की स्थापना। सरकार के. भारत की।
पर्यटन विभाग निजी क्षेत्र को विकास के लिए प्रोत्साहित कर रहा है सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत राज्य में पर्यटन संबंधी बुनियादी ढांचा। इनमें आदि हिमानीचामुंडाजी, धर्मशाला-मेक्लोडगंज, भुंतर से बिजली महादेव तक रोपवे परियोजना शामिल है। और पलचान से रोहतांग रोपवे परियोजनाएं। इसके अलावा, विभाग ने श्री आनंदपुर साहिब जी से श्री नैना देवी जी तक रोपवे के लिए पंजाब सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
प्रचार: पर्यटन विभाग विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री जैसे ब्रोशर/पैम्फलेट, पोस्टर, कैलेंडर, ब्लो तैयार करता है। यूपीएस आदि और विभिन्न पर्यटन मेलों में भाग लेता है देश-विदेश में उत्सवों का आयोजन। यह विभाग प्रचार फिल्मों और फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है।
नागरिक उड्डयन: राज्य में उच्च श्रेणी के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए, तीन मौजूदा से नियमित उड़ानें हो रही हैं हवाई अड्डे यानी जुब्बड़हट्टी (शिमला), भुंतर (कुल्लू) और गग्गल (कांगड़ा) हिमाचल प्रदेश में. सरकार इन हवाई पट्टियों के विस्तार के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। मंडी जिले में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे के निर्माण का प्रस्ताव विचाराधीन है। राज्य सरकार। इसके लिए नागचला में भूमि चिन्हित कर ली गई है।
नई राहें नई मंजिलें: राज्य सरकार ने एक नई योजना "नई राहें नई मंजिलें" शुरू की है। पर्यटन की दृष्टि से अनछुए क्षेत्रों के विकास हेतु ₹ 50.00 करोड़ का परिव्यय। राज्य में ईको टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म वाटर स्पोर्ट्स और स्की टूरिज्म विकसित करने के लिए बीड़-बिलिंग जिला कांगड़ा, चांसल शिमला, जंजैहली मंडी, लारजी जलाशय, पौंग बांध की पहचान की गई है और कंगनीधार (मंडी) और दो नए पर्यटन स्थल भी विकसित किए गए हैं। इस योजना के अंतर्गत रोहतांग सुरंग (सोलंग नाला साइड)। स्थायी पर्यटन
यूनेस्को टिकाऊ पर्यटन को इस प्रकार परिभाषित करता है "ऐसा पर्यटन जो स्थानीय लोगों और यात्रियों, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण दोनों का सम्मान करता है"। टिकाऊ पर्यटन लोगों को एक अवसर प्रदान करना चाहता है। रोमांचक और शैक्षिक अवकाश जो मेजबान देश के लोगों के लिए भी फायदेमंद है। सभी पर्यटन गतिविधियाँ, चाहे वे किसी भी प्रेरणा की हों- छुट्टियाँ, व्यावसायिक यात्राएँ, सम्मेलन, साहसिक यात्राएँ और इकोटूरिज्म को टिकाऊ होने की जरूरत है। पर्यटन के प्रति यह दृष्टिकोण इतना लोकप्रिय हो रहा है कि ऐसा माना जाता है कि यह एक दशक के भीतर 'मुख्य धारा' बन जाएगा।
हिमाचल प्रदेश में सतत पर्यटन: राज्य अपनी स्थलाकृतिक विविधता और लुभावनी प्राचीन प्राकृतिक सुंदरता के मामले में अलग खड़ा है। . आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन उद्योग पर निर्भरता सकारात्मक परिणाम देती देखी गई है। इसकी तस्दीक इस बात से होती है कि हिमाचल प्रदेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या कितनी है 2004 में 6.55 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2019 में 17.21 मिलियन हो गई। इसके अलावा गेस्ट हाउस/होटलों की संख्या 2016 में 2,784 से बढ़कर वर्ष 2018 में 3,382 हो गई और बिस्तर क्षमता की संख्या 2016 में 75,918 से बढ़कर 2018 में 91,223 हो गई।
राज्य सरकार क्षेत्र की पारिस्थितिक संवेदनशीलता के प्रति बहुत सचेत है और उसने अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और संवर्धन का संकल्प लिया है। और सभी क्षेत्रों में सतत विकास के मार्ग का अनुसरण करना जैसा कि राज्य की जलविद्युत नीति, सतत पर्यटन नीति, सतत वन प्रबंधन नीतियों और पर्यावरण से देखा जा सकता है। मास्टर प्लान. राज्य उन निवेशकों को प्रोत्साहित करने की भी योजना बना रहा है जो स्थिरता को एक व्यवहार्य आर्थिक उद्यम के रूप में देखते हैं। वर्ष 2013 में राज्य सतत पर्यटन विकास लेकर आया था राज्य की अद्वितीय प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा में योगदान करने के लिए, निवासियों के लिए बेहतर रोजगार और अधिक व्यावसायिक अवसर प्रदान करने के साधन के रूप में स्थायी पर्यटन का उपयोग करने की नीति।
हिमाचल प्रदेश सरकार पर्यटन क्षेत्र नीति 2019 को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह आर्थिक विकास को गति देगा, सामाजिक विकास को कम करेगा असमानता, गरीबी को कम करता है, टिकाऊ तरीके से मूर्त और अमूर्त विरासत (अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके) का संरक्षण करता है। के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक यह नीति "स्थायी पर्यटन के लिए निवेश के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना" है।
इस नीति को विभिन्न उद्देश्यों के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी), विशेष रूप से एसडीजी 8 और 12 को प्राप्त करने के लिए तैयार किया गया है। मेजबान समुदायों का सामाजिक-आर्थिक विकास, यात्रियों को गुणवत्तापूर्ण अनुभव प्रदान करना, प्राकृतिक-सांस्कृतिक वातावरण और राज्य के गंतव्यों की सुरक्षा, और निवेश अनुकूल बनाना निजी निवेशकों के लिए माहौल
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एचपीटीडीसी) हिमाचल प्रदेश में पर्यटन बुनियादी ढांचे के विकास में अग्रणी है। यह पर्यटन सेवाओं का पूरा पैकेज प्रदान करता है, आवास, खानपान, परिवहन, कॉन्फ्रेंसिंग और खेल गतिविधियों सहित राज्य में बेहतरीन होटल रेस्तरां की सबसे बड़ी श्रृंखला जिसमें 55 होटल हैं जिनमें 2,304 बिस्तरों के साथ 991 कमरे हैं। एचपीटीडीसी ने दिसंबर, 2019 तक `71.72 करोड़ की आय अर्जित की, जबकि अगले वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य `124.31 करोड़ है।
सड़कें और पुल (राज्य क्षेत्र):राज्य की तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिए सड़कें एक बहुत ही महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा हैं। विकास कृषि, बागवानी, उद्योग, खनन और वानिकी जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्र कुशल सड़क नेटवर्क पर निर्भर करते हैं। परिवहन के किसी अन्य उपयुक्त और व्यवहार्य साधन के अभाव में रेलवे और जलमार्ग की तरह सड़कें भी हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लगभग शून्य से शुरुआत करते हुए राज्य सरकार ने 38,984 किलोमीटर का निर्माण किया है। नवंबर, 2019 तक मोटर योग्य सड़कों (जीप योग्य और ट्रैक सहित) की। राज्य सरकार सड़क क्षेत्र को बहुत उच्च प्राथमिकता दे रही है। 2019-20 के लिए निर्धारित लक्ष्य एवं उपलब्धियां नवंबर, 2019 तक की स्थिति तालिका 12.1 में निम्नानुसार दी गई है:-

राज्य में 30 नवंबर, 2019 तक 10,433 गांव सड़कों से जुड़े हुए हैं, जिनका विवरण नीचे तालिका 12.2 में दिया गया है:-

