Tribal Development
आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग

आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17


1.सामान्य समीक्षा

वैश्विक मैक्रो आर्थिक परिदृश्य वर्तमान में चार्टर कर रहा है दुनिया के निर्बल उत्पादन में कमजोर वृद्धि के कारण एक कठिन और अनिश्चित इलाका है। भारतीय विकास की कहानी बनी रही सकारात्मक और 2016-17 में आर्थिक विकास की स्थिर गति दर्ज की गई तथापि,उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर वृद्धि ने भारत की ओर से अपना लक्ष्य अपनाया है निर्यात। अर्थव्यवस्था बढ़ी है 2015-16 में 7.9 प्रतिशत की वृद्धि 2016-17 में 7.1 प्रतिशत हो जाने की संभावना है।
माइक्रो इक्नोमिक्स अर्थ- व्यवस्था के दृृष्टिगत वित्तीय घाटे और चालू खाता शेष तथा मुद्रा स्फीति में सुधार हुआ जबकि बचत और निवेश दर में सुधार की कोई सम्भावना दिखाई नहीं दे रही है। थोक मूल्य मुद्रा स्फीति वर्ष दर भर मंे नकारात्मक रही जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वृद्धि पिछले वर्ष की अपेक्षा लगातार आधी बनी रही। समष्टिगत अर्थ व्यवस्था के दृष्टिगत भारतीय अर्थ व्यवस्था समग्र रूप से सुदृढ़ हुई है।
विश्व आज भारतीय अर्थ-व्यवस्था को अत्याधिक जीवंत मान रहा है। परन्तु पिछले एक वर्ष से निवेशकों के हौंसले क्षरण हुए हैं।
भारतीय अर्थ-व्यवस्था नए आधार वर्ष 2011-12 के अनुसार स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2015-16 में ृ113.58 लाख करोड़ हुआ जोकि वर्ष 2014-15 में ृ105.23 लाख करोड़ था। प्रचलित भाव पर सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2015-16 में ृ136.75 लाख करोड़ आंका गया है। जोकि वर्ष 2014-15 ृ124.34 लाख करोड़ था। जोकि 10.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में स्थिर भाव ;आधार 2011-12द्ध के अनुसार सकल मूल्य संवर्धन गत वर्ष में 6.9 प्रतिशत की तुलना में वर्तमान वर्ष 2015-16 में 7.8 प्रतिशत रहा। वर्ष 2015-16 के दौरान मूल्य संवर्धन में मुख्यतयः स्थावर सम्पदा, निवास स्वामित्व तथा व्यवसायिक सेवाओं में (12.6 प्रतिशत)ए व्यापार, मुरम्मत, होटल व रेस्तरां (11.6 प्रतिशत)ए यातायात, संचार व सूचना प्रसारण सम्बन्धित सेवाओं (9.1 प्रतिशत)ए विनिर्माण (10.6 प्रतिशत)ए खनिज एवं उत्खनन (12.3 प्रतिशत)ए लोक प्रशासन व अन्य सेवा (8.9 प्रतिशत) तथा कृषि, वन, व मत्स्य में (0.8 प्रतिशत) का योगदान रहा।
वित्तीय वर्ष 2016-17 में विकास दर अग्रिम अनुमानों के अनुसार 7.1 प्रतिशत रहने की सम्भावना है।
मुद्रास्फीति प्रबन्धन सरकार की प्रमुख प्राथमिकता रही है। मुद्रास्फीति वर्ष दर वर्ष थोक मूल्य सूचकांक के अनुसार मापी जाती है। चालू वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान अधिकतर अवधि में थोक मूल्य सूचकांक 3 प्रतिशत सेे कम रही जो कि पिछले वित्त वर्षाें में अधिकतम 7.3 प्रतिशत थी। मुद्रास्फीति की दर थोक मूल्य सूचकांक के अनुसार दिसम्बर, 2015 में (-) 0.5 प्रतिशत थी जो कि दिसम्बर, 2016 में बढ़कर 3.4 प्रतिशत रही। औद्योगिक श्रमिकों का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ;समस्त भारतद्ध के अनुसार दिसम्बर, 2016 में कम होकर 2.2 प्रतिशत रहा जो कि दिसम्बर, 2015 में 5.9 प्रतिशत था।

हिमाचल प्रदेश बहुत कम समय में ही शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्यान, सामाजिक कल्याण तथा समग्र वृद्धि के लिए छोटे राज्यों में ही नहीं अपितु बड़े राज्यों में भी आार्थिक विकास का आदर्श बन कर उभरा है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश को देश में सबसे अधिक सम्पन्न तथा तीव्र गति से बढ़ने वाली अर्थ-व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्य की अर्थ-व्यवस्था के 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने की सम्भावना है।


राज्य सकल घरेलू उत्पाद, कारक लागत पर प्रचलित भावों पर वर्ष 2014-15 में ृ1,04,177 करोड़ से 9.1 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2015-16 में ृ1,13,667 करोड़ रहा। स्थिर भाव ;2011-12द्ध पर यह वर्ष 2014-15 में ृ89,095 करोड़ से 8.1 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2015-16 में ृ96,289 करोड़ हो गया जबकि गत वर्ष में यह वृद्वि दर 7.5 प्रतिशत थी। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि मुख्यतः सामुदायिक व व्यैक्तिक सेवाओं ;12.3 प्रतिशतद्ध, विनिर्माण क्षेत्र ;11.0 प्रतिशतद्ध, विद्युत, गैस, व जलापूर्ति ;9.2 प्रतिशतद्ध, यातायात व व्यापार ;8.6 प्रतिशतद्ध तथा वित्तीय व स्थावर सम्पदा में ;7.5 प्रतिशतद्ध के कारण सम्भव हुई है। जबकि प्राथमिक क्षेत्र में मामूली वृद्धि ;0.7 प्रतिशतद्ध रही। खाद्य उत्पादन वर्ष 2014-15 में 16.08 लाख मी0टन से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 16.34 लाख मी0टन रहा जबकि वर्ष 2016-17 में 16.45 मी0टन का लक्ष्य है। फल उत्पादन वर्ष 2014-15 में 7.52 लाख मी0टन से 23.5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वर्ष 2015-16 में 9.29 लाख मी0टन रहा। तथा वर्ष 2016-17 में ;दिसम्बर, 2016 तकद्ध उत्पादन 5.10 लाख मी0टन हुआ है।
वर्ष 2014-15 में प्रति व्यक्ति आय प्रचलित भाव पर ृ1,24,325 से बढ़ कर वर्ष 2015-16 में ृ 1,35,621 हो गई जो कि 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।
अग्रिम अनुमानों के अनुसार तथा दिसम्बर, 2016 की आर्थिक स्थिति के दृष्टिगत वर्ष 2016-17 में विकास दर 6.8 प्रतिशत के आसपास रहेगी।

प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था जोकि मुख्यतः कृषि व सम्बन्धित क्षेत्रों पर ही निर्भर है। 1990 के दशक में विशेष उतार चढ़ाव नहीं आए अैर विकास दर अधिकांशतः स्थिर रही। अर्थ-व्यवस्था में कृषि क्षेत्र से उद्योग व सेवा क्षेत्रों के पक्ष में रूझान पाया गया क्योंकि कृषि क्षेत्र का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में योगदान जो वर्ष 1950-51 में 57.9 प्रतिशत था तथा घटकर 1967-68 मंे 55.5 प्रतिशत, 1990-91 में 26.5 प्रतिशत और 2015-16 में 9.4 प्रतिशत रह गया।
उद्योग व सेवा क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान 1950-51 में क्रमशः 1.1 व 5.9 प्रतिशत से बढ़कर 1967-68 में 5.6 व 12.4 प्रतिशत, 1990-91 में 9.4 व 19.8 प्रतिशत और 2015-16 में 25.2 व 43.9 प्रतिशत हो गया। शेष क्षेत्रों में 1950-51 के 35.1 प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में 21.5 प्रतिशत का सकारात्मक सुधार हुआ है।
कृषि क्षेत्र के घट रहे अंशदान के बावजूद भी प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था में इस क्षेत्र की महत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा। राज्य की अर्थ-व्यवस्था का विकास अधिकतर कृषि तथा उद्यान उत्पादन द्वारा ही निर्धारित होता रहा है, जैसा कि सकल घरेलू उत्पाद में इसका मुख्य योगदान रहता है तथा अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव रोजगार, अन्य आदान तथा व्यापार सम्बद्धताओं के कारण रहा है। सिंचाई सुविधाओं के अभाव में हमारा कृषि उत्पादन अभी भी अधिकांशतः सामयिक वर्षा व मौसम स्थिति पर निर्भर करता है। सरकार द्वारा इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गई है।
राज्य ने फलोत्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विविध जलवायु, उपजाऊ गहन और उपयुक्त निकासी वाली भूमि तथा भू-स्थिति में भिन्नता एवं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में समशीतोषण से उप्पोषण कटिबन्धीय फलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है। प्रदेश का क्षेत्र फलोत्पादन में सहायक व सम्बन्धी उत्पाद जैसे फूल, मशरूम, शहद और हाॅप्स की पैदावार के लिए भी उपयुक्त है।
वर्ष 2015-16 में ;दिसम्बर, 2016 तकद्ध 5.10 लाख टन फलों का उत्पादन हुआ तथा 3,000 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र फलों के अधीन लाने का लक्ष्य है जिसके फलस्वरूप दिसम्बर, 2016 तक 2,817 हैक्टेयर क्षेत्र फलों के अधीन लाया जा चुका है। दिसम्बर, 2016 तक 7.53 लाख विभिन्न प्रजातियों के फलों के पौधों का वितरण किया गया। प्रदेश में बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में 16.09 लाख टन सब्जी उत्पादन हुआ जबकि वर्ष 2014-15 में 15.76 लाख टन का उत्पादन हुआ था जो कि 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। वर्ष 2016-17 में बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन 15.00 लाख टन होने का अनुमान है।
प्रदेश की बढ़ती हुई अर्थ-व्यवस्था की आवश्यकता को देखते हुए सरकार ने एक कार्यक्रम प्रारम्भ किया है जिसमें राज्य को निरन्तर निर्बाध विद्युत की आपूर्ति की जा रही है। विद्युत के उत्पादन, संचारण तथा वितरण को बढ़ाने के लिए कई पग उठाए गए हैं। ऊर्जा संसाधन के रूप में जलविद्युत आर्थिक रूप से व्यवहारिक प्रदूषण रहित तथा पर्यावरण के अनुकूल है। इस क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए, राज्य की विद्युत नीति सभी पहलुओं जैसे कि अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन संरक्षण की क्षमता, उपलब्धता, बहन करने योग्य, दक्षता, पर्यावरण संरक्षण व प्रदेश के लोगों को रोज़गार सुनिश्चित करने पर जोर देती है। यद्यपि निजी क्षेत्रों के योगदान को यह प्रोत्साहित करता है, इसके साथ ही सरकार द्वारा प्रदेशवासी निवेशकों के लिए 2 मैगावाट की लघु परियोजनाओं को आरक्षित रखा गया है और 5 मैगावाट की परियोजनाओं तक उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। 1
हिमाचल प्रदेश सरकार मौसम परिवर्तन से तालमेल बिठाने हेतू महत्वाकांक्षी योजना पर काम रही हैै। राज्य की कार्य योजना में मौसम परिवर्तन से सम्बन्धित संस्थागत क्षमता का सृजन तथा क्षेत्रवार गतिविधियों को अमल में लाना है।
सूचना प्रौद्योगिकी में रोज़गार सृजन व राजस्व अर्जन के व्यापक अवसर हैं। प्रशासन में प्रवीणता व पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से सरकार ने हिमस्वान के माध्यम से जी.टू.जी., जी.टू.सी., जी.टू.बी., ई-प्रक्योरमैंट, ई-समाधानतंत्र इत्यादि प्रणालियां प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई है। 1
पर्यटन अर्थ-व्यवस्था में वृद्धि करने का एक प्रमुख साधन है तथा राजस्व प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण सत्रोत है तथा विविध प्रकार के रोज़गारों का जनक है। राज्य सरकार ने पर्यटन विकास के लिए उपयुक्त आधारभूत सुविधाओं की संरचना की है जिनमें नागरिक सुविधाओं का प्रावधान, सड़क मार्ग, दूरसंचार तंत्र, विमानपत्तन, यातायात सुविधाएं, जलापूर्ति तथा नागरिक सुविधाएं इत्यादि उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसके परिणाम स्वरूप उच्च-स्तरीय प्रचार से घरेलू तथा विदेशी पर्यटकों के आगमन में पिछले कुछ वर्षों के दौरान महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है जो कि निम्नलिखित है।
मूल्य नियन्त्रण सरकार की हमेशा प्रमुखता रही है। हि0प्र0 श्रमिक वर्ग खाद्य मूल्य सूचकांक वर्ष 2016-17 में राष्ट्रीय स्तर के 2.2 प्रतिशत की तुलना में माह दिसम्बर, 2016 तक 3.4 प्रतिशत रहा।
वर्ष 2017-18 की वार्षिक योजना ृ5,700 करोड़ की निर्धारित की गई है। जोकि वर्ष 2016-17 से 9.6 प्रतिशत अधिक है।
लोक शिकायत व उन्मूलन निवारण की वचनबद्धता के अन्तर्गत सरकार द्वारा माननीय मुख्यमन्त्री की देखरेख में अधिक कुशल कार्य के लिए प्रत्येक लोक सेवा से सम्बन्धित विभाग में एक अलग विभाग स्थापित किया गया है। हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य है जहां पर लोक शिकायत निवारण हेतू ई-समाधान पोर्टल प्रारम्भ किया गया है।
समाजिक कल्याण कार्यक्रम राज्य सरकार की प्रमुख प्राथमिकता रही हैै। लोक सेवाओं के संचालन हेतू सरकार द्वारा लगातार एवं ठोस प्रयास किए जा रहे हैं।
राज्य सरकार की सामाजिक कल्याण पुनरूत्थान के अन्तर्गत मुख्य उपलब्धियाॅः
1) राज्य, शिक्षा एवं समग्र विकास में देश का सर्वश्रेण्ठ राज्य आंका गया है।
2) राज्य को खुले में शौचमुक्त राज्य के रूप में दूसरे पायदान पर घोषित किया गया है।
3) भारत सरकार द्वारा ‘‘समार्ट सिटि मिशन‘‘ के लिए नगरपालिका धर्मशाला को अनुमोदित किया गया है।
4) राज्य के 20 विभागों में ‘‘पब्लिक सर्विस गारन्टी एक्ट के अन्तर्गत 119‘‘ को समयवद्ध सेवाओं और समाधान हेतू लागू किया गया है।
5) हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य है जहां पर न्यायलय की आवश्यकताओं की अनिवार्यता न हो के लिए शपथ-पत्र की अनिवार्यता को समाप्त किया गया है।
6) सामाजिक सुरक्षा पैन्शन को ृ600 से बढ़ाकर ृ650 प्रति माह किया गया है।
7) कौशल विकास योजना के अन्तर्गत 1,58,100 प्रशिक्षुओं को ृ116 करोड़ प्रदान किए गए हैं।
8) राज्य के 80 वर्ष की आयु से ऊपर के वृद्धों को जो अन्य किसी प्रकार की पैन्शन नहीं ले रहे हैं को ृ1,200 प्रति माह पैन्शन प्रदान की जा रही है।.
9) किसानों को बैंकों द्वारा 7.14 लाख किसान क्रेडिट कार्ड आवंटित किए गए हैं।
10)राज्य में 18,26,390 राशनकार्ड धारकों को बढ़ती मंहगाई से निजात दिलाने हेतू रियायती दर पर आवश्यक खाद्य सामग्री प्रदान की जा रही है।
11) राजीव गांधी अन्न योजना के अन्तर्गत चयनित लाभार्थियों को चावल ृ3.00 प्रति कि0ग्रा0 तथा गेहंू ृ2.00 प्रति कि0ग्रा0 दिए जा रहे हैं।
12) खेती को बढ़ाने व आवारा पशुओं, जंगली जानवरों तथा बंदरों से बचाने हेतू सरकार द्वारा “मुख्यमन्त्री खेत संरक्षण योजना“ 60ः40 के अनुपात में शुरू की गई है।
13) मौसम आधारित फसलों के बीमा योजना पुनर्निर्माण के अन्तर्गत ;आर-डब्ल्यू.वी.सी.आई.एस.द्ध द्वारा 2,33,378 किसानों को वर्ष 2016-17 के दौरान रवी फसलों के लिए बीमित किया गया है।
14) उद्यान क्षेत्र में विविधता हेतु 79.693 हैक्टेयर भूमि को माह दिसम्बर, 2016 तक फूल उत्पादन के अन्तर्गत लाया गया है।
15) उद्यानों को ओलावृष्टि से बचाने हेतु, सरकार ओले रोधक जाली लगाने पर 80 प्रतिशत उपदान प्रदान कर रही है
16) मौसम आधारित फसल बीमा योजना को सेब बहुल वाले 36 खण्डों, आम बहुल वाले 41 खण्डों, किन्नू बहुल वाले 15 खण्डों, प्लम बहुल वाले 13 खण्डों व आड़ू बहुल वाले 5 खण्डों में लागू किया गया है।
17) बागवानी उत्पादों की उत्पादकता व गुणवता हेतु विश्व बैंक द्वारा पोषित ृ1,169.15 करोड़ की परियोजना शुरू की गई है।
18) वर्ष 2015-16 के दौरान 1,573 मिलियन युनिट विद्युत का उत्पादन किया गया है।
19) प्रदेश में उपलब्ध पनबिजली की कुल 27,436 मैगावाट क्षमता में से 10,351 मैगावाट पनबिजली का दोहन कर लिया गया है जो कि कुल क्षमता का 37.73 प्रतिशत है।
20) बिजली के उपभोक्ताओं को प्रति उपभोक्ता 10 एल.ई.डी. बल्व बाज़ार से कम भावों पर प्रदान किए जा रहे हैं।
21) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना गारंटी के तहत 4,31,933 परिवारों के लिए 160.31 लाख कार्य दिवस सृजित किए गए।
22) वर्तमान वित्त वर्ष में राजीव आवास योजना के अन्तर्गत 846 घरों का निर्माण किया जा रहा है।
23) चालू वित्त वर्ष में प्रदेश के सामान्य श्रेणी के बी0पी0एल0 परिवारों के लिए मुख्यमन्त्री आवास योजना लागू की गई है, जिसके अन्तर्गत प्रति इकाई ृ1,30,000/-की सहायता प्रदान की जाती है।
24) प्रदेश के सभी 12 जिलों में स्वच्छ भारत अभियान को एक परियोजना के रूप में चलाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश स्वच्छता के क्षेत्र में अग्रणी राज्य के रूप में जाना जाता है।
25) मातृ-शक्ति बीमा योजना के अन्तर्गत, गरीबी रेखा से नीचे की 10 से 75 वर्ष की महिलाओं को उनकी दिव्यांगता अथवा मृत्यु पर लाभान्वित किया जा रहा है।
26) ्रदेश की नगरपालिकाओं/ नगरपरिषदों में शामिल किए गए नए क्षेत्रों में रोज़गार सृजन हेतु लाल बहादुर शास्त्री कामगार एवं शहरी आजीविका योजना के अन्तर्गत ृ1.50 करोड़ का प्रावधान किया गया।
27) 54 शहरी स्थानीय निकायों द्वारा 1,416 कि0मी0 सड़कें/ पथ/ गलियां /नालियों का रख-रखाव किया जा रहा है।
28) राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के अन्तर्गत 208 लाभार्थियों को कौशल प्रशिक्षण दिया गया।
29) सर्व शिक्षा अभियान के तहत गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा तथा प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य प्राप्ति पर विशेष बल दिया जा रहा है।
30) छðी से आठवीं कक्षा के छात्रों के गणित व विज्ञान विषय को रूचिपूर्ण बनाने व विषय में नवाचार करने हेतु ‘‘प्रयास‘‘ नामक कार्यक्रम शुरू किया गया हैं
31) प्रदेश में बालिकाओं को विश्वविद्यालय स्तर तक मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा रही है।
32) प्रदेश के शिक्षा में पिछड़े खण्डों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक समुदाय व गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से सम्बन्ध रखने वाली नौवीं से बारहवीं कक्षाओं की छात्राओं को मुफ्त छात्रावास की सुविधा प्रदान की जा रही है।
33) पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति के अधीन 52,969 अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछडे़ वर्ग के विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया।
34) राजीव गांधी डिजीटल विद्यार्थी योजना के अन्तर्गत 10वीं व 12वीं के विद्यार्थियों को 10,000 नोट बुक्स प्रदान की गई हैं।
35) शिक्षा की गुणवता सुधारने के लिए हर जिले के प्रत्येेक निर्वाचन क्षेत्र में दो सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं को आदर्श माॅडल स्कूल के तौर पर मनोनीत किया गया है।
36) समाज से वंचित वर्ग के शैक्षणिक स्तर को सुधारने हेतु राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा विभिन स्तरों पर विभिन्न प्रकार की छात्रवृति/वज़ीफा प्रदान किया जा रहा है।
37) तीन मैडिकल कालेज जिला चम्बा, सिरमौर तथा हमीरपुर में खोले गए हैं।
38) जिला मण्डी के ई.एस.आई. मैडिकल कालेज को सरकार द्वारा अपने अधिकार में ले लिया गया है।
39) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत 24 घण्टे आपात कालीन सेवाएं प्रदान करने वाले 95 स्वास्थ्य संस्थानों को चिन्हित किया गया है।
40) ‘‘मुख्यमन्त्री राज्य स्वास्थ्य संरक्षण योजना‘‘ के अन्तर्गत एक लाख से अधिक स्मार्ट कार्ड चयनित परिवारों को प्रदान किए गए हैं।
41) ‘‘बेटी है अनमोल योजना‘‘ के अन्तर्गत 11,359 बालिकाओं को लाभान्वित किया जा चुका है।
42)‘‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ‘‘ योजना प्रदेश के ऊना जिले में शुरू की गई है। वर्तमान में यह योजना कांगड़ा तथा हमीरपुर जिलों में भी शुरू की जा चुकी है।
43) ‘‘मुख्यमन्त्री कन्यादान योजना‘‘ के अन्तर्गत दिसम्बर, 2016 तक 1,314 लाभार्थियों को समाविष्ट किया गया है।
44) अन्तर्जातीय विवाह के लिए प्रोत्साहन राशि ृ25,000 से बढ़ाकर ृ50,000 की गई है। चालू वर्ष के दौरान 277 जोड़ों को लाभान्वित किया गया है।
45) इन्दिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना के अन्तर्गत ृ6,000की नकद राशि का प्रावधान है तथा इसके अन्तर्गत अभी तक 4,717 महिलाओं को लाभ पहुंचाया जा चुका है।
46) बलात्कार पीड़ित महिलाओं को ृ75,000 की राशि वित्तीय सहायता एवं संबल सेवाओं के तौर पर प्रदान की जाती है तथा इस योजना के अन्तर्गत 56 महिलाओं को लाभान्वित किया जा चुका हैं
47) ‘‘मदर टैरेसा असहाय मातृ संबल योजना‘‘ के अन्तर्गत चालू वित्तीय वर्ष के दौेरान 23,875 बच्चों को लाभान्वित किया जा चुका है।
48) सामान्य जनता को जवाबदेही, पारदर्शिता, कुशलता, तथा वितरण प्रक्रिया को सुधारने के लिए ॅमइ सेवाओं को प्रदेश के सभी योजना एवं विशेष क्षेत्रों में शुरू किया जा चुका है।
49) राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान अन्तर्गत पंचायती राज संस्थाओं में नए चुने गए प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
50) हिमाचल प्रदेश केवल एक ऐसा राज्य है, जिसने समानान्तर कनैक्टीविटी, 1,860 सरकारी कार्यालयों को प्रदान की है।
51)स्टेेट पोर्टल तथा स्टेट सर्विस डिलिवरी गेटवे, के अन्तर्गत 57 जी.टू.सी सेवाओं को ूूूण्मेमतअपबमीचण्हवअण्पद राज्य पोर्टल से उपलब्ध कराया जा रहा है।
52) आधार योजना के अन्तर्गत वर्ष 2015 की अनुमानित जनसंख्या, जोकि 72.46 लाख (100.69 प्रतिशतद्ध है, को यू.आई.डी. ;न्ण्प्ण्क्द्ध आधार संख्या जारी किए जा चुके हैं।
53)राज्य में जनता के लिए जन सेवा वितरण हैल्पलाइन शुरू की गई है।
54)सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए टोल फ्री नं0 की एक सुविधा स्थापित की गई है।
55) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत 24 घण्टे आपात कालीन सेवाएं प्रदान करने वाले 95 स्वास्थ्य संस्थानों को चिन्हित किया गया है।
56) बलात्कार पीड़ित महिलाओं को ृ75,000 की राशि वित्तीय सहायता एवं संबल सेवाओं के तौर पर प्रदान की जाती है तथा इस योजना के अन्तर्गत 56 महिलाओं को लाभान्वित किया जा चुका हैं
57) राज्य की प्रति व्यक्ति आय ने वर्ष 2014-15 की तुलना में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हुए वर्ष 2015-16 में ृ1,35,621 के स्तर को छू लिया है तथा वर्ष 2016-17 में यह ृ1,47,277 होने का अनुमान है।

2.राज्य की आय और लोक वित्त

राज्य आय अथवा सकल राज्य घरेलू उत्पाद किसी भी राज्य के आर्थिक विकास को मापने के लिए अति आवश्यक सूचक हैं। द्रुत अनुमानों के अनुसार वर्ष 2015-16 में प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद ृ96,289 करोड़ आंका गया, जबकि वर्ष 2014-15 में यह ृ89,095 करोड़ था। वर्ष 2015-16 में प्रदेश के आथर््िाक विकास की दर स्थिर भावों ;आधारः 2011-12द्ध पर 8.1 प्रतिशत रही।
राज्य के द्रुत अनुमानों के अनुसार प्रचलित भाव पर राज्य का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2015-16 में पिछले वर्ष 2014-15 के ृ1,04,177 करोड़ की तुलना में ृ1,13,667 करोड़ ;अनुमानितद्ध आंका गया है, जो कि 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। विकास दर की इस वृद्धि का मुख्य श्रेय कृषि तथा सम्बन्धित क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में हुई वृद्धि को जाता है। वर्ष 2015-16 में खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2014-15 के 16.08 लाख मी.टन से बढकर 16.34 लाख मी.टन हो गया है। तथा वर्ष 2015-16 में सेब उत्पादन वर्ष 2014-15 के 6.25 लाख मी.टन से बढकर 7.77 लाख मी.टन हो गया।
हहिमाचल प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था मुख्यतः कृषि पर ही निर्भर है। कृषि क्षेत्र पर निर्भरता तथा औद्योगिक आधार कमजोर होने के कारण खाद्यान्नों व फलों के उत्पादन का उतार-चढ़ाव प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था को प्रभावित करता है। वर्ष 2015-16 के दौरान कुल राज्य की आय का लगभग 9.4 प्रतिशत योगदान केवल कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त हुआ है।
राज्य की अर्थ-व्यवस्था वृद्वि की ओर अग्रसर है। अग्रिम अनुमानों के अनुसार राज्य के सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2016-17 में वृद्वि दर 6.8 प्रतिशत दर रहने का अनुमान है।
गत तीन वर्षों में प्रदेश की आर्थिक विकास दर सारणी 2.1 में दर्शाई गई हैः
राज्य आय के द्रुत अनुमानों वर्ष 2015-16 ;नई श्रंखला आधार वर्ष 2011-12द्ध के अनुसार प्रदेश मंे प्रति व्यक्ति आय प्रचलित भावों पर ृ1,35,621 है जोकि वर्ष 2014-15 के ृ1,24,325 की तुलना में 9.1 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2011-12 के स्थिर भावों (2011-12) पर वर्ष 2014-15 में प्रति व्यक्ति आय ृ1,05,774 आंकी गई,जो कि वर्ष 2015-16 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाते हुए ृ1,13,447 हो गई है।
क्षेत्रीय विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2015-16 में प्रदेश की राज्य आय में प्राथमिक क्षेत्रों का योगदान 14.90 प्रतिशत रहा। गौण क्षेत्रों का 41.14 प्रतिशत, परिवहन संचार एवं व्यापार का 12.09 प्रतिशत, विŸा एवं स्थावर सम्पदा का योगदान 15.88 प्रतिशत तथा सामुदायिक वैयक्तिक क्षेत्रों का 16.00 प्रतिशत रहा।
प्रदेश अर्थ-व्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान से इस दशक में महत्वपूर्ण परिवर्तन पाए गए। कृषि क्षेत्र जिसमें उद्यान व पशुपालन भी सम्मिलित है का प्रतिशत योगदान वर्ष 2000-01 में 21.1 प्रतिशत से घट कर वर्ष 2015-16 में 9.4 प्रतिशत रह गया। फिर भी कृषि क्षेत्र का प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यही कारण है कि खाद्यान्न/फल उत्पादन में आया तनिक भी उतार-चढाव अर्थ-व्यवस्था को प्रभावित करता है। प्राथमिक क्षेत्रों का योगदान, जिनमें कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन तथा खनन व उत्खनन सम्मिलित हैं, 2000-01 में 25.1 प्रतिशत से घट कर 2015-16 में 14.9 प्रतिशत रह गया।
गौण क्षेत्रों जिनका प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था में दूसरा प्रमुख स्थान है जिस में वर्ष 1990-91 के पश्चात महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। इसका प्रतिशत योगदान वर्ष 1990-91 में 26.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2015-16 मेें 41.1 प्रतिशत हो गया जो कि प्रदेश औद्योगिकरण व आधुनिकीकरण की ओर स्पष्ट रूझान को दर्शाता है। विद्युत, गैस व जल आपूर्ति जो कि गौण क्षेत्रों का ही एक अंग है का भाग वर्ष 1990-91 में 4.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 8.0 प्रतिशत हो गया, अन्य सेवा सम्बन्धी क्षेत्रों जैसे कि व्यापार, यातायात, संचार, बैंेक, स्थावर सम्पदा और व्यावसायिक सेवाएं तथा सामुदायिक व वैयक्तिक सेवाओं का योगदान भी सकल राज्य घरेलू उत्पाद में वर्ष 2015-16 में 44.0 प्रतिशत रहा।
वर्ष 2015-16 में विभिन्न क्षेत्रों की निम्न मुख्य घटकों की प्रगति के कारण ही सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 8.1 प्रतिशत रही।

प्राथमिक क्षेत्र जिसमें कृषि, वानिकी, मत्स्य खनन तथा उत्खनन सम्मिलित हैं, के विकास में वर्ष 2015-16 में 0.7 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई है।

गौण क्षेत्र जिसमें विनिर्माण, निर्माण तथा विद्युत गैस व जल आपूर्ति सम्मिलित हैं, वर्ष 2015-16 में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। इन क्षेत्रों में पिछले वर्षो की उपलब्धियांे की अपेक्षा इस वर्ष विनिर्माण क्षेत्र में अधिक वृद्धि दर्ज की गई है।
वर्ष 2015-16 में इस क्षेत्र की विकास दर 8.6 प्रतिशत रही। इस क्षेत्र के परिवहन के अन्य साधनों से सम्बन्धित विकास दर 5.9 प्रतिशत की वृद्वि दर्शाती है।
इस क्षेत्र मेें बैंक, बीमा, स्थावर सम्पदा, आवासों का स्वामित्व एवं व्यवसायिक सेवाएं सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र की विकास दर वर्ष 2015-16 मेे 7.5 प्रतिशत रही ।
इस क्षेत्र में विकास दर वर्ष 2015-16 में 12.3 प्रतिशत रही।
राज्य सकल घरेलू उत्पाद में स्थानीय निकायों का योगदानः राज्य सकल घरेलू उत्पाद में स्थानीय निकायों का योगदान वर्ष 2015-16 में 0.24 प्रतिशत रहा। निम्न सारणी में वर्षवार स्थानीय निकायों का प्रतिशत योगदान दर्शाया गया है।
दिसम्बर, 2016 तक प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर आधारित अग्रिम अनुमानों के अनुसार वर्ष 2016-17 में विकास दर 6.8 प्रतिशत आने की संभावना हैै। प्रदेश में गत दो वर्षों सें विकास की दर 7.0 प्रतिशत सें अधिक रही हैं। राज्य का सकल घरेलू उत्पाद ;प्रचलित भावों परद्ध लगभग ृ1,24,570 करोड़ होने की सम्भावना है। अग्रिम अनुमानों के अनुसार प्रचलित भावों पर प्रति व्यक्ति आय 2016-17 में ृ1,47,277 अनुमानित है जोकि वर्ष 2015-16 में ृ1,35,621 की तुलना में 8.6 प्रतिशत की वृद्वि दर्शाती है।
हिमाचल प्रदेश में आर्थिक विकास के विश्लेषण से प्रतीत होता है कि प्रदेश की आर्थिक विकास दर सदैव समस्त भारत की विकास दर के समकक्ष ही रहती रही है, जैसा कि सारणी 2.2 में दर्शाया गया हैः-

राज्य सरकार वित्तीय साधनों को प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष कर, कर रहित राजस्व केन्द्रीय करों में भाग से चलाती है तथा केन्द्र से प्राप्त सहायता अनुदान प्रशासकीय कार्य में लगाती है। वर्ष 2016-17 के बजट अनुमानों के अनुसार कुल राजस्व प्राप्तियां ृ26,270 करोड़ है जोकि वर्ष 2016-17 ;संशोधितद्ध में ृ24,514 करोड़ थी। राजस्व प्राप्तियां में वर्ष 2015-16 ;संशोधित अनुमानद्ध से 7.16 प्रतिशत की वृद्वि हुई है।
राज्य करों से कुल प्राप्त आय वर्ष 2016-17 ;बजट अनुमानद्ध में ृ7,469 करोड तथा वर्ष 2015-16 संशोधित में ृ6,396 करोड़ व वर्ष 2014-15 ;वा0द्ध में ृ5,940 करोड़ आंकी गई है। राज्य कर वर्ष 2016-17 ;बजट अनुमानद्ध में वर्ष 2015-16 ;संशोधित अनुमानद्ध की अपेक्षा 16.78 प्रतिशत अधिक है।
राज्य के कर रहित राजस्व जिसमें विशेषकर ब्याज प्राप्ति, उर्जा परिवहन तथा अन्य प्रशासनिक सेवाओं इत्यादि से प्राप्त आय सम्मिलित हैं, वर्ष 2016-17 ;बजट अनुमानद्ध में ृ1,668 करोड़ आंका गया हैं, जोकि वर्ष 2016-17 के कुल राजस्व प्राप्तियों का 6.35 प्रतिशत हैं।
केन्द्रीय करों में राज्य का भाग वर्ष 2016-17 ;बजट अनुमानद्ध में ृ4,334 करोड़ आंका गया है।
राज्य करों से प्राप्त आय के अन्तर्गत वर्ष 2016-17 ;बजट अनुमानद्ध में बिक्री करों से प्राप्त आय ृ4,716 करोड़ आंकी गई है जोकि कुल कर प्राप्ति का 39.96 प्रतिशत है। वर्ष 2015-16;संशोधितद्ध व वर्ष 2014-15 ;वास्तविकद्ध में यह क्रमशः 38.45 व 42.65 प्रतिशत थी। बजट अनुमानों के अनुसार वर्ष 2016-17 ;बजट अनुमानद्ध में राज्य उत्पादन शुल्क से प्राप्त आय ृ1,274 करोड़ आंकी गई है।
वर्ष 2014-15 व 2015-16 में राजस्व घाटे की प्रतिशतता कुल सकल घरेलू उत्पाद से क्रमशः ;.द्ध 1.87 व ;.द्ध 0.22 प्रतिशत है।

