Tribal Development
आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग

आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18


1.सामान्य समीक्षा

भारतीय अर्थव्यवस्था ने दीर्घ आर्थिक स्थिरता को पूर्नस्थापित करने हेतु निरन्तर वृृद्धि जारी रखी। इस स्थिरता के लिए घरेलू नीतिगत विकास परिवर्तनों का प्रमुख योगदान है और इन्हीं कारणों से वस्तु व सेवा कर अधिनियम लागू करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। वर्ष 2017-18 के दौरान राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में नियमित व निरन्तर वृ्द्वि हुई है। पिछले 3 वर्षों में भारत की वृद्वि दर साकारात्मक रही। वर्ष 2016-17 में अर्थव्यवस्था में वृद्वि 7.1 प्रतिशत रही है जोकि वर्ष 2017-18 की अपेक्षा में कम हो कर 6.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से स्थापित हुई है जोकि विविध व्यवसायिक क्षेत्रों में वृद्वि के कारण ही सम्भव हो पाया है। भारत ने यह दिखाया है कि वह विश्व अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धात्मक वृद्वि कर सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्यों में वृद्वि होने के बाबजूद भी बड़े आर्थिक मापदण्ड जैसे वित्तिय घाटा, चालू खाता संतुलन तथा मुद्रास्फीति नियंत्रण में रही है। वर्ष के दौरान थोक मूल्य मुद्रास्फीति भी नियंत्रणीय सीमा में रही जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक गतवर्ष के मुकाबले कम रहा और भारतीय निर्यात में निरन्तर वृद्वि हुई, जिसके फलस्वरूप वैश्विक स्तर पर भारत एक सर्वाधिक आकर्षक अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है।
वर्तमान दीर्घ आर्थिक परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है और बाह्य कारणों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था नए आधार वर्ष 2011-12 के अनुसार स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2016-17 में ृ121.96 लाख करोड़ हुआ जो कि वर्ष 2015-16 में ृ113.86 लाख करोड़ था। प्रचलित भाव पर सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2016-17 में ृ152.54 लाख करोड़ आंका गया है, जोकि वर्ष 2015-16 ृ137.64 लाख करोड़ था, जोकि 10.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में स्थिर भाव ;आधार 2011-12द्ध के अनुसार सकल मूल्य संवर्धन गत वर्ष में 8.2 प्रतिशत की तुलना में वर्तमान वर्ष 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रहा। वर्ष 2015-16 की तुलना में 2016-17 में कम वृद्धि का कारण मुख्यतयः विनिर्माण (7.9 प्रतिशत)ए निर्माण (1.3 प्रतिशत)ए यातायात, संचार व सूचना प्रसारण सम्बन्धित सेवाओं (4.3 प्रतिशत)ए व्यापार, मुरम्मत, होटल व रेस्तरां (8.9 प्रतिशत)ए वित्त सेवाओं (1.3 प्रतिशत)ए स्थावर सम्पदा, निवास स्वामित्व तथा व्यवसायिक सेवाओं में (8.0 प्रतिशत) रहा।
वर्ष 2015-16 में प्रचलित भाव पर प्रति व्यक्ति आय ृ94,731 थी जोकि वर्ष 2016-17 में 9.6 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ृ1,03,870 हो गई। स्थिर भाव ;2011.12द्ध के अनुसार प्रति व्यक्ति आय 2015-16 में ृ77,826 से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ ृ82,229 हो गई है।
वित्तीय वर्ष 2017-18 में विकास दर अग्रिम अनुमानों के अनुसार 6.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है।
मुद्रास्फीति प्रबन्धन सरकार की प्रमुख प्राथमिकता रही है। मुद्रास्फीति वर्ष दर वर्ष थोक मूल्य सूचकांक के अनुसार मापी जाती है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 ;अप्रैल-दिसम्बरद्ध के दौरान अधिकतर अवधि में थोक मूल्य सूचकांक 3 प्रतिशत सेे कम रहा। मुद्रास्फीति की दर थोक मूल्य सूचकांक के अनुसार दिसम्बर, 2016 में 2.1 प्रतिशत थी जोकि दिसम्बर, 2017 में बढ़कर 3.6 प्रतिशत हो गई। औद्योगिक श्रमिकों का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ;समस्त भारतद्ध के अनुसार दिसम्बर, 2017 में 4.0 प्रतिशत रहा जोकि दिसम्बर, 2016 में 2.2 प्रतिशत था।
हिमाचल प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था अपने साधारण, मेहनतकश लोगों व केन्द्र सरकार की प्रगतिशील नीतियों केे मध्यनजर देश में निरन्तर बढ़ रही है। आज के परिपेक्ष में हिमाचल देश में सबसे अधिक सम्पन्न तथा तीव्र गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जायेगा। वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्य की अर्थ-व्यवस्था के 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने की सम्भावना है।
राज्य सकल घरेलू उत्पाद, कारक लागत पर प्रचलित भावों पर वर्ष 2015-16 में ृ1,13,555 करोड़ से 9.6 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2016-17 में ृ1,24,236 करोड़ रहा। स्थिर भाव पर दर वर्ष 2014-15 में ृ96,274 करोड़ से 6.9 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2016-17 में ृ1,02,954 करोड़ रहा, जोकि गत वर्ष में 8.1 प्रतिशत थी। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि मुख्यतः सामुदायिक व व्यैक्तिक सेवाओं 18.1 प्रतिशत, यातायात व व्यापार 8.2 प्रतिशत, विनिर्माण क्षेत्र 7.1 प्रतिशत, वित्तीय व स्थावर सम्पदा में 5.8 प्रतिशत, निर्माण 5.4 प्रतिशत तथा विद्युत, गैस,व जलापूर्ति 2.9 प्रतिशत के कारण सम्भव हुई है, जबकि प्राथमिक क्षेत्र में कमी 0.7 प्रतिशत कम रही। खाद्य उत्पादन वर्ष 2015-16 में 16.34 लाख मी0टन से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 17.45 लाख मी0टन रहा जबकि वर्ष 2017-18 में 16.45 मी0टन का लक्ष्य है। फल उत्पादन वर्ष 2016-17 में 34.1 प्रतिशत की कमी के साथ 6.12 लाख मी0टन रहा जोकि वर्ष 2015-16 में 9.29 लाख मी0टन था तथा वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक उत्पादन 5.00 लाख मी0टन हुआ है।
वर्ष 2015-16 में प्रति व्यक्ति आय प्रचलित भाव पर ृ1,34,089 से बढ़कर वर्ष 2016-17 में ृ1,46,294 हो गई जो कि 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।
अग्रिम अनुमानों के अनुसार तथा दिसम्बर, 2017 की आर्थिक स्थिति के दृष्टिगत वर्ष 2017-18 में विकास दर 6.3 प्रतिशत के आसपास रहेगी।

्रदेश की अर्थव्यवस्था जोकि मुख्यतः कृषि व सम्बन्धित क्षेत्रों पर ही निर्भर है। 1990 के दशक में विशेष उतार चढ़ाव नहीं आए और विकास दर अधिकांशतः स्थिर रही। अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र से उद्योग व सेवा क्षेत्रों के पक्ष में रूझान पाया गया क्योंकि कृषि क्षेत्र का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में योगदान जो वर्ष 1950-51 में 57.9 प्रतिशत था तथा घटकर 1967-68 मंे 55.5 प्रतिशत, 1990-91 में 26.5 प्रतिशत और 2016-17 में 9.7 प्रतिशत रह गया।
उद्योग व सेवा क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान 1950-51 में क्रमशः 1.1 व 5.9 प्रतिशत से बढ़कर 1967-68 में 5.6 व 12.4 प्रतिशत, 1990-91 में 9.4 व 19.8 प्रतिशत और 2016-17 में 25.2 व 44.0 प्रतिशत हो गया। शेष क्षेत्रों में 1950-51 के 35.1 प्रतिशत की तुलना में 2016-17 में 30.8 प्रतिशत का सकारात्मक सुधार हुआ है।
ककृषि क्षेत्र के घट रहे अंशदान के बावजूद भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की महत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा। राज्य की अर्थव्यवस्था का विकास अधिकतर कृषि तथा उद्यान उत्पादन द्वारा ही निर्धारित होता है और सकल घरेलू उत्पाद में भी इसका मुख्य योगदान रहता है। अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव रोजगार, अन्य आदान तथा व्यापार सम्बद्धताओं के कारण रहा है। सिंचाई सुविधाओं के अभाव में हमारा कृषि उत्पादन अभी भी अधिकांशतः सामयिक वर्षा व मौसम स्थिति पर निर्भर करता है। सरकार द्वारा भी इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गई है।
राज्य ने फलोत्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विविध जलवायु, उपजाऊ गहन और उपयुक्त निकासी वाली भूमि तथा भू-स्थिति में भिन्नता एवं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में समशीतोषण से उप्पोषण कटिबन्धीय फलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है। प्रदेश का क्षेत्र फलोत्पादन में सहायक व सम्बन्धी उत्पाद जैसे फूल, मशरूम, शहद और हाॅप्स की पैदावार के लिए भी उपयुक्त है।

वर्ष 2017-18 में ;दिसम्बर, 2017 तकद्ध 5ण्00 लाख टन फलों का उत्पादन हुआ तथा 3,000 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र फलों के अधीन लाने का लक्ष्य है जिसके फलस्वरूप तक 2,552 हैक्टेयर क्षेत्र फलों के अधीन लाया जा चुका है तथा दिसम्बर,2017 तक 6.69 लाख विभिन्न प्रजातियों के फलों के पौधों का वितरण किया गया। प्रदेश में बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। वर्ष 2016-17 में 16.54 लाख टन सब्जी उत्पादन हुआ जबकि वर्ष 2015-16 में 16.09 लाख टन का उत्पादन हुआ था जो कि 2.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वर्ष 2017-18 में बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन 15.40 लाख टन होने का अनुमान है।
हिमाचल प्रदेश सरकार मौसम परिवर्तन से तालमेल बिठाने हेतु महत्वाकांक्षी योजना पर काम रही हैै। राज्य की कार्य योजना में मौसम परिवर्तन से सम्बन्धित संस्थागत क्षमता का सृजन तथा क्षेत्रवार गतिविधियों को अमल में लाना है।
प्रदेश की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को देखते हुए सरकार ने एक कार्यक्रम प्रारम्भ किया है जिसमें राज्य को निरन्तर निर्बाध विद्युत की आपूर्ति की जा रही है। विद्युत के उत्पादन, संचारण तथा वितरण को बढ़ाने के लिए कई पग उठाए गए हैं। ऊर्जा संसाधन के रूप में जलविद्युत आर्थिक रूप से व्यवहारिक प्रदूषण रहित तथा पर्यावरण के अनुकूल है। इस क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए राज्य की विद्युत नीति सभी पहलुओं जैसे कि अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन संरक्षण की क्षमता, उपलब्धता, बहन करने योग्य, दक्षता, पर्यावरण संरक्षण व प्रदेश के लोगों को रोज़गार सुनिश्चित करने पर जोर देती है और निजी क्षेत्रों के योगदान को भी प्रोत्साहित करती है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा प्रदेशवासी निवेशकों के लिए 2 मैगावाट की लघु परियोजनाओं को आरक्षित रखा गया है और 5 मैगावाट की परियोजनाओं तक उन्हें प्राथमिकता दी जाती है।
पर्यटन अर्थव्यवस्था में वृद्धि करने का एक प्रमुख साधन है तथा राजस्व प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण सत्रोत है तथा विविध प्रकार के रोज़गारों का जनक है। राज्य सरकार ने पर्यटन विकास के लिए उपयुक्त आधारभूत सुविधाओं की संरचना की है जिनमें नागरिक सुविधाओं का प्रावधान, सड़क मार्ग, दूरसंचार तंत्र, विमानपत्तन, यातायात सुविधाएं, जलापूर्ति तथा नागरिक सुविधाएं इत्यादि उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसके परिणाम स्वरूप उच्च-स्तरीय प्रचार से घरेलू तथा विदेशी पर्यटकों के आगमन में पिछले कुछ वर्षों के दौरान महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है जोकि निम्नलिखित है।
1) सूचना प्रौद्योगिकी में रोज़गार सृजन व राजस्व अर्जन के व्यापक अवसर हैं। प्रशासन में प्रवीणता व पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से सरकार ने हिमस्वान के माध्यम से जी.टू.जी., जी.टू.सी., जी.टू.बी., ई-प्रक्योरमैंट, ई-समाधान तंत्र इत्यादि प्रणालियां शुरू की है।
2) वर्ष 2018-19 की वार्षिक योजना ृ6,300 करोड़ की निर्धारित की गई है जोकि वर्ष 2017-18 से 10.5 प्रतिशत अधिक है।
3) मूल्य नियन्त्रण सरकार की हमेशा प्रमुखता सूची में रहा हैै। हि0प्र0 श्रमिक वर्ग खाद्य मूल्य सूचकांक वर्ष 2017-18 में राष्ट्रीय स्तर के 4.0 प्रतिशत की तुलना में माह दिसम्बर, 2017 तक 5.3 प्रतिशत रहा।
4) सामाजिक कल्याण कार्यक्रम राज्य सरकार की प्रमुख प्राथमिकता रही हैै। लोक सेवाओं के संचालन हेतु सरकार द्वारा लगातार एवं ठोस प्रयास किए जा रहे हैं।
5) राज्य के 70 वर्ष की आयु से ऊपर के वृद्धों को जो अन्य किसी प्रकार की पैन्शन नहीं ले रहे हैं को बिना किसी आय सीमा के पैन्शन प्रदान की जाएगी ।
6) अद्वितीय व नवीनतम कार्यों को 100 दिन के लक्ष्य के साथ पूर्ण करने के लिए प्रदेश सरकार के सभी विभागों को निर्देश दिये गये हैं।
7) प्रदेश के सभी सरकारी कर्मचारियों व पेंशनभोगियों को को 1.01.2016 से मूल वेतन पर 8 प्रतिशत अंतरिम राहत प्रदान कर दी गई है।
8) भारत सरकार द्वारा ‘‘समार्ट सिटि मिशन‘‘ के लिए नगर निगम, शिमला को अनुमोदित किया गया है।
9) राज्य के 25 विभागों में ‘‘पब्लिक सर्विस गारन्टी एक्ट‘‘ के अन्तर्गत् 183 सेवाओं को समयवद्ध एवं समाधान हेतु लागू किया गया है।
11) सामाजिक सुरक्षा पैन्शन को ृ650 से बढ़ाकर ृ700 प्रति माह किया गया है। ऽ कौशल विकास योजना के अन्तर्गत् 1,58,100 प्रशिक्षुओं को ृ116 करोड़ प्रदान किए गए हैं।
12) बैंकों द्वारा 43 प्रतिशत किसानों को क्रेडिट कार्ड आवंटित किए गए हैं।
13) राज्य में 18,38,036 राशनकार्ड धारकों को बढ़ती महंगाई से निजात दिलाने हेतु रियायती दर पर आवश्यक खाद्य सामग्री प्रदान की जा रही है।
14) खेती को बढ़ाने व आवारा पशुओं, जंगली जानवरों तथा बंदरों से बचाने हेतू सरकार द्वारा मुख्यमन्त्री खेत संरक्षण योजना हेतु अनुदान 80 प्रतिशत किया गया है।
15) मौसम आधारित फसलों के बीमा योजना पुनर्निर्माण के अन्तर्गत् ;आर.डब्ल्यू.वी.सी.आई.एस.द्ध द्वारा 2,86,378 किसानों को वर्ष 2016-17 के दौरान रवी फसलों के लिए बीमित किया गया है।
16) 27,436 मेगावाट चिन्हित क्षमता में से 10,519 मेगावाट जल विद्युत का दोहन किया जा चुका है, जो 38.34 प्रतिशत है।
17) उद्यान क्षेत्र में विविधता हेतु 156.19 हैक्टेयर भूमि को माह दिसम्बर, 2017 तक फूल उत्पादन के अन्तर्गत लाया गया है।
18) मौसम आधारित फसल बीमा योजना ;आर.डब्ल्यू.वी.सी.आई.एस.द्ध सेब बहुल वाले 36 खण्डों, आम बहुल वाले 41 खण्डों, किन्नू बहुल वाले 15 खण्डों, प्लम बहुल वाले 13 खण्डों व आड़ू बहुल वाले 5 खण्डों में लागू की गई है।
19) वर्ष 2016-17 के दौरान 1,596 मिलियन युनिट विद्युत का उत्पादन किया गया है। ऽ प्रदेश में उपलब्ध पन-बिजली की कुल 27,436 मैगावाट क्षमता में से 10,519 मैगावाट पन-बिजली का दोहन कर लिया गया है जोकि कुल क्षमता का 38.34 प्रतिशत है।
20) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना गारंटी के तहत 4,32,005 परिवारों के लिए 156.54 लाख कार्य दिवस सृजित किए गए।
21) वर्तमान वित्त वर्ष में राजीव आवास योजना के अन्तर्गत 846 घरों का निर्माण किया जा रहा है।
22) प्रदेश के सभी 12 जिलों में स्वच्छ भारत अभियान को एक परियोजना के रूप में चलाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश स्वच्छता के क्षेत्र में अग्रणी राज्य के रूप में जाना जाता है।
23) मातृ-शक्ति बीमा योजना के अन्तर्गत, गरीबी रेखा से नीचे रह रही 10 से 75 वर्ष की महिलाओं को उनकी अपंगता अथवा मृत्यु पर लाभान्वित किया जा रहा है।
24) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत 3,280 महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सहायता प्रदान की गई ।
25) माननीय सांसदों द्वारा दो चरणों में सांसद आदर्श ग्राम योजना के अन्तर्गत 10 पंचायतों को गोद लिया गया है।
26) शहरी स्थानीय निकायों द्वारा 1,416 कि0मी0 सड़कें/पथ/ गलियांे/नालियों का रख-रखाव किया जा रहा है।
27) लाल बहादुर शास्त्री कामगार एवम् आजीविका योजना के अन्तर्गत प्रदेश के नये स्थापित नगर पालिकाओं और नगर निगमों को दैनिक श्रमिक रोजगार के लिए ृ1.50 करोड़ उपलब्ध करवाये गये।
28) राज्य में विश्वविद्यालय स्तर तक छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है।
29) नौवीं से बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदाय और बीपीएल परिवारों की छात्राएं शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों में छात्रावास की सुविधा प्रदान की जा रही है।
30) एससी/एसटी/ओबीसी को पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति के तहत कुल 45,351 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
31) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में सुधार के लिए दो सरकार। प्रत्येक जिले के प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों को आदर्श मॉडल स्कूल के रूप में नामित किया गया है।
32) समाज के वंचित वर्ग की शैक्षिक स्थिति में सुधार के लिए राज्य/केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न चरणों में विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्ति/वजीफा प्रदान किया जा रहा है।
33) जिला मंडी में मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थापित की जानी है।
34) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत 95 स्वास्थ्य संस्थानों को 24 घंटे आपातकालीन सेवाएं प्रदान करने के लिए पहचाना गया है।
35) मुख्यमंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत चयनित परिवारों को 1.05 लाख स्मार्ट कार्ड जारी किये गये हैं।
36) "बेटी है अनमोल योजना" के तहत 16,908 लड़कियां लाभान्वित हुई हैं।
37) मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत दिसंबर, 2017 तक 691 लाभार्थियों को कवर किया गया।
38) चालू वर्ष के दौरान अंतरजातीय विवाह के तहत 219 जोड़े लाभान्वित हुए हैं और अनुदान 25,000 से बढ़ाकर 50,000 कर दिया गया है।
39) माता शबरी महिला सशक्तिकरण योजना के तहत पात्र महिलाओं को गैस कनेक्शन खरीदने के लिए `1,300 प्रदान किए जा रहे हैं और कुल 5,100 महिलाएं लाभान्वित हुई हैं।
40) बलात्कार पीड़ितों को वित्तीय सहायता और सहायता सेवाएँ प्रदान करने के लिए `75,000 की राशि प्रदान की जा रही है।
41) प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) के तहत, गर्भवती के खाते में सीधे `5,000/- का नकद प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा है। पहले जीवित बच्चे के लिए महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताएं।
42) चालू वित्तीय वर्ष में मदर टेरेसा असहाय मातृ संबल योजना के तहत 16,521 बच्चे लाभान्वित हुए हैं।
43) जवाबदेही, पारदर्शिता, दक्षता सुनिश्चित करने और सामान्य सार्वजनिक वेब सेवाओं के लिए सेवा वितरण तंत्र में सुधार करने के लिए राज्य में सभी योजना एवं विशेष क्षेत्रों के लिए शुरू किया गया है।
44) हिमाचल एकमात्र राज्य है जिसने राज्य के 2,260 सरकारी कार्यालयों को क्षैतिज कनेक्टिविटी प्रदान की है।
45) 2,308 लोक मित्र केंद्र सक्रिय हैं और 28 जी2सी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
46) सभी 12 जिलों में ई-डिस्ट्रिक्ट के तहत 52 ई-सेवाएं शुरू की गईं।
47) आधार योजना के तहत 2017 की अनुमानित जनसंख्या के मुकाबले 75.73 लाख (105%) से अधिक निवासियों के लिए यूआईडी तैयार की गई है।
48) प्रति व्यक्ति आय 2016-17 में `1,46,294 के स्तर को छू गई है, जो 201516 की तुलना में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि है और 2017-18 में `1,58,462 होने का अनुमान है।

2.राज्य आय एवम् लोक वित्

राज्य आय अथवा सकल राज्य घरेलू उत्पाद किसी भी राज्य के आर्थिक विकास को मापने के लिए अति आवश्यक सूचक हैं। द्रुत अनुमानों के अनुसार वर्ष 2016-17 में प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद ृ1,02,954 करोड़ आंका गया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह ृ96,274 करोड़ था। वर्ष 2016-17 में प्रदेश के आथर््िाक विकास की दर स्थिर भावों ;आधार वर्षः 2011-12द्ध पर 6.9 प्रतिशत रही।
राज्य के द्रुत अनुमानों के अनुसार प्रचलित भाव पर राज्य का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2016-17 में पिछले वर्ष 2015-16 के ृ1,13,355 करोड़ की तुलना में ृ1,24,235 करोड़ आंका गया है, जो कि 9.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। विकास दर की इस वृद्धि का मुख्य श्रेय कृषि तथा सम्बन्धित क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में हुई वृद्धि को जाता है। वर्ष 2016-17 में खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2015-16 के 16.34 लाख मी.टन से बढ़कर 17.45 लाख मी.टन हो गया है। तथा वर्ष 2016-17 में सेब उत्पादन वर्ष 2015-16 के 7.77 लाख मी.टन से कम होकर 4.68 लाख मी.टन रह गया।
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर ही निर्भर है। कृषि क्षेत्र पर निर्भरता तथा औद्योगिक आधार कमजोर होने के कारण खाद्यान्नों व फलों के उत्पादन का उतार-चढ़ाव प्रदेश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। वर्ष 2016-17 के दौरान कुल राज्य की आय का लगभग 9.68 प्रतिशत योगदान केवल कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त हुआ है।
राज्य की अर्थव्यवस्था वृद्वि की ओर अग्रसर है। अग्रिम अनुमानों के अनुसार राज्य के सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2017-18 में वृद्वि दर 6.3 प्रतिशत दर रहने का अनुमान है। गत तीन वर्षों में प्रदेश की आर्थिक विकास दर सारणी 2.1 में दर्शाई गई हैः
राज्य आय के द्रुत अनुमानों वर्ष 2016-17 ;नई श्रंखला आधार वर्ष 2011-12द्ध के अनुसार प्रदेश मंे प्रति व्यक्ति आय प्रचलित भावों पर ृ1,46,294 है जोकि वर्ष 2015-16 के ृ1,34,089 की तुलना में 9.1 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2011-12 के स्थिर भावों पर वर्ष 2015-16 में प्रति व्यक्ति आय ृ1,12,895 आंकी गई, जोकि वर्ष 2016-17 में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए ृ1,19,755 हो गई है।
क्षेत्रीय विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2016-17 में प्रदेश की राज्य आय में प्राथमिक क्षेत्रों का योगदान 16.01 प्रतिशत रहा। गौण क्षेत्रों का 39.96 प्रतिशत, परिवहन संचार एवं व्यापार का 12.03 प्रतिशत, विŸा एवं स्थावर सम्पदा का योगदान 15.98 प्रतिशत तथा सामुदायिक वैयक्तिक क्षेत्रों का 16.02 प्रतिशत रहा।
प्रदेश अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान से इस दशक में महत्वपूर्ण परिवर्तन पाए गए। कृषि क्षेत्र जिसमें उद्यान व पशुपालन भी सम्मिलित है का प्रतिशत योगदान वर्ष 1990-91 में 26.86 प्रतिशत से घट कर वर्ष 2016-17 में 9.68 प्रतिशत रह गया। फिर भी कृषि क्षेत्र का प्रदेश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यही कारण है कि खाद्यान्न/फल उत्पादन में आया उतार-चढाव अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। प्राथमिक क्षेत्रों का योगदान, जिनमें कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन तथा खनन व उत्खनन सम्मिलित हैं, 1990-91 में 35.52 प्रतिशत से घट कर 2016-17 में 16.01 प्रतिशत रह गया।
गौण क्षेत्र जिसका प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था में प्रमुख स्थान है जिस में वर्ष 1990-91 के पश्चात महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। इसका प्रतिशत योगदान वर्ष 1990-91 में 26.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2016-17 मेें 39.96 प्रतिशत हो गया जो कि प्रदेश औद्योगिकरण व आधुनिकीकरण की ओर स्पष्ट रूझान को दर्शाता है। विद्युत, गैस व जल आपूर्ति जो कि गौण क्षेत्रों का ही एक अंग है का भाग वर्ष 1990-91 में 4.70 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 7.32 प्रतिशत हो गया, अन्य सेवा सम्बन्धी क्षेत्रों जैसे कि व्यापार, यातायात, संचार, बैंेक, स्थावर सम्पदा और व्यावसायिक सेवाएं तथा सामुदायिक व वैयक्तिक सेवाओं का योगदान भी सकल राज्य घरेलू उत्पाद में वर्ष 2016-17 में 44.03 प्रतिशत रहा।
वर्ष 2016-17 में निम्न दर्शाए गए मुख्य घटकों में प्रगति के कारण राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 6.9 प्रतिशत रही।
प्राथमिक क्षेत्र : प्राथमिक क्षेत्र जिसमें कृषि, वानिकी, मत्स्य खनन तथा उत्खनन सम्मिलित हैं, की वृद्वि में वर्ष 2016-17 में सेब के उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट की वजह से 0.7 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

द्वितीयक क्षेत्र:द्वितीयक क्षेत्र, जिसमें विनिर्माण, निर्माण और बिजली, गैस और जल आपूर्ति शामिल है, ने 2016-17 के दौरान 6.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। इन क्षेत्रों में पिछले वर्ष के प्रदर्शन की तुलना में 2016-17 में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि में गिरावट देखी गई है।

तृतीय श्रेणी का उद्योग:
परिवहन भंडारण, संचार और व्यापार:क्षेत्रों का यह समूह 2016-17 के दौरान 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। अन्य द्वारा परिवहन यानी इस सेक्टर के घटक में 4.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
वित्त और रियल एस्टेट:इस क्षेत्र में बैंकिंग और बीमा, रियल एस्टेट, आवासों का स्वामित्व और व्यावसायिक सेवाएँ शामिल हैं . 2016-17 में इसमें 5.8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
सामुदायिक और व्यक्तिगत सेवाएँ:2016-17 के दौरान इस क्षेत्र में वृद्धि 18.1 प्रतिशत है।
राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में स्थानीय निकायों का योगदान: राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में स्थानीय निकायों का समग्र योगदान वर्ष 2016-17 के लिए जीएसडीपी 0.30 प्रतिशत है। नीचे दी गई तालिका राज्य में स्थानीय निकायों की वृद्धि को दर्शाती है।
दिसम्बर, 2017 तक प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर आधारित अग्रिम अनुमानों के अनुसार वर्ष 2017-18 में विकास दर 6.3 प्रतिशत रहने की संभावना हैै। प्रदेश में वर्ष 2016-17 में वृद्वि दर 6.9 प्रतिशत तथा 2015-16 में 8.1 प्रतिशत रही। राज्य का सकल घरेलू उत्पाद ;प्रचलित भावों परद्ध लगभग ृ1,35,914 करोड़ होने की सम्भावना है।
अग्रिम अनुमानों के अनुसार प्रचलित भावों पर प्रति व्यक्ति आय 2017-18 में ृ1,58,462 अनुमानित है जोकि वर्ष 2016-17 में ृ1,46,294 की तुलना में 8.3 प्रतिशत की वृद्वि दर्शाती है।
हिमाचल प्रदेश में आर्थिक विकास के विश्लेषण से प्रतीत होता है कि प्रदेश की आर्थिक विकास दर सदैव समस्त भारत की विकास दर के समकक्ष ही रहती रही है, जैसा कि सारणी 2.2 में भी दर्शाया गया हैः-
राज्य सरकार वित्तीय साधनों को प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष कर, कर रहित राजस्व व केन्द्रीय करों में भाग से चलाती है तथा केन्द्र से प्राप्त सहायता अनुदान प्रशासकीय कार्य में लगाती है। वर्ष 2017-18 के बजट अनुमानों के अनुसार कुल राजस्व प्राप्तियां ृ27,714 करोड़ है जोकि वर्ष 2016-17 ;संशोधितद्ध में ृ26,677 करोड़ थी। राजस्व प्राप्तियां में वर्ष 2016-17 ;संशोधित अनुमानद्ध से 3.88 प्रतिशत की वृद्वि हुई है।
राज्य करों से कुल प्राप्त आय वर्ष 2017-18;बजट अनुमानद्ध में ृ7,946 करोड़ तथा वर्ष 2016-17 संशोधित में ृ7,217 करोड़ व वर्ष 2015-16 ;वा0द्ध में ृ6,699 करोड़ आंकी गई है। राज्य कर वर्ष 2017-18 ;बजट अनुमानद्ध में वर्ष 2016-17 ;संशोधित अनुमानद्ध की अपेक्षा 10.10 प्रतिशत अधिक है।
केन्द्रीय करों में राज्य का भाग वर्ष 2017-18 ;बजट अनुमानद्ध में 4,819 करोड़ आंका गया है।
राज्य करों से प्राप्त आय के अन्तर्गत वर्ष 2017-18 ;बजट अनुमानद्ध में बिक्री करों से प्राप्त आय ृ5,135 करोड़ आंकी गई है जोकि कुल कर प्राप्ति का 40.23 प्रतिशत है। वर्ष 2016-17 व वर्ष 2015-16 में यह क्रमशः 39.00 व 38.74 प्रतिशत थी। बजट अनुमानों के अनुसार वर्ष 2017-18 में राज्य उत्पादन शुल्क से प्राप्त आय ृ1,351 करोड़ आंकी गई है।
वर्ष 2015-16 में प्रदेश का राजस्व आधिक्य प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद का 1.0 प्रतिशत तथा 2016-17 में राजस्व घाटे की प्रतिशतता कुल सकल घरेलू उत्पाद का 0.75 प्रतिशत रही।

3.संस्थागत एवम् बैंक वित्त

हिमाचल प्रदेश राज्य मे 12 जिले शामिल हंै। प्रदेश में तीन बैंकों को लीड बैंक की जिम्मेदारी दी गई है जिसमें पंजाब नैशनल बैंक को 6 जिलों हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कल्लू मण्डी तथा ऊना में, यूको बैंक को 4 जिलांे बिलासपुर, शिमला, सोलन तथा सिरमौर में तथा स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया को 2 जिलों चम्बा तथा लाहौल स्पिति में यह कार्य आवंटित किया गया है। यूको बैंक राज्य स्तर बैंकर्स समिति (एस.एल.बी.सी.) का संयोजक बैंक हैं। सितम्बर, 2017 तक राज्य में कुल 2,144 बैंक शाखाओं का नेटवर्क है और 80 प्रतिशत से अधिक शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रही है। अक्तूबर, 2016 से सितम्बर, 2017 तक 83 नई बैंक शाखाएं खोली गई हंै। वर्तमान में 1,742 शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में, 311 शाखाएं अर्ध शहरी क्षेत्रों में तथा 91 शिमला में स्थित हंै, शिमला को ही आर.बी.आई. द्वारा राज्य में केवल शहरी क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
जनगणना, 2011 के अनुसार प्रति शाखा औसत जनसंख्या 3,202 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 11,000 है। सितम्बर,2017 तक राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पी.एस.बी.) की कुल 1,202 शाखाओं का नेटवर्क है। जो कि राज्य में बैंकिंग क्षेत्र का कुल शाखा नेटवर्क का 56 प्रतिशत है। भारतीय स्टेट बैंक (एस.बी.आई.) के सहयोगी बैंकों के विलय उपरान्त 352 शाखाओं का सबसे बड़ा नेटवर्क है, उसके उपरान्त पंजाब नैशनल बैंक की 330, यूको बैंक की 174 शाखाएं हैं। निजी क्षेत्रों के बैंकों का 133 शाखाओं का नेटवर्क हैं जिसमें सबसे अधिक उपस्थिति एच.डी.एफ.सी. की 67 शाखाओें के साथ है उसके उपरान्त आई.सी.आई.सी.आई. बैंक है जिसकी 31 शाखाएं हैं।
इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आर.आर.बी.) अर्थात हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक (एच.पी.जी.बी.) को पंजाब नेशनल बैंक द्वारा प्रायोजित किया गया है। जिसमें सितम्बर, 2017 तक कुल 263 शाखाओं का शाखा नेटवर्क है। इसके अतिरिक्त सहकारी बैंकों का कुल 546 शाखाओं का नेटवर्क तथा राज्य एपैक्स सहकारी बैंक जो कि हिमाचल प्रदेश सहकारी बैंक (एच.पी.एस.सी.बी.) है, का 213 शाखाओं का नेटवर्क है कांगड़ा केन्द्रीय सैन्ट्रल बैंक (के.सी.सी.बी.) की 217 शाखाएं है। जिलेवार बैंक शाखाओं के प्रसार के संदर्भ में कांगड़ा जिले में सबसे अधिक 419 बैंक शाखाएं तथा लाहौल स्पिति में सबसे कम 23 बैंक शाखाएं हैं। विभिन्न बैंकों द्वारा अपनी बैंक सेवाओं को आगे बढ़ाते हुए 1,940 ए.टी.एम. स्थापित किए गए हैं। अक्तूबर, 2016 से सितम्बर, 2017 तक बैंकों ने 122 नए ए.टी.एम. स्थापित किए हैं।
बैंको द्वारा दूर दराज के क्षेत्रों में जहां ब्रिक एवं मोर्टार शाखाएं आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं हैं बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने हेतु व्यापार संवाददाता एजेंटों (जिन्हें बैंक मित्र के रूप में जाना जाता है) को तैनात किया है। वर्तमान में गांवों में मूलभूत बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए विभिन्न बैंकों द्वारा 1,848 बैंक मित्र तैनात किए गए हैं। राज्य में सभी बैंकों में से पी.एन.बी., एस.बी.आई., यूको, केनरा बैंक का सम्पूर्ण नियंत्रण कार्यालय (अर्थात् क्षेत्रीय कार्यालय/ आंचलिक कार्यालय/ सर्किल कार्यालय) है। भारतीय रिर्जव बैंक का क्षेत्रीय कार्यालय, क्षेत्रीय निदेशक की अध्यक्षता में स्थित है तथा नाबार्ड का भी क्षेत्रीय कार्यालय मुख्य महाप्रबन्धक की अध्यक्षता शिमला में स्थित है।
हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक सीमित, एक तीन स्तरीय अल्पावधि ऋण ढांचे का शीर्ष बैंक है। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक प्रदेश के छः जिलों में 218 शाखाएं और 23 विस्तार पटलों, जिनमें से अधिकतर प्रदेश के दूरवर्ती एवं दुर्गम क्षेत्रों में हैं, के माध्यम से अपनी सेवाएं दे रहा है। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक की समस्त शाखाएं पूर्णतः सी.बी.एस. प्रणाली पर कार्यरत हैं। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक, सहकारी क्षेत्र में नेशनल फाईनेंशियल स्विच से जुड़ने वाला देश का पहला बैंक है जिसके द्वारा बैंक के खाता धारक देश के किसी भी स्थान पर विद्यमान ए.टी.एम. का प्रयोग कर सकते हैं, बैंक ने अपने लगभग 87 ए.टी.एम. स्थापित किए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक से बैंक द्वारा 27 नई शाखाएं खोलने एवं 6 विस्तार पटल¨ं क¨ पूर्ण शाखाओं में स्तर¨न्नत करने के लिए लाईसैंस जारी करने हेतु आवेदन किया है। बैंक सीधे तौर पर आर.टी.जी.एस. व एन.ई.एफ.टी. के माध्यम से कहीं भी पैसों का हस्तांतरण कर सकते हैं। बैंक ने वित्तीय समावेश हेतु सार्थक पग उठाये हैं और दो ग्रामों में, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के माध्यम से बी.सी. माॅडल अपनाया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के सेवानिवृत कर्मचारियों के लिए पूरे प्रदेश में पैंशन देने के लिए अधिकृत कर दिया गया है। बैंक रूपे (त्नच्ंल) के.सी.सी. कार्ड एवं डैबिट कार्ड जारी कर रहा है तथा अपने बहुमूल्य ग्राहकों को मोबाइल बैंकिंग, एस.एम.एस. अलर्ट एवं एफ.डी.आर. के लिये स्वतः नवीकरण की सुविधा भी उपलब्ध करवा रहा है। बैंक केन्द्र सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे कि पी.एम.जे.जे.बी.वाई. एवं पी.एम.एस.बी.वाई. को लागू करने में भी पूर्ण रूप से भाग ले रहा है।
राज्य के सामाजिक आर्थिक विकास के पहिये को बढ़ाने के लिए बैंक भागीदार के रूप में ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। ऋण का प्रवाह सभी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में बढ़ाया गया है। सितम्बर, 2017 तक राज्य के बैंकों ने आर.बी.आई. द्वारा छः में से चार राष्ट्रीय मानकों जिस में प्राथमिक क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, कमजोर वर्ग तथा महिलाओं को ऋण उपलब्ध करवाया है। वर्तमान में बैंकों द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र जैसे कृषि, एम.एस.एम.ई., शिक्षा ऋण, आवास ऋण, लघु ऋण आदि गतिविधियों करने के लिए कुल ऋण का 72.38 प्रतिशत ऋण दिया है।
बैंकों द्वारा बढ़ाए गए कुल ऋण में से सितम्बर, 2017 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 18 प्रतिशत के राष्ट्रीय मानकों के विरूद्ध 23.27 प्रतिशत कृषि अग्रिम राशि प्रदान की है। बैंको द्वारा कुल ऋण में कमजोर वर्गो तथा महिलाओं का क्रमशः 20.59 प्रतिशत तथा 8.10 प्रतिशत अग्रिम राशि का भाग है जो कि राष्ट्रीय मानकों के अनुसार क्रमशः 10 प्रतिशत तथा 5 प्रतिशत होनी चाहिए। राज्य में बैंकों का सितम्बर,2017 तक क्रेडिट जमा अनुपात 44.60 प्रतिशत पर स्थिर रहा। राष्ट्रीय मानकों की स्थिति नीचे सारणी 3.1 में दर्शाई गई है।
वित्तीय समावेशन हमारे समाज के अपवर्जित वर्गो और कम आय वाले समूहों के लिए वहन करने योग्य वित्तीय सेवाओं और उत्पादों के वितरण को दर्शाता है। भारत सरकार द्वारा देश भर में वित्तीय समावेश, व्यापक अभियान के अन्तर्गत् “प्रधान मन्त्री जन-धन योजना” का शुभारंभ करके हिमाचल प्रदेश में औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में अपवर्जित समाज के लिए किया गया है इस अभियान ने तीन वर्ष पूरे कर लिए है। वित्तीय समावेश उपक्रम के अन्तर्गत नई पहलों से ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में समाज के कमजोर वर्ग, महिलाओं, दोनों छोटे और सीमांत किसानों तथा मजदूरों को शामिल किया गया है।
प्रधानमन्त्री जन-धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.): बैंकों द्वारा राज्य में प्रत्येक घर में कम से कम एक बुनियादी बचत जमा खाते के साथ समस्त परिवारों को सम्मिलित किया गया है। बैंको द्वारा कुल 10.55 लाख बुनियादी बचत जमा खाते (बी.एस.बी.डी.ए.) सितम्बर, 2017 तक खोले गए है। प्रधान मन्त्री जन-धन योजना के अन्र्तगत खोले गए कुल 10.55 लाख खातों में से 9.20 लाख बुनियादी बचत जमा खातेे ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 1.35 लाख शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं। राज्य में बैंकों द्वारा पी.एम.जे.डी.वाई. खाताधारकों को 8.06 लाख रूपे (त्नच्ंल) डेबिड कार्ड जारी किए गए, जिससे पी.एम.जे.डी.वाई. अन्तर्गत खोले गए खातों को 78 प्रतिशत तक शामिल कर लिया गया है। सितम्बर, 2017 तक बैंकों द्वारा 88 प्रतिशत पी.एम.जे.डी. वाई. खातों को आधार संख्या तथा मोबाइल नंबर के साथ सम्मिलित करने की पहल की है।
प्रधान मन्त्री जन-धन योजना सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा पहलः प्रधान मन्त्री जन-धन योजना के कार्यान्वयन के द्वितीय चरण के अन्तर्गत भारत सरकार ने गरीबों तथा साधारण व्यक्तियों के लिए सामाजिक सुरक्षा पहल के रूप में तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को शुरू किया है। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की वर्तमान स्थिति निम्नलिखित हैः-
1. सूक्ष्म बीमा योजनाए
i)प्रधान मन्त्री सुरक्षा बीमा योजना (पी.एम.एस.बी.वाई.) :इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्श से 70 वर्श के आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को प्रति वर्श ृ12.00 के प्रीमियम से प्रति ग्राहक को एक वर्श के नवीकरणीय पर आकस्मिक मृत्यु सह दिव्यांगता के लिए ृ2.00 लाख (आंशिक स्थायी दिव्यांगता के लिए ृ1.00 लाख) प्रदान कर रहा है तथा हर वर्ष 1 जून को नवीकरणीय होता है। प्रधान मन्त्री सुरक्षा बीमा योजना के अन्तर्गत सितम्बर, 2017 तक बैंकों में 11.57 लाख ग्राहक है। विभिन्न बीमा कम्पनियों द्वारा इस योजना के अन्तर्गत 220 बीमा दावों का निपटारा किया गया है।
ii) प्रधान मन्त्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पी.एम.जे.जे.बी.वाई) : इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्श से 50 वर्श के आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को बैंक प्रति वर्श ृ330 के प्रीमियम से प्रति ग्राहक को एक वर्श के नवीकरणीय पर किसी भी कारण से हुई मृत्यु पर ृ2.00 लाख प्रदान कर रहा है तथा हर वर्ष 1 जून को नवीकरणीय होता है। सितम्बर, 2017 तक बैंकों में 3.02 लाख ग्राहक प्रधान मन्त्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पी.एम.जे.जे.वी.वाई.) के अन्तर्गत है। दिसम्बर, 2017 तक इस योजना के अन्तर्गत लगभग 578 बीमा दावों का बीमा कम्पनियों द्वारा निपटारा किया गया है।
2.सूक्ष्म पेंषन योजना :
i) अटल पेंषन योजना (ए.पी.वाई.) : अटल पेंषन योजना असंगठित क्षेत्र पर केंद्रित है तथा इस योजना के अन्तर्गत ग्राहकों को 60 वर्श की आयु पर न्यूनतम पेंशन ृ1,000, 2,000, 3,000, 4,000 और 5,000 प्रति माह उपलब्ध करवाई जाती है, यदि ग्राहक ने 18 वर्श से 40 वर्श के दौरान अंशदान विकल्प के आधार पर चुना हो। इस प्रकार इस योजना के अन्तर्गत ग्राहक द्वारा 20 वर्श या इससे अधिक की अवधि में अंशदान किया हो तो निर्धारित न्यूनतम पेंशन की गारंटी सरकार द्वारा दी जायेगी। यदि यह योजना बैंक खाताधारकों द्वारा निर्धारित आयु वर्ग में शुरू की गई हो तो केन्द्रीय सरकार द्वारा कुल अंशदान का 50 प्रतिशत या ृ1,000 प्रति वर्ष जो भी कम ह¨ 5 वर्ष की अवधि के लिए उन ग्राहकों को दिया जाता है जो किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना का सदस्य न हो और न ही आयकर दाता हो।
ii) अटल पेंशन योजना में राज्य सरकार ने भी योगदान दिया है। राज्य सरकार द्वारा ए.पी.वाई. के पात्र खातों के ग्राहकों के सह-योगदान करेगी जो ग्राहक द्वारा कुल योगदान का 50 प्रतिशत हो या ृ2,000 से जो भी कम हो। अटल पेंशन योजना के अन्र्तगत हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने श्रमिकों/ ग्राहकों के लिए वर्ष 2017-18 में ृ10.00 करोड़ के बजट का आवंटन किया है। राज्य सरकार मनरेगा श्रमिकों, मिड डे मील कार्यकर्ताओं, कृषि एवं बागवानी श्रमिकों तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अटल पेंशन योजना के अन्तर्गत लाने हेतु ध्यान दे रही है। इस योजना के अन्तर्गत बैंकों द्वारा आक्रामक जागरूकता अभियान शिविरों, मीडिया प्रचार, प्रेस इत्यादि के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। अटल पेंशन योजना (ए.पी.वाई.) के अन्र्तगत बैंकों द्वारा सितम्बर, 2017 तक 46,000 ग्राहकों को नामांकित किया गया है। सितम्बर, 2017 तक ए.पी.वाई. योजना के अन्तर्गत डाक विभाग भी भाग ले रहा है तथा इनके माध्यम से कुल 2,189 ग्राहक संगठित किए गए हैं।
3.प्रधानमन्त्री मुद्रा योजना (पी.एम.एम.वाईद्ध) : प्रधानमन्त्री मुद्रा योजना हिमाचल प्रदेश सहित देश भर में से चल रही है। वह सुक्ष्म उद्यम जो मुख्य रूप से विनिर्माण, व्यापार, सेवा और गैर-कृषि क्षेत्र¨ं मे कार्यरत है तथा उनकी आवश्यकता ृ10.00 लाख से कम है को आय सृजन के लिए दिए जाने वाले ऋण को मुद्रा ऋण कहा जाता है। प्रधान मन्त्री मुद्रा योजना में इस श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले सभी अग्रिम जो 08.04.2015 को या इसके बाद इस योजना के अधीन आए हो, को मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
बैंकों द्वारा हिमाचल प्रदेश में सितम्बर, 2017 तक चालू वित्त वर्ष 2017-18 में इस योजना के अन्तर्गत 19,200 नए सूक्ष्म उद्यमियों को ृ375.92 करोड़ के ऋण स्वीकृत किए गए हैं। सितम्बर, 2017 तक पी.एम.एम.वाई. के अन्तर्गत 67,507 उद्यमियों क¨ ृ1,057.04 करोड़ के ऋण वितरित करते हुए बैंकों के ऋण की संचयी स्थिति है।
4.स्टैण्ड अप भारत योजना (एस.यू.आई.एस.द्ध) : स्टैण्ड अप भारत योजना को देश भर में औपचारिक रूप से शुरू किया गया। स्टैण्ड अप योजना के अधीन समाज में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला प्रतिनिधित्वों द्वारा असेवित तथा कमसेवित क्षेत्र¨ं मे उद्यमशीलता की संस्कृति को प्रोत्साहित करना है।
इस योजना के अन्तर्गत कम से कम एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति उधारकर्ता या कम से कम एक महिला उधारकर्ता को ृ10.00 लाख से लेकर ृ1.00 करोड़ का ऋण नए उद्यम को स्थापित करने के लिए प्रत्येक बैंक की शाखा द्वारा सुविधा दी जाती है। (इसे ग्रीन फील्ड उद्यम भी कहा जाता है) अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ महिला उद्यमी द्वारा विनिर्माण, व्यापार और सेवा क्षेत्र में एक नए उद्यम की स्थापना के लिए ऋणों की सुविधा प्रदान की जाती है। सितम्बर, 2017 तक इस योजना के अन्र्तगत बैंकों द्वारा 649 नए उद्यमों को स्थापित करने के लिए ृ116.59 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
5.वित्तीय जागरूकता और साक्षरता अभियान : वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अभियान, लक्षित समूहों तक पहंुचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बैंक हिमाचल प्रदेश में वित्तीय साक्षरता केन्द्रों (एफ.एल.सी.) तथा अपनी बैंक शाखाओं के माध्यम से वित्तीय साक्षता अभियान चला रहे है। लीड बैंक द्वारा प्रबंधित कुल 22 वित्तीय साक्षरता केन्द्र (एफ.एल.सी.) जैसे पी.एम.बी./ एस.बी.आई./ यूको बैंक तथा सहकारी क्षे़त्रों में, हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक (एच.पी.एस.सी.बी.) जोगिन्द्रा सैन्ट्रल सहकारी बैंक(जे.सी.सी.बी.) तथा कागडं़ा सैन्ट्रल सहकारी बैंक (के.सी.सी.बी.) शामिल है। आर.बी.आई. द्वारा बैंक शाखाओं को नियमित आधार पर एक महीने में कम से कम एक बार एफ.एल.सी. कैंप का संचालन करने का निर्देश दिया है, ताकि डिजिटल साक्षरता की प्रगति पर विशेष ध्यान दिया जाए तथा आर.बी.आई. द्वारा नियमित आधार पर एफ.एल.सी. की समीक्षा की जा सके।
राज्य के सभी बैंको द्वारा सितम्बर, 2016 से सितम्बर, 2017 तक ृ93,726.96 करोड़ से बढ़कर ृ1,03,355.00 करोड़ सितम्बर, 2017 तक दर्ज की गई। बैंकों की जमा राशि में वर्ष दर वर्ष 10.27 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। कुल अग्रिम सितम्बर, 2016 में ृ34,961.91 करोड़ से बढ़ कर सितम्बर, 2017 तक ृ35,881.76 करोड़ हो गए। इस प्रकार सितम्बर, 2017 तक वर्ष दर वर्ष वृद्धि 2.63 प्रतिशत रही। कुल बैंकिंग कारोबार ृ1,39,236.00 करोड़ तक बढ़ गया तथा वर्ष दर वर्ष वृद्धि 8.20 प्रतिशत दर्ज की गई। बैंकिग क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पी.एस.बी.) का सबसे अधिक 68 प्रतिशत भाग है, आर. आर. बी. का 4 प्रतिशत भाग है, निजी बैंक का 7 प्रतिशत तथा सहकारी बैंक का 21 प्रतिशत भाग है। तुलनात्मक आकड़े नीचे सारणी 3.2 में दर्शाए गए है।
वित्तीय वर्ष वर्ष 2017-18 के लिए बैंको ने नाबार्ड की सहायता से, क्षमता के आधार पर विभिन्न प्राथमिकता क्षेत्र की गतिविधियों के लिए वार्षिक जमा योजना तैयार कर नए ऋण अदा किए गए हैं। वार्षिक जमा योजना 2017-18 के अधीन पिछली योजना के विŸाीय परिव्यय में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई तथा ृ22,083 करोड़ परिव्यय का लक्ष्य तय किया गया। सितम्बर, 2017 तक बैंको ने वार्षिक जमा योजना के अन्तर्गत ृ 9,170 करोड़ के नए ऋण वितरित किए तथा 42 प्रतिशत की वार्षिक प्रतिबद्धता हासिल की। क्षेत्रवार लक्ष्य तथा उपलब्धि 30.09.2017 तक सारणी 3.3 में दर्शाई गई है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम ) : ग्रामीण मन्त्रालय द्वारा भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम को गरीबों में गरीबी कम करने के लिए मजबूत संस्थानों का निर्माण विशेषकर महिलाओं को समर्थ करने के लिए, नई वित्तीय सेवाओं और आजीविका सेवाओं को पहुंचाने के लिए शुरू किया गया है। इस योजना को राज्य में हि.प्र. राज्य ग्रामीण आजिविका मिशन, ग्रामीण विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कार्यन्वित किया गया है। राज्य में इस योजना के अन्तर्गत बैंकों द्वारा ृ40.00 करोड़ के वार्षिक लक्ष्य 3,285 लाभार्थियों में आवंटित करके अर्जित किया है। नवम्बर, 2017 तक एन.आर.एल. एम. योजना के अन्तर्गत बैंको ने ृ23.64 करोड़ के ऋण की स्वीकृति दी है।
ख) राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन कार्यक्रम (एन.यू.एल.एम.) भारत सरकार, आवास मन्त्रालय और शहरी गरीबी उन्मूलन (एम.ओ.एच.यू.पी.ए.) ने मौजूदा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (एस.जे.एस.आर.वाई.) को पुनर्गठित किया और राष्ट्रीय शहरी जीविका मिशन (एन.यू.एल.एम.) को शुरू किया। स्वयं रोजगार कार्यक्रम (एस.ई.पी.) एन.यू.एल.एम. के घटकों (4 घटकों) में से एक है जो व्यक्तिगत और समूह उद्यमों तथा शहरी गरीबों के स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) की स्थापना के लिए ऋणों पर ब्याज अनुदान के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित करेगा। एन.यू.एल.एम. हिमाचल प्रदेश में शहरी विकास विभाग के ृ10.00 करोड़ के अंशदान से स्वयं रोजगार कार्यक्रम (एस.ई.पी.) के घटक डे-एन.यू.एल.एम. को वर्ष 2017-18 में हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया। इस योजना के अंतर्गत बैंकों द्वारा 31.10.2017 तक ृ3.16 करोड़ के ऋण वितरित किए गए है।
्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.) : ्रधानमन्त्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.) एक क्रेडिट लिंक्ड अनुदान कार्यक्रम है जो कि भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम मन्त्रालय द्वारा प्रशासित है। इस योजना के कार्यन्वयन के लिए खादी एवं ग्रामोउद्योग (के.वी.आई.सी.) राष्ट्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी है। राज्य स्तर पर के.वी.आई.सी., के.वी.आई.बी. तथा जिला उद्योग केन्द्र के माध्यम से यह योजना कार्यान्वित की जाती है। इस योजना के अन्तर्गत बैंको द्वारा वित्तीय वर्ष 2017-18 में 2,250 नई इकाइयों के वित्तपोषण का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना के अन्तर्गत कार्यान्वयन शाखाओं ने ृ4,462.98 लाख का मार्जिन राशि के वितरण का लक्ष्य रखा है। 711 इकाइयों के लिए उद्यमियों को ृ1,708.00 लाख 21.11.2017 तक स्वीकृत किये गये हंै।
डेयरी उद्यमी विकास योजना (डी.ई.डी.एस.)नाबार्ड के माध्यम से डेयरी उद्यमशीलता विकास योजना (डी.ई.डी.एस.) कृषि और किसान कल्याण मन्त्रालय, भारत सरकार द्वारा डेयरी क्षेत्र की गतिविधियों के लिए लागू की गई है। नाबार्ड के माघ्यम से इस योजना के अन्तर्गत पूंजीगत अनुदान प्रशासित किया जाता है। बैंकों द्वारा सितम्बर, 2017 तक ृ540.76 लाख की राशि से 279 प्रस्तावों को (डी.ई.डी.एस.) स्वीकृती दी है।
किसान क्रेडिट कार्ड : किसानों को बैंकिंग प्रणाली क अन्तर्गत अल्पकालिक ऋण, फसलों की खेती तथा अन्य आवश्यकताओं के लिए एक ही स्थान एंव समय पर पर्याप्त ऋण बैंकों की ग्रामीण शाखाओं द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड (के.सी.सी.) के माध्यम से दिया जा रहा है। सितम्बर, 2017 तक बैंकों द्वारा 1,13,764 किसानों को ृ1,812.53 करोड़ की राशि नये के.सी.सी. के माध्यम से वितरित की गई है। सितम्बर, 2017 तक बैंकों द्वारा कुल 4,08,007 किसानों को के.सी.सी.योजना के अन्तर्गत ृ5,757.33 करोड़ की राशि से वित्तोपोषण किया गया हैं
ग्रामीण स्वयं रोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर.एस.ई.टी.आई.) : जिला स्तर पर ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण देने, कौशल उन्नयन के लिए एवं उद्ययमिता विकास हेतु बुनियादी ढाचे के लिए ग्रामीण विकास मन्त्रालय (एम.ओ.आर.डी.) की पहल पर ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर.एस.ई.टी.आई.) योजना चला रहा है। आर.एस.ई.टी.आई का प्रबन्धन ग्रामीण विकास मन्त्रालय तथा हिमाचल प्रदेश ग्रामीण विकास विभाग के सक्रिय सहयोग द्वारा किया जाता है। राज्य के 10 जिलों (लाहौल-स्पिति, किन्नौर छोड़कर) में अग्रणी बैंक जिनमें यूको बैंक, पी.एन.बी. व स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों (आर.एस.ई.टी.आई.) का गठन किया है। यह ग्रामीण स्वंय रोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर.एस.ई.टी.आई.) प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन (पी.एम.ई.जी.पी.) योजना व विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत गरीबी उन्मूलन तथा उद्यमिता विकास कार्यक्रम¨ का आयोजन किया जाता है। आर.एस.ई.टी.आई. ने वर्ष 2017-18 में कुल 216 प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन का लक्ष्य रखा है तथा 5,530 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
बैंक खातों के साथ आधार लिंकेज के लिए विशेष अभियान तथा 31.03.2018 को अंतिम तिथि के साथ सभी मौजूदा बैंक खाते में आधार का सत्यापनः : सभी बैंक खातों को आधार से लिंक करना अनिवार्य बना दिया गया है। 01.06.2017 से खोले गए नए बैंक खातों को आधार के साथ लिंक करना अनिवार्य है तथा मौजूदा खातों को 31.03.2018 तक नवीनतम आधार के साथ लिंक किया जाएगा अन्यथा बैंक खाते निष्क्रिय हो जाएगे। बैंको द्वारा आधार लिंकेज एवं प्रमाणीकरण के कार्य को तय समय सीमा 31.03.2018 तक पूरा करने हेतु चयनित बैंकों में आधार नामांकन तथा अद्यतन (अपडेट) केन्द्रों को स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। हिमाचल प्रदेश में विभिन्न बैंकों द्वारा आधार नामांकन और अद्यतन (अपडेट) के लिए 220 केन्द्रों को चिन्हित किया है।
राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक ;नाबार्डद्ध ने पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण संरचना विकास, लघु ऋण, ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र, लघु सिंचाई तथा अन्य कृषि क्षेत्रों के लिए अतिरिक्त ऋण वितरण व्यवस्था में सुदृढ़ीकरण व विस्तृतीकरण करके एकीकृत ग्रामीण विकास प्रक्रिया मंे निरन्तर सहयोग दिया है। नाबार्ड के सक्रिय सहयोग के कारण राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को बहुत से सामाजिक व आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहे हैं। नाबार्ड अपनी योजनाओं के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा प्रायोजित ऋण युक्त अनुदान, योजनाएं जैसे डेरी उद्यमिता विकास योजना ;डी.ई.डी.एस.द्धए सौर योजनाएं तथा एग्रीक्लिनिक एवं कृषि व्यापार केन्द्रों, को भी प्रभावी ढंग से कार्यान्वित कर रहा है।
ग्रामीण आधार संरचना : भारत सरकार द्वारा नाबार्ड में वर्ष 1995-96 में ग्रामीण संरचना विकास निधि ;आर.आई.डी.एफ.द्ध की स्थापना की गई थी। इस योजना के अन्तर्गत राज्य सरकारोें तथा राज्य के स्वामित्व वाले निगमोें की चल रही योजनाओं को पूर्ण करने तथा कुछ चुने हुए क्षेत्रों में नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए रियायती ऋण दिए जाते हैं। किसी स्थान से सम्बन्धित विशेष संरचना ढांचे के विकास, जिसका सीधा असर समाज व ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था पर हो, के लिए इस योजना का विस्तार पंचायती राज संस्थाओं, स्वंय सहायता समूहों तथा गैर सरकारी संगठनों तक भी कर दिया गया है।
ग्रामीण आधार संरचना विकास (आर.आई.डी.एफ.) निधि के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों व बुनियादी ढांचे का विकास किया जाता है, 1995-96 में इसकी शुरुआत से ही, यह राज्य सरकारों की साझेदारी में नाबार्ड के एक प्रमुख सहयोगी के रूप में उभरा है। इस हेतु केन्द्रीय बजट में वार्षिक आवंटन हर वर्ष जारी रखा गया है। इस व्यवस्था के अन्र्तगत नाबार्ड द्वारा राज्य सरकारों तथा राज्य के अधीन आने वाले निगमों को चालू परियोजनाओं को पूरा करने व कुछ चिन्हित क्षेत्र¨ं में नई परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए ऋण दिया जाता है। प्रारम्भ में आर.आई.डी.एफ. निधि का उपयोग राज्य सरकार की सिंचाई क्षेत्र की अधूरी पड़ी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए किया जाता रहा है परन्तु समय के साथ-साथ इस निधि के उपयोग से विŸाीय सहायता का क्षेत्र विस्तृत करके 3़6 कार्यकलापों जिनमें कृषि तथा संबंधित क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र तथा ग्रामीण सम्पर्क सम्बन्धित आधारभूत कार्यकलाप भी शामिल है।
इस निधि के अन्तर्गत वर्ष 1995-96 में आर.आई.डी.एफ-प् में ृ15.00 करोड़ का बजट प्रावधान था जो अब बढ़कर आर.आई.डी.एफ-ग्ग्प्प्प् में (वर्ष 2017-18) में ृ510.60 करोड़ हो गया है। आर.आई.डी.एफ. ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे सिंचाई, सड़कें तथा पुल निर्माण, बाढ़ नियन्त्रण, पेयजल आपूर्ति, प्राथमिक शिक्षा, पशुधन सेवाएं, जलागम विकास तथा सूचना प्रौद्योगिकी इत्यादि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही के वर्षो में पाॅली हाउस व सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली आदि नवीन परियोजनाओं के विकास के लिए भी सहायता प्रदान की है जो व्यवसायिक आधार, पर कृषि व्यवसाय और सतत खेती के विकास के लिए नई दिशा है।
आर.आई.डी.एफ. निधि के अन्र्तगत राज्य को 31 दिसम्बर, 2017 तक 5,399 परियोजनाओं को लागू करने के लिए ृ6,750.86 करोड़ की स्वीकृति दी जा चुकी है जिनमें मुख्यतः ग्रामीण सड़कें, पुल, सिंचाई, पेयजल, शिक्षा, आदि की परियोजनाएं भी शामिल हैं जिन्हें स्वीकृति दी है। चालू विŸा वर्ष 2017-18 के अन्तर्गत 31 दिसम्बर, 2017 तक आर.आई.डी.एफ-ग्ग्प्प्प् के अन्तर्गत ृ 510.60 करोड़ की स्वीकृति दी जा चुकी है तथा राज्य सरकार को ृ 401.50 करोड़ वितरित किए गए़ तथा अब तक कुल मिलाकर ृ4,854.70 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है।
स्वीकृत की गई इन परियोजनाओं के पूर्ण होने के बाद 42.73 लाख से अधिक लोगों को पीने का पानी उपलब्ध करवाया जाएगा, 8,151 किलोमीटर मोटर योग्य सड़कें, 2,804 मीटर स्पैन पुलों के निर्माण तथा 1,25,761 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा प्राप्त होगी।
इसके अतिरिक्त 27,317 हैक्टेयर भूमि का बचाव, बाढ़ नियन्त्रण परियोजनाओं से होगा, 6,219 हैक्टेयर भूमि जलागम विकास योजनाओं में शामिल होगी। कृषि खेती हेतु 231 हैक्टेयर भूमि को सू़क्ष्म सिंचाई पद्धति के साथ पाॅली हाउस के अन्र्तगत लाया जाएगा। इसके अतिरिक्त प्राथमिक स्कूलों के लिए 2,921 कमरे, वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों के लिए 64 विज्ञान प्रयोगशालाएं, 25 सूचना तकनीक केन्द्र तथा 397 पशु चिकित्सालयों एवं कृत्रिम गर्भाकरण केन्द्रों का निर्माण पहले ही किया जा चुका है।
नाबार्ड अधोसंरचना विकास सहायता (नीडा) :वर्ष 2011-12 से नाबार्ड ने राज्य सरकार के संस्थाओं/निगमों के लिए सतत आय के स्त्रोत¨ं ऋण की एक अलग व्यवस्था की है यह व्यवस्था बजट के माध्यम से तथा इसके बिना भी हो सकती है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों मे आधार सरंचना तैयार की जा सके। ऋण की यह व्यवस्था आर.आई.डी.एफ. ऋण की व्यवस्था से बाहर है। इस निधि के आने से गैर परम्परागत क्षेत्रों में ग्रामीण अधोसंरचना तैयार करने हेतु संभावनाएं खुली हैं। ग्रामीण बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के दायरे को बढ़ाने के लिए नीडा के तहत सार्वजनिक व निजी साझेदारी से वित्तपोषण करने पर बल दिया जा रहा है। ऐसी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं जिनसे बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्र्रों को लाभ मिलता ह¨ और आर.आई.डी.एफ. और रूरबन मिशन के तहत भारत सरकार/ भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदित गतिविधियां भी र्सावजनिक एंव निजी सहय¨ग के तहत वित्तपोषण के लिए पात्र हैं।
खाद्य प्रसंस्करण निधि(एफपीएफ) : नाबार्ड ने वर्ष 2014-15 में ृ2,000 करोड़ की खाद्य प्रसंस्करण निधि स्थापित की गई है जिसके तहत क्लस्टर आधार पर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र्र के विकास के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने के उद्देश्य से नामित फूड पार्क की स्थापना और नामित फूड पार्को में खाद्य/कृषि प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए विŸाीय सहायता प्रदान की जाएगी ताकि देश में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र्रों में कृषि उपज की बर्बादी को कम किया जा सके और रोजगार के अधिक अवसर सृजित किये जा सकें। क्रिमिका मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड, सिंधा, ऊना में ृ 32.94 करोड़ की विŸाीय सहायता से इस कोष के अधीन स्थापित किया गया है। तथा 31.12.2017 तक इस परिय¨जना के लिए ृ24.76 करोड़ वितरित किए जा चुके है।
पुनर्वित्त सहायता: ग्रामीण आवास, लघु सड़क परिवहन आपरेटरों, भूमि विकास, लघु सिंचाई, डेयरी विकास, स्वयं सहायता समूह, कृषि यंत्रीकरण, मुर्गी पालन, वृक्षारोपण, एवं बागवानी, भेड़/ बकरी/ सुअर पालन, पैकिंग ग्रेडिंग व अन्य शामिल क्षेत्र¨ं के विभिन्न कार्यों के लिए पुर्नवित सहायता स्वरूप नाबार्ड द्वारा बैंकों को ृ728.92 करोड़ की विŸाीय सहायता वर्ष 2016-17 के दौरान और ृ551.56 करोड़ की विŸाीय सहायता वर्ष 2017-18 के दौरान 31 दिसम्बर, 2017 तक प्रदान की गई है। नाबार्ड ने सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय गा्रमीण बैंकों द्वारा फसल ऋण वितरण में अधिक योगदान करने के लिए ृ920.00 करोड़़ की ऋण सीमा एस.टी. (एस.ए.ओ.) के अन्तर्गत स्वीकृत की थी। इन बैंकों द्वारा ृ920.00 करोड़़ का पुर्नवित्त सहायता नाबार्ड से 31.03.2017 तक प्राप्त की है। वर्ष 2017-18 के लिए भी ृ920.00 करोड़़ की ऋण सीमा मंजूर की गई है और इसके अन्तर्गत 31.12.2017 तक कुल ृ479.26 करोड़़ का संवितरण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2016-17 में सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए अतिरिक्त लघु अवधि की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए नाबार्ड द्वारा एक नवीन उत्पाद “अल्पावधि के अतिरिक्त (मौसमी कृषि कार्य)” को प्रस्तुत किया है। इस कोष के अन्तर्गत वर्ष 2017-18 मे नाबार्ड द्वारा एच.पी.एस.सी.बी. के लिए ृ90.00 करोड़ तथा एच.पी.जी.बी. के लिए ृ40.00 करोड की राशि स्वीकृत की गई है।
स्वंय सहायता समूह ;एस.एच.जी.द्ध कार्यक्रम अब सारे प्रदेश में एक सशक्त आधार के साथ फैल गया है। इस कार्यक्रम को उच्च शिखर पर पहुंचाने मंे मानव संसाधनों और वित्तीय उत्पादों का विशेष योगदान रहा है। हिमाचल प्रदेश में 45,735 क्रेडिट लिंक्ड स्वयं सहायता समूहों ने लगभग 6.60 लाख ग्रामीण परिवारों क¨ कुल 13.12 लाख ग्रामीण परिवारों में से ज¨ड़ा है अ©र इनका ृ110.42 करोड़ का ऋण 31.03.2017 तक बकाया है। इसके अतिरिक्त स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से नाबार्ड द्वारा महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम¨ं को दो जिलों जिनमें मण्डी व सिरमौर में क्रमशः1,500 व 1,455 महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को ृ29.55 करोड़ क्रेडिट लिंकेज के लक्ष्य के लिए अनुदान सहायता दी गई है। 31.12.2017 तक कुल 2,832 महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को बचत तथा 2,611 महिलाओं के स्वंय सहायता समूहों को क्रेडिट लिंक के साथ जोड़ा गया।
केन्द्रीय बजट 2014-15 में संयुक्त कृषि समूहों के वित्त पोषण के लिए नाबार्ड द्वारा किए गए वित्तपोषण के प्रयासों से संयुक्त देयता समूह साधन से भूमिहीन किसानों तक वित्तीय सहायता पहंुचाने के लिए नूतन पहल हुई है। 31 मार्च, 2017 तक राज्य में बैंकों द्वारा ृ689.66 लाख का ऋण लगभग 2,084 संयुक्त देयता समूहों को प्रदान किया गया है। नाबार्ड द्वारा 50 ”स्वयं सहायता प्रचार संस्थाओं/ संयुक्त देयता प्रचार संस्थाओं की सांझेदारी से स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम तथा ”संयुक्त देयता समूह“ योजना का प्रचार किया जा रहा है। नाबार्ड द्वारा वर्ष 2017-18 के दौरान हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक को 3 वर्ष की अवधि में 500 जे.एल.जी. के प्रमोशन और क्रेडिट लिंकेज के लिए ृ10.00 लाख की राशि स्वीकृत की है। इसके अतिरिक्त नाबार्ड द्वारा स्वंय सहायता समूहों के सदस्यों के लिए जिन्होंने बैंको से ऋण सुविधा का लाभ उठाया है, को लघु अवधि कौशल विकास प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करवा रहा है। वर्ष 2017-18(31.12.2017) तक 30 माइक्र¨ उद्यमियता विकास कार्यक्रम (एम.ई.डी.पी.) व्यक्तिगत रूप से या समूह के माध्यम से आजिविका गतिविधि शुरू करने के लिए 900 स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को प्रशिक्षण देने की मंजूरी दी गई है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2017-18 में 90 स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के प्रशिक्षण और उद्यमियों के विकास के लिए एक आजिविका उद्यम विकास कार्यक्रम (एल.ई.डी.पी.) की मंजूरी दी गई है।
31 दिसम्बर, 2017 तक राज्य में 3,153 कृषक संघ बनाए गए हैं जिनके अन्र्तगत् 6,011 गांवों में 38,836 कृषकों को लाभ पहुंचाया गया है। जिला सिरमौर तथा बिलासपुर जिले में कृषक महासंघों का गठन किया गया है, जो कृषकों के कल्याण हेतु कार्य कर रहे हैं।
जलागम विकास निगम : इसके अतिरिक्त जलागम विकास निधि के अन्र्तगत चल रही 10 परियोजनाओं के अतिरिक्त एक अन्य जलागम विकास परियोजना, भंगाल खण्ड पर वर्ष 2017-18 में सिरमौर जिले क¢ अरावली एन.जी.ओ. को ृ13.70 लाख की अनुदान सहायता से शुरू की गई है, अभी तक इन परियोजनाओं के लिए स्वीकृति की गई राशि ृ956.80 लाख में से ृ654.43 लाख वितरित किए गए हैं। वर्ष 2017-18 के दौरान 31.12.2017 तक ृ84.62 लाख की राशि जारी की गई थी। सभी परियोजनाओं में 119 गांवों मंे लगभग 12,489 हैक्टेयर भूमि और 6,340 परिवारों को सम्मिलित किया गया है। इन परियोजनाओं से न केवल पानी की उपलब्धता बढ़ेगी बल्कि इन से प्राकृतिक संरक्षण, खेती की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने, किसानों की आय में वृद्धि करने के साथ-साथ चरागाहों के घटते आकार को रोकने और इसे बढ़ाने में मदद मिलेगी जिससे राज्य में पशुधन से सम्बन्धित कार्यकलापों को भी लाभ पहुंचेगा।
जनजातीय विकास निधि के माध्यम से जनजातीय लोगों का विकास : नाबार्ड, क्षेत्रीय कार्यालय, शिमला ने जनजातीय विकास निधि के अन्र्तगत चार परियोजनाओं के अतिरिक्त एक अन्य परियोजना में कुल वित्तीय सहायता ृ873.52 लाख जिसमें अनुदान सहायता ृ817.22 लाख तथा ऋण सहायता ृ56.30 लाख हैं, से 1,725 परिवारों को समाविष्ट किया गया है। 31.12.2017 तक जिला चम्बा के पांगी खण्ड में ृ160.25 लाख की अनुदान सहायता दी गई। इन गांवों में वादी (छोटे उद्यानों) और डेयरी इकाइयों की स्थापना करना है। इनके अन्र्तगत 1,149 एकड़ भूमि मेें आम, किन्नू, नींबूू, सेब, अखरोट, नाशपाती और जंगली खुबानी के पौधे लगाए गए हैं। इन परियोजनाओं के अन्तर्गत छोटे उद्यानों और डेयरी के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों के लोगों को अपनी आय का स्तर बढ़ाने का अवसर मिलने की उम्मीद है।
कृषि क्षेत्र प्रोत्साहन कोष के माध्यम से सहायताः (एफ.एस.पी.एफ.) : इस योजना के अन्र्तगत अब तक 23 परियोजनाओं और 17 सैमिनारों/ कार्यशालाओं/ मेलों / सेब प्रर्दशनियों के लिए ृ210.61 लाख की अनुदान राशि उपलब्ध करवाई गई। 31.12.2017 तक ृ174.27 लाख की अनुदान सहायता जारी की गई है। इन परियोजनाओं के अन्तर्गत सभी दूर-दराज क्षेत्रों में धान गहनता प्रणाली, गेहंू गहनता प्रणाली, दुग्ध प्रसंस्करण, स्वदेशी शहद मधुमक्खी पालन (एपिस सेरनी) को प्रोत्साहन, चिल्गोज़ा देवदार, चीड़ के संरक्षण,पैदावार व बचाव सम्बन्धित नई तकनीकों, औषधीय सुगंधित फूलों की खेती तथा मसाला फसलों के संरक्षण एवं व्यवसायिक तौर पर खेती को बढ़ावा देना व प्रशिक्षण सम्मिलत है। इन परियोजनाओं और सैमिनारों/ कार्यशालाओं/ मेलों से लगभग 30,000 कृषक लाभान्वित हुए हैं।
किसान उत्पादक संगठनों को प्रोत्साहन (एफ.पी.ओ.): कृषि मंत्रालय, भारत सरकार ने देश में 2,000 किसान उत्पादक संगठनों के गठन के लिए ृ200.00 करोड़ का बजट आवंटित किया है। नाबार्ड ने हिमाचल प्रदेश के शिमला, मंडी, किन्नौर, सिरमौर, चम्बा, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, कुल्लू, तथा लाहौल एवं स्पिति जिलों में 54 किसान उत्पाद संगठन¨ं के गठन/ प्रोत्साहन के लिए 18 गैर सरकारी संगठनों को ृ489.24 लाख का अनुदान मंजूर किया है ये किसान उत्पाद संगठन सामूहिक आधार पर सब्जियों, औषधीय और सुगंधित पौधों और फूलों के उत्पादन, प्राथमिक प्रसंस्करण और विपणन का कार्य करेंगे। 31 दिसम्बर, 2017 तक ृ204.21 लाख की राशि आवंटित की गई है। वर्ष 2017-18 में 18 नए किसान उत्पाद संगठन स्वीकृत किए गए है।
प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन पर अंब्रेला कार्यक्रम (यू.पी.एन.आर.एम.) : नाबार्ड के.एफ.डब्ल्यू. और जी.टी.जेैड. की सहायता से भारत-जर्मन सहयोग के अन्र्तगत पिछले 16 वर्षों से वाटरशैड और छोटे उद्यान परियोजनाओं का क्रियान्वयन कर रहा है। प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन के क्षेत्र्र में द्विपक्षीय सहयोग को पुनर्गठित करने के लिए भारत और जर्मनी ने यू.पी.एन.आर.एम. को शुरू किया है। कार्यक्रम के तहत नाबार्ड और जर्मन विकास निगम को सहयोग रणनीतिक साझीदार के रूप में चिन्हित किया गया है। कार्यक्रम का उद्देश्य आजीविका सृजन करके गरीबी कम करने, कृषि आय में वृद्धि, कृषि मूल्य श्रृंखला का सशक्तिकरण एवं संसाधनों के संरक्षण शामिल है। समाज के सभी वर्गों के लिए पर्यावरण के अनुकूल आर्थिक विकास करने के लिए यू.पी.एन.आर.एम. के अन्तर्गत इस प्रकार की परियोजनाओं को सहायता प्रदान की जाती है जो प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और ग्रामीण गरीबों की आजीविका में सुधार में सांमजस्य स्थापित करती हों। यू.पी.एन.आर.एम.परियोजनाओं के अन्र्तगत नाबार्ड क्षेत्रीय कार्यालय हि.प्र. द्वारा राज्य में वर्ष 2017-18 तक (31.12.2017) ृ40.14 लाख की विŸाीय सहायता स्वीकृत की गई है।
नाबार्ड ने ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र क¨ एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया है। यह राज्य में ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र के विकास के लिए वाणिज्यिक बैंकों/ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों को पुर्नवित्त सहायता भी प्रदान करता है। नाबार्ड ग्रामीण दस्तकारों और अन्य छोटे उद्यमियों के लाभ के लिए स्वरोज़गार क्रेडिट कार्ड योजना(एस.सी.सी.) के लिए पुर्नवित्त भी प्रदान करता है। स्वरोज़गार क्रेडिट कार्ड (एस.सी.सी.) योजना के तहत कार्यशील पूंजी या खण्ड पूंजी या दोनों के लिए समय पर और पर्याप्त मात्रा में ऋण दिया जाता हैे। ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र में उत्पादों के विपणन और उत्पादन के लिए पुर्नवित्त उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त नाबार्ड युवाओं के लिए कौशल एवं उद्यमिता विकास कार्यक्रम के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है तथा साथ ही मास्टर शिल्पकार, ग्रामीण विकास एवं स्वरोजगार की प्रशिक्षण संस्थाएं व रूडसेटी जैसी संस्थाएं भी ग्रामीण युवकों को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण देती हैं ताकि उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार रोजगार मिल सके और वे आय-सृजक गतिविधियां शुरू कर सकें।
आधार स्तर पर ऋण प्रवाह : वर्ष 2016-17 में प्राथमिक क्षेत्रों के लिए आधार स्तरीय ऋण प्रवाह ृ12,926.18 करोड़ तक पहुंच गया जोकि वर्ष 2015-16 से 23.14 प्रतिशत अधिक है। नाबार्ड की संभावित ऋण योजना के आधार पर विभिन्न बैंकों के लिए 19,179.26 करोड़ का लक्ष्य 2017-18 के लिए निर्धारित किया गया है। 30 सितम्बर, 2017 तक ृ7,145.00 करोड़ का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया था। नाबार्ड राज्य के सभी जिलों के लिए हर वर्ष क्षमता युक्त ऋण योजना (पी.एल.पी) तैयार करता है जिसमें आधार स्तरीय क्षमताओं और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु आवश्यक ऋण एवं गैर-ऋण लिंकेजों का वास्तविक आकलन किया जाता है। विभिन्न हितधारकों अर्थात राज्य सरकार, जिला प्रशासन, बैंकों, एन.जी.ओ., किसानों और अन्य सम्बन्धित एजेंसियों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श कर पी.एल.पी. तैयार की जाती है। हिमाचल प्रदेश के लिए वर्ष 2018-19 हेतु मुख्य क्षेत्रवार पी.एल.पी. अनुमान ृ22,389.31 करोड़ आंकलित किया गया है।
वित्तीय समावेश की मुख्य धारा की वित्तीय संस्थाओं द्वारा निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से सस्ती कीमत पर समाज के सभी वर्गो और विशेष रूप से कमजोर वर्गो और निन्न आय वर्ग को उचित वित्तीय उत्पाद और सेवाएं उपलब्घ करवाने की प्रक्रिया है। देश में वित्तीय समावेश को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने वित्तीय समावेशन कोष (एफ.आई.एफ.) का गठन किया है। वित्तीय समावेशन अभियान को बड़े पैमाने पर संचालित करने के लिए एफ.आई.एफ. के अन्र्तगत नाबार्ड द्वारा हिमाचल प्रदेश में संचालित किया गया है।
एफ.आई.एफ.का उद्देश्य विशेष रूप से कमजोर वर्गों, कम आय वाले समूहों तथा पिछड़े क्षेत्रों, बैंक रहित क्षेत्रों में अधिक से अधिक वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए “विकास और प्रचार गतिविधियांे” को सहायता प्रदान करना है। नाबार्ड विकास और प्रचार-प्रसार सम्मेलनों के लिए एफ.आई.एफ. का प्रबन्धन कर रहा है। राज्य के बैंकिंग संरचना को मजबूत बनाने एंव वित्तीय साक्षरता वृद्धि करने हेतु वर्ष 2017-18 के दौरान नाबार्ड द्वारा विभिन्न बैंकों एवं गैर सरकारी संगठनों को ृ421.27 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान की गयी, वर्तमान में एफ.आई.एफ. के तहत दी गई कुल संचयी सहायता निम्न प्रकार हैः-
i) डिजिटल कार्यक्रमः- वित्तीय साक्षरता फैलाने हेतु नाबार्ड ने व्यावसायिक बैंकों, सहकारी बैंकों, तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक क¨ 6,420 वित्तीय साक्षरता जागरूकता कार्यक्रम 31.12.2017 तक चलाने के लिए ृ321.00 लाख की संचयी सहायता मंजूर की गई है।
ii)संयोगीकरण मुद्दों का समाधानः- राज्य के सयोंगीकरण व्यवस्था को सुलझाने हेतु सौर ऊर्जा चालित वी-सैट/ गैर सौर ऊर्जा वी-सैट की व्यवस्था कैपेक्स एवं ओपेक्स माॅडलों पर अमल में लायी गई है। इन व्यवस्थाओं हेतु नाबार्ड ने एस.बी.आई.,पी.एन.बी., युको बैंक एवं एच.पी.जी.बी. को 247 उप-सेवा क्षेत्रों हेतु ृ535.56 लाख मंजूर किये हैं।
iii) आॅडियो जिंगल्स के माध्यम से वित्तीय साक्षरताः- हिमाचल प्रदेश में आॅडियो जिंगल्स के प्रसारण के द्वारा वित्तीय साक्षरता फैलाने हेतु नाबार्ड हिमाचल प्रदेश क्षे़त्रीय कार्यालय ने बिग.एफ.एम. एवं रेडियो मिर्ची आदि को संचयी रूप में ृ20.00 लाख मंजूर किये हैंै।
iv)बैंक सखी माॅडलः- नाबार्ड ने 50 बैंक सखी परियोजना हेतु हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक, मण्डी को ृ14.50 लाख मंजूर किये हैं, जिसके द्वारा स्वयं सहायता समूह के मुखिया एवं सदस्य, बैंकिंग अभिकर्ता के रूप में कार्य करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय साक्षरता फैलाने में सहायता करेंगें।
v) गैर नकद लेन-देन को बढ़ावाः-
a) नाबार्ड ने हिमाचल प्रदेश के 1000 गांवों में 2000 पी.ओ.एस. मशीनों की स्थापना के लिए एच.पी.जी.बी को ृ1.20 करोड़ की मंजूरी दी है।
b) हिमाचल प्रदेश की समस्त 10 रूडसेती के अनुसरण एवं प्रशिक्षण सामग्री खरीदने हेतु नाबार्ड ने एकमुश्त पूंजी व्यय के रूप में ृ30.00 लाख की सहायता प्रदान की है।
c) हिमाचल प्रदेश के 1.24 लाख किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को रूपे किसान कार्ड प्रणाली में शामिल करके नाबार्ड सुनिश्चित करेगा ताकि गैर नकद वित्तीय अर्थ-व्यवस्था में किसान भी शामिल हो सकें।
d) नाबार्ड ने एच.पी.जी.बी. को अपनी शाखाओं में डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए 263 माइक्रो ए.टी.एम. स्थापित करने हेतु ृ65.75 लाख की सहायता दी है तथा राज्य में डिजिटल बैंकिंग के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सहकारी बैंकों और आर.आर.बी. को मोबाइल डेमो वैन के लिए भी स्वीकृति दी है।
उत्पादक संगठनों को वित्तीय सहायता (पी.ओ.डी.एफ.) उत्पादक संगठनों को सहयोग देने और वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाने के लिए नाबार्ड ने उत्पादक संगठन विकास कोष (पी.ओ.डी.एफ.) की स्थापना की है इस कोष की स्थापना का उद्देश्य उत्पादकों को समय पर ऋण (ऋण और सीमित अनुदान का मिश्रण) उपलब्ध करवाने, उत्पादकों का क्षमता निर्माण करने और उत्पादक संगठनों का सशक्तिकरण कर उत्पादकों (किसानों, कारीगरों, हथकर्घा बुनकर आदि) की जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्पादकों द्वारा स्थापित पंजीकृत उत्पादक संगठनों अर्थात् उत्पादक कंपनी, उत्पादक सहकारी संस्थाओं, पंजीकृत किसान महासंघों, परस्पर सहायता प्राप्त सहकारी समितियों, औद्योगिक सहकारी समितियांे, अन्य पंजीकृत महासंघों पैक्स, आदि को सहयोग और सहायता देना है।
पैक्स को बहुउद्देषीय गतिविधियां करने के लिए वित्तीय सहायता: पपैक्स को अपने सदस्यों को और अधिक सेवाएं प्रदान करने के लिए सक्षम बनाने हेतु और अपने लिए आय उत्पन्न करने लिए पैक्स को बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्र के रूप में विकसित करने के लिए एक पहल की गई है ताकि पैक्स अपने सदस्यों को सहायक सेवाएं प्रदान करने और अतिरिक्त व्यापार करने और अपनी गतिविधियों में विविधता लाने में सक्षम हो सके। वर्ष 2017-18 में (31.12.2017) तक नाबार्ड द्वारा ृ7.20 लाख की वित्तीय सहायता स्वीकृत की गई है।
संघों को वित्तीय सहायता : कृषि उत्पादों के विपणन और अन्य कृषि गतिविधियों में विपणन महासंघों/ सहकारी संस्थानों को सशक्त बनाने के लिए विपणन महासंघों/ सहकारी संस्थाओं के लिए अलग क्रेडिट लाइन अर्थात संघ को ऋण सुविधा उपलब्ध करवाई गई है ताकि कृषि उत्पादों के विपणन और अन्य कृषि गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके। विपणन महासंघों/ सहकारी संस्थाएं, जिनके सदस्य/ शेयरधारकों (पैक्स) या अन्य उत्पादक संगठन इस योजना के तहत वित्तीय सहायता का लाभ उठाने के लिए पात्र हैं। वित्तीय सहायता, लघु अवधि के कर्ज के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) योजना के तहत फसल की खरीद के लिए और किसानों को बीज की आपूर्ति, उर्वरक, कीटनाशक, पौध संरक्षण आदि के लिए उपलब्ध होगी और लंबी अवधि के कर्ज के रूप में छंटाई और श्रेणीकरण, प्राथमिक प्रसंस्करण, विपणन आदि सहित फसल एकत्र प्रबन्धन के लिए उपलब्ध होगी। इन संघों/ सहकारी संस्थाओं को कृषि सलाहकार सेवाएं और ई-कृषि विपणन के माध्यम से बाजार की जानकारी प्रदान करने के लिए भी सहयोग दिया जाएगा।
सहकारी बैंकों को वित्तीय सहायता : नाबार्ड पारम्परिक रूप से जिला सहकारी बैंकों को राज्य सहकारी बैंकों के माध्यम से पुनर्वित्त सहायता प्रदान करता है। व्यक्तिगत उधारकर्ताओं और सम्बन्धित प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पैक्स) की कार्यशील पंूजी और खेत परिसम्पति व रखरखाव जरूरतों को पूरा करने हेतु अल्पकालिक बहु-उद्देशीय ऋण सीधे ही सी.सी.बी. को उपलब्ध करवाने के लिए नाबार्ड ने एक अल्पकालिक बहु-उद्देशीय ऋण उत्पाद डिज़ाइन किया है। वर्ष 2017-18 मे कांगड़ा सी.सी.बी. क¨ ृ150.00 कर¨ड़ नकद ऋण सीमा मंजूर की गई।
सरकार प्रायोजित योजनाएँ: बेहतर मवेशी और दूध प्रबन्धन द्वारा राज्य में स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों और ग्रामीण लोगों के लिए स्तत रोजगार के अवसर प्रदान करने, उनकी आय के स्तर को बढ़ाने और दूध उत्पादन में भी वृद्धि के उद्देेश्य से भारत सरकार की डी.ई.डी.एस. योजना को शुरू किया गया था। वर्ष 2017-18 के दौरान 31.12.2017 तक इसके अन्र्तगत 294 लाभार्थियों को ृ297.23 लाख का अनुदान जारी किया गया है। इस के अतिरिक्त सरकार द्वारा प्रायोजित तीन अन्य योजनाएं अर्थात “एग्रीक्लिनिक और कृषि व्यापार केन्द्र योजना“ राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना के तहत वाणिज्यिक जैविक आदान उत्पादन इकाइयों के लिए योजना तथा राष्ट्रीय पशुधन मिशन योजना राज्य में संचालित की जा रही है जिनके लिए नाबार्ड के माध्यम से अनुदान उपलब्ध करवाया जाता है।
नैबकॉन्स एजैंसी परामर्श नाबार्ड की एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी है और यह कृषि, ग्रामीण विकास और इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में परामर्श प्रदान करती है। कृषि और ग्रामीण विकास क्षेत्रों में विशेष कर बहु-विषयी परियोजनाएं, जैसे बैंकिंग, संस्थागत विकास, बुनियादी सुविधाओं, प्रशिक्षण आदि के लिए नैबकाॅन्स, नाबार्ड की विशेष योग्यता पर निर्भर है। नाबार्ड परामर्श कार्य जिन मुख्य क्षेत्रों में परामर्श कार्य प्रदान करती है वे हैं-व्यवहारता अध्ययन, परियोजना तैयार करना, मूल्यांकन, वित्त-पोषण व्यवस्था, परियोजना प्रबंधन और निगरानी, समवर्ती और प्रभाव मूल्यांकन, कृषि व्यापार इकाइयों का पुनर्गठन, दृष्टि प्रलेखन, विकास प्रशासन और सुधार, संस्थागत विकास और ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं का प्रतिवर्तन, ग्रामीण शाखा का मूल्यांकन, बैंक पर्यवेक्षण नीति और कार्य अनुसंधान अध्ययन, ग्रामीण विकास विषयों पर संगोष्ठी, सूक्ष्म वित्त से सम्बन्धित प्रशिक्षण, प्रदर्शन यात्राएं और क्षमता निर्माण, प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण और प्रशिक्षण संस्थानों का निर्माण, गैर कृषि उद्यमों को बढ़ावा देना इत्यादि।
नैबकॉन्स ने हिमाचल प्रदेश राज्य में उच्चतम गुणवत्ता एवं ग्राहक संतुष्टि के साथ निम्नलिखित प्रमुख कार्य पूर्ण किये हैः
i) किन्नौर एवं लाहौल-स्पिति जिले में सीमाक्षेत्र विकास कार्यक्रम का तीसरा पक्ष निरीक्षण।
ii) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.केे.वी.वाई.) के अन्तर्गत किये गए कार्यो की तीसरा पक्ष समीक्षा।
iii) पं. दीन दयाल किसान बागवान समृद्धि योजना के अन्तर्गत पौली हाउस योजना की समीक्षा।
iv) मण्डी तथा कांगड़ा जिल¨ं में जापान इंटरनेशनल कोआॅपरेटिव एंजेंसी की परियोजनाअ¨ं के सर्वेक्षण एवं जांच की तैयारी।
v) हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड के लिए मण्डी आटोमेशन एवं नियंत्रित/ शीत भंडार हेतु प्रबन्ध परामर्श।
vi) राज्य के लिए 12 जिलों के लिए प्रधान मन्त्री सिंचाई योजना के अन्तर्गत राज्य सिंचाई योजना एवं जिला सिंचाई योजना तैयार करना।
vii) राज्य में चलाई जा रही अनुसूचित जाति उप-योजना को दी जा रही विशेष केंद्रीय सहायता की समीक्षा।
viii) राज्य में 12 सी.ए./ सी.एस. स्टोर्स की क्षमता का अध्ययन।
ix) राज्य के ए.पी.एम.सी. के लिए मंडी प्रबंधन सूचना प्रणाली की रूपरेखा, विकास एवं कार्यान्वयन।
x) कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक के लिए परियोजना का मूल्यांकन।
नाबार्ड क्षमता निर्माण और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सहकारी ऋण संरचना (सीसीएस) को सहायता प्रदान करता है साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के परिचय और बेहतर उपयोग के लिए भी। नाबार्ड ने एक विशेष और समर्पित फंड बनाया। इस उद्देश्य के लिए सहकारी विकास निधि (सीडीएफ)। राज्य सहकारी बैंक संचालन हेतु निधि से सहायता प्रदान की जाती है प्रशिक्षण संस्थान (एसीएसटीआई शिमला), जिला केंद्रीय सहकारी बैंक और प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पीएसीएस)। राज्य में सहकारी समितियों के विकास के लिए 2016-17 के दौरान कुल `43.40 लाख की राशि स्वीकृत की गई थी।
वित्तीय सहायता:
1) नाबार्ड विभिन्न सहकारी प्रशिक्षण संस्थानों (सीटीआई) को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। प्रभावी प्रशिक्षण वितरण की सुविधा और उनकी प्रशिक्षण क्षमताओं का समर्थन करने के लिए सीडीएफ से सॉफ़्टकॉब को बाहर निकाला गया। वर्ष 2016-17 के दौरान, नाबार्ड ने कृषि सहकारी कर्मचारियों को `31.80 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान की क्षमता निर्माण के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक (HPSCB) द्वारा प्रशिक्षण संस्थान (ACSTI) की स्थापना की गई सहकारी ऋण संस्थानों के कर्मचारियों की संख्या। सहायता से 27 के माध्यम से 747 श्रमिकों की क्षमता निर्माण में मदद मिली प्रशिक्षण कार्यक्रम. 2017-18 के दौरान 31.12.2017 तक, SOFTCOB के तहत ACSTI को `10.12 लाख की वित्तीय सहायता दी गई थी।
2) 04 प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (PACS) को अनुदान के रूप में `3.00 लाख की राशि प्रदान की गई बुनियादी ढांचे का विकास अर्थात. अलमारी, नकदी के लिए तिजोरी, कंप्यूटर और अन्य फर्नीचर आइटम। समर्थन प्रदान किया गया नाबार्ड द्वारा पैक्स को अपनी छवि सुधारने और अपने सदस्यों को बेहतर सेवा सुनिश्चित करने में मदद मिली।
iii) जोगिन्द्रा केंद्रीय सहकारी बैंक, सोलन को उन्नयन के लिए `0.60 लाख की सहायता स्वीकृत की गई। बैंक में सूचना प्रौद्योगिकी एवं हेल्पडेस्क की स्थापना। उपलब्ध कराए गए बुनियादी ढांचे से बैंक को मदद मिली इसमें आने वाले परिचालन संबंधी मुद्दों पर ध्यान देना और उन्हें तुरंत हल करना।
हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के लिए नाबार्ड की पहल:
1) नाबार्ड को राष्ट्रीय कार्यान्वयन इकाई (एनआईई) नामित किया गया है अनुकूलन निधि (एएफ), ग्रीन जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) के तहत और 'राष्ट्रीय अनुकूलन' के लिए जलवायु कोष (जीसीएफ) की स्थापना की गई। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जलवायु परिवर्तन के लिए कोष (एनएएफसीसी) की स्थापना की गई।
2) नाबार्ड ने जलवायु परिवर्तन की भविष्य की चुनौतियों से निपटने के अपने प्रयासों में तैयारी को सुविधाजनक बनाया है, सूखे में कृषि पर निर्भर समुदायों की सतत आजीविका पर एक परियोजना का विकास और मंजूरी कार्यकारी इकाई (ईई) से सिरमौर जिले में जलवायु स्मार्ट समाधान के माध्यम से हिमाचल प्रदेश का संभावित जिला यानी पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार। MoEF और CC ने मंजूरी दे दी है परियोजना के लिए `20.00 करोड़। 31 दिसंबर, 2017 तक नाबार्ड द्वारा `3.30 करोड़ की राशि जारी की गई है।