राष्ट्रीय राजमार्ग (केंद्रीय क्षेत्र):वर्तमान में 2,592 कि.मी. जिनमें से 19 राष्ट्रीय राजमार्ग राज्य सड़क नेटवर्क की मुख्य जीवन रेखाएं हैं 1,238 कि.मी. लंबाई का रखरखाव/विकास राज्य लोक निर्माण विभाग द्वारा किया गया है। उपरोक्त के अलावा, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 785 किलोमीटर का विकास/रखरखाव किया है। 5 राष्ट्रीय राजमार्गों की और 569 किलोमीटर कार्यान्वयन के लिए विभिन्न चरणों में हैं। सीमा सड़क संगठन द्वारा 3 राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई का विकास/रखरखाव किया जाता है।
रेलवे: शिमला को कालका (96 किलोमीटर) और जोगिंदरनगर से जोड़ने वाली केवल दो नैरो गेज रेलवे लाइनें हैं। पठानकोट के साथ (113 कि.मी.) और एक 33 कि.मी. दिसंबर, 2019 तक नंगल बांध से जिला ऊना में चारुरू तक ब्रॉड गेज रेलवे लाइन।
सड़क परिवहन: परिवहन के अन्य साधनों के रूप में सड़क परिवहन प्रदेश में आर्थिक गतिविधियों का मुख्य साधन है। रेलवे, वायुमार्ग, टैक्सी, ऑटो रिक्शा आदि नगण्य हैं। इसलिए, राज्य का सड़क परिवहन निगम राज्य में सर्वोपरि महत्व रखता है। के लोगों के लिए यात्री परिवहन सेवाएँ हिमाचल प्रदेश को राज्य के भीतर और बाहर 3,086 बसों, 75 इलेक्ट्रिक बसों, 21 टैक्सियों और 50 इलेक्ट्रिक टैक्सियों के बेड़े के साथ हिमाचल सड़क परिवहन निगम द्वारा सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। 6.33 लाख किलोमीटर की कवरेज के साथ 2,984 मार्गों पर बस सेवाएं चल रही हैं। दैनिक (31 अक्टूबर, 2019 तक)।
लोगों के लाभ के लिए वर्ष के दौरान निम्नलिखित योजनाएं चालू रहीं:
1) ग्रीन कार्ड योजना: ग्रीन कार्ड धारक को किराए में 25 प्रतिशत की छूट दी जाती है, यदि यात्री द्वारा की गई यात्रा 50 किमी की है। इस कार्ड की कीमत `50 है और इसकी वैधता दो साल है।
2) स्मार्ट कार्ड योजना: निगम ने स्मार्ट कार्ड योजना शुरू की है। इस कार्ड की कीमत `50 है और इसकी वैधता दो साल है। इस कार्ड पर 10 प्रतिशत की छूट है किराए में छूट एचआरटीसी की साधारण, सुपर फास्ट, सेमी डीलक्स और डीलक्स बसों में भी मान्य है, वोल्वो और एसी बसों में हर साल 1 अक्टूबर से 31 मार्च तक छूट दी जाएगी।
3) सम्मान कार्ड योजना: निगम ने 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मान कार्ड योजना शुरू की है। इस योजना के तहत साधारण बसों में किराये में 30 प्रतिशत की छूट अनुमन्य है.
4) महिलाओं को मुफ्त सुविधा: महिलाओं को "रक्षा बंधन" और "भैया दूज" के अवसर पर एचआरटीसी की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है। मुस्लिम महिलाएं "आईडी" और "बेकर आईडी" के अवसर पर मुफ्त यात्रा सुविधा की अनुमति दी गई है।
5) महिलाओं को किराए में छूट: निगम ने महिलाओं को राज्य के भीतर साधारण बसों में किराए में 25 प्रतिशत की छूट भी दी है।
6) सरकारी स्कूलों के छात्रों को मुफ्त सुविधा: सरकारी स्कूलों के +2 कक्षा तक के छात्रों को एचआरटीसी की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है।
7) गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को निःशुल्क सुविधा: कैंसर, रीढ़ की हड्डी में चोट, किडनी और डायलिसिस रोगियों को एक सहायक के साथ निःशुल्क यात्रा सुविधा राज्य के भीतर और बाहर डॉक्टर द्वारा जारी रेफरल स्लिप पर चिकित्सा उपचार के उद्देश्य से एचआरटीसी बसों में।
8) विशेष योग्यजन व्यक्तियों को निःशुल्क सुविधा: निगम 70 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता वाले विशेष योग्यजन व्यक्तियों को निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान कर रहा है। राज्य के भीतर एक परिचारक के साथ।
9) वीरता पुरस्कार विजेताओं को मुफ्त सुविधा: वीरता पुरस्कार विजेताओं को राज्य में डीलक्स बसों के अलावा एचआरटीसी की साधारण बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है।
10) लक्जरी बसें: निगम जनता को बेहतर परिवहन सुविधा प्रदान करने के लिए अंतरराज्यीय सड़कों पर वेटलीजिंग योजना के तहत 51 स्वामित्व वाली और 39 बसें सुपर लक्जरी (वोल्वो / स्कैनिया) और 24 लक्जरी एसी बसें चला रहा है। .
11) 24x7 हेल्पलाइन: यात्रियों की शिकायतें दर्ज करने और उनका समाधान करने के लिए 24x7 एचआरटीसी/निजी बस यात्री हेल्पलाइन नंबर 94180-00529 और 01772657326 शुरू की गई है।
12) सीलबंद सड़कों पर टैक्सियाँ: निगम द्वारा शिमला शहर में सीलबंद/प्रतिबंधित सड़कों पर जनता के लिए टैक्सी सेवाएँ भी शुरू की गई हैं।
13) प्रमुख पर्यटक इलाकों के लिए टेम्पो ट्रैवलर: निगम ने राज्य के प्रमुख पर्यटक इलाकों के लिए वेट-लीजिंग योजना के तहत 11 टेम्पो ट्रैवलर की शुरुआत की। पर्यटकों/आम जनता के लिए आरामदायक यात्रा।
14) शहीदों के परिवारों को मुफ्त यात्रा सुविधा: निगम साधारण बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा प्रदान कर रहा है विधवाओं, 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों, सशस्त्र बल कर्मियों और अर्धसैनिक बलों के जवानों के माता-पिता जो ड्यूटी पर शहीद हो गए थे।
15) पर्यटन स्थल तक इलेक्ट्रिक बसों की सुविधा: निगम ने प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों और आगंतुकों के लिए इलेक्ट्रिक बसें शुरू की हैं।
16) बस अड्डों पर विशेष योग्यजनों के लिए व्हीलचेयर की सुविधा: विशेष योग्यजनों के लाभ के लिए 30 बस अड्डों पर व्हील चेयर उपलब्ध कराई गई है।
17) महिलाओं के लिए सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीनों की सुविधा: महिलाओं के लाभ के लिए 30 बस अड्डों पर सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीनें लगाई गई हैं और भविष्य में भी लगाई जाएंगी और त्वरित और पर्याप्त आवाजाही में सहायता करके विभिन्न क्षेत्रों की परस्पर निर्भरता लोगों और सामग्री का; और जीवन की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालता है और अर्थव्यवस्था की वृद्धि और विकास में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। इसके अलावा परिवहन का उपयोग लगभग हर किसी के लिए जरूरी है व्यक्ति को शैक्षिक सुविधाओं, नौकरियों, बाजारों, मनोरंजन सुविधाओं और विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाभों तक पहुंच प्राप्त करना; जिससे यह एक आवश्यक वस्तु बन गई है। इसमें ऐसा अधिक है हिमाचल प्रदेश का संदर्भ जहां परिवहन का कोई अन्य साधन नहीं है। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि यदि बागवानी और जल-विद्युत हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आधार बनते हैं, परिवहन इसकी नसों का गठन करता है। दिसंबर, 2019 तक राज्य में कुल 16,53,343 परिवहन और गैर-परिवहन वाहन पंजीकृत हैं। वर्ष 201920 तक के दौरान दिसंबर, 2019 में परिवहन विभाग ने `408.01 करोड़ का राजस्व एकत्र किया है और विभिन्न अपराधों के लिए 25,140 वाहनों का चालान किया है और नवंबर, 2019 तक `4.23 करोड़ की राशि प्राप्त हुई है।
हिमाचल प्रदेश परिवहन नीति में कहा गया है कि "एक समृद्ध हिमाचल प्रदेश जिसमें परिवहन संतुलित क्षेत्रीय विकास और विकास संभावनाओं का दोहन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।" रोजगार के साथ वस्तुओं, सेवाओं और उत्पादक क्षमता तक पहुंचने और वितरित करने की क्षमता और दक्षता में सुधार करके हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र का विकास राज्य भर में अवसर पैदा हुए”। परिवहन नीति के मिशन में कहा गया है कि सरकार का प्रयास अत्याधुनिक परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराना होगा यात्रा करने वाले लोगों के लिए आराम और सुरक्षा के उच्च मानक। लोगों को किफायती किराये पर सार्वजनिक परिवहन में विलासितापूर्ण यात्रा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा राज्य के गरीब लोग, साथ ही निजी से सार्वजनिक परिवहन की ओर एक आदर्श बदलाव हासिल कर रहे हैं। यह उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण माल परिवहन बुनियादी ढांचे को भी बढ़ावा देगा कम से कम समय में और न्यूनतम बाह्यताओं (भीड़, प्रदूषण और दुर्घटनाओं) पर उच्च मूल्य वाले कार्गो को संभालने की क्षमता के साथ लागत। नीति का मुख्य उद्देश्य है:
a) राज्य के सुदूर कोनों तक कनेक्टिविटी प्रदान करना। शहरी क्षेत्रों में गतिशीलता योजना का विशेष ध्यान अंतिम मील कनेक्टिविटी पर होगा;
बी) निर्यात उन्मुख विकास प्राप्त करने के लिए कृषि और गैर-कृषि उपज को सबसे कुशलतापूर्वक और लागत प्रभावी ढंग से संभालने के लिए बाजार में प्रवेश करने वाले सबसे आधुनिक अत्याधुनिक माल परिवहन वाहनों को प्रोत्साहित करें;
सी) समग्र परिवहन योजना में मुख्यधारा की सड़क सुरक्षा संबंधी चिंताएँ।
) उपयुक्त कर और गैर-कर प्रोत्साहन और निरुत्साहन विकसित करके हिमाचल प्रदेश में परिवहन की पर्यावरणीय बाह्यताओं को कम करें जो पर्यावरण अनुकूल को प्रोत्साहित करते हैं। प्रदूषण फैलाने वाले और असुरक्षित वाहनों का परिवहन करना और उन्हें हतोत्साहित करना;
ई) स्थायी परिवहन विकास को प्राप्त करने के लिए केबल कार, ट्राम और गैर-मशीनीकृत मोड जैसे परिवहन के वैकल्पिक तरीकों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
वर्ष 2019- 20 के दौरान परिवहन विभाग की महत्वपूर्ण उपलब्धियां इस प्रकार हैं:
1) जल परिवहन: यात्रियों, कार्गो और पर्यटकों, जल क्रीड़ाओं और शिकारा जैसी जल परिवहन गतिविधियाँ चमेरा, कोल्डम और में विकसित की जाएंगी। कार्गो और यात्री परिवहन दोनों के लिए गोविंद सागर झील।
2) ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल और प्रदूषण जांच केंद्र: इच्छुक उम्मीदवारों को प्रशिक्षण देने के लिए, विभाग ने 262 ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूलों को लाइसेंस दिए हैं। प्रदेश में 10 डीटीएस आईटीआई, 12 एचआरटीसी और 240 निजी ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल शामिल हैं। साथ ही राज्य में 92 प्रदूषण जांच केंद्र भी अधिकृत किये गये हैं.
3) स्कूल के सुरक्षित परिवहन के लिए दिशानिर्देश बच्चेःराज्य सरकार स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के दिशानिर्देशों के तहत परिवहन विभाग, भारत सरकार सड़क सुरक्षा पर प्रवर्तन और व्यापक प्रचार के माध्यम से अपने सभी प्रयास जारी रखे हुए है।
4) रोजगार सृजन: परिवहन विभाग ने वर्ष 2019-20 के लिए 23,500 लोगों को रोजगार सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें से 19,226 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। दिसंबर, 2019 तक प्रदान किया गया है।
5) नए मार्गों की शुरूआत: एचआरटीसी ने इस वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक 70 नए बस मार्गों की शुरुआत की है।
6) फेम इंडिया योजना का कार्यान्वयन: सरकार द्वारा 50 इलेक्ट्रिक बसों को मंजूरी दी गई थी। शिमला टाउन के लिए भारत की फेम-इंडिया योजना के तहत और अब ये सभी 50 इलेक्ट्रिक बसें शिमला टाउन में चल रही हैं।
7) रोपवे और रैपिड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन: राज्य सरकार। परिवहन विभाग के नियंत्रण में एक नया रोपवे और रैपिड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन विकसित किया है। रोपवे और रैपिड ट्रांसपोर्ट विकास निगम निम्नलिखित परियोजनाओं पर काम करेगा:-
(i) पैसेंजर रोपवे गांव जाणा कुल्लू, जिला कुल्लू।
(ii) हिमाचल प्रदेश में शहरों में भीड़ कम करने के लिए मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (एम.आर.टी.एस.) i:ई शिमला, मनाली और धर्मशाला।
8) इलेक्ट्रिक वाहन नीति: हिमाचल प्रदेश सरकार। हिमाचल प्रदेश को सभी क्षेत्रों में इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने के लिए एक मॉडल राज्य के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है (व्यक्तिगत, साझा और वाणिज्यिक) और टिकाऊ, सुरक्षित, पर्यावरण-अनुकूल, समावेशी और एकीकृत गतिशीलता प्रदान करना। इसी उद्देश्य से इलेक्ट्रिक वाहन नीति तैयार की गई है इसका उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहन उपभोक्ताओं, निर्माताओं के साथ-साथ चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना है।
9 सड़क सुरक्षा उपाय: सरकार। हिमाचल प्रदेश सरकार सड़क सुरक्षा और दुर्घटनाओं के साथ-साथ मृत्यु दर को कम करने के लिए गहराई से चिंतित है। सड़क दुर्घटनाओं की दर बढ़ी है नीचे दी गई तालिका के अनुसार पिछले वर्ष के आंकड़ों की तुलना में कम हो गया है।