3.संस्थागत और बैंक वित्त

हिमाचल प्रदेश राज्य मेें 12 जिले शामिल हंै। प्रदेश में तीन बैंकों को लीड बैंक की जिम्मेदारी दी गई है जिसमें पंजाब नैशनल बैंक को 6 जिलों हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कल्लू मण्डी तथा ऊना में, यूको बैंक को 4 जिलांे बिलासपुर, शिमला, सोलन तथा सिरमौर में तथा स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया को 2 जिलों चम्बा तथा लाहौल स्पिति का कार्य आवंटित किया गया है। यूको बैंक राज्य स्तर बैंकर्स समिति (एस.एल.बी.सी.) का संयोजक बैंक हैं। सितम्बर, 2016 तक राज्य में कुल 2,061 बैंक शाखाओं का नेटवर्क है और 80 प्रतिशत से अधिक शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रही है। अक्तूबर, 2015 से सितम्बर, 2016 तक 106 नई बैंक शाखाएं खोली गई हंै। वर्तमान में 1,661 शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में, 308 शाखाएं अर्ध शहरी क्षेत्रों में तथा 92 शिमला में स्थित हंै, जिसे आर.बी.आई. द्वारा राज्य में केवल शहरी क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है।
जनगणना, 2011 के अनुसार प्रति शाखा औसत जनसंख्या 3,330 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 11,000 है। सितम्बर, 2016 तक राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पी.एस.बी.) की कुल 1,196 शाखाओं का नेटवर्क है। पंजाब नैशनल बैंक की सबसे ज्यादा 320, एस.बी.आई. और इसके सहयोगियों की 359 और यूको बैंक की 172 शाखाएं हैं। निजी क्षेत्रों के बैंकों का 125 शाखाओं का नेटवर्क हैं
इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आर.आर.बी.) अर्थात हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक (एच.पी.जी.बी.) को पंजाब नेशनल बैंक द्वारा प्रायोजित किया गया है। जिसमें सितम्बर, 2016 तक कुल 244 शाखाओं का शाखा नेटवर्क है। इसके अतिरिक्त सहकारी बैंक का 496 शाखाओं का नेटवर्क तथा राज्य एपैक्स सहकारी बैंक जो कि हिमाचल प्रदेश सहकारी बैंक (एच.पी.एस.सी.बी.) है, का 193 शाखाओं का नेटवर्क है कांगड़ा केन्द्रीय सैन्ट्रल बैंक (के.सी.सी.बी.) की 210 शाखाएं है। जिलेवार बैंक शाखाओं के प्रसार के संदर्भ में कांगड़ा जिले में सबसे अधिक 401 बैंक शाखाएं तथा लाहौल स्पिति में सबसे कम 23 बैंक शाखाएं हैं। विभिन्न बैंकों द्वारा अपनी बैंक सेवाओं को आगे बढ़ते हुए 1,818 ए.टी.एम. स्थापित किए गए हैं। अक्तूबर, 2015 से सितम्बर, 2016 तक बैंकों ने 202 नए ए.टी.एम. स्थापित किए हैं।
राज्य में सभी बैंकों में पी.एन.बी., एस.बी.आई., यूको, एस.बी.ओ.पी., केनरा बैंक सम्पूर्ण नियंत्रण कार्यालय (अर्थात् क्षेत्रीय कार्यालय/ आंचलिक कार्यालय/ सर्किल कार्यालय) है। भारतीय रिर्जव बैंक का क्षेत्रीय कार्यालय, क्षेत्रीय निदेशक की अध्यक्षता में है, तथा नाबार्ड का क्षेत्रीय कार्यालय मुख्य महाप्रबन्धक की अध्यक्षता में है।
हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक सीमित, एक तीन स्तरीय अल्पावधि ऋण ढांचे का शीर्ष बैंक है। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक प्रदेश के छः जिलों में 198 शाखाएं और 21 विस्तार पटलों, जिनमें से अधिकतर प्रदेश के ग्रामीण एवं दुर्गम क्षेत्रों में हैं, के माध्यम से अपनी सेवाएं दे रहा है। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक की समस्त शाखाएं पूर्णतः सी.बी.एस. प्रणाली पर कार्यरत हैं। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक, सहकारी क्षेत्र में नेशनल फाईनेंशियल स्विच से जुड़ने वाला देश का पहला बैंक है जिसके द्वारा बैंक के खाता धारक देश के किसी भी स्थान पर विद्यमान सभी प्रमुख बैंकों के ए.टी.एम. का प्रयोग कर सकते हैं वर्तमान में बैंक ने अपने 71 ए.टी.एम. स्थापित किए हैं। बैंक विस्तार को लेकर शाखाएं खोलने हेतु 27 लाईसेंस भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्त हो चुके हैं। इन प्राप्त लाईसैंसों में से तीन विस्तार पटल पूर्ण शाखाओं में तबदील किये जा चुके हैं एवं एक नई शाखा जलोग, जिला शिमला में खोली जा चुकी है। बाकी सभी शाखाओं को खोलने का कार्य भी प्रगति पर है। बैंक सीधे तौर पर आर.टी.जी.एस. व एन.ई.एफ.टी. के माध्यम से कहीं भी पैसों का हस्तांतरण कर सकते हैं। बैंक ने वित्तीय समावेश हेतु सार्थक पग उठाये हैं और दो ग्रामों में, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के माध्यम से बी.सी. माॅडल अपनाया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के सेवानिवृत कर्मचारियों के लिए पूरे प्रदेश में पैंशन देने के लिए अधिकृत कर दिया गया है। बैंक रूपे (त्नच्ंल) के.सी.सी. कार्ड एवं डैबिट कार्ड जारी कर रहा है तथा अपने बहुमूल्य ग्राहकों को मोबाइल बैंकिंग, एस.एम.एस. अलर्ट एवं एफ.डी.आर. के लिये स्वतः नवीकरण की सुविधा उपलब्ध करवा रहा है। बैंक केन्द्र सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे कि पी.एम.जे.जे.बी.वाई. एवं पी.एम.एस.बी.वाई. में भी पूर्ण रूप से भाग ले रहा है।
राज्य के सामाजिक आर्थिक विकास के पहिये को बढ़ाने के लिए बैंक भागीदार के रूप में ज़िम्मेदारी निभा रहा है। ऋण का प्रवाह सभी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में बढ़ाया गया है। सितम्बर, 2016 तक राज्य के बैंकों ने आर.बी.आई. द्वारा निर्धारित 6 राष्ट्रीय मानकों की तुलना मेें 4 राष्ट्रीय मानकों जिस में प्राथमिक क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, कमजोर वर्ग तथा महिलाओं को अर्जित किया है। र्वतमान में बैंकों द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र जैसे कृषि, एम.एस.एम.ई., शिक्षा ऋण, आवास ऋण, लघु ऋण आदि गतिविधियों को करने के लिए कुल ऋण का 68.30 प्रतिशत ऋण बढ़ाया गया है।
बैंकों द्वारा बढ़ाए गए कुल ऋण में से 21.16 प्रतिशत कृषि अग्रिम राशि का भाग है इसके अतिरिक्त बैंको द्वारा कुल ऋण में कमजोर वर्गो तथा महिलाओं का क्रमशः 15.71 प्रतिशत तथा 6 प्रतिशत अग्रिम राशि का भाग है जो कि राष्ट्रीय मानकों के अनुसार क्रमशः 10 प्रतिशत तथा 5 प्रतिशत थी। सितम्बर, 2016 तक क्रेडिट जमा अनुपात 55.64 प्रतिशत पर स्थिर रहा। राष्ट्रीय मानकों की स्थिति नीचे सारणी 3.1 में दर्शाई गई है।
भारत में समाज के आर्थिक रूप से अपवर्जित भाग को वित्तीय प्रणाली में शामिल करने का प्रयास राज्य में नया नहीं है। वित्तीय समावेश कम आय वर्ग तथा वहन करने योग्य विशाल भाग के लिए सस्ती कीमत पर वित्तीय सेवाओं के वितरण को दर्शाता है। इस उद्देश्य के लिए देश भर में (28 अगस्त, 2014) वित्तीय समावेश व्यापक अभियान के अन्तर्गत् “प्रधान मन्त्री जन-धन योजना” का शुभारंभ अपवर्जित समाज के लिए किया गया है तथा इस अभियान ने दो वर्ष पूरे कर लिए है। वित्तीय समावेश के अन्तर्गत ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में समाज के कमजोर वर्ग, महिलाओं, दोनों छोटे और सीमांत किसानों तथा मजदूरों की तरफ विशेष ध्यान देते हुए व सशक्त करते हुए सस्ती वित्तीय सेवाओं को देश के सभी परिवारों को उपलब्ध करवाने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन है।
प्रधानमन्त्री जन-धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.) : प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के कार्यान्वयन के प्रथम चरण में बैंकों द्वारा राज्य में प्रत्येक घर में कम से कम एक बुनियादी बचत जमा खाते के साथ समस्त परिवारों को सम्मिलित किया गया है। बैंको द्वारा कुल 9,86,817 नए बुनियादी बचत जमा खाते इस योजना की शुरूआत 28.8.2014 से लेकर सितम्बर, 2016 तक खोले गए है। प्रधान मन्त्री जन-धन योजना के अन्र्तगत खोले गए कुल खातों में से 8,44,968 बुनियादी बचत जमा खातेे ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 1,41,849 शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं। इस योजना के अन्र्तगत बैंकों द्वारा 7.28 लाख ग्राहकों को रूपे (त्नच्ंल) डेबिड कार्ड जारी किए गए है। इस प्रकार 83 प्रतिशत से अधिक प्रधानमन्त्री जन धन खातों को समाविष्ट किया गया। कुल 7,71,873 खातों को आधार संख्या से जोड़ा गया तथा सितम्बर, 2016 तक 78 प्रतिशत प्रधानमन्त्री जन धन खातों को समाविष्ट किया गया।
प्रधान मन्त्री जन-धन योजना के अन्तर्गत सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा पहलःप्रधान मन्त्री जन-धन योजना के कार्यान्वयन के द्वितीय चरण के अन्तर्गत भारत सरकार ने गरीबों तथा साधारण व्यक्तियों के लिए सामाजिक सुरक्षा पहल के रूप में तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को शुरू किया है। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की वर्तमान स्थिति निम्नलिखित हैः-
1. सूक्ष्म बीमा योजनाए :
i) पद्ध प्रधान मन्त्री सुरक्षा बीमा योजना (पी.एम.एस.बी.वाई.): इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्श से 70 वर्श के आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को प्रति वर्श ृ12.00 के प्रीमियम से प्रति ग्राहक को एक वर्श के नवीकरणीय पर आकस्मिक मृत्यु सह दिव्यांगता के लिए ृ2.00 लाख (आंशिक स्थायी दिव्यांगता के लिए ृ1.00 लाख) प्रदान कर रहा है तथा हर वर्ष 1 जून से नवीकरणीय होगा। प्रधान मन्त्री सुरक्षा बीमा योजना के अन्तर्गत सितम्बर,2016 तक योजना के शुभारम्भ से (8.05.2015) अभी तक 8,91,208 ग्राहकों को नामांकित किया गया है।
ii) पपद्ध प्रधान मन्त्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पी.एम.जे.जे.बी.वाई) : इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्श से 50 वर्श के आयु के सभी बचत बैंक खाताधारकों को बैंक प्रति वर्श ृ330.00 के प्रीमियम से प्रति ग्राहक को एक वर्श के नवीकरणीय पर किसी भी कारण से हुई मृत्यु पर ृ2.00 लाख प्रदान कर रहा है तथा हर वर्ष 1 जून से नवीकरणीय होगा। प्रधान मन्त्री जीवन ज्योति बीमा सितम्बर, 2016 तक योजना के शुभारम्भ से (08.05.2015) अभी तक 2,76,264 ग्राहकों को नामांकित किया है।
2. सूक्ष्म पेंषन योजना :
i) अटल पेंषन योजना (ए.पी.वाई.) : अटल पेंषन योजना असंगठित क्षेत्र पर केंद्रित है तथा इस योजना के अन्तर्गत ग्राहकों को 60 वर्श की आयु पर न्यूनतम पेंशन ृ1,000, 2,000, 3,000, 4,000 अथवा 5,000 प्रति माह उपलब्ध करवाई जाती है, यदि 18 वर्श से 40 वर्श के दौरान अंशदान विकल्प के आधार पर चुना हो। इस प्रकार इस योजना के अन्तर्गत ग्राहक द्वारा 20 वर्श या इससे अधिक की अवधि में अंशदान किया हो तो निर्धारित न्यूनतम पेंशन की गारंटी सरकार द्वारा दी जायेगी। यदि यह योजना बैंक खाताधारकों द्वारा निर्धारित आयु वर्ग में शुरू की गई हो तो केन्द्रीय सरकार द्वारा कुल अंशदान का 50 प्रतिशत या ृ1,000 प्रति वर्ष जो भी कम ह¨ 5 वर्ष की अवधि के लिए उन ग्राहकों को दिया जाता है जो किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना का सदस्य न हो और न ही आयकर दाता हो।
ii) अटल पेंशन योजना में राज्य सरकार ने भी योगदान देने की घोषणा की है, राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक असंगठित क्षेत्र के कामगार को अगले तीन वर्षांे के लिए ृ1,000 प्रति वर्ष का सह-योगदान अटल पेंशन योजना के अन्तर्गत दिया जाएगा जिन खाताधारकों ने 01.06.2015 से 31.03.2016 की अवधि में इस योजना को लिया हो। अटल पेंशन योजना के अन्र्तगत हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने 1.00 लाख श्रमिकों/ग्राहकों को समाविष्ट करने के लिए ृ10.00 करोड़ के बजट का आवंटन किया है। राज्य सरकार मनरेगा श्रमिकों, मिड डे मील कार्यकर्ताओं, कृषि एवं बागवानी श्रमिकों तथा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अटल पेंशन योजना के अन्तर्गत लाने हेतु ध्यान दे रही है। अटल पेंशन योजना के अन्र्तगत बैंकों द्वारा 30,997 ग्राहकों को नामांकित किया है। इसके अतिरिक्त इस योजना के अन्र्तगत बैंक विŸाीय साक्षरता और जागरूकता अभियान जो एफ.एल.सी.एस. द्वारा आयोजित करके लक्षित समूहों के नामाकंन को गति प्रदान करने के लिए ध्यान केंद्रित कर रहे हंै।
3. प्रधानमन्त्री मुद्रा योजना ;पी.एम.एम.वाईद्ध : प्रधान मन्त्री मुद्रा योजना हिमाचल प्रदेश सहित देश भर में 08.04.2015 से चल रही है। वह सुक्ष्म उद्यम जो मुख्य रूप से विनिर्माण, व्यापार, सेवा और गैर-कृषि क्षेत्र¨ं मे कार्यरत है तथा उनकी आवश्यकता ृ10.00 लाख से कम है को आय सृजन के लिए दिए जाने वाले ऋण को मुद्रा ऋण कहा जाता है। प्रधान मन्त्री मुद्रा योजना में इस श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले सभी अग्रिम जो 08.04.2015 को या इसके बाद इस योजना के अधीन आए हो, को मुद्रा ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। बैंकों द्वारा हिमाचल प्रदेश में सितम्बर, 2016 तक चालू वित्त वर्ष 2016-17 में इस योजना के अन्तर्गत 28,553 नए सूक्ष्म उद्यमियों को ृ419.92 करोड़ का नए ऋण स्वीकृत किया गया। वित्त वर्ष 2015-16 में बैंकों द्वारा 70,054 सूक्ष्म उद्यमियों को ृ940.60 करोड़ की राशि वितरित की गई है।
4. स्टैण्ड अप भारत योजना ;एस.यू.आई.एस.द्ध : स्टैण्ड अप भारत योजना को देश भर में औपचारिक रूप से 5 अप्रैल 2016 से शुरू किया गया। स्टैण्ड अप योजना के अधीन समाज में अनुसूचित जाति, अनुसूचति जनजाति और महिला प्रतिनिधित्वों द्वारा असेवित तथा कमसेवित क्षेत्र¨ं मे उद्यमशीलता की संस्कृति को प्रोत्साहित करना है। इस योजना के अन्तर्गत कम से कम एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति उधारकर्ता या कम से कम एक महिला उधारकर्ता को ृ10.00 लाख और ृ1.00 करोड़ का ऋण नए उद्यम को स्थापित करने के लिए बैंकों द्वारा सुविधा दी जाती है। (इसे ग्रीन फील्ड उद्यम भी कहा जाता है) अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति/ महिला उद्यमी द्वारा विनिर्माण, व्यापार और सेवा क्षेत्र में एक नए उद्यम सेवा क्षेत्र की स्थापना के लिए ऋणों को और बढ़ाया जाएगा। सितम्बर, 2016 तक इस योजना के अन्र्तगत बैंकों द्वारा 299 नए उद्यमों को स्थापित करने के लिए ृ46.41 करोड़ की राशि 299 स्वीकृत की गई है।
5. वित्तीय जागरूकता और साक्षरता अभियान :राज्य में प्रत्येक जिला मुख्यालय में संबन्धित अग्रणी बैंक तथा सहकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा गठित कमेटी द्वारा निरंतर आधार पर वित्तीय साक्षरता अभियान चलाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में 2000 से नीचे की आबादी के साथ सभी बैंक रहित गांवो में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार।
सितम्बर, 2016 तक आर.बी.आई. रोडमैप के अन्तर्गत ब्रिक और मोर्टार शाखा तथा व्यवसाय प्रतिनिधि (जिन्हें बैंक मित्र कहा जाता है) कुल 18,948 गांवो में समाविष्ट किया गया है। बैंकों का लक्ष्य सभी 20,060 गांवों जिनकी जनसंख्या 2,000 से कम है, को समाविष्ट करना है, तथा चालू वित्त वर्ष 2016-17 में शेष बचे गांवों को भी समाविष्ट कर लिया जाएगा। इसके अतिरिक्त सभी गांवों जिनकी जनसंख्या 5,000 से अधिक है प्रत्येक गांव को ब्रिक एंव मोर्टार शाखा में समाविष्ट करना है तथा चालू वित्त वर्ष 2016-17 में बैंक रोडमैप के अन्तर्गत सभी 5,000 से अधिक जनसंख्या वाले गांवों को समाविष्ट कर लिया जाएगा।
राज्य के सभी बैंको द्वारा सितम्बर, 2015 से सितम्बर, 2016 तक ृ80,529.97 करोड़ से ृ93,726.96 करोड़ की वृद्वि दर्ज की गई जिस मे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का 68 प्रतिशत, आर.आर.बी. का 4 प्रतिशत, सहकारी बैंकों का 21 प्रतिशत, तथा निजी क्षेत्र के बैंकों का 7 प्रतिशत य¨गदान रहा बैंकों द्वारा जमा राशि में वर्ष दर वर्ष 16.39 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। कुल अग्रिमों में सितम्बर, 2015 से सितम्बर, 2016 तक ृ31,159.78 करोड़ से ृ34,961.91करोड़ की वृद्वि दर्ज की गई। इस प्रकार सितम्बर, 2016 तक वर्ष दर वर्ष वृद्धि 12.20 प्रतिशत रही। सितम्बर, 2016 तक राज्य में कुल बैंकों का कारोबार ृ1,28,688.87 करोड़ पार कर गया तथा वर्ष दर वर्ष वृद्धि 15.22 प्रतिशत रही। राज्य में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने अपनी हिस्सेदारी से 68 प्रतिशत की भागीदारी से बाजार व्यापार पर अधिकार किया। तुलनात्मक आंकड़े नीचे सारणी 3.2 में दर्शाए गए है।
विŸाीय वर्ष 2016-17 के लिए बैंको ने नाबार्ड की सहायता से, क्षमता के आधार पर विभिन्न प्राथमिकता क्षेत्र की गतिविधियों के लिए वार्षिक जमा योजना तैयार कर नए ऋण अदा किए गए हैं। वार्षिक जमा योजना 2015-16 के अधीन पिछली योजना के विŸाीय परिव्यय में 21 प्रतिशत की वृद्वि हुई तथा ृ 18,213.01 करोड़ परिव्यय तय किया गया। सितम्बर, 2016 तक बैंको ने वार्षिक जमा योजना के अन्तर्गत ृ 7,858.34 करोड़ के नए क्रेडिट वितरित किए तथा 43 प्रतिशत की वार्षिक प्रतिबद्धता हासिल की। क्षेत्रवार लक्ष्य तथा उपलब्धि 30.09.2016 तक सारणी 3.3 में दर्शाई गई है।
क) प्रधानमंत्री रोजगार जनन कार्यक्रम (पी.एम.ई.जी.पी.) : इस योजना के अन्तर्गत राज्य में के.वी.आई.सी./के.बी.आई.बी.तथा डी.आई.सी. द्वारा प्रायोजित 563 परियोजनाएं, 985 इकाइयों की वार्षिक लक्ष्य की तुलना में सितम्बर, 2016 तक बैंको द्वारा मंजूर की गई।
ख) राश्ट्रीय षहरी आजीविका मिषन कार्यक्रम (एन.यू.एल.एम.) : शहरी क्षेत्रों में रहने वाले कम आय वर्ग के लिए स्व-रोजगार वेंचर्स, कौशल विकास, और आवास के लिए राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के अन्र्तगत ऋण दिए गए। इस योजना में शहरी गरीबों को सम्मिलित किया गया। बैंको को चालू वर्श में एस.ई.पी. (ैम्च्) राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के अन्तर्गत ृ10.00 करोड़ के वार्षिक लक्ष्य से 2,400 लाभार्थियों को सम्मिलित किया गया। सितम्बर,2016 को समाप्त छमाही में बैंकों ने ृ124.24 लाख की राशि 106 लाभार्थियों के लिए ऋण में विस्तार किया है।
ग) राश्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिषन (एन.आर.एल.एम.) : चालू वर्ष में सितम्बर, 2016 तक 928 स्वंय सहायता समूहों को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्र्तगत ृ12.11 करोड़ की सहायता प्रदान की गई।
घ) डेयरी उद्यमी विकास योजना (डी.ई.डी.एस.) : नाबार्ड ने केन्द्रीय प्रायोजित सरकारी योजनाओं जिनको भारत सरकार पूंजी अनुदान में देती है, के अन्तर्गत डेयरी उद्यमी विकास योजना को शुरू किया है। सितम्बर, 2016 को समाप्त छमाही में इस योजना के अन्र्तगत् 148 नए उद्यमियों को बैंकोें द्वारा ृ250.36 लाख वितरित किए गए।
बैंक किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड (ज्ञब्ब्े) के माध्यम से परेशानी मुक्त तरीके से उनको उत्पादन हेतु ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समय पर अभिनव ऋण वितरण के माध्यम से किसानों को अल्पविधि ऋण प्रदान किए जा रहेे है। अब तक बैंकोें ने जरूरतमंद किसानों को 7.14 लाख (के.सी.सी.)किसान क्रेडिट कार्ड का जारी किए है।
ड़) ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान(आर.एस.ई.टी.आई.एस.) राज्य के 10 जिलों में अग्रणी बैंक जिनमें यूको बैंक व स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया ने ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों (आर.एस.ई.टी.आई.) का गठन किया है। ग्रामीण युवाओं को सशक्त बनाने में यह संस्थागत व्यवस्था एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर.एस.ई.टी.आई.) प्रधानमंत्री रोजगार जनन (पी.एम.ई.जी.पी.) योजना के अन्तर्गत बी.पी.एल./ ए.पी.एल. परिवारों और दीर्घ छोटे उद्यमियों के लिए विभिन्न सरकारी प्रायोजित कार्यक्रम¨ं के अन्र्तगत उद्यमिता विकास कार्यक्रम¨ का आयोजन किया जाता है। सितम्बर,2016 तक बैंकों द्वारा अब तक कुल 30,264 ग्रामीण युवाओं को ऋण संबधता के साथ-साथ स्वयं निरन्तर विकास के लिए लाभकारी उपक्रमों को अपनाने हेतु प्रशिक्षत किया हैै।
राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक ;नाबार्डद्ध ने पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण संरचना विकास, लघु ऋण, ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र, लघु सिंचाई तथा अन्य कृषि क्षेत्रों के लिए अतिरिक्त ऋण वितरण व्यवस्था में सुदृढ़ीकरण व विस्तृतीकरण करके एकीकृत ग्रामीण विकास एवं विकास प्रक्रिया मंे निरन्तर सहयोग दिया है। नाबार्ड के सक्रिय सहयोग के कारण राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को बहुत से सामाजिक व आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहे हैं। नाबार्ड अपनी योजनाओं के अतिरिक्त भारत सरकार को केंद्रीय प्रायोजित ऋण युक्त अनुदान, योजनाएं जैसे डेरी उद्यमिता विकास योजना ;डी.ई.डी.एस.द्धएजैविक खेती, कृषि विपणन बुनियादी ढांचे (ए.एम.आई.), सौर योजनाएं, राष्ट्रीय परियोजना के अन्र्तगत् जैविक खेती के लिए आदानों पर अनुदान राष्ट्रीय पशुधन मिशन, वाणिज्यिक उत्पादन इकाइयों के लिए पूंजी निवेश तथा एग्रीक्लिनिक एवं कृषि व्यापार केन्द्र, इत्यादि योजनाओं को भी प्रभावी ढंग से कार्यान्वित कर रहा है।
1)भारत सरकार द्वारा नाबार्ड में वर्ष 1995-96 में ग्रामीण संरचना विकास निधि ;आर.आई.डी.एफ.द्ध की स्थापना की गई थी। इस योजना के अन्तर्गत राज्य सरकारोें तथा राज्य के स्वामित्व वाले निगमोें को, चल रही योजनाओं को पूर्ण करने तथा कुछ चुने हुए क्षेत्रों में नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए रियायती ऋण दिए जाते हैं। किसी स्थान से सम्बन्धित विशेष संरचना ढांचे के विकास, जिसका सीधा असर समाज व ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था पर हो, के लिए इस योजना का विस्तार पंचायती राज संस्थाओं, स्वंय सहायता समूहों तथा गैर सरकारी संगठनों तक भी कर दिया गया है।
2) ग्रामीण आधार संरचना विकास (आर.आई.डी.एफ.) निधि के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों बुनियादी ढांचे का विकास किया जाता है, 1995-96 में इसकी शुरुआत से ही, यह राज्य सरकारों की साझेदारी में नाबार्ड के एक प्रमुख सहयोगी के रूप में उभरा है। इस हेतु केन्द्रीय बजट में वार्षिक आवंटन हर वर्ष जारी रखा गया है। इस व्यवस्था के अन्र्तगत नाबार्ड द्वारा राज्य सरकारों तथा राज्य के अधीन आने वाले निगमों को चालू परियोजनाओं को पूरा करने व कुछ चिन्हित नई परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए ऋण दिया जाता है। प्रारम्भ में आर.आई.डी.एफ. निधि का उपयोग राज्य सरकार की सिंचाई क्षेत्र की अधूरी पड़ी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए किया जाता रहा है परन्तु समय के साथ-साथ इस निधि के उपयोग से विŸाीय सहायता का क्षेत्र विस्तृत करके 3़6 कार्यकलापों जिनमें कृषि तथा संबंधित क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र तथा ग्रामीण सम्पर्क सम्बन्धित आधारभूत कार्यकलापों में विभक्त कर दिया है।
3) इस निधि के अन्तर्गत वर्ष 1995-96 में आर.आई.डी.एफ-प् में ृ15.00 करोड़ का बजट प्रावधान था जो अब बढ़कर आर.आई.डी.एफ-ग्ग्प्प् में (वर्ष 2016-17) में ृ469.00 करोड़ हो गया है। आर.आई.डी.एफ. ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे सिंचाई, सड़कें तथा पुल निर्माण, बाढ़ नियन्त्रण, पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, पशुधन सेवाएं, जलागम विकास तथा सूचना प्रौद्योगिकी इत्यादि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही के वर्षो में पाॅली हाउस व सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली आदि नवीन परियोजनाओं के विकास के लिए भी सहायता प्रदान की है जो व्यवसायिक आधार, पर कृषि व्यवसाय और खेती के विकास के लिए नवीन दिशा है।
4) आर.आई.डी.एफ. निधि के अन्र्तगत राज्य को 31 दिसम्बर, 2016 तक 5,399 परियोजनाओं को लागू करने के लिए ृ6,218.39 करोड़ की स्वीकृति दी जा चुकी है जिन में से मुख्यतः ग्रामीण सड़कें, पुल, सिंचाई, पेयजल, शिक्षा, पशु पालन आदि की परियोजनाएं भी शामिल हैं जिन्हें स्वीकृति दी है। चालू विŸा वर्ष के अन्तर्गत 31 दिसम्बर, 2016 तक आर.आई.डी.एफ-ग्ग्प्प् के अन्तर्गत ृ 469.00 करोड़ की स्वीकृति दी जा चुकी है तथा राज्य सरकार को ृ 397.39 करोड़ वितरित किए गए़ तथा अब तक कुल मिलाकर ृ4,294.66 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है।
5) स्वीकृत की गई इन परियोजनाओं के पूर्ण होने के बाद 40.32 लाख से अधिक लोगों को पीने का पानी उपलब्ध करवाया जाएगा, 7,594 किलोमीटर मोटर योग्य सड़कें, 1,849 मीटर स्पैन पुलों के निर्माण तथा 1,20,938 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा प्राप्त होगी।
6) इसके अतिरिक्त 27,317 हैक्टेयर भूमि का बचाव, बाढ़ नियन्त्रण परियोजनाओं से होगा, 6,219 हैक्टेयर भूमि जलागम विकास योजनाओं से लाभान्वित होगी। कृषि खेती हेतु 231 हैक्टेयर भूमि को सू़क्ष्म सिंचाई पद्धति के साथ पाॅली हाउस के अन्र्तगत लाया जाएगा। इसके अतिरिक्त प्राथमिक स्कूलों के लिए 2,921 कमरे, वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों के लिए 64 विज्ञान प्रयोगशालाएं, 25 सूचना तकनीक केन्द्र तथा 397 पशु चिकित्सालयों एवं कृत्रिम गर्भाकरण केन्द्रों का निर्माण पहले ही किया जा चुका है।
1) नाबार्ड अधोसंरचना विकास सहायता (नीडा) : वर्ष 2011-12 से नाबार्ड ने राज्य सरकार के संस्थाओं/निगमों के लिए ऋण की एक अलग व्यवस्था की है यह व्यवस्था बजट के माध्यम से तथा इसके बिना भी हो सकती है परन्तु इन संस्थानों का आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना अनिवार्य होगा। ऋण की यह व्यवस्था आर.आई.डी.एफ. ऋण की व्यवस्था से बाहर है। इस निधि के आने से गैर परम्परागत क्षेत्रों में ग्रामीण अधोसंरचना तैयार करने हेतु संभावनाएं खुली हैं। ग्रामीण बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के दायरे को बढ़ाने के लिए नीडा के तहत सार्वजनिक व निजी साझेदारी से भी वित्तपोषण किया जाता है। इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं जिनसे बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्र्रों को लाभ मिलता है और आर.आई.डी.एफ. और रूरबन मिशन के तहत भारत सरकार/भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदित गतिविधियां भी जनमत के सहयोग से पी.पी.पी. के तहत वित्तपोषण के लिए पात्र हैं।
2) खाद्य प्रसंस्करण निधि(एफपीएफ) : नाबार्ड ने वर्ष 2014-15 में ृ2,000 करोड़ का खाद्य प्रसंस्करण निधि स्थापित किया है जिसके तहत क्लस्टर आधार पर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र्र के विकास के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने के उद्देश्य से नामित फूड पार्क की स्थापना और नामित फूड पार्को में खाद्य/कृषि प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए विŸाीय सहायता प्रदान की जाएगी ताकि देश में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र्रों में कृषि उपज की बर्बादी को कम किया जा सके और रोजगार के अधिक अवसर सृजित किये जा सकें। क्रिमिका मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड, सिंधा, ऊना में ृ 32.94 करोड़ की विŸाीय सहायता से इस कोष के अधीन स्थापित किया जा रहा है।
ग्रामीण आवास, लघु सड़क परिवहन चालकों, भूमि विकास, लघु सिंचाई, डेयरी विकास, स्वयं सहायता समूह, कृषि यंत्रीकरण, मुर्गी पालन, वृक्षारोपण, एंव बागवानी, भेड़/बकरी/सुअर पालन, पैकिंग एवं अन्य क्षेत्रों में ग्रेडिंग इत्यादि विभिन्न कार्यों के लिए पुर्नवित सहायता स्वरूप नाबार्ड द्वारा बैंकों को ृ568.89 करोड़ की विŸाीय सहायता वर्ष 2015-16 के दौरान और ृ624.35 करोड़ की विŸाीय सहायता वर्ष 2016-17 के दौरान 31 दिसम्बर, 2016 तक दी गई। इस के अतिरिक्त नाबार्ड ने सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय गा्रमीण बैंकों के संसाधनों को सप्लीमेंट करने के लिए 2014-15 में एक नया फंड “दीर्घावधि ग्रामीण ऋण फंड“ शुरु किया है इस योजना के अधीन वर्ष 2015-16 में ृ233.26 करोड़़ तथा वर्ष 2016-17 में 31 दिसम्बर,2016 तक ृ222.60 करोड़ वितरित किए गए हैं। नाबार्ड ने सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय गा्रमीण बैंकों द्वारा फसल ऋण वितरण में अधिक योगदान करने के लिए ृ520.00 करोड़़ की ऋण सीमा एस.टी. (एस.ए.ओ.) के अन्तर्गत स्वीकृत की थी। इन बैंकों द्वारा ृ520.00 करोड़़ का पुर्नवित्त नाबार्ड से लिया गया है। वर्ष 2016-17 के दौरान ृ 520.00 करोड़़ की ऋण सीमा मंजूर की गई है और इसके अन्तर्गत 31.12.2016 तक कुल ृ464.73 करोड़़ का संवितरण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2016-17 में सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए अतिरिक्त लघु अवधि की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए नाबार्ड द्वारा एक नवीन उत्पाद अल्पावधि (मौसमी कृषि कार्य) को प्रस्तुत किया गया है। इस कोष के अन्तर्गत नाबार्ड द्वारा 31 दिसम्बर, 2016 तक एच.पी.एस.सी.बी. के लिए ृ75.00 करोड़ के विरूद्ध ृ 210.00 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है।
स्वंय सहायता समूह ;एस.एच.जी.द्ध कार्यक्रम अब सारे प्रदेश में एक सशक्त आधार के साथ फैल गया है। इस कार्यक्रम को उच्च शिखर पर पहुंचाने मंे मानव संसाधनों और वित्तीय उत्पादों का विशेष योगदान रहा है। हिमाचल प्रदेश में 31 दिसम्बर, 2016 तक 44,185 क्रेडिट लिंक्ड स्वयं सहायता समूहों के लगभग 6.5 लाख ग्रामीण परिवारों का कुल 13.12 लाख ग्रामीण परिवारों में से ृ111.66 करोड़ का ऋण बकाया है। इसके अतिरिक्त स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से नाबार्ड द्वारा महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम¨ं को दो जिलों जिनमें मण्डी व सिरमौर में क्रमशः 1,500 व 1,455 महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को ृ29.55 करोड़, क्रेडिट लिंकेज के लक्ष्य के लिए अनुदान सहायता दी गई है। 30.09.2016 तक कुल 2,752 महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को बचत तथा 2,326 महिलाओं के स्वंय सहायता समूहों को क्रेडिट लिंक के साथ जोड़ा गया।
केन्द्रीय बजट 2014-15 में संयुक्त कृषि समूहों के वित्त पोषण के लिए नाबार्ड द्वारा किए गए वित्तपोषण के प्रयासों से संयुक्त देयता समूह साधन से भूमिहीन किसानों तक वित्तीय सहायता पहंुचाने के लिए घोषणा की गई है। 31 मार्च, 2016 तक राज्य में बैंकों द्वारा ृ1,112.85 लाख का ऋण लगभग 2,835 संयुक्त देयता समूहों को प्रदान किया गया है। नाबार्ड द्वारा 50 ”स्वयं सहायता प्रचार संस्थाओं/ संयुक्त देयता प्रचार संस्थाओं की सांझेदारी से स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम तथा ”संयुक्त देयता समूह“ योजना का प्रचार किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त नाबार्ड द्वारा स्वंय सहायता समूहों के सदस्यों के लिए जिन्होंने बैंको से एक बार से अधिक ऋण सुविधा का लाभ उठाया है, को लघु अवधि कौशल विकास प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करवा रहा है। वर्ष 2016-17(31.12.2016) तक 15 माइक्र¨ उद्यमियता विकास कार्यक्रम (एम.ई.डी.पी.) व्यक्तिगत रूप से या समूह के माध्यम से आजिविका गतिविधि शुरू करने के लिए 440 स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को प्रशिक्षण देने की मंजूरी दी गई है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2016-17 में 240 स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के प्रशिक्षण और उद्यमियों के विकास के लिए दो आजिविका उद्यम विकास कार्यक्रम¨ं (एल.ई.डी.पी.) को मंजूरी दी गई है।
31 दिसम्बर, 2016 तक राज्य में 3,083 कृषक संघ बनाए गए हैं जिनके अन्र्तगत् 5,921 गांवों में 37,545 कृषकों को लाभ पहुंचाया गया है। जिला सिरमौर तथा बिलासपुर जिले में कृषक संघों का गठन किया गया है, जो कृषकों के कल्याण हेतु कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए क्षमता निर्माण के लिए योजना के अन्र्तगत (राज्य के भीतर/बाहर) कृषकों क¨ नए तरीके अपनानें जैसे वर्मी-कल्चर, जैव, खाद, जैविक खेती, पाॅली हाउस तकनीक, औषधीय तथा सुगंधित पौधों की खेती, के लिए प्रशिक्षण एंव प्रदर्शन कार्यान्वित किए गए हैं। इन भ्रमणों को चयनित अनुसंधान संस्थानों, कृषि विज्ञान केन्द्रों तथा बागवानी विश्वविद्यालय के सहयोग से व्यवस्थित किया है। समस्त 78 प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए क्षमता निर्माण योजना के अन्तर्गत 1,561 कृषकोें, 11 जिलों के 60 गांवोें को ग्राम विकास कार्यक्रम (वी.डी.पी.) में समाविष्ट उपरान्त लगभग 2,000 परिवारों को लाभान्वित करने का लक्ष्य है।
जलागम विकास निगम : इसके अतिरिक्त जलागम विकास निधि के अन्र्तगत चल रही सात परियोजनाओं मे एक अन्य बरयाली फगवाना सी.बी.पी. योजना सी.एस.आर. मोड के अन्तर्गत वर्ष 2015-16 में सोलन जिला में अंबुजा फाउंडेशन सीमेंट के साथ 50ः50 साझेदारी के आधार पर ृ14.95 लाख की अनुदान सहायता से शुरू की गई है, अभी तक इन परियोजनाओं के लिए स्वीकृति की गई राशि ृ657.47 लाख में से ृ383.47 लाख वितरित किए गए हैं। वर्ष 2015-16 के दौरान ृ142.84 लाख की राशि जारी की गई थी। सभी परियोजनाओं में 118 गांवों मंे लगभग 12,389 हैक्टेयर भूमि और 6,292 परिवारों को सम्मिलित किया गया है। इन परियोजनाओं से न केवल पानी की उपलब्धता बढ़ेगी बल्कि इन से प्राकृतिक संरक्षण, खेती की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने, किसानों की आय में वृद्धि करने के साथ-साथ चरागाहों के घटते आकार को रोकने और इसे बढ़ाने में मदद मिलेगी जिससे राज्य में पशुधन से सम्बन्धित कार्यकलापों को भी लाभ पहुंचेगा।
जनजातीय विकास निधि के माध्यम से जनजातीय लोगों का विकास : नाबार्ड, क्षेत्रीय कार्यालय, शिमला ने जनजातीय विकास निधि के अन्र्तगत तीन परियोजनाओं में एक अन्य परियोजना में कुल वित्तीय सहायता ृ728.57 लाख जिसमें अनुदान सहायता ृ672.57 तथा ऋण सहायता 56.30 लाख हैं, से 1,432 परिवारों को समाविष्ट किया गया है। वित्त वर्ष 2015-16 में जिला लाहौल-स्पिति के उदयपुर खण्ड में ृ157.46 लाख की अनुदान सहायता तथा ृ15.80 लाख का ऋण दिया गया। इन गांवों में छोटे उद्यानों और डेयरी इकाइयों की स्थापना करना है। इनके अन्र्तगत 910 एकड़ भूमि मेें आम, किन्नू, नींबूू, सेब, अखरोट, नाशपाती और जंगली खुबानी के पौधे लगाए गए हैं। इन परियोजनाओं के अन्तर्गत छोटे उद्यानों और डेयरी के माध्यम से जनजातीय को अपनी आय का स्तर बढ़ाने का अवसर मिलने की उम्मीद है।
कृषि क्षेत्र प्रोत्साहन कोष के माध्यम से सहायताः (एफ.एस.पी.एफ.) : इस योजना के अन्र्तगत अब तक 23 परियोजनाओं और 13 सैमिनारों/ कार्यशालाओं/मेलों / सेब प्रर्दशनियों के लिए ृ281.34 लाख की अनुदान राशि उपलब्ध करवाई गई। 31.12.2016 तक ृ205.54 लाख की अनुदान सहायता जारी की गई है। इन परियोजनाओं के अन्तर्गत सभी दूर-दराज क्षेत्रों में धान गहनता प्रणाली, गेहंू गहनता प्रणाली, दुग्ध प्रसंस्करण, स्वदेशी शहद मधुमक्खी पालन (एपिस सेरनी) को प्रोत्साहन, चिल्गोज़ा देवदार, चीड़ के संरक्षण औषधीय सुगंधित फूलों की खेती तथा मसाला फसलों के संरक्षण की व्यवसायिक खेती को बढ़ावा देना सम्मिलत है। इन परियोजनाओं और सैमिनारों/कार्यशालाओं/ मेलों से लगभग 30,000 कृषक लाभान्वित हुए हैं।
किसान उत्पादक संगठनों को प्रोत्साहन (एफ.पी.ओ.) : कृषि मंत्रालय, भारत सरकार ने देश में 2,000 किसान उत्पादक संगठनों के गठन के लिए ृ200.00 करोड़ का बजट आवंटित किया है। नाबार्ड ने हिमाचल प्रदेश के शिमला, मंडी, किन्नौर, सिरमौर, चम्बा, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, लाहौल एवं स्पिति कुल्लू जिलों में 57 किसान उत्पाद संगठन¨ं के गठन/प्रोत्साहन के लिए 19 गैर सरकारी संगठनों को ृ 525.48 लाख का अनुदान मंजूर किया है ये किसान उत्पाद संगठन सामूहिक आधार पर सब्जियों, औषधीय और सुगंधित पौधों और फूलों के उत्पादन, प्राथमिक प्रसंस्करण और विपणन का कार्य करेंगे। दिसम्बर, 2016 तक ृ126.05 लाख की राशि आवंटित की गई है।
प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन पर अंब्रेला कार्यक्रम (यू.पी.एन.आर.एम.) : नाबार्ड के.एफ.डब्ल्यू. और जी.टी.जेैड. की सहायता से भारत-जर्मन सहयोग के अन्र्तगत पिछले 16 वर्षों से वाटरशैड और छोटे उद्यान परियोजनाओं का क्रियान्वयन कर रहा है। प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन के क्षेत्र्र में द्विपक्षीय सहयोग का पुनर्गठन करने के लिए भारत और जर्मनी-भारत सरकार ने यू.पी.एन.आर.एम. शुरू किया है। कार्यक्रम के तहत नाबार्ड और जर्मन विकास सहयोग को दो रणनीतिक साझीदार के रूप में चिन्हित किया गया है। कार्यक्रम का उद्देश्य प्राकृतिक आजीविका सृजन, कृषि आय में वृद्धि, कृषि मूल्य श्रृंखला के सशक्तीकरण, संसाधनों के संरक्षण द्वारा गरीबी को कम करना है। समाज के सभी वर्गों के लिए पर्यावरण के अनुकूल आर्थिक विकास करने के लिए यू.पी.एन.आर.एम. के अन्र्तगत इस प्रकार की परियोजनाओं को सहायता प्रदान की जाती है जो प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और ग्रामीण गरीबों की आजीविका में सुधार में सांमजस्य स्थापित करती हंै। यू.पी.एन.आर.एम.परियोजनाओं के अन्र्तगत नाबार्ड क्षेत्रीय कार्यालय हि.प्र. द्वारा राज्य में वर्ष 2016-17 तक (31.12.2016) ृ 67.26 लाख की विŸाीय सहायता स्वीकृित की गई है।
नाबार्ड ने ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र क¨ एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया है। यह राज्य में ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र के विकास के लिए वाणिज्यिक बैंकों/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों को पुर्नवित्त सहायता भी प्रदान करता है। नाबार्ड ग्रामीण दस्तकारों और अन्य छोटे उद्यमियों के लाभ के लिए स्वरोज़गार क्रेडिट कार्ड योजना(एस.सी.सी.) के लिए पुर्नवित्त भी प्रदान करता है। स्वरोज़गार क्रेडिट कार्ड (एस.सी.सी.) योजना के तहत कार्यशील पूंजी या खण्ड पूंजी या दोनों के लिए समय पर और पर्याप्त मात्रा में ऋण दिया जाता हैे। ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र में उत्पादों के विपणन और उत्पादन के लिए पुर्नवित्त उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त नाबार्ड युवाओं के लिए कौशल एवं उद्यमिता विकास कार्यक्रम के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है तथा साथ ही मास्टर शिल्पकार के प्रशिक्षण तथा रूडसेटी, जैसी संस्थाएं ग्रामीण युवकों को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण देती हैं ताकि उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार रोजगार मिल सके और वे आय-सृजक गतिविधियां शुरू कर सकें। कौशल विकास के अन्तर्गत समूह या व्यक्तिगत रूप से रोज़गार या आजीविका के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के मौजूदा कौशल का विकास करना/ उन्नत करना या विविधिकृत करना शामिल है। मार्च, 2016 तक राज्य में 233 कौशल विकास कार्यक्रम स्वीकृत किए है जिनके लिए ृ120.18 लाख की अनुदान सहायता दी जाएगी और इससे लगभग 4,832 लोग लाभान्वित होंगे। वर्ष 2016-17 में (31.12.2016 तक) तीन आर.एस.ई.टी.आई.एस. शिमला, ऊना और कागड़ा में ृ7.43 लाख की प्रतिपूर्ति अनुदान सहायता विभिन्न विषयों के 22 प्रशिक्षण कार्यक्रम¨ंें को स्वीकृति दी गई है।
1) वर्ष 2015-16 में प्राथमिक क्षेत्रों के लिए आधार स्तरीय ऋण प्रवाह ृ10,496.36 करोड़ तक पहुंच गया जोकि वर्ष 2014-15 से 11.21 प्रतिशत अधिक है। नाबार्ड की संभावित ऋण योजना के आधार पर विभिन्न बैंकों के लिए ृ15,922.31 करोड़ का लक्ष्य 2016-17 के लिए निर्धारित किया गया है। 30 सितम्बर, 2016 तक ृ6,012.44 करोड़ का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया था।
2) नाबार्ड राज्य के सभी जिलों के लिए हर वर्ष संभाव्यता युक्त ऋण योजना (पी.एल.पी) तैयार करता है जिसमें आधार स्तरीय सम्भाव्यताओं और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु आवश्यक ऋण एवं गैर-ऋण लिंकेजों का वास्तविक आकलन किया जाता है। विभिन्न हितधारकों अर्थात राज्य सरकार, जिला प्रशासन, बैंकों, एन.जी.ओ., किसानों और अन्य सम्बन्धित एजेंसियों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श कर पी.एल.पी. तैयार की जाती है। हिमाचल प्रदेश के लिए वर्ष 2017-18 हेतु मुख्य क्षेत्रवार पी.एल.पी. अनुमान ृ20,332.53 करोड़ आंकलित किया गया है।
वित्तीय समावेश की मुख्य धारा की वित्तीय संस्थाओं द्वारा निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से सस्ती कीमत पर समाज के सभी वर्गो और विशेष रूप से कमजोर वर्गो और निन्न आय वर्ग को उचित वित्तीय उत्पाद और सेवाएं उपलब्घ करवाने की प्रक्रिया है। देश में वित्तीय समावेश को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने दो कोष अर्थात वित्तीय समावेशन कोष (एफ.आई.एफ.) और वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी कोष(एफ.आई.टी.एफ.) का गठन किया है दोनों कोषों को मिलाकर वित्तीय समावेशन कोष (एफ.आई.एफ.) का गठन किया गया है। वित्तीय समावेशन अभियान को बड़े पैमाने पर संचालित करने के लिए एफ.आई.एफ. और एफ.आई.टी.एफ. के अन्र्तगत नाबार्ड द्वारा हिमाचल प्रदेश में संचालित की गई है।
i) वित्तीय साक्षरता जागरूकता कार्यक्रम : वित्तीय साक्षरता फैलाने हेतु नाबार्ड ने सरकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एवं गैर सरकारी संगठनों की 1,013 वित्तीय साक्षरता जागरूकता कार्यक्रम ृ123.62 लाख की संचयी सहायता मंजूर की गई है।
ii) डिजिटल वित्तीय साक्षरता जागरूकता कार्यक्रम : विमुद्रीकरण के पश्चात भारत सरकार के नकद विहीन अर्थव्यवस्था की ओर जाने हेतु बहुत बल प्रदान किया, जिसके फलस्वरूप नागरिकों को लेन देन के विभिन्न प्रणाली के सम्बन्ध में जागरूक करने की आवश्यकता पड़ी। इस दिशा में, वित्तीय समावेशन निधि परामर्शदात्री बोर्ड ने डिजिटल वित्तीय साक्षरता जागरूकता कार्यक्रम के अन्तर्गत नागरिकों का बिना नकद लेनदेन की विभिन्न प्रणाली एवं इन्टरनेट बैंकिंग एंव कार्ड आदि के प्रयोग पर बल दिया गया। नाबार्ड, ने हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक, हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक, जोगिन्द्रा सैन्ट््रल बैंक एवं कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंकों को कुल 400 कार्यक्रम मंजूर किये जिसमें कुल ृ56.40 लाख की संचयी सहायता दी गई।
iii)संयोगीकरण मुद्दों का समाधान : राज्य के सयोंगीकरण व्यवस्था को सुलझाने हेतु सौर ऊर्जा चालित वी-सैट/ गैर सौर ऊर्जा वी-सैट की व्यवस्था हेतु कैपेक्स एवं ओपेक्स माॅडल अमल में लाया गया। इन व्यवस्थाओं हेतु नाबार्ड ने एस.बी.आई.,पी.एन.बी., युको बैंक एंव एच.पी.जी.बी. को 247 उप-सेवा क्षेत्रों हेतु ृ535.56 लाख मंजूर किये हैं।
iv) संयोगीकरण मुद्दों का समाधान : राज्य के सयोंगीकरण व्यवस्था को सुलझाने हेतु सौर ऊर्जा चालित वी.सैटध् गैर सौर ऊर्जा वी.सैट की व्यवस्था हेतु कैपेक्स एवं ओपेक्स माॅडल अमल में लाया गया। इन व्यवस्थाओं हेतु नाबार्ड ने एसण्बीण्आईण्एपीण्एनण्बीण्ए युको बैंक एंव एचण्पीण्जीण्बीण् को 247 उप.सेवा क्षेत्रों हेतु
v) सहकारी बैंकों के लिए सी.बी.एस. : वही-खाता मुक्त बैंकिंग प्रणाली हेतु कांगड़ा सी.सी.बी., हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक एंव जोगिन्द्रा केंद्रीय सहकारी बैंक को क्रमशः ृ4.08 करोड़, ृ3.90 करोड़, ृ0.60 करोड़ की वित्तीय सहायता प्रदान की गई है।
vi) गैर नकद लेन-देन को बढ़ावा :
1) एफ.आई.एफ. परामर्शदात्री बोर्ड की संस्तुति के आधार पर नाबार्ड ने भारत के 1 लाख गांवों में 02 पाॅइंट आॅफ सेल मशीन तैनात करने का लक्ष्य लिया है, जो उन बैंकों के लिए लागू होगा, जिन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक से इसके हेतु मर्चन्ट अधिग्रहण स्तर की अनुमति प्राप्त की है।
2) आर्सेटी/रूडसेती के अनुसरण एवं प्रशिक्षण सामग्री खरीदने हेतु नाबार्ड ने एकमुश्त पूंजी व्यय के रूप में ृ3.00 लाख की सहायता प्रदान की है।
3) हिमाचल प्रदेश के 1.24 लाख किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को रूपे किसान कार्ड प्रणाली में शामिल करना नाबार्ड सुनिश्चित करेगा ताकि गैर नकद वित्तीय अर्थ-व्यवस्था में किसान भी शामिल हो सकें।
4) एफ.आई.एफ.का उद्देश्य विशेष रूप से कमजोर वर्गों, कम आय वाले समूहों तथा पिछड़े क्षेत्रों बैंक रहित क्षेत्रों में अधिक से अधिक वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए “विकास और प्रचार गतिविधियांे” के लिए सहायता प्रदान करना है। नाबार्ड विकास और प्रचार-प्रसार सम्मेलनों के लिए एफ.आई.एफ. का प्रबन्धन कर रहा है। राज्य के बैंकिंग संरचना को मजबूत बनाने एंव वित्तीय साक्षरता वृद्धि करने हेतु वर्ष 2016-17 के दौरान नाबार्ड द्वारा विभिन्न बैंकों एवं गैर सरकारी संगठनों को ृ1287.13 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान की गयी, जिनका विस्तृत ब्यौरा निम्न प्रकार हैः-
उत्पादक संगठनों को वित्तीय सहायता (पी.ओ.डी.एफ.) : उत्पादक संगठनों को सहयोग देने और वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाने के लिए नाबार्ड ने उत्पादक संगठन विकास कोष (पी.ओ.डी.एफ.) की स्थापना की है इस कोष की स्थापना का उद्देश्य उत्पादकों को समय पर ऋण (ऋण और सीमित अनुदान का मिश्रण) उपलब्ध करवाने, उत्पादकों का क्षमता निर्माण करने और उत्पादक संगठनों का सशक्तिकरण कर उत्पादकों (किसानों, कारीगरों, हथकर्घा बुनकर आदि) की जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्पादकों द्वारा स्थापित पंजीकृत उत्पादक संगठनों अर्थात् उत्पादक कंपनी, उत्पादक सहकारी संस्थाओं, पंजीकृत किसान महासंघों, परस्पर सहायता प्राप्त सहकारी समितियों, औद्योगिक सहकारी समितियांे, अन्य पंजीकृत महासंघों पैक्स, आदि को सहयोग और सहायता देना है।
पैक्स को बहुउद्देषीय गतिविधियां करने के लिए वित्तीय सहायता : पैक्स को अपने सदस्यों को और अधिक सेवाएं प्रदान करने के लिए सक्षम बनाने हेतु और अपने लिए आय उत्पन्न करने लिए पैक्स को बहु-उद्देशीय सेवा केन्द्र के रूप में विकसित करने के लिए एक पहल की गई है ताकि पैक्स अपने सदस्यों को सहायक सेवाएं प्रदान करने और अतिरिक्त व्यापार करने और अपनी गतिविधियों में विविधता लाने में सक्षम हो सके। वर्ष 2016-17 में 31.12.2016 तक नाबार्ड द्वारा ृ385.37 लाख की वित्तीय सहायता स्वीकृत की गई है।
संघों को वित्तीय सहायता : कृषि उत्पादों के विपणन और अन्य कृषि गतिविधियों में विपणन महासंघों/सहकारी संस्थानों को सशक्त बनाने के लिए विपणन महासंघों/सहकारी संस्थाओं के लिए अलग क्रेडिट लाइन अर्थात संघ को ऋण सुविधा उपलब्ध करवाई गई है ताकि कृषि उत्पादों के विपणन और अन्य कृषि गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके, विपणन महासंघों/सहकारी संस्थाएं, जिनके सदस्य/शेयरधारकों (पैक्स) या अन्य उत्पादक संगठन हैं, इस योजना के तहत वित्तीय सहायता का लाभ उठाने के लिए पात्र हैं। वित्तीय सहायता लघु अवधि के कर्ज के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) योजना के तहत फसल की खरीद के लिए और किसानों को बीज की आपूर्ति, उर्वरक, कीटनाशक, पौध संरक्षण आदि के लिए उपलब्ध होगी और लंबी अवधि के कर्ज के रूप में छंटाई और श्रेणीकरण, प्राथमिक प्रसंस्करण, विपणन आदि सहित फसल एकत्र प्रबन्धन के लिए उपलब्ध होगी। इन संघों/सहकारी संस्थाओं को कृषि सलाहकार सेवाएं और ई-कृषि विपणन के माध्यम से बाजार की जानकारी प्रदान करने के लिए भी सहयोग दिया जाएगा।
सहकारी बैंकों को वित्तीय सहायता : नाबार्ड पारम्परिक रूप से जिला सहकारी बैंकों को राज्य सहकारी बैंकों के माध्यम से पुनर्वित्त सहायता प्रदान करता है। व्यक्तिगत उधारकर्ताओं और सम्बन्धित प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पैक्स) की कार्यशील पंूजी और खेत परिसम्पति रखरखाव जरूरतों को पूरा करने हेतु अल्पकालिक बहु-उद्देशीय ऋण सीधे ही सी.सी.बी. को उपलब्ध करवाने के लिए नाबार्ड ने एक अल्पकालिक बहु-उद्देशीय ऋण उत्पाद डिज़ाइन किया है।
विभिन्न कृषि उत्पादनों के उत्पादन, फसल एकत्र करने के उत्पादन और विपणन अधिशेष जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में विपणन सम्बन्धी बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए भारत सरकार ने कृषि विपणन बुनियादी, गे्रडिंग और मानकीकरण विकास/ सशक्तीकरण योजना (ए.एम.आई.जी.एस.) और ग्रामीण गोदामों के पुनः निर्माण के लिए ग्रामीण भण्डारण योजना नामक पूंजी अनुदान योजना तैयार की है। 1 अप्रैल 2014 से इन दोनों योजनाओं को मिलाकर कृषि विपणन बुनियादी योजना बनाई गई है जो ”एकीकृत कृषि विपणन योजना“ के तहत एक उप योजना है।
बेहतर मवेशी और दूध प्रबन्धन द्वारा राज्य में स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों और ग्रामीण लोगों के लिए स्तत रोजगार के अवसर प्रदान करने, उनकी आय के स्तर को बढ़ाने और दूध उत्पादन में भी वृद्धि के उद्देेश्य से भारत सरकार की डी.ई.डी.एस. योजना को शुरू किया गया था। वर्ष 2015-16 के दौरान 188 लाभार्थियों को ृ148.45 लाख का अनुदान जारी किया गया है। तथा 2016-17 के दौरान 31.12.2016 तक इसके अन्र्तगत 142 लाभार्थियों को ृ109.58 लाख का अनुदान जारी किया गया है।
इस के अतिरिक्त सरकार द्वारा प्रायोजित चार अन्य योजनाएं अर्थात “एग्रीक्लिनिक और कृषि व्यापार, केन्द्र योजना“ राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना के तहत वाणिज्यिक जैविक आदान उत्पादन इकाइयों के लिए “राष्ट्रीय पशुधन मिशन” और सिंचाई हेतु सौर फोटोवोल्टिक (एस.पी.वी.) जल उठाने की प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए योजना भी राज्य में संचालित की जा रही है जिनके लिए नाबार्ड के माध्यम से अनुदान उपलब्ध करवाया जाता है।
नैबकॉन्स एजैंसी परामर्श नाबार्ड की एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी है और यह कृषिए ग्रामीण विकास और इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में परामर्श प्रदान करती है। कृषि और ग्रामीण विकास क्षेत्रों में विशेष कर बहु.विषयी परियोजनाएंए बैंकिंगए संस्थागत विकासए बुनियादी सुविधाओंए प्रशिक्षण आदि के लिए नैबकाॅन्सए नाबार्ड की विशेष योग्यता पर निर्भर है। नाबार्ड परामर्श कार्य जिन मुख्य क्षेत्रों में परामर्श कार्य प्रदान करती है वे हैं.व्यवहारता अध्ययनए परियोजना तैयार करनाए मूल्यांकनए वित्त.पोषण व्यवस्थाए परियोजना प्रबंधन और निगरानीए समवर्ती और प्रभाव मूल्यांकनए कृषि व्यापार इकाइयों का पुनर्गठनए दृष्टि प्रलेखनए विकास प्रशासन और सुधारए संस्थागत विकास और ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं का प्रतिवर्तनए ग्रामीण शाखा का मूल्यांकनए बैंक पर्यवेक्षण नीति और कार्य अनुसंधान अध्ययनए ग्रामीण विकास विषयों पर संगोष्ठीए सूक्ष्म वित्त से सम्बन्धित प्रशिक्षणए प्रदर्शन यात्राएं और क्षमता निर्माणए प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण और प्रशिक्षण संस्थानों का निर्माणए गैर कृषि उद्यमों को बढ़ावा देना।
नैबकॉन्स ने हिमाचल प्रदेश राज्य में उच्चतम गुणवत्ता एवं ग्राहक संतुष्टि के साथ निम्नलिखित प्रमुख कार्य पूर्ण किये हैः
i) किन्नौर एवं लाहौल-स्पिति जिले में सीमाक्षेत्र विकास कार्यक्रम (बी.ए.डी.पी.) का तीसरा पक्ष निरीक्षण।
ii) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.केे.वी.वाई.) के अन्तर्गत किये गए कार्यो की तीसरा पक्ष समीक्षा।
iii) पं. दीन दयाल किसान बागवान समृद्धि योजना के अन्तर्गत पौली हाउस योजना की समीक्षा।
iv) मण्डी तथा कांगड़ा जिल¨ं में जापान इंटरनेशनल कोआॅपरेटिव एंजेंसी की परियोजनाअ¨ं के सर्वेक्षण एवं जांच की तैयारी।
v) हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड के लिए मण्डी आटोमेशन एवं नियंत्रित/शीत भंडार हेतु प्रबन्ध परामर्श।
vi) राज्य के लिए 12 जिलों के लिए प्रधान मन्त्री सिंचाई योजना के अन्र्तगत राज्य सिंचाई योजना एवं जिला सिंचाई योजना प्रस्तुति।
vii) राज्य में चलाई जा रही अनुसूचित जाति उप-योजना को दी जा रही विशेष केंद्रीय सहायता की समीक्षा।
viii) राज्य में 12 सीए/ सीएस स्टोर्स की संभाव्यता का अध्ययन।
ix) राज्य के ए.पी.एम.सी. के लिए मंडी प्रबंधन सूचना प्रणाली की रूपरेखा, विकास एवं कार्यान्वयन।
x) कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक के लिए परियोजना का मूल्यांकन।
सहकारी विकास कोष, सोफ्टकोब (ैव्थ्ज्ब्व्ठ) के अधीन नाबार्ड द्वारा कृषि सहकारी कर्मचारी प्रशिक्षण संस्थानों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता तथा उन कर्मचारियों का सामथ्र्य एंव कौशल जो सहकारी ऋण व्यवस्था (सी.सी.एस.) के अन्र्तगत उपलब्ध है, उनके प्रशिक्षण क्षमता की वृद्धि के लिए वित्तीय सहायता को बढ़ा रहा है। इस योजना के अन्र्तगत संस्थाओं के प्रशिक्षण व्यय के रूप में पूंजीगत खर्च योजना के अनुसार प्रतिपूर्ति की जाती है।
सी.टी.आई. के बेहतर प्रदर्शन तथा सोफ्टकोब (ैव्थ्ज्ब्व्ठ) के साथ सम्मिलित करने के लिए नाबार्ड ने सी.पी.ई.सी. की मदद से सहभागी अभ्यास शुरू किया तथा सी.टी.आई. को चयनित किया गया है। सहकारी बैंकों और पैक्स (च्।ब्ै) में कोर बैंकिंग सामाधान, कम्प्यूटरीकरण, वित्तीय लाभप्रदता पहलुओं और जोखिम प्रबंधन में प्रशिक्षण की आवश्यकता के लिए सी.टी.आई., द्वारा वित्तीय क्षेत्र में योग्यता आदि के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्राथिमिकता दी जाती है। राज्य में नाबार्ड द्वारा वर्ष 2015-16 में ृ20.00 लाख की वित्तीय सहायता कृषि सहकारी कर्मचारी प्रशिक्षण संस्थानों को दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय क्रियान्वयन इकाई (एन.आई.ई.) अनुकूल कोष (ए.एफ.) हरित जलवायु कोष (जी.सी.एफ.) को संयुक्त राष्ट्र के रूपरेखा सम्मेलन जलवायु परिवर्तन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के अन्तर्गत पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन नाबार्ड द्वारा नामित किया गया है।
पर्यावरण, विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी, विभाग द्वारा सिरमौर जिले में जलवायु परिवर्तन की आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तथा हिमाचल प्रदेश की सूखा प्रवृत जिले में कृषि निर्भर समुदायों की निरंतर आजिविका पर एक परियोजना की तैयारी एंव विकास की मंजूरी नाबार्ड के प्रयासों द्वारा क्रियान्वित की गई है। जलवायु परिवर्तन के लिए गठित राष्ट्रीय संचालन समिति पर्यावरण, विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी मन्त्रालय द्वारा एक परियोजना को शुरू करने के लिए ृ20.00 करोड़ की वित्तीय सहायता की स्वीकृति दी गई है। नाबार्ड द्वारा 31 दिसम्बर, 2016 तक ृ3.30 करोड़ की राशि जारी की गई है।

4.आबकारी एवं कराधान

आबकारी एवं कराधान विभाग प्रदेश में सबसे अधिक राजस्व अर्जित करने वाला विभाग है । वर्ष 2015-16 के दौरान कुल ृ5614.75 करोड़ के राजस्व संग्रहण में से वैट संग्रह ृ3992.99 करोड़ है जोकि कुल राजस्व का 71.11 प्रतिशत बनता है। शीर्ष 0039 राज्य आबकारी नियम के तहत निर्धारित लक्ष्य ृ1137.72 करोड़ की तुलना में ृ1131.22 करोड़ का संग्रहण किया गया, जोकि कुल संग्रहित राजस्व का 20.26 प्रतिशत है, शेष 08.63 प्रतिशत हि0 प्र0 पी0 जी0 टी0 अधिनियम, हि0 प्र0 विलासिता कर अधिनियम, हि0 प्र0 सी0 जी0 सी0 आर0 अधिनियम, हि0प्र0 मंनोरंजन कर अधिनियम और हि0प्र0 टोल टैक्स अधिनियम से किया गया ।
विभाग द्वारा विभिन्न सेवाएं प्रदान करने एवं उनके अन्तर्गत लक्ष्य प्राप्ति का ब्यौरा निम्नलिखित है।
1)विद्युत वाहनों को दिनांक 03.10.2016 से पांच वर्ष की अवधि के लिए वैट मुक्त किया गया है।
2) सोलर कुकर और सौर लालटेनों को दिनांक 03.10.2016 से वैट मुक्त कर दिया गया है।
3) दिनांक 03.10.2016 से सभी प्रकार की एल0ई0डी0 लाईटों को भी वैट मुक्त कर दिया गया है।
4)दिनांक 01.05.2016 से बहुमूल्य धातुओं पर प्रवेश कर की दर को 0.25 प्रतिशत से घटाकर 0.10 प्रतिशत कर दिया गया है।
5) दिनांक 12.08.2016 से सिम कार्ड को वैट मुक्त कर दिया गया है।
6)दिनांक 18.11.2016 से ओला अवरोधक जालियों (एण्टी हेल नेटस) पर वैट की दर को 13.75 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है।
7) प्रवेश कर को औद्योगिक इनपुट, कच्चे माल व पैकिंग के सामान पर जो कि राज्य के बाहर से लाया जाता है और उसका उपयेाग विक्री अथवा विनिर्माण में प्रयोग करने, संस्करण, संपरिवर्तन, विशेष कार्य अथवा जोड़ने के लिए किया जाता हो, कार्यरत उद्योगों लिए 2 प्रतिशत से घटाकर 1 प्रतिशत व नये उद्योगों के लिए 1 प्रतिशत से घटाकर 0.5 प्रतिशत कर दिया गया है।
8) अतिरिक्त भाड़ा कर व सड़क द्वारा कतिपय माल के वहन पर कर अधिनियम के अन्तर्गत औद्योगिक ईकाइयों तथा व्यापारियों सेे कर एकत्रित करने की शक्तियां सहायक आबकारी एवं कराधान आयुक्त व आबकारी व कराधान अधिकारी/ जिला प्रभारी को प्रस्तावित है जो कि पहले आयुक्त आबकारी कराधान के पास थी।
9) सरकार द्वारा बोतलबंद पीने के पानी पर सड़क द्वारा कतिपय माल के वहन पर कर की दर ृ7.50 प्रति दस लीटर से घटाकर ृ2.00 प्रति दस लीटर कर दी गई है।
10) सरकार द्वारा जादू तथा सर्कस के प्रदर्शन को 01.04.2015 से 10 वर्षों के लिए मनोरंजन शुल्क से छूट प्रदान की गई है ताकि इन परम्पारिक कलाओं को बढावा दिया जा सके ।
11) दिनांक 01.04.2015 से वैट, सी.एस.टी. एवं प्रवेश कर की विवरणणियांें का विलय कर दिया गया है । अब वैट फार्म ग्ट में एक ही विवरणी दायर की जा सकती है। जिससे ना कि व्यापारी के समय की बचत होगी बल्कि आंकड़ों की निगरानी में भी सहायक होगी।
12)दिनांक 18.05.2015 से ई-घोषणा करके प्रदेश में प्रवेश करने वाले माल वाहनों को नाके पर रुकने की आवश्यकता नहीं है। ये उल्लेख करना भी आवश्यक है कि ई-घोषणा करके प्रदेश से बाहर माल ले जाने वाले वाहनों के लिए पहले से ही कोई रोक नहीं है।
13)दिनांक 01.10.2015 से सीएसटी एवं वैट के अन्तर्गत कर का भुगतान ई-पेमैंट द्वारा करना अनिवार्य कर दिया गया है ताकि जमा कर का लेखा अच्छी तरह से हो सके।
14) दिनांक 06.06.2015 से व्यापारियों की सुविधा के लिए 40 से अधिक बैंको को साईबर ट्रेजरी के साथ एकीकृत कर दिया गया है ।
15) दिनांक 14.12.2015 से वह व्यापारी जो डिजीटल सिग्नेचर सहित अपनी वार्षिक विवरणी दायर करेंगे उन्हें विवरणी की हार्ड काॅपी दायर करने की आवश्यकता नहीं है ।
16) दिनांक 01.04.2015 से राजस्व मद 0045 के अन्तर्गत विलास कर का भुगतान साईबर ट्रेजरी द्वारा करने की सुविधा प्रदान की गई है ताकि राजस्व प्रशासन को सरल व एवं पारदर्शी बनाया जा सके।
17) वित्त्त्तीय वर्ष 2016-17 के लिए मुख्य शीर्ष 0039-राज्य आबकारी के अन्तर्गत ृ1274.26 करोड़ का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जोकि पिछले वित्त्त्तीय वर्ष 2015-16 के लक्ष्य से ृ136.54 करोड़ अधिक है। अतः सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभाग हर सम्भव प्रयास कर रहा है ।
18) तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश अपने आबकारी अधिनियम, 2011, जिसमें शराब की तस्करी के लिए प्रयोग किए जा रहे वाहन को जब्त किए जाने का प्रावधान है, दिनांक 18.08.2012 से लागू कर रहा है ।
19) उपभोक्ताओं को प्रदेश में अच्छी गुणवता वाली मदिरा की उपलब्धता को सुनिश्ति करने के लिए प्रदेश में बिकने वाली प्रत्येक देशी व अंग्रजी शराब की बोतलों पर होलोग्राम लगाया जाना अनिवार्य किया गया है।

5.मूल्य संचलन

मुद्रा स्फीति का नियंत्रण सरकार की प्राथमिकता सूची में से एक है। मुद्रा स्फीति आम व्यक्तियों को उनकी आय कीमतों की पहंुच से दूर रहने के कारण परेशान करती है। मुद्रा-स्फीति के उतार-चढ़ाव को थोक मूल्य सूचकांक के द्वारा मापा जाता है। राष्ट्र्ीय स्तर पर थोक भाव सूचकांक दिसम्बर माह के वर्ष 2015 को 176.8 से बढ़कर दिसम्बर, 2016 माह में 182.8;अद्ध हो गया जो कि मुद्रा स्फीति की दर (़) 3.39 प्रतिशत दर्शाता है। औसत मासिक थोक मूल्य सूचकांक व वर्ष 2016-17 में मुद्रा स्फीति की दर नीचे सारणी 5.1 में दर्शाई गई हैः-
हिमाचल प्रदेश में कीमतों की स्थिति पर निरन्तर नियंत्रण रखा जा रहा है। खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा प्रदेश में कीमतों पर निगरानी, आपूर्ति की प्रक्रिया का रख-रखाव एवं आवश्यक वस्तुओं के वितरण के लिए 4,891 उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से कर रहा है। खाद्य में असुरक्षा एवं भेद्यता के माॅनिटर एवं व्यवस्थित करने के लिए खाद्य एवं आपूर्ति विभाग जी.आई.एस.के माध्यम द्वारा एफ.आई.वी.आई.एम.एस.खाद्य असुरक्षा भेद्यता मैपिंग प्रणाली लागू कर रहा है। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप प्रदेश में आवश्यक वस्तुओं के भाव नियंत्रण में रहे फिर भी हिमाचल प्रदेश का ओद्यौगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ;आधार 2001त्र100द्ध राष्ट््रीय सूचकांक की तुलना में थोड़ा अधिक रहा। दिसम्बर, 2016 में हिमाचल प्रदेश उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (औद्योगिक श्रमिकों के लिए) में राष्ट््रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की 2.23 प्रतिशत की तुलना में प्रदेश की वृद्धि बढ़कर केवल 3.36 प्रतिशत आंकी गई। इसके साथ-साथ जमाखोरी, मुनाफाखोरी तथा हेराफेरी द्वारा आवश्यक उपभोग की वस्तुओं की बिक्री तथा वितरण पर निगरानी रखने के लिए प्रदेश सरकार ने कई आदेशों/ अधिनियमों को कड़ाई से लागू किया है। वर्ष के दौरान नियमित साप्ताहिक प्रणाली द्वारा आवश्यक वस्तुओं के भावों पर निगरानी करनी जारी रखी गई ताकि भावों में अनुचित बढौ़तरी को समय पर रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकें।

6.खाद्य सुरक्षा और नागरिक आपूर्ति

लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में सरकार की नीति का एक विशेष घटक उचित मूल्य की 4,891 दुकानों द्वारा जरूरी वस्तुएं जैसे गेहॅूंँ, गेहूंॅँ का आटा, चावल, लेवी चीनी इत्यादि का लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत पूर्ति को सुनिश्चित करना है। खाद्य पदार्थाें को वितरित करने हेतुसभी परिवारों को दो श्रेणियों में बंाटा गया है।
1) एन0एफ0एस0ए0(पात्र गृहस्थियां):
i) अन्त्योदय अन्न योजना
ii) प्राथमिकी गृहस्थियां
2) 2) नाॅन-एन0एफ0एस0ए0(ए.पी.एल.) लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्र्तगत प्रदेश में 18,26,390 राशन कार्डों की संख्या है जिनके अन्र्तगत 77,34,264 राशन कार्ड धारकों को 4,891 उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं जिनमें सहकारी सभाएं के अन्तर्गत 3,196, नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा 78, पंचायतों द्वारा 16, व्यक्तिगत 1,594 तथा महिला मण्डल द्वारा 7 उचित मूल्य की दुकानें चलाई जा रही हैं।
वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक निम्नलिखित खाद्य पदार्थों की मात्रा उचित मूल्य की दुकानों के द्वारा वितरित की गई हैंः-

वर्तमान में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा हि0प्र0 राज्य अनुदानित वस्तुओं के वितरण का ब्यौरा निम्न प्रकार से किया जा रहा हैः-
इस समय प्रदेश में 28 मिट्टी के तेल के विभिन्न कम्पनियों के थोक विक्रेता, 362 पैट्रोल पम्प तथा 146 गैस एजेंसियां कार्यरत हैं।
हिमाचल प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम हिमाचल प्रदेश सरकार की लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली व राष्ट्रीयखाद्य सुरक्षा अधिनियम के अन्र्तगत नियन्त्रित व अनियन्त्रित वस्तुओं के प्रापण एवं वितरण की एक नोडल एजैन्सी के रुप में सन्तोषजनक कार्य कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक निगम ने विभिन्न वस्तुओं का मूल्य ₹ 872.25 करोड़़ का प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में इसी अवधि में मूल्य ₹ 900.91 करोड़़ थी।
वर्तमान में निगम अन्य आवश्यक वस्तुओं जैसे कि रसोई गैस, डीजल/पैट््रोल/ मिटटीका तेल और जीवन रक्षक दवाईयों को उचित मूल्यों पर 119 थोक बिक्री केन्द्रों, 76 उचित मूल्यों की दुकानों/अपना स्टोर, 54 गैस एजेंसियों, 4 पेट््रोल पम्प और 36 दवाईयों की दुकानों के माध्यम से दुर्गम क्षेत्रों सहित प्रदेश के कोने-कोने में वितरण कर रहा है। इसके अतिरिक्त निगम थोक व परचून विक्री केन्द्रों के माध्यम से अन्य आवश्यकवस्तुएं जैसे चीनी, दालें, चावल, आटा, डिटरजैंट, चाय पŸाी, कापियां, सीमेंट, सी.जी.आई. शीट्स, दवाईयां, विशेष पोषाहार स्कीम की विभिन्न वस्तुएं, मनरेगा सीमेन्ट व पैट््रोलियम पदार्थाें इत्यादि का थोक गोदामों व परचून दुकानों के माध्यम से प्रापण एवं वितरण कर रहा है। जिससे निश्चित रुप से इन वस्तुओं के लिए प्रदेश में महंगाई स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक निगम द्वारा विभिन्न वस्तुओं का मूल्य ₹ 321.86 करोड़ का प्रापण एवं वितरण किया गया है जो पिछले वर्ष के दौरान इसी अवधि में मूल्य ₹ 340.30 करोड़ की थी।
निगम दोपहर के भोजन स्कीम के अन्तर्गत प्राथमिक व अपर प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को सम्बन्धित जिलाधीशों द्वारा आंवटित चावल एवं अन्य खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति की व्यवस्था कर रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक 11,428 मी0 टन चावल जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 11,617 मी.टन थे का वितरण किया है। निगम सरकार की विशेष अनुदानित स्कीम के अंतर्गत चिन्हित वस्तुओं (दालें, खाद्य तेल और नमकद्ध की सरकार द्वारा गठित प्रापण कमेटी के निर्णयानुसार आपूर्ति कर रहा है। वर्तमान विŸाीय वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक ₹ 372.85 करोड़़ की विभिन्न वस्तुओं का प्रापण व वितरण किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में इस अवधि में ₹ 277.62 करोड़़ थी। इस योजना को लागू करने के लिए वर्ष 2016-17 में ₹ 210.00 करोड़ राज्य अनुदान के रुप में बजट में प्रावधान किया गया है। वर्ष 2016-17 के दौरान निगम का कारोबार ₹ 1,433.35 करोड़़ रहने की संभावना है। जो गत वर्ष 2015-16 के द्वौरान ₹ 1401.52 करोड का था।
निगम द्वारा वर्ष 2016-17 में जनहित में थोक विक्री केन्द्र बडोह और ज्वाली जिला कांगडा मेे खोले गए हैं।
अपना स्टोरध्माॅल खोलने की योजना: निगम ने अपना स्टोर/माॅल शिमला, सोलन, धर्मशाला और मण्डी में खोलने का प्रस्ताव है। पहले चरण में नगरोटा बगवां तथा पालमपुर के बस अड्डों में विभिन्न गैर-नियन्त्रित वस्तुओं उपलब्ध करवानेे हेतू अपना स्टोर खोला है। अपना स्टोर/माॅल मण्डी और शिमला में खोलने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। अपना स्टोर/माॅल कांगड़ा का संचालन बहुत जल्दी कर दिया जाएगा। दूसरी ओर इसके साथ ही सरकारी चिकित्सालयों में और दवाई की दुकानें खोलने का भी प्रस्ताव है।
हिमाचल प्रदेश नागरिक आपूर्ति निगम सरकारी अस्पतालों को दवाईयां, सरकारी विभागों/ बोर्डों/ उपक्रमों/ अन्य सरकारी संस्थाओं को सीमेंट और जी.आई./ डी.आई/ सी.आई पाईपें सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग को, शिक्षा विभाग को स्कूल की वर्दियों की आपूर्ति कर रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष 2016-17 में सरकारी आपूर्ति ;अनन्तिम स्थितिद्ध निम्न प्रकार रहेगीः-

मनरेगा सीमेंट की आपूर्ति: वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान दिसम्बर,2016 तक निगम ने प्रदेश की विभिन्न पंचायतों के विकास कार्य में प्रयोग किए जाने वाले 17,78,111 बैग सीमेंट जिसकी राशि ₹ 49.83 करोड़़ बनती है का सीमेन्ट फैक्ट््िरयों से प्रापण व आपूर्ति सुनिश्चित की गई है।
निगम आवश्यक वस्तुएं, पैट््रालियम उत्पाद मिटटी तेल व एल.पी.जी. सहितजन-जातीय एवं अगमय क्षेत्रों में जहां निजी पार्टियां इस व्यवसाय को चलाने में घाटे के दृष्टिगत आगे नहीं आती है, जरूरी वस्तुएं उपलब्ध करवाने के लिए बचनबद्व है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान निगम ने सरकार की जनजाति कार्य योजना के अनुसार जनजातीय व हिमाच्छादित क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुएं व पैट्रोलियम उत्पादों की व्यवस्था सुनिश्चित की है।
निगम अपनी स्थापना वर्ष 1980 से लगातार लाभ अर्जित कर रहाहै।निगम ने वर्ष 2015-16 के दौरान ₹ 2.06 करोड़ का शुद्ध लाभ अर्जित किया तथा ₹ 35.15 लाख हिमाचल सरकार को लाभांश के रूप में दिया है।
भारत सरकार द्वारा राज्यांे को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के सौपे गये कार्य व उत्तरदायित्व के अन्र्तगत माननीय मुख्यमंत्री हि.प्र द्वारा दिनांक 20.09.2013 को संचालित महत्वाकांक्षी राजीव गांधी अन्नयोजना के अन्र्तगतहि.प्र. राज्य नागरिक आपूर्ति निगम इस योजना के कार्यान्वयन में आवंटित खाद्यानों को समय पर पर्याप्त मात्रा में प्रापण/भण्डारण व आपूर्ति सुनिश्चित करने के उपरान्त, अपने 119 थोक बिक्री केन्द्रों द्वारा चयनित उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से लाभार्थियों में वितरण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक 61404मी.टन चावल व 85,942 मी.टन गेहॅूँ चयनित लाभार्थियों को क्रमशः ₹ 3.00 व ₹ 2.00 प्रति किलो प्रति माह की दर से वितरित करना सुनिश्चित किया है। उपरोक्त के अतिरिक्त प्रदेश सरकार के अलग से राज्य वेयर हाउस कारपोरेशन न होने की स्थिति में निगम अपने स्तर पर 22,980 मी. टन व 37,508 मी.टन. किराये पर ली गई भण्डारण क्षमता का प्रबन्धन कर रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 कके सफल कार्यान्वयन को देखते हुए पर्याप्त खाद्यान्न भण्डारण हेतु 300 मी.टन. से 1,000 मी.टन के नए गोदाम के निर्माण के प्रस्तावों पर भी कार्यवाही कर रहा है जिसके अन्तर्गत उपयुक्त सरकारी भूमि का चयन कर विभाग/ निगम के नाम पर स्थानान्तरण का कार्य प्रगति पर है। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 के दौरान अतिरिक्त खाद्यान भण्डारण क्षमता बढ़ाने के अन्तर्गत गोदाम निर्माण हेतु ₹ 2.99 करोड़ की राशि उपलब्ध करवाई है।
वर्तमान वित्तीय वर्ष 2016-17 में निगम द्वारा भारतीय इस्पात प्राधिकरण से सरिया व सम्बन्धित अन्य उत्पाद इत्यादि को शिमला में भट्टाकुफर से सभी विभागों, निगमों तथा बोर्ड़ों को उपलब्ध करवाने में पहल करने पर भारतीय इस्पात प्राधिकरण ने सेल यार्ड का दायित्व भी निगम को सौंपा है इसके अन्तर्गत दिसम्बर, 2016 तक निगम द्वारा 1,793 मी.टन अच्छी गुणवता के सरिये की आपूर्ति की है।

7.कृषि एवम् बागवानी

कृषि हिमाचल प्रदेश के लोगों का प्रमुख व्यवसाय है और प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। हिमाचल प्रदेश देश का अकेला ऐसा राज्य है जिसकी 2011 की जनगणना के अनुसार 89.96 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इसलिए कृषि व बागवानी पर प्रदेश के लोगों की निर्भरता अधिक है और कृषि से राज्य के कुल कामगारों में से लगभग 62 प्रतिशत रोजगार उपलब्ध होता है। कृषि राज्य आय का प्रमुख स्त्रोत है।
राज्य के कुल राज्य घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत कृषि तथा इससे सम्बन्धित क्षेत्रों से प्राप्त होता है। प्रदेश के कुल 55.67 लाख हैक्टेयर भौेगोलिक क्षेत्र में से 9.55 लाख हैक्टेयर क्षेत्र 9.61 लाख किसानों द्वारा जोता जाता है। प्रदेश में औसतन जोत 1.00 हैक्टेयर है। कृषि गणना 2010-11 के अनुसार भू-जोतों के वर्गीकरण नीेचे दी गई सारणी 7.1 से स्पष्ट है कि कुल जोतों में से 87.95 प्रतिशत जोतें लघु व सीमान्त किसानों की है। लगभग 11.71 प्रतिशत अर्ध-मध्यम/मध्यम व केवल 0.34 प्रतिशत जोतें बड़े किसानों की है।