4.आबकारी एवम् कराधान

आबकारी एवम् कराधान विभाग प्रदेश में सबसे अधिक राजस्व अर्जित करने वाला विभाग है। वर्ष 2016-17 के दौरान कुल ृ6,171.00 करोड़ के राजस्व संग्रहण में से वैट संग्रह ृ4,381.91 करोड़ है जोकि कुल राजस्व का 71 प्रतिशत बनता है। शीर्ष 0039 राज्य आबकारी नियम के तहत निर्धारित लक्ष्य ृ1,351.49 करोड़ की तुलना में ृ1,307.87 करोड़ का संग्रहण किया गया, जोकि कुल संग्रहित राजस्व का 21.19 प्रतिशत है, शेष 7.81 प्रतिशत हि0प्र0 यात्री वस्तु कर अधिनियम, हि0प्र0 विलासिता कर अधिनियम, हि0प्र0 सी0जी0सी0आर0 ;ब्मतजंपद ळववके ब्ंततपमक इल त्वंक ज्ंगद्ध अधिनियम, हि0प्र0 मंनोरंजन कर अधिनियम और हि0प्र0 टोल टैक्स अधिनियम से किया गया। सरकार ने वर्ष 2017-18 के लिए शीर्ष 0042-पी.जी.टी. के अन्तर्गत ृ145.27 करोड़ एवं ओ.टी.डी.-0045 के अन्तर्गत ृ409.14 करोड़ का लक्ष्य रखा है जोकि पिछले वित्तीय वर्ष 2016-17 से 9 प्रतिशत अधिक है।
विभाग द्वारा विभिन्न सेवाएं प्रदान करने एवं उनके अन्तर्गत लक्ष्य प्राप्ति का ब्यौरा निम्नलिखित है। कर-निर्धारण प्राधिकारी को रीफन्ड स्वीकृति की सीमा ृ5.00 लाख से बढाकर ृ10.00 लाख कर दी गई है व्यापारी जिनका टर्न ओवर ृ30.00 लाख वार्षिक है उन्हें संयोजन योजना के लिए विकल्प देने की अनुमति दी गई है जिसकी सीमा पहले ृ25.00 लाख थी। डीम्ड असैसमैंट के लिए दायरा निम्न प्रकार से बढाया गया हैः-
1) निर्धारण प्राधिकारी को `10.00 लाख तक का रिफंड स्वीकृत करने के लिए अधिकृत किया गया है। पहले यह सीमा `5.00 लाख थी।
2) कर-निर्धारण प्राधिकारी को रीफन्ड स्वीकृति की सीमा ृ5.00 लाख से बढाकर ृ10.00 लाख कर दी गई है
3) व्यापारी जिनका टर्न ओवर ृ30.00 लाख वार्षिक है उन्हें संयोजन योजना के लिए विकल्प देने की अनुमति दी गई है जिसकी सीमा पहले ृ25.00 लाख थी। डीम्ड असैसमैंट के लिए दायरा निम्न प्रकार से बढाया गया हैः-
i) डीम्ड असैसमैंट के लिए टर्न ओवर ृ1.00 करोड़ से ृ1.50 करोड़ किया गया।
ii) इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिए सीमा ृ5.00 लाख से बढाकर ृ8.00 लाख की गई।
iii) रीफन्ड के लिए सीमा ृ3.00 लाख से बढाकर ृ5.00 लाख कर दी गई है।
4) मोटर-स्प्रिट कर की दर 30 दिसम्बर, 2017 से 27 प्रतिशत से घटाकर 26 प्रतिशत कर दी गई है।
5) डीजल पर कर की दर 30 दिसम्बर, 2017 से 16 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दी गई
6) हिमाचल प्रदेश पूरे भारत में वस्तु एवं सेवा कर 2017 लागू करने वाला चैथा राज्य हैं, जिसके परिणामस्वरूप हिमाचल प्रदेश मूल्य वर्धित कर अधिनियम-2005, हिमाचल प्रदेश के स्थानीय क्षेत्र में माल के प्रवेश कर अधिनियम-2010, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विक्री नियम-1970, हिमाचल प्रदेश मनोरंजन कर अधिनियम- 1968 एवं हिमाचल प्रदेश विलासता कर (होटल व आवास गृहों पर कर) अधिनियम-1979 का वस्तु एवं सेवा कर में विलय हो गया है।
7) हिमाचल प्रदेश यात्रियोें तथा समान पर कर लगाने का अधिनियम-1955 व हिमाचल प्रदेश (सड़क द्वारा कतिपय माल के वहन पर) कराधान अधिनियम-1999 के अन्तर्गत कर संग्रह हेतु सितम्बर,2017 से ई.-पेमैंट की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है।
8) नया लाईसेंस एल-1डी, एल-13डी, एल-1एस, एल-13एस, एल-1 डब्लयु और एल-13 डब्लयु को आॅनलाईन जारी करने की सुविधा प्रदान की गई।
9) डिजिटल हस्ताक्षरित ई-खुदरा पास को आॅनलाईन जारी करने की सुविधा प्रदान की गई।
10) एच.पी.जी.एस.टी. अधिनियम और नियम के तहत ई-वे बिल (वैट-ग्ग्टप्.।) को आॅनलाईन जारी करने की सुविधा प्रदान की गई। जो कि हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचित है।
11) अस्थाई लाइसैंस, लाइसैंस और पास को उप विक्रेता को जारी करने की आॅनलाईन सुविधा प्रदान की गई है।
12) राज्य के अपंजीकृत व्यापारियों/ हितधारकों को संबद्ध करों के भुगतान के लिये आॅनलाईन सुविधा प्रदान की गई है।
13) तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश का अपना आबकारी अधिनियम-2011 जिसमें शराब की तस्करी के लिए प्रयोग किए जा रहे वाहन को जब्त किए जाने का प्रावधान है; दिनांक 18.08.2012 से लागू है।
14) प्रदेश में उपभोक्ताओं को अच्छी गुणवत्ता वाली शराब की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश में विकने वाली प्रत्येक देसी व अंग्रेजी शराब की बोतलों पर होलोग्राम लगाया जाना अनिवार्य किया गया है।

5.मूल्य संचलन

ुद्रा स्फीति का नियंत्रण सरकार की प्राथमिकता सूची में से एक है। मुद्रा स्फीति आम व्यक्तियों को उनकी आय कीमतों की पहंुच से दूर रहने के कारण परेशान करती है। मुद्रा-स्फीति के उतार-चढ़ाव को थोक मूल्य सूचकांक के द्वारा मापा जाता है। राष्ट्र्ीय स्तर पर थोक भाव सूचकांक दिसम्बर माह के वर्ष 2016 में 111.7 से बढ़कर दिसम्बर,2017 माह में 115.7;अद्ध हो गया जो कि मुद्रा स्फीति की दर (़) 3.58 प्रतिशत दर्शाता है। औसत मासिक थोक मूल्य सूचकांक व वर्ष 2017-18 में मुद्रा-स्फीति की दर नीचे सारणी 5.1 में दर्शाई गई हैः-
हिमाचल प्रदेश में कीमतों की स्थिति पर निरन्तर नियंत्रण रखा जा रहा है। खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा प्रदेश में कीमतों पर निगरानी, आपूर्ति की प्रक्रिया का रख-रखाव एवं आवश्यक वस्तुओं के वितरण के लिए 4,922 उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सुविधा उपलब्ध करवा रहा है। खाद्य में असुरक्षा एवं भेद्यता को माॅनिटर एवं व्यवस्थित करने के लिए खाद्य एवं आपूर्ति विभाग जी.आई.एस.के माध्यम द्वारा खाद्य असुरक्षा भेद्यता मैपिंग प्रणाली (एफ.आई.वी.आई.एम.एस.) लागू कर रहा है। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप प्रदेश में आवश्यक वस्तुओं के भाव नियंत्रण मंे रहे फिर भी हिमाचल प्रदेश का ओद्यौगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ;आधार 2001त्र100द्ध राष्ट््रीय सूचकांक की तुलना में थोड़ा अधिक रहा। दिसम्बर,2017 में हिमाचल प्रदेश उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (औद्योगिक श्रमिकों के लिए) में राष्ट््रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की 4.00 प्रतिशत की तुलना में प्रदेश की वृद्धि 5.28 प्रतिशत आंकी गई। इसके साथ-साथ जमाखोरी, मुनाफाखोरी तथा आवश्यक उपभोग की वस्तुओं की बिक्री तथा वितरण में हेराफेरी पर निगरानी रखने के लिए प्रदेश सरकार ने कई आदेशों/ अधिनियमों को कड़ाई से लागू किया है। वर्ष के दौरान नियमित साप्ताहिक प्रणाली द्वारा आवश्यक वस्तुओं के भावों पर निगरानी अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी रखी गई ताकि भावों में अनुचित बढौ़तरी को समय पर रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकें।

6.खाद्य सुरक्षा एवम् नागरिक आपूर्ति

लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में सरकार की नीति का एक विशेष घटक उचित मूल्य की 4,922 दुकानों द्वारा जरूरी वस्तुएं जैसे गेहॅूंँ, गेहूंॅँ का आटा, चावल, लेवी चीनी इत्यादि का लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत पूर्ति को सुनिश्चित करना है। खाद्य पदार्थाें को वितरित करने हेतु सभी परिवारों को दो श्रेणियों में बंाटा गया है।
1) एन0एफ0एस0ए0(पात्र गृहस्थियां) :
i) अन्त्योदय अन्न योजना
ii) प्राथमिकी गृहस्थियां
2) एनएफएसए (एपीएल) के अलावा: लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्र्तगत प्रदेश में 18,38,036 राशन कार्डों की संख्या है जिनके अन्तर्गत 77,43,946 राशन कार्ड धारकों को 4,922 उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं जिनमें सहकारी सभाएं के अन्तर्गत 3,221, पंचायतों द्वारा 14, नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा 71, व्यक्तिगत 1,609 तथा महिला मण्डल द्वारा 7 उचित मूल्य की दुकानें चलाई जा रही हैं।
वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक निम्नलिखित खाद्य पदार्थों की मात्रा उचित मूल्य की दुकानों के द्वारा वितरित की गई हैंः-

वर्तमान में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा हि0प्र0 राज्य अनुदानित वस्तुओं के वितरण का ब्यौरा निम्न प्रकार से किया जा रहा हैः-
हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम हिमाचल प्रदेश सरकार की लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली व राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अन्र्तगत नियन्त्रित व अनियन्त्रित वस्तुओं के प्रापण एवं वितरण की एक नोडल एजैन्सी के रुप में सन्तोषजनक कार्य कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक निगम ने विभिन्न वस्तुएं जिनका मूल्य ृ911.25 करोड़़ था, का प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष में इसी अवधि में ृ872.25 करोड़़ था।
वर्तमान में निगम अन्य आवश्यक वस्तुओं जैसे कि रसोई गैस, डीजल/ पैट्र््रोल/ मिटटी का तेल और जीवन रक्षक दवाईयों को उचित मूल्यों पर 117 थोक बिक्र्री केन्द्रों, 76 उचित मूल्यों की दुकानों/ अपना स्टोर, 54 गैस एजेंसियों, 4 पेट््रोल पम्प और 36 दवाईयों की दुकानों के माध्यम से प्रदेश के कोने-कोने में वितरण कर रहा है। इसके अतिरिक्त निगम थोक व परचून बिक्र्री केन्द्रों के माध्यम से अन्य आवश्यक वस्तुएं जैसे चीनी, दालें, चावल, आटा, डिटरजैंट, चाय पŸाी, कापियां, सीमेंट, सी.जी.आई. शीट्स, दवाईयां, विशेष पोषाहार स्कीम की विभिन्न वस्तुएं, मनरेगा सीमेन्ट व पैट्र््रोलियम पदार्थाें इत्यादि का थोक गोदामों व परचून दुकानों के माध्यम से प्रापण एवं वितरण कर रहा है जिससे निश्चित रुप से इन वस्तुओं के लिए प्रदेश में महंगाई स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक निगम द्वारा विभिन्न वस्तुओं का मूल्य ृ370.48 करोड़ का प्रापण एवं वितरण किया गया है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के लिए मूल्य ृ321.86 करोड़ की थी।
निगम दोपहर के भोजन स्कीम के अन्तर्गत प्राथमिक व अपर प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को सम्बन्धित जिलाधीशों द्वारा आंवटित चावल एवं अन्य खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति की व्यवस्था कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक 11,087 मी.टन चावल जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 11,428 मी.टन थे का वितरण किया है। निगम सरकार की विशेष अनुदानित स्कीम के अंतर्गत चिन्हित वस्तुओं (दालें, खाद्य तेल और नमकद्ध की सरकार द्वारा गठित प्रापण कमेटी के निर्णयानुसार आपूर्ति कर रहा है। वर्तमान विŸाीय वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक ृ292.00 करोड़़ की विभिन्न वस्तुओं सभी राशन कार्ड धारकों को तय मानकों के अनुसार का प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में इस अवधि में ₹ 372.85 करोड़़ थी। इस योजना को लागू करने के लिए वर्ष 2017-18 में ृ220.00 करोड़ राज्य अनुदान के रुप में बजट में प्रावधान किया गया है। वर्ष 2017-18 के दौरान निगम का कारोबार ृ1,500.00 करोड़़ रहने की संभावना है। जो गत वर्ष 2016-17 के द्वौरान ृ1,433.35 करोड़ का था।
अपना स्टोर/मॉल खोलने का प्रस्ताव: निगम ने "अपना स्टोर/मॉल" खोलने का प्रस्ताव शुरू किया है। शिमला, सोलन, धर्मशाला, मंडी। पहले चरण में, अपना स्टोर/मॉल को बस स्टैंड नगरोटा बगवां और पालमपुर में चालू कर दिया गया है। विभिन्न गैर-नियंत्रित वस्तुओं की बिक्री। मंडी और शिमला में अपना स्टोर/मॉल खोलने के प्रयास किये जा रहे हैं। बस स्टैंड में कांगड़ा अपना स्टोर शीघ्र ही क्रियाशील किया जा रहा है। दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों के परिसर में और अधिक दवा दुकानें खोलने का प्रस्ताव है।
हिमाचल प्रदेश नागरिक आपूर्ति निगम सरकारी अस्पतालों को दवाईयां, सरकारी विभागों/ बोर्डों/ उपक्रमों/ अन्य सरकारी संस्थाओं को सीमेंट और जी.आई./ डी.आई/ सी.आई पाईपें सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग को, शिक्षा विभाग को स्कूल की वर्दियों की आपूर्ति कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष 2016-17 में सरकारी आपूर्ति ;अनन्तिम स्थितिद्ध निम्न प्रकार रहेगीः-
मनरेगा सीमेंट की आपूर्त: वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान दिसम्बर, 2017 तक निगम ने प्रदेश की विभिन्न पंचायतों के विकास कार्य में प्रयोग किए जाने वाले 23,36,932 बैग सीमेंट जिसकी राशि ृ66.86 करोड़़ बनती है का सीमेन्ट फैक्ट््िरयों से प्रापण व आपूर्ति सुनिश्चित की गई है।
निगम आवश्यक वस्तुएं, जैसे पैट्र¨लियम उत्पाद, मिटटी तेल व एल.पी.जी. जन-जातीय एवं अगमय क्षेत्रों में जहां निजी पार्टियां इस व्यवसाय को चलाने में घाटे के दृष्टिगत आगे नहीं आती है, जरूरी वस्तुएं उपलब्ध करवाने के लिए वचनबद्ध है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान निगम ने सरकार की जनजाति कार्य योजना के अनुसार जनजातीय व हिमाच्छादित क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुएं व पैट्रोलियम उत्पादों की व्यवस्था सुनिश्चित की है।
लाभांष: निगम अपनी स्थापना वर्ष 1980 से लगातार लाभ अर्जित कर रहा है। निगम ने वर्ष 2016-17 के दौरान ृ2.24 करोड़ का शुद्ध लाभ अर्जित किया तथा ृ35.15 लाख हिमाचल सरकार को लाभांश के रूप में देना प्रस्तावित है।
भारत सरकार द्वारा राज्यांे को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के सौपे गये कार्य व उत्तरदायित्व के अन्र्तगत हि.प्र. राज्य नागरिक आपूर्ति निगम इस योजना के कार्यान्वयन में आवंटित खाद्यानों को समय पर पर्याप्त मात्रा में प्रापण/ भण्डारण व आपूर्ति सुनिश्चित करने के उपरान्त, अपने 117 थोक बिक्र्री केन्द्रों द्वारा चयनित उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से लाभार्थियों में वितरण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक 63,835 मी.टन चावल व 36,909 मी.टन गेहॅूँ चयनित लाभार्थियों को क्रमशः ृ3.00 व ृ2.00 प्रति किलो प्रति माह की दर से वितरित करना सुनिश्चित किया है। उपरोक्त के अतिरिक्त प्रदेश सरकार के अलग से राज्य वेयर हाउस कारपोरेशन न होने की स्थिति में निगम अपने स्तर पर 22,470 मी.टन व 34,840 मी.टन. किराये पर लिए गए गोदामों का प्रबन्धन कर रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के सफल कार्यान्वयन को देखते हुए पर्याप्त खाद्यान्न भण्डारण हेतु 300 मी.टन. से 1,000 मी.टन के नए गोदाम के निर्माण के प्रस्तावों पर भी कार्यवाही कर रहा है जिसके अन्तर्गत उपयुक्त सरकारी भूमि का चयन कर विभाग/ निगम के नाम पर स्थानान्तरण का कार्य प्रगति पर है। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 के दौरान अतिरिक्त खाद्यान भण्डारण क्षमता बढ़ाने के अन्तर्गत गोदाम निर्माण हेतु ृ4.00 करोड़ की राशि उपलब्ध करवाई है।
वर्तमान वित्तीय वर्ष 2017-18 में निगम द्वारा भारतीय इस्पात प्राधिकरण से सरिया व सम्बन्धित अन्य उत्पाद इत्यादि को शिमला में भट्टाकुफर से सभी विभागों, निगमों तथा बोर्ड़ों को उपलब्ध करवाने में पहल करने पर भारतीय इस्पात प्राधिकरण ने सेल यार्ड का दायित्व भी निगम को सौंपा है इसके अन्तर्गत दिसम्बर, 2017 तक निगम द्वारा 1,604 मी.टन अच्छी गुणवता के सरिये की आपूर्ति की है।

7.कृषि एवम् उद्यान

कृषि हिमाचल प्रदेश के लोगों का प्रमुख व्यवसाय है और प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। हिमाचल प्रदेश देश का अकेला ऐसा राज्य है जिसकी 2011 की जनगणना के अनुसार 89.96 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इसलिए कृषि व बागवानी पर प्रदेश के लोगों की निर्भरता अधिक है और कृषि से राज्य के कुल कामगारों में से लगभग 62 प्रतिशत को रोजगार उपलब्ध होता है। कृषि राज्य आय का प्रमुख स्त्रोत है।
कृषि राज्य की आय (जीएसडीपी) का प्रमुख स्रोत है:राज्य के कुल राज्य घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत कृषि तथा इससे सम्बन्धित क्षेत्रों से प्राप्त होता है। प्रदेश के कुल 55.67 लाख हैक्टेयर भौेगोलिक क्षेत्र में से 9.55 लाख हैक्टेयर क्षेत्र 9.61 लाख किसानों द्वारा जोता जाता है। प्रदेश में औसतन जोत 1.00 हैक्टेयर है। कृषि गणना 2010-11 के अनुसार भू-जोतों के वर्गीकरण नीेचे दी गई सारणी 7.1 से स्पष्ट है कि कुल जोतों में से 87.95 प्रतिशत जोतें लघु व सीमान्त किसानों की है। लगभग 11.71 प्रतिशत अर्ध-मध्यम/मध्यम व केवल 0.34 प्रतिशत जोतें बड़े किसानों की है।

कुल जोते गए क्षेत्र में से 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर आधारित हेै। चावल, गेंहू, तथा मक्की राज्य की मुख्य खाद्य फसलें हैं। मूंगफली, सोयाबीन तथा सूरजमुखी खरीफ मौसम की तथा तिल, सरसों और तोरिया रबी मौसम की प्रमुख तिलहन फसलें हेैं। उड़द, बीन, मूंग, राजमाश राज्य में खरीफ की तथा चना मसूर रबी की प्रमुख दालें है। कृषि जलवायु के अनुसार राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है जैसे
1) उपोष्णीय, उप पर्वतीय तथा निचले पहाड़ी क्षेत्र।
2) उप समशीतोष्ण नमी वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्र।
3) नमी वाले ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र।
4) शुष्क तापमान वाले ऊंचेे पर्वतीय क्षेत्र व शीत मरूस्थल।
प्रदेश की कृषि जलवायु नगद फसलों जैसे बीज आलू, अदरक तथा बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए बहुत ही उपयुक्त है।
खाद्यान्न उत्पादन के अतिरिक्त राज्य सरकार, समयानुसार तथा प्रचुर मात्रा में कृषि संसाधनों की उपलब्धता, उन्नत कृषि तकनीकी जानकारी, पुराने किस्म के बीजों को बदल कर एकीकृत कीटाणु प्रबन्ध से उन्नत करना, जल प्रबन्धन के अंतर्गत अधिक से अधिक भुमि को शामिल करना एवं जल संरक्षण कर बेकार जमीन का विकास करके बेमौसमी सब्जियों आलू, अदरक, दालों व तिलहन के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। वर्षा के अनुसार चार विभिन्न मौसम है। लगभग आधी वर्षा बरसात में ही होती है तथा शेष बाकी मौसमों मेे होती है। राज्य में औसतन 1,251 मि.मी. वर्षा होती है। जिसमें सबसे अधिक वर्षा कांगड़ा जिले में होती है और उसके बाद चम्बा, सिरमौर और मण्डी जिला आते हैं।
कृषि कार्यकलापों का मौनसून से गहन सम्बन्ध है। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2017 के मौनसून के मौसम ;जून-सितम्बरद्ध में बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, मण्डी, शिमला, सिरमौर सोलन और ऊना में सामान्य, चम्बा व किन्नौर में कम तथा लाहौल-स्पिति में छुटपुट वर्षा हुई। इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में मौनसून मौसम में सामान्य वर्षा की तुलना में (-)15 प्रतिशत कम वर्षा हुई। सारणी 7.2 में विभिन्न जिलों में दक्षिण पश्चिम मौनसून मौसम में वर्षा की स्थिति को दर्शाया गया है।
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर निर्भर करती है तथा अभी तक भी राज्य की अर्थ-व्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 2015-16 में कृषि तथा उससे सम्बन्धित क्षेत्रों का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में लगभग 9.4 प्रतिशत योगदान रहा। खाद्यान्न उत्पादन में तनिक भी उतार-चढ़ाव अर्थ-व्यवस्था को काफी प्रभावित करता है। 12वीं पंचवर्षीय योजना, 2012-17 के दौरान बेमौसमी सब्जियोें, आलू, दालों तिलहनी फसलें व खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर पर्याप्त आदान आपूर्ति, ंिसंचाई के अंतर्गत् नए क्षेत्र लाकर, जल संरक्षण विकास तथा सुधरी हुई कृषि प्रौद्योगिकी के प्रभावकारी प्रदर्शन व जानकारी पर विशेष महत्व दिया गया है। वर्ष 2016-17 कृषि के लिए सामान्य अच्छा वर्ष होेने की वजह से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2015-16 के 16.34 लाख मी0टन की तुलना में वर्ष 2016-17 में 17.45 लाख मी0टन उत्पादन हुआ। वर्ष 2015-16 केे 1.83 लाख मी0टन आलू उत्पादन की तुलना में वर्ष 2016-17 में आलू उत्पादन 1.96 लाख मी0टन हुआ। सब्जियों का उत्पादन वर्ष 2015-16 के 16.09 लाख मी0टन की तुलना में वर्ष 2016-17 में 16.54 लाख मी0टन हुआ।
वर्ष 2017-18 में कुल उत्पादन का लक्ष्य 16.45 लाख मी0टन होने की आशा है। खरीफ उत्पादन मुख्यतः दक्षिण पश्चिम मौनसून पर निर्भर करता है क्योेंकि राज्य के कुल जोते गए क्षेत्र में से लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर निर्भर करता है। खरीफ सीजन में बुआई अप्रैल अन्त में शुरू होती है और जून मध्य तक जाती है। मक्की और धान खरीफ सीजन की मुख्य फसलें हैं। रागी, छोटे अनाज तथा दालें कम मात्रा में होती हैं। खरीफ सीजन के दौरान 384.26 हजार हैक्टेयर क्षेत्र बोया गया था। लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र अप्रैल-मई तथा शेष क्षेत्र जून-जुलाई के महीने में बोया गया जो कि खरीफ सीजन का शीर्ष समय होता है। राज्य के अधिकांश हिस्से में सामान्य वर्षा होने के कारण बीजाई समय पर की जा सकी और कुल मिलाकर फसल की स्थिति सामान्य थी। यद्यपि मानसून 2016 के दौरान राज्य के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा के कारण खरीफ की खड़ी फसल कुछ सीमा तक प्रभावित हुई और 9.55 लाख मी0टन उत्पादन हुआ जो कि पिछले वर्ष सीजन के लिए 9.04 लाख मी0टन था।रबी सीजन 2016-17 के दौरान अक्तूबर से दिसम्बर, 2016 की अवधि में वर्षा -93 प्रतिशत कम हुई परन्तु जनवरी,2017 के पहले पखवाडे में वर्षा आरम्भ हुई अतः संजम अंतपमजल बीज की बुआई की गई ताकि सुखे के कारण होने वाली हानि की सम्भावनाओं को कम किया जा सके जिस कारण 2016-17 रबी उत्पादन के 6.97 लाख मी0टन के लक्ष्य की तुलना में 7.90 लाख मी0टन का लक्ष्य अन्तिम अनुमान के अनुसार प्राप्त किया गया है। फसलबार खाद्यानों एवं वाणिज्य फसलों का उत्पादन वर्ष 2014-15, 2015-16, 2016-17 एवं लक्ष्य 2017-18 तालिका 7.4 में दर्शाया गया है।
कहिमाचल भी अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां कृषि के अन्तर्गत् भूमि को बढ़ाया नहीं जा सकता। अतः उत्पादकता स्तर को बढ़ाने के साथ विविधता पूर्ण उच्च मूल्य वाली फसलों को अपनाने का प्रयास आवश्यक है। नकदी फसलों की तरफ बदले हुए रूझान की वजह से खाद्यान्न उत्पादन/ फसलों के अंतर्गत क्षेत्र धीरे-धीरे कम हो रहा है। जैसे कि यह 1997-98 में 853.88 हजार हैक्टेयर था जो घटते हुए वर्ष 2015-16 में अनुमानित 764.85 हजार हैक्टेयर रह गया। प्रदेश में बढ़ता हुआ उत्पादन, उत्पादकता दर में वृद्धि को दर्शाता है जो कि सारणी 7.5 से पता चलता है।
खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने हेतु किसानों को अधिक उपज देने वाले बीजों के वितरण पर जोर दिया गया। अधिक उपज देने वाली मुख्य फसलों जैसे मक्की, धान, गेहूं के अंतर्गत पिछले पांच वर्षों में लाया गया क्षेत्र तथा 2017-18 के लिए लक्षित क्षेत्र सारणी 7.6 में दिया गया है।
प्रदेश में बीज उत्पादन के 20 फार्म केन्द्र स्थापित किए गए है जिनसे पंजीकृत किसानों को बीज उपलब्ध करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में 3 सब्जी विकास केन्द्र, 12 आलू विकास केन्द्र तथा 1 अदरक विकास केन्द्र भी स्थापित किए गए हैं।
पौध संरक्षण कार्यक्रम: फसलों की पैदावार बढानें के उद्वेश्य से पौध संरक्षण उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता देना जरूरी है। प्रत्येक मौसम में फसलों की बीमारियों, इनसैक्ट तथा पैस्ट इत्यादि से लड़ने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति, आई.आर.डी.पी. परिवारों, पिछडे़ क्षेत्रों के किसानों तथा सीमान्त व लघु किसानों को पौध संरक्षण रसायन व उपकरण, 50 प्रतिशत कीमत पर उपलब्ध करवाएं गए। विभाग का दृष्टिकोण है कि पौध संरक्षण रसायनों को प्रयोग कम करके धीरे धीरे कीटों/ रोगों के जैविक नियन्त्रण पर बढावा दिया जाये। इस मद में सब्सिडी गैर योजना शीर्ष से वहन की जा रही है। संभावित एवं प्रस्तावित लक्ष्य सारणी 7.7 में दर्शाए गए हैं।