13.सामाजिक क्षेत्र

जब हिमाचल प्रदेश ने पुर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त किया उस समय साक्षता दर 31.96 प्रतिशत थी जो कि 2011 की जनगणना के अनुसार 82.80 प्रतिशत है। राज्य में पुरूषों व स्त्रियों की में काफी अंतर है। पुरूषों की 89.53 प्रतिशत साक्षरता दर की तुलना में स्त्रियों की साक्षरता दर 75.93 प्रतिशत है। इस अंतर को पूरा करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। निम्नलिखित आंकड़े राज्य में सरकारी, निजी और अन्य संस्थानों में बच्चों के नामांकन का चित्रण प्रस्तुत करते है।
सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन निजी स्कूलों की तुलना में बहुत अधिक है। 15-16 आयु वर्ग में लड़कियों का नामांकन सरकारी स्कूलों में अधिक (82.9 प्रतिशत) है, निजी स्कूलों में 7-10 आयु वर्ग के लड़कों (48.1 प्रतिशत) और लड़कियों (41.8 प्रतिशत) का नामांकन अन्य आयु वर्गों की तुलना में अधिक है। 15-16 आयु वर्ग में (2.4 प्रतिशत) लड़कों का स्कूलों में नामांकन नहीं है।
उपरोक्त तालिका में विभिन्न ग्रेडों के भीतर बच्चों के पढ़ने के स्तर में भिन्नता दर्शाती है। उदाहरण के लिए, कक्षा प्प्प् में 2 प्रतिशत बच्चे अक्षर भी नहीं पढ़ सकते हैं, 9.2 प्रतिशत अक्षर पढ़ सकते हैं, लेकिन शब्द या उससे ज्यादा नहीं पढ़ सकते हैं, 15.7 प्रतिशत शब्द पढ़ सकते हैं, लेकिन कक्षा एक स्तर के पाठ या उससे ऊपर नहीं पढ़ सकते, 25.4 प्रतिशत कक्षा एक के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं लेकिन कक्षा द्वितीय स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते। प्रत्येक कक्षा के लिए, सभी स्तरों की कुल संख्या 100 प्रतिशत है।
प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन प्रारम्भिक उप निदेशकों के माध्यम से किया जाता है निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ क्रमशः जिला और ब्लॉक स्तर पर शिक्षा और ब्लॉक प्राथमिक शिक्षा अधिकारी:
1) प्रारंभिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करना।
2) गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना।
3) प्रारंभिक शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने के लिए।
वर्तमान में 31.12.2019 तक 10,721 प्राथमिक विद्यालय और 2,049 सरकारी मध्य विद्यालय हैं। जिनमें से राज्य में 10,716 प्राथमिक विद्यालय और 2,039 मध्य विद्यालय कार्यरत हैं। प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए नई नियुक्तियां करने का प्रयास किया जा रहा है नियमित आधार पर जरूरतमंद स्कूलों में शिक्षकों की संख्या। विशेष रूप से सक्षम बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने का भी प्रयास किया गया है।
पढ़ने के स्तर में सुधार को उपरोक्त आंकड़े से देखा जा सकता है। 2012 में कक्षा तीन के केवल 39 प्रतिशत बच्चे ही दोनों प्रा.वि. और सरकार. स्कूल पढ़ने में सक्षम थे कक्षा II मानक स्तर का पाठ, जबकि 2018 में इसमें सुधार हुआ जहां कक्षा III मानक के 48 प्रतिशत बच्चे कक्षा II स्तर का पाठ पढ़ने में सक्षम थे।
नामांकन बढ़ाने और स्कूल छोड़ने की दर को कम करने के लिए और इन स्कूलों में बच्चों की अवधारण दर को बढ़ाने के लिए, विभिन्न छात्रवृत्ति और अन्य प्रोत्साहन जैसे गरीबी वजीफा छात्रवृत्ति, लड़कियों की उपस्थिति छात्रवृत्ति, सेना कर्मियों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, से संबंधित छात्रों के लिए छात्रवृत्ति। आईआरडीपी परिवार, मिडिलमैट्रिक छात्रवृत्ति (मेधावी छात्रवृति योजना), लाहौल-स्पीति पैटर्न पर अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति। उपरोक्त के अलावा ओबीसी/आईआरडीपी/एससी/एसटी के लिए मुफ्त पाठ्य पुस्तकें और वर्दी भी प्रदान की जा रही हैं और कुछ मामलों में गैर जनजातीय क्षेत्रों में सामान्य छात्रों को मुफ्त पाठ्य पुस्तकें प्रदान की जाती हैं। सभी विद्यार्थियों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें एवं गणवेश उपलब्ध करायी जा रही है। इन सभी उपायों से स्कूलों में नामांकन दर बढ़ाने में मदद मिली है। निम्नलिखित आंकड़ा सरकारी स्कूलों में चयनित सुविधाओं की स्थिति को दर्शाता है।
उपरोक्त आंकड़े से पता चलता है कि 2018 की तुलना में सरकारी स्कूलों में चयनित सुविधाओं में सुधार हुआ है।
राज्य प्रायोजित छात्रवृत्ति योजनाएँ:वर्ष 2019-20 के दौरान निम्नलिखित प्रोत्साहन प्रदान किए जा रहे हैं:-
पूर्व प्राथमिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के उद्देश्य:
1) सीखने के परिणाम: राज्य सरकार ने सभी प्रारंभिक विद्यालय के शिक्षकों को एनसीईआरटी द्वारा विकसित विषय और कक्षावार सीखने के परिणाम प्रदान किए हैं और उन्हें इस तरह से पढ़ाने के लिए कहा गया कि प्रत्येक योग्यता में छात्रों को वांछित सीखने के परिणाम प्राप्त हों।
2) शिक्षक ऐप: राज्य सरकार ने शिक्षण अधिगम को अधिक रोचक और आनंदमय बनाने के लिए शिक्षक ऐप लॉन्च किया है।
पढ़े भारत बढ़े भारत: प्ले वे विधि फ्लैश कार्ड, रीडिंग कार्ड, चार्ट, वर्कशीट के साथ पढ़ाने के लिए / वर्कबुक, कहानी की किताबें, कर्सिव राइटिंग वर्कशीट सीखना, भाषा और अंकगणित में बुनियादी कौशल को बढ़ाने के लिए प्राथमिक स्तर पर संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं। स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों की समग्र उन्नति के लिए राष्ट्रीय पहल के तहत (निष्ठा), 354 प्रमुख संसाधन व्यक्तियों (केपीआर) और राज्य संसाधन व्यक्तियों (एसआरपी) को एनसीईआरटी के राष्ट्रीय संसाधन समूह द्वारा प्रशिक्षित किया गया है। प्रारंभिक स्तर के सभी शिक्षक हो रहे हैं प्रशिक्षित केआरपी/आरआरपी द्वारा निष्ठा के तहत प्रशिक्षित किया गया। हिमाचल प्रदेश सरकार ने सभी प्राथमिक विद्यालयों को गणित और अंग्रेजी किट प्रदान की। इन किटों के उपयोग के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है।
राष्ट्रीय अविष्कार अभियान (RAA): NCERT द्वारा विकसित विज्ञान और गणित (प्राथमिक और माध्यमिक) प्रदान किया गया है चयनित विद्यालय को.
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV): राज्य सरकार ने जिला चंबा के छह KGBV के उन्नयन का प्रस्ताव दिया है। योजना के अनुसार कक्षा छठी से बारहवीं तक शिमला का एक केजीबीवी भारत सरकार के. प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) ने राज्य में सात केजीबीवी के उन्नयन को मंजूरी दे दी है। कन्या छात्रावास में वर्तमान में 150 बालिकाएं तथा कक्षा 6वीं से 850 बालिकाएं निवासरत हैं 12वीं केजीबीवी में हैं। ये सभी छात्रावास राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय से जुड़े हुए हैं। समाज के वंचित वर्गों की शैक्षिक स्थिति में सुधार के लिए राज्य/केन्द्र द्वारा विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियाँ/वजीफे प्रदान किये जा रहे हैं। विभिन्न चरणों में सरकारें।
हर साल राज्य के कुल योजना परिव्यय में शिक्षा की हिस्सेदारी बढ़ने के कारण राज्य में शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ. दिसंबर, 2019 तक, 931 सरकारी हाई स्कूल, 1,866 सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय और 138 सरकारी डिग्री कॉलेज हैं। 7 संस्कृत महाविद्यालय, 1 एससीईआरटी, 1 बी.एड. कॉलेज और 1 फाइन आर्ट कॉलेज राज्य में चल रहा है।
समाज के वंचित वर्गों की शैक्षिक स्थिति में सुधार के लिए राज्य/केंद्र सरकारों द्वारा विभिन्न चरणों में विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियाँ/वजीफे प्रदान किए जा रहे हैं। छात्रवृत्ति योजनाएँ हैं:-
राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा भी संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जबरदस्त प्रयास किये जा रहे हैं। विवरण इस प्रकार हैं:-
a) उच्च/वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना।
बी) माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत पढ़ाने के लिए संस्कृत व्याख्याताओं के वेतन के लिए अनुदान प्रदान करना।
c) संस्कृत विद्यालयों का आधुनिकीकरण।
d) संस्कृत को बढ़ावा देने और अनुसंधान/अनुसंधान परियोजनाओं के लिए विभिन्न योजनाओं के लिए राज्य सरकार को अनुदान।
शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम: शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का उपयोग सेवारत शिक्षकों को नवीनतम तकनीकों से लैस करने के लिए किया जाता है। शिक्षण विधियों। राज्य शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद सोलन, राजकीय अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय धर्मशाला द्वारा सेमिनार/पुनर्विन्यास पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश लोक प्रशासन संस्थान, शिमला, राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान, सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली, क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय, अजमेर और चंडीगढ़। लगभग 2,700 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारी 2018-19 के दौरान प्रशिक्षित किया गया है।
यशवंत गुरुकुल आवास योजना: हाई/सीनियर सेकेंडरी में तैनात शिक्षकों को उपयुक्त आवासीय आवास प्रदान करने के लिए जनजातीय एवं कठिन क्षेत्रों के विद्यालय राज्य में यह योजना राज्य के 61 चिन्हित विद्यालयों में क्रियान्वित की जा रही है। नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें:राज्य सरकार एससी, एसटी, ओबीसी और बीपीएल श्रेणियों के 9वीं और 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करा रही है। वर्ष 2019-20 के दौरान इस उद्देश्य के लिए `11.90 करोड़ खर्च किए गए हैं और 1,03,134 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
विशेष रूप से सक्षम बच्चों को निःशुल्क शिक्षा: 40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है। 2001-02 से राज्य में विश्वविद्यालय स्तर तक प्रदान किया गया। लड़कियों को मुफ्त शिक्षा:राज्य में छात्राओं को व्यावसायिक और पेशेवर सहित विश्वविद्यालय स्तर तक मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा रही है यानी ट्यूशन फीस में छूट दी गई है।
सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा: सभी सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में स्व-वित्त आधार पर सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान की जा रही है आउटसोर्सिंग जहां छात्रों के पास है वैकल्पिक विषय के रूप में आईटी शिक्षा को चुना। विभाग प्रति छात्र प्रति माह `110 आईटी शुल्क ले रहा है। अनुसूचित जाति (बीपीएल) परिवारों के छात्रों को कुल शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट मिल रही है। वर्ष 2019-20 में लगभग 72,647 छात्र हैं आईटी शिक्षा विषय में नामांकित है, जिसमें से 6,773 अनुसूचित जाति (बीपीएल) छात्र इस योजना के तहत लाभान्वित हो रहे हैं। समग्र शिक्षा 13.18 2018-19 से आगे, एकीकृत राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए, आईसीटी, गर्ल्स हॉस्टल, व्यावसायिक शिक्षा, माध्यमिक स्तर पर विकलांगों के लिए समावेशी शिक्षा योजना (आईईडीएसएस)) को इसमें विलय कर दिया गया है। स्कूली शिक्षा के लिए एकीकृत योजना (आईएसएसई)। नई मर्ज की गई योजना को समग्र शिक्षा नाम दिया गया है। समग्र शिक्षा के अंतर्गत निम्नलिखित योजनाएँ चल रही हैं।
i) राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान: विभाग ने हिमाचल प्रदेश के अंतर्गत माध्यमिक स्तर पर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) को लागू करने का बीड़ा उठाया है। स्कूल एजुकेशन सोसाइटी (एचपीएसईएस) शेयरिंग फंडिंग पैटर्न 90:10 पर। मौजूदा माध्यमिक विद्यालयों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए आरएमएसए के तहत गतिविधियां शुरू की जा रही हैं। राज्य में स्कूलों को वार्षिक अनुदान के साथ सेवारत शिक्षकों को प्रशिक्षण, आत्मरक्षा प्रशिक्षण और कला उत्सव।
ii) सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) परियोजना: स्मार्ट क्लास रूम और मल्टीमीडिया शिक्षण सहायता का उपयोग करके शिक्षण सीखने की गतिविधि को बेहतर बनाने और मजबूत करने के लिए, विभाग ने 2018-19 तक 2,137 सरकारी हाई/सीनियर सेकेंडरी स्कूलों और पांच स्मार्ट स्कूलों में आईसीटी को सफलतापूर्वक लागू किया है। भारत सरकार ने 200 और स्कूल शुरू किए हैं वर्ष 2019-20 एवं कार्य प्रगति पर है।
iii) व्यावसायिक शिक्षा: राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क योजना के तहत 80 अतिरिक्त स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम द्वारा सूचीबद्ध 6 वीटीपी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं और इन स्कूलों में फरवरी, 2020 (शीतकालीन उद्घाटन स्कूल) से कक्षाएं शुरू की जाएंगी। इस योजना के तहत: इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर, फर्निशिंग, परिधान निर्मित अप और घर, सौंदर्य और कल्याण, प्लंबर आदि की शुरूआत की जानी है।
iv) माध्यमिक स्तर पर विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए समावेशी शिक्षा: राज्य में माध्यमिक स्तर पर विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए समावेशी शिक्षा वर्ष 2013-14 में शुरू की गई है। इस योजना के तहत, सभी जिलों में 12 मॉडल स्कूल स्थापित किए गए हैं और नामांकित सीडब्ल्यूएसएन को विशेष शिक्षा प्रदान करने के लिए इन स्कूलों में 18 विशेष शिक्षक लगे हुए हैं। स्कूलों में. विशेष आवश्यकता वाले 7,958 बच्चों को सरकार में नामांकित किया गया है। वर्ष 2019-20 के दौरान स्कूल। सहायक उपकरण और उपकरण, निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें, अनुरक्षण वर्ष 2019-20 के दौरान विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को भत्ते, ब्रेल और बड़े मुद्रण वाली पुस्तकों की आपूर्ति की गई है।
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान: उच्च शिक्षा में सुधार के लिए राज्य में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान लागू किया गया है। प्रणाली। इस योजना के तहत फिलहाल 36 सरकार. डिग्री कॉलेज को वर्ष 2020-21 के दौरान NAAC बैंगलोर से मान्यता प्राप्त होगी।
नेट बुक/लैपटॉप का वितरण: विभाग 9,700 मेधावी छात्रों को लैपटॉप/नेट बुक वितरित करेगा। 10वीं और 12वीं कक्षा (4400-10वीं और 4400-12वीं कक्षा) हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड, धर्मशाला और 900 प्रथम श्रेणी कॉलेज के छात्रों को मुफ्त मासिक 1 जीबी डेटा कार्ड के साथ शिक्षण-शिक्षण गतिविधियों को मजबूत करने के लिए शैक्षणिक सत्र 2017-18 के लिए छात्र डिजिटल योजना/श्री निवास रामानुजन डिजिटल योजना।
मेधा प्रोत्साहन योजना: एचपी के मेधावी आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को CLAT/ NEET/IIT के लिए कोचिंग प्रदान करके चयनित किया गया /जेईई/एम्स/एएफएमसी/एनडीए/यूपीएससी/एस एससी/बैंकिंग आदि। कुल 182 वर्ष 2019-20 के दौरान 500 के मुकाबले अभ्यर्थी (स्नातक-34, विज्ञान-117, कला-18 और 13 वाणिज्य) छात्रों की पसंद के अनुसार 14 सूचीबद्ध कोचिंग संस्थानों में कोचिंग प्राप्त कर रहे हैं।
सीसीटीवी निगरानी प्रणाली की स्थापना: सरकार की सुरक्षा प्रदान करने के लिए। शैक्षणिक संस्थानों और छात्रों में सीसीटीवी निगरानी प्रणाली स्थापित की गई है वर्ष 2019-20 के दौरान 1,862 सरकारी स्कूलों में आधार सक्षम बायो मैट्रिक उपस्थिति प्रणाली (एईबीएएस) की स्थापना
विभाग ने HPSEDC के सहयोग से 2,552 आधार सक्षम बायो मैट्रिक अटेंडेंस सिस्टम (AEBAS) की खरीद के लिए निविदा प्रक्रिया शुरू कर दी है। एईबीएएस जीएसएसएस/जीएचएस और सरकार में स्थापित किया जाएगा। कॉलेजों ने ऑनलाइन हिम शिक्षा दर्पण पोर्टल/ऐप लॉन्च किया
शिक्षा विभाग के शैक्षणिक संस्थानों/कार्यालयों में की जा रही गतिविधियों को स्वचालित करने के उद्देश्य से हिम शिक्षा दर्पण का शुभारंभ प्रस्तावित है। को सेवा वितरण मॉडल, आंतरिक कार्यालय के साथ-साथ प्रबंधन सुविधा को कुशलतापूर्वक सुधारें।
बैचलर ऑफ वोकेशन: बी.वोक प्रोग्राम राज्य के 12 कॉलेजों में स्टेट शेयर से वित्त पोषित चल रहा है। एचपीकेवीएन के माध्यम से एडीबी कौशल परियोजना। विभाग बी. वोक शुरू करने का प्रस्ताव रखता है। दो नए पाठ्यक्रमों यानी बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा और आईटीईएस के साथ राज्य के अधिक कॉलेजों में डिग्री कार्यक्रम।
तकनीकी शिक्षा विभाग की स्थापना वर्ष 1968 में हुई थी और जुलाई 1983 में व्यावसायिक और औद्योगिक और प्रशिक्षण संस्थानों को भी इस विभाग के अंतर्गत लाया गया था, वर्तमान में विभाग तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक और औद्योगिक के क्षेत्र में शिक्षा प्रदान कर रहा है प्रशिक्षण। आज विभाग इस मुकाम पर पहुंच गया है राज्य के इच्छुक छात्र हिमाचल प्रदेश में निम्नलिखित संस्थानों के माध्यम से इंजीनियरिंग/फार्मेसी दोनों डिप्लोमा और डिग्री के साथ-साथ सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं।
मौजूदा संस्थानों में छात्रों का वर्तमान प्रवेश इस प्रकार है:
i) डिग्री स्तर 3,181
ii) बी-फार्मेसी 1,110
iii) डिप्लोमा स्तर 5,065
iv) सरकारी/निजी आईटीआई 48,509 कुल 57,865
तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम चरण-III (TEQIP-III) 01 अप्रैल 2017 से शुरू हुआ और सितंबर 2020 में समाप्त होगा। तीन कॉलेज की राज्य अर्थात् जेएनजीईसी, आरजीजीईसी, एबीवीजीआईई और हिम टीयू को परियोजना लागत के साथ तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम चरण-III परियोजना के तहत चुना गया है। हिम टीयू को `20.00 करोड़ और प्रत्येक चयनित संस्थान को `10.00 करोड़ स्वीकृत।
तकनीकी शिक्षा विभाग में 132 सरकारी I.T.Is, 1 ड्राइविंग ट्रेनिंग और हेवी अर्थ मूविंग मशीनरी ऑपरेटर स्कूल और निजी क्षेत्र में 151 ITI हैं। वर्ष 201920 के दौरान जिले में पांच नए सरकारी आईटीआई अर्थात् कौलावाला भूड। सिरमौर, आईटीआई भंजरारूइन जिला चम्बा, राजकीय आईटीआई उटपुर जिला हमीरपुर, सरकार. जिला कांगड़ा में आईटीआई राजून और सरकार। जिला चम्बा में आईटीआई सलूणी को क्रियाशील कर दिया गया है। तीन नए आईटीआई अर्थात् सरकारी। आईटीआई अंबोया, सरकार। जिले में आईटीआई सतौन सिमौर और सरकार। जिला मण्डी में आईटीआई लड़भरोल को अगले शैक्षणिक सत्र 2020-21 से क्रियाशील किया जाएगा। वर्ष 2019-20 के दौरान, सरकार में दो नए ट्रेड। आईटीआई चौपाल जिला शिमला में, सरकार। जिला हमीरपुर में आईटीआई सुजानपुर टीहरा, सरकार, जिला शिमला में आईटीआई कुमारसैन, सरकार। आईटीआई शिलाई, जिला सिरमौर में, सरकार। जिले में आईटीआई कफोटा सिरमौर और सरकार। जिला सिरमौर में आईटीआई सराहां शुरू कर दी गई है। उद्योग की मदद से प्रशिक्षुओं के बीच कौशल शिक्षा को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण की दोहरी प्रणाली सरकार में कार्यात्मक बना दिया गया है। वर्ष 2018-19 में आईटीआई सोलन। वर्ष 2019-20 में 08 राजकीय विद्यालयों में प्रशिक्षण की दोहरी व्यवस्था प्रारम्भ की गई है। आईटीआई का नाम है आईटीआई नादौन (रेलवे पर), जोगिंदरनगर, मंडी, गढ़जमुला, नेहर्नपुखर, शमशी, सोलन (अतिरिक्त व्यापार) और सरकार। मॉडल आईटीआई नालागढ़।
HPSDP के तहत अल्पावधि प्रशिक्षण: हिमाचल प्रदेश कौशल विकास परियोजना (HPSDP) के तहत, HPKVN ने किसके साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं 38 सरकार. औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) हिमाचल प्रदेश के युवाओं को एनएसक्यूएफ अनुरूप लघु अवधि कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए। वर्तमान में, 33 सरकार के 4,500 उम्मीदवार। इसका प्रशिक्षण चल रहा है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण:राज्य सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रभावी रोकथाम और उपचार हस्तक्षेप के लिए स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हों लोगों को कुशलतापूर्वक लागू किया गया। हिमाचल प्रदेश भारत की तुलना में स्वास्थ्य संकेतकों में तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में है। चयनित संकेतक नीचे चित्र में प्रस्तुत किए गए हैं:
उपरोक्त सभी संकेतकों में हिमाचल प्रदेश बेहतर स्थिति में है। राज्य में जनसंख्या वृद्धि दर चार फीसदी बेहतर रहने का अनुमान लगाया गया है भारत की तुलना में. हिमाचल प्रदेश में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग सेवाएं प्रदान कर रहा है जिसमें उपचारात्मक, निवारक, आदिम और पुनर्वास सेवाएं शामिल हैं अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों आदि के एक नेटवर्क के माध्यम से जो नीचे तालिका में दिया गया है।
2019-20 के दौरान राज्य में की गई विभिन्न स्वास्थ्य और परिवार कल्याण गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-
चिकित्सा शिक्षा प्रशिक्षण एवं अनुसंधान निदेशालय की स्थापना वर्ष 1996-97 में की गई थी। वर्तमान में छह मेडिकल कॉलेज और एक डेंटल कॉलेज हैं सरकार में इस निदेशालय के तहत कार्य करना। क्षेत्र, इसके अलावा, यह एक मेडिकल कॉलेज और चार डेंटल कॉलेज निजी क्षेत्र में हैं। वर्ष 2019-20 से दिनांक 07.02.2020 तक संस्थावार धनराशि का आवंटन एवं व्यय तालिका 13.6 में दिया गया है।
शैक्षणिक उपलब्धियां: चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में शैक्षणिक उपलब्धियां इस प्रकार हैं:-
1) एमबीबीएस छात्र: शैक्षणिक सत्र 2019-20 के दौरान, सरकारी और निजी क्षेत्र में कुल 870 एमबीबीएस सीटें भरी गईं, इसके अलावा विभिन्न विशिष्टताओं में 253 पीजी सीटें भरी गईं। आईजीएमसी शिमला, डॉ. आरपीजीएमसी टांडा और महर्षि मार्कंडेश्वर यूनिवर्सिटी सोलन में आवंटित किए गए थे।
2) बीडीएस: शैक्षणिक सत्र 2019-20 के दौरान सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में 316 बीडीएस सीटें और 90 एमडी सीटें भरी गईं।
3) नर्सिंग: शैक्षणिक सत्र 2019-20 के दौरान, एएनएम प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए 30 सीटें, जीएनएम पाठ्यक्रम के लिए 1,540 सीटें, 1,780 बी.एससी. नर्सिंग, पोस्ट बेसिक बीएससी नर्सिंग की 435 और एमएससी नर्सिंग डिग्री कोर्स की 181 सीटों को मंजूरी दी गई है।
4) पैरा मेडिकल पाठ्यक्रम: आईजीएमसी शिमला में शैक्षणिक सत्र 2019-20 के दौरान विभिन्न धाराओं के पैरा मेडिकल पाठ्यक्रमों में 61 छात्रों को नामांकित किया गया था। डॉ. आरपीजीएमसी टांडा। इस निदेशालय के अंतर्गत संस्थावार प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:-
हिमाचल प्रदेश सरकारी डेंटल कॉलेज और अस्पताल शिमला: 17 पीजी सीटें और 75 बीडीएस प्रवेश (15 ईडब्ल्यूएस सीटों सहित) कॉलेज के लिए डीसीआई द्वारा मंजूरी दे दी गई है। डेंटल मैकेनिक और डेंटल हाइजीनिस्ट के डिप्लोमा पाठ्यक्रम में प्रवेश 20 प्रत्येक की प्रवेश क्षमता के साथ किए गए हैं। और सत्र 2019-20 के लिए उक्त पाठ्यक्रम की कक्षाएं शुरू कर दी गई हैं। कॉलेज को 2 नं. से सुसज्जित किया गया है। ओपीजी सीईपीएच एक्सरे मशीनें और नवीनतम बाल चिकित्सा दंत चिकित्सा इकाइयां सह कुर्सियाँ. संस्था द्वारा राज्य के आईआरडीपी एवं बीपीएल परिवारों को निःशुल्क दंत चिकित्सा उपचार उपलब्ध कराया जा रहा है।
भारतीय औषधि प्रणाली और होम्योपैथी हिमाचल प्रदेश राज्य की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आयुर्वेद विभाग था 1984 में स्थापित। राज्य में आयुर्वेदिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के माध्यम से आम जनता को स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। आयुर्वेदिक बुनियादी ढांचे का समग्र दृश्य नीचे दिया गया है:
महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा वित्त पोषित तीन विकासखंडों में पोषण अभियान के तहत एनीमिया की रोकथाम के लिए परियोजना संचालित की जा रही है।
1) बंगाणा जिला ऊना
बी) भोरंज जिला हमीरपुर
c) तिस्सा जिला चम्बा।
हर्बल संसाधनों का विकास: राज्य के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए चार हर्बल गार्डन प्रचार-प्रसार के लिए कार्य कर रहे हैं और औषधीय पौधों का संरक्षण. हैं:
1) जोगिंदरनगर (जिला मंडी),
2) नेरी (जिला हमीरपुर)
3) डुमरेड़ा (जिला शिमला)
4) जंगल झलेरा (बिलासपुर) आयुष मंत्रालय, राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, भारत सरकार ने अनुसंधान संस्थान में उत्तर भारत के लिए क्षेत्रीय-सह-सुविधा केंद्र की स्थापना और वित्त पोषण किया है। औषधीय पौधों के क्षेत्र के समग्र विकास के लिए आईएसएम, जोगिंदर नगर, जिला मंडी में।
सामाजिक कल्याण और अन्य पिछड़ा वर्ग का कल्याण: राज्य का सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग सामाजिक-आर्थिक कार्यों में लगा हुआ है और शैक्षिक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अशक्त, विशेष रूप से सक्षम, अनाथ, बच्चे, विधवा, निराश्रित, गरीब बच्चों और महिलाओं आदि का उत्थान। सामाजिक कल्याण कार्यक्रम के अंतर्गत निम्नलिखित पेंशन योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं:
विभाग तीन निगमों को इसके माध्यम से धन भी प्रदान कर रहा है; हिमाचल प्रदेश अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम, हिमाचल प्रदेश पिछड़ा निवेश मद के अंतर्गत वर्ग वित्त एवं विकास निगम तथा हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति विकास निगम को चलाने के लिए विभिन्न स्व-रोज़गार योजनाओं के बारे में। वर्ष 2019-20 के लिए `12.52 करोड़ का बजट प्रावधान है।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का कल्याण
अनुसूचित जाति उप-योजना:
13.39 अनुसूचित जाति उपयोजना जैसा कि मामले में है, क्षेत्र आधारित नहीं है जनजातीय उपयोजना. यद्यपि अनुसूचित जाति समुदाय सामान्य योजना के साथ-साथ जनजातीय उप-योजना के तहत लाभ प्राप्त कर रहे हैं, फिर भी विशेष कवरेज प्रदान करने के लिए व्यक्तिगत लाभार्थी, कार्यक्रमों और अनुसूचित जाति केंद्रित गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास के तहत, कुल राज्य योजना आवंटन का 25.19 प्रतिशत है अनुसूचित जाति उप-योजना के लिए निर्धारित। इसके अलावा, राज्य के एसटी/एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
2019-20 के दौरान कार्यान्वित महत्वपूर्ण योजनाएं इस प्रकार हैं:-