कुल जोते गए क्षेत्र में से 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर आधारित हेै। चावल, गेंहू, तथा मक्की राज्य की मुख्य खाद्य फसलें हैं। मूंगफली, सोयाबीन तथा सूरजमुखी खरीफ मौसम की तथा तिल, सरसों और तोरिया रबी मौसम की प्रमुख तिलहन फसलें हेैं। उड़द, बीन, मूंग, राजमाश राज्य में खरीफ की तथा चना मसूर रबी की प्रमुख दालें है। कृषि जलवायु के अनुसार राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है जैसे
1) उपोष्णीय, उप पर्वतीय तथा निचले पहाडी क्षेत्र।
2) उप समशीतोष्ण नमी वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्र।
3) नमी वाले ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र।
4) शुष्क तापमान वाले ऊंचेे पर्वतीय क्षेत्र व शीत मरूस्थल।
खाद्यान्न उत्पादन के अतिरिक्त राज्य सरकार, समयानुसार तथा प्रचुर मात्रा में कृषि संसाधनों की उपलब्धता, उन्नत कृषि तकनीकी जानकारी, पुराने किस्म के बीजों को बदल कर एकीकृत कीटाणु प्रबन्ध से उन्नत करना एवं जल संरक्षण कर बेकार जमीन का विकास करके बेमौसमी सब्जियों आलू, अदरक, दालों व तिलहन के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
वर्षा के अनुसार चार विभिन्न मौसम है। लगभग आधी वर्षा बरसात में ही होती है तथा शेष बाकी मौसमों मेे होती है। राज्य में औसतन 1,251 मि.मी. वर्षा होती है। सबसे अधिक वर्षा कांगड़ा जिले में होती है और उसके बाद चम्बा, सिरमौर और मण्डी जिला आते हैं।
कृषि कार्यकलापों का मौनसून से गहन सम्बन्ध है। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2016 के मौनसून के मौसम ;जून-सितम्बरद्ध में बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, मण्डी, शिमला, सोलन और ऊना में सामान्य, चम्बा, किन्नौर व सिरमौर में कम तथा लाहौल-स्पिति में छुटपुट वर्षा हुई। इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में मौनसून मौसम में सामान्य वर्षा की तुलना में (-) 26 प्रतिशत कम वर्षा हुई। सारणी 7.2 में विभिन्न जिलों में दक्षिण पश्चिम मौनसून मौसम में वर्षा की स्थिति को दर्शाया गया है।
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवथा मुख्यतः कृषि पर निर्भर करती है तथा अभी तक भी राज्य की अर्थ-व्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 2014-15 में कृषि तथा उससे सम्बन्धित क्षेत्रों का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में लगभग 10 प्रतिशत योगदान रहा। खाद्यान्न उत्पादन में तनिक भी उतार-चढ़ाव अर्थ-व्यवस्था को काफी प्रभावित करता है। 12वीं पंचवर्षीय योजना, 2012-17 के दौरान बेमौसमी सब्जियोें, आलू, दालों तिलहनी फसलें व खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर पर्याप्त आदान आपूर्ति, ंिसंचाई के अंतर्गत् नए क्षेत्र लाकर, जल संरक्षण विकास तथा सुधरी हुई कृषि प्रौद्योगिकी के प्रभावकारी प्रदर्शन व जानकारी पर विशेष महत्व दिया गया है। वर्ष 2015-16 कृषि के लिए सामान्य अच्छा वर्ष होेने की वजह से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2014-15 के 16.08 लाख मी0 टन की तुलना में वर्ष 2015-16 में 16.34 लाख मी0 टन उत्पादन हुआ। वर्ष 2014-15 केे 1.81 लाख मी0 टन आलू उत्पादन की तुलना में वर्ष 2015-16 में आलू उत्पादन 1.83 लाख मी. टन हुआ। सब्जियों का उत्पादन वर्ष 2014-15 के 15.76 लाख मी0 टन की तुलना में वर्ष 2015-16 में 16.08 लाख मी. टन हुआ।
वर्ष 2016-17 में कुल उत्पादन का लक्ष्य 16.00 लाख मी0 टन होने की आशा है। खरीफ उत्पादन मुख्यतः दक्षिण पश्चिम मौनसून पर निर्भर करता है क्योेंकि राज्य के कुल जोते गए क्षेत्र में से लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर निर्भर करता है। खरीफ सीजन में बुआई अप्रैल अन्त में शुरू होती है और जून मध्य तक जाती है। मक्की और धान खरीफ सीजन की मुख्य फसलें हैं। रागी, छोटे अनाज तथा दालें कम मात्रा में होती हैं। खरीफ सीजन के दौरान 395.27 हजार हैक्टेयर क्षेत्र बोया गया था। लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र अप्रैल-मई तथा 70 प्रतिशत जून-जुलाई के महीने में बोया गया जो कि खरीफ सीजन का शीर्ष समय होता है। राज्य के अधिकांश हिस्से में सामान्य वर्षा होने के कारण बीजाई समय पर की जा सकी और कुल मिलाकर फसल की स्थिति सामान्य थी। यद्यपि मानसून 2016 के दौरान राज्य के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा के कारण खरीफ की खड़ी फसल कुछ सीमा तक प्रभावित हुई और 8.88 लाख मी0 टन उत्पादन हुआ जो कि पिछले वर्ष सीजन के लिए 8.85 लाख मी0 टन था। रबी सीजन 2015-16 के दौरान अक्तूबर से दिसम्बर, 2015 की अवधि में कम वर्षा के कारण कुछ हद तक रबी की बुआई प्रभावित हुई। जिस कारण 2015-16 रबी उत्पादन के 7.34 लाख मी0 टन के लक्ष्य की तुलना में 7.46 लाख मी0 टन का लक्ष्य अन्तिम अनुमान के अनुसार प्राप्त किया गया है। फसलबार खाद्यानों एवं वाणिज्य फसलों का उत्पादन वर्ष 2014-15, 2015-16, 2016-17 एवं लक्ष्य 2017-18 तालिका 7.4 में दर्शाया गया है।
क्षेत्र विस्तार द्वारा उत्पादन बढ़ाने की भी सीमाएं हैं। जहां तक कृषि योग्य भूमि का प्रश्न है सारे देश की तरह हिमाचल भी अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां कृषि के अन्तर्गत् भूमि को बढ़ाया नहीं जा सकता। अतः उत्पादकता स्तर को बढ़ाने के साथ विविधता पूर्ण उच्च मूल्य वाली फसलों को अपनाने का प्रयास आवश्यक है। नकदी फसलों की तरफ बदले हुए रूझान की वजह से खाद्यान्न उत्पादन/फसलों के अंतर्गत क्षेत्र धीरे-धीरे कम हो रहा है। जैसे कि यह 1997-98 में 853.88 हजार हैक्टेयर था जो घटते हुए वर्ष 2015-16 में अनुमानित 764.85 हजार हैक्टेयर रह गया। प्रदेश में बढ़ता हुआ उत्पादन, उत्पादकता दर में वृद्धि को दर्शाता है जो कि सारणी 7.5 से पता चलता है।

अधिक उपज देने वाली फसलों की किस्में संबंधित कार्यक्रम ;एच.वाई.वी.पी.द्ध : खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने हेतु किसानों को अधिक उपज देने वाले बीजों के वितरण पर जोर दिया गया। अधिक उपज देने वाली मुख्य फसलों जैसे मक्की, धान, गेहूं के अंतर्गत पिछले पांच वर्षों में लाया गया क्षेत्र तथा 2016-17 के लिए लक्षित क्षेत्र सारणी 7.6 में दिया गया है।
प्रदेश में बीज उत्पादन के 20 फार्म केन्द्र स्थापित किए गए है जिनसे पंजीकृत किसानों को बीज उपलब्ध करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में 3 सब्जी विकास केन्द्र, 12 आलू विकास केन्द्र तथा 1 अदरक विकास केन्द्र भी स्थापित किए गए हैं।
पौध संरक्षण कार्यक्रम : फसलों की पैदावार बढानें के उद्वेश्य से पौध संरक्षण उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता देना जरूरी है। प्रत्येक मौसम में फसलों की बीमारियों, इनसैक्ट तथा पैस्ट इत्यादि से लड़ने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, आई.आर.डी.पी. परिवारों, पिछडे़ं क्षेत्रों के किसानों तथा सीमान्त व लघु किसानों को पौध संरक्षण रसायन व उपकरण, 50 प्रतिशत कीमत पर उपलब्ध करवाएं गए। अक्तूबर,1998 से सरकार बडे़ किसानों को इन मदों पर 30 प्रतिशत उपदान दे रही है। संभावित एवं प्रस्तावित लक्ष्य सारणी 7.7 में दर्शाए गए हैं।

मिट्टी की जांच कार्यक्रम : प्रत्येक मौसम में मिट्टी की उर्वरकता को बनाए रखने के लिए किसानों से मिट्टी के नमूने इकटठे किए जाते हैं तथा मिट््टी जांच प्रयोगशाला में इनका विश्लेषण किया जाता है। लाहौल-स्पिति जिला के अतिरिक्त जिलोें मंे मिट्टी जांच प्रयोगशालाएं स्थापित की जा चुकी है, जबकि चार चलते फिरते वाहन/ प्रयोगशालाएं जिसमें से एक जनजातीय क्षेत्र के लिए हैं, स्थानीय स्तर पर मिट्टी की जांच के लिए कार्यरत हैं। यह प्रयोगशालाएं आधुनिक उपकरणों द्वारा सशक्त की जा रही है। वर्तमान में 11 मिट्टी जांच प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ किया गया तथा 7 चलित प्रयोगशालाएं विभाग द्वारा स्थापित की गई तथा एक वर्ष में लगभग एक लाख मिट्टी के नमूने मिट्टी विश्लेषण के लिए एकत्रित किए गए। वर्ष 2015-16 में 67,800 मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया गया। वर्ष 2016-17 में लगभग 82,000 मिट्टी के नमूनों के विश्लेषण का लक्ष्य रखा गया है। मिट््टी के नमूनों का विश्लेषण परियोजना को सरकार ने फ्लैगशीप कार्यक्रम के तौर पर अपनाया है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत्् पात्र किसानों को मिट््टी स्वास्थ्य कार्ड दिए जाएंगें जिससे किसानों को अपने खेतों की मिट्टी में पोषकता तथा उर्वरकता की स्थिति और पोषक तत्वों की आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त होगी। भू-उर्वरकता नक्शे चैधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जी0पी0एस0 तकनीक द्वारा बनाए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने मिट्टी जांच को भी हि0प्र0 सार्वजनिक सेवाएं गारन्टी अधिनियम 2011 के अंतर्गत् एक सार्वजनिक सेवा घोषित किया है।
सभी संबंधित लोगों के लिए जैविक खेती स्वास्थ्य, पर्यावरण मित्र होने के कारण आजकल लोकप्रिय होती जा रही है। किसानों को प्रशिक्षण, प्रदर्शनी, मेले/ गोष्ठियों द्वारा राज्य में जैविक खेती बहुत ही योजनाबद्व तरीके के साथ उन्नत हो रही है। 12वीं योजना के अन्तर्गत् यह भी फैसला किया गया है कि हर घर में बरमी खाद की ईकाईयां स्थापित की जाए। इस योजना के अन्तर्गत प्रति किसान को ृ5,000 की राशि (50 प्रतिशत अनुदान पर) 10ग6ग1ण्5 फीट का बरमी गड्डा तैयार करने व 2 किलोग्राम बरमी-कल्चर बीज के लिए दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त जैविक खेती अपनाने पर अनुमोदित जैविक आदानों पर ृ10,000 प्रति हैक्टेयर ;50 प्रतिशतद्ध तथा प्रमाणीकरण हेतू ृ10,000 प्रति हैक्टेयर 3 वर्षाें के लिए प्रोत्साहन के रूप में दिया जा रहा है।
बायो गैस विकास कार्यक्रम : पारम्परिक ईंधन, जैसे जलावन लकड़ी की उपलब्धता के कम होने से बायोगैस संयन्त्रों ने राज्य के निचले तथा मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों में महता प्राप्त की है। इस कार्यक्रम के शुरू होने से मार्च, 2016 तक राज्य में 44,671 बायोगैस संयन्त्र लगाए जा चुके हैं। हिमालय क्षेत्र के कुल बायोगैस उत्पादन में से लगभग 90.86 प्रतिशत अकेले हिमाचल प्रदेश में ही होता है। वर्ष 2015-16 के दौरान राज्य में 150 बायोगैस संयन्त्र स्थापित किए गये तथा वर्ष 2016-17 के दौरान भी 150 और बायोगैस संयन्त्र स्थापित करना प्रस्तावित है जिसमें से दिसम्बर, 2016 तक 60 संयंत्र पहले ही स्थापित किये जा चुके हैं। यह कार्यक्रम संतृप्ति के पड़ाव पर है।
उर्वरक उपभोग तथा उपदान : उर्वरक ही एक ऐसा आदान है जो काफी हद तक उत्पादन को बढ़ाने में योगदान देता है। उर्वरक उपभोग का स्तर वर्ष 1985-86 के 23,664 टन स्तर से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 57,580 टन हो गया। रसायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मिश्रित उर्वरक पर ृ1,000 प्रति मी0टन तथा बड़े पैमाने पर घुलनशील उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 25 प्रतिशत मूल्य सीमा या ृ2,500 प्रति क्विंटल जो भी कम हो, उपदान स्वरूप उपदान योजना के अंतर्गत् दिया जा रहा है। वर्ष 2016-17 में लगभग 51,000 मी0 टन उर्वरक पोषक तत्वों की दृष्टि के रूप में वितरित किया जाएगा।
ग्रामीण परिवारों की विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्थिति के कारण पारम्परिक वित्त के गैर संस्थागत स्त्रोत ही ऋण के मुख्य साधन है। इनमें से कुछ एक बहुत अधिक ब्याज पर धन उपलब्ध करवाते हैं और गरीब लोगों के पास बहुत कम सम्पति होती है जिसके कारण उनके लिए समानान्तर जमानत जुटा पाने के अभाव में वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेना बहुत मुश्किल है फिर भी सरकार ने ग्रामीण परिवारों को कम दर पर संस्थागत ऋण उपलब्ध कराने के प्रयास किए हैं। किसानों की इस प्रवृति के मध्य नजर, जो कि अधिकतर सीमान्त तथा छोटे किसान है,उनको आदान की खरीद के लिए ऋण को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। संस्थागत ऋण व्यापक रूप से दिए जा रहे हैं परन्तु इसके कार्यक्षेत्र को विशेषकर उन फसलों मे जो कि बीमा योजना के अंतर्गत् आती है, बढानें की जरूरत है। सीमान्त तथा लघु किसानों और अन्य पिछडे़ वर्ग को संस्थागत ऋण सही तरीके से उपलब्ध करवाना और उनके द्वारा नवीनतम तकनीकी तथा सुधरे कृषि तरीकों को अपनाना सरकार का मुख्य उद्वेश्य है। राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की मिटिंग में फसल विशेष ऋण योजना तैयार की है ताकि ऋण बहाव का जल्दी अनुश्रवण हो सके।
यह योजना पिछले बारह से तेरह वर्षों में बहुत ही सफल रही है। 2,061 से अधिक बैंक शाखाएं इस योजना को कार्यान्वित कर रही है। दिसम्बर, 2016 तक राज्य में 7.14 लाख किसान क्रेडिट कार्ड बैंेकों द्वारा जारी किए गए।
सभी फसलों तथा सभी किसानों को बीमा योजना के अंतर्गत् लाने के लिए सरकार ने राज्य में वर्ष 1999-2000 के रबी मौसम से ‘राष्ट्र्ीय कृषि बीमा योजना‘ शुरू की। अब राज्य में कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी प्रशासनिक अनुमोदन एवं दिशा निर्देशों के अनुसार खरीफ मौसम, 2016 से प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई है। इस बीमा योजना के अंतर्गत् खरीफ मौसम के दौरान मक्का तथा धान की फसलों को शामिल किया गया है। फसलों के नुकसान के विभिन्न अग्रणी जोखिम जो बुआई में देरी, कटाई के बाद नुकसान, स्थानीय आपदाओं और खड़ी फसलों को नुकसान (बुआई से कटाई तक) के कारण पैदा होते हैं, इस योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है। यह योजना ऋणी किसानों के लिए जो कि बैंकों और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों से बीमित फसलों के अंतर्गत् फसल ऋण का लाभ ले रहे हैं आवश्यक है तथा गैर ऋणी किसानों के लिए उनकी मर्जी पर आधारित है। पी0 एम0एफ0ब0 वाई0 योजना के अंतर्गत 350 प्रतिशत से अधिक एकत्रित प्रीमीयम राशि अथवा 35 प्रतिशत से अधिक बीमाकृत राशि, जो भी राष्ट्््रीय स्तर पर सभी कम्पनियों को मिलाकर, अधिक हो उसके लिए केन्द्र तथा राज्य सरकार बराबर भागीदारी में भुगतान करेगी। कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा एक अन्य कृषि बीमा योजना खरीफ मौसम, 2016 से श्पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना शुरु की है। इस योजना के अंतर्गत खरीफ 2016 मौसम के दौरान चार फसलों आलू, अदरक, टमाटर तथा मटर को सम्मिलित किया गया है ताकि किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ बीमा सुरक्षा प्रदान की जा सके जो कि खरीफ खेती के दौरान फसलों को बुरी तरह से प्रभावित करती हंै। अब तक रबी मौसम 2016-17 के दौरान 2.33 लाख किसान तथा 82,146 हैक्टेयर क्षेत्र इस योजना के अंतर्गत् शामिल किया जा चुका है। इस योजना के अंतर्गत ृ400.00 करोड़ रुपये का बजट परिव्यय 2017-18 के लिए प्रस्तावित किया गया है।
बीज प्रमाणीकरण : कृषि मौसमीय स्थिति राज्य में बीज उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त है। बीज की गुणवता को बनाए रखने के लिए तथा उत्पादकों को बीज की कीमतें उपलब्ध कराने के लिए बीज प्रमाणीकरण योजना को अधिक महत्व दिया गया। राज्य के विभिन्न भागों में बीज उत्पादन तथा उनके उत्पादन के प्रमाणीकरण के लिए श्हिमाचल राज्य बीज रासायनिक खाद उत्पाद प्रमाणीकरण एजैंसीश् उत्पादकों को पंजीकृत कर रही है।
कृषि विपणन तथा कृषि उत्पादन को राज्य में व्यवस्थित करने के लिए हिमाचल प्रदेश कृषि वानिकी उत्पादन विपणन एक्ट, 2005 लागू किया गया। इस एक्ट के अंतर्गत राज्य स्तर पर हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड की स्थापना की गई। सारा हिमाचल प्रदेश 10 अधिसुचित विपणन क्षेत्रों में बांटा गया है। इसका मुख्य उद्देेश्य कृषक समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित रखना है। व्यवस्थित स्थापित मण्डियां किसानों को लाभदायक सेवाएं उपलब्ध करवा रही है। सोलन में कृषि उत्पादों हेतू एक आधुनिक मण्डी ने कार्य प्रारम्भ कर दिया है तथा अन्य स्थानों पर भी मार्किट यार्डों का निर्माण हुआ है। वर्तमान में 10 मार्किट कमेटियां कार्य कर रही हैं 55 मण्डियों को कार्यात्मक बनाया गया है। किसानों के हित के लिए मार्किट फीस भी 2 प्रतिशत से घटाकर 1 प्रतिशत कर दी गई।
चाय विकास :चाय उत्पादन के अन्तर्गत् 2,310 हैक्टेयर क्षेत्र है जिसमें वर्ष 2015-16 के दौरान 8.6 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ। अनुसूचित जाति के चाय पैदावार करने वालों को कृषि औजारों पर 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से बाजार में गिरावट की वजह से चाय उद्योग पर विपरीत असर पड़ा है। उत्पादकों को चाय उत्पादन के अच्छे दाम उपलब्ध करवाने के लिए प्रदर्शन एवम् नतीजों पर बल दिया जा रहा है।
कृशि का मषीनीकरण :इस योजना के अन्तर्गत किसानों में नए कृषि औजार/ मशीनों को लोकप्रिय बनाया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत नई मशीनों का परीक्षण किया गया। विभाग का प्रस्ताव पहाड़ी स्थिति के अनुकूल छोटे ईंधन से चलने वाले हल एवं औजार को लोकप्रिय बनाने का है।
प्रमुख फसलों का उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा समय पर पर्याप्त मात्रा में उन्नत किस्मों के बीज किसानों को उपलब्ध न होना है। इस बाधा से मुक्त होने हेतु भारत सरकार द्वारा चलाए गए नवीन कार्यक्रम जिसे “बीज ग्राम कार्यक्रम” के रूप में जाना जाता है, शुरू कर दिया गया है। इस कार्यक्रम से बेहतर प्रजातियों के बीज उत्पादन, कम समय व स्थानीय स्तर पर कम लागत पर उपलब्ध करवाना है। इस कार्यक्रम के तहत बेहतर बीज उत्पादन क्षेत्रों की पहचान की जाएगी और 50 से 150 उपयुक्त इच्छुक किसानों को एक ही फसल हेतु सुसम्बद्ध क्षेत्र में पहचान की जाएगी। पहचान किए गए किसानों को 50 प्रतिशत लागत पर प्रमाणित बीज उपलब्ध कराया जाएगा। बीज प्रत्येक किसान को आधा हैक्टेयर हेतु दिये जाएगें। चयनित किसानों को बीज उत्पादन और बीज तकनीकों का प्रशिक्षण बीज ग्राम में ही दिया जाएगा।
भौगोलिक परिस्थितियों के मध्यनजर हमारी भूमि में कटाव इत्यादि आ जाता है। जिस के कारण हमारी भूमि का स्तर गिर जाता है। इस के अलावा भूमि पर जैविक दबाव है। विशेष रूप से कृषि भूमि पर इस प्रक्रिया को रोक लगाने हेतु विभाग द्वारा राज्य सैक्टर के अन्तर्गत दो योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। यह योजनाएं हैंः-
i) भू संरक्षण कार्य
ii) जल संरक्षण और विकास. कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जल संरक्षण और लघु सिंचाई योजनाओं को प्राथमिकता दी गई है। विभाग द्वारा वर्षा जल संचयन के लिए टैंक, तालाब, चैक डैम व भण्डार संरचनाओं के निर्माण हेतु योजना तैयार की है। इस के अलावा कम पानी उठाने वाले उपकरण व फव्वारों के माध्यम से कुशल सिंचाई प्रणाली को भी लोकप्रिय किया जा रहा है। इन परियोजनाओं से भू संरक्षण एवम् जल संरक्षण तथा कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर अर्जित करने पर अधिक जोेर दिया जाएगा।
डा0 वाई0 एस0 परमार किसान स्वरोजगार योजना : कृषि विभाग ने कृषि क्षेत्र में अधिक व शीघ्र विकास हेतु नकदी फसलों का उत्पादन पौली गृह के द्वारा खेती करने के लिए डा. वाई.एस.परमार किसान स्वरोजगार योजना बनाई है। इस परियोजना का उद्देेश्य जरूरत के हिसाब से संसाधनांे की रचना एवं विभिन्न लक्ष्य जैसे अधिक पैदावार, गुणवता, विपरीत मौसम के लिए वचाव व कुशल आदानांे का प्रयोग शामिल है। इसके साथ-साथ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से ऐसे पाॅली हाऊस विकसित करना जिसमें सुक्ष्म सिंचाई सुविधा भी उपलब्ध हो। इस परियोजना के तहत किसानों को 85 प्रतिशत सहायता प्रदान की जायेगी। इसके अलावा किसानों के समूह को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से जल स्रोतों (कम/मध्यम लिफ्ट, पम्ंिपंग मशीनरी) के निर्माण के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाएगी।

राष्ट्रीय कृशि विकास योजना कृषि एवं इसके साथ जुड़े क्षेत्रों की धीमी विकास दर को देखते हुए भारत सरकार ने राष्ट््र्रीय कृषि विकास योजना प्रारम्भ की है। इसके अंतर्गत 4 प्रतिशत की वार्षिक विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य है। पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत् कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्रों के सम्पूर्ण विकास हेतू उद्देश्य निम्न प्रकार से हैंः-
1) राज्य को प्रोत्साहन देना ताकि कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश हो।
2) राज्यों को कृषि एवम् समवर्गी क्षेत्र योजना के लिए योजनाएं बनाने तथा कार्यान्वयन करने के लिए लचीलापन और स्वतन्त्रता देना।
3) कृषि संबंधी योजनाओं को राज्य तथा जिलों के लिए कृषि जलवायु प्रभाव तथा तकनीकी और प्राकृतिक स्त्रोत में सुविधा सुनिश्चित करना।
4) राज्यों द्वारा कृषि योजनाओं में स्थानीय जरूरतें/ फसलें/ प्राथमिकताएं भली-भांति प्रकार से व्यक्त हो, यह सुनिश्चित करना।
5) सरकारी हस्तक्षेप से महत्वपूर्ण फसलों के उत्पादन दर में अंतर को दूर करने का लक्ष्य प्राप्त करना।
6)किसानों को कृषि और संबंधित क्षेत्रों में अधिकतम प्राप्ति का लक्ष्य।
7) उत्पादन व उत्पादकता में गुणात्मक बदलाव लाने के लिए विभिन्न घटकों का कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों में सम्पूर्ण रूप से बताया जाना।
भारत सरकार ने कृषि विकास को बढ़ावा देने के लिए, जिसमें बागवानी, पशुपालन, मत्स्य व ग्रामीण विकास भी शामिल है के लिए धन आवंटित किया है। वर्ष 2016-17 के लिए कृषि विभाग हेतू 46.60 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है यद्यपि वर्ष 2016-17 के लिए ृ25.09 करोड़ की परियोजनाएं एस0एल0एस0सी0 द्वारा आ0के0वी0वाई0 के अंतर्गत अनुमोदित है।
12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कृषि विस्तार एंव प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय मिशन (छड।म्ज्) के अन्तर्गत् तकनीक की प्रसार प्रणाली किसान आधारित बनाने के लिए शुरू की गई है। इस मिशन को चार उप-मिशन में विभाजित किया गया है।
1) कृषि विस्तार उप-मिशन (ै।डम्)
2) बीज एंव रोपण सामग्री उप-मिशन(ैडैच्)
3) कृषि यंत्रीेकरण उप-मिशन(ैड।ड)
4) पौध सरंक्षण एव पादप संगरोध (ैडच्च्)
इस नये घटक के अन्तर्गत केन्द्र और राज्य 90ः10 के अनुपात पर व्यय करेंगे। वर्ष 2016-17 के लिए ृ200.00 लाख के परिव्यय का अनुमान है। वर्ष 2017-18 के लिए ृ250.00 लाख इस मिशन के अंतर्गत प्रस्तावित है।
सतत कृषि उत्पादकता और गुणवता, मिट्टी और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। कृषि विकास को निरन्तर बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त स्थान पर विशिष्ट उपायों के माध्यम से दुर्लभ प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण किया जा सकता है। राज्य में खाद्यान के लिए बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बारिश पर निर्भर कृषि के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सरंक्षण महत्वपूर्ण है। वर्षा ंिसचिंत क्षे़त्रों में सतत कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एन.एम.एस.ए. का गठन किया गया है। इस मिशन के तहत मुख्य मद््दे है।
इस मिशन के तहत मुख्य वितरण योग्य हैं:
1) बारिश पर निर्भर कृषि का विकास करना ।
2) प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन।
3) जल उपयोग दक्षता बढ़ाना।
4) मिट्टी के गुणवत्ता में सुधार।
5) संरक्षण कृषि को बढ़ावा देना।
यह एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है और घटक 90 :10 के अनुपात में क्रमश केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा वहन होगा। वर्ष 2016-17 के दौरान ृ200.00 लाख का अनुमान है तथा ृ200.00 लाख का ही परिव्यय वर्ष 2017-18 के लिए प्रस्तावित किया गया है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना चावल, गेहूं और दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है। यह योजना वर्ष 2012 में रबी सीजन के दौरान प्रदेश में शुरू की गई है। इसके दो मुख्य घटक एन.एफ.एस.एम.चावल और एन.एफ.एस.एम. गेहूं है। केन्द्रीय सरकार की 100 प्रतिशत सहायता से एन.एस.एफ.एम. चावल राज्य के 3 जिलों में तथा एन.एस.एफ.एम. गेंहू 9 जिलों में कार्य कर रही है। योजना का मुख्य उद्देश्य चावल और गेहूं के उत्पादन को बढ़ाना तथा मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता, रचनात्मकता तथा रोजगार के अवसर लक्षित जिलों में अर्जित करना है। वर्ष 2016-17 के लिए ृ159.00 के व्यय का अनुमान है तथा वर्ष 2017-18 के लिए 165.00 लाख का परिव्यय प्रस्तावित किया गया है।
प्रधान मन्त्री कृषि सिंचाई योजना : कृषि उत्पादकता में सुधार करने के प्रयास में भारत सरकार ने एक नई योजना “प्रधान मन्त्री कृषि सिंचाई योजना“ के नाम से शुरू की है। इस योजना के अन्तर्गत सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं (हर खेत को पानी) और अन्त से अन्त तक सिंचाई समाधान पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। पी.एम.के.एस.वाई. का मुख्य लक्ष्य क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश के अभिसरण प्राप्त करना, सुनिश्चित सिंचाई के अन्तर्गत कृषि योग्य क्षेत्र का विकास करना, खेत में सिंचाई की विधि में सुधार करना ताकि पानी के अपव्यय को कम किया जा सके, स्टीक सिंचाई एवम् पानी की अन्य बचत तकनीकें शामिल है। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2017-18 के लिए राज्य में ृ2.00 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
राजीव गान्धी सूक्ष्म सिंचाई योजना : राज्य सरकार फसलों को उत्पादकता में वृद्वि से राज्य में कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्व है। कुशल सिंचाई प्रणाली के लिए सरकार ने राज्य में एक महत्वपूर्ण परियोजना “राजीव गान्धी सूक्ष्म सिंचाई योजना“ का शुभारम्भ किया है। 2015-16 से 2018-19 के शुरू में 4 साल की अवधि के लिए ृ154 करोड़ के परिव्यय का प्रावधान रखा है। इस परियोजना के अन्तर्गत 8,500 हैक्टेयर क्षेत्र ड््िरप/ छिड़काव सिंचाई प्रणाली के तहत लाया जाएगा तथा 14,000 किसानों को लाभान्वित करने का लक्ष्य है। ड््िरप, माईक्रो, छोटे पोर्टेवल छिड़काव, अर्ध-स्थायी छिड़काव और बड़ी मात्रा में छिड़काव के लिए 80 प्रतिशत की दर पर और पानी के स्त्रोतों की वृद्वि के लिए 50 प्रतिशत अनुदान किसानों को उपलब्ध करवाया जाएगा। वर्ष 2015-16 के दौरान इस योजना के अन्तर्गत 296.88 हैक्टेयर क्षेत्र को लाकर 344 किसानों को लाभान्वित किया गया। वर्ष 2016-17 के लिए इस घटक के अन्तर्गत ृ10 करोड़ के बजट का प्रावधान है तथा वर्ष 2017-18 के लिए भी ृ10 करोड़ का ही बजट प्रस्तावित है।
उत्तम चारा उत्पादन योजना : राज्य में चारे के उत्पादन को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने “उत्तम चारा उत्पादन योजना“ शुरू की है जिसके अन्तर्गत 25,000 हैक्टेयर क्षेत्र लाया गया है। इस योजना के अन्तर्गत किसानों को रियायती दरों पर उत्तम घास बीज कलमें तथा उत्तम गुणवता के चारे को किस्मांें में सुधार के बीज की आपूर्ति की जाएगी। भूूसा कटर पर अनुदान अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति और बी.पी.एल. किसानों को उपलब्ध है। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2017-18 के लिए ृ6.00 करोड़ का प्रावधान प्रस्तावित है।
हिमाचल प्रदेश की विविध जलवायु, भौगोलिक क्षेत्र तथा उसकी स्थिति में भिन्नता, उपजाऊ, गहन तथा उचित जल निकास व्यवस्था वाली भूमि समशीतोष्ण तथा ऊष्ण कटिबन्धीय फलों की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है । यह क्षेत्र अन्य गौण उद्यान उत्पादन जैसे फूल, खुम्ब, शहद तथा हाॅप्स की खेती के लिए भी बहुत उपयुक्त है।
प्रदेश की इस अनुकूल स्थिति के परिणामस्वरूप पिछले कुछ दशकों मेें भूमि उपयोग अब कृषि से फलोत्पादन की ओर स्थानान्तरित होता जा रहा है। वर्ष 1950-51 में फलों के अधीन कुल क्षेत्र 792 हैक्टेयर था जिसमें कुल उत्पादन 1,200 टन होता था अब यह बढ़ कर वर्ष 2015-16 में 2,26,799 हैक्टेयर क्षेत्र हो गया तथा कुल फल उत्पादन 9.29 लाख टन हुआ तथा वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक कुल फल उत्पादन 5.10 लाख टन आंका गया है।
2016-17 में 3,000 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को फल पौधों के अंतर्गत लाने के लक्ष्य की तुलना में 31 दिसम्बर, 2016 तक 2,816.72 हैक्टेयर क्षेत्र को पौधरोपण के अंतर्गत लाया गया तथा विभिन्न फलों के 7.53 लाख पौधे वितरित किए गए।
हिमाचल प्रदेश में फलोत्पादन में सेब का प्रमुख स्थान है जिसके अंतर्गत फलों के अधीन कुल क्षेत्र का लगभग 49 प्रतिशत है तथा उत्पादन कुल फल उत्पादन का लगभग 84 प्रतिशत है।
वर्ष 1950-51 में सेबों के अंतर्गत 400 हैक्टेयर क्षेत्र था जो कि 1960-61 में बढ़कर 3,025 हैक्टेयर तथा वर्ष 2015-16में 1,10,679 हैक्टेयर हो गया।
सेब के अतिरिक्त समशीतोषण फलों के अंतर्गत वर्ष 1960-61 में 900 हैक्टेयर क्षेत्र से बढ़कर 2015-16 में 27,908 हैक्टेयर हो गया। सूखे फल तथा मेवों का क्षेत्र 1960-61 के 231 हैक्टेयर से बढ़कर 2015-16 में 10,491 हैक्टेयर हो गया तथा नीम्बू प्रजाति एवं उपोषण कटिबंधीय फलों का क्षेत्र वर्ष 1960-61 के 1,225 हैक्टेयर तथा 623 हैक्टेयर से बढ़कर 2015-16 में क्रमशः 24,063 हैक्टेयर तथा 53,658 हैक्टेयर हो गया।
प्रतिकूल मौसम व बाजार में आने वाले उतार चढ़ाव के कारण सेब उत्पादन मेें आ रही अस्थिरता विकास की गति में बाधक हो रही है। विश्व व्यापार संगठन व जी.ए.टी.टी. तथा अर्थ-व्यवस्था के उदारीकरण के परिणामस्वरूप भी हिमाचल प्रदेश मंे सेब को फल उद्योग में प्रभुता पर अपना स्थान बनाये रखने में कई चुनौतियां पेश आ रही हैै। गत कुछ वर्षों से सेब उत्पादन में आ रहे निरन्तर उतार चढ़ाव से सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। प्रदेश के विशाल फलोत्पादन क्षमता के पूर्ण दोहन के लिए अब विभिन्न कृषि पारिस्थितक क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के फलोें के उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

फल-उद्यान विकास योजनाओं का मुख्य उद्देेश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विकास तथा रख-रखाव में निवेश करके सभी फल फसलों को बढ़ावा देना है। इस परियोजना के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम जैसे फलोत्पादन विकास कार्यक्रम, क्षेत्रविस्तार कार्यक्रम, नई तकनीकों की जानकारी एवं अच्छी प्रवृतियों को बढ़ावा देकर विभिन्न फसलों जैसे अखरोट, हैजलनट, पिस्ता, आम, लीची, स्ट्रावेरी तथा जैतून को विकसित किया जा रहा है।
मण्डी मध्यस्थ योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 में सेब, आम तथा नीम्बू प्रजाति के फलों के प्रापण मूल्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह प्रापण मूल्य पिछले वर्ष की भांति ही रखा गया है। इस योजना के अंतर्गत बागवानांे से ृ10.52 करोड़ मूल्य का 16,177.420 मी0टन ”सी“ श्रेणी सेब का प्रापण किया गया। आम मण्डी मध्यस्थता योजना के अन्तर्गत सिडलिंग तथा ग्राफटिंग आम का कुल प्रापण 2.78 मी0 टन किया गया जिसका कुल मूल्य ृ17,930 है। नीम्बू प्रजाति के फलों हेतू मण्डी मघ्यस्थ योजना के अन्तर्गत माह दिसम्बर, 2016 तक 1.56 मी0टन गलगल का प्रापण किया गया जिसका कुल मूल्य ृ7,800 है।
प्रदेश के गर्म क्षेत्रों में आम एक मुख्य फसल के रूप में उभरा है। कुछ क्षेत्रों में लीची भी महत्व प्राप्त कर रही है। आम तथा लीची की बाजार में बेहतर कीमतें मिल रहीं है। मध्यम ऊंॅंचाई वाले क्षेत्रों में नए फलों जैसे किवी, जैतून, पीकैन, अनार तथा स्ट्र्ाबैरी की खेती लोकप्रिय हो रही है। पिछले तीन वर्षों तथा चालू वित्तवर्ष के माह दिसम्बर, 2016 तक के फल उत्पादन आंकड़े सारणी 7.9 में दर्शाए गए हंै।
फल उत्पादकों को उतम गुणवत्ता की पैकिंग उपलब्ध करवाने एवं सेब के विभिन्न ग्रेडों हेतू प्रदेश सरकार द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 04.04.2015 जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि स्टैण्डर्ड (पूरा बक्सा) एवं स्टैण्डर्ड (हाॅफ बक्सा) बक्से हेतू अधिकतम भार क्रमशः 24 कि.गा्र. व 12 कि.ग्रा. मान्य होगा।
प्रदेश में बागवानी उद्योग में विविधता लाने हेतु 31.12.2016 तक 79.69 हैक्टेयर क्षेत्र पुष्प खेती के अन्र्तगत लाया गया है। पुष्प खेती को बढ़ावा देने हेतु दो टिशू कल्चर प्रयोगशालाएं, आर्दश पुष्प केन्द्रों महोगबाग, (चायल जिला सोलन) तथा पालमपुर जिला कांगड़ा में स्थापित की गई है। फूलों के उत्पादन तथा विपणन हेतु प्रदेश में चार किसान को-ओपरेटिव सोसाईटियां जिला शिमला, कांगड़ा, लाहौल-स्पिति तथा चम्बा में कार्य कर रही है। प्रदेश में खुम्ब उत्पाद एवं मौन पालन जैसी सहायक उद्यान गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक चम्बाघाट, बजौरा तथा पालमपुर स्थित विभागीय खुम्ब विकास परियोजनाओं में 435.07 मी0 टन पास्चूराईजड खाद तैयार कर खुम्ब उत्पादकों को बांटी गई। प्रदेश में 31 दिसम्बर, 2016 तक कुल 5,103.00 मी0टन खुम्ब उत्पादन हुआ। इसके अतिरिक्त वर्ष 2016-17 में 31 दिसम्बर, 2016 तक प्रदेश मे 263.80 मी0टन शहद का भी उत्पादन हुआ।
हिमाचल प्रदेश में मौसम आधारित फसल बीमा योजना को रबी सीजन वर्ष 2009-10 में 6 विकास खण्डों में सेब फसल के लिए तथा 4 विकास खण्डों में आम फसल हेतु लागू किया गया था। इस योजना कीे लोकप्रियता केे दृष्टिगत अगले वर्षो में इस योजना का दायरा बढ़ाया गया। वर्ष 2016-17 में 36 विकास खण्डों में सेब फसल के लिए, 41 विकास खण्डों में आम फसल के लिए, 15 विकास खण्डों में किन्नू फसल के लिए, 13 विकास खण्डों में पलम फसल के लिए तथा 5 विकास खण्डों में आड़ू फसल के लिए इस परियोजना के अन्तर्गत् लाया गया। इसके अतिरिक्त सेब की फसल को ओलावृष्टि से होने वाली क्षतिपूर्ति के लिए बीमा हेतु 19 विकास खण्डों को ।कक.वद बवअमत के अंतर्गत लाया गया हैै। वर्ष 2015-16 में 1,00,493 बागवानों को मौसम आधारित फसल बीमा योजना में सेब फसल के लिए सम्मिलित किया गया है जिनके द्वारा 71,22,283 पेड़ों को बीमित किया गया जिसके लिए 25 प्रतिशत प्रीमियम भाग लगभग ृ9.14 करोड़ राज्य सरकार द्वारा वहन किये गए।
प्रदेश में बागवानी के समेकित विकास हेतु केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं श्डप्ैैप्व्छ थ्व्त् प्छज्म्ळत्।ज्म्क् क्म्टम्स्व्च्डम्छज् व्थ् भ्व्त्ज्प्ब्न्स्ज्न्त्म्श्ए ;डप्क्भ्द्ध के अन्तर्गत राष्ट््रीय कृषि विकास योजना तथा प्रधानमन्त्री कृषि सिंचाई योजना प्रदेश में चलाई जा रही है। इन योजनाओं के अन्र्तगत बागवानी फल फसलों के उत्पादन, आधारभूत अधोसंरचना के सुदृढ़ीकरण तथा सिंचाई सुविधाओं में विकास हेतु अनेक विकासात्मक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। वर्ष 2016-17 में इन केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं के कार्यन्वयन हेतु ृ35.56 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है जिसमें से दिसम्बर, 2016 तक ृ14.79 करोड़ की राशि प्राप्त कर ली गई है। इन योजनाओं के अन्र्तगत वर्ष 2003-04 से माह दिसम्बर, 2016 तक 2,26 लाख किसान लाभान्वित किये गए हैं। वर्ष 2016-17 में इन योजनाओं में फूलों तथा सब्जियांे की संरक्षित खेती को बढ़ावा देने हेतु उपदान 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 85 प्रतिशत कर दिया गया है तथा 1.10 लाख वर्ग मी. क्षेत्र ग्रीन हाऊस के अंतर्गत लाया जाना लक्षित है। वर्ष 2016-17 में बागवानी फल फसलों में विशेषकर सेब को ओलावृष्टि से बचाने के लिए ओलारोधक जालियों पर उपलब्ध 50 प्रतिशत उपदान को बढ़ाकर 80 प्रतिशत कर दिया गया है तथा 14 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र को ओलारोधक जालियों के अन्र्तगत लाया जाना लक्षित है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत सेब के लिए जीर्णाेंद्वार योजना चलाई जा रही है जिसमें पुराने बगीचों को जीर्णाेंद्वार करके नई, उन्नत तथा लगातार फसल देने वाली स्पर प्रजातियों के रोपण पर विशेष बल दिया जा रहा है। सुक्ष्म सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक 659 हेक्टेयर क्षेत्रफल प्रधान मन्त्री कृषि सिंचाई योजना के अन्र्तगत लाया गया है। इसके अतिरिक्त बगीचों में सिंचाई प्रबन्धन व्यवस्था सुदृढ़ करने हेतू जल भण्डारण टैंकों, बोरवेल की स्थापना भी प्रदेश में की जा रही है।
एच.पी.एम.सी. राज्य का एक सार्वजनिक उपक्रम है जिसकी स्थापना ताजे फलों व सब्जियों के विपणन, अतिरिक्त उत्पादन जो बाजार तक नहीं पहुंच सका, उनसे विधायन तथा तैयार किए गए उत्पादों के विपणन के उद्वेश्य से की गई है। एच.पी.एम.सी. आरम्भ से ही बागवानों को उनके उत्पादन की लाभप्रद प्राप्तियां उपलब्ध करवाने में मुख्य भूमिका निभा रहा है।
वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक एच.पी.एम.सी. ने ृ4,133.55 लाख के उत्पाद, ृ9,117.00 लाख के लक्ष्य की तुलना में अपने संयंत्रों से तैयार करके घरेलू बाजार में बेचा। मण्डी मध्यस्थ योजना के अन्तर्गत हि0प्र0 सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान आम, सेब और नीम्बू प्रजाति के फलों के लिए समर्थन मूल्य जारी रखा, जो निम्न प्रकार से हैंः-
मण्डी मध्यस्थ योजना ;डप्ै 2016) के अंतर्गत एच.पी.एम.सी. ने 8,336.93 मी.टन (प्रत्येक 35 कि.ग्रा. के 2,38,198 बैग) सेबों की खरीद की इसके अतिरिक्त एच.पी.एम.सी. सयंत्रों में 6,128.19 मी.टन सी ग्रेड सेब प्रोसेस किया जिसमें से 551.00 मी0टन का सेब कन्सैन्ट्र्ैट जूस तैयार किया गया। वित वर्ष 2016-17 में निगम आमों की खरीद नहीं कर पाई क्योंकि बागवानों को खुले बाजार में अधिक दाम मिले। निगम ने 19.01.2017 तक 11.63 मी.टन नींबू प्रजाति के फलों की खरीद की जिसका प्रसंस्करण निगम के संयंत्रों मेें जारी है। एच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को प्रतिष्ठित खरीददारों को जिसमें रेलवे, उŸारी कमान मुख्यालय, उधमपुर, विभिन्न धार्मिक संस्थानों, निजी संस्थानों, मै0 पार्ले खुले बाजार और एच.पी.एम.सी. जूसबार के लिए भेज रही है। एच.पी.एम.सी. के द्वारा 392.27 मी.टन जूस ृ571.22 लाख में तथा अन्य उत्पाद ृ987.27 लाख में उपरोक्त संस्थानों को बेचा गया। एच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को आई.टी.डी.सी. के होटलों एवं संस्थानों को जो मेट्र्रो सिटिज दिल्ली, मुम्बई और चण्डीगढ़ में हैं लगातार भेज रही है। एच.पी.एम.सी.ने इन संस्थानों के लिए 31 दिसम्बर, 2016 तक ृ489.53 लाख के फल एवं सब्जियां भेजी हैं। इसी तरह एच.पी.एम.सी. ने 31 दिसम्बर, 2016 तक ृ507.89 लाख के विभिन्न सामान प्रदेश के फल उत्पादकों को बेचे हैं। निगम को दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, परवाणु तथा प्रदेश सेब उत्पादक क्षेत्र में स्थित 5 सी.ए. भण्डार गृहों से ृ663.34 लाख राजस्व के रूप में प्राप्त हुए। निगम ने दिसम्बर, 2016 तक ृ26.22 लाख फलों का व्यापार किया और ृ346.18 लाख कर लाभ अर्जित किया जिसमें ट्रकों से, किराए से, आढ़त शामिल है इसके अतिरिक्त अन्य सामान की बिक्री जैसे पेयजल खेत आदान व अन्य कम्पनियों को कर अदायगी शामिल है।
निगम ने एपेडा, वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार से ृ3,949.95 लाख तकनीकी उन्नतिकरण हेतु सहायता अनुदान स्वीकृत कराने में सफल हुआ। यह सहायता अनुदान निम्न परियोजनाओं हेतु प्राप्त हुआ है:-
1) ग्रेडिंग व पैंकिंग गृह जरोल टिक्कर, (कोटगढ),गुम्मा (कोटखाई), ओडी (कुमारसैन), पतलीकुहल (कुल्लू), तथा रिंकांगपियो (किन्नौर) के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता ृ797.30 लाख उपरोक्त ईकाइयों के लिए उन्नतिकरण किया।
2) वातानुकुलित सी.ए. स्टोर, गुम्मा (कोटखाई) व जरोल टिक्कर (कोटगढ़) जिला शिमला के लिए ृ1,009.00 लाख।
3) नादौन (हमीरपुर) पैक हाउस व कोल्ड रुम प्रोजक्ट के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता ृ353.42 लाख।
4) घुमारवी जिला बिलासपुर में फलों की पैकिंग व गे्रडिंग के लिए व फलों व सब्जियों तथा जड़ी बुटियों की वातानुकुलित स्टोरेज के लिए पैकिंग व ग्रेडिंग हाउस व कोल्ड रुम के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायत ृ435.08 लाख।
5) एच पीएम सी फल विधायन संयंत्र, परवाणू में स्थित जुसों की टैट्रा पैकिंग के लिए टी.बी.ए.-9 टी.वी.ए.-19 में परिवर्तित करने के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता ृ355.15 लाख।
6) सरकार ने एच.पी.एम.सी. के फल विधायन संयंत्र परवाणू का उन्नतिकरण तथा आधुनिकीकरण करने के लिए ृ10 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है जिसकी प्रक्रिया शुरु कर दी गई है। इसके आलावा एच0पी0एम0सी0 ने गत वर्ष हि0प्र0 सरकार व नाबार्ड से आर्थिक सहायता व लोन लेकर 700 मी0टन प्रति स्टोर की क्षमता वाले तीन स्टोर रोहड़ू, ओडी व पतली कुहल स्थित भण्डारों को शीत भण्डारों में परिवर्तित किया है, तथा इन सी0ए0 स्टोरो को प्राईवेट पार्टिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए लीज पर दिया है। निगम ने इन पर किए गए निवेश से लाभ अर्जित करना भी शुरू कर दिया है।इस सन्दर्भ में यह बताना भी उचित होगा कि एच0पी0एम0सी0 अपने सभी पैक हाउसों, शीत भण्डारों, सी0ए0 स्टोरों तथा फल विधायन सयंत्रों की अधोसंरचना को स्तरोन्नत करन कीे सोच रही है तथा इनके सीमावर्ती क्षेत्रों में सार्वजनिक एवम् निजी सांझेदारी के अन्तर्गत आधुनिक तकनीक सहित ग्रीन फील्ड परियोजनाओं का निर्माण करने की योजना बना रही है ताकि एक ओर किसान को लाभ मिल सके तथा दुसरी ओर निगम की आय में बढ़ौतरी हो सके। दिल्ली, मुम्बई तथा परवाणु स्थित शीत भण्डार एच0पी0एम0सी0की दुसरी सम्पत्तियां जो कि घाटे में चल रही हैं, उन्हें भी सुचारू रूप से चलाने के लिए प्राइवेट पार्टियों को लीज पर देने का विचार कर रही है।

8.पशुपालन और मत्स्य पालन

पशुधन विकास ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। हिमाचल प्रदेश में पशुधन एवं फसलों तथा सांझी सम्पति साधन जैसे वन, पानी, चरने योग्य भूमि में बहुत गहन सम्बन्ध है। पशु अधिकतर उस चारे जो कि सांझी सम्पति साधनों तथा फसलों व फसल अवशेषों से प्राप्त होती है पर निर्भर करते हैं। उसी प्रकार पशु सांझी सम्पति साधनों के लिए चारा व फसल अवशेष खाद के रूप प्रदान करते हैं जोकि सूखे के लिए अधिक आवश्यक शक्ति प्रदान करते है।
हिमाचल प्रदेश में पशुधन अर्थ-व्यवस्था को सुद्ृढ़ रखने में विशेष सहायक है। वर्ष 2015-16 में 12.83 लाख टन दूध, 1,411 टन ऊन, 81.17 मिलियन अंडे, 4,005 टन मांस का उत्पादन हुआ। वर्ष 2016-17 में 13.21 लाख टन दूध, 1,475 टन ऊन, 97.00 मिलियन अंडे तथा 4,130 टन मांस का उत्पादन होने की संभावना है। सारणी 8.1 दूध उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता को दर्शाती है।

ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को उभारने में पशु पालन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तथा राज्य में पशुधन विकास कार्यक्रम केे तहत निम्न पर ध्यान दिया जा रहा है।
i) पद्ध पशु स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण।
ii) पपद्ध पशु विकास।
iii) पपपद्ध भेड़ प्रजनन तथा ऊन विकास।
iv) पअद्ध कुक्कट विकास।
v) पशु आहार व चारा विकास।
vi) अपद्ध पशु स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा।
vii) पशु गणना।.
वर्ष 31.12.2016 तक पशु स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य में 1 राज्य स्तरीय पशु-चिकित्सालय, 9 पोलीक्लीनिक, 48 उप-मण्डलीय-पशु-चिकित्सालय, 320 पशु-चिकित्सालय, 30 केन्द्रीय पशु औषधालय, तथा 1,773 पशु औषधालय हैं इसके इलावा 6 पशु निरीक्षण चैकियां हैं जो तुरन्त पशु चिकित्सा सहायता उपलब्ध करवाते हैं। मुख्यमंत्री आरोग्य पशुधन योजना के अन्तर्गत दिसम्बर, 2016 तक 1,251 पशु औषधालय खोले गए है।
राज्य में भेड़ व ऊन विकास हेतु सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म ज्यूरी ;शिमलाद्ध सरोल ;चम्बाद्ध, ताल ;हमीरपुरद्ध कड़छम ;किन्नौरद्ध द्वारा भेड़ पालकों को उन्नत किस्म की भेडंे़ प्रदान की जा रही है। एक नर मेढ़़ केन्द्र नगवाई मण्डी जिला में कार्यरत है जहां पर मेढ़ों का पालन तथा उन्नत किस्म के नर मेढ़ों को प्रजनन, क्राॅस ब्र्रीडिंग की सुविधा भेड़ पालकों को प्रदान की जाती है, वर्ष 2015-16 में इन प्रक्ष्ेात्रोंमें 1,962 भेडे़ं पाली गई और 449 नर मंेढ़े भेड़ पालकों में वितरित किए गए। प्रदेश में शुद्व नस्ल के मेंढ़ों, सोवियत मैरिनों तथा अमरिकन रैम्बूलैट की उपयोगिता को देखते हुए राजकीय प्रक्ष्ेात्रों पर शुद्व नस्ल से प्रजनन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त 9 भेड़ व ऊन प्रसार केन्द्र भी कार्यरत हैं। वर्ष 2016-17 के दौरान 1,475 टन ऊन के उत्पादन होने की सम्भावना हैं। खरगोशों के प्रजनन के लिए खरगोश प्रदान करने हेतु जिला कांगडा में कन्दबाड़ी तथा जिला मण्डी में नगर्वाइं में अंगोरा खरगोश फार्म कार्यरत हैं।
बैकयार्ड पोल्ट्री योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 में 3.60 लाख चूजों का वितरण होने की संभावना है तथा 720 कुक्कट पालकों को प्रशिक्षण का लक्ष्य है। इस स्कीम के अंतर्गत 6,178 परिवारों के लिए 2 लाख चूजे नवम्बर, 2016 तक बांटे गए। वर्ष 2016-17 में 200 चूजे की स्कीम के अंतर्गत 355 के लक्ष्य के मुकाबले में कुल 366 अनुसूचित जाति के लाभार्थियों को कुक्कट युनिट चलाने की सहायता की गई। जिला लाहौल-स्पिति के लरी नामक स्थान पर घोड़ा प्रजनन प्रक्षेत्र स्थापित किया गया है जिससे स्पिति नस्ल के घोड़ों की प्रजाति को संरक्षित रखा जा रहा है। वर्ष 2016-17 में ;31 दिसम्बर, 2016 तकद्ध इस प्रक्षेत्र में 46 घोड़े-घोड़ियों को रखा गया है। इसी भवन में याक प्रजनन प्रक्षेत्र भी हैं जहां पर वर्ष 2016-17में ;31 दिसम्बर, 2016 तकद्ध 55 याक भी पाले गए हैं। दाना व चारा योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 में 13.96 लाख चारा जड़ों 0.63 लाख चारा पौंधों के वितरण की संभावना है।
दुध गंगा योजना 25 सितम्बर, 2009 से नाबार्ड के सहयोग से चलाई जा रही है। इस योजना के मुख्य घटक निम्न प्रकार से हैंः-
1) छोटे डेयरी यूनिट स्थापित करना;एक यूनिट में 2 से 10 दुधारु पशुद्ध 10 पशुओं को खरीदने के लिए ृ6.00 लाख का बैंक ऋण का प्रावधान है।
2) दूध निकालने वाली मशीनों की खरीद व दूध ठण्डा करने की यूनिटों के लिए ृ20.00 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
3) देसी दूध उत्पादों के निर्माण के लिए व डेयरी प्रोसैसिंग उपकरणों के खरीद के लिए ृ13.20 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
4) डेयरी उत्पादों के परिवहन व कोल्डचेन के लिए ृ26.50 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
5) दूध व दूग्ध पदार्थो के कोल्ड स्टोरेज प्रावधान मुहैया करवाने के लिए ृ33.00 लाख बैंक ऋण का प्रावधान है।
6) दूध विपणन केन्द्रों हेतू 1.00 लाख रुपये बैंक ऋण का प्रावधान है।
सहायता का पैटर्नः-
i) कुल प्रोजैक्ट लागत का 25 प्रतिशत सामान्य श्रेणी व 33.33 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों को बैंक सम्भावित अनुदान का प्रावधान हैं।
ii) पपद्ध ृ1.00 लाख से अधिक ऋण राशि पर परियोजना लागत की 10 प्रतिशत राशि बैंक में जमा करवानी होगी।
राष्ट्रीय गोवंष प्रजनन एवं दुग्ध विकास योजना : राष्ट्रीय गोवंश प्रजनन एवं दुग्ध विकास योजना के अंर्तगत भारत सरकार (शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता) द्वारा कुल ृ23.87 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं तथा वर्ष 2016-17 में 5.71 करोड़ में जारी किए जा चुके हैं।परियोजना का उद्देश्य पशुपालन विभाग की निम्न गतिविधियों को सुदृढ़ बनाना हैः-
1) तरल नत्रजन के भण्डारण, यातायात और वितरण सुदृढ़ करना।
2) वीर्य एकत्रित केन्द्रों, वीर्य बैंकों और कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों को सुदृढ़ करना।
3) दूर-दराज क्षेत्रों में प्राकृतिक गर्भाधान एवं वीर्य एकत्रित केन्द्रों के लिए उच्च नस्ल के साण्डों का प्रबन्ध करना।
4) प्रशिक्षण सुविधाओं को सुदृढ़ बनाना।
5) ई.टी.टी.लैब को सुदृढ़ बनाना ।
6) स्थानीय नस्लों का विकास व संरक्षण।
आंगनबाड़ी कुक्कट पालन : हिमाचल प्रदेश में कुक्कट क्षेत्र के विकास के लिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश सरकार यह योजनाएं चला रही है। आंगनबाड़ी कुक्कट परियोजना के अन्तर्गत 4 सप्ताह के चूजे कलर्ड स्ट्ेन किस्म के जो कि चाबरों किस्म के हैं राज्य के किसानों को दिए जाते हैं। एक यूनिट में 40 से 100 चूजे होते हैंै। केन्द्रीय संचालित योजना ”राज्य के कुक्कट पालन सहायता” के अंतर्गत यह चूजे नाहन और सुन्दरनगर हैचरी में पैदा किए जाते हैं।
पषु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य को सहायता : पड़ोसी राज्यों से भारी संख्या में अन्तर्राज्यीय आवाजाही व पौष्टिक दाना चारा की कमी और पहाड़ी भौगोलिक स्थिति के कारण पशु विभिन्न पशु बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं । केन्द्रीय सरकार ने संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए राज्य सरकार को एस्काड स्कीम के अन्तर्गत सहायता प्रदान की है जिसमें 90 प्रतिशत भाग केन्द्रीय सरकार का तथा 10 प्रतिशत भाग राज्य सरकार का है। जिन रोगों के लिए मुफ्त टीकाकरण सुविधा प्रदान की जाती है उनमें मुंहखुर, एच0एस0बी0क्यू0 एन्टरोटोम्सेमिया, पीपीआर, रानीकाइट, मारक्स और रैबीज रोग इस परियोजना में सम्मिलित हैं।
यह केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम 2007-08 में शुरु की गई। इस स्कीम में प्रीमियम ृ330 प्रति वर्ष 100ः150ः80 आधार पर जीवन बीमा निगम, भारत सरकार व गडरिया वहन करेगा।
भेड़पालकों को मिलने वाले लाभ:
1) प्राकृतिक तौर पर मृत्यु ृ 60,000
2) दुर्घटना से मृत्यु ृ1,50,000
3) दुर्घटना से पूर्णतयाः अपंगता ृ1,50,000
4) दो आंखें या दो हाथ- पांव की अपंगता ृ1,50,000
5)एक आंख या एक हाथ -पांव की अपंगता ृ 75,000
इसके अलावा इस योजना में शामिल होने पर भेड़ पालक को एक मुश्त लाभ, जिसे एड आॅन बेनिफिट कहा जाता है, मिलता है। इसमें भेड़पालक के दो बच्चों को 9वीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक पढ़ने के लिएृ1,200 वार्षिक वजीफा मिलता है।
हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ राज्य में डेरी विकास कार्यक्रम चला रही है। दूध संघ में 895 दुध उत्पादक सहकारी समितियां हैं। इन समितियों के सदस्यों की कुल संख्या 42,000 है जिसमें 200 महिला डेरी सहकारी समितियां भी कार्यरत हंै। डेरी सहकारी समितियों द्वारा दुग्ध उत्पादकों से गांवों का अतिरिक्त दूध एकत्रित किया जाता है तथा दुग्ध संघ इसे बाजार में उपलब्ध करवाता है। वर्तमान में दुग्ध संघ 23 दुग्ध अभिशीतल केंद्र चला रही है जिनकी कुल क्षमता 96,500 लीटर दूध प्रतिदिन है और 9 दुग्ध प्रसंस्करण प्लांट जिनकी कुल क्षमता 90,000 लीटर दूध प्रतिदिन है तथा 5 मीट््िरक टन प्रतिदिन की क्षमता वाला एक मिल्क पाउडर प्लांट दत्तनगर, जिला शिमला में कार्यरत है। और एक 16 मीट््िरक टन प्रतिदिन क्षमता वाला पशु आहार संयंत्र भी भौर, जिला हमीरपुर में स्थापित किया गया है। इस वर्ष मिल्कफैड रोजाना औसतन 63,000 लीटर दूध प्रतिदिन ग्राम डेरी समितियों द्वारा गांवों से एकत्रित कर रही है। हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ प्रतिदिन लगभग 24,000 लीटर दूध की आपूर्ति कर रहा है जिसमें प्रतिष्ठित डेरीयों केा थोक मात्रा में तथा सैनिक युनिट डगशाई, शिमला, पालमपुर और योल भी शामिल हैं। दुग्ध को ठण्डे करने वाले केन्द्रों से दुग्ध को इक्ट्ठा करके इसे प्लांट में भेजा जाता है जहां से इसे प्रसंस्कृत करके पैकेट व खुला बिकने के लिए बाजार में भेजा जाता है।
हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड ग्रामीण क्षेत्रों में संगोष्ठियां व कैम्प लगाकर ग्रामीणों को डेरी के क्षेत्र में तकनीकी जानकारी से भी जागरूक करवाती है। इसके इलावा किसानों के घर द्वार पर, पशु-चारे व साफ दुग्ध उत्पादन की क्रिया से भी अवगत करवाती है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने 01ण्04ण्2016से दुग्ध के मूल्य में ृ1.00 प्रति लीटर की वृद्वि करके 42,000 परिवारों को सीधा वित्तीय लाभ पहुंचाया है जोकि हि0प्र0 दुग्ध संघ से जुड़े हैं।
विकासात्मक प्रयत् : अतिरिक्त दूध को उचित रूप से उपयोग करने हेतु, राजस्व को बढ़ाने हेतु तथा हानि को कम करने के लिए हिमाचल प्रदेश, दुग्ध संघ ने नीचे दिए हुए विकासात्मक कार्यक्रम आरम्भ किए हैंः-
1) 5,000 लीटर की क्षमता वाले तीन नए दुग्ध अभिशीतन केन्द्र रिकांग- पिओ, जिला किन्नौर, नालागढ़, जिला सोलन व जंगलबैरी, जिला हमीरपुर में लगाए गए हैं।
2) जिला हमीरपुर की भौरंज तहसील के भौर में दो नए संयंत्र श्यूरिया मौलैसिस व मीनिरल मिंक्सरश् प्लाॅट लगाए जा रहे हैं।
3) हिमाचल दुग्ध प्रसंघ द्वारा जिला बिलासपुर में कम्परैस्ड फोडर संयन्त्र स्थापित किया गया है।
4) तीन पशु आहार गोदाम जिला बिलासुपर, ऊना एवं नादौन जिला हमीरपुर में स्थापित किये जा चुके हंै।
5) हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंग द्वारा एक नया बेकरी बिस्किुट संयत्र क्षमता 2.5-3.0 मीट््िरक टन प्रतिदिन जिला शिमला के टूटू प्लांट में स्थापित किया गया है।
6) ग्रामीण डेरी समितियों के माध्यम से हिमाचल प्रदेश में लोगों का रोजगार प्रदान किया गया है।
कल्याण विभाग के आई.सी.डी.एस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड ने न्यूट््रीमिक्स का उत्पादन शुरू किया है। न्यूट््रीमिक्स उत्पाद संयंत्र चक्कर(मण्डी) में इस विभाग की जरूरत को पूरा करने के लिए लगाया गया है। वर्ष 2016-17 में 37,947.92 क्विंटल न्यूट््रीमिक्स व 5,638.61 क्विंटल स्कीमड मिल्क पाउडर और 2,125.00 क्विंटल बेकरी बिस्किुट को निर्मित कर उसकी आपूर्ति (आई.सी.डी.एस.) और सबला खण्ड को कल्याण विभाग के माध्यम से की जा चुकी है।
1) हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ ग्रामीण स्तर पर दुग्ध उत्पादकों को अच्छी गुणवता वाला दूध उत्पादन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
2) सोलन, हमीरपुर तथा किन्नौर जिलों में आई.डी.डी.पी.-प्प्प् के अंतर्गत 267 पशुओं को ृ15,000 प्रति पशु खरीदने पर 50 प्रतिशत का अनुदान प्रस्तावित किया गया है।
3) हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ ने मिठाईयां बनाने का कार्य भी सफलतापूर्वक शुरू किया है तथा इस वर्ष 2016-17 में दिवाली के त्यौहार पर लगभग 400 क्विंटल मिठाईयां और लोहड़ी त्यौहार पर 30 क्विंटल गचक का कारोबार किया है।
4) हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ इंदिरा गांधी मैडिकल काॅलेज मेें रक्तदान करने वालों को हल्का पौष्टिक आहार भी उपलब्ध करवा रहा है। हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंघ की उपलब्धियां सारणी संख्या 8.2 में दर्शाई गई हैं।

हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड ने न केवल पिछड़े और दूर-दराज के क्षेत्रों के लिए लाभकारी बाजार बल्कि शहरी क्षेत्र के ग्राहकों के लिए भी दुग्ध व इससे बने पदार्थ प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उपलब्ध करवाए है। हिमाचल प्रदेश मिल्कफैड यह सुनिश्चिित करने के लिए ग्रामीण स्तर पर दुग्ध ठण्डा हो इसके लिए 103 बड़े दुग्ध शीतक ग्रामीण स्तर पर राज्य के विभिन्न भागों में लगाए गए हैं। दुग्ध को जांचने में पारदर्शिता लाने के लिए फैडरेशन ने 204 स्वःचालित दुग्ध संचय ईकाईयां विभिन्न ग्राम डेरी सहकारी समितियों में लगाई हैं।
ऊन संघ का मुख्य उद्वेश्य हिमाचल प्रदेश में ऊनी उद्योग को बढ़ावा देना तथा ऊन उत्पादकों को बिचैलियों/व्यापारियों के शोषण से मुक्त करना है। ऊन संघ अपने उपरोक्त उद्वेश्यों का अनुसरण करते हुए भेड़ व अंगोरा ऊन की खरीद, भेड़ों की चारागाह स्तर पर कर्तन की मशीन, ऊन की धुलाई ;स्कावरिंगद्ध और ऊन के विक्रय के लिए प्रयासरत है। भेड़ कर्तन, आयातित स्वचालित मशीनों द्वारा करवाई जाती है। वर्ष 2016-17 में 31.12.2016 तक 85,063.40 किलोग्राम भेड़ ऊन की खरीद की गई है जिसका मूल्य ृ49.17 लाख है। संघ द्वारा कुछ केन्द्रीय प्रायोजित स्कीमों का क्रियान्वयन प्रदेश के भेड़ व अंगोरा पालकों के लाभ व उत्थान के लिए भी किया जाता है। चालू वित्तीय वर्ष में इन स्कीमों से लगभग 15,000 अंगोरा एवं भेड़ पालकों को इसका लाभ प्राप्त होने की संभावना है। ऊन संघ, उन उत्पादकों को उनके उत्पाद का उचित पारिश्रामिक मूल्य स्थापित ऊनी बाजार में विपणनकरवा कर उपलब्ध करवा रहा है। वर्ष 2017-18 के लिए प्रस्तावित कार्य सारणी संख्या 8.3 में दर्शाए गए हैं।
हिमाचल प्रदेश भारत वर्ष के उन राज्यों में से है जिन्हें प्रकृति द्वारा पहाड़ों से निकलने वाली बर्फानी नदियों का जाल प्रदान किया है जो कि राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों, अर्ध मैदानी और मैदानी क्षेत्रों से होती हुई पंजाब, जम्मू कश्मीर, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर जाती है। राज्य में बारहमासी नदियां व्यास, सतलुज, यमुना और रावी नदी बहती हैं जिनमें मत्स्य की शीतल जलीय प्रजातियां जैसे गुगली (साइजोथरैक्स), सुनैहरी महाशीर व ट््राउट पाई जाती है। शीतल जलीय मत्स्य संसाधनों के दोहन के लिए महत्वकाक्षी ”इन्डो-नार्वेयन ट््राउट फार्मिग” परियोजना के राज्य में सफल कार्यान्वयन से राज्य ने वाणिज्यिक ट््राउट पालन को निजी क्षेत्र में प्रचलित करने का गौरव अर्जित किया है। प्रदेश के जलाशय गोबिन्दसागर, पौंग डैम, चमेरा तथा रणजीत सागर में उत्पादित व्यवसायिक तौर पर महत्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियां क्षेत्रीय लोगों के आर्थिक उत्थान का मुख्य साधन बन गई है। प्रदेश में लगभग 6,098 मछुआरे अपनी रोजी के लिए जलाशयों के मछली व्यवसाय पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं। वर्ष 2016-17 के दौरान दिसम्बर,2016 तक प्रदेश के विभिन्न जलाशयों से 7,712.50 मीट््िरक टन मछली उत्पादन हुआ जिसका मूल्य ृ8,119.14 लाख है। इस वर्ष मूल्य ृ14.40 लाख की सहायता से राष्ट्््रीय कृषि विकास योजना के अन्तर्गत प्रदेश में निजि क्षेत्र में 5 नए ट्राउट यूनिट स्थापित करवाये जा रहे है। हिमाचल प्रदेश के जलाशयों को गोबिन्द सागर में देशभर में सर्वाधिक प्रति हैक्टेयर मत्स्य उत्पादन तथा पौंग डैम की मछलियों का सर्वोच्च विक्रय मूल्य का गर्व प्राप्त है। गोबिन्द सागर में प्रति हैक्टेयर जलाशय को वर्ष के दौरान दिसम्बर,2016 तक राज्य में फार्मों से 13.06 टन ट्र्ाउट मच्छली उत्पादन से ृ86.64 लाख का राजस्व प्राप्त हुआ है। पिछले वर्षाें के उत्पादन को सारणी संख्या 8.4 में दर्शाया गया है।

मत्स्य विभाग द्वारा ग्रामीण व्यवसायिक जलाशयों, तालाबों जो कि सरकारी व निजी क्षेत्र में है उनजलाशयों की मांग को पूरा करने के लिए कार्प तथा ट््राउट बीज फार्मों की स्थापना की है। कार्प फार्म बीज का उत्पादन वर्श 2015-16 में ृ348.60 लाख था तथा 2016-17 में ृ184.80 लाख फार्म बीज का उत्पादन दिसम्बर, 2016 तक हुआ है। पहाड़ी क्षेत्र होने के बाबजूद भी प्रदेश में मत्स्य पालन को विशेष महत्व दिया जा रहा है। ”राष्ट््रीय कृषि विकास योजना” के अन्तर्गत ृ43.94 लाख की योजना स्वीकृत हुई है जिसका विवरण सारणी संख्या 8.5 में दर्शाया गया है।

विभाग द्वारा जलाशय मछली दोहन में लगे मछुआरों एवं मत्स्य पालन के आर्थिक उत्थान के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की गई है। इस वर्ष “बैकयार्ड फिश फार्मिंग” (किचन फिश पौड) नामक नई योजना 114 किचन फिश पौड निर्मिंत करवाएं जा रहे हैं। राज्य में राष्ट्रीय मत्स्यिकीय विकास बोर्ड हैदराबाद की 90 प्रतिशत सहायता से श्मोबाईल फिश मार्कीटश् नामक नई योजना आरम्भ की गई है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के लोगों के घर द्वार पर ताजा मछली पहुंचाना है। मछुआरों को अब जीवन सुरक्षा निधिके अंतर्गत लाया गया है जिसके तहत मृत्यु /स्थाई अपंगता की दशा में संतप्त परिवार को ृ2.00 लाख तथा आंशिक अपंगता की स्थिति में ृ1.00 लाख तथा चिकित्सा उपचार हेतु ृ10,000 प्रदान किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के कारण श्आपदा कोष योजनाश् के अंतर्गत मत्स्य उपकरणों के नुकसान की भरपाई के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत प्रदान किया जाता है। अर्जित काल के दौरान मछुआरों के लिए जीवन यापन हेतु अंशदायी बचत योजना चलाई जा रही है जिसमें मछुआरों द्वारा दिए गए अंशदान के बराबर राशि केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाती है जिसे वर्जित काल के दौरान विभाग द्वारा जलाशय माहीगीरों को दो मासिक बराबर किस्तों में वितरित किया जाता है। जलाशयों में कार्यरत माहीगिरों के कल्याण हेतु विभाग द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनका विवरण नीचे सारणी संख्या 8.6 में दर्शाया गया हैः-

मत्स्य पालन विभाग ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करने में अपना विशेष योगदान दे रहा है तथा विभाग द्वारा बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए बहुत सी योजनाएं चलाई जा रही है जिसके अंतर्गत विभाग द्वारा अब तक 620 रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। राज्य में जलीय कृषि विकास की अच्छी सम्भावना है। विभाग द्वारा वर्ष 2020 में नील क्रांति के अन्तर्गत 1000 हैक्टेयर में ट्राउट इकाइयों व 1,000 हैक्टेयर में नए तालाब के निर्माण की परिकल्पना की गई है। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच नील क्रांतिकी केन्द्रीय प्रयोजित स्कीम 80ः20 अनुमात में सांझी की जा रही है। वर्ष 2016-2017 में इस योजना के अन्र्तगत ृ381.60 लाख की लागत/निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर राज्य में निजी ट्राउट पालकों के माध्यम से 106 स्थाई ट्राउट इकाइयों स्थापित की जा रही है।
वर्ष 2016-17 में एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने हेतु नील क्रान्ति के अंतर्गत ृ142.00 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान कर 15 हैक्टेयर के नए मत्स्य तालाब निर्मित किए जा रहे तथा 10 हैक्टेयर के पुराने तालाबों की मुरम्मत की जा रही है।
जलाशयों के एकीकृत विकास हेतु निजी क्षेत्र के गोविन्द सागर, कौल डैम व पौंग डैम में जिला बिलासपुर, ऊना, कांगडा व सिरमौर में ृ80.00 लाख की वित्तीय सहायता द्वारा 4 कार्प हैचरियों का निर्माण करवाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2016-17 में गोविन्द सागर व कोलडैम में भारतीय मेजर कार्प के मत्स्य बीज संग्रहण हेतू ृ190.00 लाख व्यय किये जा रहे हैं।
वर्ष 2016-17 में कोलडैम जलाशय में कसोल तथा बैरल मत्स्य अवतरण केन्द्रों में उच्च तकनीकी के प्रयोग से ृ60.00 लाख की लागत से निर्माण करवाया जा रहा है। पौंग जलाशय के एकीकृत विकास हेतु ृ30.00 लाख की लागत से कांगड़ा जिला के डाडासीबा में भी एक उच्च तकनीकी के प्रयोग से मत्स्य अवतरण केन्द्र का निर्माण करवाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त ृ35.00 लाख की लागत से डाडासीबा में एक बर्फ के कारखानों का भी निर्माण करवाया जा रहा है। वर्ष 2016-17 में पौंग जलाशय में भारतीय मेजर कार्प मत्स्य बीज के संग्रहण हेतु ृ85.00 लाख व्यय किये जा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने हेतु जिला बिलासपुर, मण्डी, ऊना व सोलन में विभागीय कार्प फार्मो पर ृ60.00 लाख की लागत से 4 सौर ऊर्जा प्रणालियों स्थापित वर्ष 2016-17 में की जा रही है
विभाग द्वारा वर्ष 2015-16 में दिसम्बर, 2016 तक प्राप्त उपलब्धियां तथा वर्ष 2016-17 का निर्धारित लक्ष्यों का विवरण सारणी संख्या 8.7 में दर्शाया गया है।

9.वन एवम् पर्यावरण

हिमाचल प्रदेष में वनों के अधीन कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 66.52 प्रतिशत अर्थात 37,033 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र आता है। हिमाचल प्रदेश सरकार की वन नीति का मूल उद्देश्य वनों के उचित उपयोग के साथ-साथ इनका संरक्षण तथा विस्तार करना है। इन्ही नीतियों को पूर्ण रूप देने के लिए वन विभाग द्वारा कुछ योजना कार्यक्रम चलाए गए हैं जो निम्न प्रकार से हैंः-
वन रोपण : वन रोपण का कार्य वनोत्पादक वन योजना तथा भू-संरक्षण योजना के अन्तर्गत किया जा रहा है। इन योजनाओं में वनाच्छादन में सुधार, विभागीय पौधरोपण व सार्वजनिक वितरण के लिए पौधशाला तैयार करना, चरागाह व गोचर भूमि में सुधार, ईंधन व चारा, गौण वन उपज, भू एवं जल संरक्षण वनीकरण परियोजनाएं इत्यादि षामिल हैं। चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए 15,000 है0 क्षेत्र में पौधरोपण का लक्ष्य रखा गया है जिसमें कैम्पा व केन्द्रीय सहायता प्राप्त योजनाएं भी शामिल हैं जिस पर ृ50.00 करोड़ व्यय किए जाने प्रस्तावित है जिसमें से 31.12.2016 तक 7,969.23 है0 क्षेत्र में पौधारोपण कर लिया गया है। वर्ष 2016-17 के दौरान लगभग 35 लाख औषधीय पौधे रोपित किए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
एकीकृत वन सुरक्षा योजना : वनों में आग, अवैध कटान एवं अतिक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है, इसलिए यह आवश्यक है कि उचित स्थानों पर चैकपोस्ट स्थापित किए जाएं ताकि लकड़ी के अवैध व्यापार पर रोक लगाई जा सके तथा उन सभी वन मण्डलों में जहां आग एक विनाशकारी तत्व है, अग्निशमन उपकरण एवं तकनीक उपलब्ध करवाई जाए। वनों के कुशल प्रबन्धन एवं सुरक्षा हेतु एक अच्छे संचार तंत्र की आवश्यकता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एकीकृत वन सुरक्षा योजना केन्द्रीय सरकार के सहयोग से चलाई जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए ृ438.00 लाख व्यय करने का प्रावधान है जिसमें से 31.12.2016 तक ृ142.25 लाख व्यय कर लिए गए हैं तथा शेष राशि 31.03.2017 तक व्यय कर ली जाएगी। इस योजना के तहत वर्ष 2017-18 के लिए ृ402.00 लाख व्यय करने प्रस्तावित हैं।
स्वां नदी एकीकृत जलागम प्रबन्धन परियोजनाजापान अन्तर्राश्ट्रीय सहयोग एजेंसी ;श्रप्ब्।द्ध द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता से जिला ऊना में चलाई जा रही है। इसके अन्तर्गत 96 ग्राम पंचायतों के 619 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र में 22 उप-जलागमों का चयन किया गया जिनमें परियोजना की विभिन्न गतिविधियां कार्यान्वित की गई। यह परियोजना 85ः15 की हिस्सेदारी से पर आधारित है। वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए ृ3.88 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है जिसमें से 31.12.2016 तक ृ2.03 करोड़ व्यय किए गए हैं तथा शेष राशि 31.03.2017 तक व्यय कर ली जाएगी।
मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना : मध्य हिमालय जलागम विकास परियोेजना प्रदेश में 01.10.2005 से शुरू की गई। यह योजना 6 वर्षों के लिए थी जिस की कुल लागत ृ365.00 करोड़ निर्धारित की गई थी। परियोजना की लागत विश्व बैंक एवं राज्य सरकार द्वारा 80ः20 अनुपात से वहन की जा रही है तथा परियोजना की लागत का 10 प्रतिशत हिस्सा लाभार्थियों द्वारा उठाया जाएगा। वित्तीय वर्श 2016-17 के लिए ृ65.00 करोड़ का बजट अनुमोदित है जिसके तहत 31.12.2016 तक ृ42.66 करोड़ व्यय कर लिए गए हैं तथा शेष राशि 31.03.2017 तक व्यय कर ली जाएगी। इस परियोजना को 31.03.2017 तक पूरा कर लिया जाएगा।
हिमाचल प्रदेष फाॅरेस्ट इको-सिस्टम क्लाईमेट प्रूफिंग प्रोजेक्ट : जर्मन सरकार के केएफडब्ल्यू बैंक की सहायता से ृ310.00 करोड़ की लागत से प्रदेष के कांगड़ा और चम्बा जिलों में आगामी सात वर्षों की अवधि हेतू हिमाचल प्रदेश फाॅरेस्ट इको-सिस्टम क्लाईमेट प्रूफिंग प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ है। यह परियोजना 2015-16 से आरम्भ की गई है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में ृ40.00 करोड़ व्यय करने का प्रावधान है जिसमें से 31.12.2016 तक ृ1.54 करोड़ व्यय किए जा चूके हैं। जर्मन सरकार के एक अन्य बैंक जी.आई.जेड. द्वारा तकनीकी सहयोग के अन्तर्गत तीन वर्षों के लिए लगभग ृ25.00 करोड़ की लागत से प्रदेश में एकीकृत ईको सिस्टम सर्विसिज अपरोच अपनाने हेतु भी स्वीकृत किए जा चुके हैं। वर्ष 2017-18 के लिए इस परियोजना के अन्तर्गत ृ60.00 करोड़ व्यय किए जाने प्रस्तावित हैं।
वन्य प्राणी एवं प्रकृति संरक्षण : हिमाचल प्रदेश विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य वन्य प्राणी शरण्यस्थलों एवं राष्ट्रीय उद्यानों में सुधार व सुरक्षा प्रदान करना है जिससे विभिन्न लुप्त होने वाले पशु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को बचाया जा सके। वन्य प्राणी क्षेत्र के अन्तर्गत चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए ृ1,256.00 लाख का बजट प्रावधान निर्धारित किया गया है जिसमें से 31.12.2016 तक ृ499.74 लाख की राशि व्यय की जा चूकी है। वर्ष 2017-18 के लिए ृ1,484.00 करोड़ व्यय किए जाने प्रस्तावित हैं।
वर्ष 2016-17 केअन्र्तगत विभाग की महत्वूपर्ण उपलब्धियां तथा वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान प्रमुख नीतिगत कार्ययोजनाओं का विवरण निम्नलिखित हैः-
राज्य जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ : वर्ष 2015-16 में स्थापित हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ को विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अन्तर्गत हिमालय की परिस्थिति के तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (एन0एम0एस0एच0ई0) के सक्रिय मार्गदर्शन में जलवायु परिवर्तन की गतिविधियों पर सहकारी और एकजुट कार्यवाही सुनिश्चित करने हेतु ठोस संस्थागत समन्वय तंत्र के उद्देश्य से प्रारंभ कर दिया गया है। ज्ञान प्रकोष्ठ के लिए विकसित वैब पोर्टल के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर सूचना का प्रसारण किया जा रहा है। विभिन्न ज्ञान सहभाजन कार्यशालाओं एवं कार्यक्रमों को उत्तराखंड, झारखंड और असम जैसे राज्यों के साथ आयोजित किया गया है। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद से जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कार्यरत वैज्ञानिकों के दल ने भी जलवायु परिवर्तन सम्बन्धित ज्ञान का आदान-प्रदान करने हेतु जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ का दौरा किया। (एन0ए0एफ0सी0सी0) जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष और जी.सी.एफ.हरित जलवायु कोष के तहत प्रस्तावों को तैयार कर सहायता और विभिन्न हितधारकों के मध्य व्यवसायिक समन्वय स्थापित करने के लिए भारत सरकार को प्रस्तुत किया गया है। राज्य के सिरमौर जिले में छोटे, सीमांत किसानों को ग्रामीण महिलाओं सहित जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने और अनुकूली क्षमता में सुधार हेतु जलवायु स्मार्ट समाधान के माघ्यम से हिमाचल प्रदेश के सूखा उन्मुख जिले में “कृषि निर्भर ग्रामीण समुदायों की दीर्घकालिक आजिविका” (एफ0एल0ए0डी0 आर0सी0) नामक परियोजना को जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष में ृ20.00 करोड की लागत से आरम्भ किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत जलवायु स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकी तकनीकों को आवश्यक सामाजिक अभियांत्रिकी के साथ आरम्भ किया जा रहा हैं खाद्य सुरक्षा को बेहतर तथा सुरक्षित आजीविका अवसरों हेतु क्षमता के निर्माण कार्यक्रम को आरंभ कर दिया गया है।
पर्यावरण मंजूरी : राज्य सरकार ने पर्यावरण द्वारा पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने हेतु आनलाइन तंत्र क्रिया को पर्यावरण विज्ञान प्रौद्यौगिकी में स्थापित राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण को पूरी तरह से लागू कर दिया है। पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया को प्रस्तावकों के लिए सुविधाजनक बनाने हेतु अधिकारियों की समितियों को सभी जिलों में गठन किया गया है और कार्यात्मक बनाया गया है।
जैव प्रौद्योगिकी नीति : एप्लाईड जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं का अन्तिम उपयोगकर्ताओं को प्रौद्योगिकी स्थापन हेतु, राज्य में विश्वविद्यालय/ संस्थानों के सहयोग द्वारा अनुसंधान गतिविधियों को आरम्भ किया जा रहा है।
सरकार ने ”राज्य स्तरीय पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार” को प्रारंभ करने का निर्णय लिया है जिसके अन्र्तगत भविष्य में राज्य की उन संस्थाओं/ व्यक्तियों को विभिन्न श्रेणियों में हर वर्ष सम्मानित किया जाएगा जो पर्यावरण सरंक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देने में उत्कृष्ट भूमिका निभा रहे हैंै। इस पुरस्कार को प्रशस्ति पत्र सहित जिसमें प्रथम पुरस्कार ृ50,000 तथा द्वितीय पुरस्कार ृ25,000 नकद दिया जाएगा, इसे विजेता को सहित स्थाई रूप में दिया जायेगा। यह पुरस्कार उत्कृष्ट कार्योंे की नवीनता पर आधारित होगा जो कि योग्य कार्यक्षेत्र/वर्र्गों के स्तर पर किया गया होगा तथा पर्यावरण के प्रति सजगता, सतत उद्यमिता तथा ऐसे संगठनों/ संस्थाओेेेें, जिन्होंने पर्यावरण को सहेजने में उल्लेखनीय प्रयत्न और स्थायी तरीके से पर्यावरण संरक्षण तथा पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से सतत प्रयास किये हों। इस पुरस्कार से राज्य सरकार को हरित विकास की दिशा में और मजबूती मिलेगी।
पांच आदर्ष पर्यावरण के गांवों की स्थापना :सरकार पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश में मजबूत पर्यावरणीय सतत सामुदायिक विकास कार्यक्रम को लागू करने का निर्णय लिया है जिसमें पांच आर्दश पर्यावरण के गांवो की स्थापना की जाएगी। इस पहल के माध्यम से राज्य सरकार पर्यावरणीय स्थिरता के विभिन्न पहलुओं की रूपरेखा बनाएगी जो इस तरह के ढांचे को कार्यान्वित उदाहरणों के रूप में संक्षिप्त वर्णन करेगी। योजना के आरम्भ में पर्यावरण टिकाऊ और पर्यावरण के उन्मुख गांवों में कम प्रभाव जीवनशैली से “पारिस्थितिक पदचिन्हों” को अधिकतम 50 प्रतिशत तक आधार मुल्यांकन के रूप में कम करने के दृष्टिकोण की ओर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यह ”सृष्टि तथा आम लोगों की देखभाल“ के मूल्यों पर आधारित होगी। इसमें समुदाय को प्रकृति में एकीकृत कर इसके विभिन्न घटकों की रूपरेखा की स्थापना, विशेष मात्रात्मक और सामाजिक गुणात्मक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों को लागू कर विकास योजनाओं में इन्हें मिलाया जाना सुनिश्चित किया जाएगा। इसका स्थायी समुदायों में छोटी और लंबी अवधि में लागू करने से विकसित करने वाले निवासियों और समाज को महत्वपूर्ण लाभ होगा। इस उद्देश्य के लिए ृ2.50 करोड़ व्यय किया जाना प्रस्तावित है।
पर्यावरण नीति की रचना तथा अधिसूचना : राज्य सरकार ने विभिन्न हितधारक विभागों के मध्य तालमेल और निर्णय लेने की मुख्य धारा में पर्यावरण समन्वय हेतु राज्य पर्यावरण नीति तैयार करने का फैसला किया है। यह दस्तावेज राज्य में प्राथमिकता निर्धारण करने की प्रक्रिया कर सतत तरीके तथा सशक्त पर्यावरण शासन बनाने में सहयोग करेगा।
राज्य सरकार हरित जलवायु कोष के तहत सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य, वन क्षेत्र की निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतू कार्ययोजना को लागू करने हेतु बजट/ वित्त प्रावधान हेतु परियोजना प्रस्ताव की जायेगीः-
1) समुदाय आधारित जल संचयन एवं प्राकृतिक जल संसाधनों के प्रबंधन को सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग से लागू करना।
2) जलवायु प्रत्यास्थी संबधित (परिणाम) प्रबंधन को वन विभाग के माध्यम से लागू करना।
जलवायु परिवर्तन संवेदनषीलता : सरकार, पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अगले पांच सालों में जलवायु परिवर्तन के खतरे को जांचने हेतु पुनः आकलन व मुल्याकंन करके बाढ़ और सूखा ग्रस्त जिलों के ग्रामीण, छोटे एवं सीमांत किसान।

10.जल स्त्रोत प्रबंधन

जल प्रबन्धन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। राज्य के समस्त गांवों को मार्च, 1994 तक स्वच्छ पेयजल सुविधा प्रदान की जा चुकी है। पेयजल आपूर्ति योजना के नवीनतम वैधीकरण सर्वेक्षण के अनुसार मार्च, 2008 तक सभी 45,367 बस्तियों को शुद्ध पेय जल की सुविधा प्रदान की गई है। 01.04.2009 में राष्ट्रीय पेयजल आपूर्ति निर्देशों के लागू होने से सभी बस्तियों के मानचित्रण के उपरान्त राज्य में कुल 53,604 बस्तियां चिन्हित हुई, जिसमें से 19,473 बस्तियां (7,632 बस्तियां जहां शून्य प्रतिशत से अधिक तथा सौ प्रतिशत से कम जनसंख्या वाली तथा 11,841 बस्तियां शून्य जनसंख्या वाली) चिन्हित हुई जहां पर पेयजल सुविधाएं अपर्याप्त हैं। बस्तियों को पेयजल सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु मापदण्ड बस्तियों की जगह जनसंख्या पर आधारित हैं ताकि प्रत्येक घर तक जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। विभिन्न राज्य सरकारों के अनुरोध पर भारत सरकार ने राज्यों को डाटा में सुधार कर आंकलन करने के निर्देश दिये थे। वर्ष 2016 के डाटा आंकलन के अनुसार 1.04.2016 को इन बस्तियों की स्थिति नीचे दी गई हैः-
वित्तीय वर्ष 2016-17 में कुल 1,308 बस्तियों जिनमें 651 बस्तियों को राज्य भाग के अन्तर्गत तथा 657 बस्तियों को केंद्रीय क्षेत्र में पूर्ण एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है जिसके लिए राज्य एवं केंद्रीय परिव्यय का भाग क्रमशः ृ176.70 करोड़़ एवं ृ67.58 करोड़़ रखा गया है। दिसम्बर, 2016 तक कुल ृ147.17 करोड़़ जिसमें ृ36.67 करोड़़ केन्द्रीय भाग के अन्तर्गत तथा ृ110.50 करोड़ राज्य क्षेत्र के रूप में व्यय करके दिसम्बर, 2016 तक 722 बस्तियों जिनमें 90 बस्तियों को राज्य भाग के अन्तर्गत तथा 632 बस्तियों को केंद्रीय भाग के अन्तर्गत स्वच्छ पेयजल सुविधा उपलब्ध करवाई गई है।
हैण्डपम्प कार्यक्रम : सरकार द्वारा प्रदेश के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम में पेयजल की कमी के चलते हैण्डपम्प लगाने का कार्य निरन्तर चल रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत मार्च, 2016 तक प्रदेश में कुल 33,471 हैण्डपम्प स्थापित किये जा चुके हैं। वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक प्रदेश में कुल 1,546 हैण्डपम्प स्थापित किये जा चुके हैं।
शहरी पेयजल कार्यक्रम : इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कुल 50 शहरों की पेयजल योजनाओं का रख-रखाव सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग कर रहा है। इनमें सेे 38 शहरों की पेयजल योजनाओं का कार्य मार्च, 2016 तक पूर्ण कर लिया गया है। धर्मशाला, कांगड़ा, हमीरपुर, सरकाघाट, नगरोटा बगवां, कुल्लू, मण्डी, रामपुर तथा मनाली की पेयजल योजनाओं का सम्बर्धन यू.आई.डी.एस.एस.एम.टी. कार्यक्रम के अन्तर्गत किया जा रहा है। नाहन व बन्जार शहरों की पेयजल योजनाओं का सम्बर्धन कार्य राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत किया जा रहा है। वर्ष 2016-17 में कुल ृ21.00 करोड़ योजनाओं के सम्बर्धन के कार्य के लिए रखे गये हैं, जिसके अन्तर्गत कुल ृ11.94 करोड़ व्यय किये जा चुके हैं।
कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई का विशेष महत्व है। कृषि उत्पादन प्रक्रिया मंे पर्याप्त तथा समय पर ंिसंचाई की पूर्ति उन क्षेत्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जहां वर्षा बहुत कम या अनियमित होती है। कृषि योग्य भूमि को बढ़ाया नहीं जा सकता इसलिए उत्पादन में तीव्र वृद्धि के लिए बहुविध फसलों तथा प्रति यूनिट क्षेत्र में अधिक फसल पैदावार उगाने के लिए ंिसंचाई पर निर्भर रहना पड़ता है। राज्य योजना में सिंचाई की सम्भावना तथा उसके पूर्ण उपयोग पर विशेष ध्यान देना सरकार की प्राथमिकता में है।
हिमाचल प्रदेश के कुल 55.67 लाख हैक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र मंे से केवल 5.83 लाख हैक्टेयर शुद्ध बोया गया क्षेत्र है। यह अनुमान लगाया जाता है कि राज्य की ंिसंचाई की क्षमता लगभग 3.35 लाख हैक्टेयर है। इसमें से 0.50 लाख हैक्टेयर मुख्य तथा मध्यम ंिसंचाई परियोजनाओं के अन्तर्गत लाया जा सकता है तथा शेष 2.85 लाख हैक्टेयर क्षेत्र लघु ंिसंचाई योजनाओं के अन्तर्गत लाया जा सकता है। अब तक 2.68 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई सुविधा दिसम्बर, 2016 तक प्रदान की जा चुकी है।
मुख्य तथा मध्यम सिंचाई परियोजनाएं : वर्ष 2016-17 में ृ6,000.00 लाख की राशि प्रावधान रखा गया है तथा मुख्य तथा मध्यम सिंचाई योजनाओं के अन्तर्गत 700 हैक्टेयर क्षेत्र का लक्ष्य रखा गया है। दिसम्बर, 2016 तक ृ885.94 लाख व्यय किये गये हैं।
लघु सिंचाई : वर्ष 2016-17 में राज्य सरकार द्वारा राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत 2,500 हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए ृ21,075.00 लाख का बजट प्रावधान किया गया है। दिसम्बर, 2016 तक 1,590.89 हैक्टेयर क्षेत्र को ृ3,226.60 लाख व्यय करके सिंचाई के अन्तर्गत लाया गया है।
कमांड क्षेत्र विकास का कार्य प्रगति पर है तथा 15,287 हैक्टेयर क्षेत्र मे से 8,068 हैक्टेयर क्षेत्र क¨ कमांड क्षेत्र विकास की गतिविधिय¨ं के अन्तर्गत लाया गया है। सिधांता क्षेत्र का कार्य प्रगति पर है तथा दिसम्बर, 2016 तक 210 हैक्टेयर क्षेत्र क¨ इस य¨जना के अन्तर्गत लाया जा चुका है। वर्तमान में फिन्ना सिंह मध्यम सिंचाई परियोजना, सी.सी.ए. 4,025 हैक्टेयर क्षेत्र, तथा नादौन क्षेत्र मध्यम सिंचाई परियोजना, सी.सी.ए. 2,980 हैक्टेयर भूमि का कार्य प्रगति पर है।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 मे ृ5,820.00 लाख का प्रावधान है। सी.ए.डी. गतिविधिय¨ं क¨ उपलब्ध्ा करवाने के लिए 2,500 हैक्टेयर क्षेत्र सी.सी.ए. का भौतिक लक्ष्य रखा गया है, जिस में से दिसम्बर, 2016 तक 1,892.00 हैक्टेयर क्षेत्र का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है। भारत सरकार कमांड क्षेत्र विकास जल प्रबन्धन कार्यक्रम के अन्तर्गत शाहनहर तथा सिधांता मुख्य ंिसंचाई परियोजनाअ¨ं के निध्ाीयन के लिए सम्मिलित किया गया हैै। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत अन्य मुख्य ंिसंचाई परियोजना नादौन, बल्ह वैली(एल.बी.),फिन्ना सिंह तथा 23 लधु सिंचाई परियोजनाअ¨ं के विकास के लिए सम्मिलित किया गया हैै। वर्ष 2016-17 में इन परियोजनाअ¨ं पर ृ824.73 लाख व्यय किए गये हैं
वर्ष 2016-17 में 2,500 हैक्टेयर भूमि में बाढ़ नियंत्रण कार्य के अन्तर्गत लाने के लिए ृ13,569.00 लाख का प्रावधान किया गया है। दिसम्बर, 2016 तक ृ5,047.77 लाख व्यय करने उपरान्त 199.00 हैक्टेयर क्षेत्र को सुरक्षित किया गया है। स्वां नदी तटीयकरण चरण-प्ट तथा छोंच खड्ड के तटीयकरण का कार्य प्रगति पर है।

11.उद्योग और खनन

हिमाचल प्रदेश सरकार ने औद्योगिकरण की दिशा में पिछले कुछ वर्षो में महत्वपूर्ण प्रगति की है। प्रदेश सरकार ने निवेश को बढ़ाने के लिए हाल ही में बहुत सी पहलें की है।
औद्योगिकरण की स्थिति : प्रदेश में 31.01.2017 तक 43,420 औद्योगिक इकाईयां कार्यरत है इसमें 138 बडे और 438 मध्यम स्तर के उद्योग शामिल है।
औद्योगिक क्षेत्र/ सम्पदा का विकास : वर्ष 2016-17 में औद्योगिक क्षेत्र में विभिन्न आधारभूत सरंचनाओं के विकास के लिए ृ27.72 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है जिसमें से 31.01.2017 तक ृ25.68 करोड़ ओद्यौगिक क्षेत्र/ औद्योगिक सम्पदा के विभिन्न विकासात्मक निर्माण कार्याें पर व्यय किया जा चुका है । शेष बचे ृ2.04 करोड़ को भी 31.03.2017 से पहले व्यय कर लिया जाएगा।
एम0आई0आई0यू0एस0 के अधीन स्टेट आफ आर्ट इण्डस्ट्रियल एरिया : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार ने (संशोधित औद्योगिक अधोसरंचना विकास स्कीम) के अंर्तगत 2 स्टेट आफ आर्ट इण्डस्ट्रियल एरिया पण्डोगा जिला ऊना व कन्दरोरी जिला कांगडा में स्थापित करने की अन्तिम स्वीकृत दी गई है। इन परियोजनाओं का निधिकरण निम्न सारणी 11.1 में दर्शाया गया हैः-
परियोजना अनुदान का व्यय अधोसरंचना विकास के लिए इन औद्योगिक क्षेत्रों के भौतिक अधोसरंचना के अंतर्गत (सडकें, तूफान पानी निकासी नली, स्ट्रीट लाईट व 132 ज्ञट पावर सब स्टेशन की स्थापना इत्यादि), तकनीकी अधोसरंचना के अंतर्गत (सामूहिक सुविधा केन्द्र इत्यादि), सामाजिक अधोसरंचना के अंतर्गत (कामगार महिला आवास, बस ठहराव, वर्षा शालिका व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र इत्यादि) तथा विविध/ प्रशासनिक अनुदान के लिए प्रयोग किया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2016-17 में ृ35.51 करोड़ का आवंटन इन दो स्टेट आॅफ आर्ट इण्डस्ट्रियल एरिया के विकास के लिए किया गया और आवंटन पूर्ण रूप से व्यय कर दिया गया है। तीसरे स्टेट आर्ट आफ एरिया के विकास के लिए सरकारी/वन की 515 बीघा भूमि दबोटा, तहसील नालागढ़, जिला सोलन में चिन्हित करली गई है। इसका प्रारुप वन विभाग के अनुमोदन के लिए भेज दिया गया है और इस विषय पर थ्ब्।. 1980 के अन्तर्गत कार्य चल रहा है।
इस योजना के अंतर्गत 31.01.2017 तक 487 मामलों का लक्ष्य निर्धारित था परन्तु 1013 मामले/ आवेदन विभिन्न बैंको को प्रायोजित किए गए, जिसमें से 313 मामलों में ृ637.59 लाख की मार्जिन अनुदान राशि की स्वीकृति दी जा चुकी है। 113 मामलों में प्रार्थियों को ृ246.72 लाख की मार्जिन अनुदान राशि वितरित कर दी गई है तथा इन उद्यमों में 509 व्यक्तियों को रोजगार मिल गया है।
पद्ध. राज्य घटक वर्ष 2015-16 के लिए एसाईड योजना के अन्र्तगत राज्य घटक में कोई बजट प्राप्त नही हुआ है क्योंकि भारत सरकार ने एसाईड योजना को बन्द कर दिया है वर्तमान में जारी कार्यों को योजना के दिशा निर्देश अनुसार पूर्ण कर लिया जाएगा ।
पपद्ध. केन्द्रीय घटक : वित्तीय वर्ष 2015-16 से एसाईड स्कीम को केंद्रीय सहायता मिलना बन्द कर दी गई है। जहां तक निर्माणाधीन चार परियोजनाओं की स्थिति का प्रश्न है, उनमें भारत सरकार द्वारा पहली किस्त ृ22.49 करोड़ जारी किए जा चुके हैं तथा उस राशि का उपयोग भी कर लिया गया है। वर्ष 2016-17 के दौरान प्राधिकृत कमेटी (केंद्रीय घटक) द्वारा तीन परियोजनाओं के लिए दूसरी किस्त स्वीकृत की जा चुकी है इसके अन्तर्गत ;पद्ध मानपुर, बद्दी में बी.बी.एन.डी.ए. के निर्यात यूनिट में कन्टेनरों की पार्किंग व्यवस्था के लिए 4.50 करोड़ जारी किए जा चुके हैं। बी.बी.एन.आई.ए. के निर्यात युनिट में संयोजन फार्मा परीक्षण के लिएभारत सरकार द्वारा ृ1.94 करोड़ की द्वितीय किश्त अभी तक जारी नहीं गई है। चैथी परियोजना के अन्तर्गत इलैक्ट्रिकल अद्योसरंचना के विकास, औद्योगिक क्षेत्र काला अम्ब, जिला सिरमौर में प्राधिकृत कमेटी द्वारा निर्णय लिया गया है कि शेष राशि ृ6.17 करोड़ राज्य सरकार द्वारा वहन की जाएगी।
(i) ृ3.33 करोड़ जारी किए जा चुके हैं। ;पपद्ध बी.बी.एन.आई.ए. में निर्यात युनिट के अन्तर्गत भण्डारण व्यवस्था के लिए
(ii) 4.50 करोड़ जारी किए जा चुके हैं। बी.बी.एन.आई.ए. के निर्यात युनिट में संयोजन फार्मा परीक्षण के लिएभारत सरकार द्वारा ृ1.94 करोड़ की द्वितीय किश्त अभी तक जारी नहीं गई है। चैथी परियोजना के अन्तर्गत इलैक्ट्रिकल अद्योसरंचना के विकास, औद्योगिक क्षेत्र काला अम्ब, जिला सिरमौर में प्राधिकृत कमेटी द्वारा निर्णय लिया गया है कि शेष राशि ृ6.17 करोड़ राज्य सरकार द्वारा वहन की जाएगी।
रेशम उद्योग राज्य का एक महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग है जिससे लगभग 9,200 ग्रामीण परिवारों को रेशम कोकून उत्पाद से लाभकारी रोजगार प्राप्त हो रहा है और उनकी आय में भी बढोतरी हो रही है । 13 रेशम के धागे के रीलिंग यूनिट निजी क्षेत्र जिनमें जिला कांगडा, बिलासपुर में 5-5 तथा हमीरपुर, मण्डी एवं उना में 1-1 यूनिट, सरकार की सहायता से स्थापित किए गए है। माह दिसम्बर, 2016 तक 236.55 मी.टन रेशम के कोकून का उत्पादन किया गया है जिन में से 31.54 मी.टन कच्चे रेशम में परिवर्तित कर राज्य को रेशम उत्पादों की बिक्री से ृ851.50 लाख की आय प्राप्त हुई है । वर्ष के दौरान रेशम कोकून का पूर्वानुमानित उत्पादन 236.55 मी.टन तथा परिवर्तित कच्चा रेशम 31.54 मी.टन रहेगा।
हि0प्र0 राज्य हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास निगम को इस वर्ष प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर प्रशिक्षण केन्द्र खोलने हेतु जन-जातीय उप योजना के अन्तर्गत ृ85.00 लाख तथा अनुसूचित जाति घटक योजना के अन्तर्गत ृ1.00 करोड दिए गये हैं।
महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना :वर्ष 2016-17 में 31.12.2016 तक प्रदेश में महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना के अन्तर्गत 2,448 बुनकरों को लाया गया है।
खनिज प्रदेश के अािर्थक आधार का मुख्य तत्व है । उत्तम किस्म का चूना-पत्थर जो कि पोर्टलैंड सीमेंट उद्योग के लिये आवश्यक पदार्थ हैं यहां प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है । वर्तमान में प्रदेश में छः सीमेंट प्लांट, जिनमें मै0 ए0सी0सी0 की बिलासपुर जिला के बरमाणा में (दो इकाईयां), मै0 अम्बूजा सीमेंट लि0 की सोलन जिला के कशलोग में (दो इकाईयां), मै0 जे0पी0 इण्डस्ट्रीज की बागा भलग, जिला सोलन में (एक इकाई) तथा मै0 सी0सी0आई0 की सिरमौर जिला के राजबन में (एक इकाई) कार्यरत है, जबकि सुन्दरनगर जिला मण्डी में, मै0 हरीश सीमेंटस (ग्रासिम सीमेंट), गुम्मा रूहाना, जिला शिमला में (मै0 द इण्डिया सीमेंट लि0) अलसींडी, जिला मण्डी में (मै0 लर्फाजे इण्डिया लि0) के प़क्ष में तीन बड़े सीमेंट प्लांट स्थापित करने हेतू खनन पटटे प्रदान कर दिये हैं।
इसके अतिरिक्त सरकार ने संभावित लाईसैंस भी कम्पनियों को जारी किए हैं, ताकि चूना पत्थर व अन्य गौण खनिजों के साथ जमा खनिजों की गुण एवं मात्रा का पता लगाने के लिए गहन अध्ययन किया जा सके। यह लाईसैंस मै0 एसोसियेटिड सीमेंट कम्पनी (धारा बड़ू, तहसील सुन्दरनगर, जिला मण्डी), मै0 डालमिया सीमेंट कम्पनी (करयाली-कोटी-साल- बाग, तहसील सुन्नी, जिला शिमला), मै0 अम्बूजा सीमेंट लिमिटिड (गयाणा- चलयान-बसयाना-बरसाणू-मांगू, तहसील अर्की, जिला सोलन), मै0 रिलायंस सीमन्टेशन क0 लि0 (संगरोठी-थांगर-कुरा खेरा-पाॅली खेरा-कंडल-डंडेरा, तहसील चैपाल, जिला शिमला), मै0 एशियन सीमेंट कम्पनी(रौड़ी-लाम्बा-सनून इत्यािद, तहसील अर्की, जिला सोलन) को दिए गए। अन्य खनिज जिनका प्रदेश में वाणिजयक दोहन किया जा सकता है जैसे शेल, बेराईटस, राॅक साॅल्ट, सिलिका सैंड, भवन सामग्री जैसे कि पत्थर, रेत व बजरी और ईमारती पत्थर इत्यादि भी प्रदेश में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है। उद्योग विभाग की भौमिकीय शाखा द्वारा खनिजों के विकास एवं दोहन के लिये मापदण्ड बनाने के अतिरिक्त प्रदेश में बनाई जा रहे भवनों और पुलों का भौमिकीय अध्ययन एवं भू-पर्यावरण सम्बन्धित अध्ययन इत्यादि का कार्य कर रहा है ।
वर्ष 2015-16 के दौरान खनन से प्रदेश को ृ155.00 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था तथा वर्ष 2016-17में 31.12.2016 तक ृ99.00 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ हैै जबकि इसी वित्तीय वर्ष में अनुमानित ृ130.00 करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त होने की संभावना है।
i) नए खनन के पटटे प्रदान करना : विभाग ने वर्ष 2015-16 में मुख्य खनिज के 30 खन्न पट्टे प्रदान/नवीकरण किये गये तथा वर्ष 2016-17 में 31.12.2016 तक के दौरान खान एवं खनिज (विकास एवं विनियम) संशोधित अधिनियम, 2015 की धारा 8 ए (5) एवं 8 ए (6) में निर्दिष्ट प्रावधानों के अनुरूप 30 खन्न पटटा मामलों में खनन पट्टा की अवधि, स्वीकृति तिथि से आगामी 50 वर्षो के लिए बढ़ाई गई जबकि वित्तीय वर्ष 2015-16 में, 68 खनन पटटे गौण खनिजों के प्रदान किये गये थे व 2016-17 में 31.12.2016 तक 73 खन्न पट्टे, गौण खनिजों के प्रदान किये गये है।
ii) भू-तकनीकी अन्वेषण : विभाग द्वारा 2015-16 में प्रदेश में बनाए जा रहे पुलों, सड़कों, बड़े-बड़े भवनों, भू-स्खलन क्षेत्रों इत्यादि की नींव सम्बन्धी भौमिकीय अध्ययन किये और 23 भू-तकनीकी अन्वेषण रिपोट्र्स सम्बन्धित एजेंसियों को आगामी कार्यवाही के लिए भेजी गई हैं। जबकि वित्तीय वर्ष 2016-17 में 31.12.2016 तक 18 भू-तकनीकी अन्वेषण रिपोट्र्स सम्बन्धित एजेंसियों को भेजी गई है।

12.श्रम और रोजगार

2011 जनगणना के अनुसार प्रदेश की कुल जनसंख्या में 30.05 प्रतिशत मुख्य कामगार, 21.80 प्रतिशत सीमांत कामगार तथा शेष 48.15 गैर कामगार थे। कुल कामगारों ;मुख्य़सीमांतद्ध में से 57.93 प्रतिशत काश्तकार, 4.92 प्रतिशत कृषि श्रमिक, 1.65 प्रतिशत गृह उद्योग इत्यादि तथा 35.50 प्रतिशत अन्य गतिविधियों में कार्यरत थे। राज्य में 3 क्षेत्रीय रोजगार कार्यालयों, 9 जिला रोजगार कार्यालयों, 2 विश्वविद्यालयों में रोजगार सूचना एवं मार्गदर्शन केन्द्र और 55 उप-रोजगार कार्यालय, विकलांगों के लिए निदेशालय में एक विशेष रोजगार कार्यालय, एक केन्द्रीय रोजगार कक्ष निदेशालय में जो पूरे प्रदेश के आवेदकों तथा नियोक्ताओं की सेवा में कार्य कर रहे हैं। सभी 67 रोजगार कार्यालयों को कम्पयूटराईज किया जा चुका है तथा 64 रोजगार कार्यालय ओन लाईन है बाकि 03 रोजगार कार्यालयों को शीघ्र ही औन लाईन किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के अन्र्तगत कामगारों को न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के सम्बन्ध में सलाह देने के लिये राज्य न्यूनतम वेतन सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। राज्य सरकार ने दिनांक 01.04.2016 से अकुशल कामगारों का वेतन ृ180 से ृ200 प्रतिदिन अथवा ृ5,400 से ृ6,000 प्रतिमाह कर वर्तमान में सभी 19 अनुसूचित व्यवसायों में निर्धारित किये हैं।
वर्ष 1960 से रोजगार बाजार सूचना कार्यक्रम के अन्तर्गत रोजगार आंकड.े जिला स्तर पर एकत्र किए जा रहे हैं। प्रदेश में 31.12.2015 तक सार्वजनिक क्षेत्र के कुल कामगारों की संख्या 2,81,147 निजी क्षेत्र में कामगारों की संख्या 1,53,816 और सार्वजनिक क्षेत्र में कुल 4,245 व निजी क्षेत्र में कुल 1,712 नियोक्ता है।
व्यवसायिक मार्गदर्शन : श्रम एवं रोजगार विभाग के अधीन इस समय चार व्यवसायिक मार्गदर्शन केन्द्र स्थापित हैं जिनमें से एक निदेशालय मंे स्थित राज्य व्यवसायिक मार्गदर्शन केन्द्र तथा शेष तीन केन्द्र क्षेत्रीय रोजगार कार्यालय मण्डी, शिमला व धर्मशाला में स्थित है। इसके अतिरिक्त दो विश्वविद्यालय रोजगार सूचना एवं मार्गदर्शन ब्यूरो पालमपुर व शिमला में स्थित हैं। इन केन्द्रों द्वारा रोजगार के संदर्भ में आवेदकों को उचित व्यवसायिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। प्रदेश में कई शैक्षणिक प्रतिष्ठानों में व्यावसायिक मार्गदर्शन संबंधी कैम्पों का आयोजन भी किया जाता है। इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2016 तक तक प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में 131 कैम्प आयोजित किए गए।
हिमाचल प्रदेश के निजी क्षेत्र में कार्यरत एवं लगाई जा रही औद्योगिक इकाईयों, संस्थानों के लिए तकनीकी तथा उच्च कुशल कामगारों को रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में केन्द्रीय रोजगार कक्ष हमेशा की तरह वर्ष 2016-17 में भी अपनी सेवाएं अर्पित करता रहा है। इस प्रकार इस योजना द्वारा एक ओर रोजगार इच्छुक लोगों को उनकी योग्यता व अनुभव के अनुसार निजी क्षेत्र में उचित रोजगार प्राप्त करने मेें सहायता प्राप्त होती है तथा दूसरी ओर नियोक्ता बिना धन व समय बर्बाद किए उचित कामगार उपलब्ध होते हैं।केन्द्रीय रोजगार कक्ष निजि क्षेत्र के नियोक्ताओं की अकुशल कामगारों की मंाग हेतु कैम्पस साक्षात्कार करवाता है । इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2016 तक केन्द्रीय रोजगारकक्ष के माध्यम से 161 कैंम्पस साक्षात्कार करवाये गये, जिसमें से 1,359 आवेदकों की नियुक्तियां की गई है। केन्द्रीय रोजगार कक्ष राज्य भर में रोजगार मेलों का आयोजन भी करता है। इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2016 तक विभाग चार रोजगार मेलों का आयोजन कर चुका है, जिसमें 1276 नियुक्तियां की गई है।
सरकार द्वारा विकलांग व्यक्तियों को रोजगार सहायता प्रदान करने हेतु श्रम एवं रोजगार निदेशालय में प्रभारी अधिकारी ;स्थापनाद्ध के अधीन वर्ष 1976 से विशेष रोजगार कार्यालय ;दिव्यागों हेतुद्ध की स्थापना की गई। यह कक्ष दिव्यागों को आवेदन करने पर व्यावसायिक मार्गदर्शन एवं सार्वजनिक एंव नीजि क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों में रोजगार दिलवाने में सहायता करता है। समाज के इस कमजोर वर्ग को कई प्रकार की सुविधायें/रियायतें दी गई हैं जैसे कि मैडिकल बोर्ड द्वारा मुुुफ्त स्वास्थ्य परीक्षा, ऊपरी आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट, ऊपरी अंगों की (हाथ तथा बाजू) अपंगता होने पर टंकण करने की छूट, तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी की रिक्तियों में 3 प्रतिशत का आरक्षण, महिलाआंेे के लिए खोले गये औद्यौगिक प्रशिक्षण संस्थान आई.टी.आई, सिलाई तथा कटाई केन्द्र में 5 प्रतिशत सीटों का आरक्षण तथा 200 रोस्टर प्वांईट में आरक्षण का निर्धारण जो कि पहला, 30वां, 73वां, 101वां, 130वां, 173वां है। ;पहला व 101वां दृष्टिहीनों के लिए, 30वां तथा 130वां गंुगे-बहरों के लिए, 73वां तथा 173 लोकोमोटर अपंगता वालों के लिए हैद्ध वर्ष 2016-17 के दौरान दिसम्बर, 2016 तक सक्रिय पंजिका में 529 दिव्यांगों को पंजीकृत करके विकलांग पंजीकृतों की संख्या 17,173 हो गई है तथा 30 दिव्यांग व्यक्तियों की नियुक्ति हुई है।
बन्धुआ मजदूर प्रणाली ;उन्मूलनद्ध अधिनियम-1976 के अंतर्गत् राज्य सरकार ने जिला सतर्कता समितियां तथा उप-मण्डल सतर्कता समितियों का गठन बन्धुआ मजदूर प्रणाली के कार्यान्वयन एवं मोनिटरिंग के हेतु किया गया है। बन्धुआ मजदूर प्रणाली तथा अन्य सम्बन्धित अधिनियमों पर स्टैंडिंग कमेटी आॅन एक्सपर्ट गु्रप की रिपोर्ट पर आधारित राज्य स्तरीय समिति का गठन किया गया है। राज्य सरकार ने औद्योगिक झगड़े निपटाने के लिए दो श्रम न्यायालय एवं औद्योगिक न्याय प्राधिकरण स्थापित किये हैं जिसमें से एक का मुख्यालय शिमला में है, जिसका कार्य क्षेत्र जिला शिमला, किन्नौर, सोलन व सिरमौर है तथा दूसरा धर्मशाला में है, जिसका कार्य क्षेत्र जिला कांगड़ा, चम्बा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, मण्डी, कुल्लू एवं लाहौल-स्पिति है। श्रम न्यायालयों एवं औद्योगिक अधिकरणों के पीठासीन अधिकारी जिला एवं सत्र न्यायधीश नियुक्त किये गए हैंै।
राज्य कर्मचारी बीमा योजना सोलन, परवाणु, बरोटीवाला, नालागढ़, बद्दी जिला सोलन, मेहतपुर, गगरेट, बाथरी जिला ऊना, पांवटा साहिब, काला अम्ब जिला सिरमौर, गोलथाई जिला बिलासपुर, मण्डी, रती, नैर चैक, भंगरोटू, चक्कर व गुटकर, जिला मण्डी, औद्योगिक क्षेत्र शोघी व शिमला नगर-निगम क्षेत्र जिला शिमला में लागू हैं। लगभग 6,500 संस्थानों में 2,41,250 बीमा कामगार/कर्मचारी इस योजना के अंतर्गत दिनांक 31.12.2016 तक पंजीकृत किए गए हैं। कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम के अंतर्गत दिनांक 31.12.2016 तक 11,345 संस्थानों में कार्यरत 12,94,533 ;अनुमानितद्ध कामगारों को लाया गया।
प्रदेश में औद्योगिक सम्बन्धों की समस्या को औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने के कारण पर्याप्त महत्व दिया गया है। प्रदेश में समझौता तन्त्र विभाग के अधीन कार्यरत हैं तथा औद्योगिक विवादों के समाधान, औद्योगिक शान्ति बनाने, समन्वय और उत्पादनता बनाये रखने में महत्वपूर्ण एजेंसी साबित हुई है। समझौता अधिकारी के कार्य संयुक्त श्रमायुक्त, उप-श्रमायुक्त, तथा श्रम अधिकारियों, व श्रम निरिक्षकों को उनके कार्य क्षेत्र के अनुसार सौंपे गये हैं। यदि निम्न स्तर पर समझौता करवाने में यह प्रक्रिया असफल हो जाती है तो निदेशालय स्तर उच्च अधिकारियों द्वारा उस प्रकार के विवादों/मामलों में हस्तक्षेप किया जाता है।
इस अधिनियम के अंतर्गत जिसमें कल्याणकारी योजनायें जैसे कि मातृत्व/पैतृत्व लाभ, सेवानिवृति पैंशन, पारिवारिक पैंशन, अपंगता पैंशन, चिकित्सा सहायता, बच्चों की शिक्षा हेतु वित्तीय सहायता, स्वंय व दो बच्चों तक की शादी हेतु आर्थिक सहायता, कौशल विकास भत्ता, महिला कामगार को साइकिल व वांशिग मशीन प्रदान करने का प्रावधान, ईण्डक्शन चुल्हा या सोलर कुकर और सोलर लैम्प सभी लाभार्थियों को प्रदान करने का प्रावधान, औज़ार खरीदनें और भवन निर्माण/खरीद हेतु ऋण का प्रावधान है। ऐसे संस्थान जहंा पर 300 से अधिक भवन एंव सन्निर्माण कामगार कार्यरत हों, वहंा पर बोर्ड ट्रांजिट हाॅस्टल निर्माण/किराये पर ले सकता है। दुलहैड़ जिला ऊना में ट्रांजिट हाॅस्टल का निर्माण कार्य किया गया तथा जिला सोलन के घनसोट (नालागढ़) ट्रांजिट हाॅस्टल का कार्य शीघ्र ही पूर्ण कर लिया जाएगा तथा कामगारों की सुविधा के लिए उक्त भवन प्रयोग में लाये जायेंगें। इसके अतिरिक्त जिला ऊना में कौशल विकास संस्थान का निर्माण ृ15.69 करोड़ की लागत से निर्माणधीन है। बोर्ड भवन एवं सन्निर्माण कामगारों को राष्ट्रीय स्वाथ्य बीमा योजना और जनश्री बीमा योजना के अन्तर्गत भी लाया जाता है, ऐसे कामगार जो भवन एंव अन्य सन्निर्माण कामगार बोर्ड के साथ पंजीकृत होंगें। दिनांक 31.12.2016 तक 1,782 संस्थान 1,11,817 लाभार्थी पंजीकृत किये गये है तथा 93,811 लाभार्थियों को ृ40.01करोड़ की राशि बोर्ड द्वारा विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत बांटी गई है और लगभग ृ339.52 करोड़ की धनराशि हिमाचल प्रदेश भवन एवं सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के पास जमा हुई है।
यह योजना हि0प्र0 सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना है जिसके लिए वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए ृ100.00 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। योजना का उद्देेश्य हि0प्र0 के शिक्षित बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास के माध्यम से रोजगार प्राप्त करने की क्षमता बढाने हेतु सहायता करना है। योजना के अन्तर्गत उन पात्र युवाओं, जो कौशल विकास प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हंैं को कौशल विकास भत्ता ृ1,000 प्रतिमाह की दर से व 50 प्रतिशत स्थायी विकलंाग आवेदकांे को ृ1,500 प्रतिमाह की दर से प्रशिक्षण के दौरान अधिकतम चैबीस माह तक देय है। इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2016 तक कौशल विकास भत्ता योजना के अन्तर्गत 72,351 लाभार्थियों (28,549 लाभार्थी पिछले वित्तीय वर्ष से चल रहे हैं तथा 43,802 नए लाभार्थी) को ृ33.25 करोड़ की राशि वितरित कर दी गई है। योजना के प्रारम्भ होने से लेकर दिनांक 31.12.2016 तक कुल ृ116.00 करोड़ कौशल विकास भत्ता 1,58,100 अभ्यार्थियों में वितरित किया गया है।
इस वित्तीय वर्ष में दिसम्बर, 2016 तक कुल 1,44,692 आवेदक रोजगार सहायता हेतु पंजीकृत हुए तथा इस अवधि में 732 आवेदक सरकारी क्षेत्र में 2,273 अधिसुचित रिक्तियों के तहत व 2,509 निजी क्षेत्र में 2,725 अधिसुचित रिक्तियों के तहत नियुक्त हुए। सभी रोजगार कार्यालयों में 31.12.2016 तक सक्रिय पंजिका में कुल संख्या 8,24,478 थी।