मिट्टी की जांच कार्यक्रम : प्रत्येक मौसम में मिट्टी की उर्वरकता को बनाए रखने के लिए किसानों से मिट्टी के नमूने इकट्ठे किए जाते हैं तथा मिट््टी जांच प्रयोगशाला में इनका विश्लेषण किया जाता है। लाहौल-स्पिति जिला के अतिरिक्त जिलोें मंे मिट्टी जांच प्रयोगशालाएं स्थापित की जा चुकी है, जबकि चार चलते फिरते वाहन/ प्रयोगशालाएं जिसमें से एक जन-जातीय क्षेत्र के लिए हैं, स्थानीय स्तर पर मिट्टी की जांच के लिए कार्यरत हैं। यह प्रयोगशालाएं आधुनिक उपकरणों द्वारा सशक्त की जा रही है। वर्तमान में 11 मिट्टी जांच प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ किया गया तथा 7 चलित प्रयोगशालाएं विभाग द्वारा स्थापित की गई तथा एक वर्ष में लगभग एक लाख मिट्टी के नमूने मिट्टी विश्लेषण के लिए एकत्रित किए गए। वर्ष 2015-16 व 2016-17 में 69,635 मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया गया तथा वर्ष 2017-18 में लगभग 50,000 मिट्टी के नमूनों के विश्लेषण का लक्ष्य रखा गया है। मिट््टी के नमूनों का विश्लेषण परियोजना को सरकार ने फ्लैगशीप कार्यक्रम के तौर पर अपनाया है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत्् वर्ष 2016-17 में पात्र किसानों को लगभग 3.85 लाख मिट््टी स्वास्थ्य कार्ड दिए गये। वर्ष 2017-18 के दौरान लगभग 48,038 मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध करवाये जायेगें जिससे किसानों को अपने खेतों की मिट्टी में पोषकता तथा उर्वरकता की स्थिति और पोषक तत्वों की आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त होगी। भू-उर्वरकता नक्शे चैधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जी0पी0एस0 तकनीक द्वारा बनाए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने मिट्टी जांच को भी हि0प्र0 सार्वजनिक सेवा गारन्टी अधिनियम 2011 के अंतर्गत् एक सार्वजनिक सेवा घोषित किया है।
सभी संबंधित लोगों के लिए जैविक खेती सतत स्वास्थ्य दृष्टि से व पर्यावरण मित्र होने के कारण आजकल लोकप्रिय होती जा रही है। किसानों को प्रशिक्षण, प्रदर्शनी, मेले/ गोष्ठियों द्वारा राज्य में जैविक खेती बहुत ही योजनाबद्व तरीके के साथ प्रोत्साहित की जा रही है। यह भी फैसला लिया गया है कि हर घर में बरमी खाद की ईकाईयां स्थापित की जाए। इस योजना के अन्तर्गत् प्रति किसान को ृ6ए000 की राशि (50 प्रतिशत अनुदान पर) 10ग6ग1ण्5 फीट का बरमी गड्डा तैयार करने के लिये दी जाती है। इसके अतिरिक्त जैविक खेती अपनाने पर अनुमोदित जैविक आदानों पर ृ10,000 प्रति हैक्टेयर ;50 प्रतिशतद्ध तथा प्रमाणीकरण हेतु ृ10,000 प्रति हैक्टेयर 3 वर्षाें के लिए प्रोत्साहन के रूप में दिया जा रहा है।
बायो गैस विकास कार्यक्रम : पारम्परिक ईंधन, जैसे जलावन लकड़ी की उपलब्धता के कम होने से बायोगैस संयन्त्रों ने राज्य के निचले तथा मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों में महता प्राप्त की है। इस कार्यक्रम के शुरू होने से मार्च,2017 तक राज्य में 44,778 बायोगैस संयन्त्र लगाए जा चुके हैं। वर्ष 2016-17 के दौरान राज्य में 107 बायोगैस संयन्त्र स्थापित किए गये तथा वर्ष 2017-18 के दौरान भी 100 और बायोगैस संयन्त्र स्थापित करना प्रस्तावित है जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक 25 संयंत्र पहले ही स्थापित किये जा चुके हैं। यह कार्यक्रम परिपूर्णता के पड़ाव पर है।
उर्वरक उपभोग तथा उपदान : उर्वरक ही एक ऐसा आदान है जो काफी हद तक उत्पादन को बढ़ाने में योगदान देता है। उर्वरक उपभोग का स्तर वर्ष 1985-86 के 23,664 टन से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 56,491 टन हो गया। रसायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मिश्रित उर्वरक पर ृ1,000 प्रति मी0टन तथा बड़े पैमाने पर घुलनशील उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 25 प्रतिशत मूल्य सीमा या ृ2,500 प्रति क्विंटल जो भी कम हो, उपदान स्वरूप केन्द्रीय योजना के अंतर्गत् दिया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में लगभग 57,409 मी0टन उर्वरक पोषक तत्वों के रूप में वितरित किया जाएगा।
ग्रामीण परिवारों की विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्थिति के कारण पारम्परिक वित्त के गैर संस्थागत स्त्रोत ही ऋण के मुख्य साधन है। इनमें से कुछ एक बहुत अधिक ब्याज पर धन उपलब्ध करवाते हैं और गरीब लोगों के पास बहुत कम सम्पति होती है जिसके कारण उनके लिए जमानत जुटा पाने के अभाव में वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेना बहुत मुश्किल है फिर भी सरकार ने ग्रामीण परिवारों को कम दर पर संस्थागत ऋण उपलब्ध कराने के प्रयास किए हैं। किसानों की ऋण लेने की प्रवृति के मध्य नजर, जिनमें अधिकतर सीमान्त तथा छोटे किसान है, उनको आदान की खरीद के लिए बैंको द्वारा ऋण उपलब्ध करवाया जा रहा है। संस्थागत ऋण को व्यापक रूप देना विशेषकर उन फसलों मे जो कि बीमा योजना के अंतर्गत् आती है, बढानें की जरूरत है। सीमान्त तथा लघु किसानों और अन्य पिछडे़ वर्ग को संस्थागत ऋण सही तरीके से उपलब्ध करवाना और उनके द्वारा नवीनतम तकनीकी तथा सुधरे कृषि तरीकों को अपनाना सरकार का मुख्य उद्वेश्य है। राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की मिटिंग में फसल बार ऋण योजना तैयार की है ताकि ऋण बहाव का जल्दी अनुश्रवण हो सके।
यह योजना पिछले बारह से तेरह वर्षों में बहुत ही सफल रही है। 1955 से अधिक बैंक शाखाएं इस योजना को कार्यान्वित कर रही है। इस योजना के अन्तर्गत लाभान्वित किसानों की प्रतिशतता कुल किसानो का लगभग 43 प्रतिशत है।
सभी फसलों तथा सभी किसानों को बीमा योजना के अंतर्गत् लाने के लिए सरकार ने राज्य में वर्ष 1999-2000 के रबी मौसम से ‘राष्ट्र्ीय कृषि बीमा योजना‘ शुरू की। अब राज्य में कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी प्रशासनिक अनुमोदन एवं दिशा निर्देशों के अनुसार खरीफ मौसम के लिये 2016 से प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई है। इस बीमा योजना के अंतर्गत् खरीफ मौसम के दौरान मक्का तथा धान की फसलों को शामिल किया गया है। फसलों के नुकसान के विभिन्न अग्रणी जोखिम जो बुआई में देरी, कटाई के बाद नुकसान, स्थानीय आपदाओं और खड़ी फसलों को नुकसान (बुआई से कटाई तक) के कारण पैदा होते हैं. को इस योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है। यह योजना ऋणी किसानों के लिए जो कि बैंकों और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों से बीमित फसलों के अंतर्गत् फसल ऋण का लाभ ले रहे हैं आवश्यक है तथा गैर ऋणी किसानों के लिए उनकी मर्जी पर आधारित है। पी0एम0एफ0बी0वाई0 योजना के अंतर्गत 350 प्रतिशत से अधिक एकत्रित प्रीमीयम राशि अथवा 35 प्रतिशत से अधिक बीमाकृत राशि, जो भी राष्ट्््रीय स्तर पर सभी कम्पनियों को मिलाकर, अधिक हो उसके लिए केन्द्र तथा राज्य सरकार बराबर भागीदारी में भुगतान करेगी।
कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा एक अन्य कृषि बीमा योजना खरीफ मौसम, 2016 से श्पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना शुरु की है ताकि किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ बीमा सुरक्षा प्रदान की जा सके जो कि खरीफ खेती के दौरान फसलों को बुरी तरह से प्रभावित करती हंै। अब तक रबी मौसम 2016-17 के दौरान 2.86 लाख किसान तथा 89,780 हैक्टेयर क्षेत्र इस योजना के अंतर्गत् शामिल किये जा चुके है। इस योजना के अंतर्गत ृ400.00 करोड़ का बजट परिव्यय 2017-18 के लिए प्रस्तावित किया गया है जो कि प्रीमियम सब्सिडी के राज्य हिस्सेदारी के भुगतान के लिए उपयोग किया गया है।
बीज प्रमाणीकरण: कृषि मौसमीय स्थिति राज्य में बीज उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त है। बीज की गुणवता को बनाए रखने के लिए तथा उत्पादकों को बीज की कीमतें उपलब्ध कराने के लिए बीज प्रमाणीकरण योजना को अधिक महत्व दिया गया। राज्य के विभिन्न भागों में बीज उत्पादन तथा उनके उत्पादन के प्रमाणीकरण के लिए श्हिमाचल राज्यबीज रासायनिक खाद उत्पाद प्रमाणीकरण एजैंसीश् उत्पादकों को पंजीकृत कर रही है।
कृशि विपणन : कृषि विपणन तथा कृषि उत्पादन को राज्य में व्यवस्थित करने के लिए हिमाचल प्रदेश कृषि वानिकी उत्पादन विपणन एक्ट, 2005 लागू किया गया। इस एक्ट के अंतर्गत राज्य स्तर पर हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड की स्थापना की गई। हिमाचल प्रदेश में 10 अधिसुचित विपणन क्षेत्रों में बांटा गया है। इसका मुख्य उद्देेश्य कृषक समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित रखना है। व्यवस्थित स्थापित मण्डियां किसानों को लाभदायक सेवाएं उपलब्ध करवा रही है। सोलन में कृषि उत्पादों हेतु एक आधुनिक मण्डी ने कार्य प्रारम्भ कर दिया है तथा अन्य स्थानों पर भी मार्केट यार्डों का निर्माण हुआ है। वर्तमान में 10 मण्डी कमेटियां कार्य कर रही हैं। 58 मण्डियों को कार्यात्मक बनाया गया है जिनमें से 19 मण्डियां ई-मार्केटस के तहत नामांकित की जा चुकी है। विकास के इस शीर्ष के लिए व्यय राज्य योजना से नहीं किया जा रहा है और इस अधिनियम से प्राप्त राजस्व को कृषि उत्पादो के व्यापार के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचें को बढ़ाने के लिये उपयोग में लाया जा रहा है़। हि0प्र0 कृषि वानिकी उत्पादन विपणन एक्ट को भी भारत सरकार द्वारा परिचालित माडल एक्ट की तर्ज पर संशोधित किया जा रहा है। इस एक्ट के तहत निजि बाजार की स्थापना, प्रत्यक्ष विपणन, अनुबन्ध खेती और प्रवेश शुल्क का एक ही स्थान का प्रावधान रखा गया है। विभिन्न मण्डियांे का कम्पयुटरीकरण भी किया जा रहा है। यह सभी गतिविधियां विपणन बोर्ड द्वारा अपने फंड एवं आर.के.वी.वाई. द्वारा चलाई जा रही है।
चाय विकास: चाय उत्पादन के अन्तर्गत् 2,310 हैक्टेयर क्षेत्र है जिसमें वर्ष 2016-17 के दौरान 9.21 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ। अनुसूचित जाति के चाय पैदावार करने वालों को कृषि औजारों पर 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से बाजार में गिरावट की वजह से चाय उद्योग पर विपरीत असर पड़ा है। उत्पादकों को चाय उत्पादन के अच्छे दाम उपलब्ध करवाने के लिए प्रदर्शन एवम् नतीजों पर बल दिया जा रहा है।
कृशि का मषीनीकरण :इस योजना के अन्तर्गत किसानों में नए कृषि औजार/ मशीनों को लोकप्रिय बनाया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत नई मशीनों का परीक्षण किया गया। विभाग का प्रस्ताव पहाड़ी स्थिति के अनुकूल छोटे ईंधन से चलने वाले हल एवं औजार को लोकप्रिय बनाने का है।
प्भौगोलिक परिस्थितियों के मध्यनजर हमारी भूमि में कटाव इत्यादि आ जाता है। जिस के कारण हमारी मिट्टी का स्तर गिर जाता है। इस के अलावा भूमि पर जैविक दबाव भी है। विशेष रूप से कृषि भूमि पर इस दुष्प्रभाव को रोक लगाने हेतु विभाग द्वारा राज्य सैक्टर के अन्तर्गत मिट्टी एवं जल संरक्षण दो योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। यह योजनाएं हैंः-
i) भू संरक्षण कार्य
ii) जल संरक्षण और विकास
कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जल संरक्षण और लघु सिंचाई योजनाओं को प्राथमिकता दी गई है। विभाग द्वारा वर्षा जल दोहन के लिए टैंक, तालाब, चैक डैम व भण्डार संरचनाओं के निर्माण के लिये योजना तैयार की है। इस के अलावा कम पानी उठाने वाले उपकरण व फव्वारों के माध्यम से कुशल सिंचाई प्रणाली को भी लोकप्रिय किया जा रहा है। इन परियोजनाओं से भू संरक्षण एवम् जल संरक्षण तथा कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर अर्जित करने पर अधिक जोेर दिया जाएगा।
डा0 वाई0 एस0 परमार किसान स्वरोजगार योजना : कृषि विभाग ने कृषि क्षेत्र में अधिक व शीघ्र विकास हेतु नकदी फसलों का उत्पादन पौली गृह के द्वारा खेती करने के लिए डा. वाई.एस.परमार किसान स्वरोजगार योजना बनाई है। इस परियोजना का उद्देेश्य जरूरत के हिसाब से संसाधनांे की रचना एवं विभिन्न लक्ष्य जैसे अधिक पैदावार, गुणवता, विपरीत मौसम के लिए बचाव व कुशल आदानांे का प्रयोग शामिल है। इसके साथ-साथ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से ऐसे पाॅली हाऊस विकसित करना जिसमें सुक्ष्म सिंचाई सुविधा भी उपलब्ध हो। इस परियोजना के तहत किसानों को 85 प्रतिशत सहायता प्रदान की जायेगी। इसके अलावा किसानों के समूह को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से जल स्रोतों (कम/ मध्यम लिफ्ट, पम्ंिपंग मशीनरी) के निर्माण के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाएगी।

राष्ट्रीय कृशि विकास योजना : कृषि एवं इसके साथ जुड़े क्षेत्रों की धीमी विकास दर को देखते हुए भारत सरकार ने राष्ट््र्रीय कृषि विकास योजना प्रारम्भ की है। इसके अंतर्गत 4 प्रतिशत की वार्षिक विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य है। पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत् कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्रों के सम्पूर्ण विकास हेतु उद्देश्य निम्न प्रकार से हैंः-
1) राज्यों को प्रोत्साहन देना ताकि कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश हो।
2) राज्यों को कृषि एवम् समवर्गी क्षेत्र योजना के लिए योजनाएं बनाने तथा कार्यान्वयन करने के लिए लचीलापन और स्वतन्त्रता देना।
3) कृषि संबंधी योजनाओं को राज्य तथा जिलों के लिए कृषि जलवायु प्रभाव तथा तकनीकी और प्राकृतिक स्त्रोत में सुविधा सुनिश्चित करना।
4) राज्यों द्वारा कृषि योजनाओं में स्थानीय जरूरतें/ फसलें/ प्राथमिकताएं भली-भांति प्रकार से व्यक्त हो, यह सुनिश्चित करना।
5) सरकारी हस्तक्षेप से महत्वपूर्ण फसलों के उत्पादन दर में अंतर को दूर करने का लक्ष्य प्राप्त करना।
6) किसानों को कृषि और संबंधित क्षेत्रों में अधिकतम प्राप्ति का लक्ष्य।
7) उत्पादन व उत्पादकता में गुणात्मक बदलाव लाने के लिए विभिन्न घटकों का कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों में सम्पूर्ण रूप से बताया जाना।
भारत सरकार ने कृषि विकास को बढ़ावा देने के लिए, जिसमें बागवानी, पशुपालन, मत्स्य व ग्रामीण विकास भी शामिल है के लिए धन आवंटित किया है। वर्ष 2017-18 के लिए कृषि विभाग हेतु ृ39.00 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया है यद्यपि वर्ष 2017-18 के लिए ृ22.94 करोड़ की परियोजनाएं एस0एल0एस0सी0 द्वारा आ0के0वी0वाई0 के अंतर्गत अनुमोदित है।
कृषि विस्तार एंव प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय मिषन (छड।म्ज्) : 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कृषि विस्तार एंव प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय मिशन (छड।म्ज्) के अन्तर्गत् तकनीक की प्रसार प्रणाली किसान आधारित बनाने के लिए शुरू की गई है। इस मिशन को चार उप-मिशन में विभाजित किया गया है।
1) कृषि विस्तार उप-मिशन (ै।डम्)
2) बीज एंव रोपण सामग्री उप-मिशन(ैडैच्)
3) कृषि यंत्रीेकरण उप-मिशन(ैड।ड)
4) पौध सरंक्षण एव पादप संगरोध (ैडच्च्)
इस नए घटक के अन्तर्गत केन्द्र और राज्य 90ः10 के अनुपात पर व्यय करेंगे। वर्ष 2017-18 के लिए ृ250.00 लाख के परिव्यय का अनुमान है।
स्थाई कृषि पर राष्ट्रीय मिषन (छडै ): सतत कृषि उत्पादकता और गुणवता, मिट्टी और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। कृषि विकास को निरन्तर बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त स्थान पर विशिष्ट उपायों के माध्यम से दुर्लभ प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण किया जा सकता है। राज्य में खाद्यान के लिए बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बारिश पर निर्भर कृषि के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का सरंक्षण महत्वपूर्ण है। वर्षा ंिसचिंत क्षे़त्रों में सतत कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एन.एम.एस.ए. का गठन किया गया है। इस मिशन के तहत निम्न मुख्य मुद््दे हैंः-
1) बारिश पर निर्भर कृषि का विकास करना ।
2) प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन।
3) जल उपयोग दक्षता बढ़ाना।
4) मिट््टी के गुणवत्ता में सुधार।
5) संरक्षण कृषि को बढ़ावा देना।
यह एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है और घटक 90ः10 के अनुपात में क्रमश केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा वहन होगा। वर्ष 2017-18 के दौरान ृ200.00 लाख का अनुमान है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिषन (छथ्ैड) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना चावल, गेहूं और दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है। यह योजना वर्ष 2012 में रबी सीजन के दौरान प्रदेश में शुरू की गई है। इसके दो मुख्य घटक एन.एफ.एस.एम.चावल और एन.एफ.एस.एम. गेहूं है। केन्द्रीय सरकार की 100 प्रतिशत सहायता से एन.एस.एफ.एम. चावल राज्य के 3 जिलों में तथा एन.एस.एफ.एम. गेंहू 9 जिलों में कार्य कर रही है। योजना का मुख्य उद्देश्य चावल और गेेहूं के उत्पादन को बढ़ाना तथा मिट््टी की उर्वरता बनाये रखना और उत्पादकता, रचनात्मकता तथा रोजगार के अवसर लक्षित जिलों में अर्जित करना है। वर्ष 2017-18 के लिए राज्य योजना में ृ165.00 लाख के व्यय का अनुमान है।
प्रधान मन्त्री कृषि सिंचाई योजना कृषि उत्पादकता में सुधार करने के प्रयास में भारत सरकार ने एक नई योजना “प्रधान मन्त्री कृषि सिंचाई योजना“ के नाम से शुरू की है। इस योजना के अन्तर्गत सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं (हर खेत को पानी) और अन्त से अन्त तक सिंचाई समाधान पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। पी.एम.के.एस.वाई. का मुख्य लक्ष्य क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश के अभिसरण प्राप्त करना, सुनिश्चित सिंचाई के अन्तर्गत कृषि योग्य क्षेत्र का विकास करना, खेत में सिंचाई की विधि में सुधार करना ताकि पानी के अपव्यय को कम किया जा सके, सही सिंचाई एवम् पानी की अन्य बचत तकनीकें शामिल है। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2017-18 के लिए राज्य योजना में ृ2.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
राजीव गान्धी सूक्ष्म सिंचाई योजना : राज्य सरकार फसलों को उत्पादकता में वृद्वि से राज्य में कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्व है। कुशल सिंचाई प्रणाली के लिए सरकार ने राज्य में एक महत्वपूर्ण परियोजना “राजीव गान्धी सूक्ष्म सिंचाई योजना“ का शुभारम्भ किया है। 2015-16 से 2018-19 के शुरू में 4 साल की अवधि के लिए ृ154.00 करोड़ के परिव्यय का प्रावधान रखा है। इस परियोजना के अन्तर्गत 8,500 हैक्टेयर क्षेत्र ड्रिप/ छिड़काव सिंचाई प्रणाली के तहत लाया जाएगा तथा 14,000 किसानों को लाभान्वित करने का लक्ष्य है। ड्रिप, माईक्रो, छोटे पोर्टेवल छिड़काव, अर्ध-स्थायी छिड़काव और बड़ी मात्रा में छिड़काव के लिए 80 प्रतिशत की दर पर और पानी के स्त्रोतों की वृद्वि के लिए 50 प्रतिशत अनुदान किसानों को उपलब्ध करवाया जाएगा। वर्ष 2016-17 के दौरान इस योजना के अन्तर्गत 709.85 हैक्टेयर क्षेत्र को लाकर 1,183 किसानों को लाभान्वित किया गया। वर्ष 2017-18 के लिए इस घटक के अन्तर्गत ृ10.00 करोड़ के बजट का प्रावधान है।
उत्तम चारा उत्पादन योजना : राज्य मंे चारे के उत्पादन को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने “उत्तम चारा उत्पादन योजना“शुरू की है जिसके अन्तर्गत 25,000 हैक्टेयर क्षेत्र चारा उत्पादन के लिए लाया गया है। इस योजना के अन्तर्गत किसानों को रियायती दरों पर उत्तम घास बीज, कलमें तथा उत्तम गुणवता के चारे की किस्मांें में सुधार के लिए बीजों की आपूर्ति की जाएगी। भूूसा कटर पर अनुदान अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति और बी.पी.एल. किसानों को उपलब्ध है। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2017-18 के लिए ृ6.00 करोड़ का प्रावधान प्रस्तावित है।
हिमाचल प्रदेश की विविध जलवायु, भौगोलिक क्षेत्र तथा उसकी स्थिति में भिन्नता, उपजाऊ, गहन तथा उचित जल निकास व्यवस्था वाली भूमि समशीतोष्ण तथा ऊष्ण कटिबन्धीय फलों की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है । यह क्षेत्र अन्य गौण उद्यान उत्पादन जैसे फूल, खुम्ब, शहद तथा हाॅप्स की खेती के लिए भी बहुत उपयुक्त है।
प्रदेश की इस अनुकूल स्थिति के परिणामस्वरूप पिछले कुछ दशकों मेें भूमि उपयोग अब कृषि से फलोत्पादन की ओर स्थानान्तरित होता जा रहा है। वर्ष 1950-51 में फलों के अधीन कुल क्षेत्र 792 हैक्टेयर था जिसमें कुल उत्पादन 1,200 टन होता था अब यह बढ़ कर वर्ष 2016-17 में 2,29,202 हैक्टेयर क्षेत्र हो गया तथा कुल फल उत्पादन 6.12 लाख टन हुआ तथा वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक कुल फल उत्पादन 5.00 लाख टन आंका गया है। 2017-18 में 3,000 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को फल पौधों के अंतर्गत लाने के लक्ष्य की तुलना में 31 दिसम्बर,2017 तक 2,552.44 हैक्टेयर क्षेत्र को पौधरोपण के अंतर्गत लाया गया तथा विभिन्न फलों के 6.69 लाख पौधे वितरित किए गए।
हिमाचल प्रदेश में फलोत्पादन में सेब का प्रमुख स्थान है जिसके अंतर्गत फलों के अधीन कुल क्षेत्र का लगभग 49 प्रतिशत है तथा उत्पादन कुल फल उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत है। वर्ष 1950-51 में सेबों के अंतर्गत 400 हैक्टेयर क्षेत्र था जो कि 1960-61 में बढ़कर 3,025 हैक्टेयर तथा वर्ष 2016-17 में 1,11,896 हैक्टेयर हो गया।
सेब के अतिरिक्त समशीतोषण फलों के अंतर्गत वर्ष 1960-61 में 900 हैक्टेयर क्षेत्र से बढ़कर 2016-17 में 28,163 हैक्टेयर हो गया। सूखे फल तथा मेवों का क्षेत्र 1960-61 के 231 हैक्टेयर से बढ़कर 2016-17 में 10,364 हैक्टेयर हो गया तथा नीम्बू प्रजाति एवं उपोषण कटिबंधीय फलों का क्षेत्र वर्ष 1960-61 के 1,225 हैक्टेयर तथा 623 हैक्टेयर से बढ़कर 2016-17 में क्रमशः 24,475 हैक्टेयर तथा 54,304 हैक्टेयर हो गया।
स्रतिकूल मौसम व बाजार में आने वाले उतार चढ़ाव के कारण सेब उत्पादन मेें आ रही अस्थिरता विकास की गति में बाधक हो रही है। विश्व व्यापार संगठन व जी.ए.टी.टी. तथा अर्थ-व्यवस्था के उदारीकरण के परिणामस्वरूप भी हिमाचल प्रदेश मंे सेब को फल उद्योग में प्रभुता पर अपना स्थान बनाये रखने में कई चुनौतियां पेश आ रही हैै। गत कुछ वर्षों से सेब उत्पादन में आ रहे निरन्तर उतार चढ़ाव से सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। प्रदेश के विशाल फलोत्पादन क्षमता के पूर्ण दोहन के लिए अब विभिन्न कृषि पारिस्थितक क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के फलोें के उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।फल-उद्यान विकास योजनाओं का मुख्य उद्देेश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विकास तथा रख-रखाव में निवेश करके सभी फल फसलों को बढ़ावा देना है। इस परियोजना के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम जैसे फलोत्पादन विकास कार्यक्रम, क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम, नई तकनीकों की जानकारी एवं अच्छी प्रवृतियों को बढ़ावा देकर विभिन्न फसलों जैसे अखरोट, हैजलनट, पिस्ता, आम, लीची, स्ट्रावेरी तथा जैतून को विकसित किया जा रहा है।
फलोत्पादकों को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य प्राप्त हो सक,े इसके लिए प्रदेश में मण्डी मध्यस्थता योजना कार्यान्वित की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2017-18 में सेब का प्रापण मूल्य बढ़ाकर ृ7.00 प्रति कि0ग्रा0, नीम्बू प्रजातीय फलो के प्रापण हेतु बी0 व सी0 ग्रेड किन्नू, संतरा व माल्टा 500 मी0टन तक का प्रापण मूल्य बढाकर क्रमशः ृ7.00 व ृ6.50 प्रति कि0ग्रा0 तथा गलगल को 100 मी0टन तक का प्रापण मूल्य ृ5.50 प्रति कि0ग्रा0, निर्धारित किया गया है। जबकि आम फल का प्रापण मूल्य ृ5.50 प्रति कि0ग्रा0 बीजू आम 300 मी0टन तक तथा ृ6.50 प्रति कि0ग्रा0 कलमी आम 200 मी0ट0 है। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2017-18 में बागवानों से ृ21.46 करोड मूल्य का 30,658 मी0टन सी-श्रेणी सेब का प्रापण किया गया। हांलाकि आम मण्डी मध्यस्थता योजना के अंतर्गत बीज तथा कलमी आम का कोई भी प्रापण नहीं हुआ है।
प्रदेश के गर्म क्षेत्रों में आम एक मुख्य फसल के रूप में उभरा है। कुछ क्षेत्रों में लीची भी महत्व प्राप्त कर रही है। आम तथा लीची की बाजार में बेहतर कीमतें मिल रहीं है। मध्यम ऊंॅंचाई वाले क्षेत्रों में नए फलों जैसे किवी, जैतून, पीकैन, अनार तथा स्ट्र्ाबैरी की खेती लोकप्रिय हो रही है। पिछले तीन वर्षों तथा चालू वित वर्ष के माह दिसम्बर, 2017 तक के फल उत्पादन आंकड़े सारणी 7.9 में दर्शाए गए हंै।
जैसे कीवी, जैतून, अनार, पेकन और स्ट्रॉबेरी। पिछले तीन वर्षों तथा चालू वर्ष में दिसम्बर, 2017 तक फलों का उत्पादन तालिका 7.9 में दिया गया है। तालिका 7.9 फल उत्पादन (‟000 टन)
प्रदेश मेें बागवानी उद्योग में विविधता लाने हेतु 31.12.2017 तक 156.19 हैक्टेयर क्षेत्र पुष्प खेती के अन्र्तगत लाया गया है। पुष्प खेती को बढ़ावा देने हेतु दो टिशू कल्चर प्रयोगशालाएं, आर्दश पुष्प केन्द्रों महोगबाग, (चायल जिला सोलन) तथा पालमपुर जिला कांगड़ा में स्थापित की गई है। फूलों के उत्पादन तथा विपणन हेतु प्रदेश में चार किसान को-ओपरेटिव सोसाईटियां जिला शिमला, कांगड़ा, लाहौल-स्पिति तथा चम्बा में कार्य कर रही है। प्रदेश में खुम्ब उत्पादन एवं मौन पालन जैसी सहायक उद्यान गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में दिसम्बर,2017 तक चम्बाघाट, बजौरा तथा पालमपुर स्थित विभागीय खुम्ब विकास परियोजनाअें में 429.76 मी0टन पास्चूराईजड खाद तैयार कर खुम्ब उत्पादकों को बांटी गई। प्रदेश में 31 दिसम्बर, 2017 तक कुल 5,077.00 मी0टन खुम्ब उत्पादन हुआ। इसके अतिरिक्त वर्ष 2017-18 में मौन पालन गतिविधि के अंतर्गत 31 दिसम्बर, 2017 तक प्रदेश मे 286.70 मी0टन शहद का भी उत्पादन हुआ।
हिमाचल प्रदेश में मौसम आधारित फसल बीमा योजना को रबी सीजन वर्ष 2009-10 में 6 विकास खण्डों में सेब फसल के लिए तथा 4 विकास खण्डों में आम फसल हेतु लागू किया गया था। इस योजना कीे लोकप्रियता केे दृष्टिगत अगले वर्षो में इस योजना का दायरा बढ़ाया गया। वर्ष 2017-18 में 36 विकास खण्डों में सेब फसल के लिए, 41 विकास खण्डों में आम फसल के लिए, 15 विकास खण्डों में निम्बू वर्गीय फसल के लिए, 13 विकास खण्डों में पलम फसल के लिए तथा 5 विकास खण्डों में आड़ू फसल के लिए इस परियोजना के अन्तर्गत् लाया गया। इसके अतिरिक्त सेब की फसल को ओलावृष्टि से होने वाली क्षतिपूर्ति के लिए बीमा हेतु 19 विकास खण्डों को ।कक.वद बवअमत के अंतर्गत लाया गया हैै। वर्ष 2016-17 से इस योजना का नाम बदल कर त्मेजतनबजततमक ॅमंजीमत इंेमक बतवच पदेनतंदबम किया गया है और सीमित राशि क® संश®धित कर इसमें बोली प्रणाली लागू की गई है। वर्ष 2016-17 में 95,283 बागवानों को मौसम आधारित फसल बीमा योजना में सेब, आम, पलम, आडू व निम्बू वर्गीय फसल के लिए सम्मिलित किया गया है जिनके द्वारा 79,22,387 पेड़ों को बीमित किया गया जिसके लिए 25 प्रतिशत प्रीमियम भाग लगभग ृ14.05 करोड़ राज्य सरकार द्वारा वहन किये गए।
केन्द्रीय प्रायोजित योजना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के कार्यान्वयन हेतु वर्ष 2017-18 में ृ350.00 लाख की राशि स्वीकृत की गई है जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक ृ175.00 लाख की राशि जारी की गई है। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2007-08 से लेकर दिसम्बर, 2017 तक कुल 13,537 बागवान लाभान्वित हुये है। योजना के अंतर्गत “यान्त्रिकरण द्वारा बागवानी विकास” एवं ”निजी क्षेत्र में खुम्ब उत्पादन“ कार्यक्रमांे के अंतर्गत क्रमशः ृ300.00 लाख एवं ृ50.00 लाख की राशि प्राप्त हुई है। वर्ष 2017-18 में इन केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं के कार्यन्वयन हेतु ृ35.55 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है जिसमें ृ11.11 करोड़ की राशि प्राप्त कर ली गई है। इन योजनाओं के अन्र्तगत वर्ष 2003-04 से माह दिसम्बर, 2017 तक 2.33 लाख किसान लाभान्वित किये गए हैं। वर्ष 2017-18 में इन योजनाओं में फूलों तथा सब्जियांे की संरक्षित खेती को बढ़ावा देने हेतु उपदान 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 85 प्रतिशत कर दिया गया है तथा 33,500 वर्ग मी. क्षेत्र ग्रीन हाऊस के अंतर्गत लाया जाना लक्षित है। वर्ष 2017-18 में बागवानी फल फसलों में विशेषकर सेब को ओलावृष्टि से बचाने के लिए ओलारोधक जालियों पर उपलब्ध 50 प्रतिशत उपदान को बढ़ाकर 80 प्रतिशत कर दिया गया है तथा 7.02 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र को ओलारोधक जालियों के अन्र्तगत लाया जाना लक्षित है।
एच.पी.एम.सी. राज्य का एक सार्वजनिक उपक्रम है जिसकी स्थापना ताजे फलों व सब्जियों के विपणन, अतिरिक्त उत्पादन जो बाजार तक नहीं पहुंच सका, तैयार किए गए उत्पादों के विपणन के उद्वेश्य से की गई है। एच.पी.एम.सी. आरम्भ से ही बागवानों को उनके उत्पादन की लाभप्रद प्राप्तियां उपलब्ध करवाने में मुख्य भूमिका निभा रहा है।
वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक एच.पी.एम.सी. ने ृ4,567.16 लाख के उत्पाद, ृ9,200.00 लाख के लक्ष्य की तुलना में अपने संयंत्रों से तैयार करके घरेलू बाजार में बेचा। मण्डी मध्यस्थ योजना के अन्तर्गत हि0प्र0 सरकार ने वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान आम, सेब और नीम्बू प्रजाति के फलों के लिए समर्थन मूल्य जारी रखा, जो निम्न प्रकार से हैंः-
मण्डी मध्यस्थ योजना ;डप्ै2017) के अंतर्गत एच.पी.एम.सी. ने 15,926 मी.टन सेबों की खरीद की इसके अतिरिक्त एच.पी.एम.सी. सयंत्रों में 8,311 मी.टन सी ग्रेड सेब प्रोसेस किया जिसमें से 746.00 मी0टन का सेब कन्सैन्ट्र्ैट जूस तैयार किया गया। वित्त वर्ष 2017-18 में निगम 15 जनवरी,2018 तक बागवानों से कोई भी फल नहीं खरीद पाई। एच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को प्रतिष्ठित खरीददारों को जिसमें रेलवे, उŸारी कमान मुख्यालय, उधमपुर, विभिन्न धार्मिक संस्थानों, मै0 पार्ले व खुले बाजार की निजी संस्थाओं और एच.पी.एम.सी. जूसबार के लिए भेज रही है। एच.पी.एम.सी. के द्वारा 419.46 मी.टन सेब जूस ृ573.41 लाख में तथा अन्य उत्पाद ृ966.57 लाख में उपरोक्त संस्थानों को बेचा गया। एच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को आई.टी.डी.सी. के होटलों एवं संस्थानों को जो मेट्र्रो शहर दिल्ली, मुम्बई और चण्डीगढ़ में हैं लगातार भेज रही है। एच.पी.एम.सी.ने इन संस्थानों के लिए 31 दिसम्बर, 2017 तक ृ457.85 लाख के फल एवं सब्जियां भेजी हैं। इसी तरह एच.पी.एम.सी. ने 31दिसम्बर, 2017 तक ृ354.73 लाख के विभिन्न सामान प्रदेश के फल उत्पादकों को बेचे हैं। निगम को दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, परवाणु तथा प्रदेश सेब उत्पादक क्षेत्र में स्थित 5 सी.ए. भण्डार गृहों से ृ515.97 लाख राजस्व के रूप में प्राप्त हुए। निगम ने दिसम्बर, 2017 तक ृ81.04 लाख फलों का व्यापार किया और ृ502.79 लाख लाभ अर्जित किया जिसमें ट्रकों से, किराए से व आढ़त शामिल है इसके अतिरिक्त अन्य सामान की बिक्री जैसे पेयजल, खेत, आदान व अन्य कम्पनियों को कर अदायगी भी शामिल है। इसके अतिरिक्त निगम ने अपने प्रसंस्कृत उत्पादो को घरेलू बाजार में दिसम्बर, 2017 तक लगभग ृ1,539.98 लाख मंे बेचा।
निगम ने एपेडा, वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार से ृ3,449.95 लाख तकनीकी उन्नतिकरण हेतु सहायता अनुदान स्वीकृत कराने में सफल हुआ। यह सहायता अनुदान निम्न परियोजनाओं हेतु प्राप्त हुआ है:-
i) ग्रेडिंग व पैंकिंग गृह जरोल टिक्कर, (कोटगढ), गुम्मा (कोटखाई), ओडी (कुमारसैन), पतलीकुहल (कुल्लू), तथा रिंकांगपिओ (किन्नौर) के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता ृ797.30 लाख उपरोक्त ईकाइयों के लिए खर्च कर उन्नतिकरण किया।
ii) वातानुकुलित सी.ए. स्टोर, गुम्मा (कोटखाई) व जरोल टिक्कर (कोटगढ़) जिला शिमला ृ1,009.00 लाख से शुरू किये गये।
iii) नादौन (हमीरपुर) आधुनिक सब्जियों के लिये पैक हाउस व कोल्ड रुम प्रोजक्ट के लिए तथा घुमारवी जिला बिलासपुर में फलों व सब्जियों तथा जड़ी बुटियों के लिए पैकिंग व ग्रडिंग तथा वातानुकुलित स्टोरेज के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता ृ788.50 लाख।
iv) एच0पी0एम0सी0 फल विधायन संयंत्र, परवाणू में स्थित जुसों की टैट्रा पैकिंग के लिए टी.बी.ए.-9 टी.वी.ए.-19 में परिवर्तित करने के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता ृ355.15 लाख।
v)सरकार ने एच.पी.एम.सी. के फल विधायन संयंत्र परवाणू का उन्नतिकरण तथा आधुनिकीकरण करने के लिए ृ10.00 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है। इसके आलावा एच0पी0 एम0सी0 ने गत वर्ष हि0प्र0 सरकार व नाबार्ड से आर्थिक सहायता व लोन लेकर 700 मी0टन प्रति स्टोर की क्षमता वाले तीन स्टोर रोहड़ू, ओडी व पतली कुहल स्थित भण्डारों को शीत भण्डारों में परिवर्तित किया है, तथा इन सी0ए0 स्टोरो को प्राईवेट पार्टिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए लीज पर दिया है। निगम ने इन पर किए गए निवेश से लाभ अर्जित करना भी शुरू कर दिया है।
vi) एच0पी0एम0सी0 अपने सभी पैक हाउसों, शीत भण्डारों, सी0ए0 स्टोरों तथा फल विधायन सयंत्रों की अधोसंरचना को स्तरोन्नत करने कीे सोच रही है तथा इनके सीमावर्ती क्षेत्रों में सार्वजनिक एवम् निजी सांझेदारी के अन्तर्गत आधुनिक तकनीक सहित ग्रीन फील्ड परियोजनाओं का निर्माण करने की योजना बना रही है ताकि एक ओर किसान को लाभ मिल सके तथा दुसरी ओर निगम की आय में बढ़ौतरी हो सके। दिल्ली, चेन्नई तथा परवाणु स्थित शीत भण्डार एच0पी0एम0सी0की दूसरी सम्पत्तियां जोकि घाटे में चल रही हैं, उन्हें भी सुचारू रूप से चलाने के लिए प्राइवेट पार्टियों को लीज पर देने का विचार कर रही है।

8.पशुपालन एवम् मत्स्य पालन

पशुधन विकास ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। हिमाचल प्रदेश में पशुधन एवं फसलों तथा सांझी सम्पति साधन जैसे वन, पानी, चरने योग्य भूमि, में बहुत गहन सम्बन्ध है। पशु अधिकतर उस चारे जो कि सांझी सम्पति साधनों तथा फसलों व फसल अवशेषों से प्राप्त होते हैं पर निर्भर करते हैं। उसी प्रकार पशु सांझी सम्पति साधनों के लिए चारा व फसल अवशेष खाद के रूप प्रदान करते हैं जोकि सूखे से निपटने के लिए अधिक आवश्यक शक्ति प्रदान करते है।

हिमाचल प्रदेश में पशुधन अर्थ-व्यवस्था को सुद्ृढ़ रखने में विशेष सहायक है। वर्ष 2016-17 में 13.28 लाख टन दूध, 1,476 टन ऊन, 95.90 मिलियन अंडे, 4,406 टन मांस का उत्पादन हुआ। वर्ष 2017-18 में 14.48 लाख टन दूध, 1,500 टन ऊन, 100 मिलियन अंडे तथा 4,400 टन मांस का उत्पादन होने की संभावना है। सारणी 8.1 दूध उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता को दर्शाती है। ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को उभारने में पशु पालन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तथा राज्य में पशुधन विकास कार्यक्रम केे तहत निम्न पर ध्यान दिया जा रहा है।
i) पशु स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण।
ii) पशु विकास।
iii) भेड़ प्रजनन तथा ऊन विकास।
iv) कुक्कट विकास।
v) पशु आहार व चारा विकास।
vi) पशु स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा।
vii) पशु गणना।
वर्ष 31.12.2017 तक पशु स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य में 1 राज्य स्तरीय पशु- चिकित्सालय, 1 क्षेत्रीय पशु-चिकित्सालय 9 पोलीक्लीनिक, 59 उप-मण्डलीय- पशु-चिकित्सालय, 338 पशु-चिकित्सालय, 30 केन्द्रीय पशु औषधालय तथा 1,772 पशु औषधालय हैं इसके इलावा 6 पशु निरीक्षण चैकियां हैं जो तुरन्त पशु चिकित्सा सहायता उपलब्ध करवाते हैं। मुख्य मंत्री आरोग्य पशुधन योजना के अन्तर्गत दिसम्बर, 2017 तक 1,251 पशु औषधालय खोले गए है।
राज्य में भेड़ व ऊन विकास हेतु सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म ज्यूरी ;शिमलाद्ध सरोल ;चम्बाद्ध, ताल ;हमीरपुरद्ध कड़छम ;किन्नौरद्ध द्वारा भेड़ पालकों को उन्नत किस्म की भेडंे़ प्रदान की जा रही है। एक नर मेढ़़ केन्द्र नगवाई मण्डी जिला में कार्यरत है जहां पर उन्नत किस्म के नर मेढ़ों का पालन तथा क्राॅस ब्र्रीडिंग की सुविधा के लिए, भेड़ पालकों को प्रदान किए जाते हैै, वर्ष 2017-18 में इन प्रक्ष्ेात्रों में 1,815 भेडे़ं पाली गई और 338 नर मंेढं़े भेड़ पालकों में वितरित किए गए। प्रदेश में शुद्व नस्ल के मेंढ़ों, सोवियत मैरिनों तथा अमरिकन रैम्बूलैट की उपयोगिता को देखते हुए राजकीय प्रक्ष्ेात्रों पर शुद्व नस्ल से प्रजनन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त 9 भेड़ व ऊन प्रसार केन्द्र भी कार्यरत हैं। वर्ष 2017-18 के दौरान 1,500 टन ऊन के उत्पादन होने की सम्भावना हैं। खरगोशों के प्रजनन के लिए खरगोश प्रदान करने हेतु जिला कांगडा में कन्दबाड़ी तथा जिला मण्डी में नगर्वाइं में अंगोरा खरगोश फार्म कार्यरत हैं।
हिमाचल प्रदेश में डेरी उत्पादन पशुपालन का एक अभिन्न अंग है तथा छोटे व सीमान्त किसानों की आय वृद्धि में इसकी प्रमुख भूमिका है। पिछले वर्षों में बाजार प्रेरित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत दुग्ध उत्पादन को, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो कि शहरी उपभोक्ता केंद्रोें के दायरे में आतेे है, विशेष महत्व प्राप्त हुआ है। इससे किसानों को पुरानी स्थानीय नस्ल की गऊओं को क्राॅसब्रीड गऊओं में बदलने के लिए प्रोत्साहन मिला है। स्वदेशी नस्ल की गायों को जर्सी व होस्टन से क्रौसब्रीड करवा कर बेहतर समझा जाता है भैंसों को भी अधिक दूध देने वाली मूरल बैल से क्रास ब्रीड़िंग करवाकर अच्छी नस्ल विकसित की जा रही है। आधुनिक तकनीक द्वारा जमे हुए वीर्य स्ट्र्ा से गायों तथा भैंसोे में कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली को अपनाया जाता है। वर्ष 2016-17 में 12.94 लाख गायों के व 3.01 लाख भैंसों के वीर्य तृणों का उत्पादन, वीर्य केन्द्रों पर किया गया। वर्ष 2017-18 के लिए 11.50 लाख गायों और 3.00 लाख भैंसों के लिए वीर्य तृणों के उत्पादन होने की संभावना है। 2016-17 में 4.40 लाख लीटर तरल नाईट््रोजन (एल.एन.2) गैस उत्पादित की गई और 2017-18 मंे 8.80 लाख लीटर का उत्पादन किया जाएगा। वर्ष 2016-17 के दौरान 7.65 लाख गायों व 2.35 लाख भैंसो का कृत्रिम गर्भाधान किया गया और 3,086 औषधालयों द्वारा 2017-18 में 9.16 लाख गायों व 2.47 लाख भैंसों का क्ृत्रिम गर्भदान किया जाएगा। क्राॅस ब्रिडींग गायों को पालने के लिए अधिक महत्व दिया जा रहा है क्योंकि इनमें शुष्क रहने का समय कम व दूध देने की क्षमता व समय अधिक रहता है। वर्ष 2017-18 में पूरे प्रदेश में ृ20.00 लाख से उत्तम पशु पुरस्कार योजना आरम्भ की जाएगी तथा जिला/ ब्लाॅक स्तर पर पशु मण्डियों का आयोजन करने के लिए ृ30.00 लाख उपलब्ध करवाए गए।
बैकयार्ड पोल्ट्री योजना के अंतर्गत वर्ष 2017-18 में 3.90 लाख चूजों का वितरण होने की संभावना है तथा 720 कुक्कट पालकों को प्रशिक्षण का लक्ष्य है। इस स्कीम के अंतर्गत रियायती दर पर 7,599 परिवारों के लिए 3.10 लाख चूजे दिसम्बर, 2017 तक बांटे गए। वर्ष 2017-18 में इन स्कीमों के अतिरिक्त एक और स्कीम ”(म्ेजंइसपेीउमदज व ि5ए000 ठतवपसमत थ्ंतउ)” नाम से लोकार्पण किया गया है जिसमें 36 लक्षित लाभार्थियों को 60 प्रतिशत पूंजीगत अनुदान व आवर्ती खर्चों की भी व्यवस्था है। इस योजना में कुल ृ2.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है। जिला लाहौल-स्पिति के लरी नामक स्थान पर घोड़ा प्रजनन प्रक्षेत्र स्थापित किया गया है जिससे स्पिति नस्ल के घोड़ों की प्रजाति को संरक्षित रखा जा सके। वर्ष 2017-18 में ;31 दिसम्बर, 2017 तकद्ध इस प्रक्षेत्र में 66 घोड़े-घोड़ियों को रखा गया है। इसी भवन में याक प्रजनन प्रक्षेत्र भी हैं जहां पर वर्ष 2017-18 में ;31 दिसम्बर, 2017 तकद्ध 51 याक भी पाले गए हैं। दाना व चारा योजना के अंतर्गत वर्ष 2017-18 में 15.02 लाख चारा जड़ों 0.68 लाख चारा पौंधों का वितरण किया गया है।
दुध गंगा योजना : 25 सितम्बर,2009 से नाबार्ड के सहयोग से चलाई जा रही है। इस योजना के मुख्य घटक निम्न प्रकार से हैंः-
1) छोटे डेयरी यूनिट स्थापित करना ;एक यूनिट में 2 से 10 दुधारु पशुद्ध 10 पशुओं को खरीदने के लिए ृ6.00 लाख का बैंक ऋण का प्रावधान है।
2) दूध निकालने वाली मशीनों की खरीद व दूध ठण्डा करने की यूनिटों के लिए ृ20.00 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
3) देसी दूध उत्पादों के निर्माण के लिए व डेयरी प्रोसैसिंग उपकरणों के खरीद के लिए ृ13.20 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
4) डेयरी उत्पादों के परिवहन व कोल्डचेन के लिए ृ26.50 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
5) दूध व दूग्ध पदार्थो के लिए कोल्ड स्टोरेज मुहैया करवाने के लिए ृ33.00 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
6) दूध विपणन केन्द्रों हेतु ृ1.00 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
सहायता का पैटर्न:
i) कुल प्रोजैक्ट लागत का 25 प्रतिशत सामान्य श्रेणी व 33.33 प्रतिशत अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के किसानों को बैंक समर्थित अनुदान का प्रावधान हैं।
ii) उद्यमी के योगदान रूप में ृ1.00 लाख से अधिक ऋण राशि पर परियोजना लागत की 10 प्रतिशत राशि बैंक में जमा करवानी होगी।
राष्ट्रीय गोवंष प्रजनन एवं दुग्ध विकास योजना : राष्ट्रीय गोवंश प्रजनन योजना के अंर्तगत भारत सरकार (शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता) द्वारा कुल ृ23.87 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं तथा वर्ष 2015-16 में ृ5.71 करोड़ जारी किए जा चुके हैं जिसमें से ृ4.53 करोड़ व्यय हो चुके हैं। परियोजना का उद्देश्य पशुपालन विभाग की निम्न गतिविधियों को सुदृढ़ बनाना हैः-
1) तरल नत्रजन के भण्डारण, यातायात और वितरण सुदृढ़ करना।
2) वीर्य एकत्रित केन्द्रों, वीर्य बैंकों और कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों को सुदृढ़ करना।
3) दूर-दराज क्षेत्रों में प्राकृतिक गर्भाधान एवं वीर्य एकत्रित केन्द्रों के लिए उच्च नस्ल के साण्डों का प्रबन्ध करना।
4) प्रशिक्षण सुविधाओं को सुदृढ़ बनाना।
5) ई.टी.टी.लैब को सुदृढ़ बनाना
6) स्थानीय नस्लों का विकास व संरक्षण।
आंगनबाड़ी कुक्कट पालन : हिमाचल प्रदेश में कुक्कट क्षेत्र के विकास के लिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह योजनाएं चलाई जा रही है। आंगनबाड़ी कुक्कट परियोजना के अन्तर्गत 4 सप्ताह के चूजे कलर्ड स्ट्ेन किस्म के (चाबरों किस्म) राज्य के किसानों को दिए जाते हैं। एक यूनिट में 40 से 100 चूजे होते हैंै। केन्द्रीय संचालित योजना ”राज्य के कुक्कट पालन सहायता” के अंतर्गत यह चूजे नाहन और सुन्दरनगर हैचरी में पैदा किए जाते हैं।
राष्ट्रीय गोकुल मिषन (आर.जी.एम.): राष्ट्रीय गोकुल मिशन निम्न उद्देश्यों के लिए चलाया जा रहा हैः-
1) देसी पशुओं का विकास एवं सरक्षंण।
2) देसी पशुओं की नस्ल सुधार कार्यक्रम उनके आनुवांशिक सुधारते हुए पशुधन को बढ़ाना।
3) दूध उत्पादन और उत्पादकता में वृद्वि करना।
4) सामान्य पशुओं का उन्नयन करना, स्वदेशी नस्लों का उपयोग करते हुए जैसे साईवाल और रैड़ सिंधी।
5) रोग रहित उच्च अनुवांशिक बैलों का प्राकृतिक गर्भदान के लिए वितरण।
6) आर.जी.एम. का वित्तपोषण शत प्रतिशत अनुदान पर आधारित।
राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एन.एल.एम.) : राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एन.एल.एम.) केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम है जो कि वर्ष 2014-15 से शुरू की गई है। पशुपालन विभाग राष्ट्रीय पशुधन मिशन के प्रस्तावों को कार्यान्वयन करने वाला एकमात्र विभाग है। मिशन का उद्देश्य पशुधन उत्पाद व किस्म का विकास करने के साथ पशुपालकों की क्षमता में सुधार करना है। छोटे जुगाली करने वाले जैसे कि भेड़ व बकरी, चारा विकास, जोखिम प्रबन्धन व कुक्कड़ विकास की गतिविधियां इस योजना में सम्मिलित है। इस योजना के अन्तर्गत राज्य का हिस्सा अलग-अलग मदों के लिए अलग-अलग है। यह मिशन पशुपालन क्षेत्र के सतत विकास के उद्देश्य से तैयार किया गया है जो कि उच्च गुणवत्ता के चारा व दाना की उपलब्धता व किस्म में सुधार करने के लिए केन्द्रित है।
पषु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य को सहायता : ">पड़ोसी राज्यों से भारी संख्या में अन्तर्राज्यीय आवाजाही व पौष्टिक दाना व चारा की कमी और पहाड़ी भौगोलिक स्थिति के कारण पशु विभिन्न पशु बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं । केन्द्रीय सरकार ने संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए राज्य सरकार को एस्काड स्कीम के अन्तर्गत सहायता प्रदान की है जिसमें 90 प्रतिशत भाग केन्द्रीय सरकार का तथा 10 प्रतिशत भाग राज्य सरकार का है। जिन रोगों के लिए मुफ्त टीकाकरण सुविधा प्रदान की जाती है उनमें मुंहखुर, एच.एस.बी.क्यू. एन्टरोटोम्सेमिया, पीपीआर, रानीकाइट, मारक्स और रैबीज रोग इस परियोजना में सम्मिलित हैं।
भेड़पालक बीमा योजना: स्थानीय भेड़ों की अच्छी नस्ल के मैंढे जैसे रैग्युलैट व रशियन मैरिनों द्वारा क्रासब्रीड से नस्ल सुधारी जा रही है। ताकि उन की गुणवत्ता व उत्पादन को बढ़ाया जा सके। इसीलिए इन मेढ़ों को 60 प्रतिशत सब्सिडी पर भेड़पालकों को उपलब्ध करवाना प्रस्तावित है। वर्ष 2017-18 में 800 मेड़ों का वितरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इस योजना के अन्तर्गत 60 प्रतिशत अनुदान पर भूमिहीन वी.पी.एल श्रेणी के किसानों को उनकी आय बढ़ाने हेतु निम्नलिखित यूनिटों/ किस्मों का वितरण प्रस्तावित है। 11 बकरियां (10 मादा$1 नर), 5 बकरियां (4 मादा$1 नर), 3 बकरियां (2 मादा$1 नर), क्रमशः बैटलीस सिरोही, जमनापरी, वाईट हिमालयन किस्म की।
हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ राज्य में डेरी विकास कार्यक्रम चला रही है। दूध महासंघ में 965 दुध उत्पादक सहकारी समितियां हैं। इन समितियों के सदस्यों की कुल संख्या 42,350 है जिसमें 203 महिला डेरी सहकारी समितियां भी कार्यरत हंै। डेरी सहकारी समितियों द्वारा दुग्ध उत्पादकों से गांवों का अतिरिक्त दूध एकत्रित किया जाता है तथा दुग्ध संघ इसे प्रसंस्करण करके बाजार में उपलब्ध करवाता है। वर्तमान में दुग्ध संघ 23 दुग्ध अभिशीतल केंद्र चला रही है जिनकी कुल क्षमता 96,500 लीटर दूध प्रतिदिन है और 10 दुग्ध प्रसंस्करण प्लांट जिनकी कुल क्षमता 95,000 लीटर दूध प्रतिदिन है तथा 5 मीट््िरक टन प्रतिदिन की क्षमता वाला एक मिल्क पाउडर प्लांट दत्तनगर, जिला शिमला में कार्यरत है और एक 16 मीट््िरक टन प्रतिदिन क्षमता वाला पशु आहार संयंत्र भी भौर, जिला हमीरपुर में स्थापित किया गया और कार्यरत है।
इस वर्ष मिल्कफैड रोजाना औसतन 63,500 लीटर दूध प्रतिदिन ग्राम डेरी समितियों द्वारा गांवों से एकत्रित कर रही है। हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ प्रतिदिन लगभग 27,397 लीटर दूध का विपणन कर रहा है जिसमें प्रतिष्ठित डेरीयों को थोक मात्रा में तथा सैनिक युनिट डगशाई, शिमला, पालमपुर और योल भी शामिल हैं। दुग्ध को ठण्डे करने वाले केन्द्रों से दुग्ध को इक्ट्ठा करके प्रसंस्करण करने हेतु प्लांट में भेजा जाता है जहां से इसे प्रसंस्कृत करके पैकेट व (हिम ब्राण्ड) खुला बिकने के लिए बाजार में भेजा जाता है।
हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड ग्रामीण क्षेत्रों में संगोष्ठियां व कैम्प लगाकर ग्रामीणों को डेरी के क्षेत्र में तकनीकी जानकारी से भी जागरूक करवाती है। इसके इलावा किसानों के घर द्वार पर, पशु-चारे व साफ दुग्ध उत्पादन की क्रिया से भी अवगत करवाती है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने 01ण्04ण्2017 से दुग्ध के मूल्य में ृ1.00 प्रति लीटर की वृद्वि करके 42,350 परिवारों को सीधा वित्तीय लाभ पहुंचाया है जोकि हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ से जुड़े हैं।
अतिरिक्त दूध को उचित रूप से उपयोग करने, राजस्व को बढ़ाने तथा हानि को कम करने के लिए हिमाचल प्रदेश, दुग्ध संघ द्वारा नीचे दिए हुए विकासात्मक कार्यक्रम आरम्भ किए हैंः-
1) 5,000 लीटर की क्षमता वाले तीन नए दुग्ध अभिशीतन केन्द्र रिकांग- पिओ जिला किन्नौर, नालागढ़ जिला सोलन व जंगलबैरी जिला हमीरपुर में लगाए गए हैं।
2) जिला हमीरपुर की भौरंज तहसील के भौर में नए संयंत्र श्यूरिया मौलैसिस व मीनिरल मिंक्सरश् प्लाॅट लगाए जा रहे हैं।
3) जिला बिलासपुर में कम्परैस्ड फोडर संयन्त्र स्थापित किया गया है।
4) तीन पशु आहार गोदाम जिला बिलासुपर, ऊना एवं नादौन जिला हमीरपुर में स्थापित किये जा चुके हंै।
5) हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ द्वारा एक नया बेकरी बिस्किुट संयत्र क्षमता 2.5-3.0 मीट््िरक टन प्रतिदिन जिला शिमला के टूटू दुग्ध संघ परिसर में स्थापित किया गया है।
6) ग्रामीण डेरी समितियों के माध्यम से हिमाचल प्रदेश में लोगों का स्वरोजगार एवं रोजगार प्रदान किया गया है।
कल्याण विभाग के आई.सी.डी.एस प्रोजेक्ट की जरूरत को पूरा करने हेतु हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड ने पंजीरी का उत्पादन पंजीरी उत्पाद संयंत्र चक्कर (मण्डी) में किया, वर्ष 2016-17 में 38,049.52 क्विंटल पंजीरी, 5,638.61 क्विंटल स्कीमड मिल्क पाउडर और 5,497.00 क्विंटल बेकरी बिस्किुट को निर्मित कर उसकी आपूर्ति (आई.सी.डी.एस.) और सबला खण्ड को महिला एवं बाल कल्याण विभाग के माध्यम से की जा चुकी है।
1) हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ ग्रामीण स्तर पर दुग्ध उत्पादकों को अच्छी गुणवता वाला दूध उत्पादन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
2) हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ ने मिठाईयां बनाने का कार्य भी सफलतापूर्वक शुरू किया है तथा इस वर्ष 2017-18 में दिवाली के त्यौहार पर लगभग 300 क्विंटल मिठाईयां का कारोबार किया है।
3) हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ इंदिरा गांधी मैडिकल काॅलेज मेें रक्तदान करने वालों को हल्का पौष्टिक आहार भी उपलब्ध करवा रहा है।

हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड ने न केवल पिछड़े और दूर-दराज के क्षेत्रों के लिए लाभकारी बाजार बल्कि शहरी क्षेत्र के ग्राहकों के लिए भी दुग्ध व इससे बने पदार्थ प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उपलब्ध करवाए है। हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड यह सुनिश्चिित करने के लिए ग्रामीण स्तर पर दुग्ध ठण्डा हो इसके लिए 104 बड़े दुग्ध शीतक गांव स्तर पर राज्य के विभिन्न भागों में लगाए गए हैं। दुग्ध को जांचने में पारदर्शिता लाने के लिए फैडरेशन ने 227 स्वःचालित दुग्ध संचय ईकाईयां विभिन्न ग्राम डेरी सहकारी समितियों में लगाई हैं।
ऊन संघ का मुख्य उद्वेश्य हिमाचल प्रदेश में ऊनी उद्योग को बढ़ावा एवं विकास करना तथा ऊन उत्पादकों को बिचैलियों/ व्यापारियों के शोषण से मुक्त करना है। ऊन संघ अपने उपरोक्त उद्वेश्यों का अनुसरण करते हुए भेड़ व अंगोरा ऊन की खरीद, भेड़ों की चारागाह स्तर पर कर्तन की मशीन, ऊन की धुलाई ;स्कावरिंगद्ध और ऊन के विक्रय के लिए प्रयासरत है। भेड़ कर्तन, आयातित स्वचालित मशीनों द्वारा करवाई जाती है। वर्ष 2017-18 में 31.12.2017 तक 99,837 किलोग्राम भेड़ ऊन की खरीद की गई है जिसका मूल्य ृ56.64 लाख है। संघ द्वारा कुछ केन्द्रीय प्रायोजित स्कीमों का क्रियान्वयन प्रदेश के भेड़ व अंगोरा पालकों के लाभ व उत्थान के लिए भी किया जाता है। चालू वित्तीय वर्ष में इन स्कीमों से लगभग 15,000 अंगोरा एवं भेड़ पालकों को इसका लाभ प्राप्त होने की संभावना है। ऊन संघ, उन उत्पादकों को उनके उत्पाद का उचित पारिश्रामिक मूल्य, स्थापित ऊनी बाजार में विपणन करवा कर उपलब्ध करवा रहा है।
हिमाचल प्रदेश भारत वर्ष के उन राज्यों में से है जिन्हें प्रकृति द्वारा पहाड़ों से निकलने वाली बर्फानी नदियों का जाल प्रदान किया है जो कि राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों, अर्ध मैदानी क्षेत्रों से गुजरती हुई मैदानों में जाती है और इन नदियों के पानी में आक्सीजन की मात्रा भी अधिक होती है। राज्य में बारहमासी नदियां व्यास, सतलुज, यमुना और रावी नदी बहती हैं जिनमें मत्स्य की शीतल जलीय प्रजातियां जैसे गुगली (साइजोथरैक्स), सुनैहरी महाशीर व ट््राउट पाई जाती है। शीतल जलीय मत्स्य संसाधनों के दोहन के लिए महत्वकांक्षी ”इन्डो-नार्वेयन ट््राउट फार्मिग” परियोजना के राज्य में सफल कार्यान्वयन से राज्य ने वाणिज्यिक ट््राउट पालन को निजी क्षेत्र में प्रचलित करने का गौरव अर्जित किया है। प्रदेश के जलाशय गोबिन्दसागर, पौंग डैम, चमेरा तथा रणजीत सागर में उत्पादित व्यवसायिक तौर पर महत्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियां क्षेत्रीय लोगों के आर्थिक उत्थान का मुख्य साधन बन गई है। प्रदेश में लगभग 6,098 मछुआरे अपनी रोजी के लिए जलाशयों के मछली व्यवसाय पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं। वर्ष 2017-18 के दौरान दिसम्बर,2017 तक प्रदेश के विभिन्न जलाशयों से 6,980.96 मीट््िरक टन मछली उत्पादन हुआ जिसका मूल्य ृ8,904.56 लाख है। हिमाचल प्रदेश के जलाशयों को गोबिन्द सागर में देशभर में सर्वाधिक प्रति हैक्टेयर मत्स्य उत्पादन तथा पौंग डैम की मछलियों का सर्वोच्च विक्रय मूल्य का गौरव प्राप्त है। गोबिन्द सागर में प्रति हैक्टेयर जलाशय को चालू वर्ष के दौरान दिसम्बर,2017 तक राज्य में फार्मों से 7.65 टन ट्र्ाउट मच्छली उत्पादन से ृ97.82 लाख का राजस्व प्राप्त हुआ है। पिछले वर्षाें के उत्पादन को सारणी संख्या 8.4 में दर्शाया गया है।

मत्स्य विभाग द्वारा ग्रामीण व्यवसायिक जलाशयों, तालाबों जो कि सरकारी व निजी क्षेत्र में है उन जलाशयों की मांग को पूरा करने के लिए कार्प तथा ट््राउट बीज फार्मों की स्थापना की है। फार्म बीज का उत्पादन वर्श 2016-17 में ृ287.80 लाख था तथा जून, 2017 में भारत सरकार ने यह निर्णय लिया है कि भविष्य में 70 मी.मी. से ऊपर का ही मत्स्य बीज जलाशयों में संग्रहित कर बेचा जाए। विभाग वर्ष 2017-18 के अन्तर्गत (दिसम्बर, 2017) तक उत्पादित 70 मी.मी. से अधिक आकार की कार्प मछली बीज का कुल मुल्य ृ19.94 लाख है। पहाड़ी क्षेत्र होने के बावजूद भी प्रदेश में मत्स्य पालन को विशेष महत्व दिया जा रहा है। ”राष्ट््रीय कृषि विकास योजना” के अन्तर्गत ृ300.30 लाख की योजना स्वीकृत हुई है जिसका विवरण सारणी संख्या 8.5 में दर्शाया गया है।

विभाग द्वारा जलाशय मछली दोहन में लगे मछुआरों के आर्थिक उत्थान के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की गई है। इस वर्ष मछुआरों को जीवन सुरक्षा निधि के अंतर्गत् लाया गया है जिसके तहत मृत्यु/ स्थाई अपंगता की दशा में संतप्त परिवार को ृ2.00 लाख तथा आंशिक अपंगता की स्थिति में ृ1.00 लाख तथा चिकित्सा उपचार हेतु ृ10,000 प्रदान किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के कारण श्आपदा कोष योजनाश् के अंतर्गत मत्स्य उपकरणों के नुकसान की भरपाई के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत प्रदान किया जाता है। अर्जित काल के दौरान मछुआरों के लिए जीवन यापन हेतु अंशदायी बचत योजना चलाई जा रही है जिसके अन्तर्गत मछुआरों के अंशदान से दोगुनी राशि केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा 80ः20 के अनुपात में वहन की जाती है।
मत्स्य पालन विभाग ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करने में अपना विशेष योगदान दे रहा है तथा विभाग द्वारा बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए बहुत सी योजनाएं चलाई जा रही है जिसके अंतर्गत विभाग द्वारा अब तक 467 रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। राज्य में जलीय कृषि विकास की अच्छी सम्भावना है। विभाग द्वारा वर्ष 2020 तक नील क्रांति के अन्तर्गत 1,000 हैक्टेयर में ट्राउट इकाइयों व 1,000 हैक्टेयर में नए तालाब के निर्माण की परिकल्पना की गई है। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच नील क्रांति की केन्द्रीय प्रयोजित स्कीम 90ः10 अनुपात में सांझी की जा रही है। वर्ष 2017-2018 में इस योजना के अन्र्तगत्
1) 72 ट्राउट इ्रकाइयां स्थापित होगी।
2) नए तालाबों का निर्माण व पुराने तलाबों का पुर्ननिर्माण।
3) राज्य जलाशय में मत्स्य बीज संग्रहण।
4) वर्जित काल सुरक्षा अनुदान।
5) जिला कुल्लू के पतलीकुल में सामूदायिक केनिंग केन्द्र स्थापित किया जा रहा है जिसमें भुनी हुई ट्राउट खाने के लिए उपलब्ध होगी। उपरोक्त खर्चो को पूरा करने के लिए 2017-18 के वार्षिक योजना के दौरान ृ700.00 लाख का प्रावधान है।
वर्ष 2017-18 में एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने हेतु नील क्रान्ति के अंतर्गत ृ36.00 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान कर 13 हैक्टेयर के नए मत्स्य तालाब निर्मित किए जा रहे जिसमें 70 मी.मी. से ऊपर का बीज निर्मित हो सक,े इसके अतिरिक्त ृ9.51 लाख की स्वीकृति ऊना क्षेत्र के किसानों को कार्प बीज की जरूरत को पूरा करने के लिए की गई और ऊना जिला में निजी क्षेत्र में ृ15.00 लाख से एक नई हैचरी स्थापित की जा रही है। ब्रुडर मछली के रख रखाव हेतु 0.57 हैक्टेयर नये क्षेत्र का निर्माण ृ2.39 लाख से निजी क्षेत्र में ऊना जिला में किया जा रहा है।
वर्ष 2017-18 में जलाशयों के एकीकृत विकास हेतु निजी क्षेत्र में जिला कुल्लू, मण्डी, चम्बा, शिमला व सिरमौर में ृ277.20 लाख की वित्तीय सहायता द्वारा 15 कार्प हैचरियों का निर्माण करवाया जा रहा है।
कुल्लू के पतलीकुल में ृ85.00 लाख की लागत से एक सामुदायिक केनिंग केन्द्र स्थापित किया जा रहा है, जहां खाने योग्य पक्की ट्राउट मछली उपलब्ध होगी। 2017-18 के दौरान 72 नई ट्राउट मछली ईकाइयों की स्थापना ृ71.60 लाख के वित्तीय सहायता से कुल्लू, चम्बा, मण्डी, शिमला और सिरमौर जिलों में स्थापित की जा रही है। इसके अतिरिक्त ृ89.50 लाख की स्वीकृती इन ट्राउट फार्मो के फीड व खादों के लिए की गई है।
>हिमाचल प्रदेश में एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने हेतु जिला कुल्लू, चम्बा, मण्डी, शिमला और सिरमौर में विभागीय कार्प फार्मो पर ृ105.00 लाख की लागत से 7 सौर ऊर्जा प्रणालियों को वर्ष 2017-18 में स्थापित किया जा रहा है।
विभाग द्वारा वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक प्राप्त उपलब्धियां तथा वर्ष 2018-19 का निर्धारित लक्ष्यों का विवरण सारणी संख्या 8.7 में दर्शाया गया है।