महिला, बाल एवं बालिका कल्याण: प्रदेश में महिलाओं के कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं।
1) वुमन स्टेट होम मशोबरा: योजना का मुख्य उद्देश्य मुफ्त आश्रय, भोजन, कपड़े, शिक्षा स्वास्थ्य और दवाएं, परामर्श और व्यावसायिक प्रदान करना है। युवा लड़कियों, विधवाओं, परित्यक्ता, निराश्रित और शारीरिक और यौन शोषण वाली महिलाओं को प्रशिक्षण। वर्तमान में 34 कैदी और 2 बाल कैदी रह रहे हैं राजकीय गृह, मशोबरा। राज्य गृह छोड़ने के बाद ऐसी महिलाओं के पुनर्वास के लिए प्रति महिला 20,000 रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। विवाह के मामले में सहायता महिलाओं को `51,000 की राशि भी प्रदान की गई।
2) वन स्टॉप सेंटर: वन स्टॉप सेंटर एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है। योजना का मुख्य उद्देश्य एकीकृत समर्थन और सहायता प्रदान करना है एक ही छत के नीचे निजी और सार्वजनिक स्थानों पर हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिए; और एक सीमा तक तत्काल, आपातकालीन और गैर-आपातकालीन पहुंच की सुविधा प्रदान करना चिकित्सा, कानूनी, मनोवैज्ञानिक और परामर्श सहायता सहित सेवाएं।
3)महिला शक्ति केंद्र: ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर, शिमला, सोलन जिलों में ब्लॉक स्तर पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत महिला शक्ति केंद्र योजना स्वीकृत है। सिरमौर, बिलासपुर, मंडी और चंबा। योजना का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना है। छात्र स्वयंसेवक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे विभिन्न महत्वपूर्ण सरकारी योजनाओं/कार्यक्रमों के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करना।
राज्य में योजनाओं का संक्षिप्त विवरण नीचे तालिका 13.12 में दिया गया है।