13.ऊर्जा

आर्थिक विकास में विद्युत एक महत्वपूर्ण घटक है। अर्थ व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक क्रियाकलापों में उत्प्रेरक की भुमिका स्वीकार्यता के साथ-साथ विद्युत राजस्व उत्पादन, रोजगार के अवसर बढ़ाने व लोगों के रहन-सहन के स्तर व जीवन की गुणवŸाा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। जल विद्युत क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश नेे जल विद्युत के विकास के आर्थिक विस्तार के साथ-साथ पर्यावरण एवं सामाजिक पक्ष की सुरक्षा पर भी बल दिया है। यह भी उसी तर्ज पर है जैसा हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में सम्मिलित हरित व सतत विकास की दिशा में जलवायु परिवर्तनशील पगों को बढ़ावा देती है जो कि प्रदेश के आर्थिक विकास का मुख्य घटक हैं।
प्रदेश ने जल विद्युत क्षेत्र में कुल 27,436 मैगावाट क्षमता का आकलन किया है। परन्तु इसमें से 24,000 मैगावाट को ही दोहन योग्य पाया है, शेष क्षमता को पर्यावरण, को बचाने, परिस्थितिक संतुलन एवं विभिन्न सामाजिक कारणों से त्याग कर दिया गया है। इसीलिए सरकार ने निर्धारित लक्ष्य से जो कि 24,000 मैगावाट है से केवल 21,500 मैगावाट ऊर्जा उत्पादन के लिए ही विभिन्न क्षेत्रों का आवटिंत किया है। राज्य जल विद्युत के विकास को सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी से गति प्रदान हो रही है तथा जल विद्युत विकास को नदियों पर बनें विद्युत परियोजनाओं पर घ्यान केन्द्रित रखा है। अभी तक प्रदेश में 10,351 मैगावाट
ऊर्जा निदेशालय की भौतक एवं वित्तीय उपलब्धियां वित्त वर्ष 2016-17 (दिसम्बर, 2016 तक) और पूर्वानुमानित लक्ष्य 31.3.2017 तक : निर्धारित 375 मैगावाट में से 74 मैगावाट अतिरिक्त क्षमता का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान दिसम्बर, 2016 तक प्राप्त कर लिया है। दो परियोजनाओं बरूआ एच.ई.पी. 9 मैगावाट और कुशांग चरण-एच0ई0पी0 65 मैगावाट और इसके अतिरिक्त 36 मैगावाट की क्षमता वाले चान्जू -प् एच.ई.पी. का 31 मार्च, 2017 तक जोड़ने का लक्ष्य रखा है। विद्युत बाजार में प्रति युनिट कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद भी प्रदेश ने ृ500.00 करोड़ राजस्व लक्ष्य के की तुलना में ृ621.00 करोड़ का राजस्व अर्जित किया गया है। 31 मार्च, 2017 तक शेष अवधि निःशुल्क एवं इक्विटी पाॅवर विक्री से प्रदेश खाते में लगभग ृ70.00 करोड़ प्राप्त होने की सम्भावना है। are 1,712
ऊर्जा निदेशालय को ृ1000.00 करोड़ से कम लागत की परियोजनाओं की तकनीकी सहमति देने का कार्य सौंपा गया है। आज तक विस्तृत अवलोकन के उपरांत 18 परियोजनाओं को स्वीकृति दी है जोकि निजी, राज्य एंव केन्द्रीय क्षेत्रों से सम्बन्धित और जल विद्युत दोहन में संलग्न है। वर्ष 2016-17 में 40 तकनीकी सहमति के लक्ष्य तुलना में 5 सहमतियां मार्च,2017 तक प्रदान की जाएगी।

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ एवं विभागीय योजनाएँ:
i) दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना : दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना (डी०डी०यू०जी०जे०वाई०) में शामिल 35 गावों में से 28 गावों का विद्युतिकरण 30 सितम्बर, 2016 तक ऊर्जा मन्त्रालय भारत सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य व विभागीय तौर पर पूरा कर लिया गया है और बचे हुए 7 गांवों अस्थाई/ मौसमी बस्ती होने के कारण विद्युतिकरण करने की आवश्कता नहीं।
ii) पुनर्गठित त्वरित ऊर्जा विकास और सुधार : कार्यक्रम (आर0ए0पी0डी0आर0पी0) पुनर्गठित त्वरित ऊर्जा विकास और सुधार कार्यक्रम (आर0ए0पी0डी0आर0पी0) के अंतर्गत योजनाएं दो भागों में कार्यान्वित की जाएंगी।
भाग-अ
ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार ने तकनीकि एवं वाणिज्यिक घाटे को (15 प्रतिशत तक) परियोजना क्षेत्रों मे कम करने के लिए पुनर्गठित त्वरित ऊर्जा विकास सुधार कार्यक्रम चालू किया है। यह कार्यक्रम 2 भागों में विभाजित है, भाग (अ) और (ब)। भाग (अ) में तकनीकी एवं वाणिज्यिक घाटे की जांच करने के लिये विभिन्न परियोजनाएं जैसेः आधारभूत आंकडे स्थापित करना एवं सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियां जैसेः मीटर आंकडे एकत्रण, मीटर अध्ययन, बिल बनाना, संग्रहण, जी. आई. एस., एम. आई. एस. ऊर्जा आॅडिट, नए कनैक्शन, कनैक्शन काटना, ग्राहक देख-रेख सेवाएं, वेब सेल्फ सेवाएं इत्यादि। भाग (ब) में वितरण प्रणाली को सुदृढ बनाने के लिए परियोजनाओं को शामिल किया गया है। ऊर्जा मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश में 14 पात्र कस्बों की विस्तृत परियोजना विवरण के आधार पर अगस्त, 2010 में ृ96.40 करोड़ की राशि मंजू़र की है। आर.ए.पी.डी.आर.पी. भाग (अ) के अन्तर्गत परियोजना के लिए कुल लागत ृ128.46 करोड़ है। शेष राशि का प्रबन्ध स्वयं निधि द्वारा करना है। भारत सरकार ने पाॅवर फाइनांस काॅरपोरेशन लिमिटेड को इस कार्यक्रम के लिये नोडल एजेंसी के रुप में नियुक्त किया है। आर-ए.पी.डी.आर.पी. भाग (अ) के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश में 14 कस्बे नामतः शिमला, सोलन, नाहन, पाँवटा, बद्दी, बिलासपुर, मण्डी, सुन्दरनगर, चम्बा, धर्मशाला, हमीरपुर, कुल्लू, ऊना और योल निधिकरण के लिए योग्य पाये गये।
कार्यक्षेत्र : आर-ए.पी.डी.आर.पी. भाग (अ) के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश में निम्नलिखित कार्यों को सम्मिलित किया गया हैः-
1) डाटा सैंटर शिमला, में, डिज़ास्टर रिकवरी सेंटर पाँवटा साहिब में और उपर वर्णित 14 कस्बों के विभिन्न कार्यालयों में अपेक्षित हार्डवेयर, साॅफ्टवेयर एवं बाह्य उपकरणों को उपलब्ध करवाना है।
2) डाटा सैंटर / और डिजास्टर रिकवरी सैंटर स्तर पर निम्नलिखित साॅफ्टवेयर प्रणालियों का विकास एवं कार्यान्वयन।
a) मीटर आंकडे एकत्रण प्रणाली।
b) ऊर्जा आॅडिट। ,
c) आइडेंटिटी एवं एसेस मैनेजमेंट प्रणाली।
d) मैनेजमेंट सूचना प्रणाली एवं डाटा वेयर हाउसिंग युक्त बिज़नैस इंटैलिजेंस टूलज।
e) इन्टरप्राइज मैनेजमेंट प्रणाली एवं नेटवर्क मैनेजमेंट प्रणाली जोकि हार्डवेयर का भाग है।
परामर्षदाता/कार्यान्वयन शाखा चयन : मै0 टेलिकम्युनिकेशन कन्सल्टैंट इंडिया लिमिटेड़, नई दिल्ली को सहायता संघ मै0 वयाम टैकनोलोजी इंड़िया लिमिटेड के साथ संयुक्त रुप से आई.टी. सलाहकार के रुप में 31.07.2009 को कुल लागत ृ39.71 लाख में चयनित किया गया। आई.टी. सलाहकार का उद्देश्य उपयुक्त विवरण बनाने, बोली दस्तावेज, बोली प्रक्रिया एवं कार्यान्वयन पर नजर रखने में हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड की सहायता करना है। मै0 एच. सी. एल. इन्फोसिस्टमस् लिमिटेड, नोएड़ा कोे आई. टी. कार्यान्वयन शाखा के रुप में 30.08.2010 को कुल लागत ृ99.14 करोड़ अबार्ड की गई थी जिसे बाद में 99.13 करोड़ पर संशोधित किया है।
नवीनतम स्थिति : डाटा सैंटर, व डिज़ास्टर रिकवरी सेंटर, क्रमशः शिमला व पाँवटा साहिब में चालू हो गए हंै। हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड ने जुलाई, 2014 में 14 कस्बांे को ऊर्जा मंन्न्ाालय, भारत सरकार के समक्ष लाइव घोषित कर दिया है। डाटा सैंटर, डिजास्टर रिकवरी सैंटर, और 14 कस्बों के विभिन्न कार्यालयों का उपयोगकर्ता स्वीकृति परीक्षण (न्।ज्) पूर्ण कर लिया गया है। ज्च्प्म्। आई0 टी0 ने प्रमाणीकरण का कार्य पूर्ण कर लिया है तथा नवम्बर, 2016 के पहले सप्ताह में रिपोर्ट मै0 पी0एफ0सी0 को सौंप दी है। आर-ए0पी0डी0आर0पी0 पार्ट ए परियोजना पूर्ण हो चुकी है तथा प्रमाणीकरण की स्वीकृति मै0 पी0एफ0सी0 के द्वारा 31 मार्च, 2017 तक जारी करने की सम्भावना है।
कार्यक्रम से अपेक्षित लाभ : आर-ए0पी0डी0आर0पी0 भाग (अ) योजना का मुख्य उद्देश्य घाटे को निरन्तर कम करके दिखाना है तथा सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग निरन्तर सही आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए, ऊर्जा आॅडिट के क्षेत्र में एक विश्वसनीय एवं स्वचालित पद्धति को स्थापित करना है।
भाग-“ब“
हिमाचल प्रदेश में 14 (चैदह) कस्बों नामतः बद्दी, बिलासपुर, चम्बा, धर्मशाला, हमीरपुर, कुल्लु, मण्डी, नाहन, पौंटा साहिब, सोलन, शिमला, सुन्दरनगर, ऊना और योल की जनसंख्या 10,000 से ज्यादा होने के कारण यह कस्बे आर-ए0पी0डी0आर0पी0 (भाग-ब) भारत सरकार पोषित के अधीन रखे गए हैं। इन कस्बों के लिए योजना मेें नवीनीकरण, आधुनिकीकरण, और 11के0वी0 तथा 22 के0वी0 स्तर के उपकेन्द्रों, ट्रांसफारमरांे/ट्रांसफारमर केन्द्रों, 11 के0वी0 और एल0टी0 लाईनों का पुनः संचालन, लोड का विभाजन, फीडर विभाजन, लोड संतुलन, एच0वी0डी0एस0 (11के0वी0), ंतपंस इनदबीमक बवदकनबजवतपदहए विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा मीटरों की टैंपरप्रूफ मीटरों के साथ प्रतिस्थापना, कपैस्ट्र बैंक की स्थापना, चलते-फिरते सर्विस केन्द्र और 33 के0वी0 या 66 के0वी0 प्रणाली को सुदृढ़ करने का प्रावधान है। शुरू में आर-ए0पी0डी0आर0पी0 (भाग-ब) योजना के तहत हिमाचल प्रदेश के सभी 14 कस्बों के लिए ृ322.18 करोड़ (ऋण 289.97 करोड़) मै0पी0एफ0सी0 /ऊर्जा मन्त्रालय, द्वारा स्वीकृत किए गए थे। 66/11 के0वी0 उपकेन्द्रों के निर्माण के लिए जमीन की उपलब्धता न होने के कारण और सम्बन्धित 66 के0वी0 लाईनों के मार्गाधिकार की समस्या के चलते बद्दी तथा शिमला कस्बों की योजनाओं को संशोधित किया गया। शिमला और बद्दी कस्बों की संशोधित आर-ए0पी0डी0आर0पी0 (भाग-ब) की डी0पी0आर0 के लिए मै0 पी0एफ0सी0 ने क्रमशः ृ120.34 करोड़ और ृ84.10 करोड़ की राशि दिनांक 08.02.2012 को स्वीकृत कर दी थी और योजना के लिए भारत सरकार से स ्वीकृत प्रारम्भिक राशि 322.18 करोड़ (ऋण की राशि ृ289.97 करोड़) को ृ338.97 करोड़ (ऋण की राशि 305.07 करोड़) पर संशोधित किया गया। शुरू में मै0 पी0एफ0सी0 द्वारा इन 14 कस्बों के लिए ृ101.68 करोड़ की पहली किस्त अग्रिम राशि के रूप में जारी की है। कस्बावार आर-ए0पी0डी0 आर0पी0 भाग (ब) की योजनाओं की स्वीकृति का ब्यौरा टेबल- 13.2 पर दर्शाया गया है।
iii) एकीकृत विद्युत विकास योजना (आईपीडीएस): भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने इंटीग्रेटेड पावर लॉन्च किया है शहरी परिवारों के विद्युतीकरण के लिए विकास योजना (आईपीडीएस)। आईपीडीएस के तहत परियोजना के उद्देश्य इस प्रकार हैं:-
a) शहरी क्षेत्रों में उप-पारेषण और वितरण नेटवर्क को मजबूत बनाना, जिसमें सरकार पर सौर पैनल और नेट-मीटरिंग का प्रावधान शामिल है। इमारतें.
b) शहरी क्षेत्रों में फीडरों/वितरण ट्रांसफार्मरों/उपभोक्ताओं की मीटरिंग प्रदान करना।
c) सीसीईए अनुमोदन दिनांक 21.06.2013 के अनुसार, वितरण क्षेत्र को आईटी सक्षमता प्रदान करना और वितरण नेटवर्क को मजबूत करना। आईपीडीएस में आर-एपीडीआरपी को सम्मिलित करके और आर-एपीडीआरपी के लिए अनुमोदित परिव्यय को आईपीडीएस में आगे बढ़ाकर 12वीं और 13वीं योजना के लिए आर-एपीडीआरपी के तहत निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करना।
हिमाचल प्रदेश में 12 एचपीएसईबीएल ऑपरेशन सर्कल (जनगणना 2011 के अनुसार 54 शहरी कस्बे) को एकीकृत विद्युत विकास योजना (आईपीडीएस) के तहत कवर किया गया है। केंद्र स्तरीय निगरानी समिति ने आईपीडीएस परियोजनाओं के लिए `110.60 करोड़ (जिसमें भारत सरकार के अनुदान के रूप में `93.94 करोड़ शामिल हैं) को मंजूरी दे दी है। परियोजना प्रबंधन एजेंसी (पीएमए) के लिए `0.55 करोड़ (यानी परियोजना लागत का 0.05 प्रतिशत)। पीएमए के संबंध में, एचपीएसईबीएल ने परियोजना का कार्य प्रदान किया है 09-09-2015 को हिमाचल प्रदेश में आईपीडीएस परियोजनाओं के लिए मैसर्स WAPCOS लिमिटेड को प्रबंधन एजेंसी (पीएमए)। सरकार के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। हिमाचल प्रदेश, एचपीएसईबीएल और मैसर्स पीएफसी लिमिटेड में दिसंबर, 2015 का महीना। अब तक मेसर्स पीएफसी लिमिटेड द्वारा 10 प्रतिशत अग्रिम अनुदान यानी `9.39 करोड़ जारी किया जा चुका है। आईपीडीएस योजना के तहत कार्य होंगे पूर्ण टर्नकी आधार पर निष्पादित। बारह एचपीएसईबीएल सर्किलों के लिए निविदाएं क्रमशः 06-10-2016 और 14-10-2016 को जारी की गई हैं। साथ ही, फंडिंग के अनुसार भी तालिका 13.3 में दिए गए प्रत्येक आईपीडीएस परियोजना के लिए 10 प्रतिशत काउंटर पार्ट ऋण की व्यवस्था।
पद्ध जी. आई. एस./जी. पी. एस आधारित परिसम्पति मानचित्रण, उपभोक्ता इंडैक्सिग एवं एच. पी. एस. ई. बी. एल. की सम्पति के मूल्यांकन सहित एच. पी. एस. ई. बी. एल. के स्थाई सम्पत्ति पंजिका को तैयार करना, जी. आई. एस. पैकैज कहा जाता है।
(i) एच.पी.एस.ई.बी. लिमिटेड़ ने पूरे बोर्ड का जी. आई. एस./जी. पी. एस आधारित उपभोक्ता अनुक्रमण सहित सम्पति मानचित्रण और एच.पी.एस.ई.बी.एल. के सम्पति का मूल्यांकन, करने का निर्णय लिया था, जिसको बोर्ड के नवीनतम बैंलेंस शीट के साथ उचित मिलान के बाद उत्पादन, संचालन और वितरण विंगों के लिए इनके वर्तमान मूल्य के आधार पर स्थाई सम्पत्ति पंजिका को तैयार किया जाएगा। परियोजना के पहले भाग को पहले ही दिसम्बर, 2011 के अन्त में पूर्ण कर लिया गया है। परियोजना के दूसरे भाग के अन्तर्गत तीनों फर्मों ने फील्ड सर्वे का कार्य पूर्ण कर लिया है। फर्मों द्वारा तैयार की गई मूल्यांकन रिर्पोट बोर्ड के सम्बंधित कार्यालयों में स्वीकृती के लिए पेश कर दी है। इस कार्य के मार्च, 2017 तक पूर्ण होने की सम्भावना है।
(ii) पपद्ध. कम्पयूटरीकृत बिलिंग और ऊर्जा लेखा पैकेज (आई.टी. पैकेज) : कम्पयूटरीकृत बिलिंग और ऊर्जा लेखा पैकेज (आई.टी. पैकेज), त्वरित विद्युत विकास एवं सुधार कार्यक्रम(ए.पी.डी.आर.पी.) के तहत विद्युत मन्त्रालय (एम.ओ.पी.) द्वारा शुरू किया गया है। इस परियोजना के तहत परिचालन उपमण्ड़लों की गतिविधियां जैसे कि पूर्व बिलिंग क्रियाएं, बिलिंग क्रियाएं, बिलिंग के बाद क्रियाएं, कानूनी एवं सर्तकता गतिविधियां, उपमण्ड़ल स्तर पर स्टोर प्रबन्धन, ग्राहक सम्बन्ध प्रबन्धन, विद्युत नैटवर्क प्रबन्धन और ऊर्जा लेखा/लेखा परीक्षा और प्रबन्धन सूचना प्रणाली (एम.आई.एस.) को कम्पयूटरीकृत करना है। मै0 एच. सी. एल. इन्फोसिस्टमस् लिमिटेड, नोएड़ा कोे कुल लागत ृ30.58 करोड़ अवार्ड किए गए है। परियोजना में 27 मण्ड़लों के 128 उपमण्ड़लों और 12 वृतों जिनमें 12 लाख से अधिक उपभोक्ता को शामिल गया है।
(iii) पपपद्ध 61 विद्युत उपमंडलों में एस0ए0 पी0 अधारित कम्पयूटरीकृत बिलिंग :विभिन्न विद्युत उपमंडलों में कम्पयूटरईज बिलिंग के कार्यान्वयन के दौरान समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड प्रबन्धन द्वारा बिलिंग के लिए मानक मंच में जाने का निर्णय लिया है। ई0आर0पी0 परियोजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड द्वारा ै।च् के विभिन्न मौडयूल्ज़ का कार्यान्वयन किए जा रहे हैं अतः विभिन्न प्लेटफार्मो की हैंडलिंग से बचने के लिए बचे हुए 61 विधुत उपमंडलों में कम्पयूटराईज बिलिंग को ै।च् प्लेटफार्म के आधार पर स्वीकृत किया है। ै।च् बिलिंग को 61 नए विधुत उपमंडलों में कार्यान्वयन के लिए यह कार्य मै0 टी0 सी0 एस0 लि0 को 24.07.2015 में ृ16.47 करोड़ में आबंटित किया गया है। नया कनैकशन, डीसकनैक्शन, मीट्रींग, ए0एम0आर0, बिलिंग, स्पाट बिलिंग, कलैक्शन और एम आई एस जैसी प्रमुख विषेशताएं सैप बिलिं़ग के 61 नए विद्युत उपमंडलों में कार्यान्वयन की है। 61 विद्युत सब डिविज़नों में 100 के0 वी0 से ज्यादा कनैक्टड लोड वाले उपभोक्ताओं के लिए सैप आधारित कम्पयूटराईज बिलिंग में ए0एम0आर0 का भी प्रावधान किया गया है। इस परियोजना के अंतर्गत, आपूर्ति, स्थापना, एम0डी0ए0 एस0 की कमीशनिंग व उपभोक्ताओं के मीटर को मोडम उपलब्ध व फिक्स करवाना जैसे कार्य शामिल है।
(iv) ;पअद्ध उद्यम संसाधन योजना (ई.आर.पी.) का हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रीसिटी बोर्ड लिमिटेड में कार्यान्वयन ई0 आर0 पी0 परियोजना के तहत हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड के निम्नलिखित कार्यों को पूरी तरह से स्वचलित किया जाएगाः-
a) वित्तीय प्रबन्धन और लेखा।
b) मानव संशाधन प्रबन्धन पेरोल सहित
c) परियोजना प्रबन्धन
d)सामग्री प्रबन्धन
e) रखरखाव प्रबन्धन
f) उपलब्धता के आधार पर टैरिफ और एम0 आई0 एस0 उद्देश्य के लिए वरिष्ठ प्रबन्धन के लिए डैश बोर्ड भी उपलब्ध होगा। परियोजना की कुल लागत लगभग ृ24.00 करोड़ है। इस कार्य को मैसर्ज टी.सी.एस. को अवार्ड किया गया है
1) अभी तक हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड के निम्नलिखित कार्यालयों में ई0 आर0 पी0 के अन्तर्गत सैप को चालू किया गया हैः-
2) मुख्यालय विद्युत भवन शिमला
3) परिचालन वृत शिमला, सोलन, नाहन, रोहडू, रामपुर तथा विद्युत प्रणाली रखरखाव विंग (ट्रांसमिशन विंग)।
4) परियोजना हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड की सभी इकाईयों में चरणबद्व तरीके से कार्यान्वयन की जा रही है। दक्षिण क्षेत्र (परिचालन) तथा विद्युत प्रणाली रखरखाव विंग में यह कार्य पूर्ण कर लिया गया है और मध्य क्षेत्र (परिचालन) में सैप ई0 आर0 पी0 प्रणाली सेे अप्रैल/मई 2017 तक चालू कर दिया जाएगा। अन्य बचे हुए ईकाइयों को चरणवद्ध तरीके से इस प्रणाली में लाया जाएगा।
(v) अद्ध हिमाचल प्रदेष के काला अम्ब में स्र्माट ग्रिड पायलट परियोजना का कार्यान्वयन : हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड काला अम्ब में स्र्माट ग्रिड पायलट परियोजना के कार्यान्वयन कर रहा है। विद्युत मन्त्रालय, भारत सरकार इस परियोजना के कार्यान्वयन केलिए 50 प्रतिशत वित्तिय सहायता प्रदान कर रहा है। विद्युत मन्त्रालय के दिशानिर्देश के अनुसार मै0 च्ळब्प्स् को हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड का इस परियोजना के लिए ।कअपेवत बनउ बवदेनसजंदबल ेमतअपबमे चतवअपकमत नियुक्त किया है। इस परियोजना के कार्यान्वयन का कार्य डध्े ।सेजवउज्-क् प्दकपं च्अजण् स्जकण् और डध्े ळमदने च्वूमत प्दतिंेजतनबजनतम स्जकण् को फरवरी, 2015 में ृ24.99 करोड़ में आबंटित कर दिया गया है अब इसकी लागत ृ25.50 करोड़ संशोधित की गई है। आबंटित के अनुसार यह कार्य 18 महीने में पूर्ण करना होगा तथा इस कार्य के मार्च, 2017 तक पूर्ण होने की सम्भावना है।
उहल चरणप्प्प् जल विद्युत परियोजना (100मै0वा0) : परियोजना की अनुमानित लागत दिसम्बर, 2012 के मुल्यों पर आधारित ृ1,281.50 करोड़ है। परियोजना के ईलैक्ट्रो-मैकेनिकल तथा ट्रांसमिशन कार्य जैसे कि चुलाह से बस्सी 132ज्ञट ैपदहसम ब्पतबनपज ;15ण्29ज्ञडद्ध और 132ज्ञट चुलाह से हमीरपुर क्वनइसम ब्पतबनपज ज्तंदेउपेेपवद ;34ण्31 ज्ञडद्ध लाईन का कार्य भी पूर्ण हो चुका है। परियोजना के जून, 2017 तक चालू होने की सम्भावना है।
नई परियोजनाएं : हि0प्र0 सरकार द्वारा नई परियोजनाओं के अन्तर्गत देवी कोठी (16 मैगावाट), साई कोठी-प्प्(16.50 मैगावाट), हेल एच.ई.पी.(18 मैगावाट), राइसन(18 मैगावाट), बटसेरी (60 मैगावाट) और नई नोगली (9 मैगावाट) हिमाचल प्रदेशराज्य विद्युत निगम को आवंटित की है। इसके अतिरिक्त हिम ऊर्जा ने हिमाचल प्रदेश स्टेट इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड को स्वयं पहचान श्रेणी के अंतर्गत कार्यान्वयन हेतु 19.12.2016 को दो छोटी जल विद्युत परियोजनाएं कुटाहर जल विद्युत परियोजना (4.5 मैगावाट) और टिक्कर जल विद्युत परियोजना (3.5 मैगावाट) आवंटित की है।
हि0प्र0 पा0 का0 लि0 के द्वारा मुख्य निर्माणाधीन/ निष्पादनाधीन / अन्वेक्षित परियोजना
1. साबड़ा कुड्डू जल विद्युत परियोजना (111 मै0वा0) : साबड़ा कुड्डू जल विद्युत परियोजना (111 मै0वा0) रोहड़ू के समीप शिमला जिला में पब्बर नदी पर विकसित की जा रही है। इस परियोजना के एच.आर.टी. पैकेज को छोड़ कर वित्त पोषण एशियन डेवलपमैंट बैंक द्वारा किया गया है। एच.आर.टी. पैकेज का वित पोषण पावर फाइनेंस कारपोरेशन तथा राज्य सरकार द्वारा इक्विटी योगदान के द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना से 385.78 मिलियन यूनिट ऊर्जा उत्पन्न होगी।इस परियोजना को सितम्बर, 2017 में पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
2. एकीकृत कशांग जल विद्युत परियोजना (243 मै0वा0) : I एकीकृत कशांग जल विद्युत परियोजना कशांग और कैरांग नालों (जोकि सतलुज नदी की उपनदियां) हैं पर निम्न चार अवस्थाओं में बनाया जा रहा हैः-
चरण-I (65 MW):प्रथम चरण में कुशांग नाले का पानी मोड़कर कुल 830 मी0 ऊंचाई का उपयोग करके सतलुज नदी के दाहिने किनारे पुवारी गांव में भूमिगत विद्युतगृह में प्रति वर्ष 245.80 लाख मिलियन यूनिट ृ2.92 प्रति यूनिट दर पर उत्पादन किया जाएगा।
चरण-II & III (130 MW): प्रथम चरण की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए केरांग धारा का पथांतरण कर भूमिगत जल परिचालक तंत्र द्वारा प्रथम चरण की उपरी धारा में सम्मिलित कर प्रथम चरण की उपलब्ध 820 मी0 ऊंचाई का उपयोग करके प्रति वर्ष 790.93 मिलियन यूनिट उत्पादन किया जाएगा।
चरण-IV (48 MW): यह योजना मूलतः स्वतंत्र योजना है। इस योजना में लगभग 300 मी0 ऊंचाई का उपयोग कर केरांग धारा के दाहिने किनारे भूमिगत विद्युतगृह बनाकर ऊर्जा उत्पादन किया जाएगा।.
3. सैंज जल विद्युत परियोजना (100 MW): सैंज एचईपी पर विचार किया गया है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में ब्यास नदी की सहायक नदी सैंज पर नदी विकास की एक श्रृंखला के रूप में। इस परियोजना में शामिल है a निहारनी गांव के पास सैंज नदी पर डायवर्जन बैराज और सुइंद गांव के पास सैंज नदी के दाहिने किनारे पर भूमिगत बिजली घर प्रति वर्ष 322.23 एमयू उत्पन्न करने के लिए 409.60 मीटर का सकल शीर्ष। परियोजना को ईपीसी मोड पर क्रियान्वित किया जा रहा है और निर्माण कार्य प्रगति पर हैं।
4. शोंगटोंग करचम एचईपी (450 MW): शोंगटोंग कड़छम जल विद्युत परियोजना सतलुज नदी पर जिला किन्नौर में पोवारी गांव के पास स्थित है और सतलुज नदी के दाहिने किनारे पर रली गांव के समीप भूमिगत विद्युतगृह में कुल 129 मी0 ऊंचाई का उपयोग करके प्रति वर्ष 1579 मिलियन यूनिट उत्पादन किया जाएगा। यह परियोजना ई.पी.सी विधि द्वारा निर्मित की जा रही हैैं। इस परियोजना का सिविल और जल-यांत्रिक पैकेज अगस्त, 2017 और ई.एण्ड.एम पैकेज को जनवरी, 2020 मंे पूर्ण किये जाने का लक्ष्य है।
5. सुरगानी सुन्डला जल विद्युत परियोजना (48 MW): इस परियोजना की परिकल्पना बैरा सियूल जल विद्युत परियोजना का टेल पानी के उपयोग द्वारा की गई है ताकि 48 मैगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सके।
6. रेणुका डैम जल विद्युत परियोजना (40 MW) : रेणुका डैम जल विद्युत परियोजना जो ददाहू जिला सिरमौर में गिरी नदी पर शुरू की जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए पेयजल की आपूर्ति योजना के लिए 148 मीटर ऊंची चट्टान से पानी गिराकर छोर पर विद्युत गृह बनाया जाएगा। इसके जलाशय में 49,800 हैक्टर मीटर पानी का संग्रह सुनिश्चित किया जाएगा तथा जिसमें से 23 क्युसिक्स मीटर पानी दिल्ली को स्थिर आपूर्ति के अतिरिक्त, हिमाचल प्रदेश प्रति वर्ष 199.99 मिलियन यूनिट ृ2.38 प्रति यूनिट की दर से बिजली का उत्पादन अपने उपयोग के लिए करेगा।
7. दियांेथल चान्जू जल विद्युत परियोजना (30 MW): दियोंथल चान्जू जल विद्युत परियोजना का विकास चम्बा जिला में रावी बेसिन में दियोंथल नाले पर किया जा रहा है जो कि बैरा नदी की एक सहायक नदी है। इस परियोजना से प्रति वर्ष 101.35 मिलियन युनिट ऊर्जा उत्पन्न करने की उम्मीद है।
8. सौर ऊर्जा परियोजनाएं : हिमाचल प्रदेश पाॅवर काॅरपोरेशन लिमिटिड दो सौर ऊर्जा संयंत्रों बेरा-डोल 3.36 मेगावाट समीप श्री नैना देवी जी मंदिर जिला बिलासपुर और ऐगलोर 10 मेगावाट जिला ऊना में स्थापना करना चाहता है। ऐगलोर 10 मेगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र की डीपीआर तैयार की जा रही है। जिला बिलासपुर के नयना देवी मंन्दिर क्षेत्र में 3ण्36 सौर ऊर्जा के लिए क्षेत्र का चयन किया गया है। इस परियोजना से प्रतिवर्ष 5ण्59 मिलियन यूनिट ऊर्जा उत्पन्न होगी। इस परियोजना की औसत उत्पादन मूल्य प्रति युनिट ृ5ण्85 अनुमानित की गई है।
9. चान्जू-प्प्प् जल विद्युत परियोजना (48 मै0वा0) : चान्जू जल विद्युत परियोजना का विकास चम्बा जिला में रावी बेसिन में चान्जू नाले पर किया जा रहा है जो कि बैरा नदी की एक सहायक नदी है। इस परियोजना से प्रति वर्ष 176.19 मिलियन युनिट ऊर्जा उत्पन्न करने की उम्मीद है।
10 थाना पलोन परियोजना (191 मै0वा0) : थाना पलोन जल विद्युत परियोजना की परिकल्पना हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले में ब्यास नदी पर 107 मीटर ऊंचे रोलर जमा कंकरीट गुरूत्वाकर्षण बांध के रूप में की गई है। इस परियोजना से प्रतिवर्ष 668.07 मिलियन युनिट ऊर्जा उत्पन्न 90 प्रतिशत पर करने की उम्मीद है।
हिमाचल प्रदेश पावर ट्रांसमिशन काॅरपोरेशन लिमिटिड जो कि हि.प्र. सरकार का एक सरकारी उपक्रम है। इसका उद्देश्य प्रदेश के विद्युत संचार प्रणाली को मजबूत करने तथा भविष्य में बनने वाली जल विद्युत परियोजनाओं को विद्युत संचार की सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया। हि0 प्र0 सरकार के द्वारा कार्पोरेशन को सौंपे गए कार्यों में मुख्यतः प्रदेश में बनने वाली सभी नई 66 के0वी0 की क्षमता से ऊपर की लाईनों व विद्युत उपकेन्द्रों के निर्माण करने के साथ-2 विद्युत वोल्टेज में सुधार, वर्तमान संचार ढंाचे में सम्बर्धन व मजबूती प्रदान करने तथा विद्युत उत्पादन केन्द्रों व संचार लाईनों का निर्माण करते हुए प्रदेश के मास्टर संचार प्लान को लागू करना सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त निगम को एक स्टेट ट्रांसमिशन यूटीलिटी का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है जिसके अन्तर्गत संचार से जुड़े सभी मुद्दों पर सैन्ट्रल ट्रांसमिशन यूटीलिटी, केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण, केन्द्रीय व राज्य के ऊर्जा मंत्रालयों तथा हि0प्र0 राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड से समन्वय रखने के अतिरिक्त निजी, केन्द्र व राज्य क्षेत्र के विद्युत उत्पादक इकाईयों के लिए संचार से जुड़ी योजना बनाना भी सम्मिलित है। संचार प्रणाली की योजना बनाते समय विश्वसनियता, सुरक्षा, पर्यावरण हितैषी तथा आर्थिकी के साथ-साथ प्रदेश की जनता की स्वच्छ, सुरक्षित व स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण की उम्मीदों को भी प्राथमिकता के आधार पर ध्यान में रखा जा रहा है। भारत सरकार द्वारा हि.प्र. ऊर्जा संचार निगम को 350 मिलियन डाॅलर का ऋण एशियन विकास बैंक के माध्यम से स्वीकृत किया गया है जिसमें से प्रथम चरण परियोजना ट््रांसमिशन जिला किन्नौर (सतलुज बेसिन) और (शिमला पव्वर वेसिन) के कार्य के लिए 113 मिलियन डाॅलर के ऋण का समझौता हस्ताक्षरित हो चुका है तथा जनवरी,2012 से प्रभावी हो गया है और निम्न संचार परियोजनाएं क्रियान्वित हुई हैं।
1) किनौर जिले में 400/220/66 के0वी0 2×315 एम.वी.ए. क्षमता के विद्युत उप-केन्द्र, वांगतू का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की अनुमानित लागत ृ310.00 करोड़ है, और दिसम्बर, 2017 में चालू हो जाएगी।
2) किनौर जिले में 220/66/22 के0वी0 के विद्युत उप-केन्द्र, भोक्टू का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की अनुमानित लागत ृ27.00 करोड़ है, और फरवरी, 2017 में चालू हो जाएगी।
3) 400/220/66 के0वी0 2×315 एम0वी0ए0 क्षमता के विद्युत उप-केन्द्र, प्रगति नगर, (कोटखाई) जिला शिमला का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की अनुमानित लागत ृ144.00 करोड़ है, और अगस्त, 2017 में चालू हो जाएगा।
4) हाटकोटी से प्रगति नगर जिला शिमला में 220 के.वी. क्षमता की संचार लाईन का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की अनुमानित लागत ृ62.00 करोड़ है, और अगस्त, 2017 में चालू हो जाएगा।
5) 33/132 के.वी. 31.5 एम वी ए के क्षमता के विद्युत उपकेंद्र पंडोह का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की लागत ृ37.00 करोड़ है, और अगस्त, 2017 में चालू हो जाएगा।
6) 33/132 के.वी. 2ग्25/31.5 एम वी ए के क्षमता के विद्युत उपकेंद्र चंबी (शाहपुर) का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की लागत ृ45.00 करोड़ है और अगस्त, 2018 में चालू हो जाएगा। एशियन विकास बैंक ऋण के ट्रांच-।। में 110 मिलियन डालर के ऋ़ण का समझौता सितम्बर, 2014 में हस्ताक्षरित हो चुका है
जिसके अन्तर्गत सात परियोजनाओं का कार्य जारी कर दिया गया है।
1) 66 के.वी. विद्युत उप-केन्द्र उर्नी का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की तय लागत ृ28.00 करोड़ है, और अगस्त, 2017 में चालू हो जाएगा।
2) 400/220/33 के.वी. विद्युत उप-केन्द्र लाहल का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की तय लागत ृ233.00 करोड़ है, और जून, 2018 में चालू हो जाएगा।
3) 220 के.वी. संचार लाईन छरोर से बनाला का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की तय लागत ृ47.00 करोड़ है और जून, 2017 में चालू हो जाएगा।
4) 220 के.वी. संचार लाईन लाहल से बुधिल का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की तय लागत ृ5.00 करोड़ है, और जुलाई, 2017 में चालू हो जाएगा।
5) 132 के.वी. विद्युत उप-केन्द्र चंबी से कांगड़ा-देहरा लाईन का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की अनुमानित लागत ृ 18.00 करोड़ है, अगस्त, 2017 में चालू हो जाएगा।
6) 66 के.वी. संचार लाईन उर्नी से वांगतु का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की तय लागत ृ14.00 करोड़ है, और जून, 2018 में चालू हो जाएगा।
7) 220 के.वी. संचार लाईन सुंडा से हाटकोटी का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की तय लागत ृ56.00 करोड़ है, और दिसम्बर,2017 में चालू हो जाएगा।
हिमऊर्जा ने अक्षय ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने हेतु भरसक प्रयास किए हैं। यह कार्यक्रम प्रदेश में भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय तथा राज्य सरकार की वित्तीय सहायता से कार्यान्वित किया गया है। ऊर्जा कार्यकुशल तथा अपारम्परिक ऊर्जा साधनों जैसे सौर जल तापीय संयंत्र, सौर कुक्कर सौर प्रकाशवोल्टिय रोशनियां इत्यादि को लोकप्रिय बनाने हेतु प्रयास जारी हैं। हिमऊर्जा सरकार को राज्य में लघु जल विद्युत ;5 मै0वा0 तकद्ध के तीव्र दोहन हेतु भी सहायता प्रदान कर रही है। वर्ष 2016-17 के दौरान उपलब्धियां (दिसम्बर, 2016) तक तथा मार्च, 2017 तक प्रत्याशित तथा वर्ष 2017-18 के लिए निर्धारित लक्ष्य का ब्यौरा निम्न हैः
A. सौर उष्णता संबन्धी कार्यक्रम
i) सौर जल तापन प्रणाली: पद्ध. सौर जल तापीय संयत्रः वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक 7,500 लीटर प्रतिदिन क्षमता के सौर जल तापीय संयत्र स्थापित किए गए हैं तथा मार्च, 2017 तक प्रत्याशित उपलब्धि 10,000 लीटर प्रतिदिन होगी। वर्ष 2017-18 के लिए 10,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता के सौर जल तापीय संयत्रो की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
ii) सोलर कुकर: पपद्ध. सौर कुक्करः वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक 48 वाक्स टाईप तथा 16 डिशटाईप सौर कुकर जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के अन्तर्गत जारी किए गए हैं तथा मार्च,2017 तक प्रत्याशित 100 वाक्स टाईप तथा 25 डिश टाईप सौर कुकर होेंगें। वर्ष 2017-18 के लिए 250 वाक्स टाईप तथा 50 डिश टाईप सौर कुकर का लक्ष्य भारत सरकार के नवीन और नवीनकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के कार्यक्रम के अन्तर्गत रखा गया है।
B. सौर प्रकाशवोल्टिय कार्यक्रम
i) पद्ध सौर प्रकाशवोल्टिय गली रोेषनियां : वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक 14,216 सौर प्रकाशवोल्टिय गली रोशनियां सामूहिक प्रयोग के लिए भारत सरकार के नवीन और नवीरकरणीय ऊर्जा मंत्र्रालय के कार्यक्रम तथा अन्य के अन्तर्गत स्थापित की जा चुकी हैं, मार्च, 2017 तक की प्रत्याशित उपलब्धि 15,000 होगी। वर्ष 2017-18 के लिए 10,000 सौर प्रकाशवाॅल्टिय गली रोशनियों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
ii) सौर प्रकाशवोल्टिय ऊर्जा संयंत्र : वर्तमान विŸाीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक 378 के.डब्लयू.पी. के सौर प्रकाशवोल्टिय ऊर्जा संयंत्रों की स्थापित किए जा चुके हैं। मार्च 2017 तक 2,000 के.डब्लयू.पी. सौर प्रकाशवोल्टिय पावर प्लांट की स्थापना प्रस्थापित है। वर्ष 2016-17 के लिए 1,000 किलोवाट सौर प्रकाशवोल्टिय ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है जो कि भारत सरकार के जन-जातीय योजना के अन्तर्गत प्रस्तावित है।
iii)सौर प्रकाषावोल्टिय घरेलू रोषनियां : वर्तमान विŸाीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक 1,810 सौर प्रकाशवोल्टिय घरेलू रोशनियां जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के अन्तर्गत वितरित किए जा चुकी हैं तथा मार्च,2017 तक प्रत्याशित उपलब्धि 2,000 होगी। वर्ष 2017-18 के लिए 2,000 सौर प्रकाशवोल्टिय घरेलू रोशनियां उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है।
C. निजि क्षेत्र की सहभागिता से निष्पादित की जा रही 5 मैगावाट क्षमता तक की जल विद्युत परियोजनाए : वर्तमान वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक 119 परियोजनाएं जिनकी संकलित क्षमता 222.00 मैगावाट निजी उद्यमियों को आबंटित की गई है। वर्ष 2017-18 के लिए 12 परियोजनाएं जिनकी संकलित क्षमता 39.04 मैगावाट है, की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। आबंटित परियोजनाओं बारे आरम्भ से लेकर 31.12.2016 तक की स्थिति (5 मै0 वा0 क्षमता तक) विवरण निम्न तालिका में दिया गया है।

D. हिमऊर्जा द्वारा निष्पादित की जा रही जल विद्युत परियोजनाएं : हिमऊर्जा द्वारा चलाई जा रही लघु विद्युत परियोजनाएंः लिंगटीें ;400 किलोवाटद्धए कोठीे ;200 किलोवाटद्धए जुथेड़ ;100 किलोवाटद्धए पुरथी ;100 किलोवाटद्धए सुराल ;100 किलोवाटद्धए घरोला ;100 किलोवाटद्ध तथा साच;900 किलोवाटद्ध तथा विलिंग ;400किलोवाटद्ध जिनमें विद्युत उत्पादन हो रहा है। विŸाीय वर्ष के दौरान दिसम्बर, 2016 तक इन परियोजनाओं से 27.12 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया गया है। अन्य परियोजनाएं बड़ा भंगाल ;40 किलोवाटद्ध तथा सराहन (30 किलोवाट) भी हिमऊर्जा द्धारा निष्पादित की गई है। बड़ा भंगाल परियोजना से बिजली की आपूर्ति स्थानीय लोगों को उपलब्ध करवाई जा रही है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने हिम ऊर्जा को 18 परियोजनाओं जिनकी क्षमता 36.87 मैगावाट है आंवटित की है इसमें से 10 परियोजनाएं जिनकी संकलित क्षमता 2.37 मैगावाट है स्थापित की जा चुकी है। 3 परियोजनाएं जिनकी संकलित क्षमता 14.50 मैगावाट की बी.ओ.टी. साई इन्जिनियरिंग समिति शिमला को आंवटित आधार पर है। शेष परियोजनाए जिनकी संकलित क्षमता 20.00 मैगावाट इन परियोजनाओं को राज्य सरकार की अनुमति अनुसार बी.ओ.टी. आधार पर आंवटित किया गया है। इन परियोजनाओं हेतु विभिन्न अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया प्रगति पर है।

14.परिवहन और संचार

सडकें अर्थव्यवस्था के आधारभूत ढांचे के लिए आवयश्क घटक हैं। जल मार्ग तथा रेलवे जैसे संचार के विशेष व अनुकूल साधन न के बराबर होने के कारण सड़कें ही हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हिमाचल प्रदेश में न के बराबर सड़कों से आरम्भ करके प्रदेश सरकार ने दिसम्बर, 2016 तक 36,256 कि0मी0 वाहन चलने योग्य सड़कें (जिसमें जीप योग्य एवम् ट्रैक भी सम्मिलित हैं), का निर्माण कर लिया है। इस प्रकार सरकार सड़कों के क्षेत्र को अत्यधिक प्राथमिकता दे रही है। वर्ष 2016-17 के लिए इस हेतु ृ912.73 करोड़ का प्रावधान अनुमोदित किया गया। वर्ष 2016-17 का लक्ष्य एवं दिसम्बर, 2016 तक की उपलब्धियों का ब्यौरा सारणी संख्या 14.1 में दर्शाया गया हैः

हिमाचल प्रदेश में 31.12.2016 तक 10,190 गांव सड़कों से जोडे़ गये जिनका ब्यौरा सारणी संख्या 14.2 में दिया जा रहा हैः-

राष्ट्रीय उच्च मार्ग ;केन्द्रीय क्षेत्रद्ध हिमाचल प्रदेश में 2,027.00 कि0मी0 लम्बे राज्य उच्च मार्ग जिसमें शहरी लिंक रोडज तथा बाई पास सम्मिलित हैं, इन सभी के सुधार के कार्य इस वर्ष भी जारी रहे। दिसम्बर, 2016 तक ृ184.00 करोड़ खर्च किये गये।
्रदेश में केवल दो छोटी लाईने शिमला-कालका ;96 किलोमीटरद्ध और जोगिन्द्रनगर- पठानकोट ;113 किलोमीटरद्ध तथा नंगल डैम-चरूडू़ ;33 किलोमीटरद्ध बड़ी लाईन है।
पथ परिवहन राज्य में आर्थिक कार्यकलाप हेतु यातायात काएक मुख्य साधन है क्यांेकि अन्य परिवहन सेवाएं जैसे रेलवे, वायुमार्ग, टैक्सी, आॅटो रिक्शा इत्यादि नगण्य के बराबर है। इसीलिए पथ परिवहन को प्रदेश में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिमाचल पथ परिवहन निगम लोगों को राज्य में तथा राज्य के बाहर 3,012 बसों (31.12.2016 तक) द्वारा यात्री परिवहन सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा है। एच.आर.टी.सी. द्वारा प्रतिदिन 5.54 लाख किलोमीटर (लगभग) दूरी के साथ 2,530 रूटों पर बस सेवाएं चलाई जा रही हंै। लोगों की सुविधा के लिए निम्नलिखित योजनाएं इस वर्ष भी लागू रहीं।
i)ग्रीन कार्डयोजना : ग्रीन कार्ड धारकों को किराये में 50 कि.मी. की दूरी के भीतर 25 प्रतिशत तक छूट प्रदान की गई है। इस कार्ड की वैधता दो वर्ष तक है। तथा कार्ड की कीमत ृ50 है।
ii) सिलवर कार्ड योजना : निगम द्वारा सिलवर कार्ड योजना आरम्भ की गई है। इस कार्डकी कीमत ृ20 है व वैधता दो वर्ष है, यह कार्ड दूसरे राज्यों में भी निगम की बसों में 18 कि.मी. तक यात्रा करने पर मान्य है व किराये में इस कार्ड पर 30 प्रतिशत छूट दी जाती है।
iii) महिलाओं को निःषुल्क यात्रा सुविधा : महिलाओं को रक्षा बन्धन तथा भैया दूज के अवसर पर निगम की साधारण बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है। मुस्लिम महिलाओं को ईद तथा वकरीद के अवसर पर निगम की साधारण बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है।
iv) महिलाओं को किराये में छूट : निगम द्वारा साधारण बसों में राज्य के भीतर यात्रा करने पर महिलाओं को किराये में 25 प्रतिशत की छूट दी जा रही है।
v) सरकारी स्कूलों के छात्रों को निःषुल्क यात्रा सुविधा : सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ़2 कक्षा तक के छात्रों को हिमाचल परिवहन निगम की साधारण बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा दी जाती है।
vi) गम्भीर रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को निःषुल्क यात्रा सुविधा : निगम द्वारा कैंसर, रीड की हड्डी व किडनी ग्रस्त मरीजों को एक अनुचर सहित निगम की साधारण बसों में इलाज के लिए चिकित्सक द्वारा जारी की गई पर्ची पर राज्य व राज्य के बाहर निःशुल्क यात्रा सुविधा दी जाती है।
vii) दिव्यांग व्यक्तियों को निःषुल्क यात्रा सुविधा : निगम द्वारा 70 प्रतिशत से अधिक अपंग व्यक्तियों को एक अनुचर सहित निगम की साधारण बसों में प्रदेश के भीतर निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है।
viii) शौर्य आवार्ड विजेताओं को निःषुल्क यात्रा सुविधा : शौर्य आवार्ड विजेताओं को हिमाचल प्रदेश राज्य के भीतर निगम की साधारण बसों के अतिरिक्त डीलक्स बसों में भी निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है।
ix) नई बसों की खरीद :लोगों को सुरक्षित तथा आरामदायक बस सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए निगम के बेड़े में 300 नई बसें खरीदी हैं। इसके अतिरिक्त निगम ने 20 वोल्बो बसें भी इस वर्ष खरीदी हैं।
x) लग्जरी बसें : निगम वैटलिजिंग आधार पर 88 सुपर व 20 लग्जरी ए.सी.बसें (वोल्बो/सकेनियां) और लग्जरी बसें अन्तराज्जीय मार्गो पर यात्रियों की सुविधा हेतु चलाई जा रही है।
xi) 24X7 हैल्पलाईन : निगम व निजी बसों के यात्रियों की शिकायतों व समस्याओं के सामाधान के लिए 24ग्7हेल्पलाईन सेवा 94180-00529 व 0177-2657326 शुरू की है। introduced to get feedback from passengers regarding the operation of HRTC buses.
xii) वाहन उपयुक्तता केंद्रों का संचालन : अतिरिक्त आय अर्जित करने हेतु 18 क्षेत्रीय कार्यालयों में वाहन उपयुक्तता केंद्रों का संचालन किया गया है व भविष्य में इसे सभी क्षेत्रीय कार्यालय में संचालित किया जाएगा।
xiii) प्रतिबन्धित मार्गो पर टैक्सियां : शिमला शहर में लोगों की सुविधा हेतु 14 टवेरा टैक्सियां शहरके प्रतिबन्धित मार्गो पर निगम द्वारा चलाई जा रही है।
xiv) भोजन की सुविधा : निगम द्वारा लोगों को पौष्टिक भोजन कम कीमत पर प्रदान करने के उद्देश्य से हमीरपुर, धर्मशाला, पालमपुर, मण्डी, बिलासपुर व ऊना में “हिम अन्नपुर्णा” नामक ढाबे खोले गए है व भविष्य में और अधिक ढाबे खोले जायेंगे।
xv) कैषलैस सुविधा : आम लोंगों को नगदी रहित (कैशलैस) सुविधा प्रदान करने के लिये निगम द्वारा 200 पी.ओ.एस. मशीन (च्व्ै डंबीपदम) खरीदी जायेगी जो कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में निगम के आरक्षण काॅउटरों एंव सुपर लग्जरी ए0सी0 बसों में लगाई जायेगी।
i) 16 दूर दराज क्षेत्रों के बस अडडों पर बहुउद्देशीय सहायता कक्ष लोगों की सहायता हेतु खोले जायेंगे, जहां पर लोगो को विभिन्न प्रकार की सुविधा उपलब्ध होगी।
ii) निगम द्वारा 5 चालक प्रशिक्षण स्कूलों (मण्डी, कुल्लू, तारादेवी, बिलासपुर और जसूर) को स्नरोन्नत किया जा रहा है। जिसके लिए भारत सरकार से ृ5.00 करोड़ की धन राशि प्राप्त हो चुकी है।
iii) निगम द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को ”सम्मान कार्ड“ की सुविधा आरम्भ की जा रही है जिसके तहत 60 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके वरिष्ठ नागरिकों को राज्य में निगम की साधारण बसों में 30 प्रतिशत की छूट का प्रावधान रखा गया है।
iv) निगम मुख्य पर्यटन स्थलों से पर्यटकों/आम जनता को आरामदायक यात्रा की सुविधा प्रदान करने हेतु राज्य से बाहरी राज्यों को मिनी सुपर लग्जरी बसें बेड़े में शामिल कर रहा है।
हिमाचल प्रदेश में रेल, हवाई व वाहन जल सेवाऐं नाम मात्र है। इसलिये राज्य अधिकतर सड़क सेवाओं पर निर्भर है। हिमाचल प्रदेश परिवहन विभाग का कार्य विभिन्न नियमों/ अधिनियमों को क्रियान्वित करना है इसमें मुख्य रूप से केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम है। दिनांक 31.3.2016 तक प्रदेश में कुल 11,75,510 गाड़ियंा है जिनमें से 9,13,659 वाणिज्यक वाहन है और 2,61,851 निजी वाहन है। चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान ृ5,602.00 लाख विभाग को उपलब्ध करवाया गया जिसमें से ृ3,374.00 लाख हिमाचल पथ परिवहन निगम को पुरानी बसों के स्थान पर नई बसों की खरीद को दिया गया। इसके अतिरिक्त इस वित्त वर्ष के दौरान ृ1000.00 लाख बस अड्डे के निर्माण हेतु दिया गया। वर्ष 2016-17 के दौरान दिनांक 31.12.2016 तक कुल 29,237 वाहनों के विभिन्न अपराधों के अंतर्गत चालान पेश किये गए जिनमें से ृ490.70 लाख की राशि वसूल की गई।
वर्ष 2016-17 के अंतर्गत विभाग की महत्वूपर्ण उपलब्धियां तथा वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान प्रमुख नीतिगत कार्य योजनाओं का विवरण निम्नलिखित हैः-
i) सूचना प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप : राज्य में ड्राइंविंग लाइसेन्स जारी करने के लिए सारथी 4.0 का नया संस्करण लागू किया गया है जो आवश्यक दस्तावेजों को अपलोड करने के साथ-साथ उनका आवेदन आॅनलाइन दाखिल करने के लिए नागरिकों को सुविधा प्रदान करता है। विभाग की योजना है कि उपभोक्ताओं को कार्ड आधारित लाईसेन्स और पंजीयन प्रमाणपत्र सुविधाजनक निगरानी हेतु नवीनतम रूप में जारी किये जाऐं। विभाग की यह भी योजना है कि व्यवसायिक वाहनों के टैक्स को आॅनलाईन जमा किया जाए। साथ ही विभाग के अन्र्तगत आने वाले सभी नाकों को आधुनिकीकृत करके उनको राज्य मुख्यालयों के साथ समयवद्व निगरानी और नवीनतम जानकारी हेतु जोड़ा जाए। विभाग द्वारा गाडियों और ड्राईविंग लाईसैन्स के लिए क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण और पंजीकरण एवम अनुज्ञापन प्राधिकरण द्वारा दी गई सूचना के आधार पर राज्य/राष्ट्रीय पंजिकाए बनाई गई है जो कि उपभोक्ताओं को सुविधा देने के लिए धूरी/केन्द्र का कार्य करेगी जिससे उपभोक्ता किसी भी समय व कहीं भी सुविधा का उपयोग कर सकता है।
हिमाचल प्रदेश में ई-पेमेंट सुविधा परिवहन साॅफटवेयर के साथ आरम्भ की गई है जिसमें नागरिकों को बिना किसी रूकावट के सुविधा प्रदान की जा सके। लोगों को सहायता प्रदान करने हेतु विभाग द्वारा गाडियों से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के शुल्क/कर व लाईसैंस की अदायगी में सुविधा प्रदान की गई है। इसके साथ विभाग की स्मार्ट कार्ड आधारित पंजीकरण प्रमाण पत्र जिसमें कागजांे को खराब होने से बचाया जा सके, ताकि स्मार्ट कार्ड आधारित पंजीकरण पुस्तिका के माध्यम से वाहनों के बारे में अनिवार्य जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके।
ii) निरीक्षण एवं प्रमाणिकता केन्द : वर्तमान मंें वाहनों के निरीक्षण /प्रमाणिकता को पांरपरिक तरीके द्वारा किया जाता है। वैज्ञानिक निर्धारिण एवं तथ्यों के मध्यनजर वाहनों को प्राद्यौगिकी के हस्तक्षेप के तहत निरीक्षण एवं प्रमाणिकता केंन्द्र को प्रदेश में नालागढ क्षेत्र में मोर्ठ (डव्त्ज्भ्) के सौजन्य से शीघ्र स्थापित करने का प्रस्ताव है। उपरोक्त केन्द्र के सफल होने पर और स्थान पर भी इस तरह के केन्द्र खोले जायेंगे।
iii) परिवहन नगर का सृजन : वर्तमान मंें अधिकतर कार्यशालाएं सडकांे के किनारे पर स्थापित है, जहां पर भारी संख्या में वाहनों को ठीक करने का कार्य किया जाता है, जो कि न केवल सड़क के किनारे भीड़ पैदा करती है बल्कि जनता के रोष व दुर्घटना का कारण भी बनती है। विभाग की योजना के अनुसार इन कार्यशालाओं को सड़क से दूर ऐसी जगह जहां पर बहुसुविधा पार्किंग, बैठने व खाने का स्थान, शौचालय, मनोरंजन केन्द्र और अन्य सुविधाऐं उपलब्ध करवाकर प्रदेश के सभी जिलों में परिवहन नगर का सृजन करना है। चालू वित्त वर्ष में परिवहन नगर का सृजन करने के लिए ृ8.00 करोड़ का प्रावधान है
iv) द्ध पर्यावरणीय सुरक्षा : प्रदेश में वाहन ही पर्यावण प्रदूषण फैलाने का मुख्य स्त्रोत है। प्रदूषणयुक्त वाहनों को धीरे-धीरे एक प्रौद्यौगिकी की मदद से पहचान कर उनके स्थान पर उचित तकनीक वाले बिना प्रदूषण युक्त वाहन भारत स्टेज-प्ट-ट को लाकर हटाया जाना है। विभाग द्वारा प्रदूषित गाड़ियों के निरीक्षण हेतु वशिष्ठ, मनाली में प्रदूषण चेक केन्द्र स्थापित किया गया है।
v) जल परिवहन : विभाग द्वारा जल परिवहन के क्षेत्र में प्रगति लाने हेतु गोबिन्द सागर झील (बिलासपुर) चमेरा डेम (चम्बा) कोल डेम (शिमला, बिलासपुर व मण्डी) जलाश्यों में यात्री परिवहन व माल ढुलाई हेतु कार्य किया जा रहा है। इस हेतु भारत सरकार ने म्.डमतपजपउम ब्वदेनसजंदबल च्अजण् स्जकण्ए डनउइंप कोपरोजेक्ट रिर्पोट बनाने हेतु कार्य सौंपा गया है। जो कि इसी वित्त वर्ष में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
vi) अपद्ध चालक प्रशिक्षण संस्थान व प्रदूषण निरीक्षण केन्द्र : वर्तमान में राज्य में 10 सरकारी, 11 हिमाचल राज्य पथ परिवहन निगम तथा 190 निजी चालक प्रशिक्षण संस्थान तथा 5 सरकारी और 88 निजी प्रदूषण निरीक्षण केन्द्र कार्य कर रहें है।

15.पर्यटन एवम् नागरिक उड्डयन

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन को राज्य के आर्थिक विकास हेतु सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पहचान बनी है। क्योंकि पर्यटन को भविष्य में आथर््िाक विकास के प्रमुख स्रोत के रूप मं देखा जा रहा है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) में पर्यटन क्षेत्र का योगदान लगभग 7.0 फीसदी है जो कि काफी महत्वपूर्ण है। राज्य में पर्यटक के गतिविधियों के विकास हेतु आवश्यक सभी आधारभूत संसाधन जैसे भौगौलिक एवं सांस्कृतिक विविधता, स्वच्छ एवं शांत वातावरण, सुन्दर धाराएं, पवित्र स्थलों, ऐतिहासिक स्मारकों और स्नेही लोग एवं खूबसूरत वादियों से परिपूर्ण है। .
हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को उच्च प्राथमिकता प्रदान की है तथा सरकार पर्यटन अधोसरंचना के विकास के लिए लगातार प्रयासरत् है तथा जिसमें जन उपयोगी सेवाएं, सड़कें, संचार साधन, हवाई अड्डे, परिवहन सुविधाएं, जलापूर्ति एवं नागरिक सुविधाओं का प्रावधान सम्मिलित हैं। वर्तमान में राज्य में 70,869 बिस्तरों की क्षमता के 2,604 होटल विभाग में पंजीकृत हैं। इसके अतिरिक्त राज्य में होम स्टे योजना के अन्तर्गत 2,137 कमरों वाली लगभग 787 इकाईयां भी पंजीकृत है।
राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने प्रथम चरण व तृतीय चरण के अन्र्तगत 95.16 मिलियन अमेरिकी डालर की वित्तीय सहायता प्रदान की है। चरण-1 के अन्र्तगत 33.00 मिलियन अमेरिकन डालर, की सहायता स्वीकृत की गई है तथा इसकी कार्य समाप्ति की तिथि जून, 2017 रखी गई है। चरण-1 के अन्तर्गत 19 उप-परियोजनाएं जिनमें से 14 उप-परियेाजनाओं का कार्य पूर्ण कर लियागया है और शेष परियोजनाओं का कार्य प्रगति पर है। सभी कार्य निश्चित समय अवधि के भीतर पूर्ण कर लिये जाएंगे। चरण -3 के अन्तर्गत कुल 62.16 मिलियन अमेरिकी डालर की राशि 28 सितम्बर, 2015 में स्वीकृत हुई है। यह चरण जून, 2020 तक पूर्ण की जाएगी। इसके अन्तर्गत कुल 15 परियोजनाएॅ है तथा इसमें से 9 परियोजनाएं आबंटित की जा चुकी है शेष परियोजनाओं पर निविदाओं की प्रक्रिया का कार्य चल रहा है। ”स्वदेश दर्शन“ योजना के अन्तर्गत राज्य में पर्यटन ढांचे को सदृढ़ करने के लिए विभाग द्वारा भारत सरकार, पर्यटन मन्त्रालय को ृ100.00 करोड़ की परियोजना मंजूरी हेतु भेजी गई है। निकट भविष्य में मंत्रालय द्वारा इस परियोजना को स्वीकृति दिये जाने की सम्भावना है।
पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन विभाग राज्य में पर्यटन संबंधी सुविधाओं को बढा़वा देने हेतु सार्वजनिक व निजी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर निजी उद्यमियों को प्रोत्साहन दे रहा है। निम्नलिखित रज्जू मार्ग परियोजनाओं का कार्य प्र्रगति पर है।
1) धर्मषाला-रोपवे : इस रोपवे परियोजना का रियायती समझौता 22.7.2015 को पर्यटन विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार तथा डध्े ज्त्प्स् न्तइंद ज्तंदेचवतज च्तपअंजम स्जकण् और । च्वूमत भ्पउंसंलंे स्जकण् के मध्य हस्ताक्षरित किया गया है।
2) आदि हिमानी : इस रोपवे प्रोजैक्ट का रियायती समझौता 5.6.2016 को पर्यटन एवं उड्डयन विभाग, हिमाचल प्रदेश व डध्ै न्ेीं ठतमबव ब्ींउनदकं क्मअप त्वचमूंल च्अजण्स्जकए के मध्य हस्ताक्षरित किया गया है।
3) पलचान से रोहतांग : इस रोपवे परियोजना का रियायती समझौता 21.10.2015 को पर्यटन विभाग, हिमाचल प्रदेश एवं डध्ै डंदंसप त्वचमूंल च्अजण् स्जकण्के मध्य हस्ताक्षरित किया गया है।
4) भुंतर से बिजली महादेव : डध्ै न्ेीं ठतमबव को दिनांक 20.10.2016 को आवंटन पत्र स्मजजमत व ि।ूंतक जारी किया गया है।