9.वन एवम् पर्यावरण

हिमाचल प्रदेश में वनों के अधीन राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 66.52 प्रतिशत अर्थात 37,033 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र आता है। हालांकि, वर्तमान में वन आवरण राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 26.4 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश सरकार की वन नीति का मूल उद्देश्य वनों के उचित उपयोग के साथ-साथ इनका संरक्षण तथा विस्तार करना है। वन विभाग का लक्ष्य वर्ष 2030 स्तत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने तक वन आवरण को राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 30 प्रतिशत तक करने का है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए विभाग द्वारा चलाई जा रही कुछ योजनाओं का विवरण निम्नानुसार हैंः-
पौधरोपण का कार्य विभाग की विभिन्न राज्य योजनाओं जैसे कि “वृक्षावरण में सुधार,” “भू एवं जल सरंक्षण“ “कैम्पा“ तथा केेन्द्रीय प्रायोजित योजना “राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम“ में किया जा रहा है। इसके साथ ही प्रदेश की चरागाहों को राज्य सरकार की योजना “चरागाह व गोचर भूमि विकास“ के अन्तर्गत विकसित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त प्रदेश की जनता को पर्यावरण के बारे में जागरूक करने तथा राज्यस्तरीय, वृत्तस्तरीय व मंडलस्तरीय वन महोत्सव का आयोजन नई वानिकी योजना (सांझी वन योजना) के अन्तर्गत किया जाता है। वृक्षारोपण के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के उद्वेश्य से “स्मृति वन योजना“ शुरू की गई है। इस योजना में लोगों द्वारा उनके जन्मदिन, शादी की सालगिरह के अवसर पर या उनके माता-पिता/ रिश्तेदारों/बुजुर्गो की पुण्यतिथि के अवसर पर चयनित क्षेत्रों में पौधरोपण किया जाता है। वर्ष 2017-18 के लिए 9,725 हैक्टेयर क्षेत्र में पौधरोपण का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें कैम्पा व केन्द्रीय प्रायोजित योजनाएं भी शामिल हैं जिस पर ृ47.00 करोड़ खर्च किये जाने प्रस्तावित हैंै जिसमें से 31.12.2017 तक 6,776 हैक्टेयर तथा ृ39.78 करोड़ का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।
राज्य में जनसंख्या में बढ़ोतरी, पशुपालन पद्धतियों में बदलाव और विकास सम्बंधी गतिविधियों के कारण वनों पर जैविक दबाव बढ़ रहा है। साथ ही वनों को आग, अवैध कटान, अतिक्रमण और अन्य वन अपराधों का खतरा हमेशा बना रहता है। इसलिए यह आवश्यक है कि उपयुक्त स्थानों पर चेकपोस्ट की स्थापना की जाए, संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी स्थापित किए जाएं ताकि वन अपराधी की रोकथाम सुनिश्चत की जा सके। उन सभी वन मण्डलों में जहां आग एक प्रमुख विनाशकारी तत्व है, अग्निशमन उपकरण और आधुनिक तकनीकी उपलब्ध करवाई जाए। वनों के कुशल प्रबन्धन एवं सुरक्षा हेतु एक अच्छे संचार तंत्र की आवश्यकता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह योजना केन्द्र सरकार के सहयोग चलाई जा रही है। चालू वित वर्ष 2017-18 के लिए ृ401.95 लाख का बजट अनुमोदित किया गया है, लेकिन केन्द्र सरकार ने इस योजना के अन्तर्गत दिसम्बर, 2017 तक ृ105.00 लाख ही जारी किए हंै। केन्द्र सरकार द्वारा इस योजना को संशोधित करने का प्रस्ताव है जिसमंे से 31.12.2017 तक ृ58.60 लाख खर्च कर लिए हैं। आगामी वित्त वर्ष के लिए केन्द्र प्रायोजित योजना के अन्तर्गत ृ414.00 लाख का बजट प्रस्तावित किया गया है तथा वनों के समोचित सरंक्षण और प्रबंधन के लिए राज्य योजना के अन्तर्गत ृ100.00 लाख प्रस्तावित किए गयेे है।
नगर वन उद्यान योजना-“एक कदम हरियाली की ओर”- स्र्माट ग्रीन शहरों के लिए कार्यक्रम : पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय ने स्र्माट ग्रीन शहरों के लिए नगर वन उद्यान योजना “एक कदम हरियाली की ओर” नामक एक नई योजना शुरू की है। इस योजना का उद्वेश्य हर शहर में जहां नगर निगम हो, कम से कम एक नगर वन उद्यान बनानेे का है जिससे नागरिकों को स्वस्थ व हरित पर्यावरण मिल सके तथा सुन्दर, साफ हरे भरे और स्वस्थ शहरों का विकास हो सके। इस योजना में 80 प्रतिशत धनराशि राष्ट्रीय कैम्पा सलाहकार परिषद (एन.सी.ए.सी.) द्वारा उपलब्ध करायी जा रही है और शेष 20 प्रतिशत धनराशि राज्य सरकार द्वारा खर्च की जा रही है। सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 में शिमला शहर के लिए ृ2.00 करोड़ की एक परियोजना अनुमोदित की गई थी जिसमें राज्य सरकार की हिस्सेदारी ृ40.00 लाख है। सरकार ने वर्ष 2017-18 के दौरान ृ20.00 लाख उपलब्ध करवा दिए हैं तथा शेष ृ20.00 लाख का प्रावधान वर्ष 2018-19 के लिए रखा गया है।
मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना : विश्व बैंक द्वारा मध्य हिमालय जलागम विकास परियोेजना 01.10.2005 को प्रदेश के 10 जिलोें में 6 वर्ष की अवधि के लिए शुरू की गई। यह परियोेजना विश्व बैंक एवं राज्य सरकार द्वारा 80ः20 अनुपात से चलाई जा रही है इस परियोजना का उद्वेश्य प्राकृतिक संसाधनों का विकास व सरंक्षण करके उत्पादक क्षमता में सुधार लाना और ग्रामीण परिवारों की आजीविका बढ़ाना है। परियोजना की अवधि 31 मार्च, 2017 को समाप्त हो गई है। वर्ष 2017-18 के दौरान इस परियोजना के अन्तर्गत ृ7.70 करोड़ की राशि इस परियोजना की समापन गतिविधियों के लिए उपलब्ध कराई गई है।
हिमाचल प्रदेश वन इकोसिस्टम्स क्लाईमेट प्रूफिंग परियोजना (के.एफ.डब्लयू.) : हिमाचल प्रदेश वन इकोसिस्टम्स क्लाईमेट प्रूफिंग परियोजना (के.एफ.डब्ल्यू). बैंक, जर्मनी के सहयोग से 7 वर्षो की अवधि के लिए वर्ष 2015-16 से प्रदेश के चम्बा और कांगड़ा जिलों में कार्यान्वित की जा रही है। इस परियोजना की कुल लागत ृ308.45 करोड़ की है, जिसे जर्मन सरकार के 85.10 प्रतिशत ऋण व 14.90 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा खर्च किया जाना है। इस परियोजना का उद्वेश्य जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव को कम करने, जैव विविधता बढ़ाने, वन संसाधनों के स्थाई प्रबंधन और ग्रामीण क्षेत्रों में आय के स्रोत को बढ़ाना है और वन आधारित उत्पादों एवं सेवाओं के प्रवाह को बढ़ाना ताकि ऐसे समुदायों को लाभ मिल सके जो वनों पर आधारित रहते हैंै। दीर्घ अवधि में वन पारिस्थितिक तन्त्र को मजबूत करना ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सहन कर सके, यह जैव विविधता की सुरक्षा बढ़ाने, जलग्रहण क्षेत्र के स्थिरीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के सरंक्षण के साथ हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए बेहतर आजीविका के साधन पैदा करने में सहायक हो। चालू वित्त वर्ष 2017-18 में इस परियोजना के लिए ृ60.00 करोड़ का प्रावधान रखा गया है जिसमें से 31.12.2017 तक ृ5.76 करोड़ खर्च कर लिए हैं।
हिमाचल प्रदेश वन इकोसिस्टम प्रबंधन व आजिविका सुधार परियोजना जापान इंटरनेशनल काॅरपोरेशन एजेंसी (जे.आई.सी.ए.) के साथ ृ800.00 करोड़ की एक नई परियोजना “हिमाचल प्रदेश वन इकोसिस्टम्स प्रबंधन व आजिविका सुधार परियोजना“ 8 वर्ष की अवधि के लिए (2018-19 से 2025-26) शुरू की जा रही है जिसे जापान सरकार के 80 प्रतिशत ऋण व 20 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा खर्च किया जाना है। यह परियोजना बिलासपुर, कुल्लू, मण्डी, शिमला, किन्नौर, लाहौल-स्पिति जिलों और चम्बा जिले के पांगी तथा भरमौर उप-मण्डलों के आदिवासी क्षेत्रों में कार्यान्वित की जाएगी। इस परियोजना का मुख्यालय कुल्लू (शमशी) और क्षेत्रीय कार्यालय रामपुर जिला शिमला में होगा। इस परियोजना का उद्वेश्य वन और पर्वतीय पारिस्थितिक को सरंक्षित करना, वनों के घनत्व और उत्पादक क्षमताओं को बढ़ाना, उनका वैज्ञानिक एवं आधुनिक प्रबंधन और चारागाह पर निर्भर समुदायों की आजीविका में सुधार लाने के साथ जैव विविधता को बढ़ाना व वन संसाधनों पर दबाव को कम करने के लिए ग्राम समुदाय को वैकल्पिक आजीविका का अवसर प्रदान करना है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान, सरकार ने इस परियोजना के प्रारंभिक चरण के लिए ृ1.00 करोड़ प्रदान किए हैं इस परियोजना के अन्तर्गत 31.12.2017 तक का खर्च ृ44.00 लाख खर्च किए जा चुके हैं।
हिमाचल प्रदेश समृद्धि के लिए वन परियोजना : विश्व बैंक की सहायता से नई परियोजना “हिमाचल प्रदेश वन समृद्धि के लिए परियोजना“ शुरू की जा रही है। इस परियोजना की कुल लागत ृ665.00 करोड़ है, जिसे विश्व बैंक के 80 प्रतिशत ऋण व 20 प्रतिशत प्रदेश सरकार द्वारा खर्च किया जाना है। यह परियोजना ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर, सोलन, किन्नौर, बिलासपुर, शिमला, सिरमौर और जिला चंबा के पांगी तथा भरमौर उप-मण्डलो में 5 साल की अवधि के लिए चलाई जाएगी। इस परियोजना का मुख्यालय ऊना और क्षेत्रीय कार्यालय धर्मशाला और शिमला में होंगे। परियोजना का उद्वेश्य प्रदेश में वनों को बढ़ाना व उसकी गुणवत्ता में सुधार करना है़, स्थानीय समुदाय को जंगलों से प्राप्त होने वाले लाभ को बढ़ाना और प्रकृति आधारित पर्यटन, स्थाई पनबिजली और पानी की आपूर्ति को बढ़ावा देना है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान इस परियोजना के प्रारंभिक चरण के लिए ृ4.12 करोड़ दिये हैं तथा 31.12.2017 तक ृ32.00 लाख खर्च कर लिए हैं।
विश्व बैंक पोषित स्रोत स्थिरता लचीली जलवायु व वर्षा पर निर्भर कृषि हेतु एकीकृत : विश्व बैंक, ृ650.00 करोड़ की लागत वाली इस नई परियोजना (सोर्स सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट रेजिलिएन्ट रेन फेड एग्रीकल्चर परोजेक्ट) को पोषित करने पर सहमत हो गया है जिसे विश्व बैंक के 80 प्रतिशत ऋण व 20 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा खर्च किया जाना है। इस परियोजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है और मार्च, 2018 के लिए ऋण करार हस्ताक्षर अपेक्षित है। इस परियोजना की अवधि 7 वर्ष है जो कि प्रदेश की 900 ग्राम पंचायतों में कार्यान्वित की जाएगी जो शिवालिक और मध्य पहाड़ी क्षेत्र के विभिन्न जलागमों के कृषि-जलवायु क्षेत्र में फैले है। इस परियोजना के अन्तर्गत लगभग 2 लाख हैक्टेयर गैर-कृषि भूमि और 20 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि के व्यापक उपचार के साथ-साथ जल उत्पादकता, दूध उत्पादन में वृद्धि और आजिविका में सुधार के कार्य शामिल है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान इस परियोजना के प्रारंभिक चरण के लिए ृ4.60 करोड़ दिये हैं जिसमें से 31.12.2017 तक ृ1.29 करोड़ खर्च कर लिए हैं।
पर्यावरण वानिकी एवं वन्यप्राणी : हिमाचल प्रदेश विविध और अ्द्वितीय वन्यप्राणी प्रजातियों के लिए प्रसिद्व है जिसमें से कुछ दुर्लभ प्रजातियां हैं। पर्यावरण वानिकी एवं वन्यप्राणी के सरक्षंण एवं संबर्धन, वन्यप्राणी शरणस्थलों एवं राष्ट्रीय उद्यानों के विकास तथा लुप्तप्राय पशु एवं पक्षियों की प्रजातियों के सरक्षंण हेतु प्रावधान इस परियोजना के अन्तर्गत किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए इन कार्यो हेतु ृ14.84 करोड़ का बजट अनुमोदित किया गया है जिसमें से 31.12.2017 तक ृ5.03 करोड़ खर्च कर लिए हैं तथा शेष राशि 31.03.2018 तक खर्च कर ली जाएगी।
राज्य जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विभाग हिमाचल प्रदेश एवं विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विभाग, भारत सरकार की सहायता से हिमालयी पारिस्थिति को संभालने के लिए राष्ट्रीय मिशन के तहत राज्य जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ की स्थापना की गई है। ज्ञान प्रकोष्ठ की स्थापना और कार्य करने के लिए भारत सरकार से स्वीकृत बजट ृ2.73 करोड़ में से 31.12.2017 तक ृ1.00 करोड़ प्राप्त हुए है, जिन्हें पूर्व-निर्धारित गतिविधियों को पूरा करने के लिए खर्च कर दिया है तथा शेष राशि को भारत सरकार से जारी करने का अनुरोध किया है। व्यास नदी बेसिन के चार जिलों कुल्लू, मण्डी, हमीरपुर तथा कांगड़ा में जलवायु परिवर्तन की अति संवेदनशीलता मूल्याकंन आरम्भ हो रहा है। मार्च, 2018 के अन्त तक कुल्लू जिले पर रिर्पोट पूरी हो जाएगी।
(एन.ए.एफ.सी.सी.) के तहत स्वीकृत परियोजना का कार्यान्वयन : हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय भारत सरकार की राष्ट्रीय अनुकूलन निधि के अन्तर्गत ”कृषि निर्भर ग्रामीण समुदायों की सतत आजिविका“ (एस.एल.ए.डी.आर.सी.) नामक परियोजना जो कि ृ20.00 करोड़ की है को कार्यान्वयन किया जा रहा है। यह परियोजना कृषि, बागवानी और आईपीएच विभागों के सहयोग से राष्ट्रीय कार्यान्वयन एजेंसी नाबार्ड के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है। इस योजना के लिए ृ3.31 करोड़ प्राप्त हुए थे जो कि पूर्व निर्धारित क्रियाकलापों में खर्च किये जा रहे हंै। जिला सिरमौर के तीन विकास खण्ड पच्छाद, पांवटा तथा संगडाह की जलवायु परिवर्तन अति संवेदनशील मूल्याकंन रिपोर्ट और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन योजना पूरी हो चुकी है तथा लाभार्थियों की सूची बनाई गई है। सिंचाई एंव जन स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से इन तीन विकास खण्डों में तीन लिफ्ट सिंचाई योजनाएं शुरू की गई है। 73 सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं में से 12 सूक्ष्म सिंचाई योजनाएं डी.डब्लयू.डी.ओ. (डिवीजनल वाॅटरशेड डेवलपमेंट आॅफिसर्स) नाहन द्वारा 23 हेक्टेयर क्षेत्र में 87 लाभार्थियों को सम्मलित करते हुए पूर्ण की गई।
राज्य स्तरीय पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार को प्रारम्भ करना : सरकार ने “राज्य स्तरीय पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार” प्रारम्भ किया है। यह पुरस्कार प्रदेश के पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा उन संस्थाओं/ व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने पर्यावरण सरंक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देने में सफल प्रयत्न कर उत्कृष्ट भूमिका निभाई हो। इस पुरस्कार के तहत प्रशस्ति पत्र सहित प्रथम विजेता को ृ50,000 तथा द्वितीय विजेता को ृ25,000 नगद दिये जाते हैं। राज्य स्तरीय पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार 2017 के लिए कुल आंबटित ृ9.50 लाख खर्च कर दिए गए हैंै।
आदर्श पर्यावरण - गांवों की स्थापना एंव हिमाचल प्रदेश में पर्यावरणीय सतत-सामुदायिक विकास कार्यक्रम : राज्य सरकार द्वारा पर्यावरण, विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से आदर्श पर्यावरण गांव योजना चलाई जा रही है। इस योजना के माध्यम से, राज्य सरकार पर्यावरणीय स्थिरता के विभिन्न घटकों का रूपरेखण करेगी, जिन्हें कार्यान्वयन के लिए उदाहरणों के रूप में चित्रित किया जाएगा। पर्यावरणीय रूप से स्थाई और पारिस्थितिक उन्मुख पारिस्थिकी गांवों को कम प्रभावित करने वाली जीवन शैली विकसित करने के परिपेक्ष पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा क्योंकि इस योजना के लागू होने से मूल मूल्यांकन का 50 प्रतिशत तक पारिस्थितिक पदचिन्ह कम करना होगा। यह ”पृथ्वी और लोगों की देखभाल” के मूल्यों पर आधारित होगी। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कैसे विभिन्न समुदायिक घटकों के संरचना को स्थापित करके प्राकृतिक रूप से एकीकृत किया जा सकता है इन सुविधाओं को लागू करने के लिए मात्रात्मक और गुणात्मक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ के साथ निर्धारित किया जाएगा और कैसे विकास योजनाओं में शामिल किया जा सकता है। इस योजना के अन्तर्गत आदर्श पर्यावरण ग्राम योजना में अपनाए ग्रामों द्वारा 5 वर्ष की अवधि में ृ50.00 लाख खर्च किये जांएगे।
राज्य सरकार ने विभिन्न हितधारक विभागों के बीच तालमेल बिठाने और राज्य में निर्णय लेने की मुख्य धारा में पर्यावरण समन्वय बनाते हुए राज्य पर्यावरण नीति तैयार करने का निर्णय लिया है। यह दस्तावेज राज्य में अच्छे पर्यावरण प्रशासन के साथ एक स्थायी तरीके से प्राथमिकता वाले कार्यों को निर्धारित करने की प्रक्रिया को सुविधा जनक बनाने में मदद करेगा तथा इस उद्वेश्य के लिए वर्ष 2017-18 में कुल ृ15.00 लाख का बजट स्वीकृत हुआ है।
राज्य सरकार ने हरित जलवायु कोष के अन्तर्गत से नाबार्ड जो कि एक राष्ट्रीय क्रियान्वयन एजेंसी हैं उसके माध्यम से दो प्रस्ताव तैयार किए हैं।
i) समुदाय आधारित जल संचयन और प्राकृतिक जल संसाधन प्रबंधन के लिए सिंचाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से ृ1,125.32 करोड़ का प्रस्ताव है।
ii) वन विभाग के माध्यम से राज्य में जलवायु संवेदनशील वन प्रबंधन के लिए ृ492.00 करोड़ का प्रस्ताव है।
जलवायु परिवर्तन संवेदनशीलता को कम करने के लिए कार्यक्रम तैयार करना : राज्य सरकार, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अगले 5 सालों में जलवायु परिवर्तन के खतरे को जांचने हेतु तथा ग्रामीण, छोटे और सीमांत किसानों (ग्रामीण महिलाओं सहित) की अनुकूलित क्षमता को बढ़ाने हेतु बाढ़ तथा सूखाग्रस्त जिले के लिए कार्यक्रम तैयार करेगी। इसके अंतर्गत तीन परियोजनाओं के लिए ृ57.75 करोड़ का प्रस्ताव पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार ने नाबार्ड के अन्तर्गत एन.ए.एफ.सी.सी.(जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन निधि) को बजट उपलब्ध करवाने के लिए भेजा है।
व्यवहारिक जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान एवं विकास परियोजनाए : राज्य में जैव प्रौद्योगिकी नीति को लागू करने के लिए विश्वविद्यालय एंव अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से अनुसंधान गतिविधियां आयोजित की गई है। उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्धता स्थापित करने के लिए व्यावहारिक जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास कार्य के लिए 31.12.2017 तक ृ16.97 लाख खर्च किए गए हैं।

10.जल स्त्रोत प्रबंधन

जल प्रबन्धन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। राज्य के समस्त गांवों को मार्च, 1994 तक स्वच्छ पेयजल सुविधा प्रदान की जा चुकी है। पेयजल आपूर्ति योजना के नवीनतम/ वैधीकृत सर्वेक्षण के अनुसार मार्च, 2008 तक सभी 45,367 बस्तियों को शुद्ध पेय जल की सुविधा प्रदान की गई है। 1.04.2009 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल आपूर्ति निर्देशों के लागू करते हुए और बस्तियों के पुर्नसीमंाकन/ मानचित्रण के उपरान्त, राज्य में कुल 53,205 बस्तियां है, जिसमें से 19,473 बस्तियां (7,632 बस्तियां जहां शून्य प्रतिशत से अधिक तथा सौ प्रतिशत से कम जनसंख्या वाली तथा 11,841 बस्तियां शून्य जनसंख्या वाली) चिन्हित हुई जहां पर पेयजल सुविधाएं अपर्याप्त हैं। बस्तियों को पेयजल सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु मापदण्ड बस्तियों की जगह जनसंख्या पर आधारित हैं ताकि प्रत्येक घर तक जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। 1.04.2017 को इन बस्तियों की अंतिम स्थिति नीचे दी गई हैः-
वित्तीय वर्ष 2017-18 में कुल 730 बस्तियों जिनमें 364 बस्तियों को राज्य भाग के अन्तर्गत तथा 366 बस्तियों को केंद्रीय क्षेत्र में पूर्ण एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है जिसके लिए राज्य एवं केंद्रीय परिव्यय का भाग क्रमशः ृ242.39 करोड़़ एवं ृ84.39 करोड़़ रखा गया है। दिसम्बर,2017 तक 438 बस्तियों जिनमे 436 केन्द्रीय क्षेत्र तथा 2 बस्तियों को जो राज्य क्षेत्र से सम्बन्धित थी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाया गया है। दिसम्बर, 2017 तक ृ44.23 करोड़ केन्द्रीय भाग के अन्तर्गत तथा ृ101.24 करोड़ राज्य क्षेत्र के रूप में व्यय किये गए।
सरकार द्वारा प्रदेश के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम में पेयजल की कमी के चलते हैण्डपम्प लगाने का कार्य निरन्तर चल रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत मार्च, 2017 तक प्रदेश में कुल 35,668 हैण्डपम्प स्थापित किये जा चुके हैं। वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक प्रदेश में कुल 1,233 हैण्डपम्प स्थापित किये गए।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कुल 50 शहरों की पेयजल योजनाओं का रख-रखाव सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग कर रहा है। इनमें सेे 38 शहरों की पेयजल योजनाओं के सम्बर्धन का कार्य मार्च, 2017 तक पूर्ण कर लिया गया है। धर्मशाला, कांगड़ा, हमीरपुर, सरकाघाट, नगरोटा बगवां, कुल्लू, मण्डी, रामपुर तथा मनाली की पेयजल योजनाओं का सम्बर्धन यू.आई.डी.एस.एस.एम.टी. कार्यक्रम के अन्तर्गत किया जा रहा है। नाहन व बन्जार शहरों की पेयजल योजनाओं का सम्बर्धन कार्य राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में कुल ृ21.50 करोड,़ योजनाओं के सम्बर्धन के कार्य के लिए रखे गये हैं, जिसके अन्तर्गत कुल ृ10.33 करोड़ दिसम्बर, 2017 व्यय किये जा चुके हैं।
कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई का विशेष महत्व है। कृषि उत्पादन प्रक्रिया मंे पर्याप्त तथा समय पर ंिसंचाई की पूर्ति उन क्षेत्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जहां वर्षा बहुत कम या अनियमित होती है। कृषि योग्य भूमि को बढ़ाया नहीं जा सकता इसलिए उत्पादन में तीव्र वृद्धि के लिए बहुविध फसलों तथा प्रति यूनिट क्षेत्र में अधिक फसल पैदावार उगाने के लिए ंिसंचाई पर निर्भर रहना पड़ता है। राज्य योजना में सिंचाई की क्षमता बढ़ाना व उसके पूर्ण दोहन पर विशेष ध्यान देना सरकार की प्राथमिकता में है।
हिमाचल प्रदेश के कुल 55.67 लाख हैक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र मंे से केवल 5.83 लाख हैक्टेयर शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। यह अनुमान लगाया जाता है कि राज्य की ंिसंचाई की क्षमता लगभग 3.35 लाख हैक्टेयर है। इसमें से 0.50 लाख हैक्टेयर मुख्य तथा मध्यम ंिसंचाई परियोजनाओं के अन्तर्गत लाया जा सकता है तथा शेष 2.85 लाख हैक्टेयर भूमि लघु ंिसंचाई योजनाओं के अन्तर्गत लाई जा सकती है। अब तक 2.71 लाख हैक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा दिसम्बर, 2017 तक प्रदान की जा चुकी है।
मुख्य तथा मध्यम सिंचाई परियोजनाएं : राज्य में कांगड़ा जिले में शाहनहर परियोजना ही एकमात्र मुख्य सिंचाई परियोजना है। इस परियोजना का कार्य पूर्ण कर लिया गया है तथा इसके अन्तर्गत 15,287 हैक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा प्रदान की जा रही है। दिसम्बर, 2017 तक 15,287 हैक्टेयर भूमि में से 9,612 हैक्टेयर भूमि को कमांड क्षेत्र विकास के अन्तर्गत लाया जा चुका है। मध्यम सिंचाई योजनाओं के अन्तर्गत चंगर क्षेत्र बिलासपुर 2,350 हैक्टेयर, सिधाता कांगड़ा 3,150 हैक्टेयर तथा बल्ह घाटी लेफ्ट बैंक 2,780 हैक्टेयर का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। मध्यम सिंचाई योजना सिधांता का सी.ए.डी. कार्य प्रगति पर है तथा दिसम्बर,2017 तक 2,350 हैक्टेयर भूमि को सी.ए.डी. के अन्तर्गत लाया जा चुका है। वर्तमान में फिन्ना सिंह मध्यम सिंचाई परियोजना (सी.सी.ए.4,025 हैक्टेयर) तथा नादौन क्षेत्र जिला हमीरपुर (सी.सी.ए. 2,980 हैक्टेयर) का कार्य प्रगति पर है। वर्ष 2017-18 में ृ6,000.00 लाख की राशि प्रावधान रखा गया है। मुख्य तथा मध्यम सिंचाई योजनाओं के अन्तर्गत 1,200 हैक्टेयर क्षेत्र का लक्ष्य रखा गया है।
लघु सिंचाई : वर्ष 2017-18 में राज्य सरकार द्वारा राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत 3,500 हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए ृ220.75 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। दिसम्बर, 2017 तक 1,999.21 हैक्टेयर क्षेत्र को ृ54.02 करोड़ व्यय करके सिंचाई के अन्तर्गत लाया गया है।
वर्ष 2017-18 के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा ृ75.00 करोड़ का प्रावधान किया है जिसमें सी.ए.डी. की गतिविधियों के लिए ृ25.00 करोड़ भी शामिल है जो पूरी तरह लघु सिंचाई योजनाओं के क्षमता निर्माण एवं उपयोग के लिए है तथा शेष राशि केन्द्रीय भाग सहित राज्य में प्रमुख/ मध्यम तथा लघु सिंचाई योजनाओं को चलाने के लिए है। दिसम्बर, 2017 तक सी.सी.ए. 2,500 हैक्टेयर के लिए सी.ए.डी. गतिविधियाँ लक्ष्य के अन्तर्गत 787.85 हैक्टेयर (शाहनहर के लिए 638.50 हैक्टेयर तथा सिधांता के लिए 149.35 हैक्टेयर) का भौतिक लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है। भारत सरकार कमांड क्षेत्र विकास जल प्रबन्धन कार्यक्रम के अन्तर्गत सी.ए.डी. प्रमुख सिंचाई शाहनहर तथा मध्यम सिंचाई सिधाता परियोजनाओं को सम्मिलित किया गया है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 के दौरान पूर्ण/ चल रही सिंचाई परियोजनाओं के लिए सी.ए.डी. गतिविधियों को प्रदान करने के लिए आई.एस.बी.आई.जी. योजना शुरू की है तदनुसार 6 सी.ए.डी.डब्लयू.एम. परियोजनाओं (शाहनहर प्रमुख सिंचाई परियोजना, सिधाता, चंगर, नादौन क्षेत्र, बल्ह वैली लैफ्ट बैंक मध्यम सिंचाई परियोजना, तथा 23 लघु सिंचाई परियोजनाअ¨)ं को इस कार्यक्रम के अन्तर्गत लाने का विचार किया गया है।
वर्ष 2017-18 में 2,500 हैक्टेयर भूमि में बाढ़ नियंत्रण कार्य के अन्तर्गत लाने के लिए ृ63.58 करोड़ का प्रावधान किया गया है। दिसम्बर, 2017 तक ृ10.98 करोड़ व्यय करने उपरान्त 159.21 हैक्टेयर क्षेत्र को सुरक्षित किया गया है। स्वां नदी चरण-प्ट तथा छोंच खड्ड के तटीयकरण का कार्य प्रगति पर है।

11.उद्योग एवम् खनन

हिमाचल प्रदेश सरकार ने औद्योगिकरण की दिशा में पिछले कुछ वर्षो में महत्वपूर्ण प्रगति की है। प्रदेश सरकार ने निवेश को बढ़ाने के लिए हाल ही में बहुत सी पहलें की है।
पप्रदेश में 31.12.2017 तक 45,597 औद्योगिक इकाईयां कार्यरत है इसमें 138 बडें और 484 मध्यम स्तर के उद्योग शामिल है।
औद्योगिक क्षेत्र/ सम्पदा का विकास : वर्ष 2017-18 में औद्योगिक क्षेत्र में विभिन्न आधारभूत सरंचनाओं के विकास के लिए ृ23.50 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है जिसमें से 18.01.2018 तक ृ9.52 करोड़ ओद्यौगिक क्षेत्र/ औद्योगिक सम्पदा के विभिन्न विकासात्मक निर्माण कार्याें पर व्यय किया जा चुका है। शेष बचे ृ13.98 करोड़ को भी 31.03.2018 से पहले व्यय कर लिया जाएगा।
एम0आई0आई0यू0एस0 के अधीन स्टेट आफ आर्ट इण्डस्ट्रियल एरिया : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार ने (संशोधित औद्योगिक अधोसरंचना विकास स्कीम) के अंर्तगत 2 स्टेट आफ आर्ट इण्डस्ट्रियल एरिया पण्डोगा जिला ऊना व कन्दरोरी जिला कांगडा में स्थापित करने की अन्तिम स्वीकृत दी गई है। इन परियोजनाओं का निधिकरण निम्न सारणी 11.1 में दर्शाया गया हैः-
परियोजना अनुदान का व्यय अधोसरंचना विकास के लिए इन औद्योगिक क्षेत्रों के भौतिक अधोसरंचना के अंतर्गत (सडकें, तूफान पानी निकासी नली, स्ट्रीट लाईट व 132 ज्ञट पावर सब स्टेशन की स्थापना इत्यादि), तकनीकी अधोसरंचना के अंतर्गत (सामूहिक सुविधा केन्द्र इत्यादि), सामाजिक अधोसरंचना के अंतर्गत (कामगार महिला आवास, बस ठहराव, वर्षा शालिका व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र) तथा विविध/ प्रशासनिक अनुदान के लिए प्रयोग किया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2017-18 में ृ49.85 करोड़ का प्रावधान स्टेट आॅफ आर्ट औद्योगिक क्षेत्रांे व एकीकृत अधोसंरचना सुधार योजना के लिए रखा गया है। इस बजट में अब तक ृ44.44 करोड़ खर्च किए जा चुके है।
्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना (पी.एम.ई.जी.पी.) : इस योजना के अंतर्गत 31.01.2018 तक 900 मामलों का लक्ष्य निर्धारित था परन्तु 2,627 मामले/ आवेदन विभिन्न बैंको को प्रायोजित किए गए, जिसमें से 821 मामलों में ृ1,991.13 लाख की अनुदान मार्जिन राशि की स्वीकृति दी जा चुकी है। 450 मामलों में प्रार्थियों को ृ1,048.57 लाख की अनुदान मार्जिन राशि वितरित कर दी गई है।
ेशम उद्योग राज्य का एक महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग है जिससे लगभग 10,228 ग्रामीण परिवारों को रेशम कोकून उत्पाद से लाभकारी रोजगार प्राप्त हो रहा है और उनकी आय में भी बढोतरी हो रही है। 14 रेशम के धागे के रीलिंग यूनिट निजी क्षेत्र जिनमें जिला कांगडा, बिलासपुर में 5-5 तथा हमीरपुर, मण्डी ऊना एवं सिरमौर में 1-1 यूनिट सरकार की सहायता से स्थापित किए गए है। माह दिसम्बर, 2017 तक 240.82 मी.टन रेशम के कोकून का उत्पादन किया गया है जिन में से 32.11 मी.टन कच्चे रेशम में परिवर्तित कर राज्य को बिक्री से ृ722.46 लाख की आय प्राप्त हुई है।
जनजातीय उपयोजना के अन्तर्गत, ृ1.07 करोड़ व अनुसूचित घटक योजना के अन्तर्गत ृ1.00 करोड़ के मामले, जिनमें हि0प्र0 राज्य हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास निगम द्वारा 53 प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाने है। राज्य सरकार को स्वीकृति हेतु भेजे जा चुके है।
खनिज प्रदेश के आर्थिक आधार का मुख्य घटक है। उत्तम किस्म का चूना-पत्थर जो कि पोर्टलैंड सीमेंट उद्योग के लिये आवश्यक पदार्थ हैं यहां प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है। वर्तमान में प्रदेश में छः सीमेंट प्लांट, जिनमें मै0 ए0सी0सी0 की बिलासपुर जिला के बरमाणा में (दो इकाईयां), मै0 अम्बूजा सीमेंट लिमिटिड की सोलन जिला के कशलोग में (दो इकाईयां), मै0 अल्ट्रा टेक की बागा भलग, जिला सोलन में (एक इकाई) पहले जे0पी0 हिमाचल सीमेंट था तथा मै0 सी0सी0आई0 की सिरमौर जिला के राजबन में (एक इकाई) कार्यरत है, जिला मण्डी, शिमला एवं चम्बा में सीमंेट प्लांट लगाने की प्रक्रिया जारी है।
इसके अतिरिक्त सरकार ने संभावित लाईसैंस भी कम्पनियों को जारी किए हैं, ताकि चूना पत्थर व अन्य गौण जमा खनिजों की गुण एवं मात्रा का पता लगाने के लिए गहन अध्ययन किया जा सके। अन्य खनिज जिनका प्रदेश में वाणिज्यक दोहन किया जा सकता है जैसे शेलए, बेराइटस, राॅक साॅलट, सिलिका सैंड, क्वार्टजाईट, भवन सामग्री जैसे की पत्थर, रेत व बजरी और इमारती पत्थर इत्यादि भी प्रदेश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। उद्योग विभाग की भौमिकीय शाखा द्वारा खनिजों के विकास एवं दोहन के लिए मापदंड बनाने के अतिरिक्त प्रदेश में बनाए जा रहे भवनों और पुलों का भौमकीय अध्ययन एवं भू-पर्यावरण सम्बन्धित अध्ययन इत्यादि का कार्य कर रहा है।
वर्ष 2015-16 के दौरान खनन से प्रदेश को ृ155.00 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था तथा वर्ष 2016-17 में ृ176.22 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था। वर्ष 2017-18 में 31.12.2017 तक ृ363.29 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ है। जिसमें से ृ194.00 करोड़ की राशि मै0 अल्ट्रा टेक सीमेंट लिमिटिड द्वारा अग्रिम भुगतान के रुप में प्राप्त हुई है।
i) नए खनन के पटटे प्रदान करनाः विभाग ने वर्ष 2015-16 में वित्तीय वर्ष में मुख्य खनिज के 30 खन्न पट्टे प्रदान/ नवीकरण किये गये तथा वर्ष 2016-17 के दौरान खान एवं खनिज (विकास एवं विनियम) संशोधित अधिनियम, 2015 की धारा 8 ए (5) एवं 8 ए (6) में निर्दिष्ट प्रावधानों के अनुरूप 30 खन्न पट्टा मामलों में खनन पट्टा की अवधि, स्वीकृति तिथि से आगामी 50 वर्षो के लिए बढ़ाई गई जबकि वित्तीय वर्ष 2015-16 में, 68 खनन पट्टे गौण खनिजों के प्रदान किये गये थे व 2016-17 में 92 खन्न पट्टे, गौण खनिजों के प्रदान किये गये है। वर्ष 2017-18 में 31.12.2017 तक 56 खनन पटटे गौण खनिजों के प्रदान किए गए है।
ii) भू-तकनीकी अन्वेषणः विभाग द्वारा 2015-16 में प्रदेश में बनाए जा रहे पुलों, सड़कों, बड़े-बड़े भवनों, भू-स्खलन क्षेत्रों इत्यादि की नींव सम्बन्धी भौमिकीय अध्ययन किये और 23 भू-तकनीकी अन्वेषण रिपोट्र्स सम्बन्धित एजेंसियों को आगामी कार्यवाही के लिए भेजी गई हैं। जबकि वित्तीय वर्ष 2016-17 में 20 भू-तकनीकी अन्वेषण रिपोट्र्स सम्बन्धित एजेंसियों को भेजी गई है। वर्ष 2017-18 में 31.12.2017 तक 7 भू-तकनीकी अन्वेषण रिपोर्ट्स सम्बन्धित एजेसियों को भेजी गई।

12.श्रम और रोजगार

2011 जनगणना के अनुसार प्रदेश की कुल जनसंख्या में 30.05 प्रतिशत मुख्य कामगार, 21.80 प्रतिशत सीमांत कामगार तथा शेष 48.15 गैर कामगार थे। कुल कामगारों ;मुख्य़सीमांतद्ध में से 57.93 प्रतिशत काश्तकार, 4.92 प्रतिशत कृषि श्रमिक, 1.65 प्रतिशत गृह उद्योग इत्यादि तथा 35.50 प्रतिशत अन्य गतिविधियों में कार्यरत थे। राज्य में 3 क्षेत्रीय रोजगार कार्यालयों, 9 जिला रोजगार कार्यालयों, 2 विश्वविद्यालयों में रोजगार सूचना एवं मार्गदर्शन केन्द्र और 62 उप-रोजगार कार्यालय, विकलांगों के लिए निदेशालय में एक विशेष रोजगार कार्यालय, एक केन्द्रीय रोजगार कक्ष निदेशालय में जो पूरे प्रदेश के युवाओं को व्यवसायिक एवं रोजगार परामर्श सम्बन्धित जानकारी के साथ-साथ रोजगार बाजार की जानकारी उपलब्ध करवाने हेतु कार्यरत है। सभी 74 रोजगार कार्यालयों को कम्पयूटराईज किया जा चुका है तथा 71 रोजगार कार्यालय ओन लाईन है बाकि 3 रोजगार कार्यालयों को शीघ्र ही आॅनलाईन किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने न्यूनतम वेतन अधिनियम,1948 के अन्तर्गत कामगारों को न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के सम्बन्ध में सलाह देने के लिये राज्य न्यूनतम वेतन सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। राज्य सरकार ने दिनांक 01.04.2017 से अकुशल कामगारों का वेतन ृ200 से ृ210 प्रतिदिन अथवा ृ6,000 से ृ6,300 प्रतिमाह, वर्तमान में न्यूनतम वेतन अधिनियम,1948 के अंतर्गत सभी 19 अनुसूचित व्यवसायों के लिए निर्धारित कर दिया गया है।
वर्ष 1960 से रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम के अन्तर्गत रोजगार आंकडे़ जिला स्तर पर एकत्र किए जा रहे हैं। प्रदेश में 30.06.2016 तक सार्वजनिक क्षेत्र के कुल कामगारों की संख्या 2,82,464 निजी क्षेत्र में कामगारों की संख्या 1,62,686 और सार्वजनिक क्षेत्र में कुल 4,236 व निजी क्षेत्र में कुल 1,720 उद्यम है।
श्रम एवं रोजगार विभाग के अधीन इस समय चार व्यवसायिक मार्गदर्शन केन्द्र स्थापित हैं जिनमें से एक निदेशालय स्तर पर स्थित है तथा शेष तीन केन्द्र क्षेत्रीय रोजगार कार्यालय मण्डी, शिमला व धर्मशाला में स्थित है। इसके अतिरिक्त दो विश्वविद्यालय रोजगार सूचना एवं मार्गदर्शन ब्यूरो पालमपुर व शिमला में स्थित हैं। इन केन्द्रों द्वारा रोजगार के संदर्भ में आवेदकों को उचित व्यवसायिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। प्रदेश में कई शैक्षणिक प्रतिष्ठानों में व्यावसायिक मार्गदर्शन संबंधी कैम्पों का आयोजन भी किया जाता है। इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2017 तक प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में 121 कैम्प आयोजित किए गए।
हिमाचल प्रदेश के निजी क्षेत्र में कार्यरत एवं लगाई जा रही औद्योगिक इकाईयों, संस्थानों के लिए तकनीकी तथा उच्च कुशल कामगारों को रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में केन्द्रीय रोजगार कक्ष हमेशा की तरह वर्ष 2017-18 में भी अपनी सेवाएं अर्पित करता रहा है। इस प्रकार इस योजना द्वारा एक ओर रोजगार इच्छुक लोगों को उनकी योग्यता व अनुभव के अनुसार निजी क्षेत्र में उचित रोजगार प्राप्त करने मेें सहायता प्राप्त होती है तथा दूसरी ओर नियोक्ता बिना धन व समय बर्बाद किए उचित कामगार उपलब्ध होते हैं। केन्द्रीय रोजगार कक्ष निजि क्षेत्र के नियोक्ताओं की अकुशल कामगारों की मंाग हेतु कैम्पस साक्षात्कार करवाता है। इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर,2017 तक केन्द्रीय रोजगार कक्ष के माध्यम से 117 कैंम्पस साक्षात्कार करवाये गये, जिसमें से 1,868 आवेदकों की नियुक्तियां की गई है। केन्द्रीय रोजगार कक्ष राज्य भर में रोजगार मेलों का आयोजन भी करता है। इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर,2017 तक विभाग 2 रोजगार मेलों का आयोजन कर चुका है, जिसमें 1,093 नियुक्तियां राज्य की विभिन्न उद्योगों में की गई है।
सरकार द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों को रोजगार सहायता प्रदान करने हेतु श्रम एवं रोजगार निदेशालय में प्रभारी अधिकारी ;स्थापनाद्ध के अधीन वर्ष 1976 से विशेष रोजगार कार्यालय ;दिव्यागों हेतुद्ध की स्थापना की गई। यह कक्ष दिव्यागों को आवेदन करने पर व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं सार्वजनिक एंव निजी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों में रोजगार दिलवाने में सहायता करता है। समाज के इस कमजोर वर्ग को कई प्रकार की सुविधायें/ रियायतें दी गई हैं जैसे कि मैडिकल बोर्ड द्वारा मुुुफ्त स्वास्थ्य परीक्षा, ऊपरी आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट, ऊपरी अंगों की (हाथ तथा बाजू) अपंगता होने पर टंकण करने की छूट, तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी की रिक्तियों में 3 प्रतिशत का आरक्षण, महिलाआंेे के लिए खोले गये औद्यौगिक प्रशिक्षण संस्थान आई.टी.आई, सिलाई तथा कटाई केन्द्र में 5 प्रतिशत सीटों का आरक्षण तथा 200 रोस्टर प्वांईट में आरक्षण का निर्धारण जो कि पहला, 30वां, 73वां, 101वां, 130वां, 173वां है। ;पहला व 101वां दृष्टिहीनों के लिए, 30वां तथा 130वां गंुगे-बहरों के लिए, 73वां तथा 173 लोकोमोटर अपंगता वालों के लिए हैद्ध वर्ष 2017-18 के दौरान दिसम्बर, 2017 तक सक्रिय पंजिका में 1,966 दिव्यांगों को पंजीकृत करके विकलांग पंजीकृतों की संख्या 17,479 हो गई है तथा 31 दिव्यांग व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाए गए है।
बन्धुआ मजदूर प्रणाली ;उन्मूलनद्ध अधिनियम-1976 के अंतर्गत् राज्य सरकार ने जिला सतर्कता समितियां तथा उप-मण्डल सतर्कता समितियों का गठन, बन्धुआ मजदूर प्रणाली के कार्यान्वयन एवं मोनिटरिंग के हेतु किया गया है। बन्धुआ मजदूर प्रणाली तथा अन्य सम्बन्धित अधिनियमों पर स्टैंडिंग कमेटी आॅन एक्सपर्ट गु्रप की रिपोर्ट पर आधारित राज्य स्तरीय समिति का गठन किया गया है। राज्य सरकार ने औद्योगिक झगड़े निपटाने के लिए दो श्रम न्यायालय एवं औद्योगिक न्याय प्राधिकरण स्थापित किये हैं जिसमें से एक का मुख्यालय शिमला में है, जिसका कार्य क्षेत्र जिला शिमला, किन्नौर, सोलन व सिरमौर है तथा दूसरा धर्मशाला में है, जिसका कार्य क्षेत्र जिला कांगड़ा, चम्बा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, मण्डी, कुल्लू एवं लाहौल-स्पिति है। श्रम न्यायालयों एवं औद्योगिक अधिकरणों के पीठासीन अधिकारी जिला एवं सत्र न्यायधीश स्तर के नियुक्त किये गए हैंै।
राज्य कर्मचारी बीमा योजना सोलन, परवाणु, बरोटीवाला, नालागढ़, बद्दी जिला सोलन, मैहतपुर, गगरेट, बाथरी जिला ऊना, पांवटा साहिब, काला अम्ब जिला सिरमौर, गोलथाई जिला बिलासपुर, मण्डी, रती, नैर चैक, भंगरोटू, चक्कर व गुटकर, जिला मण्डी, औद्योगिक क्षेत्र शोघी व शिमला नगर-निगम क्षेत्र जिला शिमला में लागू हैं। लगभग 7,495 संस्थानों में 2,86,390 बीमा कामगार/ कर्मचारी इस योजना के अंतर्गत दिनांक 31.12.2017 तक पंजीकृत किए गए हैं। कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम के अंतर्गत दिनांक 31.12.2017 तक 15,425 संस्थानों में कार्यरत 2,95,048 ;अनुमानितद्ध कामगारों को लाया गया।
प्रदेश में औद्योगिक सम्बन्धों की समस्या को औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने के कारण पर्याप्त महत्व दिया गया है। प्रदेश में समझौता तन्त्र विभाग के अधीन कार्यरत हैं तथा औद्योगिक विवादों के समाधान, औद्योगिक शान्ति बनाने, समन्वय और उत्पादनता बनाये रखने में महत्वपूर्ण एजेंसी साबित हुई है। समझौता तंत्र के अन्तर्गत विभिन्न कार्य संयुक्त श्रमायुक्त, उप-श्रमायुक्त, तथा श्रम अधिकारियों, व श्रम निरीक्षकों को उनके कार्य क्षेत्र के अनुसार सौंपे गये हैं। यदि नीचले स्तर पर समझौता करवाने में यह प्रक्रिया असफल हो जाती है तो निदेशालय स्तर पर उच्च अधिकारियों द्वारा उस प्रकार के विवादों/ मामलों में हस्तक्षेप किया जाता है।
हिमाचल प्रदेश भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड का इस अधिनियम के अंतर्गत गठन किया गया है और बोर्ड उन भवन एंव सन्निर्माण कामगारों जोकि बोर्ड में लाभार्थी के रुप में पंजीकृत हैं के लिए कल्याणकारी योजनायें कार्यन्वित कर रहा है जैसे कि मातृत्व/ पैतृत्व लाभ, सेवानिवृति पैंशन, पारिवारिक पैंशन, दिव्यांग पैंशन, चिकित्सा सहायता, शिक्षा हेतु वित्तीय सहायता, स्वयं व दो बच्चों तक की शादी हेतु आर्थिक सहायता, कौशल विकास भत्ता, औज़ार खरीदने के लिए ऋण, भवन निर्माण/ खरीद हेतु ऋण का प्रावधान, मृत्यु व दाह संस्कार सहायता। ऐसे संस्थान जहां पर 300 से अधिक भवन एंव सन्निर्माण कामगार कार्यरत हों, वहां पर बोर्ड ट्रांजिट हाॅस्टल निर्माण/ किराये पर ले सकता है। दुलहैड़ ज़िला ऊना तथा जिला सोलन के घनसोत (नालागढ़) ट्रांज़िट हाॅस्टल का निर्माण कर दिया गया है तथा कामगारों की सुविधा के लिए उक्त भवन प्रयोग में लाये जायेंगे। इसके अतिरिक्त ज़िला पलकवाह-खास, जिला ऊना में कामगारों को व उनके आश्रितोें को प्रशिक्षण हेतु कौशल विकास संस्थान का निर्माण ृ15.69 करोड़ की अनुमानित लागत से निर्माणाधीन है। बोर्ड भवन एवं सन्निर्माण कामगारों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और जनश्री बीमा योजना के अंतर्गत भी लाया जाता है, ऐसे कामगार जो भवन एवं अन्य सन्निर्माण कामगार बोर्ड के साथ पंजीकृत होंगे। दिनांक 31.12.2017 तक 1,938 संस्थान, 1,29,599 लाभार्थी पंजीकृत किये गये हैं तथा 1,53,028 लाभार्थिंयों को ृ71.27 करोड़ की राशि बोर्ड द्वारा विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत बांटी गयी है और लगभग ृ394.38 करोड़ की धनराशि हि0प्र0 भवन एंव सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के पास जमा हुई है।
कौशल विकास भत्ता योजना के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए ृ100.00 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के पात्र बेरोजगार युवाओं को उनके कौशल विकास हेतु भत्ते का प्रावधान है ताकि उनकी कौशल विकास व रोजगार प्राप्त करने की क्षमता बढ़ सके। यह भत्ता ृ1,000 प्रतिमाह व 50 प्रतिशत या इसके अधिक स्थायी दिव्यांग आवेदकों को ृ1,500 प्रति माह की दर से कौशल विकास प्रशिक्षण के दौरान अधिकतम दो वर्ष तक देय है।
इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2017 तक कुल 1,74,980 आवेदक रोजगार सहायता हेतु पंजीकृत हुए तथा इस अवधि में 721 नियुक्तियां सरकारी क्षेत्र में 2,185 अधिसूचित रिक्तियों के तहत व 4,850 नियुक्तियां निजी क्षेत्र में 7,035 अधिसूचित रिक्तियों के तहत हुई। सभी रोजगार कार्यालयों में 31.12.2017 तक सक्रिय पंजिका में कुल संख्या 8,34,714 थी। जिलावार रोजगार केन्द्रों का 1.04.2017 से 31.12.2017 मंे पंजीकरण एवं नियुक्तियां निम्न सारणी संख्या 12.1 में दर्शाई गई हैः-

13.ऊर्जा

आर्थिक विकास में विद्युत एक महत्वपूर्ण घटक है। अर्थ व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक क्रियाकलापों में उत्प्रेरक की भुमिका स्वीकार्यता के साथ-साथ विद्युत राजस्व अर्जन, रोजगार के अवसर बढ़ाने व लोगों के रहन-सहन के स्तर व जीवन की गुणवŸाा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। जल विद्युत क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश ने विद्युत के विकास के आर्थिक विस्तार के साथ-साथ पर्यावरण एवं सामाजिक पक्ष की सुरक्षा पर भी बल दिया है। यह भी उसी तर्ज पर है जैसा हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में सम्मिलित, हरित व सतत विकास की दिशा में जलवायु परिवर्तनशील पगों को बढ़ावा देती है जोकि प्रदेश के आर्थिक विकास का मुख्य घटक हैं।
प्रदेश ने जल विद्युत क्षेत्र में कुल 27,436 मैगावाट क्षमता का आकलन किया है। परन्तु इसमें से 24,000 मैगावाट को ही दोहन योग्य पाया है, शेष क्षमता को पर्यावरण, को बचाने, परिस्थितिक संतुलन एवं विभिन्न सामाजिक कारणों से त्याग कर दिया गया है। इसीलिए सरकार ने निर्धारित लक्ष्य से जो कि 24,000 मैगावाट है से केवल 20,912 मैगावाट ऊर्जा उत्पादन के लिए ही विभिन्न क्षेत्रों का आवटिंत किया है। राज्य जल विद्युत के विकास को सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी से गति प्रदान हो रही है तथा जल विद्युत विकास को नदियों पर बनें विद्युत परियोजनाओं पर ध्यान केन्द्रित रखा है। अभी तक प्रदेश में 10,519 मैगावाट ऊर्जा का विभिन्न क्षेत्रों से दोहन किया जा चुका है।

ऊर्जा निदेशालय की भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धियां वित्त वर्ष 2017-18 (दिसम्बर, 2017 तक) और पूर्वानुमानित लक्ष्य 31.03.2018 तक। 149.50 मैगावाट अतिरिक्त क्षमता का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान दिसम्बर, 2017 तक प्राप्त कर लिया है जिसे तीन परियोजनाओं के सैंज एच0ई0पी0 100 मैगावाट, चान्जु-1 एच0ई0पी0 (36 मैगावाट) तथा उपरली नान्टी एच0ई0पी0 13.5 मैगावाट की क्षमता वाले परियोजनाओं शामिल करके लक्ष्य प्राप्त किया है तथा बलरघा एच0ई0पी0 9 मैगावाट को 31 मार्च, 2018 तक जोडने का भी लक्ष्य रखा है। चालू वित्त वर्ष में विद्युत बाजार के प्रति युनिट कीमतों में वृद्वि देखी गई है। प्रदेश ने ृ620.00 करोड़ राजस्व लक्ष्य की तुलना में ृ972.00 करोड़ का राजस्व अर्जित किया है। निशुल्क एंव इक्विटी पावर बिक्री से 31 मार्च, 2018 तक लगभग ृ68.00 करोड़ का राजस्व प्राप्ति का अनुमान है। लोकल एरिया डीवेलपमैंट फंड (एल0ए0डी0एफ0) के अंतर्गत उन क्षेत्रों के विद्युत परियोजनाओं से एक प्रतिशत अतिरिक्त मुफ्त विद्युत प्राप्त की गई जिसकी बिक्री से ृ13.22 करोड प्राप्त हुये जोकि सम्बन्धित एल0ए0डी0सी0 को दे दिया गया जिसे परियोजनाओं से प्रभावित परिवारों को आंवटित किया गया।
ऊर्जा निदेशालय को ृ1,000 करोड़ से कम लागत की परियोजनाओं की तकनीकी सहमति देने का कार्य सौंपा गया है। आज तक विस्तृत अवलोकन के उपरांत 14 परियोजनाओं को स्वीकृति दी है जोकि निजी, राज्य एवं केन्द्रीय क्षेत्रों से सम्बन्धित और जल विद्युत दोहन में कार्यरत है। वर्ष 2017-18 में दिसम्बर,2017 तक 14 तकनीकी सहमति प्रदान कर दी गई है शेष 3 सहमतियां मार्च, 2018 तक प्रदान की जाएगी।
केन्द्रीय प्रायोजित योजनाएं और विभागीय योजनाऐं : i) दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डी.डी.यू.जी.जे.वाई.) : ऊर्जा मंत्रालय (भारत सरकार) ने ग्रामीण घरों के विद्युतीकरण, कृषि और गैर-कृषि फीडरों को अलग करने, उप-संचरण और वितरण (एस.टी. एंड डी.) के बुनियादी ढांचे को ग्रामीण क्षेत्रों में सुदृढ़ बनाने और बढ़ाने के सहित वितरण ट्रांसफॉर्मरों, फीडरों और उपभोक्ताओं के स्तर पर मीटरिंग के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डी.डी. यू.जी.जे.र्वाइ.) को 3 दिसंबर 2014 को शुभारंभ किया। योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय और गुणवत्ता युक्त बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना है। हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड ने हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों के लिए बारह (12) योजनाएं तैयार की हैं जिनमें 35 गैर-विद्युतीकृत गांव, एक ै।ळल् (सांसद आदर्श ग्राम योजना) गाँव तथा 14,088 ग्रामीण परिवार (3,288 बीपीएल परिवारों सहित) शामिल हैं। केंद्र स्तर की निगरानी समिति ने इन योजनाओं को ृ158.31 करोड स्वीकृत किये है। पांच जिलों यानी शिमला, सोलन, कांगड़ा, मंडी और कुल्लू के संबंध में संशोधित आशय पत्र (एल.ओ.आई.) (जो पूर्ण रूप से ट््रकीं प्रणाली पर क्रियान्वित किये जा रहे हैं) ठेकेदारों को हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड द्वारा 30.12.2017 को जारी कर दिए गए हैं। बचे हुए चम्बा, सिरमौर, किन्नौर, ऊना, हमीरपुर और बिलासपुर जिलों को ‘विभागीय आधार’ पर कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसमे महत्वपूर्ण सामग्री की स्वयं खरीद की जाएगी छोटी खरीद ठेकेदार के माध्यम से की जाएगी, जिसे कार्य करने के लिए अनुबंधित किया जायेगा। हालांकि, लाहौल और स्पीति के मामले में, क्क्न्ळश्रल् स्कीम के तहत काम पूरी तरह से विभागीय आधार पर किया जा रहा है।
समापन लक्ष्य : दिशानिर्देशों के अनुसार, डध्े त्म्ब् स्जक मंजूरी की तारीख से 30 माह (निविदा के लिए 6 महीने ़कार्यान्वयन के लिए 24 महीने) में यह योजना पूरी की जानी है।
गैर-विद्युतीकृत गांवों की विद्युतीकरण स्थितिरू : चूंकि, भारत सरकार ने मिशन मोड पर गैर-विद्युतीकृत गांवों का विद्युतीकरण करने का निर्णय लिया, भ्च्ैम्ठस् ने क्क्न्ळश्रल् योजना के तहत आबादी वाले 28 गैर-विद्युतीकृत गांवों को विभागीय स्तर पर विद्युत् युक्त करने का निर्णय लिया था। हिमाचल प्रदेश के लिए ऊर्जा मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा तय किए गए लक्ष्य से काफी पहले, 30 सितंबर, 2016 में ही भ्च्ैम्ठस् द्वारा इन 28 गैर-विद्युतीकृत गांवों के विद्युतीकरण का लक्ष्ये हासिल किया जा चुका है। 28 विद्युतीकृत गांवों की भौतिक उपलब्धि निम्न प्रकार से है।

ii) पुनर्गठित त्वरित उर्जा विकास और सुधार कार्यक्रम (आर-ए0पी0डी0आर0पी0):
भाग-अ
ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार ने तकनीकी एवं वाणिज्यिक घाटे को 15 प्रतिशत तक, परियोजना क्षेत्रों में कम करने के लिए पुनर्गठित त्वरित उर्जा विकास सुधार कार्यक्रम चालू किया है। यह कार्यक्रम 2 भागों में विभाजित है, भाग (अ) और (ब)। भाग (अ) में तकनीकी एवं वाणिज्यिक घाटे की जांच करने के लिये विभिन्न परियोजनाएं जैसेः आधारभूत आंकडे स्थापित करना एवं सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियां जैसेः मीटर आंकडे एकत्रण, मीटर अध्ययन, बिल बनाना, संग्रहण, जी.आई.एस., एम. आई. एस. ऊर्जा आॅडिट, नए कनैक्शन, कनैक्शन काटना, ग्राहक देख-रेख सेवाएं, वेब सेल्फ सेवाएं इत्यादि। भाग (ब) में वितरण प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए परियोजनाओं को शामिल किया गया है। ऊर्जा मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश में 14 योग्य कस्बों की विस्तृत परियोजना विवरण के आधार पर अगस्त 2010 में ृ96.40 करोड की राशि मंजू़र की है। आर.-ए.पी.डी.आर.पी.भाग (अ) के अन्तर्गत परियोजना के लिए कुल लागत ृ128.46 करोड़ है। शेष राशि का प्रबन्ध स्वयं निधि द्वारा करना है। भारत सरकार ने पाॅवर फाइनांस काॅरपोरेशन लिमिटेड को इस कार्यक्रम के लिये नोडल एजेंसी के रुप में नियुक्त किया है। आर.-ए.पी.डी.आर.पी. भाग (अ) के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश में 14 कस्बे नामतः शिमला, सोलन, नाहन, पाँवटा, बद्दी, बिलासपुर, मण्डी, सुन्दरनगर, चम्बा, धर्मशाला, हमीरपुर, कुल्लू, ऊना और योल निधिकरण के लिए योग्य पाये गये।
कार्यक्षेत्र: आर-ए.पी.डी.आर.पी. भाग (अ) के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश में निम्नलिखित कार्यों को सम्मिलित किया गया हैः-
1) डाटा सैंटर शिमला में, डिज़ास्टर रिकवरी सेंटर पाँवटा साहिब में और उपर दर्शाए गए 14 कस्बों के कार्यालय में अपेक्षित हार्डवेयर, साॅफ्टवेयर एवं बाह्य उपकरणों को उपलब्ध करवाना।
2) डाटा सैंटर और डिजास्टर रिकवरी सैंटर स्तर पर निम्नलिखित साॅफ्टवेयर प्रणालियों का विकास एवं कार्यान्वयनः-
a) मीटर आंकडे एकत्रण प्रणाली।
b) ऊर्जा आॅडिट।
c) पहचान एवं निर्धारण प्रबन्धन।
d) प्रबन्धन सूचना प्रणाली एवं डाटा वेयर हाउसिंग युक्त बिज़नैस इंटैलिजेंस टूलज।
e) उद्यम प्रबन्धन प्रणाली एवं नेटवर्क मैनेजमेंट प्रणाली जोकि हार्डवेयर का भाग हैं।
सलाहकार/ क्रियान्वयन एजेंसी के आंबटनः मै0 टेलिकम्युनिकेशन कन्सल्टैंट इंडिया लिमिटेड़, नई दिल्ली को संयुक्त रूप में मै0 वयाम टैकनोलोजी इंड़िया लिमिटेड को आई.टी. सलाहकार के रुप में 31.07.2009 को कुल लागत ृ39.71 लाख से चयनित किया गया। आई. टी. सलाहकार का उद्देश्य, उपयुक्त विवरण बनाने, बोली दस्तावेज, बोली प्रक्रिया एवं कार्यान्वयन पर नजर रखने में हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड की सहायता करना है। मै0 एच.सी.एल. इन्फो- सिस्टमस् लिमिटेड, नोएड़ा कोे आई.टी. कार्यान्वयन शाखा के रुप में 30 अगस्त 2010 को कुल लागत ृ99.14 करोड़ से कार्य आंवटित किया गया था जिसे बाद में ृ99.13 करोड़ किया गया।
नवीनतम स्थिति एवं समापन सारणीः-
1) आर-ए0पी0डी0आर0पी0 भाग-अ परियोजना की लागत ृ128.46 करोड़ है।
2) इसमें से ृ96.40 करोड़ का वित्त पोषण ऊर्जा मंत्रालय करेगा व बाकी ृ32.06 करोड़ बोर्ड अपने संसाधनों से करेगा।
3) कार्य को अगस्त 2015 मे पूर्ण कर दिया गया है।
4) ज्च्प्म्। आई0टी0 रिपोर्ट, मै0 पी0एफ0सी0 को अगस्त 2016 में सौंप दी गई।
5) तृतीय पक्ष स्वंतन्त्र मूल्यांकन एजेंसी-आई0टी0 रिपोर्ट, मै0 पी0एफ0सी0 (नोडल एजैंसी) द्वारा सितम्बर 2017 में मंजूर कर ली गई है।
6) अंतिम समाप्ति के बारे में औपचारिक संदेश शीघ्र ही आपेक्षित है।
7) अभी तक कुल ृ84.84 करोड़ व्यय किए गए है।
कार्यक्रम से अपेक्षित लाभः आर- ए0पी0डी0आर0पी0 भाग (अ) योजना का मूल उद्वेश्य घाटे को निरन्तर कम करना तथा सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग निरन्तर सही आंकड़ों को एकत्रित करके, उर्जा आॅडिट के क्षेत्र में एक विश्वसनीय एवं स्वचालित पद्धति को स्थापित करना है।
भाग-“ब“ भारत सरकार ने आर-ए0पी0डी0आर0पी0-ब0 योजना को 10,000 (विशेष श्रेणी राज्यों के मामले में) से अधिक आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में 11 केवी और 22 केवी स्तर के सवस्टेशन, ट्रांसफॉर्मरध् ट्रांसफॅार्मर केंद्रों के पुनर्निर्माण, आधुनिकीकरण और सुदृढ़ीकरण, 11 ाट और एलटी लाइनों के पुनः कंडक्टरिंग, लोड बाईफरकेशन, फीडर अलगाव, लोड संतुलन, एचवीडीएस (11ाट), एरियल बंचड कंडक्टरिंग, इलेक्ट्रोमॅग्नेटिक ऊर्जा मीटर को छेड़छाड़ विरोधी इलेक्ट्रॉनिक मीटर के साथ प्रतिस्थापन, कैपेसिटर बैंकों की स्थापना, मोबाइल सेवा केन्द्रों और 33 ाट या 66 ाट सिस्टम को मजबूत बनाना के लिए शुभारंभ किया था।
योजना की अधतन स्थिति : हिमाचल प्रदेश के 14 शहरों- बद्दी, बिलासपुर, चंबा, धर्मशाला, हमीरपुर, कुल्लू, मंडी, नाहन, पावंटा साहिब, सोलन, शिमला, सुंदरनगर, ऊना और योल जिनकी आबादी 10,000 से अधिक है, के लिए आर-ए0पी0डी0आर0पी0 (पार्ट बी) की योजनाएं मैसर्स पीएफसी लिमिटेड/ एमओपी द्वारा ृ338.97 करोड़ (भारत सरकार ऋण घटक ृ305.07 करोड़) की राशि के लिए वित्त वर्ष 2011-2012 के दौरान स्वीकृत की गयीं थीं। 14 आर-ए.पी.डी.आर.पी. (पार्ट-बी) कस्बों में से चंबा, कुल्लू, मंडी, ऊना, नाहन और हमीरपुर में काम पूरा हो गया है और शेष 8 कस्बों में परियोजनाएं 30.01.2018 तक पूरी होने की संभावना है। आज तक भारत सरकार ऋण और समकक्ष ऋण घटकों के अंर्तगत, डध्े च्थ्ब् ने ृ231.33 करोड़ भारत सरकार ऋण के रूप में और ृ30.75 करोड़ (समकक्ष ऋण के रूप में) जारी किए हैं। डध्े च्थ्ब् द्वारा अब तक कुल ृ262.09 करोड़ की राशि भारत सरकार ऋण और समकक्ष ऋण के अंतर्गत जारी की है। 30.11.2017 तक हिमाचल प्रदेश के 14 कस्बों में ृ338.97 करोड़ में से कुल ृ289.94 करोड़ खर्च किये गए हैं। व्यय का शहर-वार विवरण सारणी 13.3 पर दर्शाया गया है