सक्षम गुड़िया बोर्ड हिमाचल प्रदेशःयोजना का मुख्य उद्देश्य के लिए सिफारिशें करना है बालिकाओं/किशोरियों के सशक्तिकरण के लिए नीतियां, अधिनियम, नियम, नीतियां और सुरक्षा से संबंधित कार्यक्रम के कार्यान्वयन की समीक्षा करना बालिकाओं/किशोरियों के उत्थान एवं सशक्तिकरण तथा उनके विरूद्ध अपराध से सुरक्षा हेतु विभिन्न विभागों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
सामाजिक सेवा क्षेत्र पर खर्च में वृद्धि सरकार की सामाजिक कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के अनुपात के रूप में राज्य द्वारा सामाजिक सेवाओं (शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य) पर व्यय 2014-15 से 2019-20 (अग्रीम अनुमान-ए) की अवधि के दौरान बढ़कर 7.68 प्रतिशत से 9.16 प्रतिशत हो गया। इस अवधि के दौरान सभी सामाजिक क्षेत्रों में वृद्धि देखी गई है। शिक्षा के लिए वृद्धि इसी अवधि में 4.12 प्रतिशत से बढ़कर 4.75 प्रतिशत और स्वास्थ्य के लिए 1.25 से 2.66 प्रतिशत हो गई। कुल बजटीय व्यय में से सामाजिक सेवाओं पर व्यय का भाग भी 25.73 प्रतिशत (सारणी-13.13) से बढ़कर 34.14 प्रतिशत हो गया।

14.ग्रामीण विकास और पंचायती राज

ग्रामीण विकास विभाग का मुख्य उद्वेश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन तथा क्षेत्र विकास के कार्यक्रमों को कार्यान्वित करना है। राज्य में निम्नलिखित राज्य तथा केंद्रीय प्रायोजित विकासात्मक योजनाएं/कार्यक्रम कार्यान्वित किए जा रहे हैंः-
दीनदयाल अन्तोदय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन यह कार्यक्रम ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका मुख्य उददेश्य गरीबी का उन्नमूलन करना व लाभकारी रोजगार का आश्वासन देना व उनको कौशल के अनुसार रोजगार के अवसर प्रदान करना है। यह अभियान सम्पूर्ण प्रदेश के 50 गहन विकास खण्ड़ों में कार्यान्वित किया जा रहा है। शेष बचे विकास खण्डों में इसका कार्यान्वयन चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा।
1) आरएसईटीआई के माध्यम से एसएचजी को विभिन्न व्यवसायों में क्षेत्र/आवश्यकता आधारित प्रशिक्षण प्रदान करके स्वरोजगार,
2) एनआरएलएम के अंतर्गत सभी ग्रामीण परिवारों की महिलाओं को आवश्यक प्रशिक्षण देकर आजीविका उपार्जन के अवसर प्रदान कर महिला रोजगार।
3) मनरेगा के माध्यम से एसएचजी महिलाओं को मजदूरी रोजगार भी प्रदान किया जा रहा है।
4) एनआरएलएम के तहत महिलाओं के लिए आजीविका का एक अन्य स्रोत सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों (सीआरपी) पेशेवर संसाधन व्यक्तियों (पीआरपी) जैसी संसाधन महिलाएं बन रही हैं। हिमाचल प्रदेश ने एनआरएलएम के तहत लगभग 18000 महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का गठन किया है। पोर्टल पर पंजीकृत होने के बाद, ये स्वयं सहायता समूह वित्तीय प्राप्त करने के लिए पात्र होंगे अपनी आजीविका गतिविधियाँ शुरू करने के लिए एनआरएलएम के तहत लाभ।
महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रदान किए जा रहे प्रोत्साहन इस प्रकार हैं:
1) सभी डीएवाई-एनआरएलएम महिला एसएचजी `3.00 लाख तक के क्रेडिट पर 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज छूट के लिए पात्र होंगे।
इस योजना को दो प्रकार के जिलों में विभाजित किया गया है।
श्रेणी 1: जिले: कांगड़ा, मंडी, शिमला और ऊना (भारत सरकार के अधीन)
श्रेणी 2: जिले बिलासपुर, चंबा, हमीरपुर, किन्नौर, कुल्लू, लाहौल और स्पीति, सिरमौर और सोलन (राज्य सरकार यानी एचपीएसआरएलएम के तहत)।
2) अब तक एचपीएसआरएलएम ने ब्याज छूट के तहत `62.49 लाख का वितरण किया है।
रिवॉल्विंग फंड और सामुदायिक निवेश फंड के माध्यम से वित्तीय सहायता:
1) एनआरएलएम के तहत गरीब महिलाओं के एसएचजी और उच्च स्तरीय फेडरेशन (ग्राम संगठन और क्लस्टर/ब्लॉक स्तरीय फेडरेशन) का गठन किया गया है। प्रदर्शन के आधार पर, गठन के तीन महीने बाद, यदि समूह नियमित रूप से बैठकें, बचत, अंतर ऋण देता है, तो एसएचजी को `15 हजार की चक्रीय निधि (आरएफ) प्रदान की जाती है। पुनर्भुगतान और उचित रिकॉर्ड रखना।
2) हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने ₹11.40 करोड़ 6,767 से अधिक स्वंय सहायता समूहों को परिक्रमा राशि के रुप में वितरित किये हैं।
प्रारंभिक राषि :
1) प्रारंभिक राशि ₹2500.00 तक स्वंय सहायता समूहों व ग्राम संगठनों को गठन के तदोपरान्त प्रदान की जाती है।
2) हिमाचल प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने वर्ष 2018-19 से प्रारम्भिक राशि स्वयं सहायता समूहों तथा ग्राम संगठनों को वितरित करनी प्रारम्भ की अब तक ₹42.14 लाख ₹1,577 स्वंय सहायता समूहों व ₹46.20 लाख 103 ग्राम संगठनों को प्रारंभिक राशि के रूप में दिये जा चुके है।
परिक्रमा राषि : दस से पन्द्रह हजार रु0 की राशि उन स्वंय सहायता समूहों को दी जाती है जो गठन के बाद 3 माह से पंचसूत्रों का पालन कर रहे हों ।
सामुदायिक निवेश कोष (CIF):
1) प्रत्येक एसएचजी को `50 हजार से `1.10 लाख का सीआईएफ प्रदान किया जाता है, जिन्होंने बचत और आरएफ से नियमित आंतरिक ऋण देना अपनाया है। पिछले 6 महीनों से सदस्यों को लघु ऋण द्वारा। ये धनराशि वीओ के माध्यम से एसएचजी को ऋण के रूप में भेजी जाती है।
2) 130वीओ, जो अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, को ग्राम संगठन के तहत कवर किया गया है और एनआरएलएम से सीआईएफ के रूप में `4.9 करोड़ की अतिरिक्त धनराशि दी गई है।
आजीविका संवर्धन:
1) HPSRLM ने लगभग पहचान की है। 16,000 एसएचजी जो विभिन्न आजीविका गतिविधियों में शामिल हैं। इस वर्ष से एचपीएसआरएलएम भी है कृषि आजीविका के अवसरों को बढ़ाने की दिशा में काम करना, जिसमें शून्य आधारित प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) के अभिसरण की व्यापक गुंजाइश है।
2) इन एसएचजी/वीओ द्वारा बनाए गए उत्पाद हिमइरा ब्रांड के तहत बेचे जाते हैं। यह ब्रांड जून, 2019 में शुरू हुआ है और महिलाओं ने इस ब्रांड के तहत 53.00 लाख रुपये से अधिक की कमाई की है।
एनआरएलएम के तहत वर्ष 2019-20 के दौरान दिसंबर, 2019 तक जिलेवार लक्ष्य और उपलब्धि इस प्रकार है:-

दीन दयाल उपाध्याय-ग्रामीण कौशल्या योजना (डीडीयू-जीकेवाई):दीन दयाल उपाध्यायग्रामीण कौशल्या योजना एक राष्ट्रीय प्रमुख कार्यक्रम है ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत कौशल विकास के उद्देश्य से ग्रामीण गरीब युवाओं को न्यूनतम मजदूरी पर या उससे ऊपर नियमित मासिक वेतन वाली नौकरियां प्रदान करना है।
DDU-GKY के तहत लाभार्थी:
1) डीडीयू-जीकेवाई का लक्ष्य समूह 15-35 आयु वर्ग के गरीब ग्रामीण युवा हैं।
2) गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवार भी कौशल कार्यक्रम का लाभ उठाने के पात्र होंगे।
3) मनरेगा श्रमिक परिवारों के युवा, जिनके परिवार के किसी सदस्य ने पिछले वित्तीय वर्ष में कम से कम 15 दिन का काम किया हो।
4) आरएसबीवाई (राष्ट्रीय सवासाथ बीमा योजना) कार्ड वाले परिवार का युवा, जिसमें कार्ड में युवाओं का विवरण अंकित है।
5) परिवार के युवा जिन्हें अंत्योदय योजना/बीपीएल पीडीएस कार्ड जारी किए गए हैं।
6) ऐसे घर का युवा जहां परिवार का एक सदस्य एनआरएलएम के तहत एसएचजी का सदस्य है।
7) SECC, 2011 (जब अधिसूचित हो) के अनुसार ऑटो समावेशन मापदंडों के अंतर्गत आने वाले परिवार के युवा भी कौशल कार्यक्रम का लाभ उठाने के पात्र होंगे।
योजना के तहत लाभ:
1) परियोजना के तहत यह आश्वासन दिया गया है कि 70% प्रशिक्षित उम्मीदवारों को विभिन्न क्षेत्रों में प्लेसमेंट मिलेगा।
2) इस योजना के तहत प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण और आवासीय सुविधाएं निःशुल्क प्रदान की जाती हैं।
3) कोर्स की अवधि 3-12 महीने तक होती है।
पहल की गई:
1) वास्तविक समय के आधार पर उम्मीदवारों के प्रशिक्षण और नियुक्ति की संभावना को मानिटर करने के लिए MRIGS पोर्टल को अपनाना।
2) राज्य स्तरीय पूर्व छात्र सह सीएक्सओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) बैठक आयोजित की गई जिसमें 120 उम्मीदवारों और 20 नियोक्ताओं ने भाग लिया।
3) बीबीएनडीए और अन्य उद्योगों के साथ बद्दी (बरोटीवाला) में उद्योग बैठक आयोजित की।