पर्यटन को बढ़ावा देने व पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वर्ष भर प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार के लिए महत्तवपूर्ण भूमिका अदा करता है। जो कि पर्यटन विभाग द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री तैयार की जाती है, जिसमें ब्राॅशर, पैम्फलैट, पोस्टर, ब्लोअप इत्यादि शामिल हैं और देश वविदेश में विभिन्न पर्यटक उत्सवों/ मार्ट इत्यादि में भाग लिया जाता है। वर्ष 2016-17 के दौरान पर्यटन विभाग व निगम द्वारा 37 से अधिक मेलों व उत्सवों में भाग लिया गया।
पर्यटन विभाग द्वारा समय-समय पर बेरोजगार युवाओं के लिए साहसिक एवं सामान्य प्रशिक्षणों का आयोजन किया जाता है जैसेः-टूरिस्ट गाइड, जल क्रीड़ा, स्कींइग, रिवर राफ्टिंग इत्यादि सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त पुलिस, गृह रक्षक ढ़ाबा मालिकों/ कामगारों व टैक्सी चालकों के कौशल विकास से सम्बन्धित प्रशिक्षण भी दिया जाता है। वर्ष 2016-17 में बेरोजगार युवाओं के लिए पर्यटन विभाग द्वारा 42 प्रशिक्षण अनुमोदित किए गए है। जिसके अन्र्तगत प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में कुल 1,050 बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा । पर्यटन विभाग द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने व पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु विभिन्न उत्सवों का भी आयोजन किया जाता है। चालू वित्त वर्ष में विभाग द्वारा निम्न उत्सव आयोजित किए व आयोजनो में भाग लिया।
1) विभाग द्वारा नई पहल के अन्तर्गत 22 से 24 अप्रैल, 2016 की अवधि के दौरान शिमला में भ्पउंबींस ज्तंअमस डंतज का आयोजन किया गया। जिसमें राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मिडिया के अतिरिक्त पर्याप्त संख्या में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ज्तंअमस ।हमदजे व ज्वनत व्चमतंजवते द्वारा भाग लिया गया । डंतज का आयोजन राज्य को एक प्रमुख पर्यटन गंतव्य के रूप मे बढ़ावा देने हेतु किया गया।
2) राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभाग द्वारा 1 से 2 अक्तूबर, 2016 को शिमला में ।चचसम थ्मेजपअंस का आयोजन किया गया।
3) विभाग द्वारा 25 से 31 दिसम्बर, 2016 के दौरान शिमला में ॅपदजमत ब्ंतदपअंस का आयोजन ंिकया गया।
4) विभाग द्वारा पर्यटन विकास के लिए च्तवउवजपवदंस पिसउे व विज्ञापन तैयार किए जा रहे है जिसमें 20,10 व 5 मिनट के चलचित्र, 60 सेकेन्ड अवधि के व 30 सेकेन्ड अवधि के तीन-तीन विज्ञापन दूरदर्शन के लिए शामिल है।
5) विभाग द्वारा पर्यटन विकास के लिए प्दकपंज्तंअमस डंतज ;प्ज्डद्ध अमृतसर, लखनऊ, जयपुर औरप्दकपं पदजमतदंजपवदंस ज्तंअमस म्गीपइपजपवद ;प्प्ज्म्द्ध औरंगाबाद और इन्दौर, प्दकपं प्दजमतदंजपवदंस ज्तंअमस डंतज ;प्प्ज्डद्ध बंगलुरू, चिन्नई, पुणे, हैदराबाद और कोचिन,ज्वनतपेउ - ज्तंअमस थ्ंपत ;ज्ज्थ्द्ध कोलकता, हैदराबाद, अहमदाबाद और सूरत में भाग लिया गया ।
वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में शिमला, भुन्तर (कुल्लू-मनाली) और कांगड़ा तीन हवाई अड्डे विद्यमान हैं जिनकी अद्यतन स्थिति इस प्रकार हैः-
a) शिमला हवाई अड्डा : शिमला हवाई अड््डे के रनवे की चैड़ाई एयरपोर्ट आर्थोरिटी आफ इंडिया द्वारा 23 मीटर से बढ़ाकर 30 मीटर कर दी गई है। इसके अतिरिक्त जैसे ही वहां से व्यवसायिक उड़ानें प्रारम्भ होगी एयरपोर्ट में तेल भरवाने की सुविधा भी जल्द शुरू कर दी जाएगी। भारत सरकार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा “त्महपवदंस ।पत ब्वददमबजपअपजल ैबीमउम. न्कंद“ प्रारंम्भ की गई है। जुब्बड़हट्ठी शिमला व भुंतर, कुल्लू, एयरर्पोट इस योजना के अन्तर्गत सम्मिलित किए गए है। इस योजना के अन्तर्गत नागरिक उड्डयन मन्त्रालय, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण तथा राज्य सरकार के मध्य दिनांक 16-01-2017 को करारनामा हस्ताक्षरित किया गया है। अतः शीघ्र ही शिमला हवाई अड्डे से हवाई सेवाएं शुरु होने की सम्भावना है।
b) भुंतर (कुल्लू-मनाली) हवाई अड्डा : भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने सूचित ंिकया है कि उनके द्वारा रनवे के विस्तार का कार्य, प्रदेश सरकार द्वारा ब्यास नदी के बहाव को बदलने के उपरान्त ही किया जाएगा। रनवे विस्तार व नदी के बहाव को बदलने के लिए 27.77 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करने की आवश्यकता है। प्रदेश सरकार द्वारा भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण को निशुल्क एवं सभी प्रकार के ऋण भार से मुक्त भूमि उपलब्ध करवानंे बारे मामला विचाराधीन है।
c) कांगड़ा हवाई अड्डा : भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा कांगडा एयरर्पोट के रनवे का विस्तार 1,372 मीटर से 1,800 मीटर करने की योजना बना दी गई है। जिसके लिए उन्हें निशुल्क एवं सभी प्रकार के ऋण भार से मुक्त भूमि की आवश्यकता है। इस कार्य के लिए राज्य सरकार को अत्यधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी। इस संदर्भ में मुख्य सचिव हिमाचल प्रदेश सरकार की अध्यक्षता मेें दिनांक 06.08.2016 को बैठक का आयोजन ंिकया गया जिसमें उपायुक्त कांगड़ा को वायु सेना द्वारा पठानकोट में हाल ही में हुए आतंकी हमलों के कारण क्षेत्र की भेद्यता के दृष्टिगत एक वैकल्पिक ंपतपिमसक तैयार करने हेतु वायु सेना द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए सम्भावना तलाशने बारे निर्देश दिए गए है। अगर वायु सेना को भूमि अधिग्रहण के लिए सहमत किया जाए तो प्रदेश सरकार का वित्तीय बोझ कम होगा। इस सम्बन्ध में उपायुक्त, कांगड़ा से सूचना आपेक्षित हैै।
वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में 63 परिचालित हैलीपैड है। प्रदेश सरकार द्वारा बनरेडू (संजौली-ढली-बाईपास) शिमला व चुवाड़ी हैलीपैड़, जिला चम्बा के निर्माण हेतु सैद्वान्तिक स्वीकृति प्रदान की गई है। उक्त दोनों स्थलों पर वन भूमि होने के कारण, एफ0सी0ए0 मंजूरी के लिए आनलाइन आवेदन कर लिया गया है तथा एफ0सी0ए मंजूरी के बाद आगामी कार्यवाही अम्ल में लाई जाएगी।
हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम की स्थापना वर्ष 1972 में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी जब से निगम की स्थापना की गई है तब से यह संस्था पर्यटकों के खान-पान/ रहन-सहन, प्रबंधन तथा प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक, चलन तथा प्राईम मूवर के रुप में कार्यरत है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा चालू वित्त वर्ष में ृ353.78 लाख शुद्व लाभ अपेक्षित है।

16.शिक्षा

शिक्षा मानव योग्यताओं के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। सरकार सभी को शिक्षा प्रदान करने के लिए बचनबद्व है। सरकार के विशेष प्रयासों से ही राज्य साक्षरता में अग्रणी राज्य बना है। हिमाचल प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 82.80 प्रतिशत है। राज्य में पुरूषों व स्त्रियों की साक्षरता दर में काफी अंतर है। पुरूषों की 89.53 प्रतिशत साक्षरता दर की तुलना में स्त्रियों की साक्षरता दर 75.93 प्रतिशत है। इस अंतर को पूरा करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रारम्भिक शिक्षा सम्बन्धित सरकार की नीतियांे का क्रियान्वयन जिला प्रारम्भिक उप शिक्षा निदेशक तथा खण्ड प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी द्वारा क्रमशः जिला एवं खण्ड स्तर पर किया जाता है जिसका उद्देश्यः-
1) प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वजनीकरण लक्ष्य प्राप्त करना।
2) प्रारम्भिक शिक्षा में गुणवता प्रदान करना।
3) प्रारम्भिक शिक्षा को सब तक पहंुचाना।
वर्तमान में 31.12.2016 तक, प्रारम्भिक शिक्षा में 10,738 अधिसूचित प्राथमिक पाठशालाएं हैं जिनमें से 10,735 क्रियाशील हैं। 2,113 माध्यमिक पाठशालाएं अधिसूचित हैं जिनमें से 2,103 क्रियाशील हैं। प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी को पूरा करने हेतु सरकार द्वारा प्रयत्न किये जा रहे हैं तथा जरूरत वाले स्कूलों में नई नियुक्तियां की जा रही हैं। सरकार विकलांग बच्चों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान करने के लिए वचनबद्ध है। विकलांग बच्चों को औपचारिक स्कूलों में भर्ती करवाया जा रहा है।
स्कूलों में अधिक से अधिक उपस्थिति बढ़ाने व स्कूल छोड़ने की प्रवृति को रोकने व बढौ़तरी की दर को बनाए रखने के लिए सरकार विभिन्न प्रकार की छात्रवृतियां व प्रोत्साहन जैसे गरीबी छात्रवृति, छात्राओं के लिए उपस्थिति छात्रवृति, सेवारत सैनिकों के बच्चों को छात्रवृति, गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे परिवारों के छात्रों को आई.आर.डी.पी. छात्रवृति, प्री मैट्रिक छात्रवृति अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए लाहौल व स्पिति प्रणाली की तर्ज पर छात्रवृति व मिडल मैरिट छात्रवृति (मेधावी छात्रवृति योजना) हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश में गैर जन-जातीय क्षेत्र के पिछड़ा वर्ग/अनुसूचित जाति/ आई.आर.डी.पी./ अनुसूचित जनजाति/ सामान्य वर्ग के छात्रों को मुफ्त पुस्तकें व वर्दी भी दी जा रही है। प्रदेश के सभी सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में सभी छात्र-छात्राओं को प्रत्येक स्कूल दिवस पर पकाया हुआ गर्म भोजन दिया जा रहा है। प्रदेश के अति दुर्गम क्षेत्रों मंे 1,623 माध्यमिक पाठशालाओं में कम्पयूटर शिक्षा प्रारम्भ की गई है।
वर्ष 2016-17 में विभिन्न प्रकार के निम्नलिखित प्रोत्साहन दिए जा रहे हैंः-
i) माध्यमिक मैरिट मेधावी छात्रवृति के अन्तर्गत : छात्र और छात्राओं को ृ800 वार्षिक छात्रवृति दी जा रही है। वर्ष के दौरान 1,331 छात्र लाभान्वित हुए और ृ10.65 लाख खर्च किए गए।
ii) आई.आर.डी.पी. परिवार से संबंधित :बच्चों को ृ150 प्रति छात्र/ छात्रा कक्षा 1 से 5 तक छात्रवृति दी जा रही है। वर्ष 2016-17 के दौरान 54,182 छात्र लाभान्वित हुए तथा ृ81.48 लाख खर्च किये गये तथा कक्षा 6 से 8 तक प्रति छात्र ृ250 एवं ृ500 प्रति छात्रा वार्षिक छात्रवृति दी जा रही है। वर्ष के दौरान 52,255 लाभान्वित हुये तथा ृ1.75 करोड़ खर्च किये गये।
iii) छात्रा उपस्थिति योजना के अन्तर्गत : जिनकी उपस्थिति 90 प्रतिशत से अधिक हो को ृ2.00 प्रति माह, 10 माह के लिये दिए जाते हैं। कुल 38,659 छात्राएं लाभान्वित हुई तथा ृ7.73 लाख वितरित किये गये। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा सभी आईआरडीपी/एससी/एसटी/ओबीसी/सामान्य छात्रों के लिए मुफ्त पाठ्य पुस्तकें प्रदान की जा रही हैं, जिसके लिए 2016-17 के दौरान `15.00 करोड़ का बजट प्रावधान है।
महात्मा गांधी वर्दी योजना : महात्मा गांधी वर्दी योजना के अन्र्तगत कक्षा 1 से 10 तक सभी विद्याार्थियों को दो सैट वर्दियों के साथ ृ200 सिलाई के लिए प्रत्येक वर्ष उपलब्ध करवाई जा रही है। वर्ष 2016-17 में 7,09,497 विद्यार्थी ;कक्षा 1 से 10 तकद्ध लाभान्वित हुये है जिसके लिये सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 में अनुमानित ृ52.75 करोड़ का व्यय किया गया है।
a) पहली और दूसरी कक्षा ` 250
b) तीसरी और चौथी कक्षा` 300
c) 5वीं कक्षा ` 350 वर्ष 2016-17 में 26,537 छात्र लाभान्वित हुए तथा इस पर कुल व्यय ृ77.93 लाख हुआ है।
खेलकूद गतिविधियां : वर्ष 2016-17 में प्रारम्भिक शिक्षा विभाग में बच्चों की खेल-कूद क्रिया कलाप के लिए ृ225.00 लाख का प्रावधान है। इससे बच्चों को केन्द्र स्कूलों, खण्ड स्तर, जिला स्तर, राज्य स्तर तथा राष्ट्रीय स्तर तक के खर्चे को बहन किया जाता है। विभाग इन गतिविधियों के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा युवा खेल सेवाएं विभाग के सहयोग द्वारा प्रायोजित करता है।
प्रारम्भिक शिक्षा के भवनों का निर्माण : वर्ष 2016-17 के लिए सरकार ने ृ13.9 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है ताकि स्कूलों की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके तथा जिसके साथ-साथ प्रदेश में प्रारम्भिक पाठशालाओं में कमरों, जिला व खण्ड कार्यालयों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
राज्य में सर्व शिक्षा अभियान परियोजना पूर्व गतिविधियों के साथ शुरू किया गया जिसमें मूलभूत सुविधाओं में सुधार करने के लिए जोर दिया गया जिसके अन्तर्गत जिला परियोजना कार्यालयों में आधारभूत ढ़ाचें को बेहतर बनाना, शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों एवम् अध्यापकों की क्षमता निर्माण, विद्यालयों की मेपिंग, शिक्षा की बेहतरी के लिए लघु योजनाएं व सर्वेक्षण आदि प्रमुख गतिविधियां थी। इस कार्यक्रम का उद्देेश्य आम जनता के लिए शिक्षा की पहुंच को आसान बनाना, विद्यालयों में बच्चों का नामांकन, लिंग अनुपात के अंतर को समाप्त करना, विद्यालयों में बच्चों का ठहराव और 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा के साथ प्रारम्भिक शिक्षा को पूरा करवाना और विद्यालयों के प्रबन्धन में पूर्ण सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करना है।
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्रारम्भिक शिक्षा में गुणवता के सुधार में प्रयास निम्न हैंः-
1) विद्यालय से बाहर रह रहे बच्चों के लिए : हिमाचल प्रदेश में वास्तव में विद्यार्थियों की नामांकन संख्या दर 99 प्रतिशत से अधिक है जो यह दर्शाता है कि विद्यालय से बाहर रह रहे बच्चों की संख्या न के बराबर है। फिर भी यह प्रयास किए जा रहे हैं कि इन बच्चों को गैर-आवासीय सेतु पाठ्यक्रम केन्द्र के माध्यम से प्रारम्भिक शिक्षा दी जाए। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को स्कूल मे होना चाहिए। एक अन्य अध्ययन जो कि भारतीय बाजार अनुसंधान ब्यूरो (प्डत्ठद्ध और ’प्रथम’ गैर-सरकारी संस्था के द्वारा करवाया गया, जिसमंे ये पाया गया कि हिमाचल प्रदेश में विद्यालय से बाहर रह रहे बच्चों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है। जिला बिलासपुर और लाहौल स्पिति में कोई भी बच्चा विद्यालय से बाहर नहीं है। प्रदेश में यह देखा गया है कि देश के कई क्षेत्रों से पलायन करके बच्चें प्रदेश के शहरी व उप शहरी क्षेत्रों में आ जाते हैं जिसके कारण विद्यालयों से बाहर रह रहे बच्चों की संख्या परिवर्तित होती रहती है। इन पलायन करके आने वाले बच्चों की संख्या जानने एवम् इनको विद्यालयों में नामांकन करने के लिए सभी जिलों को हर वर्ष जुलाई और दिसम्बर महीने में एक सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम एन0आर0बी0सी0 के तहत इन बच्चों को नामांकित करके और विशेष तौर पर तैयार किए गए अध्ययन सामग्री की मदद से इन्हें इनकी आयु अनुरूप कक्षा में दाखिल कर विद्यालयों में नामांकित करना होता है। प्रदेश में 5,077 विद्यालय से बाहर रह रहे विद्यार्थिंयो के लिए उनकी आयु अनुरूप शिक्षा एन.आर.एस. टी.सी के माध्यम से सुनिश्चित की जा रही है। 31.12.2016 तक उन बच्चों में से आयु अनुरूप कक्षा के दाखिले के लिए 2,031 बच्चों को मुख्य धारा में जोड़ा गया।
2) समावेषित षिक्षा : हिमाचल प्रदेश में विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे चाहे वे किसी भी प्रकार की श्रेणी कीे अपंगता से ग्रसित हो, कुल 11,956 बच्चे चिन्हित किए गए हैं और उसमें से 10,077 बच्चों को विभिन्न नियमित पाठशालाओं में लिया गया है तथा 1,879 बच्चों को विभिन्न रणनीतियों के तहत शिक्षा के दायरे में लाया गया है। 6-14 वर्ष तक की आयु तथा अधिक अक्षमता से ग्रसित विशेष आवश्यकताओं वाले इन बच्चों के लिए प्रारम्भिक स्तर पर गृह आधारित शिक्षा दी जा रही है। इन बच्चों में 530 बच्चों को विभिन्न जिलों में 23 गैर सरकारी संगठनों द्वारा अपनाया गया है व शेष बच्चों को सेवारत अध्यापकांे द्वारा शिक्षा प्रदान की जा रही है।
3) सेवारत षिक्षकों का क्षमता निर्माण : सेवारत शिक्षकों की क्षमता निर्माण अध्यापन प्रशिक्षण कार्यक्रम का अभिन्न अंग है। इन विशेष सुविधाओं को प्रदान करने में दैनिक जीवन के कौशल जैसेः
(i) स्वंय सहायक कौशल : जैसेः भोजन, शौच एवं स्नान तथा पहनावा आदि
(ii) मोटर क्रियाओं के अन्तर्गत् : भौतिक चिकित्सक/ व्यवसायिक चिकित्सक के द्वारा शारीरिक, मस्तिष्क पक्षाघात वाले बच्चों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त स्कूल से बाहर पढ़ने वाले मंदबुद्वि बच्चों के लिए विशेष शिक्षकों की सहायता द्वारा खण्ड समावेशित कमरों में शिक्षा प्रदान की जा रही है।
a) चिकित्सीय सेवायें : मस्तिष्क पक्षाघात वाले बच्चों की पहचान कर भौतिक चिकित्सकों, व्यावसायिक चिकित्सकांे, स्पीच थैरेपिस्ट की सहायता से चिकित्सीय सेवाओं को प्राथमिकता प्रदान की गई है। चूंकि भौतिक चिकित्सकों और स्पीच थैरेपिस्ट की कमी के कारण प्रथम चरण में यह सर्व शिक्षा अभियान के सामने बड़ी चुनौती थी इस आधार पर कुछ जिलों में उन्हें टपेपजपदह इंेपे पर नियुक्त किया गया हैं।
b) ्म्च्ध्प्ज्च् तैयार करना : प्रत्येक विशेष बच्चे का व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम तैयार किया गया और तदोपरान्त प्रत्येक विशेष बच्चे के लिए त्रैमासिक लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। हल्के और मध्यम श्रेणी के विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए पहले चरण में क्रियात्मक शिक्षा लागू की गई है।
c) अभिभावकों के लिए परामर् : विशेष बच्चों के अभिभावकों के लिए परामर्श प्रक्रिया पर सर्व शिक्षा अभियान के अन्र्तगत विशेष ध्यान दिया गया है व इसके परिणाम भी उत्साह जनक प्राप्त हुये है। हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में विशेष प्रशिक्षित अध्यापक गृह आधारित कार्यक्रम के दौरान अभिभावकों को परामर्श देते है।
d) सामुदायिक भागीदारी : ्रशिक्षित रिसोर्स अध्यापकों द्वारा हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक जिले में समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है व समुदाय का भी भरपूर समर्थन भी मिल रहा है।
e) शिक्षकों के लिए ओरिएंटेषन कार्यक्रम :सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत शिक्षक और अन्य सहायक स्टाफ की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्हे ओरिएंटेशन कार्यक्रम के द्वारा विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की शैक्षणिक जरूरतों के ज्ञान कोे सुनिश्चित किया जा सके। प्रशिक्षत रिसोर्स अध्यापक इस कार्यक्रम में रिसोर्स व्यक्ति की भूमिका अदा करते हुए सामान्य अध्यापकों को कक्षा की वास्तव स्थितियों से अवगत कराते हैं।
f) विषेष बच्चों के लिए देखभाल केन्द्र : जिला शिमला और मंडी में दो देखभाल केन्द्र प्राथमिक स्कूलों में स्थापित किए गए है जिनमे लगभग 46 मानसिक व बहुविकलांग बच्चे कुशल अध्यापकों के मार्गदर्शन में शिक्षण/ प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे है।
h) आने-जाने के लिए यात्रा भत्ता : चिकित्सा शिविर में आने-जाने के लिए विशेष आश्यकता वाले बच्चों के लिए एक सहायक सहित यात्रा भत्ता दिया गया। गंभीर रूप से अक्षम श्रेणी के विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के समूह को शिविर तक लाने व ले जाने के लिए स्थानीय परिवहन दरों पर परिवहन सुविधा किराए पर लेने की स्वीकृति दी गई।
i) दृष्टिहीन बच्चों के लिये पुस्तकें : प्रदेश के कक्षा 1-8 तक के दृष्टिहीन बच्चों के लिये दो सैट ब्रेल पुस्तकें प्रदान की गई तथा 54 सैट विस्तार छाप वाली पुस्तकें मंद दृष्टि वाले बच्चों को बांटी गई।
4) आई.ई. क्रिया कलापों का अनुश्रवण : रिसोर्स अध्यापकों व एन.जी.ओ. का सही अनुश्रवण के लिए राज्य परियोजना अधिकारी सर्व शिक्षा अभियान ने एक अनुश्रवण प्रपत्र तैयार किया है जिनमें निम्न प्रकार की शर्ते होगी।
a) सर्व शिक्षा अभियान द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा किए बिना किसी भी गैर-सरकारी संगठन को वित्तीय सहायता न प्रदान करना।
b) सभी गैर-सरकारी संगठनों के पास प्रशिक्षित विशेष अध्यापकों का भारतीय पुर्नवास परिषद् (त्ब्प्) से पंजीकृत होना आवश्यक है।
c) सभी कुशल शिक्षकों को प्रतिमाह अपनी मासिक प्रगति रिपोर्ट जिला के समावेशित समन्वयक व खण्ड स्त्रोत समन्वयक को जमा करवाना आवश्यक है और अन्त में सभी जिला के परियोजना अधिकारियों द्वारा संकलित रिर्पोट राज्य परियोजना कार्यालय को भेजना आवश्यक है जिसकी सर्व शिक्षा अभियान की मासिक बैठक मंे समीक्षा की जाती है।
राज्य में विद्यालय से बाहर रह रहे बच्चों व स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर न के बराबर है तथा इस पर सफलतापूर्वक नजर रखी जा रही है। प्रारम्भिक स्तर पर 0.65 प्रतिशत तथा उच्च प्रारम्भिक स्तर पर 0.90 प्रतिशत ड्राप आउट दर है।
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में लड़कियों को सामान्य शिक्षा के साथ कौशल शिक्षा भी प्रदान की जा रही है। होस्टल वार्डनों को नियमित रूप से प्रशिक्षण दिया जाता है तथा इन विद्यालयों की माॅनिटरिंग जिला एवं राज्य परियोजना कार्यालय द्वारा की जाती है। प्रदेश में 10 कस्तूरबा गंाधी बालिका विद्यालय जिसमें से 8 चम्बा में तथा शिमला एवं सिरमौर में एक-एक विद्यालय कार्यरत है।
राज्य में आठवीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षा पहले ही समाप्त कर दी गई है और कोई भी बच्चा प्रारम्भिक स्तर तक किसी प्रकार की औपचारिक परीक्षा नहीं देगा। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, धारा 29 के तहत सभी प्रारम्भिक पाठशालाओं सतत समग्र मूल्यांकन के माध्यम से बच्चों का मूल्यांकन जांच पुस्तिका में दर्ज किया जाता है। प्रशिक्षण में आने वाली कमियों को समय≤ पर सीखने की प्रक्रिया के दौरान दूर की जाती है। अब रटने की विधि एवं कागज़ पैंसिल टेस्ट को बढ़ावा देने की बजाए नैदानिक शिक्षण पर जोर दिया जा रहा है। बच्चों के पूर्ण विकास के लिये मूल्यांकन टेस्ट लिया जा रहा है। मूल्यांकन शीटस द्वारा सीखने के अन्तर को दूर करने का प्रयास किया जाता है। यह मूल्यांकन शीटस कक्षा, विषय एवं शीर्षक वार बनाई गई है।
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत की जा रही विभिन्न गतिविधियों का गहन-अनुश्रवण किया जाता है ताकि इनका कार्यान्वयन सही ढ़ंग से हो सके। इसी उद्धेश्य से जिला स्तर पर व राज्य स्तर पर एक अनुश्रवण समिति का गठन किया गया है। अनुश्रवण समिति के द्वारा जांचने के बाद की गई रिपोर्ट को सरकार एवं हितधारकों के साथ जिला अधिकारियों के साथ मासिक बैठक में सांझा किया जाता है।
प्रभावी स्कूलों के माध्यम से प्रत्येक बच्चे के समग्र विकास के लिए स्कूलों में सीखने के वातावरण को सुनिश्चित करने के साथ साथ प्रदेश में गुणवता शिक्षा प्रदान करना हेतु (छन्म्च्।) के सहयोग से ैंअम जीम ब्ीपसकतमद विजन को शिक्षा में गुणवता बढ़ाने हेतु शामिल किया गया है। मुख्य प्रयास निम्नलिखित हैं।
सीखने के संकेतको को कार्यन्वयन करना : शैक्षणिक सत्र 2014-15 से राज्य में कक्षा एक से आठवीं तक सीखने के संकेतको को कार्यन्वयनित किया गया। सभी प्रारम्भिक अध्यापकों को निर्देश दिया गया कि इस प्रकार पढ़ाया जाये कि सभी विद्यार्थियों द्वारा वांछित सीखने के स्तर प्राप्त हो जाये। इस स्तर का मूल्यांकन ब्ब्म् के आधार जो कि सीखने के संकेतकों पर आधारित है, किया जाता है।
उपलब्धि के आधार पर सीखने के अंतर की पहचान : हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य है जिसमें प्रारम्भिक स्तर पर सभी विद्यार्थियों के लिए व्यापक उपलब्धि सर्वेक्षण करवाए हैं। राज्य एवं जिला स्तर पर सीखने सम्बन्धित अन्तर पाठशाला स्तर पर चिन्हित किए गये हैंै।.
पूर्व पठ्न पाठन व संख्या ज्ञान कार्यक्रम : इस कार्यक्रम को कक्षा एक व कक्षा पांचवी के लिए शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम को शुरू करने से पहले कक्षा एक व दो के छात्रों का आधारभूत सर्वेक्षण किया गया। आधारभूत सर्वेक्षण करते समय बच्चों से पढ़ने, लिखने, बोध व संख्यात्मक कौशल पर उनकी क्षमता का परीक्षण करने के लिए प्रश्न पूछे गए है और उसी के अनुसार प्रशिक्षण माॅडयूल (सामग्री) तैयार किए गए। इस प्रयास के अन्तर्गत “प्रेरणा“ कार्यक्रम शुरू किया गया है।
राज्य सरकार द्वारा शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की जा रही है। जिसके फलस्वरूप वार्षिक बजट में प्रतिवर्ष निरन्तर वृद्वि के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थाओं में भी वृद्वि हो रही है। प्रदेश में दिसम्बर, 2016 तक 929 उच्च पाठशालाएं, 1,719 वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाएं तथा 115 सरकारी महाविद्यालय हैं जिसमें 1 एस.सी.ई.आर.टी, 1 बी.एड. महाविद्यालय तथा 6 संस्कृत महाविद्यालय और 1 ललित कला महाविद्यालय चल रहे हैं।.
्रदेश में शिक्षा ग्रहण कर रहे विभिन्न वर्ग के छात्रों को अनेक छात्रवृतियां प्रदान की जा रही है। छात्रवृतियां निम्न प्रकार से हैंः-
i) डा. अम्बेदकर मेधावी छात्रवृति योजना : इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति के 1,000 और 1,000 अन्य पिछड़ा वर्ग के मेधावी छात्रों को (मैट्रिक के परीक्षा के परिणाम के आधार पर हि0प्र0 स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित की गई हो) जमा एक तथा जमा दो कक्षाओं के लिए राज्य में या राज्य के बाहर किसी मान्यता प्राप्त संस्थान में प्रवेश लिया हो को ृ10,000 वार्षिक प्रतिवर्ष छात्रवृति प्रदान की जा रही है। वर्ष 2015-16 में 1,740 अनुसूचित जाति और 1,681 अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित विद्यार्थी लाभान्वित हुए।.
ii) स्वामी विवेकानंद उत्कृष्ट छात्रवृति योजना : इस योजना के अंतर्गत सामान्य वर्ग के हिमाचल प्रदेश के स्थायी निवासी शीर्ष 2,000 मेधावी छात्रों को 10वीं की परीक्षा के परिणाम पर आधारित (हि0प्र0 स्कूल शिक्षा बोर्ड) तथा जिन्होंने जमा एक व जमा दो कक्षाओं के लिए मान्यता प्राप्त संस्थानों में प्रदेश या प्रदेश बाहर प्रवेश लिया हो के लिए ृ10,000 की राशि (वार्षिक) प्रति छात्र/छात्रा छात्रवृति प्रदान की जा रही है। वर्ष 2015-16 में इस योजना से 3,728 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
iii) परीक्षा में घोषित परिणाम के आधार पर : हि0प्र0 स्कूल शिक्षा बोर्ड) मेधावी छात्रों मंे से जिन्होंने जमा एक तथा जमा दो कक्षाओं मान्यता प्राप्त संस्थानों में प्रदेश या प्रदेश बाहर प्रवेश लिया हो के लिए ृ11,000 की राशि प्रति छात्र/छात्रा प्रतिवर्ष छात्रवृति प्रदान की जाती है। वर्ष 2015-16 में 328 जनजातीय विद्यार्थियों लाभान्वित किया गया है।
iv) महर्षि बाल्मिकी छात्रवृति योजना : बाल्मिकी समुदाय की सभी छात्राओं को जिनके अभिभावक अस्वच्छता से संबंधित व्यवसाय करते हैं और हिमाचल प्रदेश के स्थायी निवासी हों को दसवीं कक्षा से महाविद्यालय स्तर तक ृ9,000 प्रति छात्रा प्रति वर्ष छात्रवृति प्रदान की जा रही हैं जोकि राज्य में स्थित किसी सरकारी या निजी विद्यालय या महाविद्यालय में अध्ययनरत हो। वर्ष 2015-16 में 38 छात्राओं को यह छात्रवृति प्रदान की गई है।.
v) इन्दिरा गांधी उत्कृष्ट छात्रवृति योजना : इस योजना के अन्तर्गत 150 छात्र/छात्राओं को जमा दो परीक्षा के बाद महाविद्यालय स्तर तक पढ़ने या व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने पर ृ10,000 वार्षिक छात्रवृति प्रति छात्र/छात्रा बिना किसी आर्थिक आधार पर पूर्णतयः मैरिट के आधार पर प्रदान किये जाते हैं। वर्ष 2015-16 में 43 छात्रों को इस योजना के अंतर्गत लाभान्वित किया गया।.
vi) संस्कृत छात्रवृति योजना : इस योजना के अन्तर्गत 9वीं एवं दसवीं कक्षा के लिए ृ250 प्रति माह तथा जमा एक एवं जमा दो के लिए ृ300 प्रतिमाह, की दर से छात्रवृति उन्हें प्रदान की जाती है जिन्होंने संस्कृत विषय में 60 प्रतिशत या इससे अधिक अंकों के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया हो।
vii) सैनिक स्कूल छात्रवृति :सैनिक छात्रवृति केवल सैनिक स्कूल सुजानपुर टीहरा ;हमीरपुरद्ध में अध्ययन हिमाचल प्रदेश के स्थाई निवासी विद्यार्थियों को देय है। यह छात्रवृति छठी कक्षा से जमा दो कक्षा तक प्रदान की जाती है।
viii) एन0डी0ए0 छात्रवृति योजनाः यह छात्रवृति नेशनल अकादमी खड़कवासला मे टेªनिंग ले रहे हिमाचल प्रदेश के छात्रों को प्रदान की जा रही है।
ix) कल्पना चावला छात्रवृति योजनाः इस योजना के अन्तर्गत प्रति वर्ष 10़2 की 2,000 छात्राओं को योग्यता के आधार पर सभी ग्रुप वाईज मैरिट सूचि के आधार पर वार्षिक ृ15,000 प्रति छात्र/छात्रा को राशि प्रदान की जाती है। वर्ष 2015-16 में इस योजना के अन्तर्गत 1,782 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
x) मुख्यमंत्री प्रोत्साहन योजनाः :यह योजना राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2012-13 से लागू की गई है जिसके अंतर्गत सभी वर्ग के विद्यार्थियों जिनका चयन और प्रवेश, आई.आई.टी., ए.आई.आई.एम.एस. तथा आई.आई.एम., आई.एस एम. धनबाद, झारखण्ड तथा आई.आई.एस.सी. बैंगलोर से किसी भी स्नातकोतर डिप्लोमा के लिए हुआ हो, को ृ75,000 की राशि पुरस्कार के रुप में दी जाएगी। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2015-16 में 123 विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
xi) राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कालेज छात्रवृति योजना :यह छात्रवृति दस स्थाई हिमाचली निवासी केडेट/छात्रों को आठवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा तक दी जाती है जो कि राष्ट्रीय भारतीय मिलिट्री कालेज, देहरादून में अध्ययनरत हो। प्रत्येक कक्षा से 2 छात्रों को यह छात्रवृति मिलती है। छात्रवृति की राशि ृ20,000 प्रतिवर्ष है। वर्ष 2015-16 में इस योजना के अन्तर्गत 10 विद्यार्थी लाभान्वित हुए.
xii) आई.आर.डी.पी.छात्रवृति योजना : इस योजना के अतर्गत ृ300 प्रतिमाह कक्षा 9वीं और 10वीं के छात्रों को, ृ800 मासिक ़1व़2के छात्रों तथा ृ1,200 मासिक महाविद्यालय स्तर के उन विद्यार्थियों को जो छात्रावास में नहीं रहते हैं ृ2,400 मासिक जो छात्रावास में रहते हैं तथा आई.आर.डी.पी. परिवारों से संबंध रखते हैं और सरकार द्वारा संचालित या सरकार द्वारा सहायता प्राप्त करने वाले विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं को प्रदान किये जाते हंै। वर्ष 2015-16 में 52,557 छात्रों को लाभान्वित किया गया ।
xiii) विभिन्न युद्वों के दौरान मारे गए/अपंग हुए सशस्त्र सेनाओं के कार्मिकों के बच्चों के लिए छात्रवृति : इस योजना के अतर्गत ृ300 (छात्र) तथा ृ600 (छात्रा) प्रतिमाह कक्षा 9वीं और 10वीं तथा ृ800 मासिक ़ 1 व ़ 2 छात्रों तथा ृ1,200 मासिक महाविद्यालय /विश्वविद्यालय/ छात्रावास में न रहने वाले स्तर के विद्यार्थियों तथा ृ2,400 मासिक छात्रावास मेें रहने वाले छात्रों को प्रदान किया जा रहा है। विभिन्न संक्रियाओं/ युद्वों के दौरान मारे गए/ अंपग हुए सशक्त सेनाओं के कार्मिकों के बच्चे इस छात्रवृति के पात्र हैं।.
xiv) अनुसूचित जाति / अनुसूचित जन-जाति/अन्य :पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए मैट्रिकोत्तर छात्रवृति योजना (केन्द्रीय प्रायोजित योजना)ः इस छात्रवृति योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति के छात्रों/ छात्राएं जिनके माता पिता की वार्षिक आय ृ2.50 लाख से कम हो एवम्् अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र/छात्राएं जिनके माता-पिता की वार्षिक आय ृ1.00 लाख से कम हो, वे सभी पाठयक्रमों के लिए पूरा निर्वाह भत्ता और पूरी फीस के छात्रवृति नियमानुसार पात्र होगें। यह छात्रवृति उन्हीं छात्र/छात्रों को दी जाएगी जो पात्र छात्र/छात्राएं सरकारी/ सरकारी अनुदान प्राप्त संस्थानों में अध्ययनरत हो। वर्ष 2015-16 में कुल लाभार्थी अनुसूचित जाति- 41,005 अनुसूचित जन-जाति - 8,702 अन्य पिछड़ा वर्ग- 3,262 है।
xv) पूर्व मैट्रिक छात्रवृति योजना अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए : यह छात्रवृति उन छात्र/छात्राओं को जो पहली से दसवीं कक्षा तक अध्ययनरत हैं को देय होगी जिनके माता-पिता की वार्षिक आय ृ44,500 से अधिक न हो इस छात्रवृति में ृ50 प्रति माह तथा ृ250 प्रतिमाह छात्रावास में रहने वाले छात्रों के लिए देय है।
xvi) पूर्व मैेट्रिक छात्रवृति योजना अनुसूचित जाति/जनजाति के लिये : यह छात्रवृति योजना किसी भी सरकारी/मान्यता प्राप्त संस्थान में अध्ययनरत अनुसूचित जाति/ जनजाति के ऐसे छात्र/छात्राओं को देय है, जिनके माता पिता/संरक्षक की वार्षिक आय (सभी स्त्रोतों से) ृ2.00 लाख से अधिक न हो। ये छात्रवृति 9वीं व 10वीं कक्षा के अनावासिक छात्रो को ृ2,250 तथा ृ4,500 की राशि आवासिक छात्रों को दी जाती है। वर्ष 2015-16 में इस योजना के अन्तर्गत 24,033 विद्यार्थी अनुसूचित जाति केे 3,255 जनजाति के लाभान्वित हुए।
xvii) अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति की छात्राओं को वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक षिक्षा के लिए अनुदान : इस केन्द्रीय प्रायोजित योजना के अंतर्गत अनुदान राशि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति की उन छात्राओं को देय है जिन्होंने हि0प्र0 शिक्षा बोर्ड से आंठवीं की परीक्षा उतीर्ण कर नवीं कक्षा में प्रवेश लिया हो उन्हें ृ3,000 की राशि अनुदान स्वरूप दी जाती है। यह राशि (समय अवधि जमा) के रूप में दी जाती है।
xvIii) अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित छात्रों के लिए मेरिट कम मीन्स छात्रवृत्ति योजना (सीएसएस):यह छात्रवृत्ति अल्पसंख्यकों के लिए है मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध समुदायों से संबंधित छात्र, जिनके माता-पिता/अभिभावकों की सभी स्रोतों से आय `2.50 लाख से अधिक न हो। 2015-16 के दौरान इस योजना के तहत कुल 95 छात्र लाभान्वित हुए हैं।
संस्कृत शिक्षा के प्रसार हेतु प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार द्वारा भी हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं जिनका विवरण निम्न हैः-
a) उच्च/ वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों को छात्रवृति प्रदान करना।
b) वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ाने वाले संस्कृत प्रवक्ताओं के वेतन के लिए अनुदान देना।
c) संस्कृत विद्यालयों का आधुनिकीकरण करना।
d) प्रदेश सरकार को संस्कृत उत्थान तथा शोध/ शोध परियोजना हेतु केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान करना।
प्रदेश में सेवारत अध्यापकों को शिक्षा की नवीनतम तकनीक से परिचित करवाने के उद्देेश्य से एस.सी.ई.आर.टी., सोलन, जी.सी.टी.ई. धर्मशाला, हिप्पा फेयरलाॅन, शिमला/ एन.यू.पी.ए., नई दिल्ली/ सी.सी.आर.टी./ एन.सी.ई.आर.टी./आर.आई.ई. अजमेर तथा आर.आई.ई., चण्डीगढ़़ आदि संस्थानों में विभिन्न संगोष्ठियों तथा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2016-17 में लगभग 1,600 अध्यापकों एवं गैर अध्यापकों को इन कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया।.
प्रदेश के जन-जातीय एवं दुर्गम क्षेत्रों के: उच्च एवं वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में नियुक्त अध्यापकों को समुचित आवासीय सुविधा प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा यह योजना राज्य के 61 चिन्हित पाठशालाओं में लागू कर दी गई है।.
व्यावसायिक शिक्षा: राज्य सरकार अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन-जाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग/ आई.आर.डी.पी. से सम्बन्धित विद्यार्थियों को नवीं से दसवीं कक्षा तक पाठयक्रम की पुस्तकंे मुफ्त दी जा रही हैं। वर्ष 2016-17 में इस योजना के अंतर्गत ृ9.69 करोड़़ व्यय किए गए जिससे 1,04,221 नवीं एवं दसवीं कक्षा के विद्यार्थी लाभान्वित हुए।
विशेष योग्यजन बच्चों को निःशुल्क शिक्षा : 40 प्रतिशत से अधिक विकलांग छात्रों को विश्वविद्यालय स्तर तक वर्ष 2001-02 से निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही हैं।
लड़कियों को निःशुल्क शिक्षा : प्रदेश में विश्वविद्यालय स्तर तक छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है जिसमें व्यावसायिक एवं प्रौफैशनल पाठ्यक्रम भी सम्मिलित है। इस योजना के अंतर्गत केवल शिक्षा शुल्क ही माफ किया जा रहा हैै।
प्रदेश के सभी वरिष्ठ माध्यमिक : पाठशालाओं (बाहरी स्त्रोत से) में स्वंय आर्थिक प्रबन्धन आधार पर वैकल्पिक विषय को चुनकर सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान की जा रही है। आई.टी. शिक्षा के लिए विभाग द्वारा ृ110 प्रतिमाह प्रति विद्यार्थी फीस ली जा रही है। अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) परिवारों के छात्रों को 50 प्रतिशत शुल्क की छूट दी जाती है। वर्ष 2016-17 में कुल 79,519 विद्यार्थी जिसमें 9,342 अनुसूचित जाति (बी.पी.एल.) के आई.टी. शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं । इस योजना के तहत ृ61.66 लाख का खर्चा हुआ है।.
विभाग ने राष्ट्रीय माध्यमिक अभियान : हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा समिति की देख रेख मे केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की वर्ष 2015-16 से 90ः10 की सहभागिता में माध्यमिक स्तर पर लागू करने मे बढ़त हासिल कर ली है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अन्र्तगत विभिन्न गतिविधियां चलाई जा रही हैं इसमें प्रदेश की वर्तमान माध्यमिक पाठशालाओं के आधारभूत संरचनाओं को सुदृढ़ बनाना, सेवारत अध्यापकों का प्रशिक्षण, आत्म रक्षण प्रशिक्षण, कला उत्सव तथा वार्षिक स्कूल अनुदान शामिल हैं। वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए परियोजना अनुमोदन बोर्ड भारत सरकार द्धारा ृ14,281.60 लाख की राशि स्वीकृत की है जिसमें से भारत सरकार और प्रदेश सरकार द्धारा क्रमशः ृ11,487.40 लाख और ृ898.57 लाख माध्यमिक अभियान की विभिन्न गतिविधियों को लागू करने के लिए जारी कर दी है ।.
शैक्षिक रुप से पिछड़े खण्डों में केन्द्रीय प्रायोजित योजना के अन्तर्गत माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में कन्या छात्रावास का निर्माण करके आरम्भ करके नवीं से बारहवीं कक्षाओं की छात्राओं को आवासीय सुविधा प्रदान कर और सुदृढ़ करना होगा। इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित/ अनुसूचित जन जाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग एवं गरीबी रेखा नीचे रहने वाले परिवार की छात्राएं लाभान्वित होगीं। छात्रावासो का निर्माण जिला चम्बा और सिरमौर के शैक्षिक रुप से पिछड़े खण्डों में किया जाना है तीन कन्या छात्रावासों हिमगिरी मेहला ;चम्बाद्ध और शिलाई ;सिरमौरद्ध का निर्माण कार्य पूरा किया जा चुका है कन्या छात्रावास हिमगिरी, चम्बा मे 50 कन्याओं की क्षमता से वर्ष 2016-17 में कार्यात्मक कर दिया गया है।भारत सरकार द्वारा ृ35.98 लाख आवर्ती अनुदान की राशि तीन कन्या छात्रावासांे मैहला, हिमगिरी व शिलाई हेतु स्वीकृत की जिसमे से ृ15.30 लाख की राशि प्राप्त हो चुकी है ।
स्मार्ट कक्षा कक्ष और मल्टीमीडिया शिक्षण साधन का प्रयोग करके पठन-पाठन की गतिविधियों को बेहतर बनाकर सुदृढ करने के लिए विभाग द्वारा सफलता पूवर्क सूचना, संचार एवं प्रौद्योगिकी परियोजना को 2,142 राजकीय उच्च व वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं व पांच स्मार्ट पाठशालाओं में वर्ष 2016-17 में लागू कर दिया गया है।
राश्ट्रीय उच्चतर षिक्षा अभियान : उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए प्रदेश में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान कार्यान्वित किया गया है। इस योजना को 90ः10 के अनुपात (केन्द्र तथा राज्य का हिस्सा) में वर्ष 2013-14 से बारहवीं पंचवर्षीय के अन्तर्गत प्रारम्भ किया जा चुका है। उच्चतर शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए प्रदेश में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान को लागू किया गया है। इस गुणवता सुधार प्रणाली को प्रदेश में उचित ढंग से लागू करने के हिमाचल प्रदेश सरकार ने ‘राज्य उच्च शिक्षा परिषद ;ैभ्म्ब्द्ध पहले ही गठित कर दी है। प्रदेश के सभी सरकारी, गैर सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों व संस्कृृत महाविद्यालयों में पूर्व स्नातक कक्षाओं के लिए समैस्टर एवं च्वाईस बेसड् के्रडिट सिस्टम ;ब्ठब्ैद्ध प्रणालियां आरम्भ की गई है। इस योजना के अन्र्तगत मानव संसाधन मन्त्रालय भारत सरकार से ृ116.66 करोड़ प्राप्त हो चुके है, जिसे लाभार्थी उच्च शिक्षा संस्थानों को जारी कर दिया गया है। प्रदेश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद;छ।।ब्द्ध बैंगलुरू से मूल्यांकन एवं प्रत्यायन के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वर्तमान में 01 हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और 02 राजकीय महाविद्यालयों राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद ;छ।।ब्द्ध द्वारा ‘‘ए ग्रेड‘‘ द्वारा प्रत्यायित किया गया है। अब प्रदेश में 01 हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और 27 राजकीय महाविद्यालय राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद;छ।।ब्द्ध से प्रत्यायन हासिल कर चुके है।
नेटबुक्स सवितरण : शिक्षा विभाग वर्ष 2016-17 में, सीखने-सिखाने की गतिविधियों को सुदृढ़ बनाने के लक्ष्य से हिमाचल प्रदेश बोर्ड आॅफ स्कूल एजुकेशन धर्मशाला से उतीर्ण 10वीं और 12वीं कक्षा के 10,000 मेधावी विद्यार्थियों को राजीव गांधी डिजिटल छात्र योजना के तहत नेटबुक्स देने जा रहा है । .
प्रदेश मे माध्यमिक स्तर पर निशक्त बच्चो को समेकित शिक्षा वर्ष 2013-14 मे आरम्भ हुई। इसके अन्र्तगत् वर्ष 2015-16 मे विशेष जरूरतमन्द बच्चों के लिए 12 आदर्श विद्यालय खोले गए जिनमंे इन बच्चो का शिक्षित करने हेतु 18 विशेष शिक्षको की तैनाती की गई व 2,895 विशेष बच्चे चिन्हित किए गए। इन बच्चो की जांच के लिए प्रदेश मे 40 चिकित्सा शिविर लगाए गए तथा इन बच्चों को 172 विशेष उपकरण बाटें गए। इसके अतिरिक्त मुफ्त किताबें, एस्र्कोट भत्ता, ब्रैल किताबें भी जरूरतमंद बच्चों को वर्ष 2016-17 में दी गई।
वर्ष 1968 में हिमाचल प्रदेश तकनीकी शिक्षा विभाग की स्थापना की गई थी तथा जुलाई 1983 में व्यवसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को भी इस विभाग के अन्तर्गत लाया गया। वर्तमान में विभाग का कार्य क्षेत्र तकनीकी शिक्षा, व्यवसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान करना है। आज हिमाचल प्रदेश के इच्छुक प्रत्येक विद्यार्थी प्रदेश में ही तकनीकी शिक्षा तथा फार्मेसी में स्नातक, डिप्लोमा एंव सर्टीफिकेट कोर्स स्तर तक की शिक्षा के लिए निम्नलिखित संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं:-

इंजीनियरिंग एवं बी-फार्मेसी महाविद्यालयों में स्नातक स्तर तक की शिक्षा दी जाती है जबकि बहुतकनीकी संस्थानों में 2 एवं 3 वर्षीय पाठयक्रमों द्वारा 14 विभिन्न इंजीनियरिंग एवं नाॅन-इंजीनियरिंग शाखाओं में डिप्लोमा एंव सर्टीफिकेट कोर्स स्तर तक की शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। आई0टी0आई0 में 33 इंजीनियरिंग और 21 नाॅन-इंजीनियरिंग व्यवसायों में दो वर्षों एवं एक वर्ष का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश के तकनीकी शिक्षण संस्थानों की प्रवेश क्षमता निम्नलिखित हैः-
i) डिग्री स्तर 4,830
ii) बी फार्मेसी 858
iii) डिप्लोमा स्तर 10,778
iv) सरकारी/निजी आई.टी.आई 45,150
कुल 61,616
विभाग द्वारा राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत राजीव गान्धी राजकीय इंजीनियरिंग कालेज कांगड़ा स्थित नगरोटा वगवां में खोला गया है । इसमें तीन पाठयक्रम मकैनिकल इंजीनियरिंग, इलैक्ट्रोनिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग तथा सिविल इंजीनियरिंग, जिसकी प्रवेश क्षमता 60 छात्र प्रति पाठ्यक्रम है। शैक्षणिक सत्र 2015-16 से इलैक्ट्रीकल इंजीनियरिंग शुरू किया गया जिसकी प्रवेश क्षमता 60 छात्र है। ृ26.00 करोड़ केन्द्रीय सरकार, मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा स्वीकृत किए गए है। ृ127.00 करोड़ की विस्तृत प्रोजैक्ट रिपोर्ट रूसा के अन्तर्गत उच्चतर शिक्षाविभाग हि0 प्र0 को भेजी गई है। महात्मा गाॅंधी राजकीय अभियान्त्रिक संस्थान रामपुर भी शैक्षणिक सत्र वर्ष 2015-16 से दो व्यवसायों मकैनिकल इंजीनियरिंग तथा सिविल इंजीनियरिंग की कक्षाएं राजकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय, सुन्दरनगर में शुरू की गई है। इसके अतिरिक्त सी.आई.पी.ई.टी. तथा क्षेत्राीय व्यवसायिक प्रशिक्षण संस्थान शैक्षणिक सत्र 2015-16 से शुरू किये गए हैं।
जवाहर लाल नेहरू राजकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय, सुन्दरनगर को विश्व बैंक के तकनीकी शिक्षा गुणवता सुधार कार्यक्रम (द्वितीय चरण) के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। महाविद्यालय में स्थापित कार्यशाला एवं प्रयोगशाला में भौतिक बुनियादी सुविधाओं के सुदृढ़िकरण एंव आधुनिकीकरण हेतु ृ11.00 करोड़ मंजूर किए गए है, ताकि इस महाविद्यालय से शिक्षित स्नातकों को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सके। भारत सरकार/विश्व बैंक से केन्द्रीय भाग राशि ृ11.00 करोड़ से ृ892.80 लाख एवं 10 प्रतिशत राज्य भाग के अन्तर्गत ृ149.97 लाख की धन राशि (90ः10) के अनुपात से उक्त महाविद्यालय को जारी कर दी गई है।
सरकार द्वारा एक नया राजकीय बहुतकनीकी (महिला) संस्थान रैहन जिला काॅंगड़ा में ृ26.00 करोड़ की लागत से कौशल विकास निगम की सहायता एशियन विकास बैंक द्वारा वित्त पोषण स शैक्षणिक सत्र 2017-18 प्रस्तावित है। इसके साथ एक राजकीय बहुतकनीकी संस्थान बसन्तपुर जिला शिमला में वर्ष 2017-18 में प्रस्तावित है।.
विभाग द्वारा पांच नये औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान नामतः मोहीं, जिला मण्डी, मशोबरा एवं नैनी धार जिला शिमला, मैना जिला सिरमौर एवं छतराड़ी जिला चम्बा में शैक्षणिक सत्र 2016.17 से सुचारू रूप से चलाए जा रहे हैं । इसके अतिरिक्त 10 स्टेट आॅंफ द आर्ट औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान नामतः धर्मपुर जिला सोलन, गगरेट जिला ऊना, गरनोटा जिला चम्बा, घुमारवीं जिला बिलासपुर, नादौन जिला हमीरपुर, नगरोटा बगवां जिला कांगड़ा, नाहन जिला सिरमौर, शमशी जिला कुल्लू, सुन्दरनगर जिला मण्डी एवं सुन्नी जिला शिमला में शैक्षणिक सत्र 2016-17 से चलाए जा रहे हैं।.
विभाग में 14 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, शमशी, मण्डी, चम्बा, शाहपुर, नादौन, नाहन, शिमला, सोलन, रामपुर, ऊना तथा रिकांगपिओ, आई.टी.आई. (महिला) मण्डी, आई.टी.आई. (महिला) शिमला, तथा आई.टी.आई. रोंगटोंग (काजा) को विश्व बैंक सहायता प्राप्त वोकेशनल ट्रेनिंग इम्प्रूवमैंट योजना के अन्तर्गत श्रेष्ठ केन्द्रों ;ब्मदजतमे व िम्गबमससमदबमद्ध में स्तरोन्नत किये हैं तथा कुल ृ46.50 करोड़ की राशि ृ34.85 करोड़ केन्द्रीय सहायता भारत सरकार तथा ृ11.65 करोड़ राज्य सरकार से प्राप्त हो चुकी है। अवधि 2006-07 से दिसम्बर, 2016 तक यह राशि इन संस्थानों में आधुनिक औज़ार एवं उपकरण क्रय करने, अध्यापकों को मानदेय एवं प्रशिक्षण प्रदान करने तथा भवन निर्माण इत्यादि पर खर्च की जा रही है। अब तक इस स्कीम के अन्तर्गत ृ46.47 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं।.
औद्यौगिक क्षेत्र में प्रशिक्षणार्थियों को अधिक रोजगार प्रदान किये जाने हेतु उनकी निपुणता को निखारने पर विशेष बल दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त 33 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को सार्वजनिक एवं निजी सांझेदारी प्रथा जिस बारे राज्यस्तरीय कमेटी और सी0आई0आई0, पी0एच0डी0 चेम्बर आफ कामर्स एवं हिमाचल प्रदेश में स्थापित विभिन्न औद्योगिक संगठनों में आपसी परामर्श उपरान्त स्तरोन्नत किया गया है। अवधि 2008-09 से दिसम्बर, 2016 तक ृ82.50 करोड़ की धनराशि ृ2.50 करोड़ प्रति आई0टी0आई0 सम्बन्धित संस्थानों में भारत सरकार से भी प्राप्त हो चुकी है जिसे 20 बराबर किस्तों मंे 10 साल में ब्याज मुक्त वापिस करना है तथा अब तक ृ98.00 करोड़ का व्यय किया जा चुका है। (यह अधिक व्यय आई0आर0जी0 एवं जमा ब्याज की राशि में से किया गया है)।.