iii) एकीकृत विद्युत विकास योजना (आई0 पी0 डी0 एस):-

जनगणना 2011 के अनुसार भारत सरकार ने शहरी कस्बों के लिए 3 दिसंबर 2014 को एकीकृत ऊर्जा विकास योजना (आई.पी.डी.एस.) शुरू की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य हैरू.
a) शहरी क्षेत्रों में उप-संचरण और वितरण नेटवर्क को सुदृढ़ बनाना।
b) शहरी क्षेत्रों में वितरण ट्रांसफार्मर ध् फीडर ध् उपभोक्ताओं की मिटरिंग।
c) आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सी.र्सी.इ.ए.) की मंजूरी 21.06.2013 के अनुसार वितरण क्षेत्र की आई.टी. सक्षमता और वितरण नेटवर्क को मजबूत बनाने के लिए आर-ए.पी.डी.आर.पी. के तहत 12 वीं और 13 वीं योजना के निर्धारित लक्ष्य पूरा करने के लिए आर-ए.पी.डी.आर.पी. के लिए अनुमोदित व्यय को आगे आई.पी.डी.एस. में जोड़ना।
योजना की स्थिति : हिमाचल प्रदेश में, आई.पी.डी.एस. योजना के तहत कुल बारह (12) परियोजनाएं केंद्र स्तर की निगरानी समिति की चैथी बैठक में अनुमोदित की गई हैं। इन बारह परियोजनाओं की कुल स्वीकृत लागत ृ110.60 करोड़ है। स्कीम लागत के अलावा, समिति ने परियोजना लागत का 0.5ः (अर्थात ृ55.00 लाख) परियोजना प्रबंधन एजेंसी (पीएमए) की लागत के रूप में अनुमोदित किया। आगे, डध्े च्थ्ब् ने 21.03.2016 स्वीकृति पत्र में ृ93.94 करोड़ (यानी, परियोजना लागत का 85 प्रतिशत) भारत सरकार अनुदान और ृ55.00 लाख पी.एम.ए. घटक के रूप में धन प्रावधान सहित जारी किया है। आई.पी.डी.एस.योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, परियोजना लागत का 10 प्रतिशत (ृ11.06 करोड़) काउंटरपार्ट लोन के रूप में 17.10.2016 को डध्े त्म्ब् लि0 के साथ करार किया गया है और शेष 5 प्रतिशत (ृ5.60 करोड) हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड द्वारा अपने स्वयं योगदान तहत किया जाएगा। अक्तूबर, 2016 के दौरान 12 आई.पी.डी.एस. सर्किलों के लिए निविदाएं पूरी टर्नकी आधार पर बुलाई गईं थीं, लेकिन भावी बोलीदाताओं की बिना बिक्री प्रतिक्रिया के चलतेध् गैर भागीदारी के कारण निविदाएं खोलने की तिथियां पांच (5) बार बढ़ाई गयी और अंत में, कम भागीदारीध् उच्च मूल्य वाली बोली (स्वीकृत लागत का 2 गुना) के कारण, 11 आई.पी.डी.एस. सर्किलों में पूर्ण ट््रर्नकी टैडरिंग प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया था। निविदा प्रक्रिया केवल एक सर्किल अर्थात नाहन में पूरी हुई थी जिसमें ठेकेदार को 22.12.2017 को आंबटन पत्र जारी किया गया है। 11 आई.पी.डी.एस. परियोजनाओं यानी बिलासपुर, हमीरपुर, डलहौजी, कांगड़ा, रामपुर, सोलन, शिमला, मंडी, कुल्लू, ऊना और रोहड़ू के मामले में भ्च्ैम्ठस् परियोजनाओं को ‘विभागीय आधार’ द्वारा कार्यान्वित कर रहा है, जिसमे महत्वपूर्ण सामग्री की स्वयं खरीद की जाएगी और ठेकेदार को छोटी सामग्री की खरीद एवं निर्माण कार्य करने के लिए अनुबंधित किया जायेगा।
समापन लक्ष्य : दिशानिर्देशों के मुताबिक, स्वीकृति पत्र जारी करने की तारीख से 30 माह (निविदा के लिए 6 महीने एवं ़कार्यान्वयन के लिए 24 महीने) में यह योजना पूरी की जानी है। दिशानिर्देशों के अनुसार, आई0पी0डी0एस0 के तहत 5,000 और उससे अधिक आबादी वाले नए शहरी कस्बों (2011 जनगणना) को आर0ए0पी0डी0आर0पी0 भाग ए के तहत केंद्रीय डाटा सेंटर में हार्डवेयर और साॅफ्टवेयर की कम से कम जरूरत के साथ आई0टी0 सेवाओं को उपलब्ध करवाना है। दिशानिर्देशों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 40 शहरों का चयन किया गया है। इन कस्बो में आई0टी0 सक्षमता से उपभोगता की संतुष्टि और बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता में सुधार आएगा व उचित ऊर्जा लेखा और लेखा परीक्षा की सहायता से ।ज्-ब् के नुकसान में कमी आएगी। यह राष्ट्रीय विद्युत पोर्टल (एन0पी0पी0) के माध्यम से देश के सभी 11 के0वी0 फीडर के प्रस्तावित निगरानी को देखते हुए भी आवश्यक हैं। इसलिए, इस विवेकपूर्ण निवेश के अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पूरे राज्य के छोटे शहरों में आई0़टी0 प्रणाली को लागू करना भविष्य के लिए अच्छा है। इसके अलावा, इसमें यह प्रावधान है कि राज्य विद्युत एजेंसियां प्रतिष्ठित प्रबंधन एजेंसी (पी0एम0ए0) की सेवाओं बोली लगाने की प्रक्रिया की निगरानी और समन्वय करने, सिस्टम का अध्ययन, परियोजना नियोजन और कार्यान्वयन, गुणवत्ता निगरानी, प्रबंधन सूचना प्रणाली (एम0आई0एस0) और वेब पोर्टल अप-डेशन, जिसमें ए.टी. एंड सी. विश्लेषण, विभिन्न रिपोर्टों को तैयार करने और प्रस्तुत करने और नोडल एजेंसियों अर्थात मै0 पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पी.एफ.सी.) लिमिटेड के साथ समन्वय शामिल है। तदनुसार, विद्युत मंत्रालय (एम.ओ.पी.), भारत सरकार ने एचपीसीईबी लिमिटेड द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर विचार किया है और हिमाचल प्रदेश में 40 शहरों के लिए ृ27.36 करोड़ मंजूरी दे दी है जिनका विवरण निम्नानुसार हैंः-
1) डी.पी.आर. सहित डाटा संेटर (डीसी) डीस़ास्टर रीकवरी (डी.आर) और कस्टरमर केयर सेंटर (सी.सी.सी.) अपग्रेडेशन 40 शहरों के लिए ृ27.36 करोड़ स्वीकृत हैं।
2) भारत सरकार का ृ23.26 करोड़ का अनुदान (स्वीकृत परियोजना लागत का 85 प्रतिशत)
3) भारत सरकार का परियोजना प्रबंधन एजेंसी के लिए ृ14.00 लाख का अनुदान (स्वीकृत परियोजना लागत का 0.5 प्रतिशत)
4) कुल अनुदान ृ23.40 करोड़ है।
योजना की स्थितिः
1) परियोजना प्रबंधन एजेंसी नियुक्त की गई है।
2) आई0पी0डी0एस0आई0टी0 चरण -2 के लिए आई0टी0 कार्यान्वयन हेतु एजेंसी (आई0टी0आई0ए0) की नियुक्ति के लिए निविदायें बुलाई गई है और 30 व 31 अक्टूबर, 2017 को प्री-बिड सम्मेलन आयोजित किया गया है।
कम्पयूटरीकृत बिलिंग और ऊर्जा लेखा पैकेज (आई.टी. पैकेज) कम्पयूटरीकृत बिलिंग और ऊर्जा लेखा पैकेज (आई.टी. पैकेज), त्वरित विद्युत विकास एवं सुधार कार्यक्रम (ए.पी.डी.आर.पी) के तहत विद्युत मन्त्रालय (एमओपी) द्वारा शुरू किया गया है। इस परियोजना के तहत परिचालन उपमण्ड़लों की गतिविधियाॅं जैसे कि पूर्व बिलिंग क्रियाएं, बिलिंग क्रियाएं, बिलिंग के बाद की क्रियाएं, उपमण्ड़ल स्तर पर स्टोर प्रबन्धन, ग्राहक सम्बन्ध प्रबन्धन, विद्युत नैटवर्क प्रबन्धन और ऊर्जा लेखा/ लेखा परीक्षा और प्रबन्धन सूचना प्रणाली (एम.आई.एस.) को कम्पयूटरीकृत करना है। मै0 एच.सी.एल. इन्फोसिस्टमस् लिमिटेड, नोएड़ा कोे कुल लागत ृ30.58 करोड़ से यह कार्य अवार्ड किया गया है। परियोजना 27 मण्ड़लों के 132 उपमण्ड़लों और 12 वृतों जिनमें 12 लाख से अधिक उपभोक्ता हैं, में लागू किया गया है।
61 विद्युत उपमण्डलों में एस0ए0पी0 अधारित कम्पयूटरीकृत बिलिंगः विभिन्न विद्युत उपमंडलों में कम्पयूटरईज बिलिंग के कार्यान्वयन के दौरान समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड प्रबन्धन द्वारा बिलिंग के लिए मानक तय करने का निर्णय लिया है। ई0आर0पी0 परियोजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड द्वारा ै।च् के विभिन्न मौडयूल्ज़ का कार्यान्वयन किए जा रहा हैं अतः विभिन्न प्लेटफार्मो की हैंडलिंग से बचने के लिए बचे हुए 61 उपमंडलों में कम्पयूटरईज बिलिंग के लिये ै।च् प्लेटफार्म पर स्वीकृत किया है। ै।च् बिलिंग को 61 नए विद्युत उपमंडलों में कार्यान्वयन के लिए यह कार्य मै0 टी0सी0एस0लि0 को 24.07.2015 में ृ16.47 करोड में अवार्ड किया गया है। नया कनैकशन, डीसकनैक्शन, मीट्रींग, ए0एम0आर0, बिलिंग, स्पाट बिलिंग, कलैक्शन और एम0आई0एस0 जैसी प्रमुख विशेषताएं ै।च् बिलिं़ग के 61 नए विद्युत उपमंडलों में कार्यान्वित की है। 61 विद्युत सब डिविज़नों में 100 ज्ञॅ से ज्यादा कनैक्टड लोड वाले उपभोक्ताओं के लिए ै।च् आधरित कम्पयूटराईज बिलिंग में ए0एम0आर0 का भी प्रावधान किया गया है। इस परियोजना के अंतर्गत, आपूर्ति, स्थापना, एम0डी0ए0एस0 की कमीशनींग व चयनित उपभोक्ताओं के मीटर को मोडम उपलब्ध करवाना जैसे कार्य शामिल है।
वर्तमान स्थितिः शुरू में ै।च् द्वारा कम्प्यूटरीकृत बिलिंग विद्युत मण्डल अर्की के अन्र्तगत चार उप मण्डलों में जनवरी, 2016 को लागू किया गया। ै।च् के कार्यान्वयन के शुरूआती चरण के दौरान आने वाली समस्याओं को मैसर्ज ज्ब्ै द्वारा सुलझा दिया गया। उसके पश्चात ै।च् विलिंग को मई 2016 से चालू कर दिया गया। मैसर्ज ज्ब्ै ने 59 विद्युत उप मण्डलों में ै।च् के कार्यान्वयन का कार्य मार्च 2017 में पूर्ण कर लिया। ठैछस् से कनैक्टिविटी न मिलने के कारण ै।च् बिलिंग, उप मण्डलों (लापीयाना व रे) में स्थापित नहीं की जा सकी। 100 ज्ञॅ से अधिक लोड वाले उपभोक्ताआंे के लिए कुल 235 मोड़म स्थापित किए गए हैंै। जिसमें से 213 मोड़म पंजीकृत किए गए है व काम कर रहे है। बाकि 22 स्थापित मोड़म को मीटर पोर्ट/ सीरीयल पोर्ट कारणों से पंजीकृत नहीं किया गया। मैसर्ज ज्ब्ै को चरणबद्ध तरीके से 132 विधुत उप मण्डलों में ै।च्.प्ैट बिलिंग का कार्य अवार्ड किया है। विस्तार जनवरी,2018 में शुरू होकर जुलाई 2018 तक समाप्त करने की योजना है। कनैक्टिविटी की उपलब्धता पर यह बिलिंग समाधान बाकि मैन्युअल रूप से बिल करने वाले 40 विद्युत उप-मण्डलों में भी स्थापित कर दिया जाएगा।
उद्यम संसाधन योजना (ई.आर.पी.) का हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड में कार्यान्वयन :
1) एस.ए.पी., ई.आर.पी. एप्लीकेशन, मुख्य कार्यालय, परिचालन विंग दक्षिण, प्रणाली का रखरखाव विंग व हमीरपुर व बिलासपुर कार्यवाही वृत में शुरू कर दिया गया है। पूणरूप से इसे 8 मुख्य कार्यालयों में, 11 वृतों में, 45 मण्डलों में, 180 उप मण्डलों में व 8 मुख्य कार्यालयों पर लाईव कर दिया गया है।
2) ै।च्ध् म्त्च् प्रणाली द्वारा प्रत्येक माह 13,000 कर्मचारिय¨ं क¢ वेतन, 3,000 से अधिक पैंशनर और लगभग 12,000 कर्मचारियों के जी0पी0एफ0 तैयार किये जा रहे हंै। सभी पैंशन वेतन आदेश ै।च् द्वारा जनरेट किए जा रहे हैं।
3) सभी स्वतन्त्र बिजली उत्पादक जोकि 90 से अधिक है की बिलिंग ै।च् के माध्यम से की जा रही है।
4) रामपुर, एसजेवीएनएल, एनएचपीसी, बीएएसपीए, एसईसीआई, यूपीसीएल, एनटीपीसी, यूजेवीएनएल, 25 मेगावाट से अधिक, यूनिवर्सल बिलिंग, एनएपीपी/आरएपीपी के लिए अंतरराज्यीय बिजली बिक्री-खरीद एसएपी ईआरपी परियोजना के माध्यम से की जाती है।
5) मंडी सर्कल के लिए रोलआउट प्रक्रियाधीन है और जनवरी, 2018 के दौरान किया जाएगा।
6) अन्य छूटे हुए स्थानों को चरणबद्ध तरीके से कवर किया जाएगा।
हिमाचल प्रदेष के काला अम्ब में स्र्माट ग्रिड पायलट परियोजना का कार्यान्वयन: हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड काला अम्ब में स्र्माट ग्रिड पायलट परियोजना का कार्यान्वयन कर रहा है। इस परियोजना के कार्यान्वयन का कार्य डध्े ।सेजवउ ज्-क् प्दकपं च्अजण् स्जकण् ;छवू डध्े ळम् ज्-क् प्दकपं स्जकण्द्ध और डध्े ळमदने च्वूमत प्दतिंेजतनबजनतम स्जकण् को फरवरी,2015 में ृ24.99 करोड़ में अवार्ड कर दिया गया है अब इसकी संशोधित लागत ृ25.50 करोड़ कर दी गई है। इस परियोजना के लिए भारत सरकार ृ9.72 करोड़ का वित्त पोषण कर रही है। मै0 च्ळब्प्स् को हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड का इस परियोजना के लिए ।कअपेवत बनउ बवदेनसजंदबल ेमतअपबमे चतवअपकमत नियुक्त किया है। फील्ड उपकरण की स्थापना, हार्डवेयर व साफटवेयर जैसे प्रमुख कार्य पूरे हो चुके है व मामूली सुधार कार्य प्रगति पर है। इन कार्यो का मार्च, 2018 तक पूर्ण होने की संभावना है।
राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड के कार्यालयों का कम्पयूटरीकरण। राज्य के विद्युत उपभोक्ताओं को सुनिश्चित व गुणवतापूर्ण विद्युत आपूर्ति उपलब्ध करवाने के लिए नए विद्युत उपकेन्द्रों का नई एच.टी. एवं एल.टी. लाईनों सहित निर्माण व संवर्धन।
संचार व वितरण हानियों को कम करना।
नेरी खड्ड इंटेक कार्यों, राणा खड्ड इंटेक कार्यों, सर्ज शाफ्ट और भंडारण जलाशय के निर्माण के लिए पैकेज दिए गए हैं पुरा होना। पेनस्टॉक, सिविल कार्य और पावर हाउस का कार्य भी पूरा कर लिया गया है (मामूली विविध मदों को छोड़कर)। यह परियोजना एक बड़े क्षेत्र में फैली हुई है, जिसमें खराब संचार, कमजोर भूवैज्ञानिक संरचनाओं के माध्यम से सुरंग बनाना, बलुआ पत्थर, और हेड रेस टनल के इनलेट हेडिंग पर पानी के भारी प्रवेश के साथ मिट्टी के पत्थर। एचआरटी के अनुबंध दो बार रद्द किये जा चुके हैं ठेकेदार द्वारा धीमी प्रगति/गैर-प्रदर्शन के कारण शेष कार्य अक्टूबर, 2010 के दौरान आवंटित किए गए।
एचआरटी पैकेज का काम कई बाधाओं के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है, यानी भारी मात्रा में रिसाव वाले पानी का प्रवेश। पंचायत द्वारा एनओसी जारी करने से इनकार करने के कारण चूल्हा में पत्थर क्रशिंग प्लांट का संचालन न होना, प्रतिबंध नदी तल से खनन सामग्री के यांत्रिक संग्रह और निष्कर्षण पर क्योंकि मैन्युअल संग्रह का प्रावधान है खदान स्थलों की स्वीकृत कार्य प्रबंधन योजना में, इसके अलावा, खनन मंजूरी प्राप्त करने में लंबा समय लगा एच.पी. एमओईएफ, भारत सरकार और उसके बाद माननीय द्वारा जारी सरकारी अधिसूचना दिनांक 14 सितंबर, 2006 हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय ने अगस्त, 2012 के दौरान खदान पक्ष के संचालन पर रोक लगा दी है, जिससे पूरा होने में भी देरी हुई है एचआरटी का.
एचआरटी की खुदाई 25.03.2013 को पूरी हो गई है और कंक्रीट लाइनिंग का काम 05.12.2017 को पूरा हो गया है। अब एचआरटी का ग्राउटिंग और सफाई कार्य प्रगति पर है और फरवरी, 2018 के अंत तक पूरा होने वाला है। इसके बाद पानी भरने की गतिविधि शुरू की जाएगी जिसके लिए लगभग एक महीने की आवश्यकता है। प्रोजेक्ट है अप्रैल, 2018 के दौरान चालू होने का अनुमान है। दिसंबर 2012 में परियोजना की अनुमानित लागत `1,281.50 करोड़ है। 31.12.2017 को मूल्य स्तर और अद्यतन व्यय `1,438.52 करोड़ है। इलेक्ट्रो-मैकेनिकल और से संबंधित सभी कार्य ट्रांसमिशन अर्थात. चूल्हा से बस्सी तक 132 केवी सिंगल सर्किट ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण (15.288 किमी) और चुल्ला से हमीरपुर (34.307 किमी) तक 132 केवी डबल सर्किट ट्रांसमिशन लाइन पूरी हो गई है।
हि0प्र0 सरकार द्वारा नई परियोजनाओं के अंतर्गत साईकोठी-प् (15 मैगावाट), देवी कोठी (16 मैगावाट), साईकोठी -प्प् (16.50 मैगावाट), हेल राईसन (18 मैगावाट), राइसन (18 मैगावाट), बटसेरी (60 मैगावाट) और नई नोगली (9 मैगावाट) हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को कार्यान्वयन हेतु आबंटित की हंै इसके अतिरिक्त हिम ऊर्जा ने हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत निगम को स्वयं पहचान श्रेणी के अंतर्गत कार्यान्वयन हेतु 19.12.2016 को दो छोटी जल विद्युत परियोजनाएं, कुठाहर जल विद्युत परियोजना (4.5 मैगावाट) और टिक्कर जल विद्युत परियोजना (3.5 मैगावाट) आवंटित की है। ऊपर दर्शाई गई परियोजनाअ¨ं की भौतिक और वित्तीय स्थिति निम्न प्रकार से हैः-
साईकोठी-प् जल विद्युत परियोजना (15 मैगावाट): यह परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को हि0प्र0 सरकार द्वारा कार्यान्वयन/ निष्पादन के लिए आवंटित की गई हैं। इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करके तकनीकी-आर्थिक मंजूरी के लिए निदेशक ऊर्जा विभाग, हिमाचल प्रदेश को भेजी गयी है। इस परियोजना की पूर्व निर्माण चरण की गतिविधियां प्रगति पर हैं, गतिविधियों की स्थिति निम्नानुसार हैः
1) संबधित विभागों/ ग्राम पंचायत/ ग्राम सभाओं से अनापति प्रमाण पत्र (एन.ओ.सी.) प्राप्त कर लिए गए है।
2) राजस्व विभाग से राजस्व पत्रों का संग्रह प्रगति पर है।
3) इस परियोजना पर 30.09.2017 तक ृ876.94 लाख खर्च किये गये है और ृ607.95 लाख का प्रावधान 31.03.2018 तक की अवधि के लिए रखा गया है
साईकोठी चरण-प्प् जल विद्युत परियोजना (16.50 मैगावाट)ः यह परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को हि0प्र0 सरकार द्वारा कार्यान्वयन / निष्पादन के लिए आवंटित की गई है। इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई है और तकनीकी-आर्थिक मंजूरी निदेशक ऊर्जा विभाग, हिमाचल प्रदेश से ृ152.26 करोड़ प्राप्त कर लिए गए हैं। इस परियोजना की पूर्व निर्माण चरण की गतिविधियां प्रगति पर हैं, गतिविधियों की स्थिति निम्नानुसार है
1) संबधित विभागों/ ग्राम पंचायत/ ग्राम सभाओं से अनापति प्रमाण पत्र (एन.ओ.सी.) प्राप्त कर लिए गए हंै।
2) एमओईएफ (डवम्थ्) की वेबसाइट पर एफ.सी.ए. (थ्ब्।) केस अपलोड किया जा चुका है।
3) इस परियोजना पर 30.09.2017 तक ृ1,069.03 लाख खर्च किया गया है और ृ738.52 लाख का प्रावधान 31.03.2018 तक की अवधि के लिए रखा गया हैं।
देवीकोठी चरण-।। जल विद्युत परियोजना (16मैगावाट) : यह परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को हि0प्र0 सरकार द्वारा कार्यान्वयन/ निष्पादन के लिए आवंटित की गई है। इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार कर ली गई है और तकनीकी-आर्थिक मंजूरी निदेशक ऊर्जा विभाग, हिमाचल प्रदेश से दिनांक 19.03.2014 को प्राप्त कर ली गयी है। इस परियोजना की पूर्व निर्माण चरण की गतिविधियां प्रगति पर हैं, गतिविधियों की स्थिति निम्नानुसार हैंः
1) संबधित विभागों/ ग्राम पंचायत/ ग्राम सभाओं से अनापति प्रमाण पत्र (एन.ओ.सी.) और थ्त्। प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिए गए है।
2) वन मंजूरी के लिए प्रशासन, राजस्व और वन विभाग में सदस्यों की समिति की संयुक्त निरीक्षण के बाद एफ.सी.ए. मामले की ऑनलाइन अपलोडिंग शुरू की जानी है।
3) इस परियोजना पर 30.09.2017 तक ृ948.14 लाख खर्च किया गया है और ृ304.54 लाख का प्रावधान 31.03.2018 तक की अवधि के लिए रखा गया है।
हेल जल विद्युत परियोजना (18 मैगावाट)ः यह परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को हि0प्र0 सरकार द्वारा कार्यान्वयन/ निष्पादन के लिए आवंटित की गई थी। इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार कर ली गई है और तकनीकी-आर्थिक मंजूरी दिनांक 18.08.2015 को निदेशक ऊर्जा विभाग, हिमाचल प्रदेश से प्राप्त कर ली गयी है। इस परियोजना की पूर्व निर्माण चरण की गतिविधियां प्रगति पर हैं, गतिविधियों की स्थिति निम्नानुसार हैः
1) संबधित विभागों/ ग्राम पंचायत/ ग्राम सभाओं से अनापति प्रमाण पत्र (एन.ओ.सी.) प्राप्त कर लिए गए है।
2) एफ.आर.ए. के लिए राजस्व विभाग से राजस्व पत्रों का संग्रहण प्रगति पर है।
3)इस परियोजना पर 30.09.2017 तक ृ1,007.46 लाख खर्च किया गया है और ृ173.37 लाख का प्रावधान 31.03.2018 तक की अवधि के लिए रखा गया है। इन परियोजनाओं पर अब तक किया गया खर्च हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड के स्वयं के संसाधनों से जुटाए धन के साथ किया जा रहा है। हालाँकि ऋण प्राप्ति का मामला मैसर्स के0फ0डब्ल्यू0, जर्मनी के साथ भी वार्ता स्तर पर है। इन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए मै0 के0एफ0डब्ल्यू0 की आवश्यकता के अनुसार, इसके डी0पी0आर0 को अंतरराष्ट्रीय मानकों में अद्यतन किया जाना है, जिसके लिए परामर्शदाता नियुक्त किया जा रहा है। भविष्य में यदि आवश्यक हुआ, तो इन डी0पी0आर0 का संसोधन किया जाएगा और संशोधित तकनीकी-आर्थिक मंजूरी (टी0ई0सी0) प्राप्त प्राप्त की जाएगी।
राइसन जल विद्युत परियोजना (18 मैगावाट) : यह परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को हि0प्र0 सरकार द्वारा कार्यान्वयन / निष्पादन के लिए आवंटित की गई है। इस योजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का कार्य प्रगति पर है। इस परियोजना की पूर्व निर्माण चरण की गतिविधियां प्रगति पर हैं, जिसके तहत संबधित विभागों से अनापति प्रमाण पत्र (एन0ओ0सी0) संग्रहित किये जा रहे है। इस परियोजना पर 30.09.2017 तक ृ347.28 लाख खर्च किया गया है और ृ170.54 लाख का प्रावधान 31.03.2018 तक की अवधि के लिए रखा गया है। अब तक किया गया खर्च हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत निगम के स्वयं के संसाधनों से जुटाए धन के साथ और एम0एन0आर0ई0 (डछत्म्द्ध से प्राप्त अनुदान से किया जा रहा है, जब तक किसी वित्तीय संस्था से वित्तीय करार नहीं हो जाता।
टिक्कर जल विद्युत परियोजना : (3.5 मैगावाट)ः यह परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को हि0प्र0 सरकार द्वारा कार्यान्वयन/ निष्पादन के लिए आवंटित की गई थी। इस परियोजना की क्षमता अब 5 मैगावाट के लिए संशोधित की गई है और इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का कार्य प्रगति पर है। इस परियोजना की पूर्व निर्माण चरण की गतिविधियां प्रगति पर हैं, जिसके तहत संबधित विभागों से अनापति प्रमाण पत्र (एन0ओ0सी0) संग्रहित किये जा रहे हंै। इस परियोजना पर 31.12.2017 तक ृ0.85 लाख खर्च किया गया है और ृ22.46 लाख का प्रावधान 31.03.2018 तक की अवधि के लिए रखा गया है। अब तक किया गया खर्च हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड के स्वयं के संसाधनों से जुटाए धन के साथ और एमएनआरई (डछत्म्) से प्राप्त अनुदान से किया जा रहा है, जब तक किसी वित्तीय संस्था से वित्तीय करार नहीं हो जाता।
कुठाहर जल विद्युत परियोजना (4.5 मैगावाट): यह परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड को हि0प्र0 सरकार द्वारा कार्यान्वयन / निष्पादन के लिए आवंटित की गई थी। इस परियोजना की क्षमता अब 5 मेगावाट के लिए संशोधित की गई है और इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का कार्य प्रगति पर है। इस परियोजना की पूर्व निर्माण चरण की गतिविधियां प्रगति पर हैं, जिसके तहत संबधित विभागों से अनापति प्रमाण पत्र (एन0ओ0सी0) संग्रहित किये जा रहे है। इस परियोजना पर 31.12.2017 तक ृ0.85 लाख खर्च किया गया है और ृ11.92 लाख का प्रावधान 31.03.2018 तक की अवधि के लिए रखा गया है। अब तक किया गया खर्च हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड के स्वयं के संसाधनों से जुटाए धन के साथ और एम0एन0आर0इर्0 (डछत्म्) से प्राप्त अनुदान से किया जा रहा है, जब तक किसी वित्तीय संस्था से वित्तीय करार नहीं हो जाता।
नई नोगली जल विद्युत परियोजना (9 मैगावाट) : नई नोगली जल विद्युत परियोजना (9 मैगावाट) के उन्नयन के प्रस्ताव को हि0प्र0 सरकार ने मंजूरी दे दी है और इसके सर्वेक्षण व अन्वेषण कार्यो में डी0पी0आर0 तैयार करने पर व्यय करने के लिए ृ80.00 लाख आंवटित किए गए है जिसके बारे में मुख्य अभियंता, ऊर्जा निदेशालय हि0प्र0 सरकार द्वारा अवगत करवाया गया है। सर्वेक्षण एवं अन्वेषण कार्य प्रगति पर है। दिनांक 31.12.2017 तक ृ31.86 लाख व्यय किए गए हैं तथा 31.03.2018 तक और ृ40.70 लाख खर्च करना सम्भावित है।
साबड़ा कुड्डू जल विद्युत परियोजना (111 मै0वा0): साबड़ा कुड्डू जल विद्युत परियोजना (111 मै0वा0) रोहड़ू के समीप शिमला जिला में चलते पानी के पब्बर नदी पर विकसित की जा रही है। इस परियोजना के एच.आर.टी. पैकेज को छोड़ कर वित्त पोषण एशियन डेवलपमैंट बैंक द्वारा किया गया है। एच.आर.टी. पैकेज का वित पोषण पावर फाइनेंस कारपोरेशन, राज्य सरकार द्वारा इक्विटी योगदान में से किया जा रहा है। इस परियोजना से 385.78 मिलियन यूनिट ऊर्जा उत्पन्न होगी। इस परियोजना की निर्धारित शुरूआत तिथि मई,2019 है।
एकीकृत कशांग जल विद्युत परियोजना (243 मै0वा0) : एकीकृत कशांग जल विद्युत परियोजना कशांग और कैरांग नालों (जोकि सतलुज नदी की उपनदियां) हैं पर निम्न चार अवस्थाओं में बनाया जा रहा हैः-
1) चरण-प् (65 मै0वा0) : प्रथम चरण में कुशांग नाले का पानी मोड़कर कुल 830 मी0 ऊंचाई का उपयोग करके सतलुज नदी के दाहिने किनारे पुवारी गांव में भूमिगत विद्युतगृह में प्रति वर्ष 245.80 मिलियन यूनिट ृ2.92 प्रति यूनिट दर पर उत्पादन किया जाएगा। इस परियोजना की कमिशनिंग से 26.01.2018 तक 244.80 मिलियन यूनिट का उत्पादन किया जा चुका है।
2) चरण-प्प् एवं प्प्प् (130 MW): प्रथम चरण की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए केरांग धारा का पथांतरण कर भूमिगत जल परिचालक तंत्र द्वारा प्रथम चरण की ऊपरी धारा में सम्मिलित कर प्रथम चरण की उपलब्ध 820 मीटर ऊंचाई का उपयोग करके प्रति वर्ष 790.93 मिलियन यूनिट उत्पादन किया जाएगा।
सैंज जल विद्युत परियोजना (100 मै0वा0) : sainj विकास कुल्लू जिला में सैंज नदी के चलते पानी पर किया जा रहा है, जोकि ब्यास नदी की सहायक नदी है। इस परियोजना में बांध के पानी को मोड़कर जो सैंज नदी पर निहारनी गांव के समीप है कुल 409.60 मी0 ऊंचाई का उपयोग करके सैंज नदी के दाहिने किनारे पर सूंढ गांव के नजदीक भूमिगत विद्युतगृह में प्रति वर्ष 322.23 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाएगा। इस परियोजना का ई0जी0सी0 विधि द्वारा कार्यान्वयन किया गया है। यह परियोजना 04.09.2017 के बाद से वाणिज्यक संचालन के अधीन है। इस परियोजना की कमिशनिंग से 26.01.2018 तक 178.4 मिलियन यूनिट का उत्पादन किया जा चुका है।
शोंगटोंग करचम एचईपी (450 मेगावाट): शोंगटोंग करचम हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट एक रन-ऑफ - हिमाचल प्रदेश के जिला किन्नौर में सतलज नदी पर गांव के पास डायवर्जन बैराज के साथ नदी योजना पोवारी, और रल्ली गांव के पास सतलुज नदी के बाएं किनारे पर स्थित भूमिगत बिजली घर उत्पन्न करेगा प्रति वर्ष 1,579 एमयू उत्पन्न करने के लिए 129 मीटर का सकल हेड। परियोजना का निर्माण ईपीसी मोड के माध्यम से किया जा रहा है। सभी मोर्चों पर प्रोजेक्ट का कार्य प्रगति पर है. परियोजना की निर्धारित कमीशनिंग तिथि मार्च, 2021 है।
सुरगनी सुंडला (48 मेगावाट): इस योजना की परिकल्पना बैरसुइल एचईपी के टेल वॉटर का उपयोग करने के लिए की गई है 48 मेगावाट बिजली का उत्पादन। ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार ने परियोजना वित्त पोषण के लिए मामले को डीईए, एमओएफ को भेज दिया है और भारत सरकार बहुपक्षीय संस्थानों यानी विश्व बैंक, केएफडब्ल्यू, एडीबी, एएफडी, जेआईसीए आदि के साथ वित्तीय गठजोड़ के लिए।
थाना प्लाउन एचईपी (191 मेगावाट) इस परियोजना को स्टोरेज-कम-रन-ऑफ रिवर योजना के रूप में माना जाता है रोलर कॉम्पेक्टेड की परिकल्पना हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में ब्यास नदी पर 107 मीटर ऊंचा कंक्रीट (आरसीसी) ग्रेविटी बांध। वार्षिक विद्युत उत्पादन एक वर्ष में 668.07 मिलियन यूनिट होगी।
रेणुका जी बांध एचईपी (40 मेगावाट) रेणुकाजी बांध परियोजना, पेयजल आपूर्ति योजना के रूप में बनाई गई है राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र, सिरमौर जिले के ददाहू में गिरि नदी पर 148 मीटर ऊंचे रॉक फिल बांध के निर्माण की परिकल्पना करता है और बांध के तल पर एक बिजली घर। यह परियोजना अपने जलाशय में 49,800 हेक्टेयर मीटर जीवित जल भंडारण और एक ठोस जल सुनिश्चित करेगी विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के उपयोग के लिए प्रति वर्ष 199.99 एमयू उत्पादन करने के अलावा दिल्ली को 23 क्यूसेक की आपूर्ति। भूमि अधिग्रहण के संबंध में राज्य सरकार को `446.96 करोड़ की राशि जारी की गई है रेणुकाजी बांध परियोजना का. भूमि अधिग्रहण कलेक्टर, एचपीपीसीएल द्वारा भूमि मालिकों को `240.69 करोड़ की राशि वितरित की गई है अक्टूबर, 2017 तक। परियोजना को सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और बहुउद्देश्यीय सलाहकार समिति के विचार के लिए रखा गया था। परियोजनाएं। विचार-विमर्श के बाद सलाहकार समिति ने परियोजना प्रस्ताव को कुछ शर्तों के अधीन स्वीकार कर लिया। शर्तें हैं चरण-II वन मंजूरी को छोड़कर उन्नत चरण और अनुपालन में, जिसके लिए HPPCL द्वारा CAMPA खाते में `458.00 करोड़ जमा करने की आवश्यकता है।
देवथल चांजू एचईपी (30 मेगावाट) देवथल चांजू एचईपी (30 मेगावाट) देवथल पर एक रन ऑफ रिवर योजना है नाला, चांजू नाले की एक सहायक नदी है बैरा नदी की सहायक नदी जो हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में रावी नदी में गिरती है। वार्षिक बिजली उत्पादन लगभग 101.35 एमयू होगा।
चांजू-III एचईपी (48 मेगावाट) चांजू-III एचईपी एक रन-ऑफ-रिवर योजना है चांजू नाला, जो बैरा नदी की एक सहायक नदी है टर्न हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में रावी बेसिन में सिउल नदी की एक सहायक नदी है। वार्षिक विद्युत उत्पादन लगभग होगा 176.19 म्यू. एएफडी (एजेंसी फ्रैंचाइज़ डे डेवलपमेंट) इस संबंध में परियोजना और क्रेडिट सुविधा समझौते को वित्तपोषित करने के लिए सहमत हो गया है। 04.07.2017 को भारत सरकार और एएफडी के बीच हस्ताक्षरित। परियोजना समझौते पर हस्ताक्षर की प्रक्रिया चल रही है।
सौर परियोजनाएं एचपीपीसीएल दो सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का इरादा रखता है; जिला बिलासपुर में श्री नैना देवी जी तीर्थस्थल के पास, बेर्रा डोल में 5 मेगावाट और जिले के अघलोर में 10 मेगावाट। ऊना। श्री नैना देवी जी तीर्थस्थल, जिला बिलासपुर (हि.प्र.) के निकट ग्राम बेर्रा-डोल में एक स्थल की पहचान की गई है। 5 मेगावाट सौर फोटोवोल्टिक संयंत्र की स्थापना के लिए। बेर्रा डोल योजना के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट एचपीपीसीएल द्वारा तैयार की गई है। बेर्रा डोल परियोजना से एक वर्ष में 8.39 एमयू ऊर्जा उत्पन्न होगी। यह परियोजना मेसर्स भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) को सौंपी गई है।
विद्युत विकास के अन्य क्षेत्र एच.पी. पावर कॉर्पोरेशन हाइड्रो पावर डेवलपमेंट के अलावा अपनी बिजली में विविधता लाने का इरादा रखता है बढ़ती ऊर्जा माँगों को पूरा करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा जैसे ऊर्जा के अन्य नवीकरणीय स्रोतों में विकास गतिविधियाँ राज्य और भारतीय राष्ट्र का विकास।
हिमाचल प्रदेश पाॅवर ट्रांसमिशन काॅरपोरेशन लिमिटिड जो कि हिमाचल प्रदेश सरकार का एक सरकारी उपक्रम है। इसका उद्देश्य प्रदेश के विद्युत संचार प्रणाली को मजबूत करने तथा भविष्य में बनने वाली जल विद्युत परियोजनाओं को विद्युत संचार की सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया। हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा निगम को सौंपे गए कार्यों में मुख्यतः प्रदेश में बनने वाली सभी नई 66 के0वी0 की क्षमता से ऊपर की लाईनों व विद्युत उपकेन्द्रों के निर्माण करने के साथ-2 विद्युत वोल्टेज में सुधार, वर्तमान संचार ढंाचे में सम्बर्धन व मजबूती प्रदान करने तथा विद्युत उत्पादन केन्द्रों व संचार लाईनों का निर्माण करते हुए प्रदेश के मास्टर संचार प्लान को लागू करना सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त निगम को राज्य में ट्रांसमिशन यूटीलिटी का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है जिसके अन्तर्गत संचार व सम्नवय से जुड़े सभी मुद्दों पर सैन्ट्रल ट्रांसमिशन यूटीलिटी, केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण, केन्द्रीय व राज्य के ऊर्जा मंत्रालयों तथा हि0प्र0 राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड से समन्वय रखने के अतिरिक्त निगम को यह जिम्मेदारी भी सौंपी गई है कि आई0पी0सी0सी0पी0एस0यू0 राज्य के सार्वजनिक उपक्रम हि0प्र0 पाॅवर कारपोरेशन लिमिटिड व अन्य केन्द्र व राज्य क्षेत्र के विद्युत उत्पादक इकाईयों के लिए संचार व सम्नवय से जुड़ी योजना बनाना भी सम्मिलित है। संचार प्रणाली की योजना बनाते समय विश्वसनियता, सुरक्षा, पर्यावरण हितैषी तथा आर्थिकी के साथ-साथ प्रदेश की जनता की स्वच्छ, सुरक्षित व स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण की उम्मीदों को भी प्राथमिकता के आधार पर ध्यान में रखा जा रहा है। चाह वो परियोजनाओं से लाभान्वित या प्रभावित हो रही है। भारत सरकार द्वारा हि.प्र. ऊर्जा संचार निगम को 350 मिलियन डाॅलर का ऋण एशियन विकास बैंक के माध्यम से स्वीकृत किया गया है जिसका उपयोग विद्युत मास्टर प्लान के अंतर्गत सभी प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए होगा। जिसमें से प्रथम चरण परियोजना ट्रांसमिशन जिला किन्नौर (सतलुज बेसिन) और (शिमला पव्वर वेसिन) के कार्य के लिए 113 मिलियन डाॅलर के ऋण का समझौता हस्ताक्षरित हो चुका है तथा जनवरी,2012 से प्रभावी हो गया है इसके अन्तर्गत निम्न संचार परियोजनाएं क्रियान्वित हुई हैं।
1) जिला किन्नौर के वांगटू में 400/220/66 केवी, 2x315 एमवीए सबस्टेशन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `310.00 करोड़ है और इसे दिसंबर, 2018 में चालू किया जाएगा।
2) जिला शिमला के प्रगति नगर (कोटखाई) में 400/220/66 केवी, 2x315 एमवीए सबस्टेशन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `144.00 करोड़ है। इसे मार्च, 2018 में चालू किया जाएगा।
3) 220 केवी, जिला शिमला में हाटकोटी से प्रगति नगर तक ट्रांसमिशन लाइन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `62.00 करोड़ है और इसे मार्च, 2018 में चालू किया जाएगा।
4) पंडोह में 33/132 केवी 31.5 एमवीए जीआईएस सबस्टेशन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `37.00 करोड़ है। इसे मार्च, 2018 में चालू किया जाएगा।
5) चंबी (शाहपुर) में 33/132 केवी 2x25/31.5 एमवीए जीआईएस सब-स्टेशन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `45.00 करोड़ है। इसे जून, 2019 में चालू किया जाएगा। निम्नलिखित ट्रांसमिशन परियोजनाओं को घरेलू उधार के माध्यम से वित्त पोषित किया गया है।
6) चंबा जिले के करियां में 33/220 केवी, 63 एमवीए सब-स्टेशन 2015 में चालू किया गया है और करियां से चेमारा तक लाइन का काम प्रगति पर है।
सितंबर, 2014 में एडीबी ऋण की 110 मिलियन डॉलर की किश्त-II पर हस्ताक्षर किए गए हैं। निम्नलिखित सात परियोजनाओं को सम्मानित किया गया है:-
1) 66 केवी जीआईएस स्विचिंग सब-स्टेशन उरनी। परियोजना के लिए आवंटित राशि `28.00 करोड़ है और इसे चालू कर दिया जाएगा दिसंबर, 2018 में.
2) 400/220/33 केवी जीआईएस सब-स्टेशन लाहल। परियोजना के लिए आवंटित राशि `233.00 करोड़ है और इसे जून, 2018 में चालू किया जाएगा।
3) चरोर से बनाला तक 220 केवी लाइन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `47.00 करोड़ है और इसे दिसंबर, 2019 में चालू किया जाएगा।
4) लाहौल से बुधिल तक 220 केवी डी/सी लाइन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `5.00 करोड़ है और इसे जून, 2018 में चालू किया जाएगा।
5) चंबी सब-स्टेशन से 132 केवी कांगड़ा देहरा लाइन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `18.00 करोड़ है और इसे जून, 2019 में चालू किया जाएगा।
6) उरनी से वांगटू सब-स्टेशन तक 66 केवी डी/सी लाइन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `14.00 करोड़ है और इसे दिसंबर, 2018 में चालू किया जाएगा।
7) सुंडा से हाटकोटी तक 220 केवी डी/सी लाइन। परियोजना के लिए आवंटित राशि `56.00 करोड़ है और इसे मार्च, 2020 में चालू किया जाएगा।
हिमऊर्जा ने अक्षय ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने हेतु भरसक प्रयास किए हैं। यह कार्यक्रम प्रदेश में भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय तथा राज्य सरकार की वित्तीय सहायता से कार्यान्वित किया गया है। ऊर्जा कार्यकुशल तथा अपारम्परिक ऊर्जा साधनों जैसे सौर जल तापीय संयंत्र, सौर कुक्कर, सौर प्रकाशवोल्टिय प्रणालियां इत्यादि को लोकप्रिय बनाने हेतु प्रयास जारी हैं। हिमऊर्जा सरकार को राज्य में लघु जल विद्युत ;5 मैगावाट तकद्ध के तीव्र दोहन हेतु भी सहायता प्रदान कर रही है। वर्ष 2017-18 के दौरान उपलब्धियां (दिसम्बर, 2017) तक तथा मार्च, 2018 तक प्रत्याशित तथा वर्ष 2018-19 के लिए निर्धारित लक्ष्य का ब्यौरा निम्न हैः-
1. सौर उष्णता संबन्धी कार्यक्रम :
i)सौर जल तापीय संयंत्रः वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2017 तक 3,500 लीटर प्रतिदिन क्षमता के सौर जल-तापीय संयंत्र स्थापित किए गए हैं तथा मार्च, 2018 तक प्रत्याशित उपलब्धि 8,000 लीटर प्रतिदिन होगी। वर्ष 2018-19 के लिए 10,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता के सौर जल-तापीय संयत्रो की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
ii) सौर कुक्करः वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2017 तक 41 वाक्स टाईप तथा 5 डिशटाईप सौर कुक्कर राष्ट्रीय सौर मिशन के अन्तर्गत आवंटित किए गए हैं तथा मार्च, 2018 तक प्रत्याशित 80 वाक्स टाईप तथा 15 डिश टाईप सौर कुक्कर आवंटित होेंगें। वर्ष 2018-19 के लिए 250 वाक्स टाईप तथा 50 डिश टाईप सौर कुक़्कर आवंटन का लक्ष्य भारत सरकार के नवीन और नवीनकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के कार्यक्रम के अन्तर्गत रखा गया है।
iii)सी.एस.टी. सौर स्टीम कुकिंग सिस्टमः - वर्तमान विŸाीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2017 तक 96 वर्गमीटर कलैक्टर एरिया के सौर स्टीम कुकिंग सिस्टम राष्ट्रीय सौर मिशन के अन्तर्गत स्थापित किए गए हैं तथा मार्च, 2018 तक प्रत्याशित उपलब्धि 200 वर्ग मीटर होगी। वर्ष 2018-19 के लिए 150 वर्ग मीटर कलैक्टर एरिया के सौर मानक कुकिंग सिस्टम भारत सरकार के नवीन और नवीनकरणीय उर्जा मन्त्रालय के कार्यक्रम के अन्तर्गत स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।
2. सौर प्रकाशवोल्टिय कार्यक्रम :
i) सौर प्रकाशवोल्टिय गली रोेषनियांः वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक 14,216 सौर प्रकाशवोल्टिय गली रोशनियां सामूहिक प्रयोग के लिए भारत सरकार के नवीन और नवीरकरणीय ऊर्जा मंत्र्रालय के कार्यक्रम तथा अन्य के अन्तर्गत स्थापित की जा चुकी हैं, मार्च, 2017 तक की प्रत्याशित उपलब्धि 15,000 होगी। वर्ष 2017-18 के लिए 10,000 सौर प्रकाशवाॅल्टिय गली रोशनियों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
ii) सौर प्रकाषावोल्टिय घरेलू रोषनियां : वर्तमान विŸाीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2017 तक 481 सौर प्रकाशवोल्टिय घरेलू रोशनियां राष्ट्रीय सौर मिशन के अन्तर्गत वितरित किए जा चुकी हैं तथा मार्च, 2018 तक प्रत्याशित उपलब्धि 750 होगी। वर्ष 2018-19 के लिए 1,000 सौर प्रकाशवोल्टिय घरेलू रोशनियां उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है।
सौर प्रकाशवोल्टिय लालटेनः वर्तमान विŸाीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2018 तक 11,191 सौर प्रकाशवोल्टिीय लालटेन पूर्ण मूल्य पर उपलब्ध करवाई गई हंै तथा मार्च, 2018 तक प्रत्याशित उपलब्धि 13,000 होगी। वर्ष 2018-19 के लिए 5,000 सौर प्रकाशवोल्टिय लालटेन उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है।
iv) सौर प्रकाशवोल्टिय लालटेनः
a) वर्तमान विŸाीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2018 तक 11,191 सौर प्रकाशवोल्टिीय लालटेन पूर्ण मूल्य पर उपलब्ध करवाई गई हंै तथा मार्च, 2018 तक प्रत्याशित उपलब्धि 13,000 होगी। वर्ष 2018-19 के लिए 5,000 सौर प्रकाशवोल्टिय लालटेन उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है।
बी) सौर ऊर्जा संयंत्र/परियोजनायेः मार्च, 2018 तक अनुमानित उपलब्धि लगभग होगी 4 मेगावाट. वर्ष 2018-19 के लिए 15 मेगावाट क्षमता की सौर ऊर्जा परियोजनाओं का लक्ष्य प्रस्तावित किया गया है।
सी) ग्रिड-कनेक्टेड सोलर रूफ टॉप पावर प्लांट: मार्च, 2018 तक अनुमानित उपलब्धियां होंगी लगभग 450 किलोवाट. वर्ष 2018-19 के लिए 2,000 किलोवाट क्षमता के एसपीवी विद्युत संयंत्रों का लक्ष्य प्रस्तावित किया गया है।
घ) निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से निष्पादित की जा रही 5 मेगावाट क्षमता तक की छोटी जल विद्युत परियोजनाएं: चालू वित्तीय वर्ष के दौरान, दिसंबर, 2017 तक कुल 19.20 मेगावाट क्षमता वाली 5 परियोजनाएं चालू हो चुकी हैं, ऐसा अनुमान है मार्च, 2018 तक उपलब्धि 34.10 मेगावाट की लगभग 10 परियोजनाएं होंगी। वित्तीय वर्ष 2018-19 हेतु 30.00 मेगावाट क्षमता वृद्धि निशाना बनाया गया है. 5 मेगावाट क्षमता तक आवंटित परियोजनाओं की अद्यतन स्थिति (31.12.2017 तक) इस प्रकार है।

e)हिमऊर्जा एमएचईपी द्वारा क्रियान्वित की जा रही जल विद्युत परियोजनाएं: हिमऊर्जा लिंगती (400 किलोवाट), कोठी (200 किलोवाट), जुथेड (100 किलोवाट), पुर्थी (100 किलोवाट), सुराल (100 किलोवाट), घरोला में माइक्रो हाइडल परियोजनाओं का संचालन कर रही है। (100 किलोवाट), सैच (900 किलोवाट) तथा बिलिंग (400 किलोवाट) जो उत्पादनाधीन हैं। चालू वर्ष के दौरान दिसंबर, 2017 तक इन परियोजनाओं से 25.45 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया गया है। अन्य परियोजनाएं, अर्थात् बड़ा भंगाल (40 किलोवाट) और सराहन (30 किलोवाट) भी हिमऊर्जा द्वारा निष्पादित की गई हैं। बड़ा भंगाल परियोजना से स्थानीय जनता को ऊर्जा उपलब्ध करायी जा रही है। राज्य सरकार ने 18 परियोजनाएं आवंटित की हैं हिमऊर्जा की कुल क्षमता 36.87 मेगावाट है। इनमें से 10 परियोजनाएं 2.37 मेगावाट क्षमता की हैं चालू होने के बाद, हिमऊर्जा द्वारा बीओटी आधार पर सरकार की मंजूरी के साथ 14.50 मेगावाट क्षमता की 3 एचईपी आवंटित की गई हैं। मैसर्स साई इंजीनियरिग फाउंडेशन, शिमला। इन परियोजनाओं के लिए विभिन्न मंजूरी प्राप्त करने की आगे की प्रक्रिया जारी है। 20 मेगावाट क्षमता की शेष 5 एचईपी के लिए बीओटी आधार पर परियोजनाओं के आवंटन के लिए निविदा प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
एफ) बजट प्रावधान: वार्षिक योजना/गैर-योजना के तहत 2017-18 के दौरान व्यय आईआरईपी और एनआरएसई के तहत लगभग `3.53 करोड़ होगा। कार्यान्वयन सहित नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए बजटीय वार्षिक योजना परिव्यय के आधार पर योजनाएं राज्य में लघु जलविद्युत कार्यक्रमों के लिए 2018-19 के लिए वार्षिक योजना/गैर योजना के तहत `3.10 करोड़ का परिव्यय प्रस्तावित किया गया है।

14.परिवहन एवम् संचार

सडकें अर्थव्यवस्था के आधारभूत ढांचे के लिए आवश्यक घटक हैं। जल मार्ग तथा रेलवे जैसे संचार के विशेष व अनुकूल साधन न के बराबर होने के कारण सड़कें ही हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हिमाचल प्रदेश में न के बराबर सड़कों से आरम्भ करके प्रदेश सरकार ने दिसम्बर, 2017 तक 37,158 कि0मी0 वाहन चलने योग्य सड़कें (जिसमें जीप योग्य एवम् ट्रैक भी सम्मिलित हैं) का निर्माण कर लिया है। प्रदेश सरकार सड़कों के विकास को अत्यधिक प्राथमिकता दे रही है। वर्ष 2017-18 के लिए इस हेतु ृ971.00 करोड़ का प्रावधान अनुमोदित किया गया। वर्ष 2017-18 का लक्ष्य एवं दिसम्बर, 2017 तक की उपलब्धियों का ब्यौरा सारणी संख्या 14.1 में दर्शाया गया हैः-

हिमाचल प्रदेश में 31.12.2017 तक 10,241 गांव सड़कों से जोडे़ गये जिनका ब्यौरा सारणी संख्या 14.2 में दिया जा रहा हैः-
हिमाचल प्रदेश में 2,017 कि0मी0 लम्बे राज्य उच्च मार्ग जिसमें शहरी लिंक रोडज तथा बाई पास सम्मिलित हैं, इन सभी के सुधार के कार्य इस वर्ष भी जारी रहे। दिसम्बर, 2017 तक ृ197.00 करोड़ खर्च किये गये।
प्रदेश में केवल दो छोटी लाईने शिमला-कालका ;96 किलोमीटरद्ध और जोगिन्द्रनगर- पठानकोट ;113 किलोमीटरद्ध तथा नंगल डैम-चरूडू़ ;33 किलोमीटरद्ध बड़ी लाईन है जो कि ऊना जिला में हैं।
पथ परिवहन राज्य में आर्थिक कार्यकलाप हेतु यातायात का एक मुख्य साधन है क्यांेकि अन्य परिवहन सेवाएं जैसे रेलवे, वायु सेवा, टैक्सी, आॅटो रिक्शा इत्यादि नगण्य के बराबर है। इसीलिए पथ परिवहन को प्रदेश में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिमाचल पथ परिवहन निगम लोगों को राज्य में तथा राज्य के बाहर 3,254 बसों द्वारा यात्री परिवहन सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा है तथा प्रतिदिन 6.14 लाख किलोमीटर (लगभग) दूरी के साथ 2,693 रूटों (30.11.2017 तक) पर बस सेवाएं चलाई जा रही हंै। लोगों की सुविधा के लिए निम्नलिखित योजनाएं इस वर्ष भी लागू रहीं।
i) ग्रीन कार्ड योजनाः: ग्रीन कार्ड धारकों को किराये में 50 कि0मी0 की दूरी के भीतर 25 प्रतिशत तक छूट प्रदान की गई है। इस कार्ड की वैधता दो वर्ष तक है तथा कार्ड की कीमत ृ50 है।
ii) सिलवर कार्ड योजना : निगम द्वारा सिलवर कार्ड योजना आरम्भ की गई है। इस कार्ड की कीमत ृ20 है व वैधता दो वर्ष है, यह कार्ड दूसरे राज्यों में भी निगम की बसों में 18 कि0मी0 तक यात्रा करने पर मान्य है व किराये में इस कार्ड पर 30 प्रतिशत छूट दी जाती है।
iii) वरिष्ठ नागरिकों को सम्मान कार्ड योजना : निगम द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को सम्मान कार्ड की सुविधा आरम्भ की गई है जिसके तहत 60 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके वरिष्ठ नागरिक को निगम की साधारण बसों में किराये में 30 प्रतिशत की छूट दी गई है।
iv) महिलाओं को निःशुल्क यात्रा सुविधा : महिलाओं को रक्षा बन्धन तथा भैया दूज के अवसर पर निगम की साधारण बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है। मुस्लिम महिलाओं को ईद तथा बकरीद के अवसर पर निगम की साधारण बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है।
v) महिलाओं को किराये में छूट : निगम द्वारा साधारण बसों में राज्य के भीतर यात्रा करने पर महिलाओं को किराये में 25 प्रतिशत की छूट दी जा रही है।
vi) सरकारी स्कूलों के छात्रों को निःषुल्क यात्रा सुविधा : सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ़2 कक्षा तक के छात्रों को हिमाचल परिवहन निगम की साधारण बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा दी जाती है।
vii)गम्भीर रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को निःषुल्क यात्रा सुविधा : निगम द्वारा कैंसर, रीड की हड्डी व किडनी डायलिसिस ग्रस्त मरीजों को एक अनुचर सहित निगम की साधारण बसों में इलाज के लिए चिकित्सक द्वारा जारी की गई पर्ची के आधार पर राज्य व राज्य के बाहर निःशुल्क यात्रा सुविधा दी जाती है।
viii) दिव्यांग व्यक्तियों को निःषुल्क यात्रा सुविधा : निगम द्वारा 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग व्यक्तियों को एक अनुचर सहित निगम की साधारण बसों में प्रदेश के भीतर निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है।
ix) शौर्य आवार्ड विजेताओं को निःषुल्क यात्रा सुविधा : शौर्य आवार्ड विजेताओं को हिमाचल प्रदेश राज्य के भीतर निगम की साधारण बसों के अतिरिक्त डीलक्स बसों में भी निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है।
x) नई बसों की खरीद : लोगों को सुरक्षित तथा आरामदायक बस सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए निगम के बेड़े में 325 नई बसें जोड़ी है।
xi) लग्जरी बसें : निगम बैटलिजिंग आधार पर 94 सुपर लग्जरी बसें (वोल्बो/ सकेनियां) और 28 लग्जरी वातानुकुलित बसें अन्तर्राज्जीय मार्गों पर यात्रियों की सुविधा हेतु चलाई जा रही है।
xii) 24ग्7 हैल्पलाईन : निगम व निजी बसों के यात्रियों की शिकायतों व समस्याओं के सामाधान के लिए 24ग्7 हेल्पलाईन सेवा 94180-00529 व 0177-2657326 शुरू की है।
xiii) प्रतिबन्धित मार्गो पर टैक्सियांः शिमला शहर में लोगों की सुविधा हेतु टैक्सियां शहर के प्रतिबन्धित मार्गों पर निगम द्वारा चलाई जा रही है।
xiv)टैम्पो ट्रैवलर मुख्य पर्यटक स्थलों के लिए : निगम द्वारा 7 टैम्पो ट्रैवलर मुख्य पर्यटक स्थलों के लिए वैट लिजिंग आधार पर राज्य के भीतर पर्यटकों व आम यात्रियों की सुविधा हेतु चलाये गये हैं।
हिमाचल प्रदेश में रेल, हवाई व वाहन जल सेवाएं नाम मात्र है। इसलिए राज्य अधिकतर सड़क सेवाओं पर निर्भर है। हिमाचल प्रदेश परिवहन विभाग का कार्य विभिन्न नियमों/अधिनियमों को क्रियान्वित करना है इसमें मुख्य रूप से केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम है। दिनांक 31.12.2017 तक प्रदेश में कुल 14,62,080 गाड़ियंा है जिनमें से 2,78,980 वाणिज्यक वाहन है और 11,83,100 निजी वाहन है। कुल वाहनों का जिलावार ब्योरा सारणी संख्या 14.3 में दर्शाया गया है।
चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान ृ50.01 करोड़ हिमाचल पथ परिवहन निगम को पुरानी बसों के स्थान पर नई बसों की खरीद को दिया गया। इसके अतिरिक्त इस वित्त वर्ष के दौरान ृ37.50 करोड़ बस अड्डांे के निर्माण हेतु दिया गया। वर्ष 2017-18 के दौरान दिनांक 31.12.2017 तक कुल 30,072 वाहनों के विभिन्न अपराधों के अंतर्गत् चालान पेश किये गए जिनमें से ृ566.52 लाख की राशि प्राप्त की गई।
वर्ष 2017-18 के अंतर्गत विभाग की महत्वूपर्ण उपलब्धियों तथा प्रमुख नीतिगत कार्य योजनाओं का विवरण निम्नलिखित हैः-
i) सूचना प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप : परिवहन विभाग ने वेब आधारित साॅफटवेयर जैसे लाइसेंस के लिए सारथी तथा वाहन पंजीकरण, कर संग्रह और सभी पंजीकरण एवं लाइसेंससिंग प्राधिकरण में परमिट जारी करने के लिए वाहन साॅफटवेयर लागू किये है। जिसमें आवेदक ड्राइंविग लाइसेन्स और वाहन सम्बन्धी सेवाओं के लिए आॅनलाइन आवेदन कर सकते है। इन सभी सेवाओं में आवेदक साइबर ट्रेजरी के माघ्यम से आॅनलाइन शुल्क/कर जमा कर सकते है। परिवहन विभाग द्वारा प्रदेश में परिवहन साॅफटवेयर के माध्यम से ई-भुगतान सुविधा की व्यवस्था की गई है जिसमें वाहनों से जुडे विभिन्न शुल्क/करों और ड्राइंविग लाइसेन्स के शुल्क किसी भी समय अदा करने की सुविधा 24ग्7 के आधार पर प्रदान की गई है, ताकि आम जनता को कार्यालय में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पडे़।
ii) निरीक्षण एवं प्रमाणिकता केन्द : राज्य में वाहनों के निरीक्षण और प्रमाणन में सुधार के लिए सड़क एवं राज मार्ग मंत्रालय भारत सरकार ने ृ14.40 करोड की लागत से जिला सोलन के बददी में निरीक्षण एवं प्रमाणिकता केन्द्र को मंजूरी दी गई है जिसके लिए 63.03 बीघा भूमि को परिवहन विभाग के नाम स्थानांतरित कर दिया गया है। मंत्रालय द्वारा ईन्टरनेशनल सैंटर फोर आॅटोमेटिव टैक्नोलाजी (आई0सी0ए0टी0) मुख्यालय को इस कार्य के लिये कार्यकारी ऐजैन्सी के रुप मे नियुक्त किया गया है। डध्े काॅम्प्रीहैन्सिव आरकीटैक्चरल सर्विस नाऐडा को वास्तुकार के रूप में और डध्े सिटी डाईलाॅग डी0-513 जलवायू टाॅवर सैक्टर 47 को भूमि सर्वेक्षण हेतु नियुक्त किया गया है। उपरोक्त की सफलता के आधार पर राज्य सरकार द्वारा भविष्य मे भी अन्य ऐसे निरीक्षण एवं प्रमाणिकता केन्द्रों की स्थापना की जाऐगी।
iii) परिवहन नगर का सृजन : वर्तमान मंें अधिकतर परिवहन कार्यशालाएं सडकांे के किनारे पर स्थापित है, जहां पर भारी संख्या में वाहनों को ठीक करने का कार्य किया जाता है, जो कि न केवल सड़क के किनारे भीड़ पैदा करती है बल्कि जनता के रोष व दुर्घटना का कारण भी बनती है। विभाग की योजना के अनुसार इन कार्यशालाओं को सड़क से दूर ऐसी जगह जहां पर बहुसुविधा पार्किंग, बैठने व खाने का स्थान, शौचालय, मनोरंजन केन्द्र और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाकर प्रदेश के सभी जिलों में परिवहन नगर की स्थापना करना है। चालू वित्त वर्ष में परिवहन नगरों की आधारभूत सरंचना तैयार करने के लिए ृ8.00 करोड़ का प्रावधान हैै।
iv) पर्यावरणीय सुरक्षा : प्रदेश में वाहन ही पर्यावण प्रदूषण फैलाने का मुख्य स्त्रोत है। प्रदूषणयुक्त वाहनों को धीरे-धीरे सही प्रौद्यौगिकी की मदद से पहचान कर उनके स्थान पर उचित तकनीक वाले बिना प्रदूषण युक्त वाहन भारत स्टेज-प्ट-ट को लाकर हटाया जाना है। विभाग द्वारा प्रदूषित गाड़ियों के निरीक्षण हेतु वशिष्ठ, मनाली में प्रदूषण निरीक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है।
v) जल परिवहन : विभाग द्वारा जल परिवहन के क्षेत्र में प्रगति लाने हेतु गोबिन्द सागर झील (बिलासपुर) चमेरा डैम (चम्बा) कोल डेम (शिमला, बिलासपुर व मण्डी) जलाश्यों में यात्री परिवहन व माल ढुलाई कार्य किया जा रहा है। इस हेतु भारत सरकार ने सर्वेक्षण एवं संभावना का कार्य म्.डमतपजपउम ब्वदेनसजंदबल च्अजण् स्जकण्ए डनउइंप कोपरोजेक्ट रिपोर्ट को सौंपा गया है। जो कि इसी वित्त वर्ष में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
vi) चालक प्रशिक्षण संस्थान व प्रदूषण निरीक्षण केन्द्र : वर्तमान में राज्य में 10 सरकारी, 11 हिमाचल राज्य पथ परिवहन निगम तथा 190 निजी चालक प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत है तथा 5 सरकारी और 88 निजी प्रदूषण निरीक्षण केन्द्र प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर कार्य कर रहें है।