वाटरशेड विकास कार्यक्रम: बंजर भूमि / निम्नीकृत भूमि, सूखा-प्रवण और रेगिस्तान को विकसित करने के उद्देश्य से क्षेत्रों और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और विकास, रोजगार सृजन, गरीबी उन्मूलन, एकीकृत बंजर भूमि विकास द्वारा पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना राज्य में वाटरशेड दृष्टिकोण पर कार्यान्वित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम केंद्र और राज्य के बीच 90:10 के फंडिंग पैटर्न पर कार्यान्वित किया जा रहा है। वित्तीय के दौरान वर्ष 2019-20 से दिसंबर, 2019 तक डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई के तहत हुई प्रगति नीचे दी गई है:-

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (PMAY-G): PMAY-G का लक्ष्य पक्का घर उपलब्ध कराना है सभी के लिए बुनियादी सुविधाओं के साथ 2022 तक बेघर परिवारों और कच्चे और जीर्ण-शीर्ण मकानों में रहने वाले परिवारों के लिए न्यूनतम इकाई का आकार मौजूदा 20 वर्ग मीटर से बढ़ाया गया है। 25 वर्ग मीटर तक और इसमें स्वच्छ खाना पकाने के लिए एक समर्पित क्षेत्र शामिल है। पहाड़ी राज्यों और दुर्गम क्षेत्रों में यूनिट सहायता भी 75,000 से बढ़ाकर 1.30 लाख कर दी गई है। लाभार्थियों की पहचान SECC-2011 डेटा का उपयोग करके की जाती है। दिसंबर, 2019 तक, 759 लाभार्थियों को मंजूरी दी गई है और 2019-20 के 900 लक्ष्य में से 65 घर पूरे हो चुके हैं।
राज्य ग्रामीण आवास योजनाएं: राज्य सरकार द्वारा निम्नलिखित आवास योजनाएं चलाई जाती हैं। i
1) मुख्यमंत्री आवास योजना (एमएमएवाई): राज्य सरकार ने राज्य में सामान्य श्रेणी के बीपीएल के लिए पहली बार 2016-17 के बजट में इस योजना की घोषणा की थी। . इस योजना का लाभ पिछले वित्तीय वर्ष 2018-19 से सभी श्रेणियों के बीपीएल तक बढ़ा दिया गया है। चालू वर्ष 2019-20 में बजट प्रावधान है `12.49 करोड़ की लागत से राज्य में सभी श्रेणियों के 558 आवासों का निर्माण प्रस्तावित है।
2) मुख्यमंत्री आवास मरम्मत योजना : इसमें `4.76 करोड़ का प्रावधान है, जिससे सभी श्रेणियों के 1,358 मकानों की मरम्मत का प्रस्ताव किया गया है। चालू वित्तीय वर्ष 2019-20. इस योजना के तहत लाभार्थियों का चयन क्षेत्र के एसडीएम की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा किया जाता है जिसमें बीडीओ और एसडीओ (देव) सदस्य होते हैं।
सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY): SAGY का मुख्य उद्देश्य उन प्रक्रियाओं को ट्रिगर करना है जो आगे बढ़ती हैं चिन्हित ग्राम पंचायतों का सर्वांगीण विकास। योजना का लक्ष्य बेहतर बुनियादी सुविधाओं, उच्च उत्पादकता, बेहतर मानव विकास, बेहतर आजीविका के अवसरों और कम असमानताओं के माध्यम से आबादी के सभी वर्गों के जीवन स्तर और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। एसएजीवाई कार्यान्वयन के चरण- II के तहत, एक सांसद ने नीचे दिए अनुसार आदर्श जीपी की पहचान की है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन (SPMRM) एच.पी.: श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन (SPMRM) 21 फरवरी 2016 को प्रधान मंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था। राष्ट्रीय रूर्बन मिशन (एनआरयूएम) का उद्देश्य स्थानीय आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाना है। सेवाएँ, और सुनियोजित रूर्बन क्लस्टर बनाएँ। इस मिशन के अंतर्गत परिकल्पित बड़े परिणाम हैं:-
1) आर्थिक, तकनीकी और सुविधाओं और सेवाओं से संबंधित ग्रामीण-शहरी विभाजन को पाटना।
2) ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी को कम करने पर जोर देते हुए स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
3) क्षेत्र में विकास फैलाना।
4) ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करना। ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा छह क्लस्टरों को मंजूरी दी गई है। भारत के, जो नीचे दिए गए हैं।

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण):भारत सरकार ने लक्ष्य हासिल करने के लिए 02.10.2014 को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) लॉन्च किया है। 2019 तक स्वच्छ भारत। स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के अंतर्गत दिसंबर, 2019 तक जिलेवार भौतिक प्रगति इस प्रकार है:-

राज्य पुरस्कार योजनाएं:
1) महिला-मंडल प्रोत्साहन योजना: वर्ष 2008 से महिला मंडल प्रोत्साहन योजना के तहत सक्रिय महिला मंडलों को शामिल करने के लिए पुरस्कृत किया जाता है। स्वच्छता के लक्ष्य एवं उद्देश्यों को अपने जमीनी स्तर पर कार्यान्वित किया है। इस योजना को पूरी तरह से स्वच्छता कार्यक्रम और योग से जोड़ा गया है अपने गांव/वार्ड में स्वच्छता के तहत अच्छा कार्य करने वाली महिला मंडलों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए वर्ष 2019-20 के दौरान `193.00 लाख आवंटित किए गए हैं। और योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार ग्राम पंचायत क्षेत्र।
2) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा): महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया था सितंबर, 2005 में भारत के वर्ष 2019-20 के दौरान केंद्रीय हिस्सेदारी की राशि `479.16 करोड़ और राज्य की हिस्सेदारी की राशि `39.22 करोड़ राज्य रोजगार में जमा की गई है गारंटी निधि खाता. `468.36 करोड़ की धनराशि का उपयोग किया गया है और 4,47,773 परिवारों को रोजगार प्रदान करके 181.74 लाख मानव दिवस सृजित किए गए हैं।
वर्तमान में इस राज्य में 12 जिला परिषदें, 78 पंचायत समितियाँ और 3,226 ग्राम पंचायतें गठित हैं। 73वें संशोधन के लागू होने के बाद संविधान के अनुसार वर्तमान कार्यकाल पंचायतों का पांचवां कार्यकाल है।
ग्राम पंचायतों को भूमि मालिकों/अधिकार धारकों से भू-राजस्व एकत्र करने का अधिकार दिया गया है और ग्राम पंचायतें एकत्रित भू-राजस्व का उपयोग अपने पास करेंगी अपने स्तर पर. ग्राम पंचायतों को विभिन्न कर, शुल्क और जुर्माना लगाने और आय पैदा करने वाली संपत्तियों के निर्माण के लिए धन उधार लेने/ऋण जुटाने के लिए भी अधिकृत किया गया है। पंचायतें हो चुकी हैं योजनाएँ तैयार करने का अधिकार। ग्राम पंचायतों को मोबाइल संचार टावरों के निर्माण की अनुमति देने और शुल्क लगाने के लिए भी अधिकृत किया गया है। ग्राम पंचायतें भी रही हैं Cr.P.C.1973 की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन सुनने और निर्णय लेने का अधिकार है और प्रति माह `500 से अधिक नहीं भरण-पोषण भत्ता दे सकता है। `1.00 प्रति का उपकर ग्रामीण क्षेत्र में बेची जाने वाली शराब की बोतलों को एकत्र किया जाता है और विकासात्मक गतिविधियों में उपयोग के लिए ग्राम पंचायत को हस्तांतरित कर दिया जाता है।
यह अनिवार्य कर दिया गया है कि कृषि, पशु पशुपालन, प्राथमिक शिक्षा, वन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, बागवानी, सिंचाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य, राजस्व और कल्याण विभाग ग्राम की बैठकों में भाग लेंगे। सभा जिसके अधिकार क्षेत्र में वे तैनात हैं।
पंचायती राज से संबंधित अन्य प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:
1) राज्य सरकार पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों को सम्मान राशि प्रदान कर रही है।
2) सरकार पीआरआई के निर्वाचित प्रतिनिधियों के यात्रा और दैनिक भत्ते पर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए पीआरआई को अनुदान सहायता प्रदान कर रही है।
3) राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (आरजीएसए) के तहत, ग्राम निर्माण/मरम्मत/उन्नयन के लिए 50 ग्राम पंचायतों को `2.50 करोड़ (`5.00 लाख प्रति पंचायत) जारी किए गए हैं। पंचायत घर. निम्न के अलावा
4) यह `2.50 करोड़ (`5.00 लाख प्रति पंचायत) सामान्य सेवा केंद्रों के निर्माण के लिए 50 ग्राम पंचायतों को जारी किया गया है।
5) भारत सरकार के मिशन मोड प्रोजेक्ट (ई-पंचायत प्रोजेक्ट) के तहत, पीआरआई में 12 कोर सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन शुरू किए गए हैं। प्रशिक्षण इन आवेदनों पर पंचायतों/विभागों के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थानों में की गई है। पंचायती राज संस्थाएँ इन सॉफ़्टवेयर अनुप्रयोगों का उपयोग पहले ही शुरू कर दिया है। वर्ष 2019-20 के दौरान 26,488 पंचायती राज प्रतिनिधियों/कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। विभिन्न विषयों पर संस्थाएँ।