17.स्वास्थ्य

लोगों को प्रभावी एवं सुगम इलाज के लिए सरकार ने चिकित्सा सेवाएं सफलतापूर्वक प्रदान की हैं। हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, उपचारत्मक, प्रतिबंधक, प्रोत्साहन एवं पुर्नवास जैसी सेवाएं, 75 चिकित्सालयों, 87 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, 533 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो, 13 ई.एस.आई. औषधालयों तथा 2,078 उपकेंद्रों के माध्यम से प्रदान कर रहा है। राज्य मंे लोगों बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए सरकार स्वास्थ्य संस्थानों में आधुनिक उपकरण, विशेष सुविधाएं, मेडिकल तथा पैरा मैडिकल स्टाफ की संख्या बढ़ाकर वर्तमान ढांचे को सुदृढ़ कर रही है।
वर्ष 2016-17 के दौरान राज्य में विभिन्न स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण गतिविधियों का विवरण निम्न प्रकार से हैः-
i) राष्ट्रीय वैक्टर बोरन रोग नियंत्रण कार्यक्रम : वर्ष 2016-17 के दौरान ;दिसम्बर, 2016 तकद्ध इस कार्यक्रम के अंतर्गत 33,344 रक्त पटिकाओं का परीक्षण किया गया जिनमें से 98 अनुकूल पाई गई और इस अवधि में कोई भी मृत्यु का मामला प्रकाश में नही आया।
ii) राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रमः :राष्ट्र्ीय कुष्ठ रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रचलित दर जो वर्ष 1995 में 5.14 प्रति दस हजार थी, दिसम्बर, 2016 में घटकर 0.24 प्रति दस हजार रह गई। 2016-17 के दौरान (दिसम्बर, 2016 तक) 114 नए कुष्ठ रोगियों का पता लगाया गया तथा इस कार्यक्रम के अंतर्गत 120 मामले रोग मुक्त किए गए तथा 168 कुष्ठ रोगी उपचाराधीन हैं जो विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों से मुफ्त में एम.डी.टी. प्राप्त कर रहे हैं।
iii) संषोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रमः :इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश में 1 क्षय रोग चिकित्सालय, 12 जिला क्षय रोग केंद्र/क्लीनिक, 72 क्षयरोग युनिट और 208 माईक्रोस्कोपिक कंेद्र, जिनमें 315 बिस्तरों का प्रावधान है, कार्यरत हैं। वर्ष 2016-17 में 31.12.2016 तक 14,333 रोगियों का पता लगाया गया जिनमंे इस बीमारी के लक्षण अनुकूल पाए गए तथा 80,936 व्यक्तियों के थूक की जांच की गई। हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां सभी जिलों को इस परियोजना के अंतर्गत लाया गया है। इस वर्ष कुल क्षय रोग अधिसूचना लक्ष्य दर 257 प्रति लाख प्रति वर्ष का था जिसके अन्तर्गत 210 प्रति लाख प्रति वर्ष (82 प्रतिशत) की उपलब्धि पाई गई।
iv) राष्ट्रीय अन्धता निवारण कार्यक्रम : वर्ष 2016-17 में निर्धारित लक्ष्य 27,500 मोतिया बिन्द आप्रेशन के अन्तर्गत दिसम्बर, 2016 तक 21,948 मोतिया बिन्द आप्रेशन किये गये जिनमें 21,733 मोतिया बिन्द आप्रेशन में आई.ओे.एल लगाए गये।
v) राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम :यह कार्यक्रम प्रदेश में प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंग के रूप में सामुदायिक आवश्यकता निर्धारण नीति के आधार पर चलाया जा रहा है। इस दृष्टिकोण के अन्र्तगत आरम्भिक स्तर पर कार्यरत बहुउद्देेशीय स्वास्थ्य कर्मचारियों (दोनो महिला व पुरूष) द्वारा विभिन्न परिवार कल्याण क्रियाकलापों का अनुमान संबंधित क्षेत्र/जनसंख्या की जरूरतों अनुसार लगाया जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2016-17 के दौरान दिसम्बर, 2016 तक क्रमशः 8,059 बन्धयाकरण, 16,117 द्वारा लूप निवेश और ओ.पी.व सी.सी. प्रयोगकर्ता क्रमशः 30,842 व 83,731 है।
vi) व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम : हिमाचल प्रदेश में यह कार्यक्रम आर.सी.एच. के अंतर्गत चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्वेश्य माताओं, बच्चों तथा बहुत छोटे बच्चों में मृत्यु दर तथा रूग्ण्ता को कम करना है। टीकाकरण से बचाव वाली अन्य बिमारियों जैसे क्षयरोग, गलघोटू, घनुष्टकार नवजात टैटनस, पोलियो तथा खसरा जैसी बीमारियों में भी गत वर्षाें में सराहनीय कमी आई हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2016-17 के लक्ष्य तथा उपलब्धियां नीचे सारणी 17.1 में दी गई है ।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत पिछले वर्ष की तरह पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान पुनः चलाया गया। वर्ष 2016-17 के दौरान इस अभियान का प्रथम चरण 29.01.2017 तथा दूसरा चरण 02.04.2017 (अन्तिम) को पूरा किया जायेगा।
vii) मुख्यमंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल येाजना : ्रदेश सरकार द्वारा एकल नारियों, 80 वर्ष से अधिक वरिष्ठ नागरिकों दिहाड़ीदारों, अंशकालिक श्रमिक, आंगन वाडी कार्यकर्ता/ साहिकाएं, मिड-डे-मील कार्यकर्ता, अनुबन्ध कर्मचारी तथा 70 प्रतिशत.
viii) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन : इस योजना के अन्तर्गत 95 स्वास्थ्य संस्थाओं केन्द्रों में 24 घण्टे आपातकालीन सेवाओं के लिए चिन्हित किया गया है। इसके अतिरिक्त 682 रोगी कल्याण समितियां जिला अस्पताल, सिविल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में चल रही है। 31.12.2016 तक ृ12.40 करोड़़ की राशि सभी रोगी कल्याण समितियों को वितरित कर दी गई हैं।
ix) राष्ट्रीय एडस नियंत्रण कार्यक्रमः वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक 1,31,201 जांच किए व्यक्तियों में से 384 एच.आई.वी. के अनुकूल मामले पाए गए।
a) एकीकृत जांच एवं परामर्ष केन्द्र कार्यक्रम :हिमाचल प्रदेश में कुल 45 एकीकृत परामर्श एवं जांच केन्द्रों द्वारा जांच एवं परामर्श सुविधाएं प्राप्त करवाई जा रही है। वर्ष 2016-17 दिसम्बर, 2016 तकके दौरान कुल जांच किए गए लोगों में 40,178 ए.एन.सी. रोगी थे जिनमें से 15 एच.आई.वी. से ग्रसित हैं। हिमाचल प्रदेश में दो मोबाईल आई.सी.टी.सी. वैन भी कार्यरत है।
b) यौन रोग नियंत्रण : हिमाचल प्रदेश में कुल 20 आर.टी.आई./एस.टी.आई. क्लीनिक द्वारा यौन रोगियों का उपचार किया जा रहा है। वर्ष 2016-17 दिसम्बर, 2016 तक में 30,203 लोगों ने आर.टी.आई./एस.टी.आई. सेवाएं लीं।
c) रक्त सुरक्षा कार्यक्रम :राज्य में 15 रक्त कोषों के माध्यम से रक्त एकत्रित किया जा रहा है। 3 ब्लड कम्पोनेंट सेपरेशन युनिट आई.जी.एम.सी. शिमला, जोनल अस्पताल मण्डी और आर.पी.जी.एम.सी.टांडा में कार्यरत हैं। वर्ष 2016-17 में दिसम्बर, 2016 तक 350 स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों का आयोजन
d) एंट्री रेट्रोवायरल उपचार कार्यक्रमः :प्रदेश में 3 एंट्री रेट्रोवायरल उपचार केन्द्र आई.जी.एम.सी. शिमला, क्षेत्रीय अस्पताल हमीरपुर और डा. आर.पी.जी.एम.सी.टांडा में स्थित है और 3 एफ ए.आर.टी. तथा 7 लिंक ए.आर.टी.केन्द्रों द्वारा एच.आई.वी. के साथ रह रहे लोगों को मुफ्त दवाईयां उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
e) लक्षित हस्तक्षेप : हिमाचल प्रदेश में उच्च जोखिम पूर्ण समूह के लिए 18 लक्षित हस्तक्षेप परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। 2016-17 वर्ष में दिसम्बर, 2016 तक 17,396 लोगों को यौन रोग सम्बन्धित सुविधायें प्रदान करवाई गई। एकीकृत जांच एवं परामर्श केन्द्रों में 7,164 जांच किये गये व्यक्तियों में से 7 मामले अनुकूल पाये गये।
राज्य में स्वास्थ्य शिक्षा, पैरा मैडिकल और नर्सिग को बेहतर प्रशिक्षण तथा स्वास्थ्य गतिविधियों और दन्त सेवाओं को मोनीटर तथा समन्वय करने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा प्रशिक्षण तथा अनुसंधान निदेशालय की स्थापना की गई।
इस समय प्रदेश के तीन आयुर्विज्ञान महाविद्यालय आई.जी.एम.सी.शिमला, डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, टाण्डा, डा0 यशवन्त सिंह परमार राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय नाहन तथा एक सरकारी दन्त आयुर्विज्ञान महाविद्यालय शिमला में कार्यरत है। इस के अतिरिक्त निजी क्षेत्र में चार दन्त आयुर्विज्ञान महाविद्यालय कार्यरत है। शैक्षणिक सत्र 2016-17 से विभिन्न सरकारी संस्थानों में तथा गैर सरकारी ;गैर सहायता प्राप्तद्ध नर्सिंग संस्थानों में क्रमशः सीटें 1,085 सीटें जी0एन0एम0, 706 सीटें बी0एस0सी0 नर्सिंग, 125 सीटें पोस्ट बेसिक बी0एस0सी0 नर्सिंग और 92 सीटें ए0एन0एम0प्रशिक्षण कोर्स तथा 35 सीटें एम.एस. सी. नर्सिंग के कोर्स हेतु भरी गई। चिकित्सों की कमी को दूर करने हेतु राज्य सरकार द्वारा सरकारी क्षेत्र में तीन मेडीकल कालेज नाहन, हमीरपुर तथा चम्बा में प्रत्येक कालेज में 100 एम.बी.बी.एस. सीटों की क्षमता के साथ अधिसूचित किये गये। वर्तमान वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय योगदान के रूप में ृ36.00 करोड़ डा0 यशवन्त सिंह परमार राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, नाहन, ृ32.98 करोड़ डा0 राधाकृष्णन राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, हमीरपुर तथा ृ35.00 करोड़ पंडित जवाहर लाल नेहरू राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, चम्बा को जारी किये गये और राज्य सरकार द्वारा भी 10 प्रतिशत राज्य योगदान के रूप में अतिरिक्त राशि ृ400.00 लाख, ृ366.00 लाख तथा ृ388.88 लाख क्रमशः जारी किये गये। इस सत्र 2016-17 में इन्दिरा गाँधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, शिमला एंव डा0 राजेन्द्र प्रसाद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, टाण्डा के विभिन्न विशिष्टताओं में 152 पी0जी0 सीटें भरी गई हैं। इस निदेशालय के अंतर्गत संस्थावार उपलब्धियों का वर्णन निम्न प्रकार से हैः-
a) इन्दिरा गांधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय : इन्दिरा गाँधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल को अब सुपर स्पेशियलिटी संस्थान के रूप में उन्नत किया गया है। राज्य का प्रमुख स्वास्थ्य सस्थान है। राज्य सरकार द्वारा पी.एम.एस.एस.वाई योजना के तृतीय चरण के अंतर्गत चमयाणा में सुपर स्पेशियलिटी ब्लाॅक के निर्माण के लिए 6,600 वर्ग मीटर भूमि का चयन कर संस्थान के नाम करने हेतु स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। इस वित वर्ष के दौरान इन्दिरा गाँधी मेडिकल कालेज, शिमला में मशीनरी तथा उपकरण उपलब्ध करवाने के लिए ृ304.00 लाख की राशि उपयोग की गई। भारत सरकार द्वारा शिमला में महामारी, हेपेटाइटिस के प्रकोप का रोकने तथा निवारण कर उपकरण का विकास हेतु एक परियोजना ृ138.34 लाख स्वीकृत की गई जिसके माध्यम से शहर के पानी तथा सीवरेज के स्त्रोतों के लिए एक अध्ययन किया जायेगा।इस वर्ष के दौरान आई.जी.एम.सी. द्वारा किसीे भी स्थान से चिकित्सा पर्ची को आॅनलाईन पंजीकरण तथा रोगियों के लाभ के लिए एस एम एस संदेश द्वारा प्रयोगशाला टेस्ट रिर्पोट को आॅनलाईन डाउनलोड करने की सुविधा आरम्भ की गई। आई जी एम सी महाविद्यालय के सिस्टर निवेदिता नर्सिग महाविद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2016-17 से 25 सीटों की क्षमता के साथ एम.एस.सी. नर्सिंग का पाठयक्रम भी आरम्भ किया गया है।
भविष्य योजनाएं : आई.जी.एम.सी. शिमला सिस्टर निवेदिता राजकीय नर्सिग कालेज को घणाहटटी स्थानान्तरण कर निर्माण करना, ट्रोमा सेन्टर को नये ओ.पी.डी. लिफ्ट ब्लाॅक में स्थापित करना, रेडियोलोजी विभाग के लिए लगभग ृ7.00 करोड़ की लागत से डी.एस.ए. मशीन स्थापित करना तथा कमला नेहरू राज्य मातृ एवं शिशु चिकित्सालय में लगभग ृ3.00 करोड़ की लागत से आधुनिक तकनीक वाली डिजिटल रेडियोग्राफी मशीन स्थापित करना प्रस्तावित है।
वित्तीय उपलब्ध्यिां:इस वित्तीय वर्ष 2016-2017 के लिए कुल बजट ृ16,308.36 लाख का प्रावधान रखा गया जिसमें ृ11,534.98 लाख 31.12.2016 तक व्यय किए गए।
(b) डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय कांगडा स्थित टांडा) : डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, कांगड़ा, स्थित टांडा, 50 एम.बी.बी.एस. विद्यार्थियों की क्षमता केे साथ अक्तूबर, 1996 में स्थापित किये जाने वाला प्रदेश का द्वितीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय है। प्रथम बैच 1999 में आरम्भ किया गया तथा 24.02.2005 को मान्यता प्रदान की गयी। वर्तमान में इस संस्थान में एम.बी.बी.एस. के 100 विद्यार्थियों का 18वां बैच प्रशिक्षण ग्रहण कर रहा है। इस संस्थान में उपकरणों के लिए ृ4.86 करोड़ तथा आपातकालीन सेवाओं को उन्नय एवं सुदृढ़ करने के लिए ृ121.50 लाख की राशि जारी की गई। वर्ष 2016-17 के दौरान ृ289.56 लाख मशीनरी एवं उपकरणों की खरीद पर उपयोग किये गये। लेक्चर हाल, परीक्षा भवन तथा एनाटमी ब्लाक के निर्माण कार्य ृ8.56 करोड़ की अनुमानित लागत से सम्पन किया गया।
भविष्य योजनाएं: सराय भवन के निर्माण और रोगियों एवं उनके परिचारकों को अच्छी सुविधायें प्रदान करने एक शाॅपिंग कम्पलैक्स के निर्माण का भी प्रस्ताव है जिसके लिये सरकार द्वारा सराय भवन के निर्माण की स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। भविष्य में इस संस्थान के परिसर विस्तार करने के लिये कालेज के समीप मुख्यद्वार से पानी की टैंक तक भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव है।
(c) डाक्टर यषवंत सिंह परमार राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय नाहन: डाक्टर यशवंत सिंह परमार राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय नाहन, जिला सिरमौर 100 एम0बी0बी0एस0 सीटों की क्षमता के साथ स्थापित राज्य का तीसरा आयुर्विज्ञान महाविद्यालय है। प्रथम शैक्षाणिक सत्र 2016-17 से आरम्भ हो गया है। सरकार द्वारा इस संस्थान में मशीनरी एवं उपकरण खरीदने के लिए ृ4.68 करोड़ प्रदान किये गये हैं। ृ10.03 करोड़ की लागत से दो लेक्चर थियेटर, चार शल्य थियेटर, सेन्ट्रल लाईब्रेरी तथा प्रयोगशालाओं का निर्माण पूरा हो चुका है।
भविष्य योजनाएं: वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए कुल बजट ृ8,492.33 लाख का प्रावधान रखा गया जिसमें से ृ6,583.69 लाख 31.12.2016 तक व्यय किए गए।
(d) दन्त महाविद्यालय एवं चिकित्सालय : हिमाचल प्रदेश राजकीय दन्त महाविद्यालय एवं शिमला की स्थापना 1994 में 20 छात्रों की वार्षिक प्रवेश क्षमता के साथ की गई थी। वर्ष 2007-08 से यह क्षमता 60 विद्यार्थियों तक बढ़ा दी गई है। इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष 15 स्नातकोतर विद्यार्थियों को 6 विशिष्ट एम.डी.एस. पाठयक्रम जैसे ओरल सर्जरी, पेडोडांेटिक्स, आर्थोडांेटिक्स, प्रोस्थोडोंटिक्स, आॅपरेटिव डेन्टिस्ट्र्ी एवं पेरियोडोंटिक्स में दाखिला दिया जा रहा है। दन्त महाविद्यालय एवं चिकित्सालय को खोलने का उद्वेश्य राज्य के लोगों को बेहतर दन्त स्वास्थ्य की देखभाल के लिए दंत चिकित्सों एंव पैरा मैडिकल स्टाॅफ की मांग को देखते हुए किया गया ताकि लोगों को पूर्ण दंत चिकित्सा उपलब्ध करवाई जा रही है। एन. ए.ए.सी. के मानकों पर प्रोस्थोडोन्टिस, ओरल, मैक्सिलोफेशियल सर्जरी, ओ.एम. आर. स्नातकोत्तर और कंसलटैन्ट चैम्बर का अति आधुनिक दन्त यूनिट के साथ निर्माण किया गया। संस्थान द्वारा आई. आर.डी.पी. व बी.पी.एल. परिवारों को मुफ्त दन्त चिकित्सा प्रदान की जा रही है। 01.01.2016 से 31.12.2016 तक 63,780 बाहय रोगियों का ईलाज किया गया। संस्थान द्वारा मुस्कान योजना तथा मुख्य मन्त्री छात्र दन्त योजना एंव अन्य योजनाएं चलाई जा रही है।
वित्तीय उपलब्धियां : वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए कुल बजट ृ1,554.63 लाख का प्रावधान रखा गया जिसमें से 31.12.2016 तक ृ1,080.60 लाख व्यय किए गए।
भारतीय चिकित्सा पद्वति (आयुर्वेद) तथा होम्योपैथी का प्रदेश में लोगों को चिकित्सा सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान है। राज्य सरकार द्वारा भी इस पद्वति को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 1984 में अलग से भारतीय चिकित्सा पद्वति विभाग की स्थापना की गई और लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए 2 क्षेत्रिय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, 2 वृत चिकित्सालय, 3 जनजातीय चिकित्सालय, 16 दस/बीस बिस्तरों वाले चिकित्सालय, 9 जिला आयुर्वेदिक चिकित्सालय, एक प्राकृतिक चिकित्सा चिकित्सालय, 1,150 आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र, 3 युनानी स्वास्थ्य केंद्र, 14 हाम्ेयोपैथिक स्वास्थ्य केंद्र तथा 4 आमची क्लीनिक कार्य कर रहे हैं। विभाग के अंतर्गत कार्यरत 3 आर्युवैदिक फार्मेंसियां जो कि जोगिन्द्रनगर, जिला मण्डी, माजरा, जिला सिरमौर तथा पपरोला, जिला कांगड़ा में औषधियों का निर्माण किया जाता है। ये फार्मेसियां आयुर्वेदिक स्वास्थ्य संस्थाओं की आवश्यकताओं को पूरा करती है तथा साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है। पपरोला जिला कांगड़ा में 60 विद्यार्थी प्रतिवर्ष की क्षमता से बी.ए.एम.एस. की उपाधि और 39 स्नातकोत्तर चिकित्सकों को आयुर्वेदिक शिक्षा देने के लिए राजीव गांधी स्नातकोतर आयुर्वेदिक महाविद्यालय कार्यरत है। इसके अतिरिक्त महाविद्यालय में काया-चिकित्सा, शाल्क्य तंत्र, शल्य तंत्र, प्रसूति तन्त्र, समहिता एंव सिद्धान्त, द्रव्य गुण, रोग निदान, स्वास्थ्य वृत, पंचकर्म, बाल रोग व रस शास्त्र की स्नातकोतर कक्षाएं भी शुरू कर दी हैं। विभाग द्वारा जोगिन्द्रनगर में 30 छात्रों की क्षमता का आयुर्वेदिक ;बीद्ध फार्मेसी कोर्स आरम्भ किया गया है। आयुर्वेदा विभाग द्वारा राष्ट्र्ीय स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसे मलेरिया उन्मूलन, परिवार कल्याण, मुक्त अनीमिया, एडस, टीकाकरण, पल्स पोलियो अभियान आदि में भी योगदान दिया जाता है। वर्ष 2016-17 के लिए ृ250.00 करोड़ का बजट का प्रावधान किया गया है जिसमें ृ228.00 करोड़ गैर योजना तथा ृ22.00 करोड़ योजना में है।
जड़ी बूटियों के स्त्रोतों का विकास : राज्य के विभिन्न जड़ी बूटियों के स्त्रोतों का संरक्षण करने हेतु विभाग द्वारा प्रदेश में जोगिन्द्रनगर ;जिला मण्डीद्ध, नेरी ;जिला हमीरपुरद्ध व डुमरेडा़ ;जिला शिमलाद्ध तथा जंगल झलेड़ा ;जिला बिलासपुरद्ध में हर्बल बगीचों की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय मेडिसिनल प्लांट बोर्ड, आयुष विभाग, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 के लिए केन्द्रीय प्रायोजित योजना के अन्र्तगत ृ61.98 लाख़ मूल्य की वार्षिक कार्य योजना स्वीकृत की गई है। इसके अन्तर्गत 1 माॅडल नर्सरी 4 हैक्टेयर क्षेत्र, 10 लघु नर्सरियां प्रत्येक, एक हैक्टेयर की निजी क्षेत्र में स्थापित की जाएगी। इसके अतिरिक्त 72 हैक्टेयर भूमि पर किसानों द्वारा औषधीय पौधों की खेती की जाएगी।
वर्ष 2016-17 ;दिसम्बर, 2016 तकद्ध के दौरान डी.टी.एल. जोगिन्द्रनगर द्वारा सरकारी एवं निजी फार्मेसियों के 590 नमूनों का विश्लेषण किया गया जिससे ृ2.36 लाख का राजस्व प्राप्त किया गया।
i) निःषुल्क षिविर : आयुष चिकित्सा को लोकप्रिय एंव लोगों को जागरूक करने हेतु वर्ष 2016-17 के दौरान प्रदेश के विभिन्न भागों में 48 निःशुल्क चिकित्सा शिविरों का आयोजन कर हजारों रोगियों का जांच एंव इलाज किया गया।
ii) राजकीय आयुर्वेदिक फार्मेसीः वर्तमान में तीन फार्मेसियों द्वारा आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से रोगियों को मुफ्त वितरण हेतु दवाईयों का उत्पादन किया जा रहा है। यह फार्मेसियां माजरा, जिला सिरमौर, जोगिन्द्रनगर, जिला मण्डी व पपरोला, जिला कांगड़ा में कार्यरत है। पपरोला में स्थित फार्मेसी राजकीय स्नात्कोतर आयुर्वेदिक महाविद्यालय के छात्रों को क्रियात्मक कार्य हेतु भी उपयोग में लाई जाती है। विभाग की तीनों फार्मेसियों से औषधियों का वितरण हि0प्र0 के आयुर्वेद संस्थानों को किया जाता है। वर्तमान में विभाग राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से कच्ची जड़ी-बूटियों का औषधियों निर्माण करने हेतु क्रय कर रहा है जोकि स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं है।
विभाग द्वारा वर्ष 2017-18 के लिये 5 नये आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केन्द्र खोलने, एक आयुर्वेदिक चिकित्सालय का दर्जा बढ़ाकर 10 बिस्तरों वाले अस्पताल में, एक 10/20 बिस्तरों वाले आयुर्वेदिक चिकित्सालय को 50 बिस्तरों वाले अस्पताल में स्तरोन्नत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

18.सामाजिक कल्याण कार्यक्रम

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, हिमाचल प्रदेश का मुख्य लक्ष्य अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछडे़ वर्गों, वृद्धों एवं बेसहारा, शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों, महिलाओं, विधवाओं तथा बेसहारा महिलाओं जो नैतिक खतरे में हों, की सामाजिक कल्याण कार्यक्रम के अन्र्तगत निम्न परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैः-
सामाजिक सुरक्षा पैंशन योजना :
1) वृद्धावस्था पैंशन :ऐसे वृद्ध व्यक्ति जिनकी आयु 60 वर्ष या इससे अधिक है परन्तु 80 वर्ष से कम हो तथा उनकी देख-रेख/ पालन पोषण का उचित साधन न हों व जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो को ृ650 प्रति माह पैंशन दी जाती है। 80 वर्ष से अधिक आयु के वृद्धों और पैशनरों को बिना किसी आय सीमा के ृ1,200 प्रति माह की दर से पैंशन दी जा रही है।
2) दिव्यांग राहत भत्ता : ऐसे दिव्यांग व्यक्ति जिन्हें 40 प्रतिशत या इससे अधिक स्थाई दिव्यांगता हो तथा जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो, को ृ650 प्रति माह की दर से पैंशन दी जा रही है। इसके अतिरिक्त 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को ृ1,200 प्रति माह की दर से बिना किसी आय सीमा के पैंशन प्रदान की जा रही है बशर्तें कि वे किसी सरकारी/गैर सरकारी बोर्ड व निगम में कार्यरत न हो तथा किसी अन्य प्रकार की पैंशन प्राप्त न कर रहा हो। वृद्धावस्था तथा दिव्यांग भत्ता हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में 1,95,309 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । इन योजनाओं हेतु ृ20,129.62 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2016 तक ृ13,097.71 लाख व्यय किए जा चुके है।
3) विधवा/परित्यक्त महिला/एकल नारी पैंशन :ऐसी महिला जो विधवा, परित्यक्ता अथवा 45 वर्ष से अधिक आयु की एकल नारी हो तथा उनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो, इनको भी ृ650 प्रति माह पैंशन दी जाती है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में 77,678 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ10,535.15 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2016 तक ृ5,030.71 लाख व्यय किए जा चुके है ।
4)कुष्ठ रोगी पुर्नवास भत्ता :ऐसे कुष्ठ रोगी जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में उपचाराधीन हो पर कोई भी आयु तथा आय सीमा लागू नहीं है। ऐसे कुष्ठ रोगियों को ृ650 प्रति माह कुष्ठ रोगी पुर्नवास भत्ता दिया जाता है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में 1,482 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ133.70 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2016 तक ृ63.83 लाख व्यय किए जा चुके है ।
5) इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पैंशन योजना :इस योजना के अन्र्तगत 60 वर्ष या इससे अधिक आयु के गरीबी रेखा से नीचे रह रहे चयनित परिवारों के सभी सदस्य पात्र है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में 92,332 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ3,948.10 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2016 तक ृ3,017.66 लाख व्यय किए जा चुके हंै।
6) इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पैंशन योजना :इस योजना के अन्र्तगत 40 से 79 वर्ष के आयु वर्ग में गरीबी रेखा से नीचे चयनित परिवारों की विधवाओं को उपरोक्त पैंशन दी जा रही है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में 21,516 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ958.12 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2016 तक ृ637.46 लाख व्यय किए जा चुके हंै।
7) इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पैंशन योजना :इस योजना के अन्र्तगत 18 से 79 वर्ष के आयु वर्ग में गरीबी रेखा से नीचे चयनित परिवारों के 80 प्रतिशत दिव्यांग व्यक्तियों को उपरोक्त पैंशन दी जा रही है। इस योजना हेतु चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में 851 पैंशनरों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा ृ64.78 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2016 तक ृ31.46 लाख व्यय किए जा चुके हंै।
उपरोक्त सभी केन्द्रीय योजनाओं के अन्र्तगत केन्द्र सरकार से इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पैंशन योजना के अन्र्तगत वृद्धावस्था पैंशन हेतु 60-79 वर्ष की आयु वर्ग के लिए ृ200 व 80 वर्ष से अधिक आयु के पैंशनरों हेतु ृ500 प्रति माह प्रति पैंशनर की दर से प्राप्त होते हैं। जबकि विधवा पैंशनरों व दिव्यांगता पैंशनरों हेतु ृ300 पैंशनर की दर से प्राप्त होते है। शेष राशि वृद्वावस्था पैंशन हेतु प्रति माह ृ450 व 80 वर्ष से अधिक आयु वालों को ृ700 तथा विधवा पैंशनरों हेतु ृ350 प्रति पैंशनर की दर से व मनीआर्डर भेजने पर होने वाला व्यय प्रदेश सरकार द्वारा वहन किया जा रहा हैे जिसका बजट प्रावधान राज्य वृद्वावस्था तथा विधवा पैंशन योजना के बजट में किया गया है ताकि सभी प्रकार के पैंशनरों को एक सामान की दर से ृ650, 80 वर्ष से कम प्रति माह व 80 वर्ष तथा उस से अधिक आयु के पैंशनरों को ृ1,200 प्रति माह की दर से पैंशन प्राप्त हो सके। इसी प्रकार इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांग पैंशन योजना के अन्तर्गत प्रदेश सरकार ृ900 प्रति माह प्रति पैंशनर की दर से व मनीआर्डर भेजने पर होने वाला व्यय वहन कर रही है जिसका बजट प्रावधान राज्य दिव्यांग पैंशन योजना के बजट में किया गया है ताकि 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले सभी पैंशनरों को एक सामान की दर से ृ1,200 प्रति माह की दर से पैंशन प्राप्त हो सके।
विभाग तीन निगमों द्वारा जो कि हि0प्र0 अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम, हि0 प्र0 पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम तथा हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन-जाति विकास निगम को स्वंय रोजगार योजनाएं चलाने हेतु निवेश शीर्ष के अन्र्तगत राशि उपलब्ध करवा रहा है। इन निगमों के लिए वर्ष 2016-17 के लिए ृ914.00 लाख के बजट का प्रावधान है तथा 31.12.2016 तक ृ555.00 लाख की राशि जारी कर दी गई है।
विभाग दिव्यांगजन के लिए वर्ष 2008-09 से श्सहयोगश् नाम से एक विस्तृत एकीकृत योजना को आरम्भ कर उसका संचालन कर रहा है जिसके मुख्य घटकों की 31.12.2016 तक की भौतिक एवं वित्तीय उपलब्ध्यिों का विवरण निम्न रूप से हैः-
i) दिव्यांग छात्रवृति : इसका मुख्य उद्वेश्य श्रवणदोष दिव्यांग विद्यार्थी जिनकी दिव्यांगता 40 प्रतिशत या इससे अधिक है, बिना किसी आय सीमा केे इस घटक के अन्र्तगत जो विद्यार्थी छात्रावासों में नहीं रहते हैं उनकी छात्रवृति ृ500 से ृ1,750 प्रति माह तथा छात्रावास में रहने वाले छात्रों को ृ1,500 से ृ3,000 तक प्रति माह छात्रवृति प्रदान की जाती हैें। 31.12.2016 तक ृ101.74 लाख के बजट में से ृ63.54 लाख व्यय किए गए तथा 856 विधार्थियों को लाभान्वित किया गया।
ii) दिव्यांग विवाह अनुदान :सक्षम युवक व युवतियों जिनकी आयु विवाह योग्य है को दिव्यांगजन से विवाह हेतु जिनकी दिव्यांगता 40 प्रतिशत से कम न हो क¨ प्रोत्साहित करने के आशय से 40 प्रतिशत से 69 प्रतिशत तक ृ8,000 तथा 70 से 100 प्रतिशत से ऊपर वाले को ृ40,000 तक राज्य सरकार द्वारा यदि दोनों दिव्यांग हो तो उन्हें विवाह होने के बाद विवाह अनुदान दिया जाता है। इस वर्ष इस योजना के अन्र्तगत ृ36.00 लाख के बजट प्रावधान में से 31.12.2016 तक ृ20.59 लाख व्यय हुए जिससे 116 व्यक्तियों को लाभान्वित किया गया।
iii) जागरूकता अभियान :इस घटक के अन्र्तगत खण्ड एवं जिला स्तर के शिविरों का आयोजन किया जाता है जिसमें दिव्यांगजन संघ के प्रतिनिधियों पंचायत प्रतिनिधियों एवं स्वंय सहायता समूहों के सदस्यों को आंमत्रित किया जाता है। इन शिविरों में दिव्यांगजनों केे चिकित्सा प्रमाण-पत्र बनाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त दिव्यांगजनों केे लिए चलाई जा रही विभागीय योजनाओं के बारे में जागरूक किया जाता है। वर्ष 2016-17 में ृ7.00 लाख के बजट का प्रावधान है। 31.12.2016 तक इस योजना के अन्र्तगत ृ6.50 लाख की राशि व्यय की जा चुकी है।
iv) स्वः रोजगार : 40 प्रतिशत या इससे अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को लघु औद्योगिक इकाईयों के लिए अल्प संख्यक वित्त एवं विकास निगम के माध्यम से ऋण उपलब्ध करवाए जाते हैं जिस पर कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ृ10,000 या परियोजना लागत का 20 प्रतिशत (जो भी कम हो) का उपदान उपलब्ध करवाता है। वर्ष 2016-17 में 31.12.2016 तक निगम द्वारा 58 दिव्यांग व्यक्तियों को ृ241.20 लाख के ऋण उपलब्ध करवाये गये। अल्पसंख्यक निगम से अनुदान के प्रस्ताव प्राप्त होने की प्रतीक्षा है।
v) कौशल विकासः :चयनित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से दिव्यांगजनों को चयनित व्यवसायों में व्यवसायिक प्रशिक्षण निःशुल्क दिया जाता है और ृ1,000 प्रति माह की दर से प्रशिक्षार्थी को छात्रवृति दी जाती है। इस वर्ष 117 दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षण हेतु प्रायोजित किया गया है। वित्तीय वर्ष में ृ15.00 लाख का बजट प्रावधान किया गया है तकनीकी शिक्षा विभाग से प्रस्ताव प्राप्त होने की प्रतीक्षा है।
vi) पुरस्कार योजना : इस योजना के अन्र्तगत निजी क्षेत्र में नियोक्ता द्वारा अधिकतम दिव्यांगजन¨ं को रोजगार देने व दिव्यांगता के बावजूद उत्कृष्ट कार्य करने के लिए पुरस्कार देने का प्रावधान है। उत्कृष्ट दिव्यांगजन को ृ10,000 व श्रेष्ठ निजी नियोक्ता को ृ5,000 के नकद पुरस्कार देने का प्रावधान है।
viii) विषेश योग्यता वाले बच्चों को षिक्षा : प्रदेश में मूक बधिर व दृष्टिहीन बच्चों को शिक्षा व व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु दो संस्थान ढली व सुन्दरनगर में स्थापित हैं। सुन्दरनगर में 13 दृष्टिवाधित तथा 92 श्रवणदोष की लड़कियां दाखिल हैं। इसके अतिरिक्त 10 दृष्टिबाधित और 4 श्रवणदोष की छात्राऐं सुन्दरनगर पाठशाला में प्रशिक्षण ले रही हैं, जिनका रहन-सहन, शिक्षा व चिकित्सा का खर्चा सरकार वहन कर रही है । इस संस्थान के लिए ृ89.95 लाख के बजट में से 31.12.2016 तक ृ58.96 लाख व्यय हुए हैं हि0प्र0 बाल कल्याण परिषद द्वारा चलाए जा रहे ढली (शिमला) तथा दाड़ी (कांगड़ा) विद्यालयों के लिए ृ100.00 लाख की बजट के विरूद्ध ृ54.17 लाख जारी किए। इसके अतिरिक्त विभाग, प्रेम आश्रम उना में 50 मानसिक रूप से अविकसित बच्चों की पढ़ाई, फीस व रहने आदि का खर्चा वहन कर रही है । इस वर्ष आस्था वैलफेयर सोसाईटी नाहन, पैराडाइज चिल्र्डन केयर सेन्टर चुवाड़ी, आदर्श ऐजुकेशन सोसाईटी कलाथ, कुल्लू, उड़ान रिसपाईट केयर सेन्टर न्यू शिमला में क्रमशः 20 मानसिक रूप से अविकसत व्यस्क पुरूषों, 30 व्यस्क मानसिक रूप से अविकसित पुरूष तथा महिलाओं (10 महिला एवं 20 पुरूष), 60 मानसिक रूप से अविकसित वयस्क महिलाओं और 15 मानसिक रूप से अविकसित बच्चों को निःशुल्क रहन सहन भोजन तथा चिकित्सा हेतु ृ4,500 प्रति आवासी की दर से वहन कर रही है। इस वर्ष ृ67.52 लाख का बजट प्रावधान था तथा 31.12.2016 तक समस्त राशि व्यय की जा चुकी है। दिव्यांगता पुनर्वास केन्द्र प्रदेश में हमीरपुर व धर्मशाला में दो दिव्यांगता पुनर्वास केन्द्र स्थापित हैं जो कि क्रमशः ग्रामीण विकास अभिकरण, हमीरपुर व भारतीय रैडक्राॅस सोसाइटी, धर्मशाला द्वारा चलाए जा रहे हैं। वर्ष 2016-17 में ृ20.00 लाख का बजट प्रावधान है।
्रदेश में अनुसूचित जातियों की संख्या किसी क्षेत्र में केंद्रित न होकर समूचे प्रदेश में फैली हुई है और सभी लोगों का समान रूप से विकास किया जाना है। अनुसूचित जातियों के संबंध में आर्थिक विकास का दृष्टिकोण क्षेत्रीय आधार पर नहीं है जबकि जन-जातीय उप योजना क्षेत्रीय आधार पर है। जिला बिलासपुर, कुल्लू, मण्डी, सोलन, शिमला और सिरमौर अनुसूचित जाति अधिकता वाले जिले हैं। जहां अनुसूचित जातियों की जनसंख्या राज्य औसत से अधिक है। राज्य में इन छः जिलों में कुल अनुसूचित जाति जनसंख्या का 61.09 प्रतिशत है।
अनुसूचित जाति उपयोजना को आवश्यकता के अनुरूप एवं प्रभावी बनाने, योजना के कार्यान्वयन एवं निगरानी/अनुश्रवण के लिए इकहरी प्रशासनिक प्रणाली शुरू की है। सभी जिलों को निर्धारित मापदण्डों के आधार पर बजट आंवटित किया गया है जो दूसरे जिलों के लिए नहीं बदला जा सकता। प्रत्येक जिला में जिलाधीश इस योजना के कार्यान्वयन से संबंध्ंिात विभागों/ क्षेत्रीय विभागों के अधिकारियों के परामर्श से जिला स्तरीय योजनाएं तैयार करते हैं।
अनुसूचित जातियों के कल्याण से संबंधी सभी कार्यक्रमों को प्रभावी तौर पर कार्यान्वित किया गया है। यद्यपि अनुसूचित जाति समुदाय के लोग सामान्य योजना एवं जन-जाति उप-योजना में लाभान्वित हो रहे हैं फिर भी अनुसूचित बहुल्य गांवों में आधारभूत संरचना के विकास के लिए विशेष लाभकारी कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। राज्य योजना के कुल बजट का 25.19 प्रतिशत अनुसूचित उप-योजना के लिए अलग से प्रावधान किया गया है। सरकार अनुसूचित जाति के परिवारों को रोजगार प्रदान करने व उनकी आय में वृद्वि करने के लिए अधिक से अधिक वास्तविक योजनाएं तैयार करके विशेष प्रयास कर रही है।.
अनुसूचित जाति उपयोजना के लिए एक अलग उप प्रमुख शीर्ष "789" बनाया गया है और एक अलग मांग (मांग संख्या 32) भी बनाई गई है। ऐसी व्यवस्था एससीएसपी के तहत 100 प्रतिशत व्यय सुनिश्चित करने के लिए एक ही प्रमुख मद में धनराशि को एक योजना से दूसरे में और एक प्रमुख मद से दूसरे में स्थानांतरित करने में बहुत सहायक है। वर्ष 2016-17 के दौरान राज्य में अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत 1,309.88 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं। और वर्ष 2017-18 के लिए `1,435.83 करोड़ का प्रस्ताव किया गया है।
जिला स्तर पर जिला स्तरीय समीक्षा एंव कार्यन्वयन कमेटी गठित की गई है। जिसके अध्यक्ष सम्बन्धित जिला से मन्त्री तथा उपाध्यक्ष जिलाधीश होता है। जिला परिषद का चेयरमैन और खण्ड विकास समिति के सभी चेयरमैन और अन्य स्थानीय प्रसिद्ध व्यक्ति इस कमेटी के गैर सरकारी सदस्य और अनुसूचित जाति उप-योजना से सम्बन्धित सभी अधिकारी सरकारी सदस्य होते हैं। राज्य स्तर पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता सचिव विभागाध्यक्षों के साथ त्रैमासिक समीक्षा बैठकें आयोेजित करते हैं। इसके अतिरिक्त माननीय मुख्य मन्त्री की अध्यक्षता में अनुसूचित जाति कार्य निष्पादन के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समन्वय एवं समीक्षा जो कि अनुसूचित जाति उप-योजना की समीक्षा करती है की समिति बनाई गई है।
वर्ष 2007 में ग्रामीण विकास विभाग के सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 95,772 अनुसूचित जाति परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं। वर्ष 2016-17 में 10,009 अनूसूचित जाति परिवारों के लक्ष्य की तुलना में 2,038 अनूसूचित जाति परिवारों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है।
1) मुख्यमन्त्री बाल उद्धार योजना : राज्य सरकार द्वारा मुख्य मन्त्री बाल उद्धार योजना चलाई जा रही है। योजना के अन्तर्गत ज़रूरतमंद बच्चों को वस्त्र, रहन-सहन, चिकित्सा, जीविका संबन्धी परामर्श एवं शिक्षा आदि की निःशुल्क सेवायें प्रदान की जा रही है। आवासियों द्वारा बाल गृृह छोड़ने के उपरान्त भी देश के भीतर किसी भी सरकारी संस्थान से उच्च शिक्षा (शैक्षणिक एवं व्यवसायिक) प्राप्त करने पर होने वाले व्यय को भी राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है। योजना का लाभ किशोर न्याय अधिनियम 2015 के अन्तर्गत पंजीकृृत सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सरकार से प्राप्त अनुदान सहायता से संचालित बाल गृृहों में रहने बाले सभी बच्चों को दिया जाता है। वर्तमान में प्रदेश में 28 बाल-बालिका गृृह/संप्रेक्षण गृृह पंजीकृत एवं संचालित हैं। वर्तमान में इन आश्रमों में 1,253 बच्चे रह रहे हैं। योजना के अन्र्तगत चालू वित्त वर्ष में ृ466.84 लाख के बजट प्रावधान के विरूद्ध दिसम्बर, 2016 तक ृ210.93 लाख व्यय किए जा चुके हैं।
2) बाल/बालिका सुरक्षा योजना एवं फाॅस्टर केयर कायक्रम : अनाथ एवं असहाय बच्चों का अनुकूल पारिवारिक परिवेश में भरण-पोषण व देख-रेख करने के लिए हि.प्र. बाल/बालिका सुरक्षा योजना एवं फाॅस्टर केयर कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। वर्ष 2014-15 तक देख-रेख करने वाले दम्पति /माता-पिता को बच्चे के पालन-पोषण हेतु ृ500 प्रति माह प्रति बच्चा की दर से सहायता राशि दी जाती थी। केन्द्रीय प्रायोजित समेकित बाल संरक्षण योजना के अन्तर्गत फाॅस्टर केयर कार्यक्रम के आरम्भ होने पर वर्ष 2015-16 से यह राशि ृ2,300 प्रति माह प्रति बच्चा की दर से दी जा रही है, जिसमें से ृ2,000 पालना दम्पति के पक्ष में बच्चे के पालन-पोषण हेतु स्वीकृत किए जाते हैं जबकि ृ300 राज्य सरकार की ओर से अतिरक्त सहायता के रूप में बच्चे के पक्ष में स्वीकृत किए जाते हैं जिसे बैंक या डाकघर में सावधि जमा के रूप में जमा किया जाता है और बच्चे द्वारा 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के उपरान्त आहरित किया जा सकता है। चालू वित्त वर्ष में इस योजना के अन्र्तगत ृ82.80 लाख के बजट के विरूद्ध दिसम्बर, 2016 तक ृ63.41 लाख व्यय किए जा चुके हैं ।
3) समेकित बाल संरक्षण योजना : कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों के कल्याण और उन परिस्थितियों में कमी लाने मे जिनकी वजह से बच्चे उपेक्षा एंव शोषण के शिकार होते है तथा अपने मां-बाप से अलग हो जाते है के लिए इस योजना के अन्र्तगत बच्चों को अस्थाई आश्रय देने के लिए बल्देयां (शिमला) तथा धर्मशाला में दो आश्रय स्थापित किए गए है। किशोर न्याय अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु प्रदेश के सभी जिलों में किशोर न्याय बोर्ड, बाल कल्याण समितियां एंव जिला स्तरीय सलाहकार बोर्ड गठित किए गए है। जिला बाल संरक्षण इकाईयां चार जिलों क्रमशः शिमला, मण्डी, कांगड़ा और चम्बा में स्थापित की गई है। चाईल्ड लाईन टेलीफोन सेवा 1098 सात जिलों क्रमशः शिमला, कुल्लू, कांगड़ा सोलन, मण्डी, चम्बा, तथा सिरमौर में स्थापित की गई है। देश में दत्तक ग्रहण को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण का गठन किया गया है। इस वित्तीय वर्ष में इस योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा ृ1,992.74 लाख व राज्य सरकार द्वारा ृ140.60 लाख आवंटित किये गये हैं, जिसमें से 31.12.2016 तक ृ1,158.00 लाख व्यय किए जा चुके हैं ।
4) समेकित बाल विकास सेवाएं : समेकित बाल विकास सेवायें कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश के समस्त विकास खण्डों में 78 समेकित बाल विकास परियोजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रदेश में कुल 18,386 आंगनवाड़ी केन्द्रों व 539 मिनी आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से बच्चों, गर्भवती/धात्री माताओं को सेवायें प्रदान की जा रही हैंै। विभाग द्वारा पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षाएं, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाॅंच, विदृष्ठ सेवायें, पाठशाला पूर्व शिक्षा, अनुपूरक पोषाहार, केन्द्र एवं राज्य सरकार के 90ः10 के अनुपात में धनराशि उपलब्ध करवाई जाती है। वित्त वर्ष 2016-17 के अन्र्तगत प्रावधित बजट ृ22,891.00 लाख था, जिसमंे से ृ2,450.00 लाख राज्य का हिस्सा व केन्द्र का हिस्सा ृ20,441.00 लाख है, तथा नवम्बर,2016 तक ृ10,304.00 लाख व्यय किए गए, जिसमें राज्य का हिस्सा ृ648.59 लाख तथा केन्द्रीय हिस्सा ृ9,655.81 लाख का था। भारत सरकार द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं व मिनी आंगनबाड़ी कार्यकताओं को प्रति माह क्रमशः ृ3,000, ृ1,500 व ृ2,250 का मानदेय निर्धारित किया गया है जिसका 10 प्रतिशत राज्य सरकार और 90 प्रतिशत भारत सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार अपनी 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी के अतिरिक्त क्रमशः ृ450, ृ300 तथा ृ375 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी सहायिका एवं मिनी आंगनबाड़ी कार्यकताओं को प्रति माह प्रदान कर रही है।
5) पूरक पोषाहार कार्यक्रम : समेकित बाल विकास सेवायें कार्यक्रम के अन्र्तगत विशेष पोषाहार कार्यक्रम में आंगनवाड़ियों में बच्चों, गर्भवती/धात्री माताओं तथा बी.पी.एल. किशोरियों को निम्नलिखित दरों पर पूरक पोषाहार दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्र्तगत वर्ष भर में 300 दिनांें के लिए पोषाहार दिया जाता है। पूरक पोषाहार की दरें (प्रति लाभार्थी प्रतिदिन) बच्चों को ृ6, गर्भवती/ धात्री माताओं को ृ7, किशोरियों को ृ5 तथा अति कुपोषित बच्चों को ृ9 तय किए गए हैं। इस कार्यक्रम पर होने वाले व्यय को भारत सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा 90ः10 के अनुपात में वहन किया जाता है। चालू वित्त वर्ष में इस कार्यक्रम के अन्र्तगत ृ591.33 लाख का राज्य हिस्सा व ृ2,662.12 लाख भारत सरकार से अनुदान प्राप्त हुआ है। जिसमें से दिसम्बर, 2016 तक ृ2,953.72 लाख व्यय हुआ है व 4,45,978 बच्चे, 1,01,596 गर्भवती/ धात्री माताएं तथा 66,063 बी.पी.एल. किशोरियां लाभाविन्त हुई है।
महिलाओें के कल्याण के लिए प्रदेश में विभिन्न योजनाएं चल रही हैं। प्रमुख योजनाएं जो चलाई जा रही हैं वह इस प्रकार से हैंः-
1) नारी सेवा सदन मशोबरा :इस योजना का मुख्य उद्धेेश्य, विधवा, बेसहारा तथा निराश्रय महिलाऐं तथा जिनको नैतिक खतरा हो को निःशुल्क आश्रय, खाद्य, कपड़ा, शिक्षा तथा व्यवसायिक प्रशिक्षण देना है। वर्तमान में नारी सेवा सदन मशोबरा में 11 महिलाएं रह रही है। महिलाओं को सदन छोेड़ने पर पुर्नवास के लिए ृ20,000 की आर्थिक सहायता दी जाती है। यदि कोई आवासी शादी करती है तो उसे ृ51,000 की आर्थिक सहायता दी जाती है। दिसम्बर,2016 तक ृ192.92 लाख के बजट प्रावधान के विरूद्ध ृ31.68 लाख नारी सेवा सदन के संचालन एंव रखरखाव पर खर्च किए जा चुके हैं।
2) मुख्यमंत्री कन्यादान योजना :इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बेसहारा लड़कियों के परिजनों/संरक्षकांे को उनकी लड़की की शादी के लिए ृ40,000 का अनुदान दिया जाता है जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से अधिक न हो। वर्ष 2016-17 में इस उद्धेश्य के लिए ृ546.05 लाख का बजट प्रावधान रखा गया जिसमें से दिसम्बर, 2016 तक ृ349.15 लाख खर्च किये गये तथा 1,314 लाभार्थियों को लाभ पहंुचाया गया।
3) महिला स्वरोजगार सहायता : इस योजना के अन्र्तगत ृ5,000 उन महिलाओं को आय संवर्धन हेतु प्रदान किए जाते हैं जिनकी वार्षिक आय ृ35,000 से कम है। इस योजना के अन्तर्गत ृ9.35 लाख का प्रावधान किया गया। दिसम्बर, 2016 तक ृ9.20 लाख की राशि व्यय करके 184 महिलाओं को लाभान्वित किया गया है।
4) विधवा पुर्नविवाह योजना :इस योजना का उद्धेश्य विधवाओं को पुर्नविवाह के लिए प्रेरित करके पुर्नवास करना है। इस योजना के अन्र्तगत दम्पति को ृ50,000 के रूप में अनुदान दिया जाता है। वर्ष 2016-17 के दौरान इस योजना के अन्र्तगत ृ102.90 लाख का बजट प्रावधान किया गया जिसमें से दिसम्बर, 2016 तक 79 दम्पतियों को ृ48.50 लाख दिए गए।
5) मदर टेरेसा असहाय मातृ सम्बल योजना : इस योजना का मुख्य उद्धेश्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली निःसहाय महिलाओं को अपने बच्चों के पालन पोषण हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना है। इस योजना के अन्र्तगत गरीबी रेखा से नीचे रह रही निःसहाय महिलाएं, जिनकी आय ृ35,000 से कम है तथा जिनके बच्चों की आयु कम से कम 18 वर्ष हो के पालन पोषण हेतु ृ3,000 प्रति वर्ष प्रति बच्चा सहायता राशि दी जाती है। सहायता केवल दो बच्चों तक ही दी जाती है। इस योजना के अन्र्तगत वर्ष 2016-17 के लिए ृ1,085.22 लाख का प्रावधान था जिसमें से दिसम्बर, 2016 तक ृ541.04 लाख व्यय किये गए तथा 23,875 बच्चों को लाभान्वित किया गया।
6) इन्दिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना : इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना का संचालन जिला हमीरपुर में किया जा रहा है। इस योजना का मुख्य उद्धेश्य 19 वर्ष या उससे ऊपर की गर्भवती व धात्री महिलाओं तथा उनके नन्हें शिशुओं के स्वास्थ्य एंव पोषण की स्थिति में सुधार लाना तथा लाभार्थी महिला की मजदूरी की हानि की आंशिक क्षतिपूर्ति करना है ताकि लाभार्थी महिला को गर्भावस्था के अंतिम चरण तक कामकाज न करना पड़े। वित्तीय वर्ष 2014-15 तक यह योजना 100 प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित थी जो अब से 90ः10 के अनुपात में भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा संचालित की जा रही है। इस योजना के अन्र्तगत कुल ृ6,000 प्रति लाभार्थी की दर से आर्थिक सहायता दो किश्तों में दी जाती है, पहली किश्त गर्भवस्था की तीसरी तिमाही के दौरान तथा दूसरी किश्त प्रसव के 3 माह के पश्चात दी जाती है। चालू वित्त वर्ष में इस योजना के अन्र्तगत उपलब्ध कुल ृ380.74 लाख में से 31.12.2016 तक 4,717 महिलाओं को लाभान्वित कर ृ319.70 लाख व्यय किए गए हैं।
7) माता शबरी महिला सशक्तिकरण योजना : इस योजना का मुख्य उद्धेश्य गरीबी रेखा से नीचे रह रहे अथवा ृ35,000 वार्षिक से कम आय वाले अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन जाति के परिवारों की महिलाओं को अनुदान प्रदान करके उन्हें कठिन परिश्रम से राहत दिलवाने के आशय से गैस कनैक्शन खरीदने हेतु सहायता दी जाती है। प्रत्येक वर्ष प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र में 75 महिलाओं को लाभान्वित करना है, तथा प्रदेश में 5,100 महिलाओं क¨ लाभान्वित किया गया। इस योजना के अन्तर्गत गैस कनैक्शन खरीदने पर कुल लागत के 50 प्रतिशत राशि की प्रति पूर्ति जिसकी अधिकतम सीमा ृ1,300 है, उपदान के रूप में उपलब्ध करवाई जाती है। वर्ष 2016-17 के लिए इस योजना के अन्तर्गत ृ66.00 लाख का बजट प्रावधान रखा गया है जिसके अन्तर्गत दिसम्बर, 2016 तक ृ65.98 लाख व्यय किए जा चुके हैं तथा 1,504 गैस कनैक्शन जारी किए जा चुके हैं ।
8) विशेष महिला उत्त्थान योजना : राज्य सरकार ने ऐसी महिलाओं, जो नैतिक खतरें में हैं, को प्रशिक्षण प्रदान करने तथा उनके पुर्नवास के लिए विशेष महिला उत्थान योजना बतौर 100 प्रतिशत राज्य योजना शुरू की है। योजना के अन्र्तगत महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से ृ3,000 प्रति प्रशिक्षणार्थी प्रति माह की दर से छात्रवृति दी जाती है। चालू वित्त वर्ष में ृ125.00 लाख का बजट प्रावधान है जिसके अन्तर्गत 240 महिलाओं को 13 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
9) बलात्कार पीड़ितों के लिए वित्तीय सहायता एवं समर्थन सेवायें योजना 2012 :यह योजना दिनांक 22.09.2012 को बतौर 100 प्रतिशत राज्य योजना अधिसूचित की गई है। इस योजना का उद्धेश्य बलात्कार पीड़ितों को वित्तीय सहायता तथा परामर्श, चिकित्सा सहायता, विधिक सहायता, शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि समर्थन सेवायें प्रदान करने का प्रावधान है। प्रभावित महिला को ृ75,000 तक की वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है ताकि उनका पुर्नवास किया जा सके। विशेष परिस्थितियों में अवयस्कों को ृ25,000 की अतिरिक्त वित्तीय सहायता देने का भी प्रावधान है। चालू वित्त वर्ष 2016-17 में ृ110.00 लाख के बजट का प्रावधान है जिससे 56 महिलाओं को दिसम्बर,2016 तक वित्तीय सहायता दी गई है।
10) बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना : लिंग भेदभाव का समापन, निवारण करने, बालिका की उत्तरजीविता और संरक्षण को सुनिश्चित करने तथा बालिका की शिक्षा को सुनिश्चित करने के उद्धेश्य से इस योजना को 22.01.2015 से देश के 100 जिलों के साथ जिला ऊना मे शुरू किया गया। यह योजना बाल लिंग अनुपात में गिरावट को रोकने और उसमें सुधार कर, वृृद्धि करने का प्रयास है। इस योजना के माध्यम से जन समुदाय को घटते हुए लिंगानुपात के दुष्प्रभावों के बारे में जागृत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2016-17 में यह योजना प्रदेश के दो अन्य जिल¨ं क्रमशः कांगड़ा व हमीरपुर में भी शुरू की गई है ।
परिवार तथा समुदाय की शिशु कन्या तथा महिलाओं के प्रति नकारात्मक सोच को बदलने तथा लड़कियों के स्कूल में नामांकन के उद्धेश्य से बेटी है अनमोल योजना 5.07.2010 प्रदेश में लागू की गई है। इस योजना के अन्र्तगत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों में जन्म लेने वाली दो बालिकाओं के नाम पर, बैंक/डाकघर में ृ10,000 जमा कर दिए जाते हैं तथा पहली कक्षा से जमा दो कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृति भी दी जाती है। सरकार ने 23.07.2015 से छात्रवृति की दरों में 50 प्रतिशत की वृद्धि की है। नई/ संशोधित दरें ृ450 प्रति वर्ष से ृ2250 प्रति वर्ष के बीच है। वर्ष 2016-17 में इस योजना के अन्र्तगत ृ949.00 लाख का बजट प्रावधान किया गया है तथा 31.12.2016 तक ृ786.00 लाख व्यय किये जा चुके हैं तथा 11,359 बालिकाओं को लाभान्वित किया गया है।
किशोरी शक्ति योजना केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में 11 से 18 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों में साक्षरता को बढ़ावा देने, गृह आधारित एवं व्यवसायिक कौशल में सुधार लाने, उनमें स्वास्थ्य, पोषाहार, स्वच्छता, गृह प्रबन्धन एवं बच्चों की देख-रेख सम्बन्धी ज्ञान को बढ़ाने हेतु संचालित की जा रही है। वित्तीय वर्ष 2014-15 तक यह योजना 100 प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित थी जो वित्तीय वर्ष 2015-16 से 90ः10 के अनुपात में भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा संचालित की जा रही है। योजना प्रदेश के 8 जिलों शिमला, सिरमौर, किन्नौर, मण्डी, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना तथा लाहौल-स्पिति चलाई जा रही है। योजना के अन्तर्गत गैर पोषाहार घटक पर प्रति वर्ष प्रति परियोजना ृ1.10 लाख तक व्यय करने का प्रावधान है। चालू वित्त वर्ष में, दिसम्बर, 2016 तक ृ10.00 लाख की राशि खर्च कर दी गयी है। इस योजना के अन्र्तगत गरीबी रेखा से नीचे रह रहीे 32,614 किशोरियों को पूरक पोषाहार, 73 किशोरियों को कौशल विकास प्रशिक्षण, 1,14,281 किशोरियों को पोषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान की गई है।
राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना (सबला) केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप मे (11 से 18 वर्ष आयु वर्ग की) किशोरियों में साक्षरता को बढावा देने, गृह आधारित एवं व्यावसायिक कौशल में सुधार लाने, उनमें स्वास्थ्य, पोषाहार, स्वच्छता, गृह प्रबन्धन एवं बच्चों की देख-रेख सम्बन्धी ज्ञान को बढ़ाने हेतु संचालित की जा रही है। वित्तीय वर्ष 2014-15 तक इस योजना के पोषाहार घटक का व्यय भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा 50ः50 अनुपात में वहन किया गया तथा गैर-पोषाहार घटक शत प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जा रहा था। वित्तीय वर्ष 2015-16 से योजना के दोनांे घटकों में 90ः10 के अनुपात में भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। सबला योजना प्रदेश के चार ज़िलो क्रमशः सोलन, कुल्लू, कांगड़ा तथा चम्बा में चलाई जा रही है। योजना के अन्र्तगत पोषाहार तथा गैर पोषाहार दो मुख्य घटक है। गैर पोषाहार घटक में ृ3.80 लाख प्रति बाल विकास परियोजना प्रति वर्ष व्यय करने का प्रावधान है। पोषाहार घटक में किशोरियों को वर्ष में 300 दिन पोषाहार उपलब्ध करवाया जाता है। पोषाहार पर ृ5 प्रति किश¨री प्रति दिन की दर से व्यय किया जाता है। गैर पूरक पोषाहार के अधीन वित्तीय वर्ष 2016-17 में कुल राशि ृ84.72 लाख थी तथा ृ44.80 लाख व्यय किए गए। पूरक पोषाहार के अधीन दिसम्बर, 2016 तक ृ758.16 लाख व्यय किए गए। चालू वित्त वर्ष में 31.12.2016 तक 1,45,927 लाभार्थीयों को पूरक पोषाहार, 1,27,172 को पोषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा, 166 को व्यावसायिक प्रशिक्षण, 46,155 को परिवार कल्याण, अर्श बच्चों की देखरेख सम्बन्धी ज्ञान, 10,204 को जीवन कौशल शिक्षा व 2,256 को जन सेवाओं का लाभ प्रदान किया गया हैं।

19.ग्रामीण विकास

ग्रामीण विकास विभाग का मुख्य उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन एवं क्षेत्र विकास करना है राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यक्रम। राज्य में निम्नलिखित राज्य एवं केन्द्र प्रायोजित विकासात्मक योजनाएँ एवं कार्यक्रम क्रियान्वित किये जा रहे हैं।
स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) को 01.04.2013 से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है। जिसे चरणबद्ध तरीके से राज्य के 12 ब्लॉकों/जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है। चिन्हित ब्लॉक कंडाघाट हैं, बसंतपुर, मंडी सदर, नूरपुर हरोली, घुमारवीं, तीसा, भोरंज, निचार, कुल्लू, लाहौल में केलोंग और पोंटा साहिब में पायलट ब्लॉक के रूप में पहला चरण। उपरोक्त के अलावा, एनआरएलएम के तहत स्व-रोजगार गतिविधियों के सृजन के लिए जैसे महिला एसएचजी का ऋण जुटाना, क्षमता निर्माण और संस्थान भवन कार्यान्वयन के लिए प्रस्तावित हैं। चालू वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक कार्ययोजना एनआरएलएम गतिविधियों के क्रियान्वयन हेतु भारत सरकार द्वारा `315.00 लाख स्वीकृत किये गये हैं। कुल 3,280 महिला एसएचजी प्रस्तावित हैं `40.00 करोड़ का ऋण प्रदान करके सहायता हेतु। एनआरएलएम के अंतर्गत 4 जिले हैं। शिमला, मंडी कांगड़ा और ऊना में कार्य किया गया है अतिरिक्त ब्याज सबवेंशन के कार्यान्वयन के लिए जहां महिला स्वयं सहायता समूह को वितरित ऋण पर ब्याज लागू होता है (डब्ल्यूएसएचजी) 4 प्रतिशत होगी और बाकी 8 जिलों में ऋण जुटाने पर ब्याज दर 7 प्रतिशत प्रति वर्ष तय की गई है। लेकिन उपरोक्त ब्याज दरें केवल उन्हीं WSHG पर लागू होंगी जो तय समय सीमा के भीतर ऋण चुकाने में तत्पर हैं। 31.12.2016 तक एनआरएलएम के अंतर्गत जिलेवार भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्य एवं उपलब्धि इस प्रकार है:-
आजीविका स्किल्स ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार (एमओआरडी) की कौशल और प्लेसमेंट पहल है। यह ग्रामीण गरीबों की आय में विविधता लाने और उनके युवाओं की व्यावसायिक आकांक्षाओं को पूरा करने की आवश्यकता से विकसित हुआ। कार्यक्रम का ध्यान गरीब ग्रामीण युवाओं के लिए औपचारिक क्षेत्र में कौशल और नियुक्ति पर है। आजीविका कौशल है स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) के विशेष परियोजना घटक में उत्पन्न। अलावा गरीबी को कम करने में मदद करते हुए, यह ग्रामीण गरीबों के बड़े हिस्से में जीवन की बेहतर गुणवत्ता की आशाओं और आकांक्षाओं पर आधारित है। यदि युवाओं की क्षमताओं का भी विकास किया जाए तो इसका परिणाम भारत के लिए "जनसांख्यिकीय लाभांश" हो सकता है।
सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार। भारत के पीआईए को खुद को भारत सरकार के साथ ऑनलाइन पंजीकृत कराना होगा जिसमें चयन स्वयं अन्तर्निहित है। 2016-17 से पहले हिमाचल प्रदेश राज्य वार्षिक योजना राज्य था और किसी भी परियोजना में ऐसा नहीं था भारत सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश के लिए वाईपी राज्य के रूप में मंजूरी दी गई है। वर्ष 2016-17 के दौरान भारत सरकार हिमाचल प्रदेश को AAP राज्य घोषित किया है और कार्ययोजना 2016-19 (3 वर्षों के लिए) एक लक्ष्य के साथ 13.07.2016 को भारत सरकार को प्रस्तुत की गई थी मांग और बाजार के आधार पर 3 वर्ष की अवधि में 15,000 युवाओं को विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षित किया जाना है, जिसका विवरण इस प्रकार है:
कृषि, स्वास्थ्य देखभाल ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, हथकरघा, घरेलू इलेक्ट्रीशियन, खुदरा परिधान और परिधान, आतिथ्य, जैसे व्यापार निर्माण, खाद्य प्रसंस्करण आईसीटी, यात्रा और पर्यटन इस योजना के अंतर्गत हैं। योजना की कुल लागत `133.60 करोड़ है और पीआईए करेगी कुल प्रशिक्षित ग्रामीण गरीब युवाओं में से कम से कम 75 प्रतिशत को सुनिश्चित वेतन रोजगार दिया है। इस योजना को अंततः मंजूरी दे दी गई है 18.07.2016 को भारत सरकार। एचपीएसआरएलएम ने एचपीकेवीएन को टीएसए के रूप में नियुक्त किया है और टीएसए ने प्राप्त 50 प्रस्तावों में स्क्रीनिंग कार्य पूरा कर लिया है। एचपीएसआरएलएम। अब जिन प्रस्तावों की स्क्रीनिंग हो चुकी है और चरणबद्ध तरीके से उन्हें पीएसी के समक्ष रखा जाना है। यह कार्यक्रम जल्द ही राज्य में लागू किया जाएगा।
बंजर भूमि/अपघटित भूमि, सूखा प्रवण और रेगिस्तानी क्षेत्र को विकसित करने के उद्देश्य से, विभाग एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यान्वित कर रहा है। कार्यक्रम (आईडब्ल्यूडीपी), ड्राफ्ट प्रोन एरिया प्रोग्राम (डीपीएपी) और डेजर्ट डेवलपमेंट प्रोग्राम (डीडीपी) और इंटीग्रेटेड वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम (आईडब्ल्यूएमपी) भारत सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार राज्य। कार्यक्रम के प्रारंभ से ही भारत सरकार, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा स्वीकृत किया गया है आईडब्ल्यूडीपी के तहत 4,52,311 हेक्टेयर भूमि के उपचार के लिए 254.12 करोड़ की कुल लागत वाली 67 परियोजनाएं (869 माइक्रो वाटरशेड), 412 माइक्रो वाटरशेड डीपीएपी और 552 माइक्रो वाटरशेड परियोजनाओं के तहत 2,05,833 हेक्टेयर भूमि के उपचार के लिए `159.20 की लागत के साथ कुल लागत `116.50 करोड़ है। डीडीपी के तहत 2,36,770 हेक्टेयर भूमि के उपचार के लिए करोड़ रुपये। IWDP के तहत व्यय `245.44 करोड़ है, DPAP के तहत `114.19 करोड़ है और DDP के तहत है नवंबर, 2016 तक `112.40 करोड़। एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) के तहत अब पीएमकेएसवाई (डब्ल्यूडीसी) भारत सरकार ने 163 परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। 2009-10 से 2014-15 तक कुल 8,39,972 हेक्टेयर वर्षा आधारित क्षेत्र के उपचार के लिए `1,259.96 करोड़ की कुल लागत राज्य के जिलों और संबंधित जिलों को `258.75 करोड़ (यानी 90 प्रतिशत भारत सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकार) की धनराशि जारी की गई है। जिसमें से दिसंबर, 2016 तक `219.95 करोड़ का उपयोग किया जा चुका है।
प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (पीएमएवाई-जी):ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने इंदिरा आवास योजना की योजना का पुनर्गठन किया है (IAY) 01.04.2016 से प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) (PMAY-G) में। पीएमएवाई-जी का लक्ष्य सभी बेघरों को बुनियादी सुविधाओं वाला पक्का घर उपलब्ध कराना है 2022 तक कच्चे और जीर्ण-शीर्ण मकानों में रहने वाले परिवार और परिवार। मिनियम इकाई का आकार मौजूदा 20 वर्ग से बढ़ाया गया है। माउंट से 25 वर्ग. माउंट एक सहित स्वच्छ खाना पकाने के लिए समर्पित क्षेत्र। पहाड़ी राज्यों और दुर्गम क्षेत्रों में यूनिट सहायता भी 75,000 से बढ़ाकर 1.30 लाख कर दी गई है। पहाड़ी राज्यों के लिए इकाई (घर) की लागत केंद्र और राज्य सरकार के बीच 90:10 के अनुपात में साझा की जाएगी। लाभार्थियों की पहचान SECC-2011 डेटा का उपयोग करके किया जाना है। चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान राज्य के लिए कुल वित्तीय आवंटन `4,927.26 लाख है जिसमें से केंद्रीय आवंटन `4,434.53 लाख का है और राज्य का आवंटन `492.73 लाख का है।
वर्तमान के दौरान राज्य के लिए 3,644 घरों का भौतिक लक्ष्य है वित्तीय वर्ष जो सभी जिलों को आवंटित किया गया है। 17.01.2017 तक कुल 295 लाभार्थियों को एमआईएस पर पंजीकृत किया गया है। राज्य ग्रामीण आवास योजनाएँ राजीव आवास योजना 19.5 राजीव आवास योजना (RAY) को PMAY(G) के अनुरूप कार्यान्वित किया जा रहा है। इकाई लागत के अंतर्गत वर्तमान वित्तीय वर्ष 2016-17 से इस योजना में पीएमएवाई (जी) के अनुरूप `1.30 लाख की बढ़ोतरी की गई है। राज्य सरकार रख रही है राज्य की जनता के व्यापक हित को देखते हुए इसके अंतर्गत लाभार्थियों की पहचान एवं चयन के लिए बीपीएल सर्वेक्षण 2003 को आधार बनाया गया है। योजना। इस योजना के तहत `1,100 लाख का प्रावधान है, जिससे चालू वित्त वर्ष के दौरान राज्य में 846 आवास बनाए जा रहे हैं। वर्ष 2016-17.
मुख्यमंत्री आवास योजना (MMAY): राज्य सरकार ने 2016 के बजट में इस योजना की घोषणा की है- 17. योजना का उद्देश्य है राज्य में सामान्य श्रेणी के बीपीएल के घरों के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करें। `2,500.00 लाख का बजट प्रावधान है चालू वित्तीय वर्ष के दौरान सामान्य श्रेणी के बीपीएल के 1,923 घरों का निर्माण किया जाएगा। यूनिट लागत को भी बढ़ाकर `1.30 लाख कर दिया गया है यह योजना PMAY(G) की तर्ज पर है।
राजीव आवास मरम्मत योजना (RARY): यह योजना सामान्य श्रेणी के बीपीएल के लिए भी है। सामान्य वर्ग के मकानों की मरम्मत का प्रावधान है राज्य में बी.पी.एल. योजना के तहत लाभार्थियों को प्रति यूनिट 25,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। `300.00 लाख का बजट प्रावधान है जिससे चालू वित्तीय वर्ष के दौरान सामान्य वर्ग के 1,200 घरों की मरम्मत की जाएगी। सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) 19.8 एसएजीवाई का मुख्य उद्देश्य ऐसी प्रक्रियाओं को शुरू करना है जिससे चिन्हित ग्रामों का समग्र विकास हो सके। पंचायतें. बेहतर बुनियादी सुविधाओं, उच्च उत्पादकता के माध्यम से आबादी के सभी वर्गों के जीवन स्तर और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना। मानव विकास में वृद्धि, बेहतर आजीविका के अवसरों ने असमानताओं को कम किया, अधिकारों और अधिकारों तक पहुंच व्यापक सामाजिक गतिशीलता और समृद्ध हुई सामाजिक पूंजी। हिमाचल प्रदेश में सभी सांसदों ने पहले चरण में ग्राम पंचायतों का चयन कर लिया है, जिसका विवरण नीचे दिया गया है.