15.पर्यटन और नागरिक उड्डयन

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन को राज्य के आर्थिक विकास हेतु सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पहचान बनी है। क्योंकि पर्यटन को भविष्य में आथर््िाक विकास के प्रमुख स्रोत के रूप मंें देखा जा रहा है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद(एस.जी.डी.पी.) में पर्यटन क्षेत्र का योगदान लगभग 6.6 फीसदी है जोकि काफी महत्वपूर्ण है। राज्य में पर्यटक के गतिविधियों के विकास हेतु आवश्यक सभी आधारभूत संसाधन जैसे भौगौलिक एवं सांस्कृतिक विविधता, स्वच्छ एवं शांत वातावरण, सुन्दर धाराएं, पवित्र स्थलों, ऐतिहासिक स्मारकों और स्नेही लोग एवं खूबसूरत वादियों से परिपूर्ण है।
हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को उच्च प्राथमिकता प्रदान की है तथा सरकार द्वारा पर्यटन अधोसरंचना का विकास किया है जिसमें जन उपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार साधन, हवाई अड्डे, परिवहन सुविधाएं, जलापूर्ति एवं नागरिक सुविधाओं का प्रावधान सम्मिलित हैं। वर्तमान में राज्य में 81,514 बिस्तरों की क्षमता के 2,907 होटल विभाग में पंजीकृत हैं। इसके अतिरिक्त राज्य में होम स्टे योजना के अन्तर्गत 7,044 बिस्तरों वाली लगभग 1,220 इकाईयां भी पंजीकृत है।
राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एशियाई विकास बैंक (ए.डी.बी) ने पर्यटन अधोसरंचना के विकास के लिए 95.16 मिलियन अमेरिकी डालर की वित्तीय सहायता प्रदान की है। चरण-1 के अन्र्तगत 33.00 मिलियन अमेरिकन डालर, की सहायता स्वीकृत की गई है तथा इसकी कार्य समाप्ति की तिथि जून, 2018 रखी गई है। चरण-1 में समुदाय आधारित पर्यटन, राज्य के 5 समूहों (धमेटा, कांगड़ा-परागपुर, चिंतपूर्णी, नैनादेवी और शिमला-चायल) में कार्यान्वित किया गया है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के कौशल एवं रोज़ी रोटी से सम्बन्धित प्रशिक्षण प्रदान किये गये और कुल 5,316 प्रतिभागियों (2,822 महिला, 2,494 पुरुष) को प्रशिक्षित किया गया। चरण-3 केे अन्र्तगत कुल 62.16 मिलियन अमेरिकी डालर की राशि सितम्बर, 2015 मेें स्वीकृत की गयी। यह चरण जून, 2020 तक पूर्ण किया जाएगा। इसकेे अन्तर्गत कुल 15 नागरिक कार्यो से सम्बन्धित परियोजनाएं है तथा इसमें से 9 परियोजनाएं आबंटित की जा चुकी है। तीन परियोजनाएं जोकि, मसरूर में चट्टान पर बना मन्दिर का संरक्षण और बहाली, पर्यटक सांस्कृतिक केन्द्र शिमला (पीटरहाॅफ) तथा परमपरागत कला व शिल्प केन्द्र हरोली (ऊना) स्थगित कर दी गई है तथा इसके स्थान पर शिमला विरासत क्षेत्र में बैन्टोनी कैसल के सरक्षंण, बहाली व पूर्ववास परियोजना कार्यान्वित की जा रही है। शेष तीन परियोजनाएं अभी निविदा चरण में है। चरण-3 में समुदाय आधारित पर्यटन के अन्तर्गत 19 पंचायतों का चयन किया गया है जिनमें से 7 पंचायतों में प्रारंभिक प्रशिक्षण शुरु किया जा चुका है और कुल 673 प्रतिभागी भाग ले चुके हंै। “स्वदेश दर्शन” योजना के अन्तर्गत भारत सरकार, पर्यटन मंत्रालय द्वारा ृ9,976.05 लाख प्दजमहतंजमक क्मअमसवचउमदज व िभ्पउंसलंद ब्पतबनपज पद भ्ण्च् में स्वीकृत किए गए हैं। इस परियोजना के अन्तर्गत राज्य के लिए कुल 14 पर्यटन विकास परियोजनाएं स्वीकृत हुई है।
पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन विभाग राज्य में पर्यटन संबंधी सुविधाओं को बढा़वा देने हेतु सार्वजनिक व निजी भागीदारी (पी0पी0पी0) के आधार पर भुन्तर से बिजली महादेव तक अनुबन्ध करारनामा दिनांक 23.02.2017 को पर्यटन एवं उड्डयन विभाग और डध्े न्ेीं ठतमबव के बीच हस्ताक्षरित किया गया है। प्रमोटर द्वारा पूर्वोक्त शर्ते पूरी की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त विभाग ने निजी उद्यमियों को पांच निम्नलिखित स्थान लम्बे समय तक पट्टे पर देने हेतु चिन्हित किए हैः-

पर्यटन को सतत रूप से बढ़ावा देने व पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वर्ष भर प्रिंट व इलैक्ट्राॅनिक मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया है। पर्यटन सूचना उपलब्ध करवाना पर्यटन विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पर्यटन विभाग द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री तैयार की जाती है, जिसमें ब्राॅशर, पैम्फलैट, पोस्टर, ब्लोअप इत्यादि शामिल हैं और देश व विदेश में विभिन्न पर्यटक उत्सवों/ मार्ट इत्यादि में भाग लिया जाता है। वर्ष 2017-18 के दौरान पर्यटन विभाग व निगम द्वारा राज्य व राज्य से बाहर 40 से अधिक मेलों व उत्सवों में भाग लिया गया।
पर्यटन विभाग द्वारा समय-समय पर बेरोजगार युवाओं के लिए सामान्य प्रशिक्षणों का आयोजन किया जाता है जैसेः-पर्यटन में बुनियादी पाठ्यक्रम, टैक्सी चालकों, कुलियों ढाबा कर्मचारियों व मालिकों के लिए औरियनटेशन कार्यक्रम, ट्रैकिंग गाइड पाठ्यक्रम, होमस्टे मालिकों के लिए पाठ्यक्रम, स्की एवं साहसिक प्रशिक्षण शामिल है। वर्ष 2017-18 में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में कुल 508 बेरोजगार युवाओं को 7 विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाएगा ।
पर्यटन विभाग द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने व पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु विभिन्न उत्सवों का भी आयोजन ंिकया जाता है। चालू वित्त वर्ष में विभाग द्वारा निम्न उत्सव आयोजित किए व आयोजनो में भाग लिया। विभाग द्वारा पर्यटन विकास के लिए प्दकपंज्तंअमस डंतज ;प्ज्डद्ध अमृतसर, लखनऊ, जयपुर और प्दकपं पदजमतदंजपवदंस ज्तंअमस म्गीपइपजपवद ;प्प्ज्म्द्ध औरंगाबाद और इन्दौर, प्दकपं प्दजमतदंजपवदंस ज्तंअमस डंतज ;प्प्ज्डद्ध बैंगलुरू, चिन्नई, पुणे, हैदराबाद और कोचिन,ज्वनतपेउ - ज्तंअमस थ्ंपत ;ज्ज्थ्द्ध कोलकता, हैदराबाद, अहमदाबाद और सूरत में भाग लिया गया। विभाग द्वारा पर्यटन विकास के लिए च्तवउवजपवदंस पिसउे व विज्ञापन तैयार किए जा रहे है जिसमें 20, 10 व 5 मिनट के चलचित्र, 60 सेकेन्ड अवधि के व 30 सेकेन्ड अवधि के तीन-तीन विज्ञापन दूरदर्शन के लिए शामिल है।
वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में शिमला, भुन्तर (कुल्लू-मनाली) और कांगड़ा तीन हवाई अड्डे विद्यमान हैं जिनकी स्थिति इस प्रकार हैः-
शिमला हवाई अड््डाः शिमला हवाई अड््डे के रनवे की चैड़ाई को 23 मीटर से 30 मीटर तक विस्तार का कार्य भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा पूर्ण करवा दिया गया है। भारतीय तेल निगम द्वारा एयरपोर्ट में तेल भरवाने की सुविधा शुरू कर दी गई है। भारत सरकार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा “त्महपवदंस ।पत ब्वददमबजपअपजल ैबीमउम. न्कंद“ प्रारंम्भ की गई है। जुब्बड़हट्ठी (शिमला) व भुंतर, (कुल्लू) एयरर्पोट इस योजना के अन्तर्गत सम्मिलित किए गए है। इस योजना के अन्तर्गत नागरिक उड्डयन मन्त्रालय, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण तथा राज्य सरकार के मध्य दिनांक 16.01.2017 को समझौता हस्ताक्षरित किया गया है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 27.04.2017 से सुचारू तौर पर शिमला एयरपोर्ट से उड़ाने चल रही है। शिमला हवाई अड्डे के विस्तार से सम्बन्धित मामला वित्तीय दायित्व के ट्टष्टिगत राज्य सरकार के स्तर पर विचाराधीन है।
भुंतर (कुल्लू-मनाली) हवाई अड्डाः आई.आई.टी. रूड़की की रिपोर्ट के अनुसार व्यास नदी के बहाव को बदलने के लिए लगभग ृ81.34 करोड़ की लागत आएगी तथा इसे स्थिर होने के लिए लगभग 3-4 वर्षों का समय लगेगा। यह कार्य प्रदेश सरकार द्वारा किया जाना है। उपरोक्त कार्य से पहले प्रदेश सरकार को रनवे विस्तार व नदी के बहाव को बदलने के लिए 27.77 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करना होगा। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा रनवे विस्तार का कार्य प्रदेश सरकार द्वारा ब्यास नदी के बहाव को बदलने के उपरान्त ही किया जाएगा। अतः नीतिगत र्निणय व भूमि अधिग्रहण की सूरत में बहुत अधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता को देखते हुए निःशुल्क एवं सभी प्रकार से ऋणभार से मुक्त भूमि उपलब्ध करवाने का मामला राज्य सरकार के पास विचाराधीन हैं।
कांगड़ा हवाई अड्डाः वर्तमान में गगल (कांगड़ा) हवाई पट्टी की लम्बाई 1,372ग30 मीटर है और इस हवाई पट्टी का विस्तार 1,820ग150 मीटर करने की योजना का प्रारूप भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा तैयार कर लिया गया है और उक्त कार्य व अन्य सुविधाओं हेतु लगभग 153 एकड़ न्यूनतम भूमि की मुफ्त या बिना किसी ऋणभार से आवश्यकता है। हाल ही में पठानकोट में हुए आंतकी हमले के पश्चात भारतीय वायु सेना सुरक्षा को मध्यनजर रखते हुए एक वैकल्पिक हवाई पटटी की तलाश कर रही है। अतः उपायुक्त कांगडा को भारतीय वायु सेना के अधिकारियों ने सम्पर्क कर कांगड़ा हवाई अडडे के विस्तारीकरण हेतु भूमि अधिग्रहण की सम्भावनाएं तलाश करने बारे निर्देशित किया गया था। इस सन्दर्भ में उपायुक्त कांगडा द्वारा सूचित किया गया है कि भारतीय सेना व वायु सेना से 571 एकड़ भूमि के अधिग्रहण लिए अनुमति मांगी है साथ ही अधिग्रहण के बाद 153 एकड भूमि व मौजूदा हवाई पटटी को सरकार/नागरिक उद्वेश्य के उपयोग के लिए भी अनुरोध किया गया है।
वर्तमान में प्रदेश में 63 हैलीपैड है। प्रदेश सरकार द्वारा बनरेडू (संजौली-ढली-बाईपास) शिमला में लगभग ृ7.00 करोड की लागत से हैलीपोर्ट का निर्माण किया जाना है जिसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा सैद्धान्तिक स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है तथा उक्त हैलीपोर्ट के निर्माण हेतु थ्ब्। मंजूरी भी प्राप्त कर ली गई है। इसके अतिरिक्त चुवाडी, जिला चम्बा में ृ132.13 लाख और कुन्नू, जिला मण्डी में ृ35.26 लाख की लागत से हैलीपैड बनाने हेतु भी सैद्धान्तिक स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है तथा दोनों हैलीपैडों के थ्ब्। मामले प्रक्रियाधीन है।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम की स्थापना वर्ष 1972 में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी जब से निगम की स्थापना की गई है तब से यह संस्था पर्यटकों के खान-पान/ रहन-सहन, प्रबंधन तथा प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक, चलन तथा प्रमुख घटक के रुप में कार्यरत है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा चालू वित्त वर्ष में ृ165.00 लाख शुद्व लाभ अपेक्षित है।

16.शिक्षा

शिक्षा मानव योग्यताओं के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। सरकार सभी को शिक्षा प्रदान करने के लिए बचनबद्व है। सरकार के विशेष प्रयासों से ही राज्य साक्षरता में अग्रणी राज्य बना है। हिमाचल प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 82.80 प्रतिशत है। राज्य में पुरूषों व स्त्रियों की साक्षरता दर में काफी अंतर है। पुरूषों की 89.53 प्रतिशत साक्षरता दर की तुलना में स्त्रियों की साक्षरता दर 75.93 प्रतिशत है। इस अंतर को पूरा करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रारम्भिक शिक्षा सम्बन्धित सरकार की नीतियांे का क्रियान्वयन जिला प्रारम्भिक उप शिक्षा निदेशक तथा खण्ड प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी द्वारा क्रमशः जिला एवं खण्ड स्तर पर किया जाता है जिसका उद्देश्यः-
1) प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वजनीकरण लक्ष्य प्राप्त करना।
2) प्रारम्भिक शिक्षा में गुणवता प्रदान करना।
3) प्रारम्भिक शिक्षा को सब तक पहंुचाना।
वर्तमान में 31.12.2017 तक, प्रारम्भिक शिक्षा में 10,756 अधिसूचित प्राथमिक पाठशालाएं हैं जिनमें से 10,751 क्रियाशील हैं। 2,117 माध्यमिक पाठशालाएं अधिसूचित हैं जिनमें से 2,103 क्रियाशील हैं। प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी को पूरा करने हेतु सरकार द्वारा प्रयत्न किये जा रहे हैं तथा जरूरत वाले स्कूलों में नई नियुक्तियां की जा रही हैं। सरकार दिव्यांग बच्चों की शिक्षा सम्बन्धित जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रयासरत है।
स्कूलों में अधिक से अधिक उपस्थिति बढ़ाने व स्कूल छोड़ने की प्रवृति को रोकने व बढौ़तरी की दर को बनाए रखने के लिए सरकार विभिन्न प्रकार की छात्रवृतियां व प्रोत्साहन जैसे गरीबी छात्रवृति, छात्राओं के लिए उपस्थिति छात्रवृति, सेवारत सैनिकों के बच्चों को छात्रवृति, गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे परिवारों के छात्रों को आई.आर.डी.पी. छात्रवृति, प्री मैट्रिक छात्रवृति अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए लाहौल व स्पिति प्रणाली की तर्ज पर छात्रवृति व मिडल मैरिट छात्रवृति (मेधावी छात्रवृति योजना) हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग/ अनुसूचित जाति/ आई.आर.डी.पी./ अनुसूचित जनजाति/ के छात्रों को मुफ्त पुस्तकें व वर्दी भी दी जा रही है। प्रदेश के सभी सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में सभी छात्र-छात्राओं को प्रत्येक स्कूल दिवस पर पकाया हुआ गर्म भोजन दिया जा रहा है। प्रदेश के अति दुर्गम क्षेत्रों मंे 1,202 माध्यमिक पाठशालाओं में कम्पयूटर शिक्षा प्रारम्भ की गई है।
वर्ष 2017-18 में विभिन्न प्रकार के निम्नलिखित प्रोत्साहन दिए जा रहे हैंः-
i) माध्यमिक मैरिट मेधावी छात्रवृति के अन्तर्गत छात्र और छात्राओं को ृ800 वार्षिक छात्रवृति दी जा रही है। वर्ष के दौरान 1,465 छात्र लाभान्वित हुए और ृ11.71 लाख खर्च किए गए।
ii) आई.आर.डी.पी. परिवार से संबंधित बच्चों को ृ150 प्रति छात्र/ छात्रा कक्षा 1 से 5 तक छात्रवृति दी जा रही है। वर्ष 2017-18 के दौरान 52,311 छात्र लाभान्वित हुए तथा ृ78.47 लाख खर्च किये गये तथा कक्षा 6 से 8 तक प्रति छात्र ृ250 एवं ृ500 प्रति छात्रा वार्षिक छात्रवृति दी जा रही है। वर्ष के दौरान 47,759 लाभान्वित हुए तथा ृ1.95 करोड़ खर्च किये गये।
iii) छात्रा उपस्थिति योजना के अन्तर्गत जिनकी उपस्थिति 90 प्रतिशत से अधिक हो को ृ2 प्रति माह, 10 माह के लिए दिए जाते हैं। कुल 38,854 छात्राएं लाभान्वित हुई तथा ृ7.71 लाख वितरित किये गए।
निशुल्क पाठ्य पुस्तकें: हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा सभी आई.आर.डी.पी./एस.सी./एस.टी./ ओ.बी.सी./सामान्य विद्यार्थियों को मुफ्त पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करवाई जा रही हैं जिसके लिए वर्ष 2017-18 में ृ16.00 करोड़ का प्रावधान है।
महात्मा गांधी वर्दी योजना: महात्मा गांधी वर्दी योजना के अन्र्तगत कक्षा 1 से 10 तक सभी विद्याार्थियों को दो सैट वर्दियों के साथ ृ200 सिलाई के लिए प्रत्येक वर्ष उपलब्ध करवाए जा रहे हंै। वर्ष 2017-18 में 6,97,959 विद्यार्थी ;कक्षा 1 से 10 तकद्ध लाभान्वित हुये है जिसके लिए वर्ष 2017-18 में ृ28.00 करोड़ का प्रावधान है।
निःशुल्क लेखन सामग्री: अनुसूचित जाति के उन छात्र/ छात्राओं को जो आई.आर.डी.पी/ बी.पी.एल. परिवारों के सम्बन्ध रखते है तथा प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं को निःशुल्क लेखन सामग्री के स्थान पर नकद राशि उपलब्ध करवाई जा रही है। जिसकी दरें निम्नलिखित है:- कक्षा दर प्रति छात्र प्रतिवर्षः
a) 1-2 ृ250
a) 3-4 ृ300
a) 5 ृ350 वर्ष 2017-18 में 26,099 छात्र लाभान्वित हुए तथा इस पर कुल व्यय ृ 75.70 लाख हुआ है।
खेलकूद गतिविधियां : वर्ष 2017-18 में प्रारम्भिक माध्यमिक स्तर के बच्चों की खेल-कूद क्रिया कलाप के लिए ृ225.00 लाख का प्रावधान है। इससे बच्चों के केन्द्र स्कूलों, खण्ड स्तर, जिला स्तर, राज्य स्तर तथा राष्ट्रीय स्तर तक के खर्चे को वहन किया जाता है। विभाग इन गतिविधियों के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा युवा खेल सेवाएं विभाग के सहयोग द्वारा प्रायोजित करता है।
प्रारम्भिक शिक्षा के भवनों का निर्माणः वर्ष 2017-18 के लिए सरकार ने ृ22.55 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है ताकि स्कूलों की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके तथा जिसके साथ-साथ प्रदेश में प्रारम्भिक पाठशालाओं में कमरों, जिला व खण्ड कार्यालयों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
राज्य में सर्व शिक्षा अभियान परियोजना पूर्व गतिविधियों के साथ शुरू किया गया जिसमें मूलभूत सुविधाओं में सुधार करने के लिए जोर दिया गया जिसके अन्तर्गत जिला परियोजना कार्यालयों में आधारभूत ढ़ाचें को बेहतर बनाना, शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों एवम् अध्यापकों की क्षमता निर्माण, विद्यालयों की मेपिंग, शिक्षा की बेहतरी के लिए लघु योजनाएं व सर्वेक्षण आदि प्रमुख गतिविधियां शामिल थीं। इस कार्यक्रम का उद्देेश्य आम जनता के लिए शिक्षा की पहुंच को आसान बनाना, विद्यालयों में बच्चों का नामांकन, लिंग अनुपात के अंतर को समाप्त करना, विद्यालयों में बच्चों का ठहराव और 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा के साथ प्रारम्भिक शिक्षा को पूरा करवाना और विद्यालयों के प्रबन्धन में पूर्ण सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करना है।
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्रारम्भिक शिक्षा में गुणवता के सुधार में प्रयास निम्न हैंः-
1) सीखने का प्रतिफल : राज्य सरकार ने सभी प्राथमिक स्कूल शिक्षकों को एन0सी0ई0आर0टी0 द्वारा विकसित विषय और वर्ग वार सिखने के परिणाम प्रतिफल प्रदान किये है और इन्हें इस तरह से सिखाने के निर्देश दिए गए हैं कि प्रत्येक योग्यता में छात्रों द्वारा वांछित शैक्षिक परिणाम प्राप्त किए जा सकें ।
2) सतत समग्र मूल्यांकन (सीसीई) :सी0सी0ई0 राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक लागू की गयी है। प्रत्येक अध्याय के पूरा होने के बाद रचनात्मक एवम् योगात्मक आकलन के माध्यम से छात्रों की योग्यता का आंकलन किया जाता है ।
3) प्रेरणाः सरकार द्वारा प्रेरणा कार्यक्रम को 2016-17 में सभी प्राथमिक विद्यालयों में लागू किया गया। हर प्राथमिक विद्यालय के बच्चे को इतना आत्मविश्वासी बनाना कि वह पढ़ने, लिखने और अंकगणित के कार्य कर सके। इस अभियान के तहत छात्रों की सीखने की क्षमता का विकास एवं उन्नयन ऊपरवर्णित जरूरतों पर केन्द््िरत है। वर्ष 2017-18 के लिए, प्राथमिक विद्यालय के सभी बच्चों के लिए हिंदी, अंग्रेजी और गणित पर ध्यान देने के साथ प्रेरणा प्लस कार्यक्रम शुरू किया गया है ।
4) प्रयासः सरकार द्वारा प्रयास कक्षा 6 से आठवीं तक के छात्रों के गणितीय और वैज्ञानिक कौशल को बढ़ाने के लिए सभी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 2016-17 में कार्यान्वित किया गया। प्रयास मॉडल और विज्ञान और गणित विषयों में कक्षा छः से आठवीं के बच्चों की सीखने की क्षमता का विकास और सुधार करने का एक अभियान है। वर्ष 2017-18 के लिए, कक्षा छः से आठवीं बच्चों के लिए सभी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रयास प्लस के रूप में शुरू किया गया है।
5)शिक्षकों की क्षमता निर्माणः प्रेरणा प्लस और प्रयास प्लस के लिये छठी से आठवीं कक्षा तक के शिक्षकों की क्षमता सुधार का कार्य डाइट स्तर पर पहले ही कर दिया गया है।
6) कंप्यूटर एडेड लर्निंग प्रोग्राम : अब तक 1,202 सरकारी स्कूलों को पहले से ही आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ कवर किया गया है जिसमें 3 कंप्यूटर, 1 बहुउद्देशीय लेजर प्रिंटर, 2 यू0पी0एस0 और फर्नीचर, प्रत्येक विद्यालय में दिए गए तीन कंप्यूटरों में से एक 42श् एल0सी0डी0टी0वी0 के साथ 170 माध्यमिक विद्यालयों को 2017-18 के दौरान एस0एस0ए0 के तहत स्वीकृत कर दिया गया है, जो इस कंप्यूटर एडेड लर्निंग प्रोग्राम के तहत कार्यान्वित किये जाएंगे।
वर्ष 2016-17 के दौरान पहले से ही 72 विद्यालयों को सम्मिलित किया गया। 2017-18 के दौरान 72 अतिरिक्त विद्यालयों को लिया गया है । चयनित प्रयोगशाला विद्यालयों में राष्ट्रीय आविष्कार अभियान (आर0ए0ए0) के तहत गतिविधियांः
1)) गणित प्रयोगशालाओं की स्थापना।
2) मौजूदा विज्ञान प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ बनाना।
3) लैब स्कूलों में विशेषज्ञों की सहायता से विज्ञान पार्क विकसित करना दीवार और अन्य उपलब्ध स्थान पर गणित और विज्ञान सीखने से संबंधित बाला सुविधाओं का परिचय। वर्मी कंपोस्ट प्लांट का विकास करना । <
4))क्षेत्रीय गणित ओलंपियाड के लिए छात्रों की तैयारी बच्चों के विज्ञान कांग्रेस (सी0एस0सी0) के लिए छात्रों की तैयारी और प्रेरित अनुसंधान (इंस्पिर) के लिए विज्ञान शोध में नवाचार। विज्ञान और गणित इवेंट्स का आयोजन - स्कूल स्तर पर प्रदर्शनियां, प्रश्नोत्तरी और सेमिनार।
5) लैब स्कूलों की सलाह के लिए उच्च स्तर की संस्थानों की पहचान व उच्च स्तरीय संस्थानों द्वारा प्रयोगशाला स्कूल अध्यापकों की क्षमता निर्माण। अग्रणी शिक्षक संस्थानों के प्रसिद्ध विद्वानों द्वारा स्कूल स्तर पर छात्रों के लिए अतिथि व्याख्यान।
6) छात्रों के लिए विज्ञान और गणित क्लब का निर्माण करना।
उपलब्धि सर्वेक्षण : राज्य स्तर उपलब्धि सर्वेक्षण, कक्षा पहली से आठवीं के बच्चों का सभी विषयों के लिए राज्य स्तर उपलब्धि सर्वेक्षण (एसएलएएस) 2013-14 के बाद से राज्य परियोजना कार्यालय (एसएसए/आरएमएसए) द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस सर्वे के निष्कर्षों के आधार पर, शिक्षकों को शिक्षण सहायता प्रदान की जाती है।
राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण : राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण, राज्य में एनसीईआरटी द्वारा आयोजित किया गया है। आकंलन के लिए आंकड़े एकत्र किए गए हैं और इसका विश्लेषण किया जा रहा है।.
अनुसंधानः एस.एस.ए. के अनुसंधान घटक के अंतर्गत, विभिन्न अध्ययनों का आयोजन किया गया। उनमें से कुछ नीचे सूचीबद्ध हैं:-
1) शिक्षक अनुपस्थिति।
2) प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के सामाजिक-आर्थिक रूपरेखा।
3) ऊपरी प्राथमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुधारने में स्कूल प्रबंधन समितियों की भूमिका
4) ऊपरी प्राथमिक स्तर पर गुणवता पूर्ण शिक्षा सुधारने मंे स्कूल प्रबन्धन समितियों की भूमिका।
5) नामांकन में गिरावट के रूझान कारणों की अन्वेषण।
6) हिमाचल में कंप्यूटर एडेड लर्निंग प्रोग्राम (सी0ए0एल0पी0) का कार्यक्रम-एक मूल्यांकन अध्ययन।
स्कूल स्तरीय अनुदान : हर साल इन अनुदानों को स्कूलों को पुरानी मशीनरी को बदलने और छोटी मुरम्मत आदि करने के लिये एसएमसी द्वारा बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार दिया जाता है। विद्यालय अनुदान ृ5,000 प्रति वर्ष प्राथमिक और उच्च प्राथमिक सरकारी स्कूलों के लिए प्रतिवर्ष ृ7,000 और रख-रखाव अनुदान ृ5,000 उन सरकारी स्कूलों के लिए जिनमें तीन या उससे कम कक्षा के कमरे हैं और ृ10,000 उन सरकारी स्कूलों के लिए जिनमें तीन से अधिक कक्षा के कमरे हैं।
बालिका शिक्षाः मॉडल-3 के तहत, हिमाचल प्रदेश में 10 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (के0जी0बी0वी0) कार्यरत हैं। आठ के0जी0बी0वी0, जिला चंबा में हैं, शिमला और सिरमौर जिले में एक-एक, अब तक, ये केजीबीवी 495 लड़कियों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। ये लड़कियां गरीब अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित हैं और इनको मुफ्त योजना व आवास, वजीफा, चिकित्सा सहायता, स्टेशनरी, आवश्यकता के अनुसार कौशल शिक्षा, आत्मरक्षा प्रशिक्षण, सीखने सम्बन्धित भ्रमण जैसी सुविधाएं प्रदान की जाती है ।
विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों (सी0डब्ल्यू0एस0एन0) :वर्ष 2017-18 के लिए कुल 9,337 बच्चों की विशेष जरूरतों के साथ पहचान की गई हैं। इनको शामिल किए जाने की प्रक्रिया निम्नलिखित गतिविधियों पर आधारित हैः-
1) पाठशाला प्रबन्धन कमेटीयों और सर्वेक्षण के माध्यम से पहचान।
2) प्रत्येक सी0डब्ल्य0ूएस0एन0 की आवश्यकता की पहचान करने के लिए चिकित्सा शिविर।
3) इन बच्चों को सिखाने के लिए विशेष शिक्षक ।
विद्यालय से बाहर रह रहे बच्चों के लिए (घुमन्तू एवं अन्य)ः हिमाचल प्रदेश में प्रारम्भिक शिक्षा स्तर पर विद्यालय से बाहर रह रहे बच्चों की संख्या न के बराबर है । फिर भी स्कूल से बाहर बच्चों को माध्यमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए गैर-आवासीय सेतु पाठ्यक्रम केन्द्र (एन0आर0एस0टी0) के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा हैैै। शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पहला व महत्वपूर्ण दायित्व है कि 6-14 उम्र के सभी बच्चे स्कूलों में होने चाहिए। गैर-सरकारी संस्था (आई0एस0आर0वी0) और प्रथम के द्वारा करवाये गये सर्वे में भी ये पाया गया कि हिमाचल प्रदेश मे विद्यालय से बाहर रह रहे बच्चों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है। जिला बिलासपुर एवं लाहौल-स्पिति में कोई भी घुमन्तू बच्चा नहीं है। विद्यालयों से बाहर रह रहे बच्चों की संख्या में परिवर्तन बाहरी राज्यों से पलायन करके आने वाले बच्चों की आवाजाही से परिवर्तन आता है। हर जिला जुलाई एवं दिसम्बर में स्कूल से बाहर बच्चों कानिरीक्षण करता है ताकि घुमन्तू बच्चों को स्कूल के दायरे मे लाया जा सके। प्रतिधारण (रिटेंशन): एस0एस0ए0 के तहत सभी लड़कियों, सभी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जन-जाति के लड़कों, बी0पी0एल0 परिवारों के बच्चों के लिए दो सेट मुफ्त वर्दी का प्रावधान है और कक्षा 1 से 8 के सभी सामान्य श्रेणी के लड़के और लड़कियों के लिए मुफ्त पाठ्îपुस्तकों का प्रावधान भी है। अन्य छात्रों को राज्य बजट से सम्मिलित किया जाता है।
अवधारण: यह सुनिश्चित करने के लिए कि शिक्षा अच्छी तरह से स्कूल स्तर पर दी जाती है। हर छात्र सही से सीखता है और अपना श्रेष्ठ करता है। छात्रों के माता-पिता और पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों को प्रति वर्ष जागरूक किया जाता है और ओरिएंटेशन कार्यक्रम से जोड़ा जाता है। इस हस्तक्षेप के तहत स्कूल भी स्कूल विकास योजना (एस0डी0पी0) तैयार करता है जो कार्यप्रणाली के सभी तीन हिस्सों पर कार्रवाई को दर्शाता है अर्थात इनपुट, प्रक्रिया और आउटपुट स्तर पर। समुदाय जागरूकताः यह राज्य और केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई सभी शिक्षा पहल योजनाओं के व्यापक प्रचार के लिए है। इस हस्तक्षेप का उद्देश्य राज्य भर में सभी योजनाओं का संदेश फैलाना है और सभी शैक्षणिक योजनाओं के क्रियान्वयन में लोगों को सक्रिय भागीदारी और स्वामित्व के लिए तैयार करना है ।
निगरानी और समीक्षा निगरानी और समीक्षा तंत्र को भी पुनर्निर्धारित किया गया है। समीक्षा और निगरानी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए, विस्तृत और गुणवत्ता निगरानी उपकरण, जो कि आसानी से कम्पूटीªकृत और विश्लेषण करने योग्य है तैयार किए गये और विभिन्न ब्लॉक अधिकारियों को वितरित किए गये है। राज्य ने ब्लॉकों के अधिकारियों (प्रारम्भ में बी0आर0सी0 सी0 और उसके बाद बी0ई0इर्0ओ0) को अनिवार्य रूप से अपने ब्लॉकों में स्कूलों में जाने और सी0सी0ई0 प्रदर्शन, बुनियादी ढांचे, कक्षा शिक्षण और स्कूल प्रबंधन जैसे विभिन्न प्रमुख मापदंडों पर विद्यालयों का निरीक्षण करने के लिए अनिवार्य किया है। इन निरीक्षणों के परिणामस्वरूप आंकड़ों को संकलित कर उनका विश्लेषण किया जाता है और उसके बाद उन सभी मानदंडों पर स्कूलों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए समाधान के साथ जिला और राज्य स्तरों पर चर्चा की जाती है ।
इस हस्तक्षेप के लाभों में शामिल हैंः
1) एक एकल ओ0एम0आर0-आधारित गुणवत्ता निगरानी उपकरण जो कई रूपों को एकीकृत कर रहा है।
2) राज्य के अधिकारियों द्वारा नियमित स्कूल का दौरा और व समस्या का निवारण/सर्वोत्तम प्रथाओं के आधार पर यदि आवश्यक हो समय पर कार्रवाई करना।
3) विस्तृत स्कूल-वार डेटा का आसान डिजिटलीकरण ।
4) जिला और राज्य स्तर के आंकड़ों पर मासिक समीक्षा बैठकें ।
5) सरकार के भीतर डेटा-समर्थित निर्णय लेना व उत्तरदायित्व प्रथा को बढ़ावा।
6) विभिन्न समीक्षा के रूपों को बदलकर एक व्यापक गुणवता युक्त निगरानी व्यवस्था कायम करना ताकि पदाधिकारियों का बोझ कम हो सके।
राज्य सरकार द्वारा शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की जा रही है। जिसके फलस्वरूप वार्षिक बजट में प्रतिवर्ष निरन्तर वृद्धि के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थाओं में भी वृद्धि हो रही है। प्रदेश में दिसम्बर,2017 तक 922 उच्च पाठशालाएं, 1,836 वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाएं तथा 137 सरकारी महाविद्यालय हैं जिसमें 1 एस.सी.ई.आर.टी, 1 बी.एड. महाविद्यालय, 7 संस्कृत महाविद्यालय और 1 ललित कला महाविद्यालय चल रहे हैं।
समाज के शिक्षा से वंचित पिछड़े वर्ग के छात्रों को अनेक छात्रवृतियां राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा प्रदान की जा रही है। छात्रवृतियां निम्न प्रकार से हैंः-
i) डा. अम्बेदकर मेधावी छात्रवृति योजनाः इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति के 1,000 और 1,000 अन्य पिछड़ा वर्ग के मेधावी छात्रों को (मैट्रिक के परीक्षा के परिणाम के आधार पर हि0प्र0 स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित की गई हो) जमा एक तथा जमा दो कक्षाओं के लिए राज्य में या राज्य के बाहर किसी मान्यता प्राप्त संस्थान में प्रवेश लिया हो को ृ10,000 वार्षिक प्रतिवर्ष छात्रवृति प्रदान की जा रही है। वर्ष 2016-17 में 1,817 अनुसूचित जाति और 1,687 अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
ii) स्वामी विवेकानंद उत्कृष्ट छात्रवृति योजनाः इस योजना के अंतर्गत सामान्य वर्ग के हिमाचल प्रदेश के स्थायी निवासी शीर्ष 2,000 मेधावी छात्रों को 10वीं की परीक्षा के परिणाम पर आधारित (हि0प्र0 स्कूल शिक्षा बोर्ड) तथा जिन्होंने जमा एक व जमा दो कक्षाओं के लिए मान्यता प्राप्त संस्थानों में प्रदेश या प्रदेश के बाहर प्रवेश लिया हो, के लिए ृ10,000 की राशि (वार्षिक) प्रति छात्र/ छात्रा छात्रवृति प्रदान की जा रही है। वर्ष 2016-17 में इस योजना से 3,581 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
iii) ठाकुर सैन नेगी उत्कृष्ठ छात्रवृति योजनाः इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जन-जाति के 100 छात्र तथा 100 छात्राओं को (10वीं की परीक्षा में घोषित परिणाम के आधार पर हि0प्र0 स्कूल शिक्षा बोर्ड) मेधावी छात्रों मंे से जिन्होंने जमा एक तथा जमा दो कक्षाओं मान्यता प्राप्त संस्थानों में प्रदेश या प्रदेश के बाहर प्रवेश लिया हो, के लिए ृ11,000 की राशि प्रति छात्र/छात्रा प्रतिवर्ष छात्रवृति प्रदान की जाती है। वर्ष 2016-17 में 321 जनजातीय विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया है।
iv) महर्षि बाल्मिकी छात्रवृति योजनाः बाल्मिकी समुदाय की सभी छात्राओं को जिनके अभिभावक अस्वच्छता से संबंधित व्यवसाय करते हैं और हिमाचल प्रदेश के स्थायी निवासी हों को दसवीं कक्षा से महाविद्यालय स्तर तक व्यवसायिक पाठ्यक्रम ृ9,000 प्रति छात्रा प्रति वर्ष छात्रवृति प्रदान की जा रही हैं जोकि राज्य में स्थित किसी सरकारी या निजी विद्यालय या महाविद्यालय में अध्ययनरत हो। वर्ष 2016-17 में 27 छात्राओं को यह छात्रवृति प्रदान की गई है।
v) इन्दिरा गांधी उत्कृष्ट छात्रवृति योजनाः इस योजना के अन्तर्गत 150 छात्र/छात्राओं को जमा दो परीक्षा के बाद महाविद्यालय स्तर तक पढ़ने या व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने पर ृ10,000 वार्षिक छात्रवृति प्रति छात्र/छात्रा बिना किसी आर्थिक आधार पर पूर्णतयः मैरिट के आधार पर प्रदान किये जाते हैं। वर्ष 2016-17 में 31 छात्रों को इस योजना के अंतर्गत लाभान्वित किया गया।
vi) संस्कृत छात्रवृति योजनाः इस योजना के अन्तर्गत 9वीं एवं 10वीं कक्षा के लिए ृ250 प्रति माह तथा जमा एक एवं जमा दो के लिए ृ300 प्रतिमाह, की दर से छात्रवृति उन्हें प्रदान की जाती है जिन्होंने संस्कृत विषय में 60 प्रतिशत या इससे अधिक अंकों के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया हो।
vii) सैनिक स्कूल छात्रवृतिः सैनिक छात्रवृति केवल सैनिक स्कूल सुजानपुर टीहरा ;हमीरपुरद्ध में अध्ययन हिमाचल प्रदेश के स्थाई निवासी विद्यार्थियों को देय है। यह छात्रवृति छठी कक्षा से जमा दो कक्षा तक प्रदान की जाती है। साथ ही विद्यार्थियों को 295 दिनांे के लिए ृ75 प्रतिदिन की दर से राशन राशि प्रदान की जाती है। पहले वर्ष के लिए परिधान भत्ता ृ1,500 प्रतिवर्ष और ृ750 प्रतिवर्ष अनुवर्ती वर्षों के लिए लिए दिया जाता है।
viii)एन0डी0ए0 छात्रवृति योजनाः यह छात्रवृति नेशनल अकादमी खड़कवासला मे टेªनिंग ले रहे हिमाचल प्रदेश के स्थाई निवासी छात्रों को विभिन्न दरों से प्रदान की जा रही है।
ix) कल्पना चावला छात्रवृति योजनाः इस योजना के अन्तर्गत प्रति वर्ष 10़2 की 2,000 छात्राओं को योग्यता एवं सभी ग्रुप वाईज मैरिट सूचि के आधार पर वार्षिक ृ15,000 प्रति छात्र/छात्रा को राशि प्रदान की जाती है। वर्ष 2016-17 में इस योजना के अन्तर्गत 1,840 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
x) मुख्यमंत्री प्रोत्साहन योजनाः यह योजना राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2012-13 से लागू की गई है जिसके अंतर्गत सभी वर्ग के विद्यार्थियों जिनका चयन और प्रवेश, आई.आई.टी., ए.आई.आई.एम.एस. इसके अतिरिक्त आई.आई.एम., आई.एस.एम. धनबाद, झारखण्ड आई.आई.एस.सी. बैंगलोर से किसी भी स्नातकोतर डिप्लोमा के लिए हुआ हो, को ृ75,000 की राशि पुरस्कार के रुप में दी जाएगी। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 में 164 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
xi) राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कालेज छात्रवृति योजनाः यह छात्रवृति दस स्थाई हिमाचली निवासी केडेट/छात्रों को आठवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा तक दी जाती है जो कि राष्ट्रीय भारतीय मिलिट्री कालेज, देहरादून में अध्ययनरत हो। प्रत्येक कक्षा से 2 छात्रों को यह छात्रवृति मिलती है। छात्रवृति की राशि ृ20,000 प्रतिवर्ष है। वर्ष 2016-17 में इस योजना के अन्तर्गत 10 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
xii) आईआरडीपी छात्रवृत्ति योजना: 9वीं और 10वीं कक्षा के लिए `300 प्रति माह, `800 प्रति माह +1 और +2 कक्षा, कॉलेज/डे स्कॉलर छात्रों के लिए `1,200 प्रति माह और हॉस्टलर्स के लिए `2,400 प्रति माह दिया जा रहा है उन छात्रों को दिया जाता है जो आईआरडीपी परिवारों से हैं और सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में पढ़ रहे हैं। वर्ष 2016-17 के दौरान इस योजना के तहत 45,135 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
xiii) युद्ध के दौरान मारे गए/विकलांग हुए सशस्त्र बल कर्मियों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति: `300 (लड़के) की राशि और 9वीं और 10वीं कक्षा के लिए `600 (लड़कियां) प्रति माह, 10+1 और 10+2 कक्षा के लिए `800 प्रति माह, कॉलेज के लिए `1,200 प्रति माह/ बच्चों को विश्वविद्यालय/डे स्कॉलर छात्रों और हॉस्टलर्स के लिए `2,400 प्रति माह दिया जा रहा है विभिन्न अभियानों/युद्ध में मारे गए/अक्षम हुए सशस्त्र बल कार्मिकों की संख्या।
xiv) एससी/एसटी/ओबीसी छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति (केंद्र प्रायोजित योजना): छात्र संबंधित हैं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जिनके माता-पिता की वार्षिक आय `2.50 लाख तक है और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र जिनके माता-पिता की वार्षिक आय `1.00 लाख तक है, वे सभी के लिए पूर्ण छात्रवृत्ति (अर्थात् भरण-पोषण भत्ता + पूर्ण शुल्क) के पात्र हैं पाठ्यक्रम और वे सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में पढ़ रहे हैं। वर्ष 2016-17 के दौरान 40,041 अनुसूचित जाति, 3,402 इस योजना से अनुसूचित जनजाति एवं 1,908 अन्य पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
xv) अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति: यह छात्रवृत्ति उन छात्रों को प्रदान की जाएगी कक्षा 1 से 10 तक जिनके माता-पिता/अभिभावक की सभी स्रोतों से आय `44,500 प्रति वर्ष से अधिक न हो। का योग डे स्कॉलर छात्रों के लिए `50 प्रति छात्र प्रति माह और हॉस्टलर्स के लिए `250 प्रति माह दिया जा रहा है।
xvi) एससी और एसटी छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति: यह छात्रवृत्ति उन छात्रों को प्रदान की जाएगी जिनके माता-पिता/ अभिभावक की सभी स्रोतों से आय `2.00 लाख प्रति वर्ष से अधिक न हो। प्रति छात्र प्रति वर्ष `2,250 की छात्रवृत्ति डे स्कॉलर और कक्षा 9वीं और 10वीं के हॉस्टलर्स को `4,500 प्रति वर्ष दिए जा रहे हैं। वर्ष 2016-17 के दौरान कुल 16,127 इस योजना से अनुसूचित जाति वर्ग के 1,953 तथा अनुसूचित जनजाति के 1,953 विद्यार्थी लाभान्वित हुए हैं।
xvii) माध्यमिक शिक्षा के लिए एससी/एसटी छात्राओं को प्रोत्साहन: इस केंद्र प्रायोजित योजना के तहत एससी/एसटी छात्राओं को प्रोत्साहन जो छात्र एच.पी. से मिडिल स्टैंडर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 9वीं कक्षा में प्रवेश लेते हैं। बोर्ड स्कूल परीक्षा. इस योजना के तहत प्रोत्साहन की राशि `3,000 है और यह सावधि जमा के रूप में दी जाएगी।
xviii) अल्पसंख्यक समुदाय (सीएसएस) से संबंधित छात्रों के लिए मेरिट सह साधन छात्रवृत्ति योजना: यह छात्रवृत्ति मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध समुदायों से संबंधित अल्पसंख्यक छात्रों के लिए है, जिनके माता-पिता/ अभिभावक की सभी स्रोतों से आय `2.50 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए और छात्र की आय 50 लाख से कम नहीं होनी चाहिए प्रतिशत अंक. इस योजना के तहत 2016-17 के दौरान कुल 63 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
संस्कृत शिक्षा के प्रसार हेतु प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार द्वारा भी हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं जिनका विवरण निम्न हैः-
a) उच्च/ वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों को छात्रवृति प्रदान करना।
b) वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ाने वाले संस्कृत प्रवक्ताओं के वेतन के लिए अनुदान देना।
c) संस्कृत विद्यालयों का आधुनिकीकरण करना।
d) ्रदेश सरकार को संस्कृत उत्थान तथा शोध/ शोध परियोजना हेतु केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान करना।
प्रदेश में सेवारत अध्यापकों को शिक्षा की नवीनतम तकनीक से परिचित करवाने के उद्देेश्य से एस.सी.ई.आर.टी., सोलन, जी.सी.टी.ई. धर्मशाला, हिप्पा फेयरलाॅन, शिमला/ एन.यू.पी.ए., नई दिल्ली/ सी.सी.आर.टी./ एन.सी.ई.आर.टी./आर.आई.ई. अजमेर तथा आर.आई.ई., चण्डीगढ़़ आदि संस्थानों में विभिन्न संगोष्ठियों तथा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2017-18 में लगभग 1,700 अध्यापकों एवं गैर अध्यापकों को इन कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया।
यशवन्त गुरूकुल आवास योजना :प्रदेश के जन-जातीय एवं दुर्गम क्षेत्रों के उच्च एवं वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में नियुक्त अध्यापकों को समुचित आवासीय सुविधा प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा यह योजना राज्य के 61 चिन्हित पाठशालाओं में लागू कर दी गई है।
निःशुल्क पाठय पुस्तकें : राज्य सरकार अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग/ बी.पी.एल. से सम्बन्धित विद्यार्थियों को नवीं से दसवीं कक्षा तक पाठयक्रम की पुस्तकंे मुफ्त दी जा रही हैं। वर्ष 2017-18 में इस योजना के अंतर्गत ृ11.71 करोड़़ व्यय किए गए जिससे 1,09,974 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
व्यावसायिक शिक्षा : 40 प्रतिशत से अधिक विशेष योग्यता वाले बच्चों को निःशुल्क शिक्षा राज्य में 2001-02 से विश्वविद्यालय स्तर तक दिव्यांगों को सहायता प्रदान की जा रही है।
लड़कियों को मुफ्त शिक्षा: राज्य में छात्राओं को विश्वविद्यालय स्तर तक मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा रही है। वोकेशनल और प्रोफेशनल समेत यानी केवल ट्यूशन फीस में छूट है।
प्रदेश के सभी वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं (बाहरी स्त्रोत से) में स्वंय आर्थिक प्रबन्धन आधार पर वैकल्पिक विषय को चुनकर सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान की जा रही है। आई.टी. शिक्षा के लिए विभाग द्वारा ृ110 प्रतिमाह प्रति विद्यार्थी फीस ली जा रही है। अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) परिवारों के छात्रों को 50 प्रतिशत शुल्क की छूट दी जाती है। वर्ष 2017-18 में कुल 83,286 विद्यार्थी जिसमें 6,361 अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) के आई.टी. शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस योजना के तहत ृ41.98 लाख का खर्चा हुआ है जिसमें 50 प्रतिशत खर्चा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा वहन किया जाएगा।
विभाग ने राष्ट्रीय माध्यमिक अभियान को प्रदेश में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा समिति की देख रेख मे केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की वर्ष 2015-16 से 90ः10 की सहभागिता में माध्यमिक स्तर पर लागू करने मे बढ़त हासिल कर ली है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अन्तर्गत विभिन्न गतिविधियां चलाई जा रही हैं इसमें प्रदेश की वर्तमान माध्यमिक पाठशालाओं के आधारभूत संरचनाओं को सुदृढ़ बनाना, सेवारत अध्यापकों का प्रशिक्षण, आत्म रक्षण प्रशिक्षण, कला उत्सव तथा वार्षिक स्कूल अनुदान शामिल हैं। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए परियोजना अनुमोदन बोर्ड, भारत सरकार द्धारा ृ14,092.50 लाख की राशि स्वीकृत की है जिसमें से भारत सरकार और प्रदेश सरकार द्धारा क्रमशः ृ3ए473ण्00 लाख और ृ480.27 लाख माध्यमिक अभियान की विभिन्न गतिविधियों को लागू करने के लिए जारी कर दी है।
शैक्षिक रुप से पिछड़े खण्डों में केन्द्रीय प्रायोजित योजना के अन्तर्गत माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में कन्या छात्रावास का निर्माण करके नवीं से बारहवीं कक्षाओं की छात्राओं को आवासीय सुविधा सुदृढ़ करना होगा। इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित/ अनुसूचित जन जाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग एवं गरीबी रेखा नीचे रहने वाले परिवार की छात्राएं लाभान्वित होगीं। छात्रावासों का निर्माण जिला चम्बा और सिरमौर के शैक्षिक रुप से पिछड़े खण्डों में किया जाना है तीन कन्या छात्रावासों हिमगिरी मेहला ;चम्बाद्ध और शिलाई ;सिरमौरद्ध का निर्माण कार्य पूरा किया जा चुका है और 50 कन्याओं की क्षमता से वर्ष 2017-18 में कार्यात्मक कर दिया गया है। भारत सरकार द्वारा ृ35.98 लाख स्वीकृत किए जिसमें से ृ15.99 लाख की राशि प्राप्त हो चुकी है।
स्मार्ट कक्षा कक्ष और मल्टीमीडिया शिक्षण साधन का प्रयोग करके पठन-पाठन की गतिविधियों को बेहतर व सुदृढ़ करने के लिए विभाग द्वारा सफलतापूर्वक सूचना, संचार एवं प्रौद्योगिकी परियोजना को 2,132 राजकीय उच्च व वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं व पांच स्मार्ट पाठशालाओं में वर्ष 2017-18 में लागू कर दिया गया है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 में 20 नए पाठशालाओं का कार्य प्रगति पर है।।
उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए प्रदेश में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान कार्यान्वित किया गया है। इस योजना को 90ः10 के अनुपात (केन्द्र तथा राज्य का हिस्सा) में वर्ष 2013-14 से बारहवीं पंचवर्षीय के अन्तर्गत् प्रारम्भ किया जा चुका है। इस गुणवता सुधार प्रणाली को प्रदेश में उचित ढंग से लागू करने के हिमाचल प्रदेश सरकार ने ‘राज्य उच्च शिक्षा परिषद ;ैभ्म्ब्द्ध पहले ही गठित कर दी है। प्रदेश के सभी सरकारी, गैर सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों व संस्कृृत महाविद्यालयों में स्नातक के तहत कक्षाओं के लिए समैस्टर एवं च्वाईस बेसड् के्रडिट सिस्टम ;ब्ठब्ैद्ध प्रणालियां आरम्भ की गई है। इस योजना के अन्र्तगत मानव संसाधन मन्त्रालय भारत सरकार से ृ159.08 करोड़ प्राप्त हो चुके है जिसे लाभार्थी उच्च शिक्षा संस्थानों को जारी कर दिया गया है। प्रदेश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद ;छ।।ब्द्ध बैंगलुरू से मूल्यांकन एवं प्रत्यायन के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वर्तमान में 01 हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और 04 राजकीय महाविद्यालयों राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद ;छ।।ब्द्ध द्वारा ‘‘ए ग्रेड‘‘ द्वारा प्रत्यायित किया गया है। अब प्रदेश में 01 हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और 32 राजकीय महाविद्यालय राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद ;छ।।ब्द्ध से प्रत्यायन हासिल कर चुके है।
नेटबुक्स सवितरण : शिक्षा विभाग वर्ष 2016-17 में, सीखने-सिखाने की गतिविधियों को सुदृढ़ बनाने के लक्ष्य से हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा, बोर्ड धर्मशाला से उत्तीर्ण 10वीं और 12वीं कक्षा के 10,260 ;विद्यार्थी जिन्होंने 10वीं और 12वीं कक्षा की मैरिट लिस्ट में बराबर के अंक हासिल किये को 260 अतिरिक्त नेटबुक्सद्ध मेधावी विद्यार्थियों को राजीव गांधी डिजिटल छात्र योजना के तहत नेटबुक्स देने जा रहा है।
प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर दिव्यांग बच्चो को समेकित शिक्षा वर्ष 2013-14 मे आरम्भ हुई। इसके अन्तर्गत् वर्ष 2017-18 मे विशेष जरूरतमन्द बच्चों के लिए 12 आदर्श विद्यालय खोले गए जिनमंे इन बच्चो का शिक्षित करने हेतु 18 विशेष शिक्षको की तैनाती की गई व 2,734 विशेष बच्चे चिन्हित किए गए। इन बच्चो की जांच के लिए प्रदेश मे 49 चिकित्सा शिविर लगाए गए तथा इन बच्चों को 380 विशेष उपकरण बांटे गए। इसके अतिरिक्त मुफ्त किताबें, एस्र्कोट भत्ता, ब्रैल किताबें भी जरूरतमंद बच्चों को वर्ष 2017-18 में दी गई।
मुख्यमन्त्री वर्दी योजना : विभाग द्वारा मुख्य मन्त्री वर्दी योजना के अन्तर्गत 11वीं व 12वीं कक्षा सभी विद्यार्थियों को वर्ष में वर्दी के दो सेट मुफ्त में प्रदान किये गये। इस उद्देश्य के लिए व वर्ष 2017-18 में ृ10.81 करोड़ खर्च के 1,77,049 विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया।िभाग द्वारा मुख्यमन्त्री वर्दी योजना के अन्र्तगत 11वीं व 12वीं कक्षा सभी विद्यार्थियों को वर्ष में वर्दी के दो सेट मुफ्त में प्रदान किये गये। इस उद्देश्य के लिए व वर्ष 2016-17 में 11.73 करोड़ खर्च के 1,79,536 विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया।
मुख्यमन्त्री आदर्ष माॅडल स्कूल : शिक्षा की गुणवता को बढ़ाने के उद्देश्य से प्रदेश में वर्ष 2017-18 सेे प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र के दो राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं को आदर्श माॅडल स्कूल नामित किया जायेगा। वर्ष 2017-18 में इन्हें क्रियान्वित कर दिया गया है।
मुख्यमन्त्री ज्ञानदीप योजना : समाज के सभी वर्गो के विद्यार्थियों के शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए ‘मुख्यमन्त्री ज्ञानदीप योजना‘ के अन्तर्गत भारत व विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु सभी हिमाचली विद्यार्थियों को बैंको से ृ10.00 लाख के शिक्षा ऋण पर बिना किसी आय सीमा के चार प्रतिशत तक के व्याज का अनुदान दिया जायेगा ।
वर्ष 1968 में हिमाचल प्रदेश तकनीकी शिक्षा विभाग की स्थापना की गई थी तथा जुलाई 1983 में व्यवसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को भी इस विभाग के अन्तर्गत् लाया गया। वर्तमान में विभाग का कार्य क्षेत्र तकनीकी शिक्षा, व्यवसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान करना है। आज हिमाचल प्रदेश के इच्छुक प्रत्येक विद्यार्थी प्रदेश में ही तकनीकी शिक्षा तथा फार्मेसी में स्नातक, डिप्लोमा एंव सर्टीफिकेट कोर्स स्तर तक की शिक्षा के लिए निम्नलिखित संस्थानों में प्रवेश ले सकते है ।

इंजीनियरिंग एवं बी-फार्मेसी अन्तर्गत महाविद्यालयों में स्नातक स्तर तक की शिक्षा दी जाती है जबकि बहुतकनीकी संस्थानों में 2 एवं 3 वर्षीय पाठ्यक्रमों द्वारा 14 विभिन्न इंजीनियरिंग एवं नाॅन-इंजीनियरिंग शाखाओं में डिप्लोमा एंव सर्टीफिकेट कोर्स स्तर तक की शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। आई0टी0आई0 में 37 इंजीनियरिंग और 19 नाॅन-इंजीनियरिंग व्यवसायों में दो वर्षों एवं एक वर्ष का सर्टीफिकेट स्तर का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश के तकनीकी शिक्षण संस्थानों की प्रवेश क्षमता निम्नलिखित हैः-
i) डिग्री स्तर 4,070
ii) बी फार्मेसी 858
iii) डिप्लोमा स्तर 7,837
iv) सरकारी/निजी आई.टी.आई. 47,784
कुल 60,549
विभाग द्वारा राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत राजीव गान्धी राजकीय इंजीनियरिंग कालेज कांगड़ा स्थित नगरोटा वगवां में खोला गया है। इसमें तीन पाठयक्रम मकैनिकल इंजीनियरिंग, इलैक्ट्रोनिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग तथा सिविल इंजीनियरिंग, जिसकी प्रवेश क्षमता 60 छात्र प्रति पाठ्यक्रम है। शैक्षणिक सत्र 2015-16 से इलैक्ट्रीकल इंजीनियरिंग शुरू किया गया जिसकी प्रवेश क्षमता 60 छात्र है। ृ26.00 करोड़ मानव संसाधन विकास मन्त्रालय केन्द्रीय सरकार द्वारा रूसा के अन्तर्गत स्वीकृत किए गए हंै। ृ127.00 करोड़ की विस्तृत प्रोजैक्ट रिपोर्ट रूसा के अन्तर्गत उच्चतर शिक्षा विभाग हि0 प्र0 को भेजी गई है। महात्मा गाॅंधी राजकीय अभियान्त्रिक संस्थान रामपुर भी शैक्षणिक सत्र वर्ष 2015-16 से दो व्यवसायों मकैनिकल इंजीनियरिंग तथा सिविल इंजीनियरिंग की कक्षाएं जवाहर लाल राजकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय, सुन्दरनगर में शुरू की गई है जिसमें प्रत्येक पाठ्यक्रम में 60 छात्रों की क्षमता है। इसके अतिरिक्त सी.आई.पी.ई.टी. बद्दी तथा क्षेत्रीय व्यवसायिक प्रशिक्षण संस्थान (महिला) शिमला में शैक्षणिक सत्र 2015-16 से शुरू किये गए हैं।
छः राजकीय बहुतकनीकी नामतः सुुन्दरनगर, हमीरपुर, कण्डाघाट, रोहड़ू, अम्बोटा और कांगडा को सामुदायिक विकास बहुतकनीकी योजना के तहत लाया गया है। भारत सरकार द्वारा इस योजना के तहत ृ285.80 लाख जारी किये गए हैं।
सरकार द्वारा एक नया राजकीय बहु-तकनीकी (महिला) संस्थान रैहन, जिला काॅंगड़ा में ृ26.00 करोड़ की लागत से कौशल विकास निगम की सहायता एवं एशियन विकास बैंक द्वारा वित्त पोषण से शैक्षणिक सत्र 2017-18 प्रस्तावित है। इसके साथ विभाग द्वारा एक राजकीय बहु-तकनीकी संस्थान अम्बोटा में भी वर्ष 2017-18 में प्रस्तावित है।
तकनीकी शिक्षा गुणवता सुधार कार्यक्रम चरण-3, 1 अप्रैल 2017 से लागू हो गया है और परियोजना की अवधि 3 वर्ष जो कि 31 मार्च 2020 तक तय की गई है। राज्य के तीन इंजीनियरिंग संस्थानो जवाहर लाल नेहरु राजकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय सुन्दरनगर, राजीव गांधी अभियांत्रिकी महाविद्यालय, कांगडा स्थित नगरोटा बगवां, अटल बिहारी वाजपेयी राजकीय अभियांत्रिकी/प्रोद्यौगिक संस्थान, प्रगति नगर जिला शिमला एवं हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय का चयन तकनीकी शिक्षा गुणवता सुधार कार्यक्रम चरण-3 परियोजना मे किया गया है। इस परियोजना में ृ20.00 करोड़ की राशि हिमाचल तकनीकी विश्वविद्यालय और ृ10.00 करोड़ की राशि प्रत्येक चयनित उपरोक्त संस्थानो के लिए जानी स्वीकृत की गई है।
विभाग में 14 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, शमशी, मण्डी, चम्बा, शाहपुर, नादौन, स्थित नाहन, शिमला, सोलन, रामपुर, ऊना तथा रिकांगपिओ, आई.टी.आई. (महिला) मण्डी, आई.टी.आई. (महिला) शिमला, तथा आई.टी.आई. रोंगटोंग (काजा) को विश्व बैंक सहायता प्राप्त वोकेशनल ट्रेनिंग इम्प्रूवमैंट योजना के अन्तर्गत श्रेष्ठ केन्द्रों में स्तरोन्नत किये हैं तथा कुल ृ46.50 करोड़ की राशि ृ34.85 करोड़ केन्द्रीय सहायता भारत सरकार तथा ृ11.65 करोड़ राज्य सरकार से प्राप्त हो चुकी है। अवधि 2006-07 से दिसम्बर, 2016 तक यह राशि इन संस्थानों में आधुनिक औज़ार एवं उपकरण क्रय करने, अध्यापकों को मानदेय एवं प्रशिक्षण प्रदान करने तथा भवन निर्माण इत्यादि पर खर्च की जा रही है। अब तक इस परियोजना के अन्तर्गत ृ46.47 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं।
औद्यौगिक क्षेत्र में प्रशिक्षणार्थियों को अधिक रोजगार प्रदान किये जाने हेतु उनकी निपुणता को निखारने पर विशेष बल दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त 33 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को सार्वजनिक एवं निजी सांझेदारी द्वारा जिस बारे राज्यस्तरीय कमेटी और सी0आई0आई0, पी0एच0डी0 चेम्बर आफ कामर्स एवं हिमाचल प्रदेश में स्थापित विभिन्न औद्योगिक संगठनों में आपसी परामर्श उपरान्त स्तरोन्नत किया गया है। अवधि 2008-09 से दिसम्बर, 2016 तक ृ82.50 करोड़ की धन राशि ृ2.50 करोड़ प्रति आई0टी0आई0 संस्थान के लिए भारत सरकार से भी प्राप्त हो चुकी है तथा अब तक ृ108.70 करोड़ का व्यय किया जा चुका है। (यह अधिक व्यय आई0आर0जी0 एवं जमा ब्याज की राशि में से किया गया है)।