15.आवास एवं शहरी विकास

हिमाचल प्रदेश सरकार आवास और शहरी विकास प्राधिकरण (हिमुडा) के माध्यम से विभिन्न श्रेणियों के मकान, फ्लैट और विकासशील भूखंड उपलब्ध करा रही है, ताकि सार्वजनिक क्षेत्र में विभिन्न आय वर्ग के लोगों की आवास मांग को पूरा करना।
चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए `158.00 करोड़ का परिव्यय है और दिसंबर तक `57.72 करोड़ का व्यय किया गया था , 2019 के दौरान इस वर्ष 255 फ्लैट, 13 मकान बनाने और विभिन्न श्रेणियों के 92 भूखंड विकसित करने का लक्ष्य है, जिनमें से 24 फ्लैट पूरे हो चुके हैं। साल के दौरान 2019-20 में विभिन्न विभागों के 50 भवन बनाने का लक्ष्य है जिसमें से 19 भवन पूर्ण हो चुके हैं। हिमुडा विभिन्न विभागों जैसे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, जेल, पुलिस, युवा सेवाएं एवं खेल, पशुपालन, शिक्षा, के जमा कार्यों का निष्पादन कर रहा है। मत्स्य पालन, आई.टी. विभाग, हिमाचल प्रदेश बस स्टैंड प्रबंधन और विकास प्राधिकरण, शहरी स्थानीय निकाय, पंचायती राज और आयुर्वेद विभाग।
ठियोग, फ्लावरडेल, संजौली, मंधाला परवाणु, जुर्जा (नाहन) और भटोलीखुर्द (बद्दी) में हाउसिंग कॉलोनियों का निर्माण कार्य चल रहा है। प्रगति हुई है और छबग्रोटी, फ्लावरडेल और परवाणू में कॉलोनियां पूरी हो चुकी हैं। हिमुडा के पास हिमाचल प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर 1,321 बीघे का भूमि बैंक है।
1) राज्य में हाउसिंग कॉलोनियों के विकास में भागीदार बनने वाले भूमि मालिकों के लिए नीति अधिसूचित की गई है।
2) हिमुडा द्वारा स्थापित विभिन्न कॉलोनियों में बिना बिकी इकाइयों के निपटान के लिए लागत पर रोक लगाने के बाद "पहले आओ पहले पाओ" के आधार पर मकानों/फ्लैटों/भूखंडों के आवंटन की योजना शुरू कर दी गई है।
3) भूमि/अतिरिक्त भूमि आवंटन की नीति अधिसूचित।
4) हाउसिंग कॉलोनियों में आवंटित बूथ और दुकान स्थलों पर तीसरी मंजिल के निर्माण के लिए अतिरिक्त प्रीमियम की नीति।
हिमुडा ने नवीनतम ईपीएस तकनीक का उपयोग करके चार महीने की रिकॉर्ड अवधि के भीतर एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में धर्मशाला में अपने सर्कल कार्यालय (उत्तर) भवन का निर्माण किया है। .
ह्यूमन इंटरफेस को कम करने और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए, हिमुडा ने ई-गवर्नेंस की ओर कदम बढ़ाया है और प्रधान कार्यालय में रिकॉर्ड को डिजिटल कर दिया है। अब, हिमुडा वेबसाइट ऑनलाइन वेब के साथ गतिशील है ऑनलाइन आवेदन और उसके आवंटन की सुविधा के लिए सक्षम सेवाएँ।
हिमाचल प्रदेश में शिमला और धर्मशाला नगर निगम सहित 54 शहरी स्थानीय निकाय हैं। सरकार उपलब्ध करा रही है इन स्थानीय निकायों को आम जनता को नागरिक सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिए हर साल अनुदान सहायता। राज्य वित्त की संस्तुतियों के अनुसार दिसंबर, 2019 तक यूएलबी को `130.90 करोड़ की राशि जारी की गई है।
नगर निगम क्षेत्रों में सड़कों का रखरखाव: लगभग 3,098 किलोमीटर। इनके द्वारा सड़कों/रास्तों/गलियों और नालियों का रखरखाव किया जा रहा है शहरी स्थानीय निकाय. चालू वित्तीय वर्ष 201920 के दौरान, इस योजना के तहत `12.00 करोड़ का बजट प्रावधान है और शहरी स्थानीय को `3.56 करोड़ जारी किए गए हैं 2019-20 के दौरान शहरी स्थानीय निकायों द्वारा बनाए रखी जा रही सड़कों/सड़क/पथ की लंबाई के अनुपात में निकाय।
राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM): NULM का मुख्य उद्देश्य शहरी गरीबों के बीच गरीबी को कम करना है प्रमोशन के माध्यम से विविध और लाभप्रद स्व-रोजगार और कौशल मजदूरी वाले रोजगार के अवसर, जिसके परिणामस्वरूप स्थायी आधार पर उनकी आजीविका में सराहनीय सुधार हुआ। इस योजना के निम्नलिखित मुख्य घटक हैं:- i) कौशल प्रशिक्षण और प्लेसमेंट के माध्यम से रोजगार। ii) सामाजिक गतिशीलता और संस्था विकास। iii) क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण। iv)स्वरोजगार कार्यक्रम। v) शहरी बेघरों के लिए आश्रय। vi) शहरी स्ट्रीट वेंडरों को सहायता। vii) नवोन्मेषी और विशेष परियोजनाएँ। वित्तीय वर्ष 2019-20 में इस योजना के क्रियान्वयन हेतु केन्द्र एवं राज्यांश के रूप में `2.50 करोड़ का बजट प्रावधान है एवं सरकार द्वारा `5.00 करोड़ भी जारी किए गए हैं। भारत की। मिशन के तहत 179 स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का गठन किया गया है, 371 लाभार्थियों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया गया है इस योजना में 100 अभ्यर्थियों को प्लेसमेंट प्रदान किया गया है। 125 व्यक्तियों और 65 एसएचजी को उनके सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने के लिए रियायती ब्याज पर ऋण सहायता प्रदान की गई। 23 नगर पंचायतों में करीब 507 स्ट्रीट वेंडरों का सर्वे किया गया है।
अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT): वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान इस योजना के अंतर्गत केन्द्र एवं राज्यांश के रूप में `55.00 करोड़ का बजट प्रावधान।
स्मार्ट सिटी मिशन (SCM): वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बजट प्रावधान है ` इस मिशन के अंतर्गत 100.00 करोड़ रूपये की धनराशि एवं धनराशि अब तक 34.00 करोड़ रुपये जारी किये जा चुके हैं। धर्मशाला में कुल 74 परियोजनाओं में से 6 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 11 और परियोजनाएं शुरू की गई हैं।
स्वच्छ भारत मिशन (शहरी): स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है और मंत्रालय द्वारा सभी वैधानिक कस्बों में कार्यान्वित किया जा रहा है आवास मामलों के विभाग, भारत सरकार। स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य शहरों/कस्बों को खुले में शौच से मुक्त बनाना और सभी को स्वस्थ और रहने योग्य वातावरण प्रदान करना है। राज्य में आम जनता की जागरूकता के लिए स्वच्छता पखवाड़ा, होर्डिंग्स/बैनर, नुक्कड़ नाटक, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के माध्यम से विभिन्न आईईसी गतिविधियां नियमित रूप से आयोजित की जा रही हैं। मीडिया, रैलियाँ आदि।
प्रधानमंत्री आवास योजना सभी के लिए आवास (शहरी): एक नया मिशन "सभी के लिए आवास" (शहरी) ) भारत सरकार द्वारा 17.06.2015 से प्रभावी होने के लिए लॉन्च किया गया है 31.03.2022. इस योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए किफायती घर उपलब्ध कराने वाले इन-सीटू स्लम पुनर्वास घटक के तहत झुग्गीवासियों के लिए घर उपलब्ध कराना है। (ईडब्ल्यूएस) निम्न आय समूह (एलआईजी) और मध्यम आय समूह (एमआईजी) क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी घटक के माध्यम से सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए घर उपलब्ध कराते हैं। घटक और सरकार. लाभार्थी के नेतृत्व वाले व्यक्तिगत घर घटक के लिए सब्सिडी के माध्यम से लाभार्थी घरों के निर्माण के लिए धन भी प्रदान कर रहा है। वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए, इस योजना के कार्यान्वयन के लिए केंद्र और राज्य के हिस्से के रूप में `35.20 करोड़ का बजट प्रावधान है, जिसमें से `1.74 करोड़ जारी किया गया है।
14वें वित्त आयोग अनुदान: 14वें वित्त आयोग ने दो प्रकार के अनुदान की सिफारिश की है, अर्थात् मूल अनुदान जारी किया जाएगा। बिना शर्त और प्रदर्शन 14वें वित्त आयोग में निर्धारित कुछ शर्तों को पूरा करने पर अनुदान। चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान `61.74 करोड़ का बजट प्रावधान है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए मूल अनुदान की दूसरी किस्त `17.92 करोड़ यूएलबी को जारी की गई।
पार्किंग का निर्माण: 15.14 प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में पार्किंग की समस्या के समाधान हेतु `5.50 करोड़ का प्रावधान किया गया है। चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बजट, जिसमें से पार्किंग के निर्माण के लिए अब तक 3 शहरी स्थानीय निकायों को 3.45 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। इस योजना के तहत धनराशि 50:50 के अनुपात में जारी की जाती है। (अर्थात् 50 प्रतिशत प्रदान किया जाता है सरकार और 50 प्रतिशत संबंधित यूएलबी द्वारा)।
पार्कों का विकास: शहरी स्थानीय निकायों में चरणबद्ध तरीके से पार्कों के निर्माण के लिए `5.50 करोड़ प्रदान किए गए हैं चालू वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान बजट में जिसमें से पार्कों के विकास के लिए अब तक 2 शहरी स्थानीय निकायों को 0.85 लाख रुपये जारी किए जा चुके हैं। इस योजना के तहत धनराशि 60:40 के अनुपात में (यानी) 60 प्रतिशत जारी की जाती है सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है. और संबंधित (यूएलबी) द्वारा 40 प्रतिशत।
कार्यात्मक, किफायती, टिकाऊ और सौंदर्यपूर्ण सुनिश्चित करना: नियोजित, न्यायसंगत और विनियमित विकास के माध्यम से रहने का वातावरण। हिमाचल प्रदेश शहर और देश योजना अधिनियम, 1977 को 55 योजना क्षेत्रों (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.60 प्रतिशत) और 35 विशेष क्षेत्र (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.06 प्रतिशत) में लागू किया गया है।
1) राज्य में निवेश को बढ़ावा देने के लिए, राज्य सरकार ने पत्र संख्या टीसीपी-एफ(5)-4/2019 दिनांक 10.10.2019 के माध्यम से औद्योगिक उपयोग के लिए दिशानिर्देशों को मंजूरी दे दी है। हिमाचल के तहत स्वीकृत नियम प्रदेश औद्योगिक निवेश नीति, 2019
2) योजना अनुमति के लिए एनओसी के संबंध में मानचित्र अनुमोदन प्रक्रिया और दस्तावेजीकरण को सरल बनाने के लिए, टीसीपी विभाग ने हिमाचल प्रदेश टाउन में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। और देश नियोजन नियम, 2014। एच.पी. टीसीपी (संशोधन) नियम, 2019 आम जनता की आपत्ति/सुझाव के लिए अधिसूचित किए गए थे। जिसकी अब अंतिम अधिसूचना जारी की जा रही है शासन स्तर पर सक्रियता से विचार चल रहा है।
3) वर्तमान में टीसीपी विभाग के पास मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए समान/समान नियम हैं जिन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। टीसीपी नियमों और विनियमों को सरल और सुव्यवस्थित करने के लिए सरकार ने एक राज्य स्तरीय कार्य समिति का गठन किया है जिसमें राज्य के विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों के 3 क्षेत्र विशेषज्ञ शामिल हैं। समिति इसके लिए नियम एवं विनियम प्रस्तावित करेगी राज्य में प्रचलित भू-पर्यावरण के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और पारंपरिक सामग्री और निर्माण प्रथाओं पर विचार करते हुए अधिक वैज्ञानिक और तर्कसंगत तरीके से राज्य।
4) 6 योजना/विशेष क्षेत्रों अर्थात् धुआलाकुआं-माजरा, जोगिंदरनगर, श्री चिंतपूर्णी, भोटा, भरमौर और नेर-चौक के लिए विकास योजनाएं तैयार की जा रही हैं।
1) टीसीपी नियमों और विनियमों का सरलीकरण।
2) सभी परियोजनाओं के तहत एनओसी को स्व-घोषणा द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
3) RERA एप्लिकेशन विकसित किए गए हैं और पंजीकरण 30 दिनों के भीतर किए जा रहे हैं।
4) सभी स्वीकृतियां 60 दिनों की समयसीमा में दी जा रही हैं।
5) विकास के लिए आवेदन करने वाली भूमि प्राप्त करने के बाद एमएसएमई उद्यम टीसीपी विभाग की वैधानिक मंजूरी की प्रतीक्षा किए बिना भौतिक कार्यान्वयन शुरू कर सकते हैं।
सिंगल विंडो सिस्टम: नगरपालिका के तहत अपने योजना अनुमति मामलों को निपटाने में जनता की सुविधा के लिए टीसीपी विधान के साथ-साथ अधिकांश नगर निगम क्षेत्रों में "सिंगल विंडो सिस्टम" शुरू किया गया था।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी): विभाग के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) मापदंडों के हिस्से के रूप में उद्योग और आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देना (डीपीआईआईटी), सरकार। भारत के टीसीपी और यूडी विभागों की उपलब्धि 19 मापदंडों पर 94 प्रतिशत है, जो 15 रैंकिंग वाले विभागों में से 155 में से एक है। निम्नलिखित ऑनलाइन हैं विभाग का वेब सेवा पोर्टल।
(a) G2C मॉडल जैसे ऑनलाइन आवेदन जमा करना, ऑनलाइन भुगतान, स्थिति की ऑनलाइन ट्रैकिंग, ऑनलाइन मंजूरी/अस्वीकृति, एसएमएस और ईमेल अलर्ट।
(बी) जी2बी मॉडल जिसमें सभी निजी क्षेत्र के पेशेवरों को अपलोड करने के लिए 24x7 पहुंच की पेशकश की जाती है उनके मामले. निजी क्षेत्र के पेशेवरों के लिए एक डैशबोर्ड उपलब्ध कराया गया है जो अपने ऑनलाइन काम के लिए एक डिजिटल स्टोर प्रदान करते हैं।
(c) G2G मॉडल, जहां प्रथम स्तर के अधिकारी से अंतिम मंजूरी प्राधिकारी तक प्रवाह की पूरी प्रक्रिया वेब आधारित है। विभिन्न प्रकार की वास्तविक समय रिपोर्ट तैयार करने के लिए एमआईएस की एक मजबूत प्रणाली बनाई गई है।
प्रदेश में 2019 में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) का गठन किया गया है, जिसने शिमला में काम करना शुरू कर दिया है। आवास परियोजनाओं की सूची और अनुमानित लागत