रूबन मिशन: श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन (SPMRM) या (NRuM) भी एक केंद्र प्रायोजित है योजना जिसे संघ द्वारा अनुमोदित किया गया था कैबिनेट ने 16.09.2015 को अपनी बैठक में `5,142.08 करोड़ के परिव्यय के साथ। योजना के पहले चरण के तहत राज्य को दो आवंटित किये गये हैं ये समूह कंडाघाट और किन्नौर के सांगला में सबसे पीछे हैं। योजना के तहत आईसीएपी की तैयारी पहली आवश्यकता है और जो हुई है उपरोक्त दो समूहों के संबंध में तैयार किया गया है और एमओआरडी, भारत सरकार नई दिल्ली में आयोजित अधिकार प्राप्त समिति की बैठक द्वारा अनुमोदित किया गया है। राज्य ने भी किया है योजना के दूसरे चरण में मंडी जिले में औट का एक और क्लस्टर आवंटित किया गया है, जिसके लिए आईसीएपी तैयार करने की प्रक्रिया भी चल रही है। प्रगति। योजना का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों के अनुरूप चिन्हित समूहों को विकसित करना और इनमें शहरी सुविधाएं प्रदान करना है क्षेत्र.
मातृ शक्ति बीमा योजना: यह योजना 10 वर्ष की आयु वर्ग के भीतर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली सभी महिलाओं को कवर करती है। -75 वर्ष. नीति किसी भी प्रकार की दुर्घटना, सर्जिकल ऑपरेशन के कारण होने वाली मृत्यु या विकलांगता के मामले में परिवार के सदस्यों/बीमाकृत महिलाओं को राहत प्रदान करता है जैसे नसबंदी, बच्चे के जन्म/प्रसव के समय डूबने की घटना, बाढ़ में बह जाना, भूस्खलन, कीड़े के काटने पर भी योजना में लाभ मिलता है। पति की आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में विवाहित महिलाओं को लाभ। योजना के तहत मुआवजा राशि इस प्रकार है:
i) मृत्यु` 1.00 लाख
ii) स्थायी कुल विकलांगता `1.00 लाख।
iii) एक अंग और एक आंख या दोनों आंखों या दोनों अंगों की हानि `1.00 लाख।
iv) एक अंग/एक कान की हानि `0.50 लाख।
v) पति की मृत्यु के मामले में `1.00 लाख।
भारत सरकार ने 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 02.10.2014 को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) शुरू किया है। मुख्य उद्देश्य कार्यक्रम इस प्रकार हैं:
i) साफ-सफाई स्वच्छता को बढ़ावा देकर और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की सामान्य गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं खुले में शौच.
ii) 02.10.2019 तक स्वच्छ भारत के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कवरेज में तेजी लाएं।
iii) जागरूकता सृजन और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से समुदायों और पंचायती राज संस्थानों को स्थायी स्वच्छता प्रथाओं और सुविधाओं को अपनाने के लिए प्रेरित करना।
iv) पारिस्थितिक रूप से सुरक्षित और टिकाऊ के लिए लागत प्रभाव और उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करें
v) जहां आवश्यक हो, ग्रामीण क्षेत्रों में समग्र स्वच्छता के लिए वैज्ञानिक ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए समुदाय प्रबंधित स्वच्छता प्रणाली विकसित करें।
प्रति व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) लाभार्थी को 12,000 रुपये का प्रोत्साहन 02.10.2014 को छूटे हुए बीपीएल एवं एपीएल (पहचानित) श्रेणियों के लिए जबकि इसके अंतर्गत पिछले कार्यक्रम (एनबीए) में प्रोत्साहन प्रति लाभार्थी `5,100 था। एसबीएम (जी) के तहत ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन को एक परियोजना मोड में लागू किया जाएगा जिसके लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत को 150, 300, 500 तक और 500 से ऊपर के परिवारों के आधार पर `7.00, `12.00, `15.00 और `20.00 लाख तक की राशि मिलेगी। क्रमशः ग्राम पंचायत में। वर्ष 2016-17 के दौरान स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के अंतर्गत जिलेवार भौतिक प्रगति इस प्रकार है:-
भारत सरकार ने ग्रामीण समुदायों को खुले में शौच की पारंपरिक प्रथा को समाप्त करने और सुरक्षित स्वच्छता अपनाने के लिए प्रेरित करने के आधार पर स्वच्छता चुनौती से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति शुरू की है। एसबीएम (जी) ग्राम पंचायत और गांवों को पूर्ण खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) की उपलब्धि पर केंद्रित है। राज्य के सभी ग्राम पंचायतों को 28.10.2016 को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।
महर्षि वाल्मिकी संपूर्ण स्वच्छता पुरस्कार (एमवीएसएसपी) 19.13 हिमाचल प्रदेश में स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने के लिए एक प्रतियोगिता आधारित राज्य पुरस्कार योजना यानी महर्षि वाल्मिकी संपूर्ण स्वच्छता पुरस्कार लागू की जा रही है, जिसके तहत विजेता ओडीएफ, जीपी को हर साल राज्य स्तरीय पुरस्कार वितरण समारोह में पुरस्कृत किया जाता है। महर्षि वाल्मिकी संपूर्ण स्वच्छता पुरस्कार `147 प्रत्येक वर्ष विजेता ग्राम पंचायतों को पुरस्कार राशि के रूप में लाख रुपये दिये जाते हैं। इस योजना के तहत प्रोत्साहन पैटर्न इस प्रकार है: 1. ब्लॉक स्तर पर सबसे स्वच्छ ग्राम पंचायत `1.00 लाख 2. जिला। स्तर की सबसे स्वच्छ जीपी `3.00 लाख (यदि जिले में 300 से अधिक जीपी है तो 2 जीपी को पुरस्कार मिल सकता है)। 3. संभाग स्तरीय सबसे स्वच्छ ग्राम पंचायत 5.00 लाख 4. राज्य स्तरीय सबसे स्वच्छ ग्राम पंचायत-10.00 लाख विद्यालय स्वच्छता पुरस्कार योजना। 19.14 यह योजना वर्ष 2008-2009 के दौरान जिला और ब्लॉक स्तर पर सबसे स्वच्छ सरकारी प्राथमिक और मध्य विद्यालयों के लिए शुरू की गई थी। वर्ष 2011-12 के दौरान हाई/हायर सेकेंडरी स्कूलों को भी प्रतियोगिता मानदंड में शामिल किया गया है। योजना के तहत पुरस्कार हर वर्ष 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस समारोह के दौरान दिए जाते हैं। यह पुरस्कार योजना उन स्कूलों को मान्यता देती है जिन्होंने स्कूल की स्वच्छता और स्वच्छता शिक्षा में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल की है और इस योजना के तहत विजेता स्कूल को `88.20 लाख की राशि पुरस्कार राशि के रूप में दी जाती है। महिला-मंडल प्रोत्साहन योजना 19.15 इस योजना को पूरी तरह से स्वच्छता कार्यक्रम से जोड़ा गया है और अपने गांव में स्वच्छता के तहत अच्छा काम करने वाले महिला मंडलों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए वर्ष 2016-17 के दौरान `131.04 लाख की राशि आवंटित की गई है/ योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार वार्ड और ग्राम पंचायत क्षेत्र। प्रत्येक ब्लॉक प्रथम से छठे स्थान के आधार पर 6 महिला मंडलों का चयन करता है जिन्हें सम्मानित किया जाता है:
पहले छह चयनित महिला मंडलों के अलावा, सरकार का विचार है कि अन्य महिला मंडल जिन्होंने स्वच्छता अभियान के बारे में ग्रामीणों के बीच जागरूकता पैदा करने में योगदान दिया है, उन्हें भी टीएससी के तहत स्थायी गतिविधियों को बनाए रखने के लिए बढ़ावा देने के लिए कुछ प्रोत्साहन दिया जाएगा। प्रत्येक ब्लॉक निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर महिला मंडलों का चयन करेगा और प्रत्येक महिला मंडल को ₹ 8,000 की राशि दी जाएगी।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को भारत सरकार द्वारा सितंबर, 2005 को अधिसूचित किया गया था और इसे 16 सितंबर, 2005 से प्रभावी बनाया गया था। 2.02.2006. पहले चरण में, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एनआरईजीएस) जिला चंबा और सिरमौर में शुरू की गई थी। दूसरे चरण में एनआरईजीएस जिला कांगड़ा और मंडी में शुरू किया गया। 1.04.2007. अब तीसरे चरण में राज्य के शेष सभी 8 जिलों को इस योजना के तहत शामिल किया गया है। 1.04.2008. वर्ष 2016-17 के दौरान केन्द्रीय अंश राशि `30,672.49 लाख और राज्य अंश राशि `5,195.15 लाख राज्य रोजगार गारंटी निधि खाते में जमा की गई है। `35,859.26 लाख की राशि का उपयोग (17.01.2017 तक) किया गया है और 4,31,933 परिवारों को रोजगार प्रदान करके `160.31 लाख मानव दिवस उत्पन्न किए गए हैं।

20.आवास एवम् शहरी विकास

हिमाचल प्रदेश सरकार का आवास विभाग, आवास एवं शहरी विकास प्राधिकरण के माध्यम से समाज के विभिन्न आय वर्ग के लोगों की आवास सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विभिन्न श्रेणियों के मकानों/ फ्लैटों के निर्माण और प्लाटों को विकसित करने का कार्य करता है। .
वर्ष 2016-17 में ृ14,385.85 लाख का बजट में प्रावधान रखा गया था जिसके अंतर्गत दिसम्बर, 2016तक ृ7,421.89 लाख का व्यय हुआ। इस वर्ष के दौरान 48 फ्लैटों का निर्माण व 62 प्लाटो को विकसित किया गया।
हिमुडा ने डिपोजिट कार्य के अन्तर्गत 44 भवनों का निर्माण किया है। विभिन्न विभागों के डिपोजिट कार्य जैसे कि सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता, जेल, पुलिस, युवा खेल एवं सेवायें, पशु पालन, शिक्षा, मछली पालन, सूचना एवं प्रौद्याोगिकी विभाग, हिमाचल बस अड््डा प्रबन्धन एवं विकास प्राधिकरण, शहरी विकास निकाय, पंचायती राज और आयुर्वेदा विभाग के लिए भवन निर्माण कर रहा है। वर्ष 2017-18 के दौरान 118 फ्लैटों का निर्माण, 119 प्लाटों को विकसित करना तथा 50 भवनों को मा़र्च, 2018 तक विभिन्न विभागों के डिपोजिट कार्य के अन्तर्गत निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है।
ठियोग, फलावरडेल, सन्जौली, मन्दाला परवाणु और जुरजा ;नाहनद्ध भटोलीखुरद ;बद््दीद्ध में आवासीय कालोनियों का निर्माण कार्य प्रगति पर है और छवगरोटी, फ्लावरडेल और परवाणू का कार्य पूर्ण कर दिया गया है। वर्तमान में हिमुड़ा के पास 45 बीघा जमीन धर्मपुर, जिला सोलन, 243 बीघा जमीन जाठीया देवी, जिला शिमला और 72 बीघा जमीन सुन्दरनगर के समीप रजवारी जिला मण्डी में है।.
वित्तीय वर्ष 2016-17 में नई आवासीय स्कीम के अंतर्गत शील ;सोलनद्ध, मोगीनन्द-।।, त्रिलोकपुर ;नाहनद्ध और वाणिज्य परिसर समीप पेट्रोल पम्प विकासनगर, शिमला में निर्माण कार्य किया जा रहा है। जवाहर लाल नेहरु शहरी नवीनकरण मिशन के अन्तर्गत शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सुविधाओं की योजना के अन्तर्गत बी.एस.यू.पी. 176 फ्लैटों ;आशियाना-2द्ध ढली, शिमला में निर्माण किया जा रहा है और आई.एच.एस.डी.पी.के अन्तर्गत हमीरपुर में 72 फ्लैटों का, परवाणु में 192 फ्लैटों का निर्माण और नालागढ़ में 128 फ्लैटों का कार्य पूर्ण किया है। यु.आई.डी.एस.एस.एम.टी. के अन्तर्गत हिमुडा ने मण्डी शहर में सड़कों, रास्तों और नालों के चैनलाईजेशन का कार्य किया है।
हिमुडा ने निम्न नीतियों/ योजनाओं को मंजूरी दी या अपनाया है।
1) भूमि मालिकों एंव हिमुडा के बीच राज्य में हाऊसिंग कलोनियों के विकास में भागीदार बनने के लिए, नीति के तहत मै0 अशोका एलोए (प्राइवेट) लिमिटेड जिला सिरमौर के साथ इस योजना के अन्तर्गत एक समझोता किया है।
2) हिमुडा द्वारा स्थापित विभिन्न कलोनियों में इकाइयों को बेचनेे के लिए स्थायी लागत के बाद ’पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर मकान/ फ्लैट/प्लाटों के आबंटन के लिए योजना।
3) भूमि/ अतिरिक्त भूमि के आंबटन के लिए नीति।
4) आवास कलोनियों मेें आबंटित बूथ और दुकान स्थलों में तीसरी मंजिल के निर्माण के अतिरिक्त लाभांश के लिए नीति।
5) हिमुडा द्वारा एक योजना अपने आवंटियों को बकाया राशि का एक मुश्त अंतिम भुगतान पर दण्डात्मक ब्याज और लागत पर क्रमशः 5 प्रतिशत एवं 9 प्रतिशत की छूट देने के लिए योजना शुरू की है।
हिमुडा ने एक पायलेट परियोजना के रूप में नवीनतम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ई.पी.एस. प्रणाली के अन्तर्गत धर्मशाला में एक भवन का निर्माण किया है। भवन का निर्माण 4 महीने की अवधि के भीतर किया गया है।
मानवीय अवलोकन को कम करने व पारदशर््िाता लाने के लिये हिमुडा ने ई-गवरनंेस को लागू किया है और मुख्य कार्यालय स्तर पर आंकड़ांे का डिजिटलाइजेशन किया गया है। इसके साथ लेखा प्रणाली के सुधार के लिए उद्यम संसाधन योजना की स्थापना की है।
संविधान के 74वें संशोधन के फलस्वरूप शहरी स्थानीय निकायों के अधिकार शक्तियां एवं क्रियाकलाप बहुत अधिक बढ़ गए है। वर्तमान नगर निगम शिमला व धर्मशाला समेत कुल 54 शहरी स्थानीय निकाय है शहरी क्षेत्रों में लोगों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने हेतु सरकार प्रतिवर्ष इन शहरी स्थानीय निकायों को सहायता अनुदान राशि प्रदान की जा रही है। राज्य वित्तायोग की सिफारिशों के अनुरूप वर्ष 2016-17 में सभी शहरी स्थानीय निकायांे को ृ99.45 करोड़ की राशि प्रदान की गई है। इस राशि में इन निकायांे को विकास कार्याें तथा उनके आय-व्यय के अंतर को दूर करने के लिए सहायता अनुदान राशि भी शामिल है। .
शहरी क्षेत्रों में सड़कों का रख-रखावः 54 शहरी स्थानीय निकायों द्वारा लगभग 1,416 किलोमीटर सड़कें, रास्ते तथा गलियों का रखरखाव किया जा रहा है। शहरी स्थानीय निकायों द्वारा जितनी लम्बाई की सड़कों गलियों तथा रास्तों का रखरखाव किया जा रहा है उसके अनुपात में उन्हें ृ6.00 करोड़ इस वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदान किये गये हैं।
योजना का उददे्श्य शहरी क्षेत्रों में रह रहे गरीब परिवारों का सामाजिक आर्थिक एवं संस्थागत क्षमता विकास करते हुए प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता के माध्यम से रोजगार एवं स्वरोजगार अवसर प्रदान करते हुए उनकी आजिविका को मजबूत करना है जिससे कि वे समानतापूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें। इस योजना के मुख्य घटक निम्नलिखित हैंः-
1) कौशल प्रशिक्षण एवं प्लैसमेंट के माध्यम से रोजगार।
2) सामाजिक जागरूकता एवं संस्थागत विकास।
3) क्षमता वर्धन एवं प्रशिक्षण।
4) स्वरोजगार कार्यक्रम।
5) शहरी आवासहीनों के लिए आश्रय।
6) शहरी पथ विक्रेताओं को सहायता।
7) अभिनव एवं विशेष परियोजनाएं।
वित्त वर्ष 2016-17 में इस कार्यान्वयन के लिए ृ10.80 करोड़ केन्द्रीय अनुदान तथा ृ1.20 करोड़ राज्य अनुदान का प्रावधान किया गया है। इसमें से ृ2.50 करोड़ केन्द्रीय अनुदान तथा ृ0.28 करोड़ राज्य अनुदान अभी तक विभाग को प्रदान किया गया है। शेष राशि इस वित्तीय वर्ष के दौरान प्रदान की जायेगी। इस योजना के अन्तर्गत अभी तक 125 स्वयं सहायता समूह बनाए जा चुके हैं। 208 लाभार्थियों को विभिन्न व्यवसायों मेें प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। लघु उद्यम स्थापित करने के लिए 122 लाभार्थियों, एकसमूह तथा 25 स्वयं सहायता समूहों को कम व्याज पर ऋण प्रदान किया गया है। 2,516 रेहड़ी फड़ी वालों का सर्वे किया गया तथा उन्हें पहचान पत्र जारी किये गए/ जा रहे हैंै। परियोजना स्वीकृित समिति द्वारा ृ595.83 लाख की अनुमानित लागत से 10 आश्रय स्वीकृत किये गए।.
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2006-07 में छोटे व मध्यम शहरी विकास योजना को पुनः संरचित कर इसका नाम एकीकृत छोटे तथा मध्यम शहरों में संरचना विकास योजना ;यु.आई.डी.एस.एस.एम.टी.द्ध रखा गया है। इस योजना के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा 13 शहरों में धर्मशाला, हमीरपुर, मण्डी, सरकाघाट, रिवाल्सर, रामपुर, नगरोटा, कांगड़ा, कुल्लू, मनाली, परवाणु, नालागढ़ तथा बद्दी की जलापूर्ति एवम शहरी सरंचना का पुर्नद्वार की 18 परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया है जिसकी अनुमोदित योजना लागत ृ406.54 करोड़ है। इस वित्तीय वर्ष में ृ.81.90 करोड़ केन्द्रीय भाग तथा ृ9.10 करोड़ राज्य भाग की राशि जारी किया जा चुकी है।..
मल व्यवस्था योजना: वित्त वर्श 2016-17 में प्रदेश के शहरों में चल रही मल निकासी व्यवस्था योजनाओं को पूरा करने हेतु ृ39.05 करोड़ सामान्य योजना गैर योजना तथा विशेष घटक योजना में बजट प्रावधान है जिसमें से ृ27.55 करोड़ की राशि सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग को शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से प्रदान की गई है। यह योजना सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्यान्वित की जा रही हंै।
इस योजना के अंतर्गत शिमला, और कुल्लू शहरों का चयन किया गया है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में भारत सरकार ने शिमला और कुल्लू दो शहरों के लिए ृ101.33 करोड़ की राज्य वार्षिक कार्य योजना स्वीकृति की है। इस योजना में अभी तक ृ21.78 करोड़ केन्द्रीय अनुदान तथा ृ2.03 करोड़ राज्य अनुदान के रूप में प्राप्त किये जा चुके हैं।
25.06.2016 को शुरू किया गया है। केन्द्र सरकार ने इस मिशन के अन्तर्गत नगर निगम धर्मशाला की योजना को स्वीकृत किया है, जिसकी कुल लागत ृ2,109.69 करोड़ है। धर्मशाला स्मार्ट सिटी के लिए विशिष्ट प्रयोजन यान (ैच्ट) को कंपनी नियम, 2013 के अधीन पंजीकृत किया गया है। भारत सरकार द्वारा प्रदान की गई ृ186.00 करोड़ की पहली किस्त नगर निगम धर्मशाला को ृ20.67 करोड़ के राज्य अनुदान का (10 प्रतिशत) मिलाकर दे दी गई है। नगर निगम शिमला को भी इस मिशन के अन्तर्गत लाने के लिए तैयारियां चल रही है तथा विस्तृत परियोजना रिर्पोट भारत सरकार को स्वीकृत के लिए भेजी जा रही है।
यह भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा एक राष्ट्रीय अभियान है जिसके अन्तर्गत 4,041 शहरों की गलियों सड़कों और आधारभूत सरंचना को स्वच्छ किया जाना है। स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य शहरों और कस्बों को खुले में शौच करने से मुक्त करना है ताकि सबके लिए एक स्वस्थ और रहने योग्य वातावरण बनाया जा सके। इस योजना के मुख्य घटक निम्नलिखित हैः-
1) योजना के अन्तर्गत 2,125 शौचालय बनाने के लिए नगर निकायों को राशि उपलब्ध करवाई गई है।
2) धर्मशाला, सुन्दरनगर और पांवटा साहिब में आधुनिक भूमिगत कूड़ेदान लगाने का कार्य पायलट तौर पर शुरू किया जा चुका है।
3) सुन्दरनगर और धर्मशाला में बायोगैस प्लांट लगाने के लिए परियोजना रिर्पोट तैयार कर ली गई है।
4) मण्डी में अनुपयोगी भूमि पूरक बनाने के लिए परियोजना रिर्पोट तैयार की गई है।
5) घर-घर जाकर कूड़ा उठाने का कार्य अभी तक नगर निकायों के 488 वार्डो में से 165 वार्डो में लागू किया जा चुका है।
6) सड़को के साथ गन्दगी फैलाने से बचने के लिए शिमला नगर निगम द्वारा कारविन नामक योजना शुरू की गई है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में इस योजना को लागू करने के लिए ृ13.50 करोड केन्द्रीय अनुदान तथा ृ1.50 करोड़़ राज्य अनुदान के रूप में प्रावधान किया गया है जिसमें से विभाग को ृ6.10 करोड़ केन्द्रीय अनुदान तथा ृ0.68 करोड़ राज्य अनुदान के रूप में प्राप्त हुए हैं। शेष राशि इस वित्तीय वर्ष में प्रदान की जायेगी।
सबके लिए मकान भारत सरकार द्वारा यह नई योजना शहरी क्षेत्रों के लिए शुरू की गई है। जिसको 17.06.2015 से 31.03.22 तक लागू किया गया जाना है। इस योजना का उद्देश्य शहरों को स्लममुक्त करके उन्हें बसाना, निम्न वर्ग के लोगों को वहन योग्य सब्सिडी ऋण पर घर दिलवाना तथा सार्वजनिक, निजी साझेदारी और लाभार्थी को घर बनाने के लिए सब्सिडी प्रदान करना है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में इस योजना को लागू करने के लिए ृ9.00 करोड़ केन्द्रीय अनुदान तथा ृ1.00 करोड़ राज्य अनुदान का प्रावधान किया गया है। जिसमें से विभाग को ृ7.73 करोड़ केन्द्रीय अनुदान तथा ृ0.79 करोड़ राज्य अनुदान के रूप में प्राप्त हुए हैं। शेष राशि इस वित्तीय वर्ष में प्रदान की जायेगी।.
इस योजना के अन्तर्गत नई सृजित नगर पंचायतों एवं नगर निगम व नगर परिषदों में नए सम्मिलित क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने हेतु वित्तीय वर्ष 2016-17 में ृ1.50 करोड़ का बजट प्रावधान है जिसमें से ृ1.20 करोड़ नगर निगम धर्मशाला, नगर परिषद, रामपुर व नैरचैक तथा नगर पंचायत टाहलीवाल, ज्वाली एवं बैजनाथ-पपरोला को जारी किए जा चुके हंै।
14वें वित्तायोग के अन्तर्गत शहरी स्थानीय निकायों को दो प्रकार का अनुदान स्वीकृत किया है। सामान्य बुनियादी अनुदान जो कि बिना शर्त के प्रदान की है और दूसरा सामान्य निष्पादन अनुदान है जो कि वित्तायोग द्वारा सुझाई गई कुछ शर्तो को पूर्ण करने के उपरान्त वर्ष 2016-17 से जारी किया जाएगा। इस वित्तीय वर्ष में ृ26.96 करोड़ की राशि सामान्य बुनियादी अनुदान के रूप में शहरी स्थानीय निकायों को जारीे की जा चुकी है जबकि निष्पादन अनुदान को भारत सरकार द्वारा अभी जारी किया जाना है।
पार्किग का निर्माण: शहरी स्थानीय निकायों में पार्किग की समस्या के समाधान हेतु वित्तीय वर्ष 2016-17 में ृ10.00 करोड़ के बजट का प्रावधान है जिसे 11 शहरी स्थानीय निकायों को पार्किंग के निर्माण हेतु जारी किया जा चुका है। इस योजना के अन्तर्गत 50 प्रतिशत सरकारी अनुदान तथा 50 प्रतिशत भाग शहरी स्थानीय निकायों द्वारा खर्च किया जाना है। .
पार्कों का निर्माण: शहरी स्थानीय निकायों में चरणवद्ध तरीके से पार्को के निर्माण के लिए वित्तीय वर्ष 2016-17 में ृ10.00 करोड़ के बजट का प्रावधान है जिसे 20 शहरी स्थानीय निकायों में पार्कों के निर्माण के लिए जारी किया जा चुका है।.
सन्तुलित विकास और विनियमन द्वारा भूमि संसाधनों में कमी के दृष्टिगत जनसांख्यिक और सामाजिक आर्थिक तथ्यों का विवेकपूर्ण उपयोग करके कार्यात्मक, आर्थिक, पर्यावरणीय सतत् और सौन्दर्यात्मक जीवन सुनिश्चित करने, पर्यावरण के संरक्षण, विरासत और मूल्यवान भूमि संसाधनों के सतत् विकास के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी द्वारा हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम, 1977 को 33 योजना क्षेत्रों (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.42 प्रतिशत) और 34 विशेष क्षेत्रों (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.27 प्रतिशत) है में लागू किया गया है। चैपाल योजना क्षेत्र के लिए भू-उपयोग मानचित्र व रजिस्टर तैयार किये गये। बड़ोग विशेष क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा विकास योजना को मंजूरी दे दी गई है और इसे अधिसूचित कर लिया गया है। राज्य सरकार द्वारा समस्त 12 जिलों का क्षेत्रीयकरण कर लिया गया है ताकि पूरे प्रदेश का समान रूप से विकास हो सके।
i) हिनर और औट योजना क्षेत्र गठित करना और सांगला-कामरू विशेष क्षेत्र गठित करना।
ii) घुमारूवी, सुन्दरनगर और जोगिन्द्रनगर योजना क्षेत्रों हेतु भू-उपयोग मानचित्रों को तैयार करना।
iii) घुमारवीं, नादौन, सुन्दरनगर, नग्गर, मनीकर्ण, रिकांग-पिओ अम्ब-गगरेट, बैजनाथ, पपरोला, हाटकोटी, शिमला, धर्मशाला, वीड़-बिलिंग और कुल्लू हेतु विकास योजना तैयार करना ।.
परमाणु, ठियोग व रामपुर योजना क्षेत्रों के लिए विकास योजनाएं तैयार कर ली है और स्वीकृति हेतु सरकार को भेज दिया गया है।.
जी.आई.एस. आधारित अमृत येाजना के अन्तर्गत शिमला एवं कुल्लू शहरों के लिए विकास योजना को राज्य स्तरीय हाई पाॅवर समिति और राज्य स्तरीय तकनीकी समिति द्वारा मंजूरी दे दी गई है और जिसे भारत सरकार को भेज दिया गया है। इन योजना क्षेत्रों के विकास के लिए व्यापक रणनीति को वर्ष 2035 तक सुनिश्चित किया जाएगा। विभिन्न योजना क्षेत्रों के उन ग्रामीण क्षेत्रों जिनमें विकास की क्षमता कम है उनको हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम, 1977 की सीमा से बाहर किया गया है।
चालू वित्त वर्ष 2016-17 के भौतिक लक्ष्यों की उपलब्धियों हेतु ृ1.38 करोड़ की राशि इस विभाग को आबंटित की गई, जिसमें से ृ78.68 लाख रूपये की राशि 31.12.2016 तक व्यय हो चुकी है।.
आम जनता सेवा हेतु वितरण प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से राज्य के सभी योजना/ विशेष क्षेत्रों एवं नगर निकायों में जबाबदेही, पारदर्शिता एवं दक्षता सुनिश्चित करने के लिए माननीय मुख्यमन्त्री द्वारा दिनांक 13.01.2016 को टी.सी.पी. वैब पोर्टल का प्रक्षेपण किया गया। यह भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही को दूर करने में मददगार सिद्ध होगा।.

21.पंचायती राज

वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में 12 जिला परिषदें, 78 पंचायत समितियां तथा 3,226 ग्राम पंचायतें स्थापित है। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के प्रावधान के अन्र्तगत पंचायती राज संस्थाओं का वर्तमान में पांचवां कार्यकाल है। हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम में समय पर किए गए प्रावधानों के अनुरूप या उनमें कार्यकारी निर्देशों द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार विभिन्न शक्तियां और कार्य सौंपे गये हैं। ग्राम सभाओं को विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत लाभार्थियों के चयन की शक्तियां प्रदान की गई हैं। ग्राम सभा को ग्राम पंचायत की योजना तथा परियोजना का अनुमोदन करने तथा ग्राम पंचायत द्वारा विभिन्न कार्याें में व्यय की गई धनराशि से सम्बन्धित उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत किया गया है। पंचायती राज संस्थाओं को सरकार ने और अधिक अधिकार व कार्य सौंपे हैं जिनमें ग्राम पंचायतों को अनुबंध के आधार पर सिलाई अध्यापिका, पंचायत चैकीदार तथा प्राथमिक पाठशालाओं में अंशकालिक जलवाहकों को नियुक्त करने की शक्तियां प्रदान की गई है। लेखापाल की नियुक्ति का अधिकार पंचायत समिति को तथा सहायक/ अभियंता, निजी सहायक, पंचायत सहायक तथा कनिष्ठ अभियन्ता का अधिकार जिला परिषद को दिया गया है।
ग्राम पंचायतों को प्राथमिक पाठशाला भवनों का स्वामित्व तथा रखरखाव सौंपा गया है। ग्राम पंचायतों को भूमि मालिकों से भू-राजस्व एकत्रित करने की शक्ति प्रदान की गई है तथा एकत्रित राशि के उपयोग करने के बारे ग्राम पंचायत स्वयं निर्णय लेगी। पंचायतों को विभिन्न प्रकार के कर, फीस तथा शुल्क अधिरोपित करने तथा आय अर्जित करने वाली परिसम्पतियों के निर्माण हेतु ऋण लेने के लिए प्राधिकृत किया गया है। किसी भी तरह के खनिज के खनन के लिए जमीन पट्टे पर देने से पूर्व संबंधित पंचायत से प्रस्ताव पारित होना अनिवार्य है। पंचायतों को योजना बनाने के लिए भी अधिकृत किया गया है। मोबाईल टावर लगाने एवं शुल्क अधिरोपित करने के लिए ग्राम पंचायतों को प्राधिकृत किया गया है। ग्राम पंचायतों को दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अधीन भरण पोषण के मामले सुन/ निर्णय ले सकती है तथा ृ500.00 प्रतिमाह तक भरण पोषण भत्ता प्रदान करने हेतु आदेश दे सकती है। ग्राम पंचायत क्षेत्र में ृ1.00 प्रति बोतल की दर से शराब की बिक्री पर उपकर ग्राम पंचायतों को हस्तातंरित किया गया है और इससे प्राप्त निधि को वह विकासात्मक कार्याें के कार्यान्वयन पर व्यय कर सकेगी।
यह अनिवार्य किया गया है कि कृषि, पशु-पालन, प्राथमिक शिक्षा, वन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, बागवानी, सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य, राजस्व और कल्याण विभाग के गांव स्तर पर कार्यरत कर्मी उस ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेगें जिसकी अधिकारिता में वे तैनात हैं और यदि ऐसे गांव स्तर के कर्मचारी बैठकों में उपस्थित नहीं होते हैं तो ग्राम सभा, ग्राम पंचायत के माध्यम से उनके नियंत्रक अधिकारी को मामले की रिर्पोट करेगी, जो रिर्पोट प्राप्त होने की तारीख से एक मास के भीतर ऐसे कर्मचारियों के विरूद्व अनुशासनात्मक कार्यवाही करेगा और ऐसी रिर्पोट पर की गई कार्यवाही के बारे में ग्राम पंचायत के माध्यम से ग्राम सभा को सूचित करेगा।.
पंचायती राज संस्थाओं को हस्तातंरित प्रमुख कार्याें का विवरण निम्नानुसार हैः
i)राज्य सरकार ने पंचायती राज पदाधिकारियों को दिए जाने वाले मासिक मानदेय संशोधित दरों के अनुसार अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष जिला परिषद को ृ8,000 तथा ृ6,000, अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पंचायत समिति को ृ5000 तथा ृ 3,500 तथा प्रधान व उप-प्रधान ग्राम पंचायत को ृ3,000 एवं ृ 2,200 मानदेय प्रदान किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सदस्य जिला परिषद और सदस्य पंचायत समिति के मानदेय की संशोधित दरें क्रमशः ृ3,500 तथा ृ3,000 कर दी गई हैं और ग्राम पचंायत के सदस्यों को मास में अधिकतम दो बैठकों में भाग लेने हेतु बैठक फीस की दर को ृ225 प्रति बैठक कर दिया गया है।
ii) सरकार द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित पदाधिकारियों को, पंचायत से सम्बन्धित कार्य के लिए, दैनिक एवं यात्रा भत्ते की अदायगी हेतु अनुदान प्रदान करने का निर्णय लिया है।
iii) राज्य सरकार ने सरकारी विश्राम गृहो में जिला परिषद तथा पंचायत समिति के पदाधिकारियों को कार्यालय सम्बन्धित यात्रा के दौरान ठहरने की सुविधा प्रदान की है।
iv) वितीय वर्ष 2015-16 से 14वें वित्तायोग की सिफारिशें लागू हो चुकी है। ृ306.05 करोड़ की कुल राशि स्वीकृति हुई है। जिसमें ृ270.56 करोड़ मूल अनुदान और ृ35.49 करोड़ निष्पादन अनुुदान के रूप में है। मूल अनुदान से सम्बन्धित राशि प्राप्त हो चुकी है तथा निष्पादन राशि प्राप्त होना शेष है।
v)पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से अनुबन्ध/ नियमित आधार पर नियुक्त कर्मचारियों के मासिक पारिश्रमिक इस प्रकार से हैः-पंचायत सहायक को क्रमशः (अनुबंध) ृ7,000, पंचायत सचिव (अनुबंध) ृ7,810, कनिष्ठ लेखापाल (अनुबंध) ृ7,810, नियमित ृ5,910-20,200़ 1,900, कनिष्ठ अभियन्ता(अनुबंध) ृ14,100, नियमित, 10,300-34,800 ़ 3800 कनिष्ठ आशुलिपिक(अनुबंध) ृ8,710 नियमित, 5,910-20,200़ 2,800 सहायक अभियन्ता(अनुबंध) ृ21,000, नियमित 15,660- 39,100 ़5,400 सिलाई अध्यापिका (अनुबंध) ृ2,300, विकास खण्ड अभियंता(अनुबंध) ृ18,000, पंचायत चैकीदार(अनुबंध) को ृ2,200 कर दिए गए हैं।
vi) भारत सरकार के मिशन मोड प्रोजेक्ट के अन्तर्गत प्रस्तावित एप्लीकेशन्स 12 में से 7 साॅफ्टवेयर एप्लीकेशन्स को पंचायती राज संस्थाओं में लागू कर दिया गया है। पंचायत/विभागीय कर्मचारियों को इन एप्लीकेशनांे के बारे में प्रशिक्षण, पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान, मशोबरा में प्रदान किया गया और उन्होंने इन एप्लीकेशनों पर कार्य करना शुरू कर दिया है।.

22.सूचना एवम् विज्ञान प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय ई-शासन योजना के तहत, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा ;डी.आई.टी.एच.पी.द्ध हिमस्वान नामक सुरक्षित नेटवर्क बनाया गया। हिमस्वान ब्लाक स्तर तक सभी राज्य सरकार के विभागों के लिए सुरक्षित नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करता है। हिमस्वान कुशलतापूर्वक विभिन्न इलैक्ट्रोनिक सेवाऐं जी0टू0जी0;सरकार से सरकारद्ध जी0टू0सी0 ;सरकार से नागरिकद्ध, जी0टू0वी0 ;सरकार से व्यापारद्ध सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इलैक्ट्रोनिक सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने 6 वर्ष की प्रारम्भिक अवधि के लिए इस परियोजना को वित्तीय सहायता प्रदान की थी। हिमस्वान 05.02.2008 को भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। यह अवधि वर्ष 2014 तक समाप्त हो गई है। अब राज्य सरकार इस परियोजना के संचालन तथा रखरखाव का खर्च वहन कर रही है। हिमस्वान परियोजना वर्तमान में एकल स्तरीय वास्तुकला की तकनीकों के साथ एम.पी.एल.एस. तथा वी.पी.एन.वी.वी. के द्वारा कार्यालयों में वीडियो काॅन्फ्रैसिंग तथा इन्टरनैट आधारित आवेदनों का कार्यालयों में प्रयोग होने के कारण व्राॅडबैंड की बढ़ती मांग तथा राज्य की कला प्रौद्योगिकी का उपयोग करके एस.एल.ए. नेटवर्क डाउन टाइम, आवाज, डाटा और वीडियो सेवा के कारण हिमस्वान को तीन स्तरीय वास्तुकला के साथ पुर्नोत्थान किया जा रहा है। वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां अर्जित की हैः- हिमस्वान की वर्तमान स्थिति
1) राज्य भर मंे 1,860 सरकारी कार्यालय हिमस्वान नेटवर्क के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
2) अब मै0 ओरेंज कम्पनी को तीन वर्ष की अवधि के लिए एस.एच.क्यू.पी.ओ.पी. को 01.09.2014 से हिमस्वान के संचालक के रुप में नियुक्त किया है।
3) मै0 के.पी.एम.जी. कम्पनी को हिमस्वान की तीसरी पार्टी के लेखा परीक्षक ;टी.पी.ए.द्ध के रुप में हिमस्वान के संचालन के कार्य की निगरानी के लिए तीन वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया गया है। टी.पी.ए. 18.07.2014 से सेवाएं दे रही है।.
राष्ट्रीय ई-शासन योजना ;एन.ईजी.पी.द्ध के तहत, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग नागरिकों के लाभ के लिए विभिन्न सरकारी विभागों में सूचना प्रौद्योगिकी की सेवाओं का प्रयोग करने के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य डाटा सेंटर 30.05.2016 से कार्य करना आरम्भ कर दिया है। विभिन्न सरकारी विभागों के आवेदनों क¨ ह®स्ट करने तथा कुशल निष्पादन हेतु जी0टू0सी0 ;सरकार से नागरिकद्ध, जी0टू0जी0 ;सरकार से सरकारद्ध जी0टू0वी0 ;सरकार से व्यापारद्ध सेवाएं तथा राज्य सरकार के कार्यालयों के लिए आम बुुनियादी ढांचा तैयार करना ;कम्पयूिट्रक संयन्त्र, साझा सर्वर, भण्डारण, नेटवर्क संयंत्र, बिजली, वातानुकूलन, नेटवर्क कनेक्टिविटी, यू.पी.एस. व रैक इत्यादिद्ध़ जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे की स्थापना तथा एकीकरण ;सर्वर, दूर संचार उपकरणों एकीकृत पोर्टल/विभागीय सूचना प्रणाली उद्यम और नेटवर्क प्रबंधन प्रणाली, सुरक्षा, फायरवाॅल/ आईडीएस नेटवर्किंग घटक इत्यादिद्ध़ साॅफ्टवेयर डाटावेस तैयार करना शामिल है। इलैक्ट्रोनिक तथा सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार नें पांच साल की अवधि के लिए स्थापना, संचालन और राज्य डाटा सेंटर के रख-रखाव की लागत को 80ः20 में वहन कर रहीे हैं। इस योजना के अन्तर्गत् वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) एच0पी0एस0डी0सी0 के भवन का निर्माण हिमुडा द्वारा मैहली शिमला में किया गया है।
2) मै0 औरेंज कम्पनी 5 वर्ष की अवधि के लिए 26.05.2014 से एच0पी0एस0डी0सी0 की स्थापना, शुरूआत तथा रख-रखाव करेगी।
3) 48 ऐपलीकेशन एच0पी0एस0डी0सी0 क¨े स्थानांतरित तथा 124 ऐपलीकेशन सुरक्षा लेखा परीक्षा के तहत चल रहीे हैं।
4) एस0डी0सी0 एपलीकेशन का कलाउड 01.09.2016 से चल रहा है।
5) मै0 ई. एण्ड वाई. क®, एच0पी0 एस0डी0सी0 में सेवा स्तर की निगरानी, पांच वर्ष की अवधि के लिए तीसरी पार्टी लेखा परीक्षक नियुक्त किया गया है जिसका एच0 पी0एस0 डी0 सी0 आपरेटर द्वारा पालन किया जा रहा है।.
लोकमित्र केन्द्रों की स्थापना :इस योजना का उद्द्ेश्य राज्य के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपकरणों का उपयोग करके एक समन्वित तरीके से राज्य में ग्राम पंचायत स्तर पर लोक मित्र केन्द्रों की स्थापना करना तथा ग्रामीण नागरिकों को सरकारी, निजी तथा सामाजिक क्षेत्र की सेवाएं सीधे उपलब्ध करवाना है। लोक मित्र केन्द्र ग्राम स्तर पर राज्य के नागरिकों को जी0ट0सी0 सेवाओं को उपयोगकर्ताओं तक सीधे पंहुचा रहे है। राज्य सरकार भी ई-जिला परियोजना लागू कर रही है। इन सेवाओं की डिलिवरी भी लोक मित्र केन्द्रों के माध्यम से की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत् गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः- वर्तमान में 3,715 ओ.एम.टी. को हिमाचल प्रदेश में सी.एस.सी. के लिए आई.डी. जारी किए गए हैं। इस समय 2,066 लोक मित्र केन्द्र सक्रिय रूप से 57 जी.टू.सी. सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। जिसमें शामिलः-
1) हि0 प्र0 राज्य विद्युत व®र्ड में बिजली के बिल का संग्रह।
2) जल विभाग पानी का बिल।
3) नकल जमाबन्दी के प्रति जारी करना भू-अभिलेखद्ध ।
4) हि0 प्र0 पथ परिबहन निगम बस टिकट बुकिंग आदि।.
भारत सरकार की क्षमता निर्माण परियोजना के अंतर्गत विभिन्न घटकों में राज्य सरकार के कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना, राज्य सरकार के लिए तकनीकी व व्यवसायिक मानव संसाधन उपलब्ध करवाना तथा विभिन्न ई-गवर्नेस परियोजनाअ® के कार्यान्वयन में राज्य सरकार क® सहायता प्रदान करना है। इस योजना के अन्तर्गत् गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) आज तक 2,323 कर्मचारियों को क्षमता विकास परियोजना के तहत प्रशिक्षित किया गया है ।
2 एसईएमटी. परियोजना के अंतर्गत 3 तकनीकी संसाधनों को एन.ई.जी.डी. के माध्यम से लागू कर दिया गया है।
3 ई-आॅफिस का प्रशिक्षण राज्य के विभिन्न विभागों के 200 से ज्यादा उपयोगकर्ताओं को दिया गया है।
4 ई-गवर्नमेंट परियोजना प्रबन्धन का प्रशिक्षण जनवरी, 2017 में विभागों में कार्यरत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति/टी.एस.पी. के कर्मचारियों के लिए किया गया।.
राजस्व न्यायालय मामले की निगरानी प्रणाली प्रभाग, जिला, मण्डलायुक्त और तहसील स्तर पर राजस्व न्यायालयों के उपयोग के लिए सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा विकसित किया गया है। इस प्रणाली द्वारा राजस्व अदालतों की दैनिक कार्यवाही अन्तरिम आदेशों/ निर्णयों को प्राप्त कर सकते हैं। राजस्व मामलों का ब्यौरा आम जनता के लिए आॅन लाइन उपलब्ध है नागरिकों को अपने मामलों की स्थिति सूची देखना अन्तरिम आदेशों/ निर्णयों को आॅनलाइन डाउनलोड़ कर सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत् वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) आर0सी0एम0एस0 परियोजना के अंतर्गत भारत में ई-गर्वेनस क्षेन्न में पहल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 2014 सी0एस0आई0 निहिलैट ई-गर्वेनस पुरस्कार मिला है।
2) 250 राजस्व न्यायालयों में आर0सी0एम0एस0 साॅफ्टवेयर का उपयोग हो रहा हैं।
3) 76,819 अदालती मामले आर.सी.एम.एस. में दर्ज किए गए है। जिनमें से 29,514 मामलों का फैसला हो चुका है।
4) नागरिक अब अपने मामलों की स्थिति, अन्तरिम आदेश तथा निर्णयों को आॅनलाईन डाउनलोड़ कर सकते हैं। .
किसी भी सरकारी विभाग के लिए न्यायिक मुकदमों की निगरानी एक बड़ी चुनौती है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इसके लिए एक सामान्य साफ्टवेयर तैयार किया गया है इस साॅफ्टवेयर के प्रयोग से सेक्रेटरी/ विभागाध्यक्ष न्यायिक मुकदमों की निगरानी सरल तरीके से कर सकते है और लम्बित मामलों का निर्धारित समय में उत्तर तैयार करके, वर्तमान स्थिति और व्यक्तिगत उपस्थिति के मामलों का निरीक्षण कर सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) महाधिवक्ता कार्यालय सभी मामल®ं की स्थिति क® आॅनलाईन अवगत करवा रहा है। महाधिवक्ता कार्यालय के भीतर फाईल से सम्बन्धित गतिविधियां साॅफ्टवेयर के माध्यम से उपलब्ध हैं।
2) सभी सरकारी विभाग अपने मामलों की दैनिक स्थिति को देखने के लिए स्डै प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
3) सभी पत्राचार सम्बन्धित विभागों को इस साफ्टवेयर के माध्यम से जारी किए जा रहे है। निम्नलिखित विशेषताओं को एल.एम.एस. साॅफ्टवेयर में शामिल किया गया है।
i) ई-मेल और एस.एम.एस. के माध्यम से सूचना सम्वन्धित विभाग®ें के अतिरिक्त निदेशकों, विभागों के प्रमुखों, नोडल अधिकारियों को भेजी जाती है।
ii) सम्वन्धित विभाग के मामले का विवरण दर्ज होने पर स्वचालित पत्र तैयार हो जाता है।
iii) मामलों का स्थानांतरण तथा हटाना का बिकल्प भी साॅफ्टवेयर में शामिल है।.
आधार कार्यक्र्रम हिमाचल प्रदेश में दिसम्बर, 2010 में शुरु किया गया था और तब से राज्य सरकार ने आधार बनाने में अग्रणी स्थान बनाए रखा है। 72.46 लाख ;100.69 प्रतिशतद्ध से अधिक निवासियों के यू0आई0डी0 अनुमानित जनसंख्या, 2015 के अनुसार बनाए जा चुके है। शेष निवासियों का नामांकन मोबाईल बैन अभियान द्वारा स्थाई पंजीकृत स्थान®ं पर किया जा रहा है।
आधार का प्रयोग:
1) एस0आर0डी0एच0 ;स्टेट रेजिडैंट डाटा हबद्ध का बुनियादी ढांचा कार्यरत है जो आधार सिडिंग में विभिन्न विभागों को सहायता प्रदान करता है।
2) आधार के डाटावेस का प्रयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 78 प्रतिशत, मनरेगा में 96 प्रतिशत, शिक्षा में 99 प्रतिशत, एन0एस0ए0पी0 में 76 प्रतिशत, सिडिंग कर दी गई है।
3) ₹ 504.00 करोड़ डी0वी0टी0 ;डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफरद्ध द्वारा वितरित किए गए है।
4) हिमाचल मनरेगा में डी0वी0टी0 शुरु करने वाला पहला राज्य है।
5) आधार पर आधारित बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली नगर एवं शहरी विभाग, में सक्रिय है तथा मत्स्य विभाग, 40 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, डब्ल्यू0सी0डी0 विभाग के 18 कार्यालय¨ें में कार्यान्वयन किया जा रहा है।.
ई-कार्यालय एक उत्पाद है जिसका उद्द्ेश्य अधिक कुशल, प्रभावी और पारदर्शी तरीके से सरकारी कार्यालयों में फाईलों के स्थानांतरण की प्रक्रिया क¨ सरकार के मध्य व सरकारों के साथ करना है। निम्नलिखित विभागों में ई-कार्यालय कार्यान्वयन प्रक्रिया में हैः-
1) ई-आॅफिस शुरू में छः विभागों में जैसे कि डी.आई.टी., एच.पी.पी.सी.एल., आई.पी.एच., आर.डी. तथा पी.आर.आई, एस.एस.डब्ल्यू.वी तथा डी.सी. आॅफिस में एच.पी.एस.डी.सी द्वारा तैनात किया गया है। इन विभागों के उपय¨गकर्ताअ¨/ नोडल अधिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
2) गो-लाईव योजना जनवरी, 2017 से लागू है।.
यह सुविधा अदालत में कैदियों को ले जाने की आवश्यकता को समाप्त करेगी व तुरन्त न्याय देने में सहायक सिद्ध होगी। इस योजना के अन्तर्गत वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) मै0 भारती एयरटेल राज्य में वीडियो कान्फ्रेसिंग के उपकरणों की आपूर्ति, तथा स्थापित करने व परियोजना को चालू होने की तिथि से 5 वर्ष की अवधि के रख-रखाव के लिए कार्यान्वयन एजेंसी है।
2) मै0 भारती एयरटेल ने 63 विडियो कान्फ्रेसिंग की आपूर्ति तथा स्थापित करने का आदेश दिये गये सभी 63 वीडियो कान्फ्रेसिंग सुविधाओं को सफलतापूर्वक वितरित/स्थापित कर दिया गया है।
3) 7 न्यायालयों, 13 जेलांे में वीडियो कान्फ्रैसिंग की सुविधा प्रदान की गई है।
4) वीडियो कान्फ्रेसिंग की सुविधा डी.आई.टी., एच.पी.पी.सी.एल., पंचायती राज संस्थान, डी.जी. जेल, एच.पी.एस.एफ.एल. तथा स्वास्थ्य विभाग में प्रदान की जा रही है।.
ई-जिला परियोजना एक मिशन मोड़ परियोजना है जिसका उद्द्ेश्य एकीकृत नागरिक केन्द्रीय सेवाएं प्रदान करना, जिला प्रशासन द्वारा नागरिक सेवाओं के एकीकरण और सहज वितरण कार्य प्रवाह के स्वचालन, कम्पयूटरीकरण, डाटा डिजिटलीकरण की विभिन्न विभागों द्वारा परिकल्पना की गई है। भविष्य में इसका उद्द्ेश्य आवेदनों का एकीकरण करना, सार्वजनिक मामलों/ अपीलों /शिकायतों का तेजी से प्रसंस्करण सूचनाओं का जनता की आवश्यकता के अनुसार प्रसार व अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं को सामान्य सेवा केन्द्रों के माध्यम से नया स्वरुप देना है तथा इस प्रोजेक्ट के अन्तर्गत निम्नलिखित गतिविधियां पूरी कर ली गई हैं।
1) 44 ई-सेवांए 12 जिलों में ई-डिस्ट्रिक के तहत शुरू की है।
2) ई-जिला प्रबन्धक तथा डी0ई0जी0एस0 सभी 12 जिलों में गठित किए गए हैं।
3) विप्रो लिमिटिड, एस0पी0एम0यू0 ई-जिला मिशन मोड की टीम के रूप में कार्य कर रहा है।
4) आई.एल. तथा एफ.एस. टैक्नोलोजी लिमिटिड, डिस्ट्रिक मिशन मोड परियोजना के अन्तर्गत राज्य न्यायी शेल आउट के ;सिस्टम इंटीग्रेटरद्ध रुप में कार्य कर रहा है।
5) 11 विभागों के उपयोगकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण विभिन्न चरणों में आयोजित किए गये।
6) पहला चरण 2 जुलाई, 2015 से 9 जिलों की 10 सेवाओं के लिए था।
7) चैथा चरण 4 जून, 2016 से 12 जिलों की 44 सेवाओं के लिए था।
8) हार्डवेयर 12 जिलों के सभी विभागों में वितरित किए गए हैं।
9) ई-जिला योजना का एकीकरण यू.आई.डी.ए.आई. ;आधारद्ध एस.एम.एस.गेटवे तथा पे-मेन्ट गेटवे तैयार कर लिया गया है।
10) पुराने रिकार्ड का डाटा डिजिटलीकरण इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले विभाग¨ं ;ग्रामीण विकास एवं पंचायती राजद्ध का कार्य प्रगति पर है।.
कृषि मंत्रालय के अन्तर्गत कृषि एवं सहकारी विभाग राष्ट्रीय ई-गर्वनेंस कार्यक्रम को कृषि क्षेत्र के लिए मिशन मोड़ कार्यक्रम के तौर पर चला रहा है तथा इसमें कृषि, पशुधन एवं मत्स्य क्षेत्र सम्मिलित है। इस परियोजना के अंतर्गत 12 सेवा कलस्टर भी चिन्हित किये गए हैं। एन.ई.जी.पी.-ए परियोजना का देश भर से लागू किया जाना प्रस्तावित है जिसका उद्दे्श्य केन्द्रीय कृषि पोर्टल ;सी.ए.पी.द्ध तथा राज्य कृषि पोर्टल ;एस.ए.पी.द्ध के माध्यम से सरकार से नागरिक/ किसान ;जी.टू.सी./ जी.टू.एफ.द्ध, सरकार से व्यापार ;जी.टू.वी.द्ध, सरकार से सरकार ;जी.टू.जी.द्ध तथा कृषि सेवाएं एकीकृत तरीके से पेश करना है। इस योजना के अन्तर्गत् वर्ष के दौरान निम्न उपलब्धियां हैंः-
1) सभी 193 स्थानों के लिए हार्डवेयर की स्थापना एवं आपूर्ति की गई है।
2) सभी कर्मचारियों का आधारभूत कम्पयूटर प्रशिक्षण कार्य पूरा कर लिया गया है।
3) एन.आई.सी के द्वारा ऐपलीकेशन विकसित की जा रही है।
4) किसान पोर्टल केन्द्रीय सर्बर पर स्थापित किया गया है।
5) जे.आई.सी.ए. का एम.आई.एस. ऐपलीकेशन एन.ई.जी.पी. पर शुभारम्भ हो चुका है।
6) एग्रीमोबाईल तथा एग्रीस्नेट पोर्टल राज्य डाटा सैंटर पर तैनात कर दिया गया है।