17.स्वास्थ्य

राज्य सरकार द्वारा लोगों को प्रभावी उपाय एवं उपचार के लिए चिकित्सा सेवाएं सफलतापूर्वक प्रदान की हैं। हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, उपचारत्मक, बचाव, प्रोत्साहन एवं पुर्नवास जैसी सेवाएं, 85 चिकित्सालयों, 91 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, 577 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो, 16 ई.एस.आई. औषधालयों तथा 2,085 उपकेंद्रों के माध्यम से प्रदान कर रहा है। राज्य मंे लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए सरकार स्वास्थ्य संस्थानों में आधुनिक उपकरण, विशेष सुविधाएं, मेडिकल तथा पैरा मैडिकल स्टाफ की संख्या बढ़ाकर वर्तमान ढांचे को सुदृढ़ कर रही है।
वर्ष 2017-18 के दौरान राज्य में विभिन्न स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण गतिविधियों का विवरण निम्न प्रकार से हैः-
i) राष्ट्रीय वैक्टर बोरन रोग नियंत्रण कार्यक्रमः वर्ष 2017-18 के दौरान ;दिसम्बर, 2017 तकद्ध इस कार्यक्रम के अंतर्गत 4,13,330 रक्त पटिकाओं का परीक्षण किया गया जिनमें से 84 लक्षण अनुकूल पाई गई और इस अवधि में कोई भी मृत्यु का मामला प्रकाश में नहीं आया।
ii) राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रमः राष्ट्र्ीय कुष्ठ रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रचलित दर जो वर्ष 1995 में 5.14 प्रति दस हजार थी, दिसम्बर, 2017 में घटकर 0.24 प्रति दस हजार रह गई। 2017-18 के दौरान (दिसम्बर, 2017 तक) 103 नए कुष्ठ रोगियों का पता लगाया गया तथा इस कार्यक्रम के अंतर्गत 107 मामले रोग मुक्त किए गए तथा 153 कुष्ठ रोगी उपचाराधीन हैं जो विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों से मुफ्त में एम.डी.टी. प्राप्त कर रहे हैं।
iii) संषोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रमः इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश में 1 क्षय रोग चिकित्सालय, 12 जिला क्षय रोग केंद्र/क्लीनिक, 74 क्षयरोग युनिट और 208 माईक्रोस्कोपिक कंेद्र, एक माध्यमिक संदर्भ प्रयोगशाला, एक राज्य दवा भण्डार, एक राज्य क्षय रोग प्रशिक्षण केन्द्र, 9 सी0वी0 जांच प्रयोगशालाएं, 4 जिला दवा रेजिस्टैन्ट केन्द्र तथा तीन नोडल दवा रेजिस्टैन्ट केन्द्र जिनमें 315 बिस्तरों का प्रावधान है, कार्यरत हैं। वर्ष 2017-18 में 31.12.2017 तक 14,330 क्षय रोगियों का पता लगाया गया जिनमंे इस बीमारी के लक्षण अनुकूल पाए गए तथा 82,824 व्यक्तियों के थूक की जांच की गई। हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां सभी जिलों को इस परियोजना के अंतर्गत लाया गया है। इस वर्ष कुल क्षय रोग अधिसूचना की दर 210 प्रति लाख प्रतिवर्ष थी तथा 90 प्रतिशत लक्ष्यों के मुकाबले हिमाचल प्रदेश का उपचार दर 89 प्रतिशत है।
iv) राष्ट्रीय अन्धता निवारण कार्यक्रमः- वर्ष 2017-18 में निर्धारित लक्ष्य 27,500 मोतिया बिन्द आप्रेशन के अन्तर्गत दिसम्बर, 2017 तक 21,367 मोतिया बिन्द आप्रेशन किये गये जिनमें 20,854 मोतिया बिन्द आप्रेशन में आई.ओे.एल लगाए गये।
v) राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रमः यह कार्यक्रम प्रदेश में प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंग के रूप में सामुदायिक आवश्यकता निर्धारण नीति के आधार पर चलाया जा रहा है। इस दृष्टिकोण के अन्र्तगत धरातल स्तर पर कार्यरत बहुउद्देेशीय स्वास्थ्य कर्मचारियों (दोनों महिला व पुरूष) द्वारा विभिन्न परिवार कल्याण क्रियाकलापों का अनुमान संबंधित क्षेत्र/ जनसंख्या की जरूरतों अनुसार लगाया जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2017-18 के दौरान दिसम्बर, 2017 तक क्रमशः 6,265 बन्धयाकरण, 11,996 द्वारा लूप निवेश और ओ.पी. व सी.सी. प्रयोगकर्ता क्रमशः 27,957 74,703 है।
vi) व्यापक टीकाकरण कार्यक्रमः- हिमाचल प्रदेश में यह कार्यक्रम आर.सी.एच. के अंतर्गत चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्वेश्य माताओं, बच्चों तथा नवजात बच्चों में मृत्यु दर तथा रूग्ण्ता को कम करना है। टीकाकरण से बचाव वाली अन्य बिमारियों जैसे क्षयरोग, गलघोटू, घनुष्टकार नवजात टैटनस, पोलियो तथा खसरा जैसी बीमारियों में भी गत वर्षाें में सराहनीय कमी आई हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2017-18 के लक्ष्य तथा उपलब्धियां नीचे सारणी 17.1 में दी गई है
इस कार्यक्रम के अंतर्गत पिछले वर्ष की तरह पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान पुनः चलाया गया। वर्ष 2017-18 के दौरान इस अभियान का प्रथम चरण 28.01.2018 तथा दूसरा चरण 11.03.2018 (अन्तिम) को पूरा किया जायेगा।
vii) मुख्यमंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल येाजनाः प्रदेश सरकार द्वारा एकल नारियों, 80 वर्ष से अधिक वरिष्ठ नागरिकों, दिहाड़ीदारों, अंशकालिक श्रमिक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता/ साहिकाएं, मिड-डे-मील कार्यकर्ता, अनुबन्ध कर्मचारी तथा 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग व्यक्तियों के लिए 1.03.2016 से मुख्यमंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना आरम्भ कर दी गई है। इस योजना के अन्तर्गत 1.05 लाख से अधिक परिवारों को स्मार्ट कार्ड जारी किये गये है। योजना के अन्तर्गत स्मार्ट कार्ड धारक परिवार को आम बीमारी में अस्पताल में भर्ती होने पर ृ30,000 तथा गंभीर बीमारी में ृ1.75 लाख के निःशुल्क ईलाज का प्रावधान किया गया है। कैंसर की स्थिति में यह सीमा ृ2.25 लाख है तथा 31 दिसम्बर, 2017 तक 8,000 लाभार्थियों ने ृ6.00 करोड़ के निःशुल्क ईलाज का लाभ प्राप्त किया है।
viii) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशनः इस योजना के अन्तर्गत 95 स्वास्थ्य संस्थाओं में 24 घण्टे आपातकालीन सेवाओं के लिए चिन्हित किया गया है। इसके अतिरिक्त 688 रोगी कल्याण समितियां, जिला अस्पताल, सिविल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में चल रही है। 31.12.2017 तक ृ9.91 करोड़़ की राशि सभी जिलों को वितरित कर दी गई हैं।
ix) राष्ट्रीय एडस नियंत्रण कार्यक्रमः वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक 1,40,560 जांच किए व्यक्तियों में से 391 एच.आई.वी. के लक्षण अनुकूल मामले पाए गए।
a) एकीकृत जांच एवं परामर्ष केन्द्र कार्यक्रमः हिमाचल प्रदेश में कुल 45 एकीकृत परामर्श एवं जांच केन्द्रों द्वारा जांच एवं परामर्श सुविधाएं प्राप्त करवाई जा रही है। वर्ष 2017-18 दिसम्बर, 2017 तक के दौरान कुल जांच किए गए लोगों में 42,560 ए.एन.सी. रोगी थे जिनमें से 27 एच.आई.वी. से ग्रसित हैं। हिमाचल प्रदेश में दो मोबाईल आई.सी.टी.सी. वैन भी कार्यरत है।
b) यौन रोग नियंत्रणः हिमाचल प्रदेश में कुल 20 आर.टी.आई./एस.टी.आई. क्लीनिक द्वारा यौन रोगियों का उपचार किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 दिसम्बर, 2017 तक में 34,878 लोगों ने आर.टी.आई./ एस.टी.आई. सेवाएं ली।
c)रक्त सुरक्षा कार्यक्रमः राज्य में 15 रक्त कोषों के माध्यम से रक्त एकत्रित किया जा रहा है। 3 रक्त अंगों को पृथक सम्बन्धित युनिट आई.जी.एम.सी. शिमला, जोनल अस्पताल मण्डी और आर.पी.जी.एम.सी.टांडा में कार्यरत हैं। वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक 308 स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों का आयोजन प्रदेश में किया गया। राज्य में एक मोबाईल रक्त बस, 4 डोनर कोचो वाली भी कार्यरत है।
d) एंट्री रेट्रोवायरल उपचार कार्यक्रमः प्रदेश में 3 एंट्री रेट्रोवायरल उपचार केन्द्र आई.जी.एम.सी. शिमला, क्षेत्रीय अस्पताल हमीरपुर और डा.आर.पी.जी.एम.सी.टांडा में स्थित है और 3 एफ ए.आर.टी. तथा 5 लिंक ए.आर.टी. केन्द्रों द्वारा एच.आई.वी. से पीडित लोगों को मुफ्त दवाईयां उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
e) लक्षित हस्तक्षेपः हिमाचल प्रदेश में उच्च जोखिम पूर्ण समूह के लिए 18 लक्षित हस्तक्षेप परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। 2017-18 वर्ष में दिसम्बर, 2017 तक 14,731 लोगों को यौन रोग सम्बन्धित सुविधाएं प्रदान करवाई गई। एकीकृत जांच एवं परामर्श केन्द्रों में 8,957 जांच किये गये व्यक्तियों में से 6 मामले लक्षण अनुकूल पाये गये।
राज्य में स्वास्थ्य शिक्षा, पैरा मैडिकल और नर्सिग को बेहतर प्रशिक्षण तथा स्वास्थ्य गतिविधियों और दन्त सेवाओं को मोनीटर तथा समन्वय करने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा प्रशिक्षण तथा अनुसंधान निदेशालय की स्थापना की गई।
इस समय प्रदेश के छः आयुर्विज्ञान महाविद्यालय आई.जी.एम.सी.शिमला, डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, टाण्डा, डा0 यशवन्त सिंह परमार राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय नाहन, पं0 जवाहर लाल नेहरु राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, चम्बा, डा0 राधा कृष्ण राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, हमीरपुर, श्री लाल बहादुर शास्त्री राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, मण्डी तथा एक सरकारी दन्त आयुर्विज्ञान महाविद्यालय शिमला में कार्यरत है। इस के अतिरिक्त निजी क्षेत्र में एक मेडिकल काॅलेज तथा चार दन्त आयुर्विज्ञान महाविद्यालय कार्यरत है। शैक्षणिक सत्र 2017-18 के दौरान 139 ए0एन0एम0 प्रशिक्षण कोर्स, 1,186 जी0एन0एम0 कोर्स, 914 बी0एस0सी0 नर्सिंग, 185 पोस्ट बेसिक बी0एस0सी0 नर्सिंग और 85 एम0एस0सी0 नर्सिंग की सीटें सरकारी व निजी क्षेत्र में भरी गई। शैक्षणिक सत्र 2017-18 के दौरान 650 एम0बी0बी0एस0 सीटें, 340 बी0डी0एस0 सीटें तथा 94 एम0डी0एस0 सीटें सरकारी व निजि क्षेत्र में तथा इसके अतिरिक्त 205 पी0जी0 सीटें विभिन्न विशेषताओं में आई0जी0एम0सी0 शिमला तथा डाॅ0 आर0पी0जी0एम0सी0 टांडा में भरी गई। चालू वित्त वर्ष के दौरान केन्द्रीय प्रायोजीत योजनाओं के अन्तर्गत मौजूदा जिला अस्पतालों में आर्युविज्ञान महाविद्यालय खोलने/क्षेत्रीय अस्पतालों में सीविल कार्य करने, मशीनो की खरीद एवं उपकरणांे/फर्नीचर की खरीद के लिए धनराशि जारी कर दी गई है जिसका ब्यौरा निम्न प्रकार से हैः-
इस निदेशालय के अंतर्गत संस्थानवार प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:-
(a) इन्दिरा गांधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालयः- इस निदेशालय के अंतर्गत संस्थावार उपलब्धियों का वर्णन निम्न प्रकार से हैः- इन्दिरा गाँधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल को अब सुपर स्पेशिलिटी संस्थान के रूप में उन्नयन किया गया है और यह राज्य का प्रमुख स्वास्थ्य संस्थान है। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने ृ1,400.00 लाख की धनराशि केन्द्र प्रायोजित योजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित सरकारी अस्पतालों में आघात देखभाल सुविधाओं को विकसित करने के लिए प्रदान की गई है। आई0जी0एम0सी0 शिमला में सुपर स्पेेशलिटी ब्लाॅक की स्थापना के लिए सरकार ने ृ262.00 करोड़ की डी.पी.आर. को मंजूरी दी है तथा सरकार ने मौजूदा कैंसर अस्पताल को विकसित करने के लिए ृ1,372.94 लाख की स्वीकृति प्रदान की है। वित्तीय वर्ष के दौरान संस्थान ने आई0जी0एम0सी0 परिसर में जेनेरिक दवा भंडार आरम्भ किया है जिसमें रोगियों को जेनेरिक दवाएं निःशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही है। ये जेनेरिक दवाएं विशेष आउटलेट नामक “जन औषधि स्टोर” के माध्यम से जनसाधारण को उपलब्ध करवाई जा रही है। आई0जी0एम0सी0 परिसर में “अमृत दुकान“ कार्यात्मक की गई है जहां पर टेªडमार्क दवाएं उचित एवं कम कीमत पर सभी रोगियों को उपलब्ध करवाई जा रही है।
वित्तीय उपलब्ध्यिांः इस वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए कुल बजट ृ234.48 करोड़ का प्रावधान रखा गया जिसमें ृ137.09 करोड़ 31.12.2017 तक व्यय किए गए।
(b) डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय कांगडा स्थित टांडाः- डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय प्रदेश का दूसरा मेडिकल काॅलेज है जो अक्तूबर 1996 में स्थापित किया गया। इस संस्थान में पहला एम0बी0बी0एस0 का बैच 50 छात्रों की वार्षिक क्षमता के साथ वर्ष 1999 में शुरु किया था जोकि वर्ष 2011 से बढ़ाकर 100 छात्र प्रतिवर्ष कर दिया है। वर्तमान में 19वां बैच इस संस्थान में चल रहा है। भारत सरकार द्वारा आघात केन्द्र स्तर-प् जिसे पहले आघात् केन्द्र स्तर-प्प् प्रस्तावित किया गया था, के लिए ृ6.08 करोड़ की राशि तथा ृ2.56 करोड़ की राशि वृद्धावस्था यूनिट स्थापित करने के लिये जारी किये गये। नर्सिंग स्कुलों को मजबूत करने हेतु सरकार द्वारा ृ12.55 करोड़ लागत से मौजूदा जी0एन0एम0 स्कूल के निर्माण के लिए स्वीकृति प्रदान की गई है जिसके लिए ृ3.76 करोड़ रुपये की पहली किस्त जारी कर दी गई है।
वित्तीय उपलब्ध्यिांः वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए कुल बजट ृ11,859.97 लाख का प्रावधान रखा गया जिसमें से ृ7,826.05 लाख 31.12.2017 तक व्यय किए गए।
(c) डाक्टर यषवंत सिंह परमार राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय नाहन: डाक्टर यशवंत सिंह परमार राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय नाहन, जिला सिरमौर 100 एम0बी0बी0एस0 सीटों की क्षमता के साथ स्थापित राज्य का तीसरा आयुर्विज्ञान महाविद्यालय है। इस वित्तीय वर्ष के दौरान एम0बी0बी0एस0 छात्रों का दूसरा बैच इस संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है। सरकार ने केन्द्र प्रायोजित योजना के तहत ृ17.74 करोड़ मेडिकल काॅलेज के निर्माण और मशीनरी एवं उपकरण खरीदने हेतु प्रदान किए गए है। ृ10.00 करोड़ की धनराशि का क्षेत्रीय अस्पताल नाहन की वर्तमान भवन में परिवर्तन एवं नवीकरण के लिए उपयोग किया गया है जबकि ृ20.00 करोड़ एच0एस0सी0सी0 को नए मेडिकल काॅलेज का निर्माण कार्य शुरु करने के लिए जारी कर दिए गए है।
वित्तीय उपलब्ध्यिांः वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए कुल बजट ृ5,372.03 लाख का प्रावधान रखा गया जिसमें से ृ2,206.93 लाख 31.12.2017 तक व्यय किए गए।
(d) पं0 जवाहर लाल नेहरु राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, चम्बाः- पं0 जवाहर लाल नेहरु राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, चम्बा, प्रदेश का चैथा महाविद्यालय है जो केन्द्र प्रायोजित योजना के तहत 100 एम0बी0बी0एस0 छात्रों की वार्षिक क्षमता के साथ वर्ष 2017 में आरम्भ किया गया। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार द्वारा ृ48.62 करोड़ मेडिकल काॅलेज के सिविल कार्य तथा मशीनरी एवं उपकरणों की खरीद के लिए प्रदान किए गए। वर्तमान में मेडिकल काॅलेज चम्बा के लिए आघात केन्द्र स्तर-प्प्प् स्वीकृत किया गया है।
वित्तीय उपलब्ध्यिांः चालू वित्तीय वर्ष के दौरान इस संस्थान को ृ61.46 लाख उपलब्ध करवाए गए है जिसमें से 31.12.2017 तक ृ10.23 करोड़ व्यय किये गये।
(ई) डॉ. राधा कृष्णन राजकीय मेडिकल कॉलेज, हमीरपुर: डॉ. राधा कृष्णन राजकीय मेडिकल कॉलेज, केंद्र प्रायोजित योजना के तहत स्थापित हमीरपुर राज्य का पांचवां मेडिकल कॉलेज है, जिसमें वार्षिक प्रवेश संख्या 100 है एमबीबीएस छात्र. सरकार ने वर्तमान में न्यू मेडिकल कॉलेज के सिविल कार्य के लिए `40.40 करोड़ जारी किए थे वित्तीय वर्ष। 100 छात्रों के वार्षिक प्रवेश के साथ नया एमबीबीएस बैच आगामी शैक्षणिक सत्र में शुरू किया जाएगा।
(च) श्री. लाल बहादुर शास्त्री राजकीय मेडिकल कॉलेज, मंडीःछठे नवनिर्मित मेडिकल का कब्ज़ा कॉलेज को राज्य सरकार ने ईएसआईसी (कर्मचारी राज्य बीमा निगम लिमिटेड) से ले लिया था। वित्तीय वर्ष 2016-17 में. 100 छात्रों की वार्षिक प्रवेश क्षमता वाला एमबीबीएस छात्रों का पहला बैच शुरू हो गया है शैक्षणिक वर्ष 2017-18 के दौरान। मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य ईएसआईसी और मशीनरी द्वारा पूरा किया जाना है संस्थान को पूरी तरह कार्यात्मक बनाने के लिए उक्त निगम द्वारा `63.00 करोड़ की राशि के उपकरण उपलब्ध कराए जाएंगे अगले वित्तीय वर्ष के दौरान. राज्य सरकार ने मशीनरी और उपकरणों की खरीद के लिए `2.00 करोड़ भी प्रदान किए थे।
वित्तीय उपलब्धियां: चालू वित्तीय वर्ष के दौरान `23.78 करोड़ का बजट प्रावधान है और व्यय तक 31.12.2017 `12.37 करोड़ है।
(जी) डेंटल कॉलेज और अस्पताल शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकारी डेंटल कॉलेज और अस्पताल, शिमला था प्रति वर्ष 20 छात्रों की प्रवेश क्षमता के साथ 1994 में स्थापित। वर्ष 2007-08 से 60 विद्यार्थियों का प्रवेश से बीडीएस कोर्स शुरू किया गया है। इसके अलावा 17 पीजी की वार्षिक प्रवेश क्षमता के साथ सात विशिष्टताओं में एमडीएस पाठ्यक्रम छात्रों की पढ़ाई भी शुरू कर दी गई है. डेंटल कॉलेज एवं हॉस्पिटल खोलने का मुख्य उद्देश्य पूरा करना था राज्य में मरीजों को बेहतर दंत स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से दंत चिकित्सकों की मांग।
वित्तीय उपलब्धियां: वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान बजट का प्रावधान है `19.67 करोड़ और 31.12.2017 तक का व्यय `11.40 करोड़ है।
भारतीय चिकित्सा पद्वति (आयुर्वेद) तथा होम्योपैथी का प्रदेश में लोगों को चिकित्सा सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान है। राज्य सरकार द्वारा भी इस पद्वति को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 1984 में अलग से आयुर्वेदा विभाग की स्थापना की गई और लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए 2 क्षेत्रीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, 2 वृत चिकित्सालय, 3 जनजातीय चिकित्सालय, 17 दस बिस्तरों, 7 बीस बिस्तरों, 1 तीस बिस्तरों, 1 पचास बिस्तरों वाले चिकित्सालय, 1,175 आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र, 3 युनानी स्वास्थ्य केंद्र, 14 हाम्ेयोपैथिक स्वास्थ्य केंद्र तथा 4 आमची क्लीनिक कार्य कर रहे हैं। विभाग के अंतर्गत कार्यरत 3 आर्युवैदिक फार्मेंसियां जोकि जोगिन्द्रनगर जिला मण्डी, माजरा जिला सिरमौर तथा पपरोला जिला कांगड़ा में औषधियों का निर्माण किया जाता है। ये फार्मेसियां आयुर्वेदिक स्वास्थ्य संस्थाओं की आवश्यकताओं को पूरा करती है तथा साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है। पपरोला, जिला कांगड़ा में 60 विद्यार्थी प्रतिवर्ष की क्षमता से बी.ए.एम.एस. की उपाधि और 39 स्नातकोत्तर चिकित्सकों को आयुर्वेदिक शिक्षा देने के लिए राजीव गांधी स्नातकोतर आयुर्वेदिक महाविद्यालय कार्यरत है। इसके अतिरिक्त महाविद्यालय में काया-चिकित्सा, शाल्क्य तंत्र, शल्य तंत्र, प्रसूति तन्त्र, समहिता एंव सिद्धान्त, द्रव्य गुण, रोग निदान, स्वास्थ्य वृत, पंचकर्म, बाल रोग व रस शास्त्र की स्नातकोतर कक्षाएं भी शुरू कर दी हैं। विभाग द्वारा जोगिन्द्रनगर में 30 छात्रों की क्षमता का आयुर्वेदिक ;बीद्ध फार्मेसी कोर्स आरम्भ किया गया है। आयुर्वेदा विभाग द्वारा राष्ट्र्ीय स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसे मलेरिया उन्मूलन, परिवार कल्याण, अनीमिया मुक्त, एडस, टीकाकरण, पल्स पोलियो अभियान आदि में भी योगदान देता है। वर्ष 2017-18 के लिए ृ245.12 करोड़ का बजट का प्रावधान किया गया है।
राज्य के विभिन्न जड़ी बूटियों के स्त्रोतों का संरक्षण करने हेतु विभाग द्वारा प्रदेश में जोगिन्द्रनगर ;जिला मण्डीद्ध, नेरी ;जिला हमीरपुरद्ध व डुमरेडा़ ;जिला शिमलाद्ध तथा जंगल झलेड़ा ;जिला बिलासपुरद्ध में चार हर्बल बगीचों की स्थापना की गई है। वर्ष 2017-18 के लिए राष्ट्रीय आयुष मिशन के अन्र्तगत औषधीय पौधों के लिए ृ75.54 लाख का वार्षिक कार्य योजना भारत सरकार द्वारा स्वीकृत की गई है, जिसके अन्तर्गत 7 है0 भूमि पर किसानों द्वारा औषधीय पौधों की खेती की जाएगी तथा सार्वजानिक क्षेत्र में दो लघु पौधशालाएं, एक सुखाने का शेड और एक भण्डारण गोदाम व एक सामुदायिक भण्डारण गोदाम भी स्थापित किया जाएगा।
वर्ष 2017-18;दिसम्बर, 2017 तकद्ध के दौरान डी.टी.एल. जोगिन्द्रनगर द्वारा सरकारी एवं निजी फार्मेसियों के 491 नमूनों का विश्लेषण किया गया जिससे ृ1.71 लाख का राजस्व प्राप्त किया गया।
विकासात्मक गतिविधियांः
(i) निःषुल्क षिविर आयुष चिकित्सा को लोकप्रिय एंव लोगों को जागरूक करने हेतु वर्ष 2016-17 के दौरान प्रदेश के विभिन्न भागों में 123 निःशुल्क चिकित्सा शिविरों का आयोजन कर 67,785 रोगियों का जांच एंव इलाज किया गया।
(ii) लाइसैन्स विभाग द्वारा 07 आयुर्वेदिक औषधी निमार्ण लाईसैन्स, 06 लोन लाईसैन्स तथा 01 होम्योपैथिक औषधी निर्माण लाईसैन्स प्रदान किया गया।

18.समाज कल्याण कार्यक्रम

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, हिमाचल प्रदेश का मुख्य लक्ष्य अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछडे़ वर्गों, वृद्धों एवं बेसहारा, शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों, महिलाओं, विधवाओं तथा गरीब व महिलाओं जो नैतिक खतरे में हों, की सामाजिक कल्याण कार्यक्रम के अन्र्तगत निम्न परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैः-
सामाजिक सुरक्षा पैंशन योजना :
1) वृद्धावस्था पैंशनः ऐसे वृद्ध व्यक्ति जिनकी आयु 60 वर्ष या इससे अधिक है परन्तु 80 वर्ष से कम हो तथा उनकी देख-रेख/ पालन पोषण का उचित साधन न हों व जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो को ृ700 प्रति माह पैंशन दी जाती है। 80 वर्ष से अधिक आयु के वृद्धों और पैशनरों को बिना किसी आय सीमा के ृ1,250 प्रति माह की दर से पैंशन दी जा रही है।
2) दिव्यांग राहत भत्ताः ऐसे दिव्यांग व्यक्ति जिन्हें 40 प्रतिशत या इससे अधिक स्थाई दिव्यांगता हो तथा जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो, को ृ700 प्रति माह की दर से पैंशन दी जा रही है। इसके अतिरिक्त 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को ृ1,250 प्रति माह की दर से बिना किसी आय सीमा के पैंशन प्रदान की जा रही है बशर्तें कि वे किसी सरकारी/गैर सरकारी बोर्ड व निगम में कार्यरत न हो तथा किसी अन्य प्रकार की पैंशन प्राप्त न कर रहा हो। वृद्धावस्था तथा दिव्यांग भत्ता हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में 2,14,608 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । इन योजनाओं हेतु ृ225.98 करोड़ के बजट प्रावधान में से 31.12.2017 तक ृ178.44 करोड़ व्यय किए जा चुके है।
3) विधवा/परित्यक्त महिला/एकल नारी पैंशन: ऐसी महिला जो विधवा, परित्यक्ता अथवा 45 वर्ष से अधिक आयु की एकल नारी हो तथा उनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो, इनको भी ृ700 प्रति माह पैंशन दी जाती है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में 80,688 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ120.54 करोड़ के बजट प्रावधान में से 31.12.2017 तक ृ76.45 करोड़ व्यय किए जा चुके है ।
4) कुष्ठ रोगी पुर्नवास भत्ताः- ऐसे कुष्ठ रोगी जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा चयनित किए गए हो तथा कोई भी आयु एंव आय सीमा लागू नहीं है, ऐसे कुष्ठ रोगियों को ृ 700 प्रति माह कुष्ठ रोगी पुर्नवास भत्ता दिया जाता है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1,482 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ1.23 करोड़ के बजट प्रावधान में से 31.12.2017 तक ृ75.79 लाख व्यय किए जा चुके है ।
5) इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पैंशन योजना: इस योजना के अन्र्तगत 60 वर्ष या इससे अधिक आयु के गरीबी रेखा से नीचे रह रहे चयनित परिवारों के सभी सदस्य पात्र है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में 94,120 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ43.41 करोड़ के बजट प्रावधान में से 31.12.2017 तक ृ 34.83 करोड़ व्यय किए जा चुके हंै।
6) इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पैंशन योजनाःइस योजना के अन्र्तगत 40 से 79 वर्ष के आयु वर्ग में गरीबी रेखा से नीचे चयनित परिवारों की विधवाओं को उपरोक्त पैंशन दी जा रही है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में 22,020 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ10.55 करोड़ के बजट प्रावधान में से 31.12.2017 तक ृ7.72 करोड़ व्यय किए जा चुके हंै।
7) इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पैंशन योजनाः इस योजना के अन्र्तगत 18 से 79 वर्ष के आयु वर्ग में गरीबी रेखा से नीचे चयनित परिवारों के 80 प्रतिशत दिव्यांग व्यक्तियों को उपरोक्त पैंशन दी जा रही है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में 929 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ72.00 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2017 तक ृ34.88 लाख व्यय किए जा चुके हंै।
उपरोक्त सभी केन्द्रीय योजनाओं के अन्र्तगत केन्द्र सरकार से इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पैंशन योजना के अन्र्तगत वृद्धावस्था पैंशन हेतु 60-79 वर्ष की आयु वर्ग के लिए ृ200 व 80 वर्ष से अधिक आयु के पैंशनरों हेतु ृ500 प्रति माह प्रति पैंशनर की दर से प्राप्त होती है। जबकि विधवा पैंशनरों व दिव्यांगता पैंशनरों हेतु ृ300 पैंशनर की दर से प्राप्त होते है। शेष राशि वृद्वावस्था पैंशन हेतु प्रति माह ृ500 व 80 वर्ष से अधिक आयु वालों को ृ750 तथा विधवा पैंशनरों हेतु ृ400 प्रति पैंशनर की दर से व सेवा शुल्क प्रदेश सरकार द्वारा वहन किया जा रहा हैे जिसका बजट प्रावधान राज्य वृद्वावस्था तथा विधवा पैंशन योजना के बजट में किया गया है ताकि सभी प्रकार के पैंशनरों को एक सामान की दर से ृ700, 80 वर्ष से कम प्रति माह व 80 वर्ष तथा उस से अधिक आयु के पैंशनरों को ृ1,250 प्रति माह की दर से पैंशन प्राप्त हो सके। इसी प्रकार इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांग पैंशन योजना के अन्तर्गत प्रदेश सरकार ृ950 प्रति माह प्रति पैंशनर की दर से व सेवा शुल्क वहन कर रही है जिसका बजट प्रावधान राज्य दिव्यांग पैंशन योजना के बजट में किया गया है ताकि 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले सभी पैंशनरों को एक सामान की दर से ृ1,250 प्रति माह की दर से पैंशन प्राप्त हो सके।
विभाग तीन निगमों द्वारा जो कि हि0प्र0 अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम, हि0 प्र0 पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम तथा हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन-जाति विकास निगम को स्वंय रोजगार योजनाएं चलाने हेतु निवेश शीर्ष के अन्र्तगत राशि उपलब्ध करवा रहा है। इन निगमों के लिए वर्ष 2017-18 के लिए ृ9.50 करोड़ के बजट का प्रावधान है तथा 31.12.2017 तक ृ1.72 करोड़ की राशि जारी कर दी गई है।
इस कार्यक्रम के अन्र्तगत वर्ष 2017-18 के दौरान निम्नलिखित योजनाएं कार्यान्वित की गई हैंः-
i) अन्तर्जातीय विवाह के लिए प्रोत्साहनः अनुसूचित जाति एवं गैर अनुसूचित जाति से छुआछूत की परम्परा को मिटाने के लिए सरकार अन्तर्जातीय विवाह प्रणाली को प्रोत्साहन दे रही है। इसके अन्र्तगत अन्तर्जातीय विवाह के लिए ृ50,000 प्रति दम्पति प्रोत्साहन हेतु दिये जाते हैंै। वर्ष 2017-18 में इस योजना के अन्र्तगत ृ1.56 करोड़ के बजट से 302 दम्पतियों के लक्ष्य के विरूद्ध 219 दम्पतियों को 31.12.2017 तक ृ1.21 करोड़ प्रदान किये गए हैं।
ii) गृह अनुदानः इस योजना के अन्र्तगत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, दिव्यांग, विधवा/बेसहारा/एकल नारी के प्रति परिवार जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो, को ृ1,30,000 प्रति परिवार आवास निर्माण हेतु ृ25,000 आवास मुरम्मत हेतु दिये जा रहे हैं। वर्ष 2017-18 में ृ17.50 करोड़ के बजट प्रावधान से 1,346 व्यक्तियों को 31.12.2017 तक ृ13.51 करोड़ की राशि प्रदान कर लाभान्वित किया गया है।
iii)कम्पयूटर प्रशिक्षण व कार्य में निपुणता तथा संबंधित कार्यकलापः इस योजना के अन्र्तगत अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग तथा अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बन्धित ऐसे व्यक्ति एकल नारी, दिव्यांग तथा विधवा जो गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हों या जिनकी वार्षिक आय ृ2.00 लाख से कम हो उन्हें मान्यता प्राप्त कम्पयूटर कोर्स में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। विभाग द्वारा ृ1,350 प्रतिमाह प्रति अभ्यार्थी तथा ृ1,500 प्रतिमाह दिव्यांग अभ्यार्थी प्रशिक्षण फीस वहन की जाती है। प्रशिक्षण पर अधिक खर्च आने पर अतिरिक्त राशि अभ्यार्थी को स्वंय व्यय करनी पड़ती है। प्रशिक्षण के दौरान उम्मीदवार को ृ1,000 प्रतिमाह तथा ृ1,200 प्रतिमाह दिव्यांग अभ्यार्थियों को छात्रवृति दी जाती है। प्रशिक्षण ग्रहण करने के पश्चात अभ्यार्थी को छः माह के लिए विभिन्न कार्यालयों में कम्पयूटर दक्षता हासिल करने के लिए रखा जाता है। इस अवधि में अभ्यार्थी को ृ1,500 प्रति माह तथा ृ1,800 प्रति माह दिव्यांग अभ्यार्थियों क¨ राशि दी जाती है। वर्ष 2017-18 के लिए ृ4.54 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया है जिसमें से 31.12.2017 तक ृ1.98 करोड़ व्यय किए गए तथा 2,998 प्रशिक्षणार्थियों के लक्ष्य के विरूद्ध 1,905 प्रशिक्षणार्थियों को लाभान्वित किया गया।
iv) अनुवर्ती कार्यक्रमः इस योजना के अन्र्तगत अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति व पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो, को बढ़ई कार्यों, कतई व बुनाई तथा चमड़ा कार्य के लिये औजार खरीदने हेतु ृ1,300, तथा सिलाई मशीनें खरीदने के लिए से ृ1,800 प्रति लाभार्थी को सहायता दी जाती है। वर्ष 2017-18 में इस योजना के अन्र्तगत ृ1.36 करोड़ बजट का प्रावधान रखा गया तथा ृ88.40 लाख की राशि 31.12.2017 तक व्यय की गई जिससे 7,527 लाभार्थीयों में से 4,784 लाभार्थी लाभान्वित हुए।
v) अनु0 जाति/ जन जाति(अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 के अन्र्तगत पीड़ित अनुसूचित जाति/जन-जाति परिवारों को राहतः उपरोक्त अधिनियम के नियमों के अन्र्तगत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति के उन परिवारों को वित्तीय राहत दी जाती है जिन पर अन्य समुदाय के लोगों द्वारा जाति के आधार पर अत्याचार किए जाते हैं। अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति को ृ1.00 लाख से ृ8.25 लाख तक की राहत राशि प्रदान की जाती है जो कि अत्याचार के प्रकार पर निर्भर है। वर्ष 2017-18 में उक्त योजना के अन्तर्गत ृ50.00 लाख का बजट प्रावधान किया गया है तथा 31.12.2017 तक ृ20.60 लाख की राशि व्यय करके 24 पीड़ित व्यक्तियों लाभान्वित किया गया।
विभाग दिव्यांगजन के लिए श्असीमश् (सक्षम, सशक्तीकरण तथा दिव्यागंजन के लिए मुख्यधारा) नाम से एक विस्तृत एकीकृत योजना वर्ष के अन्तर्गत माह मई,2017 से आरम्भ कर उसका संचालन कर रहा है जिसके मुख्य घटकों की 31.12.2017 तक की भौतिक एवं वित्तीय उपलब्ध्यिों का विवरण निम्न रूप से हैः-
i) दिव्यांग छात्रवृतिः इसका मुख्य उद्वेश्य सभी तरह की दिव्यांगता जिन में श्रवणदोष दिव्यांग विद्यार्थी जिनकी दिव्यांगता 40 प्रतिशत या इससे अधिक है भी शामिल हैं, बिना किसी आयु सीमा केे विद्यार्थीयों को छात्रवृति प्रदान करवा रहा हैं । इस घटक के अन्र्तगत जो विद्यार्थी छात्रावासों में नहीं रहते हैं उनकी छात्रवृति ृ500 से ृ1,750 प्रति माह तथा छात्रावास में रहने वाले छात्रों को ृ1,500 से ृ3,000 तक प्रति माह छात्रवृति प्रदान की जाती हैें। 31.12.2017 तक ृ108.00 लाख के बजट में से ृ82.67 लाख व्यय किए गए तथा 932 विधार्थियों को लाभान्वित किया गया।
ii) दिव्यांग विवाह अनुदानः सक्षम युवक व युवतियों जिनकी आयु विवाह योग्य है को दिव्यांगजन से विवाह हेतु जिनकी दिव्यांगता 40 प्रतिशत से कम न हो क¨ प्रोत्साहित करने के आशय से 40 प्रतिशत से 69 प्रतिशत तक ृ25,000 तथा 70 प्रतिशत से ऊपर वाले को ृ50,000 तक राज्य सरकार द्वारा यदि दोनों दिव्यांग हो तो उन्हें विवाह होने के बाद विवाह अनुदान दिया जाता है। इस वर्ष इस योजना के अन्तर्गत ृ36.00 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2017 तक ृ19.66 लाख व्यय हुए जिससे 128 व्यक्तियों को लाभान्वित किया गया।
iii) जागरूकता अभियानः इस घटक के अन्र्तगत खण्ड एवं जिला स्तर के शिविरों का आयोजन किया जाता है जिसमें दिव्यांगजन संघ के प्रतिनिधियों पंचायत प्रतिनिधियों एवं स्वंय सहायता समूहों के सदस्यों को आंमत्रित किया जाता है। इन शिविरों में दिव्यांगजनों केे चिकित्सा प्रमाण-पत्र बनाए जाते हैं और विभिन्न यन्त्र एंव सुविधाएं प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त दिव्यांगजनों केे लिए चलाई जा रही विभागीय योजनाओं के बारे में जागरूक किया जाता है। वर्ष 2017-18 में ृ7.00 लाख के बजट का प्रावधान है तथा 31.12.2017 तक इस योजना के अन्र्तगत ृ7.00 लाख की राशि व्यय की जा चुकी है।
iv) स्वः रोजगारः- 40 प्रतिशत या इससे अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को लघु औद्योगिक इकाईयां स्थापित करने के लिए अल्प संख्यक वित्त एवं विकास निगम के माध्यम से ऋण उपलब्ध करवाए जाते हैं जिस पर कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ृ10,000 या परियोजना लागत का 20 प्रतिशत (जो भी कम हो) का उपदान उपलब्ध करवाता है। वर्ष 2017-18 में 31.12.2017 तक निगम द्वारा 36 दिव्यांग व्यक्तियों को ृ1.65 करोड़ के ऋण उपलब्ध करवाये गये। अल्पसंख्यक निगम से अनुदान के प्रस्ताव प्राप्त होने की प्रतीक्षा है।
v) कौशल विकासः चयनित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से दिव्यांगजनों को चिन्हित व्यवसायों में व्यवसायिक प्रशिक्षण निःशुल्क दिया जाता है और ृ1,000 प्रति माह की दर से प्रशिक्षार्थी को छात्रवृति दी जाती है। इस योजना के अन्र्तगत ृ10.00 लाख का बजट प्रावधान किया गया है चालू वित्तीय वर्ष मे 45 दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षण हेतु प्रायोजित किया गया है। तकनीकी शिक्षा विभाग से प्रस्ताव प्राप्त होने की प्रतीक्षा है।
vi) पुरस्कार योजनाः इस योजना के अन्र्तगत निजी क्षेत्र में नियोक्ता द्वारा अधिकतम दिव्यांगजन¨ं को रोजगार देने व दिव्यांगता के बावजूद उत्कृष्ट कार्य करने के लिए पुरस्कार देने का प्रावधान है। उत्कृष्ट दिव्यांगजन को ृ10,000 व श्रेष्ठ निजी नियोक्ता को ृ5,000 के नकद पुरस्कार देने का प्रावधान है।
vii) विषेश योग्यता वाले बच्चों को शिक्षा : प्रदेश में मूक बधिर व दृष्टिहीन बच्चों को शिक्षा व व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु दो संस्थान ढली व सुन्दरनगर में स्थापित हैं। सुन्दरनगर में 14 दृष्टिवाधित तथा 98 श्रवणदोष की लड़कियां दाखिल हैं। इसके अतिरिक्त 8 दृष्टिबाधित और 3 श्रवणदोष की छात्राऐं सुन्दरनगर व्यवसायिक प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण ले रही हैं, जिनका रहन-सहन, शिक्षा व चिकित्सा का खर्चा सरकार वहन कर रही है । इस संस्थान के लिए ृ58.52 लाख के बजट में से 31.12.2017 तक ृ41.25 लाख व्यय हुए हैं इसके अतिरिक्त ृ75.06 लाख की राशि रखरखाव हेतु आई.सी.एस.ए. सुन्दरनगर के लिए डी.डब्लयु.अ¨.मण्डी क¨ आई.सी.पी.एस. के अन्र्तगत जारी की गई है। हि0प्र0 बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाए जा रहे ढली (शिमला) तथा दाड़ी (कांगड़ा) विद्यालयों के लिए ृ80.00 लाख के बजट के विरूद्ध ृ47.35 लाख जारी किए गए है। इसके अतिरिक्त विभाग, प्रेम आश्रम ऊना, आस्था वैलफेयर सोसाईटी नाहन, पैराडाइज चिल्र्डन केयर सेन्टर चुवाड़ी, आदर्श ऐजुकेशन सोसाईटी कलाथ, कुल्लू, उड़ान रिसपाईट केयर सेन्टर न्यू शिमला में 50 मानसिक रूप से अविकसित बच्चों, 20 मानसिक रूप से अविकसत व्यस्क पुरूषों, 30 व्यस्क मानसिक रूप से अविकसित पुरूष तथा महिलाओं (10 महिला एवं 20 पुरूष), 60 मानसिक रूप से अविकसित वयस्क महिलाओं और 15 मानसिक रूप से अविकसित बच्चों की पढ़ाई, फीस व निःशुल्क रहन सहन भोजन एंव चिकित्सा हेतु ृ4,500 प्रति आवासी की दर से वहन कर रही है। इस वर्ष ृ125.00 लाख का बजट प्रावधान था तथा 31.12.2017 तक ृ33.66 लाख की राशि व्यय की जा चुकी है।
viii) दिव्यांगता पुनर्वास केन्द्रः प्रदेश में एन. पी. आर. पी. डी. के तहत हमीरपुर व धर्मशाला में दो दिव्यांगता पुनर्वास केन्द्र स्थापित हैं जो कि क्रमशः ग्रामीण विकास अभिकरण, हमीरपुर व भारतीय रैडक्राॅस सोसाइटी, धर्मशाला द्वारा चलाए जा रहे हैं। वर्ष 2017-18 में ृ15.00 लाख का बजट प्रावधान है।
प्रदेश में अनुसूचित जातियों की संख्या किसी क्षेत्र में केंद्रित न होकर समूचे प्रदेश में फैली हुई है और सभी लोगों की तरह समान रूप से इनका विकास भी किया जाना है। अनुसूचित जातियों के संबंध में आर्थिक विकास का दृष्टिकोण क्षेत्रीय आधार पर नहीं है जबकि जन-जातीय उप योजना क्षेत्रीय आधार पर है। जिला बिलासपुर, कुल्लू, मण्डी, सोलन, शिमला और सिरमौर अनुसूचित जाति अधिकता वाले जिले हैं। जहां अनुसूचित जातियों की जनसंख्या राज्य औसत से अधिक है। राज्य में इन छः जिलों में कुल अनुसूचित जाति जनसंख्या का 61.09 प्रतिशत है।
अनुसूचित जाति उपयोजना को आवश्यकता के अनुरूप एवं प्रभावी बनाने, योजना के कार्यान्वयन एवं निगरानी/अनुश्रवण के लिए इकहरी प्रशासनिक प्रणाली शुरू की है। सभी जिलों को निर्धारित मापदण्डों के आधार पर बजट आंवटित किया गया है जो दूसरे जिलों के लिए नहीं बदला जा सकता। प्रत्येक जिला में जिलाधीश इस योजना के कार्यान्वयन से संबंध्ंिात विभागों/ क्षेत्रीय विभागों के अधिकारियों के परामर्श से जिला स्तरीय योजनाएं तैयार करते हैं।
अनुसूचित जातियों के कल्याण से संबंधी सभी कार्यक्रमों को प्रभावी तौर पर कार्यान्वित किया गया है। यद्यपि अनुसूचित जाति समुदाय के लोग सामान्य योजना एवं जन-जाति उप-योजना में भी लाभान्वित हो रहे हैं फिर भी विशेष तौर पर व्यक्तिगत लाभ के कार्यक्रम और अनुसूचित बहुल्य गांवों में आधारभूत संरचना के विकास के लिए विशेष लाभकारी कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। राज्य योजना के कुल बजट का 25.19 प्रतिशत अनुसूचित उप-योजना के लिए अलग से प्रावधान किया गया है। सरकार अनुसूचित जाति के परिवारों को रोजगार प्रदान व उनकी आय में वृद्वि करने के लिए अधिक से अधिक वास्तविक योजनाएं तैयार करके विशेष प्रयास कर रही है।
अनुसूचित जाति उप-योजना के लिए डिमांड-32 में अलग उप-शीर्ष श्789श् बनाया है। ताकि इस निधि को एक योजना से दूसरी योजना के अन्र्तगत आसानी से स्थानान्तरित किया जा सकेगा इस उप-योजना के अन्तर्गत 100 प्रतिशत बजट प्रयोग करना सुनिश्चित बनाया जा सकेगा। वर्ष 2017-18 में अनुसूचित जाति उप योजना में राज्य योजना के अन्तर्गत ृ1,435.83 करोड़ व्यय किये जा रहे हैं तथा वर्ष 2018-19 में अनुसूचित जाति उप-योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों के कल्याण हेतु ृ1,586.97 करोड़ बजट प्रस्तावित है।
जिला स्तर पर जिला स्तरीय समीक्षा एवं कार्यान्वयन कमेटी गठित की गई है। जिसके अध्यक्ष सम्बन्धित जिला से मन्त्री तथा उपाध्यक्ष जिलाधीश होता है। जिला परिषद का चेयरमैन और खण्ड विकास समिति के सभी चेयरमैन और अन्य स्थानीय प्रसिद्ध व्यक्ति इस कमेटी के गैर सरकारी सदस्य और अनुसूचित जाति उप-योजना से सम्बन्धित सभी अधिकारी सरकारी सदस्य होते हैं। राज्य स्तर पर मुख्य सचिव हिमाचल प्रदेश सरकार, प्रशासनिक सचिव¨ं के साथ त्रैमासिक समीक्षा बैठकें आयोेजित करते हैं। इसके अतिरिक्त माननीय मुख्य मन्त्री की अध्यक्षता में अनुसूचित जाति कार्य निष्पादन के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समन्वय एवं समीक्षा समिति बनाई गई है जो कि अनुसूचित जाति उप-योजना की समीक्षा वर्ष में एक बार करती है।
वर्ष 2007 में ग्रामीण विकास विभाग के सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 95,772 अनुसूचित जाति परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं। वर्ष 2016-17 में 37,846 अनूसूचित जाति परिवारों के लक्ष्य की तुलना में 47,633 अनूसूचित जाति परिवारों को लाभान्वित किया गया। वर्ष 2017-18 में 2,038 अनुसूचित जाति के परिवारों को लाभन्वित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अतिरिक्त पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति के छात्रों को छात्रवृति प्रदान की जाती है जिसके लिये लक्ष्य निर्धारित नहीं होता है।
a) मुख्यमन्त्री बाल उद्धार योजना : राज्य सरकार द्वारा मुख्यमन्त्री बाल उद्धार योजना चलाई जा रही है। योजना के अन्तर्गत ज़रूरतमंद बच्चों को वस्त्र, रहन-सहन, चिकित्सा, जीविका संबन्धी परामर्श एवं शिक्षा संरक्षण व पुर्नवास से सम्बन्धित निःशुल्क सेवायें प्रदान की जा रही है। आवासियों द्वारा बाल गृृह छोड़ने के उपरान्त भी देश के भीतर किसी भी सरकारी संस्थान से उच्च शिक्षा (शैक्षणिक एवं व्यवसायिक) प्राप्त करने पर होने वाले व्यय को भी राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है। योजना का लाभ किशोर न्याय अधिनियम 2015 के अन्तर्गत पंजीकृृत सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सरकार से प्राप्त अनुदान सहायता से संचालित बाल गृृहों में रहने बाले सभी बच्चों को दिया जाता है। वर्तमान में प्रदेश में 40 बाल-बालिका गृृह/ 2 संप्रेक्षण गृृह, गृृह सह सुरक्षा स्थान संचालित हैं। वर्तमान में इन आश्रमों में 1,484 बच्चे रह रहे हैं। योजना के अन्र्तगत चालू वित्त वर्ष में ृ10.11 करोड़ के बजट प्रावधान के विरूद्ध दिसम्बर, 2017 तक ृ9.08 करोड़ व्यय किए जा चुके हैं।
b) बाल/बालिका सुरक्षा योजना एवं फाॅस्टर केयर कायक्रम : अनाथ एवं असहाय बच्चों का अनुकूल पारिवारिक परिवेश में भरण-पोषण व देख-रेख करने के लिए हि.प्र. बाल/बालिका सुरक्षा योजना एवं फाॅस्टर केयर कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। समेकित बाल संरक्षण योजना के फाॅस्टर केयर कार्यक्रम के अन्तर्गत ृ2,300 प्रति माह प्रति बच्चा की दर से स्वीकृत किए है, जिसमें से ृ2,000 पालना दम्पति के पक्ष में बच्चे के पालन-पोषण हेतु स्वीकृत किए जाते हैं जबकि ृ300 राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त सहायता के रूप में बच्चे के पक्ष में स्वीकृत किए जाते हैं जिसे बैंक या डाकघर में सावधि जमा के रूप में जमा किया जाता है और बच्चे द्वारा 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के उपरान्त आहरित किया जा सकता है। चालू वित्त वर्ष में इस योजना के अन्तर्गत ृ1.88 करोड़ के बजट के विरूद्ध दिसम्बर, 2017 तक ृ1.09 करोड़ व्यय किए जा चुके हैं ।
c) समेकित बाल संरक्षण योजनाः कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों के कल्याण और उन परिस्थितियों में कमी लाने मे जिनकी वजह से बच्चे उपेक्षा एंव शोषण के शिकार होते है तथा अपने मां-बाप से अलग हो जाते है के लिए इस योजना के अन्र्तगत बच्चों को अस्थाई आश्रय देने के लिए बल्देयां (शिमला), स¨लन तथा धर्मशाला में तीन आश्रय स्थापित किए गए है। किशोर न्याय अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु प्रदेश के सभी जिलों में किशोर न्याय बोर्ड, बाल कल्याण समितियां एंव जिला स्तरीय सलाहकार बोर्ड गठित किए गए है। जिला बाल संरक्षण इकाईयां सभी जिलों स्थापित की गई है। चाईल्ड लाईन टेलीफोन सेवा 1098 सात जिलों क्रमशः शिमला, कुल्लू, कांगड़ा सोलन, मण्डी, चम्बा, तथा सिरमौर में स्थापित की गई है। देश में दत्तक ग्रहण को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण का गठन किया गया है। इस वित्तीय वर्ष में इस योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा ृ18.47 करोड़ व राज्य सरकार द्वारा ृ1.38 करोड़ आवंटित किये गये हैं, जिसमें से 31.12.2017 तक ृ14.45 करोड़ व्यय किए जा चुके हैं।
d) समेकित बाल विकास सेवाएं : समेकित बाल विकास सेवायें कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश के समस्त विकास खण्डों में 78 समेकित बाल विकास परियोजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रदेश में कुल 18,386 आंगनवाड़ी केन्द्रों व 539 मिनी आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से बच्चों, गर्भवती/धात्री माताओं को सेवायें प्रदान की जा रही हैंै। विभाग द्वारा पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षाएं, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाॅंच, विदृष्ठ सेवायें, पाठशाला पूर्व शिक्षा, अनुपूरक पोषाहार के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार के 90ः10 के अनुपात में धनराशि उपलब्ध करवाई जाती है। वित्त वर्ष 2017-18 के अन्र्तगत प्रावधित बजट ृ21,723.00 लाख था, जिसमंे से ृ2,172.00 लाख राज्य का हिस्सा व केन्द्र का हिस्सा ृ19,551.00 लाख है, जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक ृ13,236.66 लाख व्यय किए गए, जिसमें राज्य का हिस्सा ृ874.69 लाख तथा केन्द्रीय हिस्सा ृ12,361.96 लाख का था। भारत सरकार द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं व मिनी आंगनबाड़ी कार्यकताओं को प्रति माह क्रमशः ृ3,000, ृ1,500 व ृ2,250 का मानदेय निर्धारित किया गया है जिसका 10 प्रतिशत राज्य सरकार और 90 प्रतिशत भारत सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार अपनी 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी के अतिरिक्त क्रमशः ृ1,450 ृ600 तथा ृ750 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी सहायिका एवं मिनी आंगनबाड़ी कार्यकताओं को प्रति माह प्रदान कर रही है।
e) पूरक पोषाहार कार्यक्रम : समेकित बाल विकास सेवायें कार्यक्रम के अन्र्तगत विशेष पोषाहार कार्यक्रम के अन्र्तगत आंगनवाड़ियों में बच्चों, गर्भवती/धात्री माताओं तथा बी.पी.एल. किशोरियों को निम्नलिखित दरों पर पूरक पोषाहार दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्र्तगत वर्ष भर में 300 दिनांें के लिए पोषाहार दिया जाता है। पूरक पोषाहार की दरें (प्रति लाभार्थी प्रतिदिन) बच्चों को ृ6, गर्भवती/ धात्री माताओं को ृ7, किशोरियों को ृ5 तथा अति कुपोषित बच्चों को ृ9 तय किए गए हैं। इस कार्यक्रम पर होने वाले व्यय को भारत सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा 90ः10 के अनुपात में वहन किया जाता है। चालू वित्त वर्ष में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ृ6.80 करोड़ का राज्य हिस्सा व ृ61.21 करोड़ भारत सरकार से अनुदान प्राप्त हुआ है। जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक ृ5.10 करोड़ राज्य हिस्सा व ृ39.08 करोड़ केन्द्रीय हिस्सा व्यय हुआ है व 4,44,738 बच्चे तथा 99,452 गर्भवती/ धात्री माताएं लाभाविन्त हुई है।
महिलाओें के कल्याण के लिए प्रदेश में विभिन्न योजनाएं चल रही हैं। प्रमुख योजनाएं जो चलाई जा रही हैं वह इस प्रकार से हैंः-
i) नारी सेवा सदन मशोबराः- इस योजना का मुख्य उद्धेेश्य युवा लड़कियों, विधवा, बेसहारा तथा निराश्रय महिलाऐं तथा जिनको नैतिक खतरा हो को निःशुल्क आश्रय, खाद्य, कपड़ा, शिक्षा तथा व्यवसायिक प्रशिक्षण देना है। वर्तमान में नारी सेवा सदन मशोबरा में 27 महिलाएं रह रही है। महिलाओं को सदन छोेड़ने पर पुर्नवास के लिए ृ20,000 की आर्थिक सहायता दी जाती है। यदि कोई आवासी शादी करती है तो उसे ृ51,000 की आर्थिक सहायता दी जाती है। दिसम्बर,2017 तक ृ215.94 लाख के बजट प्रावधान के विरूद्ध ृ37.43 लाख नारी सेवा सदन के संचालन एंव रखरखाव पर व्यय किए जा चुके हैं।
ii) मुख्यमंत्री कन्यादान योजनाः- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बेसहारा लड़कियों के परिजनों/संरक्षकांे को उनकी लड़की की शादी के लिए ृ40,000 का अनुदान दिया जाता है जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो। वर्ष 2017-18 में इस उद्धेश्य के लिए ृ482.05 लाख का बजट प्रावधान रखा गया जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक ृ270.75 लाख व्यय किये गये तथा 691 लाभार्थियों को लाभ पहंुचाया गया।
iii) महिला स्वरोजगार सहायताः इस योजना के अन्र्तगत ृ5,000 उन महिलाओं को आय संवर्धन हेतु प्रदान किए जाते हैं जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से कम है। इस योजना के अन्तर्गत ृ8.02 लाख का प्रावधान किया गया। दिसम्बर, 2017 तक ृ4.05 लाख की राशि व्यय करके 81 महिलाओं को लाभान्वित किया गया है।
iv) विधवा पुर्नविवाह योजनाः इस योजना का उद्धेश्य विधवाओं को पुर्नविवाह के लिए प्रेरित करके पुर्नवास करना है। इस योजना के अन्र्तगत दम्पति को ृ50,000 के रूप में अनुदान दिया जाता है। वर्ष 2017-18 के दौरान इस योजना के अन्र्तगत ृ93.90 लाख का बजट प्रावधान किया गया जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक 76 दम्पतियों को ृ38.00 लाख दिए गए।
v) मदर टेरेसा असहाय मातृ सम्बल योजनाः इस योजना का मुख्य उद्धेश्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली निःसहाय महिलाओं को अपने बच्चों के पालन पोषण हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना है। इस योजना के अन्र्तगत गरीबी रेखा से नीचे रह रही निःसहाय महिलाएं, जिनकी आय ृ35,000 से कम है जब तक बच्चों की आयु कम से कम 18 वर्ष न हो जाए के पालन पोषण हेतु ृ3,000 प्रति वर्ष प्रति बच्चा सहायता राशि दी जाती है। सहायता केवल दो बच्चों तक ही दी जाती है। इस योजना के अन्र्तगत वर्ष 2017-18 के लिए ृ9.00 करोड़ बजट का प्रावधान था जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक ृ4.10 करोड़ व्यय किये गए तथा 16,521 बच्चों को लाभान्वित किया गया।
vi)माता शबरी महिला सशक्तिकरण योजनाः इस योजना का मुख्य उद्धेश्य गरीबी रेखा से नीचे रह रहे अथवा ृ35,000 वार्षिक से कम आय वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति के परिवारों की महिलाओं को अनुदान प्रदान करके उन्हें कठिन परिश्रम से राहत दिलवाने के आशय से गैस कनैक्शन खरीदने हेतु सहायता दी जाती है। इस योजना के अन्तर्गत गैस कनैक्शन खरीदने पर कुल लागत के 50 प्रतिशत राशि की प्रति पूर्ति जिसकी अधिकतम सीमा ृ1,300 है, उपदान के रूप में उपलब्ध करवाई जाती है। प्रत्येक वर्ष प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र में 75 अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन जाति महिलाओं को लाभान्वित करना है, तथा प्रदेश में 5,100 महिलाओं क¨ लाभान्वित किया गया। वर्ष 2017-18 के लिए इस योजना के अन्तर्गत ृ66.00 लाख का बजट प्रावधान रखा गया है। लाभार्थियों के उपलब्ध्ा न ह¨ने से व्यय शून्य है।
vii) विशेष महिला उत्त्थान योजनाः राज्य सरकार ने ऐसी महिलाओं, जो नैतिक खतरें में हैं, को प्रशिक्षण प्रदान करने तथा उनके पुर्नवास के लिए विशेष महिला उत्थान योजना बतौर 100 प्रतिशत राज्य योजना के रूप में शुरू की है। योजना के अन्र्तगत महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से ृ3,000 प्रति प्रशिक्षणार्थी प्रति माह की दर से छात्रवृति ृ25 प्रति घंटा प्रति प्रशिक्षणार्थी तथा ृ800 प्रति प्रशिक्षणार्थी को परीक्षा शुल्क दिया जाता है। चालू वित्त वर्ष में ृ1.21 करोड़ का बजट प्रावधान है जिसमे से दिसम्बर, 2017 तक ृ39.49 लाख की राशि व्यय की जा चुकी है।
viii) बलात्कार पीड़ितों के लिए वित्तीय सहायता एवं समर्थन सेवायें योजना 2012ः यह योजना दिनांक 22.09.2012 को बतौर 100 प्रतिशत राज्य योजना अधिसूचित की गई है। इस योजना का उद्धेश्य बलात्कार पीड़ितों को वित्तीय सहायता तथा परामर्श, चिकित्सा सहायता, विधिक सहायता, शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि समर्थन सेवायें प्रदान करने का प्रावधान है। प्रभावित महिला को ृ75,000 तक की वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है ताकि उनका पुर्नवास किया जा सके। विशेष परिस्थितियों में जैसे अवयस्क से बलात्कार आदि स्थिति में ृ25,000 की अतिरिक्त वित्तीय सहायता देने का भी प्रावधान है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 में ृ1.29 करोड़ के बजट का प्रावधान है जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक ृ64.50 लाख की राशि व्यय की जा चुकी है।
ix) बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजनाः यह योजना 22.01.2015 से देश के 100 जिलों के साथ जिला ऊना मे शुरू की गई। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2016-17 में यह योजना जिला कांगड़ा एवं हमीरपुर में शुरू की गई है। इस योजना में बाल लिंग अनुपात में गिरावट को रोकने, लिंग भेद को कम करने, लड़की के अस्तित्व को सुनिश्चित करने तथा सरंक्षण एवं शिक्षा प्रदान करने का प्रयोजन है और बाल लिंग अनुपात में गिरावट के साथ-साथ गिरते प्रवाह को बदलना है। इस योजना के माध्यम से जन समुदाय को घटते हुए लिंगानुपात के दुष्प्रभावों के बारे में जागृत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिला ऊना में पिछले ढ़ाई वर्षों के दौरान बाल लिंग अनुपात में सुधार हुआ है।
परिवार तथा समुदाय की शिशु कन्या तथा महिलाओं के प्रति नकारात्मक सोच को बदलने तथा लड़कियों के स्कूल में नामांकन व ठहराव के उद्धेश्य से बेटी है अनमोल योजना 5.07.2010 प्रदेश में लागू की गई है। इस योजना के अन्र्तगत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों में जन्म लेने वाली दो बालिकाओं के नाम पर, बैंक/डाकघर में ृ10,000 जमा कर दिए जाते हैं तथा पहली कक्षा से स्नातक तक शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृति भी दी जाती है। सरकार ने 23.07.2015 से छात्रवृति की दरों में वृद्धि की है। नई दरें ृ450s प्रति वर्ष से ृ5,000 प्रति वर्ष के बीच है। वर्ष 2017-18 में इस योजना के अन्र्तगत ृ999.00 लाख का बजट प्रावधान किया गया है तथा 31.12.2017 तक ृ653.00 लाख व्यय किये जा चुके हैं तथा 16,908 बालिकाओं को लाभान्वित किया गया है।
किशोरी शक्ति योजना केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में 11 से 18 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों के सशक्तिकरण के लिए है जिसमें साक्षरता को बढ़ावा देने, गृह आधारित एवं व्यवसायिक कौशल जीवन कौशल में सुधार लाने, उनमें स्वास्थ्य, पोषाहार, स्वच्छता, गृह प्रबन्धन एवं बच्चों की देख-रेख तथा किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य (ए.आर.एस.एच.) सम्बन्धी ज्ञान को बढ़ाने हेतु है। वित्तीय वर्ष 2014-15 तक यह योजना 100 प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित थी जो वित्तीय वर्ष 2015-16 से 90ः10 के अनुपात में भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा संचालित की जा रही है। योजना प्रदेश के 8 जिलों शिमला, सिरमौर, किन्नौर, मण्डी, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना तथा लाहौल-स्पिति चलाई जा रही है। योजना के अन्तर्गत गैर पोषाहार घटक पर प्रति वर्ष प्रति परियोजना ृ1.10 लाख तक व्यय करने का प्रावधान है। चालू वित्त वर्ष में, दिसम्बर, 2017 तक ृ17.12 लाख की राशि व्यय कर दी गयी है। वर्ष 2017-18 की तीसरी तिमाही तक 8 के.एस.वाई. जिलों में 36,581 किशोरियों को ृ5.00 प्रति दिन तक पूरक पोषाहार प्रदान किया गया। महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय, भारत सरकार द्वारा 25.11.2017 को किशोरी शक्ति योजना को 11-14 वर्ष की स्कूल ना जाने वाली किशोरियों तक सीमित किया गया है और चरणबद्ध तरीके से किशोरियों के लिए बढ़ाना है। दिनांक 8.12.2017 से किशोरी शक्ति योजना के स्थान पर किशोरियों के लिए योजना (एस.ए.जी.) का विस्तार शिमला तथा हमीरपुर जिले में किया गया है। इस प्रकार किशोरी शक्ति योजना, हिमाचल प्रदेश के छः जिलों में चल रही है। भारत सरकार द्वारा पोषाहार दरों में संशोधित कर ृ5.00 से ृ9.50 प्रति दिन प्रति किशोरी के लिए कर दिया गया है।
किशोरी सशक्तिकरण योजना (ए.एस.जी.) केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप मे (11 से 18 वर्ष आयु वर्ग की) किशोरियों में साक्षरता को बढावा देने, गृह आधारित एवं व्यावसायिक कौशल में सुधार लाने, उनमें स्वास्थ्य, पोषाहार, स्वच्छता, गृह प्रबन्धन एवं बच्चों की देख-रेख तथा किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य (ए.आर.एस.एच.) सम्बन्धी ज्ञान को बढ़ाने हेतु संचालित की जा रही है। वित्तीय वर्ष 2014-15 तक इस योजना के पोषाहार घटक का व्यय भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा 50ः50 अनुपात में वहन किया गया तथा गैर-पोषाहार घटक 100 प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जा रहा था। वित्तीय वर्ष 2015-16 से योजना के दोनांे घटकों में 90ः10 के अनुपात में भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। योजना प्रदेश के 4 ज़िलो क्रमशः सोलन, कुल्लू, कांगड़ा तथा चम्बा में चलाई जा रही है। योजना के अन्र्तगत पोषाहार तथा गैर पोषाहार दो मुख्य घटक है। गैर पोषाहार घटक में ृ3.80 लाख प्रति बाल विकास परियोजना प्रति वर्ष व्यय करने का प्रावधान है। पोषाहार घटक में किशोरियों को पोषाहार ृ5 प्रति किश¨री प्रति दिन की दर से प्रदान किया जाता है। गैर पूरक पोषाहार के अधीन 2017-18 में कुल राशि ृ86.88 लाख में संे ृ27.32 लाख व्यय किए गए। पूरक पोषाहार के अधीन दिसम्बर, 2017 तक कुल प्राप्त राशि ृ507.80 लाख में से ृ382.91 लाख व्यय किए गए। चालू वित्त वर्ष में 31.12.2017 तक 1,01,256 लाभाथर््ीियों को पूरक पोषाहार, 1,01,725 को पोषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा, 8,400 को जीवन कौशल शिक्षा, 4,055 को सार्वजनिक सेवाओं के इस्तेमाल के लिए र्मागदर्शन तथा 402 किशौरियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया गया हैं।
प्रधानमन्त्री मातृ वन्दना योजना के रूप में नामित : मातृत्व सहयोग योजना का संचालन जिला हमीरपुर में पायलट योजना के रूप में किया जा रहा था। इस योजना का मुख्य उद्देश्य 19 वर्ष से ऊपर आयु की गर्भवती व धात्री महिलाओं तथा उनके नन्हें शिशुुओं के स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति में सुधार लाना तथा लाभार्थी महिला की मजदूरी की हानि की आंशिक क्षतिपूर्ति करना था ताकि लाभार्थी महिला को गर्भावस्था के अंतिम चरण तक कामकाज न करना पडें। यह योजना 90ः10 के अनुपात में भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा संचालित की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत मौद्रिक सहायता ृ6,000 प्रति लाभार्थी को दो चरणों में देने का प्रावधान था। अर्थात गर्भावस्था के अन्तिम तिमाही के दौरान पहली किस्त तथा प्रसव के तीन माह बाद दूसरी किस्त देना था। 31.05.2017 तक ृ49.64 लाख की राशि व्यय की गई है। इस योजना के स्थान पर प्रधानमन्त्री मातृ वंदना योजना (पी.एम.एम.वी.वाई.) शुरू की गई है और इस योजना को प्रदेश के समस्त जिलों में लागू किया गया है। यह योजना 01.01.2017 से लागू है। इस योजना के मुख्य उद्देश्यः- यह योजना 01.01.2017 से प्रभावी है।
योजना के मुख्य उद्देश्य हैं:
i) नकद प्रोत्साहन के रूप में मजदूरी हानि के लिए आंशिक मुआवजा प्रदान करना ताकि महिलाओं को पहले जीवित बच्चे के जन्म से पहले और बाद में पर्याप्त आराम कर सकती हैं।
ii) प्रदान किए गए नकद प्रोत्साहन से लोगों के बीच स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में सुधार होगा गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ। पीएमएमवीवाई के तहत 5,000 रुपये का नकद प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा पहले जीवित बच्चे के लिए सीधे गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के खाते में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य से संबंधित विशिष्ट शर्तों को पूरा करना।
वन स्टॉप सेन्टर एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य एक ही छत के नीचे निजी और सार्वजनिक स्थानो में हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता प्रदान करना है तथा महिलाओं के खिलाफ हो रही किसी भी प्रकार की हिंसा से लड़ने के लिए एक ही छत के नीचे चिकित्सकीय, कानूनी, मनोवैज्ञानिक और परामर्श सहायता सहित कई सेवंाए तत्काल आपातकालीन और गैर आपातकालीन स्थितियों में प्रदान करना है। हिमाचल प्रदेश में वन स्टॉप सेंटर 26.09.2017 को रेड क्राॅस बिल्ंिडग, जोनल हाॅस्पिटल सोलन के परिसर में सन्चालित किया गया हैे। योजना के अन्तर्गत ृ30.01 लाख आवर्ती और ृ13.41 लाख अनावर्ती व्यय का प्रावधान है। दिसम्बर, तक 2017 तक ृ15.00 लाख का व्यय किया गया है तथा 12 महिलाओं को विभिन्न प्रकार की सहायता, वन स्टॉप सेन्टर के अन्तर्गत प्रदान की गई है।