16.सूचना एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी

सूचना एवं प्रौद्योगिकी हिमस्वान: राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) के तहत, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल प्रदेश (DITHP) हिमस्वान (हिमाचल स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क) नामक सुरक्षित नेटवर्क बनाया। हिमस्वान सभी राज्य सरकार के विभागों को ब्लॉक स्तर तक सुरक्षित नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करता है विभिन्न G2G (सरकार से सरकार), G2C (सरकार से नागरिक) और G2B (सरकार से व्यवसाय) सेवाएँ। राज्य भर में 2,117 सरकारी कार्यालय हिमस्वान नेटवर्क के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
हिमाचल प्रदेश राज्य डेटा सेंटर (HPSDC): सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, (DIT) ने हिमाचल प्रदेश की स्थापना की है। प्रदेश राज्य डेटा केंद्र (एचपीएसडीसी) नागरिकों के लाभ के लिए विभिन्न सरकारी विभागों के आईटी अनुप्रयोगों की मेजबानी करेगा और राज्य सरकार के कार्यालयों के लिए सामान्य बुनियादी ढांचा तैयार करेगा।
लोक मित्र केंद्र की स्थापना: इस योजना का लक्ष्य ग्राम पंचायत स्तर पर एलएमके (सीएससी) की स्थापना करना है। राज्य और फ्रंट एंड के रूप में कार्य करना सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग करके एकीकृत तरीके से ग्रामीण नागरिकों को उनके दरवाजे पर सरकारी, निजी और सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं के लिए वितरण बिंदु। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में G2C सेवाएं जैसे बिजली बिल संग्रह, जमाबंदी और कई सेवाएं प्रदान करने के लिए 3701LMK स्थापित किए गए हैं।
NeGP के तहत क्षमता निर्माण: भारत सरकार की क्षमता निर्माण योजना के तहत, प्रशिक्षण जैसे विभिन्न घटक हैं सरकारी कर्मचारियों की संख्या, विभिन्न ई-गवर्नेंस परियोजनाओं के कार्यान्वयन में राज्य सरकार की सहायता के लिए तकनीकी और पेशेवर जनशक्ति की सोर्सिंग। SeMT के तहत, राज्य में आयोजित NeGD और डिजिटल लॉकर, ओपन फोर्ज कार्यशाला और प्रशिक्षण के माध्यम से 3 तकनीकी संसाधनों को तैनात किया गया है।
रेवेन्यू कोर्ट केस मॉनिटरिंग सिस्टम (RCMS): रेवेन्यू कोर्ट केस मॉनिटरिंग सिस्टम विभाग द्वारा विकसित किया गया है। सूचान प्रौद्योगिकी संभाग, जिला, एस.डी.एम. में राजस्व न्यायालयों के उपयोग के लिए। और तहसील स्तर. यह प्रणाली राजस्व न्यायालयों की नियमित कार्यवाही, अंतरिम आदेशों और निर्णयों को कैप्चर करती है। वर्तमान में 282 राजस्व अदालतें आरसीएमएस सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही हैं और 83,603 अदालती मामले आरसीएमएस में दर्ज किए गए हैं।
यूनिक आईडी (आधार): आधार कार्यक्रम दिसंबर, 2010 में हिमाचल प्रदेश में शुरू किया गया था और तब से राज्य सरकार ने एक बनाए रखा है आधार निर्माण के मामले में अग्रणी स्थान। राज्य में 73,84,022 निवासी हैं (अनुमानित जनसंख्या 2019)। राज्य में 78,41,393 यूआईडी (106.19%) सृजित किये गये हैं। पीडीएस डेटाबेस में आधार सीडिंग 98.4 प्रतिशत, मनरेगा में 97.39 प्रतिशत, शिक्षा में 99.90 प्रतिशत, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) में 90.00 प्रतिशत है। एलपीजी 91.79 प्रतिशत, चुनाव 71.71 प्रतिशत और ईपीएफ 35.32 प्रतिशत।
ई-ऑफिस: ई-ऑफिस का उद्देश्य सरकारी कार्यालयों में फाइल मूवमेंट स्वचालन करना है, जिससे प्रक्रिया अधिक कुशल हो सके। प्रभावी और अंतर-सरकारी और अंतर-सरकारी लेनदेन के लिए पारदर्शी। ई-ऑफिस को विभिन्न विभागों में निम्नानुसार तैनात किया गया है:
1) ई-ऑफिस-46 में मैप किए गए विभागों की संख्या
2) ईऑफिस में मैप किए गए उपयोगकर्ताओं की संख्या - 1,837।
3) ई-ऑफिस में 12,423 फाइलें बनाई गई हैं।
4) विभिन्न विभागों के लिए नियमित आधार पर ई-ऑफिस पर प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं।
ई-जिला: ई-जिला परियोजना एक मिशन मोड परियोजना (एमएमपी) है, जिसका उद्देश्य प्रदान करना है एकीकृत नागरिक केन्द्रित सेवाएँ। इसमें एकीकृत और निर्बाध डिलीवरी की परिकल्पना की गई है कार्य प्रवाह के स्वचालन, बैकएंड कम्प्यूटरीकरण और भाग लेने वाले विभागों में डेटा डिजिटलीकरण के माध्यम से जिला प्रशासन द्वारा नागरिक सेवाओं का वितरण। इस परियोजना के अंतर्गत निम्नलिखित गतिविधियाँ पूरी की जा चुकी हैं:
1) सभी 12 जिलों में ई-डिस्ट्रिक्ट के तहत 62 ई-सेवाएं शुरू की गईं।
2) मेसर्स टेरा सीस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ई-डिस्ट्रिक्ट एमएमपी के राज्यव्यापी रोलआउट के लिए एसआई (सिस्टम इंटीग्रेटर) के रूप में काम कर रहा है।
3) सभी 12 जिलों के सभी विभागीय स्थानों पर हार्डवेयर डिलीवरी।
4) यूआईडीएआई (आधार), एसएमएस गेटवे, पेमेंट गेटवे, भूमि रिकॉर्ड, ई-परिवार, बीपीएल, सीआरएस, लोक सेवा गारंटी अधिनियम (पीएसजी) के साथ ई-डिस्ट्रिक्ट एप्लिकेशन का एकीकरण पूरा हो गया।
5) ईडिस्ट्रिक्ट परियोजना के तहत विकास के लिए एसआई को विभिन्न विभागों की अतिरिक्त 50 जी2सी सेवाएं दी गईं।
6) आईटी विभाग ने राजस्व विभाग सेवाओं के लिए नए भुगतान गेटवे का एकीकरण शुरू कर दिया है।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजना: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) सीधे सब्सिडी हस्तांतरित करने का एक कार्यक्रम है लोगों को। लाना ही इसका प्राथमिक उद्देश्य है सरकार द्वारा प्रायोजित धन के वितरण में पारदर्शिता लाना और चोरी को समाप्त करना। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना के अंतर्गत `4,043.99 करोड़ का सफलतापूर्वक भुगतान किया जा चुका है 56 योजनाओं के तहत लाभार्थियों के आधार सक्षम बैंक खातों में स्थानांतरित किया गया। कुल 185 (91 केंद्रीय प्रायोजित योजनाएँ और 94 राज्य प्रायोजित योजनाएँ) हैं इसे भारत डीबीटी पोर्टल पर शामिल किया गया है और डीआईटी सभी राज्य सरकार के विभागों के परामर्श से अतिरिक्त योजनाओं की पहचान करने की प्रक्रिया में है।
1) 34 विभिन्न योजनाओं ने 61 लाख से अधिक लाभार्थियों को 1,067 करोड़ रुपये वितरित किए हैं।
मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन 1100: मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन सक्रिय रूप से नागरिकों तक पहुंचने का एक प्रयास है और हेल्पलाइन प्रदान करके उन्हें सुविधा प्रदान करना नागरिक कॉल सेंटर और अन्य उपयुक्त माध्यमों के माध्यम से सुविधा जो नागरिकों को निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए सेवा प्रदान करती है:
1) शिकायत पंजीकरण।
2) नागरिकों के सुझाव और मांगों को ध्यान में रखना
3) सरकारी योजनाओं से संबंधित जानकारी प्रदान करें।
4) समय पर समाधान के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश। नागरिक राज्य में कहीं से भी टोल फ्री नंबर 1100 डायल करके अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। उनकी कॉल को पोर्टल पर ऑनलाइन दर्ज किया जाता है और शिकायत के समाधान तक उसे ट्रैक किया जाता है। इसके बाद ही शिकायत को सॉफ्टवेयर में बंद किया जाता है शिकायतकर्ता से पुष्टि प्राप्त करना। मुख्यमंत्री सेवा संकल्प योजना की स्थिति इस प्रकार है: 31 दिसंबर 2019 तक, कुल 74 विभागों को सीएम सेवा संकल्प हेल्पलाइन के साथ मैप किया गया है। कुल प्राप्त कॉलों की संख्या 1,77,231 थी और प्राप्त शिकायतों की संख्या 43,633 थी (तालिका 16.1)। स्थिति स्नैपशॉट नीचे संलग्न है:

डिजिलॉकर: डिजिलॉकर दस्तावेजों और प्रमाणपत्रों को डिजिटल रूप से जारी करने और सत्यापन के लिए एक क्लाउड आधारित प्लेटफॉर्म है। डिजी सहित प्रदेश भर के 11 विभागों में लॉकर लागू कर दिया गया है खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग (एफसीएस और सीए), हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग (एचपीएसएससी), हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य बीमा योजना (एचपीएसबीवाई), बागवानी, परिवहन, पंचायती राज, आयुर्वेद आदि
भारत नेट: भारत नेट भारत सरकार की एक पहल है जो ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करती है। देश। इसका उद्देश्य ब्रॉडबैंड प्रदान करना है विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में कनेक्टिविटी। यह ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जुड़ने वाली दुनिया की सबसे बड़ी ग्रामीण कनेक्टिविटी योजना है। भारत नेट परियोजना की स्थिति इस प्रकार है:
1) भारत नेट चरण के तहत हमीरपुर (नादौन, सुजानपुर टीहरा, बिझड़ी, बमसन), मंडी (सेराज) और सोलन (नालागढ़) के 6 ब्लॉकों में 207 ग्राम पंचायतें हाई स्पीड इंटरनेट बैंडविड्थ का उपयोग करके जुड़ी हुई हैं। -मैं प्रोजेक्ट करता हूं. वाई-फाई चौपाल परियोजना के तहत 170 ग्राम पंचायतें लोगों को वाई-फाई कनेक्टिविटी प्रदान कर रही हैं।
1) 153 दूरस्थ जीपी वीएसएटी लिंक का उपयोग करके जुड़े हुए हैं। आज तक, सामग्री 88 स्थानों पर भेज दी गई है, जिनमें से 30 स्थानों को लाइव कर दिया गया है जिनमें शामिल हैं लाहुल और स्पीति में 14 ग्राम पंचायतें, चंबा में 13 ग्राम पंचायतें और किन्नौर जिले में 3 ग्राम पंचायतें हैं।
3) इसके अलावा, अन्य दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को दूरदराज के क्षेत्रों में दूरसंचार सुविधा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। मेसर्स रिलायंस जियो ने 42 बीटीएस की योजना बनाई है लाहौल एवं स्पीति में से 11 बीटीएस स्थापित कर सक्रिय कर दिए गए हैं। दूरदराज के इलाकों के लोग अब हाई स्पीड इंटरनेट सुविधा के साथ-साथ दूरसंचार सुविधा भी प्राप्त कर रहे हैं
HP MyGov: MyGov तकनीक की मदद से नागरिकों और सरकार के बीच साझेदारी बनाने का एक अभिनव मंच है। राज्य की प्रगति और विकास के लिए। इस अनूठे मंच का उद्देश्य राज्य सरकार के साथ नागरिक साझेदारी को बढ़ाना है और इसके विपरीत। MyGov हिमाचल राज्य के लोगों को उनके विचारों, सुझावों को संप्रेषित करने में सहायता करता है प्रतिक्रिया।
राज्य सरकार रचनात्मक विचारों, विचारों पर उचित ध्यान देती है और राज्य और देश की बेहतरी के लिए अन्य सभी योगदानों का भी समन्वय करती है। राज्य सरकार ने 6 जनवरी, 2020 को नागरिक सहभागिता मंच MyGov हिमाचल (http://himachal.mygov.in) लॉन्च किया।
राज्य सरकार की आईटी नीति के आधार पर, आईटी के विकास को आगे बढ़ाने के लिए राज्य में कुछ पहल की गई हैं।
1) सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीओआईटी): स्मार्ट (सरल, नैतिक, जवाबदेह, उत्तरदायी और पारदर्शी) सरकार सुनिश्चित करने के लिए आईटी उपकरणों का उपयोग करता है।
2) औद्योगिक विकास: विंग को राज्य में आईटी से संबंधित उद्योगों के विकास के लिए एकल खिड़की सुविधा प्रदाता के रूप में स्थापित किया गया है।
3) सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क की स्थापना: राज्य सरकार ने शिमला, सोलन, हमीरपुर, बद्दी, परवाणु, कुल्लू, मंडी और धर्मशाला में हाई-टेक आवास स्थापित किए हैं। चरणबद्ध तरीके से राज्य में अधिक स्थानों पर हाई-टेक आवास बनाए जा रहे हैं और भारत के सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, आईटी मंत्रालय, भारत सरकार ने शिमला में एक सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क और हाई स्पीड डेटा कनेक्टिविटी सुविधा स्थापित की है।
4) टेलीमेडिसिन: इस कार्यक्रम ने पीएचसी स्तर पर भी आम आदमी तक विशेषज्ञों की पहुंच प्रदान करके राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया है।