19.ग्रामीण विकास

ग्रामीण विकास विभाग का मुख्य उद्वेश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन तथा क्षेत्र विकास के कार्यक्रमों को कार्यान्वित करना है। राज्य मंें निम्नलिखित राज्य तथा केंद्रीय प्रायोजित विकासात्मक योजनाएं/ कार्यक्रम कार्यान्वित किए जा रहे हैं ।
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार के स्थान पर राष्ट्रीय आजीविका मिशन को प्रदेश में 01.04.2013 से आरम्भ किया गया जिसका कार्यन्वयन चरणबद्व तरीके से किया जाएगा। प्रथम चरण में 12 विकास खण्डों नामतः कण्डाघाट, बसंतपुर, मण्डी (सदर), नूरपुर, हरोली, घुमारवी, तीसा, भोरंज, निचार, कुल्लू, लाहौल स्थित केलांग तथा पौंटा साहिब को कार्यक्रम के कार्यन्वयन हेतु लिया गया है। उपरोक्त के अतिरिक्त आजीविका मिशन (छत्स्ड) के अन्तर्गत स्वरोजगार गतिविधियों जैसे कि ऋण वितरण, महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन, क्षमता विकास एवं संस्थागत निर्माण आदि का कार्यन्वयन प्रस्तावित है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 के लिए ृ11.04 करोड़ की वार्षिक कार्य योजना को अनुमोदित किया है जिसे उक्त गतिविधियों के कार्यन्वयन पर व्यय किया जाएगा। चालू वित्त वर्ष में कुल 3,280 महिला स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से जोड़ना प्रस्तावित है जिन्हें ृ40.00 करोड़ ऋण के रूप में प्रदान किए जाएंगे। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत चार जिलों शिमला, मण्डी, कांगड़ा व ऊना में समस्त महिला स्वयं सहायता समूहों को ऋण पर ब्याज दर 4 प्रतिशत वार्षिक होगी तथा शेष 8 जिलों के महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रदान किए जाने वाले ऋण पर ब्याज दर 7 प्रतिशत वार्षिक निर्धारित है। किन्तु उक्त ब्याज दरें मात्र उन महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए ही लागू होगी जिनकी ऋण अदायगी समय सीमा के भीतर नियमानुसार हुई हो। आजीविका मिशन के अन्तर्गत 31.12.2017 तक जिलावार वित्तीय एवं भौतिक लक्ष्यों के अन्तर्गत उपलब्धियां निम्न प्रकार से हं :-
1) ऋण वितरण का लक्ष्य पोर्टल के अनुसार ृ34.00 करोड़ निर्धारित किया गया है जिसके विरूद्ध ृ28.42 करोड़ लक्ष्य की प्राप्ति हो चुकी है। जिलावार ृ40.00 करोड़ का लक्ष्य इस उद्देेश्य से आवंटित किया गया है ताकि मुलतः पोर्टल का लक्ष्य पूर्ण हो सके।
ग्रामीण गरीबों के लिए कौशल एव नियोजन के माध्यम से आजीविका ग्रामीण विकास मन्त्रालय, भारत सरकार की एक अनूठी पहल है। इस योजना के उद्देेश्य आवश्यकतानुसार ग्रामीण गरीबों की आय को विविद्यीकरण के माध्यम से विकसित करना एवं ग्रामीण युवाओं की व्यवसाय हेतु आकांक्षाओं को पूर्ण करना है। दक्षता के माध्यम से आजीविका की उत्पति स्वर्ण जयन्ति ग्राम स्वरोजगार योजना के विशेष परियोजना घटक से हुई। इसके अतिरिक्त इस कार्यक्रम की आशा एवं अकांक्षा है कि देश के दीर्घ खण्ड में गरीबी को कम किया जाए एवं ग्रामीण गरीबों के जीवनयापन में गुणवता लाई जाए। इसके परिणाम से भारत को जनसंख्या लाभांश का फायदा मिलेगा। किन्तु यह तभी सम्भव है यदि ग्रामीण युवाओं की क्षमता भी विकसित हो।
भारत सरकार द्वारा जारी मार्गदर्शिकानुसार समस्त परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों को अपना पंजीकरण आॅनलाइन करना होता है। जिसमें चयन प्रक्रिया का प्रावधान अन्तर्निहित है। वर्ष 2016-17 से पूर्व हिमाचल प्रदेश में वर्षवार योजना के आधार पर परियोजनाओं की स्वीकृति का प्रावधान था जिसमें किसी भी परियोजना को भारत सरकार द्वारा स्वीकृति नहीं प्रदान की गई। वर्ष 2016-17 में प्रदेश को “वार्षिक कार्य योजना“ राज्य घोषित किया गया तथा 13.07.2016 को राज्य ने तीन वर्षों की कार्य योजना 2017-19 भारत सरकार को प्रस्तुत की। इस योजना के अन्तर्गत कुल 15,000 ग्रामीण युवाओं को तीन वर्षो में मांग एवं बाजार आधारित विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रावधान था जिसका विवरण निम्न प्रकार से हैः-
इस परियेाजना के अन्तर्गत् खेती-बाड़ी, स्वास्थ्य देखभाल, मोटर वाहन, इलेक्ट्रौनिक, बैंकिग खुदरा, जीव विज्ञान, आतिथ्य, विनिर्माण, खाद्य प्रसंस्करण, आई.सी.टी. और यात्रा और पर्यटन, लोहा इस्पात शामिल हैं। इस योजना की कुल लागत ृ133.60 करोड़ है तथा परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों द्वारा कुल प्रशिक्षित ग्रामीण गरीब युवाओं के 75 प्रतिशत को सुनिश्चित वैतनिक रोजगार प्रदान किया जाना प्रस्तावित है। 18.07.2016 को भारत सरकार द्वारा उक्त योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। राज्य ग्रामीण आजिविका मिशन में इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन हेतु कौशल विकास निगम हि0प्र0 को तकनीकी सहायता अभिकरण के रूप में नियुक्त किया गया है। उक्त अभिकरण में कुल प्राप्त 50 परियोजनाओं की स्क्रीनिंग का कार्य पूर्ण कर दिया है। अब स्क्रीनिंग से उत्तीर्ण परियोजनाओं को परियोजना अनुमोदन समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना राष्ट्रीय आजिविका मिशन के अन्तर्गत महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं। जिसका मुख्य उददेश्य 15 से 35 वर्ष के आयु वर्ग वाले ग्रामीण युवाओं को रोजगार प्रदान करना एवं स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षित करना जिससे वो न्यूनतम मासिक वेतन प्राप्त कर सके। वर्तमान में इस योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश मंे 12 पी0आई0ए0 कार्यरत है जिनका उद्देश्य वर्ष 2019 तक 10,400 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण प्रदान करना है। हिमाचल प्रदेश में अभी तक कुल 35 प्रशिक्षण संस्थान और स्थापित होने स्वीकृत हैं जिनमें वर्तमान में 9 प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत है।
प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों से सम्बन्धित बंजर क्षेत्रों, सूखा ग्रस्त मरूस्थल क्षेत्र के विकास हेतु भारत सरकार के दिशा-निर्देशानुसार विभाग द्वारा एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम ;आई.डब्लयू.डी.पी.द्धए सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम ;डी.पी.ए.पीद्धए मरूस्थल विकास कार्यक्रम ;डी.डी.पी.द्ध तथा एकीकृत जलागम प्रबन्धन कार्यक्रम (आई.डब्लयू.एम.पी.) चलाए जा रहे हैं। कार्यक्रम के प्रारम्भ से ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम ;आई.डब्लयू.डी.पी.द्ध के अन्तर्गत 67 परियोजनाएं ;869 माइक्रो वाटरशैडद्ध जिनकी कुल लागत ृ254.12 करोड़ हैं तथा 4,52,311 हैक्टेयर भूमि का विकास, सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम ;डी.पी.ए.पी.द्ध के अन्तर्गत 412 सूक्ष्म जलागम स्वीकृत हैं जिनकी कुल लागत ृ116.50 करोड़ तथा 2,05,833 हैक्टेयर भूमि के विकास हेतु तथा मरूस्थल विकास कार्यक्रम ;डी.डी.पी.द्ध के अन्तर्गत 552 सूक्ष्म जलागम परियोजनाएं जिनकी कुल लागत ृ159.20 करोड़ है जोकि 2,36,770 हैक्टेयर भूमि के विकास हेतु स्वीकृत हुई है। इस योजना के आरम्भ से मार्च, 2017 तक एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (आई.डब्लयू.डी.पी.) के अन्तर्गत ृ245.44 करोड़, सुखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम ;डी.पी.ए.पीद्ध पर ृ114.19 करोड़ तथा मरूस्थल विकास कार्यक्रम ;डी.डी.पी.द्धके अंतर्गत ृ112.40 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। भारत सरकार द्वारा एकीकृत जलागम प्रबन्धन योजना ;आई.डब्लयू.एम.पी.द्ध अब प्रधानमन्त्री कृषि सिंचाई योजना;पी.एम.के.एस.वाई.द्ध-जलागम विकास घटक के अन्तर्गत वर्ष 2009-10 से 2014-15 में प्रदेश के सभी जिलों के लिए 163 नई परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं जिनकी कुल लागत ृ1,259.96 करोड़ है तथा 8,39,972 हैक्टेयर भूमि का विकास किया जाना प्रस्तावित है इसके लिए ृ283.59 करोड़ (90ः10 केन्द्र एवं राज्य भाग) जारी कर दिए गए हैंैं जिसमें से ृ258.83 करोड़ की धनराशि सम्बन्धित जिलों में खर्च कर 1,16,176 हैक्टेयर क्षेत्र का सुधार किया गया।
इस योजना का उद्देश्य 2,022 तक सभी बेघरों एवं कच्चे घरों में रहने वाले परिवारों को आधारभूत सुविधा युक्त घर प्रदान करना है, साफ सुथरा खाना बनाने के स्थान सहित लघुतम ईकाई के क्षेत्र को 20 वर्ग मी0 से बढ़ाकर 25 वर्ग मी0 कर दिया गया है। पहाड़ी एवं कठिन स्थानों में नये मकान के निर्माण हेतु सहायता राशि ृ75,000 प्रति परिवार से बढ़ाकर ृ1.30 लाख कर दी गई है। इस योजना में केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के मध्य में वित्त पोषण 90ः10 के अनुपात में निर्धारित किया गया है। इस योजना में लाभार्थियों के चयन का आधार सामाजिक एवं आर्थिक जाति जनगणना-2011 के डाटा को बनाया गया है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 में इस योजना के अन्तर्गत प्रदेश के लिए ृ3,394.87 लाख की धनराशि का कुल आबंटन रखा गया है जिसमें ृ339.49 लाख राज्य व ृ3,055.39 लाख केन्द्रीय सरकार द्वारा आवंटित किए गए। जिसके द्वारा 2,511 मकानों के निर्माण का लक्ष्य है। 12.01.2018 तक 1,535 लाभार्थियों का एम.आई.एस. में पंजीकरण कर दिया गया है।
निम्नलिखित सभी आवासीय योजनाएं राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही हैंः-
i) राजीव आवास योजना : यह राजीव आवास योजना प्रदेश सरकार द्वारा प्रधानमन्त्री आवास योजना के आधार पर चलाई जा रही है। चालू वित्त वर्ष में भी प्रति लाभार्थी सहायता राशि ृ1.30 लाख प्रधान मन्त्री आवास योजना की तर्ज पर कर दी गई है। प्रदेश सरकार द्वारा अधिक लोगों के हितों को देखते हुए इस योजना में लाभार्थी के चयन का आधार वी0पी0एल सर्वे 2003 को बनाया गया है। चालू वित वर्ष 2017-2018 के दौरान इस योजना में ृ11.00 करोड़ की धनराशि से 846 घरों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
ii) मुख्यमन्त्री आवास योजना : राज्य सरकार ने यह योजना 2016-17 के बजट में घोषित की है। इस योजना का उद्देश्य राज्य में सामान्य श्रेणी के बी0पी0एल0 परिवारों को मकान बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस वित्तीय वर्ष में कुल वित्तीय आबंटन ृ30.00 करोड़ की धनराशि का प्रावधान किया गया है जिसकी सहायता से 2,307 मकानों के निर्माण का लक्ष्य है। इस योजना में भी प्रधान मन्त्री आवास योजना की तर्ज पर सरकार द्वारा प्रति इकाई लागत ृ1.30 लाख कर दी गई है।
iii) राजीव आवास मुरम्मत योजना : यह योजना भी प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2015-16 तथा 2016-17 में सामान्य श्रेणी के बी0पी0एल0 परिवारों के लिए आरम्भ की गई है। इस योजना में सामान्य श्रेणी के बी0पी0एल0 परिवारों के लिए अपने घर की मुरम्मत करने का प्रावधान है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 में इस योजना में प्रति इकाई लागत ृ25,000 लाभार्थियों के लिए रखी गई है। चालू वित्त वर्ष के अन्तर्गत आवंटित ृ3.00 करोड़ की लागत से कुल 1,200 घरों की मुरम्मत का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इस योजना का मुख्य लक्ष्य निर्धारित ग्राम पंचायतों के समग्र विकास में मददगार प्रक्रियाओं में तेजी लाना है। आबादी के सभी वर्गो के जीवन स्तर और जीवन गुणवत्ता में पर्याप्त रूप से सुधार लाना है जिसमें उन्नत बुनियादी सुविधाएं, अधिकतम उत्पादकता, बेहतर मानव विकास, बेहतर आजिविका के अवसर, असमानता में कमी, अधिकार और हकदारी के लिए पहुंच दिलाना, व्यापक सामाजिक एकजुटता व समृद्ध सामाजिक पूंजी इत्यादि शामिल है। हिमाचल प्रदेश में सभी माननीय सांसदों ने अपने संसदीय क्षेत्र से चरण-1 के अन्तर्गत एक आदर्श ग्राम पंचायत तथा तीन सांसदों ने चरण-2 के अन्तर्गत एक आदर्श ग्राम पंचायत का चयन कर लिया है जिसका विवरण निम्न प्रकार हैः-
श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूरबन मिशन भी एक केन्द्रीय योजना है। इसके अन्तर्गत प्रथम चरण व दूसरे चरण में प्रदेश को तीन कलस्टर आंबटित किये गए हैं जिनमें हिन्नर विकास खण्ड, कण्डाघाट, दूसरा संागला, विकास खण्ड कल्पा में स्थित और तीसरा औट विकास खण्ड मण्डी (सदर) में स्थित है। इस योजना के अन्तर्गत भारत सरकार, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रदेश को ृ5,142.08 करोड़ का बजट आवंटन किया जिसमेें से ृ22.50 करोड़ की धनराशि पहली तथा दूसरी किस्त के रूप में जारी की है। उक्त राशि को सम्बन्धित जिलों को विकास कार्य करने हेतु निर्मुक्त कर दिया गया है।
वर्ष 2017-18 में प्रदेश को तीसरे चरण में तीन और कलस्टर आवंटित हुए हैं जिनमें मुरंग जिला किन्नौर, सिंहुता जिला चम्बा और घणाहटी जिला शिमला में स्थित है। जहां पर आई-कैपस के बनाने की प्रक्रिया प्र्रगति पर है। इस योजना का उददेश्य चयनित ग्राम पंचायतों को शहरी क्षेत्रों की तर्ज पर विकसित करना व वहां पर सभी शहरी सुविधाएं प्रदान करना है।
i) मृत्यु `2.00 लाख
ii) स्थायी कुल विकलांगता `2.00 लाख।
iii) एक अंग और एक आंख या दोनों आंखों और दोनों अंगों की हानि `2.00 लाख।
iv) एक अंग/एक कान की हानि `1.00 लाख।
v) पति की मृत्यु की स्थिति में `2.00 लाख।
भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) शुरू किया है 02.10.2014 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना। मुख्य उद्देश्य कार्यक्रम के विवरण इस प्रकार हैं:-
i) प्रचार-प्रसार करके ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की सामान्य गुणवत्ता में सुधार लाना स्वच्छता स्वच्छता और खुले में शौच को समाप्त करना।
ii) 02.10.2019 तक स्वच्छ भारत के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कवरेज में तेजी लाएं।
iii) समुदायों और पंचायती राज संस्थानों को स्थायी स्वच्छता प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रेरित करें जागरूकता सृजन और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से सुविधाएं।
iv) पारिस्थितिक रूप से सुरक्षित और टिकाऊ स्वच्छता के लिए लागत प्रभाव और उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करें।
v) जहां आवश्यक हो वहां वैज्ञानिक ठोस और तरल अपशिष्ट पर ध्यान केंद्रित करते हुए समुदाय प्रबंधित स्वच्छता प्रणाली विकसित करें ग्रामीण क्षेत्रों में समग्र स्वच्छता के लिए प्रबंधन प्रणाली।
स्वच्छ भारत के अंतर्गत जिलेवार भौतिक प्रगति दिसंबर, 2017 तक मिशन-ग्रामीण इस प्रकार है:-
महर्षि वाल्मिकी संपूर्ण स्वच्छता पुरस्कार (एमवीएसएसपी):महर्षि वाल्मिकी संपूर्ण स्वच्छता पुरस्कार था वर्ष 2007-08 में प्रारंभ हुआ। हिमाचल प्रदेश में स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने के लिए एक प्रतिस्पर्धा आधारित राज्य पुरस्कार योजना यानी महर्षि वाल्मिकी संपूर्ण स्वच्छता पुरस्कार लागू किया जा रहा है जिसके तहत विजेता ओडीएफ ग्राम पंचायतें (कुल 97 ग्राम पंचायतें) को हर वर्ष राज्य स्तरीय पुरस्कार वितरण समारोह में पुरस्कृत किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत प्रोत्साहन पैटर्न इस प्रकार है:-
1) ब्लॉक स्तरीय सबसे स्वच्छ ग्राम पंचायत `1.00 लाख
2) जिला स्तरीय सबसे स्वच्छ जीपी `3.00 लाख (यदि जिले में 300 से अधिक जीपी है तो 2जीपी को पुरस्कार मिल सकता है)।
3) संभाग स्तरीय सबसे स्वच्छ ग्राम पंचायत `5.00 लाख
4) राज्य स्तरीय सबसे स्वच्छ ग्राम पंचायत `10.00 लाख
स्कूल स्वच्छता पुरस्कार योजना: यह योजना वर्ष 2008-2009 के दौरान सबसे स्वच्छ के लिए शुरू की गई थी जिला और ब्लॉक स्तर पर सरकारी प्राथमिक और मध्य विद्यालय। वर्ष 2011-12 के दौरान उच्च/उच्चतम प्रतियोगिता मानदंड में माध्यमिक विद्यालयों को भी शामिल किया गया है। योजना के अंतर्गत पुरस्कार हैं हर वर्ष 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस समारोह के दौरान दिया जाता है। यह इनाम योजना पहचान देती है वे स्कूल जिन्होंने स्कूल की स्वच्छता और साफ-सफाई शिक्षा में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल की है इस योजना के तहत विजेता विद्यालयों को 88.20 लाख रुपये पुरस्कार राशि के रूप में दिए जाते हैं।

महिला-मंडल प्रोत्साहन योजना: वर्ष 2008 से महिला मंडल प्रोत्साहन योजना सक्रिय महिला मंडल को पुरस्कृत करने की एक योजना है। अपने जमीनी स्तर के कामकाज में स्वच्छता के लक्ष्यों और उद्देश्यों को शामिल करने के लिए उपयुक्त रूप से प्रतिबंधित किया गया है। इस योजना को पूरी तरह से स्वच्छता कार्यक्रम से जोड़ा गया है और वर्ष 2017-18 के दौरान अपने गांव/वार्ड और ग्राम पंचायत क्षेत्र में स्वच्छता के तहत अच्छा काम करने वाली महिला मंडलों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए `1.31 करोड़ की राशि आवंटित की गई है। प्रति योजना के दिशानिर्देश। प्रत्येक ब्लॉक प्रथम से छठे स्थान के आधार पर 6 महिला मंडलों का चयन करता है जिन्हें सम्मानित किया जाता है:
पहले छह चयनित महिला मंडलों के अलावा, सरकार का विचार है कि अन्य महिला मंडल जिन्होंने स्वच्छता अभियान के बारे में ग्रामीणों के बीच जागरूकता पैदा करने में योगदान दिया है, उन्हें भी स्वच्छता के तहत स्थायी गतिविधियों को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कुछ प्रोत्साहन दिया जाएगा। प्रत्येक ब्लॉक निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर महिला मंडलों का चयन करेगा और प्रत्येक महिला मंडल को `8,000 की राशि दी जाएगी।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS): महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अधिसूचित किया गया था सितंबर, 2005 को भारत सरकार द्वारा इसे प्रभावी बनाया गया। 2.02.2006. पहले चरण में, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एनआरईजीएस) 2 फरवरी, 2006 को जिला चंबा और सिरमौर में शुरू की गई थी। दूसरे चरण में एनआरईजीएस जिला कांगड़ा और मंडी में शुरू की गई थी। 1.04.2007. अब तीसरे चरण में राज्य के शेष सभी 8 जिलों को इस योजना के तहत शामिल किया गया है। 1.04.2008. वर्ष 2017-18 के दौरान केन्द्रीय अंश राशि `474.65 करोड़ और राज्य अंश राशि `12.47 करोड़ राज्य रोजगार गारंटी निधि खाते में जमा की गई है। `408.16 करोड़ की धनराशि का उपयोग किया जा चुका है (09-01-2018 तक) और `1.57 4,32,005 परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराकर करोड़ मानव दिवस सृजित किये गये हैं।

20.आवास एवम् शहरी विकास

आवास मंत्रालय, हिमाचल प्रदेश सरकार आवास और शहरी विकास प्राधिकरण (हिमुडा) के माध्यम से विभिन्न श्रेणियों के मकानों, फ्लैटों और विकासशील भूखंडों का निर्माण कर रही है, ताकि विभिन्न आय वर्ग के लोगों की आवास मांग को पूरा किया जा सके। 20.2 चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए `137.10 करोड़ का परिव्यय है और दिसंबर, 2017 तक `87.38 करोड़ का व्यय किया गया था। इस वर्ष 48 फ्लैट बनाने का लक्ष्य है तथा 141 भूखंड विकसित किये गये।
हिमुडा ने डिपॉजिट कार्यों के तहत 44 भवनों का निर्माण पूरा कर लिया है। हिमुडा विभिन्न जमा कार्यों का निष्पादन कर रहा है सामाजिक न्याय और अधिकारिता, जेल, पुलिस, युवा सेवाएं और खेल, पशु जैसे विभाग पालन, शिक्षा, मत्स्य पालन, आई.टी. विभाग, हिमाचल प्रदेश बस स्टैंड प्रबंधन और विकास प्राधिकरण, शहरी स्थानीय निकाय, पंचायती राज और आयुर्वेद विभाग।
ठियोग, फ्लावरडेल, संजौली में हाउसिंग कॉलोनियों का निर्माण कार्य, मंधाला परवाणु, जुरजा (नाहन) और भटोलीखुर्द (बद्दी) में प्रगति पर हैं और छबग्रोटी, फ्लावरडेल और परवाणू में कॉलोनियां पूरी हो चुकी हैं। वर्तमान में हिमुडा के पास धर्मपुर सोलन में 45 बीघे, जाठियादेवी के पास 243 बीघे भूमि का लैंड बैंक है। शिमला जिले में और मंडी जिले के सुंदरनगर के पास राजवारी में 72 बीघा जमीन सोहाला जिला सिरमौर हि.प्र. में 570 बीघे भूमि। विभिन्न स्थानों पर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी जारी है.
वित्तीय वर्ष 2017-18 में शील (सोलन), मोगीनंद-II, त्रिलोकपुर में नई आवास योजनाएं भी हाथ में ली गई हैं। (नाहन) और वाणिज्यिक परिसर पेट्रोल पंप विकास नगर शिमला के पास। जेएनएनयूआरएम के तहत हिमुडा ने 176 फ्लैट (आशियाना-II) का निर्माण किया है। ढली शिमला में बीएसयूपी के तहत और आईएचएसडीपी के तहत हमीरपुर में 72 फ्लैट, परवाणू में 192 फ्लैट और नालागढ़ में 128 फ्लैट हैं।
हिमुडा ने निम्नलिखित नीतियों/योजनाओं को मंजूरी दे दी है:-
i) विकास में भागीदार बनने वाले भूमि मालिकों के लिए नीति इस योजना के तहत राज्य में हाउसिंग कॉलोनियां और सिरमौर जिले में अशोक अलॉयज (पी) लिमिटेड के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
ii) हिमुडा द्वारा स्थापित विभिन्न कॉलोनियों में मकान/फ्लैट/भूखंडों के आवंटन की योजना "पहले आओ पहले पाओ" पर बिना बिकी इकाइयों के निपटान के लिए लागत स्थिरीकरण के बाद का आधार।
हिमुडा ने अपने सर्कल कार्यालय (उत्तर) का निर्माण किया है धर्मशाला में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में निर्माण जो नवीनतम ईपीएस प्रौद्योगिकी में है। अंदर भवन का निर्माण कराया गया है 4 माह की अवधि जिसके लिए हिमुडा को प्रशंसा पुरस्कार प्राप्त हुआ है। हिमुडा अधीक्षण अभियंता (एन) और कार्यकारी अभियंताओं का भी निर्माण कर रहा है रक्कड़ धर्मशाला में आवास, उसी तकनीक का उपयोग करते हुए।
अधिक पारदर्शिता लाने के लिए मानव इंटरफेस को कम करने के लिए, हिमुडा ने कदम उठाया है। ई-गवर्नेंस और प्रधान कार्यालय में रिकॉर्ड को डिजिटल कर दिया गया है और लेखांकन के लिए टैली एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ईआरपी) स्थापित किया गया है।
74वें संवैधानिक संशोधन के परिणामस्वरूप, अधिकार, शक्तियाँ और गतिविधियाँ शहरी स्थानीय निकायों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। राज्य में 54 शहरी स्थानीय निकाय हैं शिमला और धर्मशाला नगर निगम सहित हिमाचल प्रदेश। सरकार उपलब्ध करा रही है इन स्थानीय निकायों को आम जनता को नागरिक सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिए हर साल अनुदान सहायता जनता। राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-18 के दौरान `109.36 करोड़ की राशि यूएलबी को जारी कर दिया गया है। इसमें विकासात्मक अनुदान और बीच के अंतर को भरने वाला अनुदान शामिल है आय और व्यय।
नगरपालिका क्षेत्रों में सड़कों का रखरखाव: लगभग 1,416 किलोमीटर। सड़कें/ 54 शहरी स्थानीय निकायों द्वारा पथों/गलियों और नालियों का रखरखाव किया जा रहा है और `6.00 करोड़ सड़कों/सड़कों/पथों की लंबाई के अनुपात में शहरी स्थानीय निकायों को जारी किया जाता है 2017-18 के दौरान शहरी स्थानीय निकायों द्वारा रखरखाव किया जा रहा है।
एनयूएलएम का मुख्य उद्देश्य प्रचार-प्रसार के माध्यम से शहरी गरीबों के बीच गरीबी को कम करना है जिसके परिणामस्वरूप विविध और लाभप्रद स्व-रोज़गार और कौशल-मजदूरी वाले रोज़गार के अवसर प्राप्त होंगे भवन निर्माण के माध्यम से स्थायी आधार पर उनकी आजीविका में सराहनीय सुधार हुआ है गरीबों की मजबूत जमीनी स्तर की संस्थाएँ। इस योजना के निम्नलिखित मुख्य घटक हैं:-
i) कौशल प्रशिक्षण और प्लेसमेंट के माध्यम से रोजगार।
ii) सामाजिक गतिशीलता और संस्था विकास।
iii) क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण।
iv) स्व-रोज़गार कार्यक्रम।
v) बेघरों के लिए आश्रय।
vi) शहरी पथ विक्रेताओं को सहायता।
vii) नवोन्वेषी और विशेष परियोजनाएँ। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए केन्द्रांश के रूप में `5.58 करोड़ एवं `` का बजट प्रावधान है। इस योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य के हिस्से के रूप में 0.63 करोड़ रुपये, जिसमें से `3.02 करोड़ केंद्र के रूप में शेयर और राज्य शेयर के रूप में `0.49 करोड़ जारी किए गए। इस योजना के तहत 260 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का गठन किया गया है. इस योजना के अंतर्गत 160 लाभार्थियों एवं 33 अभ्यर्थियों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया गया को प्लेसमेंट प्रदान किया गया है। 153 व्यक्तियों, 1 समूह और 66 स्वयं सहायता समूहों को ऋण सहायता प्रदान की गई अपने सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने के लिए रियायती ब्याज। 2,197 स्ट्रीट वेंडरों का सर्वेक्षण किया गया और उन्हें पहचान पत्र प्रदान किए गए।
वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान सीवरेज योजनाओं और रखरखाव के लिए `41.00 करोड़ का बजट प्रावधान है जो पहले ही जारी किया जा चुका है। चूंकि, यह योजना I&PH विभाग द्वारा क्रियान्वित की जा रही है, इसलिए धनराशि निकाली गई है और यूएलबी के माध्यम से I&PH विभाग के निपटान में डाल दी गई है।
इस मिशन के तहत शिमला और कुल्लू को शामिल किया गया है, चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान इस योजना के तहत केंद्र के हिस्से के रूप में `45.00 करोड़ और राज्य के हिस्से के रूप में `5.00 करोड़ का बजट प्रावधान है। इस योजना के कार्यान्वयन के लिए केंद्र के हिस्से के रूप में `21.00 करोड़ और राज्य के हिस्से के रूप में `2.33 करोड़ की राशि जारी की जाएगी।
स्मार्ट सिटी मिशन जून, 2015 में नगर निगम धर्मशाला द्वारा शुरू किया गया है मिशन के तहत भारत सरकार द्वारा `2,109.69 की परियोजना लागत के साथ अनुमोदित किया गया है करोड़. धर्मशाला स्मार्ट सिटी लिमिटेड के लिए विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) के तहत पंजीकृत किया गया है कंपनी अधिनियम, 2013. वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान नगर निगम, शिमला भी रहा है भारत सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी मिशन के तहत `2,905.97 करोड़ की परियोजना लागत के साथ चयनित। हिमाचल प्रदेश सरकार ने इसके लिए एसपीवी को अधिसूचित कर दिया है। चालू वित्त के दौरान वर्ष 2017-18 में केन्द्रांश के रूप में 70.00 करोड़ एवं राज्यांश के रूप में 9.00 करोड़ का बजट प्रावधान है। इस मिशन के तहत साझा करें। भारत सरकार द्वारा अभी धनराशि जारी नहीं की गई है।
स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है आवास मामलों के मंत्रालय, सरकार द्वारा सभी 4,041 वैधानिक शहरों में लागू किया गया भारत। स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य शहरों/कस्बों को खुले में शौच से मुक्त बनाना है और सभी को स्वस्थ और रहने योग्य वातावरण प्रदान करें। मिशनों के तहत निम्नलिखित कार्य/प्रगति हुई है:-
1) व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के लिए यूएलबी को धनराशि वितरित की गई। कस्बों में पर्याप्त शौचालय सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सार्वजनिक शौचालय। आज तक से भी ज्यादा शौचालय सुविधा विहीन परिवारों के लिए 1200 व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण किया गया है मिशन के तहत 186 समुदायों और 257 सार्वजनिक शौचालय सीटों को नया या पुनर्निर्मित किया गया है।
2) भूमिगत कचरा डिब्बे परियोजना 3 शहरों अर्थात् धर्मशाला, पोंटा साहिब और में शुरू की जा रही है। पायलट आधार पर सुंदरनगर। धर्मशाला में 70 स्थानों पर भूमिगत कूड़ेदान लगाए गए हैं। सुंदरनगर में 22 और पोंटा साहिब में कार्य प्रगति पर है।
3) आम जनता की जागरूकता के लिए राज्य में विभिन्न आईईसी गतिविधियां नियमित रूप से आयोजित की जा रही हैं। स्वच्छता पखवाड़ा, होर्डिंग/बैनर, नुक्कड़ नाटक, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जागरूकता। रैलियां आदि। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए केंद्रांश के रूप में `18.00 करोड़ का बजट प्रावधान है और इस योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्यांश के रूप में `2.00 करोड़। द्वारा धनराशि अभी तक जारी नहीं की गई है चालू वित्तीय वर्ष के दौरान भारत सरकार।
भारत सरकार द्वारा 17.06.2015 से 31.03.2022 तक प्रभावी रहने के लिए एक नया मिशन "सभी के लिए आवास" (शहरी) शुरू किया गया है। इस योजना का उद्देश्य झुग्गीवासियों का झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास, क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी सार्वजनिक निजी क्षेत्र के माध्यम से कमजोर वर्ग के लिए किफायती घर उपलब्ध कराना और लाभार्थी के नेतृत्व वाले व्यक्तिगत घर निर्माण के लिए सब्सिडी प्रदान करना है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए, इस योजना के कार्यान्वयन के लिए केंद्रांश के रूप में `23.34 करोड़ और राज्यांश के रूप में `2.54 करोड़ का बजट प्रावधान है, जिसमें से केंद्रांश के रूप में `17.44 करोड़ और राज्यांश के रूप में `1.78 करोड़ है। जारी की गई और शेष धनराशि इसी वित्तीय वर्ष के दौरान जारी की जाएगी।
इस योजना के तहत प्रदेश में नवसृजित नगर पंचायतों तथा नगर पालिका परिषदों/नगर निगमों के नये विलय किये गये क्षेत्रों (वार्डों) में मजदूरी रोजगार उपलब्ध कराने हेतु वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान बजट में 1.50 करोड़ की धनराशि उपलब्ध करायी गयी है। जिसमें से `1.10 करोड़ की राशि नगर निगम, धर्मशाला और नगर परिषद-रामपुर, नेरचौक और नगर पंचायत-टाहलीवाल, जवाली और बैजनाथ-पपरोला को जारी की गई है।
14वें वित्त आयोग ने दो प्रकार के अनुदानों की सिफारिश की है, अर्थात् मूल अनुदान बिना शर्त जारी किया जाना चाहिए और प्रदर्शन अनुदान, 14वें वित्त आयोग में निर्धारित कुछ शर्तों को पूरा करने के अधीन है। चालू वित्तीय वर्ष में 39.93 करोड़ का बजट प्रावधान है। यूएलबी को `15.49 करोड़ का मूल अनुदान जारी किया गया है, जबकि प्रदर्शन अनुदान भारत सरकार द्वारा जारी किया जाना बाकी है।
प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में पार्किंग की समस्या को हल करने के लिए वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान बजट में `10.00 करोड़ की राशि प्रदान की गई है, जिसमें से 16 शहरी स्थानीय निकायों को पार्किंग निर्माण के लिए `7.80 करोड़ जारी किए गए हैं।
शहरी स्थानीय निकायों में चरणबद्ध तरीके से पार्कों के निर्माण के लिए वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान बजट में `10.00 करोड़ की राशि प्रदान की गई है, जिसमें से `9.20 करोड़ पार्कों के निर्माण के लिए 44 शहरी स्थानीय निकायों को जारी किए गए हैं।
योजनाबद्ध तरीके से कार्यात्मक, किफायती, टिकाऊ और सौंदर्यपूर्ण रहने का वातावरण सुनिश्चित करना, न्यायसंगत और विनियमित विकास, दुर्लभ भूमि संसाधनों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक कारक, पर्यावरण का संरक्षण, विरासत और तर्कसंगत सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से उनके सतत विकास द्वारा बहुमूल्य भूमि संसाधनों का उपयोग, हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम, 1977 को 35 नियोजन क्षेत्रों में लागू किया गया है (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 1.58 प्रतिशत) एवं 35 विशेष क्षेत्र (2.06 प्रतिशत) राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्र)। नादौन के लिए तैयार मौजूदा भूमि उपयोग मानचित्र/रजिस्टर, भोटा, सुजानपुर, बैजनाथ पपरोला और अतिरिक्त शिमला योजना क्षेत्र। ठियोग के लिए विकास योजनाएं, परवाणू (संशोधित), त्रिलोकपुर, कुल्लू भुंतर, रामपुर (संशोधित), नादौन और धर्मशाला (संशोधित), घुमारवीं, अंब-गगरेट, सुंदरनगर, मणिकर्ण, बैजनाथ-पपरोला और बीड़-बिलिंग योजना/ सरकार द्वारा अनुमोदित विशेष क्षेत्र.
जिन परियोजनाओं को अगले वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए लक्षित करने का प्रस्ताव है जिसमें योजना क्षेत्रों, विशेष क्षेत्रों का गठन, मौजूदा भूमि उपयोग मानचित्र तैयार करना शामिल है। विकास योजनाएँ और क्षेत्रीय योजनाएँ इस प्रकार हैं:-
i)योजना/विशेष क्षेत्रों अर्थात् औट, हिनर, हमीरपुर और सांगला-कामरू के लिए मौजूदा भूमि उपयोग मानचित्र तैयार करना।
ii) शिमला, कुल्लू, कंडाघाट, वाकनाघाट, चायल के लिए विकास योजनाओं की तैयारी। नेर-चौक, सुजानपुर, भोटा, गरली-परागपुर, चामुंडा, नारकंडा और मैहतपुर।
नग्गर और रिकांगपिओ विशेष क्षेत्र के लिए विकास योजनाएं तैयार कर मंजूरी के लिए सरकार को भेज दी गई हैं।
ऑट, हिन्नर और सांगलाकामरू ने कार्यान्वयन के लिए एक योजना क्षेत्र और विशेष क्षेत्र घोषित किया भारत सरकार द्वारा श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन शुरू किया गया।
हिमाचल प्रदेश टाउन एंड कंट्री के तहत शक्तियों के विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया में योजना अधिनियम, 1977 शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को शक्तियां सौंपी गईं।
चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में भौतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए `1.27 करोड़ आवंटित किए गए हैं ऊपर उल्लिखित लक्ष्य. जिसमें से 31.12.2017 तक `94.78 लाख का व्यय किया जा चुका है।

21.पंचायती राज

वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में 12 जिला परिषदें, 78 पंचायत समितियां तथा 3,226 ग्राम पंचायतें गठित है। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के प्रावधान के अन्र्तगत पंचायती राज संस्थाओं का वर्तमान में पांचवां कार्यकाल है। हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम में समय-समय पर किए गए प्रावधानों के अनुरूप या उनमें कार्यकारी निर्देशों द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार विभिन्न शक्तियां, कार्य व जिम्मेदारी सौंपी गई हैं। ग्राम सभाओं को विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत लाभार्थियों के चयन की शक्तियां प्रदान की गई हैं। ग्राम सभा को ग्राम पंचायत की योजना तथा परियोजना का अनुमोदन करने तथा ग्राम पंचायत द्वारा विभिन्न कार्याें में व्यय की गई धनराशि से सम्बन्धित उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत किया गया है। पंचायती राज संस्थाओं को सरकार ने और अधिक अधिकार व कार्य सौंपे हैं जिनमें ग्राम पंचायतों को अनुबंध के आधार पर सिलाई अध्यापिका, पंचायत चैकीदार, प्राथमिक पाठशालाओं में अंशकालिक जलवाहकों व जलरक्षकों को नियुक्त करने की शक्तियां प्रदान की गई है। सहायक अभियन्ता, पंचायत सहायक, निजी सहायक और कनिष्ठ अभियन्ताओं की नियुक्त करने का अधिकारी जिला परिषद को दिया गया है। कनिष्ठ लेखा पाल (रेगुलर) की सेवाओं को भी जिला परिषद काडर में रखा गया है।
ग्राम पंचायतों को प्राथमिक पाठशाला भवनों का स्वामित्व तथा रखरखाव सौंपा गया है। ग्राम पंचायतों को भूमि मालिकों/सही धारकों से भू-राजस्व एकत्रित करने की शक्ति प्रदान की गई है तथा एकत्रित राशि के उपयोग करने के बारे ग्राम पंचायत स्वयं निर्णय लेगी। पंचायतों को विभिन्न प्रकार के कर, फीस तथा जुर्माना अधिरोपित करने तथा आय अर्जित करने वाली परिसम्पतियों के निर्माण हेतु ऋण लेने के लिए प्राधिकृत किया गया है। पंचायत क्षेत्र में लघु खनिज के खनन के लिए जमीन पट्टे पर देने से पूर्व संबंधित पंचायत केे प्रस्ताव को अनिवार्य किया गया है। पंचायतों को योजना बनाने के लिए भी अधिकृत किया गया है। मोबाईल टावर लगाने एवं शुल्क अधिरोपित करने के लिए ग्राम पंचायतों को प्राधिकृत किया गया है। ग्राम पंचायतों को दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अधीन भरण पोषण के लिए आवेदन की सुनवाई/ निर्णय तथा ृ500.00 प्रतिमाह तक भरण पोषण भत्ता प्रदान करने हेतु आदेश देने की भी शक्ति प्रधान की गई है। ग्राम पंचायत क्षेत्र में ृ1.00 प्रति बोतल की दर से शराब की बिक्री पर उपकर ग्राम पंचायतों को हस्तातंरित किया गया है और इससे प्राप्त निधि को वह विकासात्मक कार्याें के पर व्यय कर सकेगी।
यह अनिवार्य किया गया है कि कृषि, पशु-पालन, प्राथमिक शिक्षा, वन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, बागवानी, सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य, राजस्व और कल्याण विभाग के गांव स्तर पर कार्यरत कर्मी उस ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेगें जिसकी अधिकारिता में वे तैनात हैं और यदि ऐसे गांव स्तर के कर्मचारी बैठकों में उपस्थित नहीं होते हैं तो ग्राम सभा, ग्राम पंचायत के माध्यम से उनके नियंत्रक अधिकारी को मामले की रिर्पोट करेगी, जो रिर्पोट प्राप्त होने की तारीख से एक मास के भीतर ऐसे कर्मचारियों के विरूद्व अनुशासनात्मक कार्यवाही करेगा और रिपोर्ट पर की गई कार्यवाही के बारे में ग्राम पंचायत के माध्यम से ग्राम सभा को सूचित करेगा।
पंचायती राज से सम्बन्धित अन्य प्रमुख प्रावधान निम्न हैंः-
i) राज्य सरकार ने पंचायती राज पदाधिकारियों को दिए जाने वाले मासिक मानदेय की संशोधित दरों के अनुसार अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष जिला परिषद को ृ8,000 तथा ृ6,000, अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पंचायत समिति को ृ5,000 तथा ृ3,500 तथा प्रधान व उप-प्रधान ग्राम पंचायत को ृ3,000 एवं ृ2,200 प्रतिमाह मानदेय प्रदान किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सदस्य जिला परिषद और सदस्य पंचायत समिति के मानदेय की संशोधित दरें क्रमशः ृ3,500 तथा ृ3,000 प्रतिमाह कर दी गई हैं और ग्राम पचंायत के सदस्यों को मास में अधिकतम दो बैठकों में भाग लेने हेतु बैठक फीस की दर को ृ225 प्रति बैठक कर दिया गया है।
ii) सरकार द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित पदाधिकारियों को, पंचायत से सम्बन्धित कार्य के लिए, दैनिक एवं यात्रा भत्तांे हेतु अनुदान प्रदान कर रही है।
iii) राज्य सरकार ने सरकारी विश्राम गृहांे में जिला परिषद तथा पंचायत समिति के पदाधिकारियों को कार्यालय सम्बन्धित यात्रा के दौरान ठहरने की सुविधा प्रदान की है।
iv) 14वें वित आयोग की सिफारिशें 2015-16 से शुरू हुई थी और 2019-20 तक लागू रहेगी। इन सिफारशों के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश की बुनियादी अनुदान के रूप में ृ1,628.82 करोड़ और प्रदर्शन आधारित अनुदान के रूप में ृ180.98 करोड़ आवंटित किये गए हैं।
v) पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से अनुबन्ध/ नियमित आधार पर नियुक्त कर्मचारियों के मासिक पारिश्रमिक इस प्रकार से हैः-पंचायत सहायक को (अनुबंध) ृ7,000, पंचायत सचिव (अनुबंध) ृ9,469, कनिष्ठ लेखापाल (अनुबंध) ृ7,810, नियमित ृ5,910-20,200 ़ 1,900, कनिष्ठ अभियन्ता (अनुबंध) ृ14,100, नियमित 10,300-34,800़3,800 कनिष्ठ आशुलिपिक (अनुबंध) ृ8,710, नियमित 5,910-20,200 ़ 2,800 सहायक अभियन्ता (अनुबंध) ृ21,000, नियमित 15,660- 39,100़5,400, सिलाई अध्यापिका (अनुबंध) ृ6,300, पंचायत चैकीदार को (अनुबंध) ृ4,000, जल सक्षक/ अनुबंध (2,500) को पंचायत सचिव (नियमित) जिला परिषद ृ5,910 -20,200$1,900 डाटा एन्ट्री आॅपरेटर (अनुबंध) ृ9,469, नियमित 5,910-20,200 $ 1,900 सेवादार कम चैकीदार (अनुबंध) को ृ6,138 कर दिए गए हैंै।
vi) मिशन मोड परियोजना के अन्तर्गत (ई/पंचायत योजना) : 12 कोर सॉफ़्टवेयर एप्लीकेशन पंचायतों के लिए बनाई है। पंचायती विभाग के कर्मचारियों के लिए इन एप्लीकेशन को चलाने हेतु प्रशिक्षण भी पंचायती राज प्रशिक्षण केन्द्र मशोबरा में दिया जा रहा है। पंचायती राज संस्थाओं ने पहले से ही इन एप्लीकेशन का उपयोग करना शुरू कर दिया गया है।

22.सूचना एवम् विज्ञान प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय ई-शासन योजना के तहत, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा ;डी.आई.टी.एच.पी.द्ध हिमस्वान नामक सुरक्षित नेटवर्क बनाया गया। हिमस्वान ब्लाक स्तर तक सभी राज्य सरकार के विभागों के लिए सुरक्षित नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करता है। हिमस्वान को कुशलतापूर्वक विभिन्न इलैक्ट्रोनिक सेवाऐं जी0टू0जी0 ;सरकार से सरकारद्ध जी0टू0सी0 ;सरकार से नागरिकद्ध,जी0टू0वी0 ;सरकार से व्यापारद्ध सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इलैक्ट्रोनिक सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने 6 वर्ष की प्रारम्भिक अवधि के लिए इस परियोजना को वित्तीय सहायता प्रदान की थी। हिमस्वान 05.02.2008 को भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। यह अवधि वर्ष 2014 तक समाप्त हो गई है। अब राज्य सरकार इस परियोजना के संचालन तथा रख-रखाव का खर्च वहन कर रही है। हिमस्वान परियोजना वर्तमान में एकल स्तरीय वास्तुकला की तकनीकों के साथ एम.पी.एल.एस. तथा वी.पी.एन.वी.वी. के द्वारा कार्यालयों में वीडियो काॅन्फ्रैसिंग तथा इन्टरनैट आधारित ऐपलिकेशनों का कार्यालयों में प्रयोग होने के कारण व्राॅडबैंड की बढ़ती मांग तथा राज्य की कला प्रौद्योगिकी का उपयोग करके एस.एल.ए. नेटवर्क डाउन टाइम, आवाज, डाटा और वीडियो सेवा के कारण हिमस्वान को तीन स्तरीय वास्तुकला के साथ पुर्नोत्थान किया जा रहा है। वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां अर्जित की है ।
1) पूरे राज्य मंे 2,260 सरकारी कार्यालय हिमस्वान नेटवर्क के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
2) मै0 ओरेंज कंपनी को तीन वर्ष की अवधि के लिए हिमस्वान के संचालक के रुप में नियुक्त किया गया था जोकि 1.09.2014 से 31.08.2017 का था।
3) के.पी.एम.जी. कंपनी को हिमस्वान की तीसरी पार्टी लेखा परीक्षक टी.पी.ए के रुप में हिमस्वान के संचालन के कार्य की निगरानी के लिए तीन वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया गया था जिसका कार्यकाल 18.07.2014 से 17.07.2017 तक था।
4) हिमस्वान आप्रेटर, टी.पी.ए. और बैंडविड्थ प्रदाता के चयन के लिए निविदा मांगी गई है।
राष्ट्रीय ई-शासन योजना ;एन.ईजी.पी.द्धके तहत, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग नागरिकों के लाभ के लिए विभिन्न सरकारी विभागों में सूचना प्रौद्योगिकी की सेवाओं का प्रयोग करने के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य डाटा सेंटर 30.05.2016 से कार्य करना आरम्भ कर दिया है। विभिन्न सरकारी विभागों के ऐपलिकेशनों की मेजबानी करने तथा कुशल निष्पादन हेतु जी0टू0सी0 ;सरकार से नागरिकद्ध, जी0टू0जी0 ;सरकार से सरकारद्ध जी0टू0वी0 ;सरकार से व्यापारद्ध सेवाएं तथा राज्य सरकार के कार्यालयों के लिए आम बुुनियादी ढांचा तैयार करना ;कम्पयूिट्रक संयन्त्र, साझा सर्वर, भण्डारण, नेटवर्क संयंत्र, विद्युतीय, वातानुकूलन, नेटवर्क कनेक्टिविटी, यू.पी.एस. व रैक इत्यादिद्ध़ जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे की स्थापना एवं एकीकरण ;सर्वर, दूर संचार उपकरणों एकीकृत पोर्टल/विभागीय सूचना प्रणाली उद्यम और नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली, सुरक्षा, फायरवाॅल/आई.डी.एस. नेटवर्किंग घटक इत्यादिद्ध़ साॅफ्टवेयर डाटावेस तैयार करना शामिल है। इलैक्ट्रोनिक तथा सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार नें पांच साल की अवधि के लिए स्थापना, संचालन और राज्य डाटा सेंटर के रख-रखाव की लागत को 80ः20 में वहन कर रहीे हैं। इस योजना के अन्तर्गत् वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) हि0 प्र0 राज्य डाटा सैंटर 26.05.2016 से परिचालन कर रहा है ।
2) मै0 औरेंज कम्पनी 5 वर्ष की अवधि के लिए 26.05.2014 से एच0पी0 एस0डी0सी0 की स्थापना, शुरूआत तथा रख-रखाव करेगी।
3) 80 वैब ऐपलीकेशन एच0पी0 एस0डी0सी0 क¨े स्थानांतरित तथा 134 वैब ऐपलीकेशन सुरक्षा लेखा परीक्षा के तहत चल रहीे हैं।
4) एस0डी0सी0 एपलीकेशन का कलाउड 01.09.2016 से चल रहा है।
5) मै0 ई. एण्ड वाई. क®, एच0पी0 एस0डी0सी0 में सेवा स्तर की निगरानी,पांच वर्ष की अवधि के लिए तीसरी पार्टी लेखा परीक्षक नियुक्त किया गया है जिसका एच0 पी0एस0डी0सी0 आपरेटर द्वारा पालन किया जा रहा है।
6) एच.पी.एस.डी.सी. को आई.एस.ओ. 27001 (प्ैव् 27001), आई.एस.ओ. 20000 (प्ैव् 20000) और सी.ई.आर.टी.-आई एन (ब्म्त्ज्.प्छ) के सुरक्षा स्टैंडर्ड के साथ लागू किया गया है।
7) सी.सी.टी.एन.एस. एैपलिकेशन एवं हार्डवेयर, भू-अभिलेख और ई-प्रापण डाटाबेस को हि0प्र0 राज्य डाटा सैंटर में स्थापित है।
इस योजना का उद्द्ेश्य राज्य के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपकरणों का उपयोग करके एक समन्वित तरीके से राज्य में ग्राम पंचायत स्तर पर लोक मित्र केन्द्रों की स्थापना करना तथा ग्रामीण नागरिकों को सरकारी, निजी तथा सामाजिक क्षेत्र की सेवाएं सीधे उपलब्ध करवाना है। लोक मित्र केन्द्र ग्राम स्तर पर राज्य के नागरिकों को जी0टी0सी0 सेवाओं को उपयोगकर्ताओं तक सीधे पंहुचा रहे है। राज्य सरकार भी ई-जिला परियोजना लागू कर रही है। इन सेवाओं की डिलिवरी भी लोक मित्र केन्द्रों के माध्यम से की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत् गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः- वर्तमान में 3,226 सी0एस0सी0- आई0डी0 जिनमें से 2,809 सी0एस0सी हिमाचल में सक्रिय हैं तथा 2,308 लोकमित्र केन्द्रों में 28 जी0टू0सी0 सेवाएं दे रहे हंै जिसमें शामिलः-
1) हि0 प्र0 राज्य विद्युत ब®र्ड लिमिटिड के बिजली के बिल का संग्रह।
2) जल एवं जन-स्वास्थ्य विभाग के पानी के बिल।
3) नकल जमाबन्दी के प्रति जारी करना (भू-अभिलेख)।
4) दिसम्बर,2017 तक पी.एम.जी.डी.आई.एस.एच.ए. स्कीम के तहत 74,702 छात्र पंजिकृत कर प्रशिक्षण दिया गया और 28,139 प्रमाणित हो चुके है।
भारत सरकार की क्षमता निर्माण परियोजना के अंतर्गत विभिन्न घटकों में राज्य सरकार के कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना, राज्य सरकार के लिए तकनीकी व व्यवसायिक मानव संसाधन उपलब्ध करवाना ताकि विभिन्न ई-गवर्नेस परियोजनाअ® के कार्यान्वयन में राज्य सरकार क® सहायता प्रदान हो इस योजना के अन्तर्गत् गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) आज तक 2,323 कर्मचारियों को क्षमता निर्माण परियोजना के तहत प्रशिक्षित किया गया है ।
2) SeMT के तहत, NeGD के माध्यम से 4 तकनीकी संसाधन तैनात किए गए हैं।
3) कई राज्य विभागों के 600 से अधिक उपयोगकर्ताओं को ई-ऑफिस प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
4) के लिए ई-गवर्नेंस परियोजना प्रबंधन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया जनवरी-2017 में एससी/एसटी/टीएसपी के अंतर्गत आने वाले विभागों के अधिकारी।
राजस्व न्यायालय मामले की निगरानी प्रणाली, जिला, मण्डल और तहसील स्तर पर राजस्व न्यायालयों के उपयोग के लिए सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा विकसित किया गया है। इस प्रणाली द्वारा राजस्व अदालतों की कार्यवाही अन्तरिम आदेशों/ निर्णयों को प्राप्त कर सकते हैं। राजस्व मामलों का ब्यौरा आम जनता के लिए आॅन लाइन उपलब्ध है नागरिकों को अपने मामलों की स्थिति सूची देखना अन्तरिम आदेशों/ निर्णयों को आॅनलाइन डाउनलोड़ कर सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत् वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) आर0सी0एम0एस0 परियोजना के अंतर्गत भारत में ई-गर्वेनस क्षेन्न में पहल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 2,014 सी0एस0आई0 निहिलैट ई-गर्वेनस पुरस्कार मिला है।
2) 280 राजस्व न्यायालयों में आर0सी0एम0एस0 साॅफ्टवेयर का उपयोग हो रहा हैं।
3) 84,158 अदालती मामले आर.सी.एम.एस. में दर्ज किए गए है जिनमें से 36,543 मामलों का फैसला हो चुका है।
अभियोग निगरानी प्रणाली : किसी भी सरकारी विभाग के लिए न्यायिक मुकदमों की निगरानी एक बड़ी चुनौती है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इसके लिए एक सामान्य साॅफ्टवेयर तैयार किया गया है इस साॅफ्टवेयर के प्रयोग से सेक्रेटरी/ विभागाध्यक्ष न्यायिक मुकदमों की निगरानी सरल तरीके से कर सकते है और लम्बित मामलों का निर्धारित समय में उत्तर तैयार करके, वर्तमान स्थिति और व्यक्तिगत उपस्थिति के मामलों का निरीक्षण कर सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) महाधिवक्ता कार्यालय सभी मामल®ं की स्थिति क® आॅनलाईन अवगत करवा रहा है। महाधिवक्ता कार्यालय के भीतर फाईल से सम्बन्धित गतिविधियां साॅफ्टवेयर के माध्यम से उपलब्ध हैं।
2) सभी सरकारी विभाग अपने मामलों की दैनिक स्थिति को देखने के लिए स्डै प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
3) सभी पत्राचार सम्बन्धित विभागों को इस साफ्टवेयर के माध्यम से जारी किए जा रहे है।
निम्नलिखित विशेषताओं को एल.एम.एस. साॅफ्टवेयर में शामिल किया गया है।
1) ई-मेल और एस.एम.एस. के माध्यम से सूचना सम्वन्धित विभाग®ें के प्रशासनिक विभागों, विभागों के प्रमुखों, नोडल अधिकारियों को भेजी जाती है।
2) सम्वन्धित विभाग के मामले का विवरण दर्ज होने पर स्वचालित पत्र तैयार हो जाता है।
3) मामलों का स्थानांतरण तथा हटाना का विकल्प भी साॅफ्टवेयर में शामिल है।
आधार कार्यक्र्रम हिमाचल प्रदेश में दिसम्बर, 2010 में शुरु किया गया था और तब से राज्य सरकार ने आधार बनाने में अग्रणी स्थान बनाए रखा है। 75.73 लाख ;105 प्रतिशतद्ध से अधिक निवासियों के यू0आई0डी0 अनुमानित जनसंख्या,2017 के अनुसार बनाए जा चुके है।
आधार का उपयोग :
1) आधार के डाटाबेस का प्रयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 85 प्रतिशत, मनरेगा में 98 प्रतिशत, शिक्षा में 100 प्रतिशत, एन0एस0ए0पी0 में 84.01 प्रतिशत, एल0पी0जी0 मेें 96 प्रतिशत परिवार पंजीकरण में 73 प्रतिशत तक आधार सिडिंग कर दी गई है।
2) ₹ 838.00 करोड़ डी0बी0टी0 ;डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफरद्ध द्वारा वितरित किए गए है।
3) हिमाचल मनरेगा में डी0बी0टी0 शुरु करने वाला पहला राज्य है।
4) आधार संख्या पर आधारित बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली नगर एवं शहरी विभाग, सूचना प्रौद्योगिक विभाग, महिला एवं बाल विकास, कारागार निदेशालय, मत्स्य विभाग और औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्रों में में सक्रिय है।
ई-कार्यालय एक उत्पाद है जिसका उद्द्ेश्य अधिक कुशल, प्रभावी और पारदर्शी तरीके से सरकारी लेन-देन सरकार के मध्य व सरकारों के साथ करना है। निम्नलिखित विभागों में ई-कार्यालय कार्यान्वयन प्रक्र्रिया में है । ई-आॅफिस को एच.पी.एस.डी.सी में सुचारू रूप से लागू कर दिया गया है और प्रारम्भिक स्तर पर निम्न विभागों में लागू करने की प्रक्रिया जारी है।
1) हिमाचल प्रदेश पुलिस मुख्यालय।
2) सशस्त्र पुलिस एवं प्रशिक्षण विभाग।
3) सूचना प्रोद्यौगिकी विभाग।
4) पुलिस संचार एवं तकनीकी सेवा
5) हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय। (स्थापना अनुभाग)
6) निदेशालय कोष, लेखा एवं लाटरी विभाग।
7) पुलिस अधीक्षक कार्यालय, मण्डी।
निम्नलिखित विभागों को अतिरिक्त प्रशिक्षण दिया गया हैः-
1) शहरी एवं नगर योजना विभाग।
2) हि0प्र0 लोक सेवा आयोग।
3) निदेशालय सैनिक कल्याण, हमीरपुर।
4) वन विभाग।
5) खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग।
6) हिप्पा शिमला।
यह सुविधा अदालत में कैदियों को ले जाने की आवश्यकता को समाप्त करेगी व तुरन्त न्याय देने में सहायक सिद्ध होगी। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) मै0 भारती एयरटेल राज्य में वीडियो कान्फ्रेसिंग के उपकरणों की आपूर्ति, तथा स्थापित करने व परियोजना को चालू होने की तिथि से 5 वर्ष की अवधि के रख-रखाव के लिए कार्यान्वयन एजेंसी है।
2) मै0 भारती एयरटेल ने 63 विडियो कान्फ्रेसिंग की आपूर्ति तथा स्थापित करने का आदेश दिये गये सभी 63 वीडियो कान्फ्रेंसिंग सुविधाओं को सफलतापूर्वक वितरित/स्थापित कर दिया गया है।
3) 7 न्यायालयों, 13 जेलांे में वीडियो कान्फ्रैंसिंग की सुविधा प्रदान की गई है।
4) वीडियो कान्फ्रेंसिंग की सुविधा सूचना प्रोद्यौगिकी विभाग, पावर कार्पोरेशन लिमिटिड, पंचायती राज, महानिदेशक जेल, राज्य फोरेंसिक प्रयोगशाला तथा स्वास्थ्य विभाग में प्रदान की जा रही है।
ई-जिला परियोजना एक मिशन मोड़ परियोजना है जिसका उद्द्ेश्य एकीकृत नागरिक केन्द्रित सेवाएं प्रदान करना, जिला प्रशासन द्वारा नागरिक सेवाओं के एकीकरण और सहज वितरण कार्य प्रवाह से स्वचालन, कम्पयूटरीकरण, डाटा डिजिटलीकरण की विभिन्न विभागों द्वारा परिकल्पना की गई है। भविष्य में इसका उद्द्ेश्य ऐपलीकेशनों का एकीकरण करना, सार्वजनिक मामलों/ अपीलों /शिकायतों का तेजी से प्रसंस्करण कर सूचनाओं का जनता की आवश्यकता के अनुसार प्रसार व अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं को सामान्य सेवा केन्द्रों के माध्यम से नया स्वरुप देना है। इस प्रोजेक्ट के अन्तर्गत निम्नलिखित गतिविधियां पूरी कर ली गई हैं।
1) सभी 12 जिलों में 52 ई-सेवाओं को ई-जिलों में आरम्भ कर लिया है।
2) सभी 12 जिलों में ई-जिला प्रबन्धक, जिला ई-शासन सोसाइटी के गठन का कार्य पूरा कर लिया है।
3) मै. आई.एल. तथा एफ.एस. टैक्नोलोजी लिमिटिड को जिला मिशन मोड परियोजना के राज्य न्यायी शेल आउट के लिए ;सिस्टम इंटीग्रेटरद्ध रुप में चयनित किया गया है।
4) 7 विभागों के कर्मचारियों के प्रशिक्षण का आयोजन विभिन्न चरणों में किया गया है।
5) 2.07.2015 को 9 जिलों में पहले चरण में 10 सेवाएं आरम्भ कर दी गई है।
6) 4.06.2016 को सभी 12 जिलों में चैथे चरण में 52 सेवाएं आरम्भ कर दिया गया है।
7) 12 जिलों के विभागीय स्थानों में हार्डवेयर डिलिवर कर दिये गये है।
8) ई-जिला के साथ आधार, एस.एम.एस. गेटवे, भुगतान गेटवे, भू-अभिलेख, ई-परिवार, बी0पी0 एल0, सी0आर0एस0 और लोक सेवा गारंटी (पी0एस0जी0) का एकीकरण पूर्ण हो गया है।
कृषि मंत्रालय के अन्तर्गत कृषि एवं सहकारी विभाग राष्ट्रीय ई-गर्वनेंस कार्यक्रम को कृषि क्षेत्र के लिए मिशन मोड़ कार्यक्रम के तौर पर चला रहा है तथा इसमें कृषि, पशुधन एवं मत्स्य क्षेत्र सम्मिलित है। इस परियोजना के अंतर्गत 12 सेवा कलस्टर भी चिन्हित किये गए हैं। एन.ई.जी.पी.-ए परियोजना का देश भर से लागू किया जाना प्रस्तावित है जिसका उद्दे्श्य केन्द्रीय कृषि पोर्टल तथा राज्य कृषि पोर्टल के माध्यम से सरकार से नागरिक/ किसान ;जी.टू.सी./ जी.टू.एफ.द्ध, सरकार से व्यापार ;जी.टू.बी.द्ध, सरकार से सरकार ;जी.टू.जी.द्ध तथा कृषि सेवाएं एकीकृत तरीके से पेश करना है। इस योजना के अन्तर्गत् वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) सभी 193 स्थानों के लिए हार्डवेयर की स्थापना एवं आपूर्ति की गई है।
2) सभी कर्मचारियों का आधारभूत कम्पयूटर प्रशिक्षण कार्य पूरा कर लिया गया है।
3) एन.आई.सी के द्वारा ऐपलीकेशन विकसित की जा रही है।
4) किसान पोर्टल केन्द्रीय सर्बर पर स्थापित किया गया है।
5) जे.आई.सी.ए. का एम.आई.एस. ऐपलीकेशन एन.ई.जी.पी. पर शुभारम्भ हो चुका है।
6) एग्रीमोबाईल तथा एग्रीस्नेट पोर्टल। राज्य डाटा सैंटर पर तैनात कर दिया गया है।
यह एक वेब आधारित आॅनलाइन उपकरण है जो निविदाएं और ई-प्रापण की प्रक्रिया अधिक कुशल बनाने के लिए है। ई-प्रापण सिस्टम हिमाचल प्रदेश में निविदाकर्ता को निविदा अनुसूचि मुफ्त में डाउनलोड करने में सक्षम बनाता है और फिर इस पोर्टल के जरिए आॅनलाइन बोलियां जमा कर सकता है। इस प्रणाली का उद्देश्य ई-प्रापण की लागतों को कम करना, ई-प्रापण क्षमता को अधिकतम करना, राज्य भर में प्रतिस्पर्धात्मक और एक सम्मान दरें, अधिकारिक प्रक्रिया में पारदर्शिता,कोई हेर फेर न हो सके, समय बचाने और निविदाओं की पूलिंग न होना है।
1) लोक निर्माण विभाग, सूचना एवं प्रोद्यौगिकी विभाग, जल एवं जन- स्वास्थ्य विभाग आदि बद्दी बरोटीवाला नालागढ विकास प्राधिकरण, हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम, हिमाचल प्रदेश मार्केट कमेटी, हिमाचल प्रदेश राज्य डाटा केन्द्र आदि जैसे विभिन्न 28 विभागों/ निगमों में इस साॅफ्टवेयर का प्रयोग कर रहे हैं।
2) अधिक से अधिक विभागों को शामिल करने के लिए परियोजना प्रबन्धन इकाई स्थापित किया गया है।
3) विश्व बैंक पांच वर्षों की अवधि के लिए इस परियोजना को वित्त पोषित कर रहा है और वितरण लक्ष्य से जुड़े हुए हंै।
i) वर्तमान वित्तीय वर्ष में भारत की डिजिटल लाईब्रेरी को ृ3,173.30 करोड़ प्राप्त करना है।
ii) सरकारी ई-मार्केट पोर्टल से ृ9.23 करोड़ प्राप्त हुए।
iii) वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए जनवरी, 2018 तक ृ2,934.04 करोड़ ई-प्रापण निविदा प्राप्त हुई है।
iv) शेष लक्ष्य ृ230.03 करोड़ अगले दो महीनों में हासिल किया जाना है।
4) वित्तीय विभाग ऑनलाइन पोर्टल का उपयोग करने के लिए निविदा मूल्य सीमा में कमी के लिए अधिसूचना जारी करेगा उपरोक्त सभी खरीदों के लिए नीचे दिए गए विवरण के अनुसार पारित तरीके से:
i) 31.03.2018 तक ₹10 लाख
ii)01.04.2018 तक ₹ 5 लाख
iii) 01.04.2019 तक ₹ 2 लाख